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Journal articles on the topic 'प्रतिमान'

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प्रियदर्शिनी, अनुपम, та सुनीता झा. "अनुसन्धान-प्रतिमान : एक विश्लेषण". Journal of Research & Development 17, № 4 (2025): 131–34. https://doi.org/10.5281/zenodo.15544578.

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Abstract:
<strong><em>सारांश</em></strong> &nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; <em>डॉ. रमानन्द झा &lsquo;रमण&rsquo; द्वारा संकलित ओ सम्पादित &lsquo;अनुसंधान प्रतिमान&rsquo; आलोचना साहित्यक अमूल्य ओ अद्वितीय उपहार थिक। हिनक जन्म 02 जनवरी 1949 ई.क मधुबनी जिलान्तर्गत लालगंज गाममे भेलनि। हिनक पिता परमानन्द झा छलनि। मैथिली भाषा साहित्यमे &lsquo;रमण&rsquo; उपनाम सँ बेस चर्चित छथि। मैथिली साहित्यमे सक्रियताक संग-संग लेखन कला आ संपादनमे सेहो साहित्यक निर्माणमे सतत् प्रयासरत रहलाह अछि आ मैथिली साहित्यक सृजन करबामे सेहो हिनक बेस योगदान रहलनि अछि। रमानन्द झा &lsquo;रमण&rs
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गीताराम, शर्मा गीताराम. "विकास के भारतीय प्रतिमान और सतत विकास". Innovation The Research Concept 9, № 2 (2024): H32—H41. https://doi.org/10.5281/zenodo.10862961.

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Abstract:
This paper has been published in Peer-reviewed International Journal "Innovation The Research Concept"&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; URL : https://www.socialresearchfoundation.com/new/publish-journal.php?editID=8773 Publisher : Social Research Foundation, Kanpur (SRF International)&nbsp; Abstract : &nbsp;आज विकास के नाम पर दुनियाँ में एक दूसरे को रोंदकर आगे निकलने की जो वितृष्णा है या परस्पर निगल जाने का जो कि अहंकार है तथा दूसरे के अस्तित्व को मिटा कर आगे निकल जाने की प्रतिस्पर्धात्मक दौड़ के भौतिक
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Bala. "Social reality depicted in the poems of Acharya Jankivallabh Shastri." RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 6, no. 12 (2021): 138–43. http://dx.doi.org/10.31305/rrijm.2021.v06.i12.020.

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Abstract:
Shastri ji has closely observed the current circumstances of his time, has experienced and has tried to constantly fill the heat with his creative power by standing up against the forces of resistance. In this sequence, he has given a detailed shape to his life-experience. Shastri ji does not know how to create any model for himself. He has created a new paradigm for its development and excellence. Shastri ji's personality is as multifaceted, his writing talent is more unique that Shastri ji has had a huge impact on the circumstances of the time, but Shastri ji is a believer in creating writin
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लम्साल, रामहरि. "साहित्यमा उपयोगितावाद". Journal of Development Review 7, № 1 (2022): 116–23. http://dx.doi.org/10.3126/jdr.v7i1.67026.

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Abstract:
संसारमा कुनै पनि वस्तु, विचार वा कार्यको महत्त्व सिद्ध गर्नका निम्ति उपयोगितावादलाई कसी मान्ने प्रचलन परापूर्वकालदेखि नै चलिआएको छ । खास खास काल विशेषको सामाजिक उद्देश्यअनुरूप उपयोगिताको स्थापना र प्रतिमान बदलिँदै रहेको छ । उपयोगिताको प्रतिमानमा हेरफेर भइरहे पनि यसको सिद्धान्त भने निरन्तर चलिरहेकै छ । साहित्यको उपयोगितावादलाई सोद्देश्यवाद पनि भनिन्छ । पूर्वमा काव्यको प्रयोजनले उपयोगिताको अर्थ वहनगरेको छ भने पश्चिममा उपयोगितावादका रूपमा व्यवहृत हुँदै आएको छ । पाश्चात्य जगत्मा देखा परेको ‘कला कलाको लागि’ भन्ने सिद्धान्त उपयोगिवावादको विरोधीका रूपमा उपस्थित भएको ठानिन्छ तापनि त्यसको पनि आफ्नै उपय
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5

नीतिका, डेविड. "पारिवारिक संबंधों का किशोर बालक-बालिकाओं के आत्मविश्वास, व्यक्तित्व एवं शैक्षिक उपलब्धि पर प्रभाव का अध्ययन". RECENT EDUCATIONAL & PSYCHOLOGICAL RESEARCHES (ISSN: 2278-5949) 11, № 3 (2022): 32–37. https://doi.org/10.5281/zenodo.7370852.

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Abstract:
कैशोर्य जो मानवता की अमूल्य धरोहर, राष्ट्र के स्वर्णिम स्वप्नों के आधार है, लेकिन विघटन की कगार पर पहुॅंचने के बाद वे घर, परिवार, समाज, राष्ट्र के लिए विकराल समस्या बन जाते हैं जिसका प्रमुख कारण पारिवारिक संबंधों में&nbsp;गिरावट का आना है, जिसका उनकी निर्माणकारी अवस्था के दौरान प्रतिकूल प्रभाव होता है। अभिभावकगण द्वारा उनके स्वीकृत या अस्वीकृत किये जाने से उनके जीवन की पुस्तक के हर पृष्ठ पर माता-पिता परिवारजनों के व्यवहारों के&nbsp;प्रतिमान प्रतिदिन अंकित होता रहता है। स्वीकृत एवं अस्वीकृत छात्र/छात्राओं पर पारिवारिक संबंधों का प्रभाव तथा उनके आत्मविष्वास, व्यक्तित्व एवं षैक्षिक उपलब्धि पर प्र
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अधिकारी, अनिल, та रमेश ओझा. "भूपि शेरचनको हामी कवितामा संसक्ति व्यवस्था". Dristikon: A Multidisciplinary Journal 11, № 1 (2021): 210–32. http://dx.doi.org/10.3126/dristikon.v11i1.39163.

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Abstract:
प्रस्तुत अध्ययनमा कवि भूपि शेरचनद्वारा लिखित ‘हामी’ कविताको संसक्ति व्यवस्थाको अध्ययन गरिएको छ । यस अध्ययनको पूर्णताका लागि सङ्कथन अध्ययनभित्र संसक्ति व्यवस्थालाई सैद्धान्तिक पर्याधारका रूपमा प्रयोग गरिएको छ । मूल समस्या र शोध्यप्रश्नको समाधान गर्न लागि गुणात्मक अनुसन्धान र पाठ विश्लेषण विधिको प्रयोग गरिएको प्रस्तुत अध्ययनमा हामी नेपालीको समकालीन पराधीन सोच र अभिवृत्तिलाई प्रस्तुत गर्ने क्रममा आएका विभिन्न सन्दर्भको संयोजनबाट सुसम्बद्ध पाठसम्बद्ध पक्षको विवेचना गरिएको छ । संसक्ति सङ्कथन अध्ययन अन्तर्गतको पाठविश्लेषण गर्ने प्रतिमान हो भने यसका व्याकरणिक र कोशीय भेद रहेका छन् । संसक्तिले भाषालाई
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सारस्वत, चन्द्र मोहन. "विभिन्न अभिकरणों द्वारा संचालित विद्यालयों के शिक्षकों के मूल्यों के बदलते प्रतिमान". SDES-International Journal of Interdisciplinary Research 2, № 1 (2021): 121–25. http://dx.doi.org/10.47997/sdes-ijir/2.1.2021.121-125.

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Singh, Satyavir. "Language and Craft of Kamleshwar's Stories." RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 7, no. 5 (2022): 176–80. http://dx.doi.org/10.31305/rrijm.2022.v07.i05.025.

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Abstract:
Kamleshwar's stories were created keeping in mind the classical framework of storytelling art. Apart from those standards, they are constantly moving forward establishing some new standards of the modern era. Kamleshwar is considered a very alert and progressive storyteller. All the points of the language and craft of his stories are discussed. In which they stand up to the test with success. Kamleshwar is considered the most popular face of the post-independence Hindi story genre. He was a creator of multifaceted literature. In this way, Kamleshwar proves to be a successful storyteller on the
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ढोके, प्रा. प्रफुल इ. "संपोषित विकास की आवश्यकता- एक अध्ययन". Journal of Research & Development 16, № 11 (2024): 205–8. https://doi.org/10.5281/zenodo.13853684.

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Abstract:
<strong>सारांश</strong><strong>:</strong> संपोषित&nbsp; विकास को चिरंजीवी विकास, सम्यक विकास आदि अनेक नाम दिये गये हैं। व्यक्ति, समष्टि और सृष्टि तीनों का एक साथ विकास हो, इसे ही विकास कहते हैं। विकास का अंतिम दर्शन 'वस्तुनिष्ठ रूप से क्या अच्छा है', 'व्यक्तिगत, सामूहिक और सृजन के लिए उद्देश्यपूर्ण रूप से क्या अच्छा है' का वर्णन है। इन्हीं विशेषताओं के कारण इस दर्शन से विकास का जो प्रतिमान उभरता है वह है सतत विकास, व्यापक विकास, सभी तत्वों का सामाजिक विकास, संतुलित विकास। यह समुचित विकास का प्रतिमान है । परंतु वर्तमान मे विकास का मतलब सिर्फ भौतिक विकास रह गया है और इसके लिए नैसर्गिक संसाधन पर
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दावा शेर्पा. "मुनामदन खण्डकाव्यको समाज भाषिक अध्ययन". Interdisciplinary Research in Education 8, № 1 (2023): 39–47. http://dx.doi.org/10.3126/ire.v8i1.56725.

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Abstract:
समाज भाषिक अध्ययन विशेषतः समाजशास्त्र, मानवशास्त्र र मानवीय समाजका सम्पूर्ण पक्षको सांस्कृतिक प्रतिमान, सम्भावना र सन्दर्भसहित भाषामाथिको अध्ययन हुन्छ । खण्डकाव्यका पत्राहरूको प्रयुक्त भाषाका आधारमा समाज र भाषा तथा भाषा र संस्कृतिको अध्ययन गरिएको छ । तसर्थः मुना, मदन, नैनी फुपु, आमा, भोटे र गुन्डाद्वारा प्रयुक्त भाषिक सञ्चारमा भाषाको समाजपरक र समाजको भाषापरक अध्ययन गरिएको छ । समाज भाषिक सिद्घान्तअनुसार मानिसको सोच्ने प्रक्रिया भाषाले निर्धारण गर्दछ, जसलाई भाषिक सापेक्षतावाद भनिन्छ । यहीँ सिद्घान्त नै ‘मुनामदन’को साहित्य, साहित्यकार र समाजशास्त्रीय भाषिक अध्ययनका आधार हुन् । यसमा प्रकृतिक, ईश्व
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संतोष, कुमार शर्मा, та अग्रवाल अक्षय. "स्वामी विवेकानन्द के शैक्षिक दर्शन एवं वर्तमान शैक्षिक प्र्तिमान का तुलनात्मक अध्ययन". RECENT EDUCATIONAL & PSYCHOLOGICAL RESEARCHES 12, № 4 (2023): 32–37. https://doi.org/10.5281/zenodo.10468683.

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Abstract:
प्रस्तुत शोध पत्र ष्स्वामी विवेकानन्द के शैक्षिक विचारों की वर्तमान परिप्रेक्ष्य में उपयोगिता उद्देश्य स्वामी विवेकानन्द के विभिन्न शैक्षिक विचारों की वर्तमान में उपयोगिता को परिलक्षित करना है। प्रस्तुत शोध पत्र में ऐतिहासिक अनुसंधान विधि को आधार बनाया गया है तथा प्राथमिक एवं द्वितीयक स्रोतों के द्वारा निष्कर्ष निकाले गये है। स्वामी विवेकानन्द जी ने आधारभूत भारतीय जीवन मूल्यों एवं जनशिक्षा की अन्तर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में तर्कसंगत व्याख्या की हैं। स्वामी जी की शिक्षा में परम्पराए आधुनिकताए पूर्व.पश्चिम आध्यात्मिकता तथा वैज्ञानिकता का सामंजस्य एवं समन्वय विशेष उल्लेखनीय हैं। इस शिक्षा के द्व
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ढकाल Dhakal, दीपकप्रसाद Dipakprasad. "जिरो कटेज उपन्यासमा पर्यावरणीय सङ्कट {Environmental Crisis in Zero Cottage Novel}". Tribhuvan University Journal 37, № 1 (2022): 99–110. http://dx.doi.org/10.3126/tuj.v37i1.48299.

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Abstract:
प्रस्तुत लेख जिरो कटेज उपन्यासको पर्यावरणीय सङ्कटमा केन्द्रित छ । प्रविधिसंस्कृति र आविष्कारका कारण पर्यावरणको अत्यधिक दोहन हुँदा पर्याचक्रमा परेको प्रतिकूलतालाई यस लेखमा विश्लेषण गरिएको छ । कृतिमा पर्याचक्रीय प्रभावको विश्लेषण गर्ने पर्यावरण सिद्धान्त यस लेखको मुख्य सैद्धान्तिक आधार हो । आरम्भमा पर्यावरणीय विश्लेषणका प्रतिमान दिएर पाठका साक्ष्य प्रस्तुत गरिएकाले यसमा निगमनात्मक विश्लेषण विधिको प्रयोग भएको छ । विश्लेषणलाई सामान्यीकरण गरेर निष्कर्षमा पुग्ने क्रममा यस लेखमा आगमनात्मक विधिको पनि प्रयोग गरिएको छ । विश्लेषणका क्रममा जिरो कटेजलाई प्राथमिक र पार्यवरणीय सिद्धान्ततथा व्याख्यात्मक सन्दर
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मीनाक्षी, सिंह रावत. "गुणात्मक शोध के प्रकार". RECENT EDUCATIONAL & PSYCHOLOGICAL RESEARCHES (ISSN: 2278-5949) 11, № 3 (2022): 26–31. https://doi.org/10.5281/zenodo.7368767.

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Abstract:
गुणात्मक अनुसंधान शब्द का े तकनीकांे (आंकडा एकत्रित करने के तरीके और आकं ड़ांे का विष्लष्े ाण के लिए) और अनुसंधान करने की रूपरेखा या प्रतिमान (समुदाय की धारणाआंे, मान्यताआंे, मूल्यांे एव ं प्रथाआंे) दोनां े को इंगित करने क े लिए इस्तेमाल किया जाता है। वस्तु, व्यक्ति, समूह, संस्था, घटना या प्रक्रिया की सवांर्ग ीण व्यवहारगत विषेषताओं का उनके सम्पूर्ण स्वाभाविक रूप में भली भांति प्रेक्षण तथा सर्वागीण मूल्यांकन करने में प्राप्त जानकारी गुणात्मक अनुसंधान कहलाता है। गुणात्मक शोध, शोध की आधुनिकतम वैज्ञानिक विधि है जिसमें शोध कार्य को मात्रात्मक साख्यिकी की अपेक्षा गुणात्मक घटनाआंे को विष्लेषणात्मक, व
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Acharya, Laxmi Prasad. "नेपाली भाषा सिकाइमा शिक्षक विद्यार्थीका कक्षा व्यवहार". Journal of Research in Education 1 (14 травня 2025): 199–214. https://doi.org/10.3126/jore.v1i1.78744.

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Abstract:
प्रस्तुत अध्ययन शिक्षक विद्यार्थीले कक्षामा प्रदर्शित गरेका व्यवहारको विश्लेषणमा आधारित छ । यसमा नेपाली भाषा शिक्षणका क्रममा शिक्षक र विद्यार्थीका व्यवहारको विश्लेषण गरी सिकाइ वातावरणको लेखाजोखा गर्ने उद्देश्य राखिएको छ । गुणात्मक अध्ययन ढाँचाको उपयोग भएको यस अध्ययनमा दैलेख जिल्लाको गुराँस गाउँपालिकाका विद्यालयमा कार्यरत पाँचजना शिक्षक र तिनले अध्यापन गरेका कक्षाका विद्यार्थीहरूलाई सहभागी बनाइएको छ । उनीहरूका कक्षा कार्यकलापको अवलोकनका आधारमा सङ्कलित तथ्याङ्कको विश्लेषण गरी नतिजा पहिल्याइएको छ । विश्लेषणबाट प्राप्त नतिजालाई पूर्वकार्यहरूको समीक्षाबाट तयार गरिएका प्रतिमान र पूर्वअध्ययनका निष्कर
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ज्ञवाली Gyawali, बिष्णु Bishnu. "‘मेरो चोक’ कवितामा वर्णप्रयोग". K. M. C. Nepali journal के. एम. सी. नेपाली जर्नल 5, № 5 (2024): 143–55. https://doi.org/10.3126/kmcnj.v5i5.73764.

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Abstract:
प्रस्तुत लेखमा कवि भूपी शेरचनको एउटा कवितालाई मात्र शोध क्षेत्रका रूपमा ग्रहण गरी त्यसमा वर्णहरूको वितरण स्थितिको मात्र विश्लेषण गरिएको छ । ‘मेरो चोक’ कविताबाट तथ्यहरूको सङ्कलन गरी वर्णविज्ञानको स्थापित सिद्धान्तका आधारमा नेपाली भाषाका वर्णहरूको प्रतिमान निर्धारण गर्दै विश्लेष्य कवितामा रहेका वर्णहरूको अध्ययन गरिएको यस लेखमा कवि भूपी पश्च, निम्नमध्य र अगोलित स्वरको अनि शिखर वत्स्र्य, सङ्घर्षी, नासिक्य, पाश्र्विक, कम्पित, अद्र्धस्वर, अघोष र अल्पप्राण व्यञ्जन वर्णको नेपाली भाषाका सापेक्षतामा बढी प्रयोग गर्ने कविका रूपमा चिनिएका छन् । यसरी सापेक्षिक रूपमा एकै स्वभावका वर्णहरूको अधिक प्रयोग गरेर क
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नेत्र एटम. "समसामयिक नेपाली उपन्यासको शिक्षण प्रक्रिया". Interdisciplinary Research in Education 7, № 1 (2022): 17–30. http://dx.doi.org/10.3126/ire.v7i1.47494.

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Abstract:
प्रस्तुत अध्ययनमा नयनराज पाण्डेको ‘उलार’ (२०५५) उपन्यासलाई नमुना पाठका रूपमा लिई समसामयिक नेपाली उपन्यासको शिक्षणका प्रक्रियाको विश्लेषण गरेर त्यसको एउटा प्रतिमान तयार परिएको छ । स्नातक तहमा गरिने समसामयिक नेपाली उपन्यासको शिक्षण प्रक्रियामा अवलम्बन गर्न सकिने प्रभावकारी ढाँचा दिई त्यस क्रममा वास्तविक जीवनसँग तिनको अन्तरसम्बन्ध अनुकूलन गरेर शिक्षकले विद्यार्थीलाई गराउनुपर्ने क्रियाकलापको खोजी गर्दै तिनको मूल्याङ्कन प्रक्रियाको रूपरेखा प्रस्तुतयस लेखको उद्देश्य हो । यसमा उपन्यासको शिक्षणको विधागत, विषयवस्तुगत र शैलीगत मान्यतालाई सैद्धान्तिक पर्याधारका रूपमा लिई सोद्देश्यमूलक नमुना छनोट पद्धतिबा
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अधिकारी, अनिल. "‘मेरो सानू साथी’ कथामा समाख्यानात्मक वाच्यत्व". Prajna प्रज्ञा 124, № 2 (2023): 18–29. http://dx.doi.org/10.3126/prajna.v124i2.60520.

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Abstract:
प्रस्तुत लेख कथाकार भवानी भिक्षुको ‘मेरो सानू साथी’ कथामा समाख्यानात्मक वाच्यत्व मूल समस्यामा केन्द्रित रहेको छ । प्रस्तुत कथाका बारेमा आख्यानशास्त्रीय, स्वतन्त्र तथा प्राज्ञिक अध्ययन भए पनि समाख्यानाशास्त्रमा रहेको रिक्तताको पूर्तिका लागि यो लेख तयार पारिएको हो । समाख्यानात्मक वाच्यत्वको मूल अभिप्राय आख्यानात्मक पाठसंसारमा आएको कथ्यविषयलाई कसले प्रस्तुत गरिरहेको छ भन्ने विषयमा आख्यानको विश्लेषण गर्ने प्रतिमान रहेको छ । आख्यानमा वाच्यत्व कसले विषयलाई प्रस्तुत गरिरहेको छ भन्ने विषयका आधारमा समाख्याताको पहिचान गरी उसकै केन्द्रीय विचारका रूपमा आएको कथ्य सन्देशका अन्तरसाक्ष्यमा मूल सन्देशको पुष्टि
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रामकेश, पाण्डेय. "पंचतंत्र में संवेगात्मक मनोविज्ञान की अवधारणा". RECENT EDUCATIONAL & PSYCHOLOGICAL RESEARCHES 12, № 4 (2023): 15–21. https://doi.org/10.5281/zenodo.10445130.

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Abstract:
संवेग व्यवहार का वह प्रतिमान है जो अन्तरंग तथा शरीर के अन्य भागों में घटित होता है। बालक के शिक्षण में उसकी संवेगात्मक स्थिति का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। यदि किसी प्रखर बुद्धि बालक की संवेगात्मक स्थिति अच्छी नहीं है तो उसकी अपेक्षित शैक्षिक प्रगति नहीं हो सकती। इसलिए माता-पिता, शिक्षक आदि को इस संदर्भ में सतत् जागरूक रहने की आवश्यकता है। ळंजमे के अनुसार मानसिक तनाव उत्पन्न वाले संवेग बालक की मानसिक क्षमताओं को कुंठित कर देते हैं, किन्तु यह प्रभाव एक तरफा नहीं है। बालक की संवेगात्मक स्थिति उसके अपने वातावरण से स्वस्थ समायोजन करने में सफलता या असफलता तथा इनसे उत्पन्न अभिवृत्तियाँ तथा भावनायें उस
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नेपाल, शक्तिराज. "नेपाली शिक्षाका विद्यार्थीको आलोचनात्मक लेखनका प्रभावक तत्त्व: एक न्यारेटिभ खोज". Pragyaratna प्रज्ञारत्न 6, № 2 (2024): 287–95. http://dx.doi.org/10.3126/pragyaratna.v6i2.70587.

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Abstract:
प्रस्तुत लेख नेपाली भाषा शिक्षाका विद्यार्थीको आलोचनात्मक लेखनमा पार्ने प्रभावक तत्त्वको विश्लेषण गर्ने विषयमा केन्द्रित छ । नेपाली भाषा शिक्षाका विद्यार्थीको आलोचनात्मक चेतको विकास तथा सोसम्बन्धी अभ्यासले आलोचनात्मक सोचाइ, पठन र लेखनसम्मका गतिविधिमा पार्ने प्रभावक तत्त्वलाई न्यारेटिभ खोजका आधारमा विश्लेषण गर्नु यस लेखको उद्देश्य हो । आलोचनात्मक अनुसन्धानको प्रतिमान तथा न्यारेटिभ खोजको ढाँचामा आधारित प्रस्तुत अध्ययनमा अन्तर्वार्ता विधिका माध्यमले तथ्याङ्क सङ्कलन गरिएको तथा आलोचनात्मक चेतको अनुभव र विकास, शिक्षक विद्यार्थी अन्तरक्रिया, सामाजिक सांस्कृतिक सन्दर्भ, सहभागीको शक्ति सम्बन्ध (अधिकार,
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पाण्डेय, कनिका, та अनीता देवी*. "परिवार कल्याण के प्रति थारू जनजातीय महिलाओं की जागरूकता का समाजशास्त्रीय अध्ययन". Humanities and Development 17, № 1 (2022): 23–29. http://dx.doi.org/10.61410/had.v17i1.35.

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Abstract:
स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत में प्रशासनिक एवं आर्थिक दोनो ही व्यवस्थाओं के अन्तर्गत समाज के निर्बल एवं पिछड़े वर्गो के उन्नयन एवं उनको समुचित अधिकार प्रदान करने की नीति को स्वीकार किया गया है। जहॉ तक सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़ेपन की बात है अनुसूचित जनजातियॉ समग्र भारत में पिछड़ी हुई है। वर्तमान समय में थारू जनजाति की अनेक आर्थिक समस्याओं जैसे प्रति व्यक्ति निम्न आय, रहन-सहन का निम्न स्तर, बचत व विनियोग का निम्न स्तर व ऋणग्रस्तता इत्यादि के मूल में जनसंख्या की अत्यन्त तीव्र बृद्धि ही मूल कारण है। अतः इन समूहों की सामाजिक, आर्थिक स्थिति में सुधार हेतु किसी नीतिबद्ध आयोजन हेतु यह आवश्यक है कि विस
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न्यौपाने, श्रीधर न्यौपाने. "अप्रिय उपन्यासमा अस्तित्ववादी वरणस्वतन्त्रता". Bhairahawa Campus Journal 6, № 1-2 (2023): 153–66. http://dx.doi.org/10.3126/bhairahawacj.v6i1-2.65180.

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Abstract:
प्रस्तुत लेख ध्रुवचन्द्र गौतमद्वारा लिखित अप्रिय उपन्यासको अस्तित्ववादी जीवनदृष्टिको मूलभूत प्रतिमान वरणस्वतन्त्रताका कोणबाट गरिने विश्लेषणमा केन्द्रित रहेको छ । आफ्नो मूल्यका लागि छनोटको स्वतन्त्रता प्राप्त गरेको मानिसले चिन्ताको सामना गर्दै जिम्मेवारी वहन गर्नुपर्छ भन्ने मान्यता अस्तित्ववादी वरणस्वतन्त्रताको रहेको छ । अप्रिय उपन्यासमा वरणस्वतन्त्रताको अभिव्यक्ति किन गरिएको हो भन्ने शोध्य प्रश्नको समाधान गर्ने उद्देश्यले यो लेख तयार गरिएको हो । बहुसत्यमा आधारित यो लेख गुणात्मक अनुसन्धानका रूपमा रहेको छ । अप्रिय उपन्यासमा वरणस्वतन्त्रता तत्त्वमीमांसाका रूपमा रहेको यस अध्ययनमा शोधदर्शनसँग सम्बद
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अधिकारी Adhikari, अनिल Anil, та केशवप्रसाद Keshavprasad अधिकारी Adhikari. "पिँजराको सुगा कवितामा ध्वनि". Medha: A Multidisciplinary Journal 6, № 1 (2023): 92–106. http://dx.doi.org/10.3126/medha.v6i1.63961.

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Abstract:
प्रस्तुत लेख ‘पिँजराको सुगा’ कवितामा ध्वनि मूलसमस्यामा केन्द्रित छ । यस शोधसमस्याको समाधानका लागि पाठविश्लेषण केन्द्री गुणात्मक अनुसन्धान िवधि तथा विश्लेषणको सैद्धान्तिक पर्याधार र विश्लेषणविधिका लागि संस्कृत काव्यचिन्तनअन्तर्गतको ध्वनिसिद्धान्तलाई उपयोग भएको छ । संस्कृत काव्यचिन्तनमा साहित्यको विश्लेषण गर्ने ध्वनिवादी सिद्धान्तका आफ्नै पाठविश्लेषणका प्रतिमान रहेका छन् । ध्वनिवादीहरूको मतमा साहित्यका अन्य तŒवसँगको सम्बन्धका आधारमा वस्तुध्वनि, अलङ्कारध्वनि र रसध्वनि तथा शब्दार्थ सम्बन्धका आधारमा अविवक्षित वाच्यध्वनि र विवक्षितान्यपरवाच्यध्वनिका आधारमा कृतिको मूल्याङ्कन गर्ने विषय हुन् । शब्द र
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Shah, Nirmala. "ENVIRONMENT MANAGEMENT AND SOCIETY." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 3, no. 9SE (2015): 1–2. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v3.i9se.2015.3280.

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Abstract:
Human and environment are closely related. The environment affects humans directly and indirectly. The concept of self-reliant development is based on an integrated approach to environmental and development policies, which aims at maximizing economic benefits from an ecological region and minimizing environmental hazards and risks. It includes, to fulfill the needs and expectations of the present without compromising the capabilities of the future. To achieve this, we have to do ecological co-ordination of development in which we must reconfigure our priorities and abandon the one-dimensional
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गुर्वेन्द्र, गायत्री, та अमृत गुर्वेन्द. "घरेलु महिलाओं के उच्च रक्तचाप स्तर पर योगाभ्यास के प्रभाव का अध्ययन". Dev Sanskriti Interdisciplinary International Journal 12 (31 липня 2018): 63–66. http://dx.doi.org/10.36018/dsiij.v12i0.107.

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Abstract:
प्रस्तुत शोधका मुख्य उद्देश्य ‘घरेलु महिलाओं के उच्चरक्तचाप स्तर पर योगाभ्यास के प्रभाव का अध्ययन’ है। इस शोध अध्ययनमें ‘पूर्व-पश्चात् परीक्षण एकल समूह’ शोध अभिकल्प का प्रयोग किया गया। आकस्मिक प्रतिचयन विधि द्वारा हरिद्वार (उत्तराखण्ड) क्षेत्र से30-40आयु वर्ग की 26 महिलाओं का चयन किया गया। उच्चरक्तचाप स्तर को मापने के लिए ‘स्फेग्मोमेनोमीटर व स्टेथेस्कोप’ का प्रयोग किया गया। प्रयोज्यों को एक माह तक प्रतिदिन 60 मिनट तक निर्धारित योगाभ्यास समूह का अभ्यास कराया गया। प्राप्त आंकड़ों का सांख्यिकीय विश्लेषण ‘टी-परीक्षण’ द्वारा किया तथा ‘टी’ का मान 0.01 स्तर पर सार्थक पाया गया जिससे यह निष्कर्श निकलता
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वत्स, मनोज कुमार, та प्रमोद कुमार मौय. "‘‘वृद्धों की सामाजिक एवं आर्थिक समस्याओं के कारण एवं समाधान’’". Humanities and Development 18, № 02 (2023): 22–27. https://doi.org/10.61410/had.v18i2.138.

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Abstract:
हाल के दशकों में जहां एक ओर भारत में वृद्धो की जनसंख्या बढ़ी है वहीं दूसरे ओर नएप्रकार के मूल्य एव ं सम्बन्धां के प्रतिमान उभर रहे हैं। समय के साथ-साथ मानव प्रगति पथ पर बढ़ताजा रहा है। कहा जाता है परिवर्तन प्रकृति का नियम है परंतु मानव अपनी बौद्धिक क्षमता के सहारे सेअनेक परिवर्तन करता आ रहा है। नित नयी सुविधाएं जुटाना उसका लक्ष्य रहता है और उसकी यहलालसा उन्नति का कारण बनती है। आज मानव उन्नति के उस शिखर पर पहुंच चुका है जहां सेविकास की गति को पंख लग गए हैं। विकास की गति अधिक तीव्र हा े गई है शिक्षा का प्रचार प्रसारतेजी से हो रहा है, शिक्षा से प्राप्त ज्ञान के कारण मानव का रहन-सहन, खान-पान एवं सोच
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गुर्वेन्द्र, गायत्री, та अमृत गुर्वेन्द्र. "ऊँ उच्चारण एवं नाड़ीशोधन प्राणायाम का विद्यार्थियों के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव का अध्ययन". Dev Sanskriti Interdisciplinary International Journal 5 (15 січня 2015): 42–45. http://dx.doi.org/10.36018/dsiij.v5i0.55.

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Abstract:
प्रस्तुत शोध का मुख्य उद्देश्य ऊँ उच्चारण एवं नाड़ीशोधन प्राणायाम का विद्यार्थियों के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन है। इस अध्ययन में प्रयोगात्मक एवं नियंत्रित समूह अभिकल्प का प्रयोग किया गया। क्रमबद्ध प्रतिचयन विधि द्वारा गायत्री विद्यामंदिर, नीमच (म. प्र.) से 11 से 15 वर्ष की आयु के 60 विद्यार्थियों का चयन किया गया। जिनमें 30 विद्यार्थियों को प्रयोगात्मक समूह तथा 30 विद्यार्थियों को नियंत्रित समूह में रखा गया। आंकड़ों के संग्रहण मानसिक स्वास्थ्य मापनी द्वारा किया गया। प्रयोगात्मक समूह को एक माह तक प्रतिदिन सुबह 30 मिनट ऊँ उच्चारण एवं नाड़ीशोधन प्राणायाम का अभ्यास कराया गया। सां
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Bhole, R.V. "जुआन चीत्कार : एक विश्लेषण". Journal of Research & Development 16, № 5 (2024): 95–96. https://doi.org/10.5281/zenodo.11191307.

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Abstract:
&nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; डॉ. यशोदानाथ झाक जन्म मधुबनी जिलाक ग्रामरत्न सरिसब-पाही स्थित पलिवार महिषी मूलक वत्सगोत्रीय श्रोत्रिय ब्राह्मण पण्डित धरानाथ झाक प्रपौत्र, सुकवि पण्डित गणनाथ झाक पौत्र, कवि पण्डित आनन्दनाध झाक पुत्रक रुपमे छओ जून 1944 ई. में भेल छलनि । यशोदा बाबूकः जन्म ओहि परिवारमे भेल छलनि जे &lsquo;झा परिवार&rsquo; मिथिला के कहए, देशसे बाहर विदेशोमे अपन विद्वताक हेतु पूजित-सम्मानित होइत रहैत छल, देश-विदेशकेर विश्वविद्यालयमे बेर-बेर एहि परिवारक चर्चा होइत रहत छल। ओहि परिवारक चर्च करैत डॉ. जगदीश मिश्र लिखने छथि- &ldquo; कवि डॉ. यशोदानाथ झाजीक पितामह पाँच भाइ । पाँचो एकसँ बढ़ि एक सर
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सिंह, योगेन्द्र, та अमल के, दत्ता. "दृष्टिवैषम्य पर योगाभ्यास के प्रभाव का अध्ययन". Dev Sanskriti Interdisciplinary International Journal 5 (15 січня 2015): 31–35. http://dx.doi.org/10.36018/dsiij.v5i0.53.

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Abstract:
प्रस्तुत शोध का उद्देश्य कुछ चयनित यौगिक क्रियाओं का दृष्टिवैषम्य पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए 20-35 आयु वर्ग के उ0प्र0 के फिरोजाबाद जिले से आकास्मिक प्रतिचयन विधि द्वारा 20 पुरूष प्रयोज्यों का चयन किया गया। चयनित प्रयोज्यों में दृष्टिवैषम्य को जाँंचने के लिए कैरेटोमीटर नामक उपकरण का प्रयोग किया गया। यह उपकरण आँख में उपस्थित काॅर्निया के कर्वेचर का मापन करता है। 90 दिनों तक प्रतिदिन 1 घण्टा 30 मिनट जल नेति, सूत्रनेति, चक्षु संयम, प्राणायाम एवं मुद्रा एक यौगिक पैकेज के रूप में दिए गये। इस शोध में ’पूर्व-पश्चात् परीक्षण एकल समूह’ शोध अभिकल्प का प्रयोग किया गया ए
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मिश्र, नित ेश क. ुमार. "दक्षिण का ेसल क्ष ेत्र म ें म ूति र्कला का उद ्भव एव ं विकास". Mind and Society 8, № 01-02 (2019): 60–63. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-81-2-201910.

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Abstract:
प्राचीन भारत में प्रतिमा तथा मूति र् निर्माण की पर ंम्परा अत्यंत प्राचीन है हड ़प्पा सभ्यता की कला विश्व प्रसिद्ध है। इसके बाद ए ेतिहासिक काल के विभिन्न राजवंशों यथा मौर्य, शुंग, कुषाण, सातवाहन तथा गुप्त आदि न े कला को खूब पुष्पित एव ं पल्लवित किया। पूर्व मध्य कालीन मूति र्कला एव ं प्रतिमा निर्माण की द ृष्टिकोण से दक्षिण कोसल अति विशिष्ट रहा है यहॉ पर शासन करन े वाले शरभपुरिय, पाण्ड ुवंशी, सोमवंशी तथा कल्चुरि राजवंशों न े इस क्षेत्र में कला का अभूतपूर्व विकास किया। इस क्षेत्र में यदि प्रतिमा कला की प्राचीनता की बात कर े तो मल्हार से प्राप्त द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व की चत ुर्भुजी विष्णु की प्र
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चन्द्राकर, पूर्णेन्द्र, та केवल राम चक्रधारी. "योगाभ्यास का अनाथ किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन". Sahitya Samhita 9, № 8 (2023): 5–13. https://doi.org/10.5281/zenodo.8394731.

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Abstract:
<strong>पृष्ठभूमि-</strong>&nbsp;संसार में प्रत्येक बच्चा अपने माता-पिता के प्रेम व स्नेह का अधिकारी होता है,&nbsp;परन्तु बहुत से बच्चे इस प्रेम-स्नेह व अपनेपन को प्राप्त नहीं कर पाते हैं,&nbsp;ऐसा इसलिए है कि या तो वे माता-पिता से बिछुड़ गए हैं,&nbsp;माता-पिता की मृत्यु हो गई हो या माता-पिता द्वारा परित्याग कर दिया गया हो। जिसने अपने एक या दोनों माता-पिता को मृत्यु से खो दिया हो। अनाथ शब्द ऐसे बच्चों के लिए उपयोग किया जाता है और ऐसे बच्चों को माता-पिता से दूर हो जाने के कारण मानसिक स्वास्थ्य सबंधित&nbsp;&nbsp;अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता हैA <strong>उद्देश्य-</strong>&nbsp;प्रस्तुत शोध
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चक्रधारी, केवल राम, та विजय कुमार सिंह. "यौगिक अभ्यासों का दृश्टिहीन विद्यार्थियों के भावनात्मक बुद्धिमत्ता स्तर पर प्रभाव". Dev Sanskriti Interdisciplinary International Journal 8 (31 липня 2016): 30–35. http://dx.doi.org/10.36018/dsiij.v8i0.85.

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Abstract:
प्रस्तुत षोध अध्ययन में यौगिक अभ्यासों का दृश्टिहीन विद्यार्थियों के भावनात्मक बुद्धिमत्ता स्तर पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन किया गया। इस षोध की पूर्ति के लिए छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले के दृश्टि एवं श्रवण बाधित विद्यालय से उद्देष्यपूर्ण प्रतिचयन विधि द्वारा 30 दृश्टिहीन विद्यार्थियों का चयन किया गया। प्रयोज्यो को 3 महीनो तक प्रतिदिन 50 मिनट प्रज्ञायोग व्यायाम, नाड़ीषोधन प्राणायाम, ओ३म् उच्चारण एवं नादयोग साधना का अभ्यास कराया गया। भावनात्मक बुद्धिमत्ता स्तर को मापने के लिए ए. के. सिंह एवं श्रुति नारायन द्वारा निर्मित‘ भावनात्मक बुद्धिमत्ता स्केल‘ का प्रयोग किया गया। इस षोध में ‘एकल समूह पूर्व-पष
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Nayak, Sushanth. "'पांयजणां': काव्यशास्त्रीय चिकित्सा". MJES Journal of Amar Konkani 1, № 2 (2021): 90–102. https://doi.org/10.69852/aloy.mjesjak.1.2/17836/.

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Abstract:
बाकीबाब बोरकार, मराठी आनी कोंकणी साहित्याच्या मळा वयलो एक सिद्धहस्त लेखक. कोंकणी मळार ताची महती कविवर्य म्हूण आसली तरी ह्या प्रकारा वांगडाच हेर साहित्यप्रकार लेगीत तितल्याच समर्थपणान केळयल्यात. बाकिबाबाची कविता भोवआयामी. वेगवेगळ्या आशयांतल्यान गुंथून हाडिल्ली ताची कविता म्हणल्यार कोंकणी काव्याचें सौंदर्यस्थान. बाकीबाब आपले कवितेचो विचार वस्तुनिश्ठ भुमिकेंतल्यान करता. विशया कडेन आत्मनिश्ठ रावून केल्लो भावनांचो आविश्कार ताचे कवितेचें खाशेलपण. चित्रमय भास, प्रतिमांची अनुभुती आनी भावनांची वलसाण हे घटक ताचे कवितेच्या आस्वादकाक परमोच्च कोटीचो अणभव दितात. हींच तत्वां ताच्या दोनूय काव्यसंग्रहांतल्यान
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प्रणय, शर्मा. "त्रिवेणी संग्रहालय, उज्जैन, मध्य प्रदेश की शाक्त दीर्घा में प्रदर्शित सप्तमातृकाओं की मूर्तियों का विश्लेषणात्मक अध्ययन". International Journal of Contemporary Research in Multidisciplinary 4, № 1 (2025): 22–26. https://doi.org/10.5281/zenodo.14673854.

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Abstract:
यह शोध पत्र मध्य प्रदेश के उज्जैन स्थित त्रिवेणी संग्रहालय की शाक्त दीर्घा में प्रदर्शित सप्तमातृकाओं की मूर्तियों का विश्लेषणात्मक अध्ययन प्रस्तुत करता है। सप्तमातृकाएं भारतीय धर्म, संस्कृति, और कला में गहरे धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व की प्रतीक हैं।&nbsp; इस अध्ययन में इन मूर्तियों के शिल्प, प्रतिमा विज्ञान, और उनके धार्मिक-सांस्कृतिक प्रतीकात्मकता का गहन विवेचन किया गया है। शोध में इन प्रतिमाओं की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, शैलीगत विशेषताओं, और उनकी निर्माण-प्रक्रिया पर चर्चा की गई है। मूर्तियों के प्रतीकात्मक स्वरूप, उनके आभूषण, मुद्राओं, और अन्य कलात्मक तत्वों का विश्लेषण करते हुए यह अध्ययन उनकी
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प्रा., डॉ. देविदास ग्यानुजी नरवडे. "भारतीय लोकशाही आणि संविधानिक नैतिकता". 'Journal of Research & Development' 14, № 23 (2022): 35–38. https://doi.org/10.5281/zenodo.7524381.

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Abstract:
स्वातंत्र्य प्राप्तीनंतर 26 जाने.1950&nbsp; साली भारताने आपली स्वत:ची राज्यघटना अंमलात आणण्यास सुरुवात केली. तेव्हापासून आजतागायत आपण संसदिय लोकशाही हे प्रतिमान राबवत आहोत. धर्मपिरपेक्ष प्रजाकसत्ताक, उदारमतवादी, समाजवादी लोकशाहीचे प्रारुप आपण स्वीकारले आहे. लोकांनी, लोकांकडून, लोकांसाठी असलेली लोकशाही आपण संविधानाच्या माध्यमातून स्वत: प्रत अर्पण केली आहे. यात लोककल्याणाचा कल्याणकारी राज्य स्थापन करण्याचा संकल्प आहे. लोकशाही ही केवळ एक राजकीय प्रणाली नसून सामाजिक जीवनाची प्रक्रिया आहे<sup>1</sup>. &nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; भारतीय सामाजिक व्यवस्था ही वर्ण
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Dr, Madhu Shree. "आधुनिक समय में प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली की प्रासंगिकता". International Journal of Scientific Development and Research 9, № 9 (2024): 389–96. https://doi.org/10.5281/zenodo.13998003.

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Abstract:
*सारांश:* प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली, जो वैदिक युग में निहित थी, ने समग्र विकास, आध्यात्मिक उन्नति और सामाजिक जिम्मेदारी पर जोर दिया। यह शोध पत्र आधुनिक समय में इस प्रणाली की प्रासंगिकता का अन्वेषण करता है, इसके समकालीन शैक्षिक लक्ष्यों और मूल्यों के साथ इसके संरेखण को उजागर करता है। हम गुरु-शिष्य परंपरा, आत्म-अनुशासन और अनुभवात्मक शिक्षा जैसे प्रमुख सिद्धांतों की जांच करते हैं और वर्तमान शैक्षिक चुनौतियों का समाधान करने की उनकी क्षमता का विश्लेषण करते हैं। हमारा विश्लेषण बताता है कि प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली आधुनिक शिक्षा के लिए मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करती है, महत्वपूर्ण सोच, रचना
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तिवारी, डी पी, та अनुष्का ओझा*. "देवमार्कण्डेय की देव प्रतिमाएँ". Humanities and Development 17, № 1 (2022): 5–18. http://dx.doi.org/10.61410/had.v17i1.33.

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Abstract:
देवमार्कण्डेय नामक पुरास्थल बिहार के रोहतास जनपद की विक्रमगंज तहसील से पूरब दिशा में 30 किलोमीटर की दूरी पर 250 7’ 39’’ उत्तरी अक्षांश तथा 840 19’ 26’’ पूरबी देशांतर पर स्थित है। इस स्थल पर इटिम्हा बाजार या नासिरी गंज से होकर पूकर्् की सड़क से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी तय करके पहुँचा जा सकता है। इसके नामकरण के विषय में एक धारणा है कि ऋषि मार्कण्डेय यहां रहते थे और उन्होंनें कलियुग में इस स्थल पर एक मंदिर का निर्माण किया था इसलिए इसे उनके नाम पर देवमार्कण्डेय के रूप में जाना जाता है।
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Dr., Rajeev.P.P. "वैयाकरणमतमनुसृत्य प्रतिभास्वरूपविचारः ('Pratibha' According to Grammarians)". Kiraṇāvalī XIV, № 3&4, JULY- DECEMBER 2022 (2022): 329–33. https://doi.org/10.5281/zenodo.7905757.

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Abstract:
भारतीयकाव्यशास्त्रकारैः काव्यरचनायाः प्रतिभा, व्युत्पत्तिः, अभ्यासश्च इति त्रयो हेतवः उक्ताः।&nbsp; सहजा, उत्पाद्या इति द्वौ प्रतिभाभेदौ स्तः इति रुद्रटाचार्यः अभिप्रैति। रुद्रटाचार्यस्याभिप्रायमङ्गीकुर्वता हेमचन्द्रेणापि उत्पाद्या, औत्पादिकी इति भेदौ प्रदर्शितौ। राजशेखरस्य मते प्रतिभायाः प्रथमं द्वौ भेदौ स्तः- कारयित्री प्रतिभा, भावयित्री प्रतिभा च। एतयोः कारयित्री प्रतिभा- सहजा, आहार्या, औपदेशिकी इति त्रिविधा भवन्ति।। वैयाकरणानां मते प्रतिभा नाम वाक्यार्थः भवति। प्रतिभाद्वारा पदानि वाक्यानि च सफलानि भवन्ति। इयं प्रतिभा स्वसंवेदनसिद्धा चेदपि अन्यान् प्रति &lsquo;इदं तदित्येवम्&rsquo; इति आख्य
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श्रीमती, आरती शर्मा शोधार्थी जीवाजी विश्वविद्यालय डॉ. जितेन्द्र शर्मा प्राचार्य प.श्यामाचरण उपाध्याय महाविद्यालय मुरैना. "चंदेरी संग्रहालय में संरक्षित विष्णु प्रतिमाएँ". International Educational Applied Research Journal 09, № 05 (2025): 207–16. https://doi.org/10.5281/zenodo.15571036.

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Abstract:
Abstractभगवान् विष्णु को अपना प्रधान द्रष्ट देव और परमात्मा के रूप में मानने वाले भक्त वैष्णव कहे गये तथा इससे सम्बन्धी धर्म-दर्शन और सिद्धांत वैष्णव धर्म के रूप में प्रख्यात हुआ। विष्णु वैदिक देवता हैं जिनका प्रभाव धीरे-धीरे बढ़ता गया। वैष्णव धर्म में विष्णु सम्बन्धी वैदिक सूक्त और आख्यान निहित है। ऋग्वेद में देवताओं के ऐश्वर्य, पराक्रम. विस्तार आदि के अतिरिक्त उपनिषदों के ज्ञान और सिद्धान्त का भी समावेश इस धर्म में हुआ है।याज्ञिक कर्मकाण्ड के स्थान पर भक्ति और उपासना पर विशेष बल दिया गया। वैष्णव साधक की दृष्टि में यह विशाल विश्व उस ऐश्वर्यशाली विष्णु की ही शक्तियों की अनेकानेक अभिव्यक्ति हैं
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Soni, Jitendra Kumar. "Gandhian Development Model: Usefulness and Possibilities." RESEARCH HUB International Multidisciplinary Research Journal 9, no. 4 (2022): 01–09. http://dx.doi.org/10.53573/rhimrj.2022.v09i04.001.

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Abstract:
Terming the concept of development propounded by Gandhi as irrelevant in the environment of liberalization and privatization of the economy, political thinkers, economists and pro-Western sociologists said that to follow the Gandhi path, we have to go backwards while we are determined to move forward. In such a situation, now these thinkers will have to reconsider that the direction in which they are talking about growing is standing on the verge of destruction due to widespread pollution, exploitation, inequality, marketism and arms race. The reality is that after the fall of the communist mo
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Batham, Khushboo, та Kumkum Bhardwaj. "उज्जैन विक्रम कीर्ति मंदिर संग्रहालय में संग्रहीत परमारकालीन पार्वती प्रतिमाओं का रूपांकन". ShodhKosh: Journal of Visual and Performing Arts 3, № 1 (2022): 489–97. http://dx.doi.org/10.29121/shodhkosh.v3.i1.2022.135.

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Abstract:
प्रस्तुत शोध पत्र में उज्जैन के कीर्ति मंदिर संग्रहालय में संग्रहीत परमारकालीन पार्वती प्रतिमाओें का रूपांकन पर संक्षिप्त शोध कार्य प्रस्तुत किया गया है। जिसमे परमारकालीन शिल्पकारो द्वारा किये गये उत्कृष्ट पार्वती प्रतिमा निर्माण कार्य का वर्णन किया गया है। साथ ही इस शोधपत्र में उज्जैन के विभिन्न नामो, उसके महत्त्व तथा भौगोलिक स्थिति का वर्णन किया गया है। साथ ही देवी के नामकरण तथा रुप का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया गया है। इस शोधपत्र में संग्रहालय में संग्रहीत पार्वती प्रतिमाआंे का चित्रगत वर्णन करा गया है। जिसका उद्देश्य परमारकालीन पार्वती प्रतिमा के रुप सौन्दर्य को जन-जन तक पहुचना है।
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भट्टराई Bhattarai, टंकप्रसाद Tanka Prasad. "“मेरी सानी भतिजी प्रतिमा” कथामा आलोचनात्मक यथार्थवाद { Critical realism in the story “Meri Sani Bhatiji Pratima” }". Tribhuvan Journal 2, № 1 (2023): 117–24. http://dx.doi.org/10.3126/tribj.v2i1.60272.

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Abstract:
प्रस्तुत लेखमा रमेश विकलको ‘मेरी सानी भतिजी प्रतिमा’ कथाको विश्लेषण गरिएको छ । नेपाली साहित्यमा विकललाई प्रगतिवादी कथाकार मान्दै उनले लेखेका सबै कथाहरूलाई प्रगतिवादी दृष्टिकोणबाट अध्ययन विश्लेषण गर्ने परम्परा बसेको पाइन्छ । परन्तु प्रगतिवादी साहित्यले रचनामा जुन प्रकारको वर्गीय विभेदका विरुद्धमा विद्रोहको अपेक्षा गर्दछ त्यस प्रकारको विद्रोही चेतना यिनका कथाका पात्रहरूमा भेटिँदैन । विकलको मेरी सानी भतिजी प्रतिमा’ उनका कथामध्येको लोकप्रिय र चर्चित कथा मानिन्छ । प्रस्तुत कथामा समाजमा विद्यमान विभिन्न प्रकारका विभेदमध्येको लैङ्गिक विभेदलाई विषय बनाएको पाइन्छ । युगौँदेखि पितृसत्तात्मक समाजको प्रभाव
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श्रीमती, आरती शर्मा डॉ. जितेन्द्र शर्मा. "चंदेरी के प्रतिहार शासक और उनका शासन प्रबंध". International Educational Applied Research Journal 09, № 05 (2025): 200–206. https://doi.org/10.5281/zenodo.15571000.

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Abstract:
Abstractचंदेरी क्षेत्र के पुरातात्विक सर्वेक्षणों से प्राप्त जानकारी के अनुसार इस क्षेत्र की प्राचीनता पाषाण काल तक जाती हैं। श्री टीबीजी शास्त्री एवं सीबी त्रिवेदी ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अंतर्गत किये शोध कार्यों से इस क्षेत्र की प्राचीनता के विषय में जानकारी मिलती है। किन्तु राजनैतिक इतिहास सम्बंधी जाकारी का अभाव देखने को मिलता है। इतिहासकारों ने प्राचीन 18 जनपदों में वर्णित चेदि जनपद को चंदेरी कहने का प्रयास किया है। ऋग्वेद में वर्णित है कि चेति देश के निवासियों एवं यहाँ के राजा कसुचेद्य ने ब्रह्मतिथि नामक ऋषि को 100 ऊँट एवं सहस्त्र गाय देने का उल्लेख है। जबकि प्रो. रैप्सन के अनुसार
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रीतू रानी та डॉ. निरुपमा हर्षवर्धन. "कमलेश्वर के उपन्यासों में नारी के संघर्ष की दिशाएँ". Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education 21, № 2 (2024): 37–38. http://dx.doi.org/10.29070/zbg0n777.

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Abstract:
कमलेश्वर के उपन्यासों में नारी के संघर्ष की यथार्थ दिशाओं का चित्रण प्राप्त होता है। कमलेश्वर के उपन्यासों में ग्रामीण, कस्बाई तथा महानगरीय नारी के विविध रूपों के साथ विभिन्न संघर्ष की दशाओं का चित्रण हुआ है। उन्होंने नारी को भारतीय आदर्श नारी की प्रतिभा से मुक्त कर यथार्थ की पृष्ठभूमि पर उतारा है। निम्न वर्ग से लेकर उच्च, मध्यवर्ग तक की महिलाओं के पारिवारिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनैतिक जीवन का वास्तविक चित्रण कमलेश्वर ने नारी के संघर्ष को दर्शाते हुए किया है। कमलेश्वर ने नारी को घर से लेकर समाज तक अपने अस्तित्व एवं सम्मान के लिए सदैव संघर्ष करने वाली स्त्री कहा है। कमलेश्वर का कहन
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D'Souza, Chandralekha. "अस्तित्त्ववाद, आयीन ऱ्यांड आनी हांव जियेतां". MJES Journal of Amar Konkani 3, № 2 (2024): 116–23. http://dx.doi.org/10.69852/aloy.mjesjak.3.2/16338.

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Abstract:
असतित्ववाद 1984 वरसा फायस जाल्ल्या फ्योदोर दोसतोयव्हसकी हाच्या "नोटस फ्रोम अंडरग्रौंड" ग्रंथांत उदेवन आयलो. त्या उपरांत Jean-Paul Sartre, Albert Camus, Samuel Beckett, Jeanette Winterson, Iris Murdoch, हाणीं आपापल्या साहित्यांत असतित्ववाद प्रतिपादन केल्लो आसा. असतित्ववाद वेयुक्तीक स्वातंत्र, कर्तव्य आनी अर्थाचो सोद हांचेर भर दिता. धर्म वा सामाजीक नेमांच्याकयी चड विंचवणे मारिफात वेकती आपलीं मोलां आनी महत्व रचून घेता - म्हळ्ळें प्रतिपादन करता असतित्ववाद. असतित्ववाद परकिपण, आकांत, प्रामाणिकपह्वण आनी मनशाच्या असतित्वाच्या विसंगतिंक खोलायेन विशलेषण करचें असतित्ववाद, व्यक्तिंचेर पूर्व निरधरीत अर्थ ल
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वाग्ले, महेन्द्र. "नेपाली कथाको इतिहास, प्रमुख धारा, प्रतिभा र प्रवृत्ति". Voice: A Biannual & Bilingual Journal 16, № 1 (2024): 154–67. http://dx.doi.org/10.3126/voice.v16i1.67428.

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Abstract:
नेपाली साहित्यका प्रमुख चार विधा कविता, आख्यान, निबन्ध र नाटक रहेका छन् । तीमध्ये आख्यानअन्तर्गत कथा रहेको छ । यस लेखमा कथाको विकासक्रम, प्रमुख धारा र प्रवृत्तिहरूलाई पहिल्याउने उद्देश्य राखिएको छ । यसमा अध्ययनको विषय नेपाली कथाको इतिहास भएको हुनाले यसलाई ऐतिहासिक अध्ययन पद्धतिका आधारमा कालखण्डहरूको विभाजन गरी कथाको विकासमा देखिएको मोडहरू र त्यस मोडमा रहेका प्रमुख प्रतिभा, प्रवृत्ति तथा धारागत पहिचान गरिएको छ । नेपाली कथाको विकासक्रमको समयावधि निश्चित गर्न र त्यसको वैधताका लागि नेपाली साहित्यको इतिहाससँग सम्बद्ध पुस्तकहरू र नेपाली कथासाहित्यसँग सम्बन्धित पुस्तकहरूलाई आधार बनाइएको छ । नेपाली कथ
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डॉ., अशोक बाबुराव जाधव. "राजर्षी शाहू महाराज आणि लोकमान्य टिळक यांची वेदोक्त प्रकरणातील भूमिका". International Journal of Advance and Applied Research 10, № 6 (2023): 201–5. https://doi.org/10.5281/zenodo.8344492.

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वेदोक्त प्रकरण हे छत्रपती शाहू महाराजांपूरते नव्हते, तर बहुजनांच्या धार्मिक, सामाजिक,राजकीय, आर्थिक जडणघडणीच्या दृष्टीने महत्त्वाचे होते. छत्रपती शाहू महाराजांनी वर्णव्यवस्थेने दिलेले वेदोक्ताचे अधिकार मिळवण्यासाठी ब्राह्मणांच्या मक्तेदारीला आव्हान देवून जातीभेद आणि वर्णभेद नष्ट करण्यासाठी लढा दिला. या प्रकरणात लोकमान्य टिळकांची प्रतिमा महाराष्ट्रातील सनातनवाद्यांचे पुढारी किवा धर्मरक्षक अशी होती हे प्रकरण चिघळण्यास लोकमान्य टिळक कारणीभूत होते.
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GULERIA, JANMAJAY SINGH. "काँगड़ा की लोकगाथाओं में स्त्री शोषण व प्रतिकार के स्वर". Swar Sindhu 7, № 2 (2019): 47–52. http://dx.doi.org/10.33913/ss.v07i02a08.

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राजेंद्र, कुमार डोडिया. "विरूपाक्ष महादेव मन्दिर बिलपांक की दैव प्रतिमाओं का कलात्मक सौन्दर्य". International Journal of Research - Granthaalayah 7, № 11(SE) (2019): 257–60. https://doi.org/10.5281/zenodo.3592636.

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Abstract:
विरूपाक्ष महादेव मन्दिर मध्य प्रदेश के रतलाम जिले के ग्राम बिलपांक में स्थित हैं, जो कि रतलाम के दक्षिण में 16 किलोमीटर दूर व रतलाम इन्दौर मुखय मार्ग से 02 किलोमीटर दूर व पूर्व की ओर बसा है। यह लिंग अभी भग्नावस्था में है, गर्भगृह के अन्दर चार अलंकृत खम्बों से युक्त मण्डप है, इन स्तम्भों पर वितान अवस्थित है। वितान के निचले भाग में आठ टोढ़े हैं, जिनके ऊपर सुर-सुन्दरियों की मूर्तियाँ रही होंगी। वर्तमान में इन टोढ़ों पर कोई भी प्रतिभा स्थित नहीं है किन्तु गर्भगृह के उतरी टोढ़े के ऊपर दो ब्रेकेट हैं जिनमें से प्रत्येक पर सुर-सुन्दरियों की प्रतिमायें अवस्थित है जो कि भग्नावस्था में है। गर्भगृह द्वार
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पात्रः, डा. कृष्णगोपाल. "काव्यकारणविमर्शः". Kiranavali XV, № I-IV (2023): 251–56. https://doi.org/10.5281/zenodo.10643280.

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Abstract:
कविकर्म काव्यमित्युच्यते। विना कारणं न किमपि जायते जगत्यस्मिन्। काव्यसंरचनमपि नूनं किञ्चित् कार्यम्। अतः काव्यस्य निर्मितौ प्रसृतौ वा किमपि कारणं स्यादेव इति जिज्ञासमानाः समीक्षकाः तत्कारणत्वेन नैकविधानि मतानि समुपस्थापयन्ति। प्रतिभा एव काव्यकारणमित्यत्र भूयांसो विद्वांसः मतिदायकाः। प्रतिभा व्युत्पत्तिः अभ्यासश्चेति त्रयाणां समुदायः एव A केचन आलङ्कारिकाः साधयन्ति। प्रतिभाभावेऽपि भगवत्कृपाप्रभृतिकारणैः क्वचित् काव्यं जायते इत्यपि केचन सिद्धान्तयन्ति। प्रायः सर्वेऽपि समालोचकाः एषु किञ्चित् मतं स्वराद्धान्तत्वेन गतार्थयन्ति। तत् कतमं मतं सिद्धान्तयितुं योग्यम्, कतमं वा तत् सर्वजनग्राह्यमित्यादयः
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डॉ., सुषमा जैन. "परमारवंशीय कला". International Journal of Research - Granthaalayah 4, № 12 (2016): 242–46. https://doi.org/10.5281/zenodo.574870.

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Abstract:
नवीं सदी ई. के पूर्वार्द्ध में मालवा मे एक नवीन राजवंश का उदय हुआ जो परमार राजवंश के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस वंश का सर्वप्रथम राजा उपेन्द्र माना जाता है। उसने अपना जीवन राष्ट्रकूट अथवा गुर्जर प्रतिहारों के सामन्त के रूप में आरंभ किया। उपेन्द्र का उत्राधिकारी पुत्र वैरिसिंह प्रथम था। उसके शासन काल की कोई भी घटना ज्ञात नहीं है। वैरिसिंह का उत्तराधिकारी सीयक प्रथम था। पद्मगुप्त वैरिसिंह और सीयक प्रथम का नामोल्लेख नहीं करता इससे अनुमान होता है कि, ये दोनों साधारण योग्यता के सामन्त शासक थे। सीयक प्रथम की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र वाक्पति प्रथम राजा हुआ। डॉ. गांगुली के मतानुसार इसने अपने स्वामी र
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