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Journal articles on the topic 'जाति- वंश'

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तिवारी, रोली, та चित्रल ेखा वमा. "व्हाट्सएप पर साझा की जाने वाली शैक्षणिक जानकारियो की प्रकृति का अध्ययन". Mind and Society 9, № 03-04 (2020): 23–30. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-93-4-20213.

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Abstract:
प्रस्त ुत अध्ययन म ें ”व्हाट ्सएप पर साझा की जान े वाली श ैक्षणिक जानकारिया े ं की प्रक ृति का अध्ययन छात्राध्यापका ें क े विश ेष स ंदर्भ म ें” किया गया। क ुल 200 छात्राध्यापकों (100 प ुरूष छात्राध्यापक ए ंव 100 महिला छात्राध्यापिकाआ े ं) का चयन सा ेद्द ेश्य न्यादश र् विधि द्वारा किया गया। शा ेध उपकरण क े रूप में आकड ़ें संग ्रहण करने क े लिय े स्मा र्टफोन म ें प्रय ुक्त व्हाट ्सएप म ैस े ंजर क े माध्यम स े स्क्रीनशा ॅट, छवि (इम ेज) प्रक्रिया का े लिया गया। सा ंख्यिकी विश्ल ेषण ह ेत ु प्रतिशत द्वारा परिकल्पनाओ ं की साथ र्कता की जा ंच की गयी। निष्कष र् म े ं यह पाया गया कि छात्राध्यापका े ं द्व
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डाॅ., र. ेखा ग. ुप्ता. "जनसंख्या दबाव जनित भ ूमि उपयोग/भ िूम आवरण म ें परिवर्तन (मध्यप्रदेश के संदर्भ म ें)". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special edition) (2017): 1–6. https://doi.org/10.5281/zenodo.883016.

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Abstract:
मानव और प्राक ृतिक संसाधनों में अन्योन्य आश्रित संब ंध है। मानव प्रकृति से प्राप्त ज ैविक-अज ैविक सम्पदा पर ही अपन े ज्ञान एव ं कौशल का उपयोग करके उन्हें बहुमूल्य सेवा एव ं वस्त ुआ ें मे ं परिवर्ति त करता है एव ं आर्थिक विकास को दिशा एव ं गति प्रदान करता ह ै। मानव के बिना प ्रकृति की इस सम्पदा का कोई मूल्य नहीं है। मानव ही विकास का साधन एव ं साध्य दोना ें है। प्रा े. पी.एल. रावत ने कहा ह ै कि, मन ुष्य आर्थि क विकास का आदि एव ं अंत दोनों है किन्त ु जब मानव अपनी बढ ़ती हुई आवश्यकताओं की प ूर्ति के लिए इन प्राकृतिक संपद¨ का अत्यधिक शोषण या दोहन करन े लगता ह ै तो मानव व प्रकृति के बीच संत ुलन बिगड
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चा ैहान, ज. ुवान सि ंह. "प ्रवासी जनजातीय श्रमिका ें की प ्रवास स्थल पर काय र् एव ं दशाआ ें का समाज शास्त्रीय अध्ययन". Mind and Society 8, № 03-04 (2019): 38–44. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-83-4-20196.

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Abstract:
भारत म ें प ्रवास की प ्रक्रिया काफी लम्ब े समय स े किसी न किसी व्यवसाय या रा ेजगार की प ्राप्ति ह ेत ु गतिशील रही ह ै आ ैर यह प ्रक्रिया आज भी ग ्रामीण जनजातीय सम ुदाय म ें गतिशील दिखाइ र् द े रही ं ह ै। प ्रवास की इस गतिशीलता का े रा ेकन े क े लिए क ेन्द ्र तथा राज्य सरकार न े मनर ेगा क े तहत ् प ्रधानम ंत्री सड ़क या ेजना, स्वण र् ग ्राम स्वरा ेजगार या ेजना ज ैसी सरकारी या ेजनाआ े ं का े लाग ू किया ह ै, ल ेकिन फिर ग ्रामीण जनजातीय ला ेगा े ं क े आथि र्क विकास म े ं उसका असर नही ं दिखाइ र् द े रहा ह ै। ग ्रामीण जनजातीय सम ुदाया ें म े ं निवास करन े वाल े अधिका ंश अशिक्षित हा ेन े क े कारण शा
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अर्च, ना परमार. "पर्यावरण संरक्षण". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.883529.

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Abstract:
मानव शरीर प ंच तत्वों- प ्रथ्वी, जल, वाय ु, अग्नि आ ैर आकाश स े ही बना ह ै। य े सभी तत्व पर्या वरण के धोतक है। प ्रकृति मे मानव को अन ेक महत्वप ूर्ण प्राकृतिक सम्पदायें भी ह ै। जिसका उपयोग मन ुष्य अपन े द ैनिक जीवन में करता आया है ज ैसे- नदियाँ, पहाड ़, मैदान, सम ुद ्र, प ेड ़-पौधे, वनस्पति इत्यादि। प्रथ्वी पर प्राकृतिक संसाथनों का दोहन करन े से प्राकृतिक संसाथनो के भण्डार तीव्र गति से घटत े जा रह े है, जिससे पर्यावरण में असन्त ुलन बढ ़ रहा है। उसके परिणाम स्वरूप जल की कमी, आ ेजा ेन परत में छेद का पाया जाना, वना ें की अत्यधिक कर्टाइ से वना ें की कमी आना, सम ुद ्रों का जल स्तर बढना, ग्लेशियरों
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डा, ॅ. अर्चना रानी. "वर्ण-सौन्दर्य द्वारा दर्शक स े संवाद करती भारतीय कला". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–4. https://doi.org/10.5281/zenodo.888762.

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Abstract:
कला और सौन्दर्य-ये दा े शब्द कला जगत में एक ज ैसे होते हुए भी बह ुत विस्तृत ह ैं। स्थूल तैार पर हम कला आ ैर सा ैन्दर्य में का ेई अन्तर नहीं कर पाते। सा ैन्दर्य एक मानसिक अवस्था ह ै आ ैर वह देश-काल से मर्या दित है। इस सा ैन्दर्य रूपी व ृक्ष की दो शाखायें ह ैं-एक प्रकृति तथा दूसरी कला। कलागत सौन्दर्य पर दा े दृष्टियों से विचार किया जा सकता है। पहली दृष्टि यह है जिसमें हम कलाकार को क ेन्द्र में रखकर विचार करते ह ै ं अर्थात् कलाकार की कल्पना में किस प ्रकार कोई कलाकृति आकार ग्रहण करती ह ै आ ैर वह किस रूप में दर्श कों क े सम्मुख प्रकट हा ेती ह ै। दूसरी दृष्टि में दर्श क का े क ेन्द्र में रखा जाता ह
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निशा, प. ंवार. "ज ैव विविधता एवं संरक्षण". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special edition) (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.882969.

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Abstract:
पृथ्वी अपन े म ें असीम संभावनाए ं एकत्रित किये ह ुए है । प ्रकृति के अन ेकान ेक विविधताओ ं की कल्पना कर ही इस बात का पता लगाया जा सकता ह ै कि संभावनाए ं पक्ष की ह ै या विपक्ष की तात्पर्य प ृथ्वी पर अथाह कृषि भूमि, जल वृक्ष, जीव-जन्त ु तथा खाद ्य पदार्थ थे, परन्त ु मानव के अनियंत्रित उपभोग के कारण ये सीमित हा े गये ह ै । पर वास्तव में हम अपन े प्रयासों से इन संपदाओं का उचित प ्रब ंध कर इसे भविष्य के लिए उपयोगी बना सकत े ह ै । जैव विविधता किसी दिये गये पारिस्थितिकी त ंत्र बायोम, या एक प ूर े ग ृह में जीवन क े रूपों की विभिन्नता का परिणाम है । ज ैव विविधता किसी जैविक त ंत्र के स्वास्थ्य का घोतक ह
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द्विजेश, उपाध् याय, та मकुेश चन्‍द र. पन डॉ0. "तबला एवंकथक नृत्य क अन् तर्सम्‍ बन् धों का ववकार्स : एक ववश् ल षणात् मक अ्‍ ययन (तबला एवंकथक नृत्य क चननांंक ववे ष र्सन् र्भम म)". International Journal of Research - Granthaalayah 5, № 4 (2017): 339–51. https://doi.org/10.5281/zenodo.573006.

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Abstract:
तबला एवांकथक नृत्य ोनन ताल ्रधाान ैं, इस कारण इनमेंसामांजस्य ्रधततत ैनता ै। ूरवव मेंनृत्य क साथ मृो ां की स ां त ैनतत थत ककन्तुबाो म नृत्य मेंजब ्ृां ािरकता ममत्कािरकता, रांजकता आको ूैलुओांका समाव श ैुआ तन ूखावज की ांभतर, खुलत व जनरोार स ां त इन ूैलुओांस सामांजस्य नै ब।ाा ूा। सस मेंकथक नृत्य क साथ स ां कत क कलए तबला वाद्य का ्रधयन ककया या कजस मृो ां (ूखावज) का ैत ूिरष्कृत एवां कवककसत प ू माना जाता ै। तबला वाद्य की स ां त, नृत्य क ल भ सभत ूैलुओांकन सैत प ू में्रधस्तुत करन मेंस ल साकबत ैु। कथक नृत्य की स ां कत में ूररब बाज, मुख्यत लखन व बनारस ररान का मैत् वूरणव यन ोान रैा ै। कथक नृत्य की स ां कत
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क, ुमक ुम भारद्वाज. "''किशनगढ़ श्©ली का पर्यावरण-प्रकृति चित्र्ाण की सांस्कृतिक परम्परा''". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.882061.

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Abstract:
‘‘राजस्थान की किशनगढ ़ श्©ली के चित्र्ा प्रकृति क¨ संरक्षित करके पर्यावरण जागरुकता क¨ आज के परिव ेश में प्रदर्शित करत े हैं। चित्र्ा¨ ं में वनस्पति, जल, वायु तीन¨ं पर्यावरणीय घटक प्रचुर मात्र्ाा में चित्र्ाित ह ैं। पर्यावरण में प्रकृति चित्र्ाण के साथ अध्यात्म दर्शन की सांस्कृतिक परम्परा क¨ ज¨ड ़ा गया ह ै। हरियालीमय सुरम्य वातावरण चित्र्ा¨ं मंे प्रकृति चित्र्ाण की सांस्कृतिक थाती पर्यावरण प्रद ूषित ह¨न े से बचान े का सन्द ेश जन-जन तक पहुँचाती प्रतीत ह¨ती है, ज¨ एक सकारात्मक प्रयास है। पर्यावरण का तात्पर्य समस्त ब्रह्माण्ड के न ैतिक एव ं जैविक व्यवस्था से ह ै, जिसके अंतर्गत समस्त जीवधारी ह¨त े
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खापर्ड े, स. ुधा, та च. ेतन राम पट ेल. "कांकेर में रियासत कालीन जनजातीय समाज की परम्परागत लोक शिल्प कला का ऐतिहासिक महत्व". Mind and Society 9, № 03-04 (2020): 53–56. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-93-4-20218.

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Abstract:
वर्त मान स्वरुप म ें सामाजिक स ंरचना एव ं ला ेक शिल्प कला म ें का ंक ेर रियासत कालीन य ुग म ें जनजातीय समाज की आर्थि क स ंरचना म ें ला ेक शिल्प कला एव ं शिल्प व्यवसाय म ें जनजातीया ें की वास्तविक भ ूमिका का एव ं शिल्प कला का उद ्भव व जन्म स े ज ुड ़ी क ुछ किवद ंतिया ें का े प ्रस्त ुत करन े का छा ेटा सा प ्रयास किया गया ह ै। इस शा ेध पत्र क े माध्यम स े शिल्पकला म ें रियासती जनजातीया ें की प ्रम ुख भ ूमिका व हर शिल्पकला किस प ्रकार इनकी समाजिकता एव ं स ंस्क ृति की परिचायक ह ै एव ं अपन े भावा ें का े बिना कह े सरलता स े कला क े माध्यम स े वर्ण न करना ज ैस े इन अब ुझमाडि ़या ें की विरासतीय कला ह
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आशा, सक्सेना स. ुनीता चैहान. "ज ैव विविधता और उसका संस्थितिक एवं असंस्थितिक स ंरक्षण". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.838910.

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Abstract:
सामान्य शब्दों में जैव विविधता से तात्पर्य सजीवों (वनस्पति और प्राणी) म ें पाए जान े वाले जातीय भेद से ह ै। व्हेल मछली से लेकर सूक्ष्मदर्षी जीवाणु तक मन ुष्य से लेकर फफंूद तक ज ैव विविधता का विस्तार पाया जाता है। पर्या वरणीय ह्रास क े कारण जैव विविधता का क्षय हुआ है। मानव के अनियंत्रित क्रियाकलापा ें, बिजली, लालच और राजनीतिक कारणांे से जैव विविधता का विनाष बहुत त ेजी स े हो रहा ह ै। लगातार बढ ़ती जनसंख्याा, नगरीय क्ष ेत्रों की वृद्धि बाॅधों, भवनो ं तथा सड ़कांे का निर्मा ण, कृषि के लिए वना ें का कटाव, खदाना ें की खुदाई आदि ए ेसे कुछ उदाहरण है जिनसे प ्राक ृतिक संसाधनों में कमी आई है। जैव विविध
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डा, ॅ0 भावना ग्रोवर दुआ. "भारतीय शास्त्रीय नृत्यों की र ंगमंचीय प्रस्तुति में र ंगा ें का प्रयोग एव ं प्रभाव". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.889229.

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Abstract:
‘रंग’ अगर शब्द रूप में देखा जाये तो बहुत छोटा ह ै परन्तु यदि इसे सा ेचा जाए तो दुनिया की प ्रत्येक वस्तु में निहित है। अगर रंग नही है तो हमारी जीवनचर्या का अस्तित्व ही नही ह ै। रंग ह ै ता े मानव जीवन का अस्तित्व है। माना जाता है कि सभी रंग मूल रूप से श्व ेत रंग से ही बने ह ै आ ैर रंगा ें की संख्या अ ंगणित ह ै। जो हमारी दैनिक दिनचर्या का महत्वप ूर्ण हिस्सा है।‘रंग’ जिससे किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व का आभास होता है। कभी-कभी तो व्यक्ति की छवि ही हमारे मस्तिष्क पर रंग क े कारण अ ंकित हो जाती ह ै। इसी प्रकार हमारे भारतीय शास्त्रीय नृत्यों की रंगमंचीय प ्रस्तुति जिनमें रंगा े का प्रयोग बह ुत ही खू
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डा, ॅ. जया जैन. "जैन धर्म म ें रंगा े की दार्शनिक भ ूमिका". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–5. https://doi.org/10.5281/zenodo.889248.

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Abstract:
रंगा े का अपना अनूठा संसार अपनी भाषा होती ह ै। ‘रंग’ शब्दों, वस्तुओ का े अर्थ प्रदान कर उन्ह े प्रतिबिम्बित करते है। रंगा े क े द्वारा ही वस्तु, शब्दा ें के गुण व भावों को आसानी से समझा जा सकता ह ै। रंग अपने आप में अनेक अर्थो को समाये रहता ह ै। रंगा ें क े अभाव में चित्रकला का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता ह ै। भावों का े व्यक्त करन े का रंग महत्वपूर्ण साधन ह ै। मूर्तिकला में भी प ्रस्तर वर्ण का विशेष ध्यान रखना आवश्यक ह ै।धार्मिक क्षेत्र भी रंगा े की प ्रतीकात्मकता से अछूता न रह सका। ज ैन धर्म में दार्श निक भावनाआ ें का े रंगा े की प्रतीकात्मकता द्वारा भी व्यक्त किया ह ै। रंग अनेक भावनाओं का अनू
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मिश्रा, आ. ंनद म. ुर्ति, प्रीति मिश्रा та शारदा द ेवा ंगन. "भतरा जनजाति में जन्म संस्कार का मानवशास्त्रीय अध्ययन". Mind and Society 9, № 03-04 (2020): 39–43. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-93-4-20215.

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Abstract:
स ंस्कार शब्द का अर्थ ह ै श ुद्धिकरण। जीवात्मा जब एक शरीर का े त्याग कर द ुसर े शरीर म ें जन्म ल ेता है ता े उसक े प ुर्व जन्म क े प ्रभाव उसक े साथ जात े ह ैं। स ंस्कारा े क े दा े रूप हा ेत े ह ैं - एक आंतरिक रूप आ ैर द ूसरा बाह्य रूप। बाह ्य रूप का नाम रीतिरिवाज ह ै जा े आंतरिक रूप की रक्षा करता है। स ंस्कार का अभिप्राय उन धार्मि क क ृत्या ें स े ह ै जा े किसी व्यक्ति का े अपन े सम ुदाय का प ुर्ण रूप स े योग्य सदस्य बनान े क े उदद ्ेश्य स े उसक े शरीर मन मस्तिष्क का े पवित्र करन े क े लिए किए जात े ह ै। सभी समाज क े अपन े विश ेष रीतिविाज हा ेत े ह ै, जिसक े कारण इनकी अपनी विश ेष पहचान ह ै,
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हरीश, केशरवानी. "खेती के नये आयामः समझा ैता क ृषि". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–4. https://doi.org/10.5281/zenodo.883533.

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Abstract:
बढ ़ती जनसंख्या, बदलती जीवन शैली, कृषिगत उत्पादों का व्यवासायीकरण क े साथ साथ मौसमी परिवर्तनशीलता, उत्पादन प्रवृत्ति मे बदलाव और कृषिगत विषमता के परिणाम स्वरूप सबस े प्रमुख म ुददा कृषि के सुधार और विकास का ह ै। मानव अपन े विकास की चाहे जो सीमा निर्धारित कर ले पर ंत ु उसकी उदरप ूर्ति जमीन से उगे आनाज या उसके प्रसंस्करण स े ही होगी। कृषि के संदर्भ मे तमाम प्रकार के बदलावों क े परिणाम स्वरूप कृषि प ्रणाली मे भी बदलाव द ेखे जा सकत े हैं। साथ ही विश्व की जनसंख्या त ेजी के साथ बढ ़ रही ह ै तथा भारत के संदर्भ मे यह तथ्य है कि यह विश्व की द ूसरी सर्वाधिक जन ंख्या वाला द ेश है जा े 2030 तक यह चीन का े
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डा, ॅ. शोभना जोशी. "''कथक नृत्य म ें नवाचार आ ैर डाॅ. सुचित्रा हरमळकर''". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.886804.

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Abstract:
कवि जयश ंकर प्रसाद की प ्रसिद्ध प ंक्तियाँ ह ैं - प ुरातनता का यह निर्मोक, सहन करती न प ्रकृति पल एक। नित्य-नूतनता का आनंद, किय े ह ै ं परिवर्तन में ट ेक।।1 अर्था त् प ्रकृति प ुरातन का वहन पल भर क े लिए भी नहीं करती ह ै। नित्य नवीनता आनंददायी होती ह ै अतः प ्रकृति परिवर्तन की टेक पर, नित्य नवीन रूप धारण करती है। इसीलिए प ्रकृति रमणीय ह ै। प ्रकृति में मिट्टी, जल, हवा, अग्नि है जो हमारे संपर्क में ह ै और अंतरिक्ष जो दृश्यमान ह ै। इन मुख्य तत्वों क े अतिरिक्त प ्रकृति के अ ंग ह ै ं- समस्त, जल, थल, नभचर-जीव, ज ंगल। ज ंगल में व ृक्ष, पा ैधे, लताएँ है ं। प्रकृति के ये सभी अंग व ैविध्य से भरपूर ह ै
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ख ुट, डिश्वर नाथ. "बस्तर का नलवंश एक ऐतिहासिक पुनरावलोकन". Mind and Society 9, № 03-04 (2020): 47–52. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-93-4-20217.

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Abstract:
सभ्यता का विकास पाषाण काल स े प ्रार ंभ हा ेता ह ै। इस काल म ें बस्तर म े रहन े वाल े मानव भी पत्थर क े न ुकील े आ ैजार बनाकर नदी नाल े आ ैर ग ुफाआ ें म ें रहत े थ े। इसका प ्रमाण इन्द ्रावती आ ैर नार ंगी नदी के किनार े उपलब्ध उपकरणों स े हा ेता है। व ैदिक युग म ें बस्तर दक्षिणापथ म ें शामिल था। रामायण काल म ें दण्डकारण्य का े उल्ल ेख मिलता ह ै। मा ैर्य व ंश क े महान शासक अशा ेक न े कलि ंग (उड ़ीसा) पर आक्रमण किया था, इस य ुद्ध म ें दण्डकारण्य क े स ैनिका ें न े कलि ंग का साथ दिया था। कलि ंग विजय क े बाद भी दण्डकारण्य का राज्य अशा ेक प ्राप्त नही ं कर सका। वाकाटक शासक रूद ्रस ेन प ्रथम क े समय
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या, ेगिता मण्डलिक (गडीकर). "नृत्य चिकित्सा". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.885063.

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Abstract:
नृत्य अंगा े व भावा ें की सा ैन्दर्यमयी भाषा ह ैं। नृत्य में करण, अंगहार, भाव, विभाव, अनुभाव और रसा ें की अभिव्यक्ति की जाती ह ैं। अतएव नृत्य द्वारा अंगा े व भावों क े संतुलित प ्रसव और विकास का एक द्वार जैसा खुल जाता ह ै, जो ह ्दय आ ैर मानसिक स्थितिया ें को तृप्ति प ्रदान करता है। कथक नृत्य की रचना देह का े शारीरिक व मानसिक स्तर का समन्वित शक्तिशाली प ुंज बना देती ह ैं और आध्यात्मिक स्तर पर आत्मिक शांति प ्रदान करने में सहायक सिद्ध होती ह ै। नृत्य एक ऐसा माध्यम ह ै जिसके जरिए भावनात्मक ऊर्जा को एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जाता ह ैं। नृत्य चिकित्सा क्ंदबम ज्ीमतंचल इसी पर आधारित ह ै। इसे गति का
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डा, ॅ. गीताली स. ेनगुप्ता. "र ंगा े का मना ेवैज्ञानिक प्रभाव". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–4. https://doi.org/10.5281/zenodo.889241.

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Abstract:
रंगा ें क े प ्रति मानव का अनुराग आज से नहीं बल्कि सदिया ें से रहा ह ै। रंग प ्रकृति एव ं ईष्वर की सबसे बह ुमूल्य देन ह ै। रंग क े बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। प ्रकृति द्वारा रचित अनगिनत वस्तुओं क े विविध रंग प ्र ेरणा क े स्त्रा ेत रह े ह ै ं। इन्ह ें देखकर मनुष्य ने उसे चित्रकलाओं, मूर्तिकलाओं, नाट्य एवं साहित्य में उकेरा है। रंगा ें से हमें निरन्तर ऊर्जा एवं चैतन्य शक्ति प ्राप्त होती है, निष्चित ही रंगविहीन जीवन नीरस, उदासीन एवं एकसार होता है। मनुष्य स्वभाव से सुन्दरता प ्रेमी है। अतः रंगा ें स े उसका घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है। पहले प्रकृति से फिर धीरे-धीरे व ैज्ञानिक अनुभवा ें
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डा, ॅ. अनीता भाना. "भा ेजन क े प्राकृतिक रंगा े का मानव जीवन में महत्व". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.890603.

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Abstract:
रंगा े क े बिना जीवन की कल्पना असंभव ह ै। जीवन को जीवन्त बनाने में रंगा े का अपना योगदान ह ै । नीला आसमान, धूसर धरती, रंग बिरंगे फल-फ ूल, पशु पक्षिया ें व हरे भरे पेडा ें द्वार्रा इ श्वर ने प्रकृति मे जा े रंग संया ेजन किया ह ै इसकी सुंदरता के आगे विज्ञान की प ्रगति व तकनीक की चकाचा ैंध फीकी ही ह ै। भा ेजन हर प्राणी की प्राथमिक आवश्यकता ह ै इसे भी प्रकृति नें लाल पीले नारंगी, नीले जामुनी हरे, काले जैसे विविध रंगा े से नवाजा ह ै आ ैर उसे अधिक सुंदर, ग्राहय तथा मनमोहक बनाया ह ै। पपीते व आम का पीला रंग,तरब ूज, चेरी का लाल रंग, पालक गिलकी का हरा रंग हा े या जामुन का जामुनी रंग ये न क ेवल भोजन को आ
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अ, ंजना जैन. "भारत म ें प ेयजल प्रद ुषण - मानव स्वास्थ्य के लिए एक चुना ैति". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–5. https://doi.org/10.5281/zenodo.883525.

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Abstract:
पृथ्वी का 2/3 भू-भाग जल स े घिरा ह ुआ है। पृथ्वी पर जल की मात्रा 1.4 मिलियन क्यूबिक मीटर आंकी गई है। जिसका 97.57ः भाग महासागरों में होन े के कारण खारा जल है। लगभग 36 क्यूबिक मीटर स्वच्छ जल जा े पीन े व उपयोग म ें ल ेन े योग्य है उसम ें स े लगभग 28 मिलियन क्यूबिक मीटर जल बर्फ के रूप म ें ध्रुवों पर जमा ह ै। हमार े वास्तविक उपया ेग के लिये उपलब्ध लगभग 8 मिलियन क्यूबिक मीटर जल पर द ूनिया के लगभग 6 अरब से ज्यादा की आबादी निर्भर है।’1 पीन े योग्य जल के स्त्रोत के रूप में नदियाँ, तालाब, कुए व नलकुप उपलब्ध है। और इनके जल का उपयोग भी हम उसी स्थिति म ें कर सकत े है। जब यह जल प्रद ुषण से मुक्त हो। शुध्द
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डा, ॅ. श्रीमती प्रतिभा श्रीवास्तव. "र ंग, स ेहत, सब्जियाँ - एक दृष्टिका ेण". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–5. https://doi.org/10.5281/zenodo.890493.

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Abstract:
रंगा ें का हमारे जीवन में बहुत महत्व है। इनके द्वारा हमें अपने चारों ओर की स्थितिया ें का ज्ञान होता ह ै आ ैर रंगा ें का प्रभाव ज्ञात हा ेता है। रंग मनुष्य की आँख में वर्णक्रम से मिलने पर छाया संब ंधी गतिविधियों से उत्पन्न होते ह ै। मूलरूप से इन्द्रधनुष क े सात रंगा ें का े ही रंगा ें का जनक माना जाता है। ये सात रंग लाल, नारंगी, पीला, हरा, आसमानी, नीला व ब ैंगनी ह ै। मानवीय गुण धर्म में आभासी बोध के अनुसार लाल, नीला व हरा रंग हा ेता है। रंगा ें स े विभिन्न प ्रकार से वस्तु प ्रकाष स्त्रोत एवं श्रेणियां इत्यादि आती ह ै। प ्रकाष स्त्रोता ें के भा ैतिक, गुणधर्म जैसे प्रकाष विलियन, समावेषन, परावर्
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ेगरिमा, गुप्ता. "पणिक्कर की कृतियों म ें र ंगा ें का रसात्मक रूझान". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.890301.

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Abstract:
हम सभी अपने जीवन में रंग¨ ंे से व्यापक रूप में प्रभावित ह¨ते ह ैं हमारे सुख-दुख, उत्त्¨जना, विश्राम, उल्लास आदि सभी भावनाअ¨ं क े उद्दीपन में रंग¨ ं का प्रभाव देखा जा सकता ह ै। चित्र्ाकार की भाषा में रंग भावना एवं विचार के संक्षिप्त रूप ह¨ते ह ैं। प्रत्येक चित्र्ाकार द्वारा रंग¨ ंे क¨ प्रय¨ग करने की विधि व्यक्तिगत अनुभव अ©र रुचि से प्रभावित ह¨ती ह ैं, चित्र्ा के अर्थसार क¨ व्यक्त करने मंे चित्र्ाकार रंग की सामथ्र्य का उपय¨ग अपनी अनुभूत तकनीक स े करता ह ै। इस भ©तिक जगत में उस परम् शक्ति ने अनेक वस्तुअ¨ं का निर्माण किया ह ै। सम्भवतया जीवन भर उनकी संख्या भी न गिनाई जा सके। विभिन्न प्रकार के पत्थर
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स, ुधा शाक्य. "वर्तमान पर्यावरणीय समस्याएं एव ं सुझाव". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.883040.

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Abstract:
भारत में प ्राचीन काल से ही प्रकृति एव ं पर्यावरण का अट ूट संब ंध रहा है, और धार्मिक ग ्रंथा ें में प्रकृति को जा े स्थान प्राप्त है वह अत ुलनीय है। प्रक ृति की सुरक्षा के लिये हमारी संस्कृति में अन ेक प्रयास किये गये, सामान्य जन को प्रकृति से जोड ़े रखन े के लिये उसकी रक्षा, प ूजन, विधान, संस्कार आदि को धर्म से जोड ़ा गया। गा ै एव ं अन्य जानवरो ं का प ूजन व ंश रक्षा के लिये तथा विभिन्न नदियों, प ेड ़ों, पर्व तों का प ूजन उसकी सुरक्षा और अस्तित्व को बनान े क े लिये अति आवश्यक हा े गया था। पर ंत ु जैसे समय व्यतीत होता गया व्यक्तियों की विचारधारा, सोच, अभिव ृत्ति, आस्था, भावों में परिवर्त न होता
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डा, ॅ. श्वेता पाण्डेय. "जामिनी राय की कला म ें र ंग योजना की भ ूमिका". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.888821.

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Abstract:
जामिनी राय ने अपनी कला यात्रा के दौरान असंख्य चित्रा ें का निर्माण किया। इस निर्मा ण कार्य में शायद ही ऐसा कोई विषय हो जो जामिनी राय की तूलिका क े माध्यम से प्रकट ना हो सका हो। कला के प ्रति उनका समर्पण व उनकी निरन्तरता क े कारण ही उन्होंने इतनी बड़ी संख्या में चित्रा ें का निर्माण किया। जामिनी राय ने अपने ही चित्रा ें को र्कइ बार दोहराया है, इसलिये यह कह पाना बड़ा कठिन ह ै कि का ैन सा चित्र पहले का ह ै, कौन सा बाद का, सिर्फ श ैली को देखकर ही निर्मा ण काल का अनुमान लगाया जा सकता है। इसक े अतिरिक्त जामिनी राय ने अपने चित्रा ें में कभी भी तिथि का उल्लेख नही किया है, इस कारण यह समस्या और भी जटिल
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प, ्रो. सुनीता जैन. "चित्रकला म ें र ंग - प्रागैतिहासिक काल मध्यप्रद ेश के विश ेष संदर्भ में". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.889223.

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Abstract:
चित्रकला का े अभिव्यक्तिगत सार्म थ्य प ्रदान करने वाले तत्वों में रंग प ्रमुख ह ै। चित्रकला में रंग की अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका है। चित्रकार जिस आधारभूत सतह पर चित्रा ंकन करता है उसमें रंग उसकी पर्या प्त सहायता करते हैं इन्हीं क े आधार पर कलाकृति मानसिक सन्तुष्टि प्रदान करती ह ै। रंग का आधार पाकर बर्नाइ र्गइ रचना अपने अभिष्ट को पाने में समर्थ हा ेती है। रंग के माध्यम से चित्रकार अपनी कृति का े कोमल बनाता ह ै। चित्रकार का बिम्ब-विधान चित्र सुलभ संव ेदनशीलता बह ुत कुछ रंग पर निर्भर करती है। रंग का प ्रया ेग जितना संगीत पूर्ण , उचित आ ैर सन्तुलित होगा मानव के मानस पटल पर उसका प ्रभाव उतना ही गहर
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प, ्रो. श्रद्धा दुब े. प्राध्यापक इतिहास. "अजन्ता के चित्र एवं र ंग स ंयोजन (गुप्तकालीन कला क े परिप्रेक्ष्य म ें)". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1. https://doi.org/10.5281/zenodo.892002.

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Abstract:
गुप्तकाल भारत के इतिहास का स्वर्ण -युग कहा जाता ह ै। सुख समृद्धि आ ैर व ैभव के इस काल में सभी कलाओं का समान रूप से उन्नयन ह ुआ। इस युग की सबसे बड ़ी देन ह ै अजंता के भित्तिचित्र। चित्रकारों ने गहन अधंकरामयी गुफाओं में ब ैठकर जिन अपार्थिव कृत्तियों का सृजन किया वे अप्रतिम है। इनमें कथावस्तु और विषय तो भगवान तथागत के जीवन आ ैर जातक कथाआ ें से ही लिए किन्तु उन्ह े ं किसी सीमा में बांध कर नहीं रखा। उनमें सैकड ़ों वर्षों का लोकजीव दर्पण की भाँति प ्रतिबिम्बित है।अजंता में अर्ध-चन्द्राकार पर्व त का े काटकर 29 गुफाएँ बनाई गई ह ै। यह समूहा ें में ब ंटी हुई ह ै। इनमें दसवी ं आ ैर नवीं गुफाएँ बीच के समू
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प, ूर्णेन्द ु. शर्मा. "पर्यावरण संरक्षण सब का दायित्व". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.883541.

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Abstract:
सृष्टि के प्रारम्भ से वर्त मान युग तक मन ुष्य न े विकास की लम्बी यात्रा तय की है। किन्त ु इस यात्रा में वह जीवन के शाश्वत सत्य को पीछ े छोड ़कर अकेला आगे निकल आया है जिसके परिणाम में पर्यावरण की प्रलयंकारी समस्याओं न े जन्म ले लिया ह ै आ ैर विश्व समुदाय विगत र्कइ दशकों से इनसे जूझता हुआ आग े बढ ़न े का प्रयास कर रहा है। 1972 में इसकी गम्भीरता को द ेखत े हुए स्टाॅकहोम मे ं संयुक्त राष्ट ª सम्म ेलन आयोजित किया गया जिसमें श्रीमती इन्दिरा गांधी न े पर्यावरण संरक्षण एव ं मानव जाति के कल्याण हेत ु दिय े गये अपन े वक्तव्य म ें कहा कि, ’’मन ुष्य तब तक सभ्य एव ं सच्चा मानव नहीं हो सकता जब तक कि वह सम्प
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म, ुकेश दीक्षित. "सामाजिक समस्याएं व पर्या वरण: उच्चतम न्यायालय की भूमिका". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.882783.

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Abstract:
पर्यावरण से मानव का गहरा संब ंध ह ै। मन ुष्य जब से इस पृथ्वी पर आया, उसन े पर्या वरण को अपन े साथ जोड ़े रखा है। सूर्य, चन्द ्रमा, पृथ्वी, पर्वत, वन, नदियां, महासागर, जल इत्यादि का प्रयोग मन ुष्य मानव विकास के आर ंभ से करता आ रहा है। मन ुष्य अपन े द ैनिक जीवन में लकड ़ी, भोजन, वस्त्र, दवायें इत्यादि प्राप्त करन े हेत ु प्राकृतिक सम्पदा का शुरू से उपयोग किया है और वर्त मान मे निर ंतर जारी है। सामाजिक परिवर्त न क े साथ औद्योगिक विकास एव ं जनसंख्या वृद्धि म ें पर्यावरण को प्रभावित किया है। औद्योगीकरण के कारण व्यक्ति आज अपनी आवश्यकता क े अन ुरूप पर्यावरण को बदलन े के लिये सक्रिय कारक बन गया है। वन
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उषा, कुमठ. "जलवायु परिवर्तन आ ैर भारतीय क ृषि". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.883553.

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Abstract:
भारतीय अर्थ व्यवस्था की आधारशिला कृषि है। कृषि एव ं जलवाय ु परिवर्त न का सबसे ज्यादा प्रतिकूल प ्रभाव कमजा ेर कृषक पर पड ़ रहा है। वर्षा की मात्रा में परिवर्त न होन े से फसलो ं की उत्पादकता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड ़ा है। जलवायु म ें होन े वाला परिवर्त न हमारी राष्ट ªीय आय का े भी प्रभावित कर रहा ह ै। द ेश के बहुत से भागो ं में अल्प वर्षा से फसलें सूख जाती है या अति-वृष्टि से बह जाती है जिसस े न केवल खाद्यानों का उत्पादन कम हुआ बल्कि उनकी कीमत े भी त ेजी से बढ ़ गई। जलवायु परिवर्त न से फसला ें की उत्पादकता ही प्रभावित नहीं ह ुई बल्कि उसकी ग ुणवत्ता पर भी नकारात्मक प्रभाव पड ़ा है। तापमान के बढ
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दिवाकर, सिंह ता ेमर. "कार्बन टेªडिंग एंव कार्बन क्रेडिट जलवायु परिवर्तन समस्या समाधान म ें सहायक". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.803452.

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Abstract:
जलवायु परिवर्त न की समस्या के लिए न तो विकसित द ेष आ ैर न ही विकासषील द ेष जिम्मेदारी लेन े का े त ैयार ह ैं। क्या ेंकि र्कोइ विकास से समझौता नहीं करना चाहता है। इसी कारण यह समस्या ओर द्यातक बनती जा रही ह ै। अभी हाल ही में ग ्रीन हाऊस ग ैसा ें के कारण विष्व के समक्ष समस्याएॅ उभकर सामन े आई हैं। 1) ओजोन परत म ें छिद ्र:- धरती के वातावरण में मौजूद ओजोन की परत हमें सूर्य से निकलन े वाली पराबैंगनी किरणों से बचाती हैं। परन्त ु हवाई ईधन और र ेफ्रिजर ेषन उद्योग स े उत्सर्जित होन े वाली क्लोरा े फ्लोरो कार्बन गैस से धरती के वातावरण में विद्यमान ओजोन की सुरक्षा छतरी में छिद ्र हा े गए हैं। 2) समुद ्र स
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भाग्यश्री, सहस्त्रब ुद्धे. "सिन े संगीत म ें शास्त्रीय राग यमन का प्रय¨ग - एक विचार". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.886051.

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Abstract:
हिन्दुस्तानी संगीत राग पर आधारित ह ै। राग की परिभाषा अलग-अलग विद्वान¨ं ने अपनी-अपनी पद्धति से दी ह ै परन्तु सबका आशय ”य¨ऽयं ध्वनिविषेषस्तु स्वर वर्ण विभूषितः रंजक¨जन चित्तानां सः रागः कथित¨ बु ेधैः“ से ही संदर्भित रहा है। अतः यह कहा जा सकता ह ै कि भारतीय संगीत की आत्मा स्वर, वर्ण से युक्त रंजकता प ैदा करने वाली राग रचना में ही बसती ह ै। स्वर¨ं क ¢ बिल्ंिडग बाॅक्स पर राग का ढाँचा खड़ा ह¨ता है। मोटे त©र पर ये माना गया है कि एक सप्तक क¢ मूल 12 स्वर सा रे रे ग ग म म प ध ध नि नि राग क ¢ निर्माण में वही काम करते ह ैं ज¨ किसी बिल्डिंग क ¢ ढाँचे क¨ तैयार करने में नींव का कार्य ह¨ता ह ै। शास्त्रकार¨ं न
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डा, ॅ. सा ेनल शर्मा. "शास्त्रीय नृत्य म ें नवीन प्रयोग". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.886980.

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Abstract:
संस्कृति किसी भी देश प ्रदेश, अ ंचल, गाँव शहर की पहचान होती ह ै। भारत सांस्कृतिक समृद्धि से आ ेतप ्रा ेत एक देश है। संस्कृति के निर्माता कई तत्व हा ेते हंै। उन तत्वा ें में नृत्य व संगीत सबसे सशक्त तत्व हा ेते ह ै ं। भारत एकमात्र ए ेसा देश है जहाॅं पर नृत्य संगीत क े लिए शास्त्रा ें की रचना की गई। शास्त्रा ें में संगीत व नृत्य नाट्य आदि क े लिए नियम बनाए गए । इन शास्त्रीय नियमों क े अन्तर्गत आने वाले नृत्य संगीत का े शास्त्रीय नृत्य व संगीत की संज्ञा प ्राप्त र्ह ुइ । भारत में सात शास्त्रीय नृत्य शैलियाँ ह ै ं। अगर प्रत्येक क े इतिहास पर दृष्टि डाली जाए तो हमें दृष्टिगा ेचर होगा कि प्रत्येक क
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उषा, महोबिया. "मुगल चित्रकला म ें र ंग स ंया ेजन". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1. https://doi.org/10.5281/zenodo.891884.

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Abstract:
प ्राचीन समय से ही भारतीय चित्रकला का इतिहास बह ुत समृद्ध विषाल एवं विस्तृत रहा है। मुस्लिम आक्र्रमण से प ूर्व जैन, बौद्ध एवं हिन्दुओ ने चित्रकला के क्षंेत्र में अपना योग दान दिया। अज ंता चित्रकला विष्व में प ्रसिद्ध ह ै, आ ैर इन चित्रो का निर्माण गुप्त काल मे ह ुआ जिन पर प्राकृतिक रूप से बने रंगा े का प ्रयोग किया गया ह ै। मध्यकाल मे चित्रकला मै महात्वप ूर्ण परिवर्तन आये, सल्तनत काल की चित्रकला र्मै इ रानी प ्रभाव देखने को मिलता ह ै। दरबारी चित्र, वीणा, सितार, वेषभूषा, आभ ूषण आदि के चित्रा े में सजीव रंगा े का प ्रया ेग किया गया । जिनसे चित्र सजीव, जीव ंत प्रतीत होते है । आ ैर इन चित्रो में न
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अर्च, ना मेहरा. "बदलता पर्या वरण और मानव-व्यवहार". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.838912.

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Abstract:
मानव और पर्या वरण के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध है। प्रायः हम किसी बुर े कार्य के लिए व्यक्ति को दोष द ेत े ह ै किन्त ु सच्चाई यह है कि उसम ें पर्या वरण भी उतना ही दोषी होता ह ै, अतः पर्या वरण की क्षति के कारण आज मानव का अस्तित्व संकट में पड ़ गया है। अब पर्या वरण चेतना को जगाना अतिआवष्यक हा े गया ह ै क्योंकि पर्यावरण भौतिक रूप मे ं नहीं सामाजिक रूप मंे भी मानव समाज का े घेर े हुए है। किसी व्यक्ति के व्यवहार को द ेखकर उसके पर्या वरण का सहज अन ुमान लगाया जा सकता है। इसमें प्राकृतिक द ृष्य, वन उपवन, नदी, पर्वत, जीव जन्त ु के साथ-साथ जलवाय ु और जनसंख्या इन सबकी महत्वप ूर्ण भूमिका होती ह ै। इनमें जब भी अस
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वन्दना, अग्निहोत्री. "नदिया ें म ें प्रद ूषण और हम". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–4. https://doi.org/10.5281/zenodo.883519.

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Abstract:
जल को बचाए रखना सभी की चिन्ता का विषय ह ै, व ैज्ञानिक राजन ेता, ब ुद्धिजीवी, रचनाकार सभी की चिन्ता है, जल कैस े बचे ? द ुनियाँ को अर्थात पृथ्वी को वृक्षों को, जंगलो को, पहाड ़ों को, हवा को, पानी को बचाना है। पानी का े बचाया जाना बह ुत जरूरी ह ै। पृथ्वी बच सकती ह ै, वृक्ष ज ंगल, पहाड ़ और मन ुष्य, पषु, पक्षी सब बच सकत े ह ै, यदि पानी को बचा लिया गया और पानी प ृथ्वी पर है ही कितना? पृथ्वी पर उपलब्ध सार े पानी का 97ण्4ः पानी सम ुद ्र का खारा जल है, जो पीन े लायक नही ह ै, 1ण्8ः जल ध ु्रवा ें पर बर्फ के रूप म ें विद्यमान है और पीन े लायक मीठा पानी क ेवल 0ण्8ः ह ै जो निर ंतर प्रद ूषित हा ेता जा रहा
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Dhiman, Utkarshi, Dr Anu Devi, Dr Manoj Dhiman, Mrs Meenakshi та Mrs Binnu Pundir. "ग्राफिक डिज़ाइन में फ्रीलांसिंगः चुनौतियाँ और अवसर". INTERNATIONAL JOURNAL OF SCIENTIFIC RESEARCH IN ENGINEERING AND MANAGEMENT 09, № 07 (2025): 1–8. https://doi.org/10.55041/ijsrem51364.

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Abstract:
आज के डिडजटल युग मेंफ्रील ांड ांग एक ऐ क ययक्षेत्र बनकर उभर है, डज नेप रांपररक नौकररय ांकी पररभ ष क बदल डदय है। यह न के वल र जग र क एक नय म ध्यम है, बल्कि युव ओां क अपनी रुडिय ांऔर रिन त्मक क्षमत ओां के अनु र क यय करनेकी स्वतांत्रत भी प्रद न करत है। डवशेषकर ग्र डिक डिज इन जै ेरिन त्मक क्षेत्र ां में, फ्रील ांड ांग नेछ त्र ां, नव डदत डिज इनर ांऔर पेशेवर ांक डबन डक ी स्थ डनक ीम के वैडिक स्तर पर क ययकरनेक अव र डदय है। पहलेजह ाँडिज इडनांग क के वल एक ह यक भूडमक म न ज त थ , वही ांअब यह एक पूर्यक डलक, आय- ृजन करनेव ल और स्वतांत्र कररयर डवकल्प बन िुक है। डिडजटल म ध्यम ांकी पहाँि और ऑनल इन क यय ांस्कृ
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विजय, कुमार. "मध्यप्रद ेश के जनजातियों क े जीवन में र ंगा ें का महत्त्व". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.889310.

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Abstract:
रंग सदैव उत्साहवर्धन करते हैं, रंगा ें का प ्राकृतिक गुण ही प्रकाश की किरण ें होती ह ैं, जो अपनी तरंगदैध्र्य से प ्रकृति में व्याप्त जीवा ें और प्राणिया ें क े अन्तर्मन क े क ंपन का े ऊर्जा में परिवर्तित करती है। रंग-स्वाद हीन होते ह ै ं, फिर भी प्राणी अपने अनुभव से रंग-स्वाद की अनुभूति करता है। जिसका प्रभाव उसके जीवन में महत्त्वप ूर्ण भूमिका निभाते ह ैं। जीवन, मनुष्य को अपने कर्म क े अनुसार जीने की कला भी प ्रदान करता है, कर्म का सीधा सम्पर्क कला से है। कला का े मनुष्य क े जीवन क े रूप में परिभाषित करें ता े यह तथ्य आता है, जो गतिमान हो आ ैर मानसिक रूप से उद्वेलित करें। मनुष्य शारीरिक रूप से
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लाल, बहादुर कुमार. "मधुबनी ल¨क चित्र्ाकला की विश्¨षताएँ एव ं रंग¨ ं की अद्भ ुत संय¨जन". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.888812.

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Abstract:
मिथिलांचल की मध ुबनी ल¨क चित्र्ाकला के माध्यम से ल¨कचित्र्ा परम्परा का निर्वाह आज भी किया जा रहा ह ै। यहाँ की ल¨क कला श्©ली वंश परम्परा क े आधार पर आज भी गतिशील ह ै। मध ुबनी ल¨क चित्र्ाकला की विदेश¨ं में काफी मांग ह ै ल्¨किन वह अपने ही देश में उप ेक्षित ह ै। दुर्भाग्य की बात है कि जिनके हाथ में ह ुनर है, वे ग्रामीण कलाकार आमत©र पर गरीब है ं। देश के कला-जगत् की नजर इस पर नहीं गई, जबकि ‘‘जापान के हासेभावा ने राजधानी ट¨किय¨ से उत्तर-पश्चिम में स्थित निगाता में एक पहाड़ी पर मिथिला म्यूजियम की स्थापना की ह ै। जापान क े कला के मर्मज्ञ एव ं कला पारखी ‘‘हासेगावा’’ पच्चीस से अधिक बार भारत आ चुक े है ं।
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डा, ॅ. सुवर्णा वाड. "स ंगीत क े पाठ्यक्रम में परिवर्तन की स ंभावित दिशाएं". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–5. https://doi.org/10.5281/zenodo.887000.

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Abstract:
प्रस्तुत विषय की प्रस्तावना करते समय विषय के प्रत्येक बिन्दु का विश्लेषण करना आवश्यक ह ै जैसे संगीत के पाठ्यक्रम में परिवर्तन क्या ें? तथा देवी अहिल्या विश्व विद्यालय का विशेष संदर्भ क्या ें? मेरी सम्पूर्ण शिक्षा देवी अहिल्या विश्वविद्यालय में होने , मैं गत 36 वर्षों से क ंठ संगीत के पाठ्यक्रम क े सम्पर्क में ह ूँ। दे.अ.वि.वि का कंठ संगीत का पाठ्यक्रम र्कइ वर्षा ें तक एक समान ही रहा परन्तु कम्प्यूटर एव ं कॉमर्स जैसे विषयों क े कन्या महाविद्यालयों मे ं पदार्प ण होने से छात्राओं की सा ेच म ें परिवर्तन आया। प ूर्व में कला संकाय में छात्राओं की संख्या काफी सराहनीय होती थी परन्तु धीरे धीरे छात्राओं
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डा, ॅ. स्मिता सहस्त्रब ुद्धे. "स ंगीत क े प्रचार प्रसार में स ंचार साधन¨ ं की भूमिका". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–4. https://doi.org/10.5281/zenodo.884794.

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Abstract:
संगीत जीवन क¢ ताने-बाने का वह धागा है जिसक¢ बिना जीवन सत् अ©र चित् का अंश ह¨कर भी आनंद रहित रहता ह ै तथा नीरस प्रतीत ह¨ेता ह ै। संगीत में ए ेसी दिव्य शक्ति ह ै कि उसक ¢ गीत क ¢ अर्थ अ©र शब्द¨ं क¨ समझे बिना भी प्रत्येक व्यक्ति उसस े गहरा सम्बन्ध महसूस करता ह ै। ”संगीत“ एक चित्ताकर्शक विद्या ज¨ मन क¨ आकर्षि त करती ह ै। गीत क ¢ शब्द न समझ पाने पर भी ध ुन पसंद आने पर ल¨ग उस गीत क¨ गाते ह ैं, क्य¨ ंकि भारतीय संगीत-कला भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अ ंग है एवं भारत क ¢ निवासिय¨ं की जीवनशैली का प्रमाण ह ैं। ”संगीत“ मानव समाज की कलात्मक उपलब्धिय¨ ं अ©र सांस्कृतिक परम्पराअ¨ं का मूर्तमान प्रतीक ह ै। यह आ
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डा, ॅ0 नाजिमा इरफान. "भारतीय चित्रकला में र ंगा ें का या ेगदान (अब्दुर्रहमान चुगताई के विष ेष संदर्भ में)". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.889177.

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Abstract:
मानव जीवन में वर्ण का महत्वप ूर्ण स्थान ह ै। प्रत्येक वस्तु का ेई न कोई रंग लिये हुए ह ै। रंगा ें क े प ्रति मानव का आकर्ष ण कभी घटा नही ह ै। इसीलिये आदि मानव से लेकर आधुनिक मानव तक ने सा ैन्दर्य क े विकास में वर्ण का सहारा लिया ह ै। कमरे की रंग व्यवस्था से लेकर बाग बगीचा ें में फ ूल पौधों की रंगया ेजना तक में कलाकार ने अपना हस्तक्ष ेप किया ह ै क्योंकि रंगा ें का अपना एक प्रभाव हा ेता ह ै जो मानव की मानसिक भावनाओं का े उद्वेलित करने की शक्ति रखता ह ै। वर्ण सार्वभौमिक ह ै तथा चित्रकला में सबसे अधिक महत्व रंग का े दिया जाता है। रंगा ें क े विविध रुपों मे ं मन की भावनायें जुड़ी ह ै ं जैसे बसन्त क
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Tina, Porwal. "चित्रकला की भाषा: रंग,रेखा एव ं रुप". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.888831.

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Abstract:
मनुष्य सामाजिक प ्राणी होने के नाते सदैव इस प ्रयत्न में रहा है कि वह अपनी अनुभ ुतीया ें,भावनाओं तथा इच्छाओं का े दूसरा ें से व्यक्त कर सक े आ ैर दूसरा ें की अनुभुतीयों से लाभ उठा सके। इसके लिए उसे यह आवश्यकता पड़ी कि वह अपने का े व्यक्त करने के साधनों तथा माध्यमों की खा ेज तथा निर्मा ण करे। इसी के फलस्वरुप भाषा की उत्पत्ति हुई आ ैर काव्य,संगीत,नृत्य, चित्रकला,र्मूि र्तकला इत्यादि कलाओं का प्रादुर्भा व ह ुआ। ये सभी हमारी भावनाओं का े व्यक्त करने के माध्यम ह ै। का ेई अपनी भावनाआ ें का े भाषा द्वारा व्यक्त करता है, कोई चित्रकला द्वारा तथा र्कोइ नृत्य द्वारा। लक्ष्य तथा आदर्श सब का एक ही है, केवल
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डा, ॅ. सुषमा श्रीवास्तव. "विज्ञापन की सृष्टि: स ंगीत की दृष्टि". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.886102.

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Abstract:
संचार को जीवन का पर्या य कहा जा सकता है हमारे शरीर की लाखों का ेशिकाएँ आपस में लगातार संचार करती रहती ह ैं। जिस क्षण यह प्रक्रिया बंद हो जाती ह ै उसी क्षण हम मृत्यु को प ्राप्त हा े जाते ह ैं। जीवन का दूसरा नाम संचार संलग्नता है, संचार-श ून्यता मृत्यु का द्योतक ह ै। वर्तमान परिवेश में संचार का व्यापक स्तर ह ै ‘जनसंचार‘ अर्थात जब हम किसी भाव या जानकारी को दूसरा ें तक पहुँचाते ह ै ं आ ैर यह प ्रक्रिया सामूहिक पैमाने पर होती है ता े इसे ‘जनसंचार‘ कहते ह ैं। जनसंचार में प्रेषक तथा बड़ी संख्या में ग्रहणकर्ता क े बीच एक साथ संपर्क स्थापित हा ेता ह ै एवं इस बात की संभावना बनी रहती ह ै कि सूचना या जान
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डा, ॅ. भारती जोशी विभागाध्यक्ष. "र ंगा ें का मना ेवैज्ञानिक प्रभाव एवं र ंग चिकित्सा". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.888766.

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Abstract:
रंग हमारे दिमाग और शरीर पर अत्यधिक प्रभाव डालता ह ै।सूर्य से प ्राप्त उर्जा रंगा ें में समाहित हा ेती ह ै।प ्रकृति का सा ैन्दर्य हर घण्टे, हर दिन, हर वर्ष परिवर्तित होता रहता ह ै। प ्रकृति का हर रंग प ्राणी का मित्र ह ै बस आवश्यकता ह ै धैर्यपूर्वक प्रकृति की मूक भाषा का े सीखने, समझने, आ ैर आत्मसात करने की । ख ुली जगह में देख ें, प ्रकृति ने कैसे रंगा ें का ताना बाना बुना ह ै रंगा ें क े एक शेड का े दूसरे श ेड से कितनी सुन्दरता क े साथ मिलाया ह ै । आसमान का नीलापन कितना शान्तिदायक है आ ैर कितने प ्रशस्त होने की भावना से ओत प ्रोत ह ै। प ृथ्वी की हरीतिमा कैसी शीतल और तुष्टि प ्रदायनी ह ै। सुर्य
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श्रीमति, स्वप्ना मराठे. "वर्तमान समयानुसार संगीत पाठ्यक्रम¨ ं म ें बदलाव की आवष्यकता". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.886835.

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Abstract:
युग परिवर्तन सृष्टि का सम्बन्धित नियम है, जिसक¢ अन्तर्गत सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक वातावरण भी बदलते रहते हैं। अतः युगानुकूल संगीत षिक्षा की पद्धति में भी परिवर्तन ह¨ना आष्चर्यजनक घटना नहीं है। भारतीय संस्कृति विष्व की उन संस्कृतिय¨ ं में से एक है जिसने सम्पूर्ण विष्व क¨ नई दिषा एवं सृजनात्मकता दी। ये व¨ धर¨हर ह ै जिसक¨ सुरक्षित रखने क¢ लिये हमारे संस्कृति प्रेमिय¨ ं ने अपने सम्पूर्ण जीवन की आहूति दी। संगीत मानव समाज की एक कलात्मक उपलब्धि ह ै। यह लयकारी सांस्कृतिक परम्पराअ¨ं का एक मूर्तिमान प्रतीक ह ै अ©र भावना की उत्कृष्ट कृति ह ै। अमूर्त भावनाअ¨ ं क¨ मूर्त रूप देने का माध्यम ही संगीत ह ै
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प, ्रो. अर्चना भट्ट सक्सेना. "मालवी लोकगीता ें में स ंगीत". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.886958.

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Abstract:
भारतीय लोक जीवन सदैव संगीत मय रहा ह ै। भारत वर्ष का का ेई अंचल का ेई जाति ए ेसी नही ं जिसके जीवन पर संगीत का प ्रभाव न पड़ा हो। भारतीय स ंगीत के लिए कहा जाता ह ै कि साहित्य से ब्रह्म का ज्ञान और संगीत से ब ्रह्न की प्राप्ति होती है। भारत में प ुरातन काल से विभिन्न पर्वो एवं अवसरा ें पर गायन, वादन व नृत्य की परंपरा रही है। लोकगीत प ्राचीन संस्कृति एव ं सम्पदा के अमिट वरदान ह ै जिसमें अनेकानेक संस्कृतिया ें की आत्माआ ें का एकीकरण हुआ है। लोक संगीत जन-जीवन की उल्लासमय अभिव्यक्ति ह ै। पद्म श्री ओंकारनाथ क े मतानुसार- ‘‘देवी संगीत क े विकास की प ृष्ठभूमि लोक संगीत ह ै। जिस देष या जाति का सम्व ेदनषी
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सन्ता, ेष कुमार यादव. "मुगल कालीन चित्रकला (रेखा, र ंग आ ैर अलंकरण के सन्दर्भ म ें)". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.889286.

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Abstract:
मुगल कालीन कला मे भारतीय कला के प्रभाव का जो पहला गुण दिर्खाइ देता ह ै वह ह ै रेखा। किसी भी चित्र का वाहय शरीर रेखा होती है। वह चित्र को वाहरी आकार प ्रदान करने मे अपनी महत्वप ूर्ण भूमिका निभाती है। साधारणतया दो बिन्दुओं को मिलाने से रेखा का निर्माण होता ह ै परन्तु चित्रकला मे का ेमल, लोचदार, लयबद्ध आ ैर लचीली रेखाओं की आवश्यकता पर जा ेर दिया जाता ह ै। जिसके अलग अलग प ्रयोगा ें से चित्राधार पर अनेक प्रकार के आकार उभरते ह ै। इन रेखाओं क े विभिन्न तरह क े प ्रयोगा ें से मुगल कलाकारों ने पर्व त, बृ क्ष, पुष्प और मानव आकृतियों की रचना की ह ै। रेखा से आकृति मे गति व प ्रवाह दिखता है। ये रेखाए ं गा
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श्रीमती, सुधा शाक्य. "र ंग दृष्टि दा ेष: र ंग अ ंधता". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.889298.

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Abstract:
्रस्तावना:- मानव में र्कइ प्रकार की संव ेदनाएं होती हैं जैसे दृष्टि, श्रवण, स्पर्श , गंध, स्वाद आदि। इनकी उत्पत्ति उद्दीपका ें से होती ह ै, जिसे व्यक्ति अपने बाह ्य पर्यावरण से ग्रहण करता ह ै, यह उद्दीपक ज्ञानेन्द्रिया ें अर्था त आंख, कान, त्वचा, नाक आ ैर जिव्हा को उद्दीप्त करते ह ैं, आ ैर विभिन्न संव ेदना को उत्पन्न करते ह ै ं। आइजनेक (1972) क े अनुसार ‘‘ संव ेदना एक मानसिक प ्रक्रम ह ै जा े आगे विभाजन या ेग्य नहीं होता। यह ज्ञानेन्द्रिया ें को प ्रभावित करने वाली बाह ्य उत्तेजना द्वारा उत्पादित हा ेता ह ै, तथा इसकी तीव ्रता उत्तेजना पर निर्भ र करती ह ै, आ ैर इसके गुण ज्ञानेन्द्रिय की प ्रकृत
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गणेश, अनिल थोर. "द्वितीय भाषा शिक्षण में प्रौद्योगिकीय संसाधनों का अनुप्रयोग". 9 січня 2025. https://doi.org/10.5281/zenodo.14622255.

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Abstract:
शोधालेख सार:-िवīमान यगु ÿौīोिगकìय संसाधनŌ का युग है। इस वै2ािनक यगु म¤िहदं ी भाषा अिधगम एवं िश±ण म¤संगणक कì महनीय भिूमका है। िकसी भी भाषा के सवा«गीण िवकास के िलए यह आवÔयक हैिक उससेसंबंिधतसामúी का िनमाणa एवं ÿÖततुीकरण के िलए िडिजटल साधनŌ का अिधकािधक माýा म¤ÿयोग हो । ÿौīोिगकìय यगुम¤सगं णक एक सवाaिधक िवकिसत, उपयोगी व सावaभौिमक अिभकलý है । इसेÿौīोिगकì संसाधनŌ का मिÖतÕक भीकह सकते ह ।§ आज के समय म¤िहदं ी भाषा व वाङमयीन िवकास और ÿचार-ÿसार म&cu
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