Academic literature on the topic 'कौशल-आधार'

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Journal articles on the topic "कौशल-आधार"

1

मण्, जमीलुर रहमान, та कुमार गुप्ता पंकज. "राष्ट्रीय शिक्षा नीति में व्यावसायिक शिक्षा और कौशल विकास". International Journal of Contemporary Research in Multidisciplinary 3, № 6 (2024): 197–200. https://doi.org/10.5281/zenodo.14774172.

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Abstract:
शिक्षा किसी भी राष्ट्र के सामाजिक और आर्थिक विकास का महत्वपूर्ण स्तंभ होती है। भारत में शिक्षा नीति समय-समय पर परिवर्तित होती रही है, जिससे नए कौशल विकास और व्यावसायिक शिक्षा को बढ़ावा दिया जा सके। यह शोध पत्र राष्ट्रीय शिक्षा नीति में व्यावसायिक शिक्षा और कौशल विकास की भूमिका पर केंद्रित है। इसमें भारत में कौशल विकास की वर्तमान स्थिति, इसकी आवश्यकताओं, चुनौतियों तथा नई शिक्षा नीति 2020 में कौशल विकास को लेकर किए गए प्रयासों का विश्लेषण किया गया है। शोध के निष्कर्षों के आधार पर, यह अध्ययन यह दर्शाता है कि कौशल विकास को समाहित करने के लिए प्रभावी नीतिगत क्रियान्वयन की आवश्यकता है ताकि युवाओं को रोजगारोन्मुखी बनाया जा सके।
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2

न्यौपाने Nyaupane, केशवप्रसाद Keshab prasad. "पर्खालभित्रको राजधानीका दुई नियात्राको विधातात्त्विक विश्लेषण". Saraswati Sadan सरस्वती सदन 10, № 1-2 (2024): 19–26. http://dx.doi.org/10.3126/ss.v10i1-2.68612.

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Abstract:
प्रस्तुत लेख पर्खालभित्रको राजधानी नियात्रा सङ्ग्रहमा सङ्गृहीत आशाको लहरामा एक मुठी श्वास र रहस्यका पहाडहरूमा शीर्षकका प्रारम्भिक दुई नियात्राको विधातात्त्विक विश्लेषणसँग सम्बद्ध छ । यी नियात्रामा विधातत्त्वको संश्लेषण तथा समन्वयको स्थिति के कस्तो छ भन्ने प्राज्ञिक जिज्ञासाको तथ्यपरक समाधानमा यो अध्ययन केन्द्रित छ । यसका निम्ति नियात्रा सिद्धान्तलाई आधार बनाइएको छ । यसै सिद्धान्तका आधारमा सङ्कलित तथ्यको अध्ययन वर्णनात्मक तथा विश्लेषणात्मक ढाँचामा गरिएको छ । उद्देश्य, सहभागी, गतिशीलता, परिवेश, भाषाशैली आदि नियात्राका संरचक तत्त्व हुन् । यी तत्त्वहरूको कलात्मक विन्यासका कौशलमा नियात्राको सौन्दर्य निर्भर गर्छ । प्रस्तुत नियात्रामा विधातत्त्वहरूको संश्लेषणमा विशिष्ट कौशल प्रतिफलित भएको छ । तसर्थ यी नियात्राहरू विधातात्त्विक दृष्टिले उत्कृष्ट छन् भन्ने यस अध्ययनको निष्कर्ष रहेको छ ।
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3

Poudel पौडेल, Somanath सोमनाथ. "नेपाली विषयको वर्तमान माध्यमिक शिक्षा पाठ्यक्र‌ममा तहगत सक्षमता र सिकाइ उपलब्धिको तुलना". Okhaldhunga Journal 1, № 2 (2024): 94–102. http://dx.doi.org/10.3126/oj.v1i2.69581.

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Abstract:
यस लेखमा नेपाली विषयको वर्तमान माध्यमिक शिक्षा पाठ्‌यक्रमले तय गरेका कक्षा ९ र १० तथा कक्षा ११ र १२ को तहगत सक्षमता र सिकाइ उपलब्धिको भाषिक सिपका आधारमा तुलनात्मक अध्ययन गरिएको छ । यसमा तुलनात्मक तथा व्यतिरेकी भाषा विज्ञानको सैद्धान्तिक धरातलमा रही खास गरी व्यतिरेकी विश्लेषण गरिएको छ । यसमा गुणात्मक अनुसन्धानको ढाँचालाई प्रस्तुति र विश्लेषणका लागि अपनाइएको छ । यस अध्ययन‌मा नेपाली विषयको माध्यमिक शिक्षा पाठ्‌यक्रमलाई आधार सामग्रीका रूप‌मा उपयोग गरिएको छ भने द्वितीय स्रोतबाट सामग्री सङ्‌कलन गरिएको छ । यसमा विषयवस्तुलाई वर्णनात्मक, विश्लेषणात्मक साथै तुलनात्मक विधिबाट प्रस्तुति र विश्लेषण गरिएको छ । यस लेखमा कक्षा ९ र १० तथा कक्षा ११ र १२ को वर्तमान पाठ्‌यक्रम‌मा तय गरिएका तहगत सक्षमताका अन्तर्वस्तु धेरैजसो समान देखिन्छन् तर केही भिन्नताहरू पनि रहेका छन् । सक्षमताका अन्तर्वस्तुका भिन्नतालाई हेर्दा कक्षा ९ र १० मा भन्दा कक्षा ११ र १२ मा अभिव्यक्ति कौशल, सम्मानजनक भाषिक व्यवहार, समालोचनात्मक चिन्तन, राष्ट्रिय एवंम् मानवीय मूल्यअनुकूल लेख्य अभिव्यक्ति जस्ता केही विशिष्ट भाषिक सिप र कौशलहरू फरक देखिन्छन् । यस्तै सिकाइ उपलब्धिहरूको सन्दर्भमा कक्षा ९ मा प्रारम्भिक भाषिक सिप र कौशल विकास गर्न सिकाइ उपलब्धिहरू तय गरिएको देखिन्छ भने कक्षा १० मा तार्किक, सन्देशमूलक, विश्लेशणात्मक, समीक्षात्मक, समालोचनात्मक अभिव्यक्ति जस्ता विशिष्ट अभिव्यक्ति कौशललाई सिकाइ उपलब्धिकारूपमा राखिएको छ । यस्तै कक्षा ११ मा कक्षा १० कै भाषिक ज्ञान, सिप र कौशललाई सबल पार्दै लगिएको पाइन्छ भने कक्षा १२ मा विशिष्ट भाषिक सिप तथा कौशल विकास गर्नका निम्ति सिकाइ उपलब्धिहरू निर्धारण गरिएको देखिन्छ । यी भिन्नताहरू पाठ्यक्रमको लम्बीय स्तरणको मान्यताअनुरूप नै रहेको देखिन्छन् ।
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मनीष कुमार नामदेव. "उच्च शिक्षा के विशेष संदर्भ में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की एक महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि". Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education 21, № 2 (2024): 8–12. http://dx.doi.org/10.29070/q70nqz33.

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Abstract:
यह शोध पत्र नई शिक्षा नीति 2020 के लिए संदर्भित है, जो मुख्यतः शिक्षा नीति 2020 की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भारत-केन्‍द्रित शिक्षा प्रणाली की परिकल्पना की गई है, जो इसकी परंपरा, संस्कृति, मूल्यों और लोकाचार में परिवर्तन लाने मे अपना बहुमूल्य योगदान देने को तत्पर है। नई शिक्षा नीति का उद्देश्य बिना किसी भेद भाव के प्रत्येक व्यक्ति को बढ़ने और विकसित होने के लिए एक सामान अवसर प्रदान करना है तथा विद्यार्थियों में ज्ञान, कौशल, बुद्धि और आत्मविश्वास का सर्जन कर उनके दृष्टिकोणों का विकास करना है। इस शोधपत्र में शोधकर्ता द्वितीयक आंकड़ों के माध्यम से जो गुणात्मक स्तरों पर आधारित है नई शिक्षा नीति की वास्तविक मूक विशेषताओं को दर्शाना चाहता है। उपर्युक्त विश्लेषित तथ्यों के आधार पर शोधकर्ता, इस शोधपत्र के माध्यम से अनेक सुझावों को प्रस्तुत करता है, जो भारतीय शिक्षा प्रणाली के लिए आती आवश्यक है।
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5

शर्मा, गौरव, та डी पी मिश्रा. "उच्च शिक्षा के विशेष संदर्भ में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की एक महत्वपूर्ण अंतदृष्टि". Humanities and Development 18, № 1 (2018): 132–37. http://dx.doi.org/10.61410/had.v18i1.129.

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Abstract:
यह शोध पत्र नई शिक्षा नीति 2020 के लिए संदर्भित है जो मुख्यतः शिक्षा नीति 2020 की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भारत केंद्रित शिक्षा प्रणाली की परिकल्पना की गई है जो इसकी परंपरा संस्श्ति मूल्यों और लोकाचार में परिवर्तन लाने में अपना बहुमूल्य योगदान देने को तत्पर है। नई शिक्षा नीति का उद्देश्य बिना किसी भेदभाव के प्रत्येक व्यक्ति को बढ़ने और विकसित होने के लिए एक समान अवसर प्रदान करना है तथा विद्यार्थियों में ज्ञान कौशल बुद्धि और आत्मविश्वास का सर्जन कर उनके श्ष्टिकोण का विकास करना है। इस शोधपत्र में शोधकर्ता द्वितीयक आंकड़ों के माध्यम से जो गुणात्मक स्तरों पर आधारित है नई शिक्षा नीति की वास्तविक विशेषताओं को दर्शा ना चाहता है। उपरोक्त विश्लेषक तथ्यों के आधार पर शोधकर्ता इस शोध पत्र के माध्यम से अनेक सुझावों को प्रस्तुत करता है जो भारतीय शिक्षा प्रणाली के लिए अति आवश्यक है।
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सिंकू, कुमार सिंह, та पाटिल डॉ.सुनीता. "राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में परिणाम-आधारित शिक्षा की प्रासंगिकता". International Journal of Advance and Applied Research 4, № 31 (2023): 33–35. https://doi.org/10.5281/zenodo.8365665.

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Abstract:
<strong>सार </strong> परिणाम-आधारित शिक्षा एक शैक्षिक प्रक्रिया है जो नौसिखियों की नियत प्रदर्शन क्षमताओं में माहिर होती है और उन्हें सिखाए जाने के बाद उनके परिणामों को पूरा करने के लिए ज्ञान को लागू करती है। परिणाम-आधारित शिक्षा में सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों में से एक शक्तिशाली पाठ्यक्रम डिजाइन है जो किसी भी पाठ्यक्रम की प्रभावशीलता के अनुभवात्मक ज्ञान को पकड़ता है जिसे कोचिंग की प्रक्रिया के माध्यम से मापा जा सकता है - छात्रों को वास्तव में क्या सिखाया जा सकता है, यह जानने और मूल्यांकन करने के बाद, परिणाम-आधारित शिक्षा समाज के तात्कालिक सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक वातावरण के लिए विशेष रूप से प्रासंगिक समझ, कौशल, दृष्टिकोण और मूल्यों के संदर्भ में विद्वान के सीखने के प्रभाव को लेना चाहती है। दूसरी ओर, परिणाम-आधारित शिक्षा विशिष्ट परिणामों पर निर्मित शिक्षा प्रणाली है। यह कौशल पर ध्यान केंद्रित करता है जो छात्रों को अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद वह हासिल करने के लिए तैयार करता है जो वे चाहते हैं।
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उपमन्यु, विभाकर. "प्राथमिक शिक्षा एवं ग्रामीण स्कूल का वर्तमान परिदृश्य". International Journal For Multidisciplinary Research 04, № 04 (2022): 139–46. http://dx.doi.org/10.36948/ijfmr.2022.v04i04.013.

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Abstract:
प्रस्तुत शोध लेख विभिन्न साहित्य की समीक्षा के आधार पर प्रस्तुत किया गया है इस शोधपत्र में प्राथमिक शिक्षा की वर्तमान स्थिति का वर्णन किया गया है। प्रजातंत्रात्मक शासन व्यवस्था में शिक्षा राष्ट्र की आधारशिला का कार्य करती है। विगत दशकों से भारत में प्राथमिक शिक्षा के पुनर्गठन और पुनरुद्धार के लिए सक्रियता बढ़ी है। किंतु दुर्भाग्यवश शिक्षा के मात्रात्मक प्रसार एवं प्रचार में उल्लेखनीय प्रगति के साथ-साथ शिक्षा की गुणवत्ता का स्तर निम्न होता जा रहा है। देश के ज्यादातर शिक्षाविदों व बुद्धिजीवियों ने प्राथमिक शिक्षा प्रणाली में तत्काल सुधार की आवश्यकता बल दिया, जो नवाचार और उद्यमिता को बढ़ावा दे सकें और भविष्य में बढ़ती कौशल आवश्यकताओं को पूरा कर सकें। शिक्षा की गुणवत्ता को कायम रखने के लिए इन सभी उत्तरदायित्व को सुनिश्चित करना होगा। प्राथमिक शिक्षा ही किसी व्यक्ति के जीवन की वह नींव होती है जिस पर उसके संपूर्ण जीवन का भविष्य व्यतीत होता है। प्राथमिक शिक्षा ज्ञान का नियम है, इसमें ज्ञान और सूचना के प्रारंभिक तत्व शामिल हैं। जिन्हें बच्चों को परोसा और सिखाया जाता है। एक बच्चा बचपन के दौरान एक कोरे कागज की तरह होता है और इस दौरान इंसान का दिमाग अपने सुपर एक्टिव रूप में होता है। यह वैज्ञानिक रूप से साबित हो चुका है पहले 5 वर्षों में बच्चों के सभी साइको मीटर, कौशल, संज्ञानात्मक व भावनात्मक, सामाजिक और सीखने के कौशल अपने सबसे अच्छे रूप में विकसित होते हैं। देश की एक बड़ी आबादी सरकारी स्कूलों के ही सहारे हैं। सरकारी नियंत्रण वाले प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों में न तो शिक्षा का स्तर सुधार पा रहा है और न ही इनमें विद्यार्थियों को बुनियादी सुविधाएं मिल पा रही है। निम्न मध्यम वर्ग और आर्थिक रूप से सामान्य स्थिति वाले लोगों के बच्चों के लिए सरकारी स्कूल ही शिक्षा प्राप्त करने का एकमात्र जरिया है फिर वह चाहे कैसे भी हों ? इन स्कूलों में न तो योग्य अध्यापक हैं और न ही मूलभूत सुविधाएं। इन स्कूलों में पढ़ाई लिखाई की असलियत स्वयंसेवी संगठन प्रथम की हर साल आने वाली रिपोर्ट बताती है, रिपोर्ट के मुताबिक कक्षा चार या पांच के बच्चे अपने से निकले कक्षा की किताबें तक नहीं पढ़ पाते।
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चंदेल, शिवेन्द्र सिंह. "महात्मा गांधी की शैक्षिक दृष्टि और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020ः एक समीक्षात्मक अध्ययन". International Journal of Science and Social Science Research 2, № 4 (2025): 109–18. https://doi.org/10.5281/zenodo.14914022.

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Abstract:
इस शोध पत्र में महात्मा गांधी की शैक्षिक दृष्टि का मूल आधार आत्मनिर्भरता, नैतिकता और व्यवहारिक शिक्षा था। वे शिक्षा को केवल सूचनात्मक ज्ञान तक सीमित रखने के पक्षधर नहीं थे, बल्कि इसे जीवन उपयोगी बनाने पर जोर देते थे। उन्होंने बुनियादी शिक्षा (नयी तालीम) की संकल्पना प्रस्तुत की, जिसमें श्रम आधारित शिक्षा को महत्व दिया गया। उनका मानना था कि शिक्षा केवल रोजगार के लिए नहीं, बल्कि समाज में एक सशक्त और जागरूक नागरिक के निर्माण के लिए होनी चाहिए। वे मातृभाषा में शिक्षा के समर्थक थे, ताकि बच्चे सहज रूप से ज्ञान अर्जित कर सकें।राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 शिक्षा प्रणाली में व्यापक बदलाव लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है। यह नीति समग्र और व्यावसायिक शिक्षा पर बल देती है, जिससे विद्यार्थियों में कौशल विकास हो सके। गांधीवादी दृष्टिकोण की तरह, यह नीति भी मातृभाषा में प्रारंभिक शिक्षा देने की सिफारिश करती है और नैतिक मूल्यों को पाठ्यक्रम में शामिल करने पर जोर देती है। इसके अलावा, व्यावसायिक शिक्षा और कौशल-आधारित प्रशिक्षण को विद्यालयी शिक्षा में समाहित करने की पहल गांधी जी की शिक्षा संबंधी अवधारणा से मेल खाती है।हालांकि, आधुनिक तकनीकी युग में गांधीवादी शिक्षा को पूरी तरह लागू करना कठिन है। डिजिटल और तकनीकी शिक्षा के बढ़ते प्रभाव के कारण श्रम-आधारित शिक्षा का दायरा सीमित होता जा रहा है। फिर भी, आत्मनिर्भरता, नैतिक शिक्षा और व्यावहारिक ज्ञान के सिद्धांत आज भी प्रासंगिक बने हुए हैं।इस अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में गांधीवादी शिक्षा के कई मूल तत्वों को आधुनिक संदर्भ में पुनर्परिभाषित किया गया है। यदि इसे प्रभावी ढंग से लागू किया जाए, तो यह नीति भारतीय शिक्षा प्रणाली को अधिक समावेशी और व्यावहारिक बना सकती है।
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Dr., Jaipal Singh Tomar, та संजय स्वरूप षटधर डॉ. "योगाधारित प्राचीन भारतीय शिक्षा की वर्तमान में प्रासंगिकता". International Educational Applied Research Journal 08, № 04 (2024): 16–21. https://doi.org/10.5281/zenodo.14405861.

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Abstract:
हमारी प्राचीन शिक्षा पद्धति योग पर आधारित थी। योग शिक्षा द्वारा व्यक्ति में ज्ञान, कौशल, मूल्यों, नैतिकता, विश्वास, सदाचार सडनशीनता आदि का विकास होता है। योग शिक्षा योग गुरु को मार्गदर्शन में प्रारम्भ होती हैं। यह शिक्षा व्यक्ति को सोचने समझने, महसूस करने या कार्य करने वो तरीकों पर रचनात्मक प्रभाव डालती हैं। योग शिक्षा गुणवत्ता एवं दक्षता में व्यापक सुधार लाया जा सकता है। दैशिक एवं वैश्विक समस्याओं के समाधान के लिए योग शिक्षा का विश्वस्तर पर प्रचार-प्रसार करना आवश्यक है। योग शिक्षा सामाजिक परिवर्तन एवं राष्ट्र विकास का सशक्त साधन है। योग शिक्षा विकास प्रक्रिया में एक आवश्यक उत्पाइक सामग्री का गठन करती हैं। इस प्राचीन शिक्षा को आधुनिक समाज एवं वैज्ञानिक व्यापक जप से स्वीकार करते हैं। कोई भी समाज एवं राष्ट्र स्वस्थ एवं प्रगतिशील विचारों के माध्यम से ही विकास कर सकता है। स्वस्थ एवं प्रगतिशील विचारों का विकास योग शिक्षा द्वारा ही संभव है। वैसे सम्पूर्ण विश्व को वैज्ञानिक एवं समाजशास्त्री स्वीकारने लगे हैं कि किसी भी समाज एवं राष्ट्र की प्रगति का आधार स्वस्थ एवं चरित्रवान नागरिक ही होते हैं।प्राचीन भारतीय शिक्षा सामाजिक-आर्थिक प्रगति हासिल करने आय वितरण में सुधार रोजगार के नये अवसर पैदा करने एवं मानसिक गरीबी के उन्मूलन में सहायक सिद्ध होती थी। यह वर्ग भेट, लिंग पूर्वाग्रह को भी दूर करती थी। यह केवल आध्यात्मिक विकास में ही सहायक नहीं होती थी बल्कि यह सामाजिक-आर्थिक मुद्दों का ज्ञान जागजकता, सूचना, कौशल और मूल्यों का प्रसार कर उस प्रक्रिया को तेज करने और काम करने में सहायक भी होती थी। इस प्रकार प्राचीन भारतीय शिक्षा आत्मिक, सामाजिक एवं राष्ट्र विकास की मूल पद्धति है, जो व्यक्ति की स्वयं एवं दुनिया की समझ में वृद्धि करती हैं। मुनष्य के जीवन वो हर पहलू में शिक्षा से एक अभूतपूर्व परिवर्तन देखा गया है। शिक्षा समाज की अपेक्षाओं को पूरा करने एवं नए मूल्यों की और निर्देशित करने का कार्य भी करती हैं। यह बुद्धि विकास में सहायता करती है। यह प्रगतिशील समाज एवं राष्ट्र नवनिर्माण विकास में सहायक है।
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विश्वकर्मा, रामकिशोर. "सागर जिले के सवर्ण एवं अनुसूचित जाति के छात्र-छात्राओं की संवेगाात्‍मक बुद्धि का अध्‍ययन". Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education 21, № 5 (2024): 788–96. https://doi.org/10.29070/25xwpx89.

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Abstract:
शिक्षा का मुख्य उद्देश्य यह होता है कि देश के लिए सुयोग्य नागरिक तैयार करना चाहे वह सामान्य जाति का हो या अनुसूचित जाति व जनजाति का। देश के सामाजिक, आर्थिक विकास के लिए यह आवश्यक हो गया है कि हम अनुसूचित जाति के विद्यार्थियों के स्तर को ऊँचा उठाये, समान अवसर दे, विशेष रूप से उन विद्यार्थियों को जो प्रतिभाशाली हैं ताकि अनुसूचित जाति के लोगों का सामाजिक, आर्थिक विकास अच्छी तरह से हो सके। किशोरावस्था में यदि विद्यार्थियों में हीन-ग्रन्थियों का निर्माण हो जाए तो वे समाज की मुख्यधारा से जुड़ नहीं पायेंगे। समाज का एक वर्ग योग्यता, सामथ्र्य और कौशल रखते हुए भी मात्र कुसमायोजन के कारण अलग-अलग रह जाएगा। कुसमायोजित विद्यार्थी किसी वर्ग विशेष में सीमित न होकर प्रत्येक स्तर पर दिखाई देते हैं। परन्तु अधिकतर ऐेसे विद्यार्थी अनुसूचित जाति वर्ग में अधिक दिखाई पड़ते हैं। सवर्ण वर्ग का विद्यार्थी उच्च वर्ग में होने तथा सहयोगियों की ईष्र्या के कारण समायोजन नहीं कर पाते हैं। सवर्ण वर्ग के विद्यार्थी अनुसूचित जाति वर्ग के विद्यार्थियों की अपेक्षा करते है व अपने साथ नहीं रखते। अतः वर्तमान में इन दोनों वर्गों के छात्र-छात्राओं की संवेगात्मक बुद्धि का तुलनात्मक अध्ययन एक जटिल समस्या है इसी समस्या को ध्यान में रखते हुए शोधार्थी ने अपना शोध आधार बनाया।
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