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1

Acharya, Kusmila. "नेपालमा बोलिने भाषाहरूको परिचय." Interdisciplinary Research in Education 4, no. 2 (December 31, 2019): 215–30. http://dx.doi.org/10.3126/ire.v4i2.27937.

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Abstract:
प्रस्तुत लेख विश्वमा बोलिने भारोपेली, द्रविड, मलय पोलिनेसियन, ककेसियाली, अष्ट्रिक, जापानीकोरियाली, युराल–अल्ताइली, अमेरिकाली, चिनीयाँ–तिब्बती र अफ्रिकाली भाषापरिवार मध्ये नेपालमा बोलिने भारोपेली, द्रविड, अष्ट्रिक र चिनीयाँ–तिब्बतीभाषाहरूको अध्ययनमा केन्द्रित छ । संसारमा धेरै भाषा परिवारका भाषाहरू बोल्ने मत पाइए पनि अधिक भाषाशास्त्रीहरूको मतमा संसारमा १० वटा भाषापरिवारका भाषाहरू बोलिन्छन् । जसमध्ये नेपालको राष्ट्रिय जनगणना २०६८ अनुसार नेपालमा ४ वटा भाषापरिवार र एउटा एकल परिवारको भाषा गरी १२३ वटा भाषाहरू बोलिन्छन् । प्रस्तुत लेखमा नेपालमा बोलिने भाषा परिवारका भाषाहरूको २०५८ र २०६८ को जनगणना अनुसार तुलनात्मक अध्ययन गरिएको छ । यसमा उक्त १२३ भाषामध्ये चारवटा भाषामध्ये चारवटा भाषा परिवार र एउटा एकल भाषा परिवार अन्तर्गत वक्ता सङ्ख्याको बाहुल्यता भएका जम्मा ३० वटा भाषाको परिचय, प्रयोग क्षेत्र, वक्तासङ्ख्या र प्रतिशतका बारेमा चर्चा गरिएको छ । यसका लागि राष्ट्रिय जनगणना २०६८ का तथ्याङ्कलाई मुख्य आधार मानिएको छ । यस लेखले अब हुने नेपालको बाह्रौं राष्ट्रिय जनगणना २०७८ मा भाषिक गणनालाई व्यवस्थित बनाउनुपर्ने कुराप्रति सङ्केत पनि गरेको छ ।
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2

गुर्वेन्द्र, गायत्री, and अमृत गुर्वेन्द. "घरेलु महिलाओं के उच्च रक्तचाप स्तर पर योगाभ्यास के प्रभाव का अध्ययन." Dev Sanskriti Interdisciplinary International Journal 12 (July 31, 2018): 63–66. http://dx.doi.org/10.36018/dsiij.v12i0.107.

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Abstract:
प्रस्तुत शोधका मुख्य उद्देश्य ‘घरेलु महिलाओं के उच्चरक्तचाप स्तर पर योगाभ्यास के प्रभाव का अध्ययन’ है। इस शोध अध्ययनमें ‘पूर्व-पश्चात् परीक्षण एकल समूह’ शोध अभिकल्प का प्रयोग किया गया। आकस्मिक प्रतिचयन विधि द्वारा हरिद्वार (उत्तराखण्ड) क्षेत्र से30-40आयु वर्ग की 26 महिलाओं का चयन किया गया। उच्चरक्तचाप स्तर को मापने के लिए ‘स्फेग्मोमेनोमीटर व स्टेथेस्कोप’ का प्रयोग किया गया। प्रयोज्यों को एक माह तक प्रतिदिन 60 मिनट तक निर्धारित योगाभ्यास समूह का अभ्यास कराया गया। प्राप्त आंकड़ों का सांख्यिकीय विश्लेषण ‘टी-परीक्षण’ द्वारा किया तथा ‘टी’ का मान 0.01 स्तर पर सार्थक पाया गया जिससे यह निष्कर्श निकलता है कि घरेलु महिलाओं के उच्चरक्तचाप स्तर पर योगाभ्यास का सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
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3

सिंह, योगेन्द्र, and अमल के, दत्ता. "दृष्टिवैषम्य पर योगाभ्यास के प्रभाव का अध्ययन." Dev Sanskriti Interdisciplinary International Journal 5 (January 15, 2015): 31–35. http://dx.doi.org/10.36018/dsiij.v5i0.53.

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Abstract:
प्रस्तुत शोध का उद्देश्य कुछ चयनित यौगिक क्रियाओं का दृष्टिवैषम्य पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए 20-35 आयु वर्ग के उ0प्र0 के फिरोजाबाद जिले से आकास्मिक प्रतिचयन विधि द्वारा 20 पुरूष प्रयोज्यों का चयन किया गया। चयनित प्रयोज्यों में दृष्टिवैषम्य को जाँंचने के लिए कैरेटोमीटर नामक उपकरण का प्रयोग किया गया। यह उपकरण आँख में उपस्थित काॅर्निया के कर्वेचर का मापन करता है। 90 दिनों तक प्रतिदिन 1 घण्टा 30 मिनट जल नेति, सूत्रनेति, चक्षु संयम, प्राणायाम एवं मुद्रा एक यौगिक पैकेज के रूप में दिए गये। इस शोध में ’पूर्व-पश्चात् परीक्षण एकल समूह’ शोध अभिकल्प का प्रयोग किया गया एवं प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण पेयर्ड टी-टेस्ट द्वारा किया गया। सांख्यिकीय विश्लेषण से प्राप्त टी का मान 0.01 स्तर पर सार्थक पाया गया है जिससे यह निष्कर्ष निकलता है कि यौगिक अभ्यास से दृष्टिवैषम्यता कम होती है।
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4

Bobde, Sarita. "STUDY OF CONTRIBUTION TO ENVIRONMENTAL PROTECTION OF RURAL RURAL DEVELOPMENT." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 3, no. 9SE (September 30, 2015): 1–3. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v3.i9se.2015.3252.

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Abstract:
Human life is influenced by environment. Healthy and clean environment are the basis of human life. So Pryavarncasnrkshnpratyeknagrikkaktrtwy Hakprashut Preritkiyajatahanksururgaupakrnonkanirmankrunkagrelu Avanwyavsayikupyogkrna, Pratisnrkshnatmkprvritikavicaskrayajatahankis study Pricitkrwakrpryavarnsnrkshn organic Ketikrna, Avanpryavarnpradusncaswathe Prpdnewaleprbavon to Pratijagrukkrsmajmencarykrne a Smajasevisnstha Dwaraapanemahilaprsikshnarthioncopryavarnsnrkshn single study done by Rupmenbahy inspection, Sacshatkaranusuchi, Avloknanusuchikapryogkiagyakprduttoncasnklnvisyvshubisleshnvidhi the Menupakrn and by external inspection The presentations were systematically interpreted qualitatively, interviews were discussed. The results showed that the Barli Institute is peaceful, clean, pollution-free, geophysical and environmental, conditions, green and open, clean environmental environment, environmental protection, environmental protection, environmental protection, environmental protection in the environment. मनुष्य का जीवन पर्यावरण से प्रभावितहोताहै।स्वस्थ एवंस्वच्छपर्यावरणमानव जीवन काआधारहैं । इसीलिए पर्यावरणकासंरक्षणप्रत्येकनागरिककाकत्र्तव्य है।प्रस्तुत एकल अध्ययन में एक समाजसेवीसंस्था द्वाराअपनेमहिलाप्रषिक्षणार्थियोंकोपर्यावरणसंरक्षण के प्रतिजागरूककरसमाजमेंकार्यकरने के लिए प्रेरितकियाजाताहैं।सौरऊर्जाउपकरणोंकानिर्माणकरउनकाघरेलू एवंव्यावसायिकउपयोगकरना , जैविक खेतीकरना, एवंपर्यावरणप्रदूषणकास्वाथ्य परपडनेवालेप्रभावों से परिचितकरवाकरपर्यावरणसंरक्षण के प्रतिसंरक्षणात्मकप्रवृतिकाविकासकरायाजाताहैं।इस अध्ययन मेंउपकरण के रूपमेंबाह्य निरिक्षण, साक्षात्कारअनुसूची, अवलोकनअनुसूचीकाप्रयोगकियागया।प्रदत्तोंकासंकलनविषयवस्तुविश्लेषणविधि द्वारा किया गया एवं बाह्य निरिक्षण द्वारा प्राप्त प्रदत्तों को व्यवस्थित कर गुणात्मक रूप से व्याख्या की गयी, साक्षात्कार की विवेचना की गयी। परिणामों से ज्ञात हुआ कि बरलीसंस्थान षांत, स्वच्छ, प्रदूषणरहितभौगोलिक एवंपर्यावरणीय, स्थितिहै ,हरियाली एवं खुलास्वच्छपर्यावरणीय वातावरणमहिलाप्रषिक्षणार्थीयोंमेंपर्यावरणसंरक्षण के प्रतिसंरक्षणात्मकप्रवृत्तिकाविकासकरप्रषिक्षणाथियोंमेंपर्यावरणसंरक्षणकाप्रायोगिकअनुभवप्रदानकरतीहंै।
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5

चक्रधारी, केवल राम, and विजय कुमार सिंह. "यौगिक अभ्यासों का दृश्टिहीन विद्यार्थियों के भावनात्मक बुद्धिमत्ता स्तर पर प्रभाव." Dev Sanskriti Interdisciplinary International Journal 8 (July 31, 2016): 30–35. http://dx.doi.org/10.36018/dsiij.v8i0.85.

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Abstract:
प्रस्तुत षोध अध्ययन में यौगिक अभ्यासों का दृश्टिहीन विद्यार्थियों के भावनात्मक बुद्धिमत्ता स्तर पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन किया गया। इस षोध की पूर्ति के लिए छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले के दृश्टि एवं श्रवण बाधित विद्यालय से उद्देष्यपूर्ण प्रतिचयन विधि द्वारा 30 दृश्टिहीन विद्यार्थियों का चयन किया गया। प्रयोज्यो को 3 महीनो तक प्रतिदिन 50 मिनट प्रज्ञायोग व्यायाम, नाड़ीषोधन प्राणायाम, ओ३म् उच्चारण एवं नादयोग साधना का अभ्यास कराया गया। भावनात्मक बुद्धिमत्ता स्तर को मापने के लिए ए. के. सिंह एवं श्रुति नारायन द्वारा निर्मित‘ भावनात्मक बुद्धिमत्ता स्केल‘ का प्रयोग किया गया। इस षोध में ‘एकल समूह पूर्व-पष्चात् परीक्षण षोध अभिकल्प‘ का प्रयोग किया गया। प्राप्त आंकड़ों का विष्लेशण टी-टेस्ट सांख्यिकीय विधि द्वारा किया गया। सांख्यिकीय विष्लेशण से प्राप्त ष्जष् का मान 0.01 स्तर पर सार्थक पाया गया। परिणाम यह प्रदर्षित करता है कि यौगिक अभ्यास से दृश्टिहीन विद्यार्थियों के भावनात्मक बुद्धिमत्ता स्तर में वृद्धि हुई। इससे यह निश्कर्श निकलता है कि यौगिक अभ्यासों का दृश्टिहीन विद्यार्थियों की भावनात्मक बुद्धिमत्ता स्तर पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
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6

Tambe, Tina. "NEW EXPERIMENTS IN CLASSICAL DANCES." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 3, no. 1SE (January 31, 2015): 1–3. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v3.i1se.2015.3427.

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Abstract:
Change is the law of life. No element existing in nature has remained untouched by this process. Living, eating, eating, ethics, beliefs, mentality, moral values ​​etc. and change is visible in every area of ​​social and cultural landscape. Natural changes are occurring naturally but in many other areas, these changes arise as a result of the creative tendency of humans, the main one being the "arts" field. Creating is the natural quality of human being and the pursuit of newness is its basic tendency. When this trend is used with dexterity, work skills, talent and beauty, we create a new and beautiful panoramic cover for creation, then we call it art. One of the Panchakalas under the Fine Arts is Sangeet Kala and one of the arts under the Sangeet is dance art. In Indian culture, dance has been considered as the medium of worship of God, it originated from God and its basis is believed to be religion and spirituality. The dance in the "Natya Veda", formed as the fifth Veda after taking into account the major elements of the four Vedas, attained a systematic, scriptural and normative form and it was from here that the rich tradition of classical dances began. Classical dances have been single-use since the beginning, they were used for worshiping God in temples and today in modern society, these dances have appeared in front of new observers on social theater with a new vision and new form. In these migrations from ancient times to modern times, these dances saw many ups and downs and changes and they had to wear many new clothes to appear in front of new viewers in new circumstances. This is an attempt to shed some light on this migration of new creation, new experiments and new trends of classical dances. परिवर्तन प्रकृति का नियम है। प्रकृति में विद्यमान कोई भी तत्व इस प्रक्रिया से अछूता नहीं रह पाया है। रहन-सहन, खान-पान, आचार-विचार, मान्यताए, मानसिकता, नैतिक मूल्य आदि तथा सामाजिक व सांस्कृतिक परिदृश्य के प्रत्येक क्षेत्र में परिवर्तन दृश्यमान है। प्राकृतिक परिवर्तन तो नैसर्गिक रूप से होते रहते है परंतु अन्य कई क्षेत्रों में यह परिवर्तन मानव की सृजनात्मक प्रवृत्ति के फलस्वरूप उत्पन्न होते है जिसमें प्रमुख है “कला” क्षेत्र। सृजन करना मानव का नैसर्गिक गुण है तथा नवीनता की खोज उसकी मूल प्रवृत्ति। यही प्रवृत्ति जब निपुणता, कार्य कौशल, प्रतिभा व सौन्दर्यबोध से प्रयुक्त होकर सृजन को नित-नवीन नयनाभिराम आवरण पहनाती है तब उसे हम कला कहते है। ललित कलाओं के अंतर्गत आने वाली पंचकलाओं में से एक है संगीत कला तथा संगीत कला के अंतर्गत आने वाली कलाओं में से एक है नृत्य कला। भारतीय संस्कृति में नृत्य को ईश्वर की उपासना का माध्यम समझा गया है, यह ईश्वर से ही उत्पन्न हुआ है व इसका आधार धर्म व आध्यात्म ही माना गया है। चार वेदों के प्रमुख तत्वों को ग्रहण कर पंचम वेद के रूप में निर्मित “नाट्य वेद” में नृत्य को व्यवस्थित, शास्त्रोक्त व नियमबद्ध स्वरूप प्राप्त हुआ तथा यहीं से शास्त्रीय नृत्यों की समृद्ध परंपरा का आरंभ हुआ। शास्त्रीय नृत्य आरंभ से ही एकल प्रयोज्य रहे है, इनका प्रयोग मंदिरों में ईश्वर उपासना हेतु हुआ तथा आज आधुनिक समाज में ये नृत्य एक नयी दृष्टि व नवीन स्वरूप के साथ सामाजिक रंगमंच पर नए प्रेक्षकों के समक्ष उपस्थित हुये है। प्राचीन काल से आधुनिक काल के इस प्रवास में इन नृत्यों ने अनेक उतार चढाव व बदलाव देखे तथा समयानुरूप नवीन परिस्थितियों में नए दर्शको के समक्ष अवतरित होने हेतु इन्हें अनेक नवीन कलेवर धारण करने पडे। शास्त्रीय नृत्यों के नवीन सृजन, नवीन प्रयोग व नवीन प्रवृत्तियों के इस प्रवास पर कुछ प्रकाश डालने का यह एक प्रयास है।
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Thakur, Harshvardhan, and Rupashree Dubey. "HISTORY OF INNOVATION IN THE PRESENTATION OF SITAR (WITH REFERENCE TO ETAWAH AND MAIHAR GHARANA)." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 3, no. 1SE (January 31, 2015): 1–3. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v3.i1se.2015.3477.

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Abstract:
Various Vedic period music texts such as Rigveda, Samveda, Shakhayana Brahmin, Shatapatha Brahmin etc. Apart from Ramayana, Mahabharata, the Lankar Purana tradition and the Natasha language of Bharata and Abhinav Bharati, Sangeet Ratnakar etc. Get a description of. Later, in the texts of music Damadar, Aine Akbari, Raga Vibandh, Sangeet Parijat, Radhagavind Sangeet Saar etc., four types of instruments are also found in the medieval and 19th century texts. It is noteworthy that the mention of veena is found in the above texts, from which it can be said that since ancient times the veena instrument has played an important place in Indian music. The proof of the consistency of singing till the middle ages in India is evident based on the material presented in the texts like Sangeet Ratnakar, Chaturdandi Prakasika, Sangeet Parijat etc. Even after following the vocals, they have maintained their separate independent existence in instrumental playing. This is the reason that the practice of free speech started taking shape in the instruments of the 18th century Vichitra Veena, Rudra Veena, Sur-Bahar, Sursingar, Sitar etc. Later, the sitar defeated all the instruments and gained a prominent position and earned an immense reputation as a soloist playing solo. In these years of travel, not only the ancient form of the sitar instrument has changed, but its speech has also seen substantial changes. विभिन्न वैदिक कालीन संगीत ग्रंथ¨ं यथा ऋग्वेद, सामवेद, षाखायण ब्राह्मण, षतपथ ब्राह्मण आदि के अलावा रामायण, महाभारत से ल्¨कर पुराण परंपरा तथा भरत के नाट््य षाó एवं अभिनव भारती, संगीत रत्नाकर आदि समस्त ग्रंथ¨ं में तंत्र्ाी वाद्य¨ं का वर्णन मिलता है। आगे चलकर संगीत दाम¨दर, आइने अकबरी, राग विब¨ध, संगीत पारिजात, राधाग¨विंद संगीत सार आदि, मध्यकालीन एवं 19वीं षती के ग्रंथ¨ं में भी चार प्रकार के वाद्य¨ं का वर्णन मिलता है। उल्ल्¨खनीय है कि उपर¨क्त ग्रंथ¨ं में वीणा का उल्ल्¨ख पाया जाता है जिससे यह कहा जा सकता है कि प्राचीनकाल से ही वीणा वाद्य का भारतीय संगीत में महत्वपूर्ण स्थान रहा है। भारत वर्ष में मध्य युग तक गायन की संगति का प्रमाण संगीत रत्नाकर, चतुर्दण्डी प्रकाषिका, संगीत पारिजात आदि ग्रंथ¨ं में प्रस्तुत सामग्री के आधार पर स्पष्ट ह¨ जाता है। कंठ का अनुगमन करने के बाद भी वाद्य वादन में अपना अलग स्वतंत्र्ा अस्तित्व भी बनाये रखा है। यही कारण है कि 18वीं षताब्दी की विचित्र्ा वीणा, रुद्र वीणा, सुर-बहार, सुरसिंगार, सितार आदि वाद्य¨ं में स्वतंत्र्ा वादन की प्रथा अपना आकार ल्¨ने लगी। आगे चलकर सभी वाद्य¨ं क¨ पछाड़ते हुए सितार ने एक प्रमुख स्थान प्राप्त किया अ©र एकल वादन में बजाए जाने वाल्¨ वाद्य के रूप में अपार प्रतिष्ठा अर्जित की। इन द¨ स© वषर्¨ं की यात्र्ाा में सितार वाद्य का ना केवल प्राचीन स्वरूप ही बदला वरन उसकी वादन ष्©ली में भी पर्याप्त रूप से परिवर्तन दृष्टिग¨चर ह¨ते हैं।
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पोखरेल Pokhrel, शोभा Shova. "जुद्धशमशेरको इतिहास र देवकोटाको योगदान Juddhashamsherko Itihas ra Devkotako yogdan." Historical Journal 11, no. 1 (August 1, 2020): 77–83. http://dx.doi.org/10.3126/hj.v11i1.34679.

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Abstract:
प्रस्तुत लेखमा एउटा राजनीति व्यक्ति र अर्को साहित्यिक व्यक्तिको चर्चा गरिएको छ । राजनीतिक व्यक्तिमात्यस्तो व्यक्तिको चर्चा गरिएको छ जसको नामसँगै एकतन्त्रीय राणाशासनको अवसान जोडिएको छ । यिनकै समयमानेपालले ठूलो भूकम्पको सामना गर्नु प¥यो । चन्द्रशमशेरका पालमा राणाहरू ए, बि र सि क्लासमा बाँडिए जुद्धशमशेरकापालमा तिनै सि क्लासका राणाले जनतालाई साथ दिएर नेपालमा प्रजातन्त्र ल्याउन सजिलो भयो । नेपालका गौडा–गोश्वाराका विभिन्न विभागमा धेरै रकम बाँकी बक्यौता चलिरहेका थिए यसमा यिनले आम माफी दिए । एकतन्त्रीयनिरंकुश राणाशासन कालका एकजना शासक श्री ३ महाराज जुद्धशमशेरको इतिहास उजागर हुँदैछ भने साहित्यिकव्यक्तिमा नेपाली साहित्यका महाकवि नेपालका एक महान् विभूति, एक बेजोड स्रष्टा, एक करुण महामानव लक्ष्मीप्रसाददेवकोटा जसले नेपाली साहित्यमा पहिलो मौलिक महाकाव्य लेखे, एकै दिनमा खण्डकाव्य लेखे, दश दिनमा महाकाव्यलेखे उनै विभूतिको बारेमा यस लेखमा चर्चा गरिएको छ ।
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पौडेल Poudel, बिष्णु Bishnu प्रसाद Prasad. "अनेक रस र एक मूल रस सम्बन्धी मान्यताको अनुशीलन (Anek Ras ra Aek Mul Ras Sambandhi Manyatako Anushilan)." Janapriya Journal of Interdisciplinary Studies 2 (August 17, 2017): 110–21. http://dx.doi.org/10.3126/jjis.v2i1.18074.

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Abstract:
संस्कृत काव्यशास्त्रमा रस सिद्धान्त प्राचीन, अपेक्षाकृत व्यापक वा संश्लेषणकारीर बहुमान्य सिद्धान्त मानिन्छ । यसलाई सुरुमा नाटक केन्द्री बनाई भावमूलक कलात्मक स्थिति वा वस्तुपरक दृष्टिकोणका रूपमा र पछि समग्र साहित्य केन्द्री बनाई आत्मस्थ आस्वाद वा आत्मपरक दृष्टिकोणका रूपमा व्याख्या गर्ने काम भएको छ । वस्तुपरक व्याख्याले यसका भेद वा सङ्ख्यालाई पनि सङ्केत गर्ने भए पनि आत्मपरक व्याख्याले सामान्यतः त्यसको अखण्ड स्वरूपलाई सङ्केत गर्दछ । तर आत्मास्वाद बनेको रस पनि भावमा आधारित हुने र भावहरूको अनेकताका कारण बाह्य रूपमा त्यो अनेक पनि हुने ठानिन्छ । त्यसैले संस्कृत काव्यशास्त्रमा सुरुमा अनेक रसको चर्चा र केही समयपछि अनेक तथा एक मूल रसको कल्पना गरिएको छ । एउटै व्यक्ति (भोज) ले रसका अत्यधिक सङ्ख्या र एकै मूल रसको कल्पना पनि गरेको भेटिन्छ । यस्ता अनेक रसवादीमध्ये अधिकांशले मूलतः नवरसलाई नै महत्त्व दिएका छन् भने एक मूल रसवादीहरूले नवरसमध्येकै (कण, शान्त, शृङ्गार र अद्भुतमध्ये कुनै एउटालाई मूल र अरूलाई त्यर्सैबाट उत्पन्न रस मानेका छन् । यही सन्दर्भलाई यहा“ क्रमशः चर्चा गर्दै तिनको समकालीन साहित्यप्रतिको प्रासङ्गिकता पनि आकलन गर्न खोजिएको छ । Janapriya Journal of Interdisciplinary Studies Vol. 2, No.1 (December 2013), page: 110-121
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बराल Baral, ठाकुर Thakur प्रसाद Prasad. "राष्ट्रिय एकताका प्रतीक पृथ्वीनारायण शाह Rashtriya Ekataka Pratik Prithivi Narayan Shaha." Unity Journal 1 (February 2, 2020): 179–84. http://dx.doi.org/10.3126/unityj.v1i0.35999.

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Abstract:
राष्ट्र शरीर हो भने त्यस देशका नागरिक प्राण हुन्र राष्ट्रियता भावनात्मक शक्ति र आस्था हो, जसकोउद्भव र विकास ती मानिसहरुमा हुन्छ, जो एउटाभूखण्डमा बस्ने एउटै जातिका हुन्छन्, जसको भाषा,धर्म, परम्परा, संस्कृति र स्वार्थहरु एकै प्रकारकाहुन्छन् र जसको राजनीतिक आदर्श पनि एउटै हुन्छ । राष्ट्रियता एउटा खास भूखण्डमा सुन्दर फूलको मालाझैं मालाकार रुपमा उपचयित भई बसेका मानिसहरुकोअनुरागात्मक ऊर्जा र संवेग पनि हो । यसका माध्यमबाट व्यक्तिले आफूलाई आफ्नो राष्ट्रको हृदयस“ंग साक्षात्कारगरी आफ्नो राष्ट्रप्रति श्रद्धा, स्नेह र प्रेमभाव प्रस्फुटित गरेको हुन्छ र आफ्नो पहिचानको अनुभूति समेतगर्दछ । यो एक प्रकारले आस्था र विश्वासको संगमसमेत हो जसले व्यक्तिलाई आफ्नो राष्ट्र, भाषा, धर्म, इतिहास, मूल्य, मान्यता र विश्वासस“ग जोड्ने पुलकोकार्य गरिरहेको हुन्छ । अर्को शब्दमा भन्ने हो भने राष्ट्रियता त्यस्तो सामूहिक भावना हो जसको आधारमाव्यक्तिले विभिन्न उपलव्धि र प्राप्ति हासिल गर्दै राष्ट्रको सांस्कृतिक, राजनीतिक मूल्यलाई समेत सर्वाेपरी ठानी चुल्ठीको फूलभैmं सजाएर राखेको हुन्छ । नेपालमा यो प्रकारको भावनाको प्रादुर्भाव राष्ट्रनिर्माता पृथ्वीनारायणशाहबाट नै भएको हो ।
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Shakya, Purna Laxmi. "गुँलाधर्म एक परिचय." Historical Journal 12, no. 1 (December 31, 2020): 164–74. http://dx.doi.org/10.3126/hj.v12i1.35635.

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Abstract:
काठमाडौँ उपत्यकामा महायान बुद्धधर्मको बाहुल्यता रहेको छ । यहाँ नेवार समुदायको बसोवास आदिकालदेखिरहेको देखिन्छ । त्यसैले यिनीहरू महायान बुद्धधर्मका अनुयायीहरू हुन् । यी नेवार समुदायले वर्ष दिनमा थुप्रैजात्रा पर्वहरू मनाउने गर्दछन् । यसमध्ये चन्द्रमास अनुसारको गुँला महिनामा एक महिना भरि पर्वको रूपमागुँलाधर्म अभ्यास गर्ने गर्दछन् । यो महिना वर्षा वाढी पहिरो जस्ता प्राकृतिक प्रकोप र रोग व्याधि पैmलने महिनाहो । त्यसैले यस्तो सम्भावित आपद विपदबाट जोगिन सकियोस्, सबैको मङ्गल होस् भन्ने कामना गरी धर्मकर्मअभ्यास गरेको देखिन्छ । यसको साथसाथै यो महिनामा मानिसहरूले दश अकुशल कर्म त्याग गरी कुशल र शुद्धजीवन विताउने अभ्यास गर्दछन् ।
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Saraswat, Vimal Kumar. "वायुमण्डलीय विद्युत : एक अध्ययन." RIVISTA 1, no. 1 (July 30, 2017): 51–56. http://dx.doi.org/10.26476/rivista.2017.01.51-56.

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निधि, करूणा. "साहित्यिक कृति: एक भाषिक अभिव्यक्ति." Dev Sanskriti Interdisciplinary International Journal 2 (July 31, 2013): 08–13. http://dx.doi.org/10.36018/dsiij.v2i0.16.

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प्रस्तुत आलेख में साहित्य और भाषा की अभिन्नता को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से प्रकट करने का प्रयास किया गया है। इसमें साहित्य को लेकर भाषावैज्ञानिक और भाषा को लेकर साहित्यकारों की विश्लेषणात्मक दृष्टि की सामंजस्यता पर विचार किया गया है, जो आज दो विरोधी धाराओं से बिल्कुल अलग है। इसका कारण इन दोनों के मध्य एक वैज्ञानिक विश्लेषणात्मक प्रणाली की उपलब्धता कही जा सकती है, जो प्राचीन होते हुए भी आज की साहित्यिक आलोचना पद्धति के लिए सर्वथा नवीन उपकरण है, जिसे ‘शैलीविज्ञान’ के नाम से जाना जाता है। इसलिए यहाँ विश्लेषणात्मक प्रविधि को अपनाते हुए भाषा, साहित्य और शैली तीनों के अभिन्नात्मक स्वरूप को बतलाया गया है। आज भाषा का प्रौद्योगिकी के साथ संबंध होने के कारण प्राकृतिक भाषा संसाधन के रूप में भाषा संबंधी शोध, अध्ययन और विश्लेषण के नए आयाम लिए हुए हैं, जिसमें एक क्षेत्र शैलीविज्ञान का भी है। इसके सिद्धांतों और उपकरणों का प्रयोग कर इस क्षेत्र में कंप्यूटर ग्राह्य आदि अनेक नियमों को निरूपित कर शैली-अभिज्ञानकों और शैली-विश्लेषकों का निर्माण किया जा सकता है, जो पाठ विश्लेषण की प्रक्रिया में उपयोगी साबित हो सकते हैं, जो अपनी प्राचीनता में भी नवीनता को समाहित किए हुए है।
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महत, कमल बहादुर. "नेपाली सेनामा समावेशिता: एक विश्लेषण." Unity Journal 2 (August 3, 2021): 288–302. http://dx.doi.org/10.3126/unityj.v2i0.38838.

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Abstract:
आधुनिक नेपालको सबैभन्दा पुरानो संस्थाको ऐतिहासिक विरासत बोकेको नेपाली सेनाले यसको स्थापनाकाल देखि नै समावेशिताको नीतिलाई अख्तियार गरेको पाइन्छ । नेपाली सेनामा विभिन्न जातीयसमूहहरु मगर, गुरुङ, तामाङ, किराती/ लिम्बू र मधेशी समुदायहरुका बटालियनहरु नेपाली राज्यले आरक्षण कोप्रावधान सुरु गर्नुभन्दा दशकौं अघिबाट अस्तित्वमा थियो । यसले नेपाली सेनाको चरित्र स्थापना कालदेखि नै समावेशी थियो भन्ने देखाउँछ । २०७२ साल मा जारी नेपालको संविधानले आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक र प्रशासनिक दृष्टिले पछाडि परेका विभिन्न लक्षित वर्गहरुलाई समानुपातिक समावेशी सिद्धान्तका आधारमा राज्यको निकायमा सहभागिता हुन पाउने हकलाई मौलिक हकको रुपमा व्यवस्था गरेको छ । त्यसै अनुरुप नेपाली सेनाले पनि आफ्नो समावेशिताको मौलिक चरित्रलाई कायम राख्दै अझै समावेशी हुने तिर पाइला चालिरहेको पाइन्छ । सैनिक सेवा नियमावली, २०६९ ले खुल्ला प्रतियोगिता द्वारा नेपाली सेनामा पदपूर्ति हुने पदहरुको पैंतालिस प्रतिशत पदसंख्या समावेशीकरणका लागि छुट्याई सो संख्यालाई शत प्रतिशत मानी महिला, आदिवासी/जनजाति, मधेशी, दलित र पिछडिएको क्षेत्रका उम्मेदवारहरु बिचक्रमश: बिस, बत्तिस, अट्ठाइस, पन्ध्र र पॉच प्रतिशत छुट्याएर ती समूह/समुदायका उम्मेदवारहरु बिच मात्र प्रतिस्पर्धा गर्ने प्रावधान लागू गरी नेपाली सेनामा पनि आरक्षण मार्फत् प्रतिनिधित्व बढाउने प्रयास गरिएकोछ । २०६२/०६३ को राजनैतिक परिवर्तनपछि राज्यका अन्य अङ्गहरुमा झै नेपाली सेनामा पनि समावेशी गर्नुपर्ने प्रावधानहरुले गति पायो । समावेशीकरणको नीति नेपाली राज्यका अन्य अङ्गहरु झैं नेपाली सेनाले पनि अङ्गीकार गर्दा त्यसका राम्रा र नराम्रा असरहरु नेपाली सेनाले पनि भोगिरहेको छ । द्धितीयक स्रोतका तथ्याकंहरुको विश्लेषणका आधारमा नेपाली सेनामा समावेशिताको विगतदेखि हालसम्मको अवस्था विश्लेषण गर्दे आगामी दिनमा पनि नेपाली सेनालेआफ्नो समावेशी चरित्र मार्फत् नेपाल राष्ट्र/राज्यको सार्वभौमसत्ता, अखण्डतालाई कसरी जोगाई राख्न सक्छ भन्ने विश्लेषण यो लेखमा समेटिएको छ ।
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सिंह, रवीन्द्र. "यज्ञ: एक ऐतिहासिक एवं वैज्ञानिक दृष्टि." Interdisciplinary Journal of Yagya Research 1, no. 2 (October 31, 2018): 15–21. http://dx.doi.org/10.36018/ijyr.v1i2.11.

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Abstract:
मानव की शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शान्ति के लिए प्राचीन ऋषि-मुनियों ने अनेक विधानों की व्यवस्था की थी, जिनका पालन करते हुए मानव अपनी आत्मशुद्धि, आत्मबल-वृद्धि और आरोग्य की रक्षा कर सकता है, इन्हीं विधि-विधानों में से एक है यज्ञ। वैदिक विधान से हवन, पूजन, मंत्रोच्चारण से युक्त, लोकहित के विचार से की गई पूजा को ही यज्ञ कहते हैं। यज्ञ मनुष्य तथा देवताओं के बीच सम्बन्ध स्थापित करने वाला माध्यम है। अग्नि देव की स्तुति के साथ ऋग्वेद का प्रारम्भ भारतवर्ष में यज्ञ का प्राचीनतम ऐतिहासिक-साहित्यिक साक्ष्य है। वहीं सिन्धु घाटी की सभ्यता के कालीबंगा, लोथल, बनावली एवं राखीगढ़ी के उत्खननों से प्राप्त अग्निवेदियाँ इसका पुरातात्त्विक प्रमाण है। यज्ञ तत्वदर्शन- उदारता, पवित्रता और सहकारिता की त्रिवेणी पर केन्द्रित है। यही तीन तथ्य ऐसे हैं, जो इस विश्व को सुखद, सुन्दर और समुन्नत बनाते हैं। ग्रह नक्षत्र पारस्परिक आकर्षण में बैठे हुए ही नहीं है, बल्कि एक-दूसरे का महत्वपूर्ण आदान-प्रदान भी करते रहते हैं। परमाणु और जीवाणु जगत भी इन्हीं सिद्धांतों के सहारे अपनी गतिविधियाँ सुनियोजित रीति से चला रहा है। सृष्टि संरचना, गतिशीलता और सुव्यवस्था में संतुलन इकोलॉजी का सिद्धांत ही सर्वत्र काम करता हुआ दिखाई पड़ता है। हरियाली से प्राणि पशु निर्वाह, प्राणि शरीर से खाद का उत्पादन, खाद उत्पादन से पृथ्वी को खाद और खाद से हरियाली। यह सहकारिता चक्र घूमने से ही जीवनधारियों की शरीर यात्रा चल रही है। समुद्र से बादल, बादलों से भूमि में आर्द्रता, आर्द्रता से नदियों का प्रवाह, नदियों से समुद्र की क्षतिपूर्ति - यह जल चक्र धरती और वरूण का सम्पर्क बनाता और प्राणियों के निर्वहन के लिए उपयुक्त परिस्थितियाँ उत्पन्न करता है। शरीर के अवयव एक दूसरे की सहायता करके जीवन चक्र को घूमाते हैं। यह यज्ञीय परम्परा है, जिसके कारण जड़ और चेतन वर्ग के दोनों ही पक्ष अपना सुव्यवस्थित रूप बनाए हुए हैं।
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पोखरेल Pokharel, निर्मला Nirmala. "दशमहाविद्या एक परिचय Dashamhabiddhya Ek Parichaya." Nepalese Culture 13 (December 2, 2019): 43–56. http://dx.doi.org/10.3126/nc.v13i0.27500.

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Abstract:
नेपाली समाजको धार्मिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक परंपरामा वैदिक मूल्य, मान्यता र आदर्शको जति नै प्रभाव तान्त्रिक मूल्य मान्यता र आदर्शको पनि रहेको छ । यहाँ नैगमिक(वैदिक) र आगमिक(तान्त्रिक) दुवै परंपराको समन्वय भेटिन्छ । सुक्ष्मरुपमा विचार गर्दा नेपाली समाजमा तन्त्र एवं तन्त्रवादको अझ वढि प्रभाव रहेको पाईन्छ । यहाँका धार्मिक एवं सामाजिक परंपरा र रीतिरिवाजहरु आगम वा तन्त्रबाट नै बढि निर्देशित रहेका छन् । यसै परिप्रेक्षमा शाक्ततन्त्र परंपरा यहाँको प्रमुख तन्त्र परंपरामा पर्दछ । सम्पूर्ण विश्वब्रह्माण्डको परमकारणका रुपमा शक्ति अर्थात मातृदेवीलाई मानी तदनुरुप उपासना पद्धतिहरु प्रतिपादन गरिएका तन्त्रहरु शाक्ततन्त्र अन्तर्गत पर्दछन ।देवताहरुको सर्वाेच्च देवत्व शक्तिमा नै निहित भएको मानिन्छ । शिव, विष्णु लगायत अरु देवता पनि शक्तिको उपस्थिति विना क्रियाशील हुन सक्दैनन् । शक्तिले देवीदेवता र प्राणीलाई जन्म दिई शक्तिको संचार गर्ने हुनाले उनलाई स्त्रीरुपमा कल्पना गरिन्छ र आमाको स्थान दिईन्छ । शक्ति सर्वव्यापी तत्व हो र उनी व्रम्हा, बिष्णु, शिव आदिकी शक्ति भएकीले ती विश्वशक्तिको नाम भगवती पनि रहनगयो । प्राचीन समय देखि अस्तित्वमा रहेका शक्तिस्वरुपिणी देवीहरुलाई राजा गुणकामदेव (एघारौ शताव्दि)ले पुन ः प्रशिद्ध वनाएको पाईन्छ । यस्ता देवीका विभिन्न स्वरुपको उपासना गर्ने क्रममा दशमहाविद्यारुपी देवीहरुको पूजा उपासना गर्ने परंपराको व्यापकता नेपालमा मध्यकालदेखि विषेशरुपमा रहेको पाईन्छ ।
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पोखरेल Pokharel, निर्मला Nirmala. "दशमहाविद्या एक परिचय Dashamhabiddhya Ek Parichaya." Nepalese Culture 8 (December 2, 2019): 43–56. http://dx.doi.org/10.3126/nc.v8i0.27500.

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Abstract:
नेपाली समाजको धार्मिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक परंपरामा वैदिक मूल्य, मान्यता र आदर्शको जति नै प्रभाव तान्त्रिक मूल्य मान्यता र आदर्शको पनि रहेको छ । यहाँ नैगमिक(वैदिक) र आगमिक(तान्त्रिक) दुवै परंपराको समन्वय भेटिन्छ । सुक्ष्मरुपमा विचार गर्दा नेपाली समाजमा तन्त्र एवं तन्त्रवादको अझ वढि प्रभाव रहेको पाईन्छ । यहाँका धार्मिक एवं सामाजिक परंपरा र रीतिरिवाजहरु आगम वा तन्त्रबाट नै बढि निर्देशित रहेका छन् । यसै परिप्रेक्षमा शाक्ततन्त्र परंपरा यहाँको प्रमुख तन्त्र परंपरामा पर्दछ । सम्पूर्ण विश्वब्रह्माण्डको परमकारणका रुपमा शक्ति अर्थात मातृदेवीलाई मानी तदनुरुप उपासना पद्धतिहरु प्रतिपादन गरिएका तन्त्रहरु शाक्ततन्त्र अन्तर्गत पर्दछन ।देवताहरुको सर्वाेच्च देवत्व शक्तिमा नै निहित भएको मानिन्छ । शिव, विष्णु लगायत अरु देवता पनि शक्तिको उपस्थिति विना क्रियाशील हुन सक्दैनन् । शक्तिले देवीदेवता र प्राणीलाई जन्म दिई शक्तिको संचार गर्ने हुनाले उनलाई स्त्रीरुपमा कल्पना गरिन्छ र आमाको स्थान दिईन्छ । शक्ति सर्वव्यापी तत्व हो र उनी व्रम्हा, बिष्णु, शिव आदिकी शक्ति भएकीले ती विश्वशक्तिको नाम भगवती पनि रहनगयो । प्राचीन समय देखि अस्तित्वमा रहेका शक्तिस्वरुपिणी देवीहरुलाई राजा गुणकामदेव (एघारौ शताव्दि)ले पुन ः प्रशिद्ध वनाएको पाईन्छ । यस्ता देवीका विभिन्न स्वरुपको उपासना गर्ने क्रममा दशमहाविद्यारुपी देवीहरुको पूजा उपासना गर्ने परंपराको व्यापकता नेपालमा मध्यकालदेखि विषेशरुपमा रहेको पाईन्छ ।
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Kumar, Vikas, and Suman Kumari. "यौगिक ग्रन्थों में प्राणतत्वः एक विवेचन." Environment Conservation Journal 20, Special Edition (December 12, 2019): 135–42. http://dx.doi.org/10.36953/ecj.2019.se02026.

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ज्ञवाली Gyawali, गोकर्णप्रसाद Gokarnaprasad. "माक्र्सवादी समाजशास्त्र र मानवशास्त्र : सिद्धान्त, विधि र अभ्यास Marxvadi Samajshastra Ra Manavshastra: Siddhanta, Vidhi ra Abhyas." Patan Pragya 6, no. 1 (December 31, 2020): 209–20. http://dx.doi.org/10.3126/pragya.v6i1.34435.

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Abstract:
माक्र्सवाद एक जिवन्त दर्शन, सिद्धान्त र अध्ययन पद्धती हो जस्को अध्ययन वेगर सामाजिक अध्ययन अपुर्ण र अधुरो हुने मानिन्छ । समाजशास्त्र र मानवशास्त्रले अध्ययन गर्ने विभिन्न सिद्धान्तहरु मध्ये माक्र्सवाद एक प्रमुख सिद्धान्त हो जस्का प्रणेता कार्ल माक्र्सलाइ समाजशास्त्रका चार जन्मदाता वा निर्माता मध्येका एक मानिन्छ । विसौ र एक्काइसौ शताब्दीको एक जवरजस्त सिद्धान्त जस्ले हालसम्म पनि विभिन्न ब्यक्तीत्व, विचारधारा र अध्ययन पद्धतीलाई उत्तिकै प्रभाव पारिरहेको छ । त्यस्को समाजशास्त्र र मानवशास्त्रमा प्रशस्त अध्ययन हुने भएकोले केहि मुख्य सिद्धान्त, विधि र अभ्यासलाइ यहा प्रस्तुत गरिएको छ ।
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पाण्डेय, ज्योति, and दुर्गा डडसेना. "गिरीश पंकज के व्यंग्य उपन्यास ‘पालीवुड की अप्सरा’ व ‘माफिया’ में छत्तीसगढ़ी कहावत (लोकोत्तियों)." Journal of Ravishankar University (PART-A) 23, no. 1 (February 1, 2020): 75–79. http://dx.doi.org/10.52228/jrua.2017-23-1-10.

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Abstract:
गिरीश पंकज के व्यंग्य समाज को सच्चाई का आईना दिखाने का कार्य एक सफाई कर्मी की तरह तो किया है, साथ ही एक डाॅक्टर की तरह उसका समाधान भी प्रस्तुत किया है। गिरीश पकंज के व्यंग्य साहित्य में समाज के आस-पास के अनुभुत विषय ही दृष्टि गोचर होते है। जिससे पाठक के मन में एक प्रश्न उठता है कि इस पाठ्य वस्तु में जो पात्र है, वह हमीं तो नहीं? इस प्रकार गिरीष पंकज के व्यंग्य हमे जीवतंता का एहसास भी कराते हैं और अपने आप को सुधार करने पर मजबूर भी करते है। इस प्रकार गिरीष पंकज ने अपने व्यंग्य व व्यंग्य साहित्य को एक दिशा प्रदान की है।
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Jayswal, Anurag. "श्रीमद्भगवद्गीता का यज्ञ दर्शन – एक विवेचनात्मक अध्ययन." Interdisciplinary Journal of Yagya Research 3, no. 1 (June 30, 2020): 23–29. http://dx.doi.org/10.36018/ijyr.v3i1.48.

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Abstract:
यज्ञ वैदिक काल से एक प्रचलित अवधारणा रही है। यह अग्निहोत्र जैसी कर्मकांड परक क्रिया से लेकर आत्म परिष्कार की प्रखर आध्यात्मिक साधना को समाहित करता है। अन्य पुरातन विधाओं के समान यज्ञ की स्थूल मान्यता भी आज लोक प्रतिष्ठित है। यज्ञ के तीन अर्थ- दान, संगतिकरण व देवपूजन हैं। जिन के व्यापक अर्थ भगवद्गीता में मिलते हैं। भगवद्गीता में यज्ञ एक ‘जीवनदर्शन’ है। कर्म सम्पादन की शुभ्र व सप्राण प्रेरणा के रूप में यज्ञ की प्रतिष्ठा है; ‘यज्ञार्थ कर्म’ से कर्त्ता के कर्म ही आहुति रूप होकर परमार्थ के विराट कुण्ड में अर्पित किए जाते हैं। कामना, लोभ व निष्क्रियता से रहित जीवन क्रम यज्ञमय बनता है, जो संकीर्णता जन्य असंतोष से मुक्ति प्रदान करने वाला है। यज्ञीय जीवन सहकार व सह-अस्तित्व के मूल्यों से युक्त एक सतत प्रवहमान अवस्था है, जिसमें हर क्षण कर्म व्यक्त व विलीन होते हैं। गीतामें यज्ञ विविध प्रकार से है। इसे अर्पण द्वारा आरोहण की क्रिया माना गया है, जिसमें चेतना निम्न स्वभाव से उच्च व उच्चतर रूपों की ओर बढ़ती है। यह एक ओर साधनों का महत प्रयोजन के लिए संधान है, जो कर्मयोग का पर्याय बनता है, दूसरी ओर आत्म शुद्धि की सूक्ष्म व गुह्य प्रक्रिया।
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चौधरी, कुसुम. "महिला सशक्तिकरण एक अवधाराणा और उसकी चुनौतियाँ." VEETHIKA-An International Interdisciplinary Research Journal 6, no. 3 (September 30, 2020): 22–27. http://dx.doi.org/10.48001/veethika.2020.06.03.003.

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SHARMA, NISHA. "भरमौरी लोकगीतों में राग छाया : एक परिचय." Swar Sindhu 4, no. 1 (June 30, 2016): 12–16. http://dx.doi.org/10.33913/ss.v04i01a02.

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BALA, SEEMA. "शिक्षा एंव संगीत शिक्षण पद्धतियां - एक अध्‍ययन." Swar Sindhu 3, no. 1 (March 31, 2015): 34–48. http://dx.doi.org/10.33913/ss.v03i01a05.

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मिश्र, नितेश कुमार. "छत्तीसगढ़ की महापाषाणिक संस्कृति: एक दृष्टि में." Journal of Ravishankar University (PART-A) 27, no. 1 (July 13, 2021): 12–15. http://dx.doi.org/10.52228/jrua.2021-27-1-2.

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Abstract:
छत्तीसगढ़ एक नवगठित राज्य है जिसे प्राचीन काल में दक्षिण कोसल कहा जाता था। इसके अंतर्गत वर्तमान रायपुर, बस्तर, सरगुजा तथा बिलासपुर सम्भागों के अलावा वर्तमान उड़ीसा राज्य के सम्बलपुर जिले का अधिकांश भू-भाग भी सम्मिलित था जो मेकल, रायगढ़ और सिहावा की पहाड़ी श्रृंखलाओं से घिरा हुआ है। छत्तीसगढ़ की प्रमुख नदी महानदी है। छत्तीसगढ़ राज्य भारत के कुछ सौभाग्यशाली राज्यों में से एक है जिसकी एक लम्बी सांस्कृतिक परम्परा रही है। यह क्षेत्र प्रागैतिहासिक काल से लेकर ऐतिहासिक काल तक पुरा सम्पदा को अपने में समेटे हुये है। इसी क्रम में छत्तीसगढ़ की महापाषाणिक संस्कृति का अपना विशेष महत्व है। महापाषाणिक अथवा वृहत्पाषाणिक समाधि शब्द अंग्रेजी भाषा के मेगालिथ ;डमहंसपजीद्ध शब्द का हिन्दी रूपान्तर है। मेगालिथ शब्द की व्युत्पत्ति यूनानी भाषा के मेगाॅस ;डमहंेद्ध और लिथाॅस ;स्पजीवेद्ध इन दो शब्दों के संयोग से हुयी है। मेगास का अर्थ विशाल और लिथाॅस का अर्थ पाषाण है। अतः इस संज्ञा से ऐसे स्मारक का बोध होता है जिसके निर्माण में बृहत्पाषाण खण्ड़ो की भूमिका होती है। विशिष्ट प्रकार के इन स्मारकों का निर्माण या तो शवों को दफनाने के लिये अथवा मृत व्यक्ति की स्मृति को स्थायी बनाये रखने के लिये किया जाता था। विश्व तथा भारत के विभिन्न क्षेत्रों से इस प्रकार की समाधियों की प्राप्ति होती है छत्तीसगढ़ राज्य इस दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है चिरचरी, धनौरा, करकाभाट, बरतियाभाटा, गोदमा, मोथे, गम्मेवाड़ा, तिम्मेलवाड़ा, केतार, आरा आदि पुरास्थलों से महापाषाणिक संस्कृति के अवशेष मिले है।
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Soni, Pratamma. "ROLE OF INTERNET IN GLOBALIZED MUSIC." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 3, no. 1SE (January 31, 2015): 1. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v3.i1se.2015.3486.

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Abstract:
The word globalization literally means the process of conversion of local or regional objects or events to the world. It can also be used to describe a process by which people from all over the world can make a decision and work together.Globalization is often used in the context of economic globalization, but the field of agriculture also has an unprecedented visualization. One meaning of globalization is the concept of the cosmopolitan that is tied to a traditional formula by embracing holistic law. वैश्वीकरण का शाब्दिक अर्थ स्र्ानीय या क्षेत्रीय वस्तुओं या घटनाओं के ब्वश्व पर रूपांतरण की प्रब्िया है इसे एक ऐसी प्रब्िया का वणथन करने क ब्िए भी प्रयुक्त ब्कया जा सकता द्वारा पुरे ब्वश्व के िोग ब्ििकर एक सिाज का ब्निाथण कर सकते हैएतर्ा एक जुट होकर कायथ करते हैवैश्वीकरण का उपयोग अकसर आब्र्थक वैश्वीकरण के सन्िभथ िें ब्कया जाता है ब्कन्तु किा के क्षेत्र िें भी अभूतपूवथ दृश्य दृब्िगोचर होता हैएवैश्वीकरण का एक अर्थ वशुधैवं कुटुम्बदकि की अवधारणा ब्जसने सम्बपूणथ वसुधा को एब्ककार कर एक पाररवाररक सूत्र िें बांध ब्िया है।
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Jain, Chhaya. "OVERALL VIEW ON HINDI CINEMA." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 7, no. 4 (April 30, 2019): 141–46. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v7.i4.2019.883.

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Abstract:
In today's era, cinema is such a genre, towards which a child of two years and an old man of eighty years is also attracted. Even a person from a small town to a small town is not untouched by its hypnosis. Cinema is a complete genre in itself, as it includes all arts like painting, theatrical art, poetry, fiction. The cinema that we see today has a developed and sophisticated form in front of us, a century of hard work behind it. In the present times, cinema has taken the form of industry but it has not only given us entertainment, but also education, so it has become a powerful medium to express the feelings of the public. Therefore, it would not be wrong to say that "Movies are not only the best medium of entertainment, but they are also the best medium for knowledge enhancement". आज के युग में सिनेमा एक ऐसी विधा है, जिसकी ओर दो साल का एक बच्चा और अस्सी साल का एक बूढ़ा भी आकर्षित है। एक महानगर से लेकर छोटे से कस्बे का व्यक्ति भी इसके सम्मोहन से अछूता नहीं हैं। सिनेमा अपने आप में एक सम्पूर्ण विधा है, क्योंकि इसमें चित्रकला, नाट्य कला, काव्य कला, कथा साहित्य आदि सभी कलाओं का समावेश रहता हैं। आज हम जो सिनेमा देखते है वह हमारे सामने एक विकसित और परिष्कृत रूप है, इसके पीछे एक सदी का परिश्रम है। वर्तमान समय में सिनेमा ने उद्योग रूप ले लिया है परंतु इसने हमें न केवल मनोरंजन ही दिया है, बल्कि शिक्षा भी दी है, इसलिए यह जनमानस की भावनाओं को व्यक्त करने का सशक्त माध्यम बन गया है। इसलिये यह कहना गलत न होगा कि “फिल्में मनोरंजन का उत्तम माध्यम तो हैं ही, साथ ही वह ज्ञानवर्धन के लिए भी अत्यंत बेहतरीन माध्यम हैं।”
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वर्मा, राकेष. "श्रीअरविन्द की दृश्टि में आध्यात्मिक कर्म का वैज्ञानिक निरूपण." Dev Sanskriti Interdisciplinary International Journal 9 (January 31, 2017): 25–29. http://dx.doi.org/10.36018/dsiij.v9i.124.

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Abstract:
श्रीअरविन्द का जीवन एक कर्मयोगी की तरह रहा। उन्होंने साहित्य के माध्यम से समाज को अमूल्य निधि प्रदान की। उनका दृश्टिकोण पूर्णतः वैज्ञानिक था। श्रीअरविन्द आन्तरिक एवं बहिर्मुख दोनों तरह के कर्मों की आवष्यकता को स्वीकार करते हुए भगवत् कर्म को महत्ता देते थे। बाह्य जगत् को मनुश्य तभी जान सकता है जब वह आन्तरिक जगत् से परिचित हो और यह सत् कर्मों के द्वारा ही सम्भव है। सत् कर्म करते हुए अपने जीवन को पूर्णता तक पहुँचाना यहीं तो मानव जीवन का लक्ष्य है। श्रीअरविन्द एक द्रश्टा की तरह निरपेक्ष भाव में रहकर कर्म करने को प्रधानता देते है। उनके चिन्तन की मौलिकता कर्म सिद्धान्त की सीमाओं को स्पश्ट रूप से रेखांकित करती है। कर्म करना मानव का स्वभाव है। एक क्षण भी मनुश्य बिना कर्म के नहीं रह सकता। मनुश्य आज जहाँ कहीं भी है उसे आध्यात्मिक युग की ओर बढ़ना होगा। इसके लिए तर्क-बुद्धि को निर्मल करना होगा। इसके अभाव में वह चिंतनषील पषु है। भगवत्कृपा से यह सम्भव है अतएव मानव को एक न एक दिन आध्यात्मिक कर्म करते हुए श्रेश्ठता को वरन् कर चिर आनन्द स्वरूप आनन्द की ओर अग्रसर होना ही है।
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Pareek, Kritika. "चीनी यात्रियों द्वारा वर्णित भारतीय समाज : एक अध्ययन." Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education 15, no. 6 (July 5, 2018): 176–79. http://dx.doi.org/10.29070/15/57747.

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bhartee, bharat kumar. "नवबौद्धों में धम्म दर्शन की प्रकर्ति : एक विशलेषण." Anusanadhan: A Multidisciplinary International Journal (In Hindi) 2, no. 1 (June 2, 2017): 11–15. http://dx.doi.org/10.24321/2456.0510.201702.

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बलराम बिन्द, डॉ. "टेलीविज़न धारावाहिकों में बाल विवाह प्रस्तुतीकरण: एक अध्ययन." Praxis International Journal of Social Science and Literature 4, no. 3 (March 18, 2021): 42–46. http://dx.doi.org/10.51879/pijssl/4.3.8.

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कुमार सखवार, अशोक. "मॉरिशस की संस्कृति और संवेदना : एक विहंगम दृष्टि." Praxis International Journal of Social Science and Literature 4, no. 3 (March 18, 2021): 51–54. http://dx.doi.org/10.51879/pijssl/4.3.10.

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KAUR, DR NARENDRA. "पंजाब का लोक संगीत : एक सम़द्ध सामाजिक परम्‍परा." Swar Sindhu 2, no. 1 (March 31, 2014): 10–11. http://dx.doi.org/10.33913/ss.v02i01a04.

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Shukla, Annapurna. "INTERCONNECTION OF FINE ARTS AND JUGALBANDI OF POETRY." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 7, no. 11 (November 30, 2019): 25–39. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v7.i11.2019.905.

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Abstract:
English : Nature itself is a poisonous plank. This wonderful combination is not only an epic, but also a great visual picture. There are poetic juices, verses and ornaments in it, there is also a variety of colors and forms, only then the poem is a sparkling image and the picture is a sparkling living poem. The feeling of both is counted towards the end. All arts are similar at the cognition level and are expressed and divided in the mediums, irrespective of the artist. Elemental analysis of the arts shows that the interrelationships of all the fine arts are very deep and have always influenced and enriched each other. If the meaning of words is intensified, then the lines have their elegance, if the notes have their own universe, the postures have their own sense of the world, if the stones have a lyrical form, then the images have their own shape. Painting in the arts has developed parallel to poetry. According to the medium, all fine arts have their own existence. To express himself in the early period, these arts were his gross languages. Even after their establishment, man must have been searching for such a powerful medium for years. By which one could express his entire thought. He must have got the word as a result of that. Hindi : प्रकृति स्वयं एक विषाल फलक है। यही अद्भुत संयोजन एक महाकाव्य तो है ही, एक विराट दृश्य चित्र भी है। इसमें काव्य के रस, छन्द और अलंकार है तो विविध रंग और रूपाकार भी हंै तभी तो कविता एक जगमगाता बिम्ब है तो चित्र एक जगमगाती सजीव कविता। दोनों की अनुभूति अन्तस में गुनी जाती है। सभी कलाएं अनुभूति स्तर पर समान होतीं है और माध्यमों में व्यक्त होकर विभक्त हो जातीं है फिर चाहे कलाकार कहीं का हो। कलाओं के तात्विक विश्लेषण से पता चलता है कि सभी ललित कलाओं के अन्तःसम्बन्ध बहुत गहरे हैं और ये सदैव एक दूसरे को प्रभावित और सम्पन्न करते रहें हैं। यदि षब्दों के अर्थ की गहनता है , तो रेखाओं का अपना लालित्य है, यदि सुरों का अपना ब्रह्मांड है तो मुद्राओं का अपना भाव लोक है, यदि पत्थरों का एक लयात्मक स्वरूप है तो बिम्बों का अपना एक आकार बोध है। कलाओं में चित्रकला तो काव्य के समानान्तर ही विकसित हुई है। माध्यम के अनुसार सभी ललित कलाओं का अपना-अपना अस्तित्त्व है। आदि काल में अपने को व्यक्त करने के लिए यहीं कलाएं उसकी स्थूल भाषाएं थी। इनकी स्थापना के बाद भी मनुष्य वर्षों ऐसे शक्तिशाली माध्यम की खोज में लगा रहा होगा। जिसके द्वारा वह एक अपने सम्पूर्ण चिन्तन को व्यक्त कर सकता था। उसी के परिणाम स्वरूप उसे शब्द मिला होगा।
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तिवारी Tiwari, मौसमी Mausami सिंह Singh. "प्रेमचन्द के उपन्यासों में स्त्री विमर्श: एक अध्ययन Premchand ke Upanyason me stri Bibamarsh: Ek Adhyayan Chan." Tribhuvan University Journal 32, no. 2 (December 31, 2018): 295–308. http://dx.doi.org/10.3126/tuj.v32i2.24725.

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Abstract:
इस आलेख में उपन्यासकार प्रेमचंद द्वारा लिखित उपन्यासों में स्त्री–विमर्श पर एक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है । यह एक अनुसंधानमूलक आलेख है । इसमें प्रेमचंद के उपन्यासों में स्त्री विमर्श के साथ–साथ हिंदी उपन्यास में स्त्री विमर्श के आगमन पर एक संक्षिप्त ऐतिहासिक विवरण उल्लेखित है । स्त्री विमर्श का इतिहास, अवधारणा के साथ ही सिद्धांत और आगमन पर एक विवरण भी उल्लेखित है । स्त्री विमर्श रूढ़ हो चुकी मान्यताओं के प्रति असंतोष व उससे मुक्ति का स्वर है । पितृसत्तात्मक समाज के दोहरे नैतिक मापदंड, मूल्यों व अंतर्विरोधों को समझने व पहचानने की गहरी अंतर्दृष्टि है । विश्व चिंतन में यह एक नई बहस को जनम देता है । पितृसत्तात्मक पारिवारिक संरचना पर सवाल खड़ा करता है । आखिर क्यों स्त्रियाँ अपने मुद्दों, अव्यवस्थाओं और समस्याओं के बारे में नहीं सोचसकतीं ? क्यों उनकी चेतना को इतने लंबे समय से अनुशासित व नियंत्रित की जाती रही है ? क्यों वे किसी निर्धारित साँचे में ढली निर्जिव मूर्तियाँ मानी जाती हैं ? क्यों उन्हें परंपरा से बंधी मूक वस्तु समझा जाता है ? क्यों उनकी अपनी कोई पहचान नहीं ? जब इन सवालों का जबाब ढूँढ़ना शुरू हुआ, तब स्त्री अपना अस्तित्व और अधिकार की बात करने लगी । जो पितृसत्तात्मक के सामने एक बड़ा सबाल के रूप में उभरा । सिमोन द बोउआर के अनुसार “स्त्री पुरूष प्रधान समाज की कृति है । वह अपनी सत्ता को बनाए रखने के लिए स्त्री को जनम से ही अनेक नियमों के ढाँचे में ढालता चला गया । जहाँ उसका व्यक्तित्व दबता चला जाता है ।” राजनैतिक क्षेत्र के साथ–साथ साहित्य में भी स्त्रियों की स्थिति में सुधार हेतु यथेष्ठ प्रयास हुआ है आज भी स्त्रियों की अवस्था में कोई खास परिवर्तन नजर नहीं आता । हिंदी साहित्य में स्त्री–विमर्श की स्थिति काफी महत्वपूर्ण है ।
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Kumar, Dalip. "Vihara in ancient India." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 5, no. 7 (July 31, 2017): 110–15. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v5.i7.2017.2111.

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Abstract:
The abode of the Buddhist monks is called Vihara, inside the Vihara there was a large pavilion, three or four small chambers were dug in it, there was a door to enter the front wall and in front of it there was a verandah dependent on the pillars. . The inner pavilion had a chakriya chakor, in which Buddhist monks resided, a cell was built for a monk, 1 a bicameral for two monks, and a tricyclic schools for three monks. Where many monks resided they were called Sandharam. The rooms of the Vihar were of small size. Their size was 9 G9 feet. These chambers used to have long checks made for monks to sleep on one side. बौद्ध भिक्षुओं के निवास स्थान को विहार कहा जाता है विहार के अन्दर एक बड़ा मण्डप होता था, उसमें तीन या चार छोटी कोठरियां खोदी जाती थी, सामने की दीवार में प्रवेश के लिए एक द्वार होता था और उसके सामने स्तम्भों पर आश्रित एक बरामदा रहता था । भीतरी मण्डप की कोठरिया चैकोर होती थी, जिनमें बौद्ध भिक्षु निवास करते थे, एक भिक्षु के लिए कोठरी बनी होती थी,1 दो भिक्षुओं के लिए द्विगर्भ और तीन भिक्षुओं के लिए त्रिगर्भ शालाएं बनाई जाती थी । जहां पर बहुत से भिक्षु निवास करते थे उनको संधाराम कहा जाता था । विहार की कोठरियां छोटे आकार की होती थी । इनका आकार 9ग्9 फूट होता था । इन कोठरियों में एक तरफ भिक्षुओं के सोने के लिए लम्बी चैकियां बनी होत थी।
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Yadav, Neetu. "EFFECT OF COLORS ON SOCIETY." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 2, no. 3SE (December 31, 2014): 1–2. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v2.i3se.2014.3630.

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Abstract:
Every object in the world has a texture that has a form and color, which gives importance to their identity, any object can be identified by its form, shape and color, if the object has only shape Looks dull. Of all the elements in the picture, the most emotional element is the character. A character is like a wave, which gives life to an object.Color is a quality of light rays that we experience through our eyes. We can show the true nature of an object only through colors. So that it has an impact on the person seeing. Color is not only an object but also a means of understanding emotions. संसार की प्रत्येक वस्तु की एक बनावट होती है जिसका एक रूप और रंग होता है, जो उनकी पहचान को महत्व प्रदान करता है, किसी भी वस्तु को उसके रूप, आकार व रंग से पहचाना जा सकता है, यदि वस्तु में केवल आकार हो तो वह नीरस दिखाई देती है। चित्र के समस्त तत्वों में सबसे अधिक संवेगात्मक तत्व वर्ण होता है। वर्ण एक प्रकार की लहर के समान होता है, जो वस्तु को जीवन प्रदान करता है।रंग प्रकाष की किरणों का एक गुण है जिसका अनुभव हम अपने नेत्रों के माध्यम से करते हैं। किसी वस्तु के वास्तविक स्वरूप को हम रंगों के द्वारा ही प्रदर्षित कर सकते हैं। जिससे कि देखने वाले व्यक्ति पर उसका प्रभाव पड़े ।रंग वस्तु को ही नहीं बल्कि भावनाओं को समझने का भी एक साधन है।
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सेठी, अर्चना, ए. के पाण्डेय, and राधा पाण्डेय. "कोविड-19 का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव." Journal of Ravishankar University (PART-A) 27, no. 1 (July 13, 2021): 84–88. http://dx.doi.org/10.52228/jrua.2021-27-1-11.

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Abstract:
कोविड-19 के संक्रमण से बचाव के लिए किए गए लाॅकडाउन से जहां एक ओर प्रकृति ने खुलकर सांस ली पर्यावरण प्रदूषण कम हुआ वहीं दूसरी ओर अर्थव्यवस्था की विकास की रफ्तार कम हो गई। पहले से ही मुश्किल झेल रही भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए कोरोना वायरस का हमला एक बड़ी मुसीबत लेकर आया है। इस समय दुनिया के समक्ष दो समस्याएं है प्रथम कोविड 19 के संक्रमण को रोकना द्वितीय अर्थव्यवस्था को विकास के मार्ग पर वापस लाना। कोविड-19 के संक्रमण से बचाव के लिए किए गए लाॅकडाउन से जहां सबसे ज्यादा प्रभावित असंगठित क्षेत्र के श्रमिक हुए है। ये श्रमिक जहां रहने एवं खाने के लिए सैंकडों किलोमीटर चलकर अपने घर लौटने को बाध्य हुए। इससे अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न हुई साथ ही कोविड-19 का संक्रमण बढ़ा। शासन ने अर्थव्यवस्था को विकास के मार्ग पर वापस लाने के लिए 20 लाख करोड़ राहत पैकेज की घोषणा की है जो आर्कषक तो लग रहा है लेकिन सफलता इसके सही क्रियान्वयन पर निर्भर करता है। कोविड.19 की अब तक ना कोई वैकसीन नहीं बना है ना ही इसका अभी तक इलाज मिला है। अर्थव्यवस्था के सामने एक के बाद एक चुनौतियां है।
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चौहान, राहुल सिंह. "लाई-फाईः संचार का एक आशाजनक ऑप्टिकल वायरलेस माध्यम." Anusanadhan: A Multidisciplinary International Journal (in Hindi) 03, no. 02 (August 9, 2018): 9–12. http://dx.doi.org/10.24321/2456.0510.201804.

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Jain, Archana, and Manoj Rajguru. "दण्ड विधान के प्राचीन और वर्तमान परिप्रेक्ष्य: एक अध्ययन." RIVISTA 1, no. 1 (August 2017): 1–24. http://dx.doi.org/10.26476/rivista.2017.01.01-24.

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स्वामी, डाॅ दीपा. "छात्राओं में ई-लर्निंग की जानकारी पर एक अध्ययन." International Journal of Home Science 7, no. 2 (May 1, 2021): 08–10. http://dx.doi.org/10.22271/23957476.2021.v7.i2a.1139.

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SINGH, NIRMAL. "संगीत शिक्षण में रागों का समय सिद्धांत - एक अध्‍ययन." Swar Sindhu 2, no. 4 (December 31, 2014): 36–40. http://dx.doi.org/10.33913/ss.v02i04a05.

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त्रिवेदी, इन्द्राणी, and पंकज कुमार त्रिवेदी. "हठयौगिक ग्रंथों में कफ संबंधी दोषों को दूर करने के लिये वर्णित यौगिक विधिया : कोविड-19 महामारी के विशेष संदर्भ में." Dev Sanskriti Interdisciplinary International Journal 16 (July 31, 2020): 32–38. http://dx.doi.org/10.36018/dsiij.v16i.153.

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Abstract:
योग एक प्राचीन विद्या है जिसका अभ्यास सहस्रों शताब्दियों से आत्म कल्याण हेतु किया जाता रहा है। आत्मकल्याण का सार मानव कल्याण में निहित है इन ।दोनों ही उद्देश्यों की प्राप्ति योग के द्वारा हो सकती है। वर्तमान समय में व्याप्त कोविड-19 (कोरोना वायनस डिसीज-19) रोग के संभावित समाधान के रूप में योगाभ्यास एक प्रभावी साधन सिद्ध हो सकता है। योग केवल शरीर को ही स्वस्थ नहीं बनाता अपितु मन को भी स्वस्थ करता है। योग रूप ज्ञान गंगा की विभिन्न धाराएं हैं जैसे हठयोग, राजयोग, कर्मयोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग। इनमें से हठयोग व्यावहारिक स्तर पर किया जाने वाला एक अभ्यास है जिसका सिद्धांत है कि शरीर के माध्यम से मन और आत्मा को भी विकसित किया जा सकता है। भारतीय ज्ञान के अक्षय भण्डार में समग्र समस्याओं का हल निहित है। योग तथा आयुर्वेद के माध्यम से विभिन्न समस्याओं का समाधान मिलता रहा है। प्रस्तुत शोध पत्र में कफ दोषों को दूर करने के लिए हठयोग के ग्रंथों में वर्णित अभ्यासों का समावेश किया गया है जिसके ज्ञान से प्रबुद्ध जनसामानान्य लाभान्वित हो सके। इन योगाभ्यासों के अंतर्गत षट्कर्म, आसन, मुदा-बंध तथा ध्यान जैसे अभ्यासों का वर्णन किया गया है । ये सभी अभ्यास कोरोना जैसे महामारी के लिए एक संभावित सहायक चिकित्सा पद्धति सिद्ध हो सकती है।
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Bhatt, Ambika, Vivek Rawat, and Shiv Kumar Bhardwaj. "समाजवाद की अवधारणा, भारतीय समाजवाद की आधारषिलाऐं एवं स्वरुप." Dev Sanskriti Interdisciplinary International Journal 15 (February 20, 2020): 23–28. http://dx.doi.org/10.36018/dsiij.v15i.138.

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Abstract:
समाज मनुष्य के विकास की वो आधारशिला है जो उसके विकास के लिए समुचित अवसरों की उपलब्धता सुनिश्चित करता हैै। किस प्रकार समाज एक व्यक्ति के लिए अवसरों की व्यवस्था करता है यह निर्भर करता है उस समाज की प्रकृति एवं समाज में व्याप्त समाजवादी सिद्धांत पर। समाजवाद एक विचार है जिसमें समाज के प्रत्येक व्यक्ति की एक पृथक् एवं महत्वपूर्ण भूमिका होती है और यही विचारधारा समाज के उत्थान हेतु इसके प्रत्येक सदस्य को भेदभाव रहित वातावरण उपलब्ध करवाने का प्रयास करती है। विश्व में विभिन्न समयों पर अलग-अलग समाजों में समाजवाद के विविध स्वरूप विकसित हुए हैं, जो समाजवादी सिद्धांतों में अंतर को परिलक्षित करते हैं। प्रत्येक समाज ने अपनी आवश्यकता एवं सुविधा के अनुरूप ही समाजवाद के एक विषिश्ट स्वरूप को अंगीकार किया है। समाजशास्त्रियों द्वारा समाजवाद के इन विविध रूपों का विष्लेश्णात्मक-विवेचन भी किया गया है एवं वास्तविकता के अनुरूप ही इसके मानव कल्याणकारी स्वरूप को अपनाने पर बल दिया है। एक ऐसी समाजवादी संकल्पना जो किसी भौगोलिक परिधि, किसी समुदाय विषिश्ट के विकास की ही पक्षधर ना हो, जो संकीर्णता से ग्रसित ना हो वरन समूची धरा के अस्तित्व के संरक्षण का विचार रखती हो, तथा वसुधैव-कुटुम्बकम की सोच को साकार करने का लक्ष्य रखती हो मानव कल्याणकारी हो सकती है। समाजवादी विचारधारा समय के साथ-साथ सभी राष्ट्रों में एक नई उर्जा का संचार करेगी, जिससे संपूर्ण विश्व में आपसी सहयोग बढ़ेगा। एक लोक-कल्याणकारी समाज के लिए समाजवादी विचारधारा को शिक्षा में स्थान दिया जाना चाहिए, क्योंकि समाज व शिक्षा अन्योन्याश्रित सम्बन्ध होने के कारण इनके उद्देश्य परस्पर एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं, समाज की आवश्यकता को शिक्षा व शिक्षा की आवश्यकता को समाज ही परिपूर्ण कर सकता है, दोनों एक-दूसरे के लिए साधन व साध्य का कार्य करते हैं। Society is the cornerstone for the development of human beings which ensures the availability of appropriate opportunities for his development. How society arranges opportunities for a person, it depends upon the nature of that society and the socialist principle prevailing in the society. Socialism is an idea in which every person of the society has a unique and important role and this ideology tries to provide an environment, free of discrimination to each of its members for the upliftment of the society. Different forms of socialism have evolved in various societies at different times in the world, reflecting variations in socialist principles. Every society has adopted a specific form of socialism according to its need and convenience. These diverse forms of socialism have also been analyzed analytically by sociologists and have insisted on adopting its human-welfare form in line with reality. A socialist concept that does not favor the development of any particular geographical periphery, any specific community and also does not suffer from parochialism but holds the idea of preserving the existence of the whole land and aims to realize the ideals of “Vasudhaiva Kutumbakam”, can be humanistic and for human welfare. Socialist ideology will infuse a new energy in all the nations with the passage of time, which will increase mutual cooperation in the world. For a public welfare society, socialist ideology should be given an important place in education, because their objective depends on each other due to the interdependent relationship between society and education, the need of education and society can be fulfilled by each other only. In their interdependent relationship both of them act as means and compassable for each other.
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GUPTA, SAKSHI. "PSYCHOLOGICAL EFFECTS AND COLOR THERAPY OF COLORS." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 2, no. 3SE (December 31, 2014): 1–7. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v2.i3se.2014.3616.

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Abstract:
Every person in the world adopts some medium to express inner feelings. For some, voice is the medium, for some, but for a painter, color is the medium or means to express his feelings. Expresses the emotions emitted in the mind through various tones of color. Taking full care of the combination methods in the pictures, he uses darker or sharper colors and lighter and lighter colors elsewhere. He gets self-satisfaction by expressing his feelings through this method. A work reveals many dimensions hidden within it. No matter how many different angles an artist has made her, but she is presented in a different form and meaning in front of the audience, this is its power and talent. For an artist, color is an important part of his work. That entire nature reveals this entire world through different colors. संसार में प्रत्येक व्यक्ति अन्तर्मन के भावों को व्यक्त करने के लिये किसी न किसी माध्यम को अपनाता है। किसी के लिये स्वर माध्यम हैं तो किसी के लिये शब्द परन्तु एक चित्रकार के लिये उसके भावों को अभिव्यक्त करने का माध्यम या साधन रंग है। रंगों की विभिन्न तानों के द्वारा मन में उद्वेलित भावों को अभिव्यक्त करता है। वह चित्रों में संयोजन विधियों का पूर्ण ध्यान रखते हुये कहीं गहरे या तीखे रंगों का प्रयोग करता है तो कहीं हल्के व कोमल रंगों का। इस विधि से अपने भावों की अभिव्यक्ति करके उसे आत्म-संतोष मिलता है। एक कृति अपने भीतर छुपे हुये अनेक आयामों को उद्घाटित करती है। एक कलाकार ने उसे कितने ही भिन्न दृष्टि कोण से बनाया हो परन्तु दर्षक के सम्मुख वह एक भिन्न रूप व अर्थ में प्रस्तुत होती है, यही इसकी शक्ति व प्रतिभा है। एक कलाकार के लिये रंग उसकी कृति का महत्वपूर्ण अंग है। वह समूची प्रकृति इस सम्पूर्ण विष्व को विभिन्न रंगों के माध्यम से ही उद्घाटित करता है।
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Masatkar, Ashih. "INTERNET'S CONTRIBUTION IN PROMOTION OF MUSIC." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 3, no. 1SE (January 31, 2015): 1–4. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v3.i1se.2015.3459.

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Abstract:
In modern times, internet has become a medium of propagation that has tied the whole world into one thread.In the common language, the Internet is called the Network of Networks, on this network information is exchanged as electrical signals. Internet is a means of sharing information. Assistance of any person to diagnose a problem is possible through it. Through very fast, we can send information from one place to another. आधुनिक समय में इन्टरनेंट एक ऐसा प्रचार-प्रसार का माध्यम बना हुआ है जिसने संपूर्ण विश्व को एक सूत्र में बांध दिया है।सामान्य भाषा में इंटरनेट को नेटवर्क आॅफ नेटवक्र्स कहा जाता है इस नेटवर्क पर सूचनाओं का आदान - प्रदान विद्युत संकेतों के रूप में किया जाता है। इंटरनेट सूचनाओं का आदान - प्रदान करने का साधन है। किसी समस्या के निदान हेतु कहीं भी किसी भी व्यक्ति की सहायता इसके माध्यम से संभव है। अति तीव्र माध्यम से हम जानकारियाँ एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेज सकते है।
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सिह, दीपक. "परामर्श का किशोरियों की स्वप्रभावकारिता पर प्रभाव का अध्ययन." Dev Sanskriti Interdisciplinary International Journal 14 (July 31, 2019): 01–07. http://dx.doi.org/10.36018/dsiij.v14i.131.

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Abstract:
परामर्श एक प्रकार की सहयोगी प्रक्रिया है जिसमे परामर्शदाता, परामर्श प्राप्तकर्ता को उसके जीवन के महत्त्वपूर्ण पहलुओं से सम्बन्धित ज्ञान प्राप्त करने में सहायता प्रदान करता है। किषोरावस्था में किषोरियों को किषोरावस्था के अनुरूप होनें वाले विभिन्न प्रकार के परिवर्तनों के साथ समायोजन करने के लिए विभिन्न प्रकार की मनोवैज्ञानिक गुणवत्ताओं की आवष्यकता होती है। इन्हीं में से एक आवष्यक मनोवैज्ञानिक क्षमता, स्वप्रभावकारिता को षोध के अन्तर्गत सम्मिलित किया गया है। जो व्यक्ति की किसी चुनौतीपूर्ण परिस्थिति या कार्य का सामना करने की समय-सीमा से सम्बन्धित होती है। प्रस्तुत शोध का उद्धेष्य परामर्श का किषोरियों की स्वप्रभावकारिता पर पडने वाले प्रभाव का अध्ययन करना है। इस अध्ययन में प्रयोगात्मक एंव नियन्त्रित समूह अभिकल्प का प्रयोग किया गया है। अध्ययन हेतु आकस्मिक प्रतिचयन विधि के द्वारा श्री राम कॉलेज मुजफ्फरनगर उ0प्र0 से 16 से 18 वर्ष की 100 छात्राओं का चयन किया गया। जिनमें से 50 छात्राओं को प्रयोगात्मक समूह तथा 50 छात्राओं को नियन्त्रित समूह में रखा गया। प्रयोगात्मक समूह में सम्मिलित किषोरियों को 3 माह तक सप्ताह मे एक दिन सामूहिक रूप से, तथा सप्ताह में एक दिन आवष्यकतानुसार व्यक्तिगत रूप से, 30 मिनट के लिए परामर्श प्रदान किया गया। स्वप्रभावकारिता मापनी के द्वारा आंकडो का संग्रहण किया गया। सांख्यिकीय विष्लेषण हेतु एस0 पी0 एस0 एस0 वर्जन 18 द्वारा अनोवा परीक्षण का उपयोग किया गया। अध्ययन से प्राप्त परिणामों से यह स्पश्ट होता है कि परामर्श का किषोरियां की स्वप्रभावकारिता पर सकारात्मक प्रभाव पडता है।
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Dhungana, Yadav Prasad. "बिज्ञान र प्रबिधिशास्त्र इन्जिनियरिंग नेपाली शब्दकोश, शब्ब्दावाली निर्माण एक अध्ययन." Journal of the Institute of Engineering 11, no. 1 (March 29, 2016): 191–96. http://dx.doi.org/10.3126/jie.v11i1.14716.

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विद्रोही Bidrohee, राजेश Rajesh. "नेपाली कवितामा समकालीनता : एक विमर्श Nepali Kabitama Samakalinata: Ek Bimarsha." Dristikon: A Multidisciplinary Journal 9, no. 1 (December 31, 2019): 190–202. http://dx.doi.org/10.3126/dristikon.v9i1.31187.

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Abstract:
यस आलेखमा नेपाली कवितामा समकालीनताबारे विश्लेषणात्मक अध्ययन गरिएको छ । नेपाली कवितामा समकालीनताबारे व्यक्त विभिन्न तर्क र धारणाहरूको विश्लेषणात्मक अध्ययन गरी निष्कर्षमा पुग्ने प्रयास गरिएको छ । अहिलेसम्म विश्वविद्यालयको पठनपाठन तथा प्राज्ञिक विमर्शहरूमा २०३० को दशकलाई नै नेपाली कवितामा समकालीनताको आरम्भ विन्दु मान्ने गरिए पनि यो अवधारणा अब उचित नहुने यस अध्ययनको निष्कर्ष छ । साहित्यमा दुई–अढाइ दशकको समयखण्डलाई समकालीन भन्न सकिने सामान्य सिद्धान्त र नेपाली कविताका प्रवृत्तिगत आधारमा पनि अब २०३० को दशकलाई समकालीन नेपाली कविताको आरम्भ विन्दु मान्न नहुने यस अध्ययनको निष्कर्ष छ । वि.सं. २०५२ मा सुरु भएको माओवादी सशस्त्र द्वन्द्वपछि विकसित सामाजिक–राजनीतिक परिवेशमा लेखिएका कविताहरूको प्रवृत्तिगत अध्ययन र विश्लेषणबाट २०५२ साल नै समकालीन नेपाली कविताको आरम्भ विन्दु भएको निष्कर्षमा पुगिएको छ ।
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किरण, रश्मि. "महिला सशक्तिकरण हेतु बालिका शिक्षा की आवश्यकताः एक ऐतिहासिक अध्ययन." International Journal of Applied Research 4, no. 1 (January 1, 2018): 47–50. http://dx.doi.org/10.22271/allresearch.2018.v4.i1a.7476.

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