Academic literature on the topic 'अनुवाद'

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Journal articles on the topic "अनुवाद"

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डॉ., मनोतोष माजि. "सारबंगाली जीवन में कृतिवासी रामायण का प्रभाव". Journal of Research & Development' 14, № 7 (2022): 57–58. https://doi.org/10.5281/zenodo.6988296.

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Abstract:
<strong>सार</strong> भारत के राष्ट्रीय जीवन में लिखे गए दो महाकाव्यों में से एक बाल्मीकि द्वारा रचित रामायण है। रामायण का अनुवाद भारत की क्षेत्रीय भाषाओं सहित दुनिया की अन्य भाषाओं में किया गया है। बंगाली में अनुवादित सबसे लोकप्रिय रामायण कृतिबास की &lsquo;श्रीराम पांचाली&rsquo; है। हम चर्चा करेंगे कि कैसे कृतिवासी रामायण ने बंगाली जीवन को प्रतिबिंबित और प्रभावित किया। कृतिवासी रामायण मध्यकालीन बंगाली भाषा और साहित्य के उदाहरणों में से एक है। कृतिबास ओझा उत्तर भारत में रामायण के पहले अनुवादक थे। उनकी अनुवादित पुस्तक का नाम &#39;श्रीराम पांचाली&#39; है। कृतिबास की रामायण का प्रकाशन श्रीरामपुर के पुजारियों ने १८०३ ई. में किया था। कृतिबास का जन्म नदिया जिले के फुलिया गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम बनमाली माता मालिनी देवी था। कृतिबास की आत्मकथा के अनुसार उनका जन्म माघ मास के रविवार के दिन हुआ था।
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डॉ., मनोतोष माजि. "सारबंगाली जीवन में कृतिवासी रामायण का प्रभाव". Journal of Research & Development' 14, № 8 (2022): 57–58. https://doi.org/10.5281/zenodo.6988596.

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Abstract:
<strong>सार</strong> भारत के राष्ट्रीय जीवन में लिखे गए दो महाकाव्यों में से एक बाल्मीकि द्वारा रचित रामायण है। रामायण का अनुवाद भारत की क्षेत्रीय भाषाओं सहित दुनिया की अन्य भाषाओं में किया गया है। बंगाली में अनुवादित सबसे लोकप्रिय रामायण कृतिबास की &lsquo;श्रीराम पांचाली&rsquo; है। हम चर्चा करेंगे कि कैसे कृतिवासी रामायण ने बंगाली जीवन को प्रतिबिंबित और प्रभावित किया। कृतिवासी रामायण मध्यकालीन बंगाली भाषा और साहित्य के उदाहरणों में से एक है। कृतिबास ओझा उत्तर भारत में रामायण के पहले अनुवादक थे। उनकी अनुवादित पुस्तक का नाम &#39;श्रीराम पांचाली&#39; है। कृतिबास की रामायण का प्रकाशन श्रीरामपुर के पुजारियों ने १८०३ ई. में किया था। कृतिबास का जन्म नदिया जिले के फुलिया गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम बनमाली माता मालिनी देवी था। कृतिबास की आत्मकथा के अनुसार उनका जन्म माघ मास के रविवार के दिन हुआ था।
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Talekar, P. R. "अनुवाद संकल्पना और व्याप्ती". International Journal of Advance and Applied Research 5, № 13 (2024): 116–19. https://doi.org/10.5281/zenodo.11260571.

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Abstract:
प्रस्तूत शोध पत्र मूलत: अनुवाद की बुनयादी संकल्पना और अनुवाद की व्याप्ती इसका सैद्धांतिक स्वरूप स्पष्ट करने वाला हैं।वर्तमान जगत में अनुवाद यह एक स्वतंत्र विद्याशाखा बन चूँकि हैं। अनुवाद के क्षेत्र में आज विविध स्तरीय विकास होते हुए हमे दिखाई दे रहा हैं। भारत जैसें विविधस्तरीय देश में आज अनुवाद की वाणिज्यिक अवसरता दिखाई दे पडरही हैं। आज विश्व की मूलत: प्रमुख भाषांएँ अनुवाद की स्तर पर आ चुकीं है। इसिलीएँ इस शोधपत्र में अनुवाद का बुनियादी ढाँचा और अनुवाद की जो मूल संकल्पना हैं और आज विश्वस्तरीय बाजारव्यवस्था में अनुवाद कौनसे स्तर पर हैं इसकी मूलभूत चर्चा ईस शोध पत्र में करने का प्रयास किया हैं। अत: यह चर्चा कोई अंतिम चर्चा नहीं हैं क्योंकि अनुवाद बहुस्तरीय हैं और जीवन के रफ्तार में उसका कोई एक रूप नहीं होता। जो अनुवाद आज के डिजिटल युग मे किए जा रहे हैं उनके बारे मे भी आज हमे बहुविकल्पीय अनुसंधान करने चाहिए। आज के युग में अनुवाद की प्रक्रिया कोनसे स्तर पर हैं और अनुवाद की मूल संकल्पना और उसकी व्याप्ती इसके मूलभूत दृष्टिकोण को इस शोधपत्र में मूल्यांकित करने का प्रयास किया हैं।
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पौड्याल Poudyal, नवीन Nabin. "तमिलबाट नेपालीमा अनुवाद – तिरुक्कुरल". Prajnik Bimarsha प्राज्ञिक विमर्श 6, № 11 (2024): 78–86. http://dx.doi.org/10.3126/pb.v6i11.66011.

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Abstract:
नेपाली साहित्य अनुवादको माध्यमबाट पनि धेरै समुन्नत भएको छ । अनवुादको माध्यमबाट नै नेपाली साहित्य अन्यभाषीर अन्य अन्यभाषाका पुस्तक नेपाली पाठकले पढ्न पाउँछन् । तमिल साहित्यको एक महत्वपूर्ण शास्त्रीय प्राचीन ग्रन्थ तिरूक्कुरललाई सुनिता दाहालले तमिलबाट नेपालीमा अनुवाद गरेकी छन् । यसमा तीन खण्ड, तेह्र वटा उपखण्ड र पैतीस वटा शीर्षकीय परिच्छेदहरू र जम्मा १३३० वटा श्लोकहरू रहेका छन् । नेपाली अनुवाद ग्रन्थमा भूमिका, मूलपाठ र अनुक्रमणिका आदि सबै मिलाएर ५८३ + ३८ गरी जम्मा ६२१ पृष्ठहरू रहेका छन् । यसमा मूल तमिल दुई पंक्तिको एकेक श्लोकलाई तमिल लिपिसँगै देवनागरी लिपिमा लिप्यान्तरण गरिएको छ भने त्यसको नेपालीमा पद्यानुवाद र टिकारूपी गद्यानुवाद गरिएको छ । मूल तमिल ग्रन्थका जम्मै श्लोकहरू नै सूक्तिमय छन् भने तिनको पद्यानुवाद र गद्यानुवाद दोहोरो अनुवाद उस्तै सूक्तिमय छन् । यसमा भावपक्ष र शिल्प पक्ष दुवैबाट अनुवादकला उत्कृष्ट छ । मूल कृतिका हरेक पंक्तिलाई मननपूर्वक अनुवाद गरिएको छ ।
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फतखुतदीनोवा, इरोडा. "अनुवाद में समतुल्यता की समस्याएं।". Oriental Renaissance: Innovative, educational, natural and social sciences 4, № 22 (2024): 123–25. https://doi.org/10.5281/zenodo.13765702.

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Abstract:
समकक्षता डिग्री, समकक्षता बढ़ाने पर डिग्री का स्थान, आवेदन की विधि अनुवाद में प्रासंगिक मुद्दे माने जाते हैं। इसका उद्देश्य समतुल्यता द्वारा उठाए गए मुद्दों की समस्याओं की पहचान करना, समतुल्यता का मूल्य निर्धारित करना, मूल पाठ और अनुवाद के बीच अर्थों की समानता की तुलना करना है। उद्देश्य: अनुवाद में तुल्यता की डिग्री निर्धारित करना, संचार के लक्ष्य को बनाए रखते हुए वाक्यांशों का अध्ययन करना, तुलना और विशेष शब्दों में समकक्ष अर्थ निर्धारित करना। हमारे शोध का उद्देश्य अनुवाद के पाठ में परिवर्तित मूल पाठ की तुलना और वाक्यांशों का रूप है; और अनूदित पाठ में समकक्ष रूप शोध का विषय है। अध्ययन में तुलनात्मक विश्लेषण की पद्धति का उपयोग किया गया।&nbsp; अध्ययन सामग्री का उपयोग "अनुवाद के सिद्धांत और अभ्यास" और "भाषाविज्ञान संस्कृति" के शिक्षण में किया जा सकता है। वैज्ञानिक शोध कार्य में परिचय, निष्कर्ष और ग्रंथ सूची शामिल होती है। मूल पाठ और अनुवाद के समकक्ष वाक्यांशों के संक्रमण पर उनके अर्थ में संकुचन देखा गया है, साथ ही मूल पाठ से अनुवाद के पाठ में संक्रमण पर, उनके अर्थ में कमी आई है और पूरक के रूप में, नया मूल्य ग्रहण किया गया है।
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6

प्रा।, नविन चव्हाण. "हिन्दी साहित्य में अनुवाद और बौद्धिक संपदा अधिकार: नैतिक एवं कानूनी पहलू". International Journal of Advance and Applied Research S6, № 12A (2025): 120–24. https://doi.org/10.5281/zenodo.14905152.

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Abstract:
<em>हिन्दी साहित्य में अनुवाद एक महत्वपूर्ण विधा है, जो विभिन्न भाषाओं और संस्कृतियों को जोड़ने का कार्य करती है। अनुवाद के माध्यम से ज्ञान का विस्तार होता है, लेकिन यह बौद्धिक संपदा अधिकार (</em><em>IPR) से भी जुड़ा हुआ है। यह शोध पत्र हिन्दी साहित्य में अनुवाद के नैतिक एवं कानूनी पहलुओं का विश्लेषण करता है, जिसमें कॉपीराइट कानून, अनुवादकों के अधिकार, और डिजिटल युग में उभरती चुनौतियों पर चर्चा की गई है।</em> <em>भारत का <strong>कॉपीराइट अधिनियम, 1957</strong> यह स्पष्ट करता है कि किसी भी साहित्यिक कृति का अनुवाद करने के लिए मूल लेखक या कॉपीराइट धारक की अनुमति आवश्यक है। बिना अनुमति के किया गया अनुवाद कॉपीराइट उल्लंघन की श्रेणी में आता है। इसके अलावा, नैतिकता की दृष्टि से भी अनुवादकों को मूल लेखक की शैली, विचार और अभिव्यक्ति का सम्मान करना चाहिए।</em>
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Gaikwad, Siddheshwar. "English translation of 'Barrister': Dialectics and Balance." RESEARCH HUB International Multidisciplinary Research Journal 9, no. 2 (2022): 10–13. http://dx.doi.org/10.53573/rhimrj.2022.v09i02.002.

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Abstract:
Barrister is a famous Marathi play written by Jaywant Dalvi. Dalvi ji is recognized as a fine writer in the Marathi theater field. Barrister is a dramatization published in 1977. Three years after the original was published, Dr. Vijay Bapat translated it into Hindi in 1980 and placed it in front of the theater-loving readers of the Hindi region. The play deals with social themes, in which the pathetic condition of widows has been clarified. Dr. Vijay Bapat has translated it into Hindi as this topic is new for Hindi theatrical lovers. It is not possible to discuss the entire dramatization here because of the fear of expansion. That's why we are discussing here the English translation of the Barrister: dialectics and balances only here. Translation always has to strike a balance between the two situations. like- original author translator, original author and other readers, cohesiveness and equanimity, original text translated text, Native Language Idioms Translated Language Idioms.&#x0D; Abstract in Hindi Language:&#x0D; बॅरिस्टर जयवंत दलवी द्वारा लिखा गया मराठी का प्रसिद्ध नाटक है। दळवी जी मराठी नाट्य क्षेत्र के अतिरिक्त ललित लेखक के रूप में मान्यता प्राप्त है।बॅरिस्टर 1977 में प्रकाशित नाट्यकृति है। मूल रचना के प्रकाशित होने के तीन साल बाद डॉ.विजय बापट ने इसे 1980 में हिंदी में अनूदित कर हिंदी प्रदेश के नाट्यप्रेमी पाठकों के सामने रखा। नाटक सामाजिक विषय से संबंधित है, जिसमें विधवाओं की दयनीय अवस्था को स्पष्ट किया गया है। हिंदी नाट्य प्रेमियों के लिए यह विषय नया होने के कारण डॉ.विजय बापट ने इसे हिंदी में अनूदित किया है। संपूर्ण नाट्यानुवाद की यहाँ चर्चा करना विस्तारभय के कारण संभव नहीं है। इसलिए हम यहाँ बॅरिस्टर का हिंदी अनुवाद : द्ंवद्वात्मकता और संतुलन यहीं तक सीमित रहकर चर्चा कर रहे हैं। अनुवाद में हमेशा दो स्थितियों में संतुलन स्थापित करना पडता है। जैसे- मूल लेखक अनुवादक, मूल लेखक तथा दूसरे पाठक, सामासिकता और उद्रिक्तता, मूल पाठ अनूदित पाठ, मूल भाषा के मुँहावरे अनूदित भाषा के मुँहावरे&#x0D; Keywords: मूल लेखक अनुवादक, मूल लेखक तथा दूसरे पाठक, सामासिकता और उद्रिक्तता, मूल पाठ अनूदित पाठ
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शाह, गुणवंती, та डॉ0 शुद्धात्मप्रकाश जैन. "डॉ0 हुकमचन्द भारिल्ल विरचित 'वैराग्य' महाकाव्य में धार्मिक तत्त्वो की समीक्षा". International Researchers Journal Volume-XII, Issue-3 (2025): 1–9. https://doi.org/10.5281/zenodo.14788620.

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Abstract:
डॉ0 हुकमचन्द भारिल्ल वर्तमान शती के आध्यात्मिक महापुरुष हैं। उनका सम्पूर्ण जीवन धर्ममय और अध्यात्म से परिपूर्ण था। अतः उनकी समस्त रचनाओं में धार्मिक चेतना अत्यन्त कूट-कूट कर भरी हुई है। न केवल उनके साहित्य में, अपितु उनके व्याख्यानों में भी धार्मिकता का भरपूर जोर रहता&nbsp; था।&nbsp; डॉ0 भारिल्ल न केवल एक गद्यकार थे, अपितु पद्य के क्षेत्र में भी वे सिद्धहस्त थे। वे एक अनुवादक थे, उन्होंने समयसार, प्रवचनसार आदि जैन ग्रन्थों के हिन्दी में पद्यानुवाद करके एक बेजोड़ कार्य किया है, जो युगों-युगों तक याद किया जायेगा। क्योंकि उनका अनुवाद सहज और सरल होने से आम आदमी के द्वारा बोधगम्य बन पड़ा है।&nbsp; डॉ0 भारिल्ल ने जिन छोटी-बड़ी लगभग शताधिक पुस्तकों की रचनाएं की हैं, उन सभी में धार्मिकता को खोजने हेतु किसी को भी अधिक परिश्रम नहीं करना पड़ता है। यही नियम प्रस्तुत अनुसंधेय वैराग्य महाकाव्य पर भी लागू होता है, उसमें भी पद-पद पर अनेक पद्य ऐसे प्राप्त होते हैं, जो धार्मिकता से भरपूर हैं।
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9

पाटिल, विजय. "उज़्बेकिस्तान में हिंदी : दशा और दिशा". Oriental Renaissance: Innovative, educational, natural and social sciences 4, № 22 (2024): 57–61. https://doi.org/10.5281/zenodo.13765056.

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Abstract:
उज्बेकिस्तान में 1940 से 1960 के मध्य हिंदी साहित्यकार प्रेमचंद कृष्णचंद्र,मोहम्मद इकबाल,मिर्ज़ा ग़ालिब अली सरदार, जाफरी अमृता प्रीतम की रचनाएं प्रकाशित की गई ।वर्ष 1960 से 1980 के मध्य 25 भारतीय लेखको की रचनाओं का अनुवाद उज्बेकी में किया जा चुका था। प्रसिद्ध उज़्बेक कवि गफूर गुलाम हमीद गुलाम,असद मुख्तार,हामिद अलीम जान,मिर्तेमीर, शाहिद जूनूनोवा, जैसे कई साहित्यकारों ने भारत के साहित्य पर कविता लेख निबंध रेखाचित्र लिखे। गफूर गुलाम ने रविंद्र नाथ टैगोर, प्रेमचंद, कृष्ण चंद्रर पर निबंध उनकी कविता का अनुवाद किया।उज्बेकिस्तान में हिंदी साहित्य का अध्ययन का प्रारंभ 1947 से माना जाता है। हिंदी साहित्य में प्रगतिशील आंदोलन के इतिहास से संबंधित लेखकों की रचनाओं पर यहां काम किया गया है, जैसे हजारी प्रसाद द्विवेदी, प्रेमचंद के लेखन पर। भारतीय साहित्य केवल एक राष्ट्र की संपत्ति ही नहीं अपितु समस्त विश्व की अमूल्य धरोहर है। उज़्बेक विद्वानों के शोध पर कार्यों में समकालीन भारतीय साहित्य के प्रसिद्ध मोहम्मद इकबाल, केदारनाथ सिंह मुक्तिबोध
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मधु, बहुगुणा. "आधुनिक समय में शिल्पग्रन्थों की खोज, अनुवाद, प्रकाशन तथा अध्ययन सम्बन्धी विवरण". RECENT RESEARCHES IN SOCIAL SCIENCES & HUMANITIES (ISSN 2348–3318) 10, № 3 (2023): 37–40. https://doi.org/10.5281/zenodo.8396531.

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Abstract:
प्राचीन भारतीय शिल्पग्रन्थों के सम्बन्ध में आज तक जितना ज्ञान प्राप्त को सका है तथा इस दिशा में जो प्रयास अभी जारी है यह सब बीसवीं सदी की उपलब्धि है] बीसवीं सदी के पहले तक समस्त शिल्पशास्त्र विस्मृति के अंधकारपूर्ण गर्भ में खोए हुए थेA भारतीय बुद्धिजीवियों राष्ट्रीयवादी इतिहासकारों तथा विचारकों के निकट कला के सैधांतिक सैद्धांतिक पक्ष तथा कला व्याकरण पर प्राचीन काल में कोई विचार नहीं किये गये जैसे पूर्व धारणाओं को खंडित करने में सक्षम रही तथा इस विषय पर व्यापक चिंतन] शोधकार्य तथा निबंध लेखन जैसे कार्यों के लिए मार्गदर्शक साबित हुईA अग्रिम कड़ियों में अभिलाषीतार्थ चिंतामणि तथा मानोसल्लास] शिल्परत्न] नादर शिल्पशास्त्र] काश्यपशिल्प जैसे महत्वपूर्ण शिल्पग्रंथ हैं जिनका समय-समय पर अनुवाद प्रकाशन एवं होता रहाA
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Dissertations / Theses on the topic "अनुवाद"

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Parvaz, Ahmad Bénédicte. "Production de ressources multilingues pour l'aide à la traduction du droit pénal en hindi, ourdou et français." Thesis, Paris, INALCO, 2019. http://www.theses.fr/2019INAL0017.

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Abstract:
Comment concilier l’impératif d’assistance linguistique à toute personne ne parlant pas français et l’absence de ressources linguistiques standardisées pour traduire des combinaisons de langues génétiquement et culturellement distantes~? C’est le problème posé par la traduction du hindi et de l’ourdou en France dans le contexte judiciaire. Le hindi et l’ourdou, langues sœurs parlées en Inde et au Pakistan, ont des liens distants avec le français. Les systèmes judiciaires dont elles sont le moyen d’expression proviennent de l’héritage colonial britannique qui repose sur la common law. Ce travail propose, à travers l’analyse d’un corpus de documents variés, de créer des ressources terminologiques et phraséologiques afin d’aider le traducteur-interprète à trouver des équivalences de traduction multilingues. Dans un premier temps, nous abordons les différences entre les systèmes judiciaires et le statut des langues de travail dans les trois pays. Nous étudions ensuite leurs procédures judiciaires et observons comment elles s’inscrivent dans des genres définis par un lexique et une phraséologie plus ou moins accessibles aux non spécialistes. Enfin, nous proposons une méthode d’extraction des termes et d’alignement par sous-corpus afin de faire ressortir les équivalences terminologiques ou traductionnelles du genre judiciaire entre ces langues. Ce travail, qui met en lumière les relations entre le texte, le contexte et les mots, fournit aux professionnels de la traduction et de l’interprétation des ressources attestées, adaptées au domaine de spécialité et contextualisées<br>Is it possible to reconcile the need for language assistance to all non-French speakers with the lack of standardized language resources for translating combinations of languages which are genetically and culturally remote? This is the issue raised by Hindi and Urdu translation in France, in the judicial context. Hindi and Urdu are sister languages spoken in India and Pakistan. They have remote links with French. The judicial systems in which they are used come from the British colonial heritage based upon common law. Through the analysis of a corpus of various documents, this work is aimed at producing terms and phraseological resources in order to assist the translator-interpreter in finding out translation equivalences between languages. First, we will explore the differences between the three countries’ judiciaries, as well as the status of the Hindi, Urdu and French languages. Then, we will study the judicial proceedings in all three countries and examine how they are embedded into text genres. We will see to what extent their lexicons and phraseologies are adapted for non-specialists. Eventually, we will propose a method for term extraction and sub-corpus alignment in order to stress term or translation equivalences between these languages in the judicial genre. This work, which sheds light on the relations between text, words and context, provides actual field-specific resources for judicial translation and interpretation professionals
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Books on the topic "अनुवाद"

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Ācārya Mānatunga’s Bhaktāmara Stotra – With Hindi and English Rendering आचार्य मानतुंग विरचित भक्तामर स्तोत्र - हिन्दी तथा अंग्रेजी अनुवाद सहित. Vijay Kumar Jain, 2023.

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Book chapters on the topic "अनुवाद"

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"Hindi Bhasha Scientific and Technological Development." In Educational Transformation in Digital ERA, edited by Suman Devi. NIILM University, 2024. https://doi.org/10.70388/niilmub/241204.

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Abstract:
आज हिंदी विश्व पटेल पर प्रथम भाषा बनने का दवा रखती है जिसका प्रमुख कारण तकनीकी विकास सूचना प्रौद्योगिकी की पत्राचार मीडिया अनुवाद वह जनसंपर्क के कारण हिंदी भाषा का बढ़ता प्रचार एवं प्रसार आज हिंदी के प्रसार व प्रचार का प्रमुख कारण विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की सामर्थ व शक्तिशाली भाषा के रूप में हिंदी का विकास होता स्वरूप है आदि जननी संस्कृत भाषा निरोध श्रीत हिंदी भाषा की राजभाषा संपर्क भाषा तथा अनेक बोलियां वह अप बलियो के मध्य अंतर संबंधों के कारण समन्वय आत्मक भाषा है हिंदी साहित्य में हृदय की भाषा है कुछ वर्षों पूर्व हिंदी भाषा में परिभाषित शब्दावली वह संस्कृत के साहित्य का अभाव था परंतु कुछ स्थिति बदल चुकी है आज हिंदी भाषा में विज्ञान शब्दावली वह पारिभाषिक शब्दावली का अभाव नहीं है वैज्ञानिक शब्दावली में शब्द का एक सटीक अर्थ ग्रहण किया जाता है इसमें साहित्य के समान किसी भी शब्द को लक्षण या व्यंजन शब्द शक्तियों के आधार पर विश्लेषित नहीं किया जाता हिंदी में अन्य भारतीय भाषाओं में तकनीकी का प्रचार प्रसार व योगदान बढ़ रहा है आज संपूर्ण जीवन से तकनीक व प्रौद्योगिकी माध्यम से अभिभूत है आज सुबह एक अलार्म की आवाज के साथ उठने से लेकर रात को सोने तक पूर्ण रूप से तकनीकी माध्यमों का प्रयोग करते हैं शिक्षा समाज तकनीकी आधारित हो गई है शॉपिंग बैंकिंग पैसे का लेनदेन टिकट बुकिंग ई लर्निंग स्मार्ट स्टडी आदि कुल मिलाकर जीवन के हर क्षेत्र में तकनीकी का प्रयोग होता है यह तकनीकी विकास हिंदी भाषा के क्षेत्र में ही प्रचुरता से हुआ है हिंदी भाषा में टाइपिंग की बात करें तो इसमें यूनिकोड नॉन यूनिकोड अर्थात कई प्रकार के सॉफ्टवेयर का प्रयोग किया जाता है ए शासन प्रणाली में संपूर्ण जगत को समेट दिया गया है तथा आई प्रणाली का सबसे प्रमुख लाभ यह है कि नागरिकों का सरकारी कार्यालय के अधिक से अधिक चक्कर नहीं काटने पड़ते अभी तो घर बैठे ही मोबाइल में लैपटॉप इंटरनेट के माध्यम से समस्त कार्य व्यवहार कर सकते हैं कार्यालय में संस्थाओं के समस्त कार्य व्यवहार पत्राचार प्रमाण पत्र दस्तावेज बिल बुकिंग भुगतान आदि सभी कार्य घर बैठे आसानी से किया जा सकते हैं भारत में आई शासन प्रणाली की शुरुआत 2006 में हुई थी तथा अब तक इनका निरंतर विकास हो रहा है सूचना क्रांति मानव सभ्यता के विकास की सबसे बड़ी क्रांति है आज हम घर बैठे मात्र एक क्लिक से संपूर्ण विश्व के बारे में सूचनाओं प्राप्त कर सकते हैं वर्तमान में सामाजिक परिवर्तनों का प्रमुख कारण सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी है प्रौद्योगिकी विकास में जीवन के हर क्षेत्र को प्रभावित किया है इसके कारण ने केवल मनुष्य ने अपनी जानकारी को बढ़ाया पितु ज्ञान मनोरंजन संस्कृत सामाजिक व आर्थिक विकास हुआ है प्रौद्योगिकी के कारण रोजगार शिक्षा विकास स्तर को प्रभावित किया है
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Reports on the topic "अनुवाद"

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Kharel, Arjun, Sadikshya Bhattarai, Prajesh Aryal, Sudhir Shrestha, Pauline Oosterhoff та Karen Snyder. नेपालबाट अन्तर्राष्ट्रिय मुलुकहरूमा हुने मानव बेचबिखनका मार्गहरूको परिवर्तनका बारेमा समाचारहरुको विश्लेषण. Institute of Development Studies, 2022. http://dx.doi.org/10.19088/ids.2022.085.

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Abstract:
यस अध्ययनमा सन् २०१५ पछि नेपालबाट अन्तर्राष्ट्रिय मुलुकहरूमा हुने मानव बेचबिखनका मार्गहरूमा भएका परिवर्तनहरूका बारेमा बुझ्नका लागि नेपालबाट मानव बेचबिखनमा संलग्न भएका विभिन्न व्यक्तिहरूबारे समाचारहरुमा गरिएको चित्रणलाई विश्लेषण गरिएको छ। यस अध्ययनका निष्कर्षहरू सन् २०१६ देखि २०२० सम्मको पाँच वर्षको अवधिमा नेपालका छ वटा राष्ट्रिय समाचार पत्रमा प्रकाशित ४८० वटा समाचारहरुको विश्लेषणका साथसाथै यस विषयमा प्रकाशित विद्यमान दस्तावेजहरू र समाचारपत्रका संवाददाता र सम्पादकहरूसँगको अन्तर्वार्तामा आधारित छन्। समाचारमा रिपोर्ट गरिएका आरोपीत अपराधीहरूमा धेरैजसो पुरुषहरू थिए भने पीडितहरूमा महिलाहरूको सङ्ख्या धेरै थियो। रिपोर्ट गरिएका यौन बेचबिखनका पीडितहरूमा महिलाहरूको ठूलो सङ्ख्या देखिएको थियो भने रिपोर्ट गरिएका श्रम बेचबिखनका पीडितहरूमा पुरुष र महिलाको सङ्ख्या बराबर थियो। यो नेपालबाट विदेशमा काम गर्न जाने पुरुष र महिला आप्रवासीहरूको वास्तविक अनुपात भन्दा फरक छ, जहाँ वैदेशिक रोजगारका लागि श्रम स्वीकृति लिने महिला कामदारहरू भन्दा पुरुष कामदारहरू ८० प्रतिशतले बढी छन्। समाचार लेखहरूको विश्लेषणमा भारत ऐतिहासिक रूपमा बेचबिखनको गन्तव्य र ट्रान्जिटको हिसाबले शीर्ष मुलुक रहेकोमा अझै पनि सोही स्थानमा नै रहेको देखिएको छ। खाडी सहकार्य परिषद् (GCC) अन्तर्गतका मुलुकहरू, उत्तर अमेरिका, युरोप, दक्षिणपूर्वी एसिया र अष्ट्रेलिया नयाँ गन्तव्यका रूपमा देखा परेका छन् भने म्यानमारसहित युरोप, अफ्रिका र ल्याटिन अमेरिकाका केही मुलुकहरू नेपालबाट हुने मानव बेचबिखनको नयाँ ट्रान्जिटका रूपमा देखा परेका छन्। अध्ययनले नेपाली सञ्चारमाध्यममा मानव बेचबिखनसम्बन्धी रिपोर्टिङमा सुधार गर्न अनुसन्धानात्मक पत्रकारिताका लागि स्रोतहरू बाँडफाँड गर्न र समालोचनात्मक लैङ्गिक विश्लेषण सहितका ठोस रिपोर्टिङमा संवाददाताहरूलाई तालिम दिन सिफारिस गरेको छ। सरकारी निकायहरू बीचको समन्वय र अप्रभावकारी नीतिहरूको संशोधनले मानव बेचबिखन नियन्त्रण गर्न र रोजगारका लागि सुरक्षित आप्रवासनलाई प्रोत्साहित गर्न योगदान पुर्‍याउन सक्छ।
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