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Journal articles on the topic 'फेसबुक'

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ओम, सिंह. "स्कूली छात्रों पर सोशल मीडिया का बढ़ता प्रभाव". Recent Educational & Psychological Researches (ISSN: 2278-5949) 12, № 01 (Jan.-Feb.Mar.) (2023): 78–82. https://doi.org/10.5281/zenodo.7932280.

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Abstract:
सोशल मीडिया जनसंपर्क का एक महत्वपूर्ण साधन है, ये आज की भागदौड़ की जिंदगी का एक अहम् हिस्सा बनता जा रहा हैं जिसे न तो छात्रों के जीवन से ही और न अन्य लोगों के जीवन से हटाया जा सकता है। सोशल मीडिया से हम पलक झपकते ही किसी भी विषय से सम्बन्धित जानकारी हासिल कर लेते हैं लेकिन दोनों के ही अपने सकारात्मक व नकारात्मक प्रभाव हैं, जो जीवन को बना भी सकते हैं और बिगाड़ भी सकते है सोशल मीडिया एक-दूसरे से हजारों किलोमीटर दूर बैठे लोगों को ईमेल व फेसबुक के जरिये एक-दूसरे के सम्पर्क में ला सकता है, जिससे हजारों किलोमीटर दूर बैठे व्यक्ति से भी हमारा सम्पर्क बना रहता है। फेसबुक, टिव्टर, गूगल, विकीपीडिया, टेली
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आहेर, श्री संजय दत्तात्रय, та श्री शरद शांतीलाल पाटील. "ग्रंथालयातील इलेक्ट्रॉनिक माहिती संसाधने : मार्केटिंग तंत्र व पद्धती". Journal of Research & Development 16, № 8 (2024): 130–34. https://doi.org/10.5281/zenodo.12738917.

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Abstract:
<strong>गोषवारा:</strong> इलेक्ट्रोनिक माहिती संसाधने उदा ई पुस्तके, ई नियतकालिके, ई वृत्तपत्रे यांचा प्रभावी वापरासाठी ग्रंथालयात चांगली माहिती व संप्रेषण प्रणाली (ICT) सुविधा आवश्यक असली तरी, त्या संसाधनाची जाहिरात करणे, त्याचे मार्केटिंग करणे व वाचकाचा अभिप्राय नोंदवणे यासाठी सुव्यवस्थित योजना असणे आवश्यक आहे. सध्या यासाठी ज्या पारंपारिक पद्धतींचा वापर होतो उदा माहिती पत्रक यासोबतच नवीन पद्धती उदा विकी, फेसबुक, ब्लॉग यांचा एकत्रित पणे वापर करता येणे शक्य आहे. त्यासाठी योग्य नियोजन, प्रशिक्षण व कार्यप्रणाली ची गरज आहे.
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प्रा.डॉ.सुनिता, श्रीपती कांबळे. "नियतकालिक आणि स्त्री संवाद". International Journal of Advance and Applied Research 2, № 21 (2022): 102–5. https://doi.org/10.5281/zenodo.7081483.

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Abstract:
भाषा व संवाद ही मानवी जातीला मिळालेली खूप मोठी देणगी आहे. यामुळेच मनुष्य हा पृथ्वीवरील इतर प्राणी मात्रांपेक्षा वेगळा ठरतो.भाषा हे विनिमयाचे साधन आहे. या भाषेच्या माध्यमातून अगर त्याच्याशिवायही आपण संवाद साधू शकतो. यामध्ये विविध प्रसारमाध्यमे, वृत्तपत्रे, नियतकालिके, चित्रपट, वेगवेगळे ग्रंथ, चित्रे, आकाशवाणी, दुरदर्शन, भ्रमणध्वनी, इंटरनेट अलिकडे ई-टपाल,फेसबुक, व्टीटर, व्हॉटस्अप, इत्यादी माध्यमांच्या व्दारे मनुष्य संवाद साधु शकतो. या अनेक प्रसारमाध्यमातून तो आपले विचार समाजापर्यंत पोहचू शकतो. स्वत:च्या अभिव्यक्तीसाठी या सर्व माध्यमांबरोबरच साहित्याचा अधिक वापर मनुष्य करतो. कथा, कविता, नाटक, काद
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देवकर, प्रा. संजय महादेव, та डॉ. उध्दव रामराव आघाव. "पुण्यश्लोक अहिल्यादेवी होळकर सोलापूर विद्यापीठ, सोलापूर संलग्नित महाविद्यालयीन ग्रंथालयामध्ये सामाजिक माध्यमांचा उपयोग : एक सर्वेक्षण". Journal of Research & Development 16, № 8 (2024): 160–68. https://doi.org/10.5281/zenodo.12739467.

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Abstract:
<strong>सारांश</strong> :- या शोधनिबंधामध्ये पुण्यश्लोक अहिल्यादेवी होळकर सोलापूर विद्यापीठ, सोलापूर संलग्नित महाविद्यालयीन ग्रंथालयामध्ये ग्रंथालय सेवा देणेसाठी ग्रंथपाल कोणत्या सामाजिक माध्यमांचा उपयोग करतात या संबंधित अभ्यास केलेला आहे. यासाठी वर्णनात्मक पध्दतीने माहिती संकलनासाठी गुगल फॉर्म व्दारे निवडक ५० ग्रंथपालांना प्रश्नावली पाठविण्यात आली होती यापैकी ३६ ग्रंथपालाचा प्रतिसाद मिळाला. या प्रश्नावलीच्या निश्कर्षातून असे दिसून आले कि, सर्वच ग्रंथपालांना सामाजिक माध्यमांची जाणिव असून, ग्रंथालयासंबधित आणि उपयोजकासाठी हवी असलेली माहिती देण्याचा प्रयत्न करीत आहेत. यामध्ये व्हॉट्सअॅप, फेसबुक,
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रविन्द्र, भाटिया शुभम, अग्रवाल शिल्पा, शर्मा सुमन та ढड़वाल युक्ति. "सोशल मीडिया पर आने वाले अप्रवासन संबंधी समाचारों का अंतर्वस्तु विश्लेषण: बीबीसी और इंडिया टुडे के फेसबुक पेज का एक अध्ययन". International Journal of Contemporary Research in Multidisciplinary 4, № 2 (2025): 176–81. https://doi.org/10.5281/zenodo.15206662.

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Abstract:
सोशल मीडिया वैश्विक स्तर पर समाचार प्रसार का एक महत्वपूर्ण माध्यम बन गया है, जहाँ अप्रवासन से संबंधित मुद्दे व्यापक चर्चा का विषय बने रहते हैं। यह अध्ययन बीबीसी और इंडिया टुडे के फेसबुक पेजों पर प्रकाशित अप्रवासन संबंधी समाचारों की अंतर्वस्तु का विश्लेषण करता है। शोध का उद्देश्य यह समझना है कि ये दो प्रतिष्ठित समाचार संस्थान अप्रवासन के मुद्दे को किस प्रकार प्रस्तुत करते हैं, किन नैरेटिव्स और फ्रेमिंग तकनीकों का उपयोग किया जाता है, और उनकी रिपोर्टिंग किस हद तक निष्पक्ष या पूर्वाग्रही होती है। इसके अलावा, यह अध्ययन सोशल मीडिया पर दर्शकों की सहभागिता और उनके भावनात्मक प्रतिक्रियाओं का विश्लेषण क
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दाहाल, ऋषिकेश. "चुनाबमा सोसल मिडियाको प्रयोग र एजेन्डा–सेटिङ". Humanities and Social Sciences Journal 14, № 1 (2022): 164–77. http://dx.doi.org/10.3126/hssj.v14i1.58007.

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Abstract:
सोसल मिडियाको बहुआयामिक उपस्थितिले अन्य क्षेत्रमा जस्तै मिडिया र राजनीतिमा पनि प्रभाव पारेको छ । नेपालमा चुनाबी अभियानका अवधिमा भएका अभ्यासले सञ्चार र राजनीति दुवै क्षेत्रमा ’नयाँ माध्यम’ले बलशाली उपस्थिति देखाइसकेको छ । सोसल मिडियाको उपस्थिति सन् २०१७ मा सम्पन्न स्थानीय तहको निर्वाचनमा पनि देखिएको थियो । तर सन् २०२२ मा आइपुग्दा प्रभाव र पहुँचका हिसाबले राजनीतिक तहबाट एजेन्डा सेट गर्ने हैसियतमा यसको प्रयोग अप्रत्यासित रूपमा बढेको छ । कुनै पनि सन्देशलाई तीव्र गतिमा स्थापित गर्ने क्ष१७७मता सोसल मिडियासँग भएकाले निर्वाचनमा परम्परागत माध्यमप्रतिको निर्भरता कमजोर बन्दैछ । यस अध्ययनमा चुनाबका सन्दर्
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Raila, Sudip. "साइबर अपराध मौलाउँदै यसको सुरक्षामा संवेदनशीलता र बढ्दो चुनौती". Ganeshman Darpan 10, № 1 (2025): 31–38. https://doi.org/10.3126/gd.v10i1.79423.

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Abstract:
प्रस्तुत लेख साइबर अपराध र यसबाट कसरी सुरक्षित रहन सकिन्छ भन्ने विषयसँग सम्बन्धित छ । विश्वव्यापी रुपमा माकुराको जालो झैँ गरी जेलिएको इन्टरनेटको सहायतामा कम्प्युटर तथा कम्प्युटर नेटवर्कमार्फत विभिन्न गैरकानुनी क्रियाकलापहरु विश्वभर फस्टाउँदै गएका छन । अहिले नेपालमा पनि डरलाग्दा किसिमबाट साइबर अपराधका गतिविधिहरु हुँदै आएका छन । यस अध्ययनले अबका दिनमा इन्टरनेटको प्रयोग के कसरी गर्ने, साइबर अपराध हुनबाट कसरी सुरक्षित रहने, कस्ता विषयहरु साइबर अपराध हुन भन्ने विषयबारे इन्टरनेटका प्रयोगकर्तालाई सचेत गराई सही दिशातर्फ उन्मुख गराउने लक्ष्य रहेको छ । मैले यस अध्ययनको लागि विभिन्न क्षेत्रका बौद्धिक व्य
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चट्टोराज, सुमिता. "भाषा : समाज निर्मिति का महत्त्वपूर्ण आधार". Anthology The Research 8, № 11 (2024): H 90 — H 99. https://doi.org/10.5281/zenodo.10992460.

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Abstract:
This paper has been published in Peer-reviewed International Journal "Anthology The Research"&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; URL : https://www.socialresearchfoundation.com/new/publish-journal.php?editID=8899 Publisher : Social Research Foundation, Kanpur (SRF International)&nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; Abstract : &nbsp;भाषा वह सेतु है जिस पर खड़े होकर मानव ने पारस्परिक संबंध को बनाए रखा है, मजबूत किया है और एक दूसरे का सुख-दुख साझा किया है। विचार-विनिमय और भाव-विनिमय के द्वारा मानव की अभिव्यक्ति पोख्ता
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न्यौपाने Neupane, विष्णु Bishnu. "आधुनिक नेपाली कथामा पत्रप्रयोगको अन्तर्य {Introduction to the use of letters in modern Nepali fiction}". Educator Journal 10, № 1 (2022): 41–48. http://dx.doi.org/10.3126/tej.v10i1.46965.

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Abstract:
प्रस्तुत अनुसन्धानात्मक लेखमा आधुनिक नेपाली कथामा पत्रप्रयोगको अन्तर्यको विश्लेषण र मूल्याङ्कन गरिएको छ । विचारविनिमयको साधनका रूपमा प्रयुक्त हुँदै आएका पत्रहरू विभिन्न माध्यम, कागजका पाना हुँदै आधुनिक प्रविधिमय फेसबुक, म्यासेन्जर, इमेल जस्ता विद्युतीय माध्यममा प्रयोग भएका छन् । साहित्यका विभिन्न विधामा विशेष सन्दर्भमा पनि पत्रको प्रयोग भएका छन् । आधुनिक नेपाली कथाका घटनाको विशेष सन्दर्भ, पात्रको चरित्राङ्कन तथा विशेष परिवेशको निर्माणको अवस्था आदिमा पत्रको प्रयोग गरिएका छन् । त्यस्ता पत्रले कथाका मूल तङ्खवको सम्वर्धनमा महत्वपूर्ण भूमिका निर्वाह गरेका हुन्छन् । यिनले भनाइलाई चोटिलो, घतिलो बनाएक
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Neeraj, Bhardwaj, та Dhirendra Singh Yadav Dr. "वर्तमान परिदृश्य में उच्च माध्यमिक स्तर पर कार्यरत शिक्षकों पर सोशल मीडिया का प्रभाव". दृष्टिकोण कला, मानविकी, एवं वाणिज्य की मानक शोध पत्रिका, ISSN 0975-119X, UGC CARE LISTED, Impact Factor 5.051 13, अंक 1 जनवरी फरवरी 2021 (2021): 3813–18. https://doi.org/10.5281/zenodo.6911774.

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Abstract:
21वीं सदी में कंप्यूटर एक कैसेट बन गया है तथा इंटरनेट का जाल विश्वव्यापी फैल चुका है। ऐसे में विभिन्न देशों क्षेत्रों में व्यक्तियों के बीच संवाद बनाने के लिए एक मंच के रूप में सोशल मीडिया आज सबसे महत्व भूमिका निभा रहा है, जिसमें विभिन्न मंच जैसे <strong>Facebook</strong>, <strong>Twitter</strong>, <strong>WhatsApp</strong>, <strong>LinkedIn,</strong> <strong>Instagram</strong> आदि, आज लोगों के विचारों की अभिव्यक्ति के लिए उपयोग किए जाते हैं। सोशल मीडिया का प्रयोग व महत्व लगातार बढ़ता जा रहा है। यहां तक की इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया भी इसके प्रभाव को स्वीकारने लगे हैं, कई लोग सोशल मीडिया को
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डॉ., जमीर तांबोळी. "कॉम्रेड के. के. शैलजाः वंचित समूह गटातील एक सक्षम महिला नेतृत्त्व". International Journal of Advance and Applied Research 3, № 5 (2022): 124–27. https://doi.org/10.5281/zenodo.7398074.

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Abstract:
<strong>प्रास्ताविक:</strong> अशियाचे नोबेल किंवा नोबेल पुरस्कराची अशियाई आवृत्ती म्हणून ज्याचे वर्णन केले जाते तो पुरस्कार म्हणजे रॅमन मॅगसेसे पुरस्कार होय. याची सुरवात &#39;न्यूयॉर्क येथील रॉकफेलर भावंडांनी केली असून, फिलिपाईन्सचे तत्कालीन राष्ट्राध्यक्ष रॅमन मॅगसेसे यांच्या नावाने १९५७ पासून द रॅमन मॅगसेसे अवॉर्ड फाऊंडेशन तर्फे दरवर्षी हा पुरस्कार दिला जातो. १) फिलिपाईन्सची राजधानी मनीला येथून वितरित केला जाणारा हा पुरस्कार सरकारी सेवा समाजकारण, साहित्य, पत्रकारिता, शांतता आणि आंतरराष्ट्रीय संबंध इत्यादी क्षेत्रातील कार्यकर्त्यांना दिला जातो. प्रशस्तीपत्र, स्मृतिचिन्ह आणि रोख रक्कम असे या प
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Ram Chandra. "Analysis of the Representation of News Related to Dalit/Tribal Women in Mainstream Journalism: Special Reference - Electronic Media (Aaj Tak, India TV, Zee News, Republic Bharat)." Revista Review Index Journal of Multidisciplinary 5, no. 1 (2025): 59–67. https://doi.org/10.31305/rrijm2025.v05.n01.008.

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Abstract:
In the mainstream of Indian society, Dalit women remain marginalized. The major reasons for this include the deeply entrenched mindsets of patriarchy, Manusmriti-based social order (Manuvad), and Brahminism. Today, the mainstream media, often referred to as the fourth pillar of democracy, also fails to adequately cover cases of exploitation and rape of Dalit women. For example, in the Hathras incident, upper-caste men brutally sexually assaulted a Dalit woman. The media's delayed coverage of the incident — almost two weeks later — and its apparent bias towards defending the accused indicate a
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Central, University of South Bihar (Gaya). "दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय, गया का "ओबीसी साहित्य" विषयक पाठ्यक्रम". 15 грудня 2022. https://doi.org/10.5281/zenodo.7441925.

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Abstract:
वर्ष 2022 में&nbsp;&nbsp;&ldquo;ओबीसी साहित्य&rdquo; को दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय, गया ने अपने एमए (हिंदी) के पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया। यहां उस पाठ्यक्रम को अपलोड किया गया है। प्रमोद रंजन ने&nbsp;19 नवंबर, 2022 को अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखा था कि : &nbsp; प्रोफेसर राजेंद्र प्रसाद सिंह ने इस दिशा में न सिर्फ पहल की बल्कि इस क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण काम भी उन्हीं का है। साहित्यिक विमर्श और समाज में &lsquo;बहुजन अवधारणा&rsquo; के प्रसार के लिए यह आवश्यक है कि इस देश की कृषक, पशुपालक और शिल्पकार जातियों की विशिष्ट समस्याओं पर ध्यान दिया जाए। &lsquo;ओबीसी विमर्श&rsquo; यही करता है। दक
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Dhawan, Amit Raj. "आधुनिक हिंदी के विकास के परिमाणीकरण की ओर". 10 серпня 2024. https://doi.org/10.5281/zenodo.13293041.

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Abstract:
प्राकृतिक भाषाएँ समय के साथ विकसित होती हैं और वे नए शब्दों और वाक्य विन्यास को अपनाती हैं। यह अनुसंधान कार्य पिछले कुछ वर्षों में प्रतिष्ठित हिंदी समाचार प्रकाशकों द्वारा प्रयुक्त &nbsp;शब्दों &nbsp;की तुलना, इस कार्य के लिए विशेष रूप से निर्मित की गई शब्द-सूची से करते हुए हिंदी भाषा में बीते वर्षों में हुए बदलाव का आकलन करता है। प्रति लेख नए शब्दों की संख्या प्राप्त करने के लिए 13.33 लाख समाचार लेखों का विश्लेषण किया गया। यह परिवर्तन की दर को इंगित करता है और दर्शाता है कि कैसे हिंदी लेखन कुछ वर्षों में बहुत विस्तृत हुआ और बदला है। हम हिंदी पाठ में लिप्यंतरित अंग्रेजी शब्दों और लैटिन लिपि के
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अधिकारी {Adhikari}, मीनप्रसाद {Min Prasad}. "सामाजिक सञ्जालमा प्रस्तुत स्टाटसको समाजभाषिक दृष्टिले विश्लेषण {A Sociolinguistic Analysis of the Status Presented on Social Networks}". CHINTAN-DHARA, 27 березня 2023, 96–104. http://dx.doi.org/10.3126/cd.v17i01.53268.

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Abstract:
बढ्दो विज्ञानको प्रभाव र समाजमा सञ्चारको पहँुचका कारण आजभोलि सबैको हात हातमा सामान्य बनेको छ । मोवाइल फोनको कारणले साक्षर निरक्षर, धनी गरिब, उच्च निम्न, ठूला साना, सबैका लागि सामाजिक सञ्जाल समय कटाउने, सूचना लिने दिने र आफ्ना मनको बह पोख्ने थलो बनेको छ । राजनैतिक व्यक्तिदेखि उच्च पदस्त सबैले कुनै न कुनै सामाजिक सञ्जालको प्रयोग गरिरहेका हुन्छन् । सामाजिक सञ्जाल मध्ये पनि फेसबुक अधिकांशको रोजाइमा रहेको छ । फेसबुकमा प्रयोगकर्ताले स्टाटस लेख्ने गर्दछन् । स्टाटसले सुख दुःख मात्र नभई समाजको तत्कालको परिवेशलाई पनि उतार्ने काम गर्दछ । सामाजिक ढाँचा अनुसार पनि भाषामा प्रयोग हुने शब्दभण्डार तथा अभिव्यक्
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Sharma, Seema Kaushik, та Rajendra Lal. "खेलों में सोशल मीडिया की विषय-वस्तु का विश्लेषण". ShodhKosh: Journal of Visual and Performing Arts 2, № 2 (2021). https://doi.org/10.29121/shodhkosh.v2.i2.2021.5111.

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Abstract:
सोशल मीडिया आज वैश्विक रूप से हमारे दैनिक जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन चुका है और खेल जगत भी इससे अछूता नहीं है। आधुनिक सूचना तकनीक ने खेल उद्योग में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिए हैं। फेसबुक, यूट्यूब, इंस्टाग्राम, ट्विटर, लिंक्डइन, पिंटरेस्ट, स्नैपचैट और गूगल+ जैसे विभिन्न वेबसाइट्स और मोबाइल एप्लिकेशन खेलों से संबंधित जानकारी और आँकड़े साझा करने में विशेष रूप से सहायक रहे हैं। कॉलेज और पेशेवर खेल विपणन टीमें लंबे समय से दृश्य मीडिया की शक्ति का उपयोग कर रही हैं ताकि मैदान पर हो रही घटनाओं को छोटे पर्दे पर दिखाया जा सके, जिससे प्रशंसकों को प्रेरणा मिले, खेलों में अधिक दर्शक जुटें और भीड़ का जोश
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-, प्रेम प्रताप सिंह. "सोशल मीडिया माध्यमों पर दिखाए जाने वाले चुनावी विज्ञापनों का विश्लेषण". International Journal For Multidisciplinary Research 6, № 4 (2024). http://dx.doi.org/10.36948/ijfmr.2024.v06i04.24648.

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Abstract:
राजनीति में सोशल मीडिया के प्रभाव की बात करें तो सोशल मीडिया का उपयोग राजनीतिक प्रक्रियाओं और गतिविधियों में अत्‍याधिक प्रतीत होता है और यह सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के उपयोग को संदर्भित करता है। यहां सर्वप्रथम मीडिया-सोशल और मीडिया को समझना जरूरी है। मीडिया से तात्पर्य संवाद व संचार के जन माध्यम से है और सोशल मीडिया जिसका सर्वाधिक आधुनिक व प्रचलित माध्यम बन गया है, जिसकी कमान किसी सम्पादक या संवाददाता के पास न होकर एक आम आदमी के हाथ में होती है। जिसके माध्यम से समाज का वह व्याक्ति जो इंटरनेट, मोबाइल और तकनीकी का प्रयोग करता हो वह अपनी बात को विश्व के किसी भी कोने पर अनगिनत लोगों तक पहुंचाने मे
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शर्मा, मीना. "सोशल मीडियाः अभिव्यक्ति के नए चौनल". Journal for ReAttach Therapy and developmental Diversities, 2023. https://doi.org/10.53555/jrtdd.v6i7s.3581.

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Abstract:
1947 में भारत को आजादी मिली थी। देश के प्रत्येक नागरिक को अभिव्यक्ति की आजादी 26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान के लागू होने के उपरान्त मिला था, किन्तु कुछ साल पहले तक अभिव्यक्ति के लिए मंच के अभाव और साधन की कमी के कारण अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार के प्रयोग का अवसर सीमित एवं दुर्लभ था। जनता अभिव्यक्ति करे तो कहाँ करे ! जायें तो जायें कहां? आम आदमी का यह अधिकार यह स्वतंत्रता धरा का धरा रह जाता था। जनता की आवाज, जनता की रूचि, जनता का मत जनता की समस्या आदि के प्रकटीकरण की कोई सहज सुलभ मंच न था। टीवी, रेडियो और अखबार जनता के पहुँच से बाहर थे तो जनता की पहुंच टीवी, रेडियों और अखबार से दूर थी। जनता
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