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डा, ॅ. मोनिका सिंह. "बदलती तस्वीर कथक नृत्य की". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.884974.

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Abstract:
जा े कल था, वह आज प ुराना हो गया और जो कल आनेवाला ह ै वह भी कुछ ही दिनों से अतीत की गाथा बनकर रह जाता ह ै। समय जिस गति से आगे बढ़ रहा है, उसके साथ परिवर्तन की लहर भी उतनी ही गति से प्रवहमान है। वर्तमान समय में नृत्यकला का क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं ह ै। इस क्षेत्र मे ं परिवर्तन आ ैर नवाचार ने इसे र्कइ रूपों में प ्रदर्शि त किया है। प्राचीनकाल से विद्यमान कत्थक नृत्य धर्म-अध्यात्म से परिपूर्ण नृत्य शैली थी। मंदिरों में भजन-कीर्तन के समय कथावाचकों के द्वारा अभिनय युक्त कथा कहने से कत्थक नृत्य की उत्पत्ति मानी जाती है। कथावाचन से कत्थक नृत्य श ैली क े रूप में परिवर्तन किस तरह ह ुआ ह ै इसका प ्राम
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द्विजेश, उपाध् याय, та मकुेश चन्‍द र. पन डॉ0. "तबला एवंकथक नृत्य क अन् तर्सम्‍ बन् धों का ववकार्स : एक ववश् ल षणात् मक अ्‍ ययन (तबला एवंकथक नृत्य क चननांंक ववे ष र्सन् र्भम म)". International Journal of Research - Granthaalayah 5, № 4 (2017): 339–51. https://doi.org/10.5281/zenodo.573006.

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Abstract:
तबला एवांकथक नृत्य ोनन ताल ्रधाान ैं, इस कारण इनमेंसामांजस्य ्रधततत ैनता ै। ूरवव मेंनृत्य क साथ मृो ां की स ां त ैनतत थत ककन्तुबाो म नृत्य मेंजब ्ृां ािरकता ममत्कािरकता, रांजकता आको ूैलुओांका समाव श ैुआ तन ूखावज की ांभतर, खुलत व जनरोार स ां त इन ूैलुओांस सामांजस्य नै ब।ाा ूा। सस मेंकथक नृत्य क साथ स ां कत क कलए तबला वाद्य का ्रधयन ककया या कजस मृो ां (ूखावज) का ैत ूिरष्कृत एवां कवककसत प ू माना जाता ै। तबला वाद्य की स ां त, नृत्य क ल भ सभत ूैलुओांकन सैत प ू में्रधस्तुत करन मेंस ल साकबत ैु। कथक नृत्य की स ां कत में ूररब बाज, मुख्यत लखन व बनारस ररान का मैत् वूरणव यन ोान रैा ै। कथक नृत्य की स ां कत
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अर्च, ना परमार. "पर्यावरण संरक्षण". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.883529.

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Abstract:
मानव शरीर प ंच तत्वों- प ्रथ्वी, जल, वाय ु, अग्नि आ ैर आकाश स े ही बना ह ै। य े सभी तत्व पर्या वरण के धोतक है। प ्रकृति मे मानव को अन ेक महत्वप ूर्ण प्राकृतिक सम्पदायें भी ह ै। जिसका उपयोग मन ुष्य अपन े द ैनिक जीवन में करता आया है ज ैसे- नदियाँ, पहाड ़, मैदान, सम ुद ्र, प ेड ़-पौधे, वनस्पति इत्यादि। प्रथ्वी पर प्राकृतिक संसाथनों का दोहन करन े से प्राकृतिक संसाथनो के भण्डार तीव्र गति से घटत े जा रह े है, जिससे पर्यावरण में असन्त ुलन बढ ़ रहा है। उसके परिणाम स्वरूप जल की कमी, आ ेजा ेन परत में छेद का पाया जाना, वना ें की अत्यधिक कर्टाइ से वना ें की कमी आना, सम ुद ्रों का जल स्तर बढना, ग्लेशियरों
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Jain, Sadhana, and Gorelal Bisoriya. "Craft Side of Contemporary Poems: With Special Reference to Pawan Karan's Poems." RESEARCH HUB International Multidisciplinary Research Journal 10, no. 1 (2023): 10–14. http://dx.doi.org/10.53573/rhimrj.2023.v10n01.003.

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Abstract:
The language of Pawan Karan's poems is the language of the general public. There is no heaviness in that. Considering the language of Pawan Karan, a critic says that - "The art of telling Pawan Karan lies in the smooth address of the language, due to which the reader avoids being blinded by clever words and their brightness." At the level of language, Pawan Karan has expressed the subtle reality of the story very easily. Communicability is the specialty of Pawan Karan's poems. Their language is the language of love and also the language of relationships. He has mainly considered women. The use
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अजय, कुमार ओझा. "चुनावी राजनीति में बिगड़ती भारतीय संस्कृति". 'Journal of Research & Development' 14, № 18 (2022): 8–12. https://doi.org/10.5281/zenodo.7431441.

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Abstract:
भारतीय संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीन लोकप्रिय, अमिट, निरंतर गतिमान एवं समृद्ध संस्कृति है। इसे संसार की सभी संस्कृतियों की जननी के श्रेय से अलंकृत किया गया है, या यूं कहा जाए कि संसार की समस्त संस्कृतियों की जननी भारतीय संस्कृति ही हैं। प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति पर कुठाराघात होता रहा है। आर्यों की समृद्ध संस्कृति यवनो यहूदियों मुस्लिमो एवं अंग्रेजों के कुठाराघात का सामना करते हुए भी अपने आप को जीवंत एवं सर्वाधिक समृद्ध कायम करने में सफल रही है। जीने की कला हो या विज्ञान और राजनीति का क्षेत्र भारतीय संस्कृति का सदैव विशेष स्थान रहा है। हमारी संस्कृति को हमारे महापुरुषों, मनीषियों, वेदों,
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Mahapatra, Dr Arvinda. "सांख्ययोगौ पृथग्बालाः प्रवदन्ति न पण्डिताः (Only Fools consider Sāmkhya and Yoga Different, Not the wise)". Kiraṇāvalī XIV, № 3&4, JULY- DECEMBER 2022 (2022): 451–59. https://doi.org/10.5281/zenodo.7930922.

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Abstract:
परमाणुवाद – शून्यवाद – अनेकान्तवाद – स्याद्वाद - विवर्त्तवाद-द्वैतवाद - अद्वैतवाद - द्वैताद्वैतवाद - परिणामवाद - सत्कार्यवादादयः पृथक् पृथक् सिद्धान्ताः प्रतिपादिताः सन्ति, भारतीयदर्शनेषु। तत्र षोडशपदार्थवादो न्यायशास्त्रसिद्धान्तः, सप्तपदार्थवादः वैशेषिकसिद्धान्त इति, प्रतितन्त्रसिद्धान्त इति वक्तुं शक्यते । समानतन्त्रे यथा- न्यायवैशेषिकौ सांख्ययोगौ। अत्र समानशब्द एक पर्यायः नैयायिकानां हि समानं तन्त्रं न्यायशास्त्रं परतन्त्रं च सांख्यादिशास्त्रम् ।  तत्र-इदं दर्शनं तत्त्वसंख्यानम् उदीर्यते (भागवत-3-35) । महाभारते तत्त्वगणनामाश्रित्येदं दर्शनं सांख्यमित्यभिधीयते ।
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प्रा., डॉ. भिंगारदेवे लीला रामचंद्र. "हिंदी आत्मकथाओं में चित्रित दलितों के जीवन के संदर्भ में". International Journal of Humanities, Social Science, Business Management & Commerce 08, № 01 (2024): 186–90. https://doi.org/10.5281/zenodo.10496991.

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Abstract:
साहित्य रचना के अर्थ में स्वानुभूति का अर्थ भोगे हुए यथार्थ से है। दलित साहित्य ही नही बल्कि स्त्री लेखन और आदिवासी लेखन में भी स्वानुभूति पर बल दिया जाता है। दलित लेखकों द्वारा लेखन किया जाना स्वानुभूति परक लेखन कहा जाता है और दलित्तेतर लेखकों द्वारा दलितों पर लिखा गया साहित्य सहानुभूति का साहित्य कहा जाता है।
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षषि, जोषी. "विस्थापन, पुनर्वा स एव ं पर्या वरण". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.883036.

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Abstract:
मन ुष्य अपनी सुख समृद्धि, भोग एव ं महत्वकांक्षाओं की प ूर्ति हेत ु जिस तरह प्राकृतिक संसाधनों एव ं पर्या वरणीय तत्वों का अनियोजित एव ं अनियन्त्रित प्रयोग कर रहा ह ै, इस कारण पयावरणीय विघटन एव ं असंत ुलन की स्थिति उत्पन्न हो र्गइ है। जल, वायु, भूमि, वन एव ं खनिज संजीवनी का निरन्तर विघटन हो रहा है, जल स्त्रोत स ूख रहे है, वातावरण विषाक्त हा े रहा है आ ैर भूमि का क्षरण भी हो रहा है। वनो ं के विनाष से पर्यावरण ह्ास में वृद्धि ह ुई है। इन सबके के साथ ही एक अमानवीय सामाजिक समस्या उत्पन्न हुई है और वह ह ै विस्थापन और पुनर्वास की समस्या। प ्रकृति के नजदीक निवास कर रहे लोगों की व्यथा, आदिवासी जनजातिया
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डॉ., सुषमा जैन. "मराठा क्षेत्र मेंचित्रकला का चिकास". International Journal of Research - Granthaalayah 4, № 9 (2019): 198–202. https://doi.org/10.5281/zenodo.3362718.

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Abstract:
मराठा क्षेत्र में चित्रकला पर ंपरा का प्रारंभ प्रागैतिहासिक काल से होता है। मानव ने बहुत ही प्रांरभ में व्यवहार की सजगता के साथ चित्रों के उदाहरण छोड़े हैं। मध्यप्रदेश की आदिम कंदराओं में हमें उस बर्बर पर सुसंस्कृत और सुअलंकृत होने की लालसा के अनुगामी मानव के रचे अनेक रेखीय चिन्ह तथा अस्त्र शस्त्रों के सौंदर्य प्रधान रूप आज हमंे आश्चर्य चकित करते है। मराठा क्षेत्र प्रागैतिहासिक चित्रकला में अति समृद्ध हैं, यहां भोपाल, होशंगाबाद भीमबेटका, सुजानपुरा, हिंगलाजगढ़, गांधीसागर बांध, चिब्बड़ नाला, इन्द्रगढ़, मंदसौर, मोढ़ी, शिवपुरी, चोरपुरा, केदारेश्वर आदि अनेक स्थानों पर प्रागैतिहासिक शैल चित्र मिले ह
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अ, ंजना जैन. "भारत म ें प ेयजल प्रद ुषण - मानव स्वास्थ्य के लिए एक चुना ैति". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–5. https://doi.org/10.5281/zenodo.883525.

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Abstract:
पृथ्वी का 2/3 भू-भाग जल स े घिरा ह ुआ है। पृथ्वी पर जल की मात्रा 1.4 मिलियन क्यूबिक मीटर आंकी गई है। जिसका 97.57ः भाग महासागरों में होन े के कारण खारा जल है। लगभग 36 क्यूबिक मीटर स्वच्छ जल जा े पीन े व उपयोग म ें ल ेन े योग्य है उसम ें स े लगभग 28 मिलियन क्यूबिक मीटर जल बर्फ के रूप म ें ध्रुवों पर जमा ह ै। हमार े वास्तविक उपया ेग के लिये उपलब्ध लगभग 8 मिलियन क्यूबिक मीटर जल पर द ूनिया के लगभग 6 अरब से ज्यादा की आबादी निर्भर है।’1 पीन े योग्य जल के स्त्रोत के रूप में नदियाँ, तालाब, कुए व नलकुप उपलब्ध है। और इनके जल का उपयोग भी हम उसी स्थिति म ें कर सकत े है। जब यह जल प्रद ुषण से मुक्त हो। शुध्द
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डॉ., गीता अवस्थी. "स्नातकोत्तर इतिहास के छात्रों के लिए सर्वोत्तम शिक्षण तकनीकें". International Educational Applied Research Journal 08, № 09 (2024): 12–16. https://doi.org/10.5281/zenodo.13834881.

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Abstract:
स्नातकोत्तर स्तर पर इतिहास पढ़ाने के लिए एक अभिनव दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है जो पारंपरिक शैक्षणिक तरीकों से परे हो । इस पेपर में, हम स्नातकोत्तर इतिहास के छात्रों के लिए तैयार की गई कई प्रभावी शिक्षण तकनीकों का पता लगाते हैं, जिसमें सक्रिय शिक्षण, आलोचनात्मक सोच और अंतःविषय कनेक्शन पर जोर दिया जाता है । हम सीखने के अनुभव को बढ़ाने में प्रौद्योगिकी एकीकरण, सहयोगी शिक्षण और व्यक्तिगत प्रतिक्रिया के महत्व पर भी चर्चा करते हैं । इन रणनीतियों को अपनाकर, शिक्षक ऐतिहासिक कथाओं की गहरी समझ को बढ़ावा दे सकते हैं और छात्रों को उनके भविष्य के करियर के लिए आवश्यक कौशल से लैस कर सकते हैं ।
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अन, ुपमा श्रीवास्तव. "जैव विविधता व प्रदूषण". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.803444.

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Abstract:
एक समय था जब कि पृथ्वी पर कृषि व्यवस्था तथा उस पर उत्पादित हा ेन े वाले खाद्य पदार्था े की मात्रा अथाह थी, लेकिन आज उस स्थिति में परिवर्त तन आ गया ह ै आ ैर अब वह क ेवल पर्याप्त की श्र ेणी में आ गयी है । संतोष यही ह ै कि यह सामग्री पुनः प्राप्त की जा सकती है अतः यदि बहुत बुद्धिमता से उत्पादन का प्रब ंध हो तो प ूर े विष्व में रहन े वाले प्राणी वर्ग को उसके खान े-पीन े और अन्य पदार्था े की प ूर्ति की जा सकेगी पर इसके लिये प्राक ृतिक विविधता (छंजनतमष्े क्पअमतेपजल) का उपयोग करना होगा जिस े आज हम जैविक विविधता के नाम से नामित करत े हैं ।
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रंजिनी, घोष. "विज्ञान के विथ्याकरण कार्ल पॉपर के दृष्टिकोण से समाज -विज्ञान शोध". International Journal of Research - Granthaalayah 7, № 6 (2019): 67–71. https://doi.org/10.5281/zenodo.3262169.

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Abstract:
सर कार्ल पॉपर के अनुसार वैज्ञानिक सिधान्तो में पुन विवेचना की आवश्यकता है जिससे वे सत्य के निकट पहुंचे जहा विज्ञानं अपने आप को स्वयं सिद्द्त मानता है वही विज्ञानं स्वयं का कई कसौटियों में परीक्षण करता है सत्य तक पहुंचने हेतु तर्क एवं गणित की सहायता आवश्यक होती है ावैज्ञानिक विधि केवल प्रत्यक्षिकरण पर आधारित होती है 
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प्रा., डॉ. जितेंद्र बनसोडे. "21 वी सदी के हिंदी उपन्यास में राष्ट्रीय भावना". International Journal of Advance and Applied Research 10, № 1 (2022): 1046 to 1050. https://doi.org/10.5281/zenodo.7314946.

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Abstract:
<em>देशवासीयों के अंदर राष्ट्रीय भावना को बनाये रखना आज एक चुनौतीभरा कार्य बन गया है क्योंकी आज के राजनैतिक समाज की सबसे बड़ी त्रासदी यही है कि यहाँ पर नैतिकता का कोई मूल्य नहीं रह गया है, ईमानदारी भी अपना चेहरा बदल चुकी है | मूल्यों का पठन अब इस तरह होने लगता है तो समाज, राज्य या राष्ट्र को अराजकता, संत्रास और क्रूरता से बचाना मुश्किल हो जाता है। आवश्यकता है ऐसे रचनात्मक की जो इन परिस्थितियों से मनुष्य को निकाल सके और जो निर्दोष है, ईमादार हैं, सच्चे है, संघर्षशील हैं, प्रतिबद्ध है उन्हें अपने रास्ते पर चलने की स्वतंत्र और समर्थन मिल सके। हमारे राष्ट्र के प्रति राष्ट्रीय भावना को बनायें रखने
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डॉ., सुरेश चौधरी रणवीर सिंह. "बौद्धकालीन शिक्षा के प्रमुख केन्द्र का विवरण". International Educational Applied Research Journal 09, № 05 (2025): 150–55. https://doi.org/10.5281/zenodo.15538516.

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Abstract:
<strong>चीन भारत के बौद्धकालीन शिक्षा के केन्द्रों में शिक्षण कार्य भिक्षु करते थे. इनके रहने व खान-पान का प्रबंध विद्यालय की ओर से किया जाता था। भारत में शिक्षा संस्थाओं का जन्म मठों या बौद्ध विहारों से हुआ है । महात्मा युद्ध में उपासकों की विधिवत शिक्षा-दीक्षा पर बहुत जोर दिया था। दस वर्ष तक अध्ययन करने के बाद उपासकों को एप्रव्रज्याय दी जाती थी । उनके विहार गुरुकुलों के ही समान थे । विहारों का मुख्य आचार्य योग्य भिक्षु होता था । विहारों मठों में भोजन तथा वस्त्र आदि का सुभिता शिष्यों को मिलता था । विद्या समाप्ति पर गुरु दक्षिणा देना आचार माना जाता था । जो गुरुदक्षिणा नहीं चुकाते थे उनको समाज
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डा, ॅ. निषा ज. ैन. "राजस्थानी ला ेक संगीत का समाज पर प्रभाव". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.886822.

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Abstract:
भारत के प ्रदेषा ें में राजस्थान अपनी सभ्यता एव ं संस्कृति की मौलिकता क े कारण सर्वदा से पर्यटक, संगीतकार, षिल्पकार आदि के लिए का ैतूहल का विषय रहा ह ै। राजस्थान की संस्कृति खान-पान, वेषभूषा, नृत्य, संगीत एवं लोक गीतों क े लिए प ्रत्येक समय में विषिष्ट बनी र्ह ुइ ह ै। राजस्थान में पल्लवित लोक संस्कृति में क्षेत्रीय रहन-सहन, खान-पान व लोकगीतों का खजाना छिपा ह ुआ ह ै। यहाँ के रीति-रिवाज रहन-सहन, वेषभूषा, चटकीले रंग, तीज त्या ैहार, मेले, पर्व में पहनावा तथा सिर पर साफे ब ंध े हुए प ुरूष एवं घ ेरदार लहँगे में महिला षहरवासिया ें क े आकर्ष ण का केन्द्र हा ेती ह ै। राजस्थानी लोक संगीत सभी विषिष्ट अवस
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Jain, Nisha. "RAJASTHANI FOLK MUSIC IMPACT ON SOCIETY." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 3, no. 1SE (2015): 1–2. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v3.i1se.2015.3464.

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Abstract:
Rajasthan has always been a subject of curiosity for tourists, musicians, craftspeople etc. due to the originality of its civilization and culture in the states of India. The culture of Rajasthan is unique at all times for food, clothing, dance, music and folk songs. The treasury of regional living, food and folk songs is hidden in the cultural culture flourishing in Rajasthan. The rituals here are the center of attraction for women living in the way of living, dress, bright colors, Teej festivals, fairs, festivals, and the men and sarongs that are tied on the head. Rajasthani folk music is su
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शर्मा, रेखा, та एस के वशिष्ठ. "600 ई. से 1200 ई. से उत्तरी भारत में राज्य एवं निर्माण क्षेत्रीय संघर्षों, गठबंधनों और सामाजिक-राजनीतिक संस्थाओं की भूमिका". Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education 21, № 5 (2024): 804–9. https://doi.org/10.29070/2arnp077.

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Abstract:
उत्तरी भारत में 600 ई. से 1200 ई. के बीच की अवधि में कई क्षेत्रीय और शाही राजवंशों के उत्थान और पतन के साथ महत्वपूर्ण राजनीतिक परिवर्तन हुए। यह शोध इस युग के दौरान राजनीतिक गतिशीलता और राज्य निर्माण का विश्लेषण करता है, जिसमें शासकीय संरचनाओं, सैन्य रणनीतियों और शासक शक्तियों जैसे कि गुर्जर-प्रतिहार, पाल, राष्ट्रकूट, चोल, राजपूत और शुरुआती मुस्लिम आक्रमणकारियों के बीच कूटनीतिक जुड़ाव पर ध्यान केंद्रित किया गया है। अध्ययन शासन मॉडल को आकार देने में सामंतवाद, प्रशासनिक विकेंद्रीकरण और सामाजिक-राजनीतिक संस्थानों की भूमिका की भी जांच करता है। ऐतिहासिक ग्रंथों, शिलालेखों और पुरातात्विक साक्ष्यों का
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Kumar, Parshotam. "The Storyteller of Environmental Consciousness: S. R. Harnot." RESEARCH HUB International Multidisciplinary Research Journal 9, no. 7 (2022): 19–22. http://dx.doi.org/10.53573/rhimrj.2022.v09i07.005.

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Abstract:
Environmental protection is an important issue at present. Due to climate change, global warming, pollution, depletion of ozone layer, increase in temperature, etc., there is a danger of extinction of many species on the earth. There is continuous discussion on natural imbalance and environmental issues. Many writers of Hindi are also writing on this. S. R. Harnot is constantly raising these issues directly and indirectly in his stories, forcing the reader to think.&#x0D; Abstract in Hindi Language:&#x0D; वर्तमान में पर्यावरण संरक्षण एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग, प
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रानी, शिखा. "वर्तमान परिप्रेक्ष्य में नारद भक्ति सूत्र एवं षाण्डिल्य भक्ति सूत्र में भक्ति के साधनों का तुलनात्मक अध्ययन". Dev Sanskriti Interdisciplinary International Journal 12 (31 липня 2018): 15–21. http://dx.doi.org/10.36018/dsiij.v12i0.101.

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Abstract:
प्रस्तुत षोध पत्र का उद्देष्य वर्तमान परिप्रेक्ष्य में नारद भक्ति सूत्र एवं षाण्डिल्य भक्ति सूत्र में भक्ति के साधनों का तुलनात्मक अध्ययन करना है। भावनायें जीवन का आधार हंै। आज भावनात्मक अपरिश्कृति के कारण जीवन के सभी तलों पर समस्याएँ उत्पन्न हो गयी हैं, भक्ति द्वारा इन सभी का समाधान संभव है। भक्ति भगवान के प्रति परम प्रेम है। नारद भक्ति सूत्र एवं षाण्डिल्य भक्ति सूत्र भक्ति संबंधी सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्राचीन ग्रंथ है। नारद भक्ति सूत्र एवं षाण्डिल्य भक्ति सूत्र के तुलनात्मक अध्ययन पर कोई षोध कार्य तो नहीं हुआ है परन्तु नारद भक्ति सूत्र एवं षाण्डिल्य भक्ति सूत्र पर अलग-अलग कतिपय भाश्य अवष्य लिख
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पवार, श्री कपिल नामदेव. "'हलफनामे' उपन्यास में अभिव्यक्त किसान संघर्ष". International Journal of Advance and Applied Research 12, № 2 (2024): 59–62. https://doi.org/10.5281/zenodo.14249256.

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Abstract:
किसी भी कृति के रूप और अन्तर्वस्तु के द्वन्द्वात्मक सम्बन्ध द्वारा ही उस कृति की संरचनागत परख की जा सकती है। रूप के निर्धारण के लिए अन्तर्वस्तु की प्रमुखता पर जोर दिया जाता है इस सन्दर्भ में माक्र्सवादी साहित्यकार &lsquo;&lsquo;रॉल्फ फाक्स ने अपनी रचना &lsquo;द नॉवेल एण्ड द पीपुल (1937) में लिखा है, रूप की उपज अन्र्तवस्तु से होती है, वह इससे जुड़ा भी होता है। हालांकि प्रमुखता अन्तर्वस्तु की ही होती है लेकिन रूप का अन्तर्वस्तु पर गहरा प्रभाव पड़ता हैऔर वह निष्क्रिय नहीं रहता।&rsquo;&rsquo;1रूप और अन्तर्वस्तु के इस द्वन्द्वात्मक सम्बन्ध पर राजू शर्मा के उपन्यास &lsquo;हलफनामे&rsquo; का अवलोकन कर
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शर्मा, रेखा, та एस के वशिष्ठ. "उत्तरी भारत में 600 ई. से 1200 ई. तक के सामाजिक और धार्मिक परिवर्तनों का अध्ययन". Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education 22, № 2 (2025): 105–10. https://doi.org/10.29070/qza2wr44.

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Abstract:
यह अध्ययन 600 ई. से 1200 ई. तक उत्तरी भारत में सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों की खोज करता है, जिसमें समाज, धर्म और अर्थव्यवस्था के परस्पर संबंधों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। इस अवधि में कई राजवंशों का उत्थान और पतन, जाति संरचनाओं का विकास, भक्ति और तांत्रिक परंपराओं का प्रसार और कृषि विस्तार और व्यापार नेटवर्क के कारण महत्वपूर्ण आर्थिक बदलाव हुए। अध्ययन उस समय के सामाजिक-सांस्कृतिक ताने-बाने को समझने के लिए ऐतिहासिक ग्रंथों, शिलालेखों और पुरातात्विक खोजों की आलोचनात्मक जांच करता है। धार्मिक आंदोलनों, मंदिर अर्थव्यवस्थाओं और विदेशी संबंधों के प्रभाव की भूमिका का विश्लेषण समाज पर उनके प्रभा
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स, ुनीता पाठक. "ऊर्जा समस्या एवं पर्या वरण". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special edition) (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.883042.

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Abstract:
आर्थिक विकास के दृ्रष्टिकोण स े ऊर्जा एक अत्यन्त महत्वप ूर्ण अवस्थापना/इन्फ ्रास्ट ªक्चर/ है। प ्रकृति क े पारिस्थितिक संत ुलन में ऊर्जा की मुख्य भूमिका रहती है, जो प्राकृतिक परिवेश के जैविक तथा अज ैविक घटकों के मध्य अन्तःक्रिया बनाए रखती ह ै। मन ुष्य विकास को मात्र आर्थि क एव ं भौतिक विकास मानकर लक्ष्य की प्रतिप ूर्ति के लिए तीव्र गति वाली तकनीक का आविष्कार कर प्राकृतिक संसाधनो के अंधाध्ंाुध विदोहन म े जुट जाता है। यहीं उसस े त्रुटि हो जाती है आ ैर वह विकास के स्षान पर पर्यावरण का विनाश करन े लगता है, जिससे अन ेक सामाजिक समस्याओं को जन्म होता है, जिसमें स े एक ह ै ऊर्जा संकट । उत्पादन की आघुन
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thakur, Pappu, and Dr Narad singh. "Naxalism collapse in Bihar." International Journal of Multidisciplinary Research Configuration 1, no. 2 (2021): 09–13. http://dx.doi.org/10.52984/ijomrc1203.

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Abstract:
नक्सलीय समस्या हमारे देश के लिए बड़ा आंतरिक खतरा बन गया है। खासकर 2007 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की टिप्पणियों के बाद, यह एक चिंता का विषय बन गया है और साथ ही अकादमिक बहस का विषय भी है। इस मुद्दे को बड़े पैमाने पर और गहनता से संबोधित करने के लिए नवीन विचार और नए सिरे से योजना बनाई गई है। इस पृष्ठभूमि में, मध्य बिहार का एक मामला अध्ययन इस मुद्दे पर प्रकाश को केंद्रित करने के लिए प्रासंगिक हो जाता है। यह एक स्थापित तथ्य है कि बिहार में नक्सलवाद ने मध्य बिहार के माध्यम से अपना रास्ता बनाया था। जब काउंटरिंसर्जेंसी तंत्र ने पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश में नक्सलवाद के पहले बुलबुले को कुचल दिया, तो
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रानाभाट Ranabhat, गौतम Gautam. "स्याङ्जाली मुक्तकका समकालीन प्रवृत्ति {Contemporary Trends in the Syngjali Muktak}". Kaumodaki: Journal of Multidisciplinary Studies 4, № 1 (2024): 115–27. http://dx.doi.org/10.3126/kdk.v4i1.64571.

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Abstract:
प्रस्तुत आलेख स्याङ्जाली मुक्तककारका समकालीन मुक्तकका प्रवृत्तिको विश्लेषणसँग सम्बन्धित छ । कविताको लघुतम् आयाममा प्रकट हुने मुक्तक लेखनमा नेपाली कविताले नयाँ मोड लिएको २०३६ सालको सडककविता क्रान्तिपछि स्याङ्जाली मुक्तक लेखनमा के कस्ता प्रवृत्ति देखा परे भन्ने मूल समस्यामा आलेख केन्द्रित छ । नेपाली कविताका विभिन्न कालमध्ये आधुनिक कालको समसामयिक धाराको समय नै समकालीन स्याङ्जाली मुक्तकका प्रवृत्ति अध्ययनको आधार हो । आलेखमा यसै चरणका मुक्तकलाई प्राथमिक स्रोत सामग्री र स्याङ्जाली मुक्तकका समकालीन प्रवृत्तिबारे विश्लेषण गरिएका विविध सामग्रीलाई द्वितीय स्रोत सामग्रीका रूपमा उपयोग गरिएको छ । गुणात्मक
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विवेक, आत्रेय. "हिन्दी भाषा राष्ट्र भाषा के रूप में". International Educational Applied Research Journal 09, № 05 (2025): 248–53. https://doi.org/10.5281/zenodo.15595673.

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Abstract:
विश्व में अनेक प्रकार की आषा के दवारा वाचन कार्य किया जाता है। प्रत्येक राष्ट्र की अपनी आधिकारि भाषा है। राष्ट्रभाषा समस्त राष्ट्र या पूरे देश का प्रतिनिधित्व करती है। भाषा वह साधन है जिसके माध्यम से प्राणी अपने आवों को दूसरों पर अभिव्यक्त करता है। भाषा ऐसी दैवी शक्ति है, जो मानव को मानवता प्रदान करती है। जिसे ताणी का वरदान प्राप्त होता है, वह ऊँचे से ऊँचे पद पर विराजमान हो सकता है तथा अक्षय कीर्ति का अधिकारी भी बन सकता है और दूसरी तरफ अवांछनीय वाणी मनुष्य के उत्थान के स्थान पर पतन की ओर अग्रसर करती है। जिस भाषा में शासक या शासन का कार्य किया जाता है उसे राजभाषा का दर्जा दिया है। जब भारतीय संव
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कपिल, स्वाति. "भारतीय दर्शनेषु मोक्ष प्रक्रिया". Dev Sanskriti Interdisciplinary International Journal 13 (31 січня 2019): 08–15. http://dx.doi.org/10.36018/dsiij.v13i.110.

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Abstract:
सारांश मोक्ष मानव जीवन का परम लक्ष्य है, इसीलिये मानव के आदि संविधान वेद से लेकर आज तक सभी धर्मशास्त्रीय ग्रन्थों में मोक्ष का चिन्तन प्राप्त होता है। मोक्ष को मुक्ति, कैवल्य, निःश्रोयस, निर्वाण, अमृत और अपवर्ग आदि नामों से जाना जाता है। विश्व मंे दो प्रकार की प्रवृत्ति सर्वत्र दृष्टिगोचर होती है प्रथम दुःखों को दरू करने की तथा द्वितीय सुखो को प्राप्त करने प्रवृत्ति। दुःख निवृत्ति भी दो प्रकार की है- प्रथम वर्तमान दुःख की निवृत्ति तथा द्वितीय भावी दुःख की निवृत्ति। इन दोनों प्रकार की प्रवृत्तियाँ ही मोक्ष की विचारधारा की जनक कहलाती है। यह धारणा कि हमें अतिशय सुख प्राप्त हो और दुःखो की निवृत्ति
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जैन, डॉ० नेमचन्द. "कविवर पंडित बनारसीदासजी का रसवादी चिंतन". International Researchers Journal Volume-XII, Issue-2 (2024): 24–29. https://doi.org/10.5281/zenodo.14405814.

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Abstract:
प्रथम हिंदी आत्मकथा लेखक पंडित बनारसीदासजी के साहित्य का अवगाहन करने पर ज्ञात होता है कि वे लोकमान्य, साहित्य - रसिकों व सहृदयों द्वारा आस्वाद्य नौ रसों व उनके स्थायी भावों को स्वीकार कर, उनकी उपस्थिति आध्यात्मिक - अलौकिक जीवन - साधकों के जीवन में भी सिद्ध करके उन्हें आध्यात्मिक रंग दे देते है; जो कि उनकी मौलिकता व असाधारण साहित्य - शास्त्रीय - प्रतिभा का परिचायक है; बस यही अंतर है, दोनों प्रकार के आस्वादियों के रसास्वादन की प्रकृति, प्रक्रिया एवं परिणाम में।&nbsp; कविवर की समस्त साहित्य - साधना अध्यात्मूलक होने से उसका उद्देष्य षांत रस के उस रूप का आस्वादन कराना रहा है; जिसे, हिंदी साहित्य-शा
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वन्दना, अग्निहोत्री. "नदिया ें म ें प्रद ूषण और हम". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–4. https://doi.org/10.5281/zenodo.883519.

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Abstract:
जल को बचाए रखना सभी की चिन्ता का विषय ह ै, व ैज्ञानिक राजन ेता, ब ुद्धिजीवी, रचनाकार सभी की चिन्ता है, जल कैस े बचे ? द ुनियाँ को अर्थात पृथ्वी को वृक्षों को, जंगलो को, पहाड ़ों को, हवा को, पानी को बचाना है। पानी का े बचाया जाना बह ुत जरूरी ह ै। पृथ्वी बच सकती ह ै, वृक्ष ज ंगल, पहाड ़ और मन ुष्य, पषु, पक्षी सब बच सकत े ह ै, यदि पानी को बचा लिया गया और पानी प ृथ्वी पर है ही कितना? पृथ्वी पर उपलब्ध सार े पानी का 97ण्4ः पानी सम ुद ्र का खारा जल है, जो पीन े लायक नही ह ै, 1ण्8ः जल ध ु्रवा ें पर बर्फ के रूप म ें विद्यमान है और पीन े लायक मीठा पानी क ेवल 0ण्8ः ह ै जो निर ंतर प्रद ूषित हा ेता जा रहा
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पूनम, शर्मा, та कुमार दीपक. "माध्यमिक स्तर के छात्र-छात्राओं की संवेगात्मक बुद्धि पर अभिभावक बालक संबंधों के प्रभाव का अध्ययन". RECENT EDUCATIONAL & PSYCHOLOGICAL RESEARCHES 14, № 01 (2025): 30–34. https://doi.org/10.5281/zenodo.15283036.

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Abstract:
शोध प मा &nbsp; &nbsp;यिमक&nbsp; तर के छा-छााओं क संवेगामक बु (Emotional Intelligence) पर अिभभावक बालकसंबंधो (Parent-Child Relationship) के "भाव का अ &nbsp; &nbsp;ययन करता है । अ &nbsp; &nbsp;ययन म' यह व(ेषण +कया गया है+क माता-पता क परव,रश क शैली, पा,रवा,रक वातावरण, संवाद और समथ1न +कस "कार छा-छााओं कसंवेगामक समझ, आम, िनयंण और सामा4जक 6यवहार को "भावत करते ह7। " तुत अ &nbsp; &nbsp;ययन म' वण1नामकसव89ण विध का "योग करते हुए मा &nbsp; &nbsp;यिमक&nbsp; तर के 100 छा- छााओं को ;यादश1 के &lt;प म' िलया गया है।
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Ritesh, Kumar. "योग वशिष्ठ में योगः प्राचीन ज्ञान का अनावरण". RECENT RESEARCHES IN SOCIAL SCIENCES & HUMANITIES 11, № 1 (2024): 107–11. https://doi.org/10.5281/zenodo.11001917.

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Abstract:
योग वशिष्ठ, ऋषि वाल्मिकी से संबंधित एक प्राचीन भारतीय गंथ््र ा है, जो योग के अभ्यास और आध्यात्मिक पथ मंे गहन अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। यह पपे र योग वशिष्ठ की शिक्षाआं े की पड़ताल करता है, जो अस्तित्व के रहस्यों को उजागर करने और साधकां े को आत्मज्ञान की ओर मार्गदर्शन करने मंे इसके महत्व पर ध्यान कंेद्रित करता है। रूपक कहानियांे, रूपकों और दार्शनिक प्रवचन का उपयोग करके, शास्त्र योग के विभिन्न पहलुओं की जांच करता है, जिसमें ज्ञान योग (ज्ञान का मार्ग), भक्ति योग (भक्ति का मार्ग), कर्म योग (निस्वार्थ कर्म का मार्ग), और राज शामिल हैं। योग (ध्यान का शाही मार्ग)। सारांश योग वशिष्ठ मंे उल्लिखित याेि
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डा., लक्ष्मी श्रीवास्तव, та शर्मा प्रियंका. "विचारांे का केन्द्र मानव - मस्तिष्क (मूर्तिकार राॅबिन डेविड के मूर्ति षिल्प के विशेष संदर्भ में)". International Journal of Research - Granthaalayah 7, № 11(SE) (2019): 18–20. https://doi.org/10.5281/zenodo.3585013.

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Abstract:
शिल्पकार सृजन, सौंदर्य एवं विकास के वाहक है। परंपरागत षिल्पकार के बिना मानव सभ्यता, संस्कृति तथा विकास की परिकल्पना संभव नहीं है। षिल्पकारों में विभिन्न स्वरूपों में अपने कौषल से शस्यष्यामला धरती को सजाने-सँवारने में अपना महान योगदान दिया है। समस्त पाषणाओं से परे एक साधक की तरह परंपरागत षिल्पकार अपने औजारों के प्रयोग से मानव जीवन को सरल, सहज एवं सुंदर बनाने का उद्यम करते रहे हैं। आज समस्त सृष्टि जिस सुंदर रूप में दृष्टिगोचर हो रही है वह हमारे परंपरागत षिल्पकारों के अथक मेहनत एवं श्रम की ही देन है। यह एक ऐसा तथ्य है जिस पर हम गर्व कर सकते है। &nbsp;
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मुन्नेश, कुमार. "प्राथमिक शिक्षा में उपचारात्मक शिक्षणः एक अध्ययन". RECENT EDUCATIONAL & PSYCHOLOGICAL RESEARCHES 12, № 4 (2023): 27–31. https://doi.org/10.5281/zenodo.10445148.

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Abstract:
अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने सम्बन्धी संवैधानिक प्रतिबद्वता के अनुसरण में प्राथमिक शिक्षा का प्रसार एवं गुणवत्ता स्वंतत्रता प्राप्ति से ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति की मुख्य विशेषता रही है। प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता पठन-पाठन की प्रक्रिया के स्वरूप पर निर्भर करती है इस सन्दर्भ में कक्षा-कक्ष पारस्परिक अन्तःक्रिया की गुणवत्ता सुधारने और बालकेन्द्रित, क्रिया प्रधान तथा रोचक बनाने के अनेक कार्यकलापों उपचारात्मक शिक्षण भी शामिल है। इस शिक्षण में विद्यार्थी की सहभागिता, सक्रियता अधिक होती है और बालकेन्द्रित शिक्षा के उद्देश्य विकास के सभी पहलुओं से सम्बन्धित दक्षताओं का विकास होता है। प्रस्तुत लेख का उ
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डॉ., अविनाश ज्ञानदेवराव काटे. "स्वामी दयानंद सरस्वती और उनकी वैज्ञानिक तर्क पद्धत". International Journal of Advance and Applied Research S6, № 7 (2025): 1–4. https://doi.org/10.5281/zenodo.14770451.

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Abstract:
स्वामी जी परम स्पष्टवक्ता थे। उनके धार्मिक-सुधार संबंधी भाषण वैज्ञानिक तर्क को सुनकर कई पुराने ढर्रे के अवडंबर पंडित, साधु, महंत आदि उनके विरोधी बन जाते थे। ऐसा ही एक प्रसंग है, एक दिन महाराज की वेश्या नन्हींजान को उनके समीप देखकर स्वामी जी ने विरोध किया, महाराज यह सुनकर केवल संकुचित होकर रह गए, पर यह बात नन्हींजान को अच्छी नहीं लगी वह जी-जान से इनकी दुश्मन बन गई और उसने अन्य विरोधियों से मिलकर स्वामी जी रसोइया जगन्नाथ को बहकाया। उसने कुमति में पड़कर दूध में विष मिलाकर स्वामी जी को पिला दिया। थोडी़ही देर बाद स्वामी जी की तबियत ख़राब हो गई, पेट में भंयकर दर्द होने लगा। स्वामी जी ने वमन-विरेचन क
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दिवाकर, सिंह ता ेमर. "कार्बन टेªडिंग एंव कार्बन क्रेडिट जलवायु परिवर्तन समस्या समाधान म ें सहायक". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.803452.

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Abstract:
जलवायु परिवर्त न की समस्या के लिए न तो विकसित द ेष आ ैर न ही विकासषील द ेष जिम्मेदारी लेन े का े त ैयार ह ैं। क्या ेंकि र्कोइ विकास से समझौता नहीं करना चाहता है। इसी कारण यह समस्या ओर द्यातक बनती जा रही ह ै। अभी हाल ही में ग ्रीन हाऊस ग ैसा ें के कारण विष्व के समक्ष समस्याएॅ उभकर सामन े आई हैं। 1) ओजोन परत म ें छिद ्र:- धरती के वातावरण में मौजूद ओजोन की परत हमें सूर्य से निकलन े वाली पराबैंगनी किरणों से बचाती हैं। परन्त ु हवाई ईधन और र ेफ्रिजर ेषन उद्योग स े उत्सर्जित होन े वाली क्लोरा े फ्लोरो कार्बन गैस से धरती के वातावरण में विद्यमान ओजोन की सुरक्षा छतरी में छिद ्र हा े गए हैं। 2) समुद ्र स
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राजेन्द्र कुमार पिवहरे. "राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 में शिक्षा डिजिटलाइजेशन ऑनलाइन शिक्षा और प्रौधोगिकी एक अध्ययन". Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education 21, № 2 (2024): 17–19. http://dx.doi.org/10.29070/ejnz4c12.

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Abstract:
राष्ट्रीय शिक्षा नीति भारत के वर्तमान परिदृश्य में एक सकारात्मक बदलाव की परिचायक है, यह नीति उस परंपरागत ढांचे को प्रतिस्थापित करती है जो प्राचीन दशको से चली आ रही है, इसका लक्ष्य एक आधुनिक शिक्षा प्राणाली विकसित करना है जो पारंपरिक शिक्षा की कसौटी के परे हो, केन्द्रीय मंत्रिमण्डल से मजूरी के बाद 29 जुलाई 2020 को नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 मंजूर किया गया, यह नीति भारत में शिक्षा जगत में एक मील का पत्थर है यह नीति स्कूल के घंटो केा बढाकर ऑनलाईन सीखने को अपनाने और याद करने से दूर जाकर एक सुलभ स्थापित करने पर केंद्रित है, यह नीति शिक्षा को सुदृढ बनाने की सिफारिश करती है।
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अन्जू रानी. "वर्तमान वैश्विक परिदृश्य और भारतीय समाज विज्ञान की चुनौतियाँ". Innovative Research Thoughts 11, № 1 (2025): 103–10. https://doi.org/10.36676/irt.v11.i1.1594.

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Abstract:
विश्व में औद्योगिक क्रांति का प्रारम्भ पूँजीवाद प्रणाली के साथ हुआ किन्तु कालान्तर में यह शोषण का दर्शन बनकर रह गया और 1929-32 की महामंदी ने तो इस नकारा ही साबित कर दिया। इसके विपरीत माक्र्स के दर्शन पर आधारित साम्यवादी प्रणाली ने प्रेरणा और पहल की समस्याएं उत्पन्न कर दी। यह प्रणाली भी सोवियत यूनियन और इसके सहयोगी राज्यों के पतन के साथ शीघ्र ही समाप्त प्रायः हो गयी। आज की चीन साम्यवाद की बजाय बाजार अर्थव्यवस्था के काफी कुछ निकट आ गया है। अतः आज तो विभिन्न रूपों एवं प्रकारों में बाजारवाद ही चल रहा है। किन्तु हर क्षण वह अनेक कठिनाइयों व समस्याओं से ग्रस्त भी हो जा रहा है।
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ममता, गौड ़. "पर्यावरण एवं भारत म ें विधिक प्रावधान". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.882533.

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Abstract:
पर्यावरण शब्द परि$आवरण शब्दों से मिलकर बना है, इसका शाब्दिक अर्थ हमार े चारा ें ओर के उस वातावरण से है, जिसमें जीवधारी रहत े है ं। इस प्रकार पर्या वरण भौतिक तथा जैविक अवयव या कारक का वह सम्मिश्रण है, जो चंह ु ओर से जीवधारिया ें को प्रभावित करता है। इस प्रकार पर्या वरण जीवा ें को प्रभावित करन े वाल े समस्त भौतिक एव ं जैविक कारकों का योग होता ह ै। यह कहा जा सकता है कि हमारी प ृथ्वी का पर्या वरण वह बाहरी शक्ति है जिसका जीवन पर स्पष्ट प्रभाव द ेखा जा सकता है। य े शक्तियाँ परस्पर सम्बद्ध हैं, परिवर्तनशील हैं तथा सम्पूर्ण एव ं संय ुक्त रूप मे ं जीवन पर प ्रभाव डालती हैं। इनमें भौतिक कारक के रूप म ें
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Kumar, Manoj. "Cultural identity in Rajasthani folk songs: A study of regional variations." Gyanvividh 02, no. 01 (2025): 58–65. https://doi.org/10.71037/gyanvividha.v2i1.04.

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Abstract:
राजस्थान के लोक गीत राज्य की जीवंत परंपराओं, सांस्कृतिक समृद्धि और ऐतिहासिक गहराई का प्रतीक हैं। ये कहानी कहने, भावनात्मक अभिव्यक्ति और सामुदायिक पहचान का एक प्रभावी माध्यम हैं। सरल संगीत रचनाओं से परे, ये गीत वीरता, भक्ति, प्रेम और सामाजिक गतिशीलता की कथाएँ बुनते हैं, जो राजस्थान की सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न हिस्सा हैं। यह लेख राजस्थानी लोक गीतों और सांस्कृतिक पहचान के बीच जटिल संबंध का अध्ययन करता है, क्षेत्रीय विविधताओं, विषयगत समृद्धि और वाद्य विशेषताओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए। विद्वतापूर्ण स्रोतों के माध्यम से, यह दर्शाता है कि मेवाड़, मारवाड़, शेखावाटी, हाड़ौती और धुंधर की लोक परंपर
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श्री, अनिल कुमार सिह. "अम्ल वर्षाः कारण, दुष्परिणाम एवं समाधान". International Journal of Contemporary Research in Multidisciplinary 2, № 6 (2023): 79–81. https://doi.org/10.5281/zenodo.10447251.

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Abstract:
वातावरण में बढ़ते प्रदूषकों की मात्रा के कारण अम्ल वर्षा की आवृत्ति में वृद्धि हो रही है जिससे यह एक विश्वव्यापी आपदा के रूप में परिवर्तित होती जा रही है। खासकर यूरोपीय देशों में इसका भयावह स्वरूप देखने को मिल रहा है, जहाँ पर्यावरण के साथ-साथ मानव समुदाय भी प्रभावित हो रहा है। प्रस्तुत लेख में अम्ल वर्षा के कारण, दुष्प्रभाव और उससे निपटने के लिए वर्तमान में किये जा रहे वैश्विक प्रयासों के बारे में चर्चा करेंगे। अम्ल वर्षा वनस्पति समुदाय के साथ-साथ भूमि की ऊपरी परत को काफी नुकसान पहुॅचा रही है जिसका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष असर मानव पर परिलक्षित हो रहा है। अम्ल वर्षा को रोकना या इससे निपटना वैश्
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कुलदीप та अरोरा सारिका. "स्त्री शिक्षा के विकास एवं विभिन्न आयोगों एवं समितियों द्वारा समस्याओं के समाधान सुझाव". RECENT EDUCATIONAL & PSYCHOLOGICAL RESEARCHES 13, № 1 (2024): 72–76. https://doi.org/10.5281/zenodo.11003424.

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Abstract:
अन्य व्यवसायां े के विपरीत, एक छात्र के समग्र विकास की जिम्मेदारी परू ी तरह से शिक्षक के कंधांे पर हाते ी है। नतीजतन, स्कूलांे को प्रशिक्षकांे को सुव्यवस्थित और व्यवस्थित प्रशिक्षण प्रदान करना चाहिए ताकि वे अपन े छात्रांे के समग्र विकास मंे सार्थक और संपूर्ण तरीके से योगदान द े सकंे। भारत मंे शिक्षक शिक्षा मंे बहुत कम निवेश हुआ है, इस तथ्य के बावजूद कि यह छात्रां े की उपलब्धि को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है। राष्ट्र की समृद्धि के लक्षित स्तर को प्राप्त करने के लिए शिक्षक शिक्षा मे ं पण्ूर् ा सुधार अत्यतं महत्वपण्ूर् ा है। हम लगातार विकासात्मक गतिविधियों में लगे हुए हं,ै और हमारी राष्ट्री
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डा, ॅ. लक्ष्मी श्रीवास्तव. "चित्रकला आ ैर रंग-परस्पर अन्या ेन्याश्रित सम्बद्धता एव ं महत्व". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.893172.

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Abstract:
कलाओं में चित्रकला सबसे श्र ेष्ठ ह ै जा े धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाली ह ै। आ ैर घर में परम मंगल होता ह ै जहाँ इसकी प ्रतिष्ठा की जाती है। चित्र सूत्र में चित्रकला को समस्त कलाओं में श्र ेष्ठ कहा गया है। समस्त कलाए ँ हमारे जीवन को सुन्दर आ ैर रसमय बनाती ह ैं। वात्सायायन ने ‘कामसूत्र’ ग्रन्थ में चा ै ंसठ प ्रकार की कलाआ ें का उल्लेख किया ह ै। ‘‘कामसूत्र क े विद्यासमुद्द ेष्य प ्रकरण में काम की उपायभ ूत 64 कलाओं में ‘‘आलेख्य’’ की भी गणना वात्सायायन ने की ह ै, जिनका उल्लेख ‘‘यजुर्व ेद’’ के (3014-22) मंत्रा ें में ह ै।’’ 1 चित्रकला की गणना समस्त कलाआ ें में अतिश्रेष्ठ और उद्देश्य प ूर्ण रूप
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पांडे, उर्मिला. "योग दर्षन के परिप्रेक्ष्य में पुरूष, पुरूषार्थ एवं पुरूषार्थषून्यता". Dev Sanskriti Interdisciplinary International Journal 4 (31 липня 2014): 58–61. http://dx.doi.org/10.36018/dsiij.v4i0.45.

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Abstract:
योग दर्शन में पुरूष तत्व केन्दीय विषय के रूप में प्रस्तुत हुआ है। यद्यपि पुरूष और प्रकृति दोनों की स्वतंत्र सत्ता मानी गयी है; परन्तु तात्विक रूप में पुरूष की सत्ता ही सर्वोच्च है। पुरूष के दो भेद कहे गये है, एक पुरूष विशेष पुरूष एक है- ईश्वर किन्तु सामान्य पुरूष की संख्या असंख्य कही गयी है। पुरूष को चैतन्य एवं अपरिणामी कहा गया है, किन्तु अविद्या के कारण पुरूष जड़ एवं परिणामी चित्त में स्वयं को आरोपित कर लेता है। पुरूष और चित्त के संयुक्त हो जाने पर विवके जाता रहता है और पुरूष स्वयं को चित्त रूप में अनुभव करने लगता है। यह अज्ञान ही पुरूष के समस्त दुःखों, क्लेशों का कारण हैं। योग दर्शन का उद्देश
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घर्ती Gharti, दुर्गा बहादुर Durga Bahadur. "उत्तरवर्ती नेपाली उपन्यासको मनोविश्लेषणात्मक पठन". Vaikharivani 1, № 1 (2024): 1–24. http://dx.doi.org/10.3126/vaikharivani.v1i1.69468.

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चट्टोराज, सुमिता. "आषाढ़ का एक दिन : भावना में एक भावना का वरण". Remarking An Analisation 8, № 11 (2024): H 1 — H 9. https://doi.org/10.5281/zenodo.10992093.

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Abstract:
This paper has been published in Peer-reviewed International Journal "Remarking An Analisation"&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; URL : https://www.socialresearchfoundation.com/new/publish-journal.php?editID=8901 Publisher : Social Research Foundation, Kanpur (SRF International)&nbsp; Abstract : &nbsp;&lsquo;आषाढ़ का एक दिन&rsquo;&nbsp;नाटक कालिदास और मल्लिका के प्रेम पर आधारित कथा है जिसकी शुरुआत आषाढ़ के एक दिन से होती है। नायिका मल्लिका भावनाओं की मूसलधार में भींगने वाली गाँव की सहज, सरल लड़की है जो
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प, ्रो. विनीता वर्मा. "वैश्वीकरण के युग में स ंचार साधना ें क े माध्यमा ें स े भारतीय संगीत की बढ़ती लोकप्रियता". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.887002.

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Abstract:
‘‘आ ना े भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः।’’ अर्था त् - ‘हे परम प ्रकाशक परमात्मा सद्विचार सभी दिशाओं में आयें। हमारे पूर्वज कितने दूर दृष्टा थ े, यह इस बात का द्योतक ह ै कि, जिस व ैश्वीकरण के महत्व का े शेष विश्व के लोग आज समझ पाये ह ैं, उसे हमारे मनीषिया ें ने बह ुत पहते ही निर्धा रित कर ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम्’’ की अवधारणा का े हमारी संस्कृति का आधार बनाया। वर्तमान समय में सम्पूर्ण विश्व में ह ुए तकनीकी विकास एवं संचार क्रान्ति के कारण समस्त विश्व ही एक ग्राम के समान ह ै, क्या ेंकि संचार साधनों ने इसे इतना जोड़ दिया ह ै कि प ूरी दुनिया ही चंद कदमा ें एव ं कुछ घ ंटा ें की दूरी में सिमट र्गइ ह ै और वि
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सीरवी, सरोज. "भारतीय राजनीति में नैतिक अवमूल्यन: कारण व सुझाव". International Journal of Education, Modern Management, Applied Science & Social Science 07, № 01(I) (2025): 33–38. https://doi.org/10.62823/ijemmasss/7.1(i).7139.

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Abstract:
भारतीय लोकतंत्र की आधारशिला नैतिकता, ईमानदारी और जनसेवा के सिद्धान्तों पर रखी गयी थी। लेकिन समय के साथ राजनीति में नैतिक मूल्यों का ह्रास होता जा रहा है। नैतिकता का अर्थ सत्य, ईमानदारी और जिम्मेदारी के साथ कर्तव्यों का पालन करना। आज के दौर में राजनीतिक नैतिकता की स्थिति चिंताजनक है, जहां सत्ता, धन और व्यक्तिगत लाभ के लिए नैतिक सिद्धांतों को दरकिनार किया जा रहा है। आज दुख इस बात का है कि मूल्यों, आदर्शों, विश्वास, नियम, आचार संहिता और संविधान आदि को टेढ़ी निगाह से देखा जा रहा है। मनुष्य अपनी जड़ों से उखड़ चुका है। वर्तमान में भारतीय राजनीतिक, आर्थिक एवं समाजिक व्यवस्था को खोखला करने में सबसे अधिक
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Srivastawa, Yogesh Kumar, та Rajesh Kumar Tripathi. "शिक्षकों के नवीन दृष्टिकोण और छात्रों की शैक्षिक प्रगति: एक समीक्षात्मक अध्ययन". Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education 20, № 3 (2023): 478–83. https://doi.org/10.29070/hz5g4428.

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Abstract:
शिक्षा के क्षेत्र में तेजी से बदलते परिदृश्य ने शिक्षकों के लिए पारंपरिक शिक्षण विधियों से परे जाकर नवोन्मेषी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता को उजागर किया है। यह समीक्षा-पत्र शिक्षकों द्वारा अपनाई गई आधुनिक शिक्षण विधियों और छात्रों की शैक्षिक प्रगति के बीच संबंध का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करता है। इसमें तकनीकी-समर्थित शिक्षण, परियोजना-आधारित और समस्या-आधारित शिक्षण, सहयोगात्मक और अनुभवात्मक अधिगम, और व्यक्तिगत अनुकूलन जैसे नवीन दृष्टिकोणों पर चर्चा की गई है। ये विधियां न केवल छात्रों के संज्ञानात्मक विकास को प्रोत्साहित करती हैं, बल्कि उनकी आलोचनात्मक सोच, रचनात्मकता और सामाजिक कौशल को भी सुदृढ़
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जयश्री, पांडुरंग चव्हाण. "अलका सरावगी के कोई बात नहीं उपन्यास में दिव्यांग विमर्श". International Journal of Humanities, Social Science, Business Management & Commerce 08, № 01 (2024): 111–16. https://doi.org/10.5281/zenodo.10480172.

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Abstract:
हिंदी महिला साहित्यकारों में अलका सरावगी का स्थान उच्च कोटि पर है। अलका सरावगी का उपन्यास जगत बहुत रोचक उद्देश्य परक है, जो पाठकों को हर समय सोचनेपर मजबूर कर देता है। 'दिव्यांगता' और 'साहित्य' का उतना ही घनिष्ठ संबंध है, जितना 'व्यक्ति' और 'समाज' का। परिवार ही समाज की लघुतम इकाई है। किसी भी व्यक्ति के अस्तित्व के स्वीकार-अस्वीकार का प्रश्न सर्वप्रथम उसके परिवार से जुड़ा होता है। परिवार में रहनेवाले प्रत्येक सदस्य की अपनी एक भूमिका होती है। किंतु शारीरिक अक्षमता के कारण किसी व्यक्ति की भूमिका अथवा उसके अस्तित्व को नकार दिया जाए, तो ऐसे में व्यक्ति कुंठित हो जाता है या उसका संपूर्ण जीवन बोझ बन ज
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शशिकान्त, भारती. "शहरी क्षितिज: डॉ. बी.आर. अंबेडकर की शहरीकरण के माध्यम से दलित मुक्ति की दृष्टि". International Journal of Advance and Applied Research S6, № 2 (2025): 322–28. https://doi.org/10.5281/zenodo.15560674.

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Abstract:
डॉ. बी.अर. ऄंबेडकर के क्ांक्षतकारी क्षवचारों ने भारत में सक्षदयों परु ानी जाक्षतगत ईत्पीड़न की संरचनाओं को चनु ौतीदी। सामाक्षजक सुधार के क्षिए ईनके कइ ईपायों में, शहरीकरण समानता के क्षिए ईनके दृक्षिकोण का एक कें द्रीय क्षहस्सा थाऄंबेडकर मानते थे क्षक शहरीकरण और औद्योक्षगकीकरण का संयोजन दक्षितों को ग्रामीण जाक्षत पदानक्ु म द्वारा िगाए गएसामाक्षजक और अक्षथाक प्रक्षतबंधों से मक्षु ि क्षदिाने का एक माध्यम प्रदान करता है। यह शोध पत्र शहरीकरण के माध्यम सजाक्षतगत भेदभाव को समाप्त करने के क्षिए ऄंबेडकर की सामाक्षजक-अक्षथाक रणनीक्षत का गहन क्षवश्लेषण प्रस्ततु करता है। आसरणनीक्षत के क्षसद्ांत, ईनके काया
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