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लाल, बहादुर कुमार. "मधुबनी ल¨क चित्र्ाकला की विश्¨षताएँ एव ं रंग¨ ं की अद्भ ुत संय¨जन". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.888812.

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Abstract:
मिथिलांचल की मध ुबनी ल¨क चित्र्ाकला के माध्यम से ल¨कचित्र्ा परम्परा का निर्वाह आज भी किया जा रहा ह ै। यहाँ की ल¨क कला श्©ली वंश परम्परा क े आधार पर आज भी गतिशील ह ै। मध ुबनी ल¨क चित्र्ाकला की विदेश¨ं में काफी मांग ह ै ल्¨किन वह अपने ही देश में उप ेक्षित ह ै। दुर्भाग्य की बात है कि जिनके हाथ में ह ुनर है, वे ग्रामीण कलाकार आमत©र पर गरीब है ं। देश के कला-जगत् की नजर इस पर नहीं गई, जबकि ‘‘जापान के हासेभावा ने राजधानी ट¨किय¨ से उत्तर-पश्चिम में स्थित निगाता में एक पहाड़ी पर मिथिला म्यूजियम की स्थापना की ह ै। जापान क े कला के मर्मज्ञ एव ं कला पारखी ‘‘हासेगावा’’ पच्चीस से अधिक बार भारत आ चुक े है ं।
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राय, अजय क. ुमार. "जनसंख्या दबाव से आदिवासी क्षेत्रों का बदलता पारिस्थितिकी तंत्र एवं प्रभाव (बैतूल-छिन्दवाड़ा पठार के विशेष सन्दर्भ में)". Mind and Society 9, № 03-04 (2020): 31–38. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-93-4-20214.

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Abstract:
जनजातीय पारिस्थितिकी म े ं वन, क ृषि म े ं स ंलग्नता, आवास, रहन-सहन का स्तर, स्वास्थ्य स ुविधाआ े ं का अध्ययन आवश्यक हा ेता ह ै। सामान्यतः धरातलीय पारिस्थ्तििकी का े वनस्पति आवरण क े स ंदर्भ म ें परिभाषित किया जाता ह ै। अध्ययना ें स े यह स्पष्ट ह ैं कि यदि किसी स्थान पर जनस ंख्या अधिक ह ैं आ ैर यदि उसकी व ृद्धि की गति भी तीव ्र ह ै ं ता े वहा ं पर अवस्थानात्मक स ुविधाआ ंे क े निर्मा ण क े परिणास्वरूप तथा विकासात्मक गतिविधिया ें क े कारण विद्यमान स ंसाधना ें पर दबाव निर ंतर बढ ़ता ही जाता ह ैं, प ्रस्त ुत अध् ययन म े ं शा ेधार्थी आदिवासी एव ं वन बाह ुल्य क्ष ेत्र ब ैत ूल-छि ंदवाड ़ा पठार म ें ज
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द्विजेश, उपाध् याय, та मकुेश चन्‍द र. पन डॉ0. "तबला एवंकथक नृत्य क अन् तर्सम्‍ बन् धों का ववकार्स : एक ववश् ल षणात् मक अ्‍ ययन (तबला एवंकथक नृत्य क चननांंक ववे ष र्सन् र्भम म)". International Journal of Research - Granthaalayah 5, № 4 (2017): 339–51. https://doi.org/10.5281/zenodo.573006.

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Abstract:
तबला एवांकथक नृत्य ोनन ताल ्रधाान ैं, इस कारण इनमेंसामांजस्य ्रधततत ैनता ै। ूरवव मेंनृत्य क साथ मृो ां की स ां त ैनतत थत ककन्तुबाो म नृत्य मेंजब ्ृां ािरकता ममत्कािरकता, रांजकता आको ूैलुओांका समाव श ैुआ तन ूखावज की ांभतर, खुलत व जनरोार स ां त इन ूैलुओांस सामांजस्य नै ब।ाा ूा। सस मेंकथक नृत्य क साथ स ां कत क कलए तबला वाद्य का ्रधयन ककया या कजस मृो ां (ूखावज) का ैत ूिरष्कृत एवां कवककसत प ू माना जाता ै। तबला वाद्य की स ां त, नृत्य क ल भ सभत ूैलुओांकन सैत प ू में्रधस्तुत करन मेंस ल साकबत ैु। कथक नृत्य की स ां कत में ूररब बाज, मुख्यत लखन व बनारस ररान का मैत् वूरणव यन ोान रैा ै। कथक नृत्य की स ां कत
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साह ू, प. ्रवीण क. ुमार. "संत कबीर की पर्यावरणीय चेतना". Mind and Society 9, № 03-04 (2020): 57–59. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-93-4-20219.

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Abstract:
स ंत कबीर भक्तिकालीन निर्ग ुण काव्यधारा अन्तर्ग त ज्ञानमार्गी शाखा क े प ्रवर्त क कवि मान े जात े ह ैं। उनकी वाणिया ें म ें जीवन म ूल्या ें की शाश्वत अभिव्यक्ति एव ं मानवतावाद की प ्रतिष्ठा र्ह ुइ ह ै। कबीर की ‘आ ंखन द ेखी’ स े क ुछ भी अछ ूता नही ं रहा ह ै। अपन े समय की प ्रत्य ेक विस ंगतिया ें पर उनकी स ूक्ष्म निरीक्षणी द ृष्टि अवश्य पड ़ी ह ै। ए ेस े म ें पर्या वरण स ंब ंधी समस्याआ ें की आ ेर उनका ध्यान नही गया हा े, यह स ंभव ही नही ह ै। कबीर क े काव्य म ें प ्रक ृति क े अन ेक उपादान उनकी कथन की प ुष्टि आ ैर उनक े विचारा ें का े प ्रमाणित करत े ह ुए परिलक्षित हा ेत े ह ैं। पर्या वरणीय जागरूक
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Dhiman, Utkarshi, Dr Anu Devi, Dr Manoj Dhiman, Mrs Meenakshi та Mrs Binnu Pundir. "ग्राफिक डिज़ाइन में फ्रीलांसिंगः चुनौतियाँ और अवसर". INTERNATIONAL JOURNAL OF SCIENTIFIC RESEARCH IN ENGINEERING AND MANAGEMENT 09, № 07 (2025): 1–8. https://doi.org/10.55041/ijsrem51364.

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Abstract:
आज के डिडजटल युग मेंफ्रील ांड ांग एक ऐ क ययक्षेत्र बनकर उभर है, डज नेप रांपररक नौकररय ांकी पररभ ष क बदल डदय है। यह न के वल र जग र क एक नय म ध्यम है, बल्कि युव ओां क अपनी रुडिय ांऔर रिन त्मक क्षमत ओां के अनु र क यय करनेकी स्वतांत्रत भी प्रद न करत है। डवशेषकर ग्र डिक डिज इन जै ेरिन त्मक क्षेत्र ां में, फ्रील ांड ांग नेछ त्र ां, नव डदत डिज इनर ांऔर पेशेवर ांक डबन डक ी स्थ डनक ीम के वैडिक स्तर पर क ययकरनेक अव र डदय है। पहलेजह ाँडिज इडनांग क के वल एक ह यक भूडमक म न ज त थ , वही ांअब यह एक पूर्यक डलक, आय- ृजन करनेव ल और स्वतांत्र कररयर डवकल्प बन िुक है। डिडजटल म ध्यम ांकी पहाँि और ऑनल इन क यय ांस्कृ
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चा ैहान, ज. ुवान सि ंह. "प ्रवासी जनजातीय श्रमिका ें की प ्रवास स्थल पर काय र् एव ं दशाआ ें का समाज शास्त्रीय अध्ययन". Mind and Society 8, № 03-04 (2019): 38–44. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-83-4-20196.

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Abstract:
भारत म ें प ्रवास की प ्रक्रिया काफी लम्ब े समय स े किसी न किसी व्यवसाय या रा ेजगार की प ्राप्ति ह ेत ु गतिशील रही ह ै आ ैर यह प ्रक्रिया आज भी ग ्रामीण जनजातीय सम ुदाय म ें गतिशील दिखाइ र् द े रही ं ह ै। प ्रवास की इस गतिशीलता का े रा ेकन े क े लिए क ेन्द ्र तथा राज्य सरकार न े मनर ेगा क े तहत ् प ्रधानम ंत्री सड ़क या ेजना, स्वण र् ग ्राम स्वरा ेजगार या ेजना ज ैसी सरकारी या ेजनाआ े ं का े लाग ू किया ह ै, ल ेकिन फिर ग ्रामीण जनजातीय ला ेगा े ं क े आथि र्क विकास म े ं उसका असर नही ं दिखाइ र् द े रहा ह ै। ग ्रामीण जनजातीय सम ुदाया ें म े ं निवास करन े वाल े अधिका ंश अशिक्षित हा ेन े क े कारण शा
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ख ुट, डिश्वर नाथ. "बस्तर का नलवंश एक ऐतिहासिक पुनरावलोकन". Mind and Society 9, № 03-04 (2020): 47–52. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-93-4-20217.

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Abstract:
सभ्यता का विकास पाषाण काल स े प ्रार ंभ हा ेता ह ै। इस काल म ें बस्तर म े रहन े वाल े मानव भी पत्थर क े न ुकील े आ ैजार बनाकर नदी नाल े आ ैर ग ुफाआ ें म ें रहत े थ े। इसका प ्रमाण इन्द ्रावती आ ैर नार ंगी नदी के किनार े उपलब्ध उपकरणों स े हा ेता है। व ैदिक युग म ें बस्तर दक्षिणापथ म ें शामिल था। रामायण काल म ें दण्डकारण्य का े उल्ल ेख मिलता ह ै। मा ैर्य व ंश क े महान शासक अशा ेक न े कलि ंग (उड ़ीसा) पर आक्रमण किया था, इस य ुद्ध म ें दण्डकारण्य क े स ैनिका ें न े कलि ंग का साथ दिया था। कलि ंग विजय क े बाद भी दण्डकारण्य का राज्य अशा ेक प ्राप्त नही ं कर सका। वाकाटक शासक रूद ्रस ेन प ्रथम क े समय
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मिश्रा, आ. ंनद म. ुर्ति, प्रीति मिश्रा та शारदा द ेवा ंगन. "भतरा जनजाति में जन्म संस्कार का मानवशास्त्रीय अध्ययन". Mind and Society 9, № 03-04 (2020): 39–43. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-93-4-20215.

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Abstract:
स ंस्कार शब्द का अर्थ ह ै श ुद्धिकरण। जीवात्मा जब एक शरीर का े त्याग कर द ुसर े शरीर म ें जन्म ल ेता है ता े उसक े प ुर्व जन्म क े प ्रभाव उसक े साथ जात े ह ैं। स ंस्कारा े क े दा े रूप हा ेत े ह ैं - एक आंतरिक रूप आ ैर द ूसरा बाह्य रूप। बाह ्य रूप का नाम रीतिरिवाज ह ै जा े आंतरिक रूप की रक्षा करता है। स ंस्कार का अभिप्राय उन धार्मि क क ृत्या ें स े ह ै जा े किसी व्यक्ति का े अपन े सम ुदाय का प ुर्ण रूप स े योग्य सदस्य बनान े क े उदद ्ेश्य स े उसक े शरीर मन मस्तिष्क का े पवित्र करन े क े लिए किए जात े ह ै। सभी समाज क े अपन े विश ेष रीतिविाज हा ेत े ह ै, जिसक े कारण इनकी अपनी विश ेष पहचान ह ै,
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या, ेगेन्द्र सिंह नरूका फ. ूलैता. "वशेष बालका ें की कला म ें र ंग संया ेजनः- एक अध्ययन". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.889271.

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Abstract:
वषेष बालका ें (मानसिक,विकलंाग,मूक-बधिर,अंध) से कला सृजनकार्य करवाना अपने आप में एक चुनौती प ूर्ण कार्य है। उनमें रंगा ें की समझ प ैदा करना, उनक े सार्थ क उपयोग का े समझाना आ ैर फिर उसे सृजनात्मकता की ओर अग्रसर करना श्रम साध्य कार्य है। विषेष बालकों क े रंग संया ेजन का े समझने क े लिए सर्व प्रथम उन्ह े ं रंग, कैनवास आ ैर ब्रष क े साथ कुछ चित्रित करने क े लिए अक ेले छा ेड़ देना चाहिए। क ुछ समय बाद उनके रंग-संया ेजन का े दृष्टिगत करना चाहिए। रंगा ें से विष ेष बालकों की मानसिक भावनाओं आ ैर संवेगा ें का े समझा जा सकता है। पीले व ब ैंगनी रंग का अधिक उपयोग करन े वाले बालकों में प ्रफ ुल्लता और ख ुषी
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डा, ॅ. स्मिता सहस्त्रब ुद्धे. "स ंगीत क े प्रचार प्रसार में स ंचार साधन¨ ं की भूमिका". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–4. https://doi.org/10.5281/zenodo.884794.

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Abstract:
संगीत जीवन क¢ ताने-बाने का वह धागा है जिसक¢ बिना जीवन सत् अ©र चित् का अंश ह¨कर भी आनंद रहित रहता ह ै तथा नीरस प्रतीत ह¨ेता ह ै। संगीत में ए ेसी दिव्य शक्ति ह ै कि उसक ¢ गीत क ¢ अर्थ अ©र शब्द¨ं क¨ समझे बिना भी प्रत्येक व्यक्ति उसस े गहरा सम्बन्ध महसूस करता ह ै। ”संगीत“ एक चित्ताकर्शक विद्या ज¨ मन क¨ आकर्षि त करती ह ै। गीत क ¢ शब्द न समझ पाने पर भी ध ुन पसंद आने पर ल¨ग उस गीत क¨ गाते ह ैं, क्य¨ ंकि भारतीय संगीत-कला भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अ ंग है एवं भारत क ¢ निवासिय¨ं की जीवनशैली का प्रमाण ह ैं। ”संगीत“ मानव समाज की कलात्मक उपलब्धिय¨ ं अ©र सांस्कृतिक परम्पराअ¨ं का मूर्तमान प्रतीक ह ै। यह आ
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क, े. राजलक्ष्मी. "चित्रकला म े र ंगा ें का सौन्दर्य". International Journal of Research – Granthaalayah Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.890599.

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Abstract:
नीला आकाश, चारा ें तरफ फैली हरियाली रंग-बिरंगे फ ूल एवं सु ंदर-सु ंदर पश ु-पक्षी। ईश्वर की अद्भुत कृति एवं सु ंदर रंग संया ेजन। ऐसा प्रतीत होता ह ै कि मानो भगवान चित्रकार क े रूप में इस संसार रूपी कैनवास पर अपने रंगा ें एव ं रेखाओं क े माध्यम से एक सु ंदर चित्रण कर दिया ह ैं। अगर चित्रण में यदि रंगा ें का समावेश न हा े तो क्या तब भी तब भी यह संसार इतना ही सुंदर दिख ेगा? संभवतः नहीं। मनुष्य अपने नेत्रा ें क े माध्यम से जो कुछ भी देखता उनमें रंगा ें का समावेश होता ही ह ै, अतः यह कहना सर्व था गलत नही ं होगा कि जीवन में रंगा ें का स्थान सर्वोपरि है आ ैर यही रंग हमें अपने सा ैन्दर्य व आकर्ष ण के मा
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डा, ॅ. नीरज राव. "स ंगीत क े प्रचार-प्रसार म ें स ंचार साधना ें की भ ूमिका". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1. https://doi.org/10.5281/zenodo.886994.

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Abstract:
मनुष्य को आदिकाल से ही संगीत मना ेरंजन एव ं आमोद-प्रमोद का साधन रहा ह ै। आदिकाल से ही मानव ने अपने मना ेरंजन क े साधन क े लिये विभिन्न प्रकार क े प ्रया ेग किये जैसे-जैसे मानव अपनी सभ्यता का विकास करता गया व ैसे-व ैसे उसकी समझ आ ैर सूझ-बूझ ने नृत्य, गायन आ ैर वादन की ओर आकर्षि त किया। मानव ने सभ्यता और संस्कृति को समझकर अपने का े प ्रकृति क े साथ तालमेल करते ह ुए संगीत का े सीखा। हमारे पा ैराणिक ग्रंथों में भी इस बात का उल्लेख ह ै कि माँ पार्वती की गायन मुद्रा को देखकर भगवान षंकर ने क्रमषः पाँच राग हिंडा ेल, दीपक, श्री, मेघ, का ैषिक आदि रागों की रचना की एवं संगीत की उत्पत्ति भगवान षिव क े ताण्
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सन्ता, ेष कुमार यादव. "मुगल कालीन चित्रकला (रेखा, र ंग आ ैर अलंकरण के सन्दर्भ म ें)". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.889286.

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Abstract:
मुगल कालीन कला मे भारतीय कला के प्रभाव का जो पहला गुण दिर्खाइ देता ह ै वह ह ै रेखा। किसी भी चित्र का वाहय शरीर रेखा होती है। वह चित्र को वाहरी आकार प ्रदान करने मे अपनी महत्वप ूर्ण भूमिका निभाती है। साधारणतया दो बिन्दुओं को मिलाने से रेखा का निर्माण होता ह ै परन्तु चित्रकला मे का ेमल, लोचदार, लयबद्ध आ ैर लचीली रेखाओं की आवश्यकता पर जा ेर दिया जाता ह ै। जिसके अलग अलग प ्रयोगा ें से चित्राधार पर अनेक प्रकार के आकार उभरते ह ै। इन रेखाओं क े विभिन्न तरह क े प ्रयोगा ें से मुगल कलाकारों ने पर्व त, बृ क्ष, पुष्प और मानव आकृतियों की रचना की ह ै। रेखा से आकृति मे गति व प ्रवाह दिखता है। ये रेखाए ं गा
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आचार्य Acharya, ओमप्रकाश Omprakash. "सिँजाली खस भाषाको वर्णव्यवस्था". Shabda Sadhana शब्दसाधना 7, № 1 (2024): 145–65. https://doi.org/10.3126/shabdasadhana.v7i1.75099.

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Abstract:
सिँजाली भाषा भारोपेली भाषापरिवारको शतम वर्गको आर्यइरानेली बाल्हीक खस हुँदै विकसित भएको हो । खस पूर्वी पहाडी भाषा सिँजाली पर्वते गोर्खाली र नेपाली भाषा विकसित हुनपुग्यो । वर्तमान समयमा त्यही सिँजा नेपालको कर्णाली प्रदेशको जुम्ला जिल्लामा पर्छ । सिँजादरा, सिँजाउपत्यका, सिँजाभेग भनेर चिनिन्छ । यही नेपाली भाषाको आधार भाषा रहेको सिँजाली खस भाषा भाषामा वर्णव्यवस्था कस्तो छ ? नेपाली भाषासँग यसको समानता र भिन्नता के कति छ भन्ने समस्यामा केन्द्रित भएर सिँजाली भाषाको वर्णव्यवस्थाको खोजी गर्नु नै यस अनुसन्धानात्मक लेखको मुख्य उद्देश्य हो । नेपाली भाषाको प्राचीन स्वरुप सिँजाली भाषा भएकाले यसको अध्ययन आवश्
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डा, ॅ. वसंुधरा पवार. "स ंगीत म ें नवाचार का इतिहास". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.886069.

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Abstract:
भारतीय संगीत का इतिहास उतना ही प्राचीन आ ैर अनादि ह ैं, जितनी मानव जाति। इसका सभारंच व ैदिक माना जाता ह ै। जितनी प्राचीन हमारे देश की सभ्यता आ ैर संस्कृति है उतना ही विस्तृत एव ं विषाल यहाँ के संगीत का अतीत ह ै। भारतीय संगीत का उद्भव सामदेव की ऋचाओं से ह ुआ है तथा इसका शैषव काल ऋषि मुनियों की तपोभूमि तथा यज्ञवेदिया ें क े पावन घ्र ुम क े सान्निध्य में सुवासित हा ेकर व्यतीत ह ुआ। यही कारण है कि भारतीय मनीषियों ने नाद का े ईश्वर के समान कहा गया ह ै, तथा नाद ब्रह्य की सदैव उपासना की ह ै। “ न नादेन बिना गीतं न नादेन बिना स्वरः। न नृŸां तस्मान्नादात्मकं जगत्।। ” न ता े नाद के बिना गीत है, न नाद क े
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डिम्पल, गुप्ता. "विज्ञापन क े र ंगा े ं का समाज पर प ्रभाव". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.888847.

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Abstract:
वस्तुआ ें क े धरातल में रंग हा ेने क े कारण ही वह हमें दिखाई देती है। धरातलों पर प्रकाश की मात्रा कम व अधिक होने से एक ही रंग की वस्तुएँ अलग-अलग दिर्खाइ देती है। यह विविध रंग हमें सूर्य के द्वारा ही सब वस्तुओं को प ्राप्त होता है। स ूर्य की किरणों में सात प ्रकार के रंग हा ेते है। और उन्हीं के द्वारा ही आकश में इन्द्रधनुष बनता है। रंग एक शक्तिशाली मनोवैज्ञानिक आ ैजार है। हर रंग अलग-अलग प ्रभाव छा ेड़ता ह ै। रंगा ें का समाज पर बह ुत प्रभाव पड़ता ह ै यदि मानवीय जीवन आ ैर प्रकृति से रंग निकाल दिया जाय तो इस धरती पर सब सूना-सूना नीरस सा लगने लगेगा रंगा ें के प्रति हर व्यक्ति की भावनाएँ अलग-अलग हा
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आभा, दीक्षित. "'अक्षय उर्जा' का उपयोग आर्थिक विकास और पर्यावरण विकास दोना ें क े लिए आवष्यक". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (special Edition) (2017): 1–5. https://doi.org/10.5281/zenodo.580642.

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Abstract:
आधारभ ूत संरचना क े बिना र्कोइ भी अर्थव्यवस्था विकसित नही हो सकती ह ै। उर्जा एक महत्वप ूर्ण आधारभूत संरचना ह ै, जा े विकास का े गति प्रदान करता है, क्योकि सभी क्षेत्रों कृषि, उद्या ेग, परिवहन आदि में उर्जा संसाधनों की आवष्यकता पड ़ती ह ै। यहाॅ तक कि किसी द ेश क े आर्थिक विकास का अन ुमान उस द ेश में उर्जा-संसाधनों की प ्रति व्यक्ति खपत से लगाया जाता ह ै आ ैर माना जाता ह ै कि जिस द ेष में उर्जा की प्रति व्यक्ति खपत जितनी अधिक होगी उस द ेष म ें प ्रति व्यक्ति आय भी उतनी ही अधिक होगी । भारत में विश्व की 16 प ्रतिषत जनसंख्या निवास करती है। ल ेकिन यहाॅ पर कुल विश्व खपत की 1.5 प ्रतिशत उर्जा ही खर्च
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उषा, कुमठ. "जलवायु परिवर्तन आ ैर भारतीय क ृषि". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.883553.

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Abstract:
भारतीय अर्थ व्यवस्था की आधारशिला कृषि है। कृषि एव ं जलवाय ु परिवर्त न का सबसे ज्यादा प्रतिकूल प ्रभाव कमजा ेर कृषक पर पड ़ रहा है। वर्षा की मात्रा में परिवर्त न होन े से फसलो ं की उत्पादकता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड ़ा है। जलवायु म ें होन े वाला परिवर्त न हमारी राष्ट ªीय आय का े भी प्रभावित कर रहा ह ै। द ेश के बहुत से भागो ं में अल्प वर्षा से फसलें सूख जाती है या अति-वृष्टि से बह जाती है जिसस े न केवल खाद्यानों का उत्पादन कम हुआ बल्कि उनकी कीमत े भी त ेजी से बढ ़ गई। जलवायु परिवर्त न से फसला ें की उत्पादकता ही प्रभावित नहीं ह ुई बल्कि उसकी ग ुणवत्ता पर भी नकारात्मक प्रभाव पड ़ा है। तापमान के बढ
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डा, ॅ0 नाजिमा इरफान. "भारतीय चित्रकला में र ंगा ें का या ेगदान (अब्दुर्रहमान चुगताई के विष ेष संदर्भ में)". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.889177.

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Abstract:
मानव जीवन में वर्ण का महत्वप ूर्ण स्थान ह ै। प्रत्येक वस्तु का ेई न कोई रंग लिये हुए ह ै। रंगा ें क े प ्रति मानव का आकर्ष ण कभी घटा नही ह ै। इसीलिये आदि मानव से लेकर आधुनिक मानव तक ने सा ैन्दर्य क े विकास में वर्ण का सहारा लिया ह ै। कमरे की रंग व्यवस्था से लेकर बाग बगीचा ें में फ ूल पौधों की रंगया ेजना तक में कलाकार ने अपना हस्तक्ष ेप किया ह ै क्योंकि रंगा ें का अपना एक प्रभाव हा ेता ह ै जो मानव की मानसिक भावनाओं का े उद्वेलित करने की शक्ति रखता ह ै। वर्ण सार्वभौमिक ह ै तथा चित्रकला में सबसे अधिक महत्व रंग का े दिया जाता है। रंगा ें क े विविध रुपों मे ं मन की भावनायें जुड़ी ह ै ं जैसे बसन्त क
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अ, ंशु अर्प ण. भारद्वाज. "इको टूरिज्म". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special edition) (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.838915.

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Abstract:
पर्यटक और पर्यावरण का सहसम्बन्ध ह ै। वर्त मान समय म ें विश्व के समस्त द ेशों में पर्यटन का विकास तीव्रगति से हो रहा ह ै और इसन े उद्या ेग का रूप ले लिया है। पर्यटन उद्योग क े विकास क े साथ-साथ पर्यावरण क े संरक्षण की आवश्यकता न े विश्व के पर्यावरणविदों को चिंतित कर रखा है। अनियंत्रित पर्यटन से जैव विविधता तथा पारिस्थितिकी त ंत्र प्रभावित हा ेता है। अतः इन दुष्परिणामों का े नियंत्रित करने के लिए पर्यटकों का े उत्तरदायी पर्यटन एव ं इको ट ूरिज्म (पर्यावरणीय पर्यटन) हेत ु जागरूक करना चाहिए। उत्तरदायी पर्यटन भौतिक, सामाजिक एव ं सांस्कृतिक पतन को रोकता है। उत्तरदायी पर्य टन में स्थानीय समुदाय के सहय
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श्रीमति, स्वप्ना मराठे. "वर्तमान समयानुसार संगीत पाठ्यक्रम¨ ं म ें बदलाव की आवष्यकता". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.886835.

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Abstract:
युग परिवर्तन सृष्टि का सम्बन्धित नियम है, जिसक¢ अन्तर्गत सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक वातावरण भी बदलते रहते हैं। अतः युगानुकूल संगीत षिक्षा की पद्धति में भी परिवर्तन ह¨ना आष्चर्यजनक घटना नहीं है। भारतीय संस्कृति विष्व की उन संस्कृतिय¨ ं में से एक है जिसने सम्पूर्ण विष्व क¨ नई दिषा एवं सृजनात्मकता दी। ये व¨ धर¨हर ह ै जिसक¨ सुरक्षित रखने क¢ लिये हमारे संस्कृति प्रेमिय¨ ं ने अपने सम्पूर्ण जीवन की आहूति दी। संगीत मानव समाज की एक कलात्मक उपलब्धि ह ै। यह लयकारी सांस्कृतिक परम्पराअ¨ं का एक मूर्तिमान प्रतीक ह ै अ©र भावना की उत्कृष्ट कृति ह ै। अमूर्त भावनाअ¨ ं क¨ मूर्त रूप देने का माध्यम ही संगीत ह ै
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डा, ॅ. अनीता भाना. "भा ेजन क े प्राकृतिक रंगा े का मानव जीवन में महत्व". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.890603.

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Abstract:
रंगा े क े बिना जीवन की कल्पना असंभव ह ै। जीवन को जीवन्त बनाने में रंगा े का अपना योगदान ह ै । नीला आसमान, धूसर धरती, रंग बिरंगे फल-फ ूल, पशु पक्षिया ें व हरे भरे पेडा ें द्वार्रा इ श्वर ने प्रकृति मे जा े रंग संया ेजन किया ह ै इसकी सुंदरता के आगे विज्ञान की प ्रगति व तकनीक की चकाचा ैंध फीकी ही ह ै। भा ेजन हर प्राणी की प्राथमिक आवश्यकता ह ै इसे भी प्रकृति नें लाल पीले नारंगी, नीले जामुनी हरे, काले जैसे विविध रंगा े से नवाजा ह ै आ ैर उसे अधिक सुंदर, ग्राहय तथा मनमोहक बनाया ह ै। पपीते व आम का पीला रंग,तरब ूज, चेरी का लाल रंग, पालक गिलकी का हरा रंग हा े या जामुन का जामुनी रंग ये न क ेवल भोजन को आ
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वन्दना, अग्निहोत्री. "नदिया ें म ें प्रद ूषण और हम". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–4. https://doi.org/10.5281/zenodo.883519.

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Abstract:
जल को बचाए रखना सभी की चिन्ता का विषय ह ै, व ैज्ञानिक राजन ेता, ब ुद्धिजीवी, रचनाकार सभी की चिन्ता है, जल कैस े बचे ? द ुनियाँ को अर्थात पृथ्वी को वृक्षों को, जंगलो को, पहाड ़ों को, हवा को, पानी को बचाना है। पानी का े बचाया जाना बह ुत जरूरी ह ै। पृथ्वी बच सकती ह ै, वृक्ष ज ंगल, पहाड ़ और मन ुष्य, पषु, पक्षी सब बच सकत े ह ै, यदि पानी को बचा लिया गया और पानी प ृथ्वी पर है ही कितना? पृथ्वी पर उपलब्ध सार े पानी का 97ण्4ः पानी सम ुद ्र का खारा जल है, जो पीन े लायक नही ह ै, 1ण्8ः जल ध ु्रवा ें पर बर्फ के रूप म ें विद्यमान है और पीन े लायक मीठा पानी क ेवल 0ण्8ः ह ै जो निर ंतर प्रद ूषित हा ेता जा रहा
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प, ्रो. सुनीता जैन. "चित्रकला म ें र ंग - प्रागैतिहासिक काल मध्यप्रद ेश के विश ेष संदर्भ में". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.889223.

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Abstract:
चित्रकला का े अभिव्यक्तिगत सार्म थ्य प ्रदान करने वाले तत्वों में रंग प ्रमुख ह ै। चित्रकला में रंग की अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका है। चित्रकार जिस आधारभूत सतह पर चित्रा ंकन करता है उसमें रंग उसकी पर्या प्त सहायता करते हैं इन्हीं क े आधार पर कलाकृति मानसिक सन्तुष्टि प्रदान करती ह ै। रंग का आधार पाकर बर्नाइ र्गइ रचना अपने अभिष्ट को पाने में समर्थ हा ेती है। रंग के माध्यम से चित्रकार अपनी कृति का े कोमल बनाता ह ै। चित्रकार का बिम्ब-विधान चित्र सुलभ संव ेदनशीलता बह ुत कुछ रंग पर निर्भर करती है। रंग का प ्रया ेग जितना संगीत पूर्ण , उचित आ ैर सन्तुलित होगा मानव के मानस पटल पर उसका प ्रभाव उतना ही गहर
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भारती, खर े., та कुमार अंजलि. "वानिकी एवं पर्या वरण". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.574868.

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Abstract:
एक अरब स े ज्यादा जन सैलाब के साथ भारतीय पर्या वरण का े स ुरक्षित रखना एक कठिन कार्य ह ै वह भी जबकि हर व्यक्ति की आवश्यकताएॅ ं, साधन, शिक्षा एव ं जागरूकता के स्तर में असमान्य अंतर परिलक्षित होता है। संत ुलित पर्या वरण के बिना स्वस्थ जीवन की कल्पना करना मात्र एक कल्पना ही है। पर्यावरण स े खिलवाड ़ के परिणाम हम र्कइ रूप में वर्त मान में द ेख रहे हैं एव ं भोग रहे ह ैं। पर्यावरण विज्ञान आज के समय क े अन ुसार एक अनिवार्य विषय ह ै। यह सिर्फ हमारी ही नहीं अपित ु व ैश्विक समस्या ह ै। वर्त मान पर्यावरणीय अस ंत ुलन का े द ेखत े हुए इस विषय स े हर व्यक्ति का े जुड ़ना चाहिए एव ं जोड ़ना चाहिए। वानिकी एव
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स, ुधा शाक्य. "वर्तमान पर्यावरणीय समस्याएं एव ं सुझाव". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.883040.

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Abstract:
भारत में प ्राचीन काल से ही प्रकृति एव ं पर्यावरण का अट ूट संब ंध रहा है, और धार्मिक ग ्रंथा ें में प्रकृति को जा े स्थान प्राप्त है वह अत ुलनीय है। प्रक ृति की सुरक्षा के लिये हमारी संस्कृति में अन ेक प्रयास किये गये, सामान्य जन को प्रकृति से जोड ़े रखन े के लिये उसकी रक्षा, प ूजन, विधान, संस्कार आदि को धर्म से जोड ़ा गया। गा ै एव ं अन्य जानवरो ं का प ूजन व ंश रक्षा के लिये तथा विभिन्न नदियों, प ेड ़ों, पर्व तों का प ूजन उसकी सुरक्षा और अस्तित्व को बनान े क े लिये अति आवश्यक हा े गया था। पर ंत ु जैसे समय व्यतीत होता गया व्यक्तियों की विचारधारा, सोच, अभिव ृत्ति, आस्था, भावों में परिवर्त न होता
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डाॅं, सीमा शर्मा एम. एल. बी. का ॅलेज इन्दौर. "चित्रकला म ें र ंग (विशेष स ंदर्भ अजन्ता)". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.890545.

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Abstract:
मानव जीवन में रंग का महत्वपूर्ण स्थान है। प्रत्येक वस्तु र्कोइ न का ेई रंग लिए ह ै। वस्तुआ ें के धरातल मे रंग हा ेने के कारण ही वह हमें दिर्खाइ देती ह ै। धरातला ें पर प ्रकाश की मात्रा कम अथवा अधिक हा ेने से एक ही रंग की वस्तुयें अलग-अलग दिर्खाइ देती ह ैं। एक ही वस्तु बन्द कमरे में, धूप में तथा विभन्न ऋतुओं में अथवा विभिन्न स्थाना ें पर प ्रकाश की मात्रा तथा वातावरण के कारण रंग व्यवस्था की एक रंगत हा ेते ह ुये भी भिन्न दिखाई देगी। रंगा ें के प ्रति मानव का आकर्ष क कभी नहीं घटा ह ै क्या ेंकि रंग आकर्षक का एक माध्यम ह ै। इसलिये ता े आदिवासियों से लेकर आधुनिक मानव तक ने सा ैन्दर्य के विकास में रं
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