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Artykuły w czasopismach na temat "महिलाओं"

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प्रीति. "भारत में महिला सशक्तिकरण एक अध्ययनः महिला अधिकारों के सदंर्भ में". RECENT RESEARCHES IN SOCIAL SCIENCES & HUMANITIES 11, № 1 (2024): 117–21. https://doi.org/10.5281/zenodo.11001982.

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गोप संस्कृति के समय से ही भारतीय समाज मंे महिलाओं की सक्रियता और सम्मान सदैव आदरणीय रहे हंै, किंतु राज्य की बढ़ती हुई भूमिका और राजनीतिक हस्तक्षेपांे के कारण मानव ने मानव को ही अपने शोषण का शिकार बना दिया। जिसकी श्रंृखला परिवार से शुरू हुई, हांलाकि महिला और पुरुष का संबध्ंा पर निर्भरता और सक्रियता से है। जिसके कारण सृष्टि की रचना और उसका संरक्षण आज तक बना हुआ है, परंतु मानव के सत्ता संघर्ष के बीच महिला संवेदनशील स्थिति मंे पहंुच गई। संवैधानिक संस्थाआं े के विकास के बाद सामाजिक हुए सामाजिक सुधारो के कारण महिलाआं े की समझ मंे सक्रिय भागीदारी और मुख्य धारा मं े सक्रियता सिद्धांत के रूप से 20वी ं
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सचिन, कुमार, та कुमार टम्टा दीपक. "ग्रामीण क्षेत्रों के विकास में महिलाओं की भूमिका (जनपद अल्मोड़ा के विशेष संदर्भ में)". RECENT RESEARCHES IN SOCIAL SCIENCES & HUMANITIES 11, № 4 (2024): 83–88. https://doi.org/10.5281/zenodo.14840997.

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आज भारत की कुल आबादी में पुरुषों का प्रतिशत महिलाओं की अपेक्षा अधिक रहा है। हमारे देश की महिलाएं पुरुषों केसमान ही आर्थिक व राजनैतिक क्षेत्र में अपनी भूमिका निभा रही है। जहां-जहां पुरुष वर्ग काम करता है वहाँ-वहाँ महिलावर्ग भी काम कर रहा है हमारे देश की अधिकांश महिलाएँ किसी भी क्षेत्र में काम करने से पीछे नहीं हटी। सर्वाधिक महिलाश्रमशक्ति कृषि में लगी हुई है जबकि सेवा क्षेत्र में सबसे कम महिला श्रमशक्ति लगी हुई है यद्यपि यह स्थिति पुरुषश्रमशक्ति की भी है परंतु महिलाओं का प्रतिशत पुरुषों की तुलना में कृषि क्षेत्र में अधिक और सेवा क्षेत्र में कम है सामान्यतःसभी व्यवसायों अथवा उद्योगों को तीन व्या
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चौधरी, नीतू. "साइबर अपराध के युग में महिलाओं के समक्ष चुनौतियाँ". Shrinkhla Ek Shodhparak Vaicharik Patrika 11, № 8 (2024): H10—H16. https://doi.org/10.5281/zenodo.11209350.

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This paper has been published in Peer-reviewed International Journal "Shrinkhla Ek Shodhparak Vaicharik Patrika"                      URL : https://www.socialresearchfoundation.com/new/publish-journal.php?editID=8989 Publisher : Social Research Foundation, Kanpur (SRF International)  Abstract :  महिलाएँ किसी समाज के निर्माण का केन्द्र होती है। समाज के आगे बढ़ने में महिलाओं की उतनी ही महत्वपूर्ण भूमिका होती है जितनी की पुरूषों की। फिर भी भारतीय समाज में महिलाएँ एक लम्बे समय से अवमा
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अमिता, कृष्णा महातळे (विरुटकर). "पर्यावरण संरक्षण व संवर्धन में महिलाओं की भूमिका". International Journal of Advance and Applied Research 4, № 30 (2023): 100–102. https://doi.org/10.5281/zenodo.8394544.

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आज पुरे विश्व मे जिस मुद्दे पर चर्चा हो रही है उनमें पर्यावरण संरक्षण और महिला सशक्तीकरण  सबंधीत है।  8 मार्च को आंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है।  आज महिलाए स्वावलंबीत के साथ सशक्तीकरण की अद्वितीय मिसाल बनी है। 'पर्यावरण" मानवजाती के लिए एक अमुल्य वरदान है, मानव और प्रकृति के बीच गहरा नाता है। '5 जून' पूरा विश्व पर्यावरण दिवस मनाता है। पर्यावरण के प्रति जागृकता फैलाने के लिए यह दिवस मनाया जाता है। पर्यावरण संरक्षण और संवर्धन में महिलाओं ने अहम भूमिका निभाई है। भारतीय इतिहास का अध्ययन किया तो यह बात ज्ञान में आती है की वैदिक काल से ही महिलाएं पर्यावरण संरक
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कुमार, विनय, та सोनू सारण. "लखनऊ जिले के संदर्भ में महिला सशक्तिकरण में स्वयं सहायता समूहों की भूमिका पर एक जांच". Humanities and Development 19, № 02 (2024): 13–21. https://doi.org/10.61410/had.v19i2.183.

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यह पत्रा भारत में महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता का विश्लेषण करने का प्रयास करता है और महिला सशक्तिकरण के तरीकों और योजनाओं पर प्रकाश डालता है। सशक्तिकरण सामाजिक विकास की मुख्य प्रक्रिया है, जोमहिलाओं को ग्रामीण समुदायों के आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक सतत विकास में भाग लेने में सक्षम बनाती है।आज महिलाओं का सशक्तिकरण 21वीं सदी की सबसे महत्वपूर्ण चिंताओं में से एक बन गया है, लेकिन व्यावहारिक रूप से महिला सशक्तिकरण अभी भी वास्तविकता का एक भ्रम है। महिलाओं का सशक्तिकरण अनिवार्य रूप से समाज मेंपारंपरिक रूप से वंचित महिलाओं की आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक स्थिति के उत्थान की प्रक्रिया है। हम अपने दैनिक
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मौर्य, बाल गोविन्द, та प्रो मनोज कुमार मिश्रा. "ग्रामीण कार्यशील महिलाऐ पारिवारिक एवं वैवाहिक सामंजस्य". Humanities and Development 18, № 1 (2018): 71–75. http://dx.doi.org/10.61410/had.v18i1.115.

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इतिहास इस बात का साक्षी है कि भारतीय समाज परम्परागत रूप से पुरुष प्रधान रहा है। समाज में महिलाओं की प्रस्थिति सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक रूप से दयनीय रही है। महिलाऐं जीवन के प्रत्येक स्तर पर संघर्षरत रही है। शिक्षा के अधिकार से वंचित होते हुए भी पारिवारिक संस्कार का बोध उन्हें अपने पथ से कभी विपथ नहीं होने दिया। भारत कृषि प्रधान देश होने के साथ पुरुष सत्तात्मक समाज भी है जहाँ महिलाऐ घर की चाहरदीवारी में जीवन निर्वहन करती रही हैं। जातीय समीकरण में भी उच्च जाति की महिलाओं की अपेक्षा निम्न जातीय महिलाऐं अधिक स्वतंत्र रही हैं। स्वतंत्रता के पश्चात देश के सामाजिक, आर्थिक, एवं राजनैतिक विकास के परि
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शुक्ला, प्रगति. "महिला उद्यमिता एवं नेतृत्व". Humanities and Development 19, № 02 (2024): 54–58. https://doi.org/10.61410/had.v19i2.190.

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हमारी सनातन परंपरा में भारतीय नारी को शक्ति स्वरूपा व शक्ति का पुंज माना गया है। अतः स्त्री की शक्ति को चिन्हित करके ही भारत में सदा स्त्रियों को नमन किया गया और महिलाओं को आर्थिक, शैक्षिक तथा भावनात्मक रूप से सजग व स्थिर बनाने का प्रयास सदैव किया गया। सन् 1991 में महिला उद्यमिता विकास कार्यक्रमों में महिलाओं को प्रशिक्षण व प्रोत्साहन देने का कार्य बहुत तेजी से बढ़ा, जबकि 1974 से 1978 में अन्तर्राष्ट्रीय महिला वर्ष घोषित किया जा चुका था। हालांकि भारत में अभी भी पुरुषों की तुलना में महिलाओं की उद्यम क्षेत्र में सहभागिता कम है। कारण आज भी पितृसत्तात्मक समाज, उत्पादन लागत उच्च, आर्थिक समस्याएं, या
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ओझा, डॉ. अजय कुमार. "भारतीय राजनीति में महिलाओं की भागीदारी". International Journal of Advance and Applied Research 5, № 44 (2024): 226–29. https://doi.org/10.5281/zenodo.14711465.

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<strong>सारांश</strong><strong>:-</strong> आधुनिक भारतीय राजनीति में कई ऐसी महिलाएं रही है, जिनकी ऐतिहासिक भूमिका से हम भलीभांति परिचित है। स्वतंत्रता के आंदोलों के दौरान से लेकर आजाद भारत में सरकार चलाने तक में महिलाओं की राजनीतिक भूमिका और पहल अहम रही है। बावजूद इसके जब राजनीति में महिला भागीदारी की बात आती है तो आंकड़े बेहद निराशाजनक तस्वीर पेश करते हैं। प्रत्यक्ष (एक्टिव पॉलिटिक्स में महिलाओं की भागीदारी) और अप्रत्यक्ष (बोटर्स के रूप में भागीदारी) दोनों स्तर पर ही भारी गैर-बराबरी से हमारा मुठभेड होता है। विश्वस्तर पर अगर भारत की एक्टिव पॉलिटिक्स में महिलाओं की स्थिति की बात करें तो भारत 19
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प्रियंका, प्रिया, та विश्वनाथ झा डॉ०. "निर्धनता का अनुसूचित जाति की महिलाओं के शिक्षा पर प्रभाव- एक अध्ययन". Journal of Research and Development 14, № 23 (2022): 48–50. https://doi.org/10.5281/zenodo.7546439.

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<strong>सारांश:-</strong> भारत में महिलाएं समाज के अधिक वर्चस्व वाले और उत्पीड़ित वर्ग का प्रतिनिधित्व करती हैं और उम्र भर उनकी उपेक्षा की जाती रही है। समाज में महिलाओं की स्थिति विभिन्न सामाजिक-आर्थिक कारकों द्वारा निर्धारित की जाती है। इन कारकों में रोजगार, शिक्षा, आय आदि शामिल हैं। भारत में महिला शिक्षा समाज के समग्र विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसके बावजूद अनुसूचित जाति की महिलाओं में शिक्षा का बहुत अभाव है। यह अधिकांश ग्रामीण क्षेत्र में व्यापक रूप से देखा जा सकता है। इसका सबसे बड़ा कारक निर्धनता एवं जागरूकता को माना गया है। जिस कारण अनुसूचित जाति की महिलाएं शिक्षा से वंचित रहने
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Bajpai, Neeta. "महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के विविध रूप : एक विवेवचन". RESEARCH EXPRESSION 6, № 8 (2023): 68–77. https://doi.org/10.61703/vol-6vyt8_8.

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महिलाओं के प्रति हिंसा एकवैश्विक परिघटना है जो न केवल लगभग सार्वभौम है बल्कि समसामयिक रुप से नॉर्वे स्वीडन डेनमार्क के अत्यधिक उन्नत समाजोंसे लेकर रवाण्डा बुरूण्डी कांगो जायरे जैसे विकासशील और विकसित समाजो तक यह एक महत्वपूर्णसमस्या बनी हुई है । एक सनातन समस्या भी है अर्थात प्राचीन काल से लेकर आधुनिक कालतक की समस्या बनी हुई है। पुनर्जागरण के पश्चात महिला अधिकारों के विस्तार के साथ महिलाओंके प्रति सम्मान में यद्यपि वृद्धि हुई है लेकिन महिलाओं के प्रति हिंसा की समस्याबनी हुई है। तकनीकी के विकास और प्रसार के साथ महिलाओं के प्रति हिंसा की रिपोर्टिंगऔर गणना में यद्यपि वृद्धि हुई है तथापि हिंसा में ब
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Raporty organizacyjne na temat "महिलाओं"

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Kharel, Arjun, Sadikshya Bhattarai, Prajesh Aryal, Sudhir Shrestha, Pauline Oosterhoff та Karen Snyder. नेपालबाट अन्तर्राष्ट्रिय मुलुकहरूमा हुने मानव बेचबिखनका मार्गहरूको परिवर्तनका बारेमा समाचारहरुको विश्लेषण. Institute of Development Studies, 2022. http://dx.doi.org/10.19088/ids.2022.085.

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यस अध्ययनमा सन् २०१५ पछि नेपालबाट अन्तर्राष्ट्रिय मुलुकहरूमा हुने मानव बेचबिखनका मार्गहरूमा भएका परिवर्तनहरूका बारेमा बुझ्नका लागि नेपालबाट मानव बेचबिखनमा संलग्न भएका विभिन्न व्यक्तिहरूबारे समाचारहरुमा गरिएको चित्रणलाई विश्लेषण गरिएको छ। यस अध्ययनका निष्कर्षहरू सन् २०१६ देखि २०२० सम्मको पाँच वर्षको अवधिमा नेपालका छ वटा राष्ट्रिय समाचार पत्रमा प्रकाशित ४८० वटा समाचारहरुको विश्लेषणका साथसाथै यस विषयमा प्रकाशित विद्यमान दस्तावेजहरू र समाचारपत्रका संवाददाता र सम्पादकहरूसँगको अन्तर्वार्तामा आधारित छन्। समाचारमा रिपोर्ट गरिएका आरोपीत अपराधीहरूमा धेरैजसो पुरुषहरू थिए भने पीडितहरूमा महिलाहरूको सङ्ख्या
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Oosterhoff, Pauline, Karen Snyder та Neelam Sharma. बेचबिखन विरूद्धका भ्रामक रणनीतिहरूबाट जोखिममा रहेका नेपाली महिलाहरू. Institute of Development Studies, 2022. http://dx.doi.org/10.19088/ids.2022.081.

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ेपालमा अतिथि सत्कार, मनोरञ्जन र कल्याण सम्बन्धी उद्योगहरू बढ्दै गएका छन्। बेचबिखन विरूद्धका प्रयासहरूमा प्रयोग गरिएको लेबल ‘वयस्क मनोरञ्जन क्षेत्र’ (‘AES’) ले यी उद्योगहरूमा के ही व्यवसायका मालिकहरू र मुख्यतया महिला कामदारहरूको प्रतिष्ठामा दाग लगाएको छ। व्यवसायहरूलाई कर््मचारीहरू खोज्न र कामदारहरूलाई काम खोज्नमा मद्दत गर्ने श्रम मध्यस््थकर््तताहरू यी अनौपचारिक उद्योगहरूको महत्त्वपूर््ण र प्रायजसो गलत रूपमा प्रस्तुत हुने अंश हुन्। महिलाहरूसँग नेपालमा सुरक्षित रोजगारी वा वैदेशिक श्रम आप्रवासनका लागि कु नै विकल्प नरहेको अवस््थथा रहेको छ। यी व्यवसाय र सामाजिक सुरक्षाको सजिलो दर््तता तथा अनुगमनलाई
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