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Journal articles on the topic 'ग्राम-विकास'

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1

सचिन, पाटीदार, та रश्मि जैन डॉ. "सतत विकास के दृष्टिकोण से सामुदायिक विकास में ग्राम सभा की भूमिका का अध्ययन". 'Journal of Research & Development' 15, № 18 (2022): 21–23. https://doi.org/10.5281/zenodo.7431664.

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Abstract:
यह अनुसंधान पत्र ग्राम सभा के माध्यम से सामुदायिक स्तर पर होने वाले विकास कार्यों पर आधारित वर्णनात्मक अनुसंधान पद्धति पर आधारित है। इस अनुसंधान का मुख्य उद्देश्य इस बात की चर्चा करना है कि सतत विकास के दृष्टिकोण से सामुदायिक स्तर पर ग्राम सभा के माध्यम से स्थानीय स्तर पर लोग किस प्रकार से योगदान दे रहे है। सतत सामुदायिक विकास में कौन-कौन सी बाधाये है और उनका समाधान किस प्रकार से किया जा सकता है। अध्ययन में ग्रामीण सामुदायिक विकास में स्थानीय स्तर पर सक्रियता, सहभागिता, समन्वय और सशक्तिकरण के संदर्भ में ग्राम सभा की भूमिका का वर्णन किया गया है। यह अनुसंधान स्थानीय स्वशासी की इकाई और सतत ग्रामीण सामुदायिक विकास के लिये ग्राम सभा को एक उपयोगी साधन के रुप प्रस्तुत करने के साथ ही अनुसंधान कर्ताओं, विशेषज्ञों, सामुदायिक विकास अभिकरण, शासन और प्रशासन, गैर शासकीय संगठनों के लिये एक उपयोगी होगा। 
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2

ब्रजेश, नरवरिया, та ऊषा त्रिपाठी डॉ. "ग्रामीण क्षेत्र में पंचायती राज व्यवस्था में राजनीति शास्त्र का महत्त्व". International Educational Applied Research Journal 09, № 03 (2025): 175–82. https://doi.org/10.5281/zenodo.15231417.

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Abstract:
भारतीय सामाजिक व्यवस्था में ग्राम सबसे महत्वपूर्ण इकाई है। यह कहा जाता है कि भारत की आत्मा ग्रामों में निवास करती है। अर्थात् भारत की कुल आबादी का 80 प्रतिशत भाग ग्रामों में रहती है। अतः ग्राम के विकास के साथ ही भारत का विकास जुड़ा हुआ है। प्रशासनिक दृष्टि से ग्राम प्रशासन का अपना विशेष महत्व है। पंचायती राज की योजना सर्वप्रथम 2 अक्टूबर 1959 में राजस्थान में लागू की गयी।   वर्ष 1965-66 में अब तक यह योजना मध्य प्रदेश, केरल, जम्मू कश्मीर और नागालैण्ड को छोड़कर इसका रूप एक समान नहीं है। ग्राम प्रखण्ड और जिले स्तर पर तीन संस्थाये तो सभी राज्य में हैं, परन्तु इनके नाम परस्पर सम्बंध और संगठन में थोड़ा-बहुत अन्तर पाया जाता है, जैसा अन्य राज्यों में है।   मुख्य बिन्दु-प्रशासनिक, सर्वप्रथम, नागालैण्ड, परस्पर, महत्वपूर्ण ।
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3

विजेन्द्र, सिंह. "भारत में ग्राम पुलिसिंग: एक अध्ययन (उ.प्र. के विशेष संदर्भ में)". RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 03, № 10 (2018): 115–21. https://doi.org/10.5281/zenodo.1461101.

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Abstract:
1947 ई. के पूर्व लगभग सम्पूर्ण भारत में ग्राम पुलिसिंग सामान्यतः गाँव के मुखिया (Headman) के अधीन ग्राम चौकीदार (Village chowkidar) के द्वारा सम्पादित की जाती थी | ग्राम मुखिया तथा ग्राम चौकीदार से समुदाय (Community) के सेवक के रूप में कार्य करने की अपेक्षा की जाती थी | अद्द्यापी सैदान्तिक तौर पर ये ब्रिटिश साम्राज्य के अधीनस्थ अधिकारियो के प्रति उत्तरदायी होते थे | 1947 के पश्चात् ग्राम मुखिया के कार्य एवं शक्तियाँ काफी हद तक सीमित कर दी गयीं | अद्द्यापी लगभग पुरे भारत में ग्राम पुलिसिंग की यह प्रणाली न्यूनाधिक संशोधनो के साथ जारी है | अपराध में कमी लेन एवं गाव सभा के जीवन में शान्ति व व्यवस्था बनाये रखने हेतु ग्राम्य पुलिस की अवधारणा का विकास हुआ |
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4

कु., अर्चना तिवारी *1. "ग्रामीण विकास: विभिन्न विचारधाराएँ". International Journal of Research - Granthaalayah 5, № 7 (2017): 390–98. https://doi.org/10.5281/zenodo.838192.

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Abstract:
भारत के संदर्भ में सनातन-पुरातन अवधारणा रही है कि भारत गाँवों का देश है जिसकी आर्थिक-सामाजिक प्राप्ति का आधार कृषि है, जैसा कि निम्नांकित श्लोक से स्पष्ट होता है। ‘‘यथा शूद्र जनप्राय, समृद्ध कृषिकला क्षेत्रोप योग भूमध्र्य, वसति ग्राम संज्ञिका।’’1 पौराणिक संस्कृत साहित्य के मार्कण्डेय पुराण में, ग्राम के संदर्भ में उक्त उल्लेख आया है। गाँव की विशेषता में कहा गया - जहाँ कृषि कार्य किया जाता है एवं जहाँ कृषि क्षेत्र समूह है वह गाँव है। गाँव का उदय, इतिहास के कृषि अर्थव्यवस्था के उदय के साथ जुड़ा है। हल (ब्नसजपअंजवत) के अविष्कार के कारण ही मनुष्य स्थायी रूप से कृषि का विकास कर पाया जोकि खाद्यान्न की व्यवस्था का मूल स्रोत है। ग्रामीण विकास आम तौर पर अपेक्षाकृत पृथक व कम आबादी वाले क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की आर्थिक खुशहाली से संबद्ध जीवन स्तर में सुधार की प्रक्रिया को दर्शाता है।2 विद्वानों ने ग्रामीण विकास की परिभाषायें निम्न प्रकार दी हैं - ग्रामीण विकास को शाब्दिक रूप में परिभाषित करने का अर्थ है - ग्रामीण का चहुँमुखी विकास। वह विकास जिससे वहां की जनता का शारीरिक एवं मानसिक विकास हो सके। विश्व बैंक3 के अनुसार - ‘‘वह व्यूह रचना जिससे ग्रामीण जनता का सामाजिक एवं आर्थिक विकास हो, ग्रामीण विकास कहलाता है।’’ परिभाषा में विश्व बैंक ने उन सभी निर्धन जनता को सम्मिलित किया है जो गाँवों में निवास करती है। राबर्ट चेम्बर्स4 के अनुसार - ‘‘ग्रामीण विकास एक पद्धति है; जिसके द्वारा ग्रामीण क्षेत्र के निर्धन और गरीब लोगों की सहायता की जाती है, जिससे अधिक लाभों की पूर्ति और नियंत्रण से ग्रामीण विकास हो सके। लघु कृषक, सीमांत कृषक, खेतीहर मजदूर और श्रमिक वर्ग के लोग इसमें शामिल किये जाते हैं।’’
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5

प्रा., डॉ. संतोष सुधाकरराव कोटुरवार. "महात्मा गांधीजींची ग्राम विकासाची संकल्पना – एक दृष्टीक्षेप". उदयगिरी - बहुभाषिक इतिहास संशोधन पत्रिका 01, № 04 (2023): 759–62. https://doi.org/10.5281/zenodo.10279614.

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Abstract:
भारतीय स्वातंत्र्य चळवळीत म.गांधीजींचे स्थान अत्यंत महत्त्वाचे आहे. जवळपास तीन दशके भारतीय स्वातंत्र्य चळवळीचे नेतृत्त्व गांधीजींनी केले. 1920-1947 हा कालखंड इतिहासात गांधी युग म्हणून ओळखला जातो. या कालावधीत स्वातंत्र्य लढा त्यांच्या नेतृत्त्वाभोवती केंद्रित झाला होता. त्यांच्या विचार व तत्त्वाचा प्रभाव जनमानसावर पडून स्वातंत्र्य चळवळीची व्याप्ती देशाच्या कानाकोपऱ्यात विस्तारित झाली होती. आज स्वातंत्र्यानंतर ही त्यांच्या विचार व तत्त्वाचा प्रभाव भारतासह परराष्ट्रात मोठ्या प्रमाणात विस्तारला आहे. विशेषत: सत्य, अहिंसा, सत्याग्रह, सर्वोदय व ग्राम स्वराज्य ही तत्व गांधीजींच्या विचार व कार्याचा मुलाधार आहेत.प्रस्तूत लघूशोध निबंधात महात्मा गांधीजींची ग्राम विकासाची संकल्पना – एक दृष्टीक्षेप या शिर्षकाखाली गांधीजींच्या विचारातून ग्राम विकासाची संकल्पना अभ्यासण्याचा प्रयत्न करण्यात आला. महात्मा गांधीजींनी भविष्यातील भारत घडविण्याची क्षमता ग्रामीण भागात (खेड्यात) आहे. या विचारातून ग्राम स्वराज्य अथवा राम राज्याची संकल्पना मांडली आहे. विज्ञान व तंत्रज्ञानाचा अफाट प्रसार झालेल्या 21 व्या शतकात देखील गांधीजींनी ग्रामीण विकासासाठी मांडलेल्या संकल्पना उपयुक्त आहेत. ग्रामस्वराज्य व श्रमप्रतिष्ठा या मार्गातून ग्रामीण भारतीय जीवनाचा विकास शक्य असल्याचे गांधीजींचे मत आहे.
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6

प्रा., डाँ. अनिता प्रेमराज भोऴे. "महात्मा गांधीजींच्या ग्रामविकासात श्रमप्रतिष्ठा व यंत्रविरोधाचे महत्त्व". उदयगिरी - बहुभाषिक इतिहास संशोधन पत्रिका 01, № 04 (2023): 336–39. https://doi.org/10.5281/zenodo.10125837.

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Abstract:
भारत हा क्रषिप्रधान देश आहे. त्यामुळे देशाच्या एकूण लोकसख्य़ेच्य़ा जवऴपास 70 ते 75 टक्के लोक ग्रामीण भागात वास्तव्य़ करतात. त्य़ामुळेच गावाचा विकास हाच देशाचा विकास हे सत्य़ लक्षात घेऊऩ राष्ट्रपिता महात्मा गांधी य़ांनी आपल्य़ा विचार व कार्य़ामध्य़े सर्वाधिक महत्त्व दिले ते ग्रामविकासाला. शासकीय़ स्तरावर य़ाची दखल घऊन आदर्श ग्राम य़ोजना य़ासारख्य़ा विविध य़ोजना राबवल्य़ा जात आहेत. याप्रकारच्या अनेक य़ोजना शासन राबवीत असले तरी प्रत्य़क्षात मात्र गावाचा म्हणावा तसा विकास झालेला दिसून य़ेत नाही. राऴेगणसिद्धी, पाटोदा, हिवरेबाजार अशा काही बोटावर मोजण्य़ाइतकी गावे विकसित झाली म्हणजे देश विकसित झाला असे म्हणता य़ेणार नाही. खेड्य़ाचा देश म्हणून गणल्य़ा जाणार्य़ा देशाचा विकास हा केवळ बोटावर मोजण्य़ाइतक्य़ा गावाच्य़ा विकासाने होणार नाही. हेही तितकेच सत्य़ मानावे लागेल.
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प्रा., डॉ. मौलाना महेताब सय्यद. "गांधीजी का ग्रामीण विकास का दृष्टिकोण". उदयगिरी - बहुभाषिक इतिहास संशोधन पत्रिका (Udayagiri Bahubhashik Itihas Sanshodhan Patrika - A Bimonthly, Refereed, & Peer-Reviewed Journal of History) 01, № 04 (2023): 144–49. https://doi.org/10.5281/zenodo.10071151.

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Abstract:
गांधी जी के सपनों का भारत गांवों में बसता था और इसके लिए वे ग्राम स्वराज, पंचायती राज, ग्रामोद्योग, महिलाओं की शिक्षा, गांवों में स्वच्छता, गांवों का आरोग्य और समग्र ग्राम विकास आदि को प्रमुख मानते थे। भारतीय संदर्भ में ग्रामीण विकास को ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि और संबद्ध गतिविधियों में अधिकतम उत्पादन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जिसमें ग्रामीण और कुटीर उद्योगों पर जोर देने के साथ ग्रामीण उद्योगों का विकास भी शामिल है। यह विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकतम संभव रोजगार के अवसरों के सृजन को महत्व देता है। सैद्धांतिक रूप से, ग्रामीण विकास के लिए गांधीवादी दृष्टिकोण को 'आदर्शवादी' कहा जा सकता है। यह नैतिक मूल्यों को सर्वोच्च महत्व देता है और भौतिक परिस्थितियों पर नैतिक मूल्यों को प्रधानता देता है।गांधीवादियों का मानना है कि, सामान्य तौर पर नैतिक मूल्यों का स्रोत धर्म और विशेष रूप से उपनिषद और गीता जैसे हिंदू धर्मग्रंथों में निहित है। 'राम राज्य' की अवधारणा गांधीजी के आदर्श सामाजिक व्यवस्था के विचार का आधार है। गांधी ने राम राज्य को "नैतिक अधिकार पर आधारित लोगों की संप्रभुता" के रूप में परिभाषित किया। उन्होंने राम को एक राजा के रूप में और लोगों को अपनी प्रजा के रूप में नहीं देखा।गांधीवादी योजना में, 'राम' भगवान के प्रतीक थे या किसी की अपनी आंतरिक आवाज़। गांधी एक लोकतांत्रिक सामाजिक व्यवस्था में विश्वास करते थे जिसमें लोग सर्वोच्च हैं। हालाँकि, उनकी सर्वोच्चता पूर्ण नहीं है। यह नैतिक मूल्यों के अधीन है।
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प्रा., डॉ. डी. पी. कांबळे. "ग्रामीण विकासाच्या संदर्भात महात्मा गांधी यांचे विचार". उदयगिरी - बहुभाषिक इतिहास संशोधन पत्रिका 01, № 05 (2023): 101–4. https://doi.org/10.5281/zenodo.10072682.

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Abstract:
भारत हा जगात सर्वात मोठा लोकशाही देश म्हणून ओळखला जातो. भारत हा खेड्यांचा देश आहे व तो प्राचीन काळापासून खेड्यातच वसलेला आहे असे म्हटले तर वावगे ठरणार नाही. भारतात 70 टक्के पेक्षा जास्त लोकसंख्या आजही ग्रामीण भागात वास्तव्य करते; खेड्याकडे चला हा संदेश महात्मा गांधीजींनी लोकांना दिला भारत हा खेड्यात आहे असे म्हणणारे देखील महात्मा गांधीच होते. त्यांनी ग्रामीण विकासासंदर्भात आपले विचार लोकांना पटवून देण्याचे कार्य केले. ग्राम सक्षम बनले पाहिजे आणि स्वयंपूर्ण ग्राम हेच सक्षम व शक्तिशाली भारताचे भविष्य आहे म्हणूनच महात्मा गांधींनी ग्रामविकास व ग्रामस्वराज्याचे समर्थन करून त्यासाठी रचनात्मक चळवळ उभी करून ग्रामीण जीवनाचे चित्र पालटण्याचा प्रयत्न केला. महात्मा गांधी मेरे सपनो का भारत या पुस्तकात म्हणतात की भारत हा सात लाख खेडे मिळून बनलेला देश आहे. भारत हा शहरांचा देश नाही तर तो खेड्यांचा देश आहे म्हणूनच ग्रामीण भागाचा विकास झाल्याशिवाय भारताचा विकास होऊ शकत नाही. म्हणजेच प्राचीन काळापासून खेड्यांना प्रशासनात व देशाच्या जडणघडणीत मुख्य स्थान होते म्हणून महात्मा गांधीजींनी देशांच्या सर्वांगीण विकासाकरिता ग्रामीण भागाचा विकास करणे आवश्यक असल्याचे प्रतिपादन केले.स्वातंत्र्यप्राप्तीनंतर 70 वर्षे होऊन ही गावांचा पूर्णपणे विकास झालेला नाही. अनिष्ट रूढी परंपरा चालीरीती संस्कृती अविकसित असल्यामुळे गावांचा विकास खुंटला. गावातील सत्ता मोजक्या लोकांच्या हाती आल्याने योग्य व्यक्तींच्या सुप्त गुणांना वावमिळत नाही यासाठी खेडी आत्मनिर्भर स्वावलंबी होणे गरजेचे आहे. गांधीजी असे म्हणतात की खेड्यांची सुधारणा व खेडी विकसित करणे हे राष्ट्राचे पहिले कर्तव्य आहे. त्यांचे असे म्हणणे होते की गावात सुधारणा झाल्या पाहिजेत गावांचे आरोग्य सुदृढ असले पाहिजे व स्वावलंबी असले पाहिजे. म्हणजे संपूर्ण देश त्याच पद्धतीने उभा होईल. महात्मा गांधीजींचे जीवन म्हणजे एक तत्त्वज्ञानच होते या तत्त्वज्ञानावर नैतिकतेच्या आदर्शवादाचा पगडा होता. गांधीजी हे काळाच्या फार पुढे होते उद्योगधंद्यांचे एकाच ठिकाणी केंद्रीकरण न करता उद्योगांचे विकेंद्रीकरण त्यांना अपेक्षित होते. त्यासाठी त्यांनी ग्रामीण औद्योगीकरणाची संकल्पना मांडली. खेड्यातील लोकांना खेड्यातच रोजगाराची संधी निर्माण करून खेडी हेच विकासाचे केंद्र म्हणून पुढे आले पाहिजेत अशी त्यांची भूमिका होती.
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दूबे, ओमप्रकाश. "शीर्षक-सूचनाधिकार के माध्यम से ग्रामीण विकास". International Journal of Science and Social Science Research 2, № 2 (2024): 342–47. https://doi.org/10.5281/zenodo.15567669.

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Abstract:
लोकतंत्र में सरकार से पारदर्शिता और ईमानदारी की अपेक्षा की जाती है, किंतु स्वतंत्रता के बाद बढ़े भ्रष्टाचार ने सूचनाधिकार (Right to Information) की माँग को जन्म दिया। स्वीडन को सूचनाधिकार कानून की जननी माना जाता है। भारत में सूचनाधिकार अधिनियम 2005, राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद 15 जून 2005 को लागू हुआ और 24 अक्टूबर 2005 से पूर्ण प्रभावी हुआ। यह अधिनियम लोकतंत्र व्यवस्था में पारदर्शिता लाने में सहायक सिद्ध हुआ है। भारत एक कृषि प्रधान देश है जिसकी लगभग 70ः आबादी गाँवों में रहती है और ग्रामीण जनता का एक बड़ा हिस्सा अशिक्षित एवं कम जानकारी वाला है। 73वें संवैधानिक सुधार अधिनियम 1992 के उपरांत लागू हुई पंचायत व्यवस्था में सूचनाधिकार अधिनियम 2005 का विशेष महत्व है। सूचनाधिकार के माध्यम से ग्राम विकास के कार्यक्रमों में पारदर्शिता आई है, और ग्रामीण जनता गाँव के विकास से जुड़े कार्यों और विभिन्न सरकारी योजनाओं जैसे हैंडपंप, विद्युतीकरण, ग्रामीण आवास (इंदिरा आवास योजना), रोजगार गारंटी, पेंशन (वृद्धा/विधवा), राशन वितरण, छात्रवृत्ति आदि की जानकारी प्राप्त कर रही है। हालाँकि, विभिन्न विभागों द्वारा कार्य कराए जाने से जनता को जानकारी के लिए भटकना पड़ता है। इस समस्या के निवारण हेतु, अधिनियम की धारा 4(1)(ख) सार्वजनिक प्राधिकरणों से स्वेच्छा से (ेनव उवजन) सूचना प्रकाशित करने की अपेक्षा करती है, जिसमें पंचायत संस्थाओं के कर्तव्य, निर्णय प्रक्रिया, बजट, नियम और रखे जाने वाले अभिलेखों का विवरण शामिल है। माननीय उच्चतम न्यायालय ने सूचना तक पहुँच को नागरिकों का मौलिक अधिकार घोषित किया है। उत्तर प्रदेश में पंचायत स्तर पर जानकारी प्राप्त करने के लिए ग्राम पंचायत सचिव (च्क्व्), उपनिदेशक पंचायत, जिला पंचायत अधिकारी और संयुक्त निदेशक जैसे लोक सूचना अधिकारी नामित हैं। यद्यपि कुछ सूचनाएँ (जैसे राष्ट्र की सुरक्षा या मंत्रिमंडलीय विचार-विमर्श से संबंधित) प्रकटन से मुक्त हैं, अधिकांश विकास संबंधी अभिलेख संवेदनशील नहीं होते और ग्राम पंचायत सचिव द्वारा रखे गए विभिन्न रजिस्टर (जैसे वार्षिक रिपोर्ट, कैश बुक, कार्यवाही रजिस्टर) सूचनाधिकार के माध्यम से देखे जा सकते हैं। सूचनाधिकार अधिनियम 2005 के आने के बाद ग्रामीण नागरिकों में शिक्षा और जागरूकता बढ़ने से इसका प्रयोग बढ़ा है, जिसने पंचायती प्रक्रिया में ईमानदारी लाई है और लोगों को अपने अधिकारों एवं सरकारी योजनाओं के लाभ के प्रति अधिक चेतन बनाया है।
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प्रा., डॉ. मदन लक्ष्मण शेळके. "महात्मा गांधीजींची ग्राम स्वराज्याची संकल्पना". उदयगिरी - बहुभाषिक इतिहास संशोधन पत्रिका 01, № 04 (2023): 533–38. https://doi.org/10.5281/zenodo.10137389.

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Abstract:
महात्मा गांधीजींनी आपल्या जीवनामध्ये अनेक क्षेत्रात कार्य केले आहे. त्यांचे कार्यक्षेत्र हे अत्यंत व्यापक होते. त्यांच्या संपूर्ण कार्याचा आढावा घेतला असता असे लक्षात येते की, त्यांनी राष्ट्रीय स्वातंत्र्य चळवळीच्या कार्यापेक्षा जास्त कार्य हे ग्रामीण विकास व स्वयंपूर्ण भारत या विषयावर केले. भारतीयांचा विकास करण्यासाठी ग्रामीण विकासाची कास धरली. भारत हा खेडयांचा देश असल्यामुळे भारताच्या विकासामध्ये ग्रामीण विकासाची भूमिका ही अत्यंत महत्त्वपूर्ण ठरते. आज भारतातील एकूण लोकसंख्येपैकी जवळपास दोन तृतीयांश लोकसंख्या ही ग्रामीण भागात वास्तव्य करीत आहेत. भारतामध्ये आज घडीला सहा लाखापेक्षा अधिक खेडी आहे. महात्मा गांधीजींच्या मते, ग्रामीण भागाच्या विकासामध्ये भारताचा विकास सामावलेला आहे. म्हणजेच भारतातील खेडे गावाचा विकास हाच भारताचा विकास होय. भारताने आज स्वातंत्र्याचे 77 वर्ष पूर्ण केलेली आहेत. नियोजनाच्या 13 पंचवार्षिक योजना पूर्ण झालेल्या आहेत. नियोजनाच्या काळात ग्रामीण भागात खूप मोठया प्रमाणावर बदल झालेले आढळतात. उदा. शिक्षण, आरोग्य, सामाजिक सुरक्षा, दूरसंचार, रस्ते इत्यादी सुविधामुळे ग्रामीण भागातील लोकांच्या राहणीमानात सुधारणा झालेली आढळून येते.यह निर्विवादित रूप से सत्य है कि, भारत गाँव का देश है और गाँवो मे ही भारत की आत्मा बस्ती है| इसीलिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कहा करते थे कि "भारत का ऱ्हदय गाँव मे बसता है, गाँव की उन्नती से ही भारत की उन्नती हो सकती है | गाँव मे ही सेवा और परिश्रम के अवतार किसान बसते है| "गांधीजी म्हणतात की, स्वराज्य ही कोणाही एकाची मक्तेदारी नाही तर स्वराज्य हे सर्वांचेच असते. ती केवळ भांडवलदार व शिक्षित लोकांची मक्तेदारी नाही. स्वराज्यात कोणत्याही प्रकारचा उच्च नीच भाव व भेदभाव असूच शकत नाही. जितके उच्चभ्रू लोकांसाठी असू शकेल त्यापेक्षाही जास्त ते श्रमिकांसाठी व दिन-दुबळ्यांसाठी असेल. गांधीजी म्हणतात की, "माझ्या स्वप्नातले स्वराज्य हे गरिबांसाठी असलेले स्वराज्य आहे". जीवनावश्यक असलेल्या सर्व सुख सोयी सर्वांनाच उपभोगता येणे त्याला स्वराज्य म्हणता येईल. त्या जोपर्यंत सर्वांना उपलब्ध होत नाहीत तोपर्यंत स्वराज्य म्हणता येणार नाही. जात, धर्म, वंश, गरीब, श्रीमंत व सामाजिक दर्जा याबाबतीत कोणताही भेदभाव केला जाणार नाही तेच खरे स्वराज्य असे म्हणता येईल.
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Tiwari, Archana. "Different ideologies of rural development." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 5, no. 7 (2017): 390–98. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v5.i7.2017.2145.

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Abstract:
In the context of India, the Sanatan-Puranic concept has been that India is a country of villages whose basis of economic-social attainment is agriculture, as is evident from the following verses.
 "As Shudra Janpraya, prosperous agricultureKshetropa Yoga Bhumadhya, Vasati Gram Anusika. "1
 In the Markandeya Purana of mythological Sanskrit literature, the above reference has been made in the context of the village. It is said in the specialty of the village - where the agricultural work is done and where the agricultural sector is grouped, it is the village.
 The rise of the village is associated with the rise of the agricultural economy in history. Due to the invention of the plow (Bnsjjp Anjawat), man was able to develop agriculture permanently, which is the basic source of the system of food grains.
 Rural development generally refers to the process of improving the standard of living associated with the economic well-being of people living in relatively isolated and sparsely populated areas.
 Scholars have given the definitions of rural development as follows -
 Literally defining rural development means the all-round development of rural. Development that can lead to physical and mental development of the people there.
 भारत के संदर्भ में सनातन-पुरातन अवधारणा रही है कि भारत गाँवों का देश है जिसकी आर्थिक-सामाजिक प्राप्ति का आधार कृषि है, जैसा कि निम्नांकित श्लोक से स्पष्ट होता है।‘‘यथा शूद्र जनप्राय, समृद्ध कृषिकलाक्षेत्रोप योग भूमध्र्य, वसति ग्राम संज्ञिका।’’1
 पौराणिक संस्कृत साहित्य के मार्कण्डेय पुराण में, ग्राम के संदर्भ में उक्त उल्लेख आया है। गाँव की विशेषता में कहा गया - जहाँ कृषि कार्य किया जाता है एवं जहाँ कृषि क्षेत्र समूह है वह गाँव है।
 गाँव का उदय, इतिहास के कृषि अर्थव्यवस्था के उदय के साथ जुड़ा है। हल (ब्नसजपअंजवत) के अविष्कार के कारण ही मनुष्य स्थायी रूप से कृषि का विकास कर पाया जोकि खाद्यान्न की व्यवस्था का मूल स्रोत है।
 ग्रामीण विकास आम तौर पर अपेक्षाकृत पृथक व कम आबादी वाले क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की आर्थिक खुशहाली से संबद्ध जीवन स्तर में सुधार की प्रक्रिया को दर्शाता है।2
 विद्वानों ने ग्रामीण विकास की परिभाषायें निम्न प्रकार दी हैं -
 ग्रामीण विकास को शाब्दिक रूप में परिभाषित करने का अर्थ है - ग्रामीण का चहुँमुखी विकास। वह विकास जिससे वहां की जनता का शारीरिक एवं मानसिक विकास हो सके।
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प्रा., डॉ. सुरेश चंद्रकांत मेहेत्रे, та पूजा ज्ञानोबा शेळके कु. "महात्मा गांधींचे आर्थिक समानतेविषयीचे विचार". उदयगिरी - बहुभाषिक इतिहास संशोधन पत्रिका 01, № 05 (2023): 140–43. https://doi.org/10.5281/zenodo.10072917.

Full text
Abstract:
महात्मा गांधी यांच्या मते, भारताचा परिपूर्ण आर्थिक विकास करण्यासाठी सामाजिक आणि राजकीय क्षेत्राबरोबरच आर्थिक क्षेत्राचाही विचार करणे महत्त्वाचे आहे. स्वातंत्र्यपूर्व काळात भारतावर इंग्रजांचे राज्य होते. इंग्रजांच्या जाचक आणि असहाय्य नीतीमुळे भारतामध्ये आर्थिक दारिद्र्यता निर्माण झाली होती. आर्थिक असमानता निर्माण होण्यामागचे प्रमुख कारण म्हणजे औद्योगिकरण आहे हे गांधीजींच्या लक्षात आले. त्यामुळे त्यांनी लघु उद्योगांना चालना देण्याचे ठरविले. औद्योगिकीकरणामुळे भारतातील बंद पडलेले कुटिरोद्योग सुरू करून लोकांना स्वदेशी वस्तू वापरण्यासाठी प्रेरित केले. गांधीजींचा या मागचा मुख्य हेतू असा होता की, आयात कमी करणे आणि स्वयंपूर्ण ग्राम निर्माण करणे.गांधीवादी आर्थिक व्यवस्था ही साधेपणा, विकेंद्रीकरण, स्वयंपूर्णता, सहकार्य, समानता, सर्वोदय, अहिंसा, मानवी मुल्ये, स्वयंपूर्ण ग्राम, मुलभूत उद्योगांचे राष्ट्रीयीकरण, स्वदेशी आणि विश्वस्ताच्या सिद्धांतावर आधारित आहे. यामधून श्रम, भांडवल, उत्पादन वितरण, नफा इत्यादी समस्यांचे निराकरण होईल. महात्मा गांधी यांच्या विश्वस्त सिद्धांताचा अवलंब करून आर्थिक समानता प्रस्थापित करता येवू शकते. त्यांनी भांडवलशाही अर्थव्यवस्थेचा विरोध करून समाजवादी अर्थव्यवस्थेचा स्वीकार केला. 
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प्रा., डॉ. दामावले डी. एन. "महात्मा गांधी यांचे ग्रामविकास विषयक विचार : एक अभ्यास". उदयगिरी - बहुभाषिक इतिहास संशोधन पत्रिका 01, № 04 (2023): 676–79. https://doi.org/10.5281/zenodo.10279172.

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Abstract:
महात्मा गांधीजी कर्ते सुधारक होते. त्यांनी जगाला सत्य व अहिंसेचा मार्ग दाखविला. भारताची जडणघडण करण्यात त्यांचे योगदान महत्त्वाचे राहिलेले आहे. त्यामुळेच त्यांना आदराने राष्ट्रपिता संबोधले जाते. भारत हा खेड्यांचा देश आहे असे भारतभ्रमण केल्यानंतर गांधीजींचे मत झाले होते. त्यामुळे खेडयांचा विकास झाल्याशिवाय भारताचा विकास होणार नाही हे त्यांनी ओळखले. महात्मा गांधीजींनी मांडलेल्या ग्राम स्वराज्याच्या किंवा ग्रामराज्याच्या तत्वज्ञानामध्ये खेड्यांच्या सर्वांगीण विकासाला अनन्यसाधारण महत्व प्राप्त झाले आहे. देशातील प्रत्येक गाव स्वावलंबी व स्वयंपूर्ण व शांतताप्रिय झाले तर बाहेरील मदतीची त्याला काहीच आवश्यकता वाटणार नाही. महात्मा गांधीजीच्या विचारांमध्ये ग्रामस्वराज्याच्या संकल्पनेला महत्वाचे स्थान आहे. गांधीजीच्या असा विश्वास होता की, राज्यसत्ता, अर्थसत्ता व समानसत्ता यांचे प्रत्येक गावात एकमत झाले तर ग्रामराज्यच नव्हे तर रामराज्य देखील निर्माण होवू शकेल. महात्मा गांधीजींच्या मते, खरा भारत गावांमध्ये आहे. गावामध्ये जोपर्यंत शहरासारख्या सुविधा विकसित केल्या जाणार नाहीत तोपर्यंत समग्र भारताचा विकास होणार नाही. ग्रामीण भाग हा केवळ राजकीय सत्तेचे केंद्र न बनता अर्थकारणाचे व समाजकारणाचे देखील केंद्र बनले पाहिजे यावर गांधीजी ठाम होते. गांधीजीच्या ग्रामराज्याच्या तत्वज्ञानात ग्रामीण विकासाची कल्पना समाविष्ट झालेली आहे. अर्थात स्थलकाल परिस्थितीनुसार ग्रामीण विकासाची संकल्पना सतत विस्तारत जात असल्यामुळे तिचा अनेक दृष्टीकोनातून अभ्यास करणे महत्वाचे ठरते. ग्रामीण भागातील परिस्थितीत सुधारणा व्हावी, त्यांचा विकास व्हावा, खेडयातील जीवनदेखील सुखकर व्हावे याकरिता म. गांधींनी स्वत: बऱ्याच योजना आखल्या होत्या. म. गांधीजींच्या मते, केवळ शहरांचा किंवा नगरांचा विकास म्हणजे भारत देशाचा विकास नव्हे तर जोपर्यत भारतातील खेड्यांचा किंवा ग्रामीण भागाचा विकास होत नाही तोपर्यत भारताचा आर्थिक विकास होणार नाही. ग्रामीण भागात शेती व्यवसाय नव्हे तर अनेक पारंपारिक लहान उद्योग व्यवसाय देखील संकटात आले आहेत तर काही काळाच्या ओघात संपले आहेत. ग्रामीण भागातील विविध समस्या यासाठी कारणीभूत आहेत. म.गांधी यांचे ग्रामविकास विषयक विचार अभ्यासणे त्यामुळेच महत्त्वाचे ठरते.
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प्रा., डॉ. दामावले डी. एन. "महात्मा गांधी यांचे ग्रामविकास विषयक विचार : एक अभ्यास". महात्मा गांधी यांचे ग्रामविकास विषयक विचार : एक अभ्यास 01, № 04 (2023): 1011–14. https://doi.org/10.5281/zenodo.10285680.

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Abstract:
महात्मा गांधीजी कर्ते सुधारक होते. त्यांनी जगाला सत्य व अहिंसेचा मार्ग दाखविला. भारताची जडणघडण करण्यात त्यांचे योगदान महत्त्वाचे राहिलेले आहे. त्यामुळेच त्यांना आदराने राष्ट्रपिता संबोधले जाते. भारत हा खेड्यांचा देश आहे असे भारतभ्रमण केल्यानंतर गांधीजींचे मत झाले होते. त्यामुळे खेडयांचा विकास झाल्याशिवाय भारताचा विकास होणार नाही हे त्यांनी ओळखले. महात्मा गांधीजींनी मांडलेल्या ग्राम स्वराज्याच्या किंवा ग्रामराज्याच्या तत्वज्ञानामध्ये खेड्यांच्या सर्वांगीण विकासाला अनन्यसाधारण महत्व प्राप्त झाले आहे. देशातील प्रत्येक गाव स्वावलंबी व स्वयंपूर्ण व शांतताप्रिय झाले तर बाहेरील मदतीची त्याला काहीच आवश्यकता वाटणार नाही. महात्मा गांधीजीच्या विचारांमध्ये ग्रामस्वराज्याच्या संकल्पनेला महत्वाचे स्थान आहे. गांधीजीच्या असा विश्वास होता की, राज्यसत्ता, अर्थसत्ता व समानसत्ता यांचे प्रत्येक गावात एकमत झाले तर ग्रामराज्यच नव्हे तर रामराज्य देखील निर्माण होवू शकेल. महात्मा गांधीजींच्या मते, खरा भारत गावांमध्ये आहे. गावामध्ये जोपर्यंत शहरासारख्या सुविधा विकसित केल्या जाणार नाहीत तोपर्यंत समग्र भारताचा विकास होणार नाही. ग्रामीण भाग हा केवळ राजकीय सत्तेचे केंद्र न बनता अर्थकारणाचे व समाजकारणाचे देखील केंद्र बनले पाहिजे यावर गांधीजी ठाम होते. गांधीजीच्या ग्रामराज्याच्या तत्वज्ञानात ग्रामीण विकासाची कल्पना समाविष्ट झालेली आहे. अर्थात स्थलकाल परिस्थितीनुसार ग्रामीण विकासाची संकल्पना सतत विस्तारत जात असल्यामुळे तिचा अनेक दृष्टीकोनातून अभ्यास करणे महत्वाचे ठरते. ग्रामीण भागातील परिस्थितीत सुधारणा व्हावी, त्यांचा विकास व्हावा, खेडयातील जीवनदेखील सुखकर व्हावे याकरिता म. गांधींनी स्वत: बऱ्याच योजना आखल्या होत्या. म. गांधीजींच्या मते, केवळ शहरांचा किंवा नगरांचा विकास म्हणजे भारत देशाचा विकास नव्हे तर जोपर्यत भारतातील खेड्यांचा किंवा ग्रामीण भागाचा विकास होत नाही तोपर्यत भारताचा आर्थिक विकास होणार नाही. ग्रामीण भागात शेती व्यवसाय नव्हे तर अनेक पारंपारिक लहान उद्योग व्यवसाय देखील संकटात आले आहेत तर काही काळाच्या ओघात संपले आहेत. ग्रामीण भागातील विविध समस्या यासाठी कारणीभूत आहेत. म.गांधी यांचे ग्रामविकास विषयक विचार अभ्यासणे त्यामुळेच महत्त्वाचे ठरते.
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प्रा., डॉ. विजयकुमार गणपतराव तांबारे. "महात्मा गांधीजी आणि ग्रामस्वराज्य". उदयगिरी - बहुभाषिक इतिहास संशोधन पत्रिका 01, № 05 (2023): 35–38. https://doi.org/10.5281/zenodo.10072327.

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Abstract:
महात्मा गांधींजींची स्वराज्य ही कल्पना आदर्शाकडे जाण्याची एक पायरी आहे तसेच आदर्शापर्यंत जाणारा सर्वात जवळचा मार्ग आहे. आदर्श राज्य निर्माण करण्यासाठी, राजसत्तेच्या महत्वकांक्षेचा पूर्ण अभाव असलेला अहिंसक समाज निर्माण करण्याकरीता विकेंद्रीकरण हाच एकमेव उपाय होता. गांधीजींनी आपल्या ग्रामराज्याच्या कल्पनेत ग्राम हा नियोजनाचा केंद्रबिंदु मानला होता ग्रामीण नियोजनाला जी काही मदत लागेल ती देणे होय. एवढे केंद्रसत्तेचे काम आहे असे गांधीजींना अभिप्रेत होते. महात्मा गांधीच्या मते खय्रा भारताचे दर्शन शहरा मध्ये नाही तर खेडयामध्ये घडते. त्यामुळे प्रत्येक खेडे हा या नव्या रचनेचा केंद्रबिंदु असले पाहिजे. भारतातील स्वायत्त असलेली खेडी स्वयस्फुर्त सहकार्यांच्या बळावर आपापल्या गरजाभागवू शकतील. त्यामुळे प्रतिष्ठापूर्ण व शांततामय सहजीवन व्यतीत करता येईल.भारताच्या स्वातंत्र्याची सुरुवात तळागळातील घटकापासून व्हावी असे गांधीजीना अभिप्रेत होते. भारत हा खेडयांचा देश आहे. महात्मा गांधींजीच्या म्हणतात देशभरातील खेडयांचा विकास झाला तरच संपूर्ण भारत देशाच्या विकास होईल. जनतेचे कल्याण करण्यासाठी हे राज्य जनतेचे असणे आवश्यक असते. म्हणून भारताने लोकशाही पध्दतीचा स्विकार केला होता. गांधीजीं यांच्या विचारातील ग्रामस्वराज्य संकल्पनेत खेडयांचा विकास हाच केंद्रबिंदु होता. विकेंद्रीत लोकशाहीचा पुरस्कार करून त्यांनी आदर्श अशा ग्रामराज्याची कल्पना मांडली. महात्मा गांधींच्या मते शहरीकरण व उद्योगधंदे यांच्या वाढीमुळे उद्योगधंदे ज्यांच्या मालकीचे त्यांच्याच हातात संपत्तीचे केंद्रीकरण होते ते टाळण्यासाठीच स्वराज्यात खेडयांना स्वायत्तता दिली पाहिजे.
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प्रा., आचार्य बालाजी वैजनाथ. "ग्रामस्वराज्य व महात्मा गांधी". उदयगिरी - बहुभाषिक इतिहास संशोधन पत्रिका 01, № 04 (2023): 1032–38. https://doi.org/10.5281/zenodo.10286900.

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Abstract:
महात्मा गांधीजींची जीवनातील तत्वे म्हणजे जगाला मिळालेली अमूल्य देणगी होय. त्यांचे सत्य, अहिंसा, सत्याग्रह, विश्वस्त संकल्पना, ग्राम स्वराज्य म्हणजे विचारांचा मोठा ठेवा होय. महात्मा गांधींनी अनेक क्षेत्रात कार्य केले आहे. त्यांचे कार्यक्षेत्र अत्यंत व्यापक होते. त्यांच्या संपूर्ण कार्याचा अभ्यास करताना हे लक्षात येते की, त्यांनी राष्ट्रीय चळवळीच्या कार्यापेक्षा जास्त कार्य हे ग्रामीण विकास व स्वयंपूर्ण भारत या विषयावर केले. भारतीयांचा विकास करण्यासाठी ग्रामीण विकासाची कास धरली. आर्थिक साम्राज्यवादाला प्रभावीपणे उत्तर द्यायचे असेल तर, सामाजिक जीवनात बदल घडवून आणणे आवश्यक आहे. त्यासाठी सामाजिक असमतोल दूर करण्याकरिता सामाजिक न्याय सर्वत्र रुजणे आवश्यक आहे. समाजातील सामाजिक असंतुलनाची दरी नष्ट करणे आवश्यक आहे. ग्रामीण भागाचा आजही विचार केला तर या भागात शूद्र अति शुद्रांवर अन्याय होतात. भेदभावाची, उपेक्षितांची वागणूक दिली जाते. ग्रामीण विकासासाठी अडथळे ठरणाऱ्या अशा घटना नष्ट व्हाव्यात, असे गांधीजींना अपेक्षित होते. आधुनिक युगात विज्ञान व तंत्रज्ञानाच्या यंत्र संस्कृतीने पूर्वीच्या खेड्याला गिळंकृत केलेले दिसते आहे. स्वयंपूर्ण ग्रामीण जीवनाचा व जीवनशैलीचा शेवट झालेला आपणास पहावयास मिळत आहे. अशाप्रकारे गांधीजींनी ग्रामीण जीवनातील स्थिती वर्णन केलेली आहे.
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ज्ञानेश्वर, मारुती माळी. "ग्राम उद्योग आणि ग्राम स्वराज". उदयगिरी - बहुभाषिक इतिहास संशोधन पत्रिका 01, № 04 (2023): 900–907. https://doi.org/10.5281/zenodo.10282659.

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Abstract:
गाव नष्ट झाले तर भारताचाही नाश होईल. भारत यापुढे भारत राहणार नाही. जगातील तिचे स्वतःचे मिशन हरवले जाईल. गावाचे पुनरुज्जीवन तेव्हाच शक्य आहे जेव्हा त्याचे शोषण होणार नाही. मोठ्या प्रमाणावर औद्योगिकीकरण केल्याने स्पर्धा आणि विपणनाच्या समस्या आल्याने गावकऱ्यांचे निष्क्रीय किंवा सक्रिय शोषण होत आहे. म्हणून आपण गाव स्वयंपूर्ण असण्यावर, मुख्यतः वापरासाठी उत्पादन करण्यावर लक्ष केंद्रित केले पाहिजे.  ग्रामोद्योगाचे हे वैशिष्ट्य राखले तर, गावकऱ्यांना ते बनवता येतील आणि वापरता येतील अशी आधुनिक यंत्रे आणि साधने वापरण्यास हरकत नाही. फक्त त्यांचा वापर इतरांच्या शोषणाचे साधन म्हणून करू नये.
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Singh, Anamika, and Sujita Devi. "RURAL MODEL OF INDUSTRIAL DEVELOPMENT IN JAUNPUR DISTRICT AND PLANNING FOR INTEGRATED RURAL DEVELOPMENT." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 8, no. 12 (2021): 195–200. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v8.i12.2020.2705.

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Abstract:
English: The research study area presented is "Rural Development Dynamics in Jaunpur District: A Geographical Study" under the rural model of industrial development and planning for integrated rural development. At present, rural agriculture, rural industry, business employment are the resources of rural development for social, economic, political development in the Indian rural area. India is a country of villages, so for the development of the villages, there is an urgent need for coordinated planning of small and cottage industrial development for rural development. "The glorious point of Jaunpur district from the past is in front of us on the peak of the Sultanate. According to historian Afrikan is not true. Jaunpur city was inhabited since ancient times and had the distinction of being the capital of an ancient Hindu kingdom. The ancient city of Jaunpur was named Javanpur. Ferozeshah Tughlaq laid the foundation of Jaunpur city on the banks of the Gomti River in 1394, in the full memory of his cousin Juna Kha (Mo. Binu Tughlaq), Yavanpur was named after the ancient sage Yamadagni who later converted to Jaunpur, which was renovated by Firoz Shah Tughlaq had. The policy is important for rural development.
 
 Hindi: प्रस्तुत शोध अध्ययन क्षेत्र ‘‘ जौनपुर जनपद में ग्राम्य विकास गतिकी: एक भौगोलिक अध्ययन ’’के अन्तर्गत औद्योगिक विकास का ग्राम्य प्रतिरूप तथा समन्वित ग्राम्य विकास हेतु नियोजन का अध्ययन है। वर्तमान समय में भारतीय ग्राम्य क्षेत्र में सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक विकास के लिए ग्राम्य कृषि , ग्राम्य उद्योग , व्यापार रोजगार ग्राम्य विकास का संसाधन है। भारत गॉवों का देश है अतः ग्राम्यों के विकास के लिए लघु एवं कुटीर औद्योगिक विकास का ग्राम्य विकास हेतु समन्वित नियोजन की अति आवश्यकता है। ‘‘ अतीत समय से जौनपुर जनपद गौरवमयी बिन्दुस्पर्शी सल्तनत होने के शिखर पर हमारे सामने है। इतिहासकार अफ्रीक के अनुसार सत्य नहीं है। जौनपुर नगर प्राचीन काल से ही बसा बसाया था और इसे एक प्राचीन हिन्दू राज्य की राजधानी होने का गौरव प्राप्त था। जौनपुर का प्राचीन नगर का नाम जवनपुर था। फिरोजशाह तुगलक अपने चचेरे भाई जूना खा ( मो0 बिनु तुगलक) की पूर्ण स्मृति में गोमती नदी के तट पर जौनपुर नगर की नींव 1394 रखी थी, प्राचीन ऋषि यमदग्नि के नाम पर यवनपुर रखा गया था जो आगे चलकर जौनपुर में परिवर्तित हो गया जिसका जीर्णोद्धार फिरोजशाह तुगलक ने किया था ।[1] आधुनिक समय में ग्रामीण विकास के लिए ग्राम्योद्योग एवं कृषि विकास के संसाधनों का विकास करके ग्राम्य क्षेत्रों में लोगों को शिक्षा के द्वारा समग्र रोजगार का प्रशिक्षण तकनीकी कौशल के माध्यम से ग्रामीण रोजगार उपलब्ध कराकर सम्पूर्ण ग्राम विकास हेतु समन्वित नियोजन की नीति ग्राम्य विकास के लिए महत्वपूर्ण है।
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Richa, Kushwah Jayshri Diwedi. "ग्राम पंचायत निर्वाचन में मतदान व्यवहार मुरैना जिले के पंचायत आम निर्वाचन 2015 एवं 2022 के विशेष संदर्भ में एक अध्ययन". International Educational Applied Research Journal 09, № 05 (2025): 179–85. https://doi.org/10.5281/zenodo.15567989.

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Abstract:
यह शोधपत्र मुरैना जिले के 2015 और 2022 के ग्राम पंचायत आम निर्वाचन में | मतदाताओं के व्यवहार का तुलनात्मक विश्लेषण प्रस्तुत करता है। भारत के लोकतंत्र में ग्राम पंचायत चुनावों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये जमीनी स्तर पर जनभागीदारी और सशक्तिकरण सुनिश्चित करते हैं। मुरैना जिले की जातीय, सामाजिक और राजनीतिक संरचना ने इन चुनावों को प्रभावित किया है। अध्ययन में पाया गया कि जाति, वर्ग, लिंग और धर्म मतदान व्यवहार को तय करने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। महिलाओं और युवाओं की भागीदारी बढ़ी है, परंतु निर्णय अब भी पारिवारिक और सामाजिक प्रभावों से जुड़ा है । प्रचार में माइकिंग, सोशल मीडिया और घर-घर संपर्क प्रभावशाली माध्यम रहे। मतदान केंद्रों की पहुंच, जागरूकता अभियान और आरक्षण नीति ने वंचित वर्गों की सहभागिता को बढ़ावा दिया है। यह अध्ययन वर्णनात्मक और तुलनात्मक शोध पद्धति पर आधारित है जिसमें साक्षात्कार प्रश्नावली और द्वितीयक स्रोतों से जानकारी एकत्रित की गई है। शोध से यह निष्कर्ष निकला कि मुरैना में मतदान व्यवहार केवल राजनीतिक दलों पर नहीं बल्कि प्रत्याशी की सामाजिक छवि विकास मुद्दों और जातीय समीकरणों पर भी निर्भर करता है। यह शोध लोकतंत्र की जमीनी मजबूती, महिला - युवा सशक्तिकरण और समावेशी शासन के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकता है।
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डॉ., महेशकुमार नारायण मोटे, та यशवंत साखरे दत्तात्रय. "यशवंत ग्राम समृध्दी योजना : आर. आर. पाटील यांची भूमिका". 'Journal of Research & Development' 14, № 18 (2022): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.7431392.

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Abstract:
आधुनिक महाराष्ट्राच्या राजकीय व सामाजिक विकासात एक जबाबदार लोकप्रतिनिधी म्हणून  आर. आर. पाटील यांनी अत्यंत म्हत्वाची भूमिका बजावली. १९९० ते २०१५ पर्यंतच्या एकूण राजकीय कारकिर्दीत त्यांनी ग्रामविकास व पाणी पुरवठा मंत्री, उपमुख्यमंत्री, गृहमंत्री म्हणून त्यांनी विधायक समाजकार्याला प्राधान्य देवून विविध नाविन्यपूर्ण शासकीय योजनांची लोकसहभागातून मांडणी करून त्या यशस्वीपणे  महाराष्ट्रात  राबविल्या.त्यांनी राबविलेल्या योजनांची दखल आंतरराष्ट्रीय स्तरावर घेण्यात आली.त्यांनी राबविलेल्या विविध योजनामध्ये संत गाडगेबाबा ग्राम स्वच्छता अभियान, तंटामुक्त गाव अभियान, शिवकालीन पाणीपुरवठा योजना, महिलासाठी स्वयंसहाय्यता बचत गट योजना, झोपडपट्टी मुक्त गाव, डान्सबार बंदी, महात्मा फुले जलभूमी संधारण अभियान, ग्रामीण निवारा योजना, विविध पाणीपुरवठा योजना, पारदर्शक पोलीस भरती, नक्षलवाद्यासाठी आत्मसमर्पण योजना, महाराष्ट्र दर्शन सहल योजना अशा विविध शासकीय योजना प्रभावीपणे राबवून ग्रामीण विकासाला चालना दिली.           आर. आर. पाटील यांनी पंचायतराज संस्थाच्या सक्षमीकरणासठी, लोकशाही शासनाच्या राजकीय सत्तेचे विकेंद्रीकरणाद्वारे संवैधानिक उदीष्ठ साध्य करण्यासाठी, नियोजनामध्ये जनसहभाग वाढवून शासनाचे कल्याणकारी राज्याचे स्वप्न साकार करण्यासाठी, यशवंत ग्राम समृध्दी योजनेची निर्मिती करण्यात आली. या योजनेची सुरुवात २००२-२००३ या आर्थिक वर्षात सुरु करण्यात आली. यासाठी या योजनेला तत्कालीन ग्रामविकास मंत्री आर. आर. पाटील यांच्या काळात २००२-०२ साठी १५१.८५ कोटी रूपये मंजूर करण्यात आले. या योजनेला मिळणारा अभूतपूर्व प्रतिसाद अधिक होता २००३ -०४ साठी ५०कोटी रुपयांची तरतूद करण्यात आली. गावातील विविध समस्या सोडविण्यासाठी, गावात विविध विकास कामे गावक-यांच्या सहकार्यातून यशस्वीपणे पूर्ण करण्यासाठी या योजनेची भूमिका महत्वाची मानली जाते.
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प्रा., डॉ. सुरेश चंद्रकांत मेहेत्रे, та डॉ. विजय नागोराव भोपाळे प्रा. "महात्मा गांधी आणि ग्रामीण स्वराज्य". उदयगिरी - बहुभाषिक इतिहास संशोधन पत्रिका 01, № 05 (2023): 144–47. https://doi.org/10.5281/zenodo.10072946.

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Abstract:
मागील तीन ते चार वर्षात संपूर्ण विश्वाला ज्या कोरोनाच्या महामारीने ग्रासले होते त्याचा परिणाम हा केवळ सामाजिक, राजकीय आणि आर्थिक बाबीवरच झाला नाही तर संपूर्ण अर्थव्यवस्थेला देखील व्यापले आहे. याच दरम्यान संपूर्ण जगाला कळून चुकले की आत्मनिर्भर असणे आवश्यक आहे. त्यासाठी स्वावलंबन आणि स्वदेशीचा मोठा वापर होणे आवश्यक आहे असे संपूर्ण जगाला वाटू लागले. सोबतच स्थानिक उत्पादन, स्थानिक बाजारपेठ, स्थानिक संबंध यांची साखळी मजबूत असणे आवश्यक आहे याची आवश्यकता निर्माण झाली. याचाच अर्थ असा की, कोरोना सारख्या संकटाने उपस्थित झालेल्या परिस्थितीने संपूर्ण जगाला कळून चुकले की, महात्मा गांधींच्या 'ग्रामीण स्वराज्य' या संकल्पनेचा गंभीरतेने विचार करायला हवा. महात्मा गांधींनी फार पूर्वीच सांगितले होते की, "भारतीय स्वातंत्र्याचा अर्थ पूर्ण भारताची स्वतंत्रता असावी आणि याची सुरुवात खालून वरती म्हणजे खेड्यातून शहराकडे व्हावी. प्रत्येक गांव स्वतंत्र असेल. प्रत्येक गांव आत्मनिर्भर आणि सक्षम व्हावे." महात्मा गांधींनी आपल्या या स्वप्नाला साकार करण्यासाठी भारतात ग्राम पंचायती आणि ग्रामसभा या स्थानिक विकास आणि स्थानिक प्रशासन यांचा मुख्य आधार असायला हवे असे मत प्रतिपादन केले होते.
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डा, ॅ. सीमा सक्सेना. "स ंगीत आ ैर समाज". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.886828.

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Abstract:
्रकृति का मूल सिद्वान्त ह ै कि मनूष्य न े अपनी नैस ेर्गिक आवष्यकताओं क े लिये समाज क े अवलम्ब को अवधारित किया उसे अपने सुखःदुख की हिस्सेदारी एव ं व्यवहारिक बल व असुरक्षा से बचकर क े लिये समाज की सृष्टि करनी पड़ी अथवा समाज की शरण में जाना पड़ा। बाल्यकाल, युवावस्था, व ृद्वावस्था, अथवा यह कहा जाये कि जीवन क े प ्रत्येक चरण में मनुष्य का े समाज की आवष्यकता नैसर्गिक होती ह ै। समाज यदि जननी है तो व्यक्ति उसका बालक। विकास की प्रारंभिक अवस्था से निरन्तर प ्रगति पथ पर बढ़ते ह ुऐ उसने अपनी आवष्यकताओं क े रूप सृजन करना आरंभ किया आ ैर-यही सृजन कलाओं का उद्गम स्थल बना। उसे यह पता ही नहीं चला कि कब उसकी इसी सृजनात्मकता ने कलाओं का रूप लिया फिर वा े चाह े स्थापत्य कला, हो या संगीत अथवा चित्रकारी उदाहरण क े लिये उसने प ्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिये गृह उपव्यकाआ ें को अपना घर बनाया आ ैर धीरे-धीरे समूहों में अपने घरा ें का निर्माण किया और यही निवास-स्थापत्यकला क े उत्कृष्ट नमूने बने। इस तरह समाज का विकास व कलाओं का विकास समानान्तर रूप में प ्रगति पाने लगे आ ैर प ्रत्येक समूह समाज का े अपने भिन्न परिव ेष, संस्कृति व संगीत से प ृथक रूप में पहचाना जाने लगा। यहाँ व्यक्ति का स्वाधिकार कुछ भी नही था जो कुछ था वह समाज था। अपनी भावनाआ ें की समूह रूप में अभिव्यक्ति कलाओं क े सृजन का मूल भ ूत कारण बनी। अपनी प ्रसन्नता, दुख, शोभ आदि भावनाओं का े उन्ह ंे किसी ना किसी रूप में अभिव्यक्त करना मनुष्य की आवष्कता बन र्गइ । विकास क े क्रम में यही समाज धीरे-धीरे ग्राम, नगर, प्रान्त व देश क े रूप में आकृति पाते गये आ ैर विविध-विविध नगर, प ्रान्तों व देशा े की अपनी संस्कृति व संगीत में परिलक्षित हा ेते गये। मानव हद्य की वे आदिम भावनाएॅ आज भी हद्य स्प ंदन करने में उतनी ही क्षमताऐं रखती ह ै जितनी वे अपनी प्रांरभिक काल मे रखती थी।
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राजेश, कुमार. "पंचायती राज एवं महिला नेतृत्व विकास - एक विमर्श". RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 03, № 10 (2018): 197–214. https://doi.org/10.5281/zenodo.1461133.

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Abstract:
"पंचायती राज संस्थाओ में महिला नेतृत्व विकास वर्तमान भारत का एक बेहद जरुरी विमर्श है | चुकि यह महिला स्वतंत्रता, समानता, मजबूती और महत्ता की हिमायत करता है, इसलिए इसे सम्पूर्ण मानव समाज के आधे हिस्से की बेहतरी से जुड़ा विमर्श कहा जा सकता है | इस बेहतरी की स्थापना हेतु भारत में स्थानीय स्वायत्त संस्थाओ की विकेंद्रीकरण प्रणाली प्रारम्भ की गयी | यह विकेंद्रीकरण जमीनी स्तर पर हुआ है तथा इन संस्थाओ में महिलाओ के लिए एक-तिहाई स्थान आरक्षित (वर्तमान में कई राज्यों में 50 प्रतिशत) किये जाने से जमीनी स्तर पर काफी बदलाव हुए है | आज भारत में 12 लाख से अधिक महिला निर्वाचित प्रतिनिधि है जो दुनिया के किसी भी देश में नही है |  इतना ही नहीं अगर पूरी दुनिया के निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों की संख्या जोड़ी जाये तो वह संख्या इन भारतीय निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों से कम ही है | देखा जाय तो पंचयतो में महिला नेतृत्व विकास एक एसी मौन क्रांति का द्योतक है जो अभि राष्ट्रिय स्तर पर सार्वजनिक रु से भेल ही दिखाई नहीं दे रही हो पर उसकी धीमी आँच भारतीय लोकतंत्र को अवश्य मजबूत बना रही है | यह क्रांति देश के सत्ता-विमर्श के ढांचे में ही वदलाव नहीं ला रही है बल्कि पंचायत स्तर पर इतनी बड़ी संख्या में महिलाओ की भागीदारी ने स्थानीय स्तर पर सामुदायिक जीवन और उसकी चेतना तह संस्कृति में भी परिवर्तन लाया है | इन निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों ने सत्ता के जातीय समीकरण को ही नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक समीकरण को भी बदल है | ग्राम सभा से लेकर संसद तक राष्ट्रीय स्तर पर महिलाओ की भागीदारी दिनोंदिन बढती जा रही है |  अब स्थिति यह है कि पंचायतो में भागीदारी होने के साथ ही उनकी आत्मनिर्भरता भी बढ़ी है | उनमे जागरूकता भी आयी है | और वो छोटे-छोटे स्वयं सहता समूहों के जरिये अपना स्वरोजगार अपना रही है और देश के राष्ट्रीय विकास में अपना सहयोग भी दे रही है | इस तरह यह कहना गलत नहीं होगा कि पंचायतो से ही महिलाओ के राजनितिक एव सशक्तिकरण अभियान को गति मिली है | जब पंचायतो में उनकी भागीदारी बढ़ी तभी वे हर दिशा में आए निकल पायी है| अब तो संसद तक में उन्हें आरक्षण देकर उनके नेतृत्व विकास को प्रोत्साहित किया जा रहा है |"
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मिश्रा, आशा. "पुरातन में निहित नवीनता: भारतीय ज्ञान परंपरा का सामाजिक और शैक्षिक योगदान". Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education 22, № 01 (2025): 477–83. https://doi.org/10.29070/adcd6897.

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Abstract:
भारतीय ज्ञान वेदों, उपनिषदों, स्मृतियों, लोककथाओं और पारंपरिक प्रथाओं से समृद्ध है, जो शासन, नैतिकता, पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक संरचना और आध्यात्मिक ज्ञान सहित विभिन्न विषयों को समाहित करती है। ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद न केवल धार्मिक ग्रंथ हैं, बल्कि इनमें विज्ञान, गणित, चिकित्सा, खगोलशास्त्र और दर्शन के गहरे बीज भी निहित हैं। महाभारत, रामायण, मनुस्मृति, कौटिल्य का अर्थशास्त्र, चरक और सुश्रुत संहिता जैसे ग्रंथों ने राजनीति, समाजशास्त्र, अर्थव्यवस्था और चिकित्सा विज्ञान में अद्वितीय योगदान दिया। इन ग्रंथों में पुरातन में ही नवीनता निहित है। भारत की सामाजिक संरचना — वर्ण, आश्रम, जाति, परिवार, ग्राम व्यवस्था, धर्म और कर्तव्य जैसे सिद्धांत — सभी भारतीय ज्ञान प्रणालियों में निहित थे और समाज के संतुलन एवं संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वर्तमान युग में जब मानव सभ्यता तकनीकी प्रगति, उपभोक्तावाद और वैश्वीकरण की ओर तीव्र गति से अग्रसर है, तब भारतीय ज्ञान परंपरा कई प्रकार की चुनौतियों से जूझ रही है। जिसका समाधान शिक्षा में समावेश,अनुवाद और डिजिटलीकरण,स्थानीय भाषाओं का प्रोत्साहन,आध्यात्मिक पुनर्जागरण सांस्कृतिक चेतना का विकास किया जा सकता है।
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संदीपा, संदीपा, та भावना अरोड़ा. "पंचायती राज प्रणाली में महिला नेत्रत्व: ग्रामीण सशक्तिकरण की दिशा में एक समाजशास्त्रीय मूल्यांकन". Open Access Journal of Multidisciplinary Research 1, № 2 (2025): 56–66. https://doi.org/10.47760/oajmr.2025.v01i02.005.

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Abstract:
महिला सशक्तिकरण एक ऐसा महत्वपूर्ण मुद्दा है, जिसने पिछले कुछ दशकों में वैश्विक और राष्ट्रीय दोनों ही स्तरों पर व्यापक ध्यान आकर्षित किया है। भारत जैसे विविधतापूर्ण और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध देश में, महिला सशक्तिकरण केवल एक सामाजिक आवश्यकता नहीं, बल्कि एक नैतिक जिम्मेदारी भी है। इस संदर्भ में पंचायती राज व्यवस्था का विशेष महत्व है, क्योंकि यह भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण को साकार करने और समाज के सबसे निचले स्तर तक शासन को पहुँचाने का एक सशक्त माध्यम है। पंचायती राज की व्यवस्था में त्रिस्तरीय- ग्राम पंचायत, पंचायत समिति और जिला परिषद होते हैं, और प्रत्येक के विशिष्ट कार्य होते हैं। यह प्रणाली ग्रामीणों को निर्णय लेने, विकास परियोजनाओं की योजना बनाने और स्थानीय संसाधनों का प्रबंधन करने, जमीनी स्तर पर ग्रामीण विकास और शासन को बढ़ावा देने में सक्षम बनाती है। 1993 में 73वें संविधान संशोधन के माध्यम से पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई आरक्षण की व्यवस्था की गई थी, जिसने ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को राजनीतिक मंच प्रदान किया। यह कदम महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हुआ है, जिसने उन्हें न केवल राजनीतिक शक्ति प्राप्त करने का अवसर दिया है, बल्कि सामाजिक और आर्थिक रूप से भी उन्हें सशक्त किया है। भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां की अधिकांश आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। यहां के समाज में पुरुष प्रधान मानसिकता और परंपरागत सामाजिक ढांचे ने महिलाओं को सदियों से दबाया और उनके अधिकारों को सीमित रखा है। ऐसे में, पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी को अनिवार्य करने का कदम एक क्रांतिकारी निर्णय था। इसने महिलाओं को केवल राजनीति में भागीदारी ही नहीं दी, बल्कि उन्हें अपने गांवों और समाज की विकास प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का अवसर भी प्रदान किया। पारंपरिक भारतीय समाज में महिलाओं की भूमिका अक्सर घरेलू कार्यों और सीमित सामाजिक दायरे तक सीमित रही है। राजनीतिक निर्णय लेने की प्रक्रिया में उनकी भागीदारी बहुत कम रही है। समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से देखा जाए तो, यह स्थिति न केवल पितृसत्तात्मक व्यवस्था के कारण है, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक अवरोधों के कारण भी है।
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Swami, Almesha. "Rural life in post-independence Hindi novels." RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 8, no. 3 (2023): 344–47. http://dx.doi.org/10.31305/rrijm.2023.v08.n03.040.

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Abstract:
After independence, the novel genre has developed rapidly. Novelists have depicted both Indian village and urban life. Indian culture is basically an agricultural culture, the background of which is eternal village life, but the rural environment, influenced by capitalism, industrialization, consumerist culture, technology and technology, is losing its original form. Today's common man, wearing the cloak of post-modernity, is eager to adopt urban ways. Urbanism has entered rural life. The sub-culture affecting the values of typical rural life can be seen even in the fields, barns and footpaths. Due to urbanization, industrialization and liberalization, rapid changes are taking place in rural life. Due to the open thoughts of today's generation coming of age in the open air of modernity, the atmosphere of the village is also changing. Due to new ideas, new ways of life are being adopted. As a result, today's village is taking a new shape. Abstract in Hindi Language: स्वतंत्रता पश्चात् स्वतंत्रता उपन्यास विधा का तेजी से विकास हुआ है। भारतीय ग्राम एवं नगरीय दोनों जीवन का उपन्यासकारों ने चित्रण किया है। भारतीय संस्कृति मूलतः कृषि संस्कृति है जिसकी पृष्ठभूमि सनातन ग्राम जीवन है किन्तु पूँजीवाद, औद्योगीकरण, उपभोक्तावादी संस्कृति, तकनीकि एवं प्रौद्योगिकी से प्रभावित ग्रामीण परिवेश अपना मूल स्वरूप खोता जा रहा है। उत्तर आधुनिकता का लबादा ओढ़े आज का आम आदमी नगरीय तौर-तरीके अपनाने को आकुल है। ग्राम्य जीवन में शहरीपन समा चुका है। ठेठ देहाती जीवन मूल्यों पर चोट करती अपसंस्कृति का दर्शन खेत-खलिहानों व पगडंडियों तक में हो जाता है। शहरीकरण, औद्योगीकरण, उदारीकरण के कारण ग्रामीण जनजीवन में तेजी से बदलाव हो रहे हैं। आधुनिकता की खुली हवा में जवान होती आज की पीढ़ी के खुले विचारों के कारण गांव की आबो-हवा भी बदल रही है। नये विचारों के कारण नयी जीवन पद्धतियां अपनायी जा रही हैं। परिणामस्वरूप आज का गांव नये रूप में आकार ले रहा है। Keywords: स्वतंत्रता, ग्रामीण, उपन्यास, स्वतंत्रता।
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प्रा., राम गणपतराव शेवलीकर. "महात्मा गांधींचे ग्रामोद्योगासंबंधी विचार : एक अभ्यास". उदयगिरी - बहुभाषिक इतिहास संशोधन पत्रिका 01, № 04 (2023): 818–22. https://doi.org/10.5281/zenodo.10280244.

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Abstract:
महात्मागांधीजींनी ग्राम स्वराज्याच्या संकल्पनेत ग्रामीण उद्योगांच्या पुनरुज्जीवनाला प्राधान्य दिले आहे. त्यांच्या मते, खेड्याच्या प्रगतीवरच भारताची प्रगती अवलंबून आहे. खरा भारत हा खेड्यात राहतो. खेड्याच्या प्रगतीत जागतिक अर्थकारण, भ्रष्ट राजकारण व लोकांची मानसिकता अशा अनेक बाबी अडचणी ठरत आहेत. खेड्यातील गुणवत्ता शहरी भागात स्थलांतरित झाल्याने खेड्याचा विकास झाला नाही. खेड्यातील कौशल्याचा यांत्रिकि‍करणामुळे र्‍हास होत आहे. त्यामुळे खेड्यात बेकारी, दारिद्रय, कुपोषण, निकृष्ट आहार यासारखे प्रश्न अनुत्तरित आहेत. आज शेतीला इतर व्यवसायाची जोड न मिळाल्यामुळे शेतकर्‍यांच्या दु:खात वाढ झाली आहे. महात्मा गांधी यांना शेतीला ग्राम उद्योगाची जोड मिळावी असे वाटत होते. त्यांनी आपल्या ग्रामस्वराज्याच्या संकल्पनेत ग्रामोद्योगाला अनन्य साधारण महत्व दिले आहे. खेड्यातील दारिद्र्याचा प्रश्न सोडविण्यासाठी खेडोपाडी खादी उद्योग व इतर ग्रामीण उद्योग निर्माण करण्याचे विधायक कार्य त्यांनी हाती घेतले होते. गांधीजी म्हणतात की, खेड्यांचा ऱ्हास हा तेथील उद्योग-धंदे व कला-कारागिरी नष्ट झाल्यामुळे होत आहे. त्यामुळे त्यांच्या पुनरुज्जीवनावर लक्ष देणे आवश्यक आहे त्यांनी मोठ्या उद्योगापेक्षा छोट्या ग्रामोद्योगांना अधिक महत्व दिले. ग्रामोद्योगांना चालना देण्यासाठी काँग्रेसच्या विधायक कार्यक्रमात ग्रामोद्योगाचा समावेश करण्यात आला होता. ग्रामोद्योगाला चालना देण्यासाठी अखिल भारतीय चरखा संघ, ग्रामोद्योग संघ इ. ची स्थापना करण्यात आली होती. त्या काळी भारतातील शेती व्यवसायाची स्थिती अत्यंत दयनीय होती. पावसाच्या अनिश्चिततेमुळे शेतकऱ्यांना दारिद्र्यात जीवन जगावे लागत होते, शेतीला उद्योगाची जोड नव्हती. ब्रिटिश राजवटीमुळे ऱ्हास पावलेल्या लघु उद्योजक व कारागीरावर उपासमारीची वेळ आली होती. अशावेळी महात्मा गांधीनी शेतीला उद्योगाची जोड देण्याचे विचार मांडले. शेतीला जोड व्यवसाय म्हणून त्यांनी शेतकऱ्यांना चरखा हे साधन दिले. त्यामुळे शेतीला कापड व्यवसायाची जोड मिळाली. ग्रामीण उद्योगांचे पुनरुज्जीवन करणे हेच खेड्यातील बेरोजगारी व दारिद्रय कमी करण्याचा खरा मार्ग आहे, अशा निष्कर्षाप्रत गांधीजी आले. अन्नाप्रमाणेच वस्त्र ही मानवाची मूलभूत गरज असल्याने त्यांनी सुतकताईला अधिक महत्व दिले. त्यांनी 'चरख्याला ग्रामीण उद्योगांच्या केंद्र स्थानी मानले व त्याच्या भोवती इतर उद्योगाची गुंफण केली.'१ एकोणिसाव्या शतकात इंग्लंडमधील यंत्राधिष्ठित उद्योजकाच्या स्पर्धेने भारतातील हस्त कौशल्याच्या व्यवसायाचा ऱ्हास झाला. त्यानंतर ब्रिटिशांचे अनुकरण करून येथील भांडवलदारांनी मोठ्या कापड गिरण्या व कारखान्यांची स्थापना केली. या स्पर्धेत भारतातील कारागीर टिकू शकले नाही. त्यामुळे एकेकाळी मालक असणारे आता मजूर बनले होते. भारतासारख्या लोकसंख्या बहुल देशांनी भांडवलप्रधान उत्पादन तंत्राऐवजी श्रमप्रधान तंत्राचा उपयोग करावा, ग्रामीण उद्योगांच्या वाढीवर भर द्यावा, असे महात्मा गांधीचे मत होते. 
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डॉ., लिलाधर खरपूरिये. "शाश्वत विकास आणि मानवी विकास". International Journal of Advance and Applied Research S6, № 18 (2025): 184–88. https://doi.org/10.5281/zenodo.15245324.

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Abstract:
शाश्वत विकास आणि मानवी विकास केवळ पर्यावरणीय चिंता नसून मानवी कल्याणात दीर्घकालीन प्रगती साधण्यासाठी एक महत्त्वाचा आधारस्तंभ आहे. शाश्वत पद्धती पर्यावरणीय, सामाजिक आणि आर्थिक परिमाणांच्या परस्परसंबंधांचे परीक्षण करून मानवी क्षमता वाढवण्यासाठी, निवडींचा विस्तार करण्यासाठी आणि सर्वांसाठी अधिक न्याय्य आणि समृद्ध भविष्य सुनिश्चित करण्यासाठी कशा प्रकारे योगदान देतात हे दर्शविते. युनायटेड नेशन्स डेव्हलपमेंट प्रोग्राम (UNDP) द्वारे परिभाषित केल्याप्रमाणे मानवी विकास ही "लोकांच्या निवडी वाढविण्याची आणि त्यांचे जीवन सुधारण्याची प्रक्रिया आहे." हे आरोग्य, शिक्षण आणि राहणीमान यासारख्या क्षेत्रांमध्ये क्षमता आणि संधींचा विस्तार करण्यावर लक्ष केंद्रित करते.  तथापि, मानवी विकासाचा पाठपुरावा शाश्वततेच्या संदर्भापासून विभक्त होऊ शकत नाही. पर्यावरणाला हानी न पोचविता केलेला विकास म्हणजे शाश्वत विकास होय. शाश्वत विकास, भविष्यातील पिढ्यांच्या गरजांवर लक्ष देऊन स्वतःच्या क्षमतेशी तडजोड न करता वर्तमान गरजा पूर्ण करण्यावर भर देऊन विकास करणे होय. ही केवळ पर्यावरणीय गरज नाही, तर मानवी विकासाचे फायदे चिरस्थायी आणि सर्वसमावेशक आहेत, याची खात्री करण्यासाठी एक मूलभूत आवश्यकता आहे. 
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Verma, Vinita. "INCREASING POPULARITY OF INDIAN MUSIC THROUGH MEANS OF COMMUNICATION IN THE ERA OF GLOBALIZATION." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 3, no. 1SE (2015): 1–3. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v3.i1se.2015.3500.

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Abstract:
How far our forefathers were, it shows that, the importance of globalization, which the people of the rest of the world are able to understand today, has been determined by our mystics very early on that the concept of "Vasudhaiva Kutumbakam" of our culture Formed the basis.At present, the whole world is like a village due to technological development and communication revolution in the whole world, because the means of communication have added so much that the whole world has been reduced to a few steps and a few hours, and the world wide The process of K has accelerated the westernization process.
 हमारे पूर्वज कितने दूर दृष्टा थे, यह इस बात का द्योतक है कि, जिस वैश्वीकरण के महत्व को शेष विश्व के लोग आज समझ पाये हैं, उसे हमारे मनीषियों ने बहुत पहते ही निर्धारित कर ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम्’’ की अवधारणा को हमारी संस्कृति का आधार बनाया।वर्तमान समय में सम्पूर्ण विश्व में हुए तकनीकी विकास एवं संचार क्रान्ति के कारण समस्त विश्व ही एक ग्राम के समान है, क्योंकि संचार साधनों ने इसे इतना जोड़ दिया है कि पूरी दुनिया ही चंद कदमों एवं कुछ घंटों की दूरी में सिमट गई है और विश्व व्यापीकरण की प्रक्रिया से पश्चिमीकरण प्रक्रिया में तेजी आई है।
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Purwar, Puran Prakash. "Impact of social security schemes provided by Gram Panchayats on rural economy (with special reference to Banda district)." RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 9, no. 6 (2024): 335–40. http://dx.doi.org/10.31305/rrijm.2024.v09.n06.042.

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Abstract:
India is basically a country of villages. 76 percent of the population lives in about 6 lakh villages of the country and today the most serious and widespread problem of India is rural backwardness and poverty prevailing among the large population there. The most important question before the country's planners and economists is how to end this backwardness and poverty prevailing in the rural area or how to reduce its prevalence? The social security schemes provided by the Gram Panchayats have had a significant impact on the rural economy. The social security schemes provided by the Gram Panchayats have had the most positive impact on rural unemployment. The social security schemes provided by the Gram Panchayats have also had a positive impact on rural poverty. The social security schemes provided by Gram Panchayats have had a positive impact on the health and medical facilities of the villagers. Abstract in Hindi Language: भारत मूलतः गाँवों का देश है। यहाँ की 76 प्रतिशत जनसंख्या देश के लगभग 6 लाख गाँवो में निवास करती है और आज भारत की सर्वाधिक गम्भीर तथा व्यापक समस्या ग्रामीण पिछडेपन और वहाँ के बृहद जनसमूह में व्याप्त गरीबी की है। देश की योजनाओं और अर्थशास्त्रियों के समक्ष सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यही है कि ग्रामीण क्षेत्र में व्याप्त इस पिछडेपन और गरीबी को कैसे समाप्त किया जाय या इसकी व्यापकता कैसे कम की जाये? ग्राम पंचायतों द्वारा प्रदत्त सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर महत्वपूर्ण प्रभाव पडा है। ग्राम पंचायतों द्वारा प्रदत्त सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का ग्रामीण बेरोजगारी पर सर्वाधिक सकारात्मक प्रभाव पडा है। ग्राम पंचायतों द्वारा प्रदत्त सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का ग्रामीण गरीबी पर भी सकारात्मक प्रभाव पडा है। ग्राम पंचायतों द्वारा प्रदत्त सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का ग्रामीणों के स्वास्थ्य व चिकित्सा व्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव पडा है। Keywords: ग्रामीण, ग्राम पंचायत, ग्रामीण अर्थव्यवस्था, सामाजिक सुरक्षा योजनाएं
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कविता та डॉ० राम समुझ सिंह. "ग्राम पंचायत में दलित महिला प्रधान की भूमिका का समाजशास्त्रीय अध्ययन गोरखपुर जनपद के संदर्भ में". International Journal of Multidisciplinary Research in Arts, Science and Technology 2, № 1 (2024): 11–16. http://dx.doi.org/10.61778/ijmrast.v2i1.32.

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Abstract:
भारत में पंचायती राज व्यवस्था का अस्तित्व प्राचीन काल से ही है जो स्थानीय क्षेत्रों का विकास तथा समस्याओं का समाधान करता था। समय के साथ इसके प्रकार्यो में परिवर्तन होता रहा है । वर्तमान में पंचायत राज व्यवस्था वह संस्था है जो सामान्य स्थानीय जनता के प्रशासन के लिए होता है । यह संस्था स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु स्थानीय जनसाधारण द्वारा चुने गए सदस्यों द्वारा होता है । प्रस्तुत शोध पत्र में पंचायती राज व्यवस्था में ग्रामीण दलित महिला प्रधानों की भूमिका का अध्ययन किया गया है ।
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गीताराम, शर्मा गीताराम. "विकास के भारतीय प्रतिमान और सतत विकास". Innovation The Research Concept 9, № 2 (2024): H32—H41. https://doi.org/10.5281/zenodo.10862961.

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Abstract:
This paper has been published in Peer-reviewed International Journal "Innovation The Research Concept"                      URL : https://www.socialresearchfoundation.com/new/publish-journal.php?editID=8773 Publisher : Social Research Foundation, Kanpur (SRF International)  Abstract :  आज विकास के नाम पर दुनियाँ में एक दूसरे को रोंदकर आगे निकलने की जो वितृष्णा है या परस्पर निगल जाने का जो कि अहंकार है तथा दूसरे के अस्तित्व को मिटा कर आगे निकल जाने की प्रतिस्पर्धात्मक दौड़ के भौतिक प्राप्तव्य को ही दुर्भाग्य से विकास कहा जा रहा है| ऐसा भयावह विकास दुनियाँ के लिए आज भय, उद्वेग, तनाव, आतंक, अहंकार, आशंका सन्ताप, सन्त्रास, ईर्ष्या, वैमनस्य, कुण्ठा, विचलन, जीवनमूल्य वैमुख्य तथा नैतिक पतन का प्रधान कारक बन कर मानवीय जीवन का बोझ बन गया है| भारत भी भला इस बोझ से अछूता कैसे रहता| भारत के सन्दर्भ में इसके लिए उत्तरदायी प्रमुख कारकों में एक प्रमुख कारणयह नजर आता है कि 1947 में राजनैतिक स्वतन्त्रता मिलने के बाबजूद भारत के कर्णधारों के मन में स्व के स्फुरण के स्थान पर पश्चिम का चमकीली चकाचौंध कौतूहल पैदा करती रही| परिणाम यह हुआ कि प्राप्त स्वतन्त्रता न तो भारतीयों के विस्मृत आत्म तेज का पुनरनुसन्धान  करा सकी और न जीवन की भौतिक आकांक्षाओं की पूर्ति अर सकी| परिणामत: पेट भरने के लिए अन्न, पीने के लिए शुद्ध पानी, वदन ढकने के लिए वस्त्र, श्वास के लिए शुद्ध हवा तक की मूल व्यवस्था भी सरकारें कर नहीं सकी फिर सबके लिए शिक्षा, सबके लिए चिकित्सा, सबके लिए रोजगार जैसी आकांक्षाओं का अपूर्ण रहना स्वाभाविक ही था|
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कुमार, धर्मेन्द्र, та प्रमोद सिंह. "73वें एवं 74वें संविधान संशोधन में अनुसूचित जाति की महिलाओं की स्थिति". Humanities and Development 18, № 1 (2018): 128–31. http://dx.doi.org/10.61410/had.v18i1.128.

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Abstract:
भारतीय समाज में महिलाओं की प्रस्थिति में वैदिक काल से लेकर आधुनिक काल तक उतार-चढ़ाव दृष्टिगत होता है, हिन्दू जीवन दर्शन में महिलाओं को सभ्यता का स्रोत, संस्कृति निर्माता, जीवन दायिनी भी माना जाता रहा है। किन्तु व्यक्तिगत रुप से वैदिक काल को छोड़कर महिलाओं को निरन्तर संघर्ष करना पड़ा है। महिलाओं को सुख सम्पत्ति ज्ञान एवं शक्ति का भी प्रतीक माना जाता है। लक्ष्मी, दुर्गा, सरस्वती का भी प्रतीक माना जाता है। महिलाओं को जहाँ अद्धांगिनी के रुप में सम्मान प्राप्त है जिसके बिना पुरुषों के किसी भी कर्तव्यों की पूर्ति सम्भव नहीं है। उत्तर वैदिक काल से समाज में सामाजिक व्यवस्था रुढ़ियों में जकड़ी हुई दिखाई पड़ती है। वर्ण व्यवस्था क्रम में जहाँ उच्च, निम्न की भावना का विकास हुआ, आधुनिक काल आते-आते उच्च वर्ग, मध्यम वर्ग एवं निम्न वर्ग की क्रमबद्धता दिखाई पड़ने लगी। वर्ण एवं जाति की क्रमबद्धता में भी स्त्रियाँ हमेशा निम्न पाय-दान पर बनी रहीं। यदि कहीं समय से पूर्ण ही पंचायत भंग हो जाय तो उस ग्राम पंचायत में छः माह के अन्दर नवीन निर्वाचन करने होंगे। पदों का आरक्षण अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति और महिलआों के लिए निश्चत है। अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित कुल पदों में 30प्रतिशत महिलाओं के लिए सुरक्षित है। संविधान संशोधन में पंचायत के कार्यों एवं शक्तियों का भी उल्लेख किया गया है। ये संविधान की दसवीं सूची में रखे गये हैं।
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प्रा., डॉ. सोनवणे जी. एन. "राष्ट्रपिता म. गांधी : राष्ट्र निर्माणातील भूमिका". उदयगिरी - बहुभाषिक इतिहास संशोधन पत्रिका 01, № 04 (2023): 544–48. https://doi.org/10.5281/zenodo.10137515.

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Abstract:
म.गांधी हे आज जागतिक स्तरावरील आदर्श व्यक्तिमत्व म्हणून ओळखले जातात. त्यांच्या शांतता, सत्य, अहिंसा या मार्गावर जग मार्गक्रमण करीत आहे. भारताच्या दृष्टीने ही अत्यंत अभिमानाची बाब आहे. त्यांच्या विचारधारेमध्ये केवळ राष्ट्र आणि राष्ट्र निर्माणाचाच संदेश मिळतो. आदर्श राष्ट्र, आदर्श समाज निर्माण करण्यासाठी ग्राम राज्याची कल्पना सांगितलेली सर्वश्रुत आहे. ग्रामव्यवस्था उत्तमप्रकारे ठेऊन स्वयंपूर्ण अर्थव्यवस्था प्रत्येक खेड्यात निर्माण झाली तरच संपूर्ण समाज आदर्श समाज होऊ शकेल, अशी त्यांची धारणा होती. महात्मा गांधीजी आदर्श समाजाच्या क्लपनेला रामराज्य म्हणून संबोधले. त्यालाच 'ग्रामराज्य', 'आदर्श राज्य' असेही म्हणतात. त्यांच्या ग्रामराज्याच्या विचारांचा केंद्रबिंदू खेडे हा होता. महात्मा गांधीजींनी रामराज्यात राज्यविहीन आदर्श समाज अपेक्षित होता. देशातील प्रत्येक गाव स्वावलंबी राहील, सहकार्य हा त्यांचा आधार असेल, लोक शांतीपूर्ण गौरवशाली जीवन व्यतीत करतील असा ग्राम गांधींना उभा करायचा होता आणि तो ग्राम हा स्वयंपूर्ण असला पाहिजे असे गांधीजींचे मत होते. अशा ग्रामातूनच गौरवशाली भारत उभा करण्याचे गांधीजींचे स्वप्न होते. अशाप्रकारे गौरवशाली भारताचे स्वप्न गांधीजींच्या विचारातूनच पूर्ण होणारे होते. या दृष्टिकोनातून त्यांच्या सामाजिक विचारसरणीवर प्रकाश टाकण्याच्या उद्देशाने प्रस्तुत शोधनिबंधाची दिशा ठरविण्यात आली आहे.
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पटेल, राजेन्द्र कुमार. "लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण में मनरेगा की भूमिका: मीडिया की भूमिका के विशेष संदर्भ में". RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 05, № 01 (2020): 23–28. https://doi.org/10.5281/zenodo.3784679.

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विश्व में सबसे बड़ा लोकतांत्रिक राष्ट्र कहलाने वाले भारत में आजादी के साथ ही संसदीय प्रणाली को अपनाया गया और लोकतंत्र स्थापित किया गया जिस कारण भारत में विकेन्द्रित शासन व्यवस्था के सिद्धांत को अपनाया गया है। भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद संविधान निर्मात्री सभा के अनुभवों के अनुसार सम्पूर्ण देश के गांवों का शासन राजधानी दिल्ली से कर पाना संभव न था जिस कारण संविधान द्वारा देश को एक लोक कल्याणकारी राज्य बनाने के लिए विकेंद्रीकरण पर जोर दिया गया जिससे सत्ता का हस्तांतरण ऊपर से नीचे की ओर किया जाने लगा और उच्च अधिकारियों और जन प्रतिनिधियों के प्रति उतरदायित्व की भूमिका बढ़ने लगी। विकेंद्रीकरण से स्थानीय जनता का चहुमुखी विकास संभव हो पाता है वहीँ प्रशासनिक कार्यों के साथ-साथ सामाजिक व आर्थिक विकास का अधिकार भी जनप्रतिनिधियों को प्राप्त होता है। सत्ता के विकेंद्रीकरण द्वारा ही सही अर्थों में कल्याणकारी राज्य की स्थापना की जा सकती है। इससे ही जनता में सहयोग, उत्तरदायित्व, स्वावलंबन आदि गुणों का विकास होता है। भारत विश्व का सबसे बड़ा देश होने के साथ-साथ देश की अधिकांश जनसंख्या आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है जिस कारण गाँधी जी ने इसे “गाँवो के देश” की संज्ञा दी थी। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादातर लोगों की आर्थिक स्थिति खराब होने और ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार की कमी के चलते अधिकांश लोग गांवों से शहरों की ओर पलायन कर रहे है जिसके कारण आज कई गाँव वीरान होने की स्थिति में है। जिसके चलते ग्रामीण क्षेत्रों में व्याप्त समस्याओ को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार द्वारा लोगों को अपने ही गांवों में रोजगार प्रदान कराने का निर्णय लिया गया और केंद्र सरकार द्वारा मनरेगा योजना का क्रियान्वयन किया गया जिससे लोगो को 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराया गया जिसमे लोगों को अपने ही गांवों में विकास के कार्यों में लगाया गया। जिस कारण लोगों को रोजगार मिलने के साथ-साथ उनके गांवों का भी विकास होने लगा, जिससे धीरे-धीरे ग्रामीण लोगों की आर्थिक स्थिति में सुधार होने लगा और गांवों से शहरो की और होने वाले पलायन में भी कमी होने लगी। जो सिर्फ लोकतंत्र के द्वारा ही संभव हो सका और इसके साथ-साथ लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण के माध्यम से त्रिस्तरीय व्यवस्था का संचालन सुचारू रूप से होने लगा जिसमे सत्ता का हस्तांतरण जिला, जनपद और ग्राम स्तर पर ऊपर से नीचे की तरफ होने लगा और उत्तरदायित्व नीचे के स्तर वालों का ऊपर के स्तर वालों के लिए बढ़ गया। लोकतंत्र में लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण, सत्ता के हस्तांतरण और जन नीतियों का सुचारू रूप से क्रियान्वयन और सुचारू रूप से संचालित होने के पीछे सबसे प्रमुख योगदान लोकतंत्र का चैथा आधार स्तंभ कहलाने वाली मीडिया का है क्योकि लोकतंत्र में सरकार जनता की होती है जिसमे जनता द्वारा चुने हुए लोग होते है जिनके प्रति ये उत्तरदायी भी होते है। इन प्रतिनिधियों को तानाशाही होने से रोकने का योगदान सिर्फ मीडिया को जाता है जिससे इसे लोकतंत्र का चैथा आधार स्तंभ कहा जाता है जिससे लोगो को सरकार के द्वारा बनाई गई नीतियों और उनकी गतिविधियों आदि के बारे में जानकारी मिलती है। देष-विदेष में हो रही समस्त प्रकार की गतिविधियों को जन-जन तक पहुचने और उजागर करने का कार्य मीडिया द्वारा हर समय किया जाता है जिससे लोगों में जागरूकता देखने को मिलती है, इस कारण लोकतंत्र आज भी भारत देश में जीवित और व्याप्त है।
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Rani, Jyoti. "Indian Rural Reality and 'Babool'." RESEARCH HUB International Multidisciplinary Research Journal 9, no. 7 (2022): 23–25. http://dx.doi.org/10.53573/rhimrj.2022.v09i07.006.

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Abstract:
Indian society is village head. The villages have been self-sufficient since the very beginning. All the needs of the village were fulfilled in the village itself. The British made arbitrary changes in the agricultural system, due to which rural self-sufficiency started to end. After independence, the first responsibility of the Government of India was expected to be rural development, as most of the population was dependent on the agricultural system. Some efforts were also made by the government for this, but poverty and unemployment kept increasing in the village. Based on this, Vivek Rai has written most of the novels. 'Babool' is the first novel of Vivek Roy, in which the realistic depiction of rural poverty, exploitation, neglect etc.
 Abstract in Hindi Language:
 भारतीय समाज ग्राम प्रधान है। गांव प्रारम्भ से ही आत्मनिर्भर रहे हैं। गाॅंव की सभी आवश्गांयकताएं गांव में ही पूरी हो जाती थीं। अंग्रेजों ने कृषि-व्यवस्था में मनमाने बदलाव किए, जिससे ग्रामीण आत्मनिर्भरता समाप्त होने लगी। स्वतंत्रता के पश्चात भारत सरकार का प्रथम दायित्व ग्रामीण विकास होना अपेक्षित था, क्योंकि अधिकांश आबादी कृषि-व्यवस्था पर निर्भर थी। इसके लिए सरकार द्वारा कुछ प्रयास भी किए गए, किन्तु गांव में गरीबी, बेरोजगारी बढती गई। इसी को आधार बनाकर विवेकी राय ने अधिकांश उपन्यास लिखे है। ‘बबूल’ विवेकी राय का पहला उपन्यास है, जिसमें ग्रामीण निर्धरता, शोषण, उपेक्षा आदि का यथार्थ चित्रण हुआ हैं।
 Keywords: सामाजिक विशमता, सुराज, मोहभंग, पंचवर्षीय योजना, बटाई प्रथा।
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प्रा., डॉ. एन. एस. गिरडे. "महात्मा गांधीजींचे ग्राम स्वराज्य : सद्द्याच्या काळातील प्रासंगिकता". उदयगिरी - बहुभाषिक इतिहास संशोधन पत्रिका 01, № 04 (2023): 245–49. https://doi.org/10.5281/zenodo.10117825.

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Saini, Sarita. "Role of Women in Panchayati Raj Institutions: General Overview." RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 8, no. 1 (2023): 133–38. http://dx.doi.org/10.31305/rrijm.2023.v08.n01.017.

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Abstract:
Half of the population of our country is women. Therefore, the overall development of the country cannot happen without the participation of women. In India from time immemorial women worked side by side with men in every walk of life. Indian women have been making useful contributions in every field of national life, in the fields, barns, factories, offices, hospitals, apart from handling the entire household chores. Whether it is a campaign to spread literacy in the villages, or to provide employment to the youth of the village, the problem of drinking water in the village or to protect the crops from diseases, all these tasks are done by rural women with mutual cooperation and everyone's participation in the development works. Sure, you can. Only women can contribute and lead in the direction of prevention of increasing population, protection of environment, providing nutritious and balanced diet to children and above all achieving maximum self-reliance of local resources. Therefore, women have an important role in Panchayati Raj institutions as well.
 Abstract in Hindi Language:
 हमारे देश की जनसंख्या का आधा हिस्सा महिलाएं हैं। अतः देश का समग्र विकास महिलाओं की भागीदारी के बगैर नहीं हो सकता। भारत में अनादि काल से जीवन के हर क्षेत्र में महिलाओं ने पुरुषों के साथ मिलकर काम किया। भारतीय महिलाएं घर-गृहस्थी का पूरा काम-काज निपटाने के साथ-साथ राष्ट्रीय जीवन के हर क्षेत्र में खेतों, खलिहानों, कल-कारखानों, दफ्तरों, अस्पतालों में उपयोगी योगदान करती आई हैं। चाहे गांवों में साक्षरता के प्रसार का अभियान हो, या गांव के युवकों को रोजगार उपलब्ध कराने का मामला हो, गांव में पीने के पानी की समस्या अथवा फसलों को बीमारियों से बचाना हो यह सब कार्य ग्रामीण महिलाएं ही आपसी सहयोग और विकास कार्यों में सबकी भागीदारी सुनिश्चित करके कर सकती हैं। बढती आबादी की रोकथाम, पर्यावरण की रक्षा, बच्चों को पौष्टिक व संतुलित आहार देने और इन सबसे बढ़कर स्थानीय संसाधनों की अधिकाधिक आत्मनिर्भरता प्राप्त करने की दिशा में महिलाएं ही अपना योगदान और नेतृत्व दे सकती हैं। अतः पंचायती राज संस्थानों में भी महिलाओं की अहम् भूमिका हैं।
 Keywords: पंचायत, ग्राम राज, महिलाओं, संस्थानों
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प, ्रो. विनीता वर्मा. "वैश्वीकरण के युग में स ंचार साधना ें क े माध्यमा ें स े भारतीय संगीत की बढ़ती लोकप्रियता". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.887002.

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Abstract:
‘‘आ ना े भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः।’’ अर्था त् - ‘हे परम प ्रकाशक परमात्मा सद्विचार सभी दिशाओं में आयें। हमारे पूर्वज कितने दूर दृष्टा थ े, यह इस बात का द्योतक ह ै कि, जिस व ैश्वीकरण के महत्व का े शेष विश्व के लोग आज समझ पाये ह ैं, उसे हमारे मनीषिया ें ने बह ुत पहते ही निर्धा रित कर ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम्’’ की अवधारणा का े हमारी संस्कृति का आधार बनाया। वर्तमान समय में सम्पूर्ण विश्व में ह ुए तकनीकी विकास एवं संचार क्रान्ति के कारण समस्त विश्व ही एक ग्राम के समान ह ै, क्या ेंकि संचार साधनों ने इसे इतना जोड़ दिया ह ै कि प ूरी दुनिया ही चंद कदमा ें एव ं कुछ घ ंटा ें की दूरी में सिमट र्गइ ह ै और विश्व व्यापीकरण की प ्रक्रिया से पश्चिमीकरण प्रक्रिया में तेर्जी आइ ह ै। इसी प्रक्रिया के परिणामस्वरूप आज भारतीय संगीत के पटल पर जा े शब्द सर्वाधिक सुर्नाइ दे रहा ह ै, वह है- ‘‘ग्लोबल म्यूजि ़क’’। यह वह संगीत है, जा े व ैश्विक स्तर पर सुना जाता ह ै और जिसका उत्पादन-प्रकाशन और वितरण संगीत से संब ंधित उद्योगा ें स े होता ह ै। ‘ग्ला ेबलाइज ेशन, भूमण्डलीकरण या व ैश्वीकरण का अर्थ है- ‘‘विश्व में चारों ओर अर्थव्यवस्थाओं का बढ़ता ह ुआ एकीकरण।’’ ब्लैक बेल डिक्शनरी आॅफ सोशिया ेलाॅजी के अनुसार- ‘भूमण्डलीकरण वह प्रक्रिया है, जिसके अन्तर्गत विभिनन समाजा ें का सामाजिक जीवन, राजनीति और व्यापारिक क्षेत्र से लेकर संगीत, व ेशभ ूषा एव ं जनमिडिया के क्षेत्रा ें तक अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर अत्यन्त दु्रत गति से प्रभावित हुआ ह ै। व ैश्वीकरण अथवा भूखण्डलीकरण जैसी कल्पनाएँ भारतीय संस्कृति में प ्राचीन काल से ही विद्यमान रही ह ै।
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ढोके, प्रा. प्रफुल इ. "संपोषित विकास की आवश्यकता- एक अध्ययन". Journal of Research & Development 16, № 11 (2024): 205–8. https://doi.org/10.5281/zenodo.13853684.

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Abstract:
<strong>सारांश</strong><strong>:</strong> संपोषित&nbsp; विकास को चिरंजीवी विकास, सम्यक विकास आदि अनेक नाम दिये गये हैं। व्यक्ति, समष्टि और सृष्टि तीनों का एक साथ विकास हो, इसे ही विकास कहते हैं। विकास का अंतिम दर्शन 'वस्तुनिष्ठ रूप से क्या अच्छा है', 'व्यक्तिगत, सामूहिक और सृजन के लिए उद्देश्यपूर्ण रूप से क्या अच्छा है' का वर्णन है। इन्हीं विशेषताओं के कारण इस दर्शन से विकास का जो प्रतिमान उभरता है वह है सतत विकास, व्यापक विकास, सभी तत्वों का सामाजिक विकास, संतुलित विकास। यह समुचित विकास का प्रतिमान है । परंतु वर्तमान मे विकास का मतलब सिर्फ भौतिक विकास रह गया है और इसके लिए नैसर्गिक संसाधन पर अत्यंत दबाव बनाया जा रहा है कुछ संसाधन विलुप्त होने की कगार पर है कुछ विलुप्त हो गये है उदाहरणार्थ कुछ प्राणी पक्षी की जाती है नष्ट हो गई है अन्न संकल्प जलचक्र वावी चक्र येऊन जाईल पृथ्वीवर प्रदूषक घटको की मात्रा मे मानव द्वारा प्रियांकालापोसे बडोत्री हुई है बढो तरी हुई है इस प्रदूषण या नैसर्गिक मूलतत्त्व मिळून बदला का विपरीत परिणाम कोणाशी हो गया है इसका विपरीत परिणाम आगे की आने वाली व्हिडिओ को भी भूगोल ना पडेगा इस विपरीत परिणाम सोबत विकास विकार करके क्रिया मे लाना होगा और यही विचित्र इस प्रकार व्यक्ती सृष्टी व समष्टी का संतुलित विकास सही विकास&nbsp;साबित&nbsp;होगा । &nbsp;
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पाठक, शिशिर कुमार. "आदर्श ग्रामः ग्राम स्वराज का एक गांधीवादी सपना". International Journal of Advanced Academic Studies 3, № 1 (2021): 90–93. http://dx.doi.org/10.33545/27068919.2021.v3.i1b.471.

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यादव, सुमित, та अनिल कुमार श्रीवास्तव. "संचार सम्प्रेषण,सामाजिक मूल्य एवं ग्राम-नगर सम्पर्क". Humanities and Development 18, № 02 (2024): 104–7. https://doi.org/10.61410/had.v18i2.153.

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Abstract:
आधुनिक भौतिक एवं प्रौद्योगिक यगु में व्यक्ति के सामाजिक, सास्ं कृतिक, वैज्ञानिक,राजनीतिक जीवन को गतिशील बनान े तथा उन्हें राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय विचारधाराआें से जोड़ने मेंसूचना एवं सम्प्रेषण साधनों का प्रकार्यात्मक महत्व है। ये साधन न केवल व्यक्ति को उसके अधिकारोंके प्रति सचेत कराते हैं, बल्कि उसमें नवीन तथ्यों, ज्ञान एवं प्रविधियों का बोध कराते हुए उसकेवैचारिक जीवन मं े क्रान्तिकारी परिवर्तन का मार्ग भी प्रशस्त करते हैं। इतना ही नहीं, संचार एवं सूचनास्रोतों के नवीन साधन व्यक्ति की दूरदर्शिता, सामाजिक राजनीतिक जीवन के प्रति जागरूकता तथासहभागिता में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभात े हैं।
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डॉ., विठ्ठल घिनमिने. "महात्मा गांधीजीचे ग्राम स्वराज्य व ग्रामविकास संदर्भात विचार". उदयगिरी - बहुभाषिक इतिहास संशोधन पत्रिका 01, № 04 (2023): 262–68. https://doi.org/10.5281/zenodo.10121583.

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Abstract:
महात्मा गांधीजीची ग्रामस्वराज्य व ग्रामविकासाची संकल्पना अभ्यासल्यास असे दिसून येते कि, ग्रामीण विकासाच्या संदर्भात त्यांनी अतिशय समर्पक भूमिका मांडली आहे. ग्रामीण भागामध्ये परंपरागत व्यवसायाची आवश्यकता नैसर्गिक व मानवीय संसाधना योग्य उपयोग करणे गरजेचे आहे. गांधीजीनी ग्रामीण विकासाबाबत संकल्पना म्हणजे भारतीय ग्रामीण समाजाच्या गरजा भागविण्याचे आणि ग्रामीण भागात रोजगार तथा समृद्धी निर्माण करण्याचे आचार प्रधान तत्वज्ञान आहे. गांधीजीचे तत्वज्ञान आपल्या देशाच्या पुरातन व्यवसायावर तथा परंपरेवर आधारित असले तरी ते पूर्णपणे परंपरावादी नाहीत उलट परिवर्तनशील व प्रगतीवादी आहे. ग्रामीण भागातील आरोग्याचे प्रश्न सोडविण्यासाठी स्वच्छ पिण्याचे पाणी, प्राथमिक आरोग्य केंद्र, गावातील वादविवाद, तंटे सोडविण्यासाठी तंटामुक्ती समिती, निर्माण करणे आवश्यक आहे.अशाप्रकारे गांधीजीच्या वरील संकल्पनेचा विचार होणे आवश्यक आहे. ग्रामविकासाकरीता वर्तमानकाळातील जागतिकीकरण, खाजगीकरण व उदारीकरनाच्या नव्या युगात गांधीजीच्या विचाराची त्यांच्या संकल्पनेची नितांत आवश्यकता आहे.
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प्रा., प्रवीण सा. फाळके. "शास्वत ग्रामीण विकास". International Journal of Advance and Applied Research S6, № 18 (2025): 208–12. https://doi.org/10.5281/zenodo.15245359.

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Abstract:
<em>या</em><em> संशोधन लेखात शाश्वत ग्रामीण विकास या संकल्पनेचा अभ्यास करण्यात आला आहे</em><em>. पृथ्वीच्या पृष्ठभागावर अस्तित्वात असलेल्या मर्यादित स्वरूपाच्या साधन संपत्तीचे अस्तित्व संपुष्टात येणाऱ्या मार्गावर आहे. म्हणून साधन संपत्तीचा योग्य व नियोजनपूर्वक वापर होणे महत्त्वाचे आहे. साधनसंपत्तीचे संवर्धन म्हणजे साधन संपत्तीचा वापर किंवा उत्पादन कमी करणे नसून नियोजन व काटकसरीने वापर करून भविष्यकालीन पिढीसाठी साधन संपत्ती कशी जतन करता येईल, या दृष्टिकोनातून विचार करणे होय. शाश्वत ग्रामीण विकास ही संकल्पना ग्रामीण भागातील लोकांचे जीवनमान सुधारणे, नैसर्गिक संसाधनाचे जतन करणे, भविष्यातील पिढ्यासाठी संधी निर्माण करणे यावर आधारित आहे. </em> <em>या</em><em> संशोधनात शाश्वत ग्रामीण विकासाची आवश्यकता आणि उद्दिष्टांची चर्चा करण्यात आली आहे</em><em>. त्यात पर्यावरणीय साधन संपत्तीचे संरक्षण, ऊर्जा, शेती, पाणी, अन्न आणि सामाजिक सांस्कृतिक घटकांचा सहभाग महत्त्वाचा असल्याचे अधोरेखित केले आहे. शाश्वत विकासाची 17 ध्येये आहेत आणि त्याचे ग्रामीण विकासाशी असलेले नाते स्पष्ट करण्यात आले आहे. या ध्येयामध्ये पर्यावरण संतुलन, सामाजिक व आर्थिक विकास, गरिबी निर्मूलन, शाश्वत शेती, पिण्यायोग्य पाणी, शिक्षण, आरोग्य आणि महिला सक्षमीकरण यांचा समावेश आहे. </em>
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गणेश, चिमाजी खेमनर. "भारतीय पर्यटन विकास". Young Researcher 13, S1 (2024): 297 to 303. https://doi.org/10.5281/zenodo.14567016.

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Abstract:
<em>देशाच्या</em><em> </em><em>अर्थव्यवस्थेत</em><em> </em><em>पर्यटनाची</em><em> </em><em>भूमिका</em><em> </em><em>महत्वाची</em><em> </em><em>आहे</em><em>. </em><em>म्हणूनच</em><em> </em><em>भविष्याचा</em><em> </em><em>वेध</em><em> </em><em>घेत</em><em> </em><em>या</em><em> </em><em>भूमिकेला</em><em> </em><em>अधिक</em><em> </em><em>महत्व</em><em> </em><em>प्राप्त</em><em> </em><em>व्हावे</em><em> </em><em>यासाठी</em><em> </em><em>संयुक्त</em><em> </em><em>राष्ट्राच्या</em><em> </em><em>जागतिक</em><em> </em><em>पर्यटन</em><em> </em><em>संघटनेने</em><em> </em><em>यावर्षीच्या</em><em> </em><em>जागतिक</em><em> </em><em>पर्यटन</em><em> </em><em>दिनाला</em><em> &lsquo;</em><em>शाश्वत</em><em> </em><em>पर्यटन</em><em>-</em><em>विकासाचे</em><em> </em><em>साधन</em><em>&rsquo; </em><em>असे</em><em> </em><em>घोषवाक्य</em><em> </em><em>निश्चित</em><em> </em><em>केले</em><em> </em><em>आहे</em><em>. </em><em>जागतिक</em><em> </em><em>पर्यटन</em><em> </em><em>संघटना</em><em> </em><em>पर्यटनाला</em><em> </em><em>चालना</em><em> </em><em>देण्याच्यादृष्टीने</em><em> </em><em>या</em><em> </em><em>क्षेत्राच्या</em><em> </em><em>विविध</em><em> </em><em>पैलूंविषयी</em><em> </em><em>मार्गदर्शन</em><em> </em><em>करते</em><em> </em><em>तसेच</em><em> </em><em>पर्यटन</em><em> </em><em>विकासासाठी</em><em> </em><em>कार्य</em><em> </em><em>करते</em><em>. </em><em>भारतातील</em><em> </em><em>पर्यटन</em><em> </em><em>हे</em><em> </em><em>उत्पन्न</em><em> </em><em>आणि</em><em> </em><em>रोजगार</em><em> </em><em>निर्मिती</em><em>, </em><em>दारिद्र्य</em><em> </em><em>निर्मूलन</em><em> </em><em>आणि</em><em> </em><em>शाश्वत</em><em> </em><em>मानवी</em><em> </em><em>विकासाचे</em><em> </em><em>साधन</em><em> </em><em>म्हणून</em><em> </em><em>उदयास</em><em> </em><em>आले</em><em> </em><em>आहे</em><em>&nbsp;. </em><em>ते</em><em> </em><em>राष्ट्रीय</em><em> GDP </em><em>मध्ये</em><em> </em><em>६</em><em>.</em><em>२३</em><em>% </em><em>आणि</em><em> </em><em>भारतातील</em><em> </em><em>एकूण</em><em> </em><em>रोजगारामध्ये</em><em> </em><em>८</em><em>.</em><em>७८</em><em>% </em><em>योगदान</em><em> </em><em>देते</em><em>. </em><em>पर्यटन</em><em>&nbsp;</em><em>क्षेत्र</em><em> </em><em>सध्या</em><em> </em><em>भारतातील</em><em> </em><em>सर्व</em><em> </em><em>रोजगारांच्या</em><em> </em><em>१२</em><em>.</em><em>९५</em><em>% </em><em>प्रत्यक्ष</em><em> </em><em>आणि</em><em> </em><em>अप्रत्यक्ष</em><em> </em><em>रोजगार</em><em> </em><em>पुरवते</em><em>. </em><em>साहसी</em><em>&nbsp;</em><em>पर्यटनाला</em><em>&nbsp;</em><em>पर्यटकांची</em><em> </em><em>वाढती</em><em> </em><em>पसंती</em><em> </em><em>पाहता</em><em> </em><em>स्थानिक</em><em> </em><em>समुदाय</em><em> </em><em>विशेषत</em><em>: </em><em>महिला</em><em> </em><em>उद्योजकांसाठी</em><em> </em><em>अपार</em><em> </em><em>आर्थिक</em><em> </em><em>संधी</em><em> </em><em>उपलब्ध</em><em> </em><em>आहेत</em><em>.</em>
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डॉ., प्रवीण बबनराव आहेर. "कृषी पर्यटन विकास". Young Researcher S14, № 1A (2025): 17–20. https://doi.org/10.5281/zenodo.14875036.

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Abstract:
भारताच्या ग्रामीण भागातील बहुसंख्य समाज उपजिविकेसाठी शेती क्षेत्रावर अवलंबून आहे .भारतीय अर्थव्यवस्थेत शेती क्षेत्राला अतिशय महत्त्वाचे स्थान आहे .आज आपला देश अन्नधान्याच्या बाबतीत स्वयंपूर्ण आहे, याचे कारण शासनाच्या शेती क्षेत्राच्या विकासाबाबत विविध योजना ,हरितक्रांती, विविध उपक्रम, कार्यक्रम यामुळे शेती क्षेत्राची प्रगती झाल्याचे दिसून येते. अलीकडच्या काळात शेती क्षेत्रातून फळे, फुले, भाजीपाला या क्षेत्रात मोठ्या प्रमाणात उत्पादन होऊन त्याची निर्यात केली जाते.तरीही भारतातील शेतकरी आपली स्वतःची फारशी आर्थिक प्रगती करू शकलेला नाही.तसेच ग्रामीण भागातील दारिद्र्य कमी करण्यातही फारसे यश मिळालेले नाही.यासाठीच ग्रामीण भागात रोजगाराच्या संधी उपलब्ध होण्याच्या दृष्टीने तसेच ग्रामीण भागातील लोकांचे जीवनमान उंचावण्याच्या दृष्टीने कृषी पर्यटन अतिशय महत्त्वाचे आहे. देशातील नैसर्गिक सौंदर्य ऐतिहासिक व धार्मिक स्थळे सांस्कृतिक विविधता रानमेव्यांचे विविध प्रकार यामुळे देशातील व विदेशातील पर्यटकांच्या दृष्टीने कृषी पर्यटनाच्या विकासास उत्तम संधी उपलब्ध आहेत.त्या दृष्टीने महाराष्ट्रामध्ये 1 मे 2004 पासून कृषी पर्यटन या संकल्पनेचा प्रारंभ झाल्याचे दिसून येते.
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टण्डन Tandan, सुरोज Suroj. "नेपालमा आर्थिक विकास: वित्तीय प्रणालीको असल अभ्यास र दिगो विकास". Prashasan: Nepalese Journal of Public Administration 53, № 1 (2022): 156–70. http://dx.doi.org/10.3126/prashasan.v53i1.46327.

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Abstract:
आर्थिक विकासको लागि वित्तीय प्रणालीमार्फत पुँजी, सिप, अनुभव, ज्ञान र प्रविधिलाई समुचित उपयोग गरी सहरदेखि गाउँसम्म आर्थिक क्रियाकलाप बढाउन, पिछडिएको क्षेत्र तथा वर्गको व्यावसायिकता अभिवृद्धि गर्न, कर्जासँगै ज्ञान, पुँजीसँगै सिप, प्रविधिसँगै अनुभव प्रदान गरी साना, मझौला तथा ठुला व्यवसायलाई सहयोग गर्न आवश्यक छ। उत्पादनशील क्षेत्रमा आन्तरिक तथा बाह्य लगानीको अपर्याप्तता, अनुत्पादक क्षेत्रमा केन्द्रित लगानी, न्यून पुँजीगत खर्च, उच्च उत्पादन लागत, आर्थिक वृद्धि र रोजगारी सिर्जनाबिचको कमजोर सम्बन्ध, असमान वितरण, बढ्दो अनौपचारिक क्षेत्रको हिस्सा लगायतका कारण मुलुकको आर्थिक विकासको यात्रामा चासो र चिन्ता थपिएको छ । पन्ध्रौँ पञ्चवर्षीय योजनाले लिएको लक्ष्य एवम् उद्देश्य पूरा गर्न, समग्र मुलुकको सन्तुलित आर्थिक विकास गर्न, सर्वसुलभ पूर्वाधार निर्माण गर्न, अन्तर्राष्ट्रिय सम्बन्धको विकास, मानव पुँजी निर्माण तथा उपयोग, उच्च एवम् दिगो उत्पादन तथा उत्पादकत्व वृद्धि र समतामूलक राष्ट्रिय आय वृद्धि सहित आगामी २० वर्षका लागि मुलुकको दीर्घकालीन लक्ष्यहरू हासिल गर्न वित्तीय प्रणालीको भूमिका महत्त्वपूर्ण रहन्छ । मुलुकको आर्थिक विकास वित्तीय क्षेत्रका नीति तथा रणनीति र आर्थिक, सामाजिक एवम् वातावरणीय दिगो विकासका तीन ओटा खम्बाहरूको कार्यसूचीको कार्यान्वयनमा भर पर्दछ । वर्तमानको आवश्यकतामा कुनै सम्झौता नगरी भावी पुस्ताको आवश्यकता पूरा गर्नको लागि विनास विनाको विकास नै दिगो विकास हो। राष्ट्रको आर्थिक विकासका लागि वित्तीय प्रणालीमा रहेको सम्पत्ति र दायित्वको उचित परिचालन गरी रोजगार, आय, उपभोग, बचत र उत्पादनलाई प्रोत्साहन गर्न, गरिबी घटाउन, वातावरण व्यवस्थापन, समावेशी विकास, सुरक्षित खानेपानी, स्वास्थ्य, शिक्षा आदिको क्षेत्रगत सम्बोधन गर्न र अन्तर्राष्ट्रिय समुदाय समक्ष गरेका प्रतिबद्धताहरू पूरा हुने आर्थिक विकासको खाँचो छ ।
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बर्मन, संदीप सिंह. "जनपद फर्रूखाबाद में स्थायी विकास के पथ प्रदर्शक सिद्धान्त". SCHOLARLY RESEARCH JOURNAL FOR HUMANITY SCIENCE AND ENGLISH LANGUAGE 9, № 46 (2021): 11445–62. http://dx.doi.org/10.21922/srjhsel.v9i46.6656.

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Abstract:
विकास तकनीक का क्रमबद्ध उपयोग है। सभी प्रकार के विकास में तकनीक महत्व बहुत अधिक रहता है। चाहे वह सामाजिक विकास हो, बौद्धिक विकास हो, शारीरिक विकास हो या किसी संस्था तथा शहर का विकास हो। विकास का यह अर्थ बिल्कुल भी नहीं है कि दूसरी वस्तुएं जो वहाँ पर उपलब्ध हैं उनका दोहन करके किया जाए बल्कि चीजों को संरक्षित करना ही विकास है। यह विदित है जनसंख्या धीरे-धीरे बढ़ती चली जा रही हैं वहीं दूसरी ओर जो हमारे संसाधन हैं उनमें कमी होती जा रही है। साथ ही जीवन जीने के लिए एवं इसे सुगम बनाने के लिए अच्छे घर, सड़क, जल, बिजली, कृषि भूमि इत्यादि का बड़े स्तर पर होना अनिवार्य है, ठीक है यह सभी अनिवार्य है तो हमें इनकी ही बात करनी चाहिए। इनका विकास करना चाहिए।
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ज्ञवाली Gnawali, गोकर्णप्रसाद Gokarnaprasad. "नेपालको विकासमा कोभिड - १९ र त्यसपछिको अर्थतन्त्रले पारेको असर : एक समीक्षा". Patan Pragya 12, № 02 (2023): 137–38. http://dx.doi.org/10.3126/pragya.v12i02.64212.

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Abstract:
विकास एक निरन्तर प्रक्रिया हो जसका विभिन्न पक्ष तथा क्षेत्रहरु रहेका हुन्छन र यो बहुआयामिक हुन्छ । सामान्यतया यसलाई सामाजिक, आर्थिक र मानव विकासको रुपमा व्याख्या गरिएको पाइन्छ । विश्वमा सन् १९२० को दशकमा सुरु भएको योजनावद्ध विकास नेपालको सन्दर्भमा सुरुआत भएको करिब ७० वर्ष पुगेको छ । यो विचमा विकास प्रक्रियाले के कति उपलब्धि हासिल गर्याे ? विकास का समस्याहरु के के छन ? भन्ने कुराको विश्लेषण गर्नुपर्ने समय समेत भएको सन्दर्भमा चालु पन्ध्रौ आवधिक योजना र दीर्घकालीन सोचको अवधारणा अघि सारिएको थियो । विकास को यो निरन्तर प्रक्रियामा कोभिड-१९ ले ठुलो अवरोध सिर्जना गर्नुका साथै सो भन्दा पछिको विश्व अर्थतन्त्रमा आएको परिवर्तनले विश्व लगायत सिंगो नेपालको विकास प्रक्रियालाई केही वर्षपछि समेत धकेलेको देखिन्छ । नेपालको विकासका मुख्य पक्ष मानिएका वार्षिक बजेट, आवधिक योजनाहरू, प्रदेश तथा स्थानीय सरकारका विकास कार्य योजनाहरू, विकासको दीर्घकालीन सोच, दिगो विकास लक्ष्य, राष्ट्रिय गौरवका आयोजनाहरू आदिको कार्यान्वयनमा कोभिड -१९, सो पछिको विश्व र नेपालको अर्थतन्त्र र यसको नेपालमा परेको प्रभावको कारणले अस्त व्यस्त बनिरहेका छन् । द्वितीय तथ्यांकमा आधारित रही तयार पारिएको यो लेखले विकास, विकासका आयामहरू, कोभिड -१९ र यस पछिको अर्थतन्त्रले विकास का विभिन्न पक्षहरुमा पारेको असरको विश्लेषण गर्ने छ ।
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पी., जे. चौधरी. "महात्मा गांधीजींची ग्रामविकास संकल्पना व कार्य". उदयगिरी - बहुभाषिक इतिहास संशोधन पत्रिका 01, № 04 (2023): 1085–88. https://doi.org/10.5281/zenodo.10287919.

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Abstract:
भारतातील ग्रामीण भागाच्या विकासात महात्मा गांधीजींच्या विचाराना व कार्याला महत्त्वाचे स्थान आहे. गांधीजींनी भारताच्या सर्वांगीन विकासासाठी ग्रामीण भागाच्या विकासाची आवश्यकता लक्षात घेऊन ग्रामीण भागाच्या विकासाची संकल्पना आपली वृत्तपत्रे व ग्रंथामध्ये मांडलेली आहे. त्याचबरोबर ग्रामीण भागाच्या विकासासाठी प्रत्यक्ष कृतियुक्त कार्यक्रम राबविले. भारताच्या सर्वांगीन विकासासाठी खेड्यांना स्वयंपूर्ण बनविणे आवश्यक आहे. असे गांधीजींचे मत होते. भारतातील लोकशाहीच्या बळकटीकरणासाठी शहर व खेड्यातील लोकांचे जीवन समान स्तरावर विकसीत होणे आवश्यक आहे.याची जाणीव ठेऊन ग्रामीण भागात रोजगार निर्मिती करण्यावर भर दिला. ज्यामुळे खेड्यातील लोकांच्या गरजा खेड्यांमध्येच पूर्ण होतील. ग्रामीण भागातील लोकांना मानवी मूल्य व रोजगार निर्मिती करून देणारी शैक्षणिक व्यवस्था खेड्यांमध्ये राबविली जावी.यावर गांधीजींचा भर होता. गांधीजींच्या ग्राम विकासाच्या संकल्पनेत खेड्यांच्या आर्थिक विकासाबरोबर शिक्षण, रस्ते, स्वच्छता, रोजगार, संस्कृतीचे जतन व संवर्धन इत्यादींचा समावेश होता. गांधीजींची ग्राम विकासाची संकल्पना आदर्श गाव निर्माण करणारी आहे.त्यामुळे गांधीजींच्या ग्रामविकास संकल्पनेचा व त्यांच्या कृतिकार्यक्रमांचा आढावा घेणे आवश्यक आहे.
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