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Artykuły w czasopismach na temat "भक्ति"

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भट्ट, शिंवागि, та कीर्ति कुमावत. "पुष्टिमार्गीय हवेली संगीत: प्रेमलक्षणा और भक्ति भाव". Anthology The Research 9, № 2 (2024): H11—H15. https://doi.org/10.5281/zenodo.12529770.

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This paper has been published in Peer-reviewed International Journal "Anthology The Research"                      URL : https://www.socialresearchfoundation.com/new/publish-journal.php?editID=9092 Publisher : Social Research Foundation, Kanpur (SRF International)    Abstract : मध्यकाल में भक्ति संगीत अत्यन्त तीव्र गति से विकसित हुआ था। क्योंकि इस समय भक्ति संगीत का आधार शास्त्रीय संगीत था। संगीत जगत् में इस काल को भक्तिकाल की संज्ञा भी दी गई थी। भक्तिकाल" संगीत साहित्य में स्वर्ण
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डॉ., फेदोरा बरवा. "हिन्दी साहित्य में मीराबाई एक अध्ययन". INTERNATIONAL JOURNAL OF INNOVATIVE RESEARCH AND CREATIVE TECHNOLOGY 10, № 2 (2024): 1–4. https://doi.org/10.5281/zenodo.14435391.

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आज मीराबाई का नाम श्री कृष्ण के प्रति उनकी भक्ति और उनकी कलाकृतियों के लिए सम्मानपूर्वक लिया जाता है। महान संत कवियत्री मीरा बाई कृष्ण की भक्त थीं। मीरा बाई ने अपने जीवन में बहुत कष्ट सहे थे। एक राजघराने में जन्म लेने और विवाह करने के बावजूद मीरा बाई को बहुत कष्ट सहना पड़ा। इस वजह से उनके अंदर अलगाव भर गया और वे कृष्ण की भक्ति की ओर आकर्षित हो गईं। कृष्ण के प्रति उनकी भक्ति चरम स्तर तक बढ़ गई। मीराबाई पर अनेक भक्ति संगठनों का प्रभाव था। इसका चित्रण उनकी रचनाओं में मिलता है। श्पदावलीश् मीराबाई की प्रमुख प्रामाणिक अद्भुत रचना है। रामरतन पायो जी मैंने पायो। यह मीराबाई की प्रसिद्ध रचना है। वह खुद
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रानी, शिखा. "वर्तमान परिप्रेक्ष्य में नारद भक्ति सूत्र एवं षाण्डिल्य भक्ति सूत्र में भक्ति के साधनों का तुलनात्मक अध्ययन". Dev Sanskriti Interdisciplinary International Journal 12 (31 липня 2018): 15–21. http://dx.doi.org/10.36018/dsiij.v12i0.101.

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प्रस्तुत षोध पत्र का उद्देष्य वर्तमान परिप्रेक्ष्य में नारद भक्ति सूत्र एवं षाण्डिल्य भक्ति सूत्र में भक्ति के साधनों का तुलनात्मक अध्ययन करना है। भावनायें जीवन का आधार हंै। आज भावनात्मक अपरिश्कृति के कारण जीवन के सभी तलों पर समस्याएँ उत्पन्न हो गयी हैं, भक्ति द्वारा इन सभी का समाधान संभव है। भक्ति भगवान के प्रति परम प्रेम है। नारद भक्ति सूत्र एवं षाण्डिल्य भक्ति सूत्र भक्ति संबंधी सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्राचीन ग्रंथ है। नारद भक्ति सूत्र एवं षाण्डिल्य भक्ति सूत्र के तुलनात्मक अध्ययन पर कोई षोध कार्य तो नहीं हुआ है परन्तु नारद भक्ति सूत्र एवं षाण्डिल्य भक्ति सूत्र पर अलग-अलग कतिपय भाश्य अवष्य लिख
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पूजा देवी та आरती पाल. "नारद भक्ति सूत्र में भावनात्मक स्वास्थ्य का विश्लेषण". International Journal for Research Publication and Seminar 16, № 2 (2025): 84–87. https://doi.org/10.36676/jrps.v16.i2.62.

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नारद भक्ति सूत्र भारतीय भक्ति परंपरा का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जो प्रेम, करुणा और भक्ति के सिद्धांतों को प्रस्तुत करता है। यह ग्रंथ न केवल आध्यात्मिक विकास का मार्ग दिखाता है, बल्कि यह व्यक्ति के भावनात्मक स्वास्थ्य पर भी गहरा प्रभाव डालता है। इस अध्ययन में, नारद भक्ति सूत्र में वर्णित भावनात्मक स्वास्थ्य के विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण किया गया है। शोध ने यह दर्शाया है कि भक्ति और प्रेम की भावना व्यक्ति को मानसिक शांति, सकारात्मकता, और आंतरिक संतुलन प्रदान करती है। इसके साथ ही, करुणा और सहानुभूति का अभ्यास व्यक्ति के नकारात्मक भावनाओं को कम करने और समाज में सामंजस्य स्थापित करने में सहायक होता
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मिश्र, नरेन्द्र. "सामाजिक समरसता के संवाहक संत रविदास". HARIDRA 1, № 01 (2020): 21–27. http://dx.doi.org/10.54903/haridra.v1i01.7803.

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संत रविदास उत्तर भारत के 15वीं से 16वीं शताब्दी के बीच भक्ति आंदोलन के एक कवि, विचारक, दार्शनिक, समाज सुधारक एवं संत शिरोमणि थे। गुरु रविदास कबीर के समसामयिक थे। भक्त रविदास जी के समय में जातिगत भेदभाव चरम सीमा पर था। समाज में व्याप्त रूढ़ियों, अंधविश्वासों एवं भेदभाव के खिलाफ रविदास जी जन जागरण का अभियान चलाया। धार्मिक कट्टरता का जबर्दस्त विरोध किया तथा भक्ति एवं सेवा के सहज एवं सरल स्वरूप को अपनाने का संदेश दिया। धार्मिक भावनाओं के आधार पर प्रचलित रूढ़ियों को दूर करने के लिए उन्होंने "मन चंगा तो कठौती में गंगा" जैसी सूक्तियों के आधार पर कांति का बिगुल फूंका। समाज व्याप्त असमानता को दूर करने
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कौल, अविनाश कुमार. "भक्ति आंदोलन, सामाजिक संरचना, जाति प्रथा, धार्मिक सहिष्णुता एवं सांस्कृतिक पुनर्जागरण". International Journal of Science and Social Science Research 2, № 3 (2024): 149–51. https://doi.org/10.5281/zenodo.14210186.

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भक्ति आंदोलन ने मध्यकालीन भारत की सामाजिक संरचना और सांस्कृतिक परिवेश में गहरा प्रभाव डाला। यह आंदोलन उस समय उभरा जब सामाजिक असमानता, जाति प्रथा और धार्मिक कट्टरता अपने चरम पर थीं। भक्ति संतों जैसे कबीर, तुलसीदास, मीराबाई और गुरु नानक ने धर्म के जटिल रीति-रिवाजों और जाति आधारित विभाजन के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने समानता, सद्भाव और भाईचारे के मूल्यों को पुनर्स्थापित करने का प्रयास किया। भक्ति आंदोलन ने निम्न जातियों और महिलाओं को सामाजिक और धार्मिक रूप से सशक्त होने का अवसर प्रदान किया। इस आंदोलन ने जाति आधारित भेदभाव को चुनौती दी और सभी मनुष्यों की समानता पर जोर दिया। भक्ति संतों की वाणी में स
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गायकवाड, डॉ. रोहित. "मध्ययुगीन संतकवियों में सामाजिक उत्प्रेरक - संत कबीर". International Journal of Advance and Applied Research 5, № 44 (2024): 157–61. https://doi.org/10.5281/zenodo.14710396.

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<strong>सारांश:-</strong> भागवत धर्म के प्रचार-प्रसार के परिणामस्वरूप भक्ति आंदोलन का सूत्रपात हुआ। धीरे-धीरे लोकभाषाएं भक्ति-भावना की अभिव्यक्ति का माध्यम बन गई। तत्कालीन युग में लोकभाषाओं में ही सभी संतों ने साहित्य सृजन किया। क्योंकि लोकभाषाएँ जनमानस की भाषाऐं थी। परिणामतः भक्ति-साहित्य की बाढ़ सी आ गयी। केवल वैष्णव ही नहीं अपितु शैव, शाक्त धर्मों के साथ-साथ बौद्ध, जैन संप्रदायों में भी भक्ति को प्रभावित किया। आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी ने साधारण 1318 से 1643 इ.स. तक भक्तिकाल का निर्धारण किया। सामाजिक क्षेत्र का विचार करें तो समाज, वर्ण, वर्ग, जाँति, धर्मों में विभाजीत था। सामाजिक व्यवस्था पर
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., प्रेमवती. "कबीरः- मानवतावादी समाजसुधारक". International Journal of Science and Social Science Research 1, № 3 (2023): 217–21. https://doi.org/10.5281/zenodo.13623125.

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जिस समय कबीरदास जी का अविर्भाव हुआ। उस समय भारत देष में भक्ति आन्दोलन की लहर प्रवल थी। हिन्दू-मुसलमानों में मतभेद चरम सीमा पर था। मुसलमानो के आगमान से हिन्दू समाज पर इसका व्यापक प्रभाव पड़ा। उस समय समाज में अनेक प्रकार की बुराइयाँ व्याप्त थी। जैसे जातिगत भेदभाव हिंसा, साम्प्रदायिकता,धार्मिक पाखण्ड,छुआछुत, ऊँच-नीच रूढिवादी,अन्धविष्वास आदि। कबीरदास ने समाज में फैली इन बुराइयों को दूर करने के लिए जो मार्ग अपनाया वैसा किसी भी साधु-सन्त और भक्त ने नही अपनाया।यह कहना गलत नही होगा कि कबीर जैसा समाज सुधारक एंव मानवतावाद की स्थापना करने वाला निर्गुण भक्त कवियों में दुसरा कोई कबीर का स्थान सर्वोपरि है।
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गुप्ता, सुरेन्द्र कुमार. "कबीरदास का भक्ति आंदोलन में योगदान". International Journal of Advanced Academic Studies 2, № 3 (2020): 862–66. http://dx.doi.org/10.33545/27068919.2020.v2.i3l.1011.

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Kumar, Narender. "आधुनिक युग में भक्तियोग: श्रीमद्भगवद्गीता के परिपेक्ष्य में". Shodh Manjusha: An International Multidisciplinary Journal 2, № 1 (2024): 20–28. https://doi.org/10.70388/sm240116.

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पुरातन समय में श्रीमद्भगवद्गीता का विशेष स्थान रहा है | जिस प्रकार मानव के जीवन में वेद, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद,महाकाव्य आदि सभी ग्रंथो का अपना विशेष महत्व रहा है | उसी प्रकार इस संसार में आज भी सभी ग्रन्थों में सर्वत्र गीता का आदर है | यह किसी भी विशेष धर्म–सम्प्रदाय का साहित्य नहीं बन सकी, क्योंकि यह तो भारत में प्रकट हुई समस्त विश्व की धरोहर है |जो कि आज भी मानव इसे सबसे ज्यादा महत्व देता है, आज के समय में मानव अपने कर्मो को भूल गया है | वह अपने कर्मो से दूर भागता है ,क्योंकि आज का मानव स्वार्थी हो गया है | वह अच्छे कर्म न करके बुरे कर्मो की तरफ दौड़ता है | इसका कारण यह है कि मनुष्य ईश्वर
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Książki na temat "भक्ति"

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Rafi, Mohammed. हिट फिल्मी गीत, रफ़ी प्यार-मोहब्बत, दर्दो-ग़म और भक्ति-भाव से लबरेज़ दिलकश गीतों की शानदार प्रस्तुति: Pyāra-mohabbata, dardo-gẖama aura bhakti-bhāva se labareza dilakaś gītoṃ kī śānadāra prastuti. Manoja Pablikeśansa, 2005.

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Ācārya Pūjyapāda’s Bhakti Saṃgraha – Collection of Devotions आचार्य पूज्यपाद विरचित भक्ति संग्रह. Vijay Kumar Jain, 2022.

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Części książek na temat "भक्ति"

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Prof . Vidya Gurunath Kamble. "पेशवे काळातील भक्ती चळवळ: एक चिकित्सक अभ्यास." In GLOBAL PERSPECTIVES: CROSS-DISCIPLINARY CONTRIBUTIONS TO MULTIDISCIPLINARY RESEARCH. ZYKRA PUBLICATIONS, 2020. https://doi.org/10.25215/8198391754.38.

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