Gotowa bibliografia na temat „पारिस्थिकी”

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Artykuły w czasopismach na temat "पारिस्थिकी"

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गुप्ता, सुमित्रा. "पर्यावरण अवनयन एवं पारिस्थितिकी समस्याएं". International Journal of Arts, Humanities and Social Studies 7, № 1 (2025): 39–42. https://doi.org/10.33545/26648652.2025.v7.i1a.152.

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Amarjeet, Amarjeet. "Revival of the past : A History of Aboriginal Ecological Knowledge and Environmental Sustainability." Gyanvividh 02, no. 01 (2025): 38–47. https://doi.org/10.71037/gyanvividha.v2i1.02.

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यह शोधपत्र पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देने में स्वदेशी पारिस्थितिकी ज्ञान (IEK) के ऐतिहासिक आधारों और समकालीन प्रासंगिकता का अन्वेषण करता है। बर्केस की सैक्रेड इकोलॉजी, किम्मेरर की ब्रेडिंग स्वीटग्रास और स्मिथ की डिकोलोनाइजिंग मेथडोलॉजीज जैसे प्रमुख कार्यों की अंतःविषयक समीक्षा के माध्यम से, यह अध्ययन उन स्वदेशी ज्ञानों का पुनरुद्धार करता है जिन्होंने दीर्घकालीन रूप से सतत संसाधन प्रबंधन प्रथाओं का मार्गदर्शन किया है। उत्तरी अमेरिका और अन्य वैश्विक संदर्भों से प्राप्त ऐतिहासिक मामलों के विश्लेषण से यह सिद्ध होता है कि आधुनिक विज्ञान के आगमन से पहले ही स्वदेशी समुदायों ने पारिस्थितिकी संतुलन
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Amarjeet, Amarjeet. "Revival of the past : A History of Aboriginal Ecological Knowledge and Environmental Sustainability." Gyanvividha 02, no. 01 (2025): 38–47. https://doi.org/10.71037/gyanvidha.v2i1.02.

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यह शोधपत्र पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देने में स्वदेशी पारिस्थितिकी ज्ञान (IEK) के ऐतिहासिक आधारों और समकालीन प्रासंगिकता का अन्वेषण करता है। बर्केस की सैक्रेड इकोलॉजी, किम्मेरर की ब्रेडिंग स्वीटग्रास और स्मिथ की डिकोलोनाइजिंग मेथडोलॉजीज जैसे प्रमुख कार्यों की अंतःविषयक समीक्षा के माध्यम से, यह अध्ययन उन स्वदेशी ज्ञानों का पुनरुद्धार करता है जिन्होंने दीर्घकालीन रूप से सतत संसाधन प्रबंधन प्रथाओं का मार्गदर्शन किया है। उत्तरी अमेरिका और अन्य वैश्विक संदर्भों से प्राप्त ऐतिहासिक मामलों के विश्लेषण से यह सिद्ध होता है कि आधुनिक विज्ञान के आगमन से पहले ही स्वदेशी समुदायों ने पारिस्थितिकी संतुलन
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चन्द्रप्रभा, कण्डवाल. "पौड़ी जनपद में खोह नदी की पारिस्थितिकी तंत्र का विश्लेषणात्मक अध्ययन". RECENT RESEARCHES IN SOCIAL SCIENCES & HUMANITIES 11, № 2 (2024): 63–67. https://doi.org/10.5281/zenodo.13337219.

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षिवालिक श्रेणी से निकलने वाली खोह नदी का उद्गम स्थल उत्तराखण्ड राज्य के पौड़ी गढ़वाल जनपद मंे स्थित द्वारीखाल नामक स्थान पर लंगूरगाड़ व सिलगाड नामक नदियों के मिलन से हुआ है। इसका क्षेत्रफल कोटद्वार तक 23,600 कि0मी0 है। कोटद्वार से 10 किमी0 आगे बढ़ते हुए यह कोटद्वार भाबर के सनेह में कोलू नदी से मिल जाती है। यहां के पारिस्थितिकी में लगभग सभी प्रकार के जीव-जन्तु, पषु-पक्षी तथा वनस्पतियां पायी जाती है। इसका कारण नदी के आस-पास के क्षेत्र की अनुकूल जलवायु हंै। पारिस्थितिक जीवमण्डल के अध्ययन के लिए एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण है तथा जलीय पारिस्थितिकी तंत्र मानव आबादी के लिए महत्वपूर्ण संसाधन प्रदान करता ह
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ओमपाल, सिंह, та हेम ेन्द्र सिंह डा॰. "बौद्धिक सम्पदा और बच्चा ें की शिक्षा से सम्बन्धित समस्याएँ". International Journal of Research - Granthaalayah 6, № 9 (2018): 332–39. https://doi.org/10.5281/zenodo.1443513.

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शिक्षा मानव जीवन का श्रं ृगार है । शिक्षा के माध्यम से ही व्यक्ति एक विशिष्ट व्यक्तित्व को प्राप्त करन े में सक्षम हो सकता है । अन ेक बार अशिक्षित व्यक्ति भी प्रभावशील होता है; परन्त ु, शिक्षा क े अभाव म ें वह मुख्य रूप से अपन े परिवेश से ही अधिकतम ज ुड़ा हुआ रहता है जिस क े कारण वह अपनी उन विशिष्टताओं का े व्यापक रूप प्रदान करन े में प्रायः अक्षम रहता है जिन से कि वह सम्पूर्ण भारतीय और विदेशी नागरिकों को लाभ पहुँचा सक े । वर्तमान वैश्विक परिदृश्य यह संकेत करता है कि वह देश वैश्विक धरातल पर टिका नहीं रह सकता जिस के नागरिक शिक्षा से वंचित हैं । भारतीय परिप्रेक्ष्य में बच्चों की शिक्षा से सम्बन्
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कुमार, डॉ उपदेश. "जयपुर महानगर की नगरीय पारिस्थितिकी का एक भौगोलिक विश्लेषण". International Journal of Geography, Geology and Environment 5, № 2 (2023): 199–202. http://dx.doi.org/10.22271/27067483.2023.v5.i2b.231.

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कुमार, अनिल. "पारिस्थितिकी संरक्षण के संदर्भ में उपभोक्तावाद की गांधीवादी आलोचना". International Journal of Political Science and Governance 3, № 2 (2021): 114–17. http://dx.doi.org/10.33545/26646021.2021.v3.i2b.123.

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DWIVEDI, BHARTI. "पर्यावरण, परिस्थितिकीय एवं वर्तमान स्वरूप". Humanities and Development 16, № 1-2 (2021): 163–68. http://dx.doi.org/10.61410/had.v16i1-2.31.

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युग परिवर्तन सत्त प्रक्रिया है। ‘‘कलयुग‘‘ भी अवश्यंभावी था, परन्तु ‘‘कल‘‘ की क्षुधाग्नि इतनी विनाशकारक होगी कि जो प्राकृतिक तादात्म्य एवं संतुलन के 5,000 वर्षों से सुव्यवस्थित, स्वनियमन को नष्ट कर मात्र एक शताब्दी से भी कम समय में छिन्न-विछिन्न कर देगी, सम्भवतः मानव जगत् ने भी यह आशा न की होगी। जब पक्षियों को चहचहाना बन्द हुआ तो पाश्चात्य चिंतन की निद्रा भंग हुयी तथा जिस तीव्रता से औद्योगिक विकास का चरम प्राप्त किया था वही गति ‘‘पर्यावरणवादी आन्दोलनों‘‘ में भी दृष्टिगत होने लगी। ‘‘म्हूमन सेंटरड‘‘ या ‘‘एंथ्रोप्रोसेंट्रिक‘‘ या उथला पारिस्थितिकी जैसे मनुष्य की प्रकृति के नियंत्रक और नियामक सम्प्र
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Choudhary, Surendra. "पर्यावरण प्रदूषणः बिहार राज्य के विषेष सन्दर्भ में एक अ/ययन". International Journal of Education, Modern Management, Applied Science & Social Science 07, № 01(II) (2025): 121–24. https://doi.org/10.62823/ijemmasss/7.1(ii).7337.

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पर्यावरण प्रदूषण एक ऐसी सामाजिक समस्या है ेिजससे मानवसहित जैव समुदाय के लिए जीवन की कठिनाईयाँ बढ़ती जा रही हैं। पर्यावरण के तत्वों में गुणात्मक ह्रास के कारण आज प्रकृति एवं जीवों का आपसी संबंध बिगड़ता जा रहा है, जिनका समाधान अत्यावष्यक है। मानव-पर्यावरण सम्बंध भूगोल की मौलिक विषय वस्तु है। मानव की समस्त क्रियाएॅं परिवेष से नियंत्रित होती है मानव की विविध संस्कृतियाँ, मानव पर्यावरण के संबंधों के प्रतीक हैं तथा पर्यावरण अनुक्रम इसके बिगड़ते सम्बधों का प्रतिफल हैं पर्यावरण और पारिस्थितिकी के अ/ययन में भूगोल की महत्ता इस बात से प्रमाणित है कि यही एक मात्र विषय है जो भौतिक परिवेष और मानवीय पर्यावरण प्
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Choudhary, Surendra. "पर्यावरण प्रदूषणः बिहार राज्य के विषेष सन्दर्भ में एक अ/ययन". International Journal of Education, Modern Management, Applied Science & Social Science 06, № 04(II) (2024): 257–60. https://doi.org/10.62823/ijemmasss/6.4(ii).7127.

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पर्यावरण प्रदूषण एक ऐसी सामाजिक समस्या है ेिजससे मानवसहित जैव समुदाय के लिए जीवन की कठिनाईयाँ बढ़ती जा रही हैं। पर्यावरण के तत्वों में गुणात्मक ह्रास के कारण आज प्रकृति एवं जीवों का आपसी संबंध बिगड़ता जा रहा है, जिनका समाधान अत्यावष्यक है। मानव-पर्यावरण सम्बंध भूगोल की मौलिक विषय वस्तु है। मानव की समस्त क्रियाएॅं परिवेष से नियंत्रित होती है मानव की विविध संस्कृतियाँ, मानव पर्यावरण के संबंधों के प्रतीक हैं तथा पर्यावरण अनुक्रम इसके बिगड़ते सम्बधों का प्रतिफल हैं पर्यावरण और पारिस्थितिकी के अ/ययन में भूगोल की महत्ता इस बात से प्रमाणित है कि यही एक मात्र विषय है जो भौतिक परिवेष और मानवीय पर्यावरण प्
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Raporty organizacyjne na temat "पारिस्थिकी"

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ढकाल, राजेन्द्र, शंकर न्यौपाने, कैलाश भट्ट, प्रगति राज सिपखान та सुनयना बस्नेत. धकेल्ने-तान्ने विधि: बालीमा किराहरूको एकीकृत व्यवस्थापनको लागि प्रभावकारी प्रणाली. International Centre for Integrated Mountain Development (ICIMOD), 2024. https://doi.org/10.53055/icimod.1076.

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परम्परागत कृषि प्रथामा बालीमा रोग र कीरा नियन्त्रणका लागि कृषकहरूले प्राकृतिक श्रोत र स्थानीय ज्ञानको प्रयोग गर्दै आएका छन्। तर जलवायु परिवर्तनले रासायनिक कीटनाशकहरूको प्रयोगमा वृद्धि गरिरहेको छ, जसले मानव स्वास्थ्य र पारिस्थितिकी तन्त्रलाई खतरा पुर्याउँछ। यस सन्दर्भमा, धकेल्ने र तान्ने विधि एक प्रभावकारी विकल्पको रूपमा देखा परेको छ। धकेल्ने बालीहरू जसले कीरा धपाउने काम गर्दछन् र तान्ने बालीहरू जसले मित्र जीवहरूलाई तान्छन्, मिलेर काम गर्ने यो विधि एकीकृत कीट व्यवस्थापनको एक भाग हो। यो विधिले प्राकृतिक प्रतिरक्षा गुणहरूको प्रयोग गर्दै बालीहरूको उत्पादनमा वृद्धि गर्न मद्दत गर्दछ। आवश्यक बालीहरूक
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