Littérature scientifique sur le sujet « नौसैनिक बल »

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Articles de revues sur le sujet "नौसैनिक बल"

1

सीमा, कदम. "धरती क े ताप की दवा". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.883026.

Texte intégral
Résumé :
आज धरती माॅ ं का द ुःख सर्वविदित है। उसे संभाले रखन े वाले तत्व-जल, वनस्पति, आकाश आ ैर वाय ु, विकास की चिमनियों स े निकलन े वाले धुए ं के कारण हांप रहे हैं । भू-मण्डलीकरण की लालची जीभ न े इन सभी तत्वों को बाजार में सुन्दर पैकिंग में भर व्यापार की वस्त ु क े रूप में प ेश कर दिया है । इन चारों के कम होन े से पाॅ ंचव े अंग यानी अग्नि न े आज प ूरी धरती को भीतर-बाहर से घेर लिया है । जिसके कारण धरती का भीतर-बाहर सब तपन े लगा ह ै । इसीलिए ‘पृथ्वी दिवसों’ की आड ़ में संयुक्त राष्ट्र टाइप धरती के द ूर क े रिश्त ेदार आईसीयू में डाॅयलिसिस पर लेटी धरती को शीशों क े कमरों से झांकत े रहत े हैं । धरती क े बु
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2

डा, ॅ. सीमा सक्सेना. "स ंगीत आ ैर समाज". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.886828.

Texte intégral
Résumé :
्रकृति का मूल सिद्वान्त ह ै कि मनूष्य न े अपनी नैस ेर्गिक आवष्यकताओं क े लिये समाज क े अवलम्ब को अवधारित किया उसे अपने सुखःदुख की हिस्सेदारी एव ं व्यवहारिक बल व असुरक्षा से बचकर क े लिये समाज की सृष्टि करनी पड़ी अथवा समाज की शरण में जाना पड़ा। बाल्यकाल, युवावस्था, व ृद्वावस्था, अथवा यह कहा जाये कि जीवन क े प ्रत्येक चरण में मनुष्य का े समाज की आवष्यकता नैसर्गिक होती ह ै। समाज यदि जननी है तो व्यक्ति उसका बालक। विकास की प्रारंभिक अवस्था से निरन्तर प ्रगति पथ पर बढ़ते ह ुऐ उसने अपनी आवष्यकताओं क े रूप सृजन करना आरंभ किया आ ैर-यही सृजन कलाओं का उद्गम स्थल बना। उसे यह पता ही नहीं चला कि कब उसकी इसी
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प, ्रो. किन्श ुक श्रीवास्तव. "हिन्दुस्तानी एवं पाश्चात्य स ंगीत पद्धति क े सम्मिश्रण द्वारा उत्पन्न स ंगीत- तत् वाद्या ें के विश ेष स ंदर्भ में (फ़्य ूज़न-म्यूजि ़क)". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.885857.

Texte intégral
Résumé :
शास्त्रीय संगीत भारतीय संस्कृति का एक अनमोल तत्व है। का ेई भी धर्म, सभ्यता, संस्कृति, परम्परा संगीत के साथ ही चिरन्तनता को प ्राप्त हा ेता ह ै। पृथ्वी पर प्रत्येक जीवन्त तत्व संगीत से जुड़ा ह ै आ ैर प ्राणीमात्र आपस में संगीत द्वारा ही जुड़े ह ै। क्योंकि मानव भाव-प ्रधान है आ ैर संगीत क े द्वारा अभिव्यक्त भावों क े माध्यम से ही भिन्न संस्कृतियों क े लोग भी आपस में जुड़े ह ै ं। शास्त्रीय संगीत या भारतीय सांस्कृतिक संगीत जिसे व ैदिक संगीत अथवा प्राचीन संगीत आ ैर कलात्मक संगीत भी कहा जा सकता ह ै, अपनी भा ैगोलिक सीमाओं क े अन्दर ही भिन्न-भिन्न धाराआ ें में पल्लवित होता आ रहा ह ै। भिन्न-भिन्न धर्मा
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रान, ू. उपाध्याय. "प्राक ृतिक संसाधनों क े संरक्षण म ें समाज की भ ूमिका". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.883012.

Texte intégral
Résumé :
भारतवर्ष में प ्राचीन शास्त्रों, व ेद-पुराणों मे ं, धर्म ग्रन्थो में तथा ऋषि-मुनियों न े पर्या वरण की शुद्धता पर अधिक बल दिया है । व ेदों में प ्रकृति प ्रदत्त पर्या वरण को द ेवता मानकर कहा गया है कि- ‘‘या े द ेवा ेग्नों या े प्सु चो विष्वं भ ुव नमा विव ेष, यो औषधिष ु, या े वनस्पतिषु तस्म ें द ेवाय नमो नमः’’ अर्था त जा े स ृष्टि, अग्नि, जल, आकाष, प ृथ्वी, और वाय ु से आच्छादित ह ै तथा जो औषधियों एव ं वनस्पतिया ें में विद्यमान ह ै । उस पर्यावरण द ेव को हम नमस्कार करत े है । प्रकृति मानव पर अत्यंत उदार रही ह ै । पृथ्वी पर अपन े उद्वव के बाद से ही मानव अपन े अस्तित्व के लिय े प्रकृति पर निर्भर रहा
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5

ख ुट, डिश्वर नाथ. "बस्तर का नलवंश एक ऐतिहासिक पुनरावलोकन". Mind and Society 9, № 03-04 (2020): 47–52. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-93-4-20217.

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Résumé :
सभ्यता का विकास पाषाण काल स े प ्रार ंभ हा ेता ह ै। इस काल म ें बस्तर म े रहन े वाल े मानव भी पत्थर क े न ुकील े आ ैजार बनाकर नदी नाल े आ ैर ग ुफाआ ें म ें रहत े थ े। इसका प ्रमाण इन्द ्रावती आ ैर नार ंगी नदी के किनार े उपलब्ध उपकरणों स े हा ेता है। व ैदिक युग म ें बस्तर दक्षिणापथ म ें शामिल था। रामायण काल म ें दण्डकारण्य का े उल्ल ेख मिलता ह ै। मा ैर्य व ंश क े महान शासक अशा ेक न े कलि ंग (उड ़ीसा) पर आक्रमण किया था, इस य ुद्ध म ें दण्डकारण्य क े स ैनिका ें न े कलि ंग का साथ दिया था। कलि ंग विजय क े बाद भी दण्डकारण्य का राज्य अशा ेक प ्राप्त नही ं कर सका। वाकाटक शासक रूद ्रस ेन प ्रथम क े समय
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चा ैहान, ज. ुवान सि ंह. "प ्रवासी जनजातीय श्रमिका ें की प ्रवास स्थल पर काय र् एव ं दशाआ ें का समाज शास्त्रीय अध्ययन". Mind and Society 8, № 03-04 (2019): 38–44. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-83-4-20196.

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Résumé :
भारत म ें प ्रवास की प ्रक्रिया काफी लम्ब े समय स े किसी न किसी व्यवसाय या रा ेजगार की प ्राप्ति ह ेत ु गतिशील रही ह ै आ ैर यह प ्रक्रिया आज भी ग ्रामीण जनजातीय सम ुदाय म ें गतिशील दिखाइ र् द े रही ं ह ै। प ्रवास की इस गतिशीलता का े रा ेकन े क े लिए क ेन्द ्र तथा राज्य सरकार न े मनर ेगा क े तहत ् प ्रधानम ंत्री सड ़क या ेजना, स्वण र् ग ्राम स्वरा ेजगार या ेजना ज ैसी सरकारी या ेजनाआ े ं का े लाग ू किया ह ै, ल ेकिन फिर ग ्रामीण जनजातीय ला ेगा े ं क े आथि र्क विकास म े ं उसका असर नही ं दिखाइ र् द े रहा ह ै। ग ्रामीण जनजातीय सम ुदाया ें म े ं निवास करन े वाल े अधिका ंश अशिक्षित हा ेन े क े कारण शा
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7

द्विजेश, उपाध् याय, та मकुेश चन्‍द र. पन डॉ0. "तबला एवंकथक नृत्य क अन् तर्सम्‍ बन् धों का ववकार्स : एक ववश् ल षणात् मक अ्‍ ययन (तबला एवंकथक नृत्य क चननांंक ववे ष र्सन् र्भम म)". International Journal of Research - Granthaalayah 5, № 4 (2017): 339–51. https://doi.org/10.5281/zenodo.573006.

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Résumé :
तबला एवांकथक नृत्य ोनन ताल ्रधाान ैं, इस कारण इनमेंसामांजस्य ्रधततत ैनता ै। ूरवव मेंनृत्य क साथ मृो ां की स ां त ैनतत थत ककन्तुबाो म नृत्य मेंजब ्ृां ािरकता ममत्कािरकता, रांजकता आको ूैलुओांका समाव श ैुआ तन ूखावज की ांभतर, खुलत व जनरोार स ां त इन ूैलुओांस सामांजस्य नै ब।ाा ूा। सस मेंकथक नृत्य क साथ स ां कत क कलए तबला वाद्य का ्रधयन ककया या कजस मृो ां (ूखावज) का ैत ूिरष्कृत एवां कवककसत प ू माना जाता ै। तबला वाद्य की स ां त, नृत्य क ल भ सभत ूैलुओांकन सैत प ू में्रधस्तुत करन मेंस ल साकबत ैु। कथक नृत्य की स ां कत में ूररब बाज, मुख्यत लखन व बनारस ररान का मैत् वूरणव यन ोान रैा ै। कथक नृत्य की स ां कत
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पाण्ड ेय, ऋषिराज. "रायप ुर जिल े म ें जन च ेतना का विकास". Mind and Society 8, № 03-04 (2019): 50–53. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-83-4-20198.

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Résumé :
भारत म ें अ ंग ्रेजा ें क े विरूद्ध स्वत ंत्रता स ंग ्राम क े रूप म ें सन ् 1857 म ें सव र्प ्रथम प ्रबल क्रा ंति ह ुइ र्। छत्तीसगढ ़ अ ंचल क े रायप ुर जिल े क े सा ेनाखान जमीदारा ें क े जमी ंदार नारायण सि ंह द्वारा क्रा ंति का बिग ुल फ ूंका गया, उनकी फा ंसी क े बाद स ैन्य विद ्रा ेह का न ेतष्त्व हन ुमान सि ंह द्वारा किया गया। सन ् 1885 म ें का ंग ्रेस की स्थापना ह ुइ र्, अ ंचल म ें राष्ट ्रीय च ेतना क े विकास म ें इसका भरप ूर या ेगदान रहा। साथ ही आय र् समाज, मालिनी रीडस र् क्लब, छत्तीसगढ ़ बाल समाज, कवि समाज की स्थापना जनच ेतना क े विकास की दष्ष्टि स े उल्ल ेखनीय ह ै। प ं. स ुन्दरलाल शमा र् न
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गा, ैरव यादव. "स ंगीत क े प्रचार प्रसार में स ंचार साधना ें की भ ूमिका". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.886968.

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Résumé :
बीसवीं शताब्दी क े पूर्वा द्र्ध को व ैज्ञानिक क्रांति क े अभ्युदय का समय कहा जा सकता है, जहाँ व ैज्ञानिक अविष्कारों क े अ ंतर्गत कुछ ऐसे उपकरणों का अविष्कार ह ुआ जिन्होंने संगीत क े प्रचार-प्रसार का े तीव्रता प्रदान की। संचार साधनों क े प्रारंभिक दौर में संगीत क े क्षेत्र में एक वैज्ञानिक अविष्कार का विश ेष महत्व ह ै ,जिसने भारतीय संगीत के क्षेत्र में ही नहीं वरन् विश्व में क्रांति ला दी यह था रेडिया े का आगमन। भारत में इसकी स्थापना सन् १९२७ ई. में र्ह ुइ । सन् १९३६ ई. में इ ंडियन स्टेट ब ्रॉडकास्टिंग स ेवा का नाम बदलकर आकाशवाणी कर दिया गया। उस समय आकाशवाणी एक सशक्त माध्यम था शास्त्रीय संगीत क
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डा, ॅ. वसंुधरा पवार. "स ंगीत म ें नवाचार का इतिहास". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.886069.

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Résumé :
भारतीय संगीत का इतिहास उतना ही प्राचीन आ ैर अनादि ह ैं, जितनी मानव जाति। इसका सभारंच व ैदिक माना जाता ह ै। जितनी प्राचीन हमारे देश की सभ्यता आ ैर संस्कृति है उतना ही विस्तृत एव ं विषाल यहाँ के संगीत का अतीत ह ै। भारतीय संगीत का उद्भव सामदेव की ऋचाओं से ह ुआ है तथा इसका शैषव काल ऋषि मुनियों की तपोभूमि तथा यज्ञवेदिया ें क े पावन घ्र ुम क े सान्निध्य में सुवासित हा ेकर व्यतीत ह ुआ। यही कारण है कि भारतीय मनीषियों ने नाद का े ईश्वर के समान कहा गया ह ै, तथा नाद ब्रह्य की सदैव उपासना की ह ै। “ न नादेन बिना गीतं न नादेन बिना स्वरः। न नृŸां तस्मान्नादात्मकं जगत्।। ” न ता े नाद के बिना गीत है, न नाद क े
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