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डा., योगेश कुमार गुप्ता. "भारत में टेलीविजन समाचार चैनलों की प्रभावशीलता (चयनित चैनलों का तुलनात्मक अध्ययन)". International Journal of Research - Granthaalayah 5, № 7 (2017): 79–91. https://doi.org/10.5281/zenodo.827210.

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भारत में आज भी समाचार चैनलों की जनता मंे विश्वसनीयता बनी हुई है। इस शोध के माध्यम से समाचार चैनलों के प्रस्तुतिकरण के अंदाज का पता चलता है। समाचार चैनलों के बीच चल रही घमासान प्रतिस्पर्धा में सबसे आगे कौनसा समाचार चैनल है, का भी पता किया गया है। यह शोध टेलीविजन मीडिया से संबंधित पहलुओं की अज्ञानता के निवारण में प्रभावी भूमिका निभा सकता है। आज टेलीविजन ही संचार का सबसे प्रभावी माध्यम है। टेलीविजन मीडिया लोगों को न्याय दिलाने में, विभिन्न अनछुए पहलुओं से पर्दा हटाने में सहायक सिद्ध हो सकता है। वहीं इस शोध की कुछ सीमाएं भी रही हैं जैसे- इस शोध में केवल जयपुर शहर को ही अध्ययन के लिए चुना गया है। ज
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Koirala, Tumaraj. "समाधान पत्रकारिताका आयामहरू (Dimensions of Solution Journalism)". Sanhita, № 61 (7 липня 2024): 19–32. https://doi.org/10.5281/zenodo.15481104.

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पत्रकारिताको विश्व पर्यावरणमा समाधान पत्रकारिता नयाँ विषय होइन । तर, नेपाली पत्रकारिताको अद्यावधिक अभिलेखनहरूमा यो विषयको पर्याप्तउपस्थिति देखिँदैन । यसबारे अत्यन्तै न्यून छलफल भएको छ र विषय नै नयाँ प्रतीत हुन्छ । केही व्यावहारिक प्रयोग भएको पाइन्छ, तर व्यवस्थित अध्ययन र सैद्धान्तिकीकरणको अभ्यासबारे पर्याप्त साहित्य पाइँदैन । पछिल्लो समय पत्रकारिताजगत्मा समाधान पत्रकारितालाई निकै चाखसाथ हेरिएको छ र त्यसको अभ्यास बढ्दो छ । विश्वका प्रतिष्ठित सञ्चार माध्यमले समाधान अवधारणामा काम गर्न थालिसकेका छन् । समस्यामा मात्रै केन्द्रित नभइ समाधानमा जोड दिने यो अवधारणाले पत्रकारिताको पर्
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Rajni, Yadav. "हिंदी पत्रकारिता के परिदृश्य में महिला पत्रकारों का प्रतिनिधित्व: एक विश्लेषणात्मक अध्ययन (Hindi Patrakarita ke paridishya mein Mahila Patrakaro ka Pratinidhitva: Ek vishleshanaatmak adhyayan)". SHODH SANCHAR BULLETIN 10, № 40 (2020): 170–75. https://doi.org/10.5281/zenodo.7817236.

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विभिन्न जनसंपर्क माध्यमों जैसे- टेलीविजन, रेडियो, समाचार-पत्र, पत्रिकाएं, इंटरनेट, सोशल मीडिया, सिनेमा, फिल्म आदि द्वारा महिला-विकास, महिला-शोषण, महिला-सशक्तिकरण, महिला-आरक्षण, लैंगिक असमानता आदि विशेष मुद्दों पर परिचर्चा, लेख, समाचार आदि का प्रकाशन एवं प्रसारण समय-समय पर किया जाता है। परंतु बात करें इन मीडिया संस्थानों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की तो आज भी महिलाएं पुरुषों की बराबरी नहीं कर पाईं हैं। भारतीय पत्रकारिता में महिलाओं का लिंगानुपात अत्यधिक कम है। चाहे वह प्रिंट मीडिया हो या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया या फिर सोशल मीडिया हो जिन मीडिया संस्थानों में महिला पत्रकार कुछ गिनी चुनी संख्या में म
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रविन्द्र, भाटिया शुभम, अग्रवाल शिल्पा, शर्मा सुमन та ढड़वाल युक्ति. "सोशल मीडिया पर आने वाले अप्रवासन संबंधी समाचारों का अंतर्वस्तु विश्लेषण: बीबीसी और इंडिया टुडे के फेसबुक पेज का एक अध्ययन". International Journal of Contemporary Research in Multidisciplinary 4, № 2 (2025): 176–81. https://doi.org/10.5281/zenodo.15206662.

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सोशल मीडिया वैश्विक स्तर पर समाचार प्रसार का एक महत्वपूर्ण माध्यम बन गया है, जहाँ अप्रवासन से संबंधित मुद्दे व्यापक चर्चा का विषय बने रहते हैं। यह अध्ययन बीबीसी और इंडिया टुडे के फेसबुक पेजों पर प्रकाशित अप्रवासन संबंधी समाचारों की अंतर्वस्तु का विश्लेषण करता है। शोध का उद्देश्य यह समझना है कि ये दो प्रतिष्ठित समाचार संस्थान अप्रवासन के मुद्दे को किस प्रकार प्रस्तुत करते हैं, किन नैरेटिव्स और फ्रेमिंग तकनीकों का उपयोग किया जाता है, और उनकी रिपोर्टिंग किस हद तक निष्पक्ष या पूर्वाग्रही होती है। इसके अलावा, यह अध्ययन सोशल मीडिया पर दर्शकों की सहभागिता और उनके भावनात्मक प्रतिक्रियाओं का विश्लेषण क
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कोहली, दीपक. "विज्ञान समाचार-नवीन जानकारी". Anusandhaan - Vigyaan Shodh Patrika 3, № 01 (2015): 226–31. https://doi.org/10.22445/avsp.v3i01.8624.

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Bhupendra, Singh. "विजयसिंह पथिकः एक राष्ट्रीय पत्राकार". Drishtikon 02, № 13 (2021): 1976–83. https://doi.org/10.5281/zenodo.15304092.

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विजयसिंह पथिक द्वारा सम्पादित समाचार पत्रों यथा राजस्थान केसरी, नवीन राजस्थान, तरुण राजस्थान, राजस्थान संदेश, नव-संदेश में राष्ट्र प्रेम, राष्ट्रीयता, राष्ट्रीय आन्दोलन, देशी रियासतों के रियासतदारों और राजाओं द्वारा उत्पीड़न, किसान आन्दोलन, अंग्रेजों की दमनकारी नीतियाँ, अन्याय, अत्याचार, शोषण,भ्रष्टाचार आदि को उजागर करते थे। इन पत्रों का प्रमुख उद्देश्य सरकार की अन्यायपूर्ण नीतियों को जनता तक प्रेषित करना और जनता के मन में अन्याय के खिलापफ आक्रोश और असन्तोष उत्पन्न करना था। स्वाधीनता  के प्रति अनुराग, पराधीनता  से मुक्ति  और स्वाधीनता  भारत की कल्पना इन्हीं लक्ष्यों को लेकर
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Raila, Sudip. "समाज तथा राष्ट्र निर्माणमा पत्रकारको भूमिका". Ganeshman Darpan 8, № 1 (2023): 150–57. http://dx.doi.org/10.3126/gd.v8i1.57342.

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नेपाल पत्रकार महासंघमा आबद्ध करिब पन्ध्र हजारभन्दा बढी पत्रकारहरुमध्ये आधाभन्दा बढीलाई पत्रकारिताको मूल मन्त्रबारे अनविज्ञ रहेको पाइन्छ । कतिपयले त आफ्नो कर्म र मुख्य आयश्रोत पत्रकारिताबाट नभई अन्य विविध श्रोत रहेको पाइन्छ । यसो हुनुमा जो पत्रकार भनिन्छ उसले पत्रकारिताको धर्म निर्वाह गरेकोे पाइदैन । पत्रकार हुँ भनेर अनेकौ नामले राजनीति, दलाली र सौदाबाजी गरेर हिड्ने व्यक्तिहरुलाई पत्रकार भन्नु परेको छ । यस्ता कयौँ उदाहरणहरु च्याउँसरी विकास भएका मिडयाको परिचयपत्र भिरेर हिड्नेहरुलाई लिन सकिन्छ । पत्रकारको जोड समाचार, विचारलाई सत्य, तथ्य र वस्तुनिष्ठ भइ मिडियाबाट उपलब्ध गराउनु भन्ने हुन्छ । तर कति
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Kumar Gupta, Yogesh. "Effectiveness of television news channels in India (comparative study of selected channels)." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 5, no. 7 (2017): 79–91. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v5.i7.2017.2109.

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Even today, news channels in India remain credible to the public. Through this research, the style of presentation of news channels is revealed. Which news channel is at the forefront of the fierce competition between news channels, has also been explored. This research can play an effective role in the prevention of ignorance of aspects related to television media. Today, television is the most effective medium of communication. Television media can help people in getting justice, removing the veil from various untouched aspects. At the same time, there have been some limitations of this rese
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शाही, मीनबहादुर. "सीमान्तकृत समुदायको समावेशीकरणको सन्दर्भमा सामुदायिक रेडियो टीकापुर १०१ मेगाहर्ज". Journal of Tikapur Multiple Campus 3, № 3 (2017): 71–78. http://dx.doi.org/10.3126/jotmc.v3i3.70102.

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सीमान्तकतृ समुदायहरुको समावेशीकरणको सन्दर्भमा सामुदायिक रेिडयो टीकापुर एक लघु अनुसन्धान हो । सामुदायिक रेडियो टीकापरु एफएम १०१ मेगाहर्ज, २०६३ फागनु बाट प्रसारण प्रारम्भ गरी यस रेडियोले समुन्नत समाजका लागि समावेशी आवाज भन्ने नारा तय गरको छ । यस अध्ययनमा सीमान्तकृत समुदायका रुपमा महिला, बालबालिका, अपाङ्ग, दलित, भूमिहीन तथा अल्पसङख््यक वादी, राजी तथा मुस्लिम समुदायको रेडियोमा पहँचु तथा कार्यक्रम प्रसारणमा उक्त समुदायलाई सम्बाधे नको गरको अवस्थाको अध्ययन गरिएको छ । यो अध्ययन वर्णात्मक विधिमा आधारित छ । यसमा अध्ययनको उद्देश्य प्राप्त गर्नका लागि लक्षित समूह छलफल, मख्य सूचना दाताहरुसगँ को अन्तर्वार्त
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Gyawali, Shiva Saran. "बागलुङको पत्रकारिताको विवरणात्मक इतिहास". Pragnya Sarathi प्रज्ञा-सारथि 23, № 1 (2025): 27–38. https://doi.org/10.3126/ps.v23i1.77513.

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प्रस्तुत लेख बागलुङको पत्रकारिताको विवरणात्मक इतिहासको अभिलेखनसँग सम्बन्धित रहेको छ । यो जिल्लाको पत्रकारिता वि. सं. २००८ मा हातले लेखेर प्रकाशित भएको ‘सही बाटो’ समाचार पत्रबाट सुरु भएर अनलाइनसम्म विकास भएको छ । २०२० को दशकबाट पत्रकारिता मुद्रण युगमा प्रवेश ग¥यो । मुद्रणमा प्रवेश भए पछि समाचार पत्रका पाक्षिक, साप्ताहिक, अर्धसाप्ताहिक, दैनिक स्वरूप पनि देखा परेको पाइन्छ । यो जिल्लामा साहित्यिक पत्रकारिताको स्थापित परम्परा छ । यहाँको साहित्यिक पत्रकारिता पनि साहित्यिक र अनुसन्धानमूलक दुई धारमा विकसित छ । साहित्यिक पत्रकारिता व्यक्तिगत प्रयत्न र समपर्णमा आधारित छ भने अनुसन्धानमूलक पत्रकारिताको वि
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देवांगन, सूर्यकांत, та माया वर्मा. "रायपुर के प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया पत्रकारों की सूचना आवष्यकता एवं खोज व्यवहार का तुलनात्मक अध्ययन". Journal of Ravishankar University (PART-A) 24, № 1 (2021): 01–06. http://dx.doi.org/10.52228/jrua.2018-24-1-1.

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प्रस्तुत अध्ययन में रायपुर शहर के प्रिंट मीडिया एवं इलेक्ट्राॅनिक मीडिया पत्रकारों की सूचना आवष्यकता एवं खोज व्यवहार का विष्लेषण करने के उद्देष्य से तुलनात्मक अध्ययन किया गया है। यह अध्ययन एक सर्वेक्षण पद्धति पर आधारित है और प्रश्नावली का उपयोग करके दैव निदर्षन पद्धति के जरिये डेटा संग्रहण का कार्य किया गया है। तथ्यों का वर्गीकरण एवं विष्लेषण में गैरेट रैंकिंग तकनीक का भी उपयोग किया गया है। अध्ययन में परिणामस्वरूप हमने पाया कि रायपुर के पत्रकारों में पुरूष वर्ग की प्रधानता है, इसमें महिलाओं का अनुपात बहुत ही कम है। इलेक्ट्राॅनिक मीडिया की अपेक्षा प्रिंट मीडिया में बहुत से पत्रकार बगैर पेषेवर श
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ताशतेमीरोवा, शाहनाजा. "उज्बेकिस्तान और भारत : मीडिय क्षेत्र में सहयोग के नए पहलू". Oriental Renaissance: Innovative, educational, natural and social sciences 4, № 22 (2024): 70–71. https://doi.org/10.5281/zenodo.13765091.

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उन्हें मास मीडिया इसलिए कहा जाता क्योंकि वे एक साथ बहुत बड़ी संख्या में दर्शकों, श्रोताओं एवं पाठकों तक पहुँचते हैं। उन्हें कभी-कभी जनसंचार (मास कम्युनिकेशन) के साधन भी कहा जाता है। आपकी पीढ़ी के बहुत से लोगों के लिए जनसंपर्क के किसी माध्यम से विहीन दुनिया की कल्पना करना भी संभवत: कठिन होगा।डेटा की तरह मीडिया भीलैटिन से सीधे उधार लिए गए शब्द का बहुवचन रूपहै। एकवचन, माध्यम, ने शुरू में "एक हस्तक्षेप करने वाली एजेंसी, साधन या साधन" का अर्थ विकसित किया और इसे पहली बार दो शताब्दियों पहले समाचार पत्रों पर लागू किया गया था।
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Koirala, Tumaraj. "रचनात्मक पत्रकारिताको रैबार (The Message of Constructive Journalism)". Sanhita, № 63 (7 лютого 2025): 98–117. https://doi.org/10.5281/zenodo.15482099.

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विश्व परिवेशमा जस्तो गतिवान नभए पनि सुस्त–सुस्त नेपाल प्रवेश गरिरहेको रचनात्मक पत्रकारिताको आवश्यकता भने औँल्याउन थालिएको छ । रेडियो अभियन्ताको रूपमा विशेष परिचय बनाए पनि छापादेखि डिजिटल पत्रकारितासम्मको पर्याप्त अनुभव हासिल गरिसकेका डा. रघु मैनालीको भनाइमा पनि त्यही निष्कर्ष झल्किन्छ । उहाँ भन्नुहन्छ, ‘पत्रकारिताको मूल काम आशा र स्नेह जगाउनु हो । आशा मानव समाजको अपरिहार्य आवश्यकता हो । आशा भएन भने हामी सक्रिय र चलायमान हुँदैनौँ । निराशाले हामीलाई असहाय महसुस गराउँछ । यस्तो बेला पनि केही गर्न सकिनँ भन्ने महसुस भएपछि समाजमा दर्दनाक अवस्था सिर्जना हुने रहेछ । त्यसैले हामीले आशा जाग्न
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Nepal, Jagat, Dolaraj Kafle та Maha Prasad Khatiwada. "मिडिया कभरेजमा राणाकालीन संसद". Medha: A Multidisciplinary Journal 7, № 2 (2025): 121–32. https://doi.org/10.3126/medha.v7i2.76043.

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प्रस्तुत अनुसन्धानात्मक राणाकालीन संसदीय अभ्यासमा केन्द्रीत छ । कुनै समय समुन्द्रले नछोएको मुलुक नेपालमा कसरी संसद बन्न सक्छ भनेर प्रश्न गर्ने राणा शासक के कति कारणले संसद स्थापना गर्न वाध्य भए, राणाकालीन संसदका के कस्ता विशेषता थिए र व्यवस्थापिकाको काम कारवाही बारे गोरखापत्रमा के कस्ता समाचार सामाग्री प्रकाशित भए भन्ने विषयमा खोजी गर्नु यो अध्ययनको उद्देश्य रहेको छ । जङ्गबहादुर कुँवरले बि.सं. १९०३ मा आफू र आफ्ना सन्तानले मात्र शासन गर्न पाउने गरी प्रारम्भ गरेको राणा शासनले शताव्दी पार गर्दासम्म पनि नेपालमा संसदको आवश्यकता र महत्त्वका बारेमा धेरै अनभिज्ञ थिए । शिक्षा र चेतनाको चरम अभाव रहेको त
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डॉ, कुमार मंगलम पाण्डेय. "समाज पर शराब का प्रभाव और सियासत". International Journal of Advance and Applied Research 4, № 7 (2023): 121–25. https://doi.org/10.5281/zenodo.7714725.

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भारत ही नहीं बल्कि पुरे विश्व मे नशा सभी जगह अपना पांव फैलाये हुए है। नशे के बहुत प्रकार है। व्यसन की विशेषता है कि व्यक्ति जानते हुए भी इसकी ऐसी लत लगा लेता है जिसका परिणाम बड़ा ही भयानक होता है। मादक पद्रार्थ का सेवन करने वाला लगभग इस बात को समझता है कि यह उसके लिए जानलेवा भी हो सकता है। बावजूद वह नश के सेवन से खुद को नहीं रोकता। नशा मे तो कई प्रकार के है मगर उनमें समय तथा क्षेत्र दोनो के हिसाब से माहौल के हिसाब से अपनी अपनी जगह बनाये हुये है। शराब बियर गांजा, हहेरोइन, चरस, अफीम, रम हडिया कोकीन सिगरेट तम्बाकु गुटखा बीड़ी जर्दा इत्यादी । इनमें से ऐसे र्कोइ  भी नशा मादक पदार्थ नही है &nbs
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डॉ, कुमार मंगलम पाण्डेय. "समाज पर शराब का प्रभाव और सियासत". International Journal of Advance and Applied Research 4, № 7 (2023): 126–30. https://doi.org/10.5281/zenodo.7735812.

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भारत ही नहीं बल्कि पुरे विश्व मे नशा सभी जगह अपना पांव फैलाये हुए है। नशे के बहुत प्रकार है। व्यसन की विशेषता है कि व्यक्ति जानते हुए भी इसकी ऐसी लत लगा लेता है जिसका परिणाम बड़ा ही भयानक होता है। मादक पद्रार्थ का सेवन करने वाला लगभग इस बात को समझता है कि यह उसके लिए जानलेवा भी हो सकता है। बावजूद वह नश के सेवन से खुद को नहीं रोकता। नशा मे तो कई प्रकार के है मगर उनमें समय तथा क्षेत्र दोनो के हिसाब से माहौल के हिसाब से अपनी अपनी जगह बनाये हुये है। शराब बियर गांजा, हहेरोइन, चरस, अफीम, रम हडिया कोकीन सिगरेट तम्बाकु गुटखा बीड़ी जर्दा इत्यादी । इनमें से ऐसे र्कोइ  भी नशा मादक पदार्थ नही है &nbs
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Talekar, P. R. "नीरजांची स्त्री मुक्तीची कविता एक चिंतन". International Journal of Advance and Applied Research 5, № 13 (2024): 102–4. https://doi.org/10.5281/zenodo.11260091.

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1960 नंतर मराठी साहित्यात आत्मभान जागृत झालेल्या ज्या स्त्रीवादी मराठी कवयित्रींनी मराठी स्त्रीवादी कवितेचे दालन समृद्ध केले त्यातील महत्त्वाचे नाव म्हणजे कवयित्री नीरजा.नीरजा यांची कविता स्त्रीमुक्तीची स्त्रीसामर्थ्याची आणि मानवतावादी दृष्टिकोनाची आहे.प्रस्थापित समाजातील स्त्रीशोषक परंपरांना रोख ठोक परखड सवाल करणारी आहे.मिथकांचा,पुराण कथांचा स्त्रीवादी भूमिकेतून विचार करणारी आधुनिक मानसिकतेची कविता आहे.महानगरीय जीवनातील निरर्थकता स्पष्ट करणारी कविता आहे. 'वेणा','स्त्री गणेशा',निरर्थकाचे पक्षी' निरन्वय'या कविता संग्रहांमधून समाजाचा स्त्रीकडे बघण्याचा दृष्टिकोन ही कविता चित्रीत करते.त्याच बरोबर
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एडलिन, अब ्राहम. "अला ैकिक अनुभवों का चित ेरा - साजन कुरियन मैथ्यू". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.893178.

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रंगा ें से ख ेलने वाले कलाकार साजन कुरियन मैथ्यू क¨ रंगा ें की कला यात्रा लिखने का सुअवसर प्राप्त हुआ।साजन कुरियन मैथ्यू क े प्रारम्भिक दौर के चित्रा ें में राजा रवि वर्मा, पाश्चात्य कलाकार डेलाक्रा, माइकल कैरीव ैग्या े ए ंजेला े, सल्वाडा ेर डाली, विस्टलर, आदि यूरा ेपीय चित्रकारों की श ैली से प्रभावित होकर यर्था थवादी आ ैर अतियर्थाथवादी चित्रण हुआर्। इ सा क े जीवन पर आधारित उनक े तैल चित्र (जा े वर्तमान में जबलपुर, केरल, सिहोरा, शहडा ेल,आ ैर दिल्ली, के गिरजाघरो ं में शा ेभायमान हंै,) मंे मानवीय अ ंग विन्यास, प ृष्ठ भूमि, वातावरण आदि में अत्यधिक बारीकी से रंगा े का प्रया ेग कर वास्तविकता का साक
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मौर्य, रामयज्ञ, та नितिन कुमार. "सोशल मीडिया: स्वतंत्रता बनाम स्वच्छन्दता". SCHOLARLY RESEARCH JOURNAL FOR HUMANITY SCIENCE AND ENGLISH LANGUAGE 9, № 48 (2021): 11902–6. http://dx.doi.org/10.21922/srjhsel.v9i48.8257.

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सोशल मीडिया आज एक बडा सामाजिक मंच है जहाँ हर कोई व्यक्ति अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिये स्वतंत्र है और विशेष यह कि बिना किसी नियंत्रण और हस्तक्षेप के। सोशल मीडिया पर लिखना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे महत्वपूर्ण अधिकार से जुड़ गया है। सोशल मीडिया ने प्रत्येक व्यक्ति को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान की है लेकिन भारतीय संविधान में यह स्वतंत्रता देश के प्रत्येक नागरिक को पूर्व में ही प्राप्त है। किंतु इससे पहले अभिव्यक्ति के पर्याप्त मंच और सुलभ साधन नहीं थे, पर्याप्त अवसर न मिलने तथा जानकारी के अभाव के कारण आम आदमी अपनी आवाज या तो उठा नहीं पाता था या उसे दबा दिया जाता था। आम तौर पर समाचार
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नागवंशी, रवि प्रताप, та अविनाश प्रताप सिंह. "भारत में मतदान व्यवहार पर मीडिया का प्रभाव". Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education 22, № 01 (2025): 402–9. https://doi.org/10.29070/x5t99p71.

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यह शोध लेख भारत में मीडिया और मतदान व्यवहार के बीच संबंधों की जांच करता है, जिसमें मतदाता धारणाओं और चुनावी परिणामों को आकार देने में मीडिया की परिवर्तनकारी भूमिका पर ध्यान केंद्रित किया गया है। जाति, समुदाय और क्षेत्रवाद जैसे पारंपरिक प्रभाव मतदाता निर्णय लेने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हालाँकि, डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म के उदय और मीडिया प्रथाओं के विकास ने चुनावी परिदृश्य को नया रूप दिया है। जबकि पारंपरिक मीडिया जैसे समाचार पत्र और टेलीविज़न अभी भी महत्वपूर्ण बने हुए हैं, सोशल मीडिया के आगमन ने राजनीतिक जुड़ाव और पहुँच को बढ़ाया है, खासकर युवा मतदाताओं के बीच। गलत सूचना, मीडिया पूर्वाग्रह और
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कुमार, दीपक. "विकासात्मक पत्रकारिता संबंधित खबरों का अवलोकन एवं अध्ययनः प्रिन्ट मीडिया के विषेष संदर्भ में". Dev Sanskriti Interdisciplinary International Journal 9 (31 січня 2017): 30–37. http://dx.doi.org/10.36018/dsiij.v9i.125.

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विकास एक ऐसी सतत् गतिमान प्रक्रिया है, जिसका लाभ जन-जन को मिलें। प्रत्येक विकास कार्यक्रम का उद्देश्य है व्यक्तिगत, सामाजिक और राष्ट्रीय जीवन का हित व कल्याण। विकास का अर्थ है सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक, प्रौद्योगिकी विकास द्वारा सामाजिक व्यवस्था में सुधार, सामाजिक-राष्ट्रीय सुरक्षा में सुधार। समुचे देश में सुख समृद्धि में वृद्धि। हर तरह के शोषण, भेदभाव, पक्षपात, अन्यान्य, विषमता जैसी अमानवीय बुराईयों की समाप्ति। शिक्षा एवं ज्ञान का फैलाव, स्वास्थ्य एवं जीवन की आवश्यक सुविधाओं का विकास। सबको समान अवसर और लोक कल्याणकारी राज्य एवं समाज की स्थापना की सतत कोशिश। नैतिक, मानसिक, आध्यात्मि
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पुन Pun, टेकबहादुर Tekbahadur. "नेपालका मगर जातिको परिचयात्मक अध्ययन {An Introductory Study of the Magar Caste of Nepal}". Kaladarpan कलादर्पण 4, № 1 (2024): 54–62. http://dx.doi.org/10.3126/kaladarpan.v4i1.62825.

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प्रस्तुत शोध पत्रमा नेपालका मगर जातिका सम्बन्धमा परिचयात्मक अध्ययन गरिएको छ । यस अध्ययनको उद्देश्य मगर जातिको परिचय दिनुका साथै उनीहरुका पहिचानका विषयमा व्याख्या÷विवेचना र विश्लेषण गर्नु रहेको छ । जस अन्र्तगत मगर जातिको परिचय दिइएको छ । मगर नामाकरण कसरी रहन गयो ? मगरका पूर्वज पुर्खाहरु को थिए ? मगर मगराँत बिचको सम्बन्धमा के कस्तो रहेको छ ? मगरका बसोबास क्षेत्रहरु कहाँ पर्दछन् ? यीनै विषयहरुमा केन्द्रीत रहेर अध्ययन विश्लेषण गरिएको छ । यस अध्ययनबाट मगर जातिका सम्बन्धमा जानकारी लिन चाहने शोध अध्ययन कर्ताका लागि फाइदाजनक हुनेछ । यस अध्ययनमा प्रथम तथा द्वितीय सहायक स्रोत–सामग्रीहरुलाई आधार मानिएको
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पाण्ड ेय, ऋषिराज. "रायप ुर जिल े म ें जन च ेतना का विकास". Mind and Society 8, № 03-04 (2019): 50–53. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-83-4-20198.

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भारत म ें अ ंग ्रेजा ें क े विरूद्ध स्वत ंत्रता स ंग ्राम क े रूप म ें सन ् 1857 म ें सव र्प ्रथम प ्रबल क्रा ंति ह ुइ र्। छत्तीसगढ ़ अ ंचल क े रायप ुर जिल े क े सा ेनाखान जमीदारा ें क े जमी ंदार नारायण सि ंह द्वारा क्रा ंति का बिग ुल फ ूंका गया, उनकी फा ंसी क े बाद स ैन्य विद ्रा ेह का न ेतष्त्व हन ुमान सि ंह द्वारा किया गया। सन ् 1885 म ें का ंग ्रेस की स्थापना ह ुइ र्, अ ंचल म ें राष्ट ्रीय च ेतना क े विकास म ें इसका भरप ूर या ेगदान रहा। साथ ही आय र् समाज, मालिनी रीडस र् क्लब, छत्तीसगढ ़ बाल समाज, कवि समाज की स्थापना जनच ेतना क े विकास की दष्ष्टि स े उल्ल ेखनीय ह ै। प ं. स ुन्दरलाल शमा र् न
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एन्, श्राव्या. "हिंदी भाषा और डिजिटल युग: अवसर और चुनौतियाँ". INTERNATIONAL JOURNAL OF SCIENTIFIC RESEARCH IN ENGINEERING AND MANAGEMENT 09, № 04 (2025): 1–9. https://doi.org/10.55041/ijsrem44869.

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संक्षेप डिजिटल युग ने हिंदी भाषा के विकास के लिए नए अवसर और चुनौतियाँ उत्पन्न की हैं। यह शोध "हिंदी भाषा और डिजिटल युग: अवसर और चुनौतियाँ" पर आधारित है, जिसमें हिंदी भाषा के डिजिटल माध्यमों में प्रसार, उसके प्रभाव और इससे संबंधित समस्याओं का विश्लेषण किया गया है। अध्ययन में यह पाया गया कि इंटरनेट, सोशल मीडिया, और ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म ने हिंदी भाषा के उपयोग को बढ़ावा दिया है। हिंदी ब्लॉगिंग, यूट्यूब चैनल, और डिजिटल समाचार पत्रिकाएँ इसके प्रमुख उदाहरण हैं। इसके अतिरिक्त, डिजिटल शिक्षण प्लेटफ़ॉर्म और मोबाइल एप्लिकेशन ने हिंदी को वैश्विक स्तर पर सुलभ बनाया है। हालांकि, इस डिजिटल बदलाव के साथ कुछ चुन
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बत्रा, डॉ सचिन, та डॉ संजय कुमार श्रीवास्तव. "हिंदी दैनिक समाचार पत्रों में सामाजिक समस्या, सांप्रदायिकता का प्रस्तुतिकरण: दैनिक भास्कर, राजस्थान पत्रिका, दैनिक जागरण और हिंदुस्तान का तुलनात्मक अध्ययन". ShodhPatra: International Journal of Science and Humanities 2, № 4 (2025): 42–56. https://doi.org/10.70558/spijsh.2025.v2.i4.45168.

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प्रो0, (डॉ0) संजय कुमार श्रीवास्तव प्रो0 (डॉ0) सचिन बत्रा. "सामाजिक समस्याओं पर जनमत को आकार देने में संपादकीय की भूमिका- दैनिक समाचार-पत्रों राजस्थान पत्रिका एवं दैनिक भास्कर के सम्बन्ध में". Academic 3, № 1 (2025): 1091–101. https://doi.org/10.5281/zenodo.14873084.

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अनिल, कुमार सिंह. "रोहतास जिला में कृषि विकास की समस्याएं एवं समाधान का सिंहावलोकन". 'Journal of Research & Development' 14, № 18 (2022): 13–17. https://doi.org/10.5281/zenodo.7431455.

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हमारा भारत देश कृषि प्रधान देश है जहां की लगभग 80% आबादी गांव में निवास करती हैं एवं कृषि कार्यों से ही अपने जीविकोपार्जन का साधन तैयार करती है बिहार राज्य का रोहतास जिला कृषि के युग में चावल के कटोरे से संबोधित किया जाता बिहार कृषि विश्वविद्यालय में पराली प्रबंधन के रोहतास मॉडल को पूरे राज्य में लागू करने का निर्णय लिया कृषि विज्ञान केंद्र रोहतास के इस पराली प्रबंधन मॉडल को मई 2021 में एग्रीकल्चर अवार्ड 2021 से सम्मानित किया गया है वैसे जिले में भी कृषि के विकास में समस्याएं उत्पन्न होना कहीं न कहीं हमारे राज्य व्यवस्था की लापरवाही को इंगित करता है जिसकी प्रभावी नीतियों का अभाव दृष्टिगोचर होत
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बल्लाळ, ऐश्वर्या नामदेव. "बुध्दीप्रामाण्यवादी गोपाळ गणेश आगरकर यांचे जीवनकार्य". International Journal of Advance and Applied Research 11, № 6 (2024): 447–49. https://doi.org/10.5281/zenodo.14196417.

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महाराष्ट्रातील विचारवंत, धार्मिक, सामाजिक सुधारणांचे अग्रणी, पत्रकार, शिक्षणतज्ज्ञ व प्रबोधनकार गोपाळ गणेश आगरकर यांचा जन्म १४ जुलै १८५६ रोजी सातारा जिल्हयातील टेंभू या गावी आला. अनेक समाजसुधारक व विचारवंतांच्या अथक प्रयत्नांमुळे मराठी समाज पुढे प्रबोधनाच्या वाटेवर आला. त्यापैकी महत्वाचे नाव येते ते गोपाळ गणेश आगरकरांचे. उदारमतवादी व बुध्दी प्रामाण्यवादी विचार असणारे ते मोजक्यातच एक होते. समाजसुधारणा फक्त कृतीतच उतरल्या नाहीतर त्यांच्या ध्यानी मनी फक्त तेच असायचे. स्वतः ब्राम्हण असून त्यांनी ब्राम्हण वृत्तीला प्रखरपणे विरोध केला. प्रसंगी त्यांना जनतेच्या रोषाला जावे लागले. त्यांना जीवे मारण्या
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मौ0, शुऐव, та त्यागी सुकृति. "भारत में डाटा संरक्षण सम्बन्धी विधियाँः एक विधिक विश्लेषण". RECENT RESEARCHES IN SOCIAL SCIENCES & HUMANITIES 12, № 1 (2025): 83–86. https://doi.org/10.5281/zenodo.15289364.

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जब विज्ञान और प्रौद्योगिकी में तेजी से विकास और उन्नति होने लगी तो सभी देषों को सम्बन्धित कानून बनाने के लिए मजबूर होना पड़ा। व्यक्तिगत डाटा संरक्षण अधिनियम ऐसे कानूनों में से एक है। यह व्यक्ति के निजता के अधिकार की संरक्षता हेतु लाया गया। निजता के अधिकार में व्यक्ति के व्यक्तिगत डाटा का संरक्षण का अधिकार भी शामिल हैं। व्यक्ति की डाटा सुरक्षा वर्तमान में महत्वपूर्ण चिंता का विषय बना हुआ है। डाटा सुरक्षातन्त्र डाटा के अनाधिकृत पहुंच तथा दुर्भावनापूर्ण लोगों से बचाने की बात करता है। भारतीय संविधान अन्य संविधानों के मुकाबले कर्तव्यों से ज्यादा मूलाधिकार की बात करता है। संविधान के अनुच्छेद 19, 21,
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बिडारी Bidari, शन्तराम Santaram. "युट्युबको लोकप्रियतासँगै पत्रकारिता क्षेत्रमा पेसागत मर्यादा बचाउने चुनौती". Humanities and Social Sciences Journal 15, № 1-2 (2023): 217–31. http://dx.doi.org/10.3126/hssj.v15i1-2.63794.

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आमजनताका बिचमा मूलधारका सञ्चार माध्यमहरूभन्दा युट्युब च्यानल लोकप्रिय हुनुको कारण र केही युट्युब च्यानलमा देखिएका अनपेक्षित सूचना प्रवाहको अध्ययन विश्लेषण गर्नु यस लेखको मूल उद्देश्य रहेको छ । समीक्षात्मक टिप्पणी, विषवस्तु समीक्षा र सर्वेक्षणले निकालेको नतिजामा आधारित यो लेखले नेपालमा लकडाउनका बेलामा वा त्यस आसपास केही युट्युब च्यानलमा प्रसारित विषयवस्तुको अध्ययन–विश्लेषण गरिएको छ । जसमा फरक फरक च्यानलमा प्रसारित मुख्य ५ वटा ‘कन्टेन्ट’ हेरिएको छ । त्यसका साथै पत्रकारिता विषयमा अध्ययन गरिरहेका प्लस टु तहका विद्यार्थीहरूबीच सर्भे गरिएको छ । युट्युमा प्रसारित सूचना, समाचार, विज्ञापन र अन्य कन्टेन
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नेपाल Nepal, जगत Jagat. "गणतन्त्र नेपालको स्थापनामा संसद र मिडियाको योगदान". Humanities and Social Sciences Journal 15, № 1-2 (2023): 205–16. http://dx.doi.org/10.3126/hssj.v15i1-2.63792.

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प्रस्तुत अनुसन्धानात्मक लेख नेपालमा गणतन्त्र स्थापनाका पक्षमा जनमत बनाउन संसद र मिडियाले गरेको योगदानमा केन्द्रित छ । २०५८ जेठ १९ गतेको दरवार हत्याकाण्डमा राजा वीरेन्द्रको वंशनाश भएपछि गद्दीको उत्तराधिकारी बनेका राजा ज्ञानेन्द्रले संविधान मिचेर २०६१ माघ १९ गते प्रधानमन्त्री शेरबहादुर देउवालाई वर्खास्त गरी आफ्नै अध्यक्षतामा मन्त्रिमण्डल गठन गर्नु, मिडियामा सैन्य सेन्सरसीप लगाउनु, एकद्वार विज्ञापन नीतिका नाममा आर्थिक नाकाबन्दी लगाएर स्वतन्त्र सञ्चार माध्यमलाई आफै बन्द हुने अवस्थामा पु¥याउन खोज्नु, शाही कदमको विरोधमा लेख्ने पत्रकारलाई पक्राउ गर्नु जस्ता कारण नेपाली मिडियाले राजा र राजपरिवारका नका
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प्रा.संदीप, विलास लांडगे. "नवे शैक्षणिक धोरण 2020 काही आव्हाने". International Journal of Advance and Applied Research 4, № 9 (2023): 42–44. https://doi.org/10.5281/zenodo.7867152.

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मानवाच्या विकासाला गती देण्यासाठी शिक्षण हा पायाभूत घटक आहे. असे हे शिक्षण औपचारिक अथवा अनौपचारिक स्वरूपात असू शकते. भारताच्या इतिहासात स्वातंत्र्योत्तर कालखंडात अनेक शिक्षण विषयक धोरणे राबविण्यात आली आहेत. त्यात 1968 साली  पहिले शैक्षणिक धोरण राबविण्यात आले. त्यानंतर 1986 साली दुसरे शैक्षणिक धोरण आणले गेले. सुरुवातीचा या धोरणांमध्ये विद्यार्थ्यांचा शिक्षणापर्यंतचा प्रवेश आणि समानतेवर भर देण्यात आला होता. आधीच्या शैक्षणिक धोरणातील पूर्ण न झालेल्या गोष्टी या पुढच्या धोरणात कायम ठेवून त्यावर काम करण्यात आले होते.               1986
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विद्या. "स ंगीत क े प्रचार प्रसार में स ंचार साधना ें की भ ूमिका". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.886694.

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आज जिस प्रकार संगीत सर्व -सुलभ ह ुआ है। उसका मूल कारण संचार साधनों की भ ूमिका ह ै। आज संगीत षिक्षार्थियों का एक विषाल वर्ग संगीत क े प्रति आकर्षित ह ुआ ह ै। हर समुदाय, जाति आ ैर वर्ग क े विद्यार्थी का े संगीत का े निकटता से जानने आ ैर समझने का सुअवसर मिला है। जबकि पहले जन साधारण का े संगीत सुनने का अवसर दुर्लभ था। कुछ मीडिया, दूरदर्ष न आ ैर इलेक्ट्राॅनिक के संसाधन भी आज उपलब्ध ह ै, जिनक े कारण जनसाधारण में संगीत के प्रति जागरूकता बढ़ी ह ै। आधुनिक काल में मीडिया अपने विविध रूपों से सूचना प्रदान कर रहा ह ै ए ेसे में विद्यार्थि या ें में भी संचार क े क्षेत्र में कार्य करने का आकर्षण बढ़ा ह ै। स ं
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डॉ., अरविंद कुमार, та देवेन्द्र कुमार पाण्डेय डॉ. "सोशल मीडिया और उसके प्रभाव को समझना". International Journal of Contemporary Research in Multidisciplinary 3, № 5 (2024): 207–9. https://doi.org/10.5281/zenodo.13997555.

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"इंटरनेट एक दोहरी धार वाली तलवार है, जो समाज को एक ओर जोड़ती है और दूसरी ओर तोड़ती भी है। यह एक ऐसा माध्यम है जहां अच्छाई और बुराई दोनों को समान रूप से प्रसारित किया जा सकता है, और जिसके परिणामस्वरूप वैश्विक स्तर पर इसके प्रभाव को देखना शुरू कर रहे हैं।"  भारत ने हाल के वर्षों में मास मीडिया और सोशल मीडिया के क्षेत्र में अभूतपूर्व वृद्धि देखी है, जिससे मीडिया की भूमिका वर्तमान परिदृश्य में अत्यधिक महत्वपूर्ण हो गई है। सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के विकास ने टेलीविजन, इंटरनेट, सोशल मीडिया और प्रिंट मीडिया जैसे कई समाचार और सूचना स्रोतों की उपलब्धता और पहुंच को बढ़ाया है । मीडिया न केवल संद
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शेडगे, प्रा. डॉ. विजय सोपानराव. "संत आणि भक्ती चळवळ". International Journal of Advance and Applied Research 5, № 44 (2024): 193–95. https://doi.org/10.5281/zenodo.14710749.

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<strong>सारांश :-</strong> &nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; संत ज्ञानदेवादी संतांच्या भक्तीचळवळी मुळे समाजात वैश्विक बंधूभावाची संकल्पना अधिक दृढ झाली. सामाजिक स्थैर्य, सुख, समाधान प्राप्तीसाठी भक्ती मार्ग सर्वांसाठी राजमार्ग बनला.सामान्य प्रापंचिकाला सुद्धा भक्तीचा अधिकारी बनविणे आणि भक्तीक्रियेद्वारे त्यांचे नित्याचे जीवन सदाचारी, संयमी, प्रामाणिक, विकारमुक्त आणि विवेकयुक्त घडविणे हीच संतांच्या भक्तीचळवळीची महत्वाची भूमिका आहे. <strong>&nbsp;</strong>
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अजय, कुमार ओझा. "चुनावी राजनीति में बिगड़ती भारतीय संस्कृति". 'Journal of Research & Development' 14, № 18 (2022): 8–12. https://doi.org/10.5281/zenodo.7431441.

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Streszczenie:
भारतीय संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीन लोकप्रिय, अमिट, निरंतर गतिमान एवं समृद्ध संस्कृति है। इसे संसार की सभी संस्कृतियों की जननी के श्रेय से अलंकृत किया गया है, या यूं कहा जाए कि संसार की समस्त संस्कृतियों की जननी भारतीय संस्कृति ही हैं। प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति पर कुठाराघात होता रहा है। आर्यों की समृद्ध संस्कृति यवनो यहूदियों मुस्लिमो एवं अंग्रेजों के कुठाराघात का सामना करते हुए भी अपने आप को जीवंत एवं सर्वाधिक समृद्ध कायम करने में सफल रही है। जीने की कला हो या विज्ञान और राजनीति का क्षेत्र भारतीय संस्कृति का सदैव विशेष स्थान रहा है। हमारी संस्कृति को हमारे महापुरुषों, मनीषियों, वेदों,
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Dhanure, Pallavi Bhimashankar. "जनसंचार के विविध माध्यमों में हिंदी का बढ़ता प्रयोग". International Journal of Advance and Applied Research 5, № 28 (2024): 106–7. https://doi.org/10.5281/zenodo.14178518.

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&nbsp; पृष्ठभूमि :संचार जीवन को अर्थपूर्ण और जीवंत बनाता है। भाषा संचार का महत्वपूर्ण अंग है। जनसंचार का कार्य भाषा के बिना संभव नहीं है। जनसंचार में संदेश एक बड़े &nbsp;जनसमूह को एक साथ संबोधित करने के लिए होता है। आज का युग सूचनाओं के विस्फोट का युग है युग है। क्योंकि मनुष्य ने आज अपनी सुविधा के लिए जनसंचार के विभिन्न माध्यमों का प्रयोग करना शुरू किया है आज के इस तकनीकी युग में संचार माध्यमों में दिन-ब-दिन बढ़ोतरी हो रही है। यह हमारे जीवन का अभिनव और महत्वपूर्ण अंग बन गया है। आज जनसंचार माध्यमों में नए-नए प्रयोग होने लगे हैं। इस कारण हमारे जीवन को नई दिशा मिली है। 21 सी सदी के द्वार पर खड़ी
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सचित्र, मिश्रा. "महाकुंभ मेला और मीडिया: सांस्कृतिक पहचान के निर्माण में एक प्रभावशाली भूमिका". INTERNATIONAL EDUCATION AND RESEARCH JOURNAL - IERJ 11, № 3 (2025): 76–80. https://doi.org/10.5281/zenodo.15583380.

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महाकुंभ मेला विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है जो परंपरा और आधुनिकता के संगम का प्रतीक है। यह केवल आध्यात्मिक आस्था और सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण तक ही सीमित नहीं है बल्कि समाजए राजनीति और अर्थव्यवस्था के व्यापक परिप्रेक्ष्य को भी दर्शाता है। इस संदर्भ में मीडिया की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि यह महाकुंभ से जुड़ी सार्वजनिक धारणाओं और सांस्कृतिक आख्यानों के निर्माण और प्रसार में सक्रिय भागीदारी निभाता है। मीडिया द्वारा महाकुंभ मेले का चित्रण केवल इसकी वृहदता और भव्यता को उजागर करने तक सीमित नहीं रहता बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक पहचान को एक नई दिशा देने और उसे वैश्विक मंच पर स
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श्री.सुनील, चांगदेव आदलिंगे. "किशोरावस्थेतील विद्यार्थ्यांचे जीवन कौशल्य शिक्षण : एक आव्हान". 'Journal of Research & Development' 15, № 18 (2022): 36–40. https://doi.org/10.5281/zenodo.7431702.

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किशोरावस्था हा व्यक्तीच्या आयुष्यातील गंभीर व आव्हानात्मक टप्पा असतो. हा कालखंड एक प्रकारे वादळी कालखंड असतो. व्यक्तीच्या वाढ व विकासातील ही महत्त्वाची अवस्था असून यामध्ये शारीरिक, संज्ञानात्मक, भावनिक व सामाजिक बदल हे बालपणापासून प्रौढत्वापर्यंतच्या संक्रमणकालीन अवस्थेचे दर्शक असतात. जवळच्या आणि प्रिय व्यक्तीकडून नियंत्रण आणि समर्थनाच्या स्वरूपामध्ये समाजात अस्तित्वात असलेले अंतर्भूत घटक किशोरांना प्रौढ बनण्यासाठी मार्गदर्शन करतात. मात्र अलीकडच्या काळात औद्योगीकरण आणि जागतिकीकरणामुळे आपल्या पारंपरिक समाजात मोठे बदल झाले आहेत. किशोरवयीन मुलांसोबत त्याचा परिणाम संपूर्ण समाजावर झालेला आपणास दिसू
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मोहम्मद, आमिर पाशा. "छत्तीसगढ़ राज्य में आदिवासियों का विकास और विस्थापन: एक विश्लेषणात्मक अध्ययन". RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 03, № 10 (2018): 533–38. https://doi.org/10.5281/zenodo.1470737.

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भारतीय समाज में आज आदिवासियों की स्थिति बहुत ही दयनीय है। विस्थापन के कारण उन्हे अपने बसे-बसाए, घर-दालान, गाँव, लोग इत्यादि को छोडकर जाना पड़ता है। दुनिया को केवल भौतिक विस्थापन ही नज़र आता है। परंतु एक आदिवासी अपने मन, अपने जीवन, संस्कृति और सभ्यता से भी विस्थापित होता है। आदिवासी केवल जल, जंगल और ज़मीन तक ही सीमित नही है बल्कि ये मूल भारतीय भारत की पृष्टभूमि को विश्व पटल पर भी प्रस्तुत करते हैं, परंतु विडम्बना ये है कि जो देश के मूल निवासियों के वंशज अब केवल 8 प्रतिशत ही बचे हैं। इनकी स्थिति और भी बदतर होती जा रही है। वहीं आदिवासियों की मूलभूत सुविधा ही प्रदान करने में सरकार असमर्थ दिख रही ह
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Raila, Sudip. "नेपाली पत्रकारितामा भाषिक शुद्धता". Ganeshman Darpan 9, № 1 (2024): 84–92. http://dx.doi.org/10.3126/gd.v9i1.68548.

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विज्ञान र प्रविधिको विकाससँगै दुनियाँमा सञ्चारका लागि अनेकन साधनहरुको विकास भएको छ । अहिले सञ्चार प्रचार—प्रसारका लागि श्रव्यदृश्य, लेख्य—पाठ्य, अभिलेख्यमा प्रविधिहरुको अत्याधिका प्रयोग भएको पाइन्छ । सञ्चारमाध्यम तथा प्रविधिको विकासले सञ्चार प्रक्रियामा सहयोग गर्ने मात्र हो तर दुनियाँको मूल तथा सर्वोच्च माध्यम भाषा नै हो । अहिले विश्वभर आमसञ्चार माध्यमको रुपमा छापा, विद्युतीय र अनलाइनमाध्यम रहेका छन् भने नव सञ्चारमाध्यमको रुपमा न्युमिडिया तथा सामाजिक सञ्जाल देखापरेका छन् । जेजे नामका सञ्चारमाध्यम भएतापनि तिनीहरुले दिने सञ्चारको मूल मियो भाषा हो चाहे त्यो अंग्रेजी, हिब्रु, अरबिक, चाइनिज, हिन्दी
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Yadav, Indu. "A Study on the Freedom of the Press in the Indian Constitution." RESEARCH HUB International Multidisciplinary Research Journal 10, no. 2 (2023): 19–23. http://dx.doi.org/10.53573/rhimrj.2023.v10n02.005.

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We get the introduction of the freedoms provided in the Indian Constitution in the preamble itself. Five types of freedoms have been provided in the preamble, freedom of thought, expression, belief, religion and worship. In these also the main part of our study is the freedom of the press. Which is freedom of expression in the constitution i.e. Anu. contained in Part 1 of 19 itself. The press is considered as the fourth pillar of the constitution because the freedom of the press is especially important in the strengthening of democracy. For this reason, the press and its freedom have a history
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सचिन, कुमार, та कुमार टम्टा दीपक. "ग्रामीण क्षेत्रों के विकास में महिलाओं की भूमिका (जनपद अल्मोड़ा के विशेष संदर्भ में)". RECENT RESEARCHES IN SOCIAL SCIENCES & HUMANITIES 11, № 4 (2024): 83–88. https://doi.org/10.5281/zenodo.14840997.

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आज भारत की कुल आबादी में पुरुषों का प्रतिशत महिलाओं की अपेक्षा अधिक रहा है। हमारे देश की महिलाएं पुरुषों केसमान ही आर्थिक व राजनैतिक क्षेत्र में अपनी भूमिका निभा रही है। जहां-जहां पुरुष वर्ग काम करता है वहाँ-वहाँ महिलावर्ग भी काम कर रहा है हमारे देश की अधिकांश महिलाएँ किसी भी क्षेत्र में काम करने से पीछे नहीं हटी। सर्वाधिक महिलाश्रमशक्ति कृषि में लगी हुई है जबकि सेवा क्षेत्र में सबसे कम महिला श्रमशक्ति लगी हुई है यद्यपि यह स्थिति पुरुषश्रमशक्ति की भी है परंतु महिलाओं का प्रतिशत पुरुषों की तुलना में कृषि क्षेत्र में अधिक और सेवा क्षेत्र में कम है सामान्यतःसभी व्यवसायों अथवा उद्योगों को तीन व्या
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अरविन्द, कुमार, та सीताराम सिंह डॉo. ""Impact Of Information Technology On Rural Women Empowerment : A Sociological Study" ग्रामीण महिला सशक्तिकरण का सूचना प्रौद्योगिकी पर प्रभाव : एक समाजशास्त्रीय अध्ययन". International Journal of Advance and Applied Research 10, № 4 (2023): 118–23. https://doi.org/10.5281/zenodo.7791039.

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&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; सूचना प्रौद्योगिकी, संचार साधन और समाचार के इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों ने घर के अंदर बैठी महिलाओं को भी प्रोत्साहित किया। देश की आधी आबादी में आए इस बदलाव से विकास की गति तेज हो रही है खेत में हल जोतने से लेकर चांद-सितारों का तिलिस्म तोड़ने तक, सड़क किनारे बैठकर पत्थर तोड़ने से लेकर रोजगार के नए क्षेत्रों की तलाश तक, आंगन में बैठकर चूल्हे-चौके की झंझटो से लेकर वैश्विक की गुत्थियाँ सुलझाने तक महिलाएं आज हर क्षेत्र में हैं। भारतीय समाज में स्त्री एक मौन उपस्थिति थी लेकिन, आज सूचना प्रौद्योगिकी की अहम बदलाव ने भारतीय संस्कृति की दुनिया में स्त्री को बेहद प्रख
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मेंढे, शितल क्रिष्णा, та प्रोफेसर डॉ. संपदा नासेरी. "आधुनिक समाजात विवाहाच्या बदलत्या धारणा आणि त्यांचा प्रभाव - एक अध्ययन". International Journal of Advance and Applied Research 6, № 21 (2025): 128–33. https://doi.org/10.5281/zenodo.15255213.

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<strong>सारांश:</strong> &nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; विवाह ही समाजाच्या मूलभूत संस्थांपैकी एक असून, काळानुसार तिच्यात अनेक बदल झाले आहेत. पारंपरिक विवाहसंस्थेच्या तुलनेत आधुनिक समाजात विवाहाच्या विविध संकल्पना उदयास आल्या आहेत. प्रेमविवाह, संमत विवाह, लिव्ह-इन रिलेशनशिप, उशिरा विवाह आणि एकल जीवनशैली यांसारख्या पर्यायांना समाजात वाढती स्वीकृती मिळत आहे. तंत्रज्ञान, शिक्षण, नोकरीच्या संधी, स्त्रियांचे स्वातंत्र्य आणि पाश्चिमात्य संस्कृतीचा प्रभाव यामुळे विवाहसंस्थेच्या स्वरूपात मोठा बदल घडून आला आहे. या संशोधनात विवाहाच्या बदलत्या धारणांचा सखोल अभ्यास
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Rani, Seema, Shivani Sharma, and Rajesh Kr Sharma. "Literacy and Media Impact of Biopic in Hindi Cinema – Medium of Public Opinion." RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 8, no. 10 (2023): 137–40. http://dx.doi.org/10.31305/rrijm.2023.v08.n10.015.

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In this research paper, I have described the topic “Literacy and Media Effects of Biopic in Hindi Cinema: Medium of Public Thought” as much as possible. The literacy and media influence of biopic in Hindi cinema is important from the social and cultural point of view. Biopic films present the life stories of individuals of personal and social importance on screen, allowing people to understand their struggles, successes and perspective. These films inspire the audience with a prime view of the lives and contributions of individuals who have brought about amazing changes in the society. The inf
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Neeraj, Bhardwaj, та Dhirendra Singh Yadav Dr. "वर्तमान परिदृश्य में उच्च माध्यमिक स्तर पर कार्यरत शिक्षकों पर सोशल मीडिया का प्रभाव". दृष्टिकोण कला, मानविकी, एवं वाणिज्य की मानक शोध पत्रिका, ISSN 0975-119X, UGC CARE LISTED, Impact Factor 5.051 13, अंक 1 जनवरी फरवरी 2021 (2021): 3813–18. https://doi.org/10.5281/zenodo.6911774.

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21वीं सदी में कंप्यूटर एक कैसेट बन गया है तथा इंटरनेट का जाल विश्वव्यापी फैल चुका है। ऐसे में विभिन्न देशों क्षेत्रों में व्यक्तियों के बीच संवाद बनाने के लिए एक मंच के रूप में सोशल मीडिया आज सबसे महत्व भूमिका निभा रहा है, जिसमें विभिन्न मंच जैसे <strong>Facebook</strong>, <strong>Twitter</strong>, <strong>WhatsApp</strong>, <strong>LinkedIn,</strong> <strong>Instagram</strong> आदि, आज लोगों के विचारों की अभिव्यक्ति के लिए उपयोग किए जाते हैं। सोशल मीडिया का प्रयोग व महत्व लगातार बढ़ता जा रहा है। यहां तक की इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया भी इसके प्रभाव को स्वीकारने लगे हैं, कई लोग सोशल मीडिया को
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महाजन, अनुराधा बस्वराज. "हैदराबाद मुक्तीसंग्रामात मराठी वृत्तपत्रांची भूमिका". उदयगिरी - बहुभाषिक इतिहास संशोधन पत्रिका (Udayagiri Bahubhashik Itihas Sanshodhan Patrika - A Bimonthly, Refereed, & Peer Reviewed Journal of History) 01, № 04 (2023): 110–13. https://doi.org/10.5281/zenodo.8348495.

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<strong>हैदराबाद मुक्तीसंग्रामात मराठी वृत्तपत्रांची भूमिका</strong> महाजन अनुराधा बस्वराज संशोधन विद्यार्थी, महाराष्ट्र महाविद्यालय निलंगा जिल्हा: लातूर ४१३५२१ महाराष्ट्र, भारत <em>Corresponding author E-mail</em>: mahajananuradha424@gmail.com Received: 14 September, 2023 | Accepted: 15 September, 2023 | Published: 16 September, 2023 --------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- <strong>महत्वाचे शब्द: </strong>निजाम सरकार, मुक्ती लढा, जनजागृती /लोकजागृती, स्वातंत्र्य सैनिक, निजामविजय, नागरिक-राजहंस
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रामकेश, पाण्डेय. "पंचतंत्र में चिन्तन, तर्क एवं समस्या समाधान". RECENT EDUCATIONAL & PSYCHOLOGICAL RESEARCHES 13, № 4 (2024): 30–32. https://doi.org/10.5281/zenodo.14838677.

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पंचतंत्र की कहानियांे में चिन्तन, तर्क एक समस्या-समाधान सम्प्रत्यय विशिष्ट रूप से देखने को मिलता है। लेखक ने अपनी कथाओं मंे समस्याआंे का उद्भावन कर उसे चिन्तन व तर्क के माध्यम से समाधान की प्रक्रिया का अनुसरण किया है। पचं तंत्र की कथा का प्रारंभ ही चिन्तन, तर्क एवं समस्या-समाधान से हुआ है। महिलाराप्े य नामक राजा अपने पुत्रांे की मूर्खता से अत्यंत दुःखित था, वह उनकी मूर्खता निवारण के विषय में सर्वदा चिन्तित रहता था। एक दिन उसने अपने मंत्रियांे को बुलाकर अपनी चिन्ता को बताया। मंत्रियांे ने राजा की चिन्ता को सुनकर समाधान के लिए अनेक तर्क दिए। एक ने इस समस्या के समाधान के लिए विष्णु शर्मा का नाम ब
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अर्याल, भुवन. "वर्णविन्यासगत त्रुटि, कारण र समाधान". Resunga Journal रेसुङ्गा जर्नल 3, № 1 (2024): 1–14. http://dx.doi.org/10.3126/resungaj.v3i1.65876.

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