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Artykuły w czasopismach na temat „दर्शक”

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डा, ॅ. अर्चना रानी. "वर्ण-सौन्दर्य द्वारा दर्शक स े संवाद करती भारतीय कला". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–4. https://doi.org/10.5281/zenodo.888762.

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कला और सौन्दर्य-ये दा े शब्द कला जगत में एक ज ैसे होते हुए भी बह ुत विस्तृत ह ैं। स्थूल तैार पर हम कला आ ैर सा ैन्दर्य में का ेई अन्तर नहीं कर पाते। सा ैन्दर्य एक मानसिक अवस्था ह ै आ ैर वह देश-काल से मर्या दित है। इस सा ैन्दर्य रूपी व ृक्ष की दो शाखायें ह ैं-एक प्रकृति तथा दूसरी कला। कलागत सौन्दर्य पर दा े दृष्टियों से विचार किया जा सकता है। पहली दृष्टि यह है जिसमें हम कलाकार को क ेन्द्र में रखकर विचार करते ह ै ं अर्थात् कलाकार की कल्पना में किस प ्रकार कोई कलाकृति आकार ग्रहण करती ह ै आ ैर वह किस रूप में दर्श कों क े सम्मुख प्रकट हा ेती ह ै। दूसरी दृष्टि में दर्श क का े क ेन्द्र में रखा जाता ह
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Mahesh, Kumar Mishra. "भारत में हिन्दी भाषा की डबिंग ने खोले हैं विश्व सिनेमा कारोबार के नये आयाम". Vishwa Hindi Patrika 13 (12 грудня 2021): 175–79. https://doi.org/10.5281/zenodo.10499882.

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संचार में प्रेषक और प्राप्तकर्ता के बीच किसी भी तरह के भाषायी अवरोध को डबिंग समाप्त कर देती है। यही वजह है कि कला और मनोरंजन का सशक्त माध्यम सिनेमा कम लागत से हुई डबिंग से दर्शक और फिल्म का ऐसा जोड़ सम्भव हो पाता है जिससे करोड़ों रूपये का सफल व्यवसाय बनता है। तकनीकि के सरल और उन्नत होने से सिनेमा डबिंग में लगातार जीवतंता और विश्वसनीयता प्रदान की जा रही है और यही वजह है कि भारतीय में वैश्विक फिल्म प्रदर्शन के लिए हिन्दी डबिंग अति आवश्यक की श्रेणी में विद्यमान हो गयी है।
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श्री.सुनील, चांगदेव आदलिंगे. "किशोरावस्थेतील विद्यार्थ्यांचे जीवन कौशल्य शिक्षण : एक आव्हान". 'Journal of Research & Development' 15, № 18 (2022): 36–40. https://doi.org/10.5281/zenodo.7431702.

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किशोरावस्था हा व्यक्तीच्या आयुष्यातील गंभीर व आव्हानात्मक टप्पा असतो. हा कालखंड एक प्रकारे वादळी कालखंड असतो. व्यक्तीच्या वाढ व विकासातील ही महत्त्वाची अवस्था असून यामध्ये शारीरिक, संज्ञानात्मक, भावनिक व सामाजिक बदल हे बालपणापासून प्रौढत्वापर्यंतच्या संक्रमणकालीन अवस्थेचे दर्शक असतात. जवळच्या आणि प्रिय व्यक्तीकडून नियंत्रण आणि समर्थनाच्या स्वरूपामध्ये समाजात अस्तित्वात असलेले अंतर्भूत घटक किशोरांना प्रौढ बनण्यासाठी मार्गदर्शन करतात. मात्र अलीकडच्या काळात औद्योगीकरण आणि जागतिकीकरणामुळे आपल्या पारंपरिक समाजात मोठे बदल झाले आहेत. किशोरवयीन मुलांसोबत त्याचा परिणाम संपूर्ण समाजावर झालेला आपणास दिसू
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पौडेल Poudel, परशुरामप्रसाद Parashuramprasad. "संगीत प्रस्तुतिमा ताल र रसबिचको अन्योन्याश्रित सम्बन्ध {The Interdependent Relationship between Rhythm and Rhythm in Musical Performance}". AMC Multidisciplinary Research Journal 3, № 1 (2022): 69–75. http://dx.doi.org/10.3126/amrj.v3i1.55889.

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ताल संगीतको मेरुदण्ड हो । संगीत प्रस्तुतिको मुख्य ध्येय रस उत्पत्ति मार्फत दर्शक श्रोताहरुको मनलाई आनन्दित गराउनु हो । तसर्थ ताल र रस बिचको सम्बन्धलाई स्थापित गर्दै अझ प्रष्ट र सुदृढ पार्ने उद्देश्यका साथ यस अध्ययनलाई अगाडि बढाईएको छ । संगीत र रसको सम्बन्धमा धेरै लेखिएको पाइएको छ तर ताल र रसको सम्बन्धमा ज्यादै नै कम अनुसनन्धान भएकोले पनि यो लेख संगीतसंग सम्बन्धित सबैका लागि एक महत्वपुर्ण अध्ययन साबित हुनेछ । यसका लागि बिषेशतः संगीत, ताल र रससंग सम्बन्धित पुर्व लेख, पुस्तक, प्राचिनग्रन्थहरुको अध्ययन गरिएको छ भने अन्य श्रब्य दृष्य सामग्रीहरुको पुनरावलोकन लगायत बिज्ञहरुको धारणाहरुलाई समावेश गर्दै
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राजपूत, गणेश आसाराम. "शेतकरी व हरितक्रांती". International Journal of Advance and Applied Research 3, № 5 (2022): 94–95. https://doi.org/10.5281/zenodo.7397586.

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<strong>प्रस्तावना : </strong> &nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; भारतात आजपर्यंत अनेक क्रांत्या घडून गेल्या. परंतु या क्रांत्यांचा फायदा हा शेतकरी वर्गाला झालेला दिसून येत नाही. परंतु हरितक्रांती ही अशी एकमेव क्रांती घडवून गेली की त्याचा संपूर्ण शेतकरी वर्गाला फार मोठ्या प्रमाणात फायदा झाला. क्रांती हा शब्द बदल किंवा परिवर्तन दर्शक आहे. बदल घडून येणे जेवढे महत्वाचे, तेवढेच हे बदल ज्या वेगाने घडून येतात तो वेग आणि बदलाचे स्वरूप ह्या बाबी सुद्धा तितक्याच महत्वाच्या आहे. तिसऱ्या पंचवार्षिक योजनेच्या सुरुवातीला १९६०-६१ पर्यंत भारतातील शेती व्यवसाय सामन्यत: फायदेशीर
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Pantha, Narayan Prasad. "विद्यालय तहमा एकाङ्की शिक्षणप्रति शिक्षकका अनुभव". Madhyabindu Journal 10, № 1 (2025): 171–81. https://doi.org/10.3126/madhyabindu.v10i1.75624.

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एकाङ्की पात्रका माध्यमबाट अभिनय गरिने संवादात्मक संरचना हो । यो कथानक, पात्र, जीवनजगत्को अनुकरण, कार्यव्यापारको प्रस्तुतीकरण, संवादात्मक तथा अभिनेयात्मक रचना भएकाले संवादका माध्यमबाट जीवनका विविध व्रिmयाकलापको अनुकरण गरी अभिनयमूलक रूपमा दर्शक वा पाठकका निम्ति प्रस्तुत गरिने मनोरञ्जनात्मक विधा हो । यो एउटै उद्देश्य, एउटै घटना, विषयगत एकोन्मुखता र निश्चित उद्देश्य भएको विधा हो । यस लेखको उद्देश्य माध्यमिक विद्यालय कक्षा ११ र १२ मा ऐच्छिक नेपाली विषय अध्ययपन गर्ने शिक्षकका एकाङ्की शिक्षणप्रतिका अनुभव पहिचान गरी विश्लेषण गर्नु रहेको छ । गुणात्मक अनुसन्धान पद्धतिमा आधारित यस लेखमा अध्ययनका लागि दशज
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Rani, Archana. "INDIAN ART COMMUNICATES TO THE VIEWER THROUGH COLOR AND BEAUTY." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 2, no. 3SE (2014): 1–4. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v2.i3se.2014.3558.

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Streszczenie:
Art and beauty - these two words are very similar in the world of art, but also very detailed. We are not able to make any difference between art and beauty on a grand scale. Beauty is a mental state and it is limited since time immemorial. This beautiful tree has two branches - one is nature and the other art. Artistic beauty can be considered from two angles. The first point of view is that in which we consider the artist in the center, that is, how an artwork takes shape in the imagination of the artist and how it appears in front of the audience. In the second view, the viewer is kept in t
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डॉ., हरी साधू वाघमारे. "भारतीय लोकसंख्येची वयोरचना". International Journal of Advance and Applied Research 2, № 19 (2022): 14–17. https://doi.org/10.5281/zenodo.7053624.

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<strong>प्रस्तावना</strong><strong> (Introduction) :</strong> लोकसंख्या रचनेचा अभ्यास करत असताना सामाजिक आरोग्याचा समतोल राखण्यासाठी लिंग-गुणोत्तराप्रमाणेच सामाजिक शास्त्राच्या अभ्यासकाला वयोरचनेचा अभ्यास करणे महत्त्वाचे असते ही रचना करत असताना लोकसंख्येची वयानुसार विभागणी केली जाते. जीवशास्त्रीय दृष्ट्या मानवी जीवनात वयानुसार पौंगडावस्था, युवावस्था, प्रौढावस्था व वृद्धावस्था या चार अवस्था येतात. या अवस्थानुसार मानवाच्या शारीरिक व बौद्धिक क्षमतेत बदल होत असतो. प्रत्येक अवस्थेत मानवाची बौद्धिक वाढ, लैंगिक बदल, प्रजोत्पादन क्षमता, कार्यक्षमता, आयुर्मान, विवाहाचे वय, समाजातील स्थान, व्यावसायिक शि
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नीशू, कुमार. "श्री अरविंद का आधुनिक भारत में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद एक अध्ययनः एक राजनीतिक चितंक के सदंर्भ में". RECENT RESEARCHES IN SOCIAL SCIENCES & HUMANITIES 11, № 1 (2024): 153–58. https://doi.org/10.5281/zenodo.11003205.

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आधुनिक भारत के महापुरुषांे मं े महर्षि अरविन्द का नाम शुक्र तार े के समान चमकता हैं। भारत की आत्मा का जो गहन ज्ञान वह संभवतः रामकृष्ण परमहसं दिवआत्मा और गाँधी जैसे महापुरुषां े मंे उन्हंे था, भी नहीं था। रामे ा रोलां ने अरविन्द को &lsquo;भारतीय विचारकांे का सम्राट एव ं एशिया तथा यरू ोप की प्रतिभा का समन्वय&rsquo; कहकर पुकारा है। डॉ. फ्रडे रिक स्पजलबर्ग न े और हमारे युग का उन्हंे हमारी वसुंधरा का मार्ग दर्शक नहात पैगम्बर कहाँ है। भारत के राजनीतिक विचार- क्षेत्र मं े अरविन्द एक महान् राजनीतिक कि चिन्तक थे। राष्ट्रीय आंदोलन को गूढ ़ एवं अध्यात्मिक महत्व दने े, मारत की विशिष्ट सास्ं कृतिक परंपरा क
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न्यौपाने Neupane, सुभाषचन्द्र Subhashchandra. "राइटर अङ्कलको आर्थिक दुर्नियति र रश्मिको मनोविज्ञान". शोधसुधा Shodh Sudha 2, № 2 (2024): 108–21. http://dx.doi.org/10.3126/ss.v2i2.69314.

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प्रस्तुत लेख नाटककार गोपाल देवानको राइटर अङ्कल एकाङ्कीमा प्रस्तुत आर्थिक दुर्नियति र मनोविज्ञानको विश्लेषणमा केन्द्रित छ । २०७६ सालमा प्रकाशित प्रस्तुत एकाङ्की २०५० सालमा तत्कालीन राजकीय प्रज्ञा प्रतिष्ठानद्वारा आयोजित नाटक महोत्सवमा प्रदर्शन गरिएको थियो । आरम्भ नाट्यसमूहरूद्वारा प्रदर्शित यस नाटकलाई दर्शक समूहद्वारा अत्यधिक मन पराइएको थियो । २०४६ सालको राजनैतिक आन्दोलनको पृष्ठभूमिमा लेखिएको यस एकाङ्कीमा नेपालमा लेखकहरूले केकस्तो आर्थिक दुर्नियति भोग्नुपर्छ भन्ने कुराको विश्लेषणका साथै बालमनोविज्ञानलाई केकसरी प्रस्तुत गरिएको छ भन्ने कुराको विश्लेषण यस लेखमा गरिएको छ । प्रस्तुत लेख तयारीका क्रम
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तिमिल्सिना, हरि प्रसाद. "संस्कृत काव्यशास्त्रको रससिद्धान्तमा रसनिष्पत्ति सम्बन्धी मतमतान्तर र निष्कर्ष". Voice: A Biannual & Bilingual Journal 15, № 2 (2023): 125–33. http://dx.doi.org/10.3126/voice.v15i2.61456.

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संस्कृत साहित्य समालोचनामा रससिद्धान्त महत्त्वपूर्ण सिद्धान्तका रूपमा स्थापित रहेको छ । संस्कृत समालोचनाको सुदीर्घ परम्परामा द्रुहिण, नन्दिकेश्वर हुँदै भरतमुनिले रससूत्रको निर्माण सहित चर्चा गरी सिद्धान्तका रूपमा स्थापित रससिद्धान्त उत्तरवर्ती आचार्यहरूद्वारा व्यापक चर्चा परिचर्चा, व्याख्या, विश्लेषण भई विकसित हुन पुगेको साहित्यिक मान्यता हो । रसभाव सम्बन्धी चर्चाका क्रममा आचार्य भरतमुनिले आप्mनो लक्षणग्रन्थ नाट्शास्त्रमा ‘विभावानुभावव्यभिचारीसंयोगाद्रसनिष्पत्ति’ अर्थात् विभाव, अनुभाव र व्यभिचारी भावको संयोगले रसको निष्पत्ति हुन्छ भन्ने उल्लेख गरेका छन् । भरतमुनिले यस सूत्रमा आएका ‘संयोग’ र ‘न
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Kumari, Kanchan. "ADDITION OF COLORS IN MADHUBANI PAINTING." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 2, no. 3SE (2014): 1–2. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v2.i3se.2014.3614.

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India is an ancient cultural country. The unique fusion of folk art is seen in the art and culture here. Many scholars have periodically stated the importance of folk art. Folk art is a mirror of folk tradition culture in our country. Which can be seen in various customs celebrations. Folk art can be seen in various forms in different provinces like India. Which is known by various names. Madhubani's folk painting is one of them which is famous all over the world. Madhuvani's name is probably because the name has its own significance. Which is a honey-like sweetness in folk paintings here. The
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आशुतोष, कुमार सोनिया. "कला और समाज का अर्न्तसम्बन्ध". International Journal of Research - Granthaalayah 7, № 11(SE) (2019): 200–203. https://doi.org/10.5281/zenodo.3591422.

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कलाकार वाह्&zwnj;य जगत के रूप-स्वरूप, गतिविधियों एवं समाज की भावनाओं से सम्बन्ध बनाकर ही सृजन किया करता है वह अपने सृजन में सामाजिक भावनाओं का मानव-वृत्तियों से सीधा सम्बन्ध रखता है। कलात्मक सृजन में इन्ही भावनाओं की अभिव्यक्ति होती है, परिणाम स्वरूप कला का रूप भी विश्वव्यापी होता है। कलाकार की प्रतिभा, उसकी आत्मशक्ति एवं उसके कलात्मक तत्व, कला के रूप में समाज के स्वरूप और भावनाओं के साथ सामंजस्य जोड़कर, उसको व्यापक रूप प्रदान करते हैं। कला के अधिकांश विषय तत्कालीन समाज की समस्यायें ही होती है, इस उद्&zwnj;देश्य से किये गये सृजन में व्यक्तित्व गौण रूप ले लेता है ओर समाज की आवश्यकताओं का प्रतिब
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ेगरिमा, गुप्ता. "पणिक्कर की कृतियों म ें र ंगा ें का रसात्मक रूझान". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.890301.

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हम सभी अपने जीवन में रंग¨ ंे से व्यापक रूप में प्रभावित ह¨ते ह ैं हमारे सुख-दुख, उत्त्¨जना, विश्राम, उल्लास आदि सभी भावनाअ¨ं क े उद्दीपन में रंग¨ ं का प्रभाव देखा जा सकता ह ै। चित्र्ाकार की भाषा में रंग भावना एवं विचार के संक्षिप्त रूप ह¨ते ह ैं। प्रत्येक चित्र्ाकार द्वारा रंग¨ ंे क¨ प्रय¨ग करने की विधि व्यक्तिगत अनुभव अ©र रुचि से प्रभावित ह¨ती ह ैं, चित्र्ा के अर्थसार क¨ व्यक्त करने मंे चित्र्ाकार रंग की सामथ्र्य का उपय¨ग अपनी अनुभूत तकनीक स े करता ह ै। इस भ©तिक जगत में उस परम् शक्ति ने अनेक वस्तुअ¨ं का निर्माण किया ह ै। सम्भवतया जीवन भर उनकी संख्या भी न गिनाई जा सके। विभिन्न प्रकार के पत्थर
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Tyagi, Namita. "COLOR AND APPEARANCE." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 2, no. 3SE (2014): 1–3. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v2.i3se.2014.3564.

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The purpose of human life lies in action or creation. Life without it does not exceed zero. In an artwork, humans express their experiences only on the basis of certain picture elements and aesthetic principles. The process of embellishing this form is given the noun of art. The language of art is full of emotion as a result of heart feeling.Emotion means feeling, emotion, impulse, impulse, emotion, desire, nature and experience of satire etc. This experience affects our soul by entering our inner mind and brain through our senses. This sentiment flows in our conscience in the form of happines
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Gupta, Garima. "THE COLORFUL TREND OF COLORS IN PANIKKAR'S WORKS." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 2, no. 3SE (2014): 1–2. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v2.i3se.2014.3624.

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We all are widely affected by colors in our lives. The effect of colors can be seen in the stimulation of our emotions like our happiness, sorrow, excitement, relaxation, joy. In painter language, colors are short forms of emotion and thought. Each painter's method of using color is influenced by personal experience and interest, the painter uses the power of color to convey the meaning of the picture with his or her sensible technique.In this world, that Param Shakti has created many things. Probably even their number could not be counted throughout life. Different types of stones are known f
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Mahobe, Yatindra. "COLOR IN PAINTING (IN PERSPECTIVE FROM PREHISTORIC TIMES TO PRESENT TIMES)." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 2, no. 3SE (2014): 1–3. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v2.i3se.2014.3571.

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Only by the pronunciation of the word 'Rang' do we find that the environment around us has become colorful. If color is not included in life, then human life would be far from euphoria, desire, taste and beauty, and the fear of such a lifeless life begins to arise.'Color' is an important contribution to painting, in the absence of color, painting cannot be complete. It has an amazing beauty and charm, which automatically draws the viewer and the artist to himself. "Our emotions are directly related to the effect of colors. Color creates mobility in life. The life of the artist is with colors,
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गुरागाईं Gueagain, यज्ञप्रसाद Yagyaprasad. "कृष्णप्रसाद शर्मा वस्तीका खण्डकाव्यमा गीता दर्शन Krishna Prasad Sharma Wastika Khandakavyama Geeta Darshan". Rupantaran: A Multidisciplinary Journal 4, № 1 (2020): 255–64. http://dx.doi.org/10.3126/rupantaran.v4i1.34245.

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यो लेख खण्डकाव्यकार कृष्णप्रसाद वस्तीद्वारा लेखिएका खण्डकाव्यमा व्यक्त भएको गीता दर्शनको अध्ययनविश्लेषणमा केन्द्रित रहेको छ । महाभारत युद्धको पूर्वसन्ध्यामा श्रीकृष्णले अर्जुनलाई दिएको ज्ञान, भक्ति, वैराग्यएवम् मानवदर्शनमूलक शिक्षा नै गीता दर्शन हो । काव्यकार कृष्णप्रसाद शर्मा वस्तीका विभिन्न खण्डकाव्यमायस प्रकारको दर्शनको प्रयोगको अवस्था के कस्तो रहेको छ भन्ने कुरालाई अध्ययनको मूल समस्याको समाधानयस लेखमा खोजिएको छ । यसर्थ उनका खण्डकाव्यमा गीता दर्शको प्रयोगको अवस्था पत्ता लगाउनु यसलेखको उद्देश्य रहेको छ । यस अध्ययनबाट उक्त काव्यका भावी अध्येताहरूलाई लाभ पुग्न सक्छ । यस लेखमावस्तीका खण्डकाव्यह
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Abraham, Adlin. "SPINDLE OF SUPERNATURAL EXPERIENCES - SAAJAN KURIAN MATHEW." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 2, no. 3SE (2014): 1–2. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v2.i3se.2014.3692.

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Colorist artist Sajan Kurian Mathew got the opportunity to write an art travelogue. Early paintings of Sajan Kurien Mathew include Raja Ravi Varma, Western artists Delacra, Michael Carrivagio Angelo, Salvador Dali, Wistler, etc. Influenced by the genre, there was an orthodox and surrealist depiction. His oil paintings based on the life of Jesus (which is presently beautiful in the churches of Jabalpur, Kerala, Sihora, Shahdol, and Delhi,) using colors very closely in human organ design, background, environment etc. Has recorded the evidence. If the artist is not satisfied in presenting these a
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Raila, Sudip. "नेपाली पत्रकारितामा भाषिक शुद्धता". Ganeshman Darpan 9, № 1 (2024): 84–92. http://dx.doi.org/10.3126/gd.v9i1.68548.

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विज्ञान र प्रविधिको विकाससँगै दुनियाँमा सञ्चारका लागि अनेकन साधनहरुको विकास भएको छ । अहिले सञ्चार प्रचार—प्रसारका लागि श्रव्यदृश्य, लेख्य—पाठ्य, अभिलेख्यमा प्रविधिहरुको अत्याधिका प्रयोग भएको पाइन्छ । सञ्चारमाध्यम तथा प्रविधिको विकासले सञ्चार प्रक्रियामा सहयोग गर्ने मात्र हो तर दुनियाँको मूल तथा सर्वोच्च माध्यम भाषा नै हो । अहिले विश्वभर आमसञ्चार माध्यमको रुपमा छापा, विद्युतीय र अनलाइनमाध्यम रहेका छन् भने नव सञ्चारमाध्यमको रुपमा न्युमिडिया तथा सामाजिक सञ्जाल देखापरेका छन् । जेजे नामका सञ्चारमाध्यम भएतापनि तिनीहरुले दिने सञ्चारको मूल मियो भाषा हो चाहे त्यो अंग्रेजी, हिब्रु, अरबिक, चाइनिज, हिन्दी
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डा., योगेश कुमार गुप्ता. "भारत में टेलीविजन समाचार चैनलों की प्रभावशीलता (चयनित चैनलों का तुलनात्मक अध्ययन)". International Journal of Research - Granthaalayah 5, № 7 (2017): 79–91. https://doi.org/10.5281/zenodo.827210.

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भारत में आज भी समाचार चैनलों की जनता मंे विश्वसनीयता बनी हुई है। इस शोध के माध्यम से समाचार चैनलों के प्रस्तुतिकरण के अंदाज का पता चलता है। समाचार चैनलों के बीच चल रही घमासान प्रतिस्पर्धा में सबसे आगे कौनसा समाचार चैनल है, का भी पता किया गया है। यह शोध टेलीविजन मीडिया से संबंधित पहलुओं की अज्ञानता के निवारण में प्रभावी भूमिका निभा सकता है। आज टेलीविजन ही संचार का सबसे प्रभावी माध्यम है। टेलीविजन मीडिया लोगों को न्याय दिलाने में, विभिन्न अनछुए पहलुओं से पर्दा हटाने में सहायक सिद्ध हो सकता है। वहीं इस शोध की कुछ सीमाएं भी रही हैं जैसे- इस शोध में केवल जयपुर शहर को ही अध्ययन के लिए चुना गया है। ज
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सोनी, राकेश. "शैवदर्शन भारतीय मेधा की चरमाभिव्यक्ति". Indiana Journal of Multidisciplinary Research 4, № 4 (2024): 4–14. https://doi.org/10.5281/zenodo.13348110.

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यदि विश्व में किसी ऐसे एक दर्शनशास्त्र की खोज की जाये जिसके आधार पर न केवल भारत के अपितु विश्व के समस्त दर्शनों की या तो तार्किक व्याख्या की जा सके या उन सभी दर्शनों का अपने भीतर अंतर्भाव कर सके। इतना ही नहीं उस दर्शन में ऐसी क्षमता हो की उसको आधार बनाकर भविष्य के नये दर्शनों को विकसित किए जाने की भरपूर संभावना हो तो निश्चित रूप से वह दर्शन शैवदर्शन ही हो सकता है। शैव दर्शन कई नामों से भी जाना जाता है जैसे - त्रिकदर्शन, कश्मीर शैवदर्शन, शैवाद्वैत दर्शन, प्रतिभिज्ञा दर्शन, आगम दर्शन, स्पंदन दर्शन, कुल दर्शन, क्रम दर्शन, त्रिपुर दर्शन, शाक्त दर्शन&nbsp; आदि। वस्तुत: ये सभी नाम शैव दर्शन के ही वि
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उपाध्याय, धनकृष्ण. "पौरस्त्य चिन्तनमा न्याय दर्शन". Journal of Tikapur Multiple Campus 3, № 3 (2017): 88–95. http://dx.doi.org/10.3126/jotmc.v3i3.70104.

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पौरस्त्य चिन्तन परम्परामा दार्शनिक पक्षको पउल रहको छ । दशर्न भनेको संसारबारे प्रस्तुत दृष्टिकोण हो । बह्माण्डको उत्पत्ति ईश्वर, जीव, आत्मा आदिबारे दर्शनमा गहन रूपमा विश्लेषण गरिएको हुन्छ । पौरस्त्य दर्शन भन्नाले आर्यवर्तअन्तर्गत तपोवन र ऋषिमुनिको चिन्तन मननलाई बुझिन्छ । खास गरेर पौर स्त्य दार्शि नक चिन्तन मूलतः आध्यात्मिक नैतिक तथा धार्मिक पक्षमा आधारित रहको छ । यो आस्तिक रहे पनि चार्वाक दर्शन जस्तो पूणर्तः भौतिकवादी, अनीश्वरवादी र नास्तिक दर्शनको पनि उच्च स्थान रहेको पाइन्छ । खास गरेर षडदर्शनलाई पौरस्त्य वा पर्वूीय दशर्न मा महत्त्वपूर्ण स्थान रहको छ । यिनै षड्दर्शन अन्तर्गत पहिलो दर्शनका रूपम
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कुमारी, डाॅ प्रतिमा. "सर्वोदय दर्शन: एक समीक्षा". International Journal of Advanced Academic Studies 1, № 1 (2019): 181–85. http://dx.doi.org/10.33545/27068919.2019.v1.i1a.381.

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Sharma, Balkrishna. "वीरहरू निबन्धमा पौरस्त्य दर्शन". Journal of Development Review 8, № 1 (2023): 85–98. http://dx.doi.org/10.3126/jdr.v8i1.57144.

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प्रस्तुत आलेख पौरस्त्य दर्शनको प्रभावका दृष्टिले वीरहरू निबन्ध शीर्षकमा केन्द्रित भई तयार पारिएको छ । यस आलेखमा पूर्वीय दर्शनमा स्थापित षड्दर्शनका मूलभूत मान्यताहरूको ‘वीरहरू’ निबन्धमा परेको प्रभाव र त्यसले प्राप्त गरेको सौन्दर्यात्मक स्वरूपको अध्ययन गरिएको छ । यसमा ‘वीरहरू’ निबन्धबाट आवश्यक साक्ष्यहरू लिई तिनका आधारमा पूर्वीय दर्शनको प्रभावलाई विश्लेषण गरिएको छ । देवकोटाको अध्ययन, पारिवारिक वातावरण र संस्कारवश यस निबन्धमा पूर्वीय दर्शनका आधारभूत प्रस्थापनाहरू प्रकट भएका छन्। उनले पूर्वीय दर्शनलाई युग, समाज र जीवनसापेक्ष ग्रहण गरी त्यसलाई मानवजीवन, धर्तीेको कल्याणको सहकारकका रूपमा प्रस्तुत गरे
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गुरागाईँ, राधिका. "ध्रुव नाटकमा त्यागसम्बन्धी दर्शन". Prajna प्रज्ञा 124, № 2 (2023): 195–204. http://dx.doi.org/10.3126/prajna.v124i2.60601.

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प्रस्तुत अध्ययनमा वैदिक दर्शनका त्यागसम्बन्धी मान्यताका आधारमा ‘ध्रुव’ नाटकको विवेचना गरिएको छ । बालकृष्ण समको ‘ध्रुव’ पारिवारिक, सामाजिक एवं राजनीतिक विषयवस्तुलाई दार्शनिक ढङ्गले चित्रण गरिएको पौराणिक कथामा आधारित नाटक हो । वैदिक दर्शनका अनुसार मनुष्यले आफूलाई मूलतः भौतिक सुख, इन्द्रिय वासना र अङ्कारबाट मुक्त राख्नु त्याग हो । ‘ध्रुव’ नाटकको सारवस्तु, पात्र र संवादमा भोग एवं त्याग वृत्तिको प्रस्तुति छ । भौतिक वस्तु, इन्द्रिय वासना, दैहिक अहङ्कारले मनुष्यलाई पतनतिर लैजान्छ भने यसको त्यागले सुख, शान्ति र परम आनन्द प्राप्त हुन्छ, मानवताको कल्याण हुन्छ र जीवन धन्य बन्छ भन्ने दार्शनिक मान्यताका आध
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महेश, आमेटा, पालीवाल नारायण, कुरेशी शोयब та मोहन ठाकुर गिरिन्द्र. "भारतीय दर्शन में कर्मवाद". Recent Researches in Social Sciences & Humanities (ISSN: 2348 – 3318) 10, № 01 (Jan.-Feb.Mar.) (2023): 46–48. https://doi.org/10.5281/zenodo.7944533.

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कर्मवाद की प्रासंगिकता आधुनिक समय में भी ज्वलंत विषय है। हर व्यक्ति स्वार्थवश नैतिक-अनैतिक कर्म करता है फिर उसे तर्क द्वारा अपने हिसाब से सही परिभाषित करता है। भारतीय दर्शन में कर्म व कर्मफल पर विस्तृत विमर्श है, जो संसार को राह दिखाता है और जगत की उत्पत्ति एवं स्थिति, लय को व्यवस्थित रीति से संचालन के लिए तथा सुव्यवस्थित रूप से चलने के लिए-कर्म का सिद्धांत है।
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डाॅ0, श्रीमती हीना परवीन. "गाँधी-दर्शन की प्रासंगिकता". International Journal of Research - Granthaalayah 6, № 5 (2018): 73–77. https://doi.org/10.5281/zenodo.1255233.

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गाँधी-दर्शन के आधार तत्व सत्य, अहिंसा और प्र ेम हैं और इसी आधार पर राजनीतिक, धार्मिक और आर्थिक विचारों की बेल फल-फूल रही है। यही तीन तत्व प्रकाश, जल और वायु की भँाति सम्पूर्ण&nbsp; गाँधी-दर्शन को पोषित व पल्लवित कर रहे हैं। प्रस्तुत आलेख द्वारा हम वर्तमान समाज में गाँधी-दर्शन की अनिवार्यता तथा प्रासंगिकता अवलोकन करेंगे।
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Talekar, P. R. "लोकगीतांतील स्त्रीचे मनोज्ञ दर्शन". International Journal of Advance and Applied Research 5, № 13 (2024): 129–33. https://doi.org/10.5281/zenodo.11260813.

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लोकगीतांच्या रूपाने स्त्रीयांनी आपल्या मनातील भावभावना शब्दांत गुंफल्या आहेत. लोकसाहित्याला कर्ता नसतो. त्याप्रमाणे या विविध स्त्री-कर्त्यांचीही नावे आपणास माहिती नाहीत पण त्यांची प्रतिभा आजही आपणापर्यंत पोहचत आहे. त्यांच्या या जात्यावरच्या ओव्या, लग्नगीते, तरवागीते, फुगडी गीते, पाळणा गीते या गीतांच्या माध्यमातून त्या आपल्या आप्तजनांविषयी सभोवताला विषयी जो विचार करतात; त्याचे प्रतिबिंब उमटताना दिसते. स्त्रिया आपली संस्कृती दुसऱ्या पिढीकडे सुपूर्त करणाऱ्या असतात. संस्कृतीसोबत इतिहास, धर्म व अनुभव यांचा मेळ बसावा लागतो. या सोबतच कला, तत्वज्ञान, साहित्य, ज्ञान आणि विज्ञान यांची बैठक असते. या साऱ्
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महेन्द्र, कुमार. "जैन दर्शन एवं और बौद्ध दर्शन का शिक्षा परिप्रेक्ष्य: एक तुलनात्मक विश्लेषण". Indian Journal of Modern Research and Reviews 3, № 1 (2025): 03–09. https://doi.org/10.5281/zenodo.14632652.

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भारत के प्राचीन दर्शनों ने शिक्षा को जीवन के प्रमुख उद्देश्यों में स्थान दिया है। जैन और बौद्ध दर्शन, जो दोनों ही श्रमण परंपरा से जुड़े हुए हैं, शिक्षा के माध्यम से आत्मिक और सामाजिक उन्नति की बात करते हैं। ये दोनों दर्शन समान रूप से नैतिकता, ध्यान और आत्म-अनुशासन पर जोर देते हैं, लेकिन उनके दृष्टिकोण और शिक्षा पद्धतियों में कुछ मौलिक भेद भी विद्यमान है। जैन और बौद्ध दोनों दर्शनों ने आधुनिक शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया है और इन्होंने भारतीय शिक्षा पद्धति को गहरे रूप में प्रभावित किया है। दोनों दर्शनों की शिक्षा पद्धति में अनेक समानता होने के साथ-साथ विभिन्नताएं भी पायी जाती हैं।
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महेन्द्र, कुमार. "जैन दर्शन और बौद्ध दर्शन की सामाजिक एवं शैक्षिक उपयोगिता: वर्तमान परिप्रेक्ष्य में". International Journal of Contemporary Research in Multidisciplinary 4, № 1 (2025): 06–10. https://doi.org/10.5281/zenodo.14623810.

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दर्शनशास्त्र की शुरुआत अस्तित्व के प्रति जिज्ञासा से होती है। भारतीय दर्शन प्राचीनकाल से ही जीवन के विभिन्न पहलुओं की व्याख्या करता रहा है और अपने अंदर कई धाराओं को समाहित किये हुए है। इन दर्शनों में जैन दर्शन और बौद्ध दर्शन का विशेष महत्व है। इन सभी का भारतीय समाज, संस्कृति और शिक्षा पर गहरा प्रभाव पड़ा है। प्रस्तुत शोध पत्र इन्हीं बातों को रेखांकित करते हुए जैन और बौद्ध दर्शन की सामाजिक एवं शैक्षिक उपयोगिता का अध्ययन वर्तमान परिप्रेक्ष्य में करने का प्रयास करता है। साथ ही, इसमें दोनों दर्शनों के शिक्षा के उद्देश्यों, शिक्षण पद्धतियों, नैतिक मूल्यों और उनकी सामाजिक उपयोगिता के संदर्भ में समान
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सुजन, मण्डल शोधार्थी मध्य एशियाई अध्ययन केंद्र (संस्कृत) कश्मीर विश्वविद्यालय हजरतबल श्रीनगर जम्मू और कश्मीर. "सांख्यसम्मत कैवल्य में बुद्धि तत्त्व का भूमिका". Siddhanta's International Journal of Advanced Research in Arts & Humanities 2, № 2 (2024): 1–14. https://doi.org/10.5281/zenodo.14062554.

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भारतीय दर्शन सम्प्रदायों में महर्षि कपिल प्रणीत सांख्य दर्शन को आदि दर्शन माना गया है। इस दर्शन को भारतीय शोध समाज के साथ-साथ पाश्चात्य शोध समाज में भी अभूतपूर्ण समादर मिला है। भारतीय सभी आस्तिक और नास्तिक दर्शनों का परम लक्ष्य ही है मोक्ष प्राप्त करना। सांख्य दर्शन के अनुसार त्रिविध दुःखों से ऐकान्तिक व आत्यन्तिक परित्राण पाना ही मोक्ष तथा कैवल्य है। अतः भारतीय अन्य दर्शनों की न्याय यह दर्शन भी तत्त्वज्ञान से कैवल्य प्राप्त करने का वर्णन करता है। क्या बुद्धि किसी व्यक्ति को कैवल्य प्राप्त करने में मदद कर सकती है? अगर यह उसे कैवल्य प्राप्त करने में मदद कर सकती है, तो कैसे? इस शोध पत्र का उद्दे
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Yadav, Jayant Kumar. "Study of Sāṅkhya Philosophy in the Eleventh Canto of Śrīmad Bhāgavatam". RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 10, № 1 (2025): 281–84. https://doi.org/10.31305/rrijm.2025.v10.n1.033.

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Sāṅkhya philosophy is an āstika (orthodox) school of Indian philosophy. It is believed to have been founded by Kapila Muni and is considered one of the most ancient philosophical systems. References to Sāṅkhya philosophy are clearly visible in India's oldest religious scriptures. Another name for Sāṅkhya philosophy is "Sāṅkhya Pravachana." It is also known as Niriśvara Sāṅkhya (atheistic Sāṅkhya) since Maharshi Kapila did not establish the concept of God in his teachings. The most authentic and ancient text of Sāṅkhya philosophy is Īśvarakṛta’s "Sāṅkhya Kārika." Additionally, works such as "Sā
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Kumar, Dilip. "Color in painting (Ajanta)." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 2, no. 3SE (2014): 1. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v2.i3se.2014.3660.

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Depiction of murals in the caves of Anjanta has been made from the period of 200 BC to 620 AD, after such a long interval, the character beauty and salt of some of the pictures of the paintings have decreased, yet till date the aura of the paintings of Ajanta has not faded. . In the paintings of Ajanta, beautiful characters are seen here and there is vikhari. Although the brightness of these paintings has faded enough, the colors appear to be life-threatening. The shiny bottom, green and purple color still glows in its former aura. The colors of the body and the clothes are lavish and consiste
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लम्साल, तिलकप्रसाद. "भाषिक दर्शनका आधारभूत पक्ष र निहित अन्तरवस्तु {Fundamental aspects and inherent content of language philosophy}". Triyuga Academic Journal 3, № 1 (2024): 243–59. https://doi.org/10.3126/taj.v3i1.71985.

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जीवन, जगत्​सम्बन्धी मान्छेका कौतूहल, आश्चर्य, जिज्ञासा र तर्कका आधारमा निराकरणका उपायसमेत पत्ता लगाउने चिन्तन वा दृष्टिकोणका रूपमा दर्शनलाई लिइन्छ । दर्शनका विविध प्रकारमध्ये भाषिक दर्शनमा आधारित प्रस्तुत अनुसन्धानको उद्देश्य भाषिक दर्शनको अवधारणा स्पष्ट पार्दै तिनका विविध पक्ष र अन्तर्वस्तुको निरूपण गर्नु रहेको छ । भाषिक दर्शनका विविध पक्ष र विशेषता छन् भन्नु प्रस्तुत अनुसन्धानको दाबी हो । प्रस्तुत अनुसन्धान गुणात्मक ढाँचा, उत्तरआधुनिक दर्शन र व्याख्यावादी पद्धतिमा आधारित छ । यसका लागि पुस्तकालयीय कार्यमा आधारित भई द्वितीयक स्रोतका सामग्री सङ्कलन गरी तिनको वर्णनात्मक र तुलनात्मक अध्ययन विधिका
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अञ्जु та सुभाष चन्द्र. "सांख्य-योग दर्शन परिभाषा डेटाबेस एवं ऑनलाइन खोज". RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 03, № 11 (2018): 890–94. https://doi.org/10.5281/zenodo.1934632.

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ऑनलाइन सांख्य-योग दर्शन परिभाषा डेटाबेस विकास एक शोध के रूप में प्रारम्भ किया गया जिसका उद्देश्य हिंदी माध्यम से सांख्य-योग दर्शन परिभाषा डेटाबेस एवं खोज सिस्टम का विकास करना है । क्योंकि सांख्य-योग दर्शन परिभाषा के लिये कोई भी ऑनलाइन डेटाबेस अभी तक उपलब्ध नही है । जिससे प्रयोगकर्ता ऑनलाइन पारिभाषिक शब्दों को खोज सकें । अभी तक इस डेटाबेस में सांख्य दर्शन के कुल 100 तथा योग के कुल 295 तकनीकी शब्दों को शामिल किया गया हैं । इनमें वृद्धि भी की जा रही है । इनका संकलन सांख्य एवं योग दर्शन के मूल एवं भाष्य ग्रन्थों के आधार पर किया गया है । यह सिस्टम http://cl.sanskrit.du.ac.in/SankhyaYoga पर ऑनलाइन उ
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Bi. Ka., Janak. "पूर्वीय दर्शनमा भौतिकवाद". Journal of Rapti Babai Campus 5, № 1 (2025): 187–98. https://doi.org/10.3126/jrbc.v5i1.78478.

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पूर्वीय दर्शन भनेर खास गरेर भारतीय दर्शनहरूलाई नै प्रचारमा लिने गरिएको पाइन्छ । तर त्यसो नभएर एसिया र अरब क्षेत्रमा हुर्किएका समग्र दर्शनहरू नै पूर्वीय दर्शनभित्र पर्दछन् । पूर्वीय दर्शनअन्तर्गत पर्ने भौतिकवादी र द्वन्द्ववादी दृष्टिकोण राख्ने दर्शनहरू नै पूर्वीय दर्शन भित्रका भौतिकवादी दर्शनहरू हुन् । यो शोधलेख पूर्वीयदर्शनमा भौतिकवादसँग सम्बन्धित रहेको छ । खास गरेर पूर्वीय दर्शनहरूभित्र पर्ने दर्शनहरूमा भौतिकवादी दृष्टिकोणहरू कहाँ कहाँ छन् भनी खोजी गर्नु प्रस्तुत लेखको उद्देश्य रहेको छ । यो शोधलेख निगमन विधिमाआधारित छ । यसमा पूर्वीय दर्शनभित्र भौतिकवादको विषयमा प्रस्तुत गरिएको सन्दर्भसामग्रीक
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Abhishek. "सांख्य दर्शन के द्वैतवाद का दार्शनिक परीक्षण". Original source 19 (14 лютого 2018): 15–18. https://doi.org/10.5281/zenodo.10427137.

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मनुष्य एक विवेकशील प्राणी है। जब से भी सृष्टि क्रम में इसका प्रादुर्भाव हुआ है तब से निरन्तर चिन्तन के माध्यम से विकास को प्राप्त कर रहा है। प्राचीन समय में मनुष्य जगत के सभी कार्यों से विस्मृत था चाहे वो तारे का टूट के गिरना, नदी का बहना, हवा का चलना, आग का जलना, वृक्षों का होना इत्यादि। समस्त विश्व में अपनी चिन्तन प्रणाली के अनुसार जगत के मूल भूत तत्वों की खोज करने का प्रयास किया गया। भारतीय दर्शन ने भी अपने वैदिक व अवैदिक दर्शन प्रणाली के माध्यम से इसका समाधान प्रस्तुत किया। वैदिक दर्शन में सांख्य दर्शन का प्रकृति विकास एक ऐसा ही प्राचीनतम् उत्तर है। जो प्राचीन आचार्यों के गम्भीरता का बोध क
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Tomar, Nitya. "गीता दर्शन का शैक्षिक वैशिष्ट्य". SDES-International Journal of Interdisciplinary Research 1, № 2 (2020): 29. http://dx.doi.org/10.47997/sdes-ijir/1.2.2020.29-34.

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पुन Pun, डम्बर बहादुर Dambar Bahadur, та दावा Dawa शेर्पा Sherpa. "पूर्वीय दार्शनिक धरातलमा जैन दर्शन". Sotang, Yearly Peer Reviewed Journal 6, № 1 (2024): 15–25. https://doi.org/10.3126/sotang.v6i1.72176.

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जैन दर्शन प्राचीन दर्शनमध्ये एक हो । यो मानवीय मूल्यमा आधारित दर्शन हो । यस दर्शनले व्यक्तिको जन्म र मृत्युको क्रमबाट मुक्त हुनुपर्ने धारणा राखेको पाइन्छ । सांसारिक विषयबाट व्यक्ति बन्धनमा रहने भएकाले यसबाट मुक्त हुनुपर्ने धारणा यसमा भेटिन्छ । सांसारिक विषयलाई जित्न सक्ने व्यक्ति जिन वा तीर्थङ्करलाई यस दर्शनमा भगवानको स्थान दिएको देखिन्छ । वेदमा उल्लिखत विषय अत्यन्त कर्मकाण्डी मात्र भएको र तीर्थङ्करले दिएको उपदेश नियमसम्मत मान्ने परम्परा यस दर्शनमा पाइन्छ । जैन दर्शनका चौबिस तीर्थङ्करमध्ये पहिलो तीर्थङ्कर ऋषभदेव र अन्तिम तीर्थङ्कर महावीर स्वामीलाई मानेको भेटिन्छ । यस अध्ययनका लागि पुस्तकालयीय
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राम, राजन. "डाॅ अम्बेडकर का संवैधानिक दर्शन". International Journal of Political Science and Governance 2, № 2 (2020): 20–21. http://dx.doi.org/10.33545/26646021.2020.v2.i2a.49.

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मिश्र, ब्रम्हा नंद, та दिवाकर सिंह. "गिजुभाई का बाल शिक्षा दर्शन". SCHOLARLY RESEARCH JOURNAL FOR HUMANITY SCIENCE AND ENGLISH LANGUAGE 10, № 49 (2021): 12148–52. http://dx.doi.org/10.21922/srjhsel.v10i49.9757.

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प्रस्तुत शोध पत्र में गिजुभाई बधेका के शैक्षिक दर्शन का विस्तृत वर्णन किया गया है। उन्होंने आजीवन बच्चों के मनोभावों को समझने व भयमुक्त वातावरण में शिक्षा देने का समर्थन किया। वे वर्तमान शिक्षा प्रणाली से अत्यंत दुखी थे। उनका अनुभव बहुत ही कटु था, बचपन में मिली अनेक यातनाओं का उनके जीवन पर इतना अधिक प्रभाव पड़ा कि वह वकालत छोड़कर पूरी तरह से बाल शिक्षा में ही रम गए। उन्होंने अपने शिष्यों से कहा कि “मेरे छात्रों को मेरा आदेश है कि घोड़ों के अस्तबल जैसी धूल भरी इन शालाओं को जमींदोह कर दो। मार-पीट और भय दिखाने वाले कत्लखाने की नींव को बारूद से उड़ा दो, इन्हें नेस्तनाबूत कर दो”। इस प्रकार गिजुभाई बालक
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डॉ निशा द्विवेदी. "स्वामी विवेकानंद का शिक्षा दर्शन". International Journal of Multidisciplinary Research in Arts, Science and Technology 2, № 6 (2024): 18–22. http://dx.doi.org/10.61778/ijmrast.v2i6.62.

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स्वामी विवेकानंद जी इस युग के ऐसे सच्चे भारतीय एवं दार्शनिक है, जिन्होंने अपने विचारों से केवल भारतीयों को ही नहीं अपितु पूरे विश्व को प्रभावित किया है। विवेकानन्द जी ने हमारे देश की आध्यात्मिक श्रेष्ठता और पाश्चात्य देशों की भौतिक श्रेष्ठता से परिचित कराया। उन्होंने मानव जीवन की विभिन्न समस्याओं पर गहन चिंतन किया। उनके चिंतन का क्षेत्र धर्म, दर्शन, सामाणिक और राजनीतिक व्यवस्था, शिक्षा प्रणाली राष्ट्र का सम्मान और कई अन्य क्षेत्र थे। विभिन्न समस्याओं पर उनके विचारों ने राष्ट्र को एक कई दिशा दी । स्वामी जी का मानना था कि “ शिक्षा मनुष्य की अन्तर्निहित पूर्णता की अभिव्यक्ति है।“ वह शिक्षा के माध
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चन्द्रिका, डॉ कीर्ति. "वेदान्त दर्शन का समीक्षात्मक अध्ययन". ShodhPatra: International Journal of Science and Humanities 2, № 4 (2025): 57–61. https://doi.org/10.70558/spijsh.2025.v2.i4.45167.

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., रितु, नितिन . та नितिन . "स्वामी विवेकानन्द का शैक्षिक दर्शन". SDES-International Journal of Interdisciplinary Research 4, № 6 (2024): 732–41. https://doi.org/10.47997/sdes-ijir/4.6.2023:737-741.

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Upadhyaya, Mukta Raj. "समका कवितामा ब्रह्मचिन्तन". Journal of Development Review 8, № 2 (2023): 84–93. http://dx.doi.org/10.3126/jdr.v8i2.59240.

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ईश्वरचिन्तनबाट आफ्नो काव्ययात्राको पहिलो पाइलो सारेका बालकृष्ण समका अधिकांश कविता पूर्वीय दर्शनबाट अनुप्राणित रहेका छन् । यिनलाई नास्तिक वा भौतिकवादी कविका रूपमा व्याख्या विवेचना गर्ने गरिए तापनि यिनका कवितामा निहित वैचारिक मान्यताको मूल आधार पूर्वीय दर्शन नै हो । आध्यात्मिक एवं ईश्वरीय चिन्तनयुक्त पारिवारिक वातावरण र संस्कारमा हुर्किएका बालकृष्ण समको ध्यान विज्ञान विषय लिई त्रिचन्द्र कलेजमा पढ्न थालेपछि भने बिस्तारै भौतिकवादी दर्शनतर्फ आकृष्ट हुन थालेको हो तापनि अध्यात्मविनाको विज्ञान त्रूmर र विनाशक हुनसक्छ भन्ने कुरामा सचेत समले अध्यात्मचिन्तन र पूर्वीय दर्शनको गहिरो अध्ययनबाट नै आफ्नो वैचा
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वर्मा, रमेश चन्द. "चेतना (कोन्शियसनेस) एक चिन्तन". Anthology The Research 8, № 11 (2024): H 27 — H 33. https://doi.org/10.5281/zenodo.10829987.

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This paper has been published in Peer-reviewed International Journal "Anthology The Research"&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; URL : https://www.socialresearchfoundation.com/new/publish-journal.php?editID=8214 Publisher : Social Research Foundation, Kanpur (SRF International)&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; Abstract : &nbsp;कॉन्शसनेस चेतन&nbsp;chetna&nbsp;अंग्रेजी भाषा का शब्द है जिसका संबंध दर्शनशास्त्र से है दर्शनशास्त्र को विश्व में दो विमर्शों में विभक्त कर समझ गया
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Ankita, Shambhawi Verma. "बंगाल के निरक्षर सहज साधक बाउल". Aadhunik Sahitya 40, Oct. -Dec., 2021 (2021): 134–38. https://doi.org/10.5281/zenodo.8126915.

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Streszczenie:
बाउलों के संबंध में कोई स्वतंत्र ग्रंथ नहीं मिलता। मोटे तौर पर हम कह सकते हैं कि वैष्णव-सहजिया पंथ के ही ग्रंथ, तत्व और दर्शन ही बाउलों के भी तत्व और दर्शन कहलाएंगे। उपेंद्रनाथ भट्टाचार्य के अनुसार लोचनदास के &#39;वृहत् निगम&#39; और पंचानन दास के संग्रह ग्रंथ बाउल संप्रदाय के संबंध में विशेष मूल्यवान सिद्ध होते हैं। इसके अलावा बाउल गीतों में इनका दर्शन और विशेष रूप से इनकी साधना पद्धति की जानकारी हमें मिलती है।
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Dhankar, Rita. "Turkish folk dances." RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 6, no. 12 (2021): 86–89. http://dx.doi.org/10.31305/rrijm.2021.v06.i12.012.

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Streszczenie:
Folk-music is a very simple and intuitive science of music. It expresses the customs, way of life, food and sentiments of a particular country. Turkish folk music says the same thing. Tarkan finds a lot of mention in Turkish folk dances. In fact, Tarkan started taking special interest in folk-dances from the year 1928. The year 1941 was important in terms of changing the direction of Turkish folk dance. After the establishment of Praja Bhavan in the year 1950, the performance of folk dances had taken the form of a rich culture. Even more so, with folk-dance audiences now present in Ankara and
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Yadav, Jayant Kumar. "Self-Realization in Sanskrit Literary Philosophy: A Study." RESEARCH HUB International Multidisciplinary Research Journal 12, no. 1 (2025): 88–90. https://doi.org/10.53573/rhimrj.2025.v12n1.012.

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Streszczenie:
Philosophical contemplation is inherent to civilized humanity. However, the development of critical philosophy or systematic philosophical thought has occurred in only a few civilizations, with ancient Greece and India holding a prominent place. The Rigveda contains scattered philosophical inquiries, but in India, the systematic foundation of philosophy began during the Upanishadic era. At that time, philosophy emerged as the starting point for religious and spiritual inquiry. Abstract in Hindi Language: दार्शनिक चिन्तन सभ्य मानव का स्वभाव है, किन्तु सभ्यता के इतिहास में समीक्षात्मक दर्शन अथवा
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