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Journal articles on the topic 'आदिम'

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भण्डारी Bhandari, मुक्तिप्रसाद Mukti Prasad. "माधवी उपन्यासमा मिथकीय बिम्ब {Mythical Imagery in the Novel Madhavi}". Cognition 7, № 1 (2025): 242–55. https://doi.org/10.3126/cognition.v7i1.74800.

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Abstract:
प्रस्तुत लेख मदनमणि दीक्षितद्वारा लिखित माधवी उपन्यासको मिथकीय अध्ययनमा केन्द्रित छ । शब्दका माध्यमबाट मस्तिष्कमा पर्ने कुनै पनि वस्तुको छायाँ वा चित्र बिम्ब हो भने त्यस्ता चित्रात्मक गुण भएका बिम्बहरूको निर्माण प्रक्रिया नै बिम्बविधान हो । मिथकीय समालोचनाले कृतिमा प्रयुक्त मिथकको मूल रूपको खोजी, परिवर्तित प्रसङ्ग, आद्यरूपीय चरित्र, मिथकीय परिवेश, मिथकीय बिम्बविधान, मिथकीय सान्दर्भिकता आदिजस्ता पक्षहरूको अध्ययन गर्ने भए तापनि यो लेख मिथकीय बिम्बमा केन्द्रित छ । पुस्तकालयीय अध्ययनबाट प्राप्त प्राथमिक तथा द्वितीयक सामग्रीलाई सघन पाठ विश्लेषण तथा आगमनात्मक तर्कपद्धतिको उपयोगद्वारा विश्लेषण गरी नि
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डॉ., सुषमा जैन. "आदिवासी अंग आरेखन कला - गुदना". International Journal of Research - Granthaalayah 7, № 11(SE) (2019): 10–13. https://doi.org/10.5281/zenodo.3585003.

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Abstract:
वन्य जाति या जनजाति को आदिम, आदिवासी, वनवासी गिरिजन अनुसूचित जनजाति के नामों से जाना जाता है, इन्हें हम आदिम या आदिवासी इसलिए कहते हैं, क्योंकि ये भारत के सबसे प्राचीनतम निवासी माने जाते हैं । भारत में द्रविडों के आगमन से पूर्व यहाँ ये ही लोग निवास करते थे। आदिम संस्कृति आखिर है क्या ? आदिम संस्कृति को जानने, समझने का प्रयत्न संपूर्ण विश्व में हो रहा है, जितने पहलु हमने आदिम समूहों के बारे में जान लिए हैं, उतने ही और भी जानने के लिए शेष बचे हैं । भले ही हम आज कितने ही सभ्य और आधुनिक कहलाने लगे हैं, लेकिन यह सत्य है कि, हमारे समाज में आज भी आदिवासियों की संख्या दो तिहाई है<sup>1</sup> । अपनी नि
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Jain, Sushma. "TRIBAL ORGAN DRAWING ART - TATTOO." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 7, no. 11 (2019): 10–13. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v7.i11.2019.900.

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Abstract:
English : The wild race or tribe is known by the name of primitive, tribal, Vanvasi Girijan Scheduled Tribe, these are called primitive or tribal because they are considered to be the oldest inhabitants of India. These people used to live here before the arrival of the Dravidians in India. What is primitive culture after all? Efforts are being made to know, understand the primitive culture all over the world, the more we have learned about the primitive groups, the more are left to learn more. Regardless of how civilized and modern we have become today, but it is true that even today the numbe
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रेग्मी Regmi, अमृता Amrita. "नारायण वत्सको वैदिककालीन नारीको परिचयमा नारीको स्वरूप र सामाजिक भूमिका". Samaj Anweshan समाज अन्वेषण 1, № 2 (2023): 64–72. http://dx.doi.org/10.3126/anweshan.v1i2.65458.

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Abstract:
प्रस्तुत लेखमा नारायण वत्सको वैदिककालीन नारीको परिचय (२०८०) पुस्तकको आधारशिलामा वैदिककालीन नारीहरूका कथामार्फत त्यस समाजमा नारीको सामाजिक अवस्था र भूमिकाको निरूपण गरिएको छ । यसमा वैदिककालीन नारीको सामाजिक स्थान र भूमिकाको मूल्याङ्कन गर्न मानवशास्त्री मोर्गनका मान्यता अनुसरण गर्दै एङ्गेल्सले प्रस्तुत गरेको समाज विकासको चरण र यी चरणमा नारीको सामाजिक स्थान र भूमिका सम्बन्धी मान्यतालाई सैद्धान्तिक मान्यताका रूपमा अनुसरण गरिएको छ । कृतिमा रहेका तथ्यहरूको विश्लेषण र मूल्याङ्कनमा आधारित यो अध्ययन गुणात्मक प्रकृतिको छ । यस पुस्तकले मानवसमाजको आदिम युगमा सृष्टिको निर्माणकर्ताका साथै बुद्धि प्रदायक, ऐश्
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डॉ., सुषमा जैन. "मराठा क्षेत्र में चित्रकला का विकास". International Journal of Research - Granthaalayah 4, № 9 (2016): 198–202. https://doi.org/10.5281/zenodo.580060.

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Abstract:
मराठा क्षेत्र में चित्रकला परंपरा का प्रारंभ प्रागैतिहासिक काल से होता है। मानव ने बहुत ही प्रांरभ में व्यवहार की सजगता के साथ चित्रों के उदाहरण छोड़े हैं। मध्यप्रदेश की आदिम कंदराओं में हमें उस बर्बर पर सुसंस्कृत और सुअलंकृत होने की लालसा के अनुगामी मानव के रचे अनेक रेखीय चिन्ह तथा अस्त्र शस्त्रों के सौंदर्य प्रधान रूप आज हमंें आश्चर्य चकित करते है।1 मराठा क्षेत्र प्रागैतिहासिक चित्रकला में अति समृद्ध हैं, यहां भोपाल, होशंगाबाद भीमबेटका, सुजानपुरा, हिंगलाजगढ़, गांधीसागर बांध, चिब्बड़ नाला, इन्द्रगढ़, मंदसौर, मोढ़ी, शिवपुरी, चोरपुरा, केदारेश्वर आदि अनेक स्थानों पर प्रागैतिहासिक शैल चित्र मिले
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डॉ., सुषमा जैन. "मराठा क्षेत्र मेंचित्रकला का चिकास". International Journal of Research - Granthaalayah 4, № 9 (2019): 198–202. https://doi.org/10.5281/zenodo.3362718.

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Abstract:
मराठा क्षेत्र में चित्रकला पर ंपरा का प्रारंभ प्रागैतिहासिक काल से होता है। मानव ने बहुत ही प्रांरभ में व्यवहार की सजगता के साथ चित्रों के उदाहरण छोड़े हैं। मध्यप्रदेश की आदिम कंदराओं में हमें उस बर्बर पर सुसंस्कृत और सुअलंकृत होने की लालसा के अनुगामी मानव के रचे अनेक रेखीय चिन्ह तथा अस्त्र शस्त्रों के सौंदर्य प्रधान रूप आज हमंे आश्चर्य चकित करते है। मराठा क्षेत्र प्रागैतिहासिक चित्रकला में अति समृद्ध हैं, यहां भोपाल, होशंगाबाद भीमबेटका, सुजानपुरा, हिंगलाजगढ़, गांधीसागर बांध, चिब्बड़ नाला, इन्द्रगढ़, मंदसौर, मोढ़ी, शिवपुरी, चोरपुरा, केदारेश्वर आदि अनेक स्थानों पर प्रागैतिहासिक शैल चित्र मिले ह
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प, ्रो. सुनीता जैन. "चित्रकला म ें र ंग - प्रागैतिहासिक काल मध्यप्रद ेश के विश ेष संदर्भ में". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.889223.

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Abstract:
चित्रकला का े अभिव्यक्तिगत सार्म थ्य प ्रदान करने वाले तत्वों में रंग प ्रमुख ह ै। चित्रकला में रंग की अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका है। चित्रकार जिस आधारभूत सतह पर चित्रा ंकन करता है उसमें रंग उसकी पर्या प्त सहायता करते हैं इन्हीं क े आधार पर कलाकृति मानसिक सन्तुष्टि प्रदान करती ह ै। रंग का आधार पाकर बर्नाइ र्गइ रचना अपने अभिष्ट को पाने में समर्थ हा ेती है। रंग के माध्यम से चित्रकार अपनी कृति का े कोमल बनाता ह ै। चित्रकार का बिम्ब-विधान चित्र सुलभ संव ेदनशीलता बह ुत कुछ रंग पर निर्भर करती है। रंग का प ्रया ेग जितना संगीत पूर्ण , उचित आ ैर सन्तुलित होगा मानव के मानस पटल पर उसका प ्रभाव उतना ही गहर
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सापकोटा Sapkota, ढाकाराम Dhakaram. "चेपाङ जाति र यिनका सांस्कृतिक परम्पराहरू". HISAN: Journal of History Association of Nepal 9, № 1 (2023): 71–80. http://dx.doi.org/10.3126/hisan.v9i1.64034.

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Abstract:
नेपालमा रहेका विभिन्न जातजातिहरूमध्ये चेपाङ जाति पनि एक हो । लेखमा नेपालका केही निश्चित क्षेत्रमा बसोबास गर्ने सिमान्तकृत समूहअन्तर्गत रहेको चेपाङ जातिको सांस्कृतिक अवस्थाका बारेमा अध्ययन गरिएको छ । यो जाति निकै लामो समयसम्म राजनीतिक, शैक्षिक, आर्थिकलगायतका विभिन्न स्वरुपमा पिछडिएको अवस्थामा रहेको थियो । प्रकृतिपूजन दृष्टि, संयुक्त परिवारको सामाजिक संरचना, आदिम प्रकारको चालचलन आदि यस जातिका मुख्य विशेषता हुन्। वर्तमान समयमा भने चेपाङ जातिको यस मौलिक पहिचानमा धेरै परिवर्तन आएको छ । समयक्रमसँगै अन्य जाति र समुदायसँगको सम्पर्कले कति कुरा उनीहरूबाट सिक्दै आएका भए तापनि सांस्कृतिक परम्पराहरु सम्पन्
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देवी, सुनीता, та योगेन्द्रप्रसाद त्रिपाठी*. "अनुसूचित जनजातियों में सामाजिक-शैक्षिक परिवर्तन के नए आयाम (उत्तर प्रदेश के संदर्भ में)". Humanities and Development 17, № 1 (2022): 66–70. http://dx.doi.org/10.61410/had.v17i1.45.

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Abstract:
भारत में जनजातियों का समुचित विस्तार देखने को मिलता है। इनको क्षेत्रीय विषमताओं तथा सांस्कृतिक विलक्षणताओं के कारण अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे- जनजाति, आदिम जाति, वन्य जाति, जंगली जाति आदि। डॉ0 घुरिये ने तो इन्हें ‘पिछड़े हिन्दू’ कहा है। जब कुछ विशेष जनजातियों को संविधान की अनुसूचि में शामिल कर दिया गया तो उन्हें ‘अनुसूचित जनजाति’ के नाम से जाना जाने लगा। भारत में अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार 104545716 है जो कुल जनसंख्या का 8.6 प्रतिशत है। जबकि उत्तर प्रदेश की कुल जनसंख्या में से 1134273 अनुसूचित जनजातियाँ है जो कुल जनसंख्या का 0.6 प्रतिशत ही है। उ0प्र0 क
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कु., सुनिता शं. खेकाळे. "तकनीकी और हिंदी बालसाहित्य". International Journal of Advance and Applied Research 4, № 15 (2023): 16–18. https://doi.org/10.5281/zenodo.7866714.

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Abstract:
आज के बच्चे अपनी अभिलाषाओं को इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के माध्यम से नए आयाम देना चाहते है। उन्हें दशकों से आ रही परी कथा, जादूटोना, पशु-पक्षी, पर्यावरण आदिम हरकते आकर्षित नहीं करती। इसलिए कुछ-कुछ बालसाहित्यकारों ने आधुनिकता को ध्यान में रखते हुए नए युग की &nbsp;संभावनाओं को देखते हूए अंतरिक्ष और एलियन के सहारे बालसाहित्&zwj;य में रोचकता पैदा करने का प्रयत्न किया है। आज का पौधा कल का वृक्ष है ठीक उसी तरह आज का बालक कल के देश का भविष्य है। शिक्षित संस्कारवान, जागरूक बालक ही कल की युवा पीढ़ी है और कल ये देश का नाम रोशन करती है। आज के तकनीकी दौर में बालक को इससे रूबरू करने की जरूरत बालसाहित्य के माध्य
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गिरी Giri, मधुसूदन Madhusudan. "खस जातिको लोकसाहित्य र संस्कृतिका बिच अन्तर्सम्बन्ध {Folklore and culture of Khas caste Interrelationships between}". Saraswati Sadan सरस्वती सदन 5, № 1-2 (2021): 99–112. http://dx.doi.org/10.3126/ss.v5i1-2.62561.

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Abstract:
खस आधुनिक मानवको पहिलो चरणमा विकसित ककेसियन, मङ्गोल, नेग्रो र आष्ट्रिक चार मूल जातिमध्ये ककेसियनका विभिन्न शाखाहरूमध्येको आदिम आर्य जातिकै एउटा शाखा कश अर्थात्अवैदिक आर्य जाति हो। आरम्भमा मध्य एसियाको युराल पर्वतमाला, ककेसस सेरोफेरोमा बस्ने ककेसियनहरू त्यहाँबाट बिस्तारै संसारभर फैलिएका देखिन्छन्। यीमध्य एउटा शाखा शक र कशमा विभाजित भएर इरान, मेसोपोटामिया आदि स्थानतर्फ फैलियो। तिनै आर्यबाट इरान नामकरण हुन पुग्यो। तीमध्ये एउटा शाखा शक इरानबाट मध्य भारतको गङ्गा नदीको मैदानमा आएर बस्यो र उसले त्यहाँ लौकिक परम्परामा रहेका वेदका ऋचाहरू निर्माण ग¥यो। अर्को शाखा कश मध्य भारतमा आएर वेद निर्माण गर्नुपूर्
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सिंह, डाॅयशमंत. "मानव के लिए शाकाहार की आवश्यकता". Humanities and Development 19, № 02 (2024): 4–7. https://doi.org/10.61410/had.v19i2.181.

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Abstract:
ज्ञात स्रोतों से पता चलता है कि मनुष्य के पूर्वज जिन्हें हम आदि मानव कहते हैं वे जन्म से ही मांसाहारी थे। जब भी उन्होंने मां का दूध छोड़ होगा तो जंगली जानवर का शिकार करके मांस से ही पेट की क्षुुधा शांत करते थे, परंतु यह मनुष्य का आदिम स्वरूप था जबकि उसे यह पता नहीं था कि मनुष्य जन्म का उद्देश्य क्या है, मानव में ईश्वर ने वह कौन सी अद्वितीय शक्ति निहित कि है जिससे वह ईश्वर के समतुल्य बन सकता है, अपनी क्षमताओं का विकास कर सकता है ? ज्यों-ज्यों मनुष्य का विकास हुआ उसनें शिकार की कठिनाईयों को जाना और शाकाहारी फसलों से क्षुधा शांत करने की सरलता को भी जाना। धीरे-धीरे ईश्वरीय ‟पा से मनुष्य को ऐसे आध्य
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विजय, कुमार. "मध्यप्रद ेश के जनजातियों क े जीवन में र ंगा ें का महत्त्व". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.889310.

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Abstract:
रंग सदैव उत्साहवर्धन करते हैं, रंगा ें का प ्राकृतिक गुण ही प्रकाश की किरण ें होती ह ैं, जो अपनी तरंगदैध्र्य से प ्रकृति में व्याप्त जीवा ें और प्राणिया ें क े अन्तर्मन क े क ंपन का े ऊर्जा में परिवर्तित करती है। रंग-स्वाद हीन होते ह ै ं, फिर भी प्राणी अपने अनुभव से रंग-स्वाद की अनुभूति करता है। जिसका प्रभाव उसके जीवन में महत्त्वप ूर्ण भूमिका निभाते ह ैं। जीवन, मनुष्य को अपने कर्म क े अनुसार जीने की कला भी प ्रदान करता है, कर्म का सीधा सम्पर्क कला से है। कला का े मनुष्य क े जीवन क े रूप में परिभाषित करें ता े यह तथ्य आता है, जो गतिमान हो आ ैर मानसिक रूप से उद्वेलित करें। मनुष्य शारीरिक रूप से
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डॉ., कुमकुम भारद्वाज, та कुलकर्णी भाग्यश्री. "लोककला के प्रतीकों द्वारा वस्त्रसज्जा". International Journal of Research - Granthaalayah 7, № 11(SE) (2019): 181–84. https://doi.org/10.5281/zenodo.3587343.

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Abstract:
श्रीयुत शेलेन्द्रनाथ सामन्त के अनुसार लोककला जन सामान्य विशेषतः ग्रामीणजनों की सामूहिक अनुभूति की अभिव्यक्ति है। अन्य विद्वान ने लोक कला की परिभाषा के संबंध में जो विचार व्यक्त किये है, उन सबका निष्कर्ष यही है कि पुस्तकीय ज्ञान से भिन्न व्यावहारिक ज्ञान पर आधारित सामान्य जन समुदाय भी अनुभूति की अभिव्यक्ति ही लोक कला है। लोक कलाt की उत्पत्ति धार्मिक भावनाओं, अन्धविश्वासों, भय निवारण अलंकरण, प्रवृत्ति तथा जातिगत भावनाओं की रक्षा के विचार से हुई, लोक-कला स्थानीय होती है, राजा, रंक, धनी और निर्धन सबने इसका उपयोग किया है। पढ़े और बिना पढ़े, मुर्ख और विद्वान ग्रामीण और नागरिक सभ्य और असभ्य सभी के लि
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अशोक, हरी साळवे, та डॉ. युवराज मानकर प्रा. "मुक्तीचा ध्यास घेणारी माधव सरकुंडे यांची कविता". International Journal of Advance and Applied Research S6, № 18 (2025): 160–67. https://doi.org/10.5281/zenodo.15245280.

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Abstract:
<em>&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; आदिवासी समाजाला वनवासी असे संबोधले जाते. &lsquo;वनवासी&rsquo; म्हणजे वनात राहणारे पण सामाजिक दृष्टिकोणातून विचार केल्यास आदिवासींच्या जीवनात किती वनवास आहे, हे अनेक कविंच्या कवितेतून दिसून येते.&nbsp; आदिवासींना माणूस म्हणून जगणे अजून शक्य हात नाही.&nbsp; कारण ही समाज व्यवस्था आणखी त्यांच्याकडे दुय्यम नजरेने पाहताना दिसून येते.&nbsp; आदिम समाज आजही समस्येच्या गर्तेत जीवन जगत आहे, असे अनेक कवींच्या कवितेतून दिसून येते.&nbsp; ही सद्य: स्थिती आपणास मान्य करावीच लागेल.</em>
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प्रा., अश्विनी जगदीप थोरात. "नारी संघर्ष की यशोगाथा – 'शिकंजे का दर्द'". International Journal of Humanities, Social Science, Business Management & Commerce 08, № 01 (2024): 130–37. https://doi.org/10.5281/zenodo.10483550.

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Abstract:
डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जी के 'शिक्षित बनो, संघठित बनो, संघर्ष करो' इस महामंत्र से यह समाज विद्रोही एवं चेतित बना। उसमें स्वत्व, अस्मिता, आत्मगौरव, आत्माभिमान का भाव जाग उठा, साथ-ही-साथ साहित्यकारों ने अपनी अनुभूति को अभिव्यक्ति देने का प्रयास किया। परिणामतः 'आप बीती' को शब्द बद्ध करके आत्मकथा का सृजन होने लगा। आत्मकथा से यह स्पष्ट होता है, अब दलित शिक्षित बनकर अपने अधिकारों की प्राप्ति के लिए संघर्ष कर रहा है। दलित आत्मकथा का साहित्यिक मूल्य होने के साथ-साथ उसका दलित संस्कृति, इतिहास, समस्या तथा चेतना की दृष्टि से महत्त्व रहा है। दलित आत्मकथाएं दलित जीवन, चेतना, विद्रोह का प्रतीक है। दलित आत्मक
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डॉ., विवेकानंद राजाराम माने. "पर्यटनस्थळांचे संवर्धन काळाची गरज". International Journal of Advance and Applied Research 3, № 9 (2022): 8–9. https://doi.org/10.5281/zenodo.7500386.

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Abstract:
पर्यटन म्हणजे निसर्गाचे सौंदर्य व त्यातील&nbsp; विविधतता पाहणे.भारतातील प्रवास आणि पर्यटन हा भारतीय परंपरा आणि संस्कृतीचा अविभाज्य भाग आहे.भारतात&nbsp; पर्यटन&nbsp; करण्यासाठी राष्ट्रीय उद्याने, अभयारण्ये विविध धार्मिक तीर्थक्षेत्र ऐतिहासिक स्मारके, पौराणिक स्थळे,&nbsp; देवळे, आदिम संस्कृतीची&nbsp; स्थळे, क्रीडा स्थळे धरणे व जलाशये अशी विविध ठिकाणे आहेत.नैसर्गिक भागात पर्यटकांना आकर्षित करणे आणि स्थानिक संवर्धन आणि आर्थिक विकासासाठी निधीचा वापर करणेहे सरकारचे&nbsp; विकासाचे उद्दिष्ट असले पाहिजे.सध्या इकोटूरिझम ही संकल्पना मोठ्या प्रमाणात उपयोगात आणली जात आहे.&nbsp; भारत सरकारच्या पर्यटन आणि सं
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Ekka, Shivnath. "Social Conditions of Hill Korwa Primitive Tribe in North-Eastern Chhattisgarh : A Geographical Study." RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 8, no. 3 (2023): 132–40. http://dx.doi.org/10.31305/rrijm.2023.v08.n03.015.

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Abstract:
The social structure of the population is not only the pillar of economic development, but also an important basis of the social environment and social life of the population group. Under the social environment, the castes living in the community and their social values, customs, and social relations are included, on the basis of which the social environment of that community is determined. The presented research paper is completely based on primary data. Raigarh, Jashpur, Surguja and Balrampur districts are located in the north-eastern region of Chhattisgarh state. In the north-eastern region
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बी.एस.जाधव. "सामाजिक समस्याएॅ व पर्यावरण". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.803460.

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Abstract:
आदिम काल से लेकर वर्त मान आधुनिक य ुग तक मन ुष्य न े उन्नति व प्रगतिव के अन ेक सा ेपान तय किए ह ै। मन ुष्य न े बुद्धि के विकास के साथ -साथ प्रगति की है। मानव न े प्रक ृति प्रदत्त साधनों का दोहन कर अपना विकास किया है, किन्त ु विकास की इस अन्धी दौड ़ में मन ुष्य न े प्रकृति प्रदत्त संसाधना ें का अविव ेकपुर्ण दोहन न े प्रकृति व पर्यावरण का े अत्यंत क्षति पहुचाॅई है। मन ुष्य की निरन्तर बढ़ती आवश्यकताआ ें न े पर्यावरण का े क्षति पहुचाई है, जिसमे ं प्राकृतिक अस ुत ंलन को जन्म दिया। इस असंत ुलन न े मानव के समक्ष ग ंभीर संकट उत्पन्न कर दिए है
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.डॉ., भीमराव खं. वानोळे. "आदिवासी लोककला आणि बोली यांचा अनुबंध". शिविम संशोधन पत्रिका सव्वीसावा (7 лютого 2021): ३३७ ते ३४०. https://doi.org/10.5281/zenodo.6309179.

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Abstract:
लोकसाहित्य हे आदिम मानवाची कहाणी सांगणारी गाथा आहे. लोकसाहित्यामध्ये प्राचीन मानवी जीवनाच्या अनुभवाचे संचित दडलेले आहे. हे अनुभवाचे संचित मौखिकरूपाने आजही टिकून आहे. त्याचे स्वरूप बोलीमय असून अलिखित आहे. विविध मानवी समूहामध्ये अनेक बोलींचे अस्तित्व असून त्याद्वारेच विचारांचे, अनुभवांचे वहन होत आलेले आहे. आदिवासी समूहामध्ये आजही अनेक बोली टिकून आहेत. त्यांच्या लोकसाहित्याचे वहन बोलीभाषेनेच केलेले आहे. आदिवासी समूह जगाच्या पाठीवर सर्वत्र अगदी प्राचीन काळापासून वास्तव्यास आहे. भारताच्या विविधांगी प्रदेशात समाजव्यवस्थेपासून कोसो लांब, स्वतंत्र, वेगळी संस्कृती असलेला आदिवासी समूह प्राचीन काळापासून
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Maharjan, Kanchhi. "चेतना’ र ‘जागा नहोऊ, सुत’ एकाङ्कीमा मनोविश्लेषणात्मक नारीवाद". Journal of Development Review 8, № 1 (2023): 99–105. http://dx.doi.org/10.3126/jdr.v8i1.57147.

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Abstract:
मानव जातिको आदिम इतिहास मातृसत्तात्मक थियो । केही प्राचीन जनजातिमा पिताको नामबाट नभएर माताको नामबाट वंशावली बनाउने प्रथा थियो। अचेल पनि केही जङ्गली जातिमा यो प्रथा कायमै देखिन्छ । जब कृषि युग सुरु भयो तब परिवार, निजी स्वामित्व र राज्यको उत्पत्ति आरम्भ भयो। समयक्रमसँगै पितृसत्तात्मक समाज र परिवारको अभ्युदय भयो । यस पश्चात् नारी उत्पीडितवर्ग बन्न पुगे । धर्मलाई आधार बनाएर बनेका राजनीतिक र सामाजिक नीति–नियमले नारीउत्पीडन र नारीहिंसालाई प्रोत्साहित गरायो। अठारौं शताब्दीमा फ्रान्समा भएको औद्योगिक क्रान्तिदेखि आजसम्म विश्वमा नारीमुक्तिका लागि अनकौँ आन्दोलनहरू भए तापनि नारीले पुरुषसरह हक र अधिकार उपभ
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डॉ., नीलिमा गुप्ता. "व्यवसायिकता की ओर उन्मुख छत्तीसगढ़ की आदिवासी एवं लोक कला संस्कृति". International Journal of Research - Granthaalayah 7, № 11(SE) (2019): 291–96. https://doi.org/10.5281/zenodo.3592674.

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Abstract:
सृष्टि के प्रारम्भ से सभ्यता के विभिन्न सोपानों से गुजरती हुई कला वर्तमान तक निरन्तर आगे बढ़ती जा रही है। छत्तीसगढ़ एक आदिवासी बहुल राज्य है। आदिवासी जीवन अर्थात ऐसा रस जो ऊपर से निर्विकार किन्तु भीतर से संवेदी, उतावली, निर्झर के समान छलछलाता, उज्जवल एवं निष्पाप। यहाँ के निवासी आदिकाल से ही संघर्षमय जीवन व्यतीत कर रहे हैं। इस क्षेत्र में अनेक संस्कृतियाँ जन्मीं, पुष्पित-पल्लवित हुयीं। यहाँ के पुरातात्विक स्थलों में इस क्षेत्र की कला एवं संस्कृति की धरोहर सुरक्षित हैं। रामायण में यहाँ के लिये &#39;महारण्य&#39; शब्द का प्रयोग किया गया है। सिंघनपुर, कबरा, बानी, बसनाझर, ओगना, कर्मागढ़, बेनीपाट तथा
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Jain, Sushma. "Development of painting in Maratha area." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 4, no. 9 (2016): 198–202. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v4.i9.2016.2553.

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Abstract:
The painting tradition in the Maratha region dates back to prehistoric times. Human beings have left examples of paintings with a very careful reflex of behavior. In the primitive tendons of Madhya Pradesh, we are surprised today by the many linear signs of the human and the aesthetic form of the weapons, following the craving to be cultured and ornate on that barbar.&#x0D; मराठा क्षेत्र में चित्रकला परंपरा का प्रारंभ प्रागैतिहासिक काल से होता है। मानव ने बहुत ही प्रांरभ में व्यवहार की सजगता के साथ चित्रों के उदाहरण छोड़े हैं। मध्यप्रदेश की आदिम कंदराओं में हमें उस बर्बर पर सुसंस्कृत और सुअलंकृ
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Lama, Kunsang. "आदिवासी परम्परागत शासन प्रणालीका आधारभूत पक्षहरू". Indigenous Nationalities Studies आदिवासी जनजाति अध्ययन 3, № 3 (2025): 1–42. https://doi.org/10.3126/ins.v3i3.80688.

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Abstract:
विशिष्ट सामाजिक र सांस्कृतिक समूहका रूपमा रहेका आदिवासी जनजातिहरूको समाज सञ्चालन र व्यवस्थापनका लागि आदिम कालदेखि नै आफ्ना प्रथा, परम्परा र परम्परागत प्रथाजनित कानूनको आधारमा परम्परागत शासन प्रणालीका आधारमा समाजलाई व्यवस्थित गर्दै आईरहेको पाइन्छ । आदिवासीहरूको प्रथाजनित शासन प्रणाली मुलतः न्यायिक, प्रशासनिक, आर्थिक र राजनीतिक प्रणालीको रूपमा समुदायको मूल्य, मान्यता र आध्यात्मिकतामा आधारित रहेर संचालित हुन्छन् । प्रारम्भमा समाज सञ्चालनका सम्पूर्ण पक्षसँग सम्बन्धित भएता पनि वर्तमान समयमा परम्परागत शासन प्रणालीहरू प्राकृतिक स्रोतसाधनको व्यवस्थापन, द्वन्द्वहरू समाधान, सामाजिक व्यवस्थापन, सांस्कृति
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Singh, Soumya. "ROLE OF ELECTRONIC INSTRUMENTS IN TEACHING AND PERFORMANCE." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 3, no. 1SE (2015): 1–2. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v3.i1se.2015.3413.

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Abstract:
The construction of nad based on the Vedic concept is first an expression of God. Amarkar was considered as Brahmnad since primitive times. Today's music has resulted from human efforts in its present form.Change is the law of nature and this change is also seen in our classical music which has left a positive and negative impression somewhere. In this sequence, the role of electronic instruments in music teaching and performance has been very important.&#x0D; वैदिक अवधारणा के आधार पर नाद का निर्माण सर्वप्रथम ईश्वर की अभिव्यक्ति है। आदिम काल से ही अ¨ऽमकार क¨ ब्रह्मनाद माना गया। आज का संगीत मनु
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उसर ेठ, राम क. ुमार. "बैगा जनजाति की वनोपज संग्रह की स्थिति का अध्ययन". Mind and Society 9, № 03-04 (2020): 44–46. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-93-4-20216.

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Abstract:
ैगा जनजाति एक आदिम जनजाति ह ै। जा े सदा स े ही वना ें क े मध्य निवास करती आयी ह ै। वन ही इनक े जीवन का प ्रम ुख आधार रह े ह ै। इस जनजाति क े सामाजिक, सा ंस्कृतिक, धार्मि क एव ं आर्थि क पक्ष वना ें पर ही निर्भ र रह े ह ै। वर्त मान म ें वना ें क े राष्ट ªीय उद्यान एव ं वन विभाग क े निय ंत्रण म ें आ जान े स े इस जनजाति क े र्कइ परिवारा ें का े वन क्ष ेत्र स े बाहर विस्थापित किया गया ह ै। र्कइ क्ष ेत्रा ें म ें वना ें क े अधिक कटाव एव ं द ूसर े क्ष ेत्रा ें क े ला ेगा ें का लगातार इन क्ष ेत्रा ें म ें आकर बसन े स े ब ैगा जनजाति की वना ें पर निर्भ रता प ्रभावित र्ह ुइ ह ै। ब ैगा जनजाति क े आर्थि क
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डॉ., सुषमा जैन. "पूर्व ऐतिहासिक शैलचित्र: डिकेन (जिला नीमच)". International Journal of Research - Granthaalayah 8, № 3 (2020): 128–35. https://doi.org/10.5281/zenodo.3733036.

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Abstract:
मानव प्रारम्भ से ही सौंदर्य एवं कला प्रेमी रहा है । मानव जीवन की भाँति कला के उदय का इतिहास अत्यंत रहस्यमय, विराट तथा अज्ञात है । काल की असंख्य परतों में विलीन अतीत के तथ्यों को मूर्त रूप में प्रस्तुत करना सहज नहीं है, आज भी हमारे पास साधनों एवं प्रमाणों का सर्वथा अभाव है।1 भारत में शैलचित्र जिन स्थानों पर प्राप्त हुए हैं वे स्थान आज भी मानव की पहुंँच से दूर घने जंगलों में स्थित हैं।2 ये समस्त प्रागैतिहासिक कलाएँ मानव के सभ्य होने से पूर्व की हैं । इन शिलाचित्रों से हम न केवल आदिम मानव के स्वभाव, जीवन, संघर्ष तथा उसकी परिस्थितियों का ज्ञान प्राप्त करते हैं वरन् उसकी चेतना में व्याप्त सृजनशीलता
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डॉ., वृषाली महादेव माळी. "आदिवासी जीवन - एक संघर्ष गाथा". International Journal of Humanities, Social Science, Business Management & Commerce 08, № 02 (2024): 01–05. https://doi.org/10.5281/zenodo.11076569.

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Abstract:
आदिवासी का अर्थ मूलनिवासी। हजारो वर्ष पहले जब आर्य भारत आए और उन्होंंने यहां केआदिवासियों के साथ संघर्ष किया। आदिवासीयों के साथ संघर्ष चलता रहा, मूलनिवासियों का भीषण संहार किया, वह भाग गए। आर्य संस्कृती का फिर विकास होता गया लेकिन मूलनिवासी घने बनमें&nbsp; भटक रहे है। हिंदी मूलनिवासियों को आदिवासी (आदी + वासी) यह नाम दिया गया। इन आदिवासीयों को संविधान की पंचम अनुसूची में जनजातीय शब्द से परिभाषित किया हैं। आदिवासी सभ्य मानवेचित अनेक सुविधांओंसे परेशान हैं। सामान्यता जो आधुनिक सभ्यता व मानव के लिए आवश्यक सर्वांगी विकास से कोसों दूर हैं। उन्हें आदिवासी कहा जाता हैं। आदिवासी का अर्थ प्रोफेसर गिलान
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डा, ॅ. ईश्वर चन्द गुप्ता. "''रंगा ें की अभिव्यक्ति वाराणसी के भित्ति चित्रा ें म ें''". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.889221.

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Abstract:
रंग चित्र की आत्मा ह ै, रंगा ें क े प ्रति मनुष्य आसक्ति आदिम समय से ही रहा ह ै। भारतीय सभ्यता एव ं संस्कृति में रंगा ें का प ्रचलन बहुत पुराना ह ै रंग हमारे जीवन के साथी, ये हमारे सुखों को इंगित करते ह ैं। सामाजिक उत्सवा ंे-पर्वों पर इनकी छठा चारों ओर बिखरी होती ह ै। शुभ कार्य हो या अतिथि आगमन पर प ्रवेश द्वार पर रंगा ेली बर्नाइ जाती है रंग हमारे जीवन में ख ुशी एवं ऊर्जा भर देते ह ै ं भारतीय आध्यात्म भी विभिन्न रंगा ें से सराबा ेर ह ै। सृष्टि में अनेक रंग मौज ूद ह ै ं भारतीय रंग मना ेविज्ञान का आधार प ्रकृति है प ्रकृति में अनेक रंगा ें को आकाश में देखते ह ै ं जिनमें से कुछ विरा ेधी प ्रकृति
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यादव, अंजली, एस एल गजपाल та साधना खरे. "विशेष रूप से कमजोर जनजाति समूहों में शासन द्वारा संचालित विकास के काय्रक्रमो के प्रति जागरूकता: एक अध्ययन छत्तीसगढ़ राज्य के कबीरधाम जिले के विशेष संदर्भ में". Journal of Ravishankar University (PART-A) 27, № 1 (2021): 39–44. http://dx.doi.org/10.52228/jrua.2021-27-1-5.

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Abstract:
प्रस्तुत शोध अध्ययन छत्तीसगढ़ राज्य की विशेष पिछड़ी जनजाति बैगा पर आधारित है। शोध अध्ययन कबीरधाम जिले के बोड़ला विकासखण्ड़ के 7 ग्रामांे पर केन्द्रित है। अध्ययनगत क्षेत्र के 277 परिवारो पर अध्ययन किया गया है। शोध अध्ययन मे तथ्य संकलन हेतू प्राथमिक तथ्य संकलन साक्षात्कार अनुसूची एंव अवलोकन प्रविधि के द्वारा किया गया है। अध्ययन के माध्यम से इस तथ्य को जानने का प्रयास किया गया है कि वैश्विक परिदृश्य में आदिम जनजाति बैगा समूहों में शासन द्वारा संचालित जनसंख्या गिरावट को रोकने हेतु किये गये सरकारी व गैर सरकारी प्रयासो के प्रति जागरूकता के प्रति चेतना को जानने का प्रयास किया गया है। अध्ययन सें यह ज्
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यादव, अंजली, та एस एल गजपाल. "विशेष रूप से कमजोर जनजाति समूहों में शासन द्वारा संचालित विकास के काय्रक्रमो के प्रति जागरूकता: एक अध्ययन छत्तीसगढ़ राज्य के कबीरधाम जिले के विशेष संदर्भ में". Journal of Ravishankar University (PART-A) 30, № 2 (2024): 75–81. http://dx.doi.org/10.52228/jrua.2024-30-2-8.

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Abstract:
प्रस्तुत शोध अध्ययन छत्तीसगढ़ राज्य की विशेष पिछड़ी जनजाति बैगा पर आधारित है। शोध अध्ययन कबीरधाम जिले के बोड़ला विकासखण्ड़ के 7 ग्रामांे पर केन्द्रित है। अध्ययनगत क्षेत्र के 277 परिवारो पर अध्ययन किया गया है। शोध अध्ययन मे तथ्य संकलन हेतू प्राथमिक तथ्य संकलन साक्षात्कार अनुसूची एंव अवलोकन प्रविधि के द्वारा किया गया है। अध्ययन के माध्यम से इस तथ्य को जानने का प्रयास किया गया है कि वैश्विक परिदृश्य में आदिम जनजाति बैगा समूहों में शासन द्वारा संचालित जनसंख्या गिरावट को रोकने हेतु किये गये सरकारी व गैर सरकारी प्रयासो के प्रति जागरूकता के प्रति चेतना को जानने का प्रयास किया गया है। अध्ययन सें यह ज्ञात
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रीता, शर्मा. "प्रकृति चित्रण में रंगों का अद्भुत सामंजस्य-कलाकार रामकुमार". International Journal of Research - Granthaalayah Conference-Composition of Colours, № 12 (2019): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.3361247.

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Abstract:
मानव जीवन के साथ-साथ चित्रकला में वर्ण का महत्वपूर्ण स्थान है। वर्ण मानव जीवन एंव चित्र का सार है जिस प्रकार कविता के लिये शब्द, संगीत के लिये लय तथा काव्य के लिये रस की आवश्यकता हाती है, उसी प्रकार चित्र के लिये रंग का होना अनिवार्य है। रंग के अभाव में चित्र नीरस है इसलिए आदिम गुहावासियों से लेकर आज तक कलाकार रंगा ें का आश्रय लेकर आत्माभिव्यक्ति करता आया है। भारतीय चित्र षडंग में वर्ण-सामांजस्य को वर्णिका भंग नाम से सम्बोधित किया गया है। चित्र में रंगों की यथा सम्भव मिली-जुली भंगिमा वास्तव में वर्णिका भंग है। वस्तुओं में रंगों के माध्यम से ही चित्र के स्वभाव, वतावरण तथा अर्थ का ज्ञान होता है
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महर्जन Maharjan, कान्छी Kanchi. "उनी फर्कदिनन् कि ! एकाङ्कीमा नारीको स्वरूप र भूमिका". Samaj Anweshan समाज अन्वेषण 2, № 2 (2025): 16–23. https://doi.org/10.3126/anweshan.v2i2.74142.

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Abstract:
पृथ्वीको उत्पत्ति, जीवको उत्पत्ति र विकाससँगै मानिसको विकासक्र म अगाडि बढेको पाइन्छ । समाज मानिसहरूको पारस्परिक क्रियाको परिणाम हो । यसरी मानव र समाजको अन्योन्याश्रित सम्बन्ध रहन्छ । मानव जातिको आदिम इतिहासलाई व्यवस्थित ढङ्गले प्रस्तुत गर्ने प्रयास फेडरिक एङ्गेल्सले आफ्नो पुस्तक परिवार, निजी स्वामित्व र राज्यको उत्पत्ति भन्ने ग्रन्थमा गरेका छन् । यसमा उनले परिवारको ऐतिहासिक संरचना (विकासक्रम) को विश्लेषण गर्दै प्राचीन सामूहिक विवाहदेखि लिएर निजी स्वामित्वको उत्पत्तिसँगै प्रचलनमा आएको एक विवाह प्रथासम्म सामाजिक विकासका विभिन्न चरणहरूको चर्चा गरेका छन् । सामाजिक विकाससँगै समाजमा महिलाको भूमिका र
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डा, ॅ. प. ्रेमलता तिवारी. "स ंगीत चिकित्सा -एक नवाचार". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.886095.

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Abstract:
यह संगीत स्वर लहरियांे क े मध्यम से कानो ं में उतरकर दिल में जगह बनाता ह ै। बूंदांे का टपकना, पत्ता े ं का सरसराना, लहरांे का लहराना, प ंछियांे का कलरव करना संगीत ही तो ह ै इस बात से इ ंकार नहीं किया जा सकता कि जब कोई कर्ण पि ्रय संगीत की लहरियाँ गूंजती ह ै तो हदय में न क ेवल कंपन हा ेता है,बल्कि स ंगीत रंगा े ं में घ ुलमिलकर मन का े अमृतमय कर देता ह ै। आ ेशो ने कहा था कि जीवन में एक ही चीज बचानी चाहिए और वह ह ै आत्मा और उसका संगीत क्या ेकि मस्तिष्क आ ैर हृदय संगीत की धरातल पर ही खडे़ हा ेकर एक दूसरे मे लीन हो जाते ह ै ं। कितने तर्क ,कितने विश्वास,कितनी परिभाषाएँ, कितने मत,कितने सिद्धांत लेकिन
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डा, ॅ. सीमा सक्सेना. "स ंगीत आ ैर समाज". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.886828.

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Abstract:
्रकृति का मूल सिद्वान्त ह ै कि मनूष्य न े अपनी नैस ेर्गिक आवष्यकताओं क े लिये समाज क े अवलम्ब को अवधारित किया उसे अपने सुखःदुख की हिस्सेदारी एव ं व्यवहारिक बल व असुरक्षा से बचकर क े लिये समाज की सृष्टि करनी पड़ी अथवा समाज की शरण में जाना पड़ा। बाल्यकाल, युवावस्था, व ृद्वावस्था, अथवा यह कहा जाये कि जीवन क े प ्रत्येक चरण में मनुष्य का े समाज की आवष्यकता नैसर्गिक होती ह ै। समाज यदि जननी है तो व्यक्ति उसका बालक। विकास की प्रारंभिक अवस्था से निरन्तर प ्रगति पथ पर बढ़ते ह ुऐ उसने अपनी आवष्यकताओं क े रूप सृजन करना आरंभ किया आ ैर-यही सृजन कलाओं का उद्गम स्थल बना। उसे यह पता ही नहीं चला कि कब उसकी इसी
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चाम्लिङ, भोगीराज. "नवपाषाण उपकरण ‘बैथर’ पूर्वी पहाडका किरातहरुको संस्कृति र प्राग्इतिहास". Nepalese Culture 17, № 1 (2024): 125–41. http://dx.doi.org/10.3126/nc.v17i1.64414.

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Abstract:
हलेसी र समग्र पूर्वी पहाडमा नवपाषाण उपकरण बैथर थुप्रै संख्यामा फेला पार्न सकिन्छ तर लोप हुने क्रम पनि तीव्र छ । यो लेखमा पूर्वी पहाडका किरात राईहरुले वज्रढुंगाका रुपमा घरघरमा सुरक्षित राखिने नवपाषाण उपकरण ‘बैथर’ र त्यसको किरात राई समाजमा विद्यमान सांस्कृतिक स्थानका आधारमा प्राग्इतिहासबारे विमर्श गरिएको छ । तसर्थ, यो लेख प्राग्इतिहास अध्ययनमा नवीन प्राज्ञिक अन्वेषण गर्ने अग्रसरता हो । पुरातात्विक शिल्पकृतिसम्बन्धी व्याख्यामा सामाजिक आधार प्रदान गर्न तथा प्राग्ऐतिहासिक युगसम्बन्धी अध्ययन गर्न परम्परागत संस्कृति तथा मौखिक ज्ञानहरुको जो उपयोग गर्ने गरिएको छ, त्यससँगै नेपाली इतिहास अध्येताहरुको जनज
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स©म्या, सिंह. "शिक्षण एवं प्रदर्शन में इल्¨क्ट्रॉनिक वाद्य¨ ं की भूमिका". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.884809.

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Abstract:
ैदिक अवधारणा क े आधार पर नाद का निर्मा ण सर्वप्रथम ईश्वर की अभिव्यक्ति है। आदिम काल स े ही अ¨ऽमकार क¨ ब्रह्मनाद माना गया। आज का संगीत मनुष्य क े प्रयत्न¨ं स े अपने वर्तमान रूप में परिणित ह ुआ ह ै। परिवर्तन प्रकृति का नियम ह ै अ©र यही परिवर्तन हमारे शास्त्र्ाीय संगीत में भी दिखता ह ै जिसने कहीं सकारात्मक त¨ कहीं नकारात्मक छाप छ¨ड़ी ह ै। इसी क्रम में संगीत शिक्षण एवं प्रदर्श न में इल्¨क्ट्रॉनिक वाद्य¨ं की भूमिका बह ुत अहम रही है ं। स्वतन्त्र्ाता के बाद अब राष्ट्रीय संरक्षण पाकर भारतीय शास्त्र्ाीय संगीत प्रदीप्त ह¨ गया, भारतीय संगीत ने एक नवीन करवट ली, जिसके फलस्वरूप रियासती राजाअ¨ं के संरक्षण मे
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डॉ., रेखा धीमान. "नर्मदामयी अमृतलाल वेगड़ का कलापक्ष". International Journal of Research - Granthaalayah 7, № 11(SE) (2019): 185–88. https://doi.org/10.5281/zenodo.3587383.

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Abstract:
अमृतलाल वेगड़ जब चलने लगते हैं तो रास्ते थक जाते हैं पर पैर नहीं; कांटे, पत्थर, चट्टानें, बीहड़, जंगल, जानवर, आदिम संस्कृति के लोक मानव, सबके सब नर्मदा का अचमन कर यदि किसी परकम्मी को प्रणाम करते हैं तो वह है सिर्फ एक परकम्मी जिसको नर्मदा ने अपने अमृतजल से नाम दिया है - अमृतलाल वेगड़।<sup>1</sup>&nbsp;&nbsp; आपका जन्म 3 अक्टूबर 1928 को जबलपुर मध्यप्रदेश में हुआ। आपके माता-पिता मूलतः कच्छ गुजरात के रहने वाले थे और बाद में मध्यप्रदेश के जबलपुर शहर में आकर बस गये। वर्तमान में तीन भाईयों का सयुंक्त परिवार है। आप सामान्य कद-काठी, इकहरा बदन, उस पर खादी का कुर्ता पजामा, उन्नत मस्तक, आँखों पर चश्मा आपक
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डॉ., शोभना जोशी. "चित्रकला में साहित्य/साहित्य में चित्रकला". International Journal of Research - Granthaalayah 7, № 11(SE) (2019): 5–9. https://doi.org/10.5281/zenodo.3584994.

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Abstract:
सृष्टि चित्रलिखित सी है, चलचित्र भी है। &#39;&#39;ये कौन चित्रकार है&#39;&#39;! पता नहीं! पर सृष्टि का एक क्षुद्र हिस्सा भर मनुष्य इन चित्रों-चलचित्रों के बीच ही जनमता है, काल-कवलित होता है। सांसों के आने-जाने और रूक जाने की अवधि में इन चलचित्रों को देखता है। यह जो वह देखता है, उसकी आँखों के कैमरे से गुजरकर दिल-दिमाग में छपता है। उसे बैचेनी होती है। उस छपे को साझा करूँ। इस साझा करने की बैचेनी से जनमी चित्रलिपि। लिपि की बेल फैली, चित्र रचे चितेरों ने, रंग अविष्कृत हुए। मानस उर्वर हुआ, कल्पना से कला समृद्ध हुई। आदिम बर्बरता से आगे बढ़े मनुष्य के भावों से कला को स्पन्दन मिला। सृष्टि के समानांतर द
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Rai, Manju. "जातीय संस्थाले उठाएको राजनैतिक मुद्दा र किरात राई यायोक्खा". Kirat Pragya किरात प्रज्ञा 4 (27 травня 2025): 40–51. https://doi.org/10.3126/kp.v4i1.79178.

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Abstract:
प्रस्तुत लेख जातीय संस्थाले उठाएको राजनैतिक मुद्दा र किरात राई यायोक्खाले छैठौँ महाधिवेशनबाट विधान सम्मत अघि बढाएको राजनैतिक मुद्दामा केन्द्र्रित रहेको छ । किरात राई जाति नेपालमा आदिम कालदेखि नै बसोबास गर्ने प्रमुख जाति मात्रै नभई नेपालमा लामो समयसम्म शासन सञ्चालन गर्ने जाति हो । तथापि विभिन्न समयमा घटेका राजनीतिक घटना क्रमसँगै बिस्तारै राजनीतिक, सामाजिक अन्य कुरामा बहिस्कृत हुँदै दोस्रो दर्जाको नागरिक जस्तै बन्न पुग्यो जसले गर्दा उनीहरुको भाषा, धर्म, संस्कार संस्कृति पनि अतिक्रमणमा पर्यो । अतिक्रमणमा परेका यी सबै कुराहरुलाई संरक्षण र सम्बद्र्धन गर्नका निम्ति किरात राई यायोक्खा स्थापना भएको हो
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सिंह, पवन कुमार, та उस्मान उस्मान. "धर्म एवं आध्यात्मिकता के आलोक में मूल्य शिक्षा". Humanities and Development 19, № 02 (2024): 59–62. https://doi.org/10.61410/had.v19i2.191.

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Abstract:
धर्मजीवन का अभिन्न अंग है। मानव चिन्तन के विभिन्न आयाम भी धर्म से ही निकलते हैं। यह स्वाभाविक है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने देश की धर्म एवं संस्कृति के विकास के विषय में ज्ञान प्राप्त करना चाहता है। इसी स्वाभाविक प्रक्रिया का परिणाम भारतीय धार्मिक चेतना एवं आध्याम्किता के परिशीलन में मूल्य आधारित शिक्षा का परिशीलन अनेक रूपों में हमारे आस-पास के पर्यावरण में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। धर्म की वास्तविक परिप्रेक्ष्य उसके मनोविज्ञान का, उसके बाह्य एवं आन्तरिक धरातल का ज्ञान न होना है। धर्म आदिम या आध्यात्मिक शक्ति में विश्वास है। भय एवं आश्चर्य से पैदा हुआ धर्म आज सम्पूर्ण मानव जगत में व्याप्त ह
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करवते, प्रा.रघुनाथ विश्राम. ""विदर्भातील आदिवासी आंध जमात आणि त्यांच्या विधी, प्रथा, परंपरा"". International Journal of Advance and Applied Research 5, № 23 (2024): 559–64. https://doi.org/10.5281/zenodo.13683011.

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Abstract:
प्रस्तावना :-आदिवासी आंध जमात हि अति प्राचीन जमात आहे. म्हणूनच या जमातीला आदिम जमात सुद्धा म्हणतात. संपूर्ण भारतामध्ये ४९ आदिवासी जमाती आहेत. त्यापैकी महराष्ट्रात ४७ जमाती आढळतात. त्यापैकीच आंध हि महत्वपूर्ण जमात मानली जाते. १ &nbsp;आंध जमतीचे वास्तव्य महाराष्ट्रात विदर्भ आणि मराठवाडयातील काही जिल्ह्यामध्ये दिसून येते.त्यामध्ये विदर्भात अकोला, वाशिम, बुलढाणा,यवतमाळ व मराठवाडयात हिंगोली, नांदेड, परभणी या भागात आंध जमात अगदी डोंगर, दऱ्यात, माळावर, नदीकाठी वस्त्या करून राहते. त्यामुळेच हि जमात २१ व्या शतकात वावरतांनासुद्धा अतिशय मागास मानली जाते. त्याची विविध कारणे आहेत. त्यामध्ये प्रामुख्याने शि
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सचिव, ग©तम (श¨ध छात्र्ा). "चित्र्ाकला म ंे र ंग (प्राग ैतिहासिक काल स े वर्तमान काल तक क े परिप्रेक्ष्य म ें)". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.892056.

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मानव जीवन में वर्ण (रंग) का महत्वपूर्ण स्थान ह ै। प्रत्येक वस्तु क¨ई न क¨ई रंग लिये हुये ह ै। वस्तुअ¨ ं के धरातल में रंग ह¨न े के कारण ही वह हमें दिर्खाइ देती ह ै। रंग¨ ं के प्रति मानव का आकर्ष ण कभी घटा नहीं है। इसीलिये आदिम गुफाचित्र्ा¨ं से ल्¨कर आधुनिक मानव तक ने स©न्दर्य क े विकास में रंग¨ ं का सहारा लिया है। रंग¨ ं का महत्व हमें मानव जीवन के इतिहास के हर अध्याय में देखने क¨ मिलता ह ै। वर्ण प्रभाव अर्थात् रंग प्रभाव के आधार पर चित्र्ा क¨ स©न्दर्य प्रधान बनाया जा सकता है। रंग हमारे जीवन का महत्वप ूर्ण हिस्सा है; इसके बिना प्रकृति उपस्थित किसी भी पदार्थ या जीव का अपना क¨ई वजूद नहीं ह ै। रंग¨
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डाॅ., आरती तिवारी. "सामाजिक मुद ्दे एव ं पर्यावरण". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.574865.

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Abstract:
मन ुष्य अपन े पर्यावरण क े साथ ही जन्म लेता ह ै। और उसके बीच ही अपना जीवन यापन करता ह ै। द ूसर े शब्दों में सारा समाज पर्यावरण के बीच अर्था त प्रकृति की गोद में अपना जीवन यापन करता ह ै। किन्त ु इस जीवनयापन के लिए मन ुष्य मुख्य रूप से पर्यावरण पर निर्भर करता है। अपन े जीवन को स ुचारू रूप से चलाए रखन े एव ं उसे और अधिक ब ेहतर बनान े के लिए मन ुष्य निर ंतर प्रयास करता है तथा इसके लिए वह प्राक ृतिक संसाधनों का दोहन करता है। इस प्रकार मन ुष्य आदिम युग स े आज तक निरंतर प्रकृतिक संसाधनों से अपना जीवन चलाता आया है। जिससे प्रकृति का े कुछ नुकसान भी पहुंचा है। क्योंकि मन ुष्य न े आधुनिकता की अंधीदौड में
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Gupta, Neelima. "TRIBAL AND FOLK ART CULTURE OF CHHATTISGARH ORIENTED TOWARDS PROFESSIONALISM." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 7, no. 11 (2019): 291–96. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v7.i11.2019.3756.

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Abstract:
English: From the beginning of the creation, the art passing through different stages of civilization is continuously moving forward till the present. Chhattisgarh is a tribal dominated state. Tribal life means such a juice which is sensuous from above but sensible from within, rapturous, dejected like a deer, bright and sinless. The residents of this place have been leading a struggling life since time immemorial. Many cultures were born, flourished and flourished in this region. The heritage of the art and culture of this region is preserved in the archaeological sites here. The word 'Mahara
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महर्जन, कान्छी. "दुःखान्तताका दृष्टिले अन्धवेग नाटक". Journal of Development Review 6, № 01 (2024): 102–9. http://dx.doi.org/10.3126/jdr.v6i01.66947.

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Abstract:
आचार्य भरतमुनि पूर्वीय नाट्यकलाका आदिम व्याख्याता हुन् । नाट्यसिद्धान्तको चर्चापरिचर्चायिनीबाटैआरम्भ भएको देखिन्छ । यसरी हेर्ने हो भन्ने नेपाली रङ्गमञ्चीय परम्पराको इतिहास निकै लामोदेखिन्छ तर नेपाली नाटक र रङ्गमञ्चले आधुनिकता प्राप्त गर्नका लागि उन्नाइसौ शताब्दीको उत्तरार्धको समयसम्मकुर्नुपर्यो । तत्कालीन समयमा दरबारभित्रको रङ्गमञ्चमा मात्र होइन, लोकमा भिजेको ज्यापु नाटकमा समेत भारतीय पारसीथिएटरको प्रभाव र प्रभुत्व स्पष्ट देख्न सकिन्थ्यो । यस्तो स्थितिमा रूद्रराज पाण्डेजस्ता तत्कालीन बुद्धिजीवी साहित्यकारमानेपाली भाषामा नाटक लेख्न र मञ्चन गर्न पाए, नेपाली भाषा र साहित्यको उन्नति हुने कुरा व्यक
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Vedangi, Dandekar. "'विष्णुधर्मोत्तरपुराण' एवं अशोकमल्ल के 'नृत्याध्याय' में उल्लेखित अंगहारों का तुलनात्मक अध्ययन". Smṛti - A Bi-Annual Peer Reviewed Journal on Fine & Performing Arts 3, № 2 (2023): 30–39. https://doi.org/10.5281/zenodo.13212155.

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Abstract:
'अंगहार' भारतीय शास्त्रीय नृत्य के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण विषय है । जिसका सरासर मतलब हस्त तथा पद संचालन का एकत्रित रूप होता है ।&nbsp; 'विष्णुधर्मोत्तर पुराण' के&nbsp; तीसरे&nbsp; खण्ड में संख्या 20 से 35 तक के&nbsp; 15 अध्याय हैं, जो नृत्य कला पर केंद्रित हैं। पुराण में इन अध्यायों को नृत्त सूत्रम् कहा गया है ।&nbsp; यह पुराण नाट्यशास्त्र और उसके बाद के नृत्य ग्रंथों के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी का कार्य करता है। भारतीय शास्त्रीय नृत्य के लक्षण ग्रंथों में एक और महत्वपूर्ण कृति 'नृत्याध्याय' है, जिसे 14वीं या 15वीं सदी के आस-पास सम्राट अशोकमल्ल के द्वारा रचा गया था ।&nbsp; इन दोनों में से प्र
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खतिवडा Khatiwada, नित्यानन्द Nityananda. "प्रयोगात्मक प्रवृत्तिका आलोकमा फर्सीको जरा कविता Prayogatmak Prabritika Aalokma farsiko Jara Kabita". Dristikon: A Multidisciplinary Journal 9, № 1 (2019): 176–89. http://dx.doi.org/10.3126/dristikon.v9i1.31186.

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Abstract:
प्रयोग पाश्चात्य जगत्मा जन्मिएर विकसित भएको एउटा साहित्यिक चिन्तन हो । नाटक, चित्रकला, कविता आदि क्षेत्रमा देखापरेको नवीन यो मान्यता पश्चिममा ‘वाद’ का रूपमा भने देखिएको पाईंदैन । प्रयोगात्मक कवितामा परम्पराभिन्न कथ्य, शिल्पशैली आदिमा नवीनता पाइन्छ । अमूर्त विषय, विशृङ्खलित भाषा, अस्तित्ववादी, विसङ्गतिवादी र प्रतीकवादी चेत, समग्रता, संरचनागत नयाँपन, असम्बद्ध भावबिम्ब प्रयोगात्मक कविताका मुख्य प्रवृत्तिहरू हुन् । नेपाली काव्य साहित्यका सन्दर्भमा कवि मोहन कोइरालाको २०१७ सालको ‘रूपरेखा’ पत्रिकामा प्रकाशित ‘घाइते युग’ कविताबाट प्रयोगात्मक कविता लेखनको थालनी भएको हो । नेपाली साहित्यका क्षेत्रमा ‘प्र
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मिश्र, डॉ देवेन्द्र नाथ. "वैश्विक परिदृश्य में विवाह रूपी संस्था में परिवर्तन एवं इसका भविष्य". Humanities and Development 18, № 1 (2018): 91–94. http://dx.doi.org/10.61410/had.v18i1.120.

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Abstract:
विवाह एक ऐसी सामाजिक संस्था है जो विश्व के प्रत्येक भाग में पायी जाती है। प्रत्येक समाज में चाहे वह आदिम हो अथवा आधुनिक ग्रामीण हो या नगरीय विवाह अनिवार्य रूप से पाया जाता है। यह वह संस्था है जिसके द्वारा स्त्री व पुरूष का यौन-सम्बन्ध समाज द्वारा मान्य तरीकों से व्यवस्थित होता है तथा परिवार को बसाने और बच्चों को जन्म देने व उनका लालन पालन करने का उद्देश्य पूरा किया जाता है। प्रायः विभिन्न समाजों में विवाह के भिन्न-भिन्न उद्देश्य होते हैं लेकिन कुछ उद्देश्य ऐसे होते हैं जो सभी समाजों में विद्यमान रहते हैं और सर्वमान्य होते हैं, जैसे यौन इच्छा की पूर्ति सन्तानोत्पत्ति और बच्चों का पालन-पोषण इत्य
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श्रीमती, भारती पहाड़िया. "प्रकृति एव ं र ंग (पर्यावरण के सन्दर्भ में)". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.890583.

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Abstract:
असंख्य पहाड़, प ेड़, नदिया ं, झीलें, फ ूल-पत्तियां, पश ु-पक्षी अथवा मानव मात्र इस प्रकृति के अ ंग ह ै। मानव ने अपनी सा ैन्दर्या नुभूति का े कला के माध्यम से व्यक्त किया ह ै। रवीन्द्रनाथ टैगा ेर क े अनुसार - “ कलाकार प्रकृति प े्रमी ह ै। अतः उसका दास भी ह ै आ ैर प ्रेमी भी। ” कलाकार प ्रकृति में व्याप्त रंगतों का े एव ं उनक े प ्रभाव को फलक पर उतारते ह ैं, अमूर्त अभिव्यंजनावादी वस्तु का सूक्ष्म अध्ययन का उसक े प ्रभावों का तूलिकाघातों क े व ैविध्य से प ्रभावपूर्ण बनाते ह ै ं। इस प्रकार रंगा ें क े आकर्ष ण से चित्र आ ैर जीवन सजीव हो उठते ह ै ं। मानव जीवन में रंग का महत्वप ूर्ण स्थान है। रंगा े ं
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