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Journal articles on the topic 'प्रेरणा'

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सिंह, मृदुल कुमार. "प्राथमिक विद्यालयों के सन्दर्भ में ‘शिक्षा का अधिकार’ अधिनियम (2009) में चिन्हित आधारभूत शैक्षिक संरचना का अध्ययन". SCHOLARLY RESEARCH JOURNAL FOR INTERDISCIPLINARY STUDIES 10, № 73 (2022): 17548–54. http://dx.doi.org/10.21922/srjis.v10i73.11654.

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Abstract:
भारतीय परम्पराओं के अनुसार परिवार प्राथमिक शिक्षा के केन्द्र होते हैं। माता बालक की सर्वप्रथम गुरू मानी जाती हैं जो बालक को शुभ संस्कारों की प्रेरणा देकर उसके व्यवहार को सामाजिकता प्रदान करती हैं। पिता भी माता के पश्चात् गुरु का कार्य करता हैं जो उसे शुभ कार्य की प्रेरणा देकर सदाचार के लिए प्रेरित करता हैं, यही से बालक की औपचारिक शिक्षा प्रारम्भ होती है।
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डॉ., रावसाहेब पिराजी इंगळे, та विजय नागोराव भोपाळे डॉ. "गांधीवाद: एक शास्वत विकासाची प्रेरणा". उदयगिरी - बहुभाषिक इतिहास संशोधन पत्रिका 01, № 04 (2023): 663–66. https://doi.org/10.5281/zenodo.10279087.

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Abstract:
महात्मा, बापू, राष्ट्रपिता या संबोधनाने महात्मा गांधी यांना आज जगभर ओळखले जाते. सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह इत्यादी नैतिक मूल्यांच्या आधारावरच महात्मा गांधी यांनी भारताला ब्रिटिशांच्या गुलामगिरीतून मुक्त केले. गांधी यांनी धर्म, अर्थकारण, राजकारण अथवा एकूण जीवनाचे जे तत्त्वज्ञान मांडले, त्यात त्यांनी अर्थशास्त्र आणि नीतीशास्त्र यांना एकत्रित केले आहे. गांधी असे म्हणतात की, आर्थिक जीवनावर नीतीशास्त्राचा प्रभाव नसेल तर भौतिकवादाच्या अतिरेकामुळे राष्ट्रीय कल्याण साधता येणार नाही. असे प्रभावी विचार महात्मा गांधी यांनी मांडले. त्यांचे विचार चिरंतन, शास्वत असेच आहेत, असे म्हणता येईल.
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3

शर्मा Sharma, मुकुन्द Mukunda. "रूपन्देही जिल्लाका थारू समुदायमा प्रचलित सीताविवाह {Sitavivah practiced in the Tharu community of Rupandehi district}". Cognition 7, № 1 (2025): 230–41. https://doi.org/10.3126/cognition.v7i1.74799.

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Abstract:
प्रस्तुत आलेख रूपन्देही जिल्लाका थारू समुदायमा प्रचलित सीताविवाह लोकनाटकको प्रचलन, प्रेरणा, प्रभाव र कथास्रोत तथा प्रस्तुति विधानका बारेको अध्ययनमा केन्द्रित छ । नेपालका विभिन्न समुदायमध्ये हालको बसाइँसराइको अवस्थाबाहेक तराई र भित्री मधेश भूभागमा बसोबास गर्नेमा थारू समुदाय मुख्य पर्दछ जसको आफ्नै भाषा, संस्कृति, रीतिरिवाज, परम्परा, साहित्य र लोकसाहित्य छ । रूपन्देही जिल्लामा पनि यस समुदायको बसोबास रहेको छ । लोकसाहित्यिक विधामा सम्पन्न मानिने यस समुदायमा लोकसाहित्यका लोकगीत, गाथा, कथा, उखान, टुक्का, पहेली आदि रहे जस्तै लोकनाट्य विधा पनि प्रचलित देखिन्छ । यस्ता नाटकका विषय ऐतिहासिक, पौराणिक र लोक
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4

बिटाळ, श्री. लक्ष्मण बाजीराव. "आत्मपर साहित्य संकल्पना व स्वरूप". International Journal of Advance and Applied Research 11, № 1 (2023): 320–23. https://doi.org/10.5281/zenodo.10250354.

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Abstract:
<strong>प्रास्ताविक :</strong>मराठी भाषेमध्ये कथा, कादंबरी, चरित्र आणि आत्मचरित्र हे कथनात्मक वाड्मयप्रकार आहेत. कथा, कादंबरीच्या लेखनासाठी कल्पित कथानक तयार करावे लागते. आत्मपर लेखनात मात्र कल्पकतेला वाव नसतो. लेखक स्वतः आयुष्यभर जे जगला, त्याने जे दुःख अनुभवले, जो संघर्ष केला, जे कर्तृत्त्व संपादीत केले ते सांगण्यासाठी तो आत्मपर लेखनाची निवड करतो. आत्मचरित्रपर लेखनामागे आत्माविष्काराची प्रेरणा, आत्मजीवनाच्या अर्थपूर्णतेची अभिज्ञा, स्वानुभवातील निवडीची दृष्टी आणि लेखनशैली विषयक भान अशा गोष्टी प्रेरक असतात. तसेच ऐतिहासिक साहित्यकृती प्रमाणे विशिष्टतेकडून सामान्यत्वाकडे जाण्याची क्षमता त्यात अस
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5

Talekar, P. R. "सत्यशोधक समाजसुधारक कै. आत्माराम मुकुंद महाजन". International Journal of Advance and Applied Research 5, № 18 (2024): 80–83. https://doi.org/10.5281/zenodo.11655659.

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Abstract:
&nbsp;महाराष्ट्र संत, महात्मे आणि समजसुधारकांची भूमी आहे. प्रामुख्याने महात्मा ज्योतिराव फुले यांची प्रेरणा घेऊन, आधुनिक विचारांनी भारावलेल्या तरुणांनी ब्रिटिशांच्या अन्यायी राजवटी विरुद्ध, तसेच समाजातील अन्याय व अनिष्ठ चालीरीती विरुद्ध वाचा वाचा फोडण्यासाठी 20 व्या शतकाच्या सुरुवातीपासूनच संघटना स्थापन करून सामाजिक समस्यांना वाचा फोडण्यास सुरुवात केली. या पासून महाराष्ट्रातील चंद्रपूर जिल्हादेखील अलिप्त राहू शकला नाही. आत्माराम मुकुंद महाजन यांनी चंद्रपूर जिल्ह्यातील परीसरात महात्मा ज्योतिराव फुले यांची प्रेरणा घेऊन समजसुधारणेचे महान कार्य केले आहे. त्यांच्या या कार्यामुळे चंद्रपूर जिल्ह्यात
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ठाकुर, डॉ संगीता वेदप्रताप सिंह. "साहित्य और सामाजिक परिवर्तन के लिए नवाचार". International Journal of Advance and Applied Research 6, № 25(D) (2025): 46–48. https://doi.org/10.5281/zenodo.15332384.

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Abstract:
<strong>सारांश</strong> "आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है।" मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है समाज में रहकर ही वह अपना विकास करता है l इसलिए मनुष्य समाज का एक अभिन्न अंग है, समाज के बिना मनुष्य का कोई अस्तित्व नहीं है ,इसीलिए उसे सामाजिक प्राणी कहा जाता है l उसकी संपूर्ण विकास समाज में ही संभव है&nbsp; l सामाजिक मुद्दों को सुलझाना हमेशा से ही वैज्ञानिक प्रगति के पीछे की प्रेरणा रही है। वह सब कुछ जो हमें मानव बनाता है - हमारी करुणा, जिज्ञासा और बुद्धिमत्ता - हमें अपने समुदायों को मजबूत करने के लिए प्रेरित करती है। पिछली शताब्दी में, हमारे जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने वाले तकनीकी नवाचारों का विकास त
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Kamlesh Kumar та Dr. Yaspal Singh. "छात्र प्रेरणा तथा आत्मसम्मान पर माता-पिता की भागीदारी: एक विश्लेषणात्मक समीक्षा". International Journal of Multidisciplinary Research in Arts, Science and Technology 3, № 4 (2025): 26–30. https://doi.org/10.61778/ijmrast.v3i4.132.

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Abstract:
यह समीक्षा पत्र छात्र प्रेरणा तथा आत्मसम्मान पर माता-पिता की भागीदारी के प्रभावों का विश्लेषणात्मक अध्ययन प्रस्तुत करता है। शोध से यह स्पष्ट हुआ है कि अभिभावकों द्वारा अपनाई गई सक्रिय और सहायक भूमिका न केवल बच्चों की शैक्षणिक उपलब्धियों में सुधार करती है, बल्कि उनके आत्मसम्मान, मानसिक दृढ़ता एवं समग्र प्रेरणा में भी सकारात्मक परिवर्तन लाती है। विभिन्न सैद्धांतिक ढाँचों, शोध मॉडल और क्षेत्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय अध्ययनों के आधार पर यह पत्र यह दर्शाता है कि माता-पिता की सहभागिता, चाहे वह विद्यालय में हो या घर पर, छात्र की आंतरिक प्रेरणा को उजागर करने तथा आत्मसम्मान को सुदृढ़ करने में महत्वपूर्ण भू
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डॉ.लोखंडे, बी.बी. "स्वामी दयानंद सरस्वतीयांचे राजकीय विचार". International Journal of Advance and Applied Research S6, № 7 (2025): 84–88. https://doi.org/10.5281/zenodo.14784492.

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Abstract:
महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती हे 'आर्य समाजा' चे संस्थापक या नात्याने सर्वपरिचित असले तरी एक थोर मानवतावादी समाजसुधारक म्हणून ही त्यांचे श्रेष्ठत्व सर्वमान्य आहे. त्यांनी भारतीयांचा आत्म-सन्मान वाढविला. परकीयांच्या वैभवाने दिपून गेलेल्या भारतीयांच्या मनात त्यानी नवीन चेतना जागविली. परकीय साम्राज्यवादाच्या कालखंडात निष्प्रभ बनलेल्या भारतीयांना त्यांनी देशाच्या प्राचीन परंपरेची ओळख करून दिली. एकोणिसाव्या शतकातील सामाजिक आणि धार्मिक सुधारणा चळवळीमध्ये दयानंद सरस्वती आणि त्याचा आर्यसमाज हा एक लढाऊ आणि महत्त्वाचा टप्पा मानावा लागेल. मात्र त्यांच्या सुधारणांच्या प्रेरणा पाश्चिमात्य नव्हत्या. त्यांच्य
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Deepa Khare та Dr. Ramavtar. "शैक्षिक संस्थानों की ऑनलाइन शिक्षण विधियों की प्रभावकारिता पर छात्रों की राय". Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education 19, № 4 (2022): 748–53. https://doi.org/10.29070/46pjav58.

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Abstract:
शिक्षार्थी दृढ़ता से महसूस नहीं करते हैं कि ऑनलाइन सीखने से अकादमिक कार्यों को पूरा करने की उनकी क्षमता में सुधार होता है। आवश्यक आईसीटी कौशल प्राप्त करने पर ध्यान केंद्रित करने के शीर्ष पर, यह अनुशंसा की जाती है कि ऑनलाइन सीखने का उपयोग करने के लिए प्रेरणा के रूप में कार्य करने के लिए व्यक्ति की आत्म-प्रभावकारिता के स्तर को बढ़ाने के लिए उपयुक्त रणनीतियों को विकसित करने की आवश्यकता है। ई-लर्निंग सिस्टम का उपयोग जारी रखने के लिए, शिक्षार्थियों को एक अलग तर्क और मजबूत प्रेरणा की आवश्यकता होती है। ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह के समर्थन की तैनाती, ई-लर्निंग मैनुअल की शुरूआत से आत्म-प्रभावकारिता को
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लाल, मोहन. "अधिगम प्रक्रिया में विद्यार्थियों की उपलब्धि को प्रभावित करने में उपलब्धि अभिप्रेरणा की उपयोगिता का अध्ययन". INTERNATIONAL JOURNAL OF SCIENTIFIC RESEARCH IN ENGINEERING AND MANAGEMENT 09, № 07 (2025): 1–9. https://doi.org/10.55041/ijsrem51538.

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Abstract:
शिक्षण की प्रक्रिया शिक्षण अधिगम के द्वारा पूर्ण होती है। शिक्षक द्वारा जो शिक्षण प्रक्रिया अपनाई जाती है और छात्र उसके प्रति जो अनुक्रिया करते हैं उससे शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया संपूर्ण होती है। उपलब्धि अभिप्रेरणा का आधारभूत लक्ष्य उपलब्धि होता है। जब व्यक्ति उपलब्धि के लिए कोई कार्य करता है तो उसे उपलब्धि अभिप्रेरणा द्वारा प्रेरित माना जाता है। उपलब्धि अभिप्रेरणा से तात्पर्य एक ऐसे अभिप्रेरक से होता है जिससे प्रेरित होकर व्यक्ति अपने कार्य को इस प्रकार करता है कि उसे अधिक से अधिक सफलता मिल सके। प्रत्येक व्यक्ति उपलब्धि प्राप्त करने की भावना से प्रेरित होता है तथा कुछ न कुछ प्राप्त करने की इच
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Chauhan, Manorama. "ART MOVING ALONG THE PATH OF PROGRESS BY COMBINING RHYTHM STEP BY STEP." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 3, no. 1SE (2015): 1–2. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v3.i1se.2015.3443.

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Abstract:
“The first and direct relation of beauty is the experience of the eyes. When man first opened his eyes, he found himself in the lap of nature. Natural beauty was scattered all around. Water, waterfalls, animals and birds tweet, sheets covered Hari-Hari Vasundhara. Humans took inspiration from this natural beauty, decorated the birds and the flowing waterfalls, the sweet music of the air, and the dancing of the animals with a gentle gesture. With this inspiration, humans continued to expand civilization with arts. Today, it is on the path of progress with many new experiments through the though
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डॉ., पी. एस. लांडगे. "स्वामी दयानंद सरस्वती यांचे राजकीय विचार". International Journal of Advance and Applied Research S6, № 7 (2025): 34–36. https://doi.org/10.5281/zenodo.14770586.

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Abstract:
स्वामी दयानंद सरस्वती हे 19 व्या शतकातील एक महान भारतीय दार्शनिक, समाज सुधारक आणि आर्य समाजाचे संस्थापक होते. त्यांनी भारतीय समाजात व्याप्त अंधश्रद्धा, कुप्रथा आणि सामाजिक विषमतेविरुद्ध जोरदार लढा दिला. त्यांच्या विचारांनी भारताच्या स्वातंत्र्य संग्रामाला प्रेरणा दिली. <strong>&nbsp;</strong>
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Talekar, P. R. "डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर यांचे इतिहास विषयक दृष्टीकोन". International Journal of Advance and Applied Research 5 (30 травня 2024): 211–17. https://doi.org/10.5281/zenodo.12187593.

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Abstract:
डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर यांना असा विश्वास होता की, भारतातील इतिहासाच्या संकल्पना ऐतिहासिक तथ्ये आणि पुराव्यांवर आधारित आहेत ज्यात प्रामुख्याने शिलालेख, शिलालेख, नाणी, इमारती आणि पुरातत्वीय पुरावे यांचा समावेश आहे. त्याच पौराणिक पुराव्याच्या आधारे त्यांनी नवीन तथ्ये उघड केली ज्याकडे पूर्वीच्या इतिहासकारांनी दुर्लक्ष केले होते. डॉ. आंबेडकरांनी भारतीय इतिहासातील पारंपरिक संकल्पनांच्या विरोधात आपले नवे तथ्य मांडले. त्यांनी म्हटल्याप्रमाणे, साप शब्द घ्या, साप कोण होता? नागाचे वर्णन नाग किंवा नाग असे केले जाते, हे खरे असू शकते का? ते खरे असो वा नसो, असे मानले जाते.तर नागा या शब्दाचे दोन अर्थ आहेत-पाली
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पन्थी Panthee, महेन्द्रकुमार Mahendrakumar. "विश्वेश्वरप्रसाद कोइरालाको विविध साहित्यिक आयाम तथा योगदान { Arious Literary Dimensions and Contributions of Bishweshwar Prasad Koirala}". Pragyan 6, № 1 (2023): 103–12. http://dx.doi.org/10.3126/pragyan.v6i1.54713.

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Abstract:
प्रस्तुत लेखमा विश्वेश्वरप्रसाद कोइरालाको विविध साहित्यिक आयामका बारेमा चर्चा गरिएको छ । विश्वेश्वरप्रसाद कोइरालाको साहित्य लेखनको परिवेश, प्रेरणा र प्रभावको अध्ययन गरी उनको विधागत प्रवृत्ति र योगदानका बारेमा प्रकाश पार्नु यस लेखको मूल उद्देश्य रहेकोले कोइरालाको साहित्य लेखनको परिवेश, प्रेरणा र प्रभाव तथा विधागत प्रवृत्ति र योगदान केके हुन् ? भन्ने समस्यामा केन्द्रित रही अनुसन्धान कार्यलाई अगाडि बढाइएको छ । कोइरालाका मूल कृतिलाई प्राथमिक र कोइरालाका विभिन्न अन्तरबार्ता तथा उनका विषयमा अध्ययन–अनुसन्धानलाई द्वितीय स्रोतका रूपमा लिई पुस्तकालयीय प्रक्रियाद्वारा वर्णनात्मक र विश्लेषण विधिका माध्यमब
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भूपेन्द्र, सिंह. "महिलाओं एवं दलितों के उत्थान में मालवीय जी का योगदान". RECENT RESEARCHES IN SOCIAL SCIENCES & HUMANITIES 11, № 3 (2024): 51–55. https://doi.org/10.5281/zenodo.13997589.

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Abstract:
मदन मोहन मालवीय ने रचनात्मक कार्यों को इस प्रकार से हाथों में लिया कि समाज एक नई स्फूर्ति और प्रेरणा से भर उठा। मालवीय जी ने पत्रकारिता और साहित्य के माध्यम से समाज को प्रेरणा दी। समाज सुधार के क्षेत्र में उनका योगदान अतुलनीय है।&nbsp; हिन्दू समाज पर सबसे बड़ा संकट यह था कि दलित जातियों के अधिकांश लोग इस निश्चित आश्वासन पर मुसलमान और ईसाई होते चले जा रहे थे कि उन्हें वह सुविधाएं दी जाएंगी जो उन्हें हिन्दू होने के कारण हिन्दुओं से नहीं प्राप्त हो रही हैं। मालवीय जी अछूतों के प्रति दया की नहीं बल्कि श्रद्धा की भावना रखते थे और उनके साथ सद्व्यवहार करते थे। उन्हें समाज और देश दोनों की चिन्ता थी उन
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कुमार, नरेश, та आशुतोष राय. "एथलीटों की मनोवैज्ञानिक रूपरेखा: खेल भागीदारी के विभिन्न स्तरों पर एक समीक्षा". International Journal of Physical Education & Sports Sciences 18, № 2 (2023): 41–46. https://doi.org/10.29070/19pfvf40.

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Abstract:
यह समीक्षा विभिन्न प्रतिस्पर्धी स्तरों पर एथलीटों के मनोवैज्ञानिक लक्षणों-प्रेरणा, चिंता, आत्मविश्वास और लचीलापन- पर मौजूदा साहित्य की खोज करती है। कई अध्ययनों से पता चलता है कि मनोवैज्ञानिक तैयारी प्रदर्शन में एक निर्णायक कारक है, जो अक्सर कुलीन एथलीटों को उनके कम अनुभवी समकक्षों से अलग करती है। समीक्षा प्रारंभिक मनोवैज्ञानिक कंडीशनिंग की भूमिका और नियमित खेल कार्यक्रमों में मानसिक प्रशिक्षण के एकीकरण पर जोर देती है।
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प्रा., डॉ. रसाळ दशरथ किसन. "आंबेडकरी चळवळीतील वंचित कार्यकर्त्यांचे योगदान'' – एक अभ्यास". International Journal of Advance and Applied Research 3, № 5 (2022): 31–34. https://doi.org/10.5281/zenodo.7397356.

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Abstract:
<strong>प्रस्तावना - </strong> &nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; १८ व्या व १९ व्या शतकापासून आपल्या अस्तित्वासाठी या देशात अनेक चळवळी झाल्या. त्यात काही चळवळी परकीयांच्या विरोधात झाल्या तर काही चळवळी ह्या स्वकीयांच्या विरोधात झालेल्या आपणास दिसून येतात. या अनेक चळवळीमध्ये शेतकरी चळवळी, कामगारांच्या चळवळी, आदिवासींच्या चळवळी, शोषितांच्या चळवळी, महिलांच्या चळवळी झालेल्या आपणास दिसून येतात. परंतु डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर या महामानवांच्या विचारसरणीतून प्रेरणा घेऊन या देशात व विशेषतः महाराष्ट्रात अशा अनेक चळवळीपैकी प्रभाव पाडणारी जी चळवळ झा
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प्रा., आवळे महेश नारायण. "प्रा. डॉ. एन. डी. पाटील यांचे जीवन कार्य". International Journal of Advance and Applied Research 4, № 28 (2023): 82–83. https://doi.org/10.5281/zenodo.8340830.

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Abstract:
&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; महाराष्ट्र भूमी ही वीरांची, साधु - संतांची भूमी आहे. तसेच ही भूमी समाजसुधारकांची व देशासाठी बलिदान देणाऱ्या क्रांतीवीरांची ही भूमी आहे. या राष्ट्राचा खूप मोठा व दैदिप्यमान असा इतिहास आहे. परंतु या पुरोगामी महाराष्ट्राच्या जडणघडणीमध्ये प्रा. एन. डी. पाटील सरांचा सिंहाचा वाटा आहे हे आपणाला मान्य करावेच लागेल. राजकारण असो, समाजकारण असो प्रत्येक क्षेत्रामध्ये प्रा. एन. डी. पाटील हे नाव सर्वात अग्रेसर होते. व अशा या पुरोगामी समाजसुधारकाचे&nbsp; विविध क्षेत्रातील योगदान हे आजच्या पिढीसाठी प्रेरणा देणारे आहे.
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कुमार, नरेश, та आशुतोष राय. "खेल भागीदारी के विभिन्न स्तरों पर एथलीटों के बीच मनोवैज्ञानिक विशेषताओं का एक विश्लेषणात्मक अध्ययन". Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education 22, № 3 (2025): 120–29. https://doi.org/10.29070/g0p5tb80.

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Abstract:
यह अध्ययन भागीदारी के तीन स्तरों पर एथलीटों की चयनित मनोवैज्ञानिक विशेषताओं-प्रेरणा, चिंता, आत्मविश्वास और लचीलापन- की जांच करता है: स्कूल, इंटर-कॉलेज और राष्ट्रीय। मानकीकृत मनोवैज्ञानिक उपकरणों का उपयोग करते हुए, 180 एथलीटों (प्रत्येक स्तर से 60) का मूल्यांकन किया गया। परिणाम समूहों के बीच महत्वपूर्ण अंतर दर्शाते हैं, जिसमें राष्ट्रीय स्तर के एथलीट उच्च आत्मविश्वास और लचीलापन, और कम प्रदर्शन चिंता प्रदर्शित करते हैं। निष्कर्ष एथलीट विकास में मनोवैज्ञानिक प्रशिक्षण की भूमिका पर जोर देते हैं और प्रदर्शन स्तर के अनुसार अनुरूप मानसिक कंडीशनिंग रणनीतियों का सुझाव देते हैं।
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प्रा., डॉ. गणेश गोविंदराव माने. "महात्मा गांधी व दक्षिण आफ्रिकेतील कार्य". उदयगिरी - बहुभाषिक इतिहास संशोधन पत्रिका 01, № 04 (2023): 318–21. https://doi.org/10.5281/zenodo.10125576.

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Abstract:
मोहनदास करमचंद गांधी (ऑक्टोबर २,&nbsp;इ.स.&nbsp;१८६९ -&nbsp;जानेवारी ३०,&nbsp;इ.स.&nbsp;१९४८)&nbsp;हे भारताच्या स्वातंत्र्य संग्रामातील प्रमुख नेते आणि तत्त्वज्ञ होते.&nbsp;ते एक वकील,&nbsp;वसाहतविरोधी राष्ट्रवादी नेते&nbsp;[३]&nbsp;आणि राजकीय नैतिकतावादी होते. ब्रिटीश राजवटीपासून भारताच्या स्वातंत्र्याच्या यशस्वी मोहिमेचे नेतृत्व करण्यासाठी महात्मा गांधींनी अहिंसक आंदोलनाचा वापर केला.&nbsp;नंतर जगभरातील अनेक नागरी हक्क आणि स्वातंत्र्य चळवळींना महात्मा गांधींकडून प्रेरणा मिळाली. महात्मा (संस्कृत : "महान आत्मा", "पूज्य")&nbsp;असा त्यांचा सन्माननीय उल्लेख प्रथम दक्षिण आफ्रिकेत १९१४ मध्ये केला गे
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डॉ., शितल येरुळे. "'एकदश व्रत' : गांधीजीची नैतिक जीवन पद्धती". उदयगिरी - बहुभाषिक इतिहास संशोधन पत्रिका 01, № 04 (2023): 894–99. https://doi.org/10.5281/zenodo.10282518.

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Abstract:
जगाच्या आणि विशेषतः भारताच्या इतिहासात सुदैवाने विसाव्या शतकात एक महापुरुष जन्माला आला उद्याला जो निःसंकोचपणे जगाला सांगु शकला,'माझे जीवन हाच माझा संदेश आहे' त्या महापुरुषाचे नाव मोहनचंद करमचंद गांधी. जी तत्त्वे त्यांना योग्य वाटली ती त्यांनी प्रथम आचरणात आणली आणि त्यात अपयश आले तर जाहीरपणे त्यांनी कबुनही केले त्यांचे जीवन जणु त्यांनी एक उधडे पुस्तक बनविले आणि त्यातील मजकुर कोणीही वाचावा आणि धडा घ्यावा. अनेकांनी तो जीवनग्रंथ वाचला आणि आपपल्या कुवती प्रमाणे त्यातून बोध घेऊन आपल्या जीवनात उत्तरविण्याचा प्रयत्न केला आणि वर्तमान परिस्थीतीतही होत आहे. अनेक पिढ्यांना त्यातून प्रेरणा व स्फुर्ती मिळत
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विभुते, सोमनाथ सर्जेराव. "योग: कर्मसु कौशलम : कर्मयोगाचे आकलन". International Journal of Advance and Applied Research 6, № 24 (2025): 289–92. https://doi.org/10.5281/zenodo.15241201.

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Abstract:
&nbsp; &nbsp; <strong>घोषवारा : </strong> कर्मयोग हा आध्यात्मिक अध्ययनातील एक अपरिहार्य विषय आहे.&nbsp; कर्म आणि योग या दोन शब्दांचे एकत्रीकरण म्हणजेच कर्मयोग होय.&nbsp; कर्मयोग हा भगवद्गीतेतील एक महत्त्वाचा अध्याय आहे ज्यामध्ये आपण करीत असलेल्या कार्याशी किंवा कर्माशी आपण एकरूप होणे कसे आवश्यक आहे हे प्रतिपादिले आहे.&nbsp; प्रस्तुत लेखात कर्म या संज्ञेची चिकित्सा केलेली आहे. त्याचबरोबर कर्म करण्यासाठी कोणती प्रेरणा असते?&nbsp; याचे विचारवंतांनी कसे चिंतन केलेले आहे याचा मागोवा घेतलेला आहे.&nbsp; तदनंतर गीतेतील कर्मयोगाचा अन्वयार्थ लावून आध्यात्मिक दृष्ट्या कर्मयोग कशा पद्धतीने समजून घेता येईल
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प्रा.प्रवीण, भगवानराव पाऊलबुद्धे. "मराठी संतांच्या विचारांचीउ पयुक्तता." International Journal of Advance and Applied Research S6, № 18 (2025): 307–10. https://doi.org/10.5281/zenodo.15250610.

Full text
Abstract:
संतांचे विचार हे समाजाच्या जडणघडणीमध्ये मुलाचे भूमिका पार पाडतात .आजही महाराष्ट्रातील या संतांच्या विचारांची प्रेरणा घेऊन लोक जीवन जगतात. संतांच्या सर्वधर्मसमभावाच्या विचारांवरच आजही इतके वर्ष उलटूनही पंढरीची वारी निरंतर चालू आहे ती केवळ आणि केवळ संत विचाराच्या बैठकीमुळेच. संतांनी आपल्या जीवन अनुभवातून समाजाला मौलिक विचार तत्त्वज्ञान आणि मार्गदर्शन केले. समाजाला सामाजिक मूल्य,नैतिक मूल्य,सांस्कृतिक मूल्यांचा ठेवा दिला. संत वाङ्मयाची उपयुक्तता अनेक अंगांनी स्पष्ट करता येते. ते केवळ अध्यात्मिक उन्नतीसाठी नव्हे, तर समाज सुधारणा, नैतिकता, मानसिक शांती, आणि भाषिक विकास यासाठीही महत्त्वाचे ठरते. पुढ
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प्रा.डॉ.मुंडे, सिद्धेश्वर महादेव. "स्वामी दयानंद सरस्वतीयांचे राजकीय विचार". International Journal of Advance and Applied Research S6, № 7 (2025): 134–37. https://doi.org/10.5281/zenodo.14784828.

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Abstract:
भारतीय थोर समाज सुधारक, आर्य समाजाचे संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती यांचा जन्म गुजरात मध्ये 12 फेब्रुवारी 1824 रोजी ब्राह्मण कुटुंबात झाला. स्वामी दयानंद सरस्वती यांनी वेद आणि अध्यात्माचे शिक्षण घेतले. ते पुरोगामी तार्किक विचार आणि वास्तविकतेची जिज्ञासा असलेले विचारवंत होते. त्यांना वेद व अध्यात्माच्या माध्यमातून राजकीय विचारांची प्रेरणा मिळाली. त्यांना जनकल्याणकारी, समतावादी, राज्यकारभार आणि राजकीय नेतृत्व अपेक्षित होते. त्यांनी जनकल्याणकारी राज्याचा सिद्धांत मांडून त्यात राज्याचे स्वरूप, राज्यकारभाराची व्यवस्था, नेतृत्व आणि राज्याच्या शासन व्यवस्थेचे स्वरूप स्पष्ट केले. त्यांनी आपल्या राजकीय
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अपर्णा, श्रीवास्तव. "डुग्गर भित्तिचित्रों का धार्मिक स्वरूप". International Journal of Research - Granthaalayah 5, № 12 (2017): 135–40. https://doi.org/10.5281/zenodo.1133824.

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Abstract:
कला का प्रधान लक्ष्य सौन्दर्य की अनुभूति है। कलाओं में सौन्दर्यानुभूति की सृजनात्मक अभिव्यक्ति की उत्पत्ति मानव सभ्यता के आदि काल से ही धार्मिक आध्यात्मिक कलाकृतियों की रचना के कारण सम्भव हुई है। धर्म एवं कला दोनों ही मानवीय जीवन को व्यवस्थित एवं संगतिपूर्ण बनाते हैं तथा मानवीय जीवन के महान सत्य को प्रस्तुत करती है। कला तथा धर्म ने एक दूसरे के निहितार्थ प्रेरणा का कार्य किया है। कला की धार्मिक अभिप्यक्ति के सन्दर्भ में जम्मू की डुग्गर संस्कृति का विशेष महत्व है जहाँ कला ने धार्मिक अभिव्यक्ति के प्रकटन हेतु विविध स्वरूपों का विकास किया, जिनमें से भित्ति चित्रण प्रमुख है। डुग्गर संस्कृति के भित्
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मोनिका उपाध्याय та डाॅ. साधना दीक्षित. "मार्कण्डेय के कथा साहित्य में अमानवीयता और उत्पीड़न के विरोध का यथार्थवादी चित्रण". Innovative Research Thoughts 10, № 3 (2024): 180–82. http://dx.doi.org/10.36676/irt.v10.i3.1493.

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Abstract:
कथाकार मार्कण्डेय ने अपनी कहानियों के माध्यम से मनुष्यों को आपस में प्रेम से रहने की प्रेरणा दी है। उनकी दृष्टि प्रगतिशील तथा मानवतावादी है इसलिए किसी भी स्तर पर अमानवीयता एवं उत्पीड़न के वे विरोधी है। वर्तमान समाज में ऊँच-नीच, छूत-अछूत आदि की जो घृणा मूलक प्रवृत्तियाँ है, उनके प्रति इन्होंने अपनी कहानियों में प्रबल विरोध जताया है। मार्कण्डेय का सामाजिक जीवन से प्रत्यक्ष तादात्म्य है। अतरू इन्होंने अपनी कहानियों में सामाजिक समस्याओं को सहज रूप में उजागर किया है जिसमें शोषित वर्ग के विविध पक्षों के समस्याओं, संघर्षों एवं विषमताओं का चित्रण हुआ है।
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प्रा.अजित, जयराम जाधव. "मराठी बालकथा : एक अभ्यास (१९६० ते १९८० )". Journal of Research & Development' 14, № 12 (2022): 21–24. https://doi.org/10.5281/zenodo.7053496.

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Abstract:
<strong>प्रस्तावना </strong> &nbsp;बालसाहित्य हे मुलांच्या मनोरंजनाचे&nbsp; व ज्ञानसंवर्धनाचे एक महत्त्वाचे साधन&nbsp; आहे. प्राचीन काळापासून पिढ्यानपिढ्या मौखिक परंपरेने चालत आलेल्या आजीच्या गोष्टी, कहाण्या, अंगाई गीते तर लिखित स्वरूपातील &lsquo;बालबोध मुक्तावली&rsquo;, &lsquo;पंचतंत्र&rsquo;, &lsquo; बृहत्कथामंजिरी&rsquo;, &lsquo;जातक कथा&rsquo;, &lsquo;वेताळ पंचविशी&rsquo;, &lsquo;लोककथा&rsquo; या सर्व परंपरागत चालत आलेल्या प्रकारातून&nbsp; बालसाहित्य समृद्ध झाले आहे. &nbsp;मराठी बालसाहित्याची परंपरा समृद्ध आहे. साने गुरुजी, ना. धो. ताम्हणकर, भा. रा. भागवत, राजा मंगळवेढकर, यदुनाथ थत्ते हे य
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Talekar, P. R. "आदिवासी कोकणा लोकगीतांचे स्वरूप". International Journal of Advance and Applied Research 5, № 13 (2024): 113–15. https://doi.org/10.5281/zenodo.11260313.

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Abstract:
आज जगामध्ये अनेक प्रकारच्या संस्कृती आपल्याला पहावयास मिळतात. परंतु त्यामध्ये आदिवासी संस्कृती ही जगामध्ये आगळी-वेगळी संस्कृती असलेली दिसून येते. म्हणून आदिवासी संस्कृतीचा अभ्यास करावयाचा झाल्यास त्यांच्या लोकसाहित्याचा अभ्यास करणे गरजेचे ठरते. आदिवासी साहित्य हा अदिम संस्कृतीचा एक अनमोल असा ठेवा आहे. आदिवासी संस्कृती ही पूर्णपणे निसर्गाशी निगडित असल्यामुळे जगण्याच्या प्रेरणा त्या समाजाला निसर्गशक्तीतूनच मिळत असतात. त्यामुळे या जमाती निसर्गपूजक आहेत. त्यातून अदिम आदिवासींच्या लोकजीवनामध्ये &nbsp;परंपरेने चालत आलेल्या रुढी, प्रथा, परंपरा, सण-उत्सव, विधी, आचार-विचार तसेच लोकगीत, लोककथा, लोकनाट्य
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प्रा, डॉ.नयनकुमार आचार्य. "समग्र सुधारणेचे अग्रदूत - महर्षी दयानंद". International Journal of Advance and Applied Research S6, № 7 (2025): 315–18. https://doi.org/10.5281/zenodo.14792797.

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Abstract:
जगातील सर्व मानवाच्या दुःखांचे मूळ हे मानवनिर्मित मत-पंथांतील अज्ञान, अविद्या व अंधश्रद्धांमध्ये दडले असून त्यांचे निराकरण विशुद्ध वैदिक ज्ञानानेच होते. यासाठी तर्क व विज्ञाननिष्ठेच्या आधारे वेदमार्गाचा अवलंब करणे अगत्याचे ठरते. यास्तव प्रत्येक मानवाने आपले&nbsp; पूर्वग्रह दूर सारून पुनश्च वेदांची कास धरावी ,असा संदेश देणारे एकोणिसाव्या शतकातील महान वैदिक विचारवंत व थोर समाजसुधारक महर्षी दयानंद सरस्वती हे खऱ्या अर्थाने सर्वोच्चस्थानी मानले जातात . त्यांच्या उदात्त जीवन व कार्यापासून अनेकांनी प्रेरणा घेतली, तर त्यांच्या विचारांची मशाल हाती घेऊन अनेकांनी सामाजिक व राष्ट्रीय चळवळीत भाग घेतला. आज
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कमलेश, कुमार देशमुख. "छत्तीसगढ़ के पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं की वर्तमान स्थिति का अध्ययन". INTERNATIONAL EDUCATION AND RESEARCH JOURNAL - IERJ 10, № 11 (2024): 71–72. https://doi.org/10.5281/zenodo.15607754.

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Abstract:
छत्तीसगढ़ के पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी एक महत्वपूर्ण पहलू रहा है। जो राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों के विकास एवं लोाकतांत्रिक प्रक्रियां को मजबूत बनाता है। जिससे महिला भागीदारी को प्रोत्साहन मिले वे आगे बढ़े तथा अन्य महिलाओं को आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा प्रदान करे। इस शोध पत्र का उद्देश्य छत्तीसगढ़ में पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं वर्तमान स्थिति उनकी भागीदारी योगदान तथा उन चुनौतियों का अध्ययन करना है जिनका छत्तीसगढ़ की महिलाएँ राज्य बनने के बाद कर रही है। यह अध्ययन क्षेत्रीय संवेदन सरकारी रिपोर्टो तथा संबंधित शोध पत्रोें के माध्यम से किया जा रहा है।
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Singh, Sukhnandan. "वैदिक संस्कृति में यज्ञ – एक समग्र जीवन दर्शन एवं साधना पथ". Interdisciplinary Journal of Yagya Research 2, № 2 (2019): 01–06. http://dx.doi.org/10.36018/ijyr.v2i2.45.

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Abstract:
यज्ञ भारतीय संस्कृति का आदि प्रतीक है। हमारे धर्म में जितनी महानता यज्ञ को दी गई है, उतनी और किसी को नहीं दी गयी है। जीवन का कोई भी कर्म हो, शायद ही यज्ञ के बिना पूर्ण माना जाता हो। जन्म से पूर्व से लेकर मरण पर्यन्त सम्पन्न होने वाले संस्कार यज्ञ के माध्यम से ही सम्पन्न होते हैं। यज्ञ के चिकित्सकीय गुण एवं वातावरण शुद्धि के लाभ सर्वविदित हैं। यज्ञ से कामना सिद्धि के अनगिन उदाहरण शास्त्रों में भरे पड़े हैं। इन सबके साथ यज्ञ में जो प्रेरणा प्रवाह निहित है, साधना का समग्र विधान विद्यमान है, वह स्वयं में विलक्ष्ण है। यज्ञ में निहित जीवन दर्शन व्यक्ति, परिवार, समाज- संस्कृति, प्रकृति-पर्य़ावरण, सकल
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Srivastawa, Yogesh Kumar, та Rajesh Kumar Tripathi. "शिक्षकों के दृष्टिकोण को प्रभावित करने वाले कारकों की पहचान: एक बहुआयामी अध्ययन". Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education 19, № 4 (2022): 810–16. https://doi.org/10.29070/sya3xr10.

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Abstract:
शिक्षकों के दृष्टिकोण को प्रभावित करने वाले कारकों की पहचान करना एक जटिल और बहुआयामी प्रक्रिया है, जो शिक्षण और सीखने के परिणामों को गहराई से प्रभावित करती है। यह अध्ययन शिक्षकों के दृष्टिकोण पर प्रभाव डालने वाले सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, पेशेवर, और संस्थागत कारकों का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करता है। प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों के शिक्षकों से प्राप्त डेटा का उपयोग करते हुए, शोध में प्रश्नावली, साक्षात्कार, और अवलोकन जैसी विविध विधियों के माध्यम से जानकारी एकत्रित की गई। निष्कर्षों से पता चलता है कि शिक्षकों का दृष्टिकोण मुख्यतः उनके कार्य वातावरण, पेशेवर विकास के अवसर, समाज से मिलने वाली मान्यत
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प्रा., डॉ. बालाजी मारूती गव्हाळे. "महात्मा गांधीजींची तत्वे आणि वर्तमान स्थिती". उदयगिरी - बहुभाषिक इतिहास संशोधन पत्रिका 01, № 04 (2023): 291–96. https://doi.org/10.5281/zenodo.10125064.

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Abstract:
२ ऑक्‍टोबर १८६९ पोरबंदर येथे जन्मलेल्या एका असामान्य व्यक्तिमत्त्वाने केवळ भारतीय स्वातंत्र्यलढ्यात योगदान दिले नाही, तर आपल्या विचारसरणीने जगाला वेगळा आदर्श दिला. मोहनदास करमचंद गांधी म्हणजे बापूंच्या गांधीवादी विचारसरणीने जगभरातील अनेक सन्माननीय व्यक्ती प्रभावित झाल्या. गांधींजींचे विचार म्हणजे प्रेरणा, दृष्टी आणि गांधीजींच्या जीवनकार्याचे दर्शन घडते. महात्मा गांधीजींचे स्वातंञ लढयात खुप मोठे योगदान आहे. भारतीय स्वातंञाचा लढा गांधीजींच्या कार्याभोवती केंद्रीय झाला. सत्य आणि अहिंसा ही गांधी विचाराने जगाच्या इतिहासावर कायमचे चिन्ह कोरले. जरी अहिंसेचे तत्त्व गांधीजींनी स्वतः मांडले नसले तरी इतक
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अन्जू रानी. "वर्तमान वैश्विक परिदृश्य और भारतीय समाज विज्ञान की चुनौतियाँ". Innovative Research Thoughts 11, № 1 (2025): 103–10. https://doi.org/10.36676/irt.v11.i1.1594.

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Abstract:
विश्व में औद्योगिक क्रांति का प्रारम्भ पूँजीवाद प्रणाली के साथ हुआ किन्तु कालान्तर में यह शोषण का दर्शन बनकर रह गया और 1929-32 की महामंदी ने तो इस नकारा ही साबित कर दिया। इसके विपरीत माक्र्स के दर्शन पर आधारित साम्यवादी प्रणाली ने प्रेरणा और पहल की समस्याएं उत्पन्न कर दी। यह प्रणाली भी सोवियत यूनियन और इसके सहयोगी राज्यों के पतन के साथ शीघ्र ही समाप्त प्रायः हो गयी। आज की चीन साम्यवाद की बजाय बाजार अर्थव्यवस्था के काफी कुछ निकट आ गया है। अतः आज तो विभिन्न रूपों एवं प्रकारों में बाजारवाद ही चल रहा है। किन्तु हर क्षण वह अनेक कठिनाइयों व समस्याओं से ग्रस्त भी हो जा रहा है।
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जैन, डॉ0 शुद्धात्मप्रकाश. "भारतीय ज्ञान परम्परा के संदर्भ में जैनधर्म की राष्ट्रीय चेतना". Journal of Humanities and Applied Sciences Volume-XIV, Issue-4 (2025): 1–9. https://doi.org/10.5281/zenodo.14531675.

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Abstract:
जैनधर्म न केवल अध्यात्मप्रधान दर्शन है, अपितु इसका राष्ट्र के निर्माण एवं देशहित में भी बहुत योगदान है। जैनधर्म न केवल आत्मकल्याण की बात करता है, अपितु जगतकल्याण की भी बात करता है। राष्ट्रीयता के विविध पहलुओं में जैनधर्म की अद्भुत देन है, जिसका विवेचन प्रस्तुत आलेख में किया जा रहा है।&nbsp;जैनधर्म राष्ट्रीय भावना की प्रेरणा भी भरपूर देता है। जैनसाहित्य में राष्ट्र की शान्ति की कामना के लिए शान्तिपाठ पाये जाते हैं और उनका उच्चारण प्रातःकालीन जिनाभिषेक के अवसर पर किया भी जाता है। उदाहरणार्थ यहां काव्य प्रस्तुत किये जा रहे है-संपूजकों को प्रतिपालकों को, यतिन को यति नायकों को।राजा प्रजा राष्ट्र सु
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Raigar, Birdi Chandra. "Personality and work analysis of poet Raghuvir Sahay." RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 8, no. 1 (2023): 129–32. http://dx.doi.org/10.31305/rrijm.2023.v08.n01.016.

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Abstract:
The poet makes his identity only by his personality, in which his personality and work is the witness. Poet Raghuveer Sahay was rich in such a personality, his personality was full of compassion, charity but the ability to share his hand in pain and honesty, needless to say, poet Raghuveer's personality is as bottomless as the ocean and the waves rising in it The ripples were similar to Dr. Shobha Saheb Rao Rane says that - “Raghuveer Sahay was rich in sociable personality; That is why the number of his friends and family continued to increase.” In short, Raghuveer being a talented poet and th
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वर्मा, नेहा. "‘‘पूर्व बाल्यावस्था में शिक्षा एवं खेल से बच्चों के विकास पर पड़ने वाला प्रभाव’’". Humanities and Development 18, № 02 (2024): 111–16. https://doi.org/10.61410/had.v18i2.155.

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Abstract:
खेल वह क्रिया है, जिसमं े आनन्द, स्वतंत्रता एव ं आत्म-प्रेरणा तीनां े गुण मिलते हां।सभी बच्चों को अन्वेषण क े लिए हँसन े व आनन्द उठाने के लिए समय, जगह, अवसर और अकेले यादोस्तां के साथ खेलना जरूरी है। इसलिए खेल को प्रात्े साहित करना आवश्यक है, जिससे सभी बच्चांके विकास, शिक्षा और कल्याण में सहयोग कर सकते है। खेल के माध्यम से बच्चों के शारीरिककौशल को विकसित करन े एव ं स्वस्थ रहने में सहायता मिलती है। खेल बच्चां को ज्ञान बढ़ाने मेंनिर्णय लेन े में एवं मानसिक कौशल विकसित करने में सहायता करता है। खेल बच्चां में रचनात्मकताको प्रात्े साहित करता है। खेल के द्वारा बच्चे की मांसपेशियां का व्यायाम होता है,
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भिकाणे, शोभा राजेंद्र. "महात्मा गांधी आणि सत्याग्रह". उदयगिरी - बहुभाषिक इतिहास संशोधन पत्रिका 01, № 04 (2023): 936–40. https://doi.org/10.5281/zenodo.10284203.

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Abstract:
सत्याग्रह ही महात्मा गांधीची आधुनिक जगाला अनन्यसाधारण अशी दिलेली देणगी होय. सत्याग्रह म्हटले की, गांधीजीचे स्मरण होते. गांधी आणि सत्याग्रह हे जणू एकाच नाण्याच्या दोन बाजू होय. सर्वप्रथम दक्षिण आफ्रिकेत त्यांना सत्याग्रहाची कल्पना सुचली. व्यवहार आणि राजकीय विचारांचा समन्वय म्हणजे सत्याग्रहाचा विचार होय. सत्याग्रह म्हणजे सत्याचा आग्रह धरणे होय. सत्याग्रहात प्रतिपक्षावर हिंसा न करता सत्याला संरक्षण द्यावे लागते. स्व्त: यातना सहन करुन प्रतिपक्षाचे अंत:करण बदलावे लागते. सत्याग्रहाचा विचार तसा जुनाच असून पूर्वी सामाजिक जीवनात त्याचा प्रयोग केला जात असे. परंतु गांधीजींनी मात्र त्याला राजकारणाच्या व्य
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Niraula, Peshal Kumar, та Neel Kumar Chhetri. "ऋषि परम्परा र दर्शनहरू". Historical Journal 15, № 2 (2024): 111–19. http://dx.doi.org/10.3126/hj.v15i2.70678.

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Abstract:
ऋषि परम्परा भनेको वैदिक सनातन धर्ममा शिक्षा र ज्ञान उत्पादनको प्राचीन प्रणाली मानिन्छ । यो परम्परा दक्षिण एशिया वा भारतखण्डको संस्कृतिको मुख्य सार मानिन्छ । ऋषि वा बुद्धिजीविले संसारलाई विद्यादान गरेको पाइन्छ । ज्ञान उत्पादनका सामग्री संसारबाट नै लिन्थे । यस लेखमा ऋषिमुनिहरूको परम्परा र दर्शनको ऐतिहासिकता र सामाजिक वैधानिकताबारे उजागर गरी कल्याणकारी राज्यको प्रतिबिम्ब देखाइएको छ । तात्कालीन समयका ऋषिहरूको विभिन्न दर्शनहरूको अध्ययनलाई गरी तुलनात्मक विधिलाई अपनाइएको छ । ऋषिहरूको दर्शन प्राचीनकालदेिख नै ज्ञान र संस्कृतिको मुख्य स्रोतको रूपमा स्थापित भएको पाइन्छ । यसैकोे पृष्ठभूमिमा रहेर आर्थिक अव
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Raj, Sadhana. "CURRENT SOCIAL NEEDS MUSIC THERAPY." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 3, no. 1SE (2015): 1–4. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v3.i1se.2015.3411.

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Abstract:
There is also a rich tradition of music in India. Few countries have found such an old and rich tradition of music. Indian music has an inspiring Siva and Saraswati which means that human beings cannot develop such high art without any divine inspiration, only on their own strength. Music existed in India since Vedic period. The Yajurveda mentions several instrumental choirs in the 19th and 20th mantras of the 30th scandal. Which makes the existence of music clear. The history of Indian music is at least 4000 years old. The most ancient music mentioned in the world is found in the Samaveda, th
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रूपेश जितपुरे, रूपेश जितपुरे, та डॉ संजीव कुमार यादव डॉ. संजीव कुमार यादव. "पुरुष एथलीटों में कबड्डी प्रदर्शन पर मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य का प्रभाव". International Journal of Physical Education & Sports Sciences 16, № 1 (2024): 32–37. http://dx.doi.org/10.29070/ecqda373.

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Abstract:
पारंपरिक संपर्क खेल कबड्डी को अपने सर्वोत्तम प्रदर्शन के लिए मानसिक दृढ़ता और शारीरिक कौशल दोनों की आवश्यकता होती है। यह शोध पुरुष कबड्डी खिलाड़ियों के मनोवैज्ञानिक और शारीरिक स्वास्थ्य के बीच जटिल अंतरसंबंध का पता लगाता है और यह उनके खेल को कैसे प्रभावित करता है। विभिन्न प्रतिस्पर्धी स्तरों से 150 पुरुष कबड्डी खिलाड़ियों के नमूने का मूल्यांकन करने के लिए मनोवैज्ञानिक और शारीरिक स्वास्थ्य परीक्षणों की एक श्रृंखला का उपयोग किया गया था। शोध का उद्देश्य कबड्डी प्रदर्शन के महत्वपूर्ण निर्धारकों की जांच करना और मनोवैज्ञानिक और शारीरिक स्वास्थ्य के बीच संबंध को स्पष्ट करना था। शारीरिक स्वास्थ्य मूल्
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पन्थ Pantha, नारायणप्रसाद Narayan Prasad. "सारवस्तुका दृष्टिले अन्धवेग नाटक". Shabda Sadhana शब्दसाधना 7, № 1 (2024): 44–56. https://doi.org/10.3126/shabdasadhana.v7i1.75086.

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Abstract:
नाटक नरनारीका चरित्र र कार्यलाई पात्रका अभिनयका माध्यमद्वारा प्रदर्शित गरिने उद्देश्यले लेखिएको संवादात्मक साहित्यिक विधा भएकाले रङगमञ्चमा गरिने चरित्रको अभिनय हो । बालकृष्ण समद्वारा लिखित अन्धवेग नाटकको सारवस्तुका दृष्टिले अध्ययन विश्लेषण गर्नु प्रस्तुत लेखको प्राज्ञिक समस्या रहेको छ । त्यसैले यस लेखमा सारवस्तुका दृष्टिले अन्धवेग नाटकको अध्ययन विश्लेषणलाई प्राज्ञिक अध्ययनको विषय बनाइएको छ । यस नाटकमा भएका असतपात्रको अन्त्य गराएर भावी पिँढीलाई सतमार्गमा हिडने प्रेरणा दिँदै मानिसले कुनै पनि आकाङक्षालाई सोचविचार गरेर मात्रै राख्नुपर्छ भन्ने सन्देश दिइएको छ । यस लेखमा सारवस्तुका दृष्टिले अन्धवेग
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नागरगोजे, प्रदिपकुमार बबन प्रा.डॉ. विश्वनाथ महादेव आवड. "शेतकरी कामगार पक्ष स्थापनेसाठी बहुजन नेतृत्वाचे योगदान". International Journal of Advance and Applied Research 2, № 21 (2022): 48–50. https://doi.org/10.5281/zenodo.7052507.

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Abstract:
<strong>प्रस्तावना :</strong> शेतकरी कामगार पक्षाला पुरोगामी महाराष्ट्राच्या सामाजिक, सांस्कृतिक व राजकीय इतिहासाची प्रदीर्घ परंपरा लाभली आहे. महात्मा ज्योतीराव फुले यांनी 1873 साली सत्यशोधक समाजाची स्थापना केली. तेव्हा पासून ग्रामीण जीवनात खोलवर रुजलेली ही पहिली चळवळ होती. वर्गदृष्ट्या महात्मा फुले शेतक-यांचे प्रवक्ते होते. स्त्री शुद्रातिशुद्र शेतकरी व कामगार या सर्व शोषितांनी आत्मोद्वारासाठी संघटित व्हावे अशी प्रेरणा सत्यशोधक आंदोलनाने प्रथम महाराष्ट्रात दिली. ब्राम्हणेतर चळवळीचे परिणत रूप म्हणजे शेतकरी कामगार पक्षाची स्थापना होय. शेतकरी कामगार पक्षाला लाभलेले नेतृत्व म्हणजे बहुजन नेतृत्व ह
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सिंह, विकास, та अरुण कुमार मिश्र. "पंडित दीनदयाल उपाध्याय एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ". Humanities and Development 18, № 02 (2024): 49–52. https://doi.org/10.61410/had.v18i2.143.

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Abstract:
प.ं दीनदयाल उपाध्याय भारतीय जनसंघ एव ं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के महान कार्यकर्ता केरूप में थे। वह एक प्रखर विचारक, संगठनकर्ता के रूप में अपनी ख्याति अर्जित की थी। वह एक एसे ेनेता थे, जिन्हांने े आजीवन अपनी ईमानदारी एवं सत्यनिष्ठा को महत्त्व दिया था। वह मार्गदर्शक एव ंप्रेरणास्राते के रूप में आज भी याद किय े जात े हैं। पं. दीनदयाल एक राष्ट्र नायक के रूप मे ं आज भीहमारे बीच हमारा मागदर्शन करते हैं कि कैसे अपने राष्ट्र के प्रति आप योगदान कर सकते हैं। वहभारतीय संस्कृति का प्रतीक, अजातशत्रु एवं इतिहासपुरुष बनना था, अन्यथा भावनात्मक अनुभूतियों मेंही उलझ कर रह जाते। बड़ी ही ईमानदारी के साथ दीनदयाल जी
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मुंडे, सोनाली वामनराव. "महात्मा गांधीजी आणि स्वातंत्र्यसंग्राम". उदयगिरी - बहुभाषिक इतिहास संशोधन पत्रिका 01, № 04 (2023): 868–73. https://doi.org/10.5281/zenodo.10281913.

Full text
Abstract:
दे दी हमें आज़ादीबिना खड्ग बिना ढालसाबरमती के संत तूनेकर दिया कमाल1920 मध्ये टिळकांच्या मृत्युनंतर राष्ट्रीय चळवळीची सुत्रे महात्मा गांधीकडे आली आणि गांधींजींच्या सत्याग्रहासारख्या अभिनव तंत्राने राष्ट्रीय चळवळ व्यापक होऊन स्वातंत्र्य लढ्याच्या नव्या पर्वास सुरुवात झाली.भारताच्या स्वातंत्र्याची यशोगाथा जेव्हा जेव्हा गायली जाईल तेव्हा तेव्हा महात्मा गांधींचे नाव आणि त्यांच्या कार्याचा उल्लेख झाल्याशिवाय राहणार नाही आणि आज देशाला स्वातंत्र्य मिळुन&nbsp;76 वर्ष पुर्ण झाले तरी गांधीजींच्या कार्याचा कुणालाही विसर पडलेला नाही. हातात कुठलेही शस्त्र न घेता देखील क्रांती घडवुन आणली जाऊ शकते हे संपुर्ण
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प्रा., ज्योती उद्धवराव मामडगे. "महात्मा गांधी यांचे शैक्षणिक विचार". उदयगिरी - बहुभाषिक इतिहास संशोधन पत्रिका 01, № 04 (2023): 452–56. https://doi.org/10.5281/zenodo.10134161.

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Abstract:
भारतीय स्वातंत्र्य लढ्यामध्ये महात्मा गांधी यांचे मोलाचे योगदान आहे. त्यांच्या अहिंसा तत्त्वामुळेच भारताला स्वातंत्र्य मिळाले. ब्रिटिशांच्या विरुद्ध दिलेला मानवी लढा हा भारतीय समाजाच्या बदलासाठी कारणीभूत ठरला. भारतीय राजकारणात गांधीजीचा अवतार झाला नसता तर लोकांनी शस्त्रास्त्रांचा वापर करून भारताला स्वातंत्र्य मिळविण्यासाठी बऱ्याचशा प्रमाणात हिंसेचा वापर देखील केला असता, परंतु गांधीजीच्या कार्याची प्रेरणा आणि आदर्श भारतीय तरुणांनी समोर ठेवून सत्य आणि अहिंसा या तत्त्वाच्या आधारे स्वातंत्र्याचा लढा चालू ठेवला. अहिंसेच्या मार्गानेच आपल्याला स्वातंत्र्य मिळवायचे, असे गांधीजीचे ठाम मत होते. त्यांनी
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नेउपाने Neupane, पशुपति Pashupati. "सम्यक्सम्बुद्ध महाकाव्यका सिद्धार्थको करुणासाधना र अभिप्रेरणा {Compassion and motivation of Siddhartha of the Samyaksambuddha epic}". Patan Prospective Journal 2, № 2 (2022): 301–11. http://dx.doi.org/10.3126/ppj.v2i2.53170.

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Abstract:
प्रस्तुत लेखमा कवि घनश्याम कँडेलको ‘सम्यक् सम्बुद्ध’ महाकाव्यका प्रमुख चरित्र सिद्धार्थमा निहित करुणाको स्रोत, विकास, उनले गरेको दुःखमुक्ति साधना र अभिप्रेरणा ठम्याउने प्रयास गरिएको छ । यो महाकाव्य कँडेलको गहन अध्ययन, परिपक्व चिन्तन, परिष्कृत लेखन र वृद्ध वयको उच्चतम् उपज हो । यसमा सिद्धार्थको जीवन, उनको त्याग, ध्यानसाधना, ज्ञानप्राप्ति अनि त्यसको विस्तार र प्रचारबारे चर्चा गरिएको भए पनि यस आलेखमा भने उनको करुणास्रोत, साधना र बुद्धत्व प्राप्तिसम्मका घटनाहरूलाई मात्र विश्लेषण गरिएको छ । वर्तमान विश्वका लागि सिद्धार्थको तृष्णमुक्त एबं त्यागपूर्ण जीवनसाधना, बुद्धत्वप्राप्ति, चिन्तन र दर्शन प्रेरण
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डॉ., तानाजी जनार्धन फुलारी, та रवींद्र पांडुरंग शिंदे श्री. "पंढरपूर तालुक्यातील सहकारी चळवळ". International Journal of Advance and Applied Research 3, № 5 (2022): 22–26. https://doi.org/10.5281/zenodo.7397344.

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Abstract:
<strong>प्रस्तावना :</strong> प्राचीन काळापासून सहकार हा मानवी संस्कृतीचा एक महत्त्वाचा भाग बनला आहे. मानवाच्या शिकारी अवस्थेपासून आजच्या प्रगत अवस्थेपर्यंतचा विचार केला तर असे आढळते की, एकत्रितपणे विचार करणे व काम करणे ही मानवाची सहज आणि नैसर्गिक प्रवृत्ती आहे. त्यातून त्याला सुखी आयुष्य जगण्याची प्रेरणा मिळते. त्यातूनच त्याच्या आर्थिक आणि सामाजिक आयुष्यात पुढे क्रांतीकारक बदल घडून आले. सहकार ही मानवी सहजीवनाच्या कल्पनेची एक प्रगत अवस्था आहे. यामध्ये मानवास आर्थिक व सामाजिक विकासासाठी आणि अन्याय निवारण्यासाठी एकत्र येण्याची प्रखर इच्छा निर्माण होते. मानवाच्या जीवनप्रणालीचा इतिहास हा सहकाराचा
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जामकर, अल्का रानबा. "महात्मा गांधी यांचे आर्थिक विचार". उदयगिरी - बहुभाषिक इतिहास संशोधन पत्रिका 01, № 04 (2023): 949–51. https://doi.org/10.5281/zenodo.10284489.

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Abstract:
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी हे भारतीय स्वातंत्र्यलढ्यामुळे सर्वश्रुत आहेत. त्यांनी स्वातंत्र्यलढ्यात हिरीरीने भाग घेऊन अनेक चळवळी निर्माण केल्या. त्यांच्या विचारांना शब्दांत बांधणे कठीण कार्य आहे. महात्मा गांधीच्या विचारांची खोली, सुलभता समजण्यासाठी शब्द अपुरे पडतात. भारत हा खेड्यांचा देश आहे. त्यामुळे खेड्यांची प्रगती झाल्याशिवाय भारताची प्रगती होणार नाही म्हणून त्यांनी 'खेड्याकडे चला' असा संदेश भारतीयांना दिला.&nbsp;गांधीजींच्या जीवनाची सुरुवात अफ्रिकेतून झाली. तेथे ते वकिली करण्यासाठी गेले. तेथेच त्यांच्या जीवनाला वेगळे वळण लागले. जेव्हा ते इंग्लंड, अफ्रिकेनंतर भारतात आले. तेव्हा त्यांची भेट
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डॉ., नरेंद्र सीमतवाल, та कुमार वर्मा महेन्द्र. "आधुनिक परिप्रेक्ष में नारीवाद: एक समीक्षात्मक अध्ययन". International Journal of Contemporary Research in Multidisciplinary 3, № 2 (2024): 123–26. https://doi.org/10.5281/zenodo.10932897.

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Abstract:
यह शोध पत्र परिपेक्ष में एक समीक्षात्मक अध्ययन प्रस्तुत करता है । अध्ययन में, हम नारीवाद की प्राचीन और समकालीन परंपराओं को जांच रहे हैं, उनके विकास के संदर्भ में विचार कर रहे हैं, और आधुनिक समाज में नारीवाद की प्रभावी अनुप्रयोगिता पर ध्यान केंद्रित करते हैं। हम विभिन्न विचारधाराओं, सामाजिक अध्ययनों, और संदर्भों के माध्यम से नारीवाद की व्याख्याओं को विश्लेषण कर रहे हैं । अध्ययन के परिणाम से, हम नारीवाद के समझाने में एक नई दिशा प्रदान करते हैं और आधुनिक समाज में नारीवाद के प्रभाव को समझने की प्रेरणा प्रदान करते हैं। हमने विभिन्न सांस्कृतिक, सामाजिक, और राजनीतिक प्रासंगिकताओं को ध्यान में रखकर ना
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