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Journal articles on the topic 'पारिस्थिकी'

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गुप्ता, सुमित्रा. "पर्यावरण अवनयन एवं पारिस्थितिकी समस्याएं". International Journal of Arts, Humanities and Social Studies 7, № 1 (2025): 39–42. https://doi.org/10.33545/26648652.2025.v7.i1a.152.

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Amarjeet, Amarjeet. "Revival of the past : A History of Aboriginal Ecological Knowledge and Environmental Sustainability." Gyanvividh 02, no. 01 (2025): 38–47. https://doi.org/10.71037/gyanvividha.v2i1.02.

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Abstract:
यह शोधपत्र पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देने में स्वदेशी पारिस्थितिकी ज्ञान (IEK) के ऐतिहासिक आधारों और समकालीन प्रासंगिकता का अन्वेषण करता है। बर्केस की सैक्रेड इकोलॉजी, किम्मेरर की ब्रेडिंग स्वीटग्रास और स्मिथ की डिकोलोनाइजिंग मेथडोलॉजीज जैसे प्रमुख कार्यों की अंतःविषयक समीक्षा के माध्यम से, यह अध्ययन उन स्वदेशी ज्ञानों का पुनरुद्धार करता है जिन्होंने दीर्घकालीन रूप से सतत संसाधन प्रबंधन प्रथाओं का मार्गदर्शन किया है। उत्तरी अमेरिका और अन्य वैश्विक संदर्भों से प्राप्त ऐतिहासिक मामलों के विश्लेषण से यह सिद्ध होता है कि आधुनिक विज्ञान के आगमन से पहले ही स्वदेशी समुदायों ने पारिस्थितिकी संतुलन
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Amarjeet, Amarjeet. "Revival of the past : A History of Aboriginal Ecological Knowledge and Environmental Sustainability." Gyanvividha 02, no. 01 (2025): 38–47. https://doi.org/10.71037/gyanvidha.v2i1.02.

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Abstract:
यह शोधपत्र पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देने में स्वदेशी पारिस्थितिकी ज्ञान (IEK) के ऐतिहासिक आधारों और समकालीन प्रासंगिकता का अन्वेषण करता है। बर्केस की सैक्रेड इकोलॉजी, किम्मेरर की ब्रेडिंग स्वीटग्रास और स्मिथ की डिकोलोनाइजिंग मेथडोलॉजीज जैसे प्रमुख कार्यों की अंतःविषयक समीक्षा के माध्यम से, यह अध्ययन उन स्वदेशी ज्ञानों का पुनरुद्धार करता है जिन्होंने दीर्घकालीन रूप से सतत संसाधन प्रबंधन प्रथाओं का मार्गदर्शन किया है। उत्तरी अमेरिका और अन्य वैश्विक संदर्भों से प्राप्त ऐतिहासिक मामलों के विश्लेषण से यह सिद्ध होता है कि आधुनिक विज्ञान के आगमन से पहले ही स्वदेशी समुदायों ने पारिस्थितिकी संतुलन
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चन्द्रप्रभा, कण्डवाल. "पौड़ी जनपद में खोह नदी की पारिस्थितिकी तंत्र का विश्लेषणात्मक अध्ययन". RECENT RESEARCHES IN SOCIAL SCIENCES & HUMANITIES 11, № 2 (2024): 63–67. https://doi.org/10.5281/zenodo.13337219.

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Abstract:
षिवालिक श्रेणी से निकलने वाली खोह नदी का उद्गम स्थल उत्तराखण्ड राज्य के पौड़ी गढ़वाल जनपद मंे स्थित द्वारीखाल नामक स्थान पर लंगूरगाड़ व सिलगाड नामक नदियों के मिलन से हुआ है। इसका क्षेत्रफल कोटद्वार तक 23,600 कि0मी0 है। कोटद्वार से 10 किमी0 आगे बढ़ते हुए यह कोटद्वार भाबर के सनेह में कोलू नदी से मिल जाती है। यहां के पारिस्थितिकी में लगभग सभी प्रकार के जीव-जन्तु, पषु-पक्षी तथा वनस्पतियां पायी जाती है। इसका कारण नदी के आस-पास के क्षेत्र की अनुकूल जलवायु हंै। पारिस्थितिक जीवमण्डल के अध्ययन के लिए एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण है तथा जलीय पारिस्थितिकी तंत्र मानव आबादी के लिए महत्वपूर्ण संसाधन प्रदान करता ह
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ओमपाल, सिंह, та हेम ेन्द्र सिंह डा॰. "बौद्धिक सम्पदा और बच्चा ें की शिक्षा से सम्बन्धित समस्याएँ". International Journal of Research - Granthaalayah 6, № 9 (2018): 332–39. https://doi.org/10.5281/zenodo.1443513.

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Abstract:
शिक्षा मानव जीवन का श्रं ृगार है । शिक्षा के माध्यम से ही व्यक्ति एक विशिष्ट व्यक्तित्व को प्राप्त करन े में सक्षम हो सकता है । अन ेक बार अशिक्षित व्यक्ति भी प्रभावशील होता है; परन्त ु, शिक्षा क े अभाव म ें वह मुख्य रूप से अपन े परिवेश से ही अधिकतम ज ुड़ा हुआ रहता है जिस क े कारण वह अपनी उन विशिष्टताओं का े व्यापक रूप प्रदान करन े में प्रायः अक्षम रहता है जिन से कि वह सम्पूर्ण भारतीय और विदेशी नागरिकों को लाभ पहुँचा सक े । वर्तमान वैश्विक परिदृश्य यह संकेत करता है कि वह देश वैश्विक धरातल पर टिका नहीं रह सकता जिस के नागरिक शिक्षा से वंचित हैं । भारतीय परिप्रेक्ष्य में बच्चों की शिक्षा से सम्बन्
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कुमार, डॉ उपदेश. "जयपुर महानगर की नगरीय पारिस्थितिकी का एक भौगोलिक विश्लेषण". International Journal of Geography, Geology and Environment 5, № 2 (2023): 199–202. http://dx.doi.org/10.22271/27067483.2023.v5.i2b.231.

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कुमार, अनिल. "पारिस्थितिकी संरक्षण के संदर्भ में उपभोक्तावाद की गांधीवादी आलोचना". International Journal of Political Science and Governance 3, № 2 (2021): 114–17. http://dx.doi.org/10.33545/26646021.2021.v3.i2b.123.

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DWIVEDI, BHARTI. "पर्यावरण, परिस्थितिकीय एवं वर्तमान स्वरूप". Humanities and Development 16, № 1-2 (2021): 163–68. http://dx.doi.org/10.61410/had.v16i1-2.31.

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Abstract:
युग परिवर्तन सत्त प्रक्रिया है। ‘‘कलयुग‘‘ भी अवश्यंभावी था, परन्तु ‘‘कल‘‘ की क्षुधाग्नि इतनी विनाशकारक होगी कि जो प्राकृतिक तादात्म्य एवं संतुलन के 5,000 वर्षों से सुव्यवस्थित, स्वनियमन को नष्ट कर मात्र एक शताब्दी से भी कम समय में छिन्न-विछिन्न कर देगी, सम्भवतः मानव जगत् ने भी यह आशा न की होगी। जब पक्षियों को चहचहाना बन्द हुआ तो पाश्चात्य चिंतन की निद्रा भंग हुयी तथा जिस तीव्रता से औद्योगिक विकास का चरम प्राप्त किया था वही गति ‘‘पर्यावरणवादी आन्दोलनों‘‘ में भी दृष्टिगत होने लगी। ‘‘म्हूमन सेंटरड‘‘ या ‘‘एंथ्रोप्रोसेंट्रिक‘‘ या उथला पारिस्थितिकी जैसे मनुष्य की प्रकृति के नियंत्रक और नियामक सम्प्र
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Choudhary, Surendra. "पर्यावरण प्रदूषणः बिहार राज्य के विषेष सन्दर्भ में एक अ/ययन". International Journal of Education, Modern Management, Applied Science & Social Science 07, № 01(II) (2025): 121–24. https://doi.org/10.62823/ijemmasss/7.1(ii).7337.

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Abstract:
पर्यावरण प्रदूषण एक ऐसी सामाजिक समस्या है ेिजससे मानवसहित जैव समुदाय के लिए जीवन की कठिनाईयाँ बढ़ती जा रही हैं। पर्यावरण के तत्वों में गुणात्मक ह्रास के कारण आज प्रकृति एवं जीवों का आपसी संबंध बिगड़ता जा रहा है, जिनका समाधान अत्यावष्यक है। मानव-पर्यावरण सम्बंध भूगोल की मौलिक विषय वस्तु है। मानव की समस्त क्रियाएॅं परिवेष से नियंत्रित होती है मानव की विविध संस्कृतियाँ, मानव पर्यावरण के संबंधों के प्रतीक हैं तथा पर्यावरण अनुक्रम इसके बिगड़ते सम्बधों का प्रतिफल हैं पर्यावरण और पारिस्थितिकी के अ/ययन में भूगोल की महत्ता इस बात से प्रमाणित है कि यही एक मात्र विषय है जो भौतिक परिवेष और मानवीय पर्यावरण प्
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Choudhary, Surendra. "पर्यावरण प्रदूषणः बिहार राज्य के विषेष सन्दर्भ में एक अ/ययन". International Journal of Education, Modern Management, Applied Science & Social Science 06, № 04(II) (2024): 257–60. https://doi.org/10.62823/ijemmasss/6.4(ii).7127.

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Abstract:
पर्यावरण प्रदूषण एक ऐसी सामाजिक समस्या है ेिजससे मानवसहित जैव समुदाय के लिए जीवन की कठिनाईयाँ बढ़ती जा रही हैं। पर्यावरण के तत्वों में गुणात्मक ह्रास के कारण आज प्रकृति एवं जीवों का आपसी संबंध बिगड़ता जा रहा है, जिनका समाधान अत्यावष्यक है। मानव-पर्यावरण सम्बंध भूगोल की मौलिक विषय वस्तु है। मानव की समस्त क्रियाएॅं परिवेष से नियंत्रित होती है मानव की विविध संस्कृतियाँ, मानव पर्यावरण के संबंधों के प्रतीक हैं तथा पर्यावरण अनुक्रम इसके बिगड़ते सम्बधों का प्रतिफल हैं पर्यावरण और पारिस्थितिकी के अ/ययन में भूगोल की महत्ता इस बात से प्रमाणित है कि यही एक मात्र विषय है जो भौतिक परिवेष और मानवीय पर्यावरण प्
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राय, अजय क. ुमार. "जनसंख्या दबाव से आदिवासी क्षेत्रों का बदलता पारिस्थितिकी तंत्र एवं प्रभाव (बैतूल-छिन्दवाड़ा पठार के विशेष सन्दर्भ में)". Mind and Society 9, № 03-04 (2020): 31–38. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-93-4-20214.

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Abstract:
जनजातीय पारिस्थितिकी म े ं वन, क ृषि म े ं स ंलग्नता, आवास, रहन-सहन का स्तर, स्वास्थ्य स ुविधाआ े ं का अध्ययन आवश्यक हा ेता ह ै। सामान्यतः धरातलीय पारिस्थ्तििकी का े वनस्पति आवरण क े स ंदर्भ म ें परिभाषित किया जाता ह ै। अध्ययना ें स े यह स्पष्ट ह ैं कि यदि किसी स्थान पर जनस ंख्या अधिक ह ैं आ ैर यदि उसकी व ृद्धि की गति भी तीव ्र ह ै ं ता े वहा ं पर अवस्थानात्मक स ुविधाआ ंे क े निर्मा ण क े परिणास्वरूप तथा विकासात्मक गतिविधिया ें क े कारण विद्यमान स ंसाधना ें पर दबाव निर ंतर बढ ़ता ही जाता ह ैं, प ्रस्त ुत अध् ययन म े ं शा ेधार्थी आदिवासी एव ं वन बाह ुल्य क्ष ेत्र ब ैत ूल-छि ंदवाड ़ा पठार म ें ज
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Kumawat, Ramesh Chandra. "Impact of agricultural development on physical, economic and ecological environment in Alwar region." International Journal of Multidisciplinary Research Configuration 4, no. 1 (2024): 38–52. http://dx.doi.org/10.52984/ijomrc4104.

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Abstract:
भारत के राजस्थान में अलवर क्षेत्र अपनी उपजाऊ मिट्टी और अनुकूल जलवायु के कारण एक महत्वपूर्ण कृषि केंद्र है। यह सदियों से गेहूं, सरसों, बाजरा और सब्जियों जैसी फसलों का उत्पादन करने वाला एक प्रमुख कृषि केंद्र रहा है। इस क्षेत्र ने उत्पादकता और दक्षता बढ़ाने के लिए आधुनिक तकनीकों और प्रौद्योगिकियों को अपनाते हुए अपनी कृषि पद्धतियों को विकसित किया है। यह जैविक खेती और जल संरक्षण विधियों जैसी अपनी नवीन प्रथाओं के लिए जाना जाता है, जिन्होंने पानी की कमी जैसी चुनौतियों का सामना करते हुए कृषि क्षेत्र को बनाए रखने में मदद की है। जैविक खेती के विषय एक शोध में कहाहै कि ” जैविक खेती कृषि की वह विधा है, जिस
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निशा, प. ंवार. "ज ैव विविधता एवं संरक्षण". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special edition) (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.882969.

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Abstract:
पृथ्वी अपन े म ें असीम संभावनाए ं एकत्रित किये ह ुए है । प ्रकृति के अन ेकान ेक विविधताओ ं की कल्पना कर ही इस बात का पता लगाया जा सकता ह ै कि संभावनाए ं पक्ष की ह ै या विपक्ष की तात्पर्य प ृथ्वी पर अथाह कृषि भूमि, जल वृक्ष, जीव-जन्त ु तथा खाद ्य पदार्थ थे, परन्त ु मानव के अनियंत्रित उपभोग के कारण ये सीमित हा े गये ह ै । पर वास्तव में हम अपन े प्रयासों से इन संपदाओं का उचित प ्रब ंध कर इसे भविष्य के लिए उपयोगी बना सकत े ह ै । जैव विविधता किसी दिये गये पारिस्थितिकी त ंत्र बायोम, या एक प ूर े ग ृह में जीवन क े रूपों की विभिन्नता का परिणाम है । ज ैव विविधता किसी जैविक त ंत्र के स्वास्थ्य का घोतक ह
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यादव, दीपा, та आनन्दकर सिंह*. "भूमि उपयोग परिवर्तन एवं जैव विविधता ह्रास: जनपद उन्नाव के विशेष सन्दर्भ में". Humanities and Development 16, № 1-2 (2021): 134–38. http://dx.doi.org/10.61410/had.v16i1-2.26.

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Abstract:
आदिकाल से मानव एवं प्रकृति के मध्य सम्बन्धों में प्राकृतिक वातावरण मानव जीवनयापन के लिए संसाधनों का आधार रहा है। मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक के समस्त उपादनों के सम्पादन तथा विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन के लिए ‘भूमि’ आधारभूत तत्व है। पृथ्वी तल पर जनसंख्या एवं प्राकृतिक संसाधनों के वितरण में व्यापक विषमता देखने को मिलती है। मानव की विविध आवश्यकताओं- शहरीकरण, औद्योगीकरण, कृषि क्षेत्र के प्रसार, खनन, अवस्थापनात्मक सुविधाओं के विस्तार इत्यादि के कारण पारिस्थितिकी तंत्र पर दबाव बढ़ता जा रहा है। प्रो. स्टाम्प के अनुसार भूमि उपयोग के निर्धारण में प्रत्येक भूमि इकाई के अनुकूलित उपयोग को निर्धारित किय
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नागवंशी, रवि प्रताप, та अविनाश प्रताप सिंह. "भारत में मतदान व्यवहार पर मीडिया का प्रभाव". Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education 22, № 01 (2025): 402–9. https://doi.org/10.29070/x5t99p71.

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Abstract:
यह शोध लेख भारत में मीडिया और मतदान व्यवहार के बीच संबंधों की जांच करता है, जिसमें मतदाता धारणाओं और चुनावी परिणामों को आकार देने में मीडिया की परिवर्तनकारी भूमिका पर ध्यान केंद्रित किया गया है। जाति, समुदाय और क्षेत्रवाद जैसे पारंपरिक प्रभाव मतदाता निर्णय लेने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हालाँकि, डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म के उदय और मीडिया प्रथाओं के विकास ने चुनावी परिदृश्य को नया रूप दिया है। जबकि पारंपरिक मीडिया जैसे समाचार पत्र और टेलीविज़न अभी भी महत्वपूर्ण बने हुए हैं, सोशल मीडिया के आगमन ने राजनीतिक जुड़ाव और पहुँच को बढ़ाया है, खासकर युवा मतदाताओं के बीच। गलत सूचना, मीडिया पूर्वाग्रह और
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पांचाळ, नारायण हणमंतराव. "आकाशगंगाचे संरक्षक: ओझोन अशी मोजणारी आणि त्याच्या परिणामांची समज". 'Journal of Research & Development' 15, № 16 (2023): 181–86. https://doi.org/10.5281/zenodo.8362701.

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Abstract:
<strong>संक्षिप्त</strong> ओझोन अशी मोजणारी ही पृथ्वीच्या स्त्रातोस्फेरमधील संरक्षक ओझोन परताची धीरगीर अळीव होणे आहे, प्रमुखपणे क्लोरोफ्लुओरोकार्बन (सीएफसी) आणि हॅलॉन्स इत्यादी मानवनिर्मित रसायनांच्या मुक्तपणाच्या कारणांमुळे. ही मोजणारी आपल्या आणि दुष्ट अल्ट्राव्हायलेट (यूव्ही) किरणाच्या पृथ्वीच्या परतवर्ती तळाशी वाढते. ओझोन अशी मोजणारीच्या परिणाम सुत्रधार आहेत आणि त्यामध्ये आरोग्यावरील परिणाम, पारिस्थितिकी विघटने आणि सामग्रीची क्षयस्थिती समाविष्ट आहे. उच्च यूव्ही किरणे माणसांमध्ये त्वचा कॅन्सर, मोत्यांच्या वातांच्या अशा आरोग्यिक परिणामांची वाढी देतात. जीवोपयोगी प्रणाली, विशेषतः जलीय प्रणाली,
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अ, ंशु अर्प ण. भारद्वाज. "इको टूरिज्म". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special edition) (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.838915.

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Abstract:
पर्यटक और पर्यावरण का सहसम्बन्ध ह ै। वर्त मान समय म ें विश्व के समस्त द ेशों में पर्यटन का विकास तीव्रगति से हो रहा ह ै और इसन े उद्या ेग का रूप ले लिया है। पर्यटन उद्योग क े विकास क े साथ-साथ पर्यावरण क े संरक्षण की आवश्यकता न े विश्व के पर्यावरणविदों को चिंतित कर रखा है। अनियंत्रित पर्यटन से जैव विविधता तथा पारिस्थितिकी त ंत्र प्रभावित हा ेता है। अतः इन दुष्परिणामों का े नियंत्रित करने के लिए पर्यटकों का े उत्तरदायी पर्यटन एव ं इको ट ूरिज्म (पर्यावरणीय पर्यटन) हेत ु जागरूक करना चाहिए। उत्तरदायी पर्यटन भौतिक, सामाजिक एव ं सांस्कृतिक पतन को रोकता है। उत्तरदायी पर्य टन में स्थानीय समुदाय के सहय
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Singh, Gurpal. "The Roots of Sustainable Development: An Environmental History of Global Societies." Gyanvividh 02, no. 01 (2025): 88–94. https://doi.org/10.71037/gyanvividha.v2i1.08.

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Abstract:
यह शोध पत्र, "सततता की जड़ें: वैश्विक समाजों का पर्यावरणीय इतिहास", मानव समाजों और प्राकृतिक पर्यावरण के बीच जटिल संबंध की पड़ताल करता है, जो समकालीन सततता प्रथाओं को आकार देने वाले ऐतिहासिक विकास को दर्शाता है। यह प्राचीन सभ्यताओं से लेकर आधुनिक युग तक पर्यावरणीय इंटरएक्शन के विकास की समीक्षा करता है, और औद्योगिकीकरण, उपनिवेशवाद, और वैश्विक व्यापार नेटवर्कों के पारिस्थितिकी बदलावों पर प्रभाव को उजागर करता है। इसके साथ ही यह पर्यावरणवाद के उदय और सतत विकास की अवधारणा पर भी चर्चा करता है, और प्रमुख पर्यावरणीय आंदोलनों और उनके नीति व वैश्विक संवाद पर प्रभाव को समझता है। भारत के चिपको आंदोलन जैसे
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संतोष, कुमार, та संतोष कुमार डॉ. "समस्तीपुर जिला में जैविक कृषि का कृषकों के आर्थिक विकास पर प्रभाव". 'Journal of Research & Development' 15, № 18 (2022): 46–50. https://doi.org/10.5281/zenodo.7431777.

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Abstract:
<strong>सारांश </strong> 1960 के दशक के मध्य शुरू हुई हरित क्रांति ने बीजों की उच्च उपज देने वाली किस्म और अन्य आधुनिक कृषि प्रौद्योगिकियों के साथ भारत को पूरी तरह से घाटे से एक खाद्यान अधिशेष देश में बदल दिया । हरित क्रांति के परिणामस्वरूप विशेष रूप से ग्रामीण कृषक समुदाय और पूरे देश के सामाजिक-आर्थिक विकास पर जबरदस्त प्रभाव पड़ा। हालांकि, वर्षों से हरित क्रांति का प्रभाव कम होता जा रहा है। हरित क्रांति प्रौद्योगिकियों के अंधाधुंध प्रयोग से कृषि पारिस्थितिकी का समग्र क्षरण हुआ है, जिसने मृदा की उर्वरता में कमी, मृदाक्षरण, जल स्तर में कमी, मृदा लवणता, मिट्टी जल एवं वायु प्रदूषण, मित्र जीवाणुओं
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Trivedi, Anjali, Alka Srivastava, Anjum Farooqui, et al. "Pollen morphological study in subfamily Papilionoideae using Confocal Laser Scanning Microscopy." Journal of Palaeosciences 71, no. 2 (2022): 123–42. http://dx.doi.org/10.54991/jop.2022.538.

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Abstract:
The pollen morphological study was carried out in the subfamily Papilionoideae using Confocal Laser Scanning Microscopy (CLSM) to facilitate the identification of pollen in sedimentary archives. Pollen has long been used as an excellent proxy for understanding past vegetation, ecology, climate and agricultural strategies of ancient settlements and therefore, its identification at a specific level is of utmost importance. The modern pollen samples were retrieved from plants growing in urban and rural areas of Kanpur city, Uttar Pradesh, India. The cluster analysis and PCA of pollen morphologica
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Kumawat, Sunil Kumar. "Biodiversity in India." RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 9, no. 10 (2024): 198–205. https://doi.org/10.31305/rrijm.2024.v09.n10.023.

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Abstract:
Biodiversity refers to the variety of living organisms and their interactions. Over time, biodiversity changes due to species extinction and the evolution of new species. Scientifically, biodiversity encompasses species diversity, genetic diversity, and ecosystem diversity. Humans depend on biodiversity for ecological life support because it ensures functional ecosystems. These ecosystems provide essential services such as oxygen, clean air and water, pest management, and wastewater treatment. Thus, preserving biodiversity is crucial for sustaining life on Earth. This study aims to explore the
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Thapa, Ashok. "नेपालमा पर्यावरणीय साहित्य र पौड्यालको बूढो रूख र जुरेली कथा". Vaikharivani 2, № 2 (2025): 1–8. https://doi.org/10.3126/vaikharivani.v2i2.79238.

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Abstract:
साहित्यमा पर्यावरणीय चिन्तनको विकास वैदिककालदेखि आजसम्म विस्तारित छ । यस आलेखमा पारिस्थितिकी, वातावरण संरक्षण र साहित्यबीचको अन्तर्सम्बन्धलाई केन्द्रीकृत गर्दै पश्चिमी इकोक्रिटिसिज्म र नेपाली साहित्यमा पर्यावरणीय चेतनाको उदय र महेश पौड्यालको अपरिचित अनुहार (२०७८) कथासङ्ग्रहभित्र सङ्कलित 'बूढो रूख र जुरेली' कथामा पर्यावरणीय चेतना केकसरी प्रयोग भएको छ भनी विवेचना गरिएको छ । आगमन र निगमन दुवै विधिको अनुसरण गरिएको यस लेखमा विश्लेषणका लागि वैदिक साहित्यका पञ्चतत्त्व र प्रकृति पूजनपरम्परा नेपाली साहित्यमा देखिने पारिस्थितिकीय धारणासँग तुलना गरिएको छ । २० औँ शताब्दीको मध्यदेखि विश्वव्यापी वातावरणीय आ
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क, ुमक ुम भारद्वाज. "''किशनगढ़ श्©ली का पर्यावरण-प्रकृति चित्र्ाण की सांस्कृतिक परम्परा''". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.882061.

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Abstract:
‘‘राजस्थान की किशनगढ ़ श्©ली के चित्र्ा प्रकृति क¨ संरक्षित करके पर्यावरण जागरुकता क¨ आज के परिव ेश में प्रदर्शित करत े हैं। चित्र्ा¨ ं में वनस्पति, जल, वायु तीन¨ं पर्यावरणीय घटक प्रचुर मात्र्ाा में चित्र्ाित ह ैं। पर्यावरण में प्रकृति चित्र्ाण के साथ अध्यात्म दर्शन की सांस्कृतिक परम्परा क¨ ज¨ड ़ा गया ह ै। हरियालीमय सुरम्य वातावरण चित्र्ा¨ं मंे प्रकृति चित्र्ाण की सांस्कृतिक थाती पर्यावरण प्रद ूषित ह¨न े से बचान े का सन्द ेश जन-जन तक पहुँचाती प्रतीत ह¨ती है, ज¨ एक सकारात्मक प्रयास है। पर्यावरण का तात्पर्य समस्त ब्रह्माण्ड के न ैतिक एव ं जैविक व्यवस्था से ह ै, जिसके अंतर्गत समस्त जीवधारी ह¨त े
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यादव, इन्द्राज मल. "केन्द्रशासित प्रदेश लद्दाख में पूर्ण राज्य की मांग एवं छठी अनुसूची का प्रश्न". Shrinkhla Ek Shodhparak Vaicharik Patrika 11, № 9 (2024): H10—H18. https://doi.org/10.5281/zenodo.12635195.

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Abstract:
This paper has been published in Peer-reviewed International Journal "Shrinkhla Ek Shodhparak Vaicharik Patrika"&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; URL :&nbsp;https://www.socialresearchfoundation.com/new/publish-journal.php?editID=9095 Publisher : Social Research Foundation, Kanpur (SRF International)&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; Abstract : &nbsp;केन्द्रशासित प्रदेश लद्दाख में लद्दाख वासियों द्वारा सोनम वांगचुक के नेतृत्व में मौजूदा विरोध प्रदर्शन और छठी अनुसूची
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Yadav, Suman, and Purnima Mishra. "Water Management and Sustainable Development in Alwar District." RESEARCH HUB International Multidisciplinary Research Journal 11, no. 9 (2024): 36–44. https://doi.org/10.53573/rhimrj.2024.v11n9.008.

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Abstract:
Water resources on Earth are fundamental for the development and survival of the entire biological world, including humans. Water plays a crucial role in the circulation and transmission of nutrients among various components of the ecosystem. The availability of water acts as a driving force for development, while its scarcity leads to destruction. It is well-known that water is a basic necessity for humans and a vital natural resource. Over the past few decades, humans have exploited this resource intensively through various activities. Consequently, several water-scarce regions, including pa
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Bharadwaj, Anshu Arpan. "Eco tourism." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 3, no. 9SE (2015): 1–3. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v3.i9se.2015.3211.

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Abstract:
There is a correlation of tourist and environment. Currently, tourism is developing rapidly in all the countries of the world and it has taken the form of industry. The need for conservation of environment along with the development of tourism industry has worried the environmentalists of the world. Biodiversity and ecosystem are affected by uncontrolled tourism. Therefore, to control these side effects, tourists should be made aware about responsible tourism and eco-tourism. Responsible tourism prevents physical, social and cultural degradation. In responsive tourism, the tourism sector is de
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Sukriti. "Environment in modern and ancient perspective." RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 7, no. 5 (2022): 154–57. http://dx.doi.org/10.31305/rrijm.2022.v07.i05.022.

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Abstract:
How to preserve and protect the environment all over the world in present times. This is a big Yaksha question. There is an uproar in the whole world regarding this issue. Not only the humans living on this earth but also the animals, birds, trees, mountains, lakes and even the space are struggling with this problem. Continuous cutting of trees in the name of development, blowing up mountains using dynamite, pollution of rivers, lakes, oceans, holes in the ozone layer only indicate the dire situation of natural imbalance. Sometimes heavy rain, sometimes no rain, sometimes thunder, sometimes sn
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राकेश, कवच े. किरण बड ेरिया आलोक गोयल. "''रेडिया ेधर्मी प्रदूषण का बढ ़ता दायरा'' मानव क े लिए अभिषाप". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.883000.

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Abstract:
पर्यावरण प्रद ूषण एक ए ेसी सामयिक समस्या है जिसमें मानव सहित जैव जगत ् क े लिए जीवन की कठिनाईया ँ बढ ़ती जा रही हैं। पर्यावरण के तत्त्वो ं में गुणात्मक ह ्रास के कारण जीवनदायी तत्त्व यथा वायु, जल, मृदा, वनस्पति आदि के न ैसर्गिक गुण ह्रसमान होत े जा रहे हैं जिससे प्रकृति और जीवों का आपसी सम्बन्ध बिगड ़ता जा रहा ह ै। यह सर्व ज्ञात है कि पर्यावरण प्रद ूषण आध ुनिकता की द ेन है। वैसे प्रद ूषण की घटना प्राचीनकाल में भी हा ेती रही ह ै लेकिन प्रकृति इसका निवारण करन े में सक्षम थी, जिससे इसका प्रकोप उतना भयंकर नहीं था, जितना आज है। च ूँकि आज प ्रद ूषण की मात्रा प ्रकृति की सहनसीमा को लाँघ गई ह ै फलतः इ
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flag, MkW cydkj. "ग्रामीण जीवन और पर्यावरण सहसंबंध". International Journal of Advance and Applied Research 4, № 39 (2023): 1–4. https://doi.org/10.5281/zenodo.10362002.

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Abstract:
<strong>अमूर्त:&nbsp;</strong>ग्रामीण जीवन और पर्यावरणीय स्थिरता के बीच जटिल संबंधों पर प्रकाश डालता है,&nbsp;जिसमें उन बहुमुखी तरीकों पर प्रकाश डाला गया है जिनसे ग्रामीण समुदाय अपने आसपास के वातावरण को प्रभावित करते हैं और प्रभावित होते हैं। मौजूदा साहित्य और अनुभवजन्य अध्ययनों की व्यापक समीक्षा के माध्यम से,&nbsp;हम इस सहसंबंध के मुख्य बिंदुओं को उजागर करते हैं,&nbsp;जो पर्यावरण और उसके निवासियों दोनों की भलाई सुनिश्चित करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में टिकाऊ प्रथाओं को अपनाने की आवश्यकता पर बल देते हैं। आज की तेजी से बदलती दुनिया में ग्रामीण जीवन और पर्यावरण के बीच संबंध पहले से कहीं अधिक म
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गोयल, रश्मि. "दुनिया भर में जलवायु और ऊर्जा के मुद्दे". Anthology The Research 9, № 2 (2024): H16—H24. https://doi.org/10.5281/zenodo.11485048.

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Abstract:
This paper has been published in Peer-reviewed International Journal "Anthology The Research"&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; URL : https://www.socialresearchfoundation.com/new/publish-journal.php?editID=9033 Publisher : Social Research Foundation, Kanpur (SRF International)&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; &nbsp; Abstract : पारिस्थितिकी बदलाव उदाहरण के तौर पर जलवायु परिवर्तन,&nbsp;ग्लेशियरों का पिघलना,&nbsp;बर्फ के पहाड़ों की कमी प्लास्टिक कचरे की मात्रा,&nbsp;सब सम्प
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Bhardwaj, Kumkum. ""CULTURAL TRADITION OF ECO-NATURE PAINTING OF KISHANGARH"." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 3, no. 9SE (2015): 1–3. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v3.i9se.2015.3232.

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Abstract:
"The paintings of Kishangarh Sh. Of Rajasthan display the awareness of the environment in today's environment by preserving nature." Vegetation, water, air, three environmental components are depicted in abundance. The cultural tradition of spirituality philosophy is embedded in the environment with nature painting. The picturesque environment of the picturesque environment in the greenery seems to spread the message of saving the environment from getting polluted to the environment, which is a positive effort.Environment refers to the moral and biological system of the entire universe, under
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Kavach, Rakesh, Kiran Baderia, and Alok Goyal. ""INCREASING SCOPE OF RADIOACTIVE POLLUTION"." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 3, no. 9SE (2015): 1–3. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v3.i9se.2015.3246.

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Abstract:
Environmental pollution is an occasional problem in which the difficulties of life for the bio-world including humans are increasing. Due to the qualitative degradation of the environmental elements, the natural properties of life-like elements such as air, water, soil, vegetation, etc. are getting diminished due to which the relationship between nature and organisms is deteriorating. It is well known that environmental pollution is a product of modernity. Although the phenomenon of pollution has been occurring even in ancient times, but nature was able to prevent it, due to which its outbreak
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Mishra, Anuj Kumar. "भारत में पारिस्थितिकी नारीवाद एवं नवदान्य आन्दोलन". 1 березня 2024. https://doi.org/10.5281/zenodo.15570860.

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Abstract:
<strong>भारत में पारिस्थितिकीय नारीवाद और नवदान्य आन्दोलन</strong> <strong>शोध सार</strong> भारत में पारिस्थितिकीय नारीवाद की सैद्धान्तिक अवधारणा का व्यवहारिक रूप वंदना शिवा के 'नवदान्य' आन्दोलन के संदर्भ में देखा जा सकता है। यह पाश्चात्य औपनिवेशिक पितृसत्तात्मक, पूंजीवादी शोषण के फलस्वरूप हाशियें पर आ चुकी महिलाओं और प्रकृति के अपघटन को पुर्नसंरक्षित तथा संवर्द्धित करने का प्रयास है। यह पारिस्थितिकीय क्षरण के विभिन्न कारकों यथा अनुवांशिक संवर्द्धित बीजों का प्रयोग, रासायनिक उर्वरक, कीटनाशकों का प्रयो ग, संसाधनों के पूर्ण दोहन की विचारधारा का एक परम्परागत ज्ञान आधारित प्रति उत्तर है, जोकि बीज
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सरोज, नि‛ाा, та ऋचा पाठक. "भगवान बुद्ध एवं उनकी ‛िाक्षाओं में पर्यावरण". Humanities and Development 20, № 01 (2025). https://doi.org/10.61410/had.v20i1.223.

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Abstract:
बुद्ध का सम्पूर्ण जीवन दर्‛ान जीव जन्तु एवं पर्यावरण का उदाहरण है। बुद्ध के अनुसार मानवीय गुण सुकर्मों के माध्यम से ही समस्त अवधारणाएँ, विचार आदि इसी पक्ष को उजागर करती है कि मानवीय गुण स्वस्थ पारिस्थितिकी एवं पर्यावरण मंे ही प्रस्फुटित हो सकते हैं। वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन आज मानव जीवन के लिए गम्भीर मुद्दा है। यह सम्पूर्ण वि‛व की अर्थव्यवस्था एवं पारिस्थितिक प्रणाली के माध्यम से जीवन यापन को प्रभावित कर रहा है। ऐसी स्थिति में भगवान बुद्ध और उनकी शिक्षाओ में पर्यावरण एवं पर्यावरण संरक्षण का ज्ञान महत्वपूर्ण कारक बना।
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Jaiswal, Jaiprakash. "सतत कृषि पद्धतियाँ और सूक्ष्म स्तरीय नियोजन: जनपद उधम सिंह नगर का एक केस अध्यन". ShodhKosh: Journal of Visual and Performing Arts 5, № 4 (2024). https://doi.org/10.29121/shodhkosh.v5.i4.2024.4470.

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Abstract:
उत्तराखण्ड में एक प्रमुख कृषि केन्द्र जनपद उधम सिंह नगर मिट्टी के क्षरण, पानी की कमी और जलवायु परिवर्तनशीलता जैसी चुनौतियों का सामना कर रहा है। यह अध्ययन सामाजिक पारिस्थितिकी लचीलापन बढ़ाने के लिए सतत कृषि पद्धतियों के कार्यान्वयन और सूक्ष्म स्तरीय नियोजन के साथ उनके संरक्षण का मूल्यांकन करता है। इसमें द्वितीयक आंकड़ों का उपयोग करते हुए शोध पत्र फसल विविधीकरण, जैविक खेती, जल संरक्षण और नीति हस्तक्षेप का विश्लेषण करता है। निष्कर्षों से पता चलता है कि 34 प्रतिशत किसानों ने सतत कृषि पद्धतियों को अपनाया, जिसके परिणाम स्वरूप शुद्ध आय में 22 प्रतिशत की वृद्धि हुई और पानी के उपयोग में 18 प्रतिशत की कमी
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RAI, VIVEK KUMAR. "POPULATION GROWTH AND ENVIRONMENTAL DEGRADATION : A GEOGRAPHY OF GHAZIPUR DISTRICT STUDY." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 8, no. 10 (2020). http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v8.i10.2020.1830.

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Abstract:
English: Rapid population growth is one of the major causes of environmental degradation. In fact, as a result of increase in human population, there are phenomena such as expansion in agriculture, urbanization, intensive industrialization etc. which play an important role in environmental degradation and ecological imbalance. Ghazipur is a district located in the Ganges River basin in the eastern part of Uttar Pradesh, whose district headquarters is Ghazipur. Its latitudinal range is between 25 ° 19′ and 25 ° 54′ and longitudinal 83 ° 4′ and 83 ° 58 ′, covering an area of ​​3577 square kilome
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प्रकाश, वेद, प्रकाश चन्द घासल, पवन जीत та प्रेम कुमार सुंदरम. "भारतीय परिपेक्ष्य में प्राकृतिक खेती की चुनौतियां एवम भविष्य". कृषि मञ्जूषा 4, № 02 (2022). http://dx.doi.org/10.21921/km.v4i02.9288.

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Abstract:
सामान्य उपभोक्ताओं में, खाद्य गुणवत्ता और सुरक्षा दो महत्वपूर्ण कारक हैं जिन पर लगातार ध्यान दिया जा रहा है। सामान्य उपभोक्ताओं में परंपरागत रूप से उगाए गए खाद्य पदार्थों के कारण स्वास्थ्य पर अत्यधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। परंपरागत रूप से उगाए गए खाद्य पदार्थों में उच्च कीटनाशक अवशेष, अधिक नाइट्रेट, भारी धातु, हार्मोन एवं एंटीबायोटिक की उपस्थिति के कारण स्वास्थ्य पर अत्यधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। प्राकृतिक खेती को फसल उत्पादन प्रणाली के रूप में स्वीकार किया जाता है जो परंपरा, नवाचार और उन्नत कृषि प्रौद्योगिकी के संयोजन से मिट्टी, पारिस्थितिकी तंत्र और लोगों के स्वास्थ्य को बनाए रख सकती है।
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-, बेचा लाल, та अनिल कुमार, -. "भारतीय ज्ञान परम्परा में पंचमहाभूत सिद्धान्त एवं सतत् विकास". International Journal For Multidisciplinary Research 6, № 6 (2024). https://doi.org/10.36948/ijfmr.2024.v06i06.33992.

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Abstract:
इस अध्ययन का उद्देश्य भारतीय संस्कृति और दर्शन में उल्लिखित पांच मूल तत्व आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी के महत्व को तलाशना तथा समकालीन समाज हेतु प्रस्तुत करना है। वैदिक वाङ्मय में हम इन्हें पंचमहाभूत के रूप में भी जानते हैं, जिन्हें केंद्र में रखकर पारंपरिक और वैदिक ज्ञान को समकालीन वैज्ञानिक समझ के साथ जोड़ने की आवश्यकता है। इसका उद्देश्य प्राचीन और पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक विज्ञान के साथ एकीकृत करके इन पंचमहाभूतों (पांच तत्वों) की व्यापकता पर सामान्य समझ विकसित करना है। यह एक ज्ञात तथ्य है कि पृथ्वी के जैविक विकास में जल महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह भी स्पष्ट है कि इन सभी पांच तत्वों में
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प्राची, प्राची, та सुनीता सिंह. "खाद्य प्रणालियों और पोषण पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव: एक विश्लेषण". Shodh Manjusha: An International Multidisciplinary Journal, 1 жовтня 2024, 114–29. https://doi.org/10.70388/sm241112.

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Abstract:
जलवायु परिवर्तन के कई परिणाम वैश्विक खाद्य प्रणालियों की स्थिरता को कमज़ोर करते हैं, खाद्य सुरक्षा और आहार की गुणवत्ता को कम करते हैं, और कमज़ोर आबादी को कई तरह के कुपोषण के शिकार बनाते हैं। कोविड-19 जैसी महामारियों के उभरने से स्थिति और भी खराब हो जाती है और अंतःक्रियाएँ और भी जटिल हो जाती हैं। जलवायु परिवर्तन विभिन्न स्तरों पर खाद्य प्रणालियों को प्रभावित करता है, जिसमें मिट्टी की उर्वरता और फसल की पैदावार, संरचना और खाद्य पदार्थों में पोषक तत्वों की जैव उपलब्धता, कीट प्रतिरोध और कुपोषण का जोखिम शामिल है। जलवायु-स्मार्ट कृषि के साथ-साथ टिकाऊ और लचीली खाद्य प्रणालियों की आवश्यकता है ताकि टिका
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-, आशा नागर. "आर्थिक उदारीकरण के परिणामस्वरूप होने वाले पर्यावरणीय दुष्प्रभावों का विश्लेषण : भारत के संदर्भ में एक अध्ययन". International Journal For Multidisciplinary Research 7, № 1 (2025). https://doi.org/10.36948/ijfmr.2025.v07i01.37580.

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Abstract:
आर्थिक उदारीकरण ने भारत में तीव्र आर्थिक विकास को प्रोत्साहित किया है, लेकिन इसके साथ ही पर्यावरणीय संतुलन को गंभीर क्षति पहुंची है। औद्योगीकरण, शहरीकरण और बढ़ती उपभोक्तावादी प्रवृत्तियों ने जल, वायु और भूमि प्रदूषण को तीव्र किया है, जिससे पारिस्थितिक तंत्र प्रभावित हुआ है। आर्थिक उदारीकरण के प्रभाव स्वरूप ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में वृद्धि हुई है, जिससे भारत का कार्बन फुटप्रिंट 2022 तक 2.88 बिलियन मीट्रिक टन CO₂ तक पहुंच गया। भारत ने 2005 की तुलना में 2030 तक अपनी अर्थव्यवस्था की उत्सर्जन तीव्रता को 33-35% तक कम करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। वहीं, औद्योगिक अपशिष्टों और अनियंत्रित प्राकृतिक
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-, Ashutosh Mena, та Anshu Rani Saxena -. "भारत में पर्यावरण कानून- क्रियान्वयन व चुनौतियाँ". International Journal For Multidisciplinary Research 5, № 5 (2023). http://dx.doi.org/10.36948/ijfmr.2023.v05i05.6136.

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Abstract:
पर्यावरण संरक्षण वैश्विक चिंतन का विषय है। पर्यावरण संरक्षण के लिए भारत भी लगातार प्रयासरत है। भारत में पर्यावरण संरक्षण पर कानूनों की कोई कमी नहीं है लेकिन इन कानूनों का सफल क्रियान्वयन एक चुनौती है। भारत में संवैधानिक प्रावधान एवं पर्यावरणीय कानूनों के प्रभावी, सफल और सुनियोजित क्रियान्वयन की तत्काल आवश्यकता है। इस दिशा में भारत की न्यायपालिका और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की रचनात्मक और नवाचारपरक भूमिका महत्वपूर्ण और प्रशंसनीय है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 48-ए और 51-ए(जी) में निहित प्रावधानों के तहत प्रदूषण नियंत्रण में विफल रहने पर कई उद्योगों और प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के खिलाफ सुप्रीम कोर
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Varke, Ajay. "नर्मदा घाटी का बहुआयामी अध्ययन: मध्य प्रदेश के ऐतिहासिक संदर्भ में (1956-2020)". ShodhKosh: Journal of Visual and Performing Arts 5, № 1 (2024). https://doi.org/10.29121/shodhkosh.v5.i1.2024.3756.

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Abstract:
1956 से 2020 तक, भारत में ऐतिहासिक रूप से एक महत्वपूर्ण क्षेत्र-नर्मदा घाटी-में जबरदस्त सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन देखे गए। इस शोधपत्र में नर्मदा सागर परियोजना (एनएसपी) की विकास परियोजनाओं के बहुआयामी प्रभावों की जांच की गई है। कृषि विस्तार, औद्योगीकरण और बेहतर जल प्रबंधन सभी इन कार्यक्रमों के परिणाम थे, लेकिन इनसे गंभीर सामाजिक और पर्यावरणीय समस्याएं भी पैदा हुईं। लगभग 200,000 व्यक्तियों की आर्थिक और सांस्कृतिक स्थिरता, जिनमें से अधिकांश जनजातियों से थे, तब बाधित हो गई जब उन्हें अन्यत्र स्थानों पर विस्थापित किया गया और उनके पुनर्वास कार्यक्रम में प्रगति लाने वाली कई बाधाओं का सामन
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रंजन, विनोद, та प्रभात प्रधान. "पकरीबरबाडीह कोयला खनन उघोग का प्रभावित परिवारों पर समाजिक-सांस्कृतिक प्रभाव: एक अध्ययन". Shrinkhla Ek Shodhparak Vaicharik Patrika 11, № 2 (2023). https://doi.org/10.5281/zenodo.10400801.

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Abstract:
This paper has been published in Peer-reviewed International Journal "Shrinkhla Ek Shodhparak Vaicharik Patrika"&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; URL : https://www.socialresearchfoundation.com/new/publish-journal.php?editID=7802 Publisher : Social Research Foundation, Kanpur (SRF International)&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; &nbsp; Abstract : प्रस्तुत शोध आलेख झारखण्ड राज्य के हजारीबाग जिला में एनटीपीसी
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थपलियाल, देव कृष्ण. "उत्तराखण्ड में बढती प्राकृतिक आपदाओं के कारक एवं शासन की नीति". Innovation The Research Concept 8, № 11 (2023). https://doi.org/10.5281/zenodo.10490138.

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Abstract:
This paper has been published in Peer-reviewed International Journal "Innovation The Research Concept"&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; URL : https://www.socialresearchfoundation.com/new/publish-journal.php?editID=7875 Publisher : Social Research Foundation, Kanpur (SRF International)&nbsp; Abstract : &nbsp;स्थानीय निवासियों के लम्बे संघर्ष के पश्चात इस जटिल भौगोलिक क्षेत्र को&nbsp;09&nbsp;नवम्बर&nbsp;2000&nbsp;को देश के मानचित्र पर&nbsp;27&nbsp;वॉ राज्य के रूप में&nbsp;&rsquo;&nbsp;के नाम से स्थापित क
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