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Journal articles on the topic 'नैतिकता'

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सीरवी, सरोज. "भारतीय राजनीति में नैतिक अवमूल्यन: कारण व सुझाव". International Journal of Education, Modern Management, Applied Science & Social Science 07, № 01(I) (2025): 33–38. https://doi.org/10.62823/ijemmasss/7.1(i).7139.

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Abstract:
भारतीय लोकतंत्र की आधारशिला नैतिकता, ईमानदारी और जनसेवा के सिद्धान्तों पर रखी गयी थी। लेकिन समय के साथ राजनीति में नैतिक मूल्यों का ह्रास होता जा रहा है। नैतिकता का अर्थ सत्य, ईमानदारी और जिम्मेदारी के साथ कर्तव्यों का पालन करना। आज के दौर में राजनीतिक नैतिकता की स्थिति चिंताजनक है, जहां सत्ता, धन और व्यक्तिगत लाभ के लिए नैतिक सिद्धांतों को दरकिनार किया जा रहा है। आज दुख इस बात का है कि मूल्यों, आदर्शों, विश्वास, नियम, आचार संहिता और संविधान आदि को टेढ़ी निगाह से देखा जा रहा है। मनुष्य अपनी जड़ों से उखड़ चुका है। वर्तमान में भारतीय राजनीतिक, आर्थिक एवं समाजिक व्यवस्था को खोखला करने में सबसे अधिक
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कुमार, संदीप, कटियार विनोदनी डॉ., कटियार देवेश डॉ. та निशान्त कुमार शर्मा. ""बिल्डिंग बैक बेटर" के संदर्भ में भारतीय उच्च शिक्षा में प्रौद्योगिकी, ए.आई. और नैतिकता का अवलोकन". International Researcher's Journal Volume-XII, ISSUE-3 (2025): 10–17. https://doi.org/10.5281/zenodo.15209600.

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Abstract:
सार संक्षेपः भारतीय उच्च शिक्षा प्रौद्योगिकी का उपयोग करके अधिक समावेषी, टिकाऊ शिक्षण वातावरण बनाने के लिए बदल रही है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (ए.आई.) इस परिवर्तन में एक प्रमुख खिलाड़ी है, जो बेहतर शिक्षण अनुभव और शैक्षिक अनुसंधान को आगे बढ़ाने में योगदान देता है। हालाँकि, नैतिक विचार महत्वपूर्ण हैं, जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की नैतिकता पर यूनेस्को की सिफारिष और स्वायत्त और बुद्धिमान प्रणालियों की नैतिकता पर आई.ई.ई.ई. ग्लोबल इनिषिएटिव जैसे ढाँचों द्वारा निर्देषित हैं। ये ढाँचे सुनिश्चित करते हैं कि ए.आई. सिस्टम मानव अधिकारों और सम्मान का सम्मान करें, जबकि ए.आई. सिस्टम के विकास और उपयोग में नैति
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HORA, DR SHRUTI. "आध्यात्म, मनोविज्ञान और नैतिकता". Swar Sindhu 4, № 2 (2016): 52–56. http://dx.doi.org/10.33913/ss.v04i02a09.

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4

खतिवडा Khatiwada, विश्वराज Bishwaraj. "प्रायश्चित्त कथामा आत्महत्याको सामाजिकता Prayashchitta Kathama Aatmahatyako Samajikata". Tribhuvan University Journal 33, № 2 (2019): 155–70. http://dx.doi.org/10.3126/tuj.v33i2.33642.

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Abstract:
प्रस्तुत लेख गुरुप्रसाद मैनालीको प्रायश्चित्त (१९९३) कथामा पाइने आत्महत्याकोसामाजिकताको अध्ययनसँग सम्बद्ध छ । आत्महत्याको सामजिकता फ्रेञ्च समाजशास्त्रीइमाइल दुर्खिमले प्रतिपादन गरेका हुन् । आत्महत्या सामाजिक कारणले हुन्छ भन्ने मान्यताप्रस्तुत गर्ने उनी पहिलो समाजशास्त्री हुन् । उनको अध्ययनपूर्व मानिसले आत्महत्या गर्नुपर्नेकारणमा उसको वंशानुगत प्रवृत्ति वा मानसिक असङ्गतिलाई लिइन्थ्यो । उनले पूर्ववर्ती उक्तधारणालाई खण्डन गर्दै मानिसले आत्महत्या गर्नुका नेपथ्यमा सामाजिक कारण रहेको तथ्यप्रस्तुत गरे ।उनका अनुसार मानिसलाई आत्महत्या गर्न प्रेरित गर्ने कुरा उसको वंशानुगतवा मानसिक स्थिति नभई धर्म, नैति
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कुसुम, लता. "आधुनिक राजनीति में सत्याग्रह: अतीत से सबक, भविष्य के लिए परिप्रेक्ष्य". RECENT RESEARCHES IN SOCIAL SCIENCES & HUMANITIES 12, № 1 (2025): 92–97. https://doi.org/10.5281/zenodo.15289477.

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Abstract:
आधुनिक राजनीति के उथल-पुथल भरे परिदृश्य में, सत्याग्रह महात्मा गांधी की कालातीत शिक्षाओं के रूप में नैतिकता, सत्य और अहिंसा के मूल्यों को पुनर्स्थापित करने का मार्ग दिखाता है। "हिंद स्वराज" में निहित उनके विचार आज भी शासन, सामाजिक न्याय, पर्यावरणीय स्थिरता और वैश्विक सहयोग की चुनौतियों के समाधान हेतु प्रेरणास्रोत हैं। सत्याग्रह केवल सत्ता का प्रतिरोध नहीं, बल्कि एक सक्रिय नैतिक आंदोलन है जो सत्य के लिए आग्रह, आत्मबलिदान, अहिंसा, सविनय अवज्ञा और व्यक्तिगत परिवर्तन पर आधारित है। यह दर्शन विभिन्न वैश्विक आंदोलनों—जैसे नागरिक अधिकार संघर्ष, जलवायु न्याय, और डिजिटल नैतिकता—में स्पष्ट रू
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प्रा., डॉ. देविदास ग्यानुजी नरवडे. "भारतीय लोकशाही आणि संविधानिक नैतिकता". 'Journal of Research & Development' 14, № 23 (2022): 35–38. https://doi.org/10.5281/zenodo.7524381.

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Abstract:
स्वातंत्र्य प्राप्तीनंतर 26 जाने.1950&nbsp; साली भारताने आपली स्वत:ची राज्यघटना अंमलात आणण्यास सुरुवात केली. तेव्हापासून आजतागायत आपण संसदिय लोकशाही हे प्रतिमान राबवत आहोत. धर्मपिरपेक्ष प्रजाकसत्ताक, उदारमतवादी, समाजवादी लोकशाहीचे प्रारुप आपण स्वीकारले आहे. लोकांनी, लोकांकडून, लोकांसाठी असलेली लोकशाही आपण संविधानाच्या माध्यमातून स्वत: प्रत अर्पण केली आहे. यात लोककल्याणाचा कल्याणकारी राज्य स्थापन करण्याचा संकल्प आहे. लोकशाही ही केवळ एक राजकीय प्रणाली नसून सामाजिक जीवनाची प्रक्रिया आहे<sup>1</sup>. &nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; भारतीय सामाजिक व्यवस्था ही वर्ण
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रितेश, कुमार. "योग चिकित्सक की नैतिकता एवं उत्तरदायित्व". Recent Researches in Social Sciences & Humanities (ISSN: 2348 – 3318) 10, № 01 (Jan.-Feb.Mar.) (2023): 71–75. https://doi.org/10.5281/zenodo.7952094.

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Abstract:
कालान्तर में लगभग 200 वर्ष पूर्व हठयोग का उदय हुआ, जिसका मुख्य उद्देश्य मोक्ष प्राप्ति के समय को कम करना था। जिसके लिए हठयोग में शारीरिक शोधन एवं सबलता हेतु विभिन्न अभ्यास दिए गये है। स्वामी कुवल्यानंद जी ने कैवल्यधाम योग शोध केन्द्र की स्थापना की और योग के विभिन्न अंगों पर वैज्ञानिक शाोध कार्य किए।किसी भी चिकित्सा में नैतिकता केवल चिकित्सक के लिए ही काफी नहीं होती है बल्कि यह तीन स्तर पर बंटी हुई होती है जिसमें सर्वप्रथम चिकित्सक, दूसरे स्थान पर रोगी एवं तीसरे स्थान पर रोगी की देखभाल करने वाला व्यक्ति होता है।बहुतायत मंे यह देखने में आया है कि वह रोगी जो आधुनिक मेडिकल साइंस, आयुर्वेद, होम्योप
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पाटील., प्रा. डॉ. मनोज उत्तमराव. "भारतातील पर्यावरणीय नैतिकता आणि शिक्षकांची भूमिका". International Journal of Advance and Applied Research 6, № 25(D) (2025): 128–31. https://doi.org/10.5281/zenodo.15332820.

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Abstract:
<strong>गोषगोषवारा :- </strong> &nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; अमूर्त पर्यावरण म्हणजे आपल्या सभोवतालचे सर्व काही दिसत आहे ते सर्व होय.&nbsp; पर्यावरण हे ज्या परिस्थितीत एखादी व्यक्ती, प्राणी किंवा वनस्पती एकमेकांशी सुसंवाद साधून जगते त्या परिस्थितीचा तो संदर्भ देतो. जीवनाच्या सर्व क्षेत्रांमध्ये नैतिकतेला महत्त्वाचे स्थान आहे आणि&nbsp; ही नैतिकता जे एखाद्या व्यक्तीच्या वर्तनावर नियंत्रण ठेवत असते. &lsquo;पर्यावरणीय नीतिशास्त्र&rsquo; ही पर्यावरणीय तत्त्वज्ञानाची एक शाखा आहे. नितीशास्त्राची ही शाखा प
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गावडे, श्री. पंकज रामचंद्र. "संत तुकाराम महाराजांचा मूल्य विचार". International Journal of Advance and Applied Research 6, № 21 (2025): 73–81. https://doi.org/10.5281/zenodo.15254893.

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Abstract:
<strong>सारांश:</strong> संत तुकाराम महाराज हे महाराष्ट्रातील वारकरी संप्रदायाचे महान संत, कवी आणि समाजसुधारक होते. त्यांचे अभंग हे केवळ भक्तिरसयुक्त नसून त्यामध्ये उच्चतम नैतिक, सामाजिक, आध्यात्मिक आणि व्यवहारातील मूल्यांचे दर्शन होते. त्यांनी आपल्या साहित्याच्या माध्यमातून समाजातील विविध समस्यांवर प्रकाश टाकला आणि जीवन जगण्यासाठी आवश्यक मूल्यांचा उपदेश दिला. संत तुकाराम महाराजांचे मूल्य विचार हे केवळ धार्मिक किंवा आध्यात्मिक मर्यादेत न राहता समाजाच्या सर्व अंगांना स्पर्श करतात. त्यांनी आपल्या अभंगांमधून सत्य, अहिंसा, परोपकार, समानता, निःस्वार्थी सेवा, प्रामाणिकता आणि सदाचार यांसारख्या मूलभूत
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वर्मा, डॉ अनीता. "सोशल मीडिया और नैतिकता पर एक अध्ययन". SDES-International Journal of Interdisciplinary Research 3, № 3 (2022): 429–32. http://dx.doi.org/10.47997/sdes-ijir/3.3.2022.429-432.

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GUPTA, NITI. "संगीत की वैदिककालीन शिक्षण प्रणाली में नैतिकता". Swar Sindhu 4, № 1 (2016): 20–23. http://dx.doi.org/10.33913/ss.v04i01a04.

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प्रा.प्रवीण, भगवानराव पाऊलबुद्धे. "मराठी संतांच्या विचारांचीउ पयुक्तता." International Journal of Advance and Applied Research S6, № 18 (2025): 307–10. https://doi.org/10.5281/zenodo.15250610.

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Abstract:
संतांचे विचार हे समाजाच्या जडणघडणीमध्ये मुलाचे भूमिका पार पाडतात .आजही महाराष्ट्रातील या संतांच्या विचारांची प्रेरणा घेऊन लोक जीवन जगतात. संतांच्या सर्वधर्मसमभावाच्या विचारांवरच आजही इतके वर्ष उलटूनही पंढरीची वारी निरंतर चालू आहे ती केवळ आणि केवळ संत विचाराच्या बैठकीमुळेच. संतांनी आपल्या जीवन अनुभवातून समाजाला मौलिक विचार तत्त्वज्ञान आणि मार्गदर्शन केले. समाजाला सामाजिक मूल्य,नैतिक मूल्य,सांस्कृतिक मूल्यांचा ठेवा दिला. संत वाङ्मयाची उपयुक्तता अनेक अंगांनी स्पष्ट करता येते. ते केवळ अध्यात्मिक उन्नतीसाठी नव्हे, तर समाज सुधारणा, नैतिकता, मानसिक शांती, आणि भाषिक विकास यासाठीही महत्त्वाचे ठरते. पुढ
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Subedi, Manjeel, та Kamal Thapa. "साँस्कृतिक एकीकरणका सन्दर्भमा मानव श्रोतको दिगो उपयोगका लागि सिगालोवाद सुत्तको उपादेयता". Journal of Academic Development 9, № 1 (2025): 117–37. https://doi.org/10.3126/tjad.v9i1.82179.

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Abstract:
यस अध्ययनमा राष्ट्रिय सांस्कृतिक मूल्य र मान्यताहरूलाई मानव स्रोतको दिगो उपयोग र प्रवद्र्धन गर्न सिगालोवाद सुत्तको सान्दर्भिकतालाई आधार मानिएको छ । अध्ययनले सिगालोवाद सुत्तमा रहेका मानव स्रोत सम्वन्धि विषयको विश्लेषण गरेकोछ, जसले नैतिक सिद्धान्त र यसका राष्ट्रिय जिम्मेवारीमा लागू हुने शिक्षाहरूलाई समेटेको छ । उपर्युक्त बौद्ध शिक्षाहरूलाई राष्ट्रिय साँस्कृतिक अभ्यासहरूसँग समन्वय गर्दा दिगो मानव स्रोत व्यवस्थापनलाई प्रभावकारी रूपमा अगाडी बढाउन सकिन्छ भन्ने कुरामा अनुसन्धाताहरूको दावी रहेको छ । राष्ट्रका सांस्कृतिक अभ्यासहरूले प्रकृतिको सम्मान र संरक्षणमा जोड दिइरहँदा सिगालोवाद सुत्तले प्रदान गरे
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मुकेश कुमार मंडल та आदित्य प्रकाश सिंह. "वाल्मीकि रामायण में ब्रह्मचर्य का स्वरूप". International Journal for Research Publication and Seminar 15, № 1 (2024): 178–82. http://dx.doi.org/10.36676/jrps.v15.i1.1422.

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Abstract:
वाल्मीकि रामायण में ब्रह्मचर्य का स्वरूप एक व्यापक और गहन विषय है जो प्राचीन भारतीय समाज और संस्कृति में नैतिक और आध्यात्मिक अनुशासन के महत्व को प्रकट करता है। ब्रह्मचर्य का अर्थ होता है ब्रह्म (ईश्वर) की ओर गतिशील होना और इसमें शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक संयम शामिल होता है। रामायण में ब्रह्मचर्य के स्वरूप को प्रमुख पात्रों के माध्यम से समझा जा सकता है। भगवान राम, लक्ष्मण, भरत, माता सीता और हनुमान। वाल्मीकि रामायण में ब्रह्मचर्य का स्वरूप केवल शारीरिक संयम तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मानसिक और आध्यात्मिक स्तर पर भी गहरे अर्थ रखता है। यह आत्मसंयम, त्याग, सेवा, और धर्म के प्रति अटल समर्पण का
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प्रा।, नविन चव्हाण. "हिन्दी साहित्य में अनुवाद और बौद्धिक संपदा अधिकार: नैतिक एवं कानूनी पहलू". International Journal of Advance and Applied Research S6, № 12A (2025): 120–24. https://doi.org/10.5281/zenodo.14905152.

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Abstract:
<em>हिन्दी साहित्य में अनुवाद एक महत्वपूर्ण विधा है, जो विभिन्न भाषाओं और संस्कृतियों को जोड़ने का कार्य करती है। अनुवाद के माध्यम से ज्ञान का विस्तार होता है, लेकिन यह बौद्धिक संपदा अधिकार (</em><em>IPR) से भी जुड़ा हुआ है। यह शोध पत्र हिन्दी साहित्य में अनुवाद के नैतिक एवं कानूनी पहलुओं का विश्लेषण करता है, जिसमें कॉपीराइट कानून, अनुवादकों के अधिकार, और डिजिटल युग में उभरती चुनौतियों पर चर्चा की गई है।</em> <em>भारत का <strong>कॉपीराइट अधिनियम, 1957</strong> यह स्पष्ट करता है कि किसी भी साहित्यिक कृति का अनुवाद करने के लिए मूल लेखक या कॉपीराइट धारक की अनुमति आवश्यक है। बिना अनुमति के किया गय
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., Manjeet. "मानव जीवन और शिक्षा में मानवीय नैतिकता और मूल्यों का महत्व". International Journal of Sanskrit Research 11, № 1 (2025): 177–81. https://doi.org/10.22271/23947519.2025.v11.i1c.2567.

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नागवंशी, रवि प्रताप, та अविनाश प्रताप सिंह. "भारत में मतदान व्यवहार पर मीडिया का प्रभाव". Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education 22, № 01 (2025): 402–9. https://doi.org/10.29070/x5t99p71.

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Abstract:
यह शोध लेख भारत में मीडिया और मतदान व्यवहार के बीच संबंधों की जांच करता है, जिसमें मतदाता धारणाओं और चुनावी परिणामों को आकार देने में मीडिया की परिवर्तनकारी भूमिका पर ध्यान केंद्रित किया गया है। जाति, समुदाय और क्षेत्रवाद जैसे पारंपरिक प्रभाव मतदाता निर्णय लेने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हालाँकि, डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म के उदय और मीडिया प्रथाओं के विकास ने चुनावी परिदृश्य को नया रूप दिया है। जबकि पारंपरिक मीडिया जैसे समाचार पत्र और टेलीविज़न अभी भी महत्वपूर्ण बने हुए हैं, सोशल मीडिया के आगमन ने राजनीतिक जुड़ाव और पहुँच को बढ़ाया है, खासकर युवा मतदाताओं के बीच। गलत सूचना, मीडिया पूर्वाग्रह और
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महेन्द्र, कुमार. "जैन दर्शन और बौद्ध दर्शन की सामाजिक एवं शैक्षिक उपयोगिता: वर्तमान परिप्रेक्ष्य में". International Journal of Contemporary Research in Multidisciplinary 4, № 1 (2025): 06–10. https://doi.org/10.5281/zenodo.14623810.

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Abstract:
दर्शनशास्त्र की शुरुआत अस्तित्व के प्रति जिज्ञासा से होती है। भारतीय दर्शन प्राचीनकाल से ही जीवन के विभिन्न पहलुओं की व्याख्या करता रहा है और अपने अंदर कई धाराओं को समाहित किये हुए है। इन दर्शनों में जैन दर्शन और बौद्ध दर्शन का विशेष महत्व है। इन सभी का भारतीय समाज, संस्कृति और शिक्षा पर गहरा प्रभाव पड़ा है। प्रस्तुत शोध पत्र इन्हीं बातों को रेखांकित करते हुए जैन और बौद्ध दर्शन की सामाजिक एवं शैक्षिक उपयोगिता का अध्ययन वर्तमान परिप्रेक्ष्य में करने का प्रयास करता है। साथ ही, इसमें दोनों दर्शनों के शिक्षा के उद्देश्यों, शिक्षण पद्धतियों, नैतिक मूल्यों और उनकी सामाजिक उपयोगिता के संदर्भ में समान
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प्रा., सुधीर रामचंद्र धोंगडे. "संघर्षयात्री प्रा.(डॉ.) एन. डी. पाटील जीवनपट". International Journal of Advance and Applied Research 4, № 28 (2023): 56–58. https://doi.org/10.5281/zenodo.8340709.

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Abstract:
महाराष्ट्रातील सामाजिक परिवर्तनाच्या चळवळीमध्ये प्रा. एन. डी. पाटील यांचे योगदान अत्यंत बहुमुल्य आहे. सद्यस्थितीतील राजकारणाची वाटचाल ही मूल्यहीनतेच्या दिशेने सुरू आहे. धार्मिक, मूलतत्त्ववादी, जातीवादी विचारधारा ही नैतिकता आणि मानवी मूल्यांच्या विरोधात कलुषित वातावरण निर्माण करत आहेत. अशा परिस्थितीमध्ये श्रमजीवी आणि बुद्धिजीवी घटकांची सांगड घालून मानवी विवेकाचा पुरस्कार करणारे प्रा. एन. डी. पाटील यांचे जीवन आणि कार्य पुरोगामी महाराष्ट्राच्या उभारणी करीता प्रेरणादायी आहे.
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प्रा.कापावार, विनायक दिगंबरराव. "साहित्यिक चोरी और नैतिक लेखन". International Journal of Advance and Applied Research S6, № 12A (2025): 137–39. https://doi.org/10.5281/zenodo.14905204.

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Abstract:
<em>&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; साहित्यिक चोरी (Plagiarism) वह कृत्य है जिसमें किसी लेखक द्वारा अन्य व्यक्ति की रचनाओं, विचारों, शब्दों या शो</em><em>ध सामग्री </em><em>को बिना उचित संदर्भ दिए अपने नाम पर प्रस्तुत किया जाता है। यह न केवल कानूनी अपराध है</em><em>, बल्कि यह लेखन और शोध के क्षेत्र में नैतिकता </em><em>का </em><em>भी उल्लंघन है। साहित्यिक चोरी के विभिन्न प्रकार होते हैं</em><em>, जैसे पूर्ण साहित्यिक चोरी, आंशिक साहित्यिक चोरी, और स्व-साहित्यिक चोरी। इसे रोकने के लिए लेखक को अपनी रचनाओं में उचित उद्धरण, संदर्भ और श्रेय देने की आवश्यकता होती है।</em
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के.सी. KC, विष्णुबहादुर Bishnubahadur. "विद्यालय तहको पाठ्यक्रममा शान्तिशिक्षा {Peace Education in the School Level Curriculum}". Voice: A Biannual & Bilingual Journal 15, № 1 (2023): 131–42. http://dx.doi.org/10.3126/voice.v15i1.58167.

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Abstract:
शान्तिशिक्षा सम्बन्धि स्पष्ट राष्ट्रिय शिक्षाका उद्देश्य र तहगत उद्देश्यहरू रहेका छैनन् । शान्तिसंग सम्बन्धित पक्षहरू सामाजिक अध्ययन, नेपाली, विज्ञान, स्वास्थ्य र शारीरिक, सिर्जनात्मक र नैतिक शिक्षामा रहेका छन् । यी विषयहरूमा सामाजिकता, मानवीय मूल्य, आस्था सेवाभाव, प्रजातात्रिक, लोकतन्त्र, सद्भाव, सहयोग, चरित्र, नैतिकता, एकता, मैत्री, सहिष्णुता, विश्ववन्धुत्व र मानवअधिकार मुख्य रूपमा रहेका छन् । बौद्धशिक्षा अन्तर्गत परियत्ति शिक्षामा ध्यान, शील, प्रज्ञा, सेवा, मैत्री, भावाना, समभाव, आर्य आष्टाङ्गिक मार्ग, पञ्चशिल, पुण्य काम, सकारात्मक सोच, कर्तव्यबोध, सफल जीवनका सुत्रहरू, शान्त र असल पक्षहरू र
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डॉ., मानीतकुमार अमृतराव वाकळे. "स्वामीदयानंदसरस्वतीकेशैक्षिकविचारोंकीआधुनिकयुगमेंप्रासंगिकता". International Journal of Advance and Applied Research S6, № 7 (2025): 257–62. https://doi.org/10.5281/zenodo.14792642.

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Abstract:
महर्षि दयानंद सरस्वती के शैक्षिक विचार उनके ग्रंथ <em>सत्यार्थ</em><em> </em><em>प्रकाश</em> के द्वितीय समुल्लास में संकलित हैं। उन्होंने शिक्षा के महत्व पर बल देते हुए कहा कि "अज्ञानी होना गलत नहीं है, लेकिन अज्ञानता को बनाए रखना अनुचित है।" उनके अनुसार, एक व्यक्ति को ज्ञानवान बनने के लिए तीन प्रमुख शिक्षकों माता, पिता और आचार्य की आवश्यकता होती है। इनमें माता की भूमिका को बालक के प्रारंभिक शिक्षण और नैतिक आचरण के विकास में सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना गया है। स्वामी दयानंद सरस्वती ने मातृशिक्षा को दो प्रमुख भागों में विभाजित किया: पहला, आचरण से संबंधित शिक्षा, जिसमें नैतिकता, मूल्यों और व्यवहार
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Chejara, Yadvendra. "Moral Value Consciousness and Equality in Ratnakumar Sambharia's Stories." RESEARCH HUB International Multidisciplinary Research Journal 11, no. 9 (2024): 31–35. https://doi.org/10.53573/rhimrj.2024.v11n9.007.

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Abstract:
This article focuses on ethical values and their social impact, including the concept of moral consciousness and its influence on various aspects of society such as social, cultural, religious, political, and economic upliftment. It highlights the importance of ethical principles such as compassion, kindness, altruism, values, and traditions. Furthermore, it demonstrates how issues like casteism, feudal exploitation, and social stereotypes challenge the concepts of ethical values and equality. The article portrays the exploitation and struggles of the Dalit community and other marginalized gro
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Soti, G. "लोककथाको परिचयात्मक ससन्दर्भ". SP Swag: Sudur Pashchim Wisdom of Academic Gentry Journal 1, № 1 (2024): 97–106. http://dx.doi.org/10.69476/sdpr.2024.v01i01.009.

Full text
Abstract:
्रस्तुत अध्ययन लोककथाको परिचयात्मक सन्दर्भमा केन्द्रित रहेको छ । यस लेखमा खासगरी लोककथाको परिचय, परिभाषा, स्वरुप, प्रकार र विशेषताहरुको विषयमा संक्षिप्त अध्ययन विश्लेषण गरिएको छ । लोककथा लोक साहित्यको सर्वप्राचीन विधा हो । यसमा लोक समाजका अनुभव र अनुभूति तथा विचार र भावनाहरु समेटिएको हुन्छ । मानव सभ्यताको विकास प्रक्रिया सँगसँगै लोककथा भन्ने र सुन्ने प्रचलन विकसित भएको हो । लोककथाले मनोरञ्जन, नैतिक सन्देश र महŒवपूर्ण ज्ञान प्रदान गर्ने भएकाले ग्रामीण समाजमा अहिले पनि लोक कथा भन्ने र सुन्ने प्रचलन जीवित रहेको छ । लोकजीवनको सुख–दुःखको अनुभूतिलाई प्रभावकारी रूपमा अभिव्यक्ति गर्ने एउटा सशक्त लोकसा
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Soti, J. "लोककथाको परिचयात्मक सन्दर्भ". SP Swag: Sudur Pashchim Wisdom of Academic Gentry Journal 1, № 1 (2024): 97–106. https://doi.org/10.5281/zenodo.11062817.

Full text
Abstract:
<em>प्रस्तुत अध्ययन लोककथाको परिचयात्मक सन्दर्भमा केन्द्रित रहेको छ । यस लेखमा खासगरी लोककथाको परिचय, परिभाषा, स्वरुप, प्रकार र विशेषताहरुको विषयमा संक्षिप्त अध्ययन विश्लेषण गरिएको छ । लोककथा लोक साहित्यको सर्वप्राचीन विधा हो । यसमा लोक समाजका अनुभव र अनुभूति तथा विचार र भावनाहरु समेटिएको हुन्छ । मानव सभ्यताको विकास प्रक्रिया सँगसँगै लोककथा भन्ने र सुन्ने प्रचलन विकसित भएको हो । लोककथाले मनोरञ्जन, नैतिक सन्देश र मह&OElig;वपूर्ण ज्ञान प्रदान गर्ने भएकाले ग्रामीण समाजमा अहिले पनि लोक कथा भन्ने र सुन्ने प्रचलन जीवित रहेको छ । लोकजीवनको सुख&ndash;दुःखको अनुभूतिलाई प्रभावकारी रूपमा अभिव्यक्ति गर्ने
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प्रा., डॉ. सीमा बर्गट. "महात्मा गांधी और नई तालीम : गांधीजी के बुनियादी शिक्षा की समीक्षा करते हुए पाठ्यचर्या निर्माण". उदयगिरी - बहुभाषिक इतिहास संशोधन पत्रिका 01, № 05 (2023): 118–23. https://doi.org/10.5281/zenodo.10072780.

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Abstract:
सन 1937 में महात्मा गांधी ने वर्धा योजना शुरू की । इसको बुनियादी शिक्षा या नई तालीम के नाम से भी जाना जाता है । बुनियादी शिक्षा का तात्पर्य शिक्षा की उच्च प्रणाली से है जिससे बालक शिक्षा को प्राप्त करके आत्मनिर्भर बन सके, स्वावलंबी&nbsp; बन सके तथा अपने जीवन को चलाने हेतु कुछ उपार्जन कर सके ।बूनियादी&nbsp; शिक्षा का तात्पर्य शिक्षा की उसे प्रणाली से है जिसमें विभिन्न प्रकार के हस्तशिल्पों का प्रशिक्षण प्रदान करते हुए बालकों का शारीरिक, मानसिक, नैतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक विकास करना है और इसमें शिक्षा को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास किया जाता है।वर्तमान में दशकों के बाद, भारत को एक नई राष्ट्रीय
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singh, Anita, and Dr Abhay Shankar Dwivedi. "Story-description of Dharamveer Bharti's novel: Gunanon Ka Devta." International Journal of Multidisciplinary Research Configuration 2, no. 1 (2022): 115–19. http://dx.doi.org/10.52984/ijomrc2113.

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Abstract:
प्रस्तुत शोध पत्र में धर्मवीर भारती के उपन्यास गुणहो के देवता का कथावस्तु विश्लेषण किया गया है। गॉड ऑफ गुनाओं' रोमांटिक भावनाओं पर आधारित एक उपन्यास है। इस उपन्यास में चंदर और सुधा के युवा मन की कोमल भावना, भावुकता और आदर्शवादी प्रेम है, दूसरी ओर खंडित नैतिकता और लुप्त होते सपनों का दर्द भी है। उपन्यास अपने समय में बहुत लोकप्रिय था इसकी लोकप्रियता का कारण जादुई रोमांस के साथ कहानी का सरल निर्माण है। प्रमुख शब्द: रोमांटिक, युवा, कोमल-भावनाएं, भावुक प्रेम
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Srivastava, Poonam. "यज्ञ और शिक्षा: वैदिक परंपरा में समग्र विकास". Interdisciplinary Journal of Yagya Research 8, № 1 (2025): 19–22. https://doi.org/10.36018/ijyr.v8i1.134.

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Abstract:
भारतीय संस्कृति की नींव वेदों में रखी गई है, और यज्ञ को इसका सबसे बड़ा उपहार माना जाता है। “यज्ञ” शब्द का अर्थ है—देवपूजन, दान और संगतिकरण। यज्ञ केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक और नैतिक उद्देश्य भी रखता है; यह त्याग, समर्पण और परमार्थ की भावना को जाग्रत करता है। जीवन के प्रत्येक महत्वपूर्ण संस्कार और अवसर पर यज्ञ का आयोजन, सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक उत्तराधिकार का माध्यम रहा है। वैदिक शिक्षा प्रणाली में यज्ञ का केंद्रीय स्थान था; शिक्षा का आरंभ उपनयन संस्कार से होता था और गुरुकुल में दैनिक यज्ञ, स्वाध्याय और सेवा का अभ्यास कराया जाता था। यज्ञ की प्रेरणाएँ जैसे त्याग, सेवा, और परमार्थ, विद्य
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आचार्य, टीकाराम. "साङ्ख्या दर्शनको कोणबाट राजेश्वर देवकोटाका उपन्यासको विश्लेषण". Janapriya Journal of Interdisciplinary Studies 9, № 1 (2020): 56–64. http://dx.doi.org/10.3126/jjis.v9i1.46534.

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Abstract:
प्रस्तुत लेख राजेश्वर देवकोटाका उपन्यासका कथावस्तुमा साङ्ख्य दर्शन खोज्नमा केन्द्रित रहेको छ । कथावस्तुमा साङ्ख्य दर्शनका मूल तत्व प्रकृति, पुरुष र नैतिकता खोज्ने काम भएको छ । पुरुषका निष्पृहता, निस्क्रियता, ज्ञानात्मकता जस्ता विशेषता र प्रकृतिका मोहात्मकता, अनित्यता र परिवर्तनशीलता जस्ता लक्षण कथावस्तुमा छन् भन्ने देखाइएको छ । विश्लेषणका क्रममा देवकोटाका आठवटा औपन्यासिक कृतिमध्ये चारवटा कृति मात्र शीर्षकअनुसार समावेश हुन सकेका छन् । कृतिको विश्लेषणका लागि छोटोमा सैद्धान्तिक आधार प्रस्तुत गरेर कृतिगत तथ्यबाट त्यसलाई जाँच्ने काम गरिएको छ । विश्लेषणात्मक अध्ययनपछि साङ्ख्य दर्शनको प्रभावका दृष्टि
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Kumar, Rupak. "नैतिकता और राजनितिक अर्थव्यवस्था के विशेष संदर्भ में उतर पश्चिमी प्रान्त का आकाल: 1868-1870". International Journal of History 6, № 1 (2024): 105–10. http://dx.doi.org/10.22271/27069109.2024.v6.i1b.269.

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डॉ, .जे बी.कांगणे. "स्वामी दयानंद सरस्वती यांचे शिक्षण विषयक विचार". International Journal of Advance and Applied Research S6, № 7 (2025): 174–77. https://doi.org/10.5281/zenodo.14791676.

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Abstract:
स्वामी दयानंद सरस्वती हे भारतीय समाजसुधारक, तत्त्वज्ञानी, आणि आर्य समाजाचे संस्थापक होते. त्यांनी भारतीय समाजात प्रचलित अज्ञान, अंधश्रद्धा, आणि जातीय भेदाभेद दूर करण्यासाठी कार्य केले. शिक्षणाच्या संदर्भातही त्यांचे विचार अत्यंत महत्त्वाचे ठरतात. त्यांना विश्वास होता की शिक्षण हे मानवाच्या सर्वांगीण विकासाचे साधन आहे आणि समाजाच्या प्रगतीसाठी आवश्यक आहे. त्यांनी प्राचीन वेदांवर आधारित आधुनिक शिक्षण प्रणालीची कल्पना मांडली, ज्यामुळे नैतिकता, विज्ञान, आणि तत्त्वज्ञानाचा समतोल साधता येईल. त्यांच्या विचारांमध्ये शिक्षण फक्त ज्ञानार्जनासाठी नसून व्यक्तिमत्त्व विकासासाठी असावे, असे त्यांनी ठामपणे सां
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प्रा., डॉ.दीपक शिवलिंगराव फुलारी. "स्वामी दयानंद सरस्वती यांचे शासन आणि कायद्यांविषयी विचार". International Journal of Advance and Applied Research S6, № 7 (2025): 280–83. https://doi.org/10.5281/zenodo.14792690.

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Abstract:
<em>स्वामी दयानंद सरस्वती (१८२४</em><em>&ndash;१८८३) हे प्रख्यात भारतीय तत्त्वज्ञ, समाजसुधारक आणि आर्य समाजाचे संस्थापक होते. त्यांच्या शासन आणि कायद्यांविषयीचे विचार वेदांच्या तत्त्वांवर आधारित होते आणि ब्रिटीश औपनिवेशिक राजवटीच्या त्यांच्या तीव्र विश्लेषणातून आकारले गेले. या संशोधन प्रबंधात स्वामी दयानंद सरस्वती यांच्या शासन, कायदे आणि सामाजिक न्याय यावरील दृष्टिकोनाचा अभ्यास केला असून त्यांचा ऐतिहासिक आणि समकालीन संदर्भ तपासला आहे.</em> <em>स्वामी दयानंद सरस्वती हे स्वराज्याचे (स्वशासन) प्रखर समर्थक होते. त्यांना विश्वास होता की भारतीयांनी स्वतःच्या कायद्यांवर आणि संस्थांवर आधारित शासन कराव
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दाहाल Dahal, तनुजा Tanuja. "आयु विचार Aayu Bichar". Pragyajyoti 4, № 1 (2021): 103–13. http://dx.doi.org/10.3126/pj.v4i1.44996.

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Abstract:
प्राणीहरूको शरीरलाई जीवन्त बनाउने महत्वपूर्ण तTवलाई आयु भनिन्छ । बालकको पूर्वजन्मको आर्जित फल, मातापिताको कर्मफल, आहार विहार , धर्म संस्कार, शील स्वभावजस्ता कुराहरूले आयु निर्णयमा प्रभाव पार्दछन् । अकाल मृत्युलाई अल्पायु भनिन्छ । सन्ध्याकाल, ग्रहण, उल्कापात, केतुको उदय जस्ता प्राकृतिक विपत्तिका समयमा भएको जन्म शीघ्र मृत्युकारक मानिन्छ ।लग्नको मालिक ग्रह, चन्द्रमा र अन्यग्रहहरूको नीच, अस्त पापयुत, पापदृष्ट, त्रिकस्थानगत जस्तादुर्बल र अशुभ योगका कारण बालकको मृत्यु हुन्छ त्यसलाई बालारिष्ट भनिन्छ । ग्रहहरूले केन्द्र,त्रिकोण र उच्चादि शुभस्थानमा बसेर निर्माण गरेका शुभयोगहरूले अरिष्टको भङ्ग गरेर दीर
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बस्ताकोटी Bastakoti, ठाकुरप्रसाद Thakur Prasad. "सुशासन र सदाचार: आवश्यकता र व्यवहार {Good Governance and Virtue: Needs and Practices}". Prashasan: The Nepalese Journal of Public Administration 56, № 1 (2024): 33–44. http://dx.doi.org/10.3126/prashasan.v56i1.67328.

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Abstract:
शासन व्यवस्थामा बहुलवादी सोंच र पारदर्शी कार्यव्यवहारको संवर्धन भएमा राज्य तथा राज्यबाहेकका क्षेत्रको शासन प्रक्रियामा समेत प्रभावकारिता अभिवृद्धि हुन्छ। सार्वजनिक पदाधिकारीसँगै निजी, सार्वजनिक र गैरसरकारी क्षेत्रका व्यवहारको समेत उचित निगरानी र नियमन हुनुपर्ने आवश्यकतालाई बोध गरी शासन प्रक्रियामा सहभागी सबै पक्षको आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक आचरण र व्यवहारमा जवाफदेहिता र उत्तरदायित्व संस्कृतिसँग जोड्नु आवश्यक पर्दछ। समृद्धिको सारथिका रुपमा सार्वजनिक, निजी र सहकारी क्षेत्रको तीन खम्बे नीतिलाई हामीले आत्मसात् गरिरहँदा शासन प्रक्रियामा सहभागी भएका सबैको व्यवहारलाई सुशासनमैत्री बनाउन दह्रो प्र
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मोरे, डॉ. केशव माधवराव. "दीक्षांत से शिक्षांत तक". International Journal of Advance and Applied Research 12, № 1 (2024): 327–28. https://doi.org/10.5281/zenodo.14627316.

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Abstract:
<strong>सारांश</strong> : प्रस्तुत उपन्यास के माध्यम से लेखिका सूर्यबाला ने शिक्षा क्षेत्र में उत्पन्न व्यवसायिकता एवं बाजारवाद को अभिव्यक्त किया हैI शिक्षा हमें ज्ञान, संस्कार, नैतिकता एवं मानवता का पाठ पढाकर समाजशील एवं संवेदनशील मनुष्य बनाती हैI मनुष्य का सर्वांगीण विकास शिक्षा पर निर्भर है, किंतु आज शिक्षा केवल उपाधि देने तक सीमित रह गई हैI मनुष्य संवेदनाहीन शिक्षित यंत्रमानव बन रहा हैI इस स्थिति के लिए आखिर कौन जिम्मेदार हैI इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए इस उपन्यास में कई घटनाओं को प्रस्तुत किया गया हैI जिसके माध्यम से हम इस भयावह स्थिति से अवगत हो सकते हैंI साथ ही शिक्षा जगत से जुड़ी तम
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मोरे, डॉ. केशव माधवराव. "दीक्षांत से शिक्षांत तक". International Journal of Advance and Applied Research 12, № 1 (2024): 327–28. https://doi.org/10.5281/zenodo.14627397.

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Abstract:
<strong>सारांश</strong> : प्रस्तुत उपन्यास के माध्यम से लेखिका सूर्यबाला ने शिक्षा क्षेत्र में उत्पन्न व्यवसायिकता एवं बाजारवाद को अभिव्यक्त किया हैI शिक्षा हमें ज्ञान, संस्कार, नैतिकता एवं मानवता का पाठ पढाकर समाजशील एवं संवेदनशील मनुष्य बनाती हैI मनुष्य का सर्वांगीण विकास शिक्षा पर निर्भर है, किंतु आज शिक्षा केवल उपाधि देने तक सीमित रह गई हैI मनुष्य संवेदनाहीन शिक्षित यंत्रमानव बन रहा हैI इस स्थिति के लिए आखिर कौन जिम्मेदार हैI इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए इस उपन्यास में कई घटनाओं को प्रस्तुत किया गया हैI जिसके माध्यम से हम इस भयावह स्थिति से अवगत हो सकते हैंI साथ ही शिक्षा जगत से जुड़ी तम
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चंदेल, शिवेन्द्र सिंह. "महात्मा गांधी की शैक्षिक दृष्टि और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020ः एक समीक्षात्मक अध्ययन". International Journal of Science and Social Science Research 2, № 4 (2025): 109–18. https://doi.org/10.5281/zenodo.14914022.

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Abstract:
इस शोध पत्र में महात्मा गांधी की शैक्षिक दृष्टि का मूल आधार आत्मनिर्भरता, नैतिकता और व्यवहारिक शिक्षा था। वे शिक्षा को केवल सूचनात्मक ज्ञान तक सीमित रखने के पक्षधर नहीं थे, बल्कि इसे जीवन उपयोगी बनाने पर जोर देते थे। उन्होंने बुनियादी शिक्षा (नयी तालीम) की संकल्पना प्रस्तुत की, जिसमें श्रम आधारित शिक्षा को महत्व दिया गया। उनका मानना था कि शिक्षा केवल रोजगार के लिए नहीं, बल्कि समाज में एक सशक्त और जागरूक नागरिक के निर्माण के लिए होनी चाहिए। वे मातृभाषा में शिक्षा के समर्थक थे, ताकि बच्चे सहज रूप से ज्ञान अर्जित कर सकें।राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 शिक्षा प्रणाली में व्यापक बदलाव लाने की दिशा में
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डा., ओम प्रकाश यादव, та पांडेय अनूप. "भारत में समावेशित शिक्षा, चुनौतियां एवं अध्यापकीय उत्तरदायित्त्व: एक विश्लेषण". International Journal of Multidisciplinary Research Transactions 6, № 4 (2024): 131–37. https://doi.org/10.5281/zenodo.10975443.

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Abstract:
समावेशित दर्शन पर आधारित कार्यक्रम कोई प्रयोग नहीं, जिसका परीक्षण किया जाये वरन यह एक ऐसी नैतिकता है l जिसमें समाविष्टता एवं भागीदारी मनुष्य की प्रतिष्ठा एवं मानवाधिकार के संरक्षण को आवश्यक है। यदि सभी शक्तियां समानता, समरसता,तथा&nbsp; बंधुत्व&nbsp; के पक्षधर हो जायें तो विद्यालयों में पृथकता की स्थिति नहीं मिलेगी। वर्तमान में&nbsp; विद्यालय में समावेशित&nbsp; वातावरण को प्रभावी बनाने के लिए सभी शिक्षक-शिक्षा के कार्यक्रमों को पुनसंरचित करने की आवश्यकता है l शिक्षक-शिक्षा कार्यक्रमों व पाठ्&zwnj;यचर्यात्मक ढाथों में मानवाधिकार की शिक्षा के सत्य को शामिल करने की भी जरूरत है l समावेशित वातावरण म
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प्रा., डॉ. जितेंद्र बनसोडे. "21 वी सदी के हिंदी उपन्यास में राष्ट्रीय भावना". International Journal of Advance and Applied Research 10, № 1 (2022): 1046 to 1050. https://doi.org/10.5281/zenodo.7314946.

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Abstract:
<em>देशवासीयों के अंदर राष्ट्रीय भावना को बनाये रखना आज एक चुनौतीभरा कार्य बन गया है क्योंकी आज के राजनैतिक समाज की सबसे बड़ी त्रासदी यही है कि यहाँ पर नैतिकता का कोई मूल्य नहीं रह गया है, ईमानदारी भी अपना चेहरा बदल चुकी है | मूल्यों का पठन अब इस तरह होने लगता है तो समाज, राज्य या राष्ट्र को अराजकता, संत्रास और क्रूरता से बचाना मुश्किल हो जाता है। आवश्यकता है ऐसे रचनात्मक की जो इन परिस्थितियों से मनुष्य को निकाल सके और जो निर्दोष है, ईमादार हैं, सच्चे है, संघर्षशील हैं, प्रतिबद्ध है उन्हें अपने रास्ते पर चलने की स्वतंत्र और समर्थन मिल सके। हमारे राष्ट्र के प्रति राष्ट्रीय भावना को बनायें रखने
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राई Rai, चन्द्रकुमार Chandra Kumar. "बान्तवा राईहरूको सुप्तुलुङमा पितृहरूको स्थान र दायित्व {Place and Responsibilities of Ancestors in Suptulung of Bantwa Rai Community}". Prajna प्रज्ञा 123, № 1 (2022): 221–34. http://dx.doi.org/10.3126/prajna.v123i1.62653.

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Abstract:
प्रस्तुत लेख बान्तावा राईहरूको आस्थाकेन्द्र सुप्तुलुङमा केन्द्रित छ । सुप्तुलुङ खाना पकाई खाने तीन चुला ढुङ्गाको एकीकृत स्वरूप हो । त्यसअतिरिक्त पितृहरूको निवासस्थल तथा शक्तिको स्रोतकेन्द्र रहेको विश्वास छ । विश्वासअनुसार यिनै सुप्तुलुङमा पितृहरू निवास गर्दै सन्तानको रक्षा गर्ने गर्दछन् । बान्तावा राईहरूको विश्वासमा पितृहरू नै सर्वोच्च शक्ति हुन् । सुप्तुलुङका तीन ढुङ्गाहरू भिन्न तीन शक्तिको प्रतीक मानिन्छन् र त्यही प्रतीकका आधारमा पुजिने र शक्ति आर्जन हुने विश्वास छ । यी तीन शक्तिहरूमा पुरुष शक्ति, महिला शक्ति र समाज प्रतिनिधि शक्ति हुन् । यी तीन शक्तिहरूमा पुरुष प्रतीक शक्ति अन्न, महिला प्रत
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प्रा., नामावार आकाश सायलू. "महात्मा गांधीजींच्या आर्थिक विचारांचे वर्णनात्मक विश्लेषण". उदयगिरी - बहुभाषिक इतिहास संशोधन पत्रिका 01, № 04 (2023): 973–77. https://doi.org/10.5281/zenodo.10285050.

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Abstract:
गांधीजींचे राजकीय सामाजिक, धार्मिक, शैक्षणिक आणि नैतिक विचार त्यांच्या अभ्यासातून, लेखनातून आणि आत्मचरित्रावरून निदर्शनास येते. पण त्यांचा आर्थिक दृष्ट्या विचार केला असता त्यांनी अर्थशास्त्राचा कोणत्याही वैज्ञानिक पद्धतीने अभ्यास केलेला नाही, पण त्यांनी अर्थव्यवस्थेच्या संबंधित जे विचार मांडलेले आहेत ते खूप मूल्यवान आहेत.गांधीजींनी अर्थशास्त्रावर कोणतीही पुस्तक लिहिलेली नाहीत पण त्यांनी अर्थशास्त्रावर भाष्य केलेल्या विचारांना एकत्र केले तर, त्यांचे त्या काळातील विचार आजच्या काळात सुद्धा प्रासंगिक ठरतात. त्यांचे आर्थिक विचार हे राजकीय आणि सामाजिक विचार प्रणाली प्रमाणे सत्य आणि अहिंसा या तत्त्वा
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प्रा., डॉ. गिरे संजय भाऊराव. "महात्मा गांधी यांचे शैक्षणिक विचार". उदयगिरी - बहुभाषिक इतिहास संशोधन पत्रिका 01, № 05 (2023): 95–100. https://doi.org/10.5281/zenodo.10072615.

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Abstract:
अहिंसेच्या तत्त्वज्ञानातून आचार, विचार, आणि प्रत्यक्ष कृतीमधून संपूर्ण जगाचे लक्ष वेधून घेणारे युगपुरुष म्हणजे महात्मा गांधी हे होत. देशाची प्रगती साधायची असेल तर त्या प्रगतीचा आत्मा म्हणजे शिक्षण होय. शिक्षणाचे हे महत्त्व लक्षात घेऊन त्यांनी आपले शिक्षण विषयक उच्च विचार मांडले. अहिंसेचे पुजारी हातात शस्त्र न घेता निक्षत्रपणे लढून स्वातंत्र्य मिळवून देणारे स्वातंत्र सैनिक, समाज सुधारक, तत्त्वचिंतक, राष्ट्रपिता व शिक्षणतज्ञ अशा विविध जबाबदाऱ्या पेलताना त्यांनी आपल्या विचारातून व प्रत्यक्ष कृतीतून शिक्षणाचे माध्यम, शिक्षणाची उद्दिष्टे, प्रौढशिक्षण विषयक मत, शिक्षक व विद्यार्थी यांचे कर्तव्य, स्त
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प्रा., डॉ. मंगल पांडुरंग खेडेकर. "महात्मा गांधीजींचे स्त्री विषयक विचार". उदयगिरी - बहुभाषिक इतिहास संशोधन पत्रिका 01, № 04 (2023): 313–17. https://doi.org/10.5281/zenodo.10125484.

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Abstract:
साधी राहणी उच्च विचारसरणी असे जीवन विषयक तत्त्व असणारे,नैतिकता हा जीवनाचा मुलाधार मानणारे, अहिंसा धर्माचे प्रवर्तक व मानवतेची पुजारी तसेच श्रेष्ठ तत्त्वचिंतक व समाज सुधारक म्हणजे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी होय.राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजींनी सामान्य माणसाला आदर्श जीवन जगता यावे याकरिता सत्य अहिंसा सत्याग्रह सर्वधर्मसमभाव ही तत्वे जगाला दिली त्यामागे जगात शांतता प्रस्थापित व्हावी हाच त्यांचा उदात्त हेतू होता.महात्मा गांधीजींनी आयुष्यभर सत्य आणि अहिंसा या तत्त्वांचा पुरस्कार केला. स्वतःदेखील याच तत्त्वांनुसार जगले आणि इतरांनीही तसे करावे असे सुचवले. त्यांनी खेड्यांना खऱ्या भारताचे मूळ म्हणून पाहिल
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डॉ., नारायण बागुल. "रामायण में सामाजिक सन्दर्भ : एक अनुशीलन". International Journal of Advance and Applied Research 4, № 26 (2023): 159–61. https://doi.org/10.5281/zenodo.8416557.

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Abstract:
आदिकवि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण एक ऐसा आचारशास्त्र एवं धर्मशास्त्र है, जो भारतीय समाज में ही नहीं अपितु विदेशों में भी विश्रुत है। यह मानव जीवन का सर्वांगीण आदर्श प्रस्तुत करता है। रामायण धार्मिक दृष्टि से प्राचीन संस्कृति, आचार, सत्य, धर्म, व्रत-पालन आदि को समाज में प्रदर्शित करता है। सामाजिक दृष्टि से यह पति-पत्नी के दाम्पत्य सम्बन्ध, पिता-पुत्र के कर्त्तव्य, गुरू-शिष्य का पारस्परिक व्यवहार, भाई का भाई के प्रति कर्त्तव्य, व्यक्ति का समाज के प्रति उत्तरदायित्व, आदर्श माता-पिता, पुत्र, भाई, पति एवं पत्नी का चित्रण, आदर्श गृहस्थ जीवन की अभिव्यक्ति करता है। रामायण में सामाजिक सन्दर्भ में पितृ
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महेन्द्र, कुमार. "जैन दर्शन एवं और बौद्ध दर्शन का शिक्षा परिप्रेक्ष्य: एक तुलनात्मक विश्लेषण". Indian Journal of Modern Research and Reviews 3, № 1 (2025): 03–09. https://doi.org/10.5281/zenodo.14632652.

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Abstract:
भारत के प्राचीन दर्शनों ने शिक्षा को जीवन के प्रमुख उद्देश्यों में स्थान दिया है। जैन और बौद्ध दर्शन, जो दोनों ही श्रमण परंपरा से जुड़े हुए हैं, शिक्षा के माध्यम से आत्मिक और सामाजिक उन्नति की बात करते हैं। ये दोनों दर्शन समान रूप से नैतिकता, ध्यान और आत्म-अनुशासन पर जोर देते हैं, लेकिन उनके दृष्टिकोण और शिक्षा पद्धतियों में कुछ मौलिक भेद भी विद्यमान है। जैन और बौद्ध दोनों दर्शनों ने आधुनिक शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया है और इन्होंने भारतीय शिक्षा पद्धति को गहरे रूप में प्रभावित किया है। दोनों दर्शनों की शिक्षा पद्धति में अनेक समानता होने के साथ-साथ विभिन्नताएं भी पायी जाती हैं।
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kumar, Shashank. "चयनित उपन्यासों में सामासिक संस्कृति का अनुशीलन". बोहल शोध मंजूषा 19, № 6(1) (2024): 130–36. https://doi.org/10.5281/zenodo.14540796.

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Abstract:
भूमंडलीकरण के दौर में लिखे गये उपन्यासों में भारतीय संस्कृति का चित्रण बखूबी मिलता है। इस आलेख के माध्यम से भारतीय संस्कृति की सामासिकता का विश्लेषण गाँवों पर आधारित लिखे गए उपन्यासों के माध्यम से करने का प्रयास होगा। दो या दो से अधिक संस्कृतियों के मिलन को सामासिक संस्कृति की संज्ञा दी जा सकती है। भारत अपनी सांस्कृतिक विविधता के लिए जाना जाता है। भूमंडलीय प्रक्रिया ने वैश्विक ग्राम की संकल्पना को साकार करते हुए विश्व की विविध संस्कृतियों का परिचय एक-दूसरे से कराया है। पर इसके क्रोड़ में व्याप्त असमानता ने सामासिक संस्कृति का क्षय किया है। भूमंडलीकरण ने उदारीकरण की संस्कृति को जन्म दिया, जिसके
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झरे, कृष्णा. "मानवतावादी जीवनदृष्टि: आधुनिक परिप्रेक्ष्य में". Dev Sanskriti Interdisciplinary International Journal 2 (23 липня 2019): 67–74. http://dx.doi.org/10.36018/dsiij.v2i0.26.

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Abstract:
मानवतावादी जीवनदृष्टि में व्यष्टिगत् और समष्टिगत जीवन विकास के आदर्श निहित हैं। यह मनुष्य जीवन को इस धरती पर अति विशिष्ट जीवन के रूप में स्वीकारती है एवं मानव, प्रकृति और परमात्मा के बीच साम´्जस्य एवं पारस्परिक विकास के आदर्श प्रस्तुत करती है। सभी मानवतावादी विचारधाराओं एवं सिद्धान्तों में इसी जीवनदृष्टि की अभिव्यक्ति हुई है। इस धरा पर मनुष्य जीवन के साथ ही मनुष्यता रूपी आदर्श भी जन्मा है। मानवतावादी जीवनदृष्टि इसी आदर्श को जीवन में साकार बनाने में प्रयत्नशील रहती है। मनुष्य जीवन में अपने विकास के साथ-साथ जिस तरह विचारों और भावनाओं मंे एकरूपता, साम´्जस्य का व्यापक स्वरूप प्रकट होता गया वही मान
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Poonam. "From Ambedkar's Perspective: Buddhism." RESEARCH HUB International Multidisciplinary Research Journal 12, no. 5 (2025): 89–94. https://doi.org/10.53573/rhimrj.2025.v12n5.010.

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Abstract:
Dr. B.R. Ambedkar’s perspective on Buddhism reflects his deep understanding of religion as a tool for social transformation rather than mere spiritual salvation. Rejecting caste-based discrimination, ritualism, and blind faith prevalent in Hinduism, Ambedkar embraced Buddhism for its rational, moral, and egalitarian values. He believed that true religion should be based on reason, compassion, and equality, and must align with scientific principles. Ambedkar viewed Buddha not as a divine incarnation, but as a human who offered a logical and ethical path for societal well-being. His adoption of
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लाल, राम, та रामदेव साऊ. "रामायण महाकाव्य में भगवान श्रीराम का चारित्रिक वर्णन". Innovation The Research Concept 9, № 4 (2024): H15—H20. https://doi.org/10.5281/zenodo.12515502.

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Abstract:
This paper has been published in Peer-reviewed International Journal "Innovation The Research Concept"&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; URL : https://www.socialresearchfoundation.com/new/publish-journal.php?editID=9100 Publisher : Social Research Foundation, Kanpur (SRF International)&nbsp; &nbsp; Abstract : भगवान श्री राम का रामायण महाकाव्य का सारांश जिसमे बताया गया है की उनका जन्म अयोध्या में राजा दशरथ और रानी कौशल्या के घर हुआ था। वे धर्म सत्य और मर्यादा के प्रतीक माने जाते हैं और उन्हें&nbsp;'मर्या
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मिश्रा, आशा. "पुरातन में निहित नवीनता: भारतीय ज्ञान परंपरा का सामाजिक और शैक्षिक योगदान". Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education 22, № 01 (2025): 477–83. https://doi.org/10.29070/adcd6897.

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Abstract:
भारतीय ज्ञान वेदों, उपनिषदों, स्मृतियों, लोककथाओं और पारंपरिक प्रथाओं से समृद्ध है, जो शासन, नैतिकता, पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक संरचना और आध्यात्मिक ज्ञान सहित विभिन्न विषयों को समाहित करती है। ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद न केवल धार्मिक ग्रंथ हैं, बल्कि इनमें विज्ञान, गणित, चिकित्सा, खगोलशास्त्र और दर्शन के गहरे बीज भी निहित हैं। महाभारत, रामायण, मनुस्मृति, कौटिल्य का अर्थशास्त्र, चरक और सुश्रुत संहिता जैसे ग्रंथों ने राजनीति, समाजशास्त्र, अर्थव्यवस्था और चिकित्सा विज्ञान में अद्वितीय योगदान दिया। इन ग्रंथों में पुरातन में ही नवीनता निहित है। भारत की सामाजिक संरचना — वर्ण, आश्रम, जाति
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