Academic literature on the topic 'एकल'

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Journal articles on the topic "एकल"

1

Acharya, Kusmila. "नेपालमा बोलिने भाषाहरूको परिचय." Interdisciplinary Research in Education 4, no. 2 (December 31, 2019): 215–30. http://dx.doi.org/10.3126/ire.v4i2.27937.

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Abstract:
प्रस्तुत लेख विश्वमा बोलिने भारोपेली, द्रविड, मलय पोलिनेसियन, ककेसियाली, अष्ट्रिक, जापानीकोरियाली, युराल–अल्ताइली, अमेरिकाली, चिनीयाँ–तिब्बती र अफ्रिकाली भाषापरिवार मध्ये नेपालमा बोलिने भारोपेली, द्रविड, अष्ट्रिक र चिनीयाँ–तिब्बतीभाषाहरूको अध्ययनमा केन्द्रित छ । संसारमा धेरै भाषा परिवारका भाषाहरू बोल्ने मत पाइए पनि अधिक भाषाशास्त्रीहरूको मतमा संसारमा १० वटा भाषापरिवारका भाषाहरू बोलिन्छन् । जसमध्ये नेपालको राष्ट्रिय जनगणना २०६८ अनुसार नेपालमा ४ वटा भाषापरिवार र एउटा एकल परिवारको भाषा गरी १२३ वटा भाषाहरू बोलिन्छन् । प्रस्तुत लेखमा नेपालमा बोलिने भाषा परिवारका भाषाहरूको २०५८ र २०६८ को जनगणना अनुसार तुलनात्मक अध्ययन गरिएको छ । यसमा उक्त १२३ भाषामध्ये चारवटा भाषामध्ये चारवटा भाषा परिवार र एउटा एकल भाषा परिवार अन्तर्गत वक्ता सङ्ख्याको बाहुल्यता भएका जम्मा ३० वटा भाषाको परिचय, प्रयोग क्षेत्र, वक्तासङ्ख्या र प्रतिशतका बारेमा चर्चा गरिएको छ । यसका लागि राष्ट्रिय जनगणना २०६८ का तथ्याङ्कलाई मुख्य आधार मानिएको छ । यस लेखले अब हुने नेपालको बाह्रौं राष्ट्रिय जनगणना २०७८ मा भाषिक गणनालाई व्यवस्थित बनाउनुपर्ने कुराप्रति सङ्केत पनि गरेको छ ।
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2

गुर्वेन्द्र, गायत्री, and अमृत गुर्वेन्द. "घरेलु महिलाओं के उच्च रक्तचाप स्तर पर योगाभ्यास के प्रभाव का अध्ययन." Dev Sanskriti Interdisciplinary International Journal 12 (July 31, 2018): 63–66. http://dx.doi.org/10.36018/dsiij.v12i0.107.

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Abstract:
प्रस्तुत शोधका मुख्य उद्देश्य ‘घरेलु महिलाओं के उच्चरक्तचाप स्तर पर योगाभ्यास के प्रभाव का अध्ययन’ है। इस शोध अध्ययनमें ‘पूर्व-पश्चात् परीक्षण एकल समूह’ शोध अभिकल्प का प्रयोग किया गया। आकस्मिक प्रतिचयन विधि द्वारा हरिद्वार (उत्तराखण्ड) क्षेत्र से30-40आयु वर्ग की 26 महिलाओं का चयन किया गया। उच्चरक्तचाप स्तर को मापने के लिए ‘स्फेग्मोमेनोमीटर व स्टेथेस्कोप’ का प्रयोग किया गया। प्रयोज्यों को एक माह तक प्रतिदिन 60 मिनट तक निर्धारित योगाभ्यास समूह का अभ्यास कराया गया। प्राप्त आंकड़ों का सांख्यिकीय विश्लेषण ‘टी-परीक्षण’ द्वारा किया तथा ‘टी’ का मान 0.01 स्तर पर सार्थक पाया गया जिससे यह निष्कर्श निकलता है कि घरेलु महिलाओं के उच्चरक्तचाप स्तर पर योगाभ्यास का सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
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3

सिंह, योगेन्द्र, and अमल के, दत्ता. "दृष्टिवैषम्य पर योगाभ्यास के प्रभाव का अध्ययन." Dev Sanskriti Interdisciplinary International Journal 5 (January 15, 2015): 31–35. http://dx.doi.org/10.36018/dsiij.v5i0.53.

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Abstract:
प्रस्तुत शोध का उद्देश्य कुछ चयनित यौगिक क्रियाओं का दृष्टिवैषम्य पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए 20-35 आयु वर्ग के उ0प्र0 के फिरोजाबाद जिले से आकास्मिक प्रतिचयन विधि द्वारा 20 पुरूष प्रयोज्यों का चयन किया गया। चयनित प्रयोज्यों में दृष्टिवैषम्य को जाँंचने के लिए कैरेटोमीटर नामक उपकरण का प्रयोग किया गया। यह उपकरण आँख में उपस्थित काॅर्निया के कर्वेचर का मापन करता है। 90 दिनों तक प्रतिदिन 1 घण्टा 30 मिनट जल नेति, सूत्रनेति, चक्षु संयम, प्राणायाम एवं मुद्रा एक यौगिक पैकेज के रूप में दिए गये। इस शोध में ’पूर्व-पश्चात् परीक्षण एकल समूह’ शोध अभिकल्प का प्रयोग किया गया एवं प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण पेयर्ड टी-टेस्ट द्वारा किया गया। सांख्यिकीय विश्लेषण से प्राप्त टी का मान 0.01 स्तर पर सार्थक पाया गया है जिससे यह निष्कर्ष निकलता है कि यौगिक अभ्यास से दृष्टिवैषम्यता कम होती है।
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4

Bobde, Sarita. "STUDY OF CONTRIBUTION TO ENVIRONMENTAL PROTECTION OF RURAL RURAL DEVELOPMENT." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 3, no. 9SE (September 30, 2015): 1–3. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v3.i9se.2015.3252.

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Abstract:
Human life is influenced by environment. Healthy and clean environment are the basis of human life. So Pryavarncasnrkshnpratyeknagrikkaktrtwy Hakprashut Preritkiyajatahanksururgaupakrnonkanirmankrunkagrelu Avanwyavsayikupyogkrna, Pratisnrkshnatmkprvritikavicaskrayajatahankis study Pricitkrwakrpryavarnsnrkshn organic Ketikrna, Avanpryavarnpradusncaswathe Prpdnewaleprbavon to Pratijagrukkrsmajmencarykrne a Smajasevisnstha Dwaraapanemahilaprsikshnarthioncopryavarnsnrkshn single study done by Rupmenbahy inspection, Sacshatkaranusuchi, Avloknanusuchikapryogkiagyakprduttoncasnklnvisyvshubisleshnvidhi the Menupakrn and by external inspection The presentations were systematically interpreted qualitatively, interviews were discussed. The results showed that the Barli Institute is peaceful, clean, pollution-free, geophysical and environmental, conditions, green and open, clean environmental environment, environmental protection, environmental protection, environmental protection, environmental protection in the environment. मनुष्य का जीवन पर्यावरण से प्रभावितहोताहै।स्वस्थ एवंस्वच्छपर्यावरणमानव जीवन काआधारहैं । इसीलिए पर्यावरणकासंरक्षणप्रत्येकनागरिककाकत्र्तव्य है।प्रस्तुत एकल अध्ययन में एक समाजसेवीसंस्था द्वाराअपनेमहिलाप्रषिक्षणार्थियोंकोपर्यावरणसंरक्षण के प्रतिजागरूककरसमाजमेंकार्यकरने के लिए प्रेरितकियाजाताहैं।सौरऊर्जाउपकरणोंकानिर्माणकरउनकाघरेलू एवंव्यावसायिकउपयोगकरना , जैविक खेतीकरना, एवंपर्यावरणप्रदूषणकास्वाथ्य परपडनेवालेप्रभावों से परिचितकरवाकरपर्यावरणसंरक्षण के प्रतिसंरक्षणात्मकप्रवृतिकाविकासकरायाजाताहैं।इस अध्ययन मेंउपकरण के रूपमेंबाह्य निरिक्षण, साक्षात्कारअनुसूची, अवलोकनअनुसूचीकाप्रयोगकियागया।प्रदत्तोंकासंकलनविषयवस्तुविश्लेषणविधि द्वारा किया गया एवं बाह्य निरिक्षण द्वारा प्राप्त प्रदत्तों को व्यवस्थित कर गुणात्मक रूप से व्याख्या की गयी, साक्षात्कार की विवेचना की गयी। परिणामों से ज्ञात हुआ कि बरलीसंस्थान षांत, स्वच्छ, प्रदूषणरहितभौगोलिक एवंपर्यावरणीय, स्थितिहै ,हरियाली एवं खुलास्वच्छपर्यावरणीय वातावरणमहिलाप्रषिक्षणार्थीयोंमेंपर्यावरणसंरक्षण के प्रतिसंरक्षणात्मकप्रवृत्तिकाविकासकरप्रषिक्षणाथियोंमेंपर्यावरणसंरक्षणकाप्रायोगिकअनुभवप्रदानकरतीहंै।
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5

चक्रधारी, केवल राम, and विजय कुमार सिंह. "यौगिक अभ्यासों का दृश्टिहीन विद्यार्थियों के भावनात्मक बुद्धिमत्ता स्तर पर प्रभाव." Dev Sanskriti Interdisciplinary International Journal 8 (July 31, 2016): 30–35. http://dx.doi.org/10.36018/dsiij.v8i0.85.

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Abstract:
प्रस्तुत षोध अध्ययन में यौगिक अभ्यासों का दृश्टिहीन विद्यार्थियों के भावनात्मक बुद्धिमत्ता स्तर पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन किया गया। इस षोध की पूर्ति के लिए छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले के दृश्टि एवं श्रवण बाधित विद्यालय से उद्देष्यपूर्ण प्रतिचयन विधि द्वारा 30 दृश्टिहीन विद्यार्थियों का चयन किया गया। प्रयोज्यो को 3 महीनो तक प्रतिदिन 50 मिनट प्रज्ञायोग व्यायाम, नाड़ीषोधन प्राणायाम, ओ३म् उच्चारण एवं नादयोग साधना का अभ्यास कराया गया। भावनात्मक बुद्धिमत्ता स्तर को मापने के लिए ए. के. सिंह एवं श्रुति नारायन द्वारा निर्मित‘ भावनात्मक बुद्धिमत्ता स्केल‘ का प्रयोग किया गया। इस षोध में ‘एकल समूह पूर्व-पष्चात् परीक्षण षोध अभिकल्प‘ का प्रयोग किया गया। प्राप्त आंकड़ों का विष्लेशण टी-टेस्ट सांख्यिकीय विधि द्वारा किया गया। सांख्यिकीय विष्लेशण से प्राप्त ष्जष् का मान 0.01 स्तर पर सार्थक पाया गया। परिणाम यह प्रदर्षित करता है कि यौगिक अभ्यास से दृश्टिहीन विद्यार्थियों के भावनात्मक बुद्धिमत्ता स्तर में वृद्धि हुई। इससे यह निश्कर्श निकलता है कि यौगिक अभ्यासों का दृश्टिहीन विद्यार्थियों की भावनात्मक बुद्धिमत्ता स्तर पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
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6

Tambe, Tina. "NEW EXPERIMENTS IN CLASSICAL DANCES." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 3, no. 1SE (January 31, 2015): 1–3. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v3.i1se.2015.3427.

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Abstract:
Change is the law of life. No element existing in nature has remained untouched by this process. Living, eating, eating, ethics, beliefs, mentality, moral values ​​etc. and change is visible in every area of ​​social and cultural landscape. Natural changes are occurring naturally but in many other areas, these changes arise as a result of the creative tendency of humans, the main one being the "arts" field. Creating is the natural quality of human being and the pursuit of newness is its basic tendency. When this trend is used with dexterity, work skills, talent and beauty, we create a new and beautiful panoramic cover for creation, then we call it art. One of the Panchakalas under the Fine Arts is Sangeet Kala and one of the arts under the Sangeet is dance art. In Indian culture, dance has been considered as the medium of worship of God, it originated from God and its basis is believed to be religion and spirituality. The dance in the "Natya Veda", formed as the fifth Veda after taking into account the major elements of the four Vedas, attained a systematic, scriptural and normative form and it was from here that the rich tradition of classical dances began. Classical dances have been single-use since the beginning, they were used for worshiping God in temples and today in modern society, these dances have appeared in front of new observers on social theater with a new vision and new form. In these migrations from ancient times to modern times, these dances saw many ups and downs and changes and they had to wear many new clothes to appear in front of new viewers in new circumstances. This is an attempt to shed some light on this migration of new creation, new experiments and new trends of classical dances. परिवर्तन प्रकृति का नियम है। प्रकृति में विद्यमान कोई भी तत्व इस प्रक्रिया से अछूता नहीं रह पाया है। रहन-सहन, खान-पान, आचार-विचार, मान्यताए, मानसिकता, नैतिक मूल्य आदि तथा सामाजिक व सांस्कृतिक परिदृश्य के प्रत्येक क्षेत्र में परिवर्तन दृश्यमान है। प्राकृतिक परिवर्तन तो नैसर्गिक रूप से होते रहते है परंतु अन्य कई क्षेत्रों में यह परिवर्तन मानव की सृजनात्मक प्रवृत्ति के फलस्वरूप उत्पन्न होते है जिसमें प्रमुख है “कला” क्षेत्र। सृजन करना मानव का नैसर्गिक गुण है तथा नवीनता की खोज उसकी मूल प्रवृत्ति। यही प्रवृत्ति जब निपुणता, कार्य कौशल, प्रतिभा व सौन्दर्यबोध से प्रयुक्त होकर सृजन को नित-नवीन नयनाभिराम आवरण पहनाती है तब उसे हम कला कहते है। ललित कलाओं के अंतर्गत आने वाली पंचकलाओं में से एक है संगीत कला तथा संगीत कला के अंतर्गत आने वाली कलाओं में से एक है नृत्य कला। भारतीय संस्कृति में नृत्य को ईश्वर की उपासना का माध्यम समझा गया है, यह ईश्वर से ही उत्पन्न हुआ है व इसका आधार धर्म व आध्यात्म ही माना गया है। चार वेदों के प्रमुख तत्वों को ग्रहण कर पंचम वेद के रूप में निर्मित “नाट्य वेद” में नृत्य को व्यवस्थित, शास्त्रोक्त व नियमबद्ध स्वरूप प्राप्त हुआ तथा यहीं से शास्त्रीय नृत्यों की समृद्ध परंपरा का आरंभ हुआ। शास्त्रीय नृत्य आरंभ से ही एकल प्रयोज्य रहे है, इनका प्रयोग मंदिरों में ईश्वर उपासना हेतु हुआ तथा आज आधुनिक समाज में ये नृत्य एक नयी दृष्टि व नवीन स्वरूप के साथ सामाजिक रंगमंच पर नए प्रेक्षकों के समक्ष उपस्थित हुये है। प्राचीन काल से आधुनिक काल के इस प्रवास में इन नृत्यों ने अनेक उतार चढाव व बदलाव देखे तथा समयानुरूप नवीन परिस्थितियों में नए दर्शको के समक्ष अवतरित होने हेतु इन्हें अनेक नवीन कलेवर धारण करने पडे। शास्त्रीय नृत्यों के नवीन सृजन, नवीन प्रयोग व नवीन प्रवृत्तियों के इस प्रवास पर कुछ प्रकाश डालने का यह एक प्रयास है।
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Thakur, Harshvardhan, and Rupashree Dubey. "HISTORY OF INNOVATION IN THE PRESENTATION OF SITAR (WITH REFERENCE TO ETAWAH AND MAIHAR GHARANA)." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 3, no. 1SE (January 31, 2015): 1–3. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v3.i1se.2015.3477.

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Abstract:
Various Vedic period music texts such as Rigveda, Samveda, Shakhayana Brahmin, Shatapatha Brahmin etc. Apart from Ramayana, Mahabharata, the Lankar Purana tradition and the Natasha language of Bharata and Abhinav Bharati, Sangeet Ratnakar etc. Get a description of. Later, in the texts of music Damadar, Aine Akbari, Raga Vibandh, Sangeet Parijat, Radhagavind Sangeet Saar etc., four types of instruments are also found in the medieval and 19th century texts. It is noteworthy that the mention of veena is found in the above texts, from which it can be said that since ancient times the veena instrument has played an important place in Indian music. The proof of the consistency of singing till the middle ages in India is evident based on the material presented in the texts like Sangeet Ratnakar, Chaturdandi Prakasika, Sangeet Parijat etc. Even after following the vocals, they have maintained their separate independent existence in instrumental playing. This is the reason that the practice of free speech started taking shape in the instruments of the 18th century Vichitra Veena, Rudra Veena, Sur-Bahar, Sursingar, Sitar etc. Later, the sitar defeated all the instruments and gained a prominent position and earned an immense reputation as a soloist playing solo. In these years of travel, not only the ancient form of the sitar instrument has changed, but its speech has also seen substantial changes. विभिन्न वैदिक कालीन संगीत ग्रंथ¨ं यथा ऋग्वेद, सामवेद, षाखायण ब्राह्मण, षतपथ ब्राह्मण आदि के अलावा रामायण, महाभारत से ल्¨कर पुराण परंपरा तथा भरत के नाट््य षाó एवं अभिनव भारती, संगीत रत्नाकर आदि समस्त ग्रंथ¨ं में तंत्र्ाी वाद्य¨ं का वर्णन मिलता है। आगे चलकर संगीत दाम¨दर, आइने अकबरी, राग विब¨ध, संगीत पारिजात, राधाग¨विंद संगीत सार आदि, मध्यकालीन एवं 19वीं षती के ग्रंथ¨ं में भी चार प्रकार के वाद्य¨ं का वर्णन मिलता है। उल्ल्¨खनीय है कि उपर¨क्त ग्रंथ¨ं में वीणा का उल्ल्¨ख पाया जाता है जिससे यह कहा जा सकता है कि प्राचीनकाल से ही वीणा वाद्य का भारतीय संगीत में महत्वपूर्ण स्थान रहा है। भारत वर्ष में मध्य युग तक गायन की संगति का प्रमाण संगीत रत्नाकर, चतुर्दण्डी प्रकाषिका, संगीत पारिजात आदि ग्रंथ¨ं में प्रस्तुत सामग्री के आधार पर स्पष्ट ह¨ जाता है। कंठ का अनुगमन करने के बाद भी वाद्य वादन में अपना अलग स्वतंत्र्ा अस्तित्व भी बनाये रखा है। यही कारण है कि 18वीं षताब्दी की विचित्र्ा वीणा, रुद्र वीणा, सुर-बहार, सुरसिंगार, सितार आदि वाद्य¨ं में स्वतंत्र्ा वादन की प्रथा अपना आकार ल्¨ने लगी। आगे चलकर सभी वाद्य¨ं क¨ पछाड़ते हुए सितार ने एक प्रमुख स्थान प्राप्त किया अ©र एकल वादन में बजाए जाने वाल्¨ वाद्य के रूप में अपार प्रतिष्ठा अर्जित की। इन द¨ स© वषर्¨ं की यात्र्ाा में सितार वाद्य का ना केवल प्राचीन स्वरूप ही बदला वरन उसकी वादन ष्©ली में भी पर्याप्त रूप से परिवर्तन दृष्टिग¨चर ह¨ते हैं।
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पोखरेल Pokhrel, शोभा Shova. "जुद्धशमशेरको इतिहास र देवकोटाको योगदान Juddhashamsherko Itihas ra Devkotako yogdan." Historical Journal 11, no. 1 (August 1, 2020): 77–83. http://dx.doi.org/10.3126/hj.v11i1.34679.

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Abstract:
प्रस्तुत लेखमा एउटा राजनीति व्यक्ति र अर्को साहित्यिक व्यक्तिको चर्चा गरिएको छ । राजनीतिक व्यक्तिमात्यस्तो व्यक्तिको चर्चा गरिएको छ जसको नामसँगै एकतन्त्रीय राणाशासनको अवसान जोडिएको छ । यिनकै समयमानेपालले ठूलो भूकम्पको सामना गर्नु प¥यो । चन्द्रशमशेरका पालमा राणाहरू ए, बि र सि क्लासमा बाँडिए जुद्धशमशेरकापालमा तिनै सि क्लासका राणाले जनतालाई साथ दिएर नेपालमा प्रजातन्त्र ल्याउन सजिलो भयो । नेपालका गौडा–गोश्वाराका विभिन्न विभागमा धेरै रकम बाँकी बक्यौता चलिरहेका थिए यसमा यिनले आम माफी दिए । एकतन्त्रीयनिरंकुश राणाशासन कालका एकजना शासक श्री ३ महाराज जुद्धशमशेरको इतिहास उजागर हुँदैछ भने साहित्यिकव्यक्तिमा नेपाली साहित्यका महाकवि नेपालका एक महान् विभूति, एक बेजोड स्रष्टा, एक करुण महामानव लक्ष्मीप्रसाददेवकोटा जसले नेपाली साहित्यमा पहिलो मौलिक महाकाव्य लेखे, एकै दिनमा खण्डकाव्य लेखे, दश दिनमा महाकाव्यलेखे उनै विभूतिको बारेमा यस लेखमा चर्चा गरिएको छ ।
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पौडेल Poudel, बिष्णु Bishnu प्रसाद Prasad. "अनेक रस र एक मूल रस सम्बन्धी मान्यताको अनुशीलन (Anek Ras ra Aek Mul Ras Sambandhi Manyatako Anushilan)." Janapriya Journal of Interdisciplinary Studies 2 (August 17, 2017): 110–21. http://dx.doi.org/10.3126/jjis.v2i1.18074.

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Abstract:
संस्कृत काव्यशास्त्रमा रस सिद्धान्त प्राचीन, अपेक्षाकृत व्यापक वा संश्लेषणकारीर बहुमान्य सिद्धान्त मानिन्छ । यसलाई सुरुमा नाटक केन्द्री बनाई भावमूलक कलात्मक स्थिति वा वस्तुपरक दृष्टिकोणका रूपमा र पछि समग्र साहित्य केन्द्री बनाई आत्मस्थ आस्वाद वा आत्मपरक दृष्टिकोणका रूपमा व्याख्या गर्ने काम भएको छ । वस्तुपरक व्याख्याले यसका भेद वा सङ्ख्यालाई पनि सङ्केत गर्ने भए पनि आत्मपरक व्याख्याले सामान्यतः त्यसको अखण्ड स्वरूपलाई सङ्केत गर्दछ । तर आत्मास्वाद बनेको रस पनि भावमा आधारित हुने र भावहरूको अनेकताका कारण बाह्य रूपमा त्यो अनेक पनि हुने ठानिन्छ । त्यसैले संस्कृत काव्यशास्त्रमा सुरुमा अनेक रसको चर्चा र केही समयपछि अनेक तथा एक मूल रसको कल्पना गरिएको छ । एउटै व्यक्ति (भोज) ले रसका अत्यधिक सङ्ख्या र एकै मूल रसको कल्पना पनि गरेको भेटिन्छ । यस्ता अनेक रसवादीमध्ये अधिकांशले मूलतः नवरसलाई नै महत्त्व दिएका छन् भने एक मूल रसवादीहरूले नवरसमध्येकै (कण, शान्त, शृङ्गार र अद्भुतमध्ये कुनै एउटालाई मूल र अरूलाई त्यर्सैबाट उत्पन्न रस मानेका छन् । यही सन्दर्भलाई यहा“ क्रमशः चर्चा गर्दै तिनको समकालीन साहित्यप्रतिको प्रासङ्गिकता पनि आकलन गर्न खोजिएको छ । Janapriya Journal of Interdisciplinary Studies Vol. 2, No.1 (December 2013), page: 110-121
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बराल Baral, ठाकुर Thakur प्रसाद Prasad. "राष्ट्रिय एकताका प्रतीक पृथ्वीनारायण शाह Rashtriya Ekataka Pratik Prithivi Narayan Shaha." Unity Journal 1 (February 2, 2020): 179–84. http://dx.doi.org/10.3126/unityj.v1i0.35999.

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Abstract:
राष्ट्र शरीर हो भने त्यस देशका नागरिक प्राण हुन्र राष्ट्रियता भावनात्मक शक्ति र आस्था हो, जसकोउद्भव र विकास ती मानिसहरुमा हुन्छ, जो एउटाभूखण्डमा बस्ने एउटै जातिका हुन्छन्, जसको भाषा,धर्म, परम्परा, संस्कृति र स्वार्थहरु एकै प्रकारकाहुन्छन् र जसको राजनीतिक आदर्श पनि एउटै हुन्छ । राष्ट्रियता एउटा खास भूखण्डमा सुन्दर फूलको मालाझैं मालाकार रुपमा उपचयित भई बसेका मानिसहरुकोअनुरागात्मक ऊर्जा र संवेग पनि हो । यसका माध्यमबाट व्यक्तिले आफूलाई आफ्नो राष्ट्रको हृदयस“ंग साक्षात्कारगरी आफ्नो राष्ट्रप्रति श्रद्धा, स्नेह र प्रेमभाव प्रस्फुटित गरेको हुन्छ र आफ्नो पहिचानको अनुभूति समेतगर्दछ । यो एक प्रकारले आस्था र विश्वासको संगमसमेत हो जसले व्यक्तिलाई आफ्नो राष्ट्र, भाषा, धर्म, इतिहास, मूल्य, मान्यता र विश्वासस“ग जोड्ने पुलकोकार्य गरिरहेको हुन्छ । अर्को शब्दमा भन्ने हो भने राष्ट्रियता त्यस्तो सामूहिक भावना हो जसको आधारमाव्यक्तिले विभिन्न उपलव्धि र प्राप्ति हासिल गर्दै राष्ट्रको सांस्कृतिक, राजनीतिक मूल्यलाई समेत सर्वाेपरी ठानी चुल्ठीको फूलभैmं सजाएर राखेको हुन्छ । नेपालमा यो प्रकारको भावनाको प्रादुर्भाव राष्ट्रनिर्माता पृथ्वीनारायणशाहबाट नै भएको हो ।
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Books on the topic "एकल"

1

गोरखा मगरहरु (Gorakhā Magaraharū): विगतदेखि वर्तमानसम्म , ऐतिहासिक पृष्ठभूमिमा एक विश्लेषण - २०५४ vigatadekhi vartamānasamma, aitihāsika pr̥shṭhabhūmimā eka viśleshaṇa 2054. Kāṭhamāḍauṃ: Rāja Rānāmagara, 1997.

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2

Antarman Ke Kone Se: Ekal Kavya Dhara. Panchkula, Haryana, India,: The Indian Wordsmith, 2020.

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3

सफलता एक सोच . Yuvraj Industries, 2020.

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4

सफलता एक सोच . Yuvraj Industries, 2020.

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सफलता एक सोच . Yuvraj Industries, 2020.

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सफलता एक सोच . Yuvraj Industries, 2020.

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सफलता एक सोच . Yuvraj Industries, 2020.

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सफलता एक सोच . Yuvraj Industries, 2020.

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सफलता एक सोच . Yuvraj Industries, 2020.

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सफलता एक सोच . Yuvraj Industries, 2020.

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Book chapters on the topic "एकल"

1

Knapczyk, Kusum, and Peter Knapczyk. "एक प्रेम कहानी." In Reading Hindi: Novice to Intermediate, 173–78. Routledge, 2020. http://dx.doi.org/10.4324/9780429274091-37.

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2

Knapczyk, Kusum, and Peter Knapczyk. "एक आम की ख़ास कहानी." In Reading Hindi: Novice to Intermediate, 92–97. Routledge, 2020. http://dx.doi.org/10.4324/9780429274091-20.

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3

Singh, Pradeep. "स्वैच्छिक और गैर-सरकारी संगठन: एक परिचय." In सामाजिक सरोकार बनाम गैर-सरकारी संगठन:एक विमर्श, 36–66. MRI PUBLICATION PVT. LTD., 2016. http://dx.doi.org/10.21590/mripl.5.22.

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