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Journal articles on the topic 'कारकम्'

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Chaulagai, Prem Prasdad. "पाणिनि र चम्स्कीका कारकीय मान्यताको तुलना". Vaikharivani 2, № 2 (2025): 31–46. https://doi.org/10.3126/vaikharivani.v2i2.79242.

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Abstract:
प्रस्तुत लेख वैयाकरण पाणिनि (इ.पू.पाँचौं शताब्दी) र आधुनिक भाषावैज्ञानिक अभ्राम नोम चम्की (जन्म, सन् १९२८) द्वारा प्रस्तुत कारकसम्बन्धी मान्यताको तुलनात्मक अध्ययनमा केन्द्रित छ । यसैले यस लेखमा पाणिनि र चम्स्कीद्वारा प्रस्तुत कारकीय मान्यताको वैशिष्ट्य प्रस्तुत गर्नुका साथै तिनको तुलना गरी प्राप्त भएको निचोड प्रस्तुत गरिएको छ । विश्लेषणात्मक र तुलनात्मक विधिको उपयोग गरी पाणिनि र चम्स्कीका कारकीय मान्यताको तुलना गर्दा प्राप्त भएको निष्कर्ष के हो भने पाणिनि र चम्स्की दुवैले क्रियासित प्रत्यक्ष वा अप्रत्यक्ष रूपमा सम्बन्धित भएर प्रयोग हुने नामिक पदले पाउने प्रकार्यात्मक भूमिकालाई कारक मानेका छन्
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खनाल Khanal, खेमराज Khemraj. "नेपाली र संस्कृत भाषामा सम्प्रदान कारक Nepali ra Sanskrit Bhashama Sampradan Karak". Dristikon: A Multidisciplinary Journal 9, № 1 (2019): 163–75. http://dx.doi.org/10.3126/dristikon.v9i1.31185.

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Abstract:
कारकको उद्भव संस्कृत व्याकरणबाटै भएको हो । नेपाली भाषा अपभ्रंश हुँदै संस्कृत भाषाबाट जन्मेकाले यस भाषामा संस्कृत भाषाको प्रभाव रहनु स्वाभाविक देखिन्छ । संस्कृत भाषा र व्याकरण अत्यन्त समृद्ध रहेको छ । यसको राम्रो खोज, अनुसन्धान भइसकेको छैन, जो जरुरी छ । संस्कृत वाङ्मयमा त्यस्ता रहस्यमय कुराहरू प्रशस्त छन्, जसको अनुसन्धानबाट नयाँ ज्ञानधारा बहाउन सकिन्छ । सम्प्रदान कारक त्यस्तै एउटा सानो विषय हो । क्रियाको उद्देश्य बनेको पद नै सम्प्रदान कारक हो । नेपाली वैयाकरणहरूले संस्कृत वैयाकरणहरूले झैं कारकका विषयमा प्रशस्त खोज, अनुसन्धान गरेका छैनन् । विशेष गरेर संस्कृतमा आचार्य पाणिनि र भर्तृहरिले सम्प्रदा
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महर्जन, दिपा. "कारक व विभक्ति". Cognition 5, № 1 (2023): 228–33. http://dx.doi.org/10.3126/cognition.v5i1.55448.

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Abstract:
वाक्यय् संज्ञा, सर्वनाम व विशेषण खँग्वःया क्रियानापया सम्बन्ध हे कारक खः । कारकया विशेष अर्थ लुइकीगु चिं विभक्ति खः । उकिं कारक व विभक्ति अन्तरसम्बन्धित खः । पूर्वीय तथा संस्कृत व्याकरणय् कारकयात पाणिनी “क्रियान्वयित्व कारकत्वम्” सिद्धान्तकथं न्ह्यथनादीगु दु । वय्कःया अष्टाध्याय सफुती कारकनाप स्वापू तइगु नामपद व पदावलीयात कारककथं व्याख्या यानातःगु दु । अथे हे पश्चिमी व्याकरणय् अमेरिकी भाषाविद्पिं नोम चम्सकीया मानक सिद्धान्तलिसें चाल्र्स जे.फिलमोरं कारकयात व्याकरणया छगू महत्वपूर्ण पक्षकथं व्याख्या यानादीगु दु । कारक व विभक्तिया छ्यलाबुला पूर्वीय व पश्चिमी निगुलिं व्याकरणय् महत्व उत्तिकं दु । ने
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Behera, Shivananda. "संस्कृतव्याकरणदिशा ओडिआभाषायाः समीक्षणम् (An Analysis of Odiya (Oṛiā) Language from the Perspective of Sanskrit Grammar)". Kiraṇāvalī XIV, № 3&4, JULY- DECEMBER 2022 (2022): 403–8. https://doi.org/10.5281/zenodo.7930593.

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Abstract:
संस्कृतभाषा एवं सर्वासां भारतीयभाषाणाम् जननी कथ्यते । ततः भारतीयभाषाणां व्याकरणेषु संस्कृतव्याकरणस्यापि प्रभावः संभवत्येव । तदस्मिन् क्रमे ओडिआभाषायाः व्याकरणमपि अधिकांशेन संस्कृतनिष्ठम् । अनेन शोधपत्रेण कारकविभक्तिप्रकरणसन्दर्भे संस्कृतव्याकरणमाधारीकृत्य  ओडिआभाषायाः अध्ययनं समीक्षणं च करिष्यते । किं किं तत्त्वं संस्कृतव्याकरणेन साम्यं भजते ,उत किं वा वैषम्यं परिलक्ष्यते , तदस्मिन् शोधपत्रे सविस्तारं विश्लेषयिष्यते । तदिदं शोधपत्रं संस्कृतभाषाविद्भ्यः  ओडिआभाषाविद्भ्यश्च उभयभाषाशिक्षणे उपयोगः भविष्यति ।  
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ममता, गौड ़. "पर्यावरण एवं भारत म ें विधिक प्रावधान". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.882533.

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Abstract:
पर्यावरण शब्द परि$आवरण शब्दों से मिलकर बना है, इसका शाब्दिक अर्थ हमार े चारा ें ओर के उस वातावरण से है, जिसमें जीवधारी रहत े है ं। इस प्रकार पर्या वरण भौतिक तथा जैविक अवयव या कारक का वह सम्मिश्रण है, जो चंह ु ओर से जीवधारिया ें को प्रभावित करता है। इस प्रकार पर्या वरण जीवा ें को प्रभावित करन े वाल े समस्त भौतिक एव ं जैविक कारकों का योग होता ह ै। यह कहा जा सकता है कि हमारी प ृथ्वी का पर्या वरण वह बाहरी शक्ति है जिसका जीवन पर स्पष्ट प्रभाव द ेखा जा सकता है। य े शक्तियाँ परस्पर सम्बद्ध हैं, परिवर्तनशील हैं तथा सम्पूर्ण एव ं संय ुक्त रूप मे ं जीवन पर प ्रभाव डालती हैं। इनमें भौतिक कारक के रूप म ें
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शर्मा, हेमलता, та किरण सिडाना. "उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षकों की नौकरी से संतुष्टि". Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education 21, № 6 (2024): 107–12. https://doi.org/10.29070/xght4n26.

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Abstract:
यह शोधपत्र मुख्य रूप से भरतपुर राजस्थान के प्रेम भारती विद्यापीठ उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में कार्य वातावरण और शिक्षक की नौकरी की संतुष्टि पर इसके प्रभावों पर केंद्रित है। कार्य मूल्यों और नौकरी की संतुष्टि पर व्यक्तिगत विशेषताओं और स्कूल की विशेषताओं के प्रभाव की भी जांच की गई। शोधकर्ता ने पाया कि अच्छे कार्य वातावरण को समझते समय ध्यान देने योग्य सबसे महत्वपूर्ण कारक प्रेरक कारक, सामाजिक-आर्थिक कारक, स्वास्थ्य कारक, नौकरी और व्यक्तिगत सुरक्षा हैं। कर्मचारी तब अधिक देने की प्रवृत्ति रखते हैं जब वे अपनी नौकरी से पूरी तरह संतुष्ट होते हैं। अपने शोध में मैंने कार्य वातावरण और नौकरी की संतुष्टि से
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संजीव, दोहरे, та शैलेन्द्र सिंह तोमर डॉ. "जलवायु परिर्वतन का जैव विविधता पर प्रभाव (ग्वालियर-चम्बल संभाग के संदर्भ में)". 'Journal of Research & Development' 3, № 7 (2022): 20–25. https://doi.org/10.5281/zenodo.7431932.

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Abstract:
जलवायु परिवर्तन का संबंध वायुमंडल के उष्मा संतुलन, आद्रता, मेघाच्छन्दता एवं वर्षा में त्वरित या अचानक परिवर्तन या दीर्घकालिक परिवर्तन से होता है। जलवायु में इस तरह के परिवर्तन तो वाह्य कारको और आंतरिक कारकों के दोनों प्रभावों के परिवर्तन से होता है। बाह्य कारकों के अंतर्गत पृथ्वी की अक्षीय विशेषताओं में परिवर्तन, सौर परिवर्तन शीलता, सूर्य के प्रकाश मंडल में विकरणों में उतार-चढ़ाव, महाद्वीपों की विवर्तनिक प्रक्रिया, प्लेट विवर्तनिकी एवं महाद्वीपीय विस्थापन में वेगनर का महाद्वीपीय विस्थापन हैरी हैस का सागर निखिल प्रसरण एवं भार्गेन का प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत जलवायु परिवर्तन से पृथ्वी की कक्षा म
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राव, एस. रुपेंद्र. "स्नातक छात्रों के तनाव, चिंता और अवसाद से जुड़े जोखिम कारक". International Journal of Science and Social Science Research 2, № 4 (2025): 407–13. https://doi.org/10.5281/zenodo.15132730.

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Abstract:
यह सर्वविदित है कि विकसित और विकासशील देशों में विश्वविद्यालय के स्नातक छात्रों में चिंता, अवसाद और तनाव का अधिक अनुपात है। विश्वविद्यालय में प्रवेश करने वाले छात्रों की सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि बहुत अलग होती है, जिससे विभिन्न मानसिक स्वास्थ्य सम्बंधी एवम  जोखिम कारक सामने आ सकते हैं। वर्तमान साहित्य की जांच करके, इस समीक्षा का लक्ष्य विकसित और विकासशील देशों में विश्वविद्यालय के स्नातक छात्रों में तनाव, चिंता और अवसाद से जुड़े जोखिम कारकों को खोजना था।विकासशील देशों में स्नातक छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े खतरों का विश्लेषण करते हुए जोखिम कारक अध्ययन किया गया।
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अधिकारी, सुशीलकुमार. "नेपालमा बैष्णव धर्मको प्रचार". Dristikon: A Multidisciplinary Journal 11, № 1 (2021): 309–19. http://dx.doi.org/10.3126/dristikon.v11i1.39172.

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Abstract:
प्रस्तुत अध्ययन नेपालमा वैष्णव धर्म प्रभावका कारक मुख्य समस्यामा केन्द्रित रहेको छ । गुणात्मक अनुसन्धान विधि र द्वितीयक स्रोतबाट सामग्री सङ्कलन गरी विश्लेषणात्मक विधिबाट निष्कर्ष निकालिएको यस अध्ययनमा नेपाली समाजमा वैष्णव धर्मको स्थापना र यसको विस्तारको कारण खोजिएको छ । आर्यवर्तका रूपमा परिचित नेपाल र भारतमा वैदिक कालदेखि प्रचलनमा रही वर्तमानसम्म विस्तारित र अस्तित्वमा रहेको वैष्णव धर्मको स्थापना र विस्तारमा नेपालका शासक र तिनको यस धर्मप्रतिका आस्था र विश्वास नै प्रमुख कारकका रूपमा रहेको निष्कर्ष निकालिएको छ ।
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प्रियंका, प्रिया, та विश्वनाथ झा डॉ०. "निर्धनता का अनुसूचित जाति की महिलाओं के शिक्षा पर प्रभाव- एक अध्ययन". Journal of Research and Development 14, № 23 (2022): 48–50. https://doi.org/10.5281/zenodo.7546439.

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Abstract:
<strong>सारांश:-</strong> भारत में महिलाएं समाज के अधिक वर्चस्व वाले और उत्पीड़ित वर्ग का प्रतिनिधित्व करती हैं और उम्र भर उनकी उपेक्षा की जाती रही है। समाज में महिलाओं की स्थिति विभिन्न सामाजिक-आर्थिक कारकों द्वारा निर्धारित की जाती है। इन कारकों में रोजगार, शिक्षा, आय आदि शामिल हैं। भारत में महिला शिक्षा समाज के समग्र विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसके बावजूद अनुसूचित जाति की महिलाओं में शिक्षा का बहुत अभाव है। यह अधिकांश ग्रामीण क्षेत्र में व्यापक रूप से देखा जा सकता है। इसका सबसे बड़ा कारक निर्धनता एवं जागरूकता को माना गया है। जिस कारण अनुसूचित जाति की महिलाएं शिक्षा से वंचित रहने
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सुनिता, किस्पोट्टा. "शैक्षणिक उपलब्धियों की अवधारणा". Recent Researches in Social Sciences & Humanities (ISSN: 2348 – 3318) 10, № 01 (Jan.-Feb.Mar.) (2023): 26–29. https://doi.org/10.5281/zenodo.7940768.

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Abstract:
&lsquo;उपलब्धि&lsquo; शब्द वांछित उद्देश्यों या लक्ष्य या स्तर को प्राप्त करने के कार्य को संदर्भित करता है। शैक्षिक रूप से, &lsquo;उपलब्धि&lsquo; शब्द किसी विशेष क्षेत्र में वांछित स्तर तक किसी व्यक्ति के प्रदर्शन को संदर्भित करता है। उपलब्धि छात्र की क्षमता और प्रदर्शन की उपलब्धि है। यह बहु-आयामी और जटिल रूप से मानव विकास और संज्ञानात्मक, भावनात्मक, सामाजिक और शारीरिक विकास से संबंधित है। बहुत से कारक हैं जो आंतरिक और बाहरी दोनों कारकों से शैक्षणिक उपलब्धि और छात्र प्रतिधारण की उन्नति में योगदान करते हैं। छात्रों के परिवार जो एक ऐसा माहौल बनाने में भूमिका निभा सकते हैं जो छात्रों की शिक्षा क
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सिंह, टिके, та ए. बघेल. "सरगुजा जिले में आर्थिक कारक एवं ग्रामीण शिशु मत्र्यता: एक भौगोलिक विश्लेषण". Journal of Ravishankar University (PART-A) 24, № 1 (2021): 27–36. http://dx.doi.org/10.52228/jrua.2018-24-1-5.

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Abstract:
प्रस्तुत अध्ययन सरगुजा जिले में ग्रामीण शिशु मत्र्यता से संबंधित है। प्रस्तुत अध्ययन का उद्देश्य सरगुजा जिले में ग्रामीण जनसंख्या में शिशु मत्र्यता की स्थिति का आकलन एवं उसको प्रभावित करने वाले आर्थिक कारकों का विश्लेषण करना है। प्रस्तुत अध्ययन प्राथमिक आँकड़ों पर आधारित है। इस हेतु दो प्रकार की अनुसूची का उपयोग किया गया है। प्रथम पारिवारिक और द्वितीय व्यक्तिगत अनुसूची। अध्ययन हेतु जिले से प्रतिचयन यादृच्छिक विधि के द्वारा 38 ग्रामों की 2691 विवाहित महिलाओं से सूचना एकत्र किया गया, जिन्होंने सर्वेक्षण वर्ष के अन्दर शिशु को जन्म दिया हो अथवा जिनकी एक वर्ष से कम उम्र के शिशु की मृत्यु अथवा मृत जन
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Kumari, Rani. "प्राथमिक स्तर के शिक्षकों के मूल्यों पर एक अध्ययन". International Journal for Global Academic & Scientific Research 1, № 3 (2022): 59–67. http://dx.doi.org/10.55938/ijgasr.v1i3.18.

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Abstract:
मूल्य शिक्षा शिक्षा के सबसे प्रभावी रूपों में से एक है। हालाँकि, यह प्रणाली कई कारकों के कारण केवल विकसित देशों में लागू होती है। इस अध्ययन का उद्देश्य विकासशील देशों में मूल्य शिक्षा प्रणाली को लागू करने में सक्षम प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए एक विधि विकसित करना है। शिक्षक न केवल विज्ञान की नींव का ज्ञान देते हैं और किसी विशेष क्षेत्र में विशिष्ट कौशल और प्रथाओं को विकसित करने में मदद करते हैं, बल्कि मूल्यों को भी धारण करते हैं। प्राथमिक विद्यालयों में यह अत्यंत महत्वपूर्ण है, जहां विश्वदृष्टि के मूल सिद्धांतों का निर्माण होता है। लेकिन आधुनिक युग में शिक्षकों की स्थिति म
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Gaur, Mamta. "ENVIRONMENT AND LEGAL PROVISIONS IN INDIA." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 3, no. 9SE (2015): 1–2. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v3.i9se.2015.3235.

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Abstract:
The word environment is made up of the words 'parivar', which literally means the environment around us in which the living organisms live. In this way, the environment is a combination of physical and biological components or factors, which affect the organisms from the side. In this way, the environment is the sum of all physical and biological factors affecting organisms. It can be said that the environment of our earth is an external force that can have a clear effect on life. These powers are interrelated, changeable and have an impact on life as a whole and jointly. Among these, water, a
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Saini, Dr Poonam. "कृषि कारक के रूप मे प्रयुक्त मृदा संसाधन के निर्माण मे सहायक कारको एवं इसके संघटक तत्वो का विश्लेषणात्मक अध्ययन". International Journal of Geography, Geology and Environment 4, № 2 (2022): 141–46. http://dx.doi.org/10.22271/27067483.2022.v4.i2b.127.

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रिंकी, रानी शिक्षा शास्त्र शोधार्थिनी मंगलायतन विश्वविद्यालय अलीगढ़, та कविता शर्मा असिस्टेंट प्रोफेसर शिक्षा शास्त्र विभाग मंगलायतन विश्वविद्यालय अलीगढ़ डॉ. "शैक्षणिक उपलब्धियों की अवधारणा पर अध्ययन". Siddhanta's International Journal of Advanced Research in Arts & Humanities 2, № 1 (2024): 28–34. https://doi.org/10.5281/zenodo.13785249.

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Abstract:
भारतीय समाज में भले ही विभिन्न समाजों में मुख्य सामाजिक-आर्थिक कारक समान प्रतीत होते हों, लेकिन इन कारकों का सापेक्ष महत्व स्थानीय परिस्थितियों के आधार पर देश-दर-देश और समाज-दर-समाज अलग-अलग होता है। उदाहरण के लिए, आय अमेरिका जैसे विकसित और समृद्ध देशों में उतनी महत्वपूर्ण नहीं हो सकती जितनी भारत जैसे विकासशील देश में है, लेकिन पश्चिमी देशों में यह महत्वपूर्ण नहीं है। इसलिए एक देश में किए गए सामाजिक-आर्थिक स्थिति से संबंधित अध्ययन दूसरे देश के लिए मान्य नहीं हो सकते हैं। यथार्थवादी सामान्यीकरण के लिए विभिन्न देशों और विभिन्न समाजों में वैज्ञानिक जांच की जानी चाहिए। डेविड मैक्लेलैंड के काम ने उप
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चौरसिया, सपना, та कविता गुप्ता. "सामाजिक आर्थिक स्थिति और मनोदृष्टि के बीच संबंध: एक समीक्षात्मक अध्ययन". Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education 20, № 2 (2023): 778–85. https://doi.org/10.29070/rcntd647.

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Abstract:
इस समीक्षात्मक अध्ययन का उद्देश्य सामाजिक आर्थिक स्थिति और मनोदृष्टि के बीच संभावित संबंधों का मूल्यांकन करना है। विभिन्न सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पहलुओं को ध्यान में रखते हुए, इस पेपर में सामाजिक आर्थिक स्थिति और मनोदृष्टि के आपसी प्रभाव पर किए गए प्रमुख शोधों और निष्कर्षों की समीक्षा की गई है। सामाजिक आर्थिक स्थिति, जिसमें आय, शिक्षा स्तर, और परिवार की स्थिति जैसे कारक शामिल हैं, व्यक्ति की मानसिकता, आत्म-सम्मान, सामाजिक दृष्टिकोण और शिक्षा के प्रति दृष्टिकोण को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस अध्ययन में विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक और पारिवारिक कारकों के प्रभावों को भी समझन
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भट्टराईः Bhattarai, कपिलदेव Kapildev. "ज्योतिषशास्त्रे ग्रहणविमर्शः". शोधसुधा Shodh Sudha 2, № 2 (2024): 1–9. http://dx.doi.org/10.3126/ss.v2i2.69302.

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Abstract:
‘ग्रहगणितं ज्योतिषम्’ इति ज्योतिषस्य परिभाषा । ज्योतिषशास्त्रे चन्दसूर्यग्रहणयोः सफलं विमर्शनं विहितमस्ति । एतत्क्रमे प्रथमं ग्रहणपरिभाषा, सूर्यचन्द्रग्रहणयोः कारणम्, ग्रहणभेदाः, ग्रहणसम्बद्धा पौराणिकी मान्यता, ग्रहणकालः, ग्रहणविषयकमैतिह्यञ्चेति विविधविषया वर्णिताःसन्ति । वैज्ञानिकदृशा च विवेचितं सूर्यचन्द्ररूपं ग्रहणद्वयं ज्योतिर्जगति महत्त्वपूर्णं मन्यते । वैज्ञानिकानां मते ग्रहणन्तु चमत्कारावस्थाविशेषम् । नूनमपि धर्मप्राणाः सज्जनाः स्वकीयधर्मसंस्कृतौ विश्वासं कुर्वन्ति । ग्रहणस्य धार्मिकं महत्त्वं धर्मशास्त्रादिषु यथा प्रतिपादितं तथैवात्रापि प्रदर्शितमस्ति । एवमेवात्र ग्रहणे त्रिकालस्नानमहत
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पंकज यादव та प्रो. दीप्ति जौहरी. "भारत में उच्च माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों की कैरियर आकांक्षाओं और जेंडर समाजीकरण के मध्य सम्बन्धः एक विमर्श". International Journal of Multidisciplinary Research in Arts, Science and Technology 2, № 9 (2024): 55–64. http://dx.doi.org/10.61778/ijmrast.v2i9.82.

Full text
Abstract:
किसी भी बालक के व्यवसायिक जीवन के दृष्टिकोण से उच्च माध्यमिक स्तर की शिक्षा बेहद महत्वपूर्ण होती है। भारतीय शिक्षा के ढांचे के अनुसार उच्च माध्यमिक स्तर की शिक्षा के दौरान ही बालक अपने भावी कैरियर के विषय में आकांक्षाओं को आकार देना आरम्भ कर देते हैं और कालांतर में इन्हीं आकांक्षाओं के अनुरूप व्यवसाय का चयन करके उसमें अपना कैरियर बनाते हैं, बालकों की कैरियर के प्रति यह आकांक्षायें विभिन्न सामाजिक, मनोवैज्ञानिक व अन्य कारकों से प्रभावित होती रहती हैं। जेंडर समाजीकरण भी इसी प्रकार का एक महत्वपूर्ण कारक है, जो बालकों के कैरियर चयन को काफी हद तक प्रभावित करता है। जेंडर समाजीकरण के फलस्वरूप प्रायः
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राज, आदित्य. "भारतीय लोकतंत्र में मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारकों का विश्लेषणात्मक अध्ययन". International Journal of Advance and Applied Research 12, № 4 (2025): 219–22. https://doi.org/10.5281/zenodo.15285849.

Full text
Abstract:
<strong>सारांश</strong>: &nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहाँ सरकार का गठन जनता द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधियों के द्वारा होता है। जनता शासन व्यवस्था में प्रत्यक्ष रुप से भाग न लेकर अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से भाग लेती है। मतदान व्यवहार, मत डालने के उन कारकों या तरीकों को परिभाषित करता है जो वोट देने में मतदाताओं को प्रभावित करते हैं। भारतीय संविधान द्वारा नागरिकों को सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार प्रदान किया गया है। भारतीय संविधान के 61 वाँ संशोधन 1988 द्वारा लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनावों में मतदान की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दिया गया है। चुनाव
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आदित्य, राज. "भारतीय लोकतंत्र में मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारकों का विश्लेषणात्मक अध्ययन". International Journal of Advance and Applied Research 12, № 4 (2025): 219–22. https://doi.org/10.5281/zenodo.15393489.

Full text
Abstract:
<strong>सारांश</strong>: &nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहाँ सरकार का गठन जनता द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधियों के द्वारा होता है। जनता शासन व्यवस्था में प्रत्यक्ष रुप से भाग न लेकर अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से भाग लेती है। मतदान व्यवहार, मत डालने के उन कारकों या तरीकों को परिभाषित करता है जो वोट देने में मतदाताओं को प्रभावित करते हैं। भारतीय संविधान द्वारा नागरिकों को सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार प्रदान किया गया है। भारतीय संविधान के 61 वाँ संशोधन 1988 द्वारा लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनावों में मतदान की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दिया गया है। चुनाव
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पात्रः, डा. कृष्णगोपाल. "काव्यकारणविमर्शः". Kiranavali XV, № I-IV (2023): 251–56. https://doi.org/10.5281/zenodo.10643280.

Full text
Abstract:
कविकर्म काव्यमित्युच्यते। विना कारणं न किमपि जायते जगत्यस्मिन्। काव्यसंरचनमपि नूनं किञ्चित् कार्यम्। अतः काव्यस्य निर्मितौ प्रसृतौ वा किमपि कारणं स्यादेव इति जिज्ञासमानाः समीक्षकाः तत्कारणत्वेन नैकविधानि मतानि समुपस्थापयन्ति। प्रतिभा एव काव्यकारणमित्यत्र भूयांसो विद्वांसः मतिदायकाः। प्रतिभा व्युत्पत्तिः अभ्यासश्चेति त्रयाणां समुदायः एव A केचन आलङ्कारिकाः साधयन्ति। प्रतिभाभावेऽपि भगवत्कृपाप्रभृतिकारणैः क्वचित् काव्यं जायते इत्यपि केचन सिद्धान्तयन्ति। प्रायः सर्वेऽपि समालोचकाः एषु किञ्चित् मतं स्वराद्धान्तत्वेन गतार्थयन्ति। तत् कतमं मतं सिद्धान्तयितुं योग्यम्, कतमं वा तत् सर्वजनग्राह्यमित्यादयः
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कुमार, राजीव, та अमिता . "ऑनलाइन क्रय शक्ति पर जनसांख्यिकीय कारकों का अध्ययन". International Journal of Applied Research 11, № 3 (2025): 109–11. https://doi.org/10.22271/allresearch.2025.v11.i3b.12402.

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Chauhan, Nelia Lois, and Bharat Kumar. "A Review of Trends in Urbanization in India (1901-2011) - A Geographical Study." RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 7, no. 4 (2022): 56–63. http://dx.doi.org/10.31305/rrijm.2022.v07.i04.008.

Full text
Abstract:
This paper attempts to present the trends in urbanization in India on the basis of secondary data from the 2011 Census. According to country statistics, urbanization in India is mainly due to expansion of cities and migration of people. Investments are made in housing, road networks, urban transport, water supply, electricity-related infrastructure, smart cities and other forms of urban management. This is a bright future for the Indian economy. There are several factors in the state of urbanization that have given rise to urbanization in India - population growth and migration as one of the t
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कुमार, प्रवीण, та मंजू सोलंकी. "गठबंधन सरकार तथा प्रधानमंत्री की भूमिका की प्रासंगिकता". Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education 21, № 5 (2024): 873–81. https://doi.org/10.29070/gt284n31.

Full text
Abstract:
गठबंधन सरकारें सरकार का सबसे व्यापक रूप होने के बावजूद, गठबंधन राजनीति के कई पहलुओं को अभी भी कम समझा जाता है। यह गठबंधन के भीतर प्रधान मंत्री पार्टी की भूमिका से संबंधित प्रश्नों के लिए विशेष रूप से सच है। ऐसा प्रतीत होता है कि प्रधान मंत्री होने के नाते पार्टी पर काफी प्रभाव है, लेकिन प्रधान मंत्री के प्रभाव को आकार देने वाले कारकों के बारे में वास्तव में बहुत कम सबूत मौजूद हैं। यह पेपर गठबंधन में प्रधान मंत्री पार्टी के प्रभाव को प्रभावित करने वाले कारकों का अध्ययन करने के लिए एक नया दृष्टिकोण प्रदान करता है। यह दृष्टिकोण प्रधान मंत्री पार्टी के पार्टी घोषणापत्र और चुनाव के बाद पहले सरकारी
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Pal, Anand Krishna. "ऑनलाइन खरीदारी को प्रभावित करने वाले कारकों का अध्ययन". International Journal of Research in Marketing Management and Sales 4, № 2 (2022): 48–50. http://dx.doi.org/10.33545/26633329.2022.v4.i2a.112.

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एस0, सी0 पचैIरी, та जगवीर. "शिक्षण अभिवृत्ति एवं इसको प्रभावित करने वाले कारकों का अध्ययन". RECENT EDUCATIONAL & PSYCHOLOGICAL RESEARCHES 13, № 1 (2024): 81–83. https://doi.org/10.5281/zenodo.11003459.

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Abstract:
शिक्षक बनना ता े अधिकाश्ं ा व्यक्ति चाहते है परंतु शिक्षक बनन े के लिए व्यक्तियां े मंे प्रतिभाआंे और आकर्षक व्यक्तित्व के साथ-साथ विशष्े ा प्रकार की अभिवृत्तियाँ हाने ा बहुत जरूरी है। इन दृष्टिकोणांे मंे सर्वप्रमुख यह भी माना गया है कि व्यक्तियां े मंे शिक्षा के प्रति लक्ष्यात्मक दृष्टिकोण विकसित होना चाहिए जा े शिक्षा के सभी उद्देश्यांे की पूि र्त करता हा े । व्यक्तियांे के अंदर शिक्षा के प्रति रुचि होनी चाहिए जो उसकों शिक्षक बनाने हेतु योग्य &nbsp;औपचारिकताएं प्रदान करवाती हो, इन समस्त गुणां े के भार के साथ व्यक्ति शिक्षा को व्यवसाय के रूप मं े ग्रहण कर सकता है।
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कुमार, वीरेन्द्र. "जनपद अम्बेडकर नगर (उ०प्र०) में सिंचाई एवं कृषि उत्पादकता: एक भौगोलिक विश्लेषण". Shrinkhla Ek Shodhparak Vaicharik Patrika 11, № 9 (2024): H40—H45. https://doi.org/10.5281/zenodo.12664603.

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Abstract:
This paper has been published in Peer-reviewed International Journal "Shrinkhla Ek Shodhparak Vaicharik Patrika"&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; URL : https://www.socialresearchfoundation.com/new/publish-journal.php?editID=9188 Publisher : Social Research Foundation, Kanpur (SRF International)&nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; Abstract : कृत्रिम विधियों जैसे - नहर,&nbsp;नलकूप,&nbsp;तालाब आदि द्वारा पौधों को जल उपलब्ध कराने को सिंचाई कहते हैं। सिंचाई कृषि का एक आधारभूत निर्धारक तत्व है क्योंकि अधिक उपज व
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कुमार, धनपत, आनंद सुगंधे та राजकुमार नागवंशी. "ग्रामीण महिला सशक्तिकरण में स्वयं सहायता समूहों की भूमिका का एक आर्थिक अध्ययन: मध्यप्रदेश के अनूपपुर जिले के विशेष सन्दर्भ में". Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education 22, № 3 (2025): 165–77. https://doi.org/10.29070/ejddbr42.

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Abstract:
किसी भी राष्ट्र के समावेशी और सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए महिला सशक्तिकरण आवश्यक है। भारत में, स्वयं सहायता समूहों को न केवल महिला सशक्तिकरण के लिए बल्कि गरीबी से निपटने के लिए एक प्रभावी रणनीति के रूप में कार्य कर रही है। प्रस्तुत अध्ययन का मुख्य उद्देश्य उन कारकों का आकलन करना है जो स्वयं सहायता समूहों में महिलाओं की भागीदारी को प्रभावित करने वाले कारक एवं सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण पर इसके प्रभाव का आंकलन किया गया हैं। यह अध्ययन स्वयं सहायता समूह के महिला लाभार्थियों के साक्षात्कार के माध्यम से मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले के दो विकासखण्ड जैतहरी एवं अनूपपुर के 50 समूहों के कुल 120 महिला
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Deepa Khare та Dr. Ramavtar. "शिक्षण संस्थानों की ऑनलाइन शिक्षण विधियों की प्रभावशीलता पर छात्रों के दृष्टिकोण का अध्ययन". Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education 18, № 4 (2021): 1471–76. http://dx.doi.org/10.29070/tnwk2252.

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Abstract:
ऑनलाइन सीखने में आईसीटी कारकों (आईसीटी कौशल, आईसीटी समर्थन और आईसीटी इंफ्रास्ट्रक्चर) के महत्व की पुष्टि की गई। इस अध्ययन द्वारा विकसित अनुसंधान मॉडल को उस सेटिंग में ऑनलाइन सीखने की प्रभावशीलता को प्रभावित करने वाले कारकों को समझने के लिए पूरी तरह से ऑनलाइन या सम्मिश्रण शिक्षण में किसी भी सर्वेक्षण के लिए लागू और परीक्षण किया जा सकता है। अनुसंधान मॉडल के निष्पादन से नीति निर्माता, संस्थागत नेतृत्व, सिस्टम डिजाइनर और प्रशिक्षक ऑनलाइन सीखने की प्रभावशीलता के प्रति शिक्षार्थियों की धारणा को समझ सकते हैं। इस अध्ययन के व्यावहारिक निहितार्थ यह हैं कि प्रशिक्षकों और पाठ्यक्रम डिजाइनरों दोनों को सामग
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गीताराम, शर्मा गीताराम. "विकास के भारतीय प्रतिमान और सतत विकास". Innovation The Research Concept 9, № 2 (2024): H32—H41. https://doi.org/10.5281/zenodo.10862961.

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Abstract:
This paper has been published in Peer-reviewed International Journal "Innovation The Research Concept"&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; URL : https://www.socialresearchfoundation.com/new/publish-journal.php?editID=8773 Publisher : Social Research Foundation, Kanpur (SRF International)&nbsp; Abstract : &nbsp;आज विकास के नाम पर दुनियाँ में एक दूसरे को रोंदकर आगे निकलने की जो वितृष्णा है या परस्पर निगल जाने का जो कि अहंकार है तथा दूसरे के अस्तित्व को मिटा कर आगे निकल जाने की प्रतिस्पर्धात्मक दौड़ के भौतिक
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पटेल, अखिलेश कुमार, та यतीन्द्र मिश्रा*. "अनुसूचित जातियों के सामाजिक समावेशन में शैक्षिक कारकों की भूमिका का अध्ययन". Humanities and Development 17, № 2 (2022): 43–46. http://dx.doi.org/10.61410/had.v17i2.67.

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Abstract:
प्राचीन काल से भारतीय समाज में अनुसूचित जातियों की स्थिति दयनीय रही है। अनुसूचित जातियों को मानवाधिकारों तथा जीवन जीने के मौलिक अधिकारों से वंचित रखा गया। शिक्षा जैसे मूलभूत अधिकार भी अनुसूचित जातियों को प्राप्त नहीं था। समाज में अनुसूचित जातियों को दोयम दर्जा प्रदान किया गया था। सामातिक स्तरीकरण में अनुसूचित जातियों की स्थिति सबसे निचले पायदान पर थी। विभिन्न सामाजिक प्रतिबन्धों का अनुसूचित जातियों को सामना करना पड़ता था। परणामस्वरूप उनकी स्थिति दिन-प्रतिदिन दयनीय होती गयी। स्वतन्त्रता के बाद अनुसूचित जातियों की स्थिति में सुधार लाने हेतु प्रयास किये गये। भारतीय संविधान में अनुसूचित जातियों के
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Saini, Poonam. "कृषि कारकों का मानव स्वास्थ्य व पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभावो का विश्लेष्णात्मक अध्ययन". International Journal of Advanced Academic Studies 2, № 1 (2020): 357–63. http://dx.doi.org/10.33545/27068919.2020.v2.i1f.859.

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Srivastawa, Yogesh Kumar, та Rajesh Kumar Tripathi. "शिक्षकों के दृष्टिकोण को प्रभावित करने वाले कारकों की पहचान: एक बहुआयामी अध्ययन". Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education 19, № 4 (2022): 810–16. https://doi.org/10.29070/sya3xr10.

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Abstract:
शिक्षकों के दृष्टिकोण को प्रभावित करने वाले कारकों की पहचान करना एक जटिल और बहुआयामी प्रक्रिया है, जो शिक्षण और सीखने के परिणामों को गहराई से प्रभावित करती है। यह अध्ययन शिक्षकों के दृष्टिकोण पर प्रभाव डालने वाले सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, पेशेवर, और संस्थागत कारकों का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करता है। प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों के शिक्षकों से प्राप्त डेटा का उपयोग करते हुए, शोध में प्रश्नावली, साक्षात्कार, और अवलोकन जैसी विविध विधियों के माध्यम से जानकारी एकत्रित की गई। निष्कर्षों से पता चलता है कि शिक्षकों का दृष्टिकोण मुख्यतः उनके कार्य वातावरण, पेशेवर विकास के अवसर, समाज से मिलने वाली मान्यत
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Aryal, केशवशरणोऽर्यालः Keshavsharan. "न्यायवैशेषिकदर्शनयोर्मोक्षतत्त्वविमर्शः {The Salvation in the Ancient Logic}". Kaumodaki: Journal of Multidisciplinary Studies 4, № 1 (2024): 1–11. http://dx.doi.org/10.3126/kdk.v4i1.64538.

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Abstract:
पौरस्त्यचिन्तनानि मोक्षे पर्यवसन्नानि भवन्ति । अखिलान्यपि चिन्तनानि मोक्षार्थमेव प्रवत्र्तमानानि सन्ति राराजन्ते । पौरस्त्यचिन्तनेषु तत्र तत्र मोक्षकारणे तत्स्वरूपे च भेदस्तु सहजोऽपेक्ष्यश्च । न्यायवैशेषिकयोश्चिन्तने मोक्षतत्त्वं किंस्वरूपकम्, किञ्च तस्य कारणम्, कथञ्च तल्लब्धिरित्यादिकं प्रस्तुतस्य लघुप्रबन्धस्य समस्यात्वेन दृग्गोचरीभवति । तत्समाधानायाऽऽवश्यकसामग्रीसङ्कलनार्थं भूयसा प्रमाणेन पुस्तकालयाः प्रयुक्ताः । अथ च न्यूनाधिकतयाऽन्तर्जालादिकमप्यवालम्ब्यत । यथाऽऽवश्यकमवयवतत्त्वज्ञैः सह संवादादिकमपि विधाय सामग्रीसङ्कलनं व्यधायि । तदनु सङ्कलितसामग्रीर्विश्लिष्य प्रस्तुतशोधलेखसज्जीकरणार्थं गु
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Patra, Sasankasekhara. "जैनरीत्या बौद्धसम्मतप्रमाणलक्षणसमीक्षणम् (Analysis of Buddhist Epistemology From Jain Perspective)". Kiraṇāvalī XIV, № 3&4, JULY- DECEMBER 2022 (2022): 388–95. https://doi.org/10.5281/zenodo.7930446.

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Abstract:
परिदृश्यमानजगति अणुतमादारभ्य महत्तमं पर्यन्त सर्वं वस्तु खलु प्रमेयम्। प्रमेयज्ञानं किमपि साधनं विना स्वतोत्पादितं न भवति। अतः येन साधनेन प्रमेयज्ञानं जायते तत्खलु प्रमाणम्। अर्थात्प्रमीयते यथार्थज्ञानविषयीक्रियते वस्तुजातं येन तत् प्रमाणम्। येन वस्तुस्वरूपस्य निश्चयं ज्ञानं भवति तत्प्रमाणम्। प्रमाणस्य प्रयोजनं न केवलं शास्त्रेष्वपि तु संसारेऽस्मिन् वर्त्तते। कुतः? लौकिके किमपि व्यवहारकार्यं प्रमाणं विना न चलति। लौकिकव्यवहारे यदि कस्यचिद्वचनस्यप्रामाण्यविषये संशयो जायते तर्हि प्रमाणं विना केनाप्यनेनोपायेन तस्य सत्यता न ज्ञायते। अतः प्रमाणप्रयोजनं वर्त्तते। &lsquo;लक्षणप्रमाणाभ्यां हि वस्तुसिद्
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जाखड़, दीपाली, та हेमेंद्र सिंह शक्तावत. "रोजगार के अवसरों के लिए महिलाओं के प्रवासन की खोज". Anthology The Research 8, № 10 (2024): H 39 — H 59. https://doi.org/10.5281/zenodo.10629551.

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Abstract:
This paper has been published in Peer-reviewed International Journal "Anthology The Research"&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; URL : https://www.socialresearchfoundation.com/new/publish-journal.php?editID=8165 Publisher : Social Research Foundation, Kanpur (SRF International)&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; Abstract :&nbsp; हाल के वर्षों में रोजगार के लिए महिलाओं का प्रवास एक महत्वपूर्ण वैश्विक घटना बन गया है। महिलाओं को प्रवास के लिए प्रेरित करने में आर्थिक कारक
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Chaitanya, Tiwari, रतवकाांत सोनी डॉ., चंद्रिंशी रामप्रकाश та कुमार जैन आनन्द. "बीज उपचार तकनीक: फसल उत्पादन बढाने के स्मार्ट तरीके". एग्री मैगज़ीन 2, № 3 (2025): 5–8. https://doi.org/10.5281/zenodo.15335992.

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Abstract:
बीज उपचार (Seed Treatment) एक वैज्ञानिक नवनि है, नजसके अंतर्गत बीजों को अंकुरण से पहले नवनिन्ि तकिीकों द्वारा संसानित नकया जाता है तानक उिकी र्ुणवत्ता, रोर् प्रनतरोिक क्षमता और उत्पादकता में सुिार नकया जा सके। यह तकिीक बीजों को कवक, कीट, बैक्टीररया और अन्य हानिकारक कारकों से सुरनक्षत रखिे के साथ-साथ उिके अंकुरण दर और प्रारंनिक नवकास को बढािे में मदद करती है।
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Chaitanya, Tiwari, रतवकाांत सोनी डॉ., चंद्रिंशी रामप्रकाश та आनन्द कुमार जैन डॉ. "बीज उपचार तकनीक: फसल उत्पादन बढाने के स्मार्ट तरीके". एग्री मैगज़ीन 2, № 3 (2025): 5–8. https://doi.org/10.5281/zenodo.15336040.

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Abstract:
बीज उपचार (Seed Treatment) एक वैज्ञानिक नवनि है, नजसके अंतर्गत बीजों को अंकुरण से पहले नवनिन्ि तकिीकों द्वारा संसानित नकया जाता है तानक उिकी र्ुणवत्ता, रोर् प्रनतरोिक क्षमता और उत्पादकता में सुिार नकया जा सके। यह तकिीक बीजों को कवक, कीट, बैक्टीररया और अन्य हानिकारक कारकों से सुरनक्षत रखिे के साथ-साथ उिके अंकुरण दर और प्रारंनिक नवकास को बढािे में मदद करती है।
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सिंह, ललित कुमार. "घरेलू हिंसा के प्रति उत्तरदायी कारक". SCHOLARLY RESEARCH JOURNAL FOR INTERDISCIPLINARY STUDIES 9, № 68 (2021): 16050–56. http://dx.doi.org/10.21922/srjis.v9i68.9998.

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नीता, सिंह. "असुरक्षित गर्भपात के सामाजिक सांस्कृतिक कारक". Recent Researches in Social Sciences & Humanities (ISSN: 2348 – 3318) 10, № 01 (Jan.-Feb.Mar.) (2023): 37–42. https://doi.org/10.5281/zenodo.7944472.

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Abstract:
गर्भपात हमेशा से लिए रहा है। लेकिन इतिहास में अलग-अलग समय पर इसने अलग-अलग कारणों से ध्यान आकर्षित किया है, कुछ इसके समर्थन में, लेकिन अधिक्तर इसके खिलाफ है। गर्भपात मुख्य रूप से महिलाओं की स्वास्थ्य संबंधी चिंता है, लेकिन यह तेजी से पितृसत्तात्मक हितों द्वारा शासित होता जा रहा है जो अक्सर महिलाओं द्वारा गर्भपात को अधिकार के रूप में लेने की स्वतंत्रता पर अंकुश नहीं लगाता है। वर्तमान समय में महिलाओं के स्वास्थ्य का पूरा ध्यान उनके प्रजनन पर है, वास्तव में इसे रोकना या समाप्त करना, गर्भपात प्रथा एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन जाता है। यह अध्ययन भारत में असुरक्षित गर्भपात के सामाजिक-सांस्कृतिक कारकों के
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Dr.Reeta та Saroj kumar jaiswal Dr. "विशेष शिक्षा में अध्ययनरत बी.एड. प्रशिक्षुओं के शैक्षिक समायोजन में वातावरणीय कारकों का विश्लेषण". विशेष शिक्षा में अध्ययनरत बी.एड. प्रशिक्षुओं के शैक्षिक समायोजन में वातावरणीय कारकों का विश्लेषण 3, № 1 (2024): 189–95. https://doi.org/10.5281/zenodo.15610216.

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पाण्डेय, पवन कुमार, та प्रेम प्रकाश पाण्डेय. "ग्रामीण भारत में जाति-वर्ग एवं राजनीति का समाजशास्त्रीय विश्लेषण". Humanities and Development 16, № 1-2 (2021): 26–31. http://dx.doi.org/10.61410/had.v16i1-2.5.

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Abstract:
ग्रामीण सामाजिक संरचना के सामाजिक-आर्थिक, राजनीतिक संरचना में निरन्तर परिवर्तन हो रहा है। किसी भी समाज में होने वाला आर्थिक, सामाजिक या राजनीतिक परिवर्तन उस समय तीव्र गति से होता है जब परिवर्तन के वाह्य कारक एवं आंतरिक कारक आपस में तालमेल बनाकर अंतःक्रिया करते हैं। औद्योगीकरण, नगरीकरण, प्रौद्योगिकी का विकास, यातायात एवं संचार के साधन, प्रजातंत्रीकरण, शिक्षा का प्रसार एवं वैश्वीकरण आदि ऐसे कारक हैं, जो ग्रामीण सामाजिक संरचना में महत्वपूर्ण बदलाव ला रहे हैं।
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ढकाल Dhakal, विप्लव Biplab. "हिउँमा लेखिएका नामहरू कवितामा लयविधान {Hiunma Lekhiyeka Namharu Kabitama Layabidhan}". Saraswati Sadan सरस्वती सदन 5, № 1-2 (2021): 75–87. http://dx.doi.org/10.3126/ss.v5i1-2.62553.

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Abstract:
‘हिउँमा लेखिएका नामहरू’ मुक्त लयमा आधारित एउटा छोटो गद्यकविता हो। लयविधानका परम्परागत एवं शास्त्रीय नियमहरूको बन्धनमा नबाँधिएको यस कवितामा सहज, स्वतःस्फूर्त र अनियोजित रूपमा मुक्त लयको सघन तीव्रता रहेको छ । यस कवितामा विषम आयामिक पङ्क्तिविन्यास, पदक्रम विचलन र लेख्यचिह्नको प्रयोगबाट लयप्रवाहलाई नियमन गरिएको छ भने समानान्तरता तथा सामान्य भाषिक आवृत्ति लयविधानका मूल कारकका रूपमा रहेका छन्।कवितामा मुक्त लयको उत्पादन, नियमन, व्यवस्थापन र अग्रभूमीकरणका लागि समग्र लयविधायक तत्वहरूको एकीकृत सहकार्यबाट निर्मित लयगत एकत्वको निर्णायक भूमिका रहेको छ ।
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बी0, पी0 देवली, та फुलोरिया कमला. "पर्वतीय क्षेत्रों में पूर्वजों के कठिन परिश्रम से निर्मित ग्रामीण उप-बस्तियों का बदलता स्वरूप". RECENT RESEARCHES IN SOCIAL SCIENCES & HUMANITIES 11, № 3 (2024): 16–20. https://doi.org/10.5281/zenodo.13997523.

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Abstract:
पूर्वजों ने हिमालय क्षेत्र में भी कठोर परिश्रम करके ढ़ालदार क्षेत्रों को आवासीय एवं कृषि योग्य बनाया। सैकड़ों वर्षों तकहिमालय की छोटी-छोटी सांस्कृतिक भू-स्थलाकृतिक रूपी बस्तियों से उसका अटूट संबंध रहा, किन्तु बीसवीं शताब्दी केउत्तरार्द्ध तक विकास रूपी आधुनिकता से सामाजार्थिक परिवर्तन का तीव्र प्रभाव पर्वतीय ग्रामीण उप बस्ती रूपीसांस्कृतिक भू-स्थलाकृतियों पर स्पष्ट दिखाई देने लगा, क्योंकि मूल ग्रामों की अपेक्षाकृत उप बस्तियों में जन-जीवनकठोर परिश्रम युक्त तथा इनमें आधुनिकता का घोर अभाव था। आधुनिकता और विकास दोनों एक दूसरे के पूरक हैं।अर्थात विकासरूपी चक्र ही मानव समाज को आधुनिकता की ओर ले जाता
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बस्याल, जीवलाल. "मञ्जुलको छेकुडोल्मा : गद्यशैलीको क्रीडाभूमि". Sotang, Yearly Peer Reviewed Journal 4, № 4 (2022): 29–48. http://dx.doi.org/10.3126/sotang.v4i4.57081.

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Abstract:
वाग्मिताशास्त्रका उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, विरोधाभास जस्ता शैलीगत उपकरणको एकल एवम् सहप्रयोग छेकुडोल्मा उपन्यासमा प्रयुक्त गद्यशैलीको महत्त्वपूर्ण उपलब्धि हो । क्रियाविचलन र विशेषण विचलनका आधारमा अमूर्तभाव, सजीव एवम् जड प्रकृतिको मानवीकरण गर्ने प्रवृति उनको गद्यशैलीको अर्को शक्तिशाली पक्ष हो । त्यस्तै कथनलाई अनुभूतिमय र विम्बात्मक रूपमा प्रस्तुत गर्ने क्रममा विशेषण विपर्ययको प्रयोग उनको गद्यशैलीको उल्लेख्य प्राप्ति बन्न पुगेको छ । क्रिया विचलन, विशेषण विचलन, क्रिया विशेषण विचलन, कर्म कारक विचलन करण कारक विचलन, अधिकरण कारक विचलन र आर्थी विचलनको एकल एवम् सहप्रयोगका कारण उनको गद्यशैली अलङ्कृत तथा
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Jat, Arjun Lal. "Regional Population Imbalance and National Security of India." RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 9, no. 11 (2024): 34–37. https://doi.org/10.31305/rrijm.2024.v09.n11.006.

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Abstract:
Demographic changes have significantly impacted the social, economic, political, environmental, and national security of most countries worldwide. Factors like uneven population density, high birth rates, low death rates, and uncontrolled migration have led to excessive exploitation of natural resources and have facilitated terrorism, separatism, and naxalism, thereby affecting national security. In India, rising illegal immigration, population growth, birth and death rates, and urbanization have created alarming conditions for national security. Addressing these issues requires both structura
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Akta, Hussain. "निर्वाचन एवं मतदान व्यवहारः 17वीं लोकसभा के संदर्भ में अलवर लोकसभा". RECENT RESEARCHES IN SOCIAL SCIENCES & HUMANITIES 11, № 4 (2024): 117–20. https://doi.org/10.5281/zenodo.14841134.

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Abstract:
भारत में जाति एक प्रमुख सामाजिक कारक है। श्रम विभाजन, सामाजिक स्तरीकरण और सामाजिक व्यवहार के साथ-साथजाति निर्वाचन को प्रभावित करने वाला प्रमुख कारक है। इसलिए चुनावों में राजनीतिक दल भी जाति के आधार पर अपनेप्रत्याथी खडे करते है। प्रस्तुत लेख में अलवर जिले में 17वीं लोकसभा चुनावों का विष्लेषण जाति ध्रुवीकरण के आधार परकिया गया है।
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BAGORIA, SUNITA. "Single motherhood and urban society : A study of social acceptance and conflicts." Shodhaamrit 02, no. 02 (2025): 26–34. https://doi.org/10.71037/shodhaamrit.v2i2.04.

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Abstract:
भारत के तेजी से शहरीकरण और पारंपरिक परिवार संरचनाओं में बदलाव के परिप्रेक्ष्य में एकल मातृत्व एक उभरता सामाजिक विषय बन चुका है। यह शोध “एकल मातृत्व और नगरीय समाज: सामाजिक स्वीकार्यता और संघर्षों का अध्ययन” शहरी एकल माताओं के कानूनी, आर्थिक एवं सामाजिक आयामों का समग्र विश्लेषण प्रस्तुत करता है। अध्ययन के मुख्य उद्देश्य थे—एकल माताओं के संवैधानिक अधिकारों (Guardian and Wards Act, 1890; सुप्रीम कोर्ट निर्णय), नगरीय रोजगार के अवसर एवं बाधाएँ (PLFS डेटा), मातृ–शिशु स्वास्थ्य संकेतक (NFHS‑5), तथा सामाजिक स्वीकृति में पारिवारिक, संस्थागत एवं जनसांख्यिकीय कारकों की पहचान।
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Sarita, Kumari. "बिहार के मध्य विद्यालय शिक्षकों में शिक्षक प्रभावशीलता को प्रभावित करने वाले कारकों का बहुआयामी अध्ययन". International Journal of Advanced Academic Studies 7, № 7 (2025): 90–95. https://doi.org/10.33545/27068919.2025.v7.i7b.1576.

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