Academic literature on the topic 'निर्वाचन क्षेत्र'

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Journal articles on the topic "निर्वाचन क्षेत्र"

1

द्विजेश, उपाध् याय, та मकुेश चन्‍द र. पन डॉ0. "तबला एवंकथक नृत्य क अन् तर्सम्‍ बन् धों का ववकार्स : एक ववश् ल षणात् मक अ्‍ ययन (तबला एवंकथक नृत्य क चननांंक ववे ष र्सन् र्भम म)". International Journal of Research - Granthaalayah 5, № 4 (2017): 339–51. https://doi.org/10.5281/zenodo.573006.

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Abstract:
तबला एवांकथक नृत्य ोनन ताल ्रधाान ैं, इस कारण इनमेंसामांजस्य ्रधततत ैनता ै। ूरवव मेंनृत्य क साथ मृो ां की स ां त ैनतत थत ककन्तुबाो म नृत्य मेंजब ्ृां ािरकता ममत्कािरकता, रांजकता आको ूैलुओांका समाव श ैुआ तन ूखावज की ांभतर, खुलत व जनरोार स ां त इन ूैलुओांस सामांजस्य नै ब।ाा ूा। सस मेंकथक नृत्य क साथ स ां कत क कलए तबला वाद्य का ्रधयन ककया या कजस मृो ां (ूखावज) का ैत ूिरष्कृत एवां कवककसत प ू माना जाता ै। तबला वाद्य की स ां त, नृत्य क ल भ सभत ूैलुओांकन सैत प ू में्रधस्तुत करन मेंस ल साकबत ैु। कथक नृत्य की स ां कत में ूररब बाज, मुख्यत लखन व बनारस ररान का मैत् वूरणव यन ोान रैा ै। कथक नृत्य की स ां कत क कलए तबला वाोक द्वारा नृत्य क वणणों, वणव समरै , रमनाओांआको क अनुप ू ैत वणणों, वणव समैर , रमनाओांका कनमाव ण व मयन ककया या कजसका ूिरणाम यै ैुआ कक समय क साथ-साथ तबला वाोन सामग्रत का कवकास ैनता मला या कथक-नृत्य क वतव मान स् वप ू कन ो खन स यै त्‍ य भत जजा र ैनता ै। कक कथक-नृत्य एवांइसकी नृत्य सामग्रत(रमनाओ)ां क कवकास में तबला वाोन सामग्रत की भत मैत् वूरणव भरकमका रैत ै। इस आाार ूर ोनन ैत एक-ोरसर क ूररक कै जा सकत ैं स ां तत कवद्वान भत इस त्‍ य का समथव न करत ै। कक जैााँएक ओर तबल की रमनाओांका कथक नृत्य कन समृद्ध करन में यन ोान रैा ै।वैत ोरसरत ओर कथक की कवकभन् न ूोारात न भत तबला वाद्य क कवकास में अूनत मैत् वूरणव भरकमका कनभा। ै। त्‍ य क आाार ूर कथक नृत्य एवां तबला क ूुनप द्धार का काल 1700 शताब् ोत का जत् तराद्धव माना जाता ै। अत यै कैा जा सकता ै। कक तबला श।लत एवांकथक नृत्य का कवकास साथ-साथ ैुआ कथक नृत्य क साथ तबला स ां कत क कारण तबला वाोन सामग्रत(रमनाएाँ) एवांकथक नृत्य सामग्रत(रमनाएाँ) का कवकास एवांकवस्तार भत साथ-साथ ैनता मला या ्रधस्तत शना ु ूत्र का जद्द श् य तबला एवां कथक नृत्य की रमनाओांक अन् तसव ्‍ बन् ा क कवकास का अन् व षण ण एवां कवश् ल षण ण करना ै।
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ज्योति, ढोल े. ""विश्वविद्यालयीन विद्यार्थिया ें म ें पर्या वरण जागरूकता: एक अध्ययन"". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–4. https://doi.org/10.5281/zenodo.881961.

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Abstract:
आज हम 21वीं सदी म े प्रव ेष कर च ुके है, जिसम ें विज्ञान आ ैर प्रा ैद्योगिकी एक महत्वप ूर्ण भूमिका निभा रहे ह ै। इस प्रगति न े जहां एक आ ैर ब्रह्माण्ड के अन ेक रहस्या ें को सुलझाया ह ै । वही द ूसरी और मानव का अन ेकान ेक सुख सुविधाए ं प्रदान की है। इन मानवीय प्रगति एव ं विकास म े पर्यावरण तो सद ैव सहायक रहा है, परन्त ु इस विकास की दौड ़ मे हमन े पर्यावरण की उप ेक्षा की आ ैर उसका अनियन्त्रित शोषण किया ह ै। तात्कालिक लाभा ें के लालच मे मानव न े स्वयं अपन े भविष्य को दीर्घ कालीन संकट मे डाल दिया है। परिणामस्वरूप जीवन क े स्त्रोत पर्यावरण का अवनयन होता जा रहा है। इसी परिप ेक्ष्य मे यह परियोजना कार्य प्रस्त ुत है। भारत का सर्वाेच्च न्यायालय यह महसूस करता है कि भारत का हर नागरिक पर्या वरण जानकारी व जवाबदारी को समझ े व पर्या वरण सुधार संब ंधी सुझाव द े । शोध कार्य में द ेव निदर्षन ;ैंउचसपदह डमजीवकद्ध प्रणाली का प्रयोग कर प्रष्नावली भरवाकर प्राथमिक आंकड ़ों का संकलन किया गया तथा विष्वविद्यालय का सर्वेक्षण कर जानकारी प्राप्त की गई। शोध कार्य हेत ु प्राथमिक के साथ-साथ द्वितीयक आंकड ़ों का उपयोग किया गया। कार्य क्षेत्र का चयन हिमाचल प्रद ेष विष्वविद्यालय के पांच विभागों (आर्ट स्, काॅर्मस, र्साइ ं स, कम्प्यूटर व अन्य विभागों) का चयन कर प्रत्य ेक विभाग के 5-5 विद्यार्थियो ं स े प्रष्नावली भरवाई जाकर आंकड ़े प्राप्त किये गये है। पर्यावरण समस्या एव ं समस्या से निदान पान े सम्बन्धि जागरूकता को समझन े के लिए प्रष्नावली त ैयार की गई। समस्या से संब ंधित निष्कर्ष एव ं सुझाव दिए गए है।
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दिवाकर, सिंह ता ेमर. "कार्बन टेªडिंग एंव कार्बन क्रेडिट जलवायु परिवर्तन समस्या समाधान म ें सहायक". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.803452.

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Abstract:
जलवायु परिवर्त न की समस्या के लिए न तो विकसित द ेष आ ैर न ही विकासषील द ेष जिम्मेदारी लेन े का े त ैयार ह ैं। क्या ेंकि र्कोइ विकास से समझौता नहीं करना चाहता है। इसी कारण यह समस्या ओर द्यातक बनती जा रही ह ै। अभी हाल ही में ग ्रीन हाऊस ग ैसा ें के कारण विष्व के समक्ष समस्याएॅ उभकर सामन े आई हैं। 1) ओजोन परत म ें छिद ्र:- धरती के वातावरण में मौजूद ओजोन की परत हमें सूर्य से निकलन े वाली पराबैंगनी किरणों से बचाती हैं। परन्त ु हवाई ईधन और र ेफ्रिजर ेषन उद्योग स े उत्सर्जित होन े वाली क्लोरा े फ्लोरो कार्बन गैस से धरती के वातावरण में विद्यमान ओजोन की सुरक्षा छतरी में छिद ्र हा े गए हैं। 2) समुद ्र स्तर में वृद्वि:- वैष्विक तपन के फलस्वरूप हिम पिघल रहे ह ैं जिसके कारण सम ुद ्र के जल स्तर में त ेजी से व ृद्वि हो रही है। 3) भूजल का विषैला होना:- सम ुद ्र का जल स्तर बढ ़न े से तटवर्ती क्षेत्रा ें क े भूजल के खारा होन े का खतरा बढ ़ गया है। 4) ध्रवो ं की बर्फ का पिघलना:- वैष्विक तपन के कारण पृथ्वी के ध्रुवों की बर्फ पिघल रही है। इसस े समुद ्र क े जल स्तर में व ृद्वि हो रही ह ै। 5) वन क्षेत्रो ं का सिक ुड ़ना:- बदलत े मा ैसम आ ैद्या ेगीकरण और शहरीकरण ज ंगलों की कटाई से वन क्षेत्र काफी सीमित होता जा रहा है। 6) लुप्त प्राय जीव:- उपर्यु क्त समस्याआ ें के कारण धरती पर जैवविविधता संकीर्ण होती जा रही है। अंद ेषा है कि वैष्विक तपन के दुष्प्रभाव स े धरती पर विद्यमान पा ैधों की 56 हजार प्रजातियों और जीवों की 37000 नस्लें लुप्त प ्राय हा ेती जा रही ह ैं।
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मिश्रा, आ. ंनद म. ुर्ति, प्रीति मिश्रा та शारदा द ेवा ंगन. "भतरा जनजाति में जन्म संस्कार का मानवशास्त्रीय अध्ययन". Mind and Society 9, № 03-04 (2020): 39–43. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-93-4-20215.

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Abstract:
स ंस्कार शब्द का अर्थ ह ै श ुद्धिकरण। जीवात्मा जब एक शरीर का े त्याग कर द ुसर े शरीर म ें जन्म ल ेता है ता े उसक े प ुर्व जन्म क े प ्रभाव उसक े साथ जात े ह ैं। स ंस्कारा े क े दा े रूप हा ेत े ह ैं - एक आंतरिक रूप आ ैर द ूसरा बाह्य रूप। बाह ्य रूप का नाम रीतिरिवाज ह ै जा े आंतरिक रूप की रक्षा करता है। स ंस्कार का अभिप्राय उन धार्मि क क ृत्या ें स े ह ै जा े किसी व्यक्ति का े अपन े सम ुदाय का प ुर्ण रूप स े योग्य सदस्य बनान े क े उदद ्ेश्य स े उसक े शरीर मन मस्तिष्क का े पवित्र करन े क े लिए किए जात े ह ै। सभी समाज क े अपन े विश ेष रीतिविाज हा ेत े ह ै, जिसक े कारण इनकी अपनी विश ेष पहचान ह ै, कि ंत ु वर्त मान क े आध ुनिक य ुग स े र्कोइ भी समाज अछ ुता नही ं ह ै जिसक े कारण उनके रीतिरिवाजों क े म ुल स्वरूप म ें कही ं न कहीं परिवर्त न अवश्य ह ुआ ह ै। वर्त मान अध् ययन का उदद े्श्य भतरा जनजाति क े जन्म स ंस्कार का व ृहद अध्ययन करना है। वर्त मान अध्ययन क े लिए बस्तर जिल े क े 4 ग ्रामा ें का चयन कर द ैव निर्द शन विधि क े माध्यम स े प ्रतिष्ठित व्यतियों का चयन कर सम ुह चर्चा क े माध्यम से तथ्यों का स ंकलन किया गया ह ै। प ्रस्त ुत अध्ययन स े यह निष्कर्ष निकला कि भतरा जनजाति अपन े संस्कारों क े प ्रति अति स ंवेदनशील ह ै कि ंत ु उनक े रीतिरिवाजा ें म ें आध ुनिकीकरण का प ्रभाव हा ेने लगा ह ै। भतरा जनजाति को चाहिए की आन े वाली पीढ ़ी को अपन े स ंस्कारा ें क े महत्व का े समझान े का प ्रयास कर ें ।
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डा, ॅ. सीमा सक्सेना. "स ंगीत आ ैर समाज". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.886828.

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Abstract:
्रकृति का मूल सिद्वान्त ह ै कि मनूष्य न े अपनी नैस ेर्गिक आवष्यकताओं क े लिये समाज क े अवलम्ब को अवधारित किया उसे अपने सुखःदुख की हिस्सेदारी एव ं व्यवहारिक बल व असुरक्षा से बचकर क े लिये समाज की सृष्टि करनी पड़ी अथवा समाज की शरण में जाना पड़ा। बाल्यकाल, युवावस्था, व ृद्वावस्था, अथवा यह कहा जाये कि जीवन क े प ्रत्येक चरण में मनुष्य का े समाज की आवष्यकता नैसर्गिक होती ह ै। समाज यदि जननी है तो व्यक्ति उसका बालक। विकास की प्रारंभिक अवस्था से निरन्तर प ्रगति पथ पर बढ़ते ह ुऐ उसने अपनी आवष्यकताओं क े रूप सृजन करना आरंभ किया आ ैर-यही सृजन कलाओं का उद्गम स्थल बना। उसे यह पता ही नहीं चला कि कब उसकी इसी सृजनात्मकता ने कलाओं का रूप लिया फिर वा े चाह े स्थापत्य कला, हो या संगीत अथवा चित्रकारी उदाहरण क े लिये उसने प ्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिये गृह उपव्यकाआ ें को अपना घर बनाया आ ैर धीरे-धीरे समूहों में अपने घरा ें का निर्माण किया और यही निवास-स्थापत्यकला क े उत्कृष्ट नमूने बने। इस तरह समाज का विकास व कलाओं का विकास समानान्तर रूप में प ्रगति पाने लगे आ ैर प ्रत्येक समूह समाज का े अपने भिन्न परिव ेष, संस्कृति व संगीत से प ृथक रूप में पहचाना जाने लगा। यहाँ व्यक्ति का स्वाधिकार कुछ भी नही था जो कुछ था वह समाज था। अपनी भावनाआ ें की समूह रूप में अभिव्यक्ति कलाओं क े सृजन का मूल भ ूत कारण बनी। अपनी प ्रसन्नता, दुख, शोभ आदि भावनाओं का े उन्ह ंे किसी ना किसी रूप में अभिव्यक्त करना मनुष्य की आवष्कता बन र्गइ । विकास क े क्रम में यही समाज धीरे-धीरे ग्राम, नगर, प्रान्त व देश क े रूप में आकृति पाते गये आ ैर विविध-विविध नगर, प ्रान्तों व देशा े की अपनी संस्कृति व संगीत में परिलक्षित हा ेते गये। मानव हद्य की वे आदिम भावनाएॅ आज भी हद्य स्प ंदन करने में उतनी ही क्षमताऐं रखती ह ै जितनी वे अपनी प्रांरभिक काल मे रखती थी।
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श्रीमती, सुधा शाक्य. "र ंग दृष्टि दा ेष: र ंग अ ंधता". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.889298.

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Abstract:
्रस्तावना:- मानव में र्कइ प्रकार की संव ेदनाएं होती हैं जैसे दृष्टि, श्रवण, स्पर्श , गंध, स्वाद आदि। इनकी उत्पत्ति उद्दीपका ें से होती ह ै, जिसे व्यक्ति अपने बाह ्य पर्यावरण से ग्रहण करता ह ै, यह उद्दीपक ज्ञानेन्द्रिया ें अर्था त आंख, कान, त्वचा, नाक आ ैर जिव्हा को उद्दीप्त करते ह ैं, आ ैर विभिन्न संव ेदना को उत्पन्न करते ह ै ं। आइजनेक (1972) क े अनुसार ‘‘ संव ेदना एक मानसिक प ्रक्रम ह ै जा े आगे विभाजन या ेग्य नहीं होता। यह ज्ञानेन्द्रिया ें को प ्रभावित करने वाली बाह ्य उत्तेजना द्वारा उत्पादित हा ेता ह ै, तथा इसकी तीव ्रता उत्तेजना पर निर्भ र करती ह ै, आ ैर इसके गुण ज्ञानेन्द्रिय की प ्रकृति पर निर्भर करते ह ैं। इन पा ंच संवेदनाआ ें क े अतिरिक्त अन्य स ंव ेदना भी ह ै जैसे आ ंगिक संव ेदना, स्थ ैतिक संव ेदना तथा गति संव ेदना। इन संव ेदनाओं में कुछ विशेषताए ं होती हैं जैसे प्रकार, तीव्रता, अवधि एव ं स्पष्टता। नेत्र शरीर का एक प्रमुख अंग ह ै तथा दृष्टि संव ेदना सर्वाधिक विकसित, जटिल एव ं महत्वपूर्ण ह ैं, नेत्रा ें क े माध्यम से प ्रकाश, चमक, आकार, गति एवं रंग की स ंव ेदना हा ेती ह ै। प्रकाश की अनुपस्थिति में व्यक्ति देख नहीं सकता। रंग का प ्रत्यक्षण रोशनी की तरंग तैध्र्य पर निर्भर करता है। तरंग दैध्र्य का माप नैनोमीटर से किया जाता ह ै, जो एक मीटर का एक अरब भाग होता ह ै, सबसे छोटा तरंग दैध्र्य 400 नैना ेमीटर का होता ह ै। इससे ब ैंगनी रंग का प्रत्यक्षण होता ह ै। सबसे बड़ा तरंग दैध्र्य 700 से 800 नैनोमीटर का होता ह ै। इससे व्यक्ति को लाल रंग का प ्रत्यक्षण हा ेता ह ै, आ ैर इन दोना ें सीमाओं क े मध्य क े तरंग दैध्र्य द्वारा अन्य सभी रंगा ें का प ्रत्यक्षण होता ह ै। चमक का अर्थ है रंग कितना गहरा या हल्का ह ै, अर्था त् रंगा ें की तीव ्रता का पता चलता है। रंग दो प ्रकार क े होते ह ै ं, प ्राथमिक एवं गा ैण रंग। प ्राथमिक रंग लाल, हरा, नीला, पीला तथा बाकी के रंग गा ैण रंग क े अ ंतर्गत आते ह ै ं। न्यूटन (1966) ने पि ्रज्म की सहायता से देखा कि सूर्य क े प ्रकाश में इ ंद्रधनुष क े सभी सातों रंग होते ह ै ं, अर्थात निष्कर्ष निकाला कि सूर्य का प ्रकाश विभिन्न रंगा ें से मिल कर बना हा ेता ह ै। रंग संव ेदनाओं से संबंधित तीन महत्वपूर्ण घटनाए ं (च्ीमतवउमदवद) पर मनोवैज्ञानिक का ध्यान गया रंग मिश्रण, रंग अनुकूलन तथा रंग अंधता। अधिका ंश रंग अन्य दूसरे प ्रकार क े रंगा ें का मिश्रण होता है ं जैसे नारंगी रंग लाल आ ैर पीले रंग क े मिश्रण के उपरांत प ्राप्त होता ह ै। अन्य सभी रंग प ्राथमिक रंगा ें क े मिश्रण के पश्चात् बनते ह ैं। भिन्न-भिन्न प्रकाश की मात्रा के साथ आंख को अनुकूलन करना होता ह ै जैसे अ ंध ेरे में कुछ समय तक दिखर्लाइ न देना आ ैर कुछ समय के बाद थोड़ा-थोड़ा दिखलाई देना इसे अंधकार अनुकूलन कहा गया ह ै इसके ठीक विपरीत प ्रकाश अनुकूलन होता ह ै। रंग अंधता, विभिन्न रंगा ें क े मध्य विभेद करने की अक्षमता होती ह ै। सामान्य व्यक्ति सभी रंगा ें की पहचान करने में समर्थ होता ह ै लेकिन कुछ लोग ए ेसे होते ह ै ं जिन्ह ें सभी रंगा ें की संव ेदना तो हा ेती ह ै, लेकिन विभिन्न रंगा ें का े एक दूसर े से अलग करने में कठिर्नाइ होती ह ै। इसे ‘‘रंग दुर्ब लता’’ कहते ह ै ं। कुछ लोग ए ेसे हा ेते ह ै ं जिन्ह ें रंग दिर्खाइ नही ं देते ए ेसे ला ेगा ें को रंग अ ंध (ब्वसवनत इसपदक) कहा जाता ह ै आ ैर इस रंग दृष्टि दोष या विकार का े ‘‘रंग अ ंधता’’ कहा जाता ह ै।
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प, ्रो. श्रद्धा दुब े. प्राध्यापक इतिहास. "अजन्ता के चित्र एवं र ंग स ंयोजन (गुप्तकालीन कला क े परिप्रेक्ष्य म ें)". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1. https://doi.org/10.5281/zenodo.892002.

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Abstract:
गुप्तकाल भारत के इतिहास का स्वर्ण -युग कहा जाता ह ै। सुख समृद्धि आ ैर व ैभव के इस काल में सभी कलाओं का समान रूप से उन्नयन ह ुआ। इस युग की सबसे बड ़ी देन ह ै अजंता के भित्तिचित्र। चित्रकारों ने गहन अधंकरामयी गुफाओं में ब ैठकर जिन अपार्थिव कृत्तियों का सृजन किया वे अप्रतिम है। इनमें कथावस्तु और विषय तो भगवान तथागत के जीवन आ ैर जातक कथाआ ें से ही लिए किन्तु उन्ह े ं किसी सीमा में बांध कर नहीं रखा। उनमें सैकड ़ों वर्षों का लोकजीव दर्पण की भाँति प ्रतिबिम्बित है।अजंता में अर्ध-चन्द्राकार पर्व त का े काटकर 29 गुफाएँ बनाई गई ह ै। यह समूहा ें में ब ंटी हुई ह ै। इनमें दसवी ं आ ैर नवीं गुफाएँ बीच के समूह में ह ै। अजंता की गुफाओं के अधिकांष चित्र मिट चुके ह ैं परन्तु जा े श ेष ह ै व े अद्भुत ह ैं। सबसे प ुराने चित्रा ें पर श ुंग कला का प ्रभाव ह ै। नवीं गुफा के एक दृश्य में जा े मिट सा गया ह ै भगवान तथागत ब ैठे ह ै ं, राजा रानी अमात्यगण आ ैर उपासक भिक्षु उन्हें घ ेरे ह ुए है ं। अमात्या ें के सिरो ं पर लटूदार पगड़ियाँ ह ै आ ैर वे हाथों आ ैर गले में भारी-भारी आभ ूषण पहने है ं। आकृतियों से वे दक्षिण की ही किसी आदिम जाति के लोग लगते ह ै ं। इसे हम अजंता चित्रकला की पूर्व परम्परा कह सकते ह ैं। इसमें धूसरित रंग का प्रयोग अधिक है किन्तु प ्राकृतिक रंगा ें के प ्रयोग की वजह से प ्रत्येक वस्तु ऊपर वर्णा नुसार स्पष्ट नजर आती है। चटख रंग न हा ेने की वजह से यह कथानक को गंभीरता से प ्रकट करते ह ैं आ ैर उसके आध्यात्मिक स्वरूप का े गति प्रदान करते ह ै ं।
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चन्द, ्रकांता सराफ. "मानव स्वास्थ्य एवं प्रदूषण". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.803448.

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Abstract:
मानव स्वास्थ्य एक प ूर्ण शारीरिक, मानसिक आ ैर सामाजिक खुषहाली की स्थिति है। अच्छे स्वास्थ्य में शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य, बा ैद्धिक स्वास्थ्य, आध्यात्मिक स्वास्थ्य और सामाजिक स्वास्थ्य भी शामिल है। एक व्यक्ति का े स्वस्थ तब कहां जाता है जब उसका शरीर स्वस्थ और मन साफ और शांत हो। प्रद ूषण एक प्रकार का जहर ह ै जो वायु, जल, धूल आदि के माध्यम से न केवल मन ुष्य के शरीर में प्रव ेष कर उसे रूग्ण बना द ेता है वरन ् जीव जन्त ुओं, पशुपक्षियों, प ेड ़पौधे आ ेर वनस्पतियों को भी नष्ट कर द ेता है। प्रद ूषण अन ेक भयानक बिमारिया ें को जन्म द ेता ह ै। जैसे - कैंसर, तप ेदिक, रक्तचाप, दमा, हैजा, मलेरिया, चर्मरोग, न ेत्ररोग, कान के रोग, स्वाइन फ्लू, सिरदर्द , थकान, खांसी, गले की बिमारी, हृदय संब ंधी रोग, व ृक्क रोग, सीन े में दर्द आदि। पर्यावरण को प ्रद ूषित करन े वाले अन ेक प्रमुख प्रद ूषक है। प्रद ूषक व े पदार्थ है जिन्ह ें मन ुष्य बनाता है, उपया ेग करता है और अ ंत में शेष भाग को पर्यावरण में फेंक द ेता ह ै। पर्यावरण का े प्रद ूषित करन े वाला प ्रम ुख पदार्थ जमा हुये पदार्थ जैस े - धुआं, धूल, गि ्रट, घर आदि, रासयानिक पदार्थ जैसे - डिटरजेंटस् हाइड ªोजन फ्लोराइड, फास्जीन आदि, धात ुयें जैसे - लोहा, पारा, जिंक, सीसा आदि, गैस जैस े - काॅर्बन मोनाॅक्साइड, सल्फर डाॅय आॅक्साइड, अमोनिया, क्ला ेरिन, फ्लोरिन आदि, उर्वरक जैसे यूरिया, पोटाष आदि, प ेस्टीसाइड ्स जैसे - डी.टी.टी कवकनाषी, कीटनाषी आदि, वाहित मल जैसे- ग ंदा पानी, ध्वनि उष्मा, र ेडियोंएक्टिव पदार्थ है।
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स, ुषीला गायकवाड ़. "''शहरी गंदी बस्तियों म ें पर्यावरण संबंधी समस्याएँ''". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–4. https://doi.org/10.5281/zenodo.883551.

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Abstract:
वर्त मान में हम जिस वातावरण एव ं परिव ेष द्वारा चारो ं ओर से घिरे है उस े पर्यारण कहत े है। पर्यावरण में सभी घटकों का निष्चित अन ुपात में स ंत ुलन आवष्यक ह ै, किन्त ु मन ुष्य की तीव्र विकास की अभिलाषा एव ं प ्रकृति के साथ छेड ़छाड ़ के कारण यह स ंत ुलन धीर े-धीर े समाप्त हो रहा है। पृथ्वी पर निर ंतर बढ ़ती जनसंख्या आज विष्व में चि ंता का प्रमुख कारण बन रही ह ै, क्योंकि जनसंख्या व ृद्धि न े लगभग सभी द ेषा ें को किसी न किसी प ्रकार से प ्रभावित किया है आ ैर उनकी प ्रगति में बाधाए ं उत्पन्न की है। जनसंख्या का दबाव विकसित देषों में तो कुछ अधिक नहीं है, किंत ु विकासषील व अविकसित द ेषों म ें स्थिति बहुत अधिक दयनीय है। जनसंख्या व ृद्धि की यह दर चिंताजनक है, क्यो ंकि निर ंतर विकास के बावजूद भी हमारी अधिकांष जनसंख्या निम्न जीवन स्तर जी रही है। खाद्यान उत्पादन में अप ूर्व वृद्धि के बावजूद सभी को पोषक उपलब्ध नही ं है। अधिक स्थिति दयनीय हो रही ह ै। संसाधन समाप्त हो रहे है, ऊर्जा का संकट है, प ेयजल की कमी आ ैर पर्यावरण प ्रद ुषित है। बढ ़ती जनसंख्या के कारण वनों का विनाष भूमिगत जल का अनावष्यक दोहन, आवासीय काॅलोनियों का प ्रसार, ऊर्जा की कमी आदि समस्याएँ उत्पन्न हो गई ह ै। कुल जनसंख्या के साथ नगरीय जनसंख्या का प्रतिषत लगातार बढ ़ता जा रहा ह ै। औद्योगिक क्रांति क े पश्चात ् औद्योगीकरण व नगरीयकरण की तीव्र प्रक्रिया न े विषाल नगरों व आ ैद्या ेगिक केंद ्रों का निर्माण किया जिसके कारण नगरों का विकास हुआ, परिणाम स्वरूप जनसंख्या के एकीकरण को प्रा ेत्साहन मिला और अधिकांष जनसंख्या विषाल नगरों मे ं तथा आ ैद्या ेगिक केंद ्रों म ें एकत्रित हो गई। इन विषाल नगरों तथा औद्योगिक क ेंद ्रो ं में बढ ़ती हुई जनसंख्या के परिणामस्वरूप आवास की समस्या उत्पन्न हा ेन े लगी। बढ ़ती र्हुइ जनसंख्या के लिए आवास की समुचित व्यवस्था न होन े के कारण ग ंदी बस्तियों का निर्माण हुआ। आज ए ेसा कोई भी कोई भी औद्योगिक नगर नहीं है जहाँ कि गंदी बस्तियाँ द ेखन े को न मिलती हो। अतः यह कहना अतिष्योक्ति होगी कि गंदी बस्तियां आध ुनिक आ ैद्योगिक नगरीकरण की परिचायक ह ै।
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डा, ॅ0 नाजिमा इरफान. "भारतीय चित्रकला में र ंगा ें का या ेगदान (अब्दुर्रहमान चुगताई के विष ेष संदर्भ में)". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.889177.

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Abstract:
मानव जीवन में वर्ण का महत्वप ूर्ण स्थान ह ै। प्रत्येक वस्तु का ेई न कोई रंग लिये हुए ह ै। रंगा ें क े प ्रति मानव का आकर्ष ण कभी घटा नही ह ै। इसीलिये आदि मानव से लेकर आधुनिक मानव तक ने सा ैन्दर्य क े विकास में वर्ण का सहारा लिया ह ै। कमरे की रंग व्यवस्था से लेकर बाग बगीचा ें में फ ूल पौधों की रंगया ेजना तक में कलाकार ने अपना हस्तक्ष ेप किया ह ै क्योंकि रंगा ें का अपना एक प्रभाव हा ेता ह ै जो मानव की मानसिक भावनाओं का े उद्वेलित करने की शक्ति रखता ह ै। वर्ण सार्वभौमिक ह ै तथा चित्रकला में सबसे अधिक महत्व रंग का े दिया जाता है। रंगा ें क े विविध रुपों मे ं मन की भावनायें जुड़ी ह ै ं जैसे बसन्त का रंग नारंगी, मेघ का नीला, दीपक का पील, श्री का हरा, मालाकोश का काला और भैरव का सफेद जा े चित्रों क े आधार बने। अजन्ता काल से ही कलाकार रंग क े प्रति सजग हो गया था। रंग जा े अजन्ता में इतना उभार नहीं पा सके थे व े राजस्थानी व पहाड़ी कलम में अपनी पूर्ण चटख मटक के साथ फूट पड़ते ह ै ं तथा यूरा ेप क े अभिव्यंजनावाद व फावीवाद की तरह अभिव्यक्तिपरक हा े गये। अजन्ता युग से लेकर जैन कला से होती ह ुई 16वीं शताब्दी तक इस परम्परा का विकास होता रहा। उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त में आ ैर बीसवीं शताब्दी क े आरम्भ में भारतवर्ष में जा े चित्रकला उपजी वह पाश्चात्य कला का अनुकरणमय ही रही और वह भी बह ुत मध्यम श्र ेणी की। आधुनिक भारतीय चित्रकारों में रंग पर खोज करने वाले कलाकारों में अवनीन्द्रनाथ टैगोर, नन्दलाल बा ेस, क्षितिद्रनाथ मजूमदार क े नाम सामने आते ह ैं। ब ंगाल शैली के चित्रकारा ें की श्रृंखला में एक नाम अब्र्दुरहमान चुगताई है जिनक े चित्रों की सफलता में वर्ण या ेजना अपना एक महत्वपूर्ण स्थान रखती ह ै। आपकी रंग या ेजना क े बारे में आलोचक व समीक्षक भी अपने तथ्य रखते ह ैं। पाकिस्तान के समकालीन राष्ट्रपति मुहम्मद अय्यूब खान ने आपक े चित्रा ें में रंगा ें क े जादू का अनुभव किया है।3 अब्दुर्रहमान चुगर्ताइ का जन्म लाहौर में 21 सितम्बर सन् 1897 ई0 को ह ुआ था।4 इनका सम्बन्ध इस्लामी परिवार करीम बख्श मेमार क े परिवार, जो मौलिक रुप से हिरात क े निवासी थे, जो अफगानिस्तान में ह ै। परन्तु मुगल काल में भारत में सा ंस्कृतिक परिवर्तन क े समय यह परिवार हिरात से प ्रवास कर लाहा ैर में आ बसा। अब्दुर्रहमान चुगताई का जीवन एक कलाकार की तरह 1915र् इ 0 में श ुरु हुआ। चुगताई की कला स्वयं से उत्पन्न कला साधना है जिसमें रंगा ें का महत्वपूर्ण स्थान ह ै।
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