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Journal articles on the topic 'कर्म योग'

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ख ुट, डिश्वर नाथ. "बस्तर का नलवंश एक ऐतिहासिक पुनरावलोकन". Mind and Society 9, № 03-04 (2020): 47–52. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-93-4-20217.

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Abstract:
सभ्यता का विकास पाषाण काल स े प ्रार ंभ हा ेता ह ै। इस काल म ें बस्तर म े रहन े वाल े मानव भी पत्थर क े न ुकील े आ ैजार बनाकर नदी नाल े आ ैर ग ुफाआ ें म ें रहत े थ े। इसका प ्रमाण इन्द ्रावती आ ैर नार ंगी नदी के किनार े उपलब्ध उपकरणों स े हा ेता है। व ैदिक युग म ें बस्तर दक्षिणापथ म ें शामिल था। रामायण काल म ें दण्डकारण्य का े उल्ल ेख मिलता ह ै। मा ैर्य व ंश क े महान शासक अशा ेक न े कलि ंग (उड ़ीसा) पर आक्रमण किया था, इस य ुद्ध म ें दण्डकारण्य क े स ैनिका ें न े कलि ंग का साथ दिया था। कलि ंग विजय क े बाद भी दण्डकारण्य का राज्य अशा ेक प ्राप्त नही ं कर सका। वाकाटक शासक रूद ्रस ेन प ्रथम क े समय
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मिश्रा, आ. ंनद म. ुर्ति, प्रीति मिश्रा та शारदा द ेवा ंगन. "भतरा जनजाति में जन्म संस्कार का मानवशास्त्रीय अध्ययन". Mind and Society 9, № 03-04 (2020): 39–43. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-93-4-20215.

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Abstract:
स ंस्कार शब्द का अर्थ ह ै श ुद्धिकरण। जीवात्मा जब एक शरीर का े त्याग कर द ुसर े शरीर म ें जन्म ल ेता है ता े उसक े प ुर्व जन्म क े प ्रभाव उसक े साथ जात े ह ैं। स ंस्कारा े क े दा े रूप हा ेत े ह ैं - एक आंतरिक रूप आ ैर द ूसरा बाह्य रूप। बाह ्य रूप का नाम रीतिरिवाज ह ै जा े आंतरिक रूप की रक्षा करता है। स ंस्कार का अभिप्राय उन धार्मि क क ृत्या ें स े ह ै जा े किसी व्यक्ति का े अपन े सम ुदाय का प ुर्ण रूप स े योग्य सदस्य बनान े क े उदद ्ेश्य स े उसक े शरीर मन मस्तिष्क का े पवित्र करन े क े लिए किए जात े ह ै। सभी समाज क े अपन े विश ेष रीतिविाज हा ेत े ह ै, जिसक े कारण इनकी अपनी विश ेष पहचान ह ै,
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निशा, प. ंवार. "ज ैव विविधता एवं संरक्षण". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special edition) (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.882969.

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Abstract:
पृथ्वी अपन े म ें असीम संभावनाए ं एकत्रित किये ह ुए है । प ्रकृति के अन ेकान ेक विविधताओ ं की कल्पना कर ही इस बात का पता लगाया जा सकता ह ै कि संभावनाए ं पक्ष की ह ै या विपक्ष की तात्पर्य प ृथ्वी पर अथाह कृषि भूमि, जल वृक्ष, जीव-जन्त ु तथा खाद ्य पदार्थ थे, परन्त ु मानव के अनियंत्रित उपभोग के कारण ये सीमित हा े गये ह ै । पर वास्तव में हम अपन े प्रयासों से इन संपदाओं का उचित प ्रब ंध कर इसे भविष्य के लिए उपयोगी बना सकत े ह ै । जैव विविधता किसी दिये गये पारिस्थितिकी त ंत्र बायोम, या एक प ूर े ग ृह में जीवन क े रूपों की विभिन्नता का परिणाम है । ज ैव विविधता किसी जैविक त ंत्र के स्वास्थ्य का घोतक ह
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सीमा, शमा, та तिवारी आभा. "पर्यावरण संरक्षण एव ं मानवीय स ंवेदना आज के संदर्भ म ंे". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special edition) (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.883549.

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Abstract:
मानव एव ं प्रकृति एक द ूसर े के प ूरक हैं। मन ुष्य का जीवन प्रकृति अर्थात ् पर्यावरण संरक्षण के बिना संभव नही ं है। मन ुष्य की आत्मके ंदि ्रत सोच के कारण प ्रकृति का दोहन करत े हुए उसन े संरक्षण का विचार त्याग दिया। कटत े हुए व ृक्ष, प ्रद ूषित होती हुई नदियाँ, सूखत े ह ुए कुँए, धुँए और धूलका ग ुबार बनती हुई हवा, कीटनाशका ें के जहर से भरी हुई खाद्य सामग ्री, मन ुष्य की सूखती हुई संव ेदना की कहानी कह रहे है ं। हम सब प्रक ृति की संतान ह ै। पँचतत्वों स े निर्मित है, हमारा शरीर: भूमि, वायु, जल, आकाश एव ं अग्नि। ये पाँच तत्व ही पर्यावरण है ं। इनमंे से एक भी यदि प ्रद ूषित होता ह ै तो मानव जीवन भी प
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प, ्रो. हर्ष वर्धन ठाकुर, та ्रो. रुपश्री दुबे प. "सितार क े प्रस्तुतिकरण म ें नवाचार का इतिहास". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.886972.

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Abstract:
विभिन्न व ैदिक कालीन संगीत ग्र ंथ¨ं यथा ऋग्वेद, सामव ेद, षाखायण ब्राह्मण, षतपथ ब ्राह्मण आदि के अलावा रामायण, महाभारत से ल्¨कर प ुराण परंपरा तथा भरत क े नाट््य षाó एवं अभिनव भारती, संगीत रत्नाकर आदि समस्त ग्रंथ¨ं में तंत्र्ाी वाद्य¨ ं का वर्णन मिलता है। आगे चलकर संगीत दाम¨दर, आइने अकबरी, राग विब¨ध, संगीत पारिजात, राधाग¨विंद संगीत सार आदि, मध्यकालीन एवं 19वीं षती के ग्र ंथ¨ं में भी चार प्रकार क े वाद्य¨ं का वर्णन मिलता है। उल्ल्¨खनीय ह ै कि उपर¨क्त ग्र ंथ¨ं में वीणा का उल्ल्¨ख पाया जाता है जिससे यह कहा जा सकता ह ै कि प्राचीनकाल से ही वीणा वाद्य का भारतीय संगीत में महत्वपूर्ण स्थान रहा है। भारत
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डॉ., टीना तांब े. "शास्त्रीय नृत्या ें में नवीन प्रयोग". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.884962.

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Abstract:
परिवर्तन प्रकृति का नियम ह ै। प्रकृति में विद्यमान का ेई भी तत्व इस प्रक्रिया से अछूता नहीं रह पाया है। रहन-सहन, खान-पान, आचार-विचार, मान्यताए, मानसिकता, नैतिक मूल्य आदि तथा सामाजिक व सांस्कृतिक परिदृश्य क े प्रत्येक क्षेत्र म े ं परिवर्तन दृश्यमान ह ै। प्राकृतिक परिवर्तन तो नैसर्गिक रूप से होते रहते ह ै परंतु अन्य र्कइ क्षेत्रा ें में यह परिवर्तन मानव की सृजनात्मक प्रव ृत्ति के फलस्वरूप उत्पन्न होते ह ै जिसमें प्रमुख ह ै “कला” क्षेत्र। सृजन करना मानव का नैसर्गिक गुण ह ै तथा नवीनता की खोज उसकी मूल प्रव ृत्ति। यही प्रवृत्ति जब निपुणता, कार्य का ैशल, प्रतिभा व सा ैन्दर्यबोध से प्रयुक्त हा ेकर सृ
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निर्मला, शाह. "पर्यावरण प्रबन्धन एव ं समाज". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.883555.

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Abstract:
मानव और पर्या वरण का निकट का सम्बन्ध है। पर्यावरण मानव का े प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है। स्वावलम्बी विकास की अवधारणा पर्यावरण एव ं विकास नीतियों के एकीकृत नजरिये पर आधारित है जिनका अभिप्राय किसी पारिस्थितिक क्षेत्र से अधिकाधिक आर्थिक लाभ लेना एव ं पर्यावरण के संकट एव ं जोखिम को न्यूनतम करना ह ै। इसम ें अन्तर्नि हित है, वर्त मान की आवश्यकताओं एव ं अप ेक्षाओं को भविष्य की क्षमताओं स े समझौता किय े बिना प ूरा करना। इसको प्राप्त करन े के लिये हमें विकास का पारिस्थितिक समन्वय करना होगा जिसमें हमें अपनी प्राथमिकताओं का प ुनर्नि न्यास करना चाहिये तथा एक आयामी प ्रतिमान छा ेड ़ द े
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विनिता, वर्मा. "'शास्त्रीय नृत्य में नवीन प्रयोग': कथक एव ं हवेली स ंगीत के पद". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–4. https://doi.org/10.5281/zenodo.885865.

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Abstract:
संगीत ंअर्थात् गायन, वादन और नृत्य अतिप्राचीन आ ैर ब्रह्मस्वरूप होने क े कारण अलौकिक ह ै । आद्यात्मिक संगीत जीवन का े पवित्र बनाकर आत्मोन्नति द्वारा मोक्ष की आ ेर ले जानेवाला मार्ग ह ै । नृत्य का आरंभ धर्म क े मूल भाव से ह ुआ है । मनीषियों ने इसे परमानंद का आधार निरूपित किया है । नृत्य आ ैर गान को हमारे यहांॅ, मोक्ष प्राप्ति का श्रेष्ठतम साधन बताया गया है । कथक नृत्य जिसका अन्य नाम ही ‘नटवरी नृत्य’ ह ै, इसका द्या ेतक ह ै कि कथक नृत्य अपनी अभिव्यक्ति क े लिए अधिकांशतः कृष्णचरित्र पर ही निर्भ र ह ै । यू ंता े कथक में परंपरागत अनेका ें पद, ठुमरी, भजन इत्यादि पर भाव प्रदर्शन किया ही जाता रहा ह ै क
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पाण्ड ेय, ऋषिराज. "रायप ुर जिल े म ें जन च ेतना का विकास". Mind and Society 8, № 03-04 (2019): 50–53. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-83-4-20198.

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Abstract:
भारत म ें अ ंग ्रेजा ें क े विरूद्ध स्वत ंत्रता स ंग ्राम क े रूप म ें सन ् 1857 म ें सव र्प ्रथम प ्रबल क्रा ंति ह ुइ र्। छत्तीसगढ ़ अ ंचल क े रायप ुर जिल े क े सा ेनाखान जमीदारा ें क े जमी ंदार नारायण सि ंह द्वारा क्रा ंति का बिग ुल फ ूंका गया, उनकी फा ंसी क े बाद स ैन्य विद ्रा ेह का न ेतष्त्व हन ुमान सि ंह द्वारा किया गया। सन ् 1885 म ें का ंग ्रेस की स्थापना ह ुइ र्, अ ंचल म ें राष्ट ्रीय च ेतना क े विकास म ें इसका भरप ूर या ेगदान रहा। साथ ही आय र् समाज, मालिनी रीडस र् क्लब, छत्तीसगढ ़ बाल समाज, कवि समाज की स्थापना जनच ेतना क े विकास की दष्ष्टि स े उल्ल ेखनीय ह ै। प ं. स ुन्दरलाल शमा र् न
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डा, ॅ. शा ेभना जा ेशी. "''साहित्य म ें र ंग-राग''". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.889280.

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Abstract:
सम्पूर्ण प ्रकृति और मनुष्य समाज; संव ेदनशील रचनाकार इन दोना ें के बीच रहते हुए, इनसे अपने रिश्ते जा ेड़ता ह ै, अनुभव लेता ह ै। उसका अपना भावा ें और विचारांे का, सपना ें और कल्पनाओं का, आशा आ ैर आकांक्षाओं का, एक संसार निर्मित होता ह ै, जा े आंतरिक होता ह ै। इसकी अभिव्यक्ति की प्रखर अभिलाषा के साथ वह कोई माध्यम सम्प्रेषण क े लिये चुनता ह ै। यह माध्यम चित्रकला, संगीतकला, मूर्तिकला, साहित्य कुछ भी हो सकता है। पर हर कला का माध्यम भिन्न होता ह ै और हर माध्यम में अभिव्यक्ति की स्वायŸाता होती ह ै। चित्र में रंग-र ेखा आकार, संगीत में स्वर-ताल-लय, काव्य में शब्द-प ्रतीक, मिथक, संकेत तो मूर्Ÿिा में आका
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बी.एस.जाधव. "सामाजिक समस्याएॅ व पर्यावरण". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.803460.

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Abstract:
आदिम काल से लेकर वर्त मान आधुनिक य ुग तक मन ुष्य न े उन्नति व प्रगतिव के अन ेक सा ेपान तय किए ह ै। मन ुष्य न े बुद्धि के विकास के साथ -साथ प्रगति की है। मानव न े प्रक ृति प्रदत्त साधनों का दोहन कर अपना विकास किया है, किन्त ु विकास की इस अन्धी दौड ़ में मन ुष्य न े प्रकृति प्रदत्त संसाधना ें का अविव ेकपुर्ण दोहन न े प्रकृति व पर्यावरण का े अत्यंत क्षति पहुचाॅई है। मन ुष्य की निरन्तर बढ़ती आवश्यकताआ ें न े पर्यावरण का े क्षति पहुचाई है, जिसमे ं प्राकृतिक अस ुत ंलन को जन्म दिया। इस असंत ुलन न े मानव के समक्ष ग ंभीर संकट उत्पन्न कर दिए है
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खापर्ड े, स. ुधा, та च. ेतन राम पट ेल. "कांकेर में रियासत कालीन जनजातीय समाज की परम्परागत लोक शिल्प कला का ऐतिहासिक महत्व". Mind and Society 9, № 03-04 (2020): 53–56. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-93-4-20218.

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Abstract:
वर्त मान स्वरुप म ें सामाजिक स ंरचना एव ं ला ेक शिल्प कला म ें का ंक ेर रियासत कालीन य ुग म ें जनजातीय समाज की आर्थि क स ंरचना म ें ला ेक शिल्प कला एव ं शिल्प व्यवसाय म ें जनजातीया ें की वास्तविक भ ूमिका का एव ं शिल्प कला का उद ्भव व जन्म स े ज ुड ़ी क ुछ किवद ंतिया ें का े प ्रस्त ुत करन े का छा ेटा सा प ्रयास किया गया ह ै। इस शा ेध पत्र क े माध्यम स े शिल्पकला म ें रियासती जनजातीया ें की प ्रम ुख भ ूमिका व हर शिल्पकला किस प ्रकार इनकी समाजिकता एव ं स ंस्क ृति की परिचायक ह ै एव ं अपन े भावा ें का े बिना कह े सरलता स े कला क े माध्यम स े वर्ण न करना ज ैस े इन अब ुझमाडि ़या ें की विरासतीय कला ह
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चा ैहान, ज. ुवान सि ंह. "प ्रवासी जनजातीय श्रमिका ें की प ्रवास स्थल पर काय र् एव ं दशाआ ें का समाज शास्त्रीय अध्ययन". Mind and Society 8, № 03-04 (2019): 38–44. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-83-4-20196.

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Abstract:
भारत म ें प ्रवास की प ्रक्रिया काफी लम्ब े समय स े किसी न किसी व्यवसाय या रा ेजगार की प ्राप्ति ह ेत ु गतिशील रही ह ै आ ैर यह प ्रक्रिया आज भी ग ्रामीण जनजातीय सम ुदाय म ें गतिशील दिखाइ र् द े रही ं ह ै। प ्रवास की इस गतिशीलता का े रा ेकन े क े लिए क ेन्द ्र तथा राज्य सरकार न े मनर ेगा क े तहत ् प ्रधानम ंत्री सड ़क या ेजना, स्वण र् ग ्राम स्वरा ेजगार या ेजना ज ैसी सरकारी या ेजनाआ े ं का े लाग ू किया ह ै, ल ेकिन फिर ग ्रामीण जनजातीय ला ेगा े ं क े आथि र्क विकास म े ं उसका असर नही ं दिखाइ र् द े रहा ह ै। ग ्रामीण जनजातीय सम ुदाया ें म े ं निवास करन े वाल े अधिका ंश अशिक्षित हा ेन े क े कारण शा
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डा, ॅ. साधना चा ैहान. "आ ंतरिक एव ं बाह ्य सज्जा में र ंग स ंयोजन". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.890365.

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Abstract:
रंग हमारे जीवन का एक अभिन्न हिस्सा ह ै, जितनी ख ुबसुरत हमारी यह रंगीन दुनिया है, उतनी ही विलक्षण इन रंगा े की दुनिया ह ै। बचपन में हमे सिर्फ तीन प्राथमिक रंगा े के नाम सिखाये जाते है:- पीला, नीला और लाल, परन्तु सच तो यह है कि, किसी संख्या में रंगा े को सीमित नही कर सकते। रंगा े की का ेई गिनती नही होती, क्या ेंकि इस दुनिया में असंख्य रंग ह ै। इसका कारण यह ह ै कि किन्ही भी दो रंगा े का े मिलाकर हम एक तीसरे रंग का निर्माण कर सकते ह ै आ ैर उन दो रंगा े की मात्रा में फ ेरबदल करके हम अनेक हल्के आ ैर गहरे रंगा े का निर्मा ण कर सकते ह ै। इस तरह हम अलग अलग सामंजस्य (ब्वउइपदंजपवदे) से असंख्य रंगा े का न
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डा, ॅ. अतुल क. ुमार गुप्ता. "स ंगीत चिकित्सा म ें नवाचार "मना ेरा ेगा े क े स ंदर्भ म ें"". International Journal of Research – Granthaalayah Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.884614.

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Abstract:
गायन वादन एव ं नृत्य तीनों कलाओं क े समाव ेश का े संगीत कहा गया ह ै। जिसमें गायन एव ं वादन को क ेवल कर्ण के द्वारा अर्था त् बिना देखे ह ुए भी समझा एव ं रससिक्त हुआ जा सकता ह ै। नृत्य को समझने में दोनों ज्ञानेन्द्रिया कार्य करती ह ै, अर्था त् एक दृष्टिहीन व्यक्ति भी संगीत का रसास्वादन कर सकता ह ै। संगीत का मूलभूत कारक ह ै- ध्वनि। वायु द्वारा ध्वनि तरंगा ें का े जब कर्ण क े माध्यम से मस्तिष्क को सूचना प्राप्त हा ेती ह ै, तब हमें यह समझ में आता ह ै, कि सामने वाला कोई बोल रहा ह ै अथवा गा रहा ह ै अथवा वादन कर रहा ह ै। अनुसंधान एवं या ंत्रिकीय प ्रया ेगा ें द्वारा ध्वनि तरंगा ें का े व ैज्ञानिका ें
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अ, ंजना जैन. "भारत म ें प ेयजल प्रद ुषण - मानव स्वास्थ्य के लिए एक चुना ैति". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–5. https://doi.org/10.5281/zenodo.883525.

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Abstract:
पृथ्वी का 2/3 भू-भाग जल स े घिरा ह ुआ है। पृथ्वी पर जल की मात्रा 1.4 मिलियन क्यूबिक मीटर आंकी गई है। जिसका 97.57ः भाग महासागरों में होन े के कारण खारा जल है। लगभग 36 क्यूबिक मीटर स्वच्छ जल जा े पीन े व उपयोग म ें ल ेन े योग्य है उसम ें स े लगभग 28 मिलियन क्यूबिक मीटर जल बर्फ के रूप म ें ध्रुवों पर जमा ह ै। हमार े वास्तविक उपया ेग के लिये उपलब्ध लगभग 8 मिलियन क्यूबिक मीटर जल पर द ूनिया के लगभग 6 अरब से ज्यादा की आबादी निर्भर है।’1 पीन े योग्य जल के स्त्रोत के रूप में नदियाँ, तालाब, कुए व नलकुप उपलब्ध है। और इनके जल का उपयोग भी हम उसी स्थिति म ें कर सकत े है। जब यह जल प्रद ुषण से मुक्त हो। शुध्द
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Bhupendra, Singh, та Sharma Anju. "महलाओं एवं दलत के उथान म मालवीय जी का योगदान". RECENT RESEARCHES IN SOCIAL SCIENCES & HUMANITIES 11, № 4 (2024): 63–68. https://doi.org/10.5281/zenodo.14840759.

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Abstract:
67टश हत और उसके :यापा(रक उ;े<य ने भारतीय अथ":यव*था का नाश कर दया। भारतीय समाज अनेक कु?थाओंसे @ सत था, िजसम पैदा होते ह/ क5या कC हया, 'वधवाओं कC दयनीय दशा, 'ववाह-'वDछेद, बाल-'ववाह, वे<यावृित,जात-पात छुआछूत आद ?मुख थी। मदन मोहन मालवीय ने आधु&नक 'वचार के माHयम से सव"?थम समाज म फैल/कु?थाओं को जड़ से उखड़ने का संकKप Lकया। मदन मोहन मालवीय ने रचनामक कायM को इस ?कार से हाथ म  लयाLक समाज एक नई *फू&त" और ?ेरणा से भर उठा। मालवीय जी ने पQका(रता और साहय के माHयम से समाज को ?ेरणाद/। महलाओं एवं द लत के उथान म योगदान देकर मालवीय जी न समाज को एक सह/ दशा देने के साथ-साथ एकताके सूQ म 'परोने का
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डॉ., व. ंदना चराटे. "र ंग चिकित्सा". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.889267.

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Abstract:
रंग मानवीय जीवन में विविध अनुभूतिय¨ ं एव ं संव ेदनाअ¨ं का पर्याय ह ै। मनुष्य की दुनिया भी विविध रंग¨ ं से बनी है। इसीलिये भारतीय संस्कृति में भी विविध संस्कार¨ं का स्वरूप रंग¨ ं क¢ इर्दगिर्द ही समाया हुआ ह ै। ज¨ उत्साह, निराशा, सुख और दुख की अनुभूति करवाते है ं। इसी तरह मनुष्य का शरीर भी विविध रंग¨ ं से निर्मित है, ज¨ उसकी मानसिक आ ैर शारीरिक स्थिति का द्य¨तक है, रंग¨ ं का यह संतुलन प्रकृति अर्थात् ईश्वर प्रदŸा ह¨ता ह ै। इसमें गडबडी या असंतुलन ह¨ने पर मनुष्य अस्वस्थ ह¨ जाता ह ै, तब विविध उपचार या चिकित्सा पद्धति क¢ माध्यम से इन रंग¨ ं क¨ संतुलित कर मनुष्य क¨ स्वस्थ बनाने का प्रयास किया जाता है
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दिलीप, कुमार (अस्सिटेन्ट प. ्रोफेसर). "चित्रकला म ें र ंग (अजन्ता)". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1. https://doi.org/10.5281/zenodo.891774.

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Abstract:
अ ंजन्ता की गुफाआ ें मे भिति चित्रण 20र्0 इ 0 पू0 से लेकर 62र्0 इ 0 तक क े समय तक बनायी गयी ह ै इतने लम्बे समय अन्तराल क े बाद कुछ भिति चित्रों क े वर्ण सा ैष्ठव तथा लवण्य कम ह ुये ह ै फिर भी आज तक अजन्ता के चित्रा ें की आभा फीकी नही पडी है। अजन्ता के चित्रा ें में सुन्दर वर्ण छटा यत्र-तत्र विखरी दिखाई पडती है। यद्यपि इन चित्रा ें की चमक पर्या प्त धूमिल पड चुकी ह ै तथापि रंग जानदार प ्रतीत हा ेते ह ै। चमकदार नीचे, हरे तथा बैगनी रंग अपनी पूर्व आभा में आज भी जगमगाते ह ै। शरीर तथा कपडों का रंग लावण्य युक्त आ ैर संगत ह ै ं अजन्ता क े कुछ आरम्भिक चित्रों को छा ेडकर सोलहवीं तथा सत्रहवी गुफा में अजन्
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डाॅं, सीमा शर्मा एम. एल. बी. का ॅलेज इन्दौर. "चित्रकला म ें र ंग (विशेष स ंदर्भ अजन्ता)". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.890545.

Full text
Abstract:
मानव जीवन में रंग का महत्वपूर्ण स्थान है। प्रत्येक वस्तु र्कोइ न का ेई रंग लिए ह ै। वस्तुआ ें के धरातल मे रंग हा ेने के कारण ही वह हमें दिर्खाइ देती ह ै। धरातला ें पर प ्रकाश की मात्रा कम अथवा अधिक हा ेने से एक ही रंग की वस्तुयें अलग-अलग दिर्खाइ देती ह ैं। एक ही वस्तु बन्द कमरे में, धूप में तथा विभन्न ऋतुओं में अथवा विभिन्न स्थाना ें पर प ्रकाश की मात्रा तथा वातावरण के कारण रंग व्यवस्था की एक रंगत हा ेते ह ुये भी भिन्न दिखाई देगी। रंगा ें के प ्रति मानव का आकर्ष क कभी नहीं घटा ह ै क्या ेंकि रंग आकर्षक का एक माध्यम ह ै। इसलिये ता े आदिवासियों से लेकर आधुनिक मानव तक ने सा ैन्दर्य के विकास में रं
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डाॅ., कुमकुम माथुर. "''संगीत म ें र ंगा े का समन्वय''". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–5. https://doi.org/10.5281/zenodo.888770.

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Abstract:
वात्सायन मुनि के कामसूत्र (र्2 इ -3 ई शताब्दी ई0) नामक ग्रन्थ में तीसरे अध्याय के अन्तर्गत चा ैसठ कलाओं का विव ेचन किया गया है। जिनमें प ्रथम स्थान पर गीतं (संगीत) द्वितीय स्थान पर बाद्यं (वाद्य- वादन), तृतीय स्थान पर नृत्यं (नाच) तथा चतुर्थ स्थान पर आलेख्यं अर्था त ‘चित्रकला’ को माना ह ै। ‘कामसूत्र के प्रथम प्राधिकरण के तीसरे अध्याय की ‘जयमंगला’ नामक टीका (11-12वी शताब्दी) पण्डित यशोधर द्वारा प्रस्तुत की गई। जिसके अन्तर्गत आलेख्य (चित्रकला) के छह अंग वर्णित किये गये। 1. रूपभेद 2. प ्रमाण, 3. भाव, 4. लावण्य या ेजना, 5. सादृश्य एव ं छटवां वर्णिका-भ ंग। ‘‘वर्णिका-भंग’’ अर्थात विभिन्न रंगा ें का
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दिव्या, पाराशर. "बृहत्तर ग्वालियर म ें बढ ़ती जनसंख्या व ृद्धि का मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special edition) (2017): 1–4. https://doi.org/10.5281/zenodo.574869.

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Abstract:
व्यक्ति को सदा से ही अपनी मूलभूत आवश्यकताओ ं की प ूर्ति के लिए आय के उचित साधनों की तलाश रहती है। यही कारण है कि ग ्रामीण व्यक्तियों न े जब शहरों की आ ेर पलायन किया ता े नगरों का विस्तार हा ेन े लगा। परिणाम स्वरूप प ूर्व में जो नगर व्यवस्थित रूप से बसे हुए े थे वहीं व े नगर आध ुनिक समय म ें अव्यवस्थित रूप में बस कर अव्यवस्थित महानगरा ें का रूप लेन े लगे। नगरों एव ं महानगरो ं की इसी अव्यवस्था न े हमार े समक्ष प ्रद ूषण की समस्या खड ़ी कर दी है। जो नगर सभ्यता व संस्क ृति के क ेन्द ्र मान े जात े हैं अब वही नगर प ्रद ूषण के क ेन्द ्र बन गये ह ै।
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डा, ॅ. प्रतिभा सोलंकी. "मध्यकालीन हि ंदी काव्य म ें र ंग संया ेजन". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.889259.

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Abstract:
साहित्य आ ैर चित्रकला का पारस्परिक घनिष्ठ अंतर्सबंध ह ै। दोना े क े माध्यम से जीवन के गहन उद्द ेष्या ें की प ूर्ति होती है। साहित्यकार के शब्द यदि हमारी भावना का े उद्वेलित कर सकते ह ै ं तो चित्रकार की तूलिका से अ ंकित रेखाएं आ ैर रंग भी हमारे ह ृदय के का ेमल पक्ष को छूने की अद्भुत शक्ति लिए होते ह ैं। कवि आ ैर चित्रकार दोना े ही अपनी कला प्रतिभा के जरिये सा ैंदर्य रचना करते ह ैं। कविता में शब्दों का तथा चित्रों में रंग आ ैर रेखाआ ें का सा ैंदर्य मौजूद रहता है।1 एक कुषल चित्रकार की भाँति साहित्यकार भी शब्दा ें क े माध्यम से सु ंदर बिंब एवं रंग स ंया ेजन प ्रस्तुत करता ह ै। मध्यकालीन हिंदी काव्
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चरनजीत, कौर. "आधुनिक परिवारो म ें रसोई उघान क े प ्रति अभिव ृत्तिया ं ज्ञान एवं व्यवहार का अध्ययन". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–4. https://doi.org/10.5281/zenodo.574867.

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Abstract:
भारत द ेश में वर्त मान म ें पर्या वरण प ्रद ूषण एक विकट समस्या हैं। जिसके स ुधार में गृह वाटिका का महत्वप ूर्ण योगदान हो सकता हैं। घनी वस्तियों तथा औद्योगिक क्षेत्रों म ें भी ग ृहवाटिका की विश् ेाष भ ूमिका ह ैं। यदि घर के सामन े पेड पौधे लग े हों तो घर के अंदर धूलमिट ्टी नहीं आती तथा स्वच्छ हवा का आवागमन बना रहता है। इसमें घर की रसोई से निकलन े वाले व्यर्थ पदार्थो का उपयोग खाद के रूप में किया जा सकता ह ै। यह एक छोटी उत्पादन इकाई के रूप में भी हो सकती ह ै। इन्ही तत्थ्यों का े ध्यान में रखकर गृहवाटिका एक प्रयोगशाला प्रतीत होती है, जहां व्यक्ति उद्यानषास्त्री न होत े हुए भी राष्ट ृ्र् ीय विकास एव
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एडलिन, अब ्राहम. "अला ैकिक अनुभवों का चित ेरा - साजन कुरियन मैथ्यू". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.893178.

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Abstract:
रंगा ें से ख ेलने वाले कलाकार साजन कुरियन मैथ्यू क¨ रंगा ें की कला यात्रा लिखने का सुअवसर प्राप्त हुआ।साजन कुरियन मैथ्यू क े प्रारम्भिक दौर के चित्रा ें में राजा रवि वर्मा, पाश्चात्य कलाकार डेलाक्रा, माइकल कैरीव ैग्या े ए ंजेला े, सल्वाडा ेर डाली, विस्टलर, आदि यूरा ेपीय चित्रकारों की श ैली से प्रभावित होकर यर्था थवादी आ ैर अतियर्थाथवादी चित्रण हुआर्। इ सा क े जीवन पर आधारित उनक े तैल चित्र (जा े वर्तमान में जबलपुर, केरल, सिहोरा, शहडा ेल,आ ैर दिल्ली, के गिरजाघरो ं में शा ेभायमान हंै,) मंे मानवीय अ ंग विन्यास, प ृष्ठ भूमि, वातावरण आदि में अत्यधिक बारीकी से रंगा े का प्रया ेग कर वास्तविकता का साक
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प, ्रो. पार्व ती मोदी. "र ंग हमारा अलंकरण". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.890593.

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Abstract:
प ्रकृति जिस प्रकार अपने प ्रांगण में रंग बिख ेर कर उसे मन-मा ेहक बना देती है, उसी प्रकार हम भी रंगा ें का संया ेजन कर वातावरण को उल्लासपूर्ण बना सकते ह ैं।रंग का प्रभाव सार्वभा ैमिक ह ै और हमारी एक महत्वपूर्ण ख ुषी इस बात में निहित ह ै कि हम रंग का संुदरताप ूर्ण उपया ेग किस या ेग्यता से करते ह ै ं।रंगा ें का मानव-जीवन से घनिष्ठ संब ंध ह ै। प ्रत्येक संुदर वस्तु मनुष्य क े हृदया ें आ ैर भावनाओं का े प्रभावित करती है। उपयुक्त विभिन्न रंगा ें स े संब ंधित चित्र, वस्त्र तथा घर मनुष्य का े उत्साहित आ ैर आनंदित करते ह ैं। प ्रकृति की सुदंर रंगीन छटा प ्रतिक्षण हमारे सन्मुख नया रूप धारण कर प्रस्तुत
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पवनेन्द्र, कुमार तिवारी. "मध्यकालीन पुस्तक चित्रा े तथा लघु चित्रा े म ें र ंग". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.891930.

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Abstract:
मध्यकालीन भारत में चित्रण क े लिए रंग र्कइ प ्रकार के पदार्थो जैसे खनिजों या ेगिका े अथवा प्राकृतिक लवणा ें से प ्राप्त किये जाते थे। कुछ रंग प ्राकृतिक वस्तुओं जैसे वनस्पति जैव पदार्था े स े प ्राप्त किये जाते थे। उदाहरण क े लिए नीम तथा कृमिदाना आदि काजल का प्रयोग न क ेवल चित्रा े में बल्कि लेखन कार्य में भी बडे प ैमाने पर हुआ। इसी प ्रकार लाल स्याही चाँदी तथा सा ेने में लिखा होने क े कारण स्वणाक्षरी शेत्याक्षरी नाम दिया गया । लाल स्याही का प्रयोग अहमाया े क े अन्त में हाशिये खीचने में व ृन्तों रेखाओं यंत्रा ें आदि में हुआ। स्वर्ण रजत चूर्ण से लिखी जाने वाली प ुस्तके अधिक व्यय-साध्य थी उनमें
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ब, ृजेश क. ुमार. "भारतीय चित्रकथाआ ें (काॅमिक्स) म ें र ंग सया ेजन क े ग्राफिक अभिप्राय". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1. https://doi.org/10.5281/zenodo.890567.

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Abstract:
रंग संया ेजन के आधार पर ग्राफिक अभिप्राय एक व्यवस्थित और प्रबन्धात्मक विचार धारा का े कला की भाषा में संया ेजन कहते ह ै। जिसका विभिन्न समस्या अन्तराल आ ैर क्षेत्रा ें में विभाजित करने ए ंव रेखाओं, आकृतियों, वर्णा े (रंगा ें), ताना े तथा वयन आदि के चयन का े व्यवस्थित करने से सम्बधित ह ै।चित्रकथा (काॅमिक्स) में रंगा ें का सयोजन का इतिहास काफी प ुराना रहा ह ै। मानव ने जब सर्व प ्रथम आँखे खोली ता े वह प ्राकृतिक वातावरण के बीच रहते ह ुए शिकार करके अपना पेट भरने लगा। परिणाम स्वरूप अपने प ्राकृतिक वातावरण को देखकर उसने पत्थरों, चट्टानों, गुफाआ ें आदि की दीवारांे पर का ेयले, पत्थर तथा प्रकृति प्रद्दत
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आलोक, गोयल किरण बड े़रिया राकेश कवच े. "विकास के लिए पर्या वरण क े क्षेत्र म ें मनुष्य की नैतिक भूमिका". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.574866.

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Abstract:
मानव जीवन का समूचा अस्तित्व पर्यावरण पर आधारित है। जहाँ पर्यावरण का सन्त ुलन विकास मार्ग का सन्त ुलन विकास मार्ग की प्रगति को प्रषस्त करता है। वहीें पर्यावरण का असन्त ुलन व्यक्ति ही नहीं समूच े समाज और मानव स ंसाधनों के विनाष का प्रमुख कारण ह ै। स ुन्दरलाल बहुगुणा का कहना है कि ‘‘पहले मन ुष्य प्रक ृति का ही एक अभिन्न हिस्सा था। प्रक ृति से उसका रिष्ता अहिंसक आ ैर आत्मीयता का था। स्वार्थ आ ैर भोग संस्क ृति के कारण अब यह न क ेवल बदल गया बल्कि विकृत हो गया।’’ मन ुष्य क े अन ैतिक आचरण से जहां पर्यावरण सहित लगभग सभी क्षेत्रों मंे पतन हुआ ह ै वहीं अच्छ े आचरण और सामाजिक स्वीकृति से किया जान े वाले व
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Sahastrabuddhe, Bhagyashree. "THE USE OF CLASSICAL RAGA YEMEN IN CINE MUSIC - AN IDEA." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 3, no. 1SE (2015): 1–3. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v3.i1se.2015.3439.

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Abstract:
Hindustani music is based on raga. The definition of raga has been given by different scholars with their own method, but the meaning of all has been referenced by "sound" in particular, the voice of the Varna Varnishtha: Ranjjjan, Chittananas: Raga: The so-called "Buddha". Therefore, it can be said that the soul of Indian music resides only in the raga composition which creates the pigmentation with the tone and color. The railing structure stands on the building box. On the rough side, it is assumed that in the construction of an octave, the original 12 vowels are the same in the constructio
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भाग्यश्री, सहस्त्रब ुद्धे. "सिन े संगीत म ें शास्त्रीय राग यमन का प्रय¨ग - एक विचार". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.886051.

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Abstract:
हिन्दुस्तानी संगीत राग पर आधारित ह ै। राग की परिभाषा अलग-अलग विद्वान¨ं ने अपनी-अपनी पद्धति से दी ह ै परन्तु सबका आशय ”य¨ऽयं ध्वनिविषेषस्तु स्वर वर्ण विभूषितः रंजक¨जन चित्तानां सः रागः कथित¨ बु ेधैः“ से ही संदर्भित रहा है। अतः यह कहा जा सकता ह ै कि भारतीय संगीत की आत्मा स्वर, वर्ण से युक्त रंजकता प ैदा करने वाली राग रचना में ही बसती ह ै। स्वर¨ं क ¢ बिल्ंिडग बाॅक्स पर राग का ढाँचा खड़ा ह¨ता है। मोटे त©र पर ये माना गया है कि एक सप्तक क¢ मूल 12 स्वर सा रे रे ग ग म म प ध ध नि नि राग क ¢ निर्माण में वही काम करते ह ैं ज¨ किसी बिल्डिंग क ¢ ढाँचे क¨ तैयार करने में नींव का कार्य ह¨ता ह ै। शास्त्रकार¨ं न
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ऋचा, उपाध्याय. "विभिन्न कालान्तर्गत तत् वाद्या ें म ें अधुनातन प्रयोग". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–4. https://doi.org/10.5281/zenodo.884966.

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Abstract:
भारतीय संगीत में अनेक प्रकार क े तत् वाद्यों की परम्परा आदिकाल से चली आ रही है । आदि मानव ने अपनी रुचि एवं ब ुद्धि क े आधार पर कलात्मक विविध तत् वाद्यों की नी ंव ही नहीं डाली वरन् उनका उपयोग कर मानव जीवन का े भौतिक धरातल से ऊँचा उठाकर कला को दिव्य तथा आलौकिक धरा पर लाकर प्रतिष्ठित कर दिया । तत् वाद्यों की श्रेणी में किये गये प ्रया ेगा ें क े माध्यम से ही संगीत क े सिद्धान्तों ,श्र ुति, स्वर, सप्तक, एक स्वर से दूसरे स्वर की दूरी, मूछ्र्र च्ना पद्धति आदि का े प ्रमाणित व निष्चित किया जा सका । आज भी इसमें निरंतर अधुनातन प ्रयोग किये जा रह े ह ंै, जिस प्रकार स े प ्र त्येक वस्तु में समयंातराल क े
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साह ू, प. ्रवीण क. ुमार. "संत कबीर की पर्यावरणीय चेतना". Mind and Society 9, № 03-04 (2020): 57–59. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-93-4-20219.

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Abstract:
स ंत कबीर भक्तिकालीन निर्ग ुण काव्यधारा अन्तर्ग त ज्ञानमार्गी शाखा क े प ्रवर्त क कवि मान े जात े ह ैं। उनकी वाणिया ें म ें जीवन म ूल्या ें की शाश्वत अभिव्यक्ति एव ं मानवतावाद की प ्रतिष्ठा र्ह ुइ ह ै। कबीर की ‘आ ंखन द ेखी’ स े क ुछ भी अछ ूता नही ं रहा ह ै। अपन े समय की प ्रत्य ेक विस ंगतिया ें पर उनकी स ूक्ष्म निरीक्षणी द ृष्टि अवश्य पड ़ी ह ै। ए ेस े म ें पर्या वरण स ंब ंधी समस्याआ ें की आ ेर उनका ध्यान नही गया हा े, यह स ंभव ही नही ह ै। कबीर क े काव्य म ें प ्रक ृति क े अन ेक उपादान उनकी कथन की प ुष्टि आ ैर उनक े विचारा ें का े प ्रमाणित करत े ह ुए परिलक्षित हा ेत े ह ैं। पर्या वरणीय जागरूक
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साधना, राज. "भा ेज्य पदार्था े म ें अप्राकृतिक र ंगा े क े उपयोग स े समाज एवं स्वास्थ्य पर पडने वाल े प्रभाव". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1. https://doi.org/10.5281/zenodo.891846.

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Abstract:
रंग की परिभाषा रंग हज़ारो वर्षो से हमारे जीवन में व्याप्त है। प्रारंभ में मानव प ्राकृतिक रंगा ें का हि उपयोग करता था। उल्लेखनीय है कि मोहनजोदड़ा े आ ैर हड़प्पा की खुर्दाइ में सिंधु घाटी सभ्यता की जो वस्तुए प्राप्त र्ह ुइ ह ै उनमें ए ेसी मूर्तियाँ एवं बर्तन भी थ े जिन पर रंगाई की र्गइ थी। जिसमें लाल रंग क े कपड़े का एक टुकडा भी मिला। विषेषज्ञों क े अनुसार इस पर मजीठ या मजिष्ठा की जड़ से तैयार किया गया रंग चढ़ाया गया था। हाजरों वर्षों तक मजीट की जड़ आ ैर बक्कम वृक्ष की छाल लाल रंगा का मुख्य स्त्रा ेत थी। पीपल, गूलर आ ैर पाकड़, हल्दी आदि से रंग तैयार किया जाता था किंतु आजकल कृत्रिम रंगा े का े उ
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सचिव, ग©तम (श¨ध छात्र्ा). "चित्र्ाकला म ंे र ंग (प्राग ैतिहासिक काल स े वर्तमान काल तक क े परिप्रेक्ष्य म ें)". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.892056.

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Abstract:
मानव जीवन में वर्ण (रंग) का महत्वपूर्ण स्थान ह ै। प्रत्येक वस्तु क¨ई न क¨ई रंग लिये हुये ह ै। वस्तुअ¨ ं के धरातल में रंग ह¨न े के कारण ही वह हमें दिर्खाइ देती ह ै। रंग¨ ं के प्रति मानव का आकर्ष ण कभी घटा नहीं है। इसीलिये आदिम गुफाचित्र्ा¨ं से ल्¨कर आधुनिक मानव तक ने स©न्दर्य क े विकास में रंग¨ ं का सहारा लिया है। रंग¨ ं का महत्व हमें मानव जीवन के इतिहास के हर अध्याय में देखने क¨ मिलता ह ै। वर्ण प्रभाव अर्थात् रंग प्रभाव के आधार पर चित्र्ा क¨ स©न्दर्य प्रधान बनाया जा सकता है। रंग हमारे जीवन का महत्वप ूर्ण हिस्सा है; इसके बिना प्रकृति उपस्थित किसी भी पदार्थ या जीव का अपना क¨ई वजूद नहीं ह ै। रंग¨
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सुरभि, त्रिपाठी. "''चित्रकला म ें र ंग'' (प्रागैतिहासिक काल स े वर्तमान काल तक के परिपेक्ष्य में)". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.890519.

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Abstract:
सुख-दुःख, उत्तेजना, भय, विश्राम, उल्लास आदि का पर्या य ही रंग ह ै। रंग प्रकृति के कण-कण में व्याप्त ह ै। घरा क े प ्रत्येक रंग का अपना एक सौदंर्य व नैसर्गिक गुण होता ह ै, परन्तु उसे किस प ्रकार प ्रयुक्त किया जाय यह कलाकार की क ुशलता एवं दक्षता पर निर्भर करता ह ै, एक प ्रकार से रंग ही मनुष्य की प ्रव ृत्ति की अभिव्यक्ति हैं, जिसे कलाकार अपने अनुभव के साथ प ्रस्तुत करता है। रंगा ें क े प ्रति मनुष्य का आकर्ष ण स्वाभाविक ही नहीं वरन् जन्मजात ह ै, इस प ्रकार रंग व्यक्ति विशेष की कलाक ृति का सबसे महत्वपूर्ण व सार्थ क तत्व ह ै। रंग व्यक्ति विश ेष की अभिव्यक्ति भी ह ै। हिन्दू धर्म में वर्ण (रंग) का
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वन्दना, अग्निहोत्री. "नदिया ें म ें प्रद ूषण और हम". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–4. https://doi.org/10.5281/zenodo.883519.

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Abstract:
जल को बचाए रखना सभी की चिन्ता का विषय ह ै, व ैज्ञानिक राजन ेता, ब ुद्धिजीवी, रचनाकार सभी की चिन्ता है, जल कैस े बचे ? द ुनियाँ को अर्थात पृथ्वी को वृक्षों को, जंगलो को, पहाड ़ों को, हवा को, पानी को बचाना है। पानी का े बचाया जाना बह ुत जरूरी ह ै। पृथ्वी बच सकती ह ै, वृक्ष ज ंगल, पहाड ़ और मन ुष्य, पषु, पक्षी सब बच सकत े ह ै, यदि पानी को बचा लिया गया और पानी प ृथ्वी पर है ही कितना? पृथ्वी पर उपलब्ध सार े पानी का 97ण्4ः पानी सम ुद ्र का खारा जल है, जो पीन े लायक नही ह ै, 1ण्8ः जल ध ु्रवा ें पर बर्फ के रूप म ें विद्यमान है और पीन े लायक मीठा पानी क ेवल 0ण्8ः ह ै जो निर ंतर प्रद ूषित हा ेता जा रहा
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डा, ॅ. श्वेता पाण्डेय. "जामिनी राय की कला म ें र ंग योजना की भ ूमिका". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.888821.

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Abstract:
जामिनी राय ने अपनी कला यात्रा के दौरान असंख्य चित्रा ें का निर्माण किया। इस निर्मा ण कार्य में शायद ही ऐसा कोई विषय हो जो जामिनी राय की तूलिका क े माध्यम से प्रकट ना हो सका हो। कला के प ्रति उनका समर्पण व उनकी निरन्तरता क े कारण ही उन्होंने इतनी बड़ी संख्या में चित्रा ें का निर्माण किया। जामिनी राय ने अपने ही चित्रा ें को र्कइ बार दोहराया है, इसलिये यह कह पाना बड़ा कठिन ह ै कि का ैन सा चित्र पहले का ह ै, कौन सा बाद का, सिर्फ श ैली को देखकर ही निर्मा ण काल का अनुमान लगाया जा सकता है। इसक े अतिरिक्त जामिनी राय ने अपने चित्रा ें में कभी भी तिथि का उल्लेख नही किया है, इस कारण यह समस्या और भी जटिल
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डा, ॅ. अल्पनारानी गाँधी. "चिकित्सा क े क्ष ेत्र म ें स ंगीत का प्रया ेग: एक स ंक्षिप्तावलोकन". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.887025.

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Abstract:
संगीत एक ऐसी कला ह ै जिससे न क ेवल चेतन अपितु जड़ भी प्रभावित होता ह ै। संगीत क ेवल आनंदानुभूति ही नहीं देता वरन् मनुष्य या प ्राणी की मानसिक स्थितिया ें की भी सूचक होता ह ै आ ैर हमारे मना ेभावों का े भी प ्रभावित करता ह ै। संगीत म ें स्वर व गति (लय) का समाव ेश हमारी आत्मा को प ्रभावित करता ह ै। मानवीय क्रियाए ं भी गत्यात्मक होती ह ैं दोनों म ें सादृश्यता होने क े कारण ही राग रागनियाँ हमारी आत्मा और शरीर को प ्रभावित करती ह ैं। राग और लय की शक्ति इनकी नियमितता क े कारण ही आती ह ै। यह मनुष्य का स्वभावगत व्यवहार ह ै कि असंतुलन में संतुलन, अव्यवस्था में व्यवस्था आ ैर असामंजस्य में सामंजस्य लाने क
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श्रीमती, सुधा शाक्य. "र ंग दृष्टि दा ेष: र ंग अ ंधता". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.889298.

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Abstract:
्रस्तावना:- मानव में र्कइ प्रकार की संव ेदनाएं होती हैं जैसे दृष्टि, श्रवण, स्पर्श , गंध, स्वाद आदि। इनकी उत्पत्ति उद्दीपका ें से होती ह ै, जिसे व्यक्ति अपने बाह ्य पर्यावरण से ग्रहण करता ह ै, यह उद्दीपक ज्ञानेन्द्रिया ें अर्था त आंख, कान, त्वचा, नाक आ ैर जिव्हा को उद्दीप्त करते ह ैं, आ ैर विभिन्न संव ेदना को उत्पन्न करते ह ै ं। आइजनेक (1972) क े अनुसार ‘‘ संव ेदना एक मानसिक प ्रक्रम ह ै जा े आगे विभाजन या ेग्य नहीं होता। यह ज्ञानेन्द्रिया ें को प ्रभावित करने वाली बाह ्य उत्तेजना द्वारा उत्पादित हा ेता ह ै, तथा इसकी तीव ्रता उत्तेजना पर निर्भ र करती ह ै, आ ैर इसके गुण ज्ञानेन्द्रिय की प ्रकृत
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डा, ॅ. वीणा अत्रे. "''रंगा ें का मना ेवैज्ञानिक प्रभाव एवं र ंग चिकित्सा''". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.889308.

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Abstract:
मनुष्य एक सामाजिक प ्राणी ह ै। विभिन्न रंगा ें का उसक े जीवन पर महत्वप ूर्ण प ्रभाव पड़ता ह ै। सभी रंग जीवन में सार्थ कता का अनुभव कराते ह ै। सकारात्मक सा ेच के साथ ऊर्जा प ्रदान करते ह ैं। तभी मनुष्य सरसता एवं सक्रियता के साथ जीवन व्यतीत करता ह ै चित्रकला क े माध्यम से मनुष्य क े शारीरिक एवं मानसिक विकास में विभिन्न रंगा ें की अहम् भूमिका ह ै। कलाकार केवल मन क े भाव ही रेखा आ ैर रंगा ें से अभिव्यक्त नहीं करते बल्कि उसक े पीछे उनका शा ेध एवं व ैचारिक मंथन के साथ क्रिएशन काम्बीनेशन का भी विकास हा ेता ह ै। र ंगा ें का मना ेवैज्ञानिक प ्रभाव - वर्षा के दिना ें में इ ंद्रधनुष की सत-रंगी छटा मन का
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डा, ॅ. नीरज राव. "स ंगीत क े प्रचार-प्रसार म ें स ंचार साधना ें की भ ूमिका". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1. https://doi.org/10.5281/zenodo.886994.

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Abstract:
मनुष्य को आदिकाल से ही संगीत मना ेरंजन एव ं आमोद-प्रमोद का साधन रहा ह ै। आदिकाल से ही मानव ने अपने मना ेरंजन क े साधन क े लिये विभिन्न प्रकार क े प ्रया ेग किये जैसे-जैसे मानव अपनी सभ्यता का विकास करता गया व ैसे-व ैसे उसकी समझ आ ैर सूझ-बूझ ने नृत्य, गायन आ ैर वादन की ओर आकर्षि त किया। मानव ने सभ्यता और संस्कृति को समझकर अपने का े प ्रकृति क े साथ तालमेल करते ह ुए संगीत का े सीखा। हमारे पा ैराणिक ग्रंथों में भी इस बात का उल्लेख ह ै कि माँ पार्वती की गायन मुद्रा को देखकर भगवान षंकर ने क्रमषः पाँच राग हिंडा ेल, दीपक, श्री, मेघ, का ैषिक आदि रागों की रचना की एवं संगीत की उत्पत्ति भगवान षिव क े ताण्
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श्रीमती, प. ूनम शर्मा. "विकलांग चित्रकारा ें के चित्रा े ं म ें र ंगा ें की भ ूमिका". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1. https://doi.org/10.5281/zenodo.890535.

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Abstract:
रंगा ें के बिना जीवन अपूर्ण ह ै। विकलांग चित्रकारों के चित्रों में रंगा ें का विश ेष महत्व ह ै नीरस जीवन जीने को मजबूर ये कलाकार शारीरिक अक्षमताओं के उपरांत भी अपनें चित्रा े ं में रंगा ें के विशिष्ट संया ेजन कर, उन्ह ें जीवित रुप प ्रदान कर , प ्राण डाल देते ह ै ं ,चित्रा े ं द्वारा मूक अभिव्यक्ति इतनी सशक्त होती ह ै कि देखने वाला स्वप्न में भी यह नहीं सा ेच पाता कि इस चित्र का े बनाने वाला विकला ंग ह ै। ए ेसे विशेष कलाकारों के रंगा ें का चयन अति विलक्षण होता है। वर्णों की विभिन्न रंगता ें के कारण ही हम वर्ण विशेष का नाम ज्ञात कर पाते ह ै ं। इन कलाकारा ें के चित्रा ें में रंगा ें के मान का वि
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किरण, बड ेरिया आलोक गा ेयल राकेश कवचे. "ज ैव विविधता और जलवायु परिवर्तन एक दृष्टिकोण". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.882063.

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Abstract:
जैव विविधता हमार े लिए बहुत महत्त्वप ूर्ण ह ै। ये हमार े जीवन के अभिन्न अ ंग है ं। अभी तक लगभग 1.75 मिलियन प्रजातिया ें की पहचान हो चुकी है। हालाँकि वैज्ञानिकों का मानना ह ै कि हमार े ग्रह पर लगभग 13 मिलियन प्रजातियाँ हैं। विभिन्न प्रजातियों की उपस्थिति न े मानव क े लिए इस ग्रह को आवास योग्य बनान े म ें मदद की ह ै। इनके बिना हम अपन े जीवन की कल्पना नहंी कर सकत े। जैव विविधता हमार े जीवन के लिए आवश्यक र्कइ वस्त ुएँ एव ं सेवाएँ उपलब्ध कराता ह ै। ये वो स्तम्भ ह ैं जिन पर हमन े अपनी सभ्यता बसायी ह ै। आर्थिक समृद्धि के लिए उत्तरदायी र्कइ उद्या ेगों का आधार ये जैव विविधता ह ै। इनको खतरा पहुँचान े का
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डा, ॅ. संध्या ज. ैन. "र ंगा ें की भाषा". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.891850.

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Abstract:
रंगा ें की अपनी भाषा ह ै। रंग ही हमारा जीवन ह ैं। जीवन के विविध क्षेत्रा ें में य े रंग अपनी छटा बिख ेरते ह ै ं। खान-पान, रहन-सहन, पूजा-पाठ, धर्म-कर्म सभी तो विविध रंगा ें से जुडे ह ुए ह ैं।दुनिया के इस रंगमंच पर हर इंसान किसी-न-किसी रंग में रंगा ह ुआ ह ै। रंगा ें की अनुभूति देखने व स्पर्ष करने से हा ेती ह ै।रंगा ें क े बिना हमारा जीवन ठीक व ैसा ही है, जैसे प ्राण बिना शरीर । प्रकृति सा ैंदर्य में जहाँ ये रंग चार चाँद लगाते ह ै ं वहीं मानव जीवन को भी सरस, सुखद व रंगीन बना देते ह ैं ।आबाल व ृद्ध रंगा ें से वस्तुओं का े पहचान लेता ह ै। सात रंगा ें से निर्मित इन्द्रधनुष के रंगा ें की छटा हमारे मन
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दुर्ग, ेश पाण्डे. "स ंगीत शिक्षण एवं प्रदर्शन म ें इलेक्ट्रानिक वाद्य य ंत्रा ें की भ ूमिका". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.885049.

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Abstract:
नाद से वर्ण , वर्ण से पद, पद से वाक्य व्यक्त हा ेता ह ै। वाक्य से ही जगत् का व्यवहार होता ह ै, इसलिए यह जगत् नाद क े अधीन है। नाद का छोटा-बड़ापन तीव्रता पर आधारित होता ह ै। इसका प ्रभाव मस्तिष्क और ह ृदय पर जब पड़ता ह ै तो पहले रक्त क्रिया प ्रभावित होती ह ै आ ैर उसके बाद मानसिक अनुभूति क े रूप में उसका रूपांतर हा ेता ह ै। नाद की तीव्रता नापने क े लिए डेसीबल पद्धति का े अपनाते हैं। इसे फाॅन ;च्ींदद्ध नाम से भी जाना जाता है, जिसके आधार पर साधारण बातचीत की ध्वनि का क्षेत्र 60 से 70 फाँन के मध्य में रहता ह ै। यहाँ यह बात ध्यान देने या ेग्य ह ै कि यदि एक बाँसुरी से उत्पन्न नाद का ध्वनि स्तर 40 फाॅ
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निमर्लकर, कामिन, та एन क ुज ूर. "ग ्रामीण महिलाआ ें क े आथि र्क विकास म ें बिहान या ेजना की भ ूमिका". Mind and Society 8, № 01-02 (2019): 72–78. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-81-2-201912.

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Abstract:
भारत गांवो के द ेश है जहां के 79 प्रतिशत आबादी गांवों में निवास करती है। इस बड ़ी आबादी का आजीविका का प्रमुख साधन कृशि अर्थव्यवस्था पर निर्भर रहा है। इनमें विशेशकर महिलाओं के प्रत्यक्ष रोजगार की चर्चा कर े तो यहां महिलायें कृशि कार्य करती तो है किन्तु इन्हें कृषक की दर्जा भी प्राप्त नहीं रहा है। स्वत ंत्र भारत में इन आधी आबादी को रोजगार एव ं इन्हें आर्थिक रूप से समक्ष बनाना किसी चुनौति से कम नहीं रहा है। द ेश की यह आबादी अधिकांश आबादी गरीबी र ेखा से नीचे आजीविका करता रहा है। ऐसे में इस आबादी को आर्थिक रूप से संपन्न किए बगैर द ेश को विकास को गति प्रदान करना संभव नहीं होगा। परिणाम स्वरूप भारत सर
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प, ्रो. सुनीता जैन. "चित्रकला म ें र ंग - प्रागैतिहासिक काल मध्यप्रद ेश के विश ेष संदर्भ में". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.889223.

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Abstract:
चित्रकला का े अभिव्यक्तिगत सार्म थ्य प ्रदान करने वाले तत्वों में रंग प ्रमुख ह ै। चित्रकला में रंग की अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका है। चित्रकार जिस आधारभूत सतह पर चित्रा ंकन करता है उसमें रंग उसकी पर्या प्त सहायता करते हैं इन्हीं क े आधार पर कलाकृति मानसिक सन्तुष्टि प्रदान करती ह ै। रंग का आधार पाकर बर्नाइ र्गइ रचना अपने अभिष्ट को पाने में समर्थ हा ेती है। रंग के माध्यम से चित्रकार अपनी कृति का े कोमल बनाता ह ै। चित्रकार का बिम्ब-विधान चित्र सुलभ संव ेदनशीलता बह ुत कुछ रंग पर निर्भर करती है। रंग का प ्रया ेग जितना संगीत पूर्ण , उचित आ ैर सन्तुलित होगा मानव के मानस पटल पर उसका प ्रभाव उतना ही गहर
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डाॅ., कुमकुम भारद्वाज. ""समकालीन महिला चित्रकार अर्पिता बसु क े चित्रा ें म े रंग एंव प्रकृति" (पर्यावरण के स ंदर्भ म ें)". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.892035.

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Abstract:
मानव जीवन की भांति रंग एंव प ्रकृति के उद्रय का इतिहास भी बडा रहस्यमय आ ेर विराट है मनुष्य ने जिस समय प्रकृति की गोद मे अपनी आॅख खोली उस समय से ही उसने प ्रकृति का े रंगा े के साथ में देखा । रंग ए ंव प ्रकृति के बीना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती ह ै। सष्ट्रि क े निर्मा ण के साथ ही रंग ए ंव प ्रकृति का अटूट संबंध रहा है। रंगा े के बिना प्रकृति तथा प ्रकृति के बिना रंगा े की कल्पना नहीं की जा सकती ह ै सष्ट्रि में उपस्थित प्रत्येक प ्रकृति वस्तु जैसे:- प ेड - पा ैधे ,पष ु - पक्षी, जीव - जन्तु ,नदी ,पहाड ,अग्नि ,जल, आकाष आदि सभी एक निष्चित स्वरुप के साथ रंग लिए होते है सष्ट्रि में विद्रमान प्रत्
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डा, ॅ. जया जैन. "जैन धर्म म ें रंगा े की दार्शनिक भ ूमिका". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–5. https://doi.org/10.5281/zenodo.889248.

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Abstract:
रंगा े का अपना अनूठा संसार अपनी भाषा होती ह ै। ‘रंग’ शब्दों, वस्तुओ का े अर्थ प्रदान कर उन्ह े प्रतिबिम्बित करते है। रंगा े क े द्वारा ही वस्तु, शब्दा ें के गुण व भावों को आसानी से समझा जा सकता ह ै। रंग अपने आप में अनेक अर्थो को समाये रहता ह ै। रंगा ें क े अभाव में चित्रकला का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता ह ै। भावों का े व्यक्त करन े का रंग महत्वपूर्ण साधन ह ै। मूर्तिकला में भी प ्रस्तर वर्ण का विशेष ध्यान रखना आवश्यक ह ै।धार्मिक क्षेत्र भी रंगा े की प ्रतीकात्मकता से अछूता न रह सका। ज ैन धर्म में दार्श निक भावनाआ ें का े रंगा े की प्रतीकात्मकता द्वारा भी व्यक्त किया ह ै। रंग अनेक भावनाओं का अनू
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