Academic literature on the topic 'नदी'

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Journal articles on the topic "नदी"

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शुक्ल, रामपाल. "भारतीय - नदी सम्पदा". HARIDRA 1, № 01 (2021): 45–49. http://dx.doi.org/10.54903/haridra.v1i01.7809.

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Abstract:
वैदिक तत्वों को स्फुटरूप से अवगत करने के लिए पुराणवांड्मय का आविर्भाव हुआ। महर्षि व्यास और उनके शिष्यों प्रशिष्यों ने वैदिक-वाणी को सामान्यजन तक संदेश देने के लिए पुराणों का प्रणयन कर संस्कृति और सभ्यता को प्रकाश में लाने का कार्य किया हैं। इनके अध्ययन से हम अपनी प्राचीन संस्कृति-सभ्यता और मूल्यों को समझ सकते हैं। अतः इनके अध्ययन से सांस्कृतिक - भौगोलिक - सामाजिक और राजनीतिक रहस्यों को समझ सकते हैं। पुराणों में वर्णित भौगौलिक वर्णन में श्रीमद्भागवत का वर्णन अत्यंत सटीक एवं गहन है। इसके अध्ययन से ही हमें हमारी प्राकृतिक सम्पदा और नदियों का मूल रहस्य एवं तथ्य ज्ञान हो सकता है।
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बावनकर, डॉ. अरुणा. "भूमितीय पैलू : भंडारा जिल्ह्यातील वैनगंगा नदी खो-यातील उर्ध्व पाणलोट क्षेत्र, आकारमितीय अध्ययन". International Journal of Advance and Applied Research 4, № 43 (2023): 112–20. https://doi.org/10.5281/zenodo.10554048.

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Abstract:
प्रस्तावना :वैनगंगा नदी ही भंडार जिल्ह्यातील महत्त्वाची नदी असून ती गोदावरी नदीची उपनदी आहे. वैनगंगा व वर्धा या दोन नद्यांच्या संयुक्त प्रवाह (प्राणहिता नदी) गोदावरी नदीला डाव्या तीरावर मिळतो. तसेच भंडारा जिल्ह्यातून जेव्हा वैनगंगा नदी वाहत जाते तेव्हा तिला चांदपूर सुर व वाकडा लहान-लहान प्रवाह सुद्धा येऊन मिळतात. या सर्व लहान मोठ्या प्रवाहांनी भंडारा जिल्ह्याच्या उजवीकडील उर्ध्व भागात एक प्रकारचे प्रवाह प्रणालीचे जाळे तयार केलेले आहे. या नदीप्रणालीला उप-पाणलोट क्षेत्रात विभागून वैनगंगा नदी खो-यांच्या आकारमितीचा अभ्यास केलेला आहे. आकारमिती म्हणजे कोणत्याही प्रदेशाचे किंवा नदी खो-याचे भूरूपीय स्
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3

विष्णु, शंकर तिवारी. "भारत-बांग्लादेश तीस्ता नदी जल विवाद का एक संक्षिप्त अवलोकन". International Journal of Advance and Applied Research 4, № 18 (2023): 180–82. https://doi.org/10.5281/zenodo.8052061.

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Abstract:
“जल ही जीवन है” हर जीवन का मूल आधार जल ही हैं, जिसके लिए आदि अनादि काल से धरती पर जीवन को बचाने के लिए जल की महत्ता रही है। उसी कड़ी में वर्ष 1951 में पूर्वी पाकिस्तान जो कि आज का बांग्लादेश से भारत की जल के साझाकरण पर एक चर्चा का प्रारंभ हुआ। तीस्ता नदी की बात की जाए तो इस पर भारत के पश्चिम बंगाल के उत्तर बंगाल के लगभग 6 जिले तीस्ता नदी पर ही आश्रित हैं। तथा पश्चिम बंगाल में इस नदी पर 60 मेगा वाट बिजली उत्पादन का हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट बना रखा है। नौ लाख बाइस हजार हेक्टेयर भूमि का सिंचन भी इसी नदी के जल पर निर्भर है। यदि बांग्लादेश की बात की जाए तो गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना के बा
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चन्द्रप्रभा, कण्डवाल. "पौड़ी जनपद में खोह नदी की पारिस्थितिकी तंत्र का विश्लेषणात्मक अध्ययन". RECENT RESEARCHES IN SOCIAL SCIENCES & HUMANITIES 11, № 2 (2024): 63–67. https://doi.org/10.5281/zenodo.13337219.

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Abstract:
षिवालिक श्रेणी से निकलने वाली खोह नदी का उद्गम स्थल उत्तराखण्ड राज्य के पौड़ी गढ़वाल जनपद मंे स्थित द्वारीखाल नामक स्थान पर लंगूरगाड़ व सिलगाड नामक नदियों के मिलन से हुआ है। इसका क्षेत्रफल कोटद्वार तक 23,600 कि0मी0 है। कोटद्वार से 10 किमी0 आगे बढ़ते हुए यह कोटद्वार भाबर के सनेह में कोलू नदी से मिल जाती है। यहां के पारिस्थितिकी में लगभग सभी प्रकार के जीव-जन्तु, पषु-पक्षी तथा वनस्पतियां पायी जाती है। इसका कारण नदी के आस-पास के क्षेत्र की अनुकूल जलवायु हंै। पारिस्थितिक जीवमण्डल के अध्ययन के लिए एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण है तथा जलीय पारिस्थितिकी तंत्र मानव आबादी के लिए महत्वपूर्ण संसाधन प्रदान करता ह
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5

Talekar, Publisher: P. R. "सेंद्रिय शेती काळाची गरज". International Journal of Advance and Applied Research 5, № 14 (2024): 116–18. https://doi.org/10.5281/zenodo.11178204.

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Abstract:
<strong>सारांश :&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; </strong> भारत हा एक खंडप्राय देश आहे, एवढेच नव्हे तर या देशात उष्ण हवामानापासून थंड हवामान पर्यंतचे प्रदेश अस्तित्वात आहेत. सिंधू नदी खोऱ्यातील शेतीच्या प्रारंभ स्थानाचा विस्तार बराच मोठा होता. उत्तरेकडे हिमालयाच्या पायथ्यापासून पूर्वेकडे यमुना नदी, दक्षिणेकडे नर्
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ढकाल Dhakal, चन्द्रप्रसाद Chandra Prasad. "नदी किनाराका माझी काव्यमा प्रतिरोध र आवाज". Shabda Sadhana शब्दसाधना 7, № 1 (2024): 99–110. https://doi.org/10.3126/shabdasadhana.v7i1.75091.

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Abstract:
प्रस्तुत अध्ययन मोहन कोइरालाको ‘नदी किनाराका माझी’ कवितामा प्रतिरोध र आवाजको अवस्था चित्रण गर्नमा केन्द्रित छ । यसमा सीमान्तीय प्रतिरोध र आवाज विश्लेषणका लागि माझीको प्रतिरोध र आवाज, मझिनीको प्रतिरोध र आवाज र कविको प्रतिरोध र आवाज गरी तीनओटा उपशीर्षक बनाइएको छ । यहाँ पुस्तकालयीय कार्यबाट प्राथमिक र द्वितीय सामग्रीको सङकलन गरेर विश्लेषणको अवधारणा निर्माण गरी विवेच्य कृतिको विश्लेषण गरिएको छ । यसमा कृति विश्लेषणका नवीनतम प्रवृत्तिको प्रयोग गर्दै सैद्धान्तिक अवधारणा निर्माण र कृति विश्लेषणका लागि निगमनात्मक र आंशिक रूपमा आगमनात्मक विधिको प्रयोग गरिएको छ । सैद्धान्तिक अवधारणाको निर्माण गर्दा सीमान
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आकांक्षा, सिंह, та के. रतनम प्रो. "मिर्जापुर के पुरा शैल चित्र स्थल". International Journal of Research - Granthaalayah 7, № 11(SE) (2019): 229–34. https://doi.org/10.5281/zenodo.3592553.

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Abstract:
बघेलखंड की उत्तरी सीमा उत्तर प्रदेश के दक्षिण पूर्व कोने से लगी हुई है, जो कि एक पर्वतीय क्षेत्र है, जो गंगा नदी के दक्षिण में स्थित है, यह अभी कुछ समय पहले तक मिर्जापुर जिले में आता था, परंतु अब प्रशासनिक दृष्टि से यह दो भागों में बांटा गया है। पहला भाग जो उत्तर दिशा का है, पूर्वतः मिर्जापुर ही है और दूसरा दक्षिण का भाग जो सोनभद्र कहलाता है, सोनभद्र का नाम यहाँ मध्य क्षेत्र में बहने वाली सोनभद्र नदी के नाम पर रखा गया है, यह लगभग दो राज्यों से घिरा है, पूर्व में बिहार और दक्षिण पश्चिम में मध्यप्रदेश से। सोनभद्र जनपद के मुखयालय राबर्टगंज सड़क के रास्ते वाराणसी, मिर्जापुर और इलाहाबाद से जुड़ा हु
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Dhakal, Chandra Prakash. "नदी किनाराका माझी कवितामा सीमान्तीकरण प्रक्रिया". Patan Gyansagar 7, № 1 (2025): 75–97. https://doi.org/10.3126/pg.v7i1.79571.

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Abstract:
नदी किनाराका भाझी' मोहन कोइरालाको लामो कविता हो । यो नदी किनाराका माझी लामा कवितासङ्ग्रहको पहिलो क्रममा रहेको कविता हो । यसमा नदीको किनारामा बसोवास गर्ने माझी समुदायको जीवनपद्धतिलाई प्रस्तुत गरिएको छ । यस अध्ययनमा 'नदी किनाराका माझी’ कवितामा रहेका सीमान्तीय वर्गको सीमान्तीकरण प्रक्रियाको निरूपण गरिएको छ । यस अध्ययनलाई पूरा गर्नका लागि प्राथमिक र द्वितीयक स्रोतबाट सामग्रीको सङ्कलन गरिएको छ । यो अध्ययन गुणात्मक पद्धतिमा आधारित छ । यसमा सङ्कलित सामग्रीको विश्लेषण विषयवस्तु विश्लेषण विधिमा गरिएको छ । प्रस्तुत अध्ययनको सैद्धान्तिक ढाँचा सीमान्तीय अध्ययन पद्धतिमा आधारित छ । यसमा सीमान्तीकरण प्रक्रिय
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तिवारी, डी पी. "गोलपुर, बूंदी के शैलचित्र". Humanities and Development 19, № 01 (2024): 39–42. https://doi.org/10.61410/had.v19i1.172.

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Abstract:
बंूदी जनपद के ंिहंडोली तहसील में गोलपुर गांव में 250 16’ 15’’ उत्तरी अक्षांश एवं 750 25’ 13’’ पूरबी देशान्तर पर चम्बल की एक सहायक स्थानीय पहाड़ी नदी मनाली के किनारे मुकन्दरा पहाड़ी से सटे पठार में एक भव्य शैलाश्रय है (चित्र-1)। यह नदी एक बरसाती नदी है जिसमें पूरे वर्ष भर पानी नहीं रहता है किन्तु कहीं-कहीं गहरे भाग में पानी का जमाव स्थाई रूप से बना रहता है। इसकी तलहटी में पत्तियों के जीवाश्म जगह-जगह दिखाई देते हैं
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ढकाल Dhakal, चन्द्रप्रसाद Chandraprasad. "नदी किनाराका माझी कवितामा सीमान्तीय प्रतिनिधित्व". Bagiswori Journal 3, № 01 (2024): 59–73. http://dx.doi.org/10.3126/bagisworij.v3i01.62015.

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Abstract:
प्रस्तुत अध्ययन मोहन कोइरालाको नदी किनाराका माझी कवितामा सीमान्तीय प्रतिनिधित्वको अवस्था चित्रण गर्नमा केन्द्रित छ । यसमा आएका माझी राज्यसत्ताको पहुँचबाट टाढा रहेका सीमान्तकृत वर्गका प्रतिनिधि पनि हुन् । यसमा सीमान्तीय प्रतिनिधित्वको विश्लेषणका लागि जातीय, वर्गीय र लैङ्गिक गरी तीन ओटा मापदण्ड निर्माण गरिएको छ । यहाँ पुस्तकालयीय कार्यबाट प्राथमिक र द्वितीय सामग्रीको सङ्कलन गरेर विश्लेषणको अवधारणा निर्माण गरी विवेच्य कृतिको विश्लेषण गरिएको छ । यसमा कृति विश्लेषणका नवीनतम प्रवृत्तिको प्रयोग गर्दै सैद्धान्तिक अवधारणा निर्माणका लागि निगमनात्मक र कृति विश्लेषणका क्रममा आगमनात्मक विधिको प्रयोग गरिएको
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Books on the topic "नदी"

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तुम्हारी मा को चोदु जब बुक ही नही है तो क्यों लिस्ट म नाव लिखते हो. तुम्हारा बाप, 2019.

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