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Journal articles on the topic 'नदी'

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शुक्ल, रामपाल. "भारतीय - नदी सम्पदा". HARIDRA 1, № 01 (2021): 45–49. http://dx.doi.org/10.54903/haridra.v1i01.7809.

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Abstract:
वैदिक तत्वों को स्फुटरूप से अवगत करने के लिए पुराणवांड्मय का आविर्भाव हुआ। महर्षि व्यास और उनके शिष्यों प्रशिष्यों ने वैदिक-वाणी को सामान्यजन तक संदेश देने के लिए पुराणों का प्रणयन कर संस्कृति और सभ्यता को प्रकाश में लाने का कार्य किया हैं। इनके अध्ययन से हम अपनी प्राचीन संस्कृति-सभ्यता और मूल्यों को समझ सकते हैं। अतः इनके अध्ययन से सांस्कृतिक - भौगोलिक - सामाजिक और राजनीतिक रहस्यों को समझ सकते हैं। पुराणों में वर्णित भौगौलिक वर्णन में श्रीमद्भागवत का वर्णन अत्यंत सटीक एवं गहन है। इसके अध्ययन से ही हमें हमारी प्राकृतिक सम्पदा और नदियों का मूल रहस्य एवं तथ्य ज्ञान हो सकता है।
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बावनकर, डॉ. अरुणा. "भूमितीय पैलू : भंडारा जिल्ह्यातील वैनगंगा नदी खो-यातील उर्ध्व पाणलोट क्षेत्र, आकारमितीय अध्ययन". International Journal of Advance and Applied Research 4, № 43 (2023): 112–20. https://doi.org/10.5281/zenodo.10554048.

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Abstract:
प्रस्तावना :वैनगंगा नदी ही भंडार जिल्ह्यातील महत्त्वाची नदी असून ती गोदावरी नदीची उपनदी आहे. वैनगंगा व वर्धा या दोन नद्यांच्या संयुक्त प्रवाह (प्राणहिता नदी) गोदावरी नदीला डाव्या तीरावर मिळतो. तसेच भंडारा जिल्ह्यातून जेव्हा वैनगंगा नदी वाहत जाते तेव्हा तिला चांदपूर सुर व वाकडा लहान-लहान प्रवाह सुद्धा येऊन मिळतात. या सर्व लहान मोठ्या प्रवाहांनी भंडारा जिल्ह्याच्या उजवीकडील उर्ध्व भागात एक प्रकारचे प्रवाह प्रणालीचे जाळे तयार केलेले आहे. या नदीप्रणालीला उप-पाणलोट क्षेत्रात विभागून वैनगंगा नदी खो-यांच्या आकारमितीचा अभ्यास केलेला आहे. आकारमिती म्हणजे कोणत्याही प्रदेशाचे किंवा नदी खो-याचे भूरूपीय स्
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3

विष्णु, शंकर तिवारी. "भारत-बांग्लादेश तीस्ता नदी जल विवाद का एक संक्षिप्त अवलोकन". International Journal of Advance and Applied Research 4, № 18 (2023): 180–82. https://doi.org/10.5281/zenodo.8052061.

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Abstract:
“जल ही जीवन है” हर जीवन का मूल आधार जल ही हैं, जिसके लिए आदि अनादि काल से धरती पर जीवन को बचाने के लिए जल की महत्ता रही है। उसी कड़ी में वर्ष 1951 में पूर्वी पाकिस्तान जो कि आज का बांग्लादेश से भारत की जल के साझाकरण पर एक चर्चा का प्रारंभ हुआ। तीस्ता नदी की बात की जाए तो इस पर भारत के पश्चिम बंगाल के उत्तर बंगाल के लगभग 6 जिले तीस्ता नदी पर ही आश्रित हैं। तथा पश्चिम बंगाल में इस नदी पर 60 मेगा वाट बिजली उत्पादन का हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट बना रखा है। नौ लाख बाइस हजार हेक्टेयर भूमि का सिंचन भी इसी नदी के जल पर निर्भर है। यदि बांग्लादेश की बात की जाए तो गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना के बा
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4

चन्द्रप्रभा, कण्डवाल. "पौड़ी जनपद में खोह नदी की पारिस्थितिकी तंत्र का विश्लेषणात्मक अध्ययन". RECENT RESEARCHES IN SOCIAL SCIENCES & HUMANITIES 11, № 2 (2024): 63–67. https://doi.org/10.5281/zenodo.13337219.

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Abstract:
षिवालिक श्रेणी से निकलने वाली खोह नदी का उद्गम स्थल उत्तराखण्ड राज्य के पौड़ी गढ़वाल जनपद मंे स्थित द्वारीखाल नामक स्थान पर लंगूरगाड़ व सिलगाड नामक नदियों के मिलन से हुआ है। इसका क्षेत्रफल कोटद्वार तक 23,600 कि0मी0 है। कोटद्वार से 10 किमी0 आगे बढ़ते हुए यह कोटद्वार भाबर के सनेह में कोलू नदी से मिल जाती है। यहां के पारिस्थितिकी में लगभग सभी प्रकार के जीव-जन्तु, पषु-पक्षी तथा वनस्पतियां पायी जाती है। इसका कारण नदी के आस-पास के क्षेत्र की अनुकूल जलवायु हंै। पारिस्थितिक जीवमण्डल के अध्ययन के लिए एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण है तथा जलीय पारिस्थितिकी तंत्र मानव आबादी के लिए महत्वपूर्ण संसाधन प्रदान करता ह
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5

Talekar, Publisher: P. R. "सेंद्रिय शेती काळाची गरज". International Journal of Advance and Applied Research 5, № 14 (2024): 116–18. https://doi.org/10.5281/zenodo.11178204.

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Abstract:
<strong>सारांश :&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; </strong> भारत हा एक खंडप्राय देश आहे, एवढेच नव्हे तर या देशात उष्ण हवामानापासून थंड हवामान पर्यंतचे प्रदेश अस्तित्वात आहेत. सिंधू नदी खोऱ्यातील शेतीच्या प्रारंभ स्थानाचा विस्तार बराच मोठा होता. उत्तरेकडे हिमालयाच्या पायथ्यापासून पूर्वेकडे यमुना नदी, दक्षिणेकडे नर्
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ढकाल Dhakal, चन्द्रप्रसाद Chandra Prasad. "नदी किनाराका माझी काव्यमा प्रतिरोध र आवाज". Shabda Sadhana शब्दसाधना 7, № 1 (2024): 99–110. https://doi.org/10.3126/shabdasadhana.v7i1.75091.

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Abstract:
प्रस्तुत अध्ययन मोहन कोइरालाको ‘नदी किनाराका माझी’ कवितामा प्रतिरोध र आवाजको अवस्था चित्रण गर्नमा केन्द्रित छ । यसमा सीमान्तीय प्रतिरोध र आवाज विश्लेषणका लागि माझीको प्रतिरोध र आवाज, मझिनीको प्रतिरोध र आवाज र कविको प्रतिरोध र आवाज गरी तीनओटा उपशीर्षक बनाइएको छ । यहाँ पुस्तकालयीय कार्यबाट प्राथमिक र द्वितीय सामग्रीको सङकलन गरेर विश्लेषणको अवधारणा निर्माण गरी विवेच्य कृतिको विश्लेषण गरिएको छ । यसमा कृति विश्लेषणका नवीनतम प्रवृत्तिको प्रयोग गर्दै सैद्धान्तिक अवधारणा निर्माण र कृति विश्लेषणका लागि निगमनात्मक र आंशिक रूपमा आगमनात्मक विधिको प्रयोग गरिएको छ । सैद्धान्तिक अवधारणाको निर्माण गर्दा सीमान
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आकांक्षा, सिंह, та के. रतनम प्रो. "मिर्जापुर के पुरा शैल चित्र स्थल". International Journal of Research - Granthaalayah 7, № 11(SE) (2019): 229–34. https://doi.org/10.5281/zenodo.3592553.

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Abstract:
बघेलखंड की उत्तरी सीमा उत्तर प्रदेश के दक्षिण पूर्व कोने से लगी हुई है, जो कि एक पर्वतीय क्षेत्र है, जो गंगा नदी के दक्षिण में स्थित है, यह अभी कुछ समय पहले तक मिर्जापुर जिले में आता था, परंतु अब प्रशासनिक दृष्टि से यह दो भागों में बांटा गया है। पहला भाग जो उत्तर दिशा का है, पूर्वतः मिर्जापुर ही है और दूसरा दक्षिण का भाग जो सोनभद्र कहलाता है, सोनभद्र का नाम यहाँ मध्य क्षेत्र में बहने वाली सोनभद्र नदी के नाम पर रखा गया है, यह लगभग दो राज्यों से घिरा है, पूर्व में बिहार और दक्षिण पश्चिम में मध्यप्रदेश से। सोनभद्र जनपद के मुखयालय राबर्टगंज सड़क के रास्ते वाराणसी, मिर्जापुर और इलाहाबाद से जुड़ा हु
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Dhakal, Chandra Prakash. "नदी किनाराका माझी कवितामा सीमान्तीकरण प्रक्रिया". Patan Gyansagar 7, № 1 (2025): 75–97. https://doi.org/10.3126/pg.v7i1.79571.

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Abstract:
नदी किनाराका भाझी' मोहन कोइरालाको लामो कविता हो । यो नदी किनाराका माझी लामा कवितासङ्ग्रहको पहिलो क्रममा रहेको कविता हो । यसमा नदीको किनारामा बसोवास गर्ने माझी समुदायको जीवनपद्धतिलाई प्रस्तुत गरिएको छ । यस अध्ययनमा 'नदी किनाराका माझी’ कवितामा रहेका सीमान्तीय वर्गको सीमान्तीकरण प्रक्रियाको निरूपण गरिएको छ । यस अध्ययनलाई पूरा गर्नका लागि प्राथमिक र द्वितीयक स्रोतबाट सामग्रीको सङ्कलन गरिएको छ । यो अध्ययन गुणात्मक पद्धतिमा आधारित छ । यसमा सङ्कलित सामग्रीको विश्लेषण विषयवस्तु विश्लेषण विधिमा गरिएको छ । प्रस्तुत अध्ययनको सैद्धान्तिक ढाँचा सीमान्तीय अध्ययन पद्धतिमा आधारित छ । यसमा सीमान्तीकरण प्रक्रिय
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तिवारी, डी पी. "गोलपुर, बूंदी के शैलचित्र". Humanities and Development 19, № 01 (2024): 39–42. https://doi.org/10.61410/had.v19i1.172.

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Abstract:
बंूदी जनपद के ंिहंडोली तहसील में गोलपुर गांव में 250 16’ 15’’ उत्तरी अक्षांश एवं 750 25’ 13’’ पूरबी देशान्तर पर चम्बल की एक सहायक स्थानीय पहाड़ी नदी मनाली के किनारे मुकन्दरा पहाड़ी से सटे पठार में एक भव्य शैलाश्रय है (चित्र-1)। यह नदी एक बरसाती नदी है जिसमें पूरे वर्ष भर पानी नहीं रहता है किन्तु कहीं-कहीं गहरे भाग में पानी का जमाव स्थाई रूप से बना रहता है। इसकी तलहटी में पत्तियों के जीवाश्म जगह-जगह दिखाई देते हैं
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ढकाल Dhakal, चन्द्रप्रसाद Chandraprasad. "नदी किनाराका माझी कवितामा सीमान्तीय प्रतिनिधित्व". Bagiswori Journal 3, № 01 (2024): 59–73. http://dx.doi.org/10.3126/bagisworij.v3i01.62015.

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Abstract:
प्रस्तुत अध्ययन मोहन कोइरालाको नदी किनाराका माझी कवितामा सीमान्तीय प्रतिनिधित्वको अवस्था चित्रण गर्नमा केन्द्रित छ । यसमा आएका माझी राज्यसत्ताको पहुँचबाट टाढा रहेका सीमान्तकृत वर्गका प्रतिनिधि पनि हुन् । यसमा सीमान्तीय प्रतिनिधित्वको विश्लेषणका लागि जातीय, वर्गीय र लैङ्गिक गरी तीन ओटा मापदण्ड निर्माण गरिएको छ । यहाँ पुस्तकालयीय कार्यबाट प्राथमिक र द्वितीय सामग्रीको सङ्कलन गरेर विश्लेषणको अवधारणा निर्माण गरी विवेच्य कृतिको विश्लेषण गरिएको छ । यसमा कृति विश्लेषणका नवीनतम प्रवृत्तिको प्रयोग गर्दै सैद्धान्तिक अवधारणा निर्माणका लागि निगमनात्मक र कृति विश्लेषणका क्रममा आगमनात्मक विधिको प्रयोग गरिएको
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Joshi, Dr Beena. "गगास नदी की मरती सहायक धाराऐं". International Journal of Political Science and Governance 4, № 2 (2022): 01–03. http://dx.doi.org/10.33545/26646021.2022.v4.i2a.164.

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Yaduvanshi, Sushma. "Maa reva waisi nahi rahi." HARIDRA 1, no. 04 (2020): 05–06. http://dx.doi.org/10.54903/haridra.v1i04.7759.

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Abstract:
भारत में वैसे तो अनेक पुण्य प्रदाता नदियाँ हैं और प्रत्येक नदियों का अपना स्थान विशेष महत्व है। गंगा का हरिद्वार, काशी, प्रयाग से लेकर गंगा सागर तक और छोटी से छोटी नदियों का अपने छोटे से आँचल क्षेत्र में अपना विशेष महत्व। नर्मदा नदी केवल नदी मात्र ही नहीं अपितु आस्था व विश्वास का प्रतीक है, यह प्रदेशवासियों के लिए जीवनदायिनि नदी है। इसलिए इसके जल का निर्मल एवं अविरल बहते रहना अत्यंत आवश्यक है। इसका संरक्षण किया जाना आज हमारे लिए बहुत जरूरी हो गया है। वर्तमान में नदियों को बचाना और जल प्रदूषण से उन्हें मुक्त रखना हमारे लिए प्रमुख कार्य हो गया है।
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प्रभाकर, कु. वाघमारे पार्वती. ""आसना नदी खोऱ्यातील बदलत्या हवामानाचा भौगोलिक अभ्यास"". International Journal of Advance and Applied Research 4, № 43 (2023): 130–33. https://doi.org/10.5281/zenodo.10554237.

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Abstract:
सारांश :प्रस्तुत अभ्यासाचा मुख्य विषय हा आसना नदी खोऱ्यातील हवामानाचा अभ्यास करणे असून आसना नदीच्या खोऱ्यातील मध्ये बिंदू ज्याचा विस्तार (अक्षवृतीय १९֯ ३८४० उत्तर ते रेखावृतील ७७ ३५३३) एवढा आहे. हा बिंदू आसना खोऱ्यातील मध्ये भागातला असून या संदर्भातील आकडेवारीही खोऱ्यातील समजून तेथील &nbsp;तापमान, पर्जन्यमान व आर्द्रता या तीन घटकांची मागील ४२ वर्षात हवामानातील काय बदल झाला आहे, हे अभ्यासण्यासाठी ४२ वर्षाचे दोन गटात विभागणी करून त्याची सरासरी काढून हवामानाच्या &nbsp;परिस्थितीचा आढावा घेण्यात आलेला आहे. त्यानुसार संपूर्ण आसना खोऱ्यातील हवामानातील परिस्थिती ग्रहीत धरून अभ्यास करण्यात आलेला आहे.&n
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ख ुट, डिश्वर नाथ. "बस्तर का नलवंश एक ऐतिहासिक पुनरावलोकन". Mind and Society 9, № 03-04 (2020): 47–52. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-93-4-20217.

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Abstract:
सभ्यता का विकास पाषाण काल स े प ्रार ंभ हा ेता ह ै। इस काल म ें बस्तर म े रहन े वाल े मानव भी पत्थर क े न ुकील े आ ैजार बनाकर नदी नाल े आ ैर ग ुफाआ ें म ें रहत े थ े। इसका प ्रमाण इन्द ्रावती आ ैर नार ंगी नदी के किनार े उपलब्ध उपकरणों स े हा ेता है। व ैदिक युग म ें बस्तर दक्षिणापथ म ें शामिल था। रामायण काल म ें दण्डकारण्य का े उल्ल ेख मिलता ह ै। मा ैर्य व ंश क े महान शासक अशा ेक न े कलि ंग (उड ़ीसा) पर आक्रमण किया था, इस य ुद्ध म ें दण्डकारण्य क े स ैनिका ें न े कलि ंग का साथ दिया था। कलि ंग विजय क े बाद भी दण्डकारण्य का राज्य अशा ेक प ्राप्त नही ं कर सका। वाकाटक शासक रूद ्रस ेन प ्रथम क े समय
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दर्नाल Darnal, प्रकाश Prakash. "उदयपुर गाईघाटस्थित मुढगडाको परीक्षण उत्खनन". HISAN: Journal of History Association of Nepal 10, № 1 (2024): 151–57. https://doi.org/10.3126/hisan.v10i1.74909.

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Abstract:
उदयपुर जिल्लाको सदरमुकाम गाईघाटमा त्रियुगा नगरपालिका रहेको छ । यसको पूर्वमा चौेदण्डीगढी नगरपालिका, उत्तरमा रौतामाई गाउँपालिका र खोटाङ जिल्ला, पश्चिममा उदयपुरगढी गाउँपालिका र सप्तरी जिल्ला तथा दक्षिणमा सप्तरी जिल्ला रहेका छन् । त्रियुगा नदीलाई प्राचीनकालमा तिरुवा भनिन्थ्यो र पछि अपभ्रंश भई त्रियुगा भनिएको भन्ने मान्यता रहँदै आएको छ । चुरे पहाड, भित्री मधेश, महाभारत श्रृंखलाका रुपमा उदयपुरको भूगोलको स्वरुप रहेको छ । यसको दक्षिणको भाग विदेह वा मिथिला र उत्तरी भाग माझ किरातको प्रभाव क्षेत्रमा प्राचीनकालदेखि रहदै आएको पाइन्छ । विदेहको सीमाना पूर्वमा कोशी नदी, दक्षिणमा गंगा नदी, उत्तरमा हिमालय पहाड
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तिवारी, डी पी, та अनुष्का ओझा. "चट्टानेश्वर महादेव, कोटा, राजस्थान के शैलचित्र". Humanities and Development 18, № 02 (2024): 80–85. https://doi.org/10.61410/had.v18i2.148.

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Abstract:
चट्टानेश्वर महादेव नाम से सुप्रि सद्ध स्थल कोटा जनपद, (राजस्थान) मुख्यालय से लगभग25 किलोमीटर की दूरी पर चम्पावती नदी की सहायक नदी चन्द्रलोटी के किनारे 250 01’ 50’’ उत्तरीअक्षाश्ं ा एव ं 750 55’ 03’’ पूरबी देशान्तर पर स्थित है। इस स्थल पर पहुंचने के लिए काटे ा सेझालावाड़ जाने वाली पक्की सड़क पर 21 किलोमीटर चलने के उपरान्त सर्विस रोड से नीचे उतर करबाईं तरफ जाने वाली पतली पक्की सड़क से लगभग 2 किलोमीटर किसी वाहन से चल कर रेलवेलाइन के किनारे तक पंहुचा जा सकता है।
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पाटील, प्राजक्ता रवींद्र, та डॉ. पाटील संदीप अर्जूना प्रा. "कोल्हापूर जिल्हा: कुंभी नदीखोऱ्यातील साक्षरतेचा अभ्यास- २०११". International Journal of Advance and Applied Research S6, № 6 (2025): 150–58. https://doi.org/10.5281/zenodo.15063506.

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Abstract:
<em>जगातील विकसित देशांच्या तुलनेत भारतामध्ये साक्षरता निम्न्न आहे. भारत देशाला विकसित राष्ट्र करण्यासाठी भारतातील ग्रामीण जनतेची साक्षरता अभ्यासणे अत्यंत आवश्यक आहे. भारत हा खेड्यांचा देश असून भारतातील बहुसंख्य (६८ ते ७०%) लोकसंख्या खेड्यात राहते. ग्रामीण प्रदेशातील साक्षरता अभ्यासणे आणि साक्षरता वाढवण्यासाठी विविध पायाभूत उपाय-योजना करणे हे सध्याचे मानवी समुदाया समोरील आव्हान आहे. त्यानुसार प्रस्तुत संशोधन पेपर मधून कोल्हापूर जिल्ह्यातील </em><em>कुंभी</em><em> नदी खोऱ्यात येणाऱ्या गावातील साक्षरतेचा सन </em><em>२०११</em><em> मधील अभ्यास करण्यात आलेला आहे</em><em>.</em><em> कुंभी</em><em> नद
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Deepak Kumar Warkade та Dr. Anamika Rawat. "सिवनी जिले में पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं की राजनैतिक सहभागिता और विकास में सह-संबंध का अध्ययन". Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education 21, № 1 (2024): 21–25. http://dx.doi.org/10.29070/v258vr26.

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Abstract:
सिवनी जिला भारत के मध्य भाग, मध्य प्रदेश राज्य में स्थित है। यह जिला अपनी समृद्ध ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत के साथ-साथ अपनी भौगोलिक विशेषताओं के कारण भी महत्व रखता है। सिवनी, भारत के मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में स्थित, एक समृद्ध इतिहास और भौगोलिक महत्व वाला एक शहर और नगर पालिका है। जिला, जो मुख्य रूप से आदिवासी परिवारों द्वारा बसा हुआ है, 1956 में स्थापित किया गया था। विशेष रूप से, सिवनी के आसपास के जंगल, जिन्हें ब्रिटिश औपनिवेशिक युग के दौरान सिवनी कहा जाता था, द जंगल बुक में रुडयार्ड किपलिंग (1894-1895) की प्रसिद्ध मोगली कहानियों की पृष्ठभूमि के रूप में काम करते थे। सिवनी गोदावरी नदी की
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कुमार, डॉ अरूण. "भोजपुर जिला में आँगनवाड़ी योजना की स्थिति एवं विकास: एक भौगोलिक अध्ययन". International Journal of Advance and Applied Research 5, № 3 (2024): 186–89. https://doi.org/10.5281/zenodo.10893035.

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Abstract:
<strong>अध्ययन क्षेत्र :</strong><strong>- </strong> भोजपुर जिला का विस्तार 25<sup>0</sup>10' उत्तरी अक्षांश से 25<sup>0</sup>40' उत्तरी अक्षांश तथा 83<sup>0</sup>45' पूर्वी देशांतर से 84<sup>0</sup>45' पूर्वी देशांतर के बीच है। इसके उत्तर में गंगा नदी, दक्षिण में रोहतास जिला, पूरब में सोन नदी तथा पश्चिम में बक्सर जिला सीमा का निर्धारण करते हैं। भोजपुर जिला का भौगोलिक क्षेत्रफल 2395 वर्ग किलोमीटर है। 2011 के जनगणना के अनुसार यहॉ की कुल आबादी 2720155 है। यहाँ 3 अनुमंडल तथा 14 प्रखंड है। यहॉ बच्चे एवं गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य की देखभाल करने के लिए बिहार सरकार ने आँगनबाड़ी परियोजना के तहत एक
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डॉ, .आर .एन .वाकले प्रा.आर.पी.ठाकरे. "उषा प्रियवदा के "नदी" उपन्यास में प्रवासी स्त्री जीवन का यथार्थ". Journal of Research & Development' 14, № 12 (2022): 43–46. https://doi.org/10.5281/zenodo.7053581.

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Abstract:
<strong>प्रस्तावना</strong><strong> :</strong> &nbsp;भारतीय&nbsp;&nbsp; समाज&nbsp;&nbsp; सदैव&nbsp;&nbsp; से&nbsp;&nbsp; ही&nbsp;&nbsp; पुरुष&nbsp;&nbsp; प्रधान&nbsp;&nbsp; रहा&nbsp;&nbsp; है।&nbsp;&nbsp; समाज&nbsp;&nbsp; में&nbsp;&nbsp; स्त्री&nbsp;&nbsp; के&nbsp;&nbsp; स्वतंत्र&nbsp;&nbsp; अस्तित्व&nbsp;&nbsp; का&nbsp;&nbsp; हमारी&nbsp;&nbsp; सांस्कृतिक&nbsp;&nbsp; मान्यताएं ,&nbsp; रूढ़ियां&nbsp;&nbsp; परंपराएं&nbsp;&nbsp; और&nbsp;&nbsp; रीति - रिवाज&nbsp;&nbsp; विरोध&nbsp;&nbsp; करते&nbsp;&nbsp; हैं।&nbsp;&nbsp; इसलिए&nbsp;&nbsp; सदैव&nbsp;&nbsp; से&nbsp;&nbsp; ही&nbsp;&nbsp; स्त्रियों&nbs
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सिन्हा, पद ्मनी, та आभा रूप ेन्द ्र पाल. "द ुग र् जिल े म ें सि ंचाइ र् स ंसाधन एव ं तान्द ुला परिया ेजनाए". Mind and Society 8, № 01-02 (2019): 64–71. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-81-2-201911.

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Abstract:
विश्व के हर क्षेत्र में रहन े वाले लोगों के जीवन का आधार स्तम्भ जल ही हैं। जल ही जीवन हैं। जल भूतल पर पाये जाने वाले समस्त प्राणियों एव ं वनस्पतियों के जीवन का आधार हैं। जल के अभाव में पौधे , वृक्ष , प्राणी , जीव एव ं वातावरण की अन ेक क्रियाएॅं संभव नहीं हैं। जल प्रकृति का अमूल्य संसाधन हैं। सजीवों में जीवन की सम्पूर्ण जैविक क्रियाएॅ ं जल की उपस्थिति में ही होती हैं। जल समस्त पशुओं वनस्पतियों व मानव जीवन का मुख्य आधार हैं। जल का उपयोग कृषि , उद्योग तथा घरेलू उपयोग के संसाधन के रूप में किया जाता हैं। भौगोलिक संरचना के अनुसार प्रदेश की प्रमुख नदी, महानदी की सहायक नदियां - खारून , ताद ुला , शिवना
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सिंह, रंजना, та राजेश उपाध्याय. "मेघदूत में प्र‟ति-प्रेम". Humanities and Development 19, № 01 (2024): 22–24. https://doi.org/10.61410/had.v19i1.168.

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Abstract:
भौतिक जगत के ईश्वर-प्रदत्त पदार्थ पर्वत वन, नदी सागर सरित् इत्यादि बाह्य प्र‟ति कहलाते हैं तथा मानव अन्तःकरण अन्तःप्र‟ति कहलाता है। महाकवि कालिदास बाह्य प्र‟ति एवं अन्तः प्र‟ति के चित्रण के अनुपम चितेरे हैं। उनके काव्यों में इन दोनों प्रकार की प्र‟ति का चित्रण अपूर्व वैशिष्ट्य लिए हुयेे है।
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Patel, Lalji, та Dr Vikrant Jain. "अनूपपुर जिले की टिपन नदी के जल के भौतिक-रासायनिक मापदण्डों का विश्लेषण". International Journal of Advanced Academic Studies 6, № 5 (2024): 129–35. http://dx.doi.org/10.33545/27068919.2024.v6.i5b.1186.

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Tiwari, Mr Mithilesh, та Bal Govind. "उत्तर प्रदेश में गंगा नदी का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व: एक भौगोलिक अध्ययन". International Journal of Social Science Research (IJSSR) 2, № 3 (2025): 1–7. https://doi.org/10.70558/ijssr.2025.v2.i3.30353.

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थापा Thapa, दिब्या श्री Dibya Shree. "नेपाली नदी प्रणाली तथा गढी, किल्ला : एक सामरिक महत्व (Nepali river system and fortress, fort: a strategic importance)". Unity Journal 3, № 01 (2022): 331–49. http://dx.doi.org/10.3126/unityj.v3i01.43336.

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Abstract:
प्रस्तुत आलेख ‘नेपाली नदी प्रणाली तथा गढी, किल्ला: एक सामरिक महत्त्व’ शीर्षकमा केन्द्रित रही प्रकाश पार्नु यसको उद्देश्य हो । यो लेखको विश्लेषणको मूल आधार वर्णनात्मक र तुलनात्मक पद्धति हो । यो लेखलाई पुरा गर्ने अन्य थप आधारहरु गुणात्मक, विवरणात्मक तथा विश्लेषणात्मक र अवलोकनात्मक विधि हुन् । राष्ट्रिय हित प्रबर्धनमा केन्द्रित रहनु यो लेखको दृष्टिगत मूल्य रहेको छ । भूपरिवेष्ठित राष्ट्र नेपाल समुद्रबाट वञ्चित भएपनि नदी नालाहरुको प्रचुरतायुक्त भूराजनीतिक स्वरुपमा अवस्थित सामरिक गढी, किल्लाहरु परस्परमा अन्र्तनीहित रही राष्ट्रिय सुरक्षा, स्वतन्त्रताका लागि महत्त्वपूर्ण योगदान दिंदैआएका छन् । चिनियां
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Meena, Tulsi Ram. "Jagdish Gupta’s Poetry: Chhand Shati, Gopa Gautam." RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 9, no. 12 (2024): 295–300. https://doi.org/10.31305/rrijm.2024.v09.n12.036.

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Abstract:
When focusing on the creative aspects of modern poetry, Jagdish Gupta’s poetic creations reflect a deeply ingrained Indian philosophical tradition. This is why his poetry often embodies the essence of riverbanks and the free companionship of nature, never being overwhelmed by urban civilization. Rather than integrating with the metropolitan environment, his poetry seems to fragment the visuals, as modern city life remains an exception in Indian culture, unlike in Europe. Instead of evoking harmony, his poetry conveys an awareness of internal disparity. However, when examining Dr. Jagdish Gupta
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खिळदकर, प्रा. डॉ. रमेश जयवंत. "संतांची पर्यावरणीय निसर्ग वर्णने". International Journal of Advance and Applied Research 5, № 5 (2024): 340–42. https://doi.org/10.5281/zenodo.10852748.

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Abstract:
<strong>प्रस्तावना</strong>:- निसर्गातील इतर सजीव प्राण्यांपेक्षा मानवप्राणी बुद्धीने, ज्ञानाने सरस असल्यामुळे तो निसर्गातील एक महत्त्वाचा घटक झालेला आहे. निसर्ग या संकल्पनेत प्राणी, पशुपक्षी, मानव, झाडे, नदी, पर्वत, हवा, पाणी इत्यादी जैविक-अजैविक घटकांचा समावेश होतो. यातील प्रत्येक घटक एकमेकांवर अवलंबून आहेत. यातील मानवप्राणी निसर्गाची देणं असला तरी त्याने आपल्या हुशारीने बाकीच्या सर्व घटकांवर कमी-जास्त प्रभाव टाकलेला आहे. मानवाने आपल्या रोजच्या जीवनशैलीमधून निसर्ग घटकांना ओरबाडल्यामुळे सृष्टीचक्रात अडथळे निर्माण झालेले आहे. याचा भयंकर परिणाम मानव प्राण्यांना भोगावा लागत आहे. म्हणूनच मानवी प्
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बी0, सी0 एस0 नेगी. "उत्तराखंण्ड में परिवर्तित ग्रामीण आवासीय स्वरूप का अध्ययन". RECENT RESEARCHES IN SOCIAL SCIENCES & HUMANITIES (ISSN 2348–3318) 9, № 4 (Oct.-Nov.-Dec. 2022) (2022): 25–29. https://doi.org/10.5281/zenodo.7538864.

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Abstract:
प्रस्तुत अघ्ययन उत्तराखंण्ड़ के ग्रामीण आवासीय स्वरूप का समग्र अध्ययन करने पर यह पता चलता है कि क्षेत्र के ग्रामीण आवासीय स्वरूप में तीव्र गति से परिवर्तन हुये है, परिवर्तनषीलता के परिणामस्वरूप ही परम्परागत भवन-निर्माण षैली धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है, अतः हमें आधुनिक संषाधनों के साथ-साथ अपनी उत्तराखंड की सांस्कृतिक सभ्यता को जीवित रखने के लिये परम्परागत भवनों को संरक्षित रखना होगा, तथा प्राकृतिक आपदाओं को ध्यान में रखते हुए भवनों का निर्माण स्थाई एवं सुरक्षित स्थान पर करना होगा भवनों को नदी, गाड, गधेरा, जंगल के मध्य निर्मित करने से रोकने की आवष्यकता है।
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गीताली, सेनग ुप्ता. "मानव स्वास्थ्य एवं प्रदूषण". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–5. https://doi.org/10.5281/zenodo.803458.

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Abstract:
‘‘स्वस्थ्य शरीर में ही स्वस्थ्य मन का निवास होता ह ै।’’ उत्तम स्वास्थ्य प ्रत्येक मन ुष्य के लिए अम ूल्य निधि है, दीर्घ आयु एव ं उत्तम स्वास्थ्य का अट ूट ब ंधन है। इस संदर्भ में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा दी र्गइ परिभाषा सर्वमान्य है -’’ स्वास्थ्य संप ूर्ण शारीरिक, मानसिक व सामाजिक निरोगता की अवस्था हैं तथा मात्र बीमारी या द ुर्बलता की अन ुपस्थिति को स्वास्थ्य नही माना जा सकता है।’’ अर्था त स्वास्थ्य एक सामान्य व्यक्ति क े लिए स्वस्थ्य वातावरण में, स्वस्थ्य परिवार मे ं, स्वस्थ्य शरीर में स्वस्थ्य दिमाग का वास है। प्राकृतिक वातावरण की संुदरता प ेड ़ - पौधे, जीव - जंत ुआ े, नदी - तालाब, पर्वत
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अनंतकवळस, प्रा. डॉ. मधूकर बाबूराव. "सोलापूर जिल्ह्यातील जलसिंचन सुविधांमुळे झालेला बदल". International Journal of Advance and Applied Research 12, № 2 (2024): 304–9. https://doi.org/10.5281/zenodo.14671464.

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Abstract:
<strong>गोषवारा:- .</strong> &nbsp;&nbsp; &nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; भारत देशामध्ये एकूण १४२.६ कोटी हेक्टर जमीन असून त्यापैकी ५७ कोटी हेक्टर जमीन सिंचनाखाली आलेली आहे. देशात केवळ जेमेतेम चार महिनेच पडणाऱ्या पावसाचे योग्य नियोजन करून जलसिंचनाचे स्त्रोत वाढवून वर्ष भर शेतीला पाणी उपलब्ध करून दिले जाते. तसेच पिण्यासाठीचीही व इतर सर्व आवश्यक घटकासाठीची सोय केली जाते आहे. त्यासाठी नदी, तलाव, विहिरी अशा साधनांचा उपयोग करून शेती सिंचनाखाली वाढविण्याचा प्रयत्न होत आहे. महाराष्ट्रातील सोलापूर&nbsp; जिल्ह्यामध्ये भिमा ही प्रमुख नदी असून तिच्या उजवीकडील भागात निरा व माण आणि डाव्या भ
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झा, सन्तोष कुमार, та प्रो एन के तिवारी. "अयोध्या अतीत से वर्तमान तकः एक ऐतिहासिक अनुशीलन". Humanities and Development 18, № 1 (2018): 76–79. http://dx.doi.org/10.61410/had.v18i1.116.

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Abstract:
अयोध्या का इतिहास अपनी प्राचीनता के साथ-साथ रामजन्मभूमि एवं बाबरी मस्जिद विवाद के कारण निरन्तर वैश्विक धरातल पर अपनी उपस्थिति दर्ज करता रहा है। अयोध्या की पहचान भारत ही नहीं बल्कि एशिया के देशों में भी बनी रही है। सरयू नदी के तट पर बसे अयोध्या (फैजाबाद) की महत्ता सर्वविदित है। जिसे कोशल के नाम से भी जाना जाता है। सामाजिक, सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से ओत-प्रोत भगवान श्रीराम की जन्म स्थली हजारों हिन्दू देवालयों, बौद्ध, जैन एवं मुस्लिम धर्म को समेटे हुए सहज रूप में अयोध्या के महत्व का अनुभव किया जा सकता है। अयोध्या को विभिन्न धर्मों एवं संस्कृतियों का केन्द्र भी कहा जा सकता है।
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Divya, Singh. "भानपुरा क्षेत्र के प्रमुख शैलचित्र स्थल तथा यहाँ की कलात्मक धरोहर". International Journal of Research - Granthaalayah 5, № 11 (2017): 295–306. https://doi.org/10.5281/zenodo.1098393.

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Abstract:
सारांश:- शैलचित्रों से तात्पर्य है शैलाश्रयों, गुफाओं, नदी नालों की दीवारों, छतों तथा खुली चट्टानों परपुरा मानव द्वारा &nbsp;किये गये चित्रण को शैल चित्र कहते हैं। शैलचित्र वह कला है जिसमें मानव के अभ्युदय होने के प्रमाण मिलते है जो उस समय के मानव के कलात्मक विकास और तीव्र इच्द्दा शक्ति की सोच को दर्शाता है।&nbsp; शैलचित्रों के अतिरिक्त मानव इतिहास के विभिन्न कालखण्डों में गीत, संगीत, नृत्य व अन्य विधाओं को भी मानव ने अपनी कलात्मक अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया होगा, परन्तु शैलचित्रों के अतिरिक्त अन्य माध्यम में की गयी अभिव्यक्ति काल के थपेड़ों में सुरक्षित नहीं रह सकीं। अतः शैलचित्र मानव की सर्वा
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बी0, सी0 एस0 नेगी. "उत्तराखंण्ड में परिवर्तित ग्रामीण आवासीय स्वरूप का अध्ययन". Recent Researches in Social Sciences & Humanities (ISSN: 2348 – 3318) 9, № 2 (Apr.-May-June) (2022): 51–56. https://doi.org/10.5281/zenodo.6844156.

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Abstract:
प्रस्तुत अघ्ययन उत्तराखंण्ड़ के ग्रामीण आवासीय स्वरूप का समग्र अध्ययन करनें पर यह निष्कर्ष निकलता है। कि क्षेत्र के ग्रामीण आवासीय स्वरूप में तीव्र गति से परिवर्तन हुये है, परिवर्तनशीलता के परिणामस्वरूप ही परम्परागत&nbsp;भवन-निर्माण शैली धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है, अतः हमें आधुनिक संशाधनों के साथ-साथ अपनी उत्तराखंड की सांस्कृतिक सभ्यता को जीवित रखने के लिये परम्परागत भवनों को संरक्षित रखना होगा, तथा प्राकृतिक आपदाओं को&nbsp;ध्यान में रखते हुए भवनों का निर्माण आवासीय भवनों स्थाई एवं सुरक्षित स्थान पर करना होगा भवनों को नदी गाड गधेरा जंगल के मध्य निर्मित करने से रोकने की आवश्यकता है।
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श्रीकांत, सिद्धाप्पा कुरणे. "वाळवा तालुक्यातील ऐतिहासिक पर्यटन स्थळाची स्थिती". International Journal of Advance and Applied Research 3, № 9 (2022): 20–22. https://doi.org/10.5281/zenodo.7500412.

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Abstract:
वाळवा तालुका क्रांतिकारकांचा तालुका म्हणून ओळखला जातो. पण तालुक्यात असणारी कृष्णा नदी व महादेव डोंगर रांगांनी निसर्ग सुद्धा समृध्द असा आहे. शिवाजी राजांनी या डोंगर साखळीत बांधलेले छोटे किल्ले, भुईकोट, प्राचीन मंदिरे यांनी सुद्धा तालुक्याला वेगळी ओळख निर्माण करून दिली आहे. पर्यटनाबाबत तालुक्यात येणाऱ्या जागृतीमुळे व राजकीय इच्छाशक्ती मुळे काही पर्यटन स्थळांचा तालुक्यात विकास होत आहे. समाज व शासनाची पर्यटनाकडे बघण्याच्या सकारात्मक दृष्टीकोनामुळे पर्यटन केंद्राचा विकास होत आहे.त्यातूनच तालुक्यात मच्छिंद्रगड, रामलिंग बेट , मल्लिकार्जुन (विलासगड) या पर्यटन केंद्राचा विकास झाला आहे.वाळवा तालुक्यातील
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हिमांशु, रजक. "सकरी नदी द्रोणी के जल संसाधनों में फसलोत्‍पादन में वृद्धि के लिए जल प्रबंधन एक भौगोलिक विश्‍लेषण". International Journal of Advance and Applied Research 4, № 16 (2023): 170–74. https://doi.org/10.5281/zenodo.7940067.

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Abstract:
जल जीवन का आधार है। यह संसाधन मृदा से भी अत्&zwj;यधिक महत्त्वपूर्ण है<strong>, </strong>क्&zwj;योंकि बिना जल की सहायता से मृदा कुछ भी उत्&zwj;पन्&zwj;न नहीं किया जा सकता है। वस्&zwj;तुत: कोई भी अर्थिक सम्&zwj;बन्&zwj;धी कार्य ऐसा नहीं है<strong>, </strong>जो जल के बिना सम्&zwj;भव हो। मानव जगत के लिए जल सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण होता है<strong>, </strong>इसके बिना मानव जगत की कल्&zwj;पना नहीं किया जा सकता है। बिहार राज्&zwj;य के नवादा जिला के भौगोलिक स्थिति २24<sup>०</sup>83<strong>&#39; </strong>से 24<sup>०</sup>88<strong>&#39; </strong>उत्तरी अक्षांश से लेकर 85<sup>०</sup>32<strong>&#39; </strong
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Sharma, Rishiram, та Khil Prasad Baral. "नदी किनारका माझी कवितामा पदपूर्वार्द्धवक्रता [Padapurvardha Vakrata in Nadi Kinar Ka Majhi (Fisherman by the river bank) Poem]". International Research Journal of MMC 2, № 3 (2021): 90–103. http://dx.doi.org/10.3126/irjmmc.v2i3.40088.

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Abstract:
आचार्य कुन्तक प्रतिपादित वक्रोक्तिसिद्धान्त पूर्वीय साहित्यशास्त्रमा एउटा समन्वयशील सिद्धान्त मानिन्छ किनकि यो सिद्धान्तले पूर्ववर्ती आचार्यहरूका काव्यमान्यतासमेतलाई समेट्ने प्रयास गरेको छ । यस सिद्धान्तमा कुन्तकले वक्रोक्तिका विभिन्न छ भेद तथा तिनका उपभेदहरूको चर्चा गरेका छन् । यस लेखमा उनले प्रस्तुत गरेका वक्रोक्तिका छ भेदहरूमध्ये पदपूर्वार्द्धवक्रताका आधारमा सुप्रसिद्ध नेपाली कवि मोहन कोइरालाको नदी किनारका माझी लामो कविताको अध्ययन विश्लेषण गरिएको छ । यसका लागि सर्वप्रथम वक्रोक्तिसिद्धान्त र पदपूर्वार्द्धवक्रताको सङ्क्षिप्त सैद्धान्तिक चर्चा गर्दै विवेच्य कवितामा पदपूर्वार्द्धवक्रताको प्रगोग
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उपाध्याय, विष्णुप्रभा. "सांस्कृतिक आलोकमा ‘अविरल बग्दछ इन्द्रावती’ उपन्यासको विवेचना (Analysis of the novel 'Aviral Baghydya Indravati' in the cultural light)". NUTA Journal 9, № 1-2 (2022): 183–91. http://dx.doi.org/10.3126/nutaj.v9i1-2.53863.

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Abstract:
प्रस्तुत शोधलेख रमेश विकलद्वारा लेखिएको ‘अविरल बग्दछ इन्द्रावती’ उपन्यास (२०४०) मा चित्रित सांस्कृतिक पक्षसँग सम्बद्ध छ । यसमा इन्दावती नदी किनाराका समुदाय र विशेष गरी माझी जातिको सामाजिकस्थान, रहनसहन, भेषभूषा, आम्दानीको स्रोत, अधिकार उपयोग जस्ता विविध पक्षको अध्ययन र विश्लेषण गरी त्यहाँको सांस्कृतिक पक्ष केलाउने प्रयत्न गरिएको छ । संस्कृति परम्परादेखि मानव व्यवहारबाटै निर्मित हुँदै आएको पाइन्छ । संस्कृतिमा परम्परादेखि प्रचलित मूल्य–मान्यताहरूका साथै बदलिँदो परिवेशसँगै सृजित नवीन व्यवहारसमेत थपिँदै जान्छन् । यस लेखमा ‘अविरल बग्दछ इन्द्रावती’ उपन्यासमा प्रस्तुत विषयवस्तुमा आधारित भएर राजनीतिक श
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डा, ॅ. साधना चैहान. "प्रकृति एव ं र ंग ;पर्यावरण के स ंदर्भ मेंद्ध". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.889233.

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Abstract:
मानव जीवन आ ैर प्रकृति का संबध पृथ्वी की रचना के साथ अटूट रहा ह ै, मानव ने प ्रकृति से प ्राप्त सभी चीजा ें का उपभोग अपने जीवनयापन आ ैर मना ेरंजन के लिये किया ह ै, एक ओर उसे प ्रकृति से भोजन, आवास आ ैर वस्त्र प ्राप्त होता है ता े दूसरी ओर प ्रकृति के दृश्या ें को देखकर और कलाकारों क े द्वारा चित्रित कर शान्ति की अदभूत अनुभूति होती ह ै। सर्व प ्रथम कलाकारों द्वारा जो चित्र चित्रित किये गय े उनमें प ्रकृति चित्रण नदी, पेड़, पा ैधे, पर्व त आ ैर पश ु पक्षी सभी चित्रित किये गये तथा इन्हें चित्रित करने में सहायक सामग्री रंग, तुलिका वह भी प्रकृति से प ्राप्त होती ह ै। सर्व प ्रथम कलाकारों ने प ्रकृत
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Kayastha, Balaram. "विभिन्न स्थानमा मनाइने विस्काः जात्रा". Historical Journal 15, № 2 (2024): 120–29. http://dx.doi.org/10.3126/hj.v15i2.70683.

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Abstract:
विस्काः जात्रा भक्तपुरमा मनाइन्छ भन्ने तथ्यसँग प्रायः सबै जानकार भए पनि त्यसै अवसरमा यो जात्रा भक्तपुरका अतिरिक्त त्यस वरपरका अन्य थुप्रै प्राचीन नेवार वस्ती बोडे, थिमी, नगदेश, काभ्रेको सांगा, खड्पु, धुलिखेल र काठमाडौँको टोखा पनि मनाइन्छ । भक्तपुरको मौलिक जात्रा विस्काःको प्रभाव अन्यत्र पर्नुको कारण खोतल्दै जात्राका समग्र गतिविधिलाई अध्ययन गर्दा यो विशुद्ध रूपको धार्मिक जात्रा भएको पुष्टि हुन्छ । धार्मिक पृष्ठभूमिमा आधारित भए पनि यस पछाडिको साँस्कृतिक परम्परामा भने एकरूपता नभै ठाउँ पिच्छे भिन्नता रहेको छ । यसैले यसमा कतै ध्वजारोहणका साथ स्थानीय देवदेवीका खटजात्रा गरेर चाड मनाइन्छ भने कतै खटजात
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Abhishek. "सांख्य दर्शन के द्वैतवाद का दार्शनिक परीक्षण". Original source 19 (14 лютого 2018): 15–18. https://doi.org/10.5281/zenodo.10427137.

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Abstract:
मनुष्य एक विवेकशील प्राणी है। जब से भी सृष्टि क्रम में इसका प्रादुर्भाव हुआ है तब से निरन्तर चिन्तन के माध्यम से विकास को प्राप्त कर रहा है। प्राचीन समय में मनुष्य जगत के सभी कार्यों से विस्मृत था चाहे वो तारे का टूट के गिरना, नदी का बहना, हवा का चलना, आग का जलना, वृक्षों का होना इत्यादि। समस्त विश्व में अपनी चिन्तन प्रणाली के अनुसार जगत के मूल भूत तत्वों की खोज करने का प्रयास किया गया। भारतीय दर्शन ने भी अपने वैदिक व अवैदिक दर्शन प्रणाली के माध्यम से इसका समाधान प्रस्तुत किया। वैदिक दर्शन में सांख्य दर्शन का प्रकृति विकास एक ऐसा ही प्राचीनतम् उत्तर है। जो प्राचीन आचार्यों के गम्भीरता का बोध क
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पोखरेल Pokhrel, विश्वमणि Bishwomani. "सौराहाको पर्यटन विकासमा पर्यावरणको भूमिका Saurahakko Paryatan Bikasma Paryabaranko Bhumika". Nepalese Culture 14 (9 березня 2021): 105–15. http://dx.doi.org/10.3126/nc.v14i0.35429.

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Abstract:
नेपाल प्राकृतिक रूपमा हराभरा र सांस्कृतिक रूपमा विभिन्न जातजाती, भाषाभाषीको बसोबास रहेको विविधताले भरीएको सुन्दर देश हो । संसारका धेरै देशहरूमा पाईने हावापानी, वनस्पती, जीवजन्तुहरू नेपालको छोटो भौगोलिक दुरीमा पाईन्छ । प्राचिनकाल देखि हालसम्मका कला र संस्कृति पनि नेपाल र नेपालीलाई विश्वमा चिनाउने माध्यमको रूपमा रहेका छन् । नेपालको प्राकृतिक र सांस्कृतिक विविधता र अतिथि (पाहुना)हरूलाई दिल देखि नै श्रद्धा र सम्मान गर्ने नेपालीको स्वभावको कारण नेपाल पर्यटकहरूको आकर्षक गन्तव्यको रूपमा रहदै आएको छ । नेपालमा घुम्न आउने पर्यटकहरूको रोजाईका मुख्य गन्तव्यहरू काठमाडौं उपत्यकामा रहेका विभिन्न सांस्कृतिक स
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अधिकारी Adhikari, बमबहादुर Bambahadur. "नवलपरासीको भूगोलमा मानव बस्तीको इतिहास {History of human settlements in the geography of Nawalparasi}". PRAGYAN A Peer Reviewed Multidisciplinary Journal 3, № 1 (2021): 42–54. http://dx.doi.org/10.3126/pprmj.v3i1.61657.

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Abstract:
नेपालको भौगोलिक परिवेशमा नवलपरासी जिल्लाको भू–वनोट एवम् धरातलीय स्वरूप, हावापानी, पहाड, भित्री मधेस, चुरे, भावर र तराईको भूगोलमा विभाजित नदी, खोलाहरूको प्राकृतिक विषमतालाई चिनाउनु यस लेखको मुख्य सार रहेको छ । एउटै जिल्लामा फरक फरक प्रकृतिको जलवायु, मानव बसोवासको स्थिति, वन जङ्गलप्रति मानवको चलखेल वन विनाश र संरक्षणको स्थिति, राजनीतिक तथा प्रशासनिक विभाजन आदि पक्षलाई विश्लेषण गरी नवलपरासी जिल्लाको परिचय गराउनु पनि यस लेखको उद्देश्य हो । खास गरी प्रागैतिहासिक कालको नवलपरासीको संरचना र मानव बस्तीको रूपमा विकसित स्थितिलाई देखाउनु र नवलपरासी जिल्लाको इतिहास केलाउनु पनि लेखको सार हो । विशेष गरेर नवल
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खड्का, बोमबहादुर. "'उकास' कथामा आञ्चलिकता". DMC Journal 8, № 7 (2023): 22–33. http://dx.doi.org/10.3126/dmcj.v8i7.62421.

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Abstract:
प्रस्तुत अनुसन्धानात्मक लेख सनत रेग्मीद्वारा लेखिएको ‘उकास’ कथा आञ्चलिकता शीर्षकमा केन्द्रित छ । आञ्चलिकता शब्दको अर्थ अञ्चलसँग सम्बन्धित रहेको हुन्छ । त्यहीँ कथाञ्चलमा देखिएका प्राकृतिक एवं मानव निर्मित मौलिक विशेषतालाई नै आञ्चलिकता भनिन्छ । कुनै निश्चित कथाञ्चलमा आधारित रहेर त्यस भेगमा देखिएका सिद्धान्त, मूल्यमान्यता, वेशभूषा, सभ्यता, भूगोल तथा प्रकृति, सामाजिक सांस्कृतिक स्थिति, आर्थिक स्थिति, शिक्षाको स्थिति, भाषिक स्थिाति, चालचलन, लोकतत्व, राजनीतिक चेतना, चाडपर्व आदि विशेषताको समष्टि रूप नै आञ्चलिकता हो । यस विवेच्य कथाको कथाञ्चल बाँके जिल्लाको रापती नदी पारि दक्षिणी तराई क्षेत्र रहेको छ
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डॉ., संतोष जबाजी लगड डॉ. भारती मच्छिंद्र काळे. "मराठी साहित्यातील पर्यावरणीय दृष्टीकोन". International Journal of Advance and Applied Research 2, № 21 (2022): 34–36. https://doi.org/10.5281/zenodo.7052478.

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Abstract:
<strong>प्रस्तावना </strong> &nbsp;पर्यावरण संधारण हा विषय आज जागतिक स्तरावर ज्वलंत विषय आहे. मानवी जीवनच नव्हे तर संपूर्ण जीवसृष्टी पर्यावरणातील विघातक बदलामुळे हादरून गेली आहे. माणसाने जंगले व्यापली आणि घरे बांधली. आज मोठ्या प्रमाणावर जंगले नष्ट झाल्यामुळे बिबट्यासारखे प्राणी मानवी वस्तीत येऊन धुमाकूळ घालत आहेत. हत्ती, गवे हे प्राणी शेतातील पिके फस्त करताहेत. निसर्गात मानवी हस्तक्षेप मोठ्या प्रमाणात वाढलेला आहे.माणूस हा निसर्गाचा एक घटक आहे त्यामुळे त्याचे भावविश्व निसर्गापासून अलिप्त राहू शकत नाही. कृषी संस्कृतीचा शोध लागल्यापासून मनुष्यप्राणी निसर्गाच्या सान्निध्यात वास करत आहे. माती, हवा,
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Khadka, Bom Bahadur. "‘लछमनियाको गौना’ कथामा आञ्चलिकता". Prajnik Bimarsha प्राज्ञिक विमर्श 5, № 10 (2023): 60–68. https://doi.org/10.3126/pb.v5i10.71386.

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Abstract:
प्रस्तुत अनुसन्धानात्मक लेख सनत रेग्मीद्वारा लेखिएको ‘लछमनियाको गौना’ कथा आञ्चलिकता शीर्षकमा केन्द्रित छ । कथामा कथाञ्चलको भौगोलिक स्थिति, सामाजिक सांस्कृतिक अवस्था, वालविवाहको परम्परा, भाषिक प्रयोगलाई जीवन्त रूपमा र यथार्थपरक चित्रण गरिएको छ । यस कथाको भूगोल मुख्यतः राप्ती नदी पारि ग्रामीण बस्तीका सीवान, जोगा गाउँ, चकचुइया झुला इलाका रहेको र यसका अतिरिक्त नेपालगञ्जको बजार, भारतको गङ्गापुर र रामपुरसम्म फैलिएको देखिन्छ । कथामा लछमनिया र गङ्गापुरवालाको बाल्यकालमै वालविवाह भई अहिले दुवै जना जवान भएका अवस्थामा पति लछमनियालाई गौना गरी घरमा लैजान चाहने र लछमनियाको बाबु गङ्गापुरवालालाई घरज्वाइँ राख्न
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Sigdel, Shalik Ram, Pramila Basnet та Man Singh Mahara. "हरिनगर गाउँपालिकाको भू–उपयोग क्षेत्र वर्गीकरण र परिवर्तन". Teacher Half-Yearly Journal 17, № 1 (2025): 389–407. https://doi.org/10.3126/thj.v17i1.77926.

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Abstract:
भूमि, उत्पादनको मुख्य स्रोत तथा जीवन निर्वाहको एउटा प्रमुख आधार मानिन्छ । नेपालमा भूमिको उचित व्यवस्थापन तथा कृषि भूमिको संरक्षणका लागि भू–उपयोग क्षेत्र वर्गीकरण गरी योजना तर्जुमा गर्न भू–उपयोग नियमावली २०७९ ले गरेको व्यवस्था र स्थानीय आवश्यकता समेतका आधारमा गरिएको भू–उपयोग क्षेत्र वर्गीकरण तथा त्यसको विश्लेषण गर्नु यस अध्ययनको प्रमुख उद्देश्य रहेको छ । प्रस्तुत अध्ययन मुख्यतः प्राथमिक तथ्याङ्कमा आधारित रहेको छ । यस अध्ययनमा भूमिको स्वामित्व तथा भू–उपयोग क्षेत्रसम्बन्धी नक्सा तथा तथ्याङ्क नापी विभागबाट लिइएको छ । सडक विस्तारसँगै बस्ती विकास, सहरीकरण, बसाइँ सराइको प्रभाव, औद्योगिक ग्रामको व्यवस
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दर्नाल Darnal, प्रकाश Prakash. "देवदह कन्यामाईको उत्खनन्". HISAN: Journal of History Association of Nepal 9, № 1 (2023): 89–96. http://dx.doi.org/10.3126/hisan.v9i1.64107.

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Abstract:
देवदह लुम्बिनीबाट ३५ किलोमिटर.उत्तर पूर्वमा पर्दछ । यो स्थान सिद्धार्थ गौतमको मामाघर अर्थात्उनकी आमा मायादेवी, उनलाई हुर्काउने प्रजापती गौतमी तथा पत्नी यशोधराको माइतीघर थियो । रोहिणी नदी शाक्यहरूको राज्य कपिलबस्तुको पूर्वी सीमाना थियो भने कोलीय राज्यको पश्चिमी सीमाना थियो । देवदह कोलीय गणराज्यको राजधानी थियो । बौद्ध धार्मिक ग्रन्थमा उल्लेख गरेअनुसार कोलीय राज्य कपिलवस्तु राज्यको पूर्वी सीमाना रोहिणी नदीको तटमा अवस्थित थियो । प्रसिद्ध लुम्बिनी प्रदिमोक्ष उद्यान दुवै गणराज्यअन्तर्गत पर्दथ्यो । दुवै गणराज्य मगध र कोशल बीचको व्यापार र वाणिज्यको केन्द्रका रुपमा पनि रहेको थियो । प्राचीन भारतस्थित उत
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सिंह, शिल्पा. "मध्य-एशिया में प्राचीन भारतीय संस्कृति (उज़्बेकिस्तान के विशेष परिप्रेक्ष्य में". Oriental Renaissance: Innovative, educational, natural and social sciences 4, № 22 (2024): 48–56. https://doi.org/10.5281/zenodo.13765043.

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Abstract:
चीन के पश्चिम, ईरान तथा अफगानिस्तान के उत्तर-पूर्व, तिब्बत के उत्तर तथा एशियाई रूस के दक्षिण में अत्यन्त विशाल भूखण्ड एवं स्थूल रूप में&nbsp; 'मध्य एशिया' विराजमान है। यहॉं के निवासी मूलतया तुर्क जाति के हैं, इसी कारण से यह क्षेत्र तुर्किस्तान कहलाता है। राजनीतिक दृष्टि से यह दो भागों में विभक्त है- प्रथम- चीनी तुर्किस्तान या सिंगकियांग (Xinjiang) तथा द्वितीय- रूसी तुर्किस्तान। इनमें चीनी तुर्किस्तान या सिंगकियांग (Xinjiang) को पूर्वी मध्य एशिया तथा रूसी तुर्किस्तान को पश्चिमी मध्य एशिया भी कहते हैं। रूस में कम्युनिस्ट व्यवस्था की स्थापना के बाद रूसी तुर्किस्तान में अनेक सोवियत सोशलिस्ट रिपब्ल
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संग्राम, रंगराव पाटील, та नामदेव शामराव आडनाईक डॉ. "कोल्हापूर जिल्ह्यातील मत्स्यव्यवसायाचे भौगोलिक विश्लेषण (२०२२-२०२३)". International Journal of Advance and Applied Research S6, № 6 (2025): 159–63. https://doi.org/10.5281/zenodo.15063519.

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Abstract:
<em>कोल्हापूर जिल्ह्यातील</em><strong><em> </em></strong><em>मत्स्यव्यवसाय सार्वजनिक क्षेत्रापेक्षा सहकारी क्षेत्रात विकसित झाला</em><em> आहे.</em><em> </em><em>जलस्रोतांचे सापेक्ष महत्त्व हे दर्शविते की</em><em>, </em><em>अभ्यास क्षेत्राच्या</em><em> पश्चिम भागात या प्रदेशातील </em><em>पारंपारिक</em><em> मत्स्यपालनाची मोठी क्षमता आहे</em><em>. </em><em>अभ्यास क्षेत्राचा</em><em> पश्चिम भाग नैसर्गिक जलसाठ्यासाठी उत्तम </em><em>भौगोलिक परिस्थिती</em><em> प्रदान करतो</em><em>, तर पूर्वेकडील भागात मत्स्यपालनासाठी कृत्रिम </em><em>तलाव</em><em> बांधण्याची गरज आहे</em><em>. जलस्रोतांचे सापेक्ष महत्
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वन्दना, अग्निहोत्री. "नदिया ें म ें प्रद ूषण और हम". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–4. https://doi.org/10.5281/zenodo.883519.

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Abstract:
जल को बचाए रखना सभी की चिन्ता का विषय ह ै, व ैज्ञानिक राजन ेता, ब ुद्धिजीवी, रचनाकार सभी की चिन्ता है, जल कैस े बचे ? द ुनियाँ को अर्थात पृथ्वी को वृक्षों को, जंगलो को, पहाड ़ों को, हवा को, पानी को बचाना है। पानी का े बचाया जाना बह ुत जरूरी ह ै। पृथ्वी बच सकती ह ै, वृक्ष ज ंगल, पहाड ़ और मन ुष्य, पषु, पक्षी सब बच सकत े ह ै, यदि पानी को बचा लिया गया और पानी प ृथ्वी पर है ही कितना? पृथ्वी पर उपलब्ध सार े पानी का 97ण्4ः पानी सम ुद ्र का खारा जल है, जो पीन े लायक नही ह ै, 1ण्8ः जल ध ु्रवा ें पर बर्फ के रूप म ें विद्यमान है और पीन े लायक मीठा पानी क ेवल 0ण्8ः ह ै जो निर ंतर प्रद ूषित हा ेता जा रहा
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