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Journal articles on the topic 'जातिवाद'

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कुमार, प्रिंस. "बिहार की राजनीति में जातिवाद". Shrinkhla Ek Shodhparak Vaicharik Patrika 11, № 9 (2024): H19—H23. https://doi.org/10.5281/zenodo.12685429.

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Abstract:
This paper has been published in Peer-reviewed International Journal "Shrinkhla Ek Shodhparak Vaicharik Patrika"                      URL : https://www.socialresearchfoundation.com/new/publish-journal.php?editID=8896 Publisher : Social Research Foundation, Kanpur (SRF International)  Abstract :  भारत देश में बिहार राज्य का इतिहास, सबसे विविध में से एक है। वर्तमान समय में बिहार, राज्य राजनीतिक स्वार्थों की वजह से जहरीले जातिवाद की जकड़न से जकड़ी हुई है। बिहार की जातिगत विषमताओं के कारण बिहार के लोगों के लिए जुमला काफी लो
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Suthar, Hukma Ram. "Role of Casteism in Indian Politics." RESEARCH HUB International Multidisciplinary Research Journal 10, no. 2 (2023): 90–94. http://dx.doi.org/10.53573/rhimrj.2023.v10n02.019.

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Abstract:
After independence, the modern form of Indian politics developed. Therefore, the possibility was expressed that casteism would be eliminated from India once a democratic system is established in the country, but this did not happen, rather casteism has taken a radical form by entering not only in society but also in politics. Casteism in India has not only affected the economic, social, cultural and religious tendencies here, but has also completely affected the politics. Caste has played an important role in Indian politics. Not only the central but also the state level politics is affected b
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Singh, Bharat. "Politicization of Caste in India." Research Review Journal of Social Science 4, no. 1 (2024): 20–24. http://dx.doi.org/10.31305/rrjss.2024.v04.n01.004.

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Abstract:
After gaining independence, the modern form of Indian politics began to develop. It was expected that with the establishment of a democratic system, casteism in India would come to an end. However, the opposite happened. Casteism not only persisted in society but also infiltrated politics, taking on an aggressive form. Casteism has not only influenced India's economic, social, cultural, and religious tendencies but has also significantly impacted politics. Caste has played a crucial role in Indian politics. Not only central but also state-level politics have been affected by casteism, which po
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कुमारी, डॉ पूनम. "आधुनिक भारतीय राजनीतिक में जातिवाद और छुआछुत के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम". International Journal of Advanced Academic Studies 2, № 4 (2020): 125–31. http://dx.doi.org/10.33545/27068919.2020.v2.i4c.340.

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सेतवान та सिंह ऊधम. "सामाजिक कुरुतियों की रोकथाम में योग की प्रासंगिकता". RECENT RESEARCHES IN SOCIAL SCIENCES & HUMANITIES (ISSN 2348–3318) 10, № 3 (2023): 41–45. https://doi.org/10.5281/zenodo.8396535.

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Abstract:
भारतवर्ष विभिन्नताओं का देश है यहां अनेक धर्मों, जातियों, संप्रदायों के लोग निवास करते हैं, जिनका रहन-सहन भाषा- बोली पहनावा मान्यताएं परस्पर भिन्न है यहां कदम-कदम पर भाषा बदल जाती है, परंतु यह भारत की पहचान है कि अनेकता में एकता दिखाई देती है वहीं दूसरी ओर यह विभिन्न सामाजिक कुरुतियों को जन्म देती है, यह सामाजिक कुरुतियाँ कहीं क्षेत्रवाद के कारण कहीं जातिवाद के कारण तो कहीं भाषावाद के कारण या फिर विभिन्न सम्प्रदाय के कारण समाज में दिखायी देती हैं। भारत में अनेक धर्म एवं सम्प्रदाय फलते-फूलते रहें हैं। उनके अलग- अलग रीति रिवाज होते हैं। यह सभी लोग अपनी अपनी श्रेष्ठता को प्रदर्शित करने के लिए विभ
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दास, बासुदेवलाल. "मिथिलाञ्चलका ब्राह्मण जाति — एक अध्ययन". Academic Voices: A Multidisciplinary Journal 8, № 1 (2018): 109–20. https://doi.org/10.3126/av.v8i1.74059.

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Abstract:
मिथिलाञ्चल क्षेत्र अहिले नेपाल र भारत गरी दुई राष्ट्रहरूको भूभागको रूपमा विभाजित अवस्थामा रहेको छ । यहाँका निवासी दुई राष्ट्रका नागरिक भए तापनि यस क्षेत्रको सामाजिक परम्परा र संस्कृति समान रहेका छन् । हिन्दू समाजमा जाति–व्यवस्था कायम रहेको छ । यस व्यवस्थामा ब्राह्मण जातिलाई सबैभन्दा उच्च जातिको रूपमा मानिएको पाइन्छ । ब्राह्मण जातिलाई भौगोलिक बसोबासको हिसाबले दश प्रकारमा विभाजित गरिएको देखिन्छ । यसमा विन्ध्याचलदेखि दक्षिणका ‘पञ्चद्रविड़’ अन्तर्गत कर्णाट, गुर्जर, तैलंग, द्रविड़ र महाराष्ट्र ब्राह्मणहरू पर्दछन् भने विन्ध्याचलदेखि उत्तरका ‘पञ्चगौड़’ अन्तर्गत उत्कल, कान्यकुब्ज, गौड़, मैथिल र सारस्व
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Dr., Akhilesh Kumar Sharma Shastri. "Vanchiton shoshiton ka Dukh Dard Bayan Karati Premchand Ki Kahaniyan." Aksharwarta XIII, no. VIII (2017): 48–50. https://doi.org/10.5281/zenodo.15605406.

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Abstract:
प्रेमचन्द जी की कहानियों में सामाजिक जड़ता, जातिवादी व्यवस्था, असमानता और उत्पीड़न के विरुद्ध विद्रोह का मुखर स्वर सुनाई दिखाई ही नहीं पड़ता, बल्कि पाठक की आत्मा को झकझोकर रख देता है। कहानियाँ चिरकाल से मनुष्य को आकर्षित करती रही हैं। इनमें वह स्वयं को सहज महसूस करता है। मनुष्य के सुख-दुख, आशा-निराशाएं, अन्तर्भाव एवं आकांक्षाएं उसे स्वाभाविक रूप से इसे स्पर्श करती हैं। प्रेमचन्द जी की कहानियों में दलितों के सभी पक्षों को अभिव्यक्त किया गया है। वे दलित समस्या पर साहित्य सृजन करने वाले सशक्त कहानीकार रहे हैं। 'ठाकुर का कुंआ, 'पूस की रात', 'कफन', 'सद्गति', 'सवा सेर गहूँ', 'मन्दिर', 'दूध का दाम' आ
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प्रीति, भारती. "बिहार की महिलाओं के संघर्ष: स्वतंत्रता संग्राम में उनका प्रभाव और योगदान". Chitransh Academic & Research 01, № 02 (2025): 162–72. https://doi.org/10.5281/zenodo.15305331.

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Abstract:
यह शोध पत्र "बिहार की महिलाओं के संघर्ष: स्वतंत्रता संग्राम में उनका प्रभाव और योगदान" पर आधारित है, जिसमें बिहार की महिलाओं की स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका का विश्लेषण किया गया है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बिहार की महिलाओं ने न केवल प्रमुख आंदोलनों में भाग लिया, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक बदलावों में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। गांधीजी के नेतृत्व में महिलाओं ने सत्याग्रह, असहयोग आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन जैसे आंदोलनों में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया। इस शोध में प्रमुख महिला नेताओं जैसे सरला देवी, इंदु देवी और बासंती देवी के योगदान को विशेष रूप से उजागर किया गया है, जिन्होंने न केवल राजनीत
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., शिखा, та रीना बाजपेयी. "कतिपय राष्ट्रव्यापी समस्याओं के समाधान में वैदिक धर्म की चिन्तन दृष्टि". Dev Sanskriti Interdisciplinary International Journal 1 (16 липня 2019): 42–49. http://dx.doi.org/10.36018/dsiij.v1i.9.

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Abstract:
संवेदना को परिष्कृत करने वाली विधा का नाम धर्म है। वैदिक साहित्य के अनुसार मनुष्य जीवन को सफल तथा समाज को सभ्य एवं सुसंस्कृत बनाने की जो सर्वोच्च आचार संहिता है उसे धर्म के नाम से जाना जाता है। धर्मवेत्ता वह है जो सर्वश्रेष्ठ मानवीय गुणों से सुसंपन्न है तथा समस्त मानव जाति को एक परमात्मा की संतान मानता है। जो तत्व प्राणियों द्वारा धारण किया जाता है तथा इसके द्वारा वह प्राणियों का पालन-पोषण करता हुआ उन्हें सुख-शांति से आप्यायित करता है व अवलंबन देता है उसे धर्म कहते हैं। इस प्रकार सारी विश्व मानवता के लिए धर्म एक ही हुआ, जिसके मार्गदर्शन, संरक्षण में जिसकी छाया तले सभी प्रकार की विचारधारायें सम
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Jain, Dr Shilpa. "Practical Form of Caste and Religion in Indian Democracy." International Journal of Multidisciplinary Research Configuration 1, no. 3 (2021): 43–49. http://dx.doi.org/10.52984/ijomrc1308.

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Abstract:
लोकतंत्र शासन का एक ऐसा स्वरूप है जिसमें सर्वोच्च सत्ता जनता में निहित रहती है और जनता इस सत्ता का प्रयोग नियमित अन्तराल में होने वाले स्वतन्त्र निर्वाचनों मे ंएक प्रतिनिधित्व प्रणाली के माध्यम से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से करती है। किसी शासन व्यवस्था को प्रामाणिक एवं व्यापक लोकतंत्र या सफलतापूर्वक क्रियाशील लोकतंत्र तभी कहा जा सकता है जब सच्चा लोकतंत्र किसी भी देश विशेष की जनता की आशा-आकांक्षाओं को पूरा करने से ही अपना सही मार्ग ढूंढ सकता है अपनी एक सही व्यवस्था की खोज कर सकता है भारतीय लोकतंत्र ने इनमें से अनेक आवश्यक शर्तो को पिछले कई वर्षो में पूरा किया है लेकिन इसे अनेक चुनौतियों का स
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BAGORIA, SUNITA. "Digital Casteism : A Sociological Analysis of Ethnic Identity and Discrimination on Social Media." GYANVIVIDHA 02, no. 03 (2025): 86–94. https://doi.org/10.71037/gyanvividha.v2i3.10.

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Abstract:
यह शोध-पत्र “डिजिटल जातिवाद : सोशल मीडिया पर जातीय पहचान और भेदभाव का समाजशास्त्रीय विश्लेषण” भारत में इंटरनेट और सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के संदर्भ में जाति आधारित असमानताओं के पुनरुत्पादन की पड़ताल करता है। पारंपरिक जातिगत भेदभाव अब केवल भौतिक सामाजिक संरचनाओं तक सीमित नहीं रहा, बल्कि वह डिजिटल स्पेस—विशेषकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स—पर एक नए, अधिक जटिल रूप में सामने आ रहा है। इस शोध का उद्देश्य सोशल मीडिया पर जातीय पहचान, आत्म-प्रतिपादन, ट्रोलिंग, भाषाई बहिष्करण, और डिजिटल विभाजन की प्रवृत्तियों का विश्लेषण करना है। शोध में गुणात्मक और मात्रात्मक दोनों पद्धतियों का प्रयोग किया गया है। द्व
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सीरवी, सरोज. "भारतीय राजनीति में नैतिक अवमूल्यन: कारण व सुझाव". International Journal of Education, Modern Management, Applied Science & Social Science 07, № 01(I) (2025): 33–38. https://doi.org/10.62823/ijemmasss/7.1(i).7139.

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Abstract:
भारतीय लोकतंत्र की आधारशिला नैतिकता, ईमानदारी और जनसेवा के सिद्धान्तों पर रखी गयी थी। लेकिन समय के साथ राजनीति में नैतिक मूल्यों का ह्रास होता जा रहा है। नैतिकता का अर्थ सत्य, ईमानदारी और जिम्मेदारी के साथ कर्तव्यों का पालन करना। आज के दौर में राजनीतिक नैतिकता की स्थिति चिंताजनक है, जहां सत्ता, धन और व्यक्तिगत लाभ के लिए नैतिक सिद्धांतों को दरकिनार किया जा रहा है। आज दुख इस बात का है कि मूल्यों, आदर्शों, विश्वास, नियम, आचार संहिता और संविधान आदि को टेढ़ी निगाह से देखा जा रहा है। मनुष्य अपनी जड़ों से उखड़ चुका है। वर्तमान में भारतीय राजनीतिक, आर्थिक एवं समाजिक व्यवस्था को खोखला करने में सबसे अधिक
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राजवर्धन, विक्रम सखाराम. "हरिशंकर परसाई के कथा साहित्य में राजनीतिक व्यंग्य". International Journal of Advance and Applied Research 12, № 1 (2024): 79–82. https://doi.org/10.5281/zenodo.13951101.

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Abstract:
हरिशंकर परसाई जी के व्यंग कहानी को हम परखते है तो उनके सारी रचनाओं में दबे स्वर को उजागर करने का प्रयास उन्होंने किया है। उनकी जो भी व्यंग कहानी पढते है तो मतिष्क के हर  कोने में एक अजिबसा अनुभव नजर आता है। हम एक ऐसी दुनिया में प्रवेश करते है कि हमें वह दुनिया अपने ही पास है। लेकिन हम उससे बहुत दूर होते है जैसे उनकी एक रचना है जो ‘चमचों कि दिल्ली यात्रा’ जो समाज सुधारक से लेकर जनता के सेवक तक हर आदमी का चमचा होता है। यह बात बताई है। उनकी बहुत सारी कहानीयाँ है जो नाम से ही व्यंग्य का परिचय होता है। इस लिए ‘व्यंग्यकार कन्हैयालाल नंदन का व्यंग्य के संदर्भ में वक्तव्य है कि
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प्रा., किरण सदानंद भोसले. "दलित साहित्य में अभिव्यक्त सामाजिक सद्भावना". International Journal of Humanities, Social Science, Business Management & Commerce 08, № 03 (2024): 231–34. https://doi.org/10.5281/zenodo.14581249.

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Abstract:
‘सद्भावना’ मनुष्य समाज की नीव है। इसी भावना के कारण मनुष्य जाति समाज बनकर उभर आयी है। ‘सद्भावना’ के बिना मनुष्य समाज में मानवीयता पनप ही नहीं सकती। अतः मनुष्य को पशु से अलग बनाने वाली यहीं भावना है। दो व्यक्ति या दो जनसमूहों में आपसी संबंध निर्धारित करने का कार्य इसी के आधार पर होता है। इसलिए मानव समाज के हर क्षेत्र में इसका अस्तित्व नाज़मी है। साहित्य समाज का ऐसा दर्पण है कि जिसमें उसकी सारी भावनाएँ प्रतिबिंबित एवं अभिव्यक्त होती है। अतः हिंदी दलित साहित्य में ‘सामाजिक सद्भावना’ वह नजारा दिखाई देता है जिसमें जातिवाद, वर्ण व्यवस्था, लिंग भेद, धर्मवाद, आडंबर
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दुलाल Dulal, लोकनाथ Loknath. "मोरङ्गिया थारू समुदायमा प्रथाजनित कानुन एवम् लोकविश्वास {Customary Law and Folk Beliefs in Morangia Tharu Community}". NUTA Journal 8, № 1-2 (2021): 185–99. http://dx.doi.org/10.3126/nutaj.v8i1-2.44120.

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Abstract:
मोरङिया थारू जातिमा प्रचलनमा रहेको प्रथाजनित कानुन एवम् लोकविश्वाससँग सम्बन्धित विविध पक्षको विश्लेषण यो अनुसन्धानात्मक लेखमा गरिएको छ । प्रथाजनित कानुन एवम् लोकविश्वास अमूर्त संस्कृतिको सामाजिक व्यवहार, धार्मिकअनुष्ठान तथा चाडपर्व उत्सव विधाअन्तर्गत पर्ने एउटा सशक्त पक्ष हो । सम्बन्धित जातीय समुदायलाई अनुशासित तथा विशिष्ट बनाउनुका साथै दुनियामा पृथक् पहिचान स्थापित गर्न संस्कृतिको यो पक्षले उल्लेखनीय योगदान पु¥याउँदछ । समाजलाई अनुशासित, मर्यादित, प्रभावकारी, व्यवस्थित र नियमन गर्ने मोरङिया थारू समुदायका केही नीति, नियम आचारसंहिता छन् । ती अमूर्त सांस्कृतिक पक्ष यस जातिका प्रथाजनित कानुन हुन्
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केसी KC, राजु Raju. "दनुवार जातिको सामाजिक संरचनाः एक समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण {Social Structure of the Danuwar Caste: A Sociological Approach}". Voice of Teacher 7, № 01 (2022): 171–82. http://dx.doi.org/10.3126/vot.v7i01.51042.

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Abstract:
यो अध्ययनमा दनुवार समुदायको सामाजिक संरचनाको विश्लेषण गरिएको छ । नेपालमा पाइने विभिन्न जनजातिहरूमध्ये दनुवार पनि एउटा महत्वपूर्ण समुदायभित्र पर्दछ । महत्वपूर्ण सांस्कृतिक विशेषता भएकै कारण दनुवार समुदायलाई नेपाली समाज एवम् संस्कृतिको बहुमूल्य आभूषण मानिएको हो । अन्य जातीय समुदायका भन्दा पृथक सामाजिक/सांस्कृतिक विशेषता भएका कारण यो समुदायलाई महत्वका साथ हेर्ने गरिन्छ । अतः अध्ययन अनुसन्धानका लागि यो समुदायलाईमहत्वपूर्ण विषयका रूपमा लिन सकिन्छ । दनुवारसमुुदायमा अन्य समुुदायमा जस्तै जातीय पहिचानका छुट्टै आधारहरू छन् । मौलिकताको परिचय दिने विशेषता पाइन्छन् । सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, धार्मिक, भ
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Chejara, Yadvendra. "Moral Value Consciousness and Equality in Ratnakumar Sambharia's Stories." RESEARCH HUB International Multidisciplinary Research Journal 11, no. 9 (2024): 31–35. https://doi.org/10.53573/rhimrj.2024.v11n9.007.

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Abstract:
This article focuses on ethical values and their social impact, including the concept of moral consciousness and its influence on various aspects of society such as social, cultural, religious, political, and economic upliftment. It highlights the importance of ethical principles such as compassion, kindness, altruism, values, and traditions. Furthermore, it demonstrates how issues like casteism, feudal exploitation, and social stereotypes challenge the concepts of ethical values and equality. The article portrays the exploitation and struggles of the Dalit community and other marginalized gro
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आनंद, अभिषेक. "चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु : दलित-बहुजन चेतना के पुरोधा". INTERNATIONAL JOURNAL OF SCIENTIFIC RESEARCH IN ENGINEERING AND MANAGEMENT 09, № 07 (2025): 1–9. https://doi.org/10.55041/ijsrem51501.

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Abstract:
चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु भारतीय समाज में सामाजिक न्याय, समता और आत्मसम्मान की चेतना को जगाने वाले एक प्रखर समाजचेतक चिंतक और दलित चेतना के पुरोधा थे। उन्होंने न केवल बहुजन दलित समाज के शोषण, दमन और वंचना के विरुद्ध आवाज़ उठाई, बल्कि उनके ऐतिहासिक गौरव और सांस्कृतिक विरासत को पुनर्स्थापित करने का कार्य भी किया। उनका चिंतन दलितों को एक नई पहचान, आत्मविश्वास और संघर्ष की दिशा प्रदान करता है। जिज्ञासु का जन्म ऐसे समय में हुआ था जब भारतीय समाज कठोर जातिवाद, छुआछूत और ब्राह्मणवादी वर्चस्व से ग्रस्त था। उन्होंने इस सामाजिक असमानता के विरुद्ध कलम को हथियार बनाकर संघर्ष किया। उनकी रचनाएँ — आदि निवासियो
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Poonam. "From Ambedkar's Perspective: Buddhism." RESEARCH HUB International Multidisciplinary Research Journal 12, no. 5 (2025): 89–94. https://doi.org/10.53573/rhimrj.2025.v12n5.010.

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Abstract:
Dr. B.R. Ambedkar’s perspective on Buddhism reflects his deep understanding of religion as a tool for social transformation rather than mere spiritual salvation. Rejecting caste-based discrimination, ritualism, and blind faith prevalent in Hinduism, Ambedkar embraced Buddhism for its rational, moral, and egalitarian values. He believed that true religion should be based on reason, compassion, and equality, and must align with scientific principles. Ambedkar viewed Buddha not as a divine incarnation, but as a human who offered a logical and ethical path for societal well-being. His adoption of
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हमाल Hamal, सीता Sita. "चमार जातिको इतिहास". HISAN: Journal of History Association of Nepal 10, № 1 (2024): 231–39. https://doi.org/10.3126/hisan.v10i1.74936.

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Abstract:
चमारलाई नेपाली शब्दसागरमा छालाको मालसामान बनाउने एक जाति, सार्की, मिझार, मिजार (कदर गर्दा) भनिएको छ । चमार जाति भारतको विहार र उत्तरप्रदेश लगायत बङ्गालबाट ईशाको पहिलो शताब्दीतिर नेपालमा प्रवेश गरेर तराई र मधेसका बस्तीहरूमा बसोबास गरेका हुन् । यस जातिलाई नेपालको पहाडी क्षेत्रमा सार्की, हरिजन भनिन्छ भने तराईका विविध क्षेत्रमा यिनीहरूलाई चमार, राम, हरिजन र रविदास भनेर सम्बोधन गरिन्छ । चमार जातिको चर्चा आर्य सनातन हिन्दु धर्म, वर्णव्यवस्था, धर्मग्रन्थ, रामायण र महाभारत, पुराण र उपनिषद र वंशावलीहरूमा पनि पाइएको छ । नेपाली सभ्यता तथा संस्कृतिभित्र अनेकौं जातीय समूहहरूको सिर्जना र संरचना हुँदै दलित स
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Yadav, Rekha. "Caste Reservation Politics in Rajasthan: With Special Reference to Ashok Gehlot's Tenure." RESEARCH HUB International Multidisciplinary Research Journal 9, no. 7 (2022): 35–38. http://dx.doi.org/10.53573/rhimrj.2022.v09i07.009.

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Abstract:
The fundamental element of the political system of Rajasthan is the interrelationship between the social structure and the political system. In a state like Rajasthan where there has been little modernization, caste orientation is its important feature, the caste structure is used by the political leadership for an effective and stable political system. If we look at the practical nature of Rajasthan's politics and assess it from the first general election, then it is clear that gradually the political ideals and principles became less important in the parties, then the basis of leadership inc
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गुरागाईं, उमादेवी. "‘एक चिहान’ उपन्यासमा शक्ति सम्बन्ध". Cognition 3, № 1 (2021): 126–32. http://dx.doi.org/10.3126/cognition.v3i1.55660.

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Abstract:
प्रस्तुत लेख हृदयचन्द्रसिंह प्रधानद्वारा लेखिएको एक चिहान उपन्यासको शक्ति सम्बन्धसँग सम्बद्ध छ । शक्तिसम्बन्धलाई सांस्कृतिक अध्ययनका क्षेत्रमा विकसित एउटा नवीन समालोचनात्मक सैद्धान्तिक अवधारणा मानिन्छ । शक्ति सम्बन्धी मान्यतालाई मसेल फुको र अन्तोनियो ग्राम्चीले अघि सारेका हुन् । समाजमा अस्तित्वमा रहेका विभिन्न लिङ्ग, जाति, वर्ग तथा क्षेत्रीयताका बीचमा शक्तिको के–कस्तो सम्बन्ध रहेको छ भन्ने कुरालाई नै शक्तिसम्बन्ध भनिन्छ । यहाँ यसै मान्यताको आधारमा रही उपन्यास भित्र रहेको शक्तिसम्बन्धलाई विश्लेषण गरी निष्कर्ष निकालिएको छ । उपन्यासमा शक्तिसम्बन्धको सूक्ष्म विश्लेषण गर्नका लागि मूलतःलिङ्ग, वर्ग त
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सौरभ, कुमार, та नेहा गुप्ता. "भारतीय लोकतन्त्र एवं जातिवादी राजनीति". International Journal of Political Science and Governance 1, № 2 (2019): 17–20. http://dx.doi.org/10.33545/26646021.2019.v1.i2a.15.

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डॉ., यशवीर दहिया. "डॉ. रामकुमार घोटड़ की लघुकथाओं में समाज के विभिन्न पक्ष". International Journal of Advance Research in Multidisciplinary 1, № 1 (2023): 923–25. https://doi.org/10.5281/zenodo.15051696.

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Abstract:
दर्शन मिलवा के उपन्यासों की भाषा, सरल, प्रवाहमयी और संवेदनशील है, उन्हें किसी एक भाषा विशेष में बंधना स्वीकार नहीं है। वे बोलचाल की भाषा का प्रयोग करते हैं, जिससे पात्र और संवाद सस्ती वास्तविक प्रतीत होते हैं। उनकी भाषा में संजीव वर्णन, भावात्मक गहराई, काव्यात्मक सौन्दर्य और समाज क्या यथार्थ प्रतिबिम्ब होता है। संवाद प्रधानता, रूपकों व प्रतीकों का प्रयोग भी उनकी भाषा को प्रभावशाली बनाता है। इस प्रकार उनकी भाषा पाठकों को कथानक से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
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सापकोटा Sapkota, ढाकाराम Dhakaram. "चेपाङ जाति र यिनका सांस्कृतिक परम्पराहरू". HISAN: Journal of History Association of Nepal 9, № 1 (2023): 71–80. http://dx.doi.org/10.3126/hisan.v9i1.64034.

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Abstract:
नेपालमा रहेका विभिन्न जातजातिहरूमध्ये चेपाङ जाति पनि एक हो । लेखमा नेपालका केही निश्चित क्षेत्रमा बसोबास गर्ने सिमान्तकृत समूहअन्तर्गत रहेको चेपाङ जातिको सांस्कृतिक अवस्थाका बारेमा अध्ययन गरिएको छ । यो जाति निकै लामो समयसम्म राजनीतिक, शैक्षिक, आर्थिकलगायतका विभिन्न स्वरुपमा पिछडिएको अवस्थामा रहेको थियो । प्रकृतिपूजन दृष्टि, संयुक्त परिवारको सामाजिक संरचना, आदिम प्रकारको चालचलन आदि यस जातिका मुख्य विशेषता हुन्। वर्तमान समयमा भने चेपाङ जातिको यस मौलिक पहिचानमा धेरै परिवर्तन आएको छ । समयक्रमसँगै अन्य जाति र समुदायसँगको सम्पर्कले कति कुरा उनीहरूबाट सिक्दै आएका भए तापनि सांस्कृतिक परम्पराहरु सम्पन्
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प्रा., तानाजी रामभाऊ बोराडे. "स्वामी दयानंद सरस्वती यांचे तत्वज्ञान". International Journal of Advance and Applied Research S6, № 7 (2025): 107–13. https://doi.org/10.5281/zenodo.14784532.

Full text
Abstract:
<em>स्वामी दयानंद सरस्वती हे वेदांनी जीवनाचे मार्गदर्शन करणारे तत्त्वज्ञानी होते</em><em>. त्यांचे तत्त्वज्ञान मुख्यतः वेदांतील शाश्वत सत्यावर आधारित होते, ज्यामध्ये त्यांनी अंधश्रद्धा, मूर्तिपूजा, आणि पंथमतांच्या अडथळ्यांपासून मुक्त होण्याचे आवाहन केले. स्वामी दयानंद सरस्वती यांनी "एकश्वरवाद" (Monotheism) आणि "निराकार ब्रह्मवाद" यावर जोर दिला. त्यांचे तत्त्वज्ञान ब्रह्माच्या निराकार स्वरूपावर विश्वास ठेवते आणि जगातील सर्व वस्तूंचे आणि घटनांचे मूळ ब्रह्मातच आहे, असे मानते. त्यांच्या शिक्षणाने भारतीय समाजातील धर्म, संस्कृती, आणि समाजव्यवस्था यांमध्ये एक महत्त्वपूर्ण क्रांतिकारक बदल घडवून आणला.
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तमू Tamu, गौरी Gauri. "तमू संस्कृतिको समाजशास्त्रीय अध्ययन". Samaj Anweshan समाज अन्वेषण 1, № 2 (2023): 37–43. http://dx.doi.org/10.3126/anweshan.v1i2.65368.

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Abstract:
प्रस्तुत अध्ययनमा प्रजाति, परिवेश र क्षणका आधारमा तमू (गुरुङ) संस्कृतिको विश्लेषण गरिएको छ । प्रजाति, परिवेश र क्षणका आधारमा कुनै पनि जातिका जातीय संस्कृतिको अध्ययन गरेर उक्तजातिका जातिगत विशेषताहरू रहनसहन, चाडपर्व, वेशभूषा, विश्वास तथा जीवनदर्शन बारे जानकारी पाउन सकिन्छ भन्ने मान्यता रहेको छ । यही मान्यताका आधारमा यस अध्ययनमा ल्होसार अर्थात्त तमू जातिमा नयाँ वर्ग र वर्षको सुरुवात हुने दिन, पय अर्थात् मृत्यु संस्कार र रोधीं अर्थात् तमू जातिको ऐतिहासिक सांस्कृतिक धरोहरको अध्ययन गरिएको छ । गुरुङ जाति संसारको जुनसुकै ठाउँमा बसोबास गरे तापनि उनीहरूले प्रारम्भिक जीवनकालमा सिकेका जातिगत विशेषताहरू ख
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Talekar, P. R. "महात्मा जातिराव फुलेंचे शेतिविषयक विचार". International Journal of Advance and Applied Research 5, № 17 (2024): 316–19. https://doi.org/10.5281/zenodo.12526031.

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Abstract:
egkRek tksfrjko Qqys gs yksd&rsquo;kkgh O;oLFkspk iqjLdkj dj.kkjs] yksd&rsquo;kkgh dzkarhph ewyHkwr rRos fo&rsquo;kn dj.kkjs] vkfFkZd o lkekftd lekursyk egRo ns.kkjs Fkksj dzkarhdkjd] lektlq/kkjd egkjk"V&ordf;kP;k ekrhr tUekyk vkys- vkf.k nhunqcG;kaps] 'kksf"kr&amp;ihMhr o oafpr] vU;k;kus xzLr vlysY;k 'ksrd&Uacute;;kaps dSokjh &gt;kys- 'ksrd&Uacute;;kaP;k nq%[k o nkfjnz;keqGs rs lkrR;kus vLoLFk vlk;ps- egkRek T;ksfrck Qqys ;kauh fyfgysY;k 'ksrd&Uacute;;kapk vlwM] xqykefxjh o lkoZtfud lR;/keZ ;k xzaFkkrhy fy[kk.kkuqlkj txkrhy ,danjhr loZ ns&rsquo;kkapk bfrgkl c?khrY;kl 'kwnz 'ksrd&Uacute;;kaph
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Rani, Seema, Shivani Sharma, and Rajesh Kr Sharma. "Social impact of biopic in Hindi cinema – social change and cultural practice." RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 8, no. 11 (2023): 146–50. http://dx.doi.org/10.31305/rrijm.2023.v08.n11.022.

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Abstract:
Biopic films in Hindi cinema are an important medium to present the life stories of individuals of personal and social importance, which have a significant impact towards social change and cultural practice. Through these films, society gets a true perspective of the contributions of those great individuals who take steps towards significant change in their fields. Biopics help reveal processes of social change. These films highlight various social issues, such as women's rights, racism, and personal freedom. He features stories of individuals who have inspired him to turn toward prosperity, s
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Pradhan, Reeta. "भारतमा नेवारी समाजको स्वरूप तथा नेवारी लोक–सांस्कृतिक सन्दर्भ". Prajnik Bimarsha प्राज्ञिक विमर्श 7, № 13 (2025): 112–17. https://doi.org/10.3126/pb.v7i13.77728.

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Abstract:
आजको भारतीय नेपाली समाज–सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्यमा नेवारी जाति र उनीहरूको संस्कार–संस्कृति बलियो भएर उभिन सकेको छ । विभिन्न प्रकारका अभावहरूमाझ लड्दै भिड्दै भए पनि भारतेली नेपाली नेवारी समाज र नेवारी संस्कृतिले आफ्न अस्तित्व र अस्मिता यथावत् कायम गर्न सक्षम बनेको छ । नेवार जातिको पूर्वपरम्परादेखि चलेको कला र संस्कृति हेर्दा यसको एउटा बेग्लै र छुट्टै किसिमको ऐतिहासिक मूल्य र मान्यता रहेको देखिन्छ । भारतका विभिन्न राज्य र अञ्चलहरूमा सञ्चालित नेवारी सङ्गठन वा नेवारी समाजले नेवारी कलासंस्कृतिको जगेर्ना र उत्थान गर्नमा अग्रणी भूमिका निर्वाह गरेको जानकारी पाइन्छ । भारतको नेपाली लोकवार्ता अध्ययनको परि
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Baidhya Tamang, Santosh. "सीताबडामहारानीको परसंस्कृतिग्रहण र प्रभाव". Sahayaatra सहयात्रा 8 (10 липня 2025): 59–67. https://doi.org/10.3126/sahayaatra.v8i1.80934.

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Abstract:
राणा शासनको समयमा राष्ट्र र राज्यको प्रमुख राजा भए तापनि राजाहरू आलङ्कारिक अवस्थामा मात्र सीमित रहेको तथ्य विभिन्न ऐतिहासिक दस्तावेज तथा पुस्तकहरूबाट प्रष्ट हुन्छ । उक्त आलङ्कारिक शासन प्रणालीमा पहिलो कानुन मुलुकी ऐन १९१० मार्फत तहगत जातीय ब्यवस्था लागू गरी कुन कुन जाति कुन वर्ग तथा के कस्तो सामाजिक हैसियतमा रहने र उक्त वर्ग र हैसियत अनुसार के कस्ता कार्यहरू गर्ने नगर्ने तथा जातीय वर्ग अनुसार छुट्टा छुट्टै दण्ड सजायको भागिदार रहने कुरा उल्लेख गरेको पाइन्छ । यद्यपि यस लेखमा उक्त कानुनी व्यवस्थामा पनि कथित तल्लो सामाजिक वर्गका जातिहरूमध्ये केहीले के कसरी आफ्नो सामाजिक हैसियत र वर्ग उच्च जाति तथा
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Rai, Sarita. "राई जातिमा प्रचलित पगरी संस्कृति". Kirat Pragya किरात प्रज्ञा 4 (27 травня 2025): 91–100. https://doi.org/10.3126/kp.v4i1.79189.

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Abstract:
पगरी संस्कृति राई समुदायमा प्रचलित एक पवित्र मुन्दुमी शिरपोस हो । यो शिरमा गुथिने वस्त्र, श्रेय, मान, पद, राज्यव्यवस्थाको मान, सम्मानको अर्थमा प्रयोग हुन्छ । फेटा र पगरी दुवै शिरपोस भए तापनि भूमिकाको आधारमा भने अर्थ फरक–फरक रहेको छ । राईहरु बहुभाषी भएकाले पगरीलाई फेटा, दोलो, मुजुरी÷शिरपोस÷आदि नामले सम्बोधन गर्ने गर्दछन । यसको प्रयोग विशेष गरी किरात राईहरुले सांस्कृतिक शुभ–कार्यहरुमा मुख्य व्यक्ति व्यक्तित्वहरुलाई फेटा गुथाएर सम्मान गर्ने किरात राईहरुको परम्परा रहेको छ । किरात राई मुन्दुमअनुसार सायाचोङ्/सायाबूङ् (शिर उठाउँदा) नछुङले मुन्दुम रिसिया गाउँदै फेटा गुथाएर सायाचोङ् (शिरउठाउने) गर्ने प
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Tamang, Ajitman. "नेवाः व तामाङ जातिया स्वापू". Nepalbhasha 4, № 2-3 (2025): 1–9. https://doi.org/10.3126/nepalbhasha.v4i2-3.82511.

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Abstract:
नेवाः व तामाङ जाति नेपाःया आदिवासी खः । नेवाः जातिया घनत्व नेपाःगाःया दथुइलाक दुसा स्वयम्भु, खास्ती व डांडाय‍् तामाङ जातिया पुलांगु बसोवास दु । नेवाःजातिया ऐतिहासिक थाय्‌ मूलतः नेपालमण्डल खः । भाषिक, संस्कृतिक, सामाजिक, धार्मिक आदि नेवाः राष्ट्र नेपाःगाः हे खः। नेपाःगालय्‌ नेवाः १२म्ह थकू जुजुपिनिगु संघीय शासन प्रणाली खनेदु । नेवाः राष्ट्रया भाय‍् नेपालभाषा खः । तामाङ जातिया ऐतिहासिक थाय्‌ मूलतः ताम्सालिङ खः । अथे हे ताम्सालिङ दुने तामाङ जातिया सांस्कृतिक, भाषिक व धार्मिक लागाकथं १२म्ह थकू जुजुपिनिगु स्वंगू शासकीय लागा दु । उकियात १२ गोर्स्याङ्, १२ लाच्याङ् व १२ तेमाल धाइ । थ्व स्वंगू प्रादेशि
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Dr. Bimal Malik. "हिंदी दलित साहित्य: विमर्श और चुनौती". Innovative Research Thoughts 10, № 3 (2024): 318–22. https://doi.org/10.36676/irt.v10.i3.1604.

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Abstract:
दलित साहित्य हिंदी साहित्य की एक महत्वपूर्ण धारा है जो सामाजिक अन्याय, शोषण, भेदभाव और जातिवादी व्यवस्था के विरुद्ध आवाज़ उठाता है। यह साहित्य दलितों के अनुभवों, संघर्षों, पीड़ाओं और आत्मसम्मान की खोज को व्यक्त करता है। दलित साहित्य का उद्देश्य न केवल कला या सौंदर्य का सृजन करना है, बल्कि सामाजिक परिवर्तन की दिशा में एक प्रभावशाली हस्तक्षेप करना भी है।
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पण्डित Pandit, शशी थापा Shashi Thapa. "थामी जातिमा राजनीतिक परिवर्तनले पारेको सामाजिक असर". Samaj Anweshan समाज अन्वेषण 2, № 1 (2024): 18–27. http://dx.doi.org/10.3126/anweshan.v2i1.68560.

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Abstract:
नेपालमा रहेका विभिन्न जातजातिहरूमध्ये थामीवा थाङ्मी जाति एक महत्त्वपूर्ण जाति हो । यो शोधमूलक लेख नेपालको दोलखा जिल्लामा बसोबास गर्दैआएका थामी जातिको बारेमा गरिएको खोज मूलक अध्ययन हो । थामी जातीको उत्पत्तिका बारेमा र जीविकोपार्जन गर्ने क्रममा भोगका भोगाइहरूद्वारा प्राप्त अनुभवको आधारमा यो अनुसन्धान लेख तयार गरिएको छ । यसमा थामी जातिका रहनसहन भेषभुषा, गरगहना, संस्कारहरू, पेसा व्यवसायका बारेमा हाल यसमा परेको असरका बारेमा अध्ययन गरिएको छ । यो लेख थामी जातिको परम्परागत जीवनशैली जुन मौखिक र श्रुतिपरम्पराका आधारमा एकको मुखबाट अर्काको मुख, एक पुस्ताबाट अर्काे पुस्तासम्म हस्तान्तरण हुँदै आएको थामीहरूक
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Rai, Bhakta. "सन्थाल जातिमा प्रचलित प्रथाजनित संस्था र न्यायप्रणाली". Indigenous Nationalities Studies आदिवासी जनजाति अध्ययन 3, № 3 (2025): 75–81. https://doi.org/10.3126/ins.v3i3.80959.

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Abstract:
सन्थाल जातिमा मन्झी पारगाना परिवारभन्दा एक तह माथिको संरचना हो । मन्झीहाडाम मन्झी पारगाना गाँउको प्रमुख व्यक्ति हुन् । उनलाई औपचारिक रूपमा गाउँको प्रवक्ता र प्रतिनिधिको रूपमा पनि लिइन्छ । गाँउको सबै महत्वपूर्ण घटनाहरू मन्झीलाई सुसुचित गर्नुपर्छ र सबै सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक अवसरमा मन्झीको सल्लाह, अग्रसरता र सहभागिता अनिवार्य हुन्छ । मन्झीको प्रमुख जिम्मेवारी भनेको परम्परागत न्यायप्रणालीलाई सुचालु गर्न पनि हो तर यसरी निर्णय गर्दा लोकतान्त्रिक प्रकिया पुर्याएर सबै गाउँका सदस्यहरूको सर्वसम्मतिबाट गर्ने गरिन्छ । सन्थालहरू कुनै ठाउँमा बसोबास गर्ने बित्तिकै पाँच प्रमुख र दुई सहयोगी सर्वसम्मतिबाट
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भट्टराई Bhattarai, नीलमणि Nil Mani. "ठूलोदुम्मामा ढुकुरसिंह पूजाको प्रचलन तथा प्रभाव". Medha: A Multidisciplinary Journal 7, № 1 (2024): 45–50. https://doi.org/10.3126/medha.v7i1.73890.

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Abstract:
नेपाली समाज बिविधतामा एकता भएको समाज हो । यहाँ विभिन्न भाषा, धर्म, संस्कार र संस्कृतिहरू रहेका छन् । नेपाल बहुजातीय देश भएकोले यहाँका प्रत्येक जाति र सम्प्रदायका आ–आफ्नै रीतिरिवाज र संस्कृतिहरू प्रचलित छन् । नेपालको पूर्वीक्षेत्रमा प्रचलित एउटा संस्कृति ढुकुरसिंह पूजा हो, जसलाई राजगैयाको नामले पनि चिनिन्छ । यो पूजा भोजपुर जिल्ला पौवादुङमा वार्ड नं. ६ मा बसोबास गर्ने राई जातिमा प्रचलित छ तर यो राई जातिका सबै पाछाहरूमा भने छैन । राई जाति यहाँको पुरानो जाति हो । यस्तै क्रममा यस अध्ययन क्षेत्रमा प्रचलनमा रहेको ढुकुरसिंह पूजाको अध्ययन गर्ने क्रममा प्राप्त लिखित स्रोत तथा अध्ययन क्षेत्रका बूढापाका,
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प्रियंका, प्रिया, та विश्वनाथ झा डॉ. "अनुसूचित जाति की महिलाओं के शिक्षा एवं निर्धनता की स्थिति: एक अध्ययन". International Journal of Advance and Applied Research 3, № 7 (2022): 16–19. https://doi.org/10.5281/zenodo.7426295.

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Abstract:
इस आलेख में अनुसूचित जाति की महिलाओं के शिक्षा एवं निर्धनता की स्थिति का अध्ययन किया गया है। अनुसूचित जातियाँ, जिन्हें अछूतों के रूप में वर्गीकृत किया गया है, भारत की उच्च जातियों के नीचे मौजूद प्रतीत होती हैं। अनुसूचित जाति की महिलाएं भारतीय समाज में परंपरागत रूप से उदास और उपेक्षित हैं। वे आर्थिक पदानुक्रम में भी सबसे निचले पायदान पर हैं, जिनके पास अपनी खुद की कोई जमीन नहीं है। शिक्षा ही एक ऐसा हथियार है, जिससे समाज में अनुसूचित जाति की महिलाओं की स्थिति में सुधार किया जा सकता है। सरकारी और गैर-सरकारी एजेंसियों ने अनुसूचित जाति की महिलाओं के सुधार के लिए बहुत प्रयास, प्रावधान और आरक्षण किए ह
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प्रा., डॉ. बल्लोरे एस.के. "दयानंद सरस्वती यांचे अंधश्रद्धा आणि सामाजिक सुधारणावादी चळवळ". International Journal of Advance and Applied Research S6, № 7 (2025): 331–34. https://doi.org/10.5281/zenodo.14792851.

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Abstract:
दयानंद सरस्वती हे एक महान भारतीय तत्त्वज्ञ, समाजसुधारक आणि आर्य समाज या सामाजिक व धार्मिक संघटनेचे संस्थापक होते. त्यांनी हिंदू धर्मातील अंधश्रद्धा, कर्मकांड, आणि रूढी-परंपरांचा विरोध केला व सत्य आणि वेदाधारित विचारधारेचा प्रचार केला. त्यांची मुख्य शिकवण "वेद ही ज्ञानाची खरी स्रोत आहेत" या तत्त्वावर आधारित होती. दयानंद सरस्वती यांनी हिंदू धर्मातील मूर्तिपूजा, कर्मकांड, अंधश्रद्धा, आणि जातिभेद यांना आव्हान देण्यासाठी १८७५ साली मुंबई येथे आर्य समाजाची स्थापना केली. "सत्यार्थ प्रकाश" हे त्यांचे सर्वांत महत्त्वाचे साहित्य आहे. यात त्यांनी वेदांवरील आधारित जीवनपद्धती आणि सामाजिक सुधारणा याबद्दल मार
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पाण्डेय, शैलेन्द्र कुमार, та हेमन्त कुमार सिंह. "‘‘अयोध्या के जातीय मंदिरों का सामाजिक योगदान’’". Humanities and Development 18, № 02 (2024): 89–93. https://doi.org/10.61410/had.v18i2.150.

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Abstract:
भारतीय सामाजिक व्यवस्था में धर्म एवं मंदिरों को सामाजिक अनुशासन एंव सामाजिक नियंत्रणके साधन के रूप में देखा गया है। वैसे तो अयोध्या का परिचय ही भगवान श्री राम की जन्म स्थलीके साथ-साथ राममंदिर के रूप में है। जहाँ मंदिर और मस्जिद का विवाद विगत पाँच सा ै वर्षों से कईपीढ़ियां ने देखा ह,ै वि दक काल से चली आ रही पूजा-पाठ एवं धर्म के प्रति आस्था में कहीं न कहींजातिगत धारणा का भी समावेश रहा है। कुछ जातियां या वर्णां को ही मंदिर में प्रवेश की इजाजत थी,ंवहीं कुछ निम्न जातियां का े मंदिरां में प्रवेश से वंचित रखा गया था, अयोध्या जनपद में जातीय मंदिरांके निर्माण के पीछे जातीय टकराव से बचना तथा वर्ण व्यवस्थ
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शाक्य Shakya, सौन्दर्यवती Saundaryavati. "पाल्पा, तानसेन क्षेत्रमा बौद्ध–धर्मको ऐतिहासिक विकास र वर्तमान अवस्था :एक अध्ययन {Historical Development and Current Status of Buddhism in Palpa, Tansen Region: A Study}". HISAN: Journal of History Association of Nepal 8, № 1 (2022): 123–26. http://dx.doi.org/10.3126/hisan.v8i1.53090.

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Abstract:
प्रस्तुत लेख पश्चिम नेपालको पाल्पा जिल्लामा बसोबास गर्ने बौद्ध धर्मावलम्बी, उनीहरुको ऐतिहासिक विकास र पाल्पा क्षेत्रको परिचयमा आधारित रहेको छ । पाल्पा जिल्लामा मध्यकालमा एक निकै प्रसिद्ध र शक्तिशाली राज्य रहेको थियो । नेपाल एकीकरण पछि त्यो राज्य नेपालमा समाहित भएको थियो । पाल्पा क्षेत्र मगर जातिका मानिसहरुको बाहुल्यता रहेका क्षेत्र हो । तर यस जिल्लाको सदरमुकामा भने नेवार जातिका मानिसहरुको संख्या सबैभन्दा बढी रहेको छ । यस क्षेत्रमा बसोबास गर्ने धेरैजसो मानिसहरु बौद्ध धर्म मान्ने गर्दछन् । यो जिल्ला पर्यटकीय दृष्टिले समेत निकै महत्वको रहेको छ । पाल्पा जिल्ला ढाका टोपी, करुवा जस्ता परम्परागत नेपा
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गौतम Gautam, तुलसीप्रसाद Tulsiprasad. "साकेला लोकगीतको विधाशास्त्रीय अध्ययन {A Philosophical Study of Sakela Folklore}". Prajna प्रज्ञा 125, № 1 (2024): 231–44. https://doi.org/10.3126/prajna.v125i1.75307.

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Abstract:
प्रस्तुत लेख किराँत राई जातिमा प्रचलित साकेला गीतको विधाशास्त्रीय अध्ययनमा केन्द्रित छ । यो अनुसन्धान गुणात्मक प्रकृतिको रहेको छ । यस अध्ययनका लागि सामग्रीको सङ्कलन स्थानीय स्रोतव्यक्ति र पुस्तकालय कार्यबाट गरिएको छ । साकेला गीत लोकगीतकै एक प्रकार भएको हुनाले यसको विश्लेषण लोकगीतकै विधागत तत्त्वहरूलाई आधार बनाई गरिएको छ । यसमा साकेला गीतको संरचना, कथ्य विषय, साकेलामा प्रस्तुत गरिने नृत्यढाँचा, प्रयोक्ता र प्रयोग क्षेत्र, भाषाशैली, लयविधान (स्थायी, अन्तरा र थेगो, वाद्यवादन), गायक÷गायिका आदिको अध्ययन गरी निष्कर्ष प्रस्तुत गरिएको छ । यस अध्ययनबाट साकेला गीत नेपालको पूर्वी क्षेत्रमा बसोबास गर्ने र
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पौडेल Poudel, ईश्वरा Ishwara. "चिठी कथामा सीमान्तीयता 'Chithi' Kathama Simantiyata". Dristikon: A Multidisciplinary Journal 10, № 1 (2020): 301–10. http://dx.doi.org/10.3126/dristikon.v10i1.34582.

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Abstract:
प्रस्तुत लेख ‘चिठी’ कथामा सीमान्तीयता’ भन्ने शीर्षकमा केन्द्रित छ । यो लेख ‘चिठी’ कथाभित्र रहेको तत्कालीनसमाजको वर्ग, जाति, धर्म र सांस्कृतिक यथार्थहरू के कस्ता थिए ? भन्ने समस्यामा केन्द्रित रही विश्लेषण गर्नुयस लेखनको उद्देश्य रहेको छ । यस लेखमा सामग्रीको विश्लेषणका निम्ति निगमनात्मक विधि र तथ्यकोप्रस्तुतीकरणमा वर्णनात्मक विधिको प्रयोग गरिएको छ । यहाँ वर्गगत रूपमा उच्च वर्गले निम्न वर्गलाईसीमान्तकृत बनाएको छ । यहाँ लिङ्गगत रूपमा पुरुषवर्ग शोषक र महिलावर्ग शासित अवस्थामा छन् । जातिगतरूपमा उच्च जातिले तल्लो जातिलाई पशुवत् व्यवहार गरेको छ । यहाँ धर्मका नाममा र संस्कृतिका नाममा गरिब,महिला र तल्ल
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पुन Pun, टेकबहादुर Tekbahadur. "नेपालका मगर जातिको परिचयात्मक अध्ययन {An Introductory Study of the Magar Caste of Nepal}". Kaladarpan कलादर्पण 4, № 1 (2024): 54–62. http://dx.doi.org/10.3126/kaladarpan.v4i1.62825.

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Abstract:
प्रस्तुत शोध पत्रमा नेपालका मगर जातिका सम्बन्धमा परिचयात्मक अध्ययन गरिएको छ । यस अध्ययनको उद्देश्य मगर जातिको परिचय दिनुका साथै उनीहरुका पहिचानका विषयमा व्याख्या÷विवेचना र विश्लेषण गर्नु रहेको छ । जस अन्र्तगत मगर जातिको परिचय दिइएको छ । मगर नामाकरण कसरी रहन गयो ? मगरका पूर्वज पुर्खाहरु को थिए ? मगर मगराँत बिचको सम्बन्धमा के कस्तो रहेको छ ? मगरका बसोबास क्षेत्रहरु कहाँ पर्दछन् ? यीनै विषयहरुमा केन्द्रीत रहेर अध्ययन विश्लेषण गरिएको छ । यस अध्ययनबाट मगर जातिका सम्बन्धमा जानकारी लिन चाहने शोध अध्ययन कर्ताका लागि फाइदाजनक हुनेछ । यस अध्ययनमा प्रथम तथा द्वितीय सहायक स्रोत–सामग्रीहरुलाई आधार मानिएको
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Singh, Vinay Kumar, and Seema Singh. "Dynamics in the Socio-economic Status of Scheduled Castes: A Sociological Analysis." RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 7, no. 3 (2022): 131–38. https://doi.org/10.31305/rrijm.2022.v07.i03.022.

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Abstract:
In traditional Indian society, Scheduled Castes were afflicted by various social issues such as social exclusion, deprivation from education and land ownership, and poverty. Generally, their class structure was closed and static in nature, lacking social mobility. This research paper presents a comparative analysis of the socio-economic status of Scheduled Castes and is based on secondary data under qualitative and quantitative research frameworks. In independent India, several governmental (constitutional and legal) and non-governmental efforts have weakened the constraints of these problems.
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पुन Pun, डम्बरबहादुर Dambarbahadur. "सांस्कृतिक प्रचलनमा मगर जातिको मृत्यु संस्कार एक परिचय". BMC Research Journal 3, № 1 (2024): 100–111. http://dx.doi.org/10.3126/bmcrj.v3i1.69342.

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Abstract:
मगर मृत्यु संस्कारलाई मूल केन्द्र बनाएर तयार गरिएको यो लेख मूल रूपमा खाम भाषी मगर र त्यसमा पनि सल्यान आठ हजार क्षेत्रका मगरहरूको मृत्यु संस्कारमा केन्द्रित छ । नेपालका मगर जातिमा प्रचलित मृत्यु संस्कारका बारेमा सामान्य लेख रचना पाइए तापनि हालसम्म अनुसन्धानमूलक लेख तयार हुन नसक्नु यस अध्ययनको मूल समस्या हो । यही समस्यामा केन्द्रित भएर मगर जातिमा प्रचलित मृत्यु संस्कारको विवेचना गर्नु नै यस अध्ययनको उद्देश्य हो । यो गुणात्मक अध्ययन हो । यसमा वर्णनात्मक, नमुना छनोट र स्थलगत कार्य विधिको प्रयोग गरिएको छ । व्यक्तिको मृत्यु भएपछि शुद्धशान्ति नहुँदासम्म मगरहरूले सम्पन्न गर्ने मौलिक प्रकृतिको मृत्यु स
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चट्टोराज, सुमिता. "प्रेमचंद साहित्य और हिंदी सिनेमा का अन्तःसम्बन्ध". Anthology The Research 8, № 12 (2024): H68 — H78. https://doi.org/10.5281/zenodo.12577932.

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Abstract:
This paper has been published in Peer-reviewed International Journal "Anthology The Research"&nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; URL : http://socialresearchfoundation.com/new/publish-journal.php?editID=9137 &n
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Gautam, Dharma Raj. "आठराई गाउँपालिका भित्रका जातीय संस्कृति". Pranayan प्रणयन 25, № 7 (2025): 33–41. https://doi.org/10.3126/pranayan.v25i7.78146.

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Abstract:
नेपाल बहुभाषी, बहुजाति र बहुसंस्कृतिको साझा फूलबारी हो । सबै जातजातिले आआनो भाषा र संस्कार मान्ने छुट नेपालको कानुनले स्पष्ट किटान गरेको छ । तेह्रथुमका दुई नगरपालिका र चार गाउँपालिकामध्ये आठराई गाउँपालिका पनि एक हो । लिम्बू जातिको बाहुल्य रहेको आठराई गाउँपालिकामा अन्य जातिका मानिसको पनि बसोबास रहेको छ । यस लेखमा आठराई गाउँपालिकाभित्र बसोबास गर्ने मुख्य जातिका प्रमुख संस्कृतिको चिनारी गराउने प्रयास गरिएको छ । यस लेखमार्फत् हाम्रा पितापुर्खाहरुले प्रचलनमा ल्याएका संस्कारहरुमध्ये आठराई गाउँपालिकामा के कस्ता संस्कार र सँस्कृति जीवित छन् ? ती संस्कृति कुन कुन जातिले कसरी अनुसरण गरेका छन् ? यसलाई स
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सिंह, ओम प्रकाश. "ग्रामीण सामाज मे अन्य पिछड़ा वर्ग का बदलता स्वरूप". Journal of Research & Development 17, № 2 (2025): 143–46. https://doi.org/10.5281/zenodo.15067564.

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Abstract:
<strong><em>सारांश- </em></strong> <em>भारत में पिछड़ी जातियों की संकल्पना एक बहुत ही लचीली संकल्पना हैं, इन वर्गों में एक बड़ी संख्या मे वे पिछडी जातियों आती है जो अद्भुत या दलित जाति से उपर और उच्च जातियों से नीचे रहती है, सामान्यतः यह माना जाता है, कि अन्य पिछड़े वर्ग में वे जातिया हैं जो शैक्षिक एवं सामाजिक रूप से तो पिछड़ी हैं आवश्यक नहीं कि वे आर्थिक एवं राजनीतिक रूप से भी पिछड़ी हो । </em>
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दुलाल, लोकनाथ. "किसान जातिका परम्परागत संस्था, नेतृत्व प्रणाली, प्रथाजनित कानुन एवम् लोकविश्वास Kisan Jatika Paramparagat Sanstha, Netritwa Pranali, Prathajanit Kanun ebam Lokbiswas". Nepalese Culture 14 (9 березня 2021): 67–85. http://dx.doi.org/10.3126/nc.v14i0.35426.

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Abstract:
किसान नेपालमा बसोबास गर्ने अल्पसंख्यक लोपोन्मुख समुदायअन्तर्गत पर्ने आदिवासी जनजाति हो । यो समुदायको बसोबास विशेषत प्रदेश नं १ को झापा जिल्लाका विभिन्न गाउँवस्तीहरूमा पाइन्छ । नेपाल बाहिर भारतका विभिन्न स्थानमा यिनीहरू बसोबास गर्दछन् । यिनीहरूका मौलिक सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक विशेषता यो आदिवासी जनजातिलाई चिनाउने प्रमुख आधार हुन् । यो समुदायमा प्रचलनमा रहेको परम्परागत नेतृत्व प्रणाली, प्रथाजनित कानुन र लोकविश्वास पनि आफ्नै प्रकारको छ । राजा (गाउँबुढा वा वैगा), मन्त्री (वकिल) र सिपाही यो समुदायका प्रमुख नायक हुन् । यिनीहरूको खटन पटन, निगरानी र निर्देशनमा समाज चल्दछ । समाजलाई अनुशासित, मर्याद
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