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Artykuły w czasopismach na temat "अनुसूचित जाति"

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अर्च, ना परमार. "पर्यावरण संरक्षण". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.883529.

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मानव शरीर प ंच तत्वों- प ्रथ्वी, जल, वाय ु, अग्नि आ ैर आकाश स े ही बना ह ै। य े सभी तत्व पर्या वरण के धोतक है। प ्रकृति मे मानव को अन ेक महत्वप ूर्ण प्राकृतिक सम्पदायें भी ह ै। जिसका उपयोग मन ुष्य अपन े द ैनिक जीवन में करता आया है ज ैसे- नदियाँ, पहाड ़, मैदान, सम ुद ्र, प ेड ़-पौधे, वनस्पति इत्यादि। प्रथ्वी पर प्राकृतिक संसाथनों का दोहन करन े से प्राकृतिक संसाथनो के भण्डार तीव्र गति से घटत े जा रह े है, जिससे पर्यावरण में असन्त ुलन बढ ़ रहा है। उसके परिणाम स्वरूप जल की कमी, आ ेजा ेन परत में छेद का पाया जाना, वना ें की अत्यधिक कर्टाइ से वना ें की कमी आना, सम ुद ्रों का जल स्तर बढना, ग्लेशियरों
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तिवारी, रोली, та चित्रल ेखा वमा. "व्हाट्सएप पर साझा की जाने वाली शैक्षणिक जानकारियो की प्रकृति का अध्ययन". Mind and Society 9, № 03-04 (2020): 23–30. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-93-4-20213.

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प्रस्त ुत अध्ययन म ें ”व्हाट ्सएप पर साझा की जान े वाली श ैक्षणिक जानकारिया े ं की प्रक ृति का अध्ययन छात्राध्यापका ें क े विश ेष स ंदर्भ म ें” किया गया। क ुल 200 छात्राध्यापकों (100 प ुरूष छात्राध्यापक ए ंव 100 महिला छात्राध्यापिकाआ े ं) का चयन सा ेद्द ेश्य न्यादश र् विधि द्वारा किया गया। शा ेध उपकरण क े रूप में आकड ़ें संग ्रहण करने क े लिय े स्मा र्टफोन म ें प्रय ुक्त व्हाट ्सएप म ैस े ंजर क े माध्यम स े स्क्रीनशा ॅट, छवि (इम ेज) प्रक्रिया का े लिया गया। सा ंख्यिकी विश्ल ेषण ह ेत ु प्रतिशत द्वारा परिकल्पनाओ ं की साथ र्कता की जा ंच की गयी। निष्कष र् म े ं यह पाया गया कि छात्राध्यापका े ं द्व
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ज्योति, ढोल े. ""विश्वविद्यालयीन विद्यार्थिया ें म ें पर्या वरण जागरूकता: एक अध्ययन"". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–4. https://doi.org/10.5281/zenodo.881961.

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आज हम 21वीं सदी म े प्रव ेष कर च ुके है, जिसम ें विज्ञान आ ैर प्रा ैद्योगिकी एक महत्वप ूर्ण भूमिका निभा रहे ह ै। इस प्रगति न े जहां एक आ ैर ब्रह्माण्ड के अन ेक रहस्या ें को सुलझाया ह ै । वही द ूसरी और मानव का अन ेकान ेक सुख सुविधाए ं प्रदान की है। इन मानवीय प्रगति एव ं विकास म े पर्यावरण तो सद ैव सहायक रहा है, परन्त ु इस विकास की दौड ़ मे हमन े पर्यावरण की उप ेक्षा की आ ैर उसका अनियन्त्रित शोषण किया ह ै। तात्कालिक लाभा ें के लालच मे मानव न े स्वयं अपन े भविष्य को दीर्घ कालीन संकट मे डाल दिया है। परिणामस्वरूप जीवन क े स्त्रोत पर्यावरण का अवनयन होता जा रहा है। इसी परिप ेक्ष्य मे यह परियोजना कार्
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अ, ंजना जैन. "भारत म ें प ेयजल प्रद ुषण - मानव स्वास्थ्य के लिए एक चुना ैति". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–5. https://doi.org/10.5281/zenodo.883525.

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पृथ्वी का 2/3 भू-भाग जल स े घिरा ह ुआ है। पृथ्वी पर जल की मात्रा 1.4 मिलियन क्यूबिक मीटर आंकी गई है। जिसका 97.57ः भाग महासागरों में होन े के कारण खारा जल है। लगभग 36 क्यूबिक मीटर स्वच्छ जल जा े पीन े व उपयोग म ें ल ेन े योग्य है उसम ें स े लगभग 28 मिलियन क्यूबिक मीटर जल बर्फ के रूप म ें ध्रुवों पर जमा ह ै। हमार े वास्तविक उपया ेग के लिये उपलब्ध लगभग 8 मिलियन क्यूबिक मीटर जल पर द ूनिया के लगभग 6 अरब से ज्यादा की आबादी निर्भर है।’1 पीन े योग्य जल के स्त्रोत के रूप में नदियाँ, तालाब, कुए व नलकुप उपलब्ध है। और इनके जल का उपयोग भी हम उसी स्थिति म ें कर सकत े है। जब यह जल प्रद ुषण से मुक्त हो। शुध्द
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स, ुनीता श्रीवास्तव. "बी.एड. महाविद्यालय क े विद्यार्थियों की पर्यावरणीय जागरूकता का तुलनात्मक अध्ययन". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.883515.

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मानव एक सामाजिक प ्राणी ह ै । अतः उसका परिवार एव ं समाज स े घनिष्ठ संब ंध होता ह ै पर्यावरण का अर्थ है वातारण जिसमे ं संप ूर्ण प्रकृति, नदियां, जलाषय, वन, उपवन, वाटिका, झरन े, पर्वतश्रृखंलाए ें, चट ्टान े, खनिज, प ेड ़-पौधे, वायु एव ं जल का संयोग आता ह ै । मन ुष्य पर्यावरण में ही सांसे ले रहा है । अतः शुद्ध पर्यावरण की अत्यंत आवष्यकता है । प ्रकृति का क्ष ेत्र अत्यंत विस्त ृत तथा रहस्यप ूर्ण ह ै जो कि पर्यावरण के साथ ज ुड ़ा हुआ है वह प्राकृतिक घटनाओं का ज्ञान तथा उसक े कारण ढ ूढ ंता है । प्राकृतिक वन संपदा प्राकृतिक स्तर पर एक मनोहर रूप प्रस्त ुत करती है । खेत-बगीचे, झरन े, नदी, वाटिकाए ें एव
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डा, ॅ. शोभना जोशी. "''कथक नृत्य म ें नवाचार आ ैर डाॅ. सुचित्रा हरमळकर''". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.886804.

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कवि जयश ंकर प्रसाद की प ्रसिद्ध प ंक्तियाँ ह ैं - प ुरातनता का यह निर्मोक, सहन करती न प ्रकृति पल एक। नित्य-नूतनता का आनंद, किय े ह ै ं परिवर्तन में ट ेक।।1 अर्था त् प ्रकृति प ुरातन का वहन पल भर क े लिए भी नहीं करती ह ै। नित्य नवीनता आनंददायी होती ह ै अतः प ्रकृति परिवर्तन की टेक पर, नित्य नवीन रूप धारण करती है। इसीलिए प ्रकृति रमणीय ह ै। प ्रकृति में मिट्टी, जल, हवा, अग्नि है जो हमारे संपर्क में ह ै और अंतरिक्ष जो दृश्यमान ह ै। इन मुख्य तत्वों क े अतिरिक्त प ्रकृति के अ ंग ह ै ं- समस्त, जल, थल, नभचर-जीव, ज ंगल। ज ंगल में व ृक्ष, पा ैधे, लताएँ है ं। प्रकृति के ये सभी अंग व ैविध्य से भरपूर ह ै
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डॉ., सुषमा ज. ैन. "प्रया ेगात्मक कला - एक विशलेषण". International Journal of Research - Granthaalayah 6, № 12 (2018): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.2544823.

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अभिव्यंजना अथवा भावाभिव्यक्ति द्वारा सौंदर्य सृजन मनुष्य मात्र को चरम संतुष्टि प्रदान करता रहा है। फिर उसका माध्यम क ुछ भी हो अभिव्यक्ति ही कलाकार का मुख्य उद्देश्य रहता है वह अपन े उद्देश्य क े अन ुरूप माध्यम भी खोज लेता है। यह प्रक्रिया आदिमकाल से लेकर वर्त मान तक अनवरत रूप से जारी है। सर्वप्रथम मानव ने पत्थरों से शिलापट्टा ें पर आड़ी तिरछी र ेखाएँ उकेरी तत्पश्चात उसने प्रकृति प्रदत्त रंगा ें तथा जानवरों की चर्बी को माध्यम बनाया उसमें भी विविधता दर्शाने क े लिए उसने रंगों को पारदर्शी तथा अपारदर्शी रूप में उपयोग किया कहीं पूरक तथा कहीं अर्द्ध पूरक शैली का प्रयोग किया । कहीं र ेखाएँ खीची तथा क
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म, ुकेश दीक्षित. "सामाजिक समस्याएं व पर्या वरण: उच्चतम न्यायालय की भूमिका". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.882783.

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पर्यावरण से मानव का गहरा संब ंध ह ै। मन ुष्य जब से इस पृथ्वी पर आया, उसन े पर्या वरण को अपन े साथ जोड ़े रखा है। सूर्य, चन्द ्रमा, पृथ्वी, पर्वत, वन, नदियां, महासागर, जल इत्यादि का प्रयोग मन ुष्य मानव विकास के आर ंभ से करता आ रहा है। मन ुष्य अपन े द ैनिक जीवन में लकड ़ी, भोजन, वस्त्र, दवायें इत्यादि प्राप्त करन े हेत ु प्राकृतिक सम्पदा का शुरू से उपयोग किया है और वर्त मान मे निर ंतर जारी है। सामाजिक परिवर्त न क े साथ औद्योगिक विकास एव ं जनसंख्या वृद्धि म ें पर्यावरण को प्रभावित किया है। औद्योगीकरण के कारण व्यक्ति आज अपनी आवश्यकता क े अन ुरूप पर्यावरण को बदलन े के लिये सक्रिय कारक बन गया है। वन
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