Добірка наукової літератури з теми "प्रगतिवादी युग"

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Статті в журналах з теми "प्रगतिवादी युग"

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ख ुट, डिश्वर नाथ. "बस्तर का नलवंश एक ऐतिहासिक पुनरावलोकन". Mind and Society 9, № 03-04 (2020): 47–52. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-93-4-20217.

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Анотація:
सभ्यता का विकास पाषाण काल स े प ्रार ंभ हा ेता ह ै। इस काल म ें बस्तर म े रहन े वाल े मानव भी पत्थर क े न ुकील े आ ैजार बनाकर नदी नाल े आ ैर ग ुफाआ ें म ें रहत े थ े। इसका प ्रमाण इन्द ्रावती आ ैर नार ंगी नदी के किनार े उपलब्ध उपकरणों स े हा ेता है। व ैदिक युग म ें बस्तर दक्षिणापथ म ें शामिल था। रामायण काल म ें दण्डकारण्य का े उल्ल ेख मिलता ह ै। मा ैर्य व ंश क े महान शासक अशा ेक न े कलि ंग (उड ़ीसा) पर आक्रमण किया था, इस य ुद्ध म ें दण्डकारण्य क े स ैनिका ें न े कलि ंग का साथ दिया था। कलि ंग विजय क े बाद भी दण्डकारण्य का राज्य अशा ेक प ्राप्त नही ं कर सका। वाकाटक शासक रूद ्रस ेन प ्रथम क े समय
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सीमा, शमा, та तिवारी आभा. "पर्यावरण संरक्षण एव ं मानवीय स ंवेदना आज के संदर्भ म ंे". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special edition) (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.883549.

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Анотація:
मानव एव ं प्रकृति एक द ूसर े के प ूरक हैं। मन ुष्य का जीवन प्रकृति अर्थात ् पर्यावरण संरक्षण के बिना संभव नही ं है। मन ुष्य की आत्मके ंदि ्रत सोच के कारण प ्रकृति का दोहन करत े हुए उसन े संरक्षण का विचार त्याग दिया। कटत े हुए व ृक्ष, प ्रद ूषित होती हुई नदियाँ, सूखत े ह ुए कुँए, धुँए और धूलका ग ुबार बनती हुई हवा, कीटनाशका ें के जहर से भरी हुई खाद्य सामग ्री, मन ुष्य की सूखती हुई संव ेदना की कहानी कह रहे है ं। हम सब प्रक ृति की संतान ह ै। पँचतत्वों स े निर्मित है, हमारा शरीर: भूमि, वायु, जल, आकाश एव ं अग्नि। ये पाँच तत्व ही पर्यावरण है ं। इनमंे से एक भी यदि प ्रद ूषित होता ह ै तो मानव जीवन भी प
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मिश्रा, आ. ंनद म. ुर्ति, प्रीति मिश्रा та शारदा द ेवा ंगन. "भतरा जनजाति में जन्म संस्कार का मानवशास्त्रीय अध्ययन". Mind and Society 9, № 03-04 (2020): 39–43. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-93-4-20215.

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Анотація:
स ंस्कार शब्द का अर्थ ह ै श ुद्धिकरण। जीवात्मा जब एक शरीर का े त्याग कर द ुसर े शरीर म ें जन्म ल ेता है ता े उसक े प ुर्व जन्म क े प ्रभाव उसक े साथ जात े ह ैं। स ंस्कारा े क े दा े रूप हा ेत े ह ैं - एक आंतरिक रूप आ ैर द ूसरा बाह्य रूप। बाह ्य रूप का नाम रीतिरिवाज ह ै जा े आंतरिक रूप की रक्षा करता है। स ंस्कार का अभिप्राय उन धार्मि क क ृत्या ें स े ह ै जा े किसी व्यक्ति का े अपन े सम ुदाय का प ुर्ण रूप स े योग्य सदस्य बनान े क े उदद ्ेश्य स े उसक े शरीर मन मस्तिष्क का े पवित्र करन े क े लिए किए जात े ह ै। सभी समाज क े अपन े विश ेष रीतिविाज हा ेत े ह ै, जिसक े कारण इनकी अपनी विश ेष पहचान ह ै,
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सुरभि, त्रिपाठी. "''चित्रकला म ें र ंग'' (प्रागैतिहासिक काल स े वर्तमान काल तक के परिपेक्ष्य में)". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.890519.

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Анотація:
सुख-दुःख, उत्तेजना, भय, विश्राम, उल्लास आदि का पर्या य ही रंग ह ै। रंग प्रकृति के कण-कण में व्याप्त ह ै। घरा क े प ्रत्येक रंग का अपना एक सौदंर्य व नैसर्गिक गुण होता ह ै, परन्तु उसे किस प ्रकार प ्रयुक्त किया जाय यह कलाकार की क ुशलता एवं दक्षता पर निर्भर करता ह ै, एक प ्रकार से रंग ही मनुष्य की प ्रव ृत्ति की अभिव्यक्ति हैं, जिसे कलाकार अपने अनुभव के साथ प ्रस्तुत करता है। रंगा ें क े प ्रति मनुष्य का आकर्ष ण स्वाभाविक ही नहीं वरन् जन्मजात ह ै, इस प ्रकार रंग व्यक्ति विशेष की कलाक ृति का सबसे महत्वपूर्ण व सार्थ क तत्व ह ै। रंग व्यक्ति विश ेष की अभिव्यक्ति भी ह ै। हिन्दू धर्म में वर्ण (रंग) का
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चरनजीत, कौर. "आधुनिक परिवारो म ें रसोई उघान क े प ्रति अभिव ृत्तिया ं ज्ञान एवं व्यवहार का अध्ययन". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–4. https://doi.org/10.5281/zenodo.574867.

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Анотація:
भारत द ेश में वर्त मान म ें पर्या वरण प ्रद ूषण एक विकट समस्या हैं। जिसके स ुधार में गृह वाटिका का महत्वप ूर्ण योगदान हो सकता हैं। घनी वस्तियों तथा औद्योगिक क्षेत्रों म ें भी ग ृहवाटिका की विश् ेाष भ ूमिका ह ैं। यदि घर के सामन े पेड पौधे लग े हों तो घर के अंदर धूलमिट ्टी नहीं आती तथा स्वच्छ हवा का आवागमन बना रहता है। इसमें घर की रसोई से निकलन े वाले व्यर्थ पदार्थो का उपयोग खाद के रूप में किया जा सकता ह ै। यह एक छोटी उत्पादन इकाई के रूप में भी हो सकती ह ै। इन्ही तत्थ्यों का े ध्यान में रखकर गृहवाटिका एक प्रयोगशाला प्रतीत होती है, जहां व्यक्ति उद्यानषास्त्री न होत े हुए भी राष्ट ृ्र् ीय विकास एव
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वर्षा, अग ्रवाल. "राग रागिनी और पर्यावरण का परस्पर सम्बन्ध". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–4. https://doi.org/10.5281/zenodo.883521.

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Анотація:
मन आ ैर उससे जुड ़ा मस्तिष्क जिस प्रकार हमार े भौगोलिक पर्यावरण को द ेखकर उस पर आसक्त होता ह ै और शरीर को अच्छे स्वच्छ पर्या वरण का साथ मानव मन को सुख शान्ति की ओर ले जाता है। भारतीय संगीत में विभिन्न राग-रागनिया ें का ध्यान पर्या वरण के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध है। ए ेसा सर्वविदित है कि एक अच्छा सा ेच, अच्छ े विचार, अच्छा स ंगीत आदि सभी अच्छे पर्या वरण का निर्मा ण करत े हैं। नदी का बहना, वायु का प ्रवाहमान होना, व ृक्षों की सांय-सांय सभी एक स ुखद संगीत ध्वनि का निर्माण करत े हैं जा े अला ैकिक है, सार्वभा ैमिक ह ै। परन्त ु हमारे सामव ेद में ऊँ का उच्चारण, मंत्रा ें का उच्चारण उद ्दात, अन ुद ्दात, स्
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डा, ॅ. संध्या ज. ैन. "र ंगा ें की भाषा". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.891850.

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Анотація:
रंगा ें की अपनी भाषा ह ै। रंग ही हमारा जीवन ह ैं। जीवन के विविध क्षेत्रा ें में य े रंग अपनी छटा बिख ेरते ह ै ं। खान-पान, रहन-सहन, पूजा-पाठ, धर्म-कर्म सभी तो विविध रंगा ें से जुडे ह ुए ह ैं।दुनिया के इस रंगमंच पर हर इंसान किसी-न-किसी रंग में रंगा ह ुआ ह ै। रंगा ें की अनुभूति देखने व स्पर्ष करने से हा ेती ह ै।रंगा ें क े बिना हमारा जीवन ठीक व ैसा ही है, जैसे प ्राण बिना शरीर । प्रकृति सा ैंदर्य में जहाँ ये रंग चार चाँद लगाते ह ै ं वहीं मानव जीवन को भी सरस, सुखद व रंगीन बना देते ह ैं ।आबाल व ृद्ध रंगा ें से वस्तुओं का े पहचान लेता ह ै। सात रंगा ें से निर्मित इन्द्रधनुष के रंगा ें की छटा हमारे मन
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निर्मला, शाह. "पर्यावरण प्रबन्धन एव ं समाज". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.883555.

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Анотація:
मानव और पर्या वरण का निकट का सम्बन्ध है। पर्यावरण मानव का े प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है। स्वावलम्बी विकास की अवधारणा पर्यावरण एव ं विकास नीतियों के एकीकृत नजरिये पर आधारित है जिनका अभिप्राय किसी पारिस्थितिक क्षेत्र से अधिकाधिक आर्थिक लाभ लेना एव ं पर्यावरण के संकट एव ं जोखिम को न्यूनतम करना ह ै। इसम ें अन्तर्नि हित है, वर्त मान की आवश्यकताओं एव ं अप ेक्षाओं को भविष्य की क्षमताओं स े समझौता किय े बिना प ूरा करना। इसको प्राप्त करन े के लिये हमें विकास का पारिस्थितिक समन्वय करना होगा जिसमें हमें अपनी प्राथमिकताओं का प ुनर्नि न्यास करना चाहिये तथा एक आयामी प ्रतिमान छा ेड ़ द े
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डॉ., टीना तांब े. "शास्त्रीय नृत्या ें में नवीन प्रयोग". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.884962.

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परिवर्तन प्रकृति का नियम ह ै। प्रकृति में विद्यमान का ेई भी तत्व इस प्रक्रिया से अछूता नहीं रह पाया है। रहन-सहन, खान-पान, आचार-विचार, मान्यताए, मानसिकता, नैतिक मूल्य आदि तथा सामाजिक व सांस्कृतिक परिदृश्य क े प्रत्येक क्षेत्र म े ं परिवर्तन दृश्यमान ह ै। प्राकृतिक परिवर्तन तो नैसर्गिक रूप से होते रहते ह ै परंतु अन्य र्कइ क्षेत्रा ें में यह परिवर्तन मानव की सृजनात्मक प्रव ृत्ति के फलस्वरूप उत्पन्न होते ह ै जिसमें प्रमुख ह ै “कला” क्षेत्र। सृजन करना मानव का नैसर्गिक गुण ह ै तथा नवीनता की खोज उसकी मूल प्रव ृत्ति। यही प्रवृत्ति जब निपुणता, कार्य का ैशल, प्रतिभा व सा ैन्दर्यबोध से प्रयुक्त हा ेकर सृ
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भाग्यश्री, सहस्त्रब ुद्धे. "सिन े संगीत म ें शास्त्रीय राग यमन का प्रय¨ग - एक विचार". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.886051.

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Анотація:
हिन्दुस्तानी संगीत राग पर आधारित ह ै। राग की परिभाषा अलग-अलग विद्वान¨ं ने अपनी-अपनी पद्धति से दी ह ै परन्तु सबका आशय ”य¨ऽयं ध्वनिविषेषस्तु स्वर वर्ण विभूषितः रंजक¨जन चित्तानां सः रागः कथित¨ बु ेधैः“ से ही संदर्भित रहा है। अतः यह कहा जा सकता ह ै कि भारतीय संगीत की आत्मा स्वर, वर्ण से युक्त रंजकता प ैदा करने वाली राग रचना में ही बसती ह ै। स्वर¨ं क ¢ बिल्ंिडग बाॅक्स पर राग का ढाँचा खड़ा ह¨ता है। मोटे त©र पर ये माना गया है कि एक सप्तक क¢ मूल 12 स्वर सा रे रे ग ग म म प ध ध नि नि राग क ¢ निर्माण में वही काम करते ह ैं ज¨ किसी बिल्डिंग क ¢ ढाँचे क¨ तैयार करने में नींव का कार्य ह¨ता ह ै। शास्त्रकार¨ं न
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