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रामेश्वरी, कुमारी 1. परमेश्वरी 2. "जोधपुर और आसपास के क्षेत्रों में कला, संस्कृति और इतिहास का संगम". International Educational Applied Research Journal 09, № 05 (2025): 35–56. https://doi.org/10.5281/zenodo.15390151.

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यह समीक्षा पत्र जोधपुर, राजस्थान की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और कला परंपराओं की व्यापक चर्चा करता है। जोधपुर, जिसे ‘ब्लू सिटी’ के नाम से भी जाना जाता है, राजस्थान का एक प्रमुख ऐतिहासिक और सांस्कृतिक केंद्र है। इस शहर का इतिहास और वास्तुकला राजपूतों के गौरव और उनकी कला के अद्वितीय योगदान से भरा हुआ है। जोधपुर के शाही किलों, महलों, और हावेलियों की वास्तुकला ने न केवल राज्य की ऐतिहासिकता को परिभाषित किया है, बल्कि यह भारतीय और मुग़ल वास्तुकला के संगम का प्रतीक भी है। मेहरानगढ़ किला, उम्मेद भवन पैलेस, और जसवंत थड़ा जैसे स्थापत्य उदाहरण जोधपुर के ऐतिहासिक महत्व को दर्शाते हैं। पत्र में ज
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परमेश्वरी та कुमारी रामेश्वरी. "राजस्थान की ऐतिहासिक धरोहर: जोधपुर और उसके आसपास के क्षेत्रों की सांस्कृतिक यात्रा". International Educational Scientific Research Journal 11, № 5 (2025): 53–57. https://doi.org/10.5281/zenodo.15388880.

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<strong>इस शोध का उद्देश्य राजस्थान की ऐतिहासिक धरोहर, विशेष रूप से जोधपुर और उसके आसपास के क्षेत्रों की सांस्कृतिक यात्रा पर आधारित महत्वपूर्ण पहलुओं का विश्लेषण करना है। जोधपुर, जो "सूर्य नगरी" और "नीली नगरी" के नाम से प्रसिद्ध है, अपनी वास्तुकला, किलों, महलों, मंदिरों और सांस्कृतिक धरोहर के कारण एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल बन चुका है। इस शहर का ऐतिहासिक महत्व राव जोधा द्वारा 1459 में स्थापित किए गए मेहरानगढ़ किले से जुड़ा हुआ है, जो जोधपुर का प्रमुख आकर्षण है।</strong> <strong>राजस्थान की वास्तुकला में राजपूत और मुग़ल शैलियों का अद्भुत संगम देखने को मिलता है, जिसे जोधपुर के प्रमुख स्थलों जैसे
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भारद्वाज, पूर्वा. "स्वतंत्रता से पूर्व मारवाड़ के किसान आंदोलनों में राजनीतिक संगठनों की भूमिका". Innovation The Research Concept 9, № 2 (2024): H20—H31. https://doi.org/10.5281/zenodo.10811766.

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This paper has been published in Peer-reviewed International Journal "Innovation The Research Concept"&nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; URL : https://www.socialresearchfoundation.com/new/publish-journal.php?editID=8705 Publisher : Social Research Foundation, Kanpur (SRF International)&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; Abstract : &nbsp;जोधपुर (तत्कालीन मारवाड़) रियासत राजस्थान की सबसे बड़ी रियासत थी। यहाँ खेती करने वालों को न भूमि पर अधिकार था,&nbsp;न फसलों पर। सामन्तों के एजेन्ट के रूप में जागीरदार
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मिर्ज़ा, जुबैदा, та महेन्द्र कुमार. "जोधपुर के ग्रामीण अंचलों में विरासतीय पर्यटन का विकास : वर्तमान स्थिति और भविष्य की दिशा". International Journal of History 7, № 5 (2025): 204–6. https://doi.org/10.22271/27069109.2025.v7.i5c.427.

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Sharma, Suresh. "जोधपुर संभाग के शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय के प्रशिक्षणार्थियों की तार्किक एवं समस्या समाधान योग्यता का अध्ययन". Anusanadhan: A Multidisciplinary International Journal (in Hindi) 9, № 3&4 (2024): 20–23. https://doi.org/10.24321/2456.0510.202405.

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डॉ., हरिसिंह राजपुरोहित. "श्रीपरशुरामचरितमहाकाव्यम् - एक दृक्पात". 'Journal of Research & Development' 15, № 16 (2023): 177–80. https://doi.org/10.5281/zenodo.8362665.

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<strong>ग्रन्थ परिचय -</strong> &nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; &lsquo;&lsquo;श्रीपरशुरामचरितमहाकाव्यम्&rsquo;&rsquo; बीकानेर मण्डलवास्तव्य कविवरेण्य डॉ. पुष्कर दत्त शर्मा द्वारा ग्यारह सर्ग में प्रणीत ऐतिहासिक महाकाव्य है। प्रस्तुत महाकाव्य का प्रकाशन प्रो. प्रभाकर शास्त्री एवं डॉ. सुभाष शर्मा के सम्पादकत्व में वर्ष 2011 में राष्ट्रिय संस्कृत साहित्य केन्द्र, जयपुर द्वारा किया गया। रामायण, महाभारत एवं पुराग्रन्थों को उपजीव्य बनाकर संस्कृत में विरचित ऐतिहासिक महाकाव्यों की संख्या आधुनिक काल में पर्याप्त कही जा सकती है, जिसमें भी ब्रह्मतेजोभास्कर भगवान् श्रीपर
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Chouhan, Manish. "INFLUENCE OF MODERN PAINTING ON HANDICRAFTS OF JODHPUR DISTRICT." ShodhKosh: Journal of Visual and Performing Arts 2, no. 2 (2021): 124–33. http://dx.doi.org/10.29121/shodhkosh.v2.i2.2021.48.

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English: With the development of civilization, we get evidence of handicrafts creation art. Many types of were made by humans, whose use is seen in many forms. According to the demand of time and their utility, their form changed. In the present time, the forms, shapes, expressions etc. of the prevailing arts have been changed and influenced. In such a situation, how can ancient arts like handicrafts remain untouched. The desire for new art and new experiments have changed the meaning of handicraft art. In this context, The influence of modern painting can also be on the handicrafts being made
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डॉ., प्रमोद लक्ष्मणराव चव्हाण. "पर्यटनातील इतिहासाचे स्थान". उदयगिरी - बहुभाषिक इतिहास संशोधन पत्रिका (Udayagiri Bahubhashik Itihas Sanshodhan Patrika - A Bimonthly, Refereed, & Peer Reviewed Journal of History) 01, № 01 (2023): 23–27. https://doi.org/10.5281/zenodo.8336837.

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<strong>पर्यटनातील इतिहासाचे स्थान</strong> डॉ. प्रमोद लक्ष्मणराव चव्हाण इतिहास विभाग, जयक्रांती कला वरिष्ठ महाविद्यालय, लातूर, जिल्हा: लातूर, महाराष्ट्र, भारत Received: 21 March, 2023 | Accepted: 23 March, 2023 | Published: 25 March, 2023 --------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- मनुष्याचा स्वभाव निसर्गता भ्रमणशील आहे. तो सतत नवीन अनुभूती घेण्याचा प्रयत्न करीत असतो. त्याची ही जिज्ञासू प्रवृत्ती त्याच्या प्रगतीचे मूळ कारण ठरते. आपल्या मनातील जिज्ञासा शांत करण्यासाठी मानव एका ठिकाणाहून दुसऱ्या ठि
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वीर, सिंह. "लोक साहित्य में आहुवा ठिकाने की शौर्य-गाथा". 31 грудня 2022. https://doi.org/10.5281/zenodo.7509769.

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जोधपुर रियासत का आहुवा ठिकाना&nbsp;दोहरी ताजिमयुक्त सिरायत ठिकाना था। जिसके ठाकुर&nbsp; को अव्वल दर्जा एवं न्यायिक अधिकार प्राप्त थे। राठौड़ रियासत जोधपुर में महाराजा के संरक्षक,सलाहकार,प्रधानमंत्री एवं प्रमुख सेनापति का दायित्व अधिकतर समय तक आहुवा ठिकानेदारो ने निभाया था। आहुवा के ठिकानेदारो ने शासन-प्रशासन, युद्ध के मैदान,संस्कृति- संरक्षण और अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति के समय महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस कारण आहुवा ठिकाने का इतिहास स्वर्णिम,गौरवशाली एवं उज्जवल रहा है। अतः लोक-साहित्य की विभिन्न विधाओं यथा गीत, दोहा,छंद, सोरठा कवित, मरसिया इत्यादि में प्रचुर मात्रा में आहुवा के ठिकानेदार
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Dhama, Shalini. "राजस्थानी चित्रकला में नायक-नायिका व प्रकृति अंकन". ShodhKosh: Journal of Visual and Performing Arts 4, № 1 (2023). https://doi.org/10.29121/shodhkosh.v4.i1.2023.3474.

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प्रारम्भिक राजस्थानी चित्र 16वीं शती में उपलब्ध हैं। इन चित्रों का मुख्य विषय कृष्ण-लीला, नायिका-भेद तथा रागमाला है। राजस्थानी चित्रकारों ने दृश्य-जगत् की अपेक्षा कल्पना-जगत् से आधारित चित्र ही लिये हैं। इसी युग में क्षेत्रीय शैलियों का विकास प्रारम्भ होता है जिसमें मेवाड़, नाथद्वारा, बँूदी, किशनगढ़, बीकानेर, जोधपुर, जयपुर आदि शैलियाँ प्रमुख हैं। प्रत्येक शाखा में अपनी कुछ न कुछ स्थानीय विशेषता अवश्य रही जिससे उनके चित्रों को अन्य शैलियों के चित्रों से भिन्न रूप में पहचाना जाता है।
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., शंभूसिंह, та डॉ संजय परिहार. "श्री श्री 1008 श्री शान्तिनाथ जी महाराज का जीवन परिचय". Shodhshauryam International Scientific Refereed Research, 20 квітня 2025, 121–33. https://doi.org/10.32628/shisrrj258224.

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भारतीय इतिहास मे दक्षिण भारत की राष्ट्रकुट/राठौड वंश की कन्नौज (बदायूं) शाखा से आकर मारवाड/जोधपुर में शासन स्थापित करने वाल मारवाड के राठौड वंश के आदिपुरूष रावसिहा जी थे। उन्हीं के वंशज रावजोपसा जी के पुत्र राव जोरा जी राठौड के कुल में भागली गाॅव जिला जालोर (राज.) में अवतरित दिव्य महात्मा श्री श्री 1008 श्री शान्तिनाथ जी महाराज जिनका आज भी हर कुम्भ मेले एवं पूरे भारतवर्ष के संत समाज में विशेष सम्माननीय स्थान प्राप्त है। यह उन्हीं महात्मा का जीवन परिचय है।
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Chouhan, Manish, та Renu Sharma. "लोकदेवता बाबा रामदेवजी को अर्पित हस्तशिल्पिय घोड़ों का कलात्मक विश्लेषण". ShodhKosh: Journal of Visual and Performing Arts 3, № 2 (2022). http://dx.doi.org/10.29121/shodhkosh.v3.i2.2022.226.

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राजस्थान की धरती लोक कलाओं और लोकदेवताओं की जननी के रूप में सदैव विश्व प्रसिद्ध रही है। पश्चिमी राजस्थान के लोक देवता बाबा रामदेवजी अपने चमत्कार के लिए प्रसिद्ध रहे हैं। भक्त अपने किसी विशेष कार्य की पूर्ति के लिए बाबा रामदेवजी से प्रार्थना करते हैं। मन्नत पूरी होने पर भक्त अपनी श्रद्धा के अनुसार कपड़े से बने घोड़े चढ़ाते हैं। इसी कड़ी में जोधपुर जिले के प्रताप नगर क्षेत्र में बाबा रामदेवजी को कपड़े से लेकर विभिन्न प्रकार के छोटे-बड़े कलात्मक घोड़े चढ़ाने का काम किया जा रहा है. घोड़े बनाने का यह काम जोधपुर ही नहीं जैसलमेर, रामदेवरा और पोकरण में भी किया जा रहा है. घोड़ों को घास की छप्पर, सफेद औ
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., शंभूसिंह, та डॉ संजय परिहार. "श्री योगी ईश्वरनाथ जी का जीवन परिचय". Gyanshauryam International Scientific Refereed Research Journal, 24 квітня 2025, 112–16. https://doi.org/10.32628/gisrrj258312.

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भारतीय इतिहास मे दक्षिण भारत की राष्ट्रकुट/राठौड वंश की कन्नौज (बदायूं) शाखा से आकर मारवाड/जोधपुर में शासन स्थापित करने वाल मारवाड के राठौड वंश के आदिपुरूष रावसिहा जी थे। उन्हीं के वंशज रावजोपसा जी के पुत्र राव धोनग जी राठौड के कुल में सेरणा गाॅव जिला जालोर (राज.) में अवतरित दिव्य महात्मा श्री योगी ईश्वरनाथ जी जिनका जिनकाा जालौर के प्रसिद्ध भेरूनाथ अखाडें में नाथ सम्प्रदाय के दिव्य महात्मा श्री श्री 1008 श्री शान्तिनाथ जी महाराज के पौत्र शिष्य के रूप में विशेष सम्माननीय स्थान प्राप्त है। यह उन्हीं महात्मा का जीवन परिचय है।
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महेन्द्रसिंह, राठौड. "मारवाड का सैन्य इतिहास - द्वितीय विश्व युद्ध मे जोधपुर सरदार इन्फेन्ट्री का योगदान". 31 грудня 2022. https://doi.org/10.5281/zenodo.7509745.

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०१ अक्टूबर १९२२ ई. मे मारवाड राज्य मे &lsquo;&lsquo;इण्डियन स्टेट फोर्सेज&lsquo;&lsquo; के आधार पर &lsquo;&lsquo;सरदार इन्फेन्ट्री&lsquo;&lsquo; का गठन किया गया। सरदार रिसाले के साथ-साथ मारवाड. राज्य की सेना में सरदार इन्फेन्ट्री, परगना फौज, जागीरदारों की फौज, कैवेलरी एवं आर्टिलरी इत्यादि कार्यरत थी। सरदार इन्फेन्ट्री के सैनिकों का कार्य सैनिक सेवा के साथ साथ मारवाड. राज्य में पुलिस व्यवस्था का कार्य भी देखते थे एवं राज्य में शान्ति व्यवस्था बनाये रखने का उतरदायित्व भी इनका ही था। सन् 1922 ई. मे सरदार इन्फेन्ट्री के सैनिकों की संख्या 390 थी और फोर्ट आर्टिलरी के सैनिकों की संख्या 338 थी। सरदार
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Sharma, Rajni, та Premlata. "मेवाड चित्र शैली के अतंर्गत रामायण के चित्रो का सौन्दर्यात्मक अध्ययन". ShodhKosh: Journal of Visual and Performing Arts 5, № 1 (2024). https://doi.org/10.29121/shodhkosh.v5.i1.2024.3338.

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15वीं शताब्दी के लगभग राजस्थान लघुचित्र शैली का उदभव व विकास माना जाता है। इस काल मे राजस्थानी चित्रकारो ने अपनी कला को श्रीकृष्ण व राम के पवित्र चरित्राकंन से सम्पूर्ण किया है। यह वही समय था जब श्रीकृष्ण व राम के चरित्र से सभी जनो को साक्षातकार कराने वाली ब्रजभाषा की उन्नति और बल्लभ सम्प्रदाय की पुष्टि मार्गीय शाखा का अभ्युदय हुआ। दोनो ने अपने समय की चित्रकला को प्रभावित किया। रामानन्द चैतन्य बल्लभाचार्य सूर तुलसी मीरा आदि के भक्ति आदोंलन को इस काल मे बल मिला। भारतीय पुराण शास्त्र व धर्म के सरक्ष्ंाण में पनप रही शैली को अपभ्रशं शैली का नाम दिया गया। अपभ्रशं शैली से ही राजपूत कालीन चित्र शैली
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