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विपिन, कुमार. "विभिन्न शैली गत वर्ण विधान". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.889314.

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Abstract:
चित्र बनाते समय कलाकार इस बात का ध्यान रखता है कि विषयानुरूप कौन से रंग लगाने चाहिये। लघ ु चित्रों में प ्रयुक्त रंग अधिकांशतः चटकीले ह ै। राजस्थानी, जैन तथा पाल शैली क े चित्रा ें में अधिकांश खनिज रंगा े का प ्रयोग किया गया है। इसका कारण तत्कालीन रंगा े की अपलब्धि भी है । गहरे नीले, लाल आ ैर पीले रंगा े का प ्रयोग चित्रा ें में बह ुतायत से मिलता ह ै। राजस्थानी चित्रों की वर्णिका शा ेख आ ैर चटकीले रंगा े की ह ै। क्योंकि आवागमन क े साधन कम होने की वजह से ये चित्र वाह ्य प ्रभाव स े मुक्त है। मुगल शैली क े चित्रा ें में फारस की कोमल रंगा े वाली पद्वति दिखाई देती ह ै। राजस्थानी की आपेक्षा रंगा े
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Bairagi, Jagdish chandra, Dr Aruna Dubey, and Dr Geeta Nayak. "Dalit discourse in the stories of the tenth decade: with special reference to the spirit of rebellion against caste-discrimination." International Journal of Multidisciplinary Research Configuration 2, no. 1 (2022): 34–38. http://dx.doi.org/10.52984/ijomrc2104.

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Abstract:
प्राचीन काल से ही वर्ण व्यवस्था ने सामाजिक ताने बाने पर कुत्सित प्रहार किया है। आज के आधुनिक युग में जाति गत भेद भाव युवा मन में विद्रोह की भावना उत्पन्न की है। जिसका सजीव चित्रण हिन्दी दलित कहानीकार, डॉ. सुशीला टाकभौर, ओमप्रकाश वाल्मीकि जी की कहानियों में परिलक्षित होता है। प्रस्तुत शोध-पत्र में दशवें दशक की कहानियों में जातिगत भेद-भाव का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है, तथा दलित युवा शिक्षित सवर्ण युवाओं सम्मिलित आक्रोश की विवेचना कर इस निष्कर्ष को प्राप्त किया है कि जातिगत समरसता के लिये सामाजिक परिवर्तन हो रहा है परन्तु इसकी गति अभी सुस्त है, इसकी गति को तेज करने के लि
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देवी, रीता, та दुष्यन्त कुमार त्रिपाठी*. "आधुनिकताबोध की अवधारणा: समसामयिकता का सन्दर्भ". Humanities and Development 17, № 2 (2022): 95–98. http://dx.doi.org/10.61410/had.v17i2.77.

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Abstract:
आधुनिक बोध अपने प्रारम्भिक काल से अब तक विभिन्न चरणों से गुजरने के साथ-साथ स्वरूप गत भी बदलाव सेे भी रू-ब-रू हुआ है। इसे अब तक किसी निश्चित परिभाषा में नहीं बाँधा जा सका है। विचारकों ने आधुनिकता के सम्बन्ध मेें जोे अवधारणाएँ बनायी हैं, वे कभी तो इसे समझने में सहायता देती हैं तो कभी इसे अधिक उलझा कर रहस्यमय और अमूर्त बना देती हैं।1 भिन्न-भिन्न विद्वानों ने आधुनिकता की परिभाषा अपने-अपने चिन्तन के अनुसार दी है। आधुनिकता डॉ॰ धनंजय वर्मा के लिए मानव-विकास की यात्रा की जटिल, संश्लिष्ट और गतिशील प्रक्रिया है। वह केवल एक स्थिति या धारणा नहीं है, निरन्तर नये होते चलने की वृत्ति और वर्तमान का बोध भी है।
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बीण्हेमलता. "पर्यावरणीर् मनोववज्ञयन". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.574864.

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Abstract:
पर्यावरणीर् मनोववज्ञयन ;म्दअपतवदउमदजंस चेलबीवसवहलद्ध मानि एिंउसकेपयाािरण के अन्तसाम्बन्धों के अध्ययन पर केहन्ित एक बहहुिषयी क्षेत्र ह।ै यहााँपर पयािा रण ;मदअपतवदउमदजद्ध शब्द की िहृद पररभाषा मेंप्राकृहतक पयाािरणए सामाहिक पयाािरणए हनहमात पयाािरणए शैहक्षक पयाािरण तथा सचूना.पयाािरण सब समाहहत हैं। हिगत िषों में पयाािरण केहिहभन्नपक्षों कल लेकर यायापक शलध कायाहुएहैं र यहहिषय रमशमशएएक समहृअ अध्ययन क्षेत्र बनता िा रहा है इस हिषय में अध्ययन में अनेक हिषयों का यलगदान रहा है। इसके अध्ययन क्षेत्र के अन्तगात िातािरण के प्रकारए उनकेए प्रहत मनष्ुय की अहभिहृिए संस्कृहत केप्रभािए पयाािरण की संरचना र अहभकल्प इत्
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किशोर, एरंडे. "मानव जीवन में स ंगीत की उपादेयता". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.886065.

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Abstract:
समस्त ललित कलाआ ें में संगीत का स्थान अत्यन्त महत्वपूर्ण ह ै। इसके अध्ययन आ ैर अभ्यास से मनुष्य लौकिक तथा अलौकिक दोना ें सुख प्राप्त करता है। मानव जीवन संगीत से ओत-प्रा ेत ह ै। मनुष्य ज्ञान शील प्राणी ह ै। अतः उसे संगीत से विशेष आनन्द प्राप्त होता ह ै। मानव जीवन सदा संगीत से अनुप्राणित होता रहता है। मानव जीवन नाना प्रकार के उत्थान-पतन, हर्ष विवाद तथा राग द्वेष आदि द्वन्द्वात्मक भावा ें का केन्द्र होता ह ै। जहाँ एक आ ेर जीवन की जटिल समस्यायें मनुष्य का े चिन्तित करती रहती ह ै। वहाँ दूसरी ओर स ंगीत मनुष्य की सारी चिन्ताआ ें का निराकरण करता रहता ह ै। मानसिक तथा शारीरिक व्यथा से आक्रान्त हा ेकर जब
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Vad, Suvarna. "POSSIBLE DIRECTIONS FOR CHANGE IN MUSIC COURSE (WITH SPECIAL REFERENCE TO DEVI AHILYA UNIVERSITY)." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 3, no. 1SE (2015): 1–5. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v3.i1se.2015.3499.

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Abstract:
It is necessary to analyze each and every point of the subject while proposing the topic presented, such as why change in the curriculum of music? And why special reference to Devi Ahilya University? Having completed my entire education at Devi Ahilya University, I have been in touch with the vocabulary course for the last 36 years. The curriculum of D.A.V.V.'s music course remained the same for many years, but with the introduction of subjects like computer and commerce in girls colleges, there was a change in the thinking of the students. Earlier, the number of female students in the Faculty
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Tank, Sonali. "The Changing Nature of Coalition Politics in India: An Analysis." RESEARCH HUB International Multidisciplinary Research Journal 10, no. 2 (2023): 58–62. http://dx.doi.org/10.53573/rhimrj.2023.v10n02.012.

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Abstract:
The coalition system in India is the main reason for political instability which is not appropriate for our country. But in the new turn that has come in the politics of India in the last years, the coalition government cannot be denied. Regional parties give a very prominent place to local issues and stop the wrong policies and arbitrariness of the government. For the success of the mixed government, it is necessary that the political parties adopt the spirit of public morality by renouncing egoistic personality and indiscipline. There should be a serious discussion between the scholars of In
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डा, ॅ. राह ुल स्वर्णकार. "मध्यप्रदेश में तबला वादन म ें आय े परिवर्तना ें का अध्ययन". International Journal of Research – Granthaalayah Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.884660.

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Abstract:
तबला एकल वादन में दा े महत्वप ूर्ण पक्ष माने जाते ह ैं:- (1) ध्वनि प ्रधान तबला इसके अ ंतर्गत तबले की तासीर एवं अपनी कल्पना शक्तियों का े जीवंत रूप देने क े लिए वादक र्कइ तरह के नए प ्रयोग ध्वनि क े सम्बंध में करते ह ैं जिसका मुख्य कारण आध ुनिक समय की सुविधाएँ जैसे माइक्रोफोन, स्पीकर आदि ह ैं। इनकी ध्वनि विस्तार क्षमता के अनुरूप ही अपनी वादन सामग्री का े नियंत्रित करके प ्रदर्शि त किया जाता है जा े आज के युग की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि ह ै। (2) अकादमिक प ्रधान तबला इसके अ ंतर्गत तबले की वादन सामग्री निर्धारित साहित्य एव ं शास्त्र क े अनुसार प ्रयोग की जाती ह ै। इस श ैली में ब ंधनों का जा ेर होत
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डा, ॅ. प. ्रेमलता तिवारी. "स ंगीत चिकित्सा -एक नवाचार". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.886095.

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Abstract:
यह संगीत स्वर लहरियांे क े मध्यम से कानो ं में उतरकर दिल में जगह बनाता ह ै। बूंदांे का टपकना, पत्ता े ं का सरसराना, लहरांे का लहराना, प ंछियांे का कलरव करना संगीत ही तो ह ै इस बात से इ ंकार नहीं किया जा सकता कि जब कोई कर्ण पि ्रय संगीत की लहरियाँ गूंजती ह ै तो हदय में न क ेवल कंपन हा ेता है,बल्कि स ंगीत रंगा े ं में घ ुलमिलकर मन का े अमृतमय कर देता ह ै। आ ेशो ने कहा था कि जीवन में एक ही चीज बचानी चाहिए और वह ह ै आत्मा और उसका संगीत क्या ेकि मस्तिष्क आ ैर हृदय संगीत की धरातल पर ही खडे़ हा ेकर एक दूसरे मे लीन हो जाते ह ै ं। कितने तर्क ,कितने विश्वास,कितनी परिभाषाएँ, कितने मत,कितने सिद्धांत लेकिन
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डा, ॅ. सुवर्णा वाड. "स ंगीत क े पाठ्यक्रम में परिवर्तन की स ंभावित दिशाएं". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–5. https://doi.org/10.5281/zenodo.887000.

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Abstract:
प्रस्तुत विषय की प्रस्तावना करते समय विषय के प्रत्येक बिन्दु का विश्लेषण करना आवश्यक ह ै जैसे संगीत के पाठ्यक्रम में परिवर्तन क्या ें? तथा देवी अहिल्या विश्व विद्यालय का विशेष संदर्भ क्या ें? मेरी सम्पूर्ण शिक्षा देवी अहिल्या विश्वविद्यालय में होने , मैं गत 36 वर्षों से क ंठ संगीत के पाठ्यक्रम क े सम्पर्क में ह ूँ। दे.अ.वि.वि का कंठ संगीत का पाठ्यक्रम र्कइ वर्षा ें तक एक समान ही रहा परन्तु कम्प्यूटर एव ं कॉमर्स जैसे विषयों क े कन्या महाविद्यालयों मे ं पदार्प ण होने से छात्राओं की सा ेच म ें परिवर्तन आया। प ूर्व में कला संकाय में छात्राओं की संख्या काफी सराहनीय होती थी परन्तु धीरे धीरे छात्राओं
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द्विजेश, उपाध् याय, та मकुेश चन्‍द र. पन डॉ0. "तबला एवंकथक नृत्य क अन् तर्सम्‍ बन् धों का ववकार्स : एक ववश् ल षणात् मक अ्‍ ययन (तबला एवंकथक नृत्य क चननांंक ववे ष र्सन् र्भम म)". International Journal of Research - Granthaalayah 5, № 4 (2017): 339–51. https://doi.org/10.5281/zenodo.573006.

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Abstract:
तबला एवांकथक नृत्य ोनन ताल ्रधाान ैं, इस कारण इनमेंसामांजस्य ्रधततत ैनता ै। ूरवव मेंनृत्य क साथ मृो ां की स ां त ैनतत थत ककन्तुबाो म नृत्य मेंजब ्ृां ािरकता ममत्कािरकता, रांजकता आको ूैलुओांका समाव श ैुआ तन ूखावज की ांभतर, खुलत व जनरोार स ां त इन ूैलुओांस सामांजस्य नै ब।ाा ूा। सस मेंकथक नृत्य क साथ स ां कत क कलए तबला वाद्य का ्रधयन ककया या कजस मृो ां (ूखावज) का ैत ूिरष्कृत एवां कवककसत प ू माना जाता ै। तबला वाद्य की स ां त, नृत्य क ल भ सभत ूैलुओांकन सैत प ू में्रधस्तुत करन मेंस ल साकबत ैु। कथक नृत्य की स ां कत में ूररब बाज, मुख्यत लखन व बनारस ररान का मैत् वूरणव यन ोान रैा ै। कथक नृत्य की स ां कत
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Ashvani, kumar. "मध्यकालीन कृषि व्यवस्था में उत्पादन तकनीकी विशिष्टता की महत्ता". Dristikon 1, № 13 (2021): 1460–64. https://doi.org/10.5281/zenodo.15303791.

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Abstract:
प्राचीन काल की भांति मध्यकाल में भी भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान थी। मुगल साम्राज्य की लगभग 85 प्रतिशत जनसंख्या गाँवों में निवास करतीथी।1 लघु उद्योग एवं व्यापार आदि की अच्छी वृद्धि  के बाद भी तत्कालीन आर्थिक गतिविधियों में कृषि कार्य सर्वोपरि था। यद्यपि देखा जाए तो 1991 के आर्थिक सुधारों से पहले के आधुनिक भारत में भी कृषि क्षेत्रा की हिस्सेदारी हमारी जी.डी.पी. में अधिक बनी रही। प्रारम्भिक मध्यकालीन अर्थव्यवस्था ;750-1200द्ध के स्वरूप की बात की जाए तो यह एक सामंतवादी स्वरूप था जो गुप्त काल से प्रारम्भ होकर इसकाल में सामंतवादी उत्पादन प्रणाली विकसित कर चुका था। भूमि अनुदान इस काल की विशे
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Singh, Pushpendra. "Sustainable Development Goal-17 World Road: India's Journey." RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 7, no. 5 (2022): 128–32. http://dx.doi.org/10.31305/rrijm.2022.v07.i05.018.

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Abstract:
India has made a great effort in a third of the journey on the path of Goal-17 of the United Nations Agenda 2030. In one third of the journey, India has made commendable efforts and dedicated its best in the development journey amidst incomplete preparation, excessive population pressure, inadequacy of resources and lack of technical knowledge and the situation of the most dreaded Karona period. India is ranked 120 out of 165 countries in the index released by the United Nations today, which is a position after slipping 3 points from the 117th rank in the previous index. Even if the pace of de
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KUMAR, LAVLESH. "भिखारीदास की नारी-दृष्टि (विशेष संदर्भ: रससारांश)". Global thought 7, № 26 (2022): 176. https://doi.org/10.5281/zenodo.15463076.

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Abstract:
भिखारीदास की नारी-दृष्टि (विशेष संदर्भ : रससारांश) लवलेश कुमार   हिंदी साहित्य के इतिहास में आदिकाल और रीतिकाल हमेशा से सवालों के घेरे में रहा है। जहाँ आदिकाल ग्रंथों की प्रमाणिकता को लेकर तो वहीं रीतिकाल अपनी विषय सामग्री को लेकर खासकर श्रृंगार को लेकर चर्चा का विषय रहा है। आलोचकों ने रीतिकाल, श्रृंगारकाल, अंधकार काल, अश्लीलता भरा काव्य, मौलिकता का अभाव आदि रूपों में इसका बखान किया है। यह सब आलोचकों का रीतिकाल के प्रति बहुत ही उदासीन और एकांगी दृष्टिकोण को दर्शाता है। आज समय है इन पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर रीतिकाल पर चर्चा करने की बात है। हिंदी साहित्य के दो सौ वर्षों तक (संवत् 1700 190
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-, Pravin Kaslikar. "उत्तर भारतीय शास्त्रीय संगीतातील गत - अर्थ, स्वरूप आणि गुण". International Journal For Multidisciplinary Research 5, № 3 (2023). http://dx.doi.org/10.36948/ijfmr.2023.v05i03.3030.

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Abstract:
भारतीय शास्त्रीय संगीत हि जगातील एक अत्यंत प्राचीन संगीत पद्धती मानली जाते. काही पक्षी, प्राणी यांच्या आवाजांची नक्कल करत सुरु झालेल्या प्रवासाची परिणीती अनेक सादरीकरणाच्या प्रकारांपर्यंत झाली. त्यामध्ये कंठ संगीतातील सामगायन, जाती, प्रबंध, धृपद, ख्याल इत्यादी प्रकार दिसून येतात. वाद्य संगीताचा विचार केल्यास त्यातही एक खास आणि आकर्षक प्रकार दिसून येतो., तो म्हणजे गत. गत या शब्दाचा अर्थ काय? त्याचे स्वरूप कसे ? त्याचे काही आवश्यक गुण असतात का ? या घटकांचा अभ्यास सदर लेखात करण्यात आलेला आहे.
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डॉ., प्रीति श्रीवास्तव. "कोरोना महामारी एवं श्रीमद्भगवद्गीता का तनाव प्रबंधन". 30 червня 2022. https://doi.org/10.5281/zenodo.6990482.

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Abstract:
<em>यह सत्य है कि गत वर्षों में कोरोना महामारी ने संपूर्ण मानव जीवन को उथल</em><em>-पुथल कर दिया है । प्रत्येक व्यक्ति की जीवन शैली आज पूर्ण रूपेण परिवर्तित हो गई है। कोरोना के दुष्प्रभाव के कारण व्यक्ति का मानसिक संतुलन बिगड़ रहा है तथा वह तनाव ग्रस्त होता जा रहा है। ऐसी विषम परिस्थिति में श्रीमद्भगवद्गीता का यह श्लोक &lsquo;कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन&rsquo; जिसमें संपूर्ण जीवन का सार निहित है, बहुत ही उपकारक और अभीष्ट है। भगवद्गीता में सांसारिक और आध्यात्मिक दोनों ही दृष्टियों से जीवन जीने की कला बताई गई है। आज जबकि मनुष्य विभिन्न अंतर्द्वनद्वों से जूझ रहा है, ऐसे में गीता के प्रबंधन
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पंकज वर्मा та डॉ रश्मि सिन्हा निगम. "वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भारतीय समाज कीमहिलाओं में मानवाधिकारों के प्रति जागरूकता की प्रासंगिकता". International Journal of Advanced Research in Science, Communication and Technology, 25 грудня 2022, 190–96. http://dx.doi.org/10.48175/ijarsct-7779.

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Abstract:
21वीं सदी में नारी कानून की दृष्टि में अब अबला नहीं सबला है। पुरूष जगत का ध्यान इस तथ्य की ओर आकृष्ट हुआ है कि नारी भी मानव जीवन का उतना ही आवश्यक एवं महत्वपूर्ण अंग है जितना कि पुरुष। वह पुरुष की वासना-तृप्ति का एक साधन मात्र नहीं है बल्कि वह जननी, सहचारी एवं मार्गदर्शिका भी है। महिलाएं पुरुषों से किसी भी तरह से कमजोर नहीं है परंतु इसका एक दूसरा पहलू भी है गत वर्षों में महिलाओं के अधिकारों का जितना उल्लंघन हुआ है शायद पहले कभी नहीं हुआ। समाज व राज्य के विभिन्न गतिविधियों में पर्याप्त सहभागिता के बावजूद महिलाओं के साथ अभद्र व्यवहार जैसे घरेलू हिंसा, कार्यस्थलों, सड़कों, सार्वजनिक यातायात एवं अ
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Kumari, Pooja. "भारतभूमि की महिमा". Towards Excellence, 31 березня 2022, 274–80. http://dx.doi.org/10.37867/te140126.

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Abstract:
‘माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः’ इस वेद वचनानसुार यह भूमि हमारी माता कही जाती है। विश्व में बहुत सारे देश हैं परन्तु किसी भी देश में उस देश के वासी, देश की धरती को माता शब्द से अभिहित करे ऐसा देश भारत ही है, जिसकी भूमि की महिमा माता से कहीं भी कम नहीं । कहा भी गया है कि - उपाध्यायान्दशचार्य आचार्याणां शतं पिता । सहस्रं तु पितृन् माता गौरवेणातिरिच्यते ।। (मनु.स्मृतिः १४५) अर्थात् दस उपाध्यायों से बढ़कर एक आचार्य होता है, सौ आचार्यों से बढ़कर पिता होता है और पिता से हजार गुणा बढ़कर माता गौरवमयी होती है। भारत भूमि की महिमा अत एव सर्व जन समवेद्य है क्योंकि इस भूमि को माता जैसा गौरवमय स्थान प्राप्त है
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