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सीमा, कदम. "धरती क े ताप की दवा". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.883026.

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Abstract:
आज धरती माॅ ं का द ुःख सर्वविदित है। उसे संभाले रखन े वाले तत्व-जल, वनस्पति, आकाश आ ैर वाय ु, विकास की चिमनियों स े निकलन े वाले धुए ं के कारण हांप रहे हैं । भू-मण्डलीकरण की लालची जीभ न े इन सभी तत्वों को बाजार में सुन्दर पैकिंग में भर व्यापार की वस्त ु क े रूप में प ेश कर दिया है । इन चारों के कम होन े से पाॅ ंचव े अंग यानी अग्नि न े आज प ूरी धरती को भीतर-बाहर से घेर लिया है । जिसके कारण धरती का भीतर-बाहर सब तपन े लगा ह ै । इसीलिए ‘पृथ्वी दिवसों’ की आड ़ में संयुक्त राष्ट्र टाइप धरती के द ूर क े रिश्त ेदार आईसीयू में डाॅयलिसिस पर लेटी धरती को शीशों क े कमरों से झांकत े रहत े हैं । धरती क े बु
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डा, ॅ. सीमा सक्सेना. "स ंगीत आ ैर समाज". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.886828.

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Abstract:
्रकृति का मूल सिद्वान्त ह ै कि मनूष्य न े अपनी नैस ेर्गिक आवष्यकताओं क े लिये समाज क े अवलम्ब को अवधारित किया उसे अपने सुखःदुख की हिस्सेदारी एव ं व्यवहारिक बल व असुरक्षा से बचकर क े लिये समाज की सृष्टि करनी पड़ी अथवा समाज की शरण में जाना पड़ा। बाल्यकाल, युवावस्था, व ृद्वावस्था, अथवा यह कहा जाये कि जीवन क े प ्रत्येक चरण में मनुष्य का े समाज की आवष्यकता नैसर्गिक होती ह ै। समाज यदि जननी है तो व्यक्ति उसका बालक। विकास की प्रारंभिक अवस्था से निरन्तर प ्रगति पथ पर बढ़ते ह ुऐ उसने अपनी आवष्यकताओं क े रूप सृजन करना आरंभ किया आ ैर-यही सृजन कलाओं का उद्गम स्थल बना। उसे यह पता ही नहीं चला कि कब उसकी इसी
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प, ्रो. किन्श ुक श्रीवास्तव. "हिन्दुस्तानी एवं पाश्चात्य स ंगीत पद्धति क े सम्मिश्रण द्वारा उत्पन्न स ंगीत- तत् वाद्या ें के विश ेष स ंदर्भ में (फ़्य ूज़न-म्यूजि ़क)". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.885857.

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Abstract:
शास्त्रीय संगीत भारतीय संस्कृति का एक अनमोल तत्व है। का ेई भी धर्म, सभ्यता, संस्कृति, परम्परा संगीत के साथ ही चिरन्तनता को प ्राप्त हा ेता ह ै। पृथ्वी पर प्रत्येक जीवन्त तत्व संगीत से जुड़ा ह ै आ ैर प ्राणीमात्र आपस में संगीत द्वारा ही जुड़े ह ै। क्योंकि मानव भाव-प ्रधान है आ ैर संगीत क े द्वारा अभिव्यक्त भावों क े माध्यम से ही भिन्न संस्कृतियों क े लोग भी आपस में जुड़े ह ै ं। शास्त्रीय संगीत या भारतीय सांस्कृतिक संगीत जिसे व ैदिक संगीत अथवा प्राचीन संगीत आ ैर कलात्मक संगीत भी कहा जा सकता ह ै, अपनी भा ैगोलिक सीमाओं क े अन्दर ही भिन्न-भिन्न धाराआ ें में पल्लवित होता आ रहा ह ै। भिन्न-भिन्न धर्मा
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रान, ू. उपाध्याय. "प्राक ृतिक संसाधनों क े संरक्षण म ें समाज की भ ूमिका". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.883012.

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Abstract:
भारतवर्ष में प ्राचीन शास्त्रों, व ेद-पुराणों मे ं, धर्म ग्रन्थो में तथा ऋषि-मुनियों न े पर्या वरण की शुद्धता पर अधिक बल दिया है । व ेदों में प ्रकृति प ्रदत्त पर्या वरण को द ेवता मानकर कहा गया है कि- ‘‘या े द ेवा ेग्नों या े प्सु चो विष्वं भ ुव नमा विव ेष, यो औषधिष ु, या े वनस्पतिषु तस्म ें द ेवाय नमो नमः’’ अर्था त जा े स ृष्टि, अग्नि, जल, आकाष, प ृथ्वी, और वाय ु से आच्छादित ह ै तथा जो औषधियों एव ं वनस्पतिया ें में विद्यमान ह ै । उस पर्यावरण द ेव को हम नमस्कार करत े है । प्रकृति मानव पर अत्यंत उदार रही ह ै । पृथ्वी पर अपन े उद्वव के बाद से ही मानव अपन े अस्तित्व के लिय े प्रकृति पर निर्भर रहा
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ख ुट, डिश्वर नाथ. "बस्तर का नलवंश एक ऐतिहासिक पुनरावलोकन". Mind and Society 9, № 03-04 (2020): 47–52. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-93-4-20217.

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Abstract:
सभ्यता का विकास पाषाण काल स े प ्रार ंभ हा ेता ह ै। इस काल म ें बस्तर म े रहन े वाल े मानव भी पत्थर क े न ुकील े आ ैजार बनाकर नदी नाल े आ ैर ग ुफाआ ें म ें रहत े थ े। इसका प ्रमाण इन्द ्रावती आ ैर नार ंगी नदी के किनार े उपलब्ध उपकरणों स े हा ेता है। व ैदिक युग म ें बस्तर दक्षिणापथ म ें शामिल था। रामायण काल म ें दण्डकारण्य का े उल्ल ेख मिलता ह ै। मा ैर्य व ंश क े महान शासक अशा ेक न े कलि ंग (उड ़ीसा) पर आक्रमण किया था, इस य ुद्ध म ें दण्डकारण्य क े स ैनिका ें न े कलि ंग का साथ दिया था। कलि ंग विजय क े बाद भी दण्डकारण्य का राज्य अशा ेक प ्राप्त नही ं कर सका। वाकाटक शासक रूद ्रस ेन प ्रथम क े समय
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चा ैहान, ज. ुवान सि ंह. "प ्रवासी जनजातीय श्रमिका ें की प ्रवास स्थल पर काय र् एव ं दशाआ ें का समाज शास्त्रीय अध्ययन". Mind and Society 8, № 03-04 (2019): 38–44. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-83-4-20196.

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Abstract:
भारत म ें प ्रवास की प ्रक्रिया काफी लम्ब े समय स े किसी न किसी व्यवसाय या रा ेजगार की प ्राप्ति ह ेत ु गतिशील रही ह ै आ ैर यह प ्रक्रिया आज भी ग ्रामीण जनजातीय सम ुदाय म ें गतिशील दिखाइ र् द े रही ं ह ै। प ्रवास की इस गतिशीलता का े रा ेकन े क े लिए क ेन्द ्र तथा राज्य सरकार न े मनर ेगा क े तहत ् प ्रधानम ंत्री सड ़क या ेजना, स्वण र् ग ्राम स्वरा ेजगार या ेजना ज ैसी सरकारी या ेजनाआ े ं का े लाग ू किया ह ै, ल ेकिन फिर ग ्रामीण जनजातीय ला ेगा े ं क े आथि र्क विकास म े ं उसका असर नही ं दिखाइ र् द े रहा ह ै। ग ्रामीण जनजातीय सम ुदाया ें म े ं निवास करन े वाल े अधिका ंश अशिक्षित हा ेन े क े कारण शा
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द्विजेश, उपाध् याय, та मकुेश चन्‍द र. पन डॉ0. "तबला एवंकथक नृत्य क अन् तर्सम्‍ बन् धों का ववकार्स : एक ववश् ल षणात् मक अ्‍ ययन (तबला एवंकथक नृत्य क चननांंक ववे ष र्सन् र्भम म)". International Journal of Research - Granthaalayah 5, № 4 (2017): 339–51. https://doi.org/10.5281/zenodo.573006.

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Abstract:
तबला एवांकथक नृत्य ोनन ताल ्रधाान ैं, इस कारण इनमेंसामांजस्य ्रधततत ैनता ै। ूरवव मेंनृत्य क साथ मृो ां की स ां त ैनतत थत ककन्तुबाो म नृत्य मेंजब ्ृां ािरकता ममत्कािरकता, रांजकता आको ूैलुओांका समाव श ैुआ तन ूखावज की ांभतर, खुलत व जनरोार स ां त इन ूैलुओांस सामांजस्य नै ब।ाा ूा। सस मेंकथक नृत्य क साथ स ां कत क कलए तबला वाद्य का ्रधयन ककया या कजस मृो ां (ूखावज) का ैत ूिरष्कृत एवां कवककसत प ू माना जाता ै। तबला वाद्य की स ां त, नृत्य क ल भ सभत ूैलुओांकन सैत प ू में्रधस्तुत करन मेंस ल साकबत ैु। कथक नृत्य की स ां कत में ूररब बाज, मुख्यत लखन व बनारस ररान का मैत् वूरणव यन ोान रैा ै। कथक नृत्य की स ां कत
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पाण्ड ेय, ऋषिराज. "रायप ुर जिल े म ें जन च ेतना का विकास". Mind and Society 8, № 03-04 (2019): 50–53. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-83-4-20198.

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Abstract:
भारत म ें अ ंग ्रेजा ें क े विरूद्ध स्वत ंत्रता स ंग ्राम क े रूप म ें सन ् 1857 म ें सव र्प ्रथम प ्रबल क्रा ंति ह ुइ र्। छत्तीसगढ ़ अ ंचल क े रायप ुर जिल े क े सा ेनाखान जमीदारा ें क े जमी ंदार नारायण सि ंह द्वारा क्रा ंति का बिग ुल फ ूंका गया, उनकी फा ंसी क े बाद स ैन्य विद ्रा ेह का न ेतष्त्व हन ुमान सि ंह द्वारा किया गया। सन ् 1885 म ें का ंग ्रेस की स्थापना ह ुइ र्, अ ंचल म ें राष्ट ्रीय च ेतना क े विकास म ें इसका भरप ूर या ेगदान रहा। साथ ही आय र् समाज, मालिनी रीडस र् क्लब, छत्तीसगढ ़ बाल समाज, कवि समाज की स्थापना जनच ेतना क े विकास की दष्ष्टि स े उल्ल ेखनीय ह ै। प ं. स ुन्दरलाल शमा र् न
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गा, ैरव यादव. "स ंगीत क े प्रचार प्रसार में स ंचार साधना ें की भ ूमिका". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.886968.

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Abstract:
बीसवीं शताब्दी क े पूर्वा द्र्ध को व ैज्ञानिक क्रांति क े अभ्युदय का समय कहा जा सकता है, जहाँ व ैज्ञानिक अविष्कारों क े अ ंतर्गत कुछ ऐसे उपकरणों का अविष्कार ह ुआ जिन्होंने संगीत क े प्रचार-प्रसार का े तीव्रता प्रदान की। संचार साधनों क े प्रारंभिक दौर में संगीत क े क्षेत्र में एक वैज्ञानिक अविष्कार का विश ेष महत्व ह ै ,जिसने भारतीय संगीत के क्षेत्र में ही नहीं वरन् विश्व में क्रांति ला दी यह था रेडिया े का आगमन। भारत में इसकी स्थापना सन् १९२७ ई. में र्ह ुइ । सन् १९३६ ई. में इ ंडियन स्टेट ब ्रॉडकास्टिंग स ेवा का नाम बदलकर आकाशवाणी कर दिया गया। उस समय आकाशवाणी एक सशक्त माध्यम था शास्त्रीय संगीत क
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डा, ॅ. वसंुधरा पवार. "स ंगीत म ें नवाचार का इतिहास". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.886069.

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Abstract:
भारतीय संगीत का इतिहास उतना ही प्राचीन आ ैर अनादि ह ैं, जितनी मानव जाति। इसका सभारंच व ैदिक माना जाता ह ै। जितनी प्राचीन हमारे देश की सभ्यता आ ैर संस्कृति है उतना ही विस्तृत एव ं विषाल यहाँ के संगीत का अतीत ह ै। भारतीय संगीत का उद्भव सामदेव की ऋचाओं से ह ुआ है तथा इसका शैषव काल ऋषि मुनियों की तपोभूमि तथा यज्ञवेदिया ें क े पावन घ्र ुम क े सान्निध्य में सुवासित हा ेकर व्यतीत ह ुआ। यही कारण है कि भारतीय मनीषियों ने नाद का े ईश्वर के समान कहा गया ह ै, तथा नाद ब्रह्य की सदैव उपासना की ह ै। “ न नादेन बिना गीतं न नादेन बिना स्वरः। न नृŸां तस्मान्नादात्मकं जगत्।। ” न ता े नाद के बिना गीत है, न नाद क े
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अभय, ज. ैन. "जलवायु परिवर्तन आ ैर मध्यप्रदेश". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.881829.

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Abstract:
विकास आ ैर पर्यावरण के बीच स ंत ुलन की बात लम्ब े समय से चली आ रही है, लेकिन विकास चक्र के चलत े कहीं न कहीं पर्या वरण की अनद ेखी होती आ रही है आ ैर ए ेसी स्थितियाँ आज हमार े सामन े चुना ैती एव ं सकंट के रूप म ें है। अन ेक स ंकल्प, वाद े, नीतियाँ आ ैर कार्यक्रम आदि के क्रियान्वयन के बावजूद भी पर्यावरण चुनौतियाँ हमार े सामन े ह ै। मौसम म ें बहुत अधिक उतार-चढ ़ाव हो रहे है, अधिक बरसात या सूखा पड ़ना संया ेग नहीं बल्कि पर्या वरण परिस्थितियों में आ रहे खतरनाक बदलाव के सूचक और परिणाम ह ै। जलवायु परिवर्त न से निपटना न केवल हमार े स्वास्थ्य के लिये बल्कि आन े वाली पीढि ़या ें के स्वास्थ्य को लाभ पहुँ
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आलोक, गोयल किरण बड े़रिया राकेश कवच े. "विकास के लिए पर्या वरण क े क्षेत्र म ें मनुष्य की नैतिक भूमिका". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.574866.

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Abstract:
मानव जीवन का समूचा अस्तित्व पर्यावरण पर आधारित है। जहाँ पर्यावरण का सन्त ुलन विकास मार्ग का सन्त ुलन विकास मार्ग की प्रगति को प्रषस्त करता है। वहीें पर्यावरण का असन्त ुलन व्यक्ति ही नहीं समूच े समाज और मानव स ंसाधनों के विनाष का प्रमुख कारण ह ै। स ुन्दरलाल बहुगुणा का कहना है कि ‘‘पहले मन ुष्य प्रक ृति का ही एक अभिन्न हिस्सा था। प्रक ृति से उसका रिष्ता अहिंसक आ ैर आत्मीयता का था। स्वार्थ आ ैर भोग संस्क ृति के कारण अब यह न क ेवल बदल गया बल्कि विकृत हो गया।’’ मन ुष्य क े अन ैतिक आचरण से जहां पर्यावरण सहित लगभग सभी क्षेत्रों मंे पतन हुआ ह ै वहीं अच्छ े आचरण और सामाजिक स्वीकृति से किया जान े वाले व
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राय, अजय क. ुमार. "जनसंख्या दबाव से आदिवासी क्षेत्रों का बदलता पारिस्थितिकी तंत्र एवं प्रभाव (बैतूल-छिन्दवाड़ा पठार के विशेष सन्दर्भ में)". Mind and Society 9, № 03-04 (2020): 31–38. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-93-4-20214.

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Abstract:
जनजातीय पारिस्थितिकी म े ं वन, क ृषि म े ं स ंलग्नता, आवास, रहन-सहन का स्तर, स्वास्थ्य स ुविधाआ े ं का अध्ययन आवश्यक हा ेता ह ै। सामान्यतः धरातलीय पारिस्थ्तििकी का े वनस्पति आवरण क े स ंदर्भ म ें परिभाषित किया जाता ह ै। अध्ययना ें स े यह स्पष्ट ह ैं कि यदि किसी स्थान पर जनस ंख्या अधिक ह ैं आ ैर यदि उसकी व ृद्धि की गति भी तीव ्र ह ै ं ता े वहा ं पर अवस्थानात्मक स ुविधाआ ंे क े निर्मा ण क े परिणास्वरूप तथा विकासात्मक गतिविधिया ें क े कारण विद्यमान स ंसाधना ें पर दबाव निर ंतर बढ ़ता ही जाता ह ैं, प ्रस्त ुत अध् ययन म े ं शा ेधार्थी आदिवासी एव ं वन बाह ुल्य क्ष ेत्र ब ैत ूल-छि ंदवाड ़ा पठार म ें ज
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मनीष, बोहर े. "स ंगीत चिकित्सा - एक नवाचार". International Journal of Research – Granthaalayah Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.884628.

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Abstract:
मानव विकास क्रम में विकसित प ्राचीन संगीत पद्धति का तर्कप ूर्ण एवं प ्रया ेग सिद्ध स्वरूप ही संगीत चिकित्सा ह ै। उपचार संब ंधी व्यक्तिगत लक्ष्या ें की प ्राप्ति ह ेतु प ेश ेवरों द्वारा सा ंगीतिक तत्वों का चिकित्सकीय, प्रमाण सिद्ध प ्रया ेग विधि एवं प ्रक्रिया संगीत चिकित्सा कहलाती है। शारीरिक, मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक, बौद्धिक, तार्किक एव ं सामाजिक अथवा सामुदायिक आवश्यकताओं को चिकित्सकीय प्रविधि की परिधि में रहकर पूर्ण करना संगीत चिकित्सा का उद्द ेश्य माना जा सकता है। संगीत एक ए ेसे तत्व क े रूप में जाना जाता ह ै जो व्यक्तित्व विकास, सम्प ्रेषण का ैशल विकास, रचनात्मकता एव ं सृजनशीलता विकास, अभि
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मिश्रा, आ. ंनद म. ुर्ति, प्रीति मिश्रा та शारदा द ेवा ंगन. "भतरा जनजाति में जन्म संस्कार का मानवशास्त्रीय अध्ययन". Mind and Society 9, № 03-04 (2020): 39–43. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-93-4-20215.

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Abstract:
स ंस्कार शब्द का अर्थ ह ै श ुद्धिकरण। जीवात्मा जब एक शरीर का े त्याग कर द ुसर े शरीर म ें जन्म ल ेता है ता े उसक े प ुर्व जन्म क े प ्रभाव उसक े साथ जात े ह ैं। स ंस्कारा े क े दा े रूप हा ेत े ह ैं - एक आंतरिक रूप आ ैर द ूसरा बाह्य रूप। बाह ्य रूप का नाम रीतिरिवाज ह ै जा े आंतरिक रूप की रक्षा करता है। स ंस्कार का अभिप्राय उन धार्मि क क ृत्या ें स े ह ै जा े किसी व्यक्ति का े अपन े सम ुदाय का प ुर्ण रूप स े योग्य सदस्य बनान े क े उदद ्ेश्य स े उसक े शरीर मन मस्तिष्क का े पवित्र करन े क े लिए किए जात े ह ै। सभी समाज क े अपन े विश ेष रीतिविाज हा ेत े ह ै, जिसक े कारण इनकी अपनी विश ेष पहचान ह ै,
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शिल्पा, मसूरकर. "स ंगीत म ें नवाचार फ्यूज ़न म्यूजिक". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.885869.

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Abstract:
भारत देश कला व संस्कृति का प ्रतीक माना जाता ह ै। भारतीय संगीत हमारे भारत की अमूल्य धरा ेहर क े रूप में अति प ्राचीन काल से ही सर्वोच्च स्थान पर विद्यमान है। सृष्टि की उत्पत्ति के साथ ही संगीत भी अस्तित्व में आया होगा, ऐसा माना गया ह ै, परंतु देखा जाये तो प ्रकृति क े रोम-रोम में ही संगीत बसता है, नदियों की बहती धारा, कल-कल की ध्वनि, हवा की सन्-सन् ध्वनि, पत्तों से टकराती हवा की ध्वनि व पत्तों पर गिरती बारिश के बूंदों क े टप्-टप् की ध्वनि, पक्षियों की चहचहाट आदि में संगीत को देखा, सुना, समझा व महसूस भी किया जा सकता ह ै। संगीत ही धर्म, अर्थ , काम और मोक्ष का एकमात्र साधन है। भारत में पिछले र्कइ
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खापर्ड े, स. ुधा, та च. ेतन राम पट ेल. "कांकेर में रियासत कालीन जनजातीय समाज की परम्परागत लोक शिल्प कला का ऐतिहासिक महत्व". Mind and Society 9, № 03-04 (2020): 53–56. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-93-4-20218.

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Abstract:
वर्त मान स्वरुप म ें सामाजिक स ंरचना एव ं ला ेक शिल्प कला म ें का ंक ेर रियासत कालीन य ुग म ें जनजातीय समाज की आर्थि क स ंरचना म ें ला ेक शिल्प कला एव ं शिल्प व्यवसाय म ें जनजातीया ें की वास्तविक भ ूमिका का एव ं शिल्प कला का उद ्भव व जन्म स े ज ुड ़ी क ुछ किवद ंतिया ें का े प ्रस्त ुत करन े का छा ेटा सा प ्रयास किया गया ह ै। इस शा ेध पत्र क े माध्यम स े शिल्पकला म ें रियासती जनजातीया ें की प ्रम ुख भ ूमिका व हर शिल्पकला किस प ्रकार इनकी समाजिकता एव ं स ंस्क ृति की परिचायक ह ै एव ं अपन े भावा ें का े बिना कह े सरलता स े कला क े माध्यम स े वर्ण न करना ज ैस े इन अब ुझमाडि ़या ें की विरासतीय कला ह
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डा, ॅ. स्मिता सहस्त्रब ुद्धे. "स ंगीत क े प्रचार प्रसार में स ंचार साधन¨ ं की भूमिका". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–4. https://doi.org/10.5281/zenodo.884794.

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Abstract:
संगीत जीवन क¢ ताने-बाने का वह धागा है जिसक¢ बिना जीवन सत् अ©र चित् का अंश ह¨कर भी आनंद रहित रहता ह ै तथा नीरस प्रतीत ह¨ेता ह ै। संगीत में ए ेसी दिव्य शक्ति ह ै कि उसक ¢ गीत क ¢ अर्थ अ©र शब्द¨ं क¨ समझे बिना भी प्रत्येक व्यक्ति उसस े गहरा सम्बन्ध महसूस करता ह ै। ”संगीत“ एक चित्ताकर्शक विद्या ज¨ मन क¨ आकर्षि त करती ह ै। गीत क ¢ शब्द न समझ पाने पर भी ध ुन पसंद आने पर ल¨ग उस गीत क¨ गाते ह ैं, क्य¨ ंकि भारतीय संगीत-कला भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अ ंग है एवं भारत क ¢ निवासिय¨ं की जीवनशैली का प्रमाण ह ैं। ”संगीत“ मानव समाज की कलात्मक उपलब्धिय¨ ं अ©र सांस्कृतिक परम्पराअ¨ं का मूर्तमान प्रतीक ह ै। यह आ
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प, ्रो. सुनीता जैन. "महान संगीतज्ञ तानस ेन". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.886067.

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Abstract:
तानस ेन एक महान संगीतज्ञ थे। अब ुल फजल बादशाह अकबर क े उदार संरक्षण में विभिन्न संगीतज्ञा ें क े हा ेने का वर्ण न करता ह ै, उनमें वह पहला स्थान संगीत सम्राट तानस ेन का े प ्रदान करता ह ै।। तानसेन उस युग क े सर्व श्र ेष्ठ प ्रतिभावान संगीतज्ञ थ े। तानस ेन की प्रशंसा करते ह ुए अब ुल फजल ने लिखा ह ै ’’ भारत में उसक े समान गायक एक सहस्त्र वर्षो से नहीं ह ुआ’’ तानस ेन का जन्म 1531-32 में ग्वालियर से लगभग 43 किला ेमीटर दूर ब ेहट ग्राम में एक गा ैड़ ब ्राम्हण परिवार में ह ुआ था। इनका प ्रारंभिक नाम त्रिलोचन पांडे था, बाल्यकाल से ही उन्ह ें संगीत में विशेष अभिरूचि थी। ग्वालियर के नरेश मानसिंह तोमर ने
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श्रीमती, मनीषा शर्मा. "स ंगीत म ें नवाचार का माध्यम स ंस्कृत भाषा". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.885863.

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Abstract:
मानव सभ्यता के साथ-साथ कलाओं का विकास हुआ है । व ैदिक युग क े अ ंतिम कालखण्ड तक संगीत संब ंधी का ेई स्वतंत्र ग्र ंथ उपलब्ध नही ं ह ै तथापि संगीत कला के संबंध में उल्लेख स्थान पर अवश्य प ्राप्त होते ह ैं । ऋग्वेद में गीत, वाद्य आ ैर नृत्य तीना ें क े संब ंध में अन ेक उल्लेख पाये जाते ह ै ं। ऋग्वेद में गीत क े लिए गीर, गातु, गाथा, गायत्र तथा गीति जैसे शब्दों का प ्रयोग किया जाता था । यह सभी तत्कालीन गीत प्रकार थ े और इनका आधार छन्द आ ैर गायन श ैली थी । गीत तथा उसकी धुन के लिए ‘साम‘ संज्ञा भी रही । साम धुन या स्वरावली क े लिए पर्या यवाची शब्द रहा ह ै। यह तत्कालीन जनसंगीत क े अ ंतर्गत गायी जाने वा
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डा, ॅ. लता ज. ैन. "वर्तमान समय म ें "रा ेजगार युक्त स ंगीत कला" उच्चशिक्षा में एक महत्वप ूर्ण आयाम". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–4. https://doi.org/10.5281/zenodo.885047.

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Abstract:
भारत में संगीत परम्परा बहुत प्राचीन है। संगीत किसी भी क्ष ेत्र का हो, चाह े भारतीय हा े अथवा पाश्चात्य, आदिकाल से ही उसका जनजीवन से संब ंध रहा ह ै। यह एक ए ेसी ललित कला ह ै जिसमें संगीतज्ञ स्वर, लय, ताल क े माध्यम से अपने मना ेभावों का े व्यक्त करता ह ै। संगीत में सम्प ूर्ण मानव जगत को आत्मविभोर करने की शक्ति हा ेती ह ै यह ऐसी कला ह ै जो विश्व में सभी को प्रिय है। संसार की कोई भी ऐसी जगह नहीं ह ै जहाँ क े लोग संगीत से जुड़े न हांे, इसलिए भर्तृ हरि ने संगीत विहीन मानव को बिना सींग आ ैर पूँछ वाले पश ु क े समान माना है। आज उच्च शिक्षा में कला संकाय क े रूप में संगीत का े भी उतना ही स्थान दिया गया
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डाॅ., आरती तिवारी. "सामाजिक मुद ्दे एव ं पर्यावरण". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.574865.

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Abstract:
मन ुष्य अपन े पर्यावरण क े साथ ही जन्म लेता ह ै। और उसके बीच ही अपना जीवन यापन करता ह ै। द ूसर े शब्दों में सारा समाज पर्यावरण के बीच अर्था त प्रकृति की गोद में अपना जीवन यापन करता ह ै। किन्त ु इस जीवनयापन के लिए मन ुष्य मुख्य रूप से पर्यावरण पर निर्भर करता है। अपन े जीवन को स ुचारू रूप से चलाए रखन े एव ं उसे और अधिक ब ेहतर बनान े के लिए मन ुष्य निर ंतर प्रयास करता है तथा इसके लिए वह प्राक ृतिक संसाधनों का दोहन करता है। इस प्रकार मन ुष्य आदिम युग स े आज तक निरंतर प्रकृतिक संसाधनों से अपना जीवन चलाता आया है। जिससे प्रकृति का े कुछ नुकसान भी पहुंचा है। क्योंकि मन ुष्य न े आधुनिकता की अंधीदौड में
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प, ूर्णेन्द ु. शर्मा. "पर्यावरण संरक्षण सब का दायित्व". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.883541.

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Abstract:
सृष्टि के प्रारम्भ से वर्त मान युग तक मन ुष्य न े विकास की लम्बी यात्रा तय की है। किन्त ु इस यात्रा में वह जीवन के शाश्वत सत्य को पीछ े छोड ़कर अकेला आगे निकल आया है जिसके परिणाम में पर्यावरण की प्रलयंकारी समस्याओं न े जन्म ले लिया ह ै आ ैर विश्व समुदाय विगत र्कइ दशकों से इनसे जूझता हुआ आग े बढ ़न े का प्रयास कर रहा है। 1972 में इसकी गम्भीरता को द ेखत े हुए स्टाॅकहोम मे ं संयुक्त राष्ट ª सम्म ेलन आयोजित किया गया जिसमें श्रीमती इन्दिरा गांधी न े पर्यावरण संरक्षण एव ं मानव जाति के कल्याण हेत ु दिय े गये अपन े वक्तव्य म ें कहा कि, ’’मन ुष्य तब तक सभ्य एव ं सच्चा मानव नहीं हो सकता जब तक कि वह सम्प
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साह ू, प. ्रवीण क. ुमार. "संत कबीर की पर्यावरणीय चेतना". Mind and Society 9, № 03-04 (2020): 57–59. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-93-4-20219.

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Abstract:
स ंत कबीर भक्तिकालीन निर्ग ुण काव्यधारा अन्तर्ग त ज्ञानमार्गी शाखा क े प ्रवर्त क कवि मान े जात े ह ैं। उनकी वाणिया ें म ें जीवन म ूल्या ें की शाश्वत अभिव्यक्ति एव ं मानवतावाद की प ्रतिष्ठा र्ह ुइ ह ै। कबीर की ‘आ ंखन द ेखी’ स े क ुछ भी अछ ूता नही ं रहा ह ै। अपन े समय की प ्रत्य ेक विस ंगतिया ें पर उनकी स ूक्ष्म निरीक्षणी द ृष्टि अवश्य पड ़ी ह ै। ए ेस े म ें पर्या वरण स ंब ंधी समस्याआ ें की आ ेर उनका ध्यान नही गया हा े, यह स ंभव ही नही ह ै। कबीर क े काव्य म ें प ्रक ृति क े अन ेक उपादान उनकी कथन की प ुष्टि आ ैर उनक े विचारा ें का े प ्रमाणित करत े ह ुए परिलक्षित हा ेत े ह ैं। पर्या वरणीय जागरूक
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डा, ॅ. स्मिता खानवलकर. "न ेतत्व, सहया ेग, प्रबन्धन एवं नवाचार में स ंगीत-एक रूपकालंकार". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.887006.

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Abstract:
सम्पूर्ण विष्व में विषेषकर पाष्चात्य देषा ें म ें अधिकांष कार्यकारी समूहा ें में उनक े कार्यनिष्पादन में सकारात्मक वृद्धि ह ेतु विभिन्न प्रकार का संगीत प्रयुक्त किया जाता ह ै। जिनमें गूगल, ओरॅकल, रोल्स रायस, सीमेन्स, लाॅरियाल, डचब ैंक, बीबीसी, नोकिया, सेन्डा ेज, मोर्ग न स्टेनले आदि र्कइ ं संस्थाना ें क े नाम प्रमुखता से लिये जा सकते ह ैं। ये सभी संस्थान अपने क्षेत्र में वर्चस्व स्थापित कर चुके है ं एव ं प्रबन्धन क े क्ष ेत्र का प्रत्येक व्यक्ति इनके नाम से अछूता नहीं ह ै। इन संस्थाना ें में उनके वरिष्ठ नेतृत्व का े प्रषिक्षित करने क े लिये उन्हंे प्रकारान्तर से (ब ैन्ड एव ं वाद्यवृन्द क े माध्
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डा, ॅ. प. ्रेमलता तिवारी. "स ंगीत चिकित्सा -एक नवाचार". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.886095.

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Abstract:
यह संगीत स्वर लहरियांे क े मध्यम से कानो ं में उतरकर दिल में जगह बनाता ह ै। बूंदांे का टपकना, पत्ता े ं का सरसराना, लहरांे का लहराना, प ंछियांे का कलरव करना संगीत ही तो ह ै इस बात से इ ंकार नहीं किया जा सकता कि जब कोई कर्ण पि ्रय संगीत की लहरियाँ गूंजती ह ै तो हदय में न क ेवल कंपन हा ेता है,बल्कि स ंगीत रंगा े ं में घ ुलमिलकर मन का े अमृतमय कर देता ह ै। आ ेशो ने कहा था कि जीवन में एक ही चीज बचानी चाहिए और वह ह ै आत्मा और उसका संगीत क्या ेकि मस्तिष्क आ ैर हृदय संगीत की धरातल पर ही खडे़ हा ेकर एक दूसरे मे लीन हो जाते ह ै ं। कितने तर्क ,कितने विश्वास,कितनी परिभाषाएँ, कितने मत,कितने सिद्धांत लेकिन
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किरण, बड ेरिया आलोक गा ेयल राकेश कवचे. "ज ैव विविधता और जलवायु परिवर्तन एक दृष्टिकोण". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.882063.

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Abstract:
जैव विविधता हमार े लिए बहुत महत्त्वप ूर्ण ह ै। ये हमार े जीवन के अभिन्न अ ंग है ं। अभी तक लगभग 1.75 मिलियन प्रजातिया ें की पहचान हो चुकी है। हालाँकि वैज्ञानिकों का मानना ह ै कि हमार े ग्रह पर लगभग 13 मिलियन प्रजातियाँ हैं। विभिन्न प्रजातियों की उपस्थिति न े मानव क े लिए इस ग्रह को आवास योग्य बनान े म ें मदद की ह ै। इनके बिना हम अपन े जीवन की कल्पना नहंी कर सकत े। जैव विविधता हमार े जीवन के लिए आवश्यक र्कइ वस्त ुएँ एव ं सेवाएँ उपलब्ध कराता ह ै। ये वो स्तम्भ ह ैं जिन पर हमन े अपनी सभ्यता बसायी ह ै। आर्थिक समृद्धि के लिए उत्तरदायी र्कइ उद्या ेगों का आधार ये जैव विविधता ह ै। इनको खतरा पहुँचान े का
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म, ंजु रानी. "स ुमित्रानंदनपंत क े काव्य म ें प ्रकृति-चेतना". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.882625.

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Abstract:
पर्यावरण हमारी प ृथ्वी पर जीवन का आधार ह ै, जो न केवल मानव अपित ु विभिन्न प्रकार के जीव जन्त ुओं एव ं वनस्पति के उद ्भव, विकास एव ं अस्तित्व का आधार है। सभ्यता क े विकास से वर्त मान युग तक मानव न े जा े प्रगति की ह ै उसमे ं पर्यावरण की महती भूमिका है और यह कहना अतिश्योक्ति न होगी कि मानव सभ्यता एव ं संस्कृति का विकास मानव पर्यावरण के समान ुकूल एव ं सामन्जस्य का परिणाम ह ैं यही कारण है कि अन ेक प्राचीन सभ्यतायंे प्रतिकूल पर्यावरण के कारण काल के गर्त में समा गई तथा अन ेक जीवा ें एव ं पादप समूहा ें की प ्रजातियाँ विलुप्त हो गयी और अनेक पर यह संकट गहराता जा रहा है। वास्तव में पर्यावरण कोई एक तत्व
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र, ेखा मालवीया. "वर्तमान समाज में न ृत्य का बदलता स्वरूप". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.884970.

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Abstract:
भारत परम्पराआ ें व संस्कारों का देश ह ै प ्रत्येक भारतीय समाज आ ैर परम्पराओं से जुड़ा ह ै। समाज और देश का े सुदृढ़ करने में नृत्य की महत्वप ूर्ण भूमिका ह ै। नृत्य मानव जीवन को नैतिक कर्तव्या ें की ओर उन्मुख करता है। नृत्य मानवीय अभिव्यक्तियों का एक रसमय प ्रदर्श न है। यह एक सार्वभौमिक कला ह ै, जिसका जन्म मानव जीवन के साथ ह ुआ। बालक जन्म लेते ही रोकर, हाथ-पैर मारकर अपनी भावाभिव्यक्ति करता ह ै कि वह भूखा ह ै। इन्हीं आंगिक क्रियाओं से नृत्य की उत्पत्ति र्ह ुइ जा े सर्व विदित ह ै। नृत्य का आरम्भ आध्यात्म से ह ुआ। प ्रारम्भ में नृत्य मंदिरों र्में इ श्वर की भक्ति के लिये किया जाता था। बदलते समय क े
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डा, ॅ. सुषमा श्रीवास्तव. "विज्ञापन की सृष्टि: स ंगीत की दृष्टि". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.886102.

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Abstract:
संचार को जीवन का पर्या य कहा जा सकता है हमारे शरीर की लाखों का ेशिकाएँ आपस में लगातार संचार करती रहती ह ैं। जिस क्षण यह प्रक्रिया बंद हो जाती ह ै उसी क्षण हम मृत्यु को प ्राप्त हा े जाते ह ैं। जीवन का दूसरा नाम संचार संलग्नता है, संचार-श ून्यता मृत्यु का द्योतक ह ै। वर्तमान परिवेश में संचार का व्यापक स्तर ह ै ‘जनसंचार‘ अर्थात जब हम किसी भाव या जानकारी को दूसरा ें तक पहुँचाते ह ै ं आ ैर यह प ्रक्रिया सामूहिक पैमाने पर होती है ता े इसे ‘जनसंचार‘ कहते ह ैं। जनसंचार में प्रेषक तथा बड़ी संख्या में ग्रहणकर्ता क े बीच एक साथ संपर्क स्थापित हा ेता ह ै एवं इस बात की संभावना बनी रहती ह ै कि सूचना या जान
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प, ्रो. अर्चना भट्ट सक्सेना. "मालवी लोकगीता ें में स ंगीत". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.886958.

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Abstract:
भारतीय लोक जीवन सदैव संगीत मय रहा ह ै। भारत वर्ष का का ेई अंचल का ेई जाति ए ेसी नही ं जिसके जीवन पर संगीत का प ्रभाव न पड़ा हो। भारतीय स ंगीत के लिए कहा जाता ह ै कि साहित्य से ब्रह्म का ज्ञान और संगीत से ब ्रह्न की प्राप्ति होती है। भारत में प ुरातन काल से विभिन्न पर्वो एवं अवसरा ें पर गायन, वादन व नृत्य की परंपरा रही है। लोकगीत प ्राचीन संस्कृति एव ं सम्पदा के अमिट वरदान ह ै जिसमें अनेकानेक संस्कृतिया ें की आत्माआ ें का एकीकरण हुआ है। लोक संगीत जन-जीवन की उल्लासमय अभिव्यक्ति ह ै। पद्म श्री ओंकारनाथ क े मतानुसार- ‘‘देवी संगीत क े विकास की प ृष्ठभूमि लोक संगीत ह ै। जिस देष या जाति का सम्व ेदनषी
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डा, ॅ. श्रद्धा मालवीय. "र ंगा ें का जीवन में प ्रभाव (स ूर्य किरणें)". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.891856.

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Abstract:
डा ॅ. लेबिस ने लिखा है कि ध ूप आ ैर पाचन की क्रियाआ ें में बड़ा घनिष्ठ सम्बंध ह ैं। यदि मनुष्य या अन्य किसी प्राणी पर प ्रति दिन सूर्य किरणें नहीं पड़ती, तो उसकी पाचन आ ैर समीकरण षक्ति क्षीण हो जाती ह ै। स्फुरण तथा मानव जीवन इन दोना ें का परस्पर घनिष्ठ सम्बंध ह ै। जीवन का सम्ब ंध प ्रकाष षक्ति तथा उसक े वर्ण वैभव से ह ै, न कि प ्रोटीन, ष्व ेत सार, हाइड्रोजन, कार्बन अथवा उष्णांक स े। आकाश आ ैर वायु-तत्व की भाँति प ्रकाष तत्व भी अत्यंत सूक्ष्म ह ै। प्रकृति क े हरे भरे प ्रषस्त अंचल में हम जा े अनेक रंगा ें क े चित्र देखते ह ै, यह सब स ूर्य की सतरंगी किरणों की ही माया ह ै। प ्रकाष में अन्तर्निहित
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म, ुकेश दीक्षित. "सामाजिक समस्याएं व पर्या वरण: उच्चतम न्यायालय की भूमिका". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.882783.

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Abstract:
पर्यावरण से मानव का गहरा संब ंध ह ै। मन ुष्य जब से इस पृथ्वी पर आया, उसन े पर्या वरण को अपन े साथ जोड ़े रखा है। सूर्य, चन्द ्रमा, पृथ्वी, पर्वत, वन, नदियां, महासागर, जल इत्यादि का प्रयोग मन ुष्य मानव विकास के आर ंभ से करता आ रहा है। मन ुष्य अपन े द ैनिक जीवन में लकड ़ी, भोजन, वस्त्र, दवायें इत्यादि प्राप्त करन े हेत ु प्राकृतिक सम्पदा का शुरू से उपयोग किया है और वर्त मान मे निर ंतर जारी है। सामाजिक परिवर्त न क े साथ औद्योगिक विकास एव ं जनसंख्या वृद्धि म ें पर्यावरण को प्रभावित किया है। औद्योगीकरण के कारण व्यक्ति आज अपनी आवश्यकता क े अन ुरूप पर्यावरण को बदलन े के लिये सक्रिय कारक बन गया है। वन
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दुर्ग, ेश पाण्डे. "स ंगीत शिक्षण एवं प्रदर्शन म ें इलेक्ट्रानिक वाद्य य ंत्रा ें की भ ूमिका". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.885049.

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Abstract:
नाद से वर्ण , वर्ण से पद, पद से वाक्य व्यक्त हा ेता ह ै। वाक्य से ही जगत् का व्यवहार होता ह ै, इसलिए यह जगत् नाद क े अधीन है। नाद का छोटा-बड़ापन तीव्रता पर आधारित होता ह ै। इसका प ्रभाव मस्तिष्क और ह ृदय पर जब पड़ता ह ै तो पहले रक्त क्रिया प ्रभावित होती ह ै आ ैर उसके बाद मानसिक अनुभूति क े रूप में उसका रूपांतर हा ेता ह ै। नाद की तीव्रता नापने क े लिए डेसीबल पद्धति का े अपनाते हैं। इसे फाॅन ;च्ींदद्ध नाम से भी जाना जाता है, जिसके आधार पर साधारण बातचीत की ध्वनि का क्षेत्र 60 से 70 फाँन के मध्य में रहता ह ै। यहाँ यह बात ध्यान देने या ेग्य ह ै कि यदि एक बाँसुरी से उत्पन्न नाद का ध्वनि स्तर 40 फाॅ
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राकेश, कवच े. किरण बड ेरिया आलोक गोयल. "''रेडिया ेधर्मी प्रदूषण का बढ ़ता दायरा'' मानव क े लिए अभिषाप". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.883000.

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Abstract:
पर्यावरण प्रद ूषण एक ए ेसी सामयिक समस्या है जिसमें मानव सहित जैव जगत ् क े लिए जीवन की कठिनाईया ँ बढ ़ती जा रही हैं। पर्यावरण के तत्त्वो ं में गुणात्मक ह ्रास के कारण जीवनदायी तत्त्व यथा वायु, जल, मृदा, वनस्पति आदि के न ैसर्गिक गुण ह्रसमान होत े जा रहे हैं जिससे प्रकृति और जीवों का आपसी सम्बन्ध बिगड ़ता जा रहा ह ै। यह सर्व ज्ञात है कि पर्यावरण प्रद ूषण आध ुनिकता की द ेन है। वैसे प्रद ूषण की घटना प्राचीनकाल में भी हा ेती रही ह ै लेकिन प्रकृति इसका निवारण करन े में सक्षम थी, जिससे इसका प्रकोप उतना भयंकर नहीं था, जितना आज है। च ूँकि आज प ्रद ूषण की मात्रा प ्रकृति की सहनसीमा को लाँघ गई ह ै फलतः इ
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भारती, खर े., та कुमार अंजलि. "वानिकी एवं पर्या वरण". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.574868.

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Abstract:
एक अरब स े ज्यादा जन सैलाब के साथ भारतीय पर्या वरण का े स ुरक्षित रखना एक कठिन कार्य ह ै वह भी जबकि हर व्यक्ति की आवश्यकताएॅ ं, साधन, शिक्षा एव ं जागरूकता के स्तर में असमान्य अंतर परिलक्षित होता है। संत ुलित पर्या वरण के बिना स्वस्थ जीवन की कल्पना करना मात्र एक कल्पना ही है। पर्यावरण स े खिलवाड ़ के परिणाम हम र्कइ रूप में वर्त मान में द ेख रहे हैं एव ं भोग रहे ह ैं। पर्यावरण विज्ञान आज के समय क े अन ुसार एक अनिवार्य विषय ह ै। यह सिर्फ हमारी ही नहीं अपित ु व ैश्विक समस्या ह ै। वर्त मान पर्यावरणीय अस ंत ुलन का े द ेखत े हुए इस विषय स े हर व्यक्ति का े जुड ़ना चाहिए एव ं जोड ़ना चाहिए। वानिकी एव
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स, ुधा शाक्य. "वर्तमान पर्यावरणीय समस्याएं एव ं सुझाव". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.883040.

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Abstract:
भारत में प ्राचीन काल से ही प्रकृति एव ं पर्यावरण का अट ूट संब ंध रहा है, और धार्मिक ग ्रंथा ें में प्रकृति को जा े स्थान प्राप्त है वह अत ुलनीय है। प्रक ृति की सुरक्षा के लिये हमारी संस्कृति में अन ेक प्रयास किये गये, सामान्य जन को प्रकृति से जोड ़े रखन े के लिये उसकी रक्षा, प ूजन, विधान, संस्कार आदि को धर्म से जोड ़ा गया। गा ै एव ं अन्य जानवरो ं का प ूजन व ंश रक्षा के लिये तथा विभिन्न नदियों, प ेड ़ों, पर्व तों का प ूजन उसकी सुरक्षा और अस्तित्व को बनान े क े लिये अति आवश्यक हा े गया था। पर ंत ु जैसे समय व्यतीत होता गया व्यक्तियों की विचारधारा, सोच, अभिव ृत्ति, आस्था, भावों में परिवर्त न होता
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डा, ॅ. अतुल क. ुमार गुप्ता. "स ंगीत चिकित्सा म ें नवाचार "मना ेरा ेगा े क े स ंदर्भ म ें"". International Journal of Research – Granthaalayah Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.884614.

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Abstract:
गायन वादन एव ं नृत्य तीनों कलाओं क े समाव ेश का े संगीत कहा गया ह ै। जिसमें गायन एव ं वादन को क ेवल कर्ण के द्वारा अर्था त् बिना देखे ह ुए भी समझा एव ं रससिक्त हुआ जा सकता ह ै। नृत्य को समझने में दोनों ज्ञानेन्द्रिया कार्य करती ह ै, अर्था त् एक दृष्टिहीन व्यक्ति भी संगीत का रसास्वादन कर सकता ह ै। संगीत का मूलभूत कारक ह ै- ध्वनि। वायु द्वारा ध्वनि तरंगा ें का े जब कर्ण क े माध्यम से मस्तिष्क को सूचना प्राप्त हा ेती ह ै, तब हमें यह समझ में आता ह ै, कि सामने वाला कोई बोल रहा ह ै अथवा गा रहा ह ै अथवा वादन कर रहा ह ै। अनुसंधान एवं या ंत्रिकीय प ्रया ेगा ें द्वारा ध्वनि तरंगा ें का े व ैज्ञानिका ें
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दिवाकर, सिंह ता ेमर. "कार्बन टेªडिंग एंव कार्बन क्रेडिट जलवायु परिवर्तन समस्या समाधान म ें सहायक". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.803452.

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Abstract:
जलवायु परिवर्त न की समस्या के लिए न तो विकसित द ेष आ ैर न ही विकासषील द ेष जिम्मेदारी लेन े का े त ैयार ह ैं। क्या ेंकि र्कोइ विकास से समझौता नहीं करना चाहता है। इसी कारण यह समस्या ओर द्यातक बनती जा रही ह ै। अभी हाल ही में ग ्रीन हाऊस ग ैसा ें के कारण विष्व के समक्ष समस्याएॅ उभकर सामन े आई हैं। 1) ओजोन परत म ें छिद ्र:- धरती के वातावरण में मौजूद ओजोन की परत हमें सूर्य से निकलन े वाली पराबैंगनी किरणों से बचाती हैं। परन्त ु हवाई ईधन और र ेफ्रिजर ेषन उद्योग स े उत्सर्जित होन े वाली क्लोरा े फ्लोरो कार्बन गैस से धरती के वातावरण में विद्यमान ओजोन की सुरक्षा छतरी में छिद ्र हा े गए हैं। 2) समुद ्र स
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डाॅ., खालिदा दुधाले. "स ंगीत आ ैर मना ेविज्ञान". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.885875.

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Abstract:
स ंगीत मना ेविज्ञान एवं संगीत शास्त्र की एक शाखा ह ै जिसका लक्ष्य ह ै संगीत व्यवहार आ ैर संगीत के अनुभवा ें का े समझना आ ैर समझाना। साथ ही साथ यही समझना कि संगीत कैसे रचा जाता ह ै आ ैर उसकी प्रतिक्रिया कैसी होती ह ै आ ैर व्यक्ति उसे दैनिक जीवन में क ैसे अपनाते ह ै? माॅर्ड न संगीत का मना ेविज्ञान सिस्टेमेटिक अवलोकन से मनुष्य की भागीदारी का विश्लेषण करता ह ै। इसके अनेक क्षेत्र ह ै ं शोध व प्रया ेग क े साथ निष्पादन (चमतवितउंदबम) कम्पोजिशन, शिक्षा, आलोचना, चिकित्सा आदि। संगीत मना ेविज्ञान मानव की ब ुद्धि, का ैशल व क्रियात्मकता से सामाजिक व्यवहार को समझने में मदद करती ह ै। संगीत निःसंदेह हमारे संव
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स, ुषीला गायकवाड ़. "''शहरी गंदी बस्तियों म ें पर्यावरण संबंधी समस्याएँ''". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–4. https://doi.org/10.5281/zenodo.883551.

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Abstract:
वर्त मान में हम जिस वातावरण एव ं परिव ेष द्वारा चारो ं ओर से घिरे है उस े पर्यारण कहत े है। पर्यावरण में सभी घटकों का निष्चित अन ुपात में स ंत ुलन आवष्यक ह ै, किन्त ु मन ुष्य की तीव्र विकास की अभिलाषा एव ं प ्रकृति के साथ छेड ़छाड ़ के कारण यह स ंत ुलन धीर े-धीर े समाप्त हो रहा है। पृथ्वी पर निर ंतर बढ ़ती जनसंख्या आज विष्व में चि ंता का प्रमुख कारण बन रही ह ै, क्योंकि जनसंख्या व ृद्धि न े लगभग सभी द ेषा ें को किसी न किसी प ्रकार से प ्रभावित किया है आ ैर उनकी प ्रगति में बाधाए ं उत्पन्न की है। जनसंख्या का दबाव विकसित देषों में तो कुछ अधिक नहीं है, किंत ु विकासषील व अविकसित द ेषों म ें स्थिति
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स, ुनीता पाठक. "ऊर्जा समस्या एवं पर्या वरण". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special edition) (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.883042.

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Abstract:
आर्थिक विकास के दृ्रष्टिकोण स े ऊर्जा एक अत्यन्त महत्वप ूर्ण अवस्थापना/इन्फ ्रास्ट ªक्चर/ है। प ्रकृति क े पारिस्थितिक संत ुलन में ऊर्जा की मुख्य भूमिका रहती है, जो प्राकृतिक परिवेश के जैविक तथा अज ैविक घटकों के मध्य अन्तःक्रिया बनाए रखती ह ै। मन ुष्य विकास को मात्र आर्थि क एव ं भौतिक विकास मानकर लक्ष्य की प्रतिप ूर्ति के लिए तीव्र गति वाली तकनीक का आविष्कार कर प्राकृतिक संसाधनो के अंधाध्ंाुध विदोहन म े जुट जाता है। यहीं उसस े त्रुटि हो जाती है आ ैर वह विकास के स्षान पर पर्यावरण का विनाश करन े लगता है, जिससे अन ेक सामाजिक समस्याओं को जन्म होता है, जिसमें स े एक ह ै ऊर्जा संकट । उत्पादन की आघुन
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निखिल, जोषी. "आर्थि क विकास एव ं जल प्रदूषण तथा जल संरक्षण". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.882895.

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Abstract:
आर्थिक विकास करना मन ुष्य न े सदा से चाहा ह ै। यह भी तथ्य है कि स्वच्छ पर्यावरण के बिना मन ुष्य का जीवन अकल्पनीय ह ै। मन ुष्य और पर्यावरण क े इस रिष्त े में किसी भी हिस्से को बड ़ी चोट न केवल इस रिष्ते को खतर े म ें डाल द ेती ह ै बल्कि दोनों के अस्तित्व भी खतर े में पड ़ जात े हैं। पर्यावरण बिगड ़ेगा ता े मानव जीवन प्रभावित हा ेगा। इसका यह अर्थ नहीं ह ै कि आर्थिक विकास की कीमत पर पर्या वरण बचायें या पर्यावरण की कीमत पर आर्थिक विकास हासिल कर ें। दोनों के बीच एक संत ुलन की आवष्यकता ह ै ताकि मानव जीवन सुरक्षित बना रहे आ ैर लाभांवित भी हो। दोनों का केन्द ्र मानव ही है। प ्रकृति आ ैर मानव पृथ्वी पर
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विद्या. "स ंगीत क े प्रचार प्रसार में स ंचार साधना ें की भ ूमिका". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.886694.

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Abstract:
आज जिस प्रकार संगीत सर्व -सुलभ ह ुआ है। उसका मूल कारण संचार साधनों की भ ूमिका ह ै। आज संगीत षिक्षार्थियों का एक विषाल वर्ग संगीत क े प्रति आकर्षित ह ुआ ह ै। हर समुदाय, जाति आ ैर वर्ग क े विद्यार्थी का े संगीत का े निकटता से जानने आ ैर समझने का सुअवसर मिला है। जबकि पहले जन साधारण का े संगीत सुनने का अवसर दुर्लभ था। कुछ मीडिया, दूरदर्ष न आ ैर इलेक्ट्राॅनिक के संसाधन भी आज उपलब्ध ह ै, जिनक े कारण जनसाधारण में संगीत के प्रति जागरूकता बढ़ी ह ै। आधुनिक काल में मीडिया अपने विविध रूपों से सूचना प्रदान कर रहा ह ै ए ेसे में विद्यार्थि या ें में भी संचार क े क्षेत्र में कार्य करने का आकर्षण बढ़ा ह ै। स ं
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ज्योति, ढोल े. ""विश्वविद्यालयीन विद्यार्थिया ें म ें पर्या वरण जागरूकता: एक अध्ययन"". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–4. https://doi.org/10.5281/zenodo.881961.

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Abstract:
आज हम 21वीं सदी म े प्रव ेष कर च ुके है, जिसम ें विज्ञान आ ैर प्रा ैद्योगिकी एक महत्वप ूर्ण भूमिका निभा रहे ह ै। इस प्रगति न े जहां एक आ ैर ब्रह्माण्ड के अन ेक रहस्या ें को सुलझाया ह ै । वही द ूसरी और मानव का अन ेकान ेक सुख सुविधाए ं प्रदान की है। इन मानवीय प्रगति एव ं विकास म े पर्यावरण तो सद ैव सहायक रहा है, परन्त ु इस विकास की दौड ़ मे हमन े पर्यावरण की उप ेक्षा की आ ैर उसका अनियन्त्रित शोषण किया ह ै। तात्कालिक लाभा ें के लालच मे मानव न े स्वयं अपन े भविष्य को दीर्घ कालीन संकट मे डाल दिया है। परिणामस्वरूप जीवन क े स्त्रोत पर्यावरण का अवनयन होता जा रहा है। इसी परिप ेक्ष्य मे यह परियोजना कार्
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अ, ंजना मा ैर्य. "भारतीय चित्रकला में र ंगा ें की परिवर्तनशील भ ूमिका (एक स ंक्षिप्त अध्ययन)". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.892054.

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Abstract:
चित्रकला में कलाकार अपने भावा ें की अभिव्यक्ति रेखा तथा रंगा ें क े माध्यम से करता है। प ्राचीन गुहावासियों से लेकर काँच की खिड़किया ें स े झाँकने वाले मानव तक रंगा े का लगाव कभी कम नही ं ह ुआ ह ै। बल्कि देशकाल की परिस्थितियों का े निभाते ह ुए वह आगे बढ़ा ह ै। हमारी भारतीय कला रेखा प ्रधान रही है। परन्तु रंगा ें न े भी उनक े सा ैन्दर्य में चार चाँद लगाने म ें अपना प ूर्ण योगदान दिया ह ै। क्योंकि रेखा के साथ रंगा ें का समन्वय होने पर ही अजन्ता में एक से एक नयनाभिराम चित्रा ें का सृजन हो पाया आ ैर उसके सा ैन्दर्य की चर्चा सारा विश्व करता ह ै। रेखा आ ैर रंग एक दूसरे क े प ूरक ह ै। रेखाओं का े सा
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अर्च, ना परमार. "पर्यावरण संरक्षण". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.883529.

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Abstract:
मानव शरीर प ंच तत्वों- प ्रथ्वी, जल, वाय ु, अग्नि आ ैर आकाश स े ही बना ह ै। य े सभी तत्व पर्या वरण के धोतक है। प ्रकृति मे मानव को अन ेक महत्वप ूर्ण प्राकृतिक सम्पदायें भी ह ै। जिसका उपयोग मन ुष्य अपन े द ैनिक जीवन में करता आया है ज ैसे- नदियाँ, पहाड ़, मैदान, सम ुद ्र, प ेड ़-पौधे, वनस्पति इत्यादि। प्रथ्वी पर प्राकृतिक संसाथनों का दोहन करन े से प्राकृतिक संसाथनो के भण्डार तीव्र गति से घटत े जा रह े है, जिससे पर्यावरण में असन्त ुलन बढ ़ रहा है। उसके परिणाम स्वरूप जल की कमी, आ ेजा ेन परत में छेद का पाया जाना, वना ें की अत्यधिक कर्टाइ से वना ें की कमी आना, सम ुद ्रों का जल स्तर बढना, ग्लेशियरों
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डा, ॅ. नर ेन्द्र कुमार ओझा. "भारत में स ंगीत क े बढ़ते ह ुए कदम". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.886970.

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Abstract:
भारत की सभ्यता आ ैर संस्कृति ए ेतिहासिक ह ै। भारत में संगीत विषयक ज्ञान कोई आज का नहीं ह ै, यह बहुत पुराना ह ै। इतिहास में आज भी कई उच्च श्र ेणी क े कलाकार अपना स्थान बना चुके ह ै जैसे- भास्कर बुवा, मियाॅं जान, अब्दुल करीम खाॅ, फ ैयाज खाॅ, ह ैदर खाॅ, वजीर खाॅ, हफीज खाॅ, ओंकारनाथ ठाक ुर आदि। भारतीय कला के विकास में क ेन्द्र आ ैर राज्य सरकारों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है, केन्द्रीय सरकार षिक्षा पात्र विद्यार्थियों का े छात्रव ृत्ति दे रही ह ै। इस प ्रकार से विद्यार्थि यों को प्रोत्साहन मिल रहा ह ै। यह स्पष्ट करते ह ुए कि आजादी की लड़ाई में भारतीय संग्रीत का अपना विषिष्ट स्थान रहा है, संगीत ने ही
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स©म्या, सिंह. "शिक्षण एवं प्रदर्शन में इल्¨क्ट्रॉनिक वाद्य¨ ं की भूमिका". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.884809.

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Abstract:
ैदिक अवधारणा क े आधार पर नाद का निर्मा ण सर्वप्रथम ईश्वर की अभिव्यक्ति है। आदिम काल स े ही अ¨ऽमकार क¨ ब्रह्मनाद माना गया। आज का संगीत मनुष्य क े प्रयत्न¨ं स े अपने वर्तमान रूप में परिणित ह ुआ ह ै। परिवर्तन प्रकृति का नियम ह ै अ©र यही परिवर्तन हमारे शास्त्र्ाीय संगीत में भी दिखता ह ै जिसने कहीं सकारात्मक त¨ कहीं नकारात्मक छाप छ¨ड़ी ह ै। इसी क्रम में संगीत शिक्षण एवं प्रदर्श न में इल्¨क्ट्रॉनिक वाद्य¨ं की भूमिका बह ुत अहम रही है ं। स्वतन्त्र्ाता के बाद अब राष्ट्रीय संरक्षण पाकर भारतीय शास्त्र्ाीय संगीत प्रदीप्त ह¨ गया, भारतीय संगीत ने एक नवीन करवट ली, जिसके फलस्वरूप रियासती राजाअ¨ं के संरक्षण मे
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ेगरिमा, गुप्ता. "पणिक्कर की कृतियों म ें र ंगा ें का रसात्मक रूझान". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.890301.

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Abstract:
हम सभी अपने जीवन में रंग¨ ंे से व्यापक रूप में प्रभावित ह¨ते ह ैं हमारे सुख-दुख, उत्त्¨जना, विश्राम, उल्लास आदि सभी भावनाअ¨ं क े उद्दीपन में रंग¨ ं का प्रभाव देखा जा सकता ह ै। चित्र्ाकार की भाषा में रंग भावना एवं विचार के संक्षिप्त रूप ह¨ते ह ैं। प्रत्येक चित्र्ाकार द्वारा रंग¨ ंे क¨ प्रय¨ग करने की विधि व्यक्तिगत अनुभव अ©र रुचि से प्रभावित ह¨ती ह ैं, चित्र्ा के अर्थसार क¨ व्यक्त करने मंे चित्र्ाकार रंग की सामथ्र्य का उपय¨ग अपनी अनुभूत तकनीक स े करता ह ै। इस भ©तिक जगत में उस परम् शक्ति ने अनेक वस्तुअ¨ं का निर्माण किया ह ै। सम्भवतया जीवन भर उनकी संख्या भी न गिनाई जा सके। विभिन्न प्रकार के पत्थर
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