To see the other types of publications on this topic, follow the link: आधुनिक काव्य.

Journal articles on the topic 'आधुनिक काव्य'

Create a spot-on reference in APA, MLA, Chicago, Harvard, and other styles

Select a source type:

Consult the top 20 journal articles for your research on the topic 'आधुनिक काव्य.'

Next to every source in the list of references, there is an 'Add to bibliography' button. Press on it, and we will generate automatically the bibliographic reference to the chosen work in the citation style you need: APA, MLA, Harvard, Chicago, Vancouver, etc.

You can also download the full text of the academic publication as pdf and read online its abstract whenever available in the metadata.

Browse journal articles on a wide variety of disciplines and organise your bibliography correctly.

1

मिश्रा, आ. ंनद म. ुर्ति, प्रीति मिश्रा та शारदा द ेवा ंगन. "भतरा जनजाति में जन्म संस्कार का मानवशास्त्रीय अध्ययन". Mind and Society 9, № 03-04 (2020): 39–43. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-93-4-20215.

Full text
Abstract:
स ंस्कार शब्द का अर्थ ह ै श ुद्धिकरण। जीवात्मा जब एक शरीर का े त्याग कर द ुसर े शरीर म ें जन्म ल ेता है ता े उसक े प ुर्व जन्म क े प ्रभाव उसक े साथ जात े ह ैं। स ंस्कारा े क े दा े रूप हा ेत े ह ैं - एक आंतरिक रूप आ ैर द ूसरा बाह्य रूप। बाह ्य रूप का नाम रीतिरिवाज ह ै जा े आंतरिक रूप की रक्षा करता है। स ंस्कार का अभिप्राय उन धार्मि क क ृत्या ें स े ह ै जा े किसी व्यक्ति का े अपन े सम ुदाय का प ुर्ण रूप स े योग्य सदस्य बनान े क े उदद ्ेश्य स े उसक े शरीर मन मस्तिष्क का े पवित्र करन े क े लिए किए जात े ह ै। सभी समाज क े अपन े विश ेष रीतिविाज हा ेत े ह ै, जिसक े कारण इनकी अपनी विश ेष पहचान ह ै,
APA, Harvard, Vancouver, ISO, and other styles
2

डा, ॅ. स्मिता सहस्त्रब ुद्धे. "स ंगीत क े प्रचार प्रसार में स ंचार साधन¨ ं की भूमिका". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–4. https://doi.org/10.5281/zenodo.884794.

Full text
Abstract:
संगीत जीवन क¢ ताने-बाने का वह धागा है जिसक¢ बिना जीवन सत् अ©र चित् का अंश ह¨कर भी आनंद रहित रहता ह ै तथा नीरस प्रतीत ह¨ेता ह ै। संगीत में ए ेसी दिव्य शक्ति ह ै कि उसक ¢ गीत क ¢ अर्थ अ©र शब्द¨ं क¨ समझे बिना भी प्रत्येक व्यक्ति उसस े गहरा सम्बन्ध महसूस करता ह ै। ”संगीत“ एक चित्ताकर्शक विद्या ज¨ मन क¨ आकर्षि त करती ह ै। गीत क ¢ शब्द न समझ पाने पर भी ध ुन पसंद आने पर ल¨ग उस गीत क¨ गाते ह ैं, क्य¨ ंकि भारतीय संगीत-कला भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अ ंग है एवं भारत क ¢ निवासिय¨ं की जीवनशैली का प्रमाण ह ैं। ”संगीत“ मानव समाज की कलात्मक उपलब्धिय¨ ं अ©र सांस्कृतिक परम्पराअ¨ं का मूर्तमान प्रतीक ह ै। यह आ
APA, Harvard, Vancouver, ISO, and other styles
3

श्रीमति, स्वप्ना मराठे. "वर्तमान समयानुसार संगीत पाठ्यक्रम¨ ं म ें बदलाव की आवष्यकता". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.886835.

Full text
Abstract:
युग परिवर्तन सृष्टि का सम्बन्धित नियम है, जिसक¢ अन्तर्गत सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक वातावरण भी बदलते रहते हैं। अतः युगानुकूल संगीत षिक्षा की पद्धति में भी परिवर्तन ह¨ना आष्चर्यजनक घटना नहीं है। भारतीय संस्कृति विष्व की उन संस्कृतिय¨ ं में से एक है जिसने सम्पूर्ण विष्व क¨ नई दिषा एवं सृजनात्मकता दी। ये व¨ धर¨हर ह ै जिसक¨ सुरक्षित रखने क¢ लिये हमारे संस्कृति प्रेमिय¨ ं ने अपने सम्पूर्ण जीवन की आहूति दी। संगीत मानव समाज की एक कलात्मक उपलब्धि ह ै। यह लयकारी सांस्कृतिक परम्पराअ¨ं का एक मूर्तिमान प्रतीक ह ै अ©र भावना की उत्कृष्ट कृति ह ै। अमूर्त भावनाअ¨ ं क¨ मूर्त रूप देने का माध्यम ही संगीत ह ै
APA, Harvard, Vancouver, ISO, and other styles
4

द्विजेश, उपाध् याय, та मकुेश चन्‍द र. पन डॉ0. "तबला एवंकथक नृत्य क अन् तर्सम्‍ बन् धों का ववकार्स : एक ववश् ल षणात् मक अ्‍ ययन (तबला एवंकथक नृत्य क चननांंक ववे ष र्सन् र्भम म)". International Journal of Research - Granthaalayah 5, № 4 (2017): 339–51. https://doi.org/10.5281/zenodo.573006.

Full text
Abstract:
तबला एवांकथक नृत्य ोनन ताल ्रधाान ैं, इस कारण इनमेंसामांजस्य ्रधततत ैनता ै। ूरवव मेंनृत्य क साथ मृो ां की स ां त ैनतत थत ककन्तुबाो म नृत्य मेंजब ्ृां ािरकता ममत्कािरकता, रांजकता आको ूैलुओांका समाव श ैुआ तन ूखावज की ांभतर, खुलत व जनरोार स ां त इन ूैलुओांस सामांजस्य नै ब।ाा ूा। सस मेंकथक नृत्य क साथ स ां कत क कलए तबला वाद्य का ्रधयन ककया या कजस मृो ां (ूखावज) का ैत ूिरष्कृत एवां कवककसत प ू माना जाता ै। तबला वाद्य की स ां त, नृत्य क ल भ सभत ूैलुओांकन सैत प ू में्रधस्तुत करन मेंस ल साकबत ैु। कथक नृत्य की स ां कत में ूररब बाज, मुख्यत लखन व बनारस ररान का मैत् वूरणव यन ोान रैा ै। कथक नृत्य की स ां कत
APA, Harvard, Vancouver, ISO, and other styles
5

ख ुट, डिश्वर नाथ. "बस्तर का नलवंश एक ऐतिहासिक पुनरावलोकन". Mind and Society 9, № 03-04 (2020): 47–52. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-93-4-20217.

Full text
Abstract:
सभ्यता का विकास पाषाण काल स े प ्रार ंभ हा ेता ह ै। इस काल म ें बस्तर म े रहन े वाल े मानव भी पत्थर क े न ुकील े आ ैजार बनाकर नदी नाल े आ ैर ग ुफाआ ें म ें रहत े थ े। इसका प ्रमाण इन्द ्रावती आ ैर नार ंगी नदी के किनार े उपलब्ध उपकरणों स े हा ेता है। व ैदिक युग म ें बस्तर दक्षिणापथ म ें शामिल था। रामायण काल म ें दण्डकारण्य का े उल्ल ेख मिलता ह ै। मा ैर्य व ंश क े महान शासक अशा ेक न े कलि ंग (उड ़ीसा) पर आक्रमण किया था, इस य ुद्ध म ें दण्डकारण्य क े स ैनिका ें न े कलि ंग का साथ दिया था। कलि ंग विजय क े बाद भी दण्डकारण्य का राज्य अशा ेक प ्राप्त नही ं कर सका। वाकाटक शासक रूद ्रस ेन प ्रथम क े समय
APA, Harvard, Vancouver, ISO, and other styles
6

दिव्या, पाराशर. "बृहत्तर ग्वालियर म ें बढ ़ती जनसंख्या व ृद्धि का मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special edition) (2017): 1–4. https://doi.org/10.5281/zenodo.574869.

Full text
Abstract:
व्यक्ति को सदा से ही अपनी मूलभूत आवश्यकताओ ं की प ूर्ति के लिए आय के उचित साधनों की तलाश रहती है। यही कारण है कि ग ्रामीण व्यक्तियों न े जब शहरों की आ ेर पलायन किया ता े नगरों का विस्तार हा ेन े लगा। परिणाम स्वरूप प ूर्व में जो नगर व्यवस्थित रूप से बसे हुए े थे वहीं व े नगर आध ुनिक समय म ें अव्यवस्थित रूप में बस कर अव्यवस्थित महानगरा ें का रूप लेन े लगे। नगरों एव ं महानगरो ं की इसी अव्यवस्था न े हमार े समक्ष प ्रद ूषण की समस्या खड ़ी कर दी है। जो नगर सभ्यता व संस्क ृति के क ेन्द ्र मान े जात े हैं अब वही नगर प ्रद ूषण के क ेन्द ्र बन गये ह ै।
APA, Harvard, Vancouver, ISO, and other styles
7

खापर्ड े, स. ुधा, та च. ेतन राम पट ेल. "कांकेर में रियासत कालीन जनजातीय समाज की परम्परागत लोक शिल्प कला का ऐतिहासिक महत्व". Mind and Society 9, № 03-04 (2020): 53–56. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-93-4-20218.

Full text
Abstract:
वर्त मान स्वरुप म ें सामाजिक स ंरचना एव ं ला ेक शिल्प कला म ें का ंक ेर रियासत कालीन य ुग म ें जनजातीय समाज की आर्थि क स ंरचना म ें ला ेक शिल्प कला एव ं शिल्प व्यवसाय म ें जनजातीया ें की वास्तविक भ ूमिका का एव ं शिल्प कला का उद ्भव व जन्म स े ज ुड ़ी क ुछ किवद ंतिया ें का े प ्रस्त ुत करन े का छा ेटा सा प ्रयास किया गया ह ै। इस शा ेध पत्र क े माध्यम स े शिल्पकला म ें रियासती जनजातीया ें की प ्रम ुख भ ूमिका व हर शिल्पकला किस प ्रकार इनकी समाजिकता एव ं स ंस्क ृति की परिचायक ह ै एव ं अपन े भावा ें का े बिना कह े सरलता स े कला क े माध्यम स े वर्ण न करना ज ैस े इन अब ुझमाडि ़या ें की विरासतीय कला ह
APA, Harvard, Vancouver, ISO, and other styles
8

बी.एस.जाधव. "सामाजिक समस्याएॅ व पर्यावरण". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.803460.

Full text
Abstract:
आदिम काल से लेकर वर्त मान आधुनिक य ुग तक मन ुष्य न े उन्नति व प्रगतिव के अन ेक सा ेपान तय किए ह ै। मन ुष्य न े बुद्धि के विकास के साथ -साथ प्रगति की है। मानव न े प्रक ृति प्रदत्त साधनों का दोहन कर अपना विकास किया है, किन्त ु विकास की इस अन्धी दौड ़ में मन ुष्य न े प्रकृति प्रदत्त संसाधना ें का अविव ेकपुर्ण दोहन न े प्रकृति व पर्यावरण का े अत्यंत क्षति पहुचाॅई है। मन ुष्य की निरन्तर बढ़ती आवश्यकताआ ें न े पर्यावरण का े क्षति पहुचाई है, जिसमे ं प्राकृतिक अस ुत ंलन को जन्म दिया। इस असंत ुलन न े मानव के समक्ष ग ंभीर संकट उत्पन्न कर दिए है
APA, Harvard, Vancouver, ISO, and other styles
9

स, ुषीला गायकवाड ़. "''शहरी गंदी बस्तियों म ें पर्यावरण संबंधी समस्याएँ''". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–4. https://doi.org/10.5281/zenodo.883551.

Full text
Abstract:
वर्त मान में हम जिस वातावरण एव ं परिव ेष द्वारा चारो ं ओर से घिरे है उस े पर्यारण कहत े है। पर्यावरण में सभी घटकों का निष्चित अन ुपात में स ंत ुलन आवष्यक ह ै, किन्त ु मन ुष्य की तीव्र विकास की अभिलाषा एव ं प ्रकृति के साथ छेड ़छाड ़ के कारण यह स ंत ुलन धीर े-धीर े समाप्त हो रहा है। पृथ्वी पर निर ंतर बढ ़ती जनसंख्या आज विष्व में चि ंता का प्रमुख कारण बन रही ह ै, क्योंकि जनसंख्या व ृद्धि न े लगभग सभी द ेषा ें को किसी न किसी प ्रकार से प ्रभावित किया है आ ैर उनकी प ्रगति में बाधाए ं उत्पन्न की है। जनसंख्या का दबाव विकसित देषों में तो कुछ अधिक नहीं है, किंत ु विकासषील व अविकसित द ेषों म ें स्थिति
APA, Harvard, Vancouver, ISO, and other styles
10

डा, ॅ. सुषमा श्रीवास्तव. "विज्ञापन की सृष्टि: स ंगीत की दृष्टि". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.886102.

Full text
Abstract:
संचार को जीवन का पर्या य कहा जा सकता है हमारे शरीर की लाखों का ेशिकाएँ आपस में लगातार संचार करती रहती ह ैं। जिस क्षण यह प्रक्रिया बंद हो जाती ह ै उसी क्षण हम मृत्यु को प ्राप्त हा े जाते ह ैं। जीवन का दूसरा नाम संचार संलग्नता है, संचार-श ून्यता मृत्यु का द्योतक ह ै। वर्तमान परिवेश में संचार का व्यापक स्तर ह ै ‘जनसंचार‘ अर्थात जब हम किसी भाव या जानकारी को दूसरा ें तक पहुँचाते ह ै ं आ ैर यह प ्रक्रिया सामूहिक पैमाने पर होती है ता े इसे ‘जनसंचार‘ कहते ह ैं। जनसंचार में प्रेषक तथा बड़ी संख्या में ग्रहणकर्ता क े बीच एक साथ संपर्क स्थापित हा ेता ह ै एवं इस बात की संभावना बनी रहती ह ै कि सूचना या जान
APA, Harvard, Vancouver, ISO, and other styles
11

भाग्यश्री, सहस्त्रब ुद्धे. "सिन े संगीत म ें शास्त्रीय राग यमन का प्रय¨ग - एक विचार". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.886051.

Full text
Abstract:
हिन्दुस्तानी संगीत राग पर आधारित ह ै। राग की परिभाषा अलग-अलग विद्वान¨ं ने अपनी-अपनी पद्धति से दी ह ै परन्तु सबका आशय ”य¨ऽयं ध्वनिविषेषस्तु स्वर वर्ण विभूषितः रंजक¨जन चित्तानां सः रागः कथित¨ बु ेधैः“ से ही संदर्भित रहा है। अतः यह कहा जा सकता ह ै कि भारतीय संगीत की आत्मा स्वर, वर्ण से युक्त रंजकता प ैदा करने वाली राग रचना में ही बसती ह ै। स्वर¨ं क ¢ बिल्ंिडग बाॅक्स पर राग का ढाँचा खड़ा ह¨ता है। मोटे त©र पर ये माना गया है कि एक सप्तक क¢ मूल 12 स्वर सा रे रे ग ग म म प ध ध नि नि राग क ¢ निर्माण में वही काम करते ह ैं ज¨ किसी बिल्डिंग क ¢ ढाँचे क¨ तैयार करने में नींव का कार्य ह¨ता ह ै। शास्त्रकार¨ं न
APA, Harvard, Vancouver, ISO, and other styles
12

चरनजीत, कौर. "आधुनिक परिवारो म ें रसोई उघान क े प ्रति अभिव ृत्तिया ं ज्ञान एवं व्यवहार का अध्ययन". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–4. https://doi.org/10.5281/zenodo.574867.

Full text
Abstract:
भारत द ेश में वर्त मान म ें पर्या वरण प ्रद ूषण एक विकट समस्या हैं। जिसके स ुधार में गृह वाटिका का महत्वप ूर्ण योगदान हो सकता हैं। घनी वस्तियों तथा औद्योगिक क्षेत्रों म ें भी ग ृहवाटिका की विश् ेाष भ ूमिका ह ैं। यदि घर के सामन े पेड पौधे लग े हों तो घर के अंदर धूलमिट ्टी नहीं आती तथा स्वच्छ हवा का आवागमन बना रहता है। इसमें घर की रसोई से निकलन े वाले व्यर्थ पदार्थो का उपयोग खाद के रूप में किया जा सकता ह ै। यह एक छोटी उत्पादन इकाई के रूप में भी हो सकती ह ै। इन्ही तत्थ्यों का े ध्यान में रखकर गृहवाटिका एक प्रयोगशाला प्रतीत होती है, जहां व्यक्ति उद्यानषास्त्री न होत े हुए भी राष्ट ृ्र् ीय विकास एव
APA, Harvard, Vancouver, ISO, and other styles
13

श्रीमती, सुधा शाक्य. "र ंग दृष्टि दा ेष: र ंग अ ंधता". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.889298.

Full text
Abstract:
्रस्तावना:- मानव में र्कइ प्रकार की संव ेदनाएं होती हैं जैसे दृष्टि, श्रवण, स्पर्श , गंध, स्वाद आदि। इनकी उत्पत्ति उद्दीपका ें से होती ह ै, जिसे व्यक्ति अपने बाह ्य पर्यावरण से ग्रहण करता ह ै, यह उद्दीपक ज्ञानेन्द्रिया ें अर्था त आंख, कान, त्वचा, नाक आ ैर जिव्हा को उद्दीप्त करते ह ैं, आ ैर विभिन्न संव ेदना को उत्पन्न करते ह ै ं। आइजनेक (1972) क े अनुसार ‘‘ संव ेदना एक मानसिक प ्रक्रम ह ै जा े आगे विभाजन या ेग्य नहीं होता। यह ज्ञानेन्द्रिया ें को प ्रभावित करने वाली बाह ्य उत्तेजना द्वारा उत्पादित हा ेता ह ै, तथा इसकी तीव ्रता उत्तेजना पर निर्भ र करती ह ै, आ ैर इसके गुण ज्ञानेन्द्रिय की प ्रकृत
APA, Harvard, Vancouver, ISO, and other styles
14

विनिता, वर्मा. "'शास्त्रीय नृत्य में नवीन प्रयोग': कथक एव ं हवेली स ंगीत के पद". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–4. https://doi.org/10.5281/zenodo.885865.

Full text
Abstract:
संगीत ंअर्थात् गायन, वादन और नृत्य अतिप्राचीन आ ैर ब्रह्मस्वरूप होने क े कारण अलौकिक ह ै । आद्यात्मिक संगीत जीवन का े पवित्र बनाकर आत्मोन्नति द्वारा मोक्ष की आ ेर ले जानेवाला मार्ग ह ै । नृत्य का आरंभ धर्म क े मूल भाव से ह ुआ है । मनीषियों ने इसे परमानंद का आधार निरूपित किया है । नृत्य आ ैर गान को हमारे यहांॅ, मोक्ष प्राप्ति का श्रेष्ठतम साधन बताया गया है । कथक नृत्य जिसका अन्य नाम ही ‘नटवरी नृत्य’ ह ै, इसका द्या ेतक ह ै कि कथक नृत्य अपनी अभिव्यक्ति क े लिए अधिकांशतः कृष्णचरित्र पर ही निर्भ र ह ै । यू ंता े कथक में परंपरागत अनेका ें पद, ठुमरी, भजन इत्यादि पर भाव प्रदर्शन किया ही जाता रहा ह ै क
APA, Harvard, Vancouver, ISO, and other styles
15

अर्च, ना परमार. "पर्यावरण संरक्षण". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.883529.

Full text
Abstract:
मानव शरीर प ंच तत्वों- प ्रथ्वी, जल, वाय ु, अग्नि आ ैर आकाश स े ही बना ह ै। य े सभी तत्व पर्या वरण के धोतक है। प ्रकृति मे मानव को अन ेक महत्वप ूर्ण प्राकृतिक सम्पदायें भी ह ै। जिसका उपयोग मन ुष्य अपन े द ैनिक जीवन में करता आया है ज ैसे- नदियाँ, पहाड ़, मैदान, सम ुद ्र, प ेड ़-पौधे, वनस्पति इत्यादि। प्रथ्वी पर प्राकृतिक संसाथनों का दोहन करन े से प्राकृतिक संसाथनो के भण्डार तीव्र गति से घटत े जा रह े है, जिससे पर्यावरण में असन्त ुलन बढ ़ रहा है। उसके परिणाम स्वरूप जल की कमी, आ ेजा ेन परत में छेद का पाया जाना, वना ें की अत्यधिक कर्टाइ से वना ें की कमी आना, सम ुद ्रों का जल स्तर बढना, ग्लेशियरों
APA, Harvard, Vancouver, ISO, and other styles
16

विशाल, यादव. "बद्रीनाथ आर्य क े वाॅश र ंग पद्धति मंे प ्रया ेगधार्मि ता". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1. https://doi.org/10.5281/zenodo.892050.

Full text
Abstract:
भारतीय आधुनिक कला की प्रारंभ 19वीं सदी के मध्य से मानी जाती है। जब अंग्र ेजी शासक ने यूरा ेपियन कला में भारतीय कलाकारा ें को प ्रशिक्षित करने के लिए मद्रास, कलकत्ता, मुंबई, लाहौर व लखनऊ में कला महाविद्यालय स्थापति करने का निर्ण य लिया। इन कला महाविद्यालया ें ने स्वाभाविक अंग्र ेजी पद्धति से चित्रण करने वाले अ ंग्र ेजी कलाकारा ें की नियुक्ति ह ुई। इसी दौरान जापान के कलाकार हिदिसा आ ैर र्ताइ कान कलकत्ता आए जिन्होंने वाॅश पद्धति का प्रषिक्षण भारत में सर्व प ्रथम अविन्द्रनाथ ठाकुर का े दिया और इसी प्रकार भारत में वाॅश पद्धति का जन्म ह ुआ। जब भारतीय वाॅश पद्धति की बात आती है ता े सबसे पहले बंगाल स्
APA, Harvard, Vancouver, ISO, and other styles
17

Ruchika, Shrivastava. "र ंगा ें म ें समाहित चित्रकार विकास भट्टाचार्यजी की कलाकृतियाँ". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.890547.

Full text
Abstract:
कला का इतिहास उतना ही प ुराना ह ै जितना की मानव का इतिहास। ऐसा कहा जाता ह ै कि मनुश्य ने जिस समय अपने नेत्रा ें का े खा ेला तब से ही वह अपनी आजीविका के लिये दिन प ्रतिदिन नव निर्मा ण के कार्य में जुट गया आ ैर उसकी इस नव निर्मा ण प्रवृति ने उसक े जीवन का े रा ेमा ंचक, खुषहाल व समृद्ध बनाया है। इस रोमांचकता, ख ुषहाली व समृद्धि को दर्षाने के लिये उसनें (मनुश्य नें) चित्रकला का सहारा लिया आ ैर उसे सही रुप में व्यक्त करने क े लिये ं रगा ें का े अपना साथी बनाया। उसने कहीं गहरे रंग ता े कही ं हल्के रंगा ें का प ्रयोग करके अपनी भावनाओं का े देखने वाला ें के सम्मुख प्रस्तुत किया। रंग किसी भी व्यक्ति के
APA, Harvard, Vancouver, ISO, and other styles
18

डा, ॅ. संध्या ज. ैन. "र ंगा ें की भाषा". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.891850.

Full text
Abstract:
रंगा ें की अपनी भाषा ह ै। रंग ही हमारा जीवन ह ैं। जीवन के विविध क्षेत्रा ें में य े रंग अपनी छटा बिख ेरते ह ै ं। खान-पान, रहन-सहन, पूजा-पाठ, धर्म-कर्म सभी तो विविध रंगा ें से जुडे ह ुए ह ैं।दुनिया के इस रंगमंच पर हर इंसान किसी-न-किसी रंग में रंगा ह ुआ ह ै। रंगा ें की अनुभूति देखने व स्पर्ष करने से हा ेती ह ै।रंगा ें क े बिना हमारा जीवन ठीक व ैसा ही है, जैसे प ्राण बिना शरीर । प्रकृति सा ैंदर्य में जहाँ ये रंग चार चाँद लगाते ह ै ं वहीं मानव जीवन को भी सरस, सुखद व रंगीन बना देते ह ैं ।आबाल व ृद्ध रंगा ें से वस्तुओं का े पहचान लेता ह ै। सात रंगा ें से निर्मित इन्द्रधनुष के रंगा ें की छटा हमारे मन
APA, Harvard, Vancouver, ISO, and other styles
19

निर्मला, शाह. "पर्यावरण प्रबन्धन एव ं समाज". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.883555.

Full text
Abstract:
मानव और पर्या वरण का निकट का सम्बन्ध है। पर्यावरण मानव का े प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है। स्वावलम्बी विकास की अवधारणा पर्यावरण एव ं विकास नीतियों के एकीकृत नजरिये पर आधारित है जिनका अभिप्राय किसी पारिस्थितिक क्षेत्र से अधिकाधिक आर्थिक लाभ लेना एव ं पर्यावरण के संकट एव ं जोखिम को न्यूनतम करना ह ै। इसम ें अन्तर्नि हित है, वर्त मान की आवश्यकताओं एव ं अप ेक्षाओं को भविष्य की क्षमताओं स े समझौता किय े बिना प ूरा करना। इसको प्राप्त करन े के लिये हमें विकास का पारिस्थितिक समन्वय करना होगा जिसमें हमें अपनी प्राथमिकताओं का प ुनर्नि न्यास करना चाहिये तथा एक आयामी प ्रतिमान छा ेड ़ द े
APA, Harvard, Vancouver, ISO, and other styles
20

गणेश, अनिल थोर. "द्वितीय भाषा शिक्षण में प्रौद्योगिकीय संसाधनों का अनुप्रयोग". 9 січня 2025. https://doi.org/10.5281/zenodo.14622255.

Full text
Abstract:
शोधालेख सार:-िवīमान यगु ÿौīोिगकìय संसाधनŌ का युग है। इस वै2ािनक यगु म¤िहदं ी भाषा अिधगम एवं िश±ण म¤संगणक कì महनीय भिूमका है। िकसी भी भाषा के सवा«गीण िवकास के िलए यह आवÔयक हैिक उससेसंबंिधतसामúी का िनमाणa एवं ÿÖततुीकरण के िलए िडिजटल साधनŌ का अिधकािधक माýा म¤ÿयोग हो । ÿौīोिगकìय यगुम¤सगं णक एक सवाaिधक िवकिसत, उपयोगी व सावaभौिमक अिभकलý है । इसेÿौīोिगकì संसाधनŌ का मिÖतÕक भीकह सकते ह ।§ आज के समय म¤िहदं ी भाषा व वाङमयीन िवकास और ÿचार-ÿसार म&cu
APA, Harvard, Vancouver, ISO, and other styles
We offer discounts on all premium plans for authors whose works are included in thematic literature selections. Contact us to get a unique promo code!