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भट्ट, शिंवागि, та कीर्ति कुमावत. "पुष्टिमार्गीय हवेली संगीत: प्रेमलक्षणा और भक्ति भाव". Anthology The Research 9, № 2 (2024): H11—H15. https://doi.org/10.5281/zenodo.12529770.

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Abstract:
This paper has been published in Peer-reviewed International Journal "Anthology The Research"                      URL : https://www.socialresearchfoundation.com/new/publish-journal.php?editID=9092 Publisher : Social Research Foundation, Kanpur (SRF International)    Abstract : मध्यकाल में भक्ति संगीत अत्यन्त तीव्र गति से विकसित हुआ था। क्योंकि इस समय भक्ति संगीत का आधार शास्त्रीय संगीत था। संगीत जगत् में इस काल को भक्तिकाल की संज्ञा भी दी गई थी। भक्तिकाल" संगीत साहित्य में स्वर्ण
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डॉ., फेदोरा बरवा. "हिन्दी साहित्य में मीराबाई एक अध्ययन". INTERNATIONAL JOURNAL OF INNOVATIVE RESEARCH AND CREATIVE TECHNOLOGY 10, № 2 (2024): 1–4. https://doi.org/10.5281/zenodo.14435391.

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Abstract:
आज मीराबाई का नाम श्री कृष्ण के प्रति उनकी भक्ति और उनकी कलाकृतियों के लिए सम्मानपूर्वक लिया जाता है। महान संत कवियत्री मीरा बाई कृष्ण की भक्त थीं। मीरा बाई ने अपने जीवन में बहुत कष्ट सहे थे। एक राजघराने में जन्म लेने और विवाह करने के बावजूद मीरा बाई को बहुत कष्ट सहना पड़ा। इस वजह से उनके अंदर अलगाव भर गया और वे कृष्ण की भक्ति की ओर आकर्षित हो गईं। कृष्ण के प्रति उनकी भक्ति चरम स्तर तक बढ़ गई। मीराबाई पर अनेक भक्ति संगठनों का प्रभाव था। इसका चित्रण उनकी रचनाओं में मिलता है। श्पदावलीश् मीराबाई की प्रमुख प्रामाणिक अद्भुत रचना है। रामरतन पायो जी मैंने पायो। यह मीराबाई की प्रसिद्ध रचना है। वह खुद
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रानी, शिखा. "वर्तमान परिप्रेक्ष्य में नारद भक्ति सूत्र एवं षाण्डिल्य भक्ति सूत्र में भक्ति के साधनों का तुलनात्मक अध्ययन". Dev Sanskriti Interdisciplinary International Journal 12 (31 липня 2018): 15–21. http://dx.doi.org/10.36018/dsiij.v12i0.101.

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Abstract:
प्रस्तुत षोध पत्र का उद्देष्य वर्तमान परिप्रेक्ष्य में नारद भक्ति सूत्र एवं षाण्डिल्य भक्ति सूत्र में भक्ति के साधनों का तुलनात्मक अध्ययन करना है। भावनायें जीवन का आधार हंै। आज भावनात्मक अपरिश्कृति के कारण जीवन के सभी तलों पर समस्याएँ उत्पन्न हो गयी हैं, भक्ति द्वारा इन सभी का समाधान संभव है। भक्ति भगवान के प्रति परम प्रेम है। नारद भक्ति सूत्र एवं षाण्डिल्य भक्ति सूत्र भक्ति संबंधी सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्राचीन ग्रंथ है। नारद भक्ति सूत्र एवं षाण्डिल्य भक्ति सूत्र के तुलनात्मक अध्ययन पर कोई षोध कार्य तो नहीं हुआ है परन्तु नारद भक्ति सूत्र एवं षाण्डिल्य भक्ति सूत्र पर अलग-अलग कतिपय भाश्य अवष्य लिख
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पूजा देवी та आरती पाल. "नारद भक्ति सूत्र में भावनात्मक स्वास्थ्य का विश्लेषण". International Journal for Research Publication and Seminar 16, № 2 (2025): 84–87. https://doi.org/10.36676/jrps.v16.i2.62.

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Abstract:
नारद भक्ति सूत्र भारतीय भक्ति परंपरा का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जो प्रेम, करुणा और भक्ति के सिद्धांतों को प्रस्तुत करता है। यह ग्रंथ न केवल आध्यात्मिक विकास का मार्ग दिखाता है, बल्कि यह व्यक्ति के भावनात्मक स्वास्थ्य पर भी गहरा प्रभाव डालता है। इस अध्ययन में, नारद भक्ति सूत्र में वर्णित भावनात्मक स्वास्थ्य के विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण किया गया है। शोध ने यह दर्शाया है कि भक्ति और प्रेम की भावना व्यक्ति को मानसिक शांति, सकारात्मकता, और आंतरिक संतुलन प्रदान करती है। इसके साथ ही, करुणा और सहानुभूति का अभ्यास व्यक्ति के नकारात्मक भावनाओं को कम करने और समाज में सामंजस्य स्थापित करने में सहायक होता
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मिश्र, नरेन्द्र. "सामाजिक समरसता के संवाहक संत रविदास". HARIDRA 1, № 01 (2020): 21–27. http://dx.doi.org/10.54903/haridra.v1i01.7803.

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Abstract:
संत रविदास उत्तर भारत के 15वीं से 16वीं शताब्दी के बीच भक्ति आंदोलन के एक कवि, विचारक, दार्शनिक, समाज सुधारक एवं संत शिरोमणि थे। गुरु रविदास कबीर के समसामयिक थे। भक्त रविदास जी के समय में जातिगत भेदभाव चरम सीमा पर था। समाज में व्याप्त रूढ़ियों, अंधविश्वासों एवं भेदभाव के खिलाफ रविदास जी जन जागरण का अभियान चलाया। धार्मिक कट्टरता का जबर्दस्त विरोध किया तथा भक्ति एवं सेवा के सहज एवं सरल स्वरूप को अपनाने का संदेश दिया। धार्मिक भावनाओं के आधार पर प्रचलित रूढ़ियों को दूर करने के लिए उन्होंने "मन चंगा तो कठौती में गंगा" जैसी सूक्तियों के आधार पर कांति का बिगुल फूंका। समाज व्याप्त असमानता को दूर करने
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कौल, अविनाश कुमार. "भक्ति आंदोलन, सामाजिक संरचना, जाति प्रथा, धार्मिक सहिष्णुता एवं सांस्कृतिक पुनर्जागरण". International Journal of Science and Social Science Research 2, № 3 (2024): 149–51. https://doi.org/10.5281/zenodo.14210186.

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Abstract:
भक्ति आंदोलन ने मध्यकालीन भारत की सामाजिक संरचना और सांस्कृतिक परिवेश में गहरा प्रभाव डाला। यह आंदोलन उस समय उभरा जब सामाजिक असमानता, जाति प्रथा और धार्मिक कट्टरता अपने चरम पर थीं। भक्ति संतों जैसे कबीर, तुलसीदास, मीराबाई और गुरु नानक ने धर्म के जटिल रीति-रिवाजों और जाति आधारित विभाजन के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने समानता, सद्भाव और भाईचारे के मूल्यों को पुनर्स्थापित करने का प्रयास किया। भक्ति आंदोलन ने निम्न जातियों और महिलाओं को सामाजिक और धार्मिक रूप से सशक्त होने का अवसर प्रदान किया। इस आंदोलन ने जाति आधारित भेदभाव को चुनौती दी और सभी मनुष्यों की समानता पर जोर दिया। भक्ति संतों की वाणी में स
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गायकवाड, डॉ. रोहित. "मध्ययुगीन संतकवियों में सामाजिक उत्प्रेरक - संत कबीर". International Journal of Advance and Applied Research 5, № 44 (2024): 157–61. https://doi.org/10.5281/zenodo.14710396.

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Abstract:
<strong>सारांश:-</strong> भागवत धर्म के प्रचार-प्रसार के परिणामस्वरूप भक्ति आंदोलन का सूत्रपात हुआ। धीरे-धीरे लोकभाषाएं भक्ति-भावना की अभिव्यक्ति का माध्यम बन गई। तत्कालीन युग में लोकभाषाओं में ही सभी संतों ने साहित्य सृजन किया। क्योंकि लोकभाषाएँ जनमानस की भाषाऐं थी। परिणामतः भक्ति-साहित्य की बाढ़ सी आ गयी। केवल वैष्णव ही नहीं अपितु शैव, शाक्त धर्मों के साथ-साथ बौद्ध, जैन संप्रदायों में भी भक्ति को प्रभावित किया। आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी ने साधारण 1318 से 1643 इ.स. तक भक्तिकाल का निर्धारण किया। सामाजिक क्षेत्र का विचार करें तो समाज, वर्ण, वर्ग, जाँति, धर्मों में विभाजीत था। सामाजिक व्यवस्था पर
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., प्रेमवती. "कबीरः- मानवतावादी समाजसुधारक". International Journal of Science and Social Science Research 1, № 3 (2023): 217–21. https://doi.org/10.5281/zenodo.13623125.

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Abstract:
जिस समय कबीरदास जी का अविर्भाव हुआ। उस समय भारत देष में भक्ति आन्दोलन की लहर प्रवल थी। हिन्दू-मुसलमानों में मतभेद चरम सीमा पर था। मुसलमानो के आगमान से हिन्दू समाज पर इसका व्यापक प्रभाव पड़ा। उस समय समाज में अनेक प्रकार की बुराइयाँ व्याप्त थी। जैसे जातिगत भेदभाव हिंसा, साम्प्रदायिकता,धार्मिक पाखण्ड,छुआछुत, ऊँच-नीच रूढिवादी,अन्धविष्वास आदि। कबीरदास ने समाज में फैली इन बुराइयों को दूर करने के लिए जो मार्ग अपनाया वैसा किसी भी साधु-सन्त और भक्त ने नही अपनाया।यह कहना गलत नही होगा कि कबीर जैसा समाज सुधारक एंव मानवतावाद की स्थापना करने वाला निर्गुण भक्त कवियों में दुसरा कोई कबीर का स्थान सर्वोपरि है।
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गुप्ता, सुरेन्द्र कुमार. "कबीरदास का भक्ति आंदोलन में योगदान". International Journal of Advanced Academic Studies 2, № 3 (2020): 862–66. http://dx.doi.org/10.33545/27068919.2020.v2.i3l.1011.

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Kumar, Narender. "आधुनिक युग में भक्तियोग: श्रीमद्भगवद्गीता के परिपेक्ष्य में". Shodh Manjusha: An International Multidisciplinary Journal 2, № 1 (2024): 20–28. https://doi.org/10.70388/sm240116.

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Abstract:
पुरातन समय में श्रीमद्भगवद्गीता का विशेष स्थान रहा है | जिस प्रकार मानव के जीवन में वेद, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद,महाकाव्य आदि सभी ग्रंथो का अपना विशेष महत्व रहा है | उसी प्रकार इस संसार में आज भी सभी ग्रन्थों में सर्वत्र गीता का आदर है | यह किसी भी विशेष धर्म–सम्प्रदाय का साहित्य नहीं बन सकी, क्योंकि यह तो भारत में प्रकट हुई समस्त विश्व की धरोहर है |जो कि आज भी मानव इसे सबसे ज्यादा महत्व देता है, आज के समय में मानव अपने कर्मो को भूल गया है | वह अपने कर्मो से दूर भागता है ,क्योंकि आज का मानव स्वार्थी हो गया है | वह अच्छे कर्म न करके बुरे कर्मो की तरफ दौड़ता है | इसका कारण यह है कि मनुष्य ईश्वर
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सिंह, यशमन्त. "कर्मयोग एवं ज्ञानयोग का सार भक्तियोग में निहित". Humanities and Development 20, № 01 (2025): 24–29. https://doi.org/10.61410/10.61410/had.v20i1.224.

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Abstract:
गीता में कर्मयोग का संदेश प्रमुखता से दिया गया है, जिसका भाव है अनासक्त भाव से कर्म करना या कर्मों के फल के प्रति आसक्ति रहित कर्म करना या कर्म फल का समर्पण ईश्वर को करते हुए जीवन यापन करना, जिससे मनुष्य कर्म फल भोगने के लिए बार-बार शरीर धारण न करे और शरीर बन्धन से छुटकारा मिल जाये। ज्ञान योग का अर्थ है मन, चित्त एवं आत्मा का ईश्वर में स्थिर हो जाना या ईश्वर से तादात्म्य स्थापित कर लेना या ईश्वर में ही मिल जाना परन्तु यह निर्गुण निराकार ईश्वर की उपासना है जो सबसे कठिन मार्ग है। परन्तु भक्तियोग या भक्ति मार्ग ईश्वर प्राप्ति का सबसे सरल एवं सहज मार्ग है, क्योंकि इसमें आपके जैसा दिखने वाला कोई व्
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L, Dr. Shobha. ""रामचरितमानस" - पाक्षिक अध्ययन". International Journal of Advance and Applied Research 11, № 1 (2023): 243–44. https://doi.org/10.5281/zenodo.10156236.

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Abstract:
पुण्यं पापहरं सदाशिवकरं विज्ञानभक्तिप्रदंमायामोहमलापहं सुविमलं प्रेमाम्बुपूरं शुभम् ।श्रीमद्रामचरितमानसमिदं भक्त्यावगाहन्ति येते संसारपतंगघोरकिरणैर्दह्यन्ति नो मानवाः ॥यह श्रीरामचरितमानस पुण्यरुप,पापों का हरण करने वाला, सदा कल्याणकारी,भक्ति,ज्ञान,विज्ञान तथा वैराग्य को प्रदान करनेवाला ,माया,मोह और मल का नाश करने वाला,परम निर्मल प्रेमरुपि जल से परिपूर्ण तथा मंगलमय लोककल्याणी है। भगवान श्रीराम के इस चरित्ररूपी सरोवर में जो भक्ति से आप्लावित होकर गोते लगाते हैं, वे मनुष्य जन्म-मरणरूपी सूर्य की भयंकर किरणों से नहीं जलते । समन्वय का तत्पर्य है संबंध ,संबंध का सुदृढीकरण ही समन्वय है । मानव समाज के ल
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Goyal, Mamta, and Harisingh Bisoriya. "Bhakti Kaal, the Golden Age of Hindi Literature: General Analysis." RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 8, no. 2 (2023): 112–16. http://dx.doi.org/10.31305/rrijm.2023.v08.n02.020.

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Abstract:
Acharya Ramchandra Shukla had divided the history of Hindi literature into four parts Drveeragathakaal, Bhaktikal, Ritikal and Modern period. Samvat 1050 to 1365 is in Veergatha Kaal, 1365 to 1700 in Bhakti Kaal, 1700 to 1900 in Riti Kaal and devotional poetry from 1900 till now comes in modern period. Bhaktikal is called the golden age of Hindi literature. Sur, Tulsi, Kabir, Jayasi, these four great poets were born in the period of devotion. This period gave birth to the sun and moon of Hindi literature sky. Although three currents flowed in this period, the path of love, the path of knowledg
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Pooja Charan та Sharad Rathore. "डूंगरसी रत्नु काव्य समीक्षा". ShodhKosh: Journal of Visual and Performing Arts 5, № 4 (2024): 1002–6. https://doi.org/10.29121/shodhkosh.v5.i4.2024.3634.

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Abstract:
राजस्थान वीरों की भूमि है। यहां का इतिहास विश्व पटल पर विशेष स्थान रखता है। चारण कवियों के साहित्यक योगदान ने इतिहास को अमरत्व दिया। चारण कवियों में डूंगरसी रतनू महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं, जिन्होंने अपने काव्य में वीर रस के साथ-साथ भक्ति और प्रकृति का भी सुंदर वर्णन किया। उनके काव्य में वीरता, युद्ध, अश्व विद्या, और पौराणिक आख्यानों का उल्लेख मिलता है। डूंगरसी का संबंध चारणों की रतनू शाखा से था और वे जैसलमेर के दरबार से जुड़े हुए थे। इसके अलावा, डूंगरसी के काव्य में प्रकृति का वर्णन भी मिलता है। पक्षियों के व्यवहार और आकाशीय पिंडों का वर्णन उनकी प्रकृति विज्ञान की जानकारी को दर्शाता है। अलंकारो
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Ritesh, Kumar. "योग वशिष्ठ में योगः प्राचीन ज्ञान का अनावरण". RECENT RESEARCHES IN SOCIAL SCIENCES & HUMANITIES 11, № 1 (2024): 107–11. https://doi.org/10.5281/zenodo.11001917.

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Abstract:
योग वशिष्ठ, ऋषि वाल्मिकी से संबंधित एक प्राचीन भारतीय गंथ््र ा है, जो योग के अभ्यास और आध्यात्मिक पथ मंे गहन अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। यह पपे र योग वशिष्ठ की शिक्षाआं े की पड़ताल करता है, जो अस्तित्व के रहस्यों को उजागर करने और साधकां े को आत्मज्ञान की ओर मार्गदर्शन करने मंे इसके महत्व पर ध्यान कंेद्रित करता है। रूपक कहानियांे, रूपकों और दार्शनिक प्रवचन का उपयोग करके, शास्त्र योग के विभिन्न पहलुओं की जांच करता है, जिसमें ज्ञान योग (ज्ञान का मार्ग), भक्ति योग (भक्ति का मार्ग), कर्म योग (निस्वार्थ कर्म का मार्ग), और राज शामिल हैं। योग (ध्यान का शाही मार्ग)। सारांश योग वशिष्ठ मंे उल्लिखित याेि
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षर्मा, रष्मि. "श्रीमद्भागवत में योग के विविध आयाम". Dev Sanskriti Interdisciplinary International Journal 10 (31 липня 2017): 27–34. http://dx.doi.org/10.36018/dsiij.v10i0.94.

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Abstract:
योग ब्रह्मा द्वारा निर्दिष्ट एक षाष्वत विज्ञान है, साधना पद्धति है। जो मनुष्य को सभी प्रकार के आवरणों एवं विक्षेपों से सदा के लिये मुक्त करता हुआ ऐसा विषुद्ध अंतःकरण वाला बना देता है कि परमात्मा से उसका अभिन्न सम्बन्ध स्वतः ही स्थापित हो जाता है। पौराणिक साहित्य जनसाधारण के समक्ष बहुत ही सहज ढ़ग से ऋषियों द्वारा प्रतिपादित योग के इसी उद्देष्य को प्रस्तुत करता है। श्रीमद्भागवत महापुराण जहाँ एक ओर कथाओं के माध्यम से जनसाधारण को परमात्मा की भक्ति की ओर आकर्षित करता है, वहीं दूसरी ओर योग के गूढ़तम रहस्यों का प्रतिपादन करते हुए उसके विविध आयामों का विवेचन करता है। भागवत में ज्ञानयोग, भक्तियोग, कर्मयो
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श्रीवास्तव, अमरेन्द्र कुमार, та Deepti Shrivastava. "आदिवासी जीवन की वेदना,पीड़ा और आक्रोश का आख्यान : कवि मन जनी मन". Journal of Humanities and Applied Sciences Volume-XIV, Issue-3 (2024): 1–12. https://doi.org/10.5281/zenodo.13988139.

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Abstract:
साहित्य समाज के विविध पक्षों अनादि काल से अभिव्यक्त करता रहा है। समाज के विविध वर्गों के लोगों की संवेदना को साहित्य के फलक पर उभारने का कार्य साहित्यकारों द्वारा किया गया है। इस अंकन के क्रम में समाज के अलग-अलग वर्गों के जीवन एवं उनके समाज को पूर्णतः प्रतिनिधित्व काल-विशेष में हो मिला है। यदि हम हिन्दी साहित्य के इतिहास पर दृष्टिपात करें तो हिन्दी साहित्य में एक समय में भक्तिपरक साहित्य लिखा गया, तो कभी राज्याश्रयी साहित्य का रचा गया। हिन्दी साहित्य के भक्त कवियों में समाज के सभी वर्गों के कवियों की रचनाओं का समावेश देखने को मिलता है। हिन्दी साहित्य के मध्यकाल तक के इतिहास के देखें तो यह सहज
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श्रीमती, आरती शर्मा शोधार्थी जीवाजी विश्वविद्यालय डॉ. जितेन्द्र शर्मा प्राचार्य प.श्यामाचरण उपाध्याय महाविद्यालय मुरैना. "चंदेरी संग्रहालय में संरक्षित विष्णु प्रतिमाएँ". International Educational Applied Research Journal 09, № 05 (2025): 207–16. https://doi.org/10.5281/zenodo.15571036.

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Abstract:
Abstractभगवान् विष्णु को अपना प्रधान द्रष्ट देव और परमात्मा के रूप में मानने वाले भक्त वैष्णव कहे गये तथा इससे सम्बन्धी धर्म-दर्शन और सिद्धांत वैष्णव धर्म के रूप में प्रख्यात हुआ। विष्णु वैदिक देवता हैं जिनका प्रभाव धीरे-धीरे बढ़ता गया। वैष्णव धर्म में विष्णु सम्बन्धी वैदिक सूक्त और आख्यान निहित है। ऋग्वेद में देवताओं के ऐश्वर्य, पराक्रम. विस्तार आदि के अतिरिक्त उपनिषदों के ज्ञान और सिद्धान्त का भी समावेश इस धर्म में हुआ है।याज्ञिक कर्मकाण्ड के स्थान पर भक्ति और उपासना पर विशेष बल दिया गया। वैष्णव साधक की दृष्टि में यह विशाल विश्व उस ऐश्वर्यशाली विष्णु की ही शक्तियों की अनेकानेक अभिव्यक्ति हैं
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SHARMA, JYOTI. "19वीं शताब्दी के ख्याल रचनाकारों की मौलिक कृष्ण भक्ति रचनायें". Swar Sindhu 6, № 2 (2018): 19–26. http://dx.doi.org/10.33913/ss.v06i02a03.

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प्रो., डॉ. संतोषकुमार गाजले. "भारतीय ज्ञान परंपरा में गोस्वामी तुलसीदास का योगदान". International Journal of Advance and Applied Research S6, № 18 (2025): 155–59. https://doi.org/10.5281/zenodo.15245270.

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Abstract:
हिंदुओं के आराध्य एवं हिन्दू संस्कृति के मुख्य आधार कहे जाते हैं राम मानवीय मूल्यों और सामाजिक सरोकारों से सराबोर है राम और उनका चरित्र मानवीय संवेदना, करुणा, दया, सहानुभूति आदि गुणों के प्रतीक और सबका हित चाहने वाले व्यक्तित्व के रूप में प्रसिद्ध है राम का आदर्श चरित्र हिंदी साहित्य की सगुण भक्ति धारा में काव्य रचना दो तरह की मिलती है- एक कृष्ण पर आधारित काव्य रचना दूसरी राम पर आधारित । राम पर आधारित काव्य रचना करने वाले कवियों ने राम को आराध्य मानकर उनके माध्यम से अपनी काव्य साधना का परिचय दिया । राम को विष्णु अवतार एवं दशरथ पुत्र के रूप में जाना जाता है, अतः राम भक्ति के रूप में वैष्णव भक्त
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Dr. Bimal Malik. "कबीर के दोहों में सामाजिक चेतना: एक आलोचनात्मक अध्ययन". Innovative Research Thoughts 9, № 5 (2023): 421–23. https://doi.org/10.36676/irt.v9.i5.1606.

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Abstract:
कबीरदास भारतीय भक्ति आंदोलन के एक प्रमुख संत, कवि और समाज-सुधारक थे, जिनके दोहे आज भी समाज को जागरूक करने वाले माने जाते हैं। उनके दोहे केवल धार्मिक या आध्यात्मिक संदेश तक सीमित नहीं हैं, बल्कि उनमें गहन सामाजिक चेतना भी विद्यमान है। इस आलोचनात्मक अध्ययन का उद्देश्य कबीर के दोहों में निहित सामाजिक विचारों, विसंगतियों के प्रति उनकी दृष्टि, और समाज सुधार के उनके प्रयासों को उजागर करना है।
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घेवर राठौड़ та डॉ.रेणुका. "भारतीय ज्ञान परंपरा में संत साहित्य का योगदान". International Journal of Scientific Research in Humanities and Social Sciences 2, № 2 (2025): 157–61. https://doi.org/10.32628/ijsrhss25228.

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Abstract:
भारतीय ज्ञान परंपरा एक व्यापक और समृद्ध परंपरा है, जो वेदों, उपनिषदों, महाकाव्यों, शास्त्रों और लोक साहित्य के माध्यम से विकसित हुई है। यह परंपरा केवल दार्शनिक और आध्यात्मिक चिंतन तक सीमित नहीं रही अपितु समाज को नैतिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक रूप से समृद्ध करने में भी सहायक रही है। इस ज्ञान परंपरा को संत साहित्य ने जनसामान्य तक पहुँचाने का महत्वपूर्ण कार्य किया। मध्यकालीन भारत में भक्ति आंदोलन के दौरान संत कवियों ने ज्ञान, भक्ति और सामाजिक सुधार को केंद्र में रखकर साहित्य की रचना की। कबीर, तुलसीदास, मीराबाई, रैदास, गुरु नानक, नामदेव, सेना, पिपा, धन्ना जैसे संतों ने लोकभाषा में अपनी रचनाएँ लिखि,
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Vinod, Kumar. "SANT VILHOJI RACHIT HARIJAS : DHARMIK AAYAM." अमर ज्योति 08-09 (September 20, 2015): 54. https://doi.org/10.5281/zenodo.8205355.

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Abstract:
जाम्भाणी साहित्य की परंपरा में संत वील्होजी का प्रमुख स्थान है।&nbsp;जाम्भाणी साहित्य को सर्वप्रथम लिपिबद्ध करने का श्रेय&nbsp;संत वील्होजी को ही जाता है।&nbsp;जाम्भाणी साहित्य में हरिजस प्रमुख विधा के रूप में विद्यमान है।&nbsp;संत वील्होजी रचित हरिजस आध्यात्मिक कोटि के होने के साथ-साथ विविध धारणाओं व विचारों से समन्वित है। इष्ट आराधना, भक्ति-भावना, आडंबरों व पाखंडों का विरोध, लीलागान आदि उनके हरिजस की मुख्य विशेषता है।&nbsp;
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KUMAR, RAJESH. "श्री भीमाकाली मंदिर सराहन में गाए जाने वाले भक्ति गीतों का सांगीतिक अध्‍ययन". Swar Sindhu 2, № 2 and 3 (2014): 23–28. http://dx.doi.org/10.33913/ss.v02i03a03.

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सुदेश, डॉ. "भक्ति आंदोलन में संत शिरोमणि गुरु रविदास जी का योगदान: वर्तमान में प्रासंगिकता". International Journal of Advanced Academic Studies 7, № 6 (2025): 120–23. https://doi.org/10.33545/27068919.2025.v7.i6b.1543.

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सुदेश, डॉ. "भारतीय संत साहित्य की सगुण भक्ति धारा में मीरांबाई का योगदान-वर्तमान में प्रासंगिकता". International Journal of History 5, № 1 (2023): 185–89. http://dx.doi.org/10.22271/27069109.2023.v5.i1c.212.

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भुसाल Bhusal, राजु Raju. "‘म शून्यमा शून्य सरी’ कवितामा ध्वनि". Medha: A Multidisciplinary Journal 7, № 1 (2024): 39–44. https://doi.org/10.3126/medha.v7i1.73902.

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Abstract:
प्रस्तुत लेख महाकवि लक्ष्मीप्रसाद देवकोटाद्वारा रचना गरिएको म शून्यमा शून्य सरी कवितामा अभिव्यञ्जित ध्वनिको अध्ययनका केन्द्रित छ । यो कविता नेपाली भाषामा लेखिएको देवकोटाको अन्तिम कविता हो । यसमा ध्वनिको सैद्धान्तिक परिचयका साथै यसका मुख्य दुई भेद- अविवक्षित वाच्यध्वनि/लक्षणामूला र विवक्षितान्यपरवाच्यध्वनि/अभिधामूलाको समेत चर्चा गर्दै यसका आधारमा प्रस्तुत कविताको विश्लेषण गरिएको छ । यस अध्ययनमा उपजाति छन्दका जम्माजम्मी चारओटा श्लोकमा आबद्ध प्रस्तुत कविताको विभिन्न उपशीर्षकहरूमा विश्लेषण गरिएको छ । कविले जीवनकालमा सांसारिकतामा भुलेर श्रीकृष्ण वा परमात्मा विषयक भक्ति, ज्ञान र विवेकको यथोचित साधना
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Chaudhary, Avadhesh Kumar. "Study of Terracotta Art with Special Reference to Shiva." RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 7, no. 11 (2022): 78–83. http://dx.doi.org/10.31305/rrijm.2022.v07.i11.013.

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Abstract:
Under ancient Indian art, man's desires and imaginations also include his religious and spiritual beliefs. The artist's art is influenced by nature, inner impulse, social traditions and cultural heritage. The religious social system here is completely reflected in Indian art. Religion and art have been a strong part of human life and they complement each other. Art has been the medium of religion since ancient times, often art has been used for the purpose of clarifying religion and religious beliefs. The devotee attains self-satisfaction by worshiping his deity only through architecture and s
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Soni, Amrita. "MUSIC THERAPY (AN INNOVATION)." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 3, no. 1SE (2015): 1–5. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v3.i1se.2015.3418.

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Abstract:
Narad ji once asked Lord Shri Vishnu where do you live. Then he said, O Narada, neither do I live in Baikunth nor in the heart of yogis. But I am present in a tangible form where my devotees sing. (Narada Bhakti Sutra)New experiments are taking place in the human world full of knowledge and science. When these experiments become an integral part of life, then the human being then moves into innovative research. Although music itself is a science, yet years of austerity are required for its achievement. Here, for some time, the attention of scientists has gone towards music, but due to lack of
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., निवेदिता. "बौद्ध दर्शन में वर्णित साधना पद्धति". Dev Sanskriti Interdisciplinary International Journal 6 (31 липня 2015): 44–48. http://dx.doi.org/10.36018/dsiij.v6i0.67.

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Abstract:
साधना आत्मिक प्रगति का आधार है। साधना की तीन प्रणालियाँ मानी गई है- कर्म, ज्ञान और भक्ति। बुद्ध के अनुसार शरीर को दण्ड देने की अपेक्षा ज्ञान प्राप्ति से और ध्यान साधना के अभ्यास से निर्वाण प्राप्त हो सकता है। बौद्ध साधनाएँ ‘शील, प्रज्ञा और समाधि के रूप में ‘त्रिरत्न’ के नाम से भी जानी जाती हैं। बौद्ध साधनाभ्यास का आधार ‘शील’ है। क्योंकि बौद्ध साधना में शील सम्पन्न साधक ही समाधि का अधिकारी होता है। बौद्ध साधना ‘हीनयान’ व ‘महायान’ के रूप में भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों को प्रदर्शित करती है। हीनयान केवल ‘निवृत्तिमार्ग’ है। उसकी सारी शिक्षा, समग्र साधना केवल एक आत्मा के निर्वाण को ही लक्ष्य बनाती है त
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डाॅ., पंकज उप्रेती. "सूर के पदों की गेयताः सूर संगीत". International Journal of Advance Research in Multidisciplinary 3, № 1 (2025): 01–04. https://doi.org/10.5281/zenodo.14598537.

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Abstract:
साहित्य और संगीत का गहरा सम्बन्ध है, जो प्राचीन काल से चला आ रहा है। साहित्य बिना संगीत के अधूरा लगता है, और यह विशेष रूप से वेदों और उपनिषदों में देखा जाता है। वेदों में &lsquo;उद्गीथ&rsquo; का उल्लेख किया गया है, जो संगीत के गहरे तत्वों को दर्शाता है। भक्ति साहित्य और संगीत में भी गहरे रिश्ते हैं, जैसे सूरदास के पदों में गेयता और संगीत का अनिवार्य स्थान है। सूरदास की रचनाओं में गेयता का समावेश उनकी भावनाओं और कला के उत्सर्जन के रूप में देखा जा सकता है। यह अध्ययन साहित्य और संगीत के संयोजन, विशेषकर गेयता के महत्व और सूरदास के संगीतात्मक काव्य के बारे में जानकारी प्रदान करता है।
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अमृता, सोनी. "स ंगीत चिकित्सा (एक नवाचार)". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–5. https://doi.org/10.5281/zenodo.885055.

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Abstract:
भगवान श्री विष्णु से एक बार नारद जी ने प ूछा आप कहां रहते हैं। तब उन्होंने कहा ह े नारद ना ही मैं ब ैकुण्ठ में रहता ह ूं आ ैर ना ही या ेगिया ें क े हृदय म े।ं लेकिन मेरे भक्त जहां गायन वादन करते ह ै ं वहां मैं मूर्त रूप में उपस्थित रहता हूं। (नारद भक्ति सूत्र) ज्ञान-विज्ञान से परिपूर्ण मानव-जगत में नित नए प्रया ेग हा े रहे ह ैं। जब ये प ्रया ेग जीवन क े अभिन्न अंग बन जाते हैं, तब मानव फिर अभिनव अनुसंधान में प ्रवृत्त हा े जाता है। यद्यपि संगीत स्वयं एक विज्ञान है, किन्तु अभी उसकी सिद्धी क े लिए वर्षा ें की तपस्या अपेक्षित ह ै। इधर कुछ समय से व ैज्ञानिकों का ध्यान संगीत की ओर गया ह ै, लेकिन संग
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Kumar, Manoj. "Cultural identity in Rajasthani folk songs: A study of regional variations." Gyanvividh 02, no. 01 (2025): 58–65. https://doi.org/10.71037/gyanvividha.v2i1.04.

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Abstract:
राजस्थान के लोक गीत राज्य की जीवंत परंपराओं, सांस्कृतिक समृद्धि और ऐतिहासिक गहराई का प्रतीक हैं। ये कहानी कहने, भावनात्मक अभिव्यक्ति और सामुदायिक पहचान का एक प्रभावी माध्यम हैं। सरल संगीत रचनाओं से परे, ये गीत वीरता, भक्ति, प्रेम और सामाजिक गतिशीलता की कथाएँ बुनते हैं, जो राजस्थान की सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न हिस्सा हैं। यह लेख राजस्थानी लोक गीतों और सांस्कृतिक पहचान के बीच जटिल संबंध का अध्ययन करता है, क्षेत्रीय विविधताओं, विषयगत समृद्धि और वाद्य विशेषताओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए। विद्वतापूर्ण स्रोतों के माध्यम से, यह दर्शाता है कि मेवाड़, मारवाड़, शेखावाटी, हाड़ौती और धुंधर की लोक परंपर
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., अनुबाला, та डॉ दिग्विजय के. शर्मा. "ब्रजभाषा कवियों की भाषा शैली और उनके योगदान का समालोचनात्मक अध्ययन". Journal of Frontiers in Multidisciplinary Research 6, № 1 (2025): 297–301. https://doi.org/10.54660/.jfmr.2025.6.1.297-301.

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Abstract:
ब्रजभाषा मध्यकालीन हिंदी की प्रमुख साहित्यिक बोली रही है, जिसमें भक्तिकालीन कवियों ने कृष्णभक्ति, प्रेम, वात्सल्य, नारी-भावना, सांस्कृतिक चेतना और धार्मिक समरसता को अत्यंत प्रभावशाली ढंग से व्यक्त किया। इस शोध पत्र का उद्देश्य ब्रजभाषा के प्रमुख कवियों—सूरदास, रसखान, मीरा बाई, बिहारीलाल, नंददास आदि की भाषा शैली की विश्लेषणात्मक विवेचना करना और उनके साहित्यिक व सांस्कृतिक योगदान को रेखांकित करना है। ब्रजभाषा की कोमलता, माधुर्य, लयात्मकता और भावप्रवणता ने इसे भक्तिकाव्य के लिए आदर्श माध्यम बनाया। सूरदास के पदों में वात्सल्य और भक्ति की गूढ़ता है, मीरा के गीतों में आत्मनिष्ठ भाव और विरह है, रसखान
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बुढा Budha, गणेशकुमार Ganeshkumar. "दुर्गादेवीका फागमा सन्दर्भ". K. M. C. Nepali journal के. एम. सी. नेपाली जर्नल 5, № 5 (2024): 22–40. https://doi.org/10.3126/kmcnj.v5i5.73738.

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Abstract:
दुर्गादेवीको फाग थलिनौबिसको दुर्गादेवीको मन्दिरमा दुर्गादेवीको पूजा विशेषमा गाउने भक्ति गीत हो । दुर्गादेवीका फाग पर्व विशेषमा गाउने प्रचलन छ । यस फागमा दुर्गादेवीको जन्मसन्दर्भ, पूजासामग्री, पूजाविधि, देवीको मण्डप दुर्गादेवीको पूजा आराधना विषयमा देवी भक्तिको बारेमा वर्णन गरिएको पाइन्छ । दुर्गादेवीकोआराधना, भक्तिको सन्दर्भलाई फागमा समावेश गरिएको छ । दुर्गादेवीको शृङ्गारको वर्णन, रूपको वर्णन,सौन्दर्य वर्णन गरिएको छ । दुर्गादेवी जहिल्यै सत्य र न्यायको पक्षमा उभिएर पवित्रताकी प्रतिमूर्तिका रूपमावर्णन गरिएको छ । दुर्गादेवीको थलिनौविस प्राकृतिक सौन्दर्यको वर्णन, थलिजिउलाको खुट्कुडीको वर्णन थलिनौबिस
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शर्मा, रेखा, та एस के वशिष्ठ. "उत्तरी भारत में 600 ई. से 1200 ई. तक के सामाजिक और धार्मिक परिवर्तनों का अध्ययन". Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education 22, № 2 (2025): 105–10. https://doi.org/10.29070/qza2wr44.

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Abstract:
यह अध्ययन 600 ई. से 1200 ई. तक उत्तरी भारत में सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों की खोज करता है, जिसमें समाज, धर्म और अर्थव्यवस्था के परस्पर संबंधों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। इस अवधि में कई राजवंशों का उत्थान और पतन, जाति संरचनाओं का विकास, भक्ति और तांत्रिक परंपराओं का प्रसार और कृषि विस्तार और व्यापार नेटवर्क के कारण महत्वपूर्ण आर्थिक बदलाव हुए। अध्ययन उस समय के सामाजिक-सांस्कृतिक ताने-बाने को समझने के लिए ऐतिहासिक ग्रंथों, शिलालेखों और पुरातात्विक खोजों की आलोचनात्मक जांच करता है। धार्मिक आंदोलनों, मंदिर अर्थव्यवस्थाओं और विदेशी संबंधों के प्रभाव की भूमिका का विश्लेषण समाज पर उनके प्रभा
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गुरागाईं Gueagain, यज्ञप्रसाद Yagyaprasad. "कृष्णप्रसाद शर्मा वस्तीका खण्डकाव्यमा गीता दर्शन Krishna Prasad Sharma Wastika Khandakavyama Geeta Darshan". Rupantaran: A Multidisciplinary Journal 4, № 1 (2020): 255–64. http://dx.doi.org/10.3126/rupantaran.v4i1.34245.

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Abstract:
यो लेख खण्डकाव्यकार कृष्णप्रसाद वस्तीद्वारा लेखिएका खण्डकाव्यमा व्यक्त भएको गीता दर्शनको अध्ययनविश्लेषणमा केन्द्रित रहेको छ । महाभारत युद्धको पूर्वसन्ध्यामा श्रीकृष्णले अर्जुनलाई दिएको ज्ञान, भक्ति, वैराग्यएवम् मानवदर्शनमूलक शिक्षा नै गीता दर्शन हो । काव्यकार कृष्णप्रसाद शर्मा वस्तीका विभिन्न खण्डकाव्यमायस प्रकारको दर्शनको प्रयोगको अवस्था के कस्तो रहेको छ भन्ने कुरालाई अध्ययनको मूल समस्याको समाधानयस लेखमा खोजिएको छ । यसर्थ उनका खण्डकाव्यमा गीता दर्शको प्रयोगको अवस्था पत्ता लगाउनु यसलेखको उद्देश्य रहेको छ । यस अध्ययनबाट उक्त काव्यका भावी अध्येताहरूलाई लाभ पुग्न सक्छ । यस लेखमावस्तीका खण्डकाव्यह
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नेपाल Nepal, चिदानन्द Chidananda. "अधिकमास र यसमा निषिद्ध कर्महरूको संक्षिप्त अध्ययन {Adhikamasa and a brief study of the forbidden deeds in it}". Pragyajyoti 4, № 1 (2021): 90–95. http://dx.doi.org/10.3126/pj.v4i1.44992.

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Abstract:
वेदको अर्थ ज्ञानराशि हो । वेदका शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द र ज्योतिष यी छ वटा अङ्गहरूमध्ये ज्योतिष आँखा झैं महत्वपूर्ण अङ्ग हो । ज्योतिषशास्त्रमा कालगणनाका लागि प्रचलित प्रमुख ९ वटा पद्धतिहरू छन् । ती मध्ये सूर्यलाई आधार मानेर गरिने कालगणना पद्धतिलाई सौरमान र चन्द्रमालाई आधार मानेर गरिने कालगणनालाई चान्द्रमान भनिन्छ र कालगणनाका यिनै दुर्इृ विधि धेरै प्रचलित छन् । सौरमान अनुसार गणना गरिने समयका वर्ष, अयन, ऋतु, महिना, दिन, घण्टा, मिनट, सेकेण्ड जस्ता एकाइहरू हुन् भने प्रतिपदा आदि तिथिको गणना चान्द्रमान अनुसार हुन्छ । सौरमान र चान्द्रमानको भगण पूर्तिकालमा समन्वय स्थापना गर्न सिर्जना गरिए
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खतिवडा khatiwada, लेखराज Lekhraj. "प्रह्लाद नाटकमा मृत्यु चिन्तन". Kaladarpan कलादर्पण 5, № 1 (2025): 64–73. https://doi.org/10.3126/kaladarpan.v5i1.74735.

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Abstract:
प्रस्तुत लेखमा नाटककार बालकृष्ण समले लेखेको प्रह्लाद नाटकमा व्यक्त भएको मृत्यु चिन्तनको खोजी गरिएको छ । समले विष्णुपुराणमा पाइने हिरण्यकशिपु र उसको छोरो प्रह्लादसँग सम्बन्धित घटनालाई नाटकीकरण गरी प्रस्तुत नाटक लेखेका हुन् । छोरो प्रह्लाद आफ्नो विरोधी देखिएको र उसले आफ्नो परमशत्रु भगवान् विष्णुको भक्ति गरेपछि हिरण्यकशिपु छोराप्रति ज्यादै क्रोधित भएको र उसले आफ्नै छोेरो प्रह्लादलाई मार्न खोजे पनि ऊ विष्णुका कृपाले बाँचेको तर अन्त्यमा हिरण्यकशिपु आपैmले मृत्युवरण गर्न पुगेको घटनामा पुगी टुङ्गिएको प्रस्तुत नाटकमा मृत्यु चिन्तन व्यक्त भएको पाइन्छ । यस संसारमा जन्मेजति सबै प्राणीको एक दिन अवश्यै मृत
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संगीता, देवी. "आज के समय में योग का बढ़ता हुआ महत्व". RECENT RESEARCHES IN SOCIAL SCIENCES & HUMANITIES (ISSN 2348–3318) 9, № 3 (2022): 60–62. https://doi.org/10.5281/zenodo.7362929.

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Abstract:
11 दिसम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र के 117 सदस्यों द्वारा 21 जून को अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस को प्रस्ताव को मंजूरी मिली। जिसके बाद 21 जून को अन्तराष्ट्रीय&nbsp; योग दिवस घोषित किया गया। योग करने से मनुष्य का मन और आत्मा संतुलित रहती है। लेकिन मात्र शरीर को सुडोल बनाने और मन को कुछ जनों के लिए नियंत्रण में रखने से मनुष्य का उद्देश्य पूरा नहीं होता। परमात्मा की प्राप्ति भक्ति योग से ही संभव है। अब तक 8 योग अंतर्राष्ट्रीय दिवस आयोजित किए जा चुके हैं। जिनकी थीम अलग-अलग है । कोई मानवता के लिए योग तो कोई पर्यावरण से संबंधित थीम रखी गई है। योग कोरोना महामारी से बचने में भी सहायक है। योग विज्ञान जीवन या
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पाठक, ऋचा. "संस्कृत साहित्य (वाल्मीकि रामायण) में राम कथा का मूल्यांकन". Humanities and Development 20, № 01 (2025): 56–60. https://doi.org/10.61410/had.v20i1.230.

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Abstract:
भारतीय वांङमय में श्री वाल्मीकीय रामायण आदि काव्य के रूप में प्रतिष्ठित है। इस महामहनीय आदि काव्य ने भारतीय वांङमय को ही नहीं अपितु सारे संसार के वांङमय को प्रभावित किया है। भारत के विविध रामायण एवं अधिकां‛ा काव्य, नाटक, चम्पू, आख्यान, आख्यायिका आदि का उपजीव्य यह रामायण है। महर्षि वाल्मीकि जी ने अपौरुषेय वेदों, उपनिषदों तथा देवर्षि नारद जी के उपदे‛ाों से श्री राम की कथावस्तु जानकर एवं समाधिजनित ऋतम्भरा प्रज्ञा से रामायण के सम्पूर्ण चरित्रों का प्रत्यक्ष साक्षात्कार कर रामायण की रचना की। वे राम के समकालीन महर्षि थे, अतः इसमें वर्णित कथावस्तु सत्य घटना के अन्तर्गत है। इसीलिए रामायण की अद्वितीय ल
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डॉ., नारायण बागुल. "रामायण में सामाजिक सन्दर्भ : एक अनुशीलन". International Journal of Advance and Applied Research 4, № 26 (2023): 159–61. https://doi.org/10.5281/zenodo.8416557.

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Abstract:
आदिकवि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण एक ऐसा आचारशास्त्र एवं धर्मशास्त्र है, जो भारतीय समाज में ही नहीं अपितु विदेशों में भी विश्रुत है। यह मानव जीवन का सर्वांगीण आदर्श प्रस्तुत करता है। रामायण धार्मिक दृष्टि से प्राचीन संस्कृति, आचार, सत्य, धर्म, व्रत-पालन आदि को समाज में प्रदर्शित करता है। सामाजिक दृष्टि से यह पति-पत्नी के दाम्पत्य सम्बन्ध, पिता-पुत्र के कर्त्तव्य, गुरू-शिष्य का पारस्परिक व्यवहार, भाई का भाई के प्रति कर्त्तव्य, व्यक्ति का समाज के प्रति उत्तरदायित्व, आदर्श माता-पिता, पुत्र, भाई, पति एवं पत्नी का चित्रण, आदर्श गृहस्थ जीवन की अभिव्यक्ति करता है। रामायण में सामाजिक सन्दर्भ में पितृ
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Kavita, Namdev, Chhaya Shrivastava Dr. та Vikrant Sharma Dr. "स्कूलों में मूल्यों और अपनाई गई विधियों पर प्रधानाचार्यों के विचारों के अंकों के वितरण की प्रकृतिऔर कॉलेज". International Journal of Trends in Emerging Research and Development 2, № 6 (2024): 125–29. https://doi.org/10.5281/zenodo.15175742.

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Abstract:
शोध अध्ययन की परिकल्पना विद्वान द्वारा इस अध्ययन के लिए छात्रों की प्रतिक्रियाओं को जानने के लिए की गई थी और प्रश्नावली में शामिल प्रश्नों के उत्तर देने के आधार पर उत्तरदाता छात्रों द्वारा इस अध्ययन में भाग लेने की इच्छा से बहुत संतुष्ट महसूस किया। विद्वान अध्ययन के उद्देश्य को बहुत रोचक तरीके से समझाते थे सर्वेक्षण विधि के लाभ वर्तमान स्थिति, घटना या बात का वर्णन किया जाता है। सुधार और संशोधन के लिए सुझाव भी दिए जाते हैं। सर्वेक्षण में कई लोगों की राय जानी जाती है। धर्म की गलतफहमी के परिणामस्वरूप पूरे देश में नागरिकों के बीच मतभेद और अविश्वास बढ़ गया है। अंधापन धार्मिक या धार्मिक विश्वास का प
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गुर्वेन्द्र, गायत्री, та अमृत गुर्वेन्द्र. "श्रीमद्भगवद्गीता में तनाव प्रबंधन". Dev Sanskriti Interdisciplinary International Journal 10 (31 липня 2017): 59–62. http://dx.doi.org/10.36018/dsiij.v10i0.98.

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Abstract:
श्रीमद्भगवद्गीता मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों एवं आध्यात्मिक जीवन जीने की कला का एक सर्वांगपूर्ण ग्रंथ है, जो कि मनःसंस्थान के सम्पूर्ण तंत्रों की व्याख्या करती है। वर्तमान समय में गीता की महत्ता अधिक है; क्योंकि आज का मानव तनाव एवं आंतरिक द्वन्द्वों से उद्विग्न एवं अशांत है तथा यह अंतद्र्वन्द्व ही उसके समग्र मनोवैज्ञानिक जीवन की अपूर्णता का कारण है। अन्तःकरण की उत्कृष्टता ही व्यक्तित्व का वास्तविक मापदण्ड है। श्रीमद्भगवद्गीता की समग्र मनःचिकित्सा पद्धति मूलतः त्रिगुणात्मक (सत्व, रज, तम्) है। इस सिद्धान्त के अनुसार शरीर, मन एवं आत्मा तीनों आयाम गुँथे हुए हैं। यदि रोग पनपता है तो वह भी इन तीनों स्त
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Koli, Munshi Ram. "Hindi Children Literature and Medieval Period." RESEARCH HUB International Multidisciplinary Research Journal 11, no. 1 (2024): 123–28. http://dx.doi.org/10.53573/rhimrj.2024.v11n1.021.

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Abstract:
Muslim rule was established in India during medieval period in which Persian language was recognized as official language. But Mughal ruler Akbar gave due importance and place to scholars of all religions and languages ​​in his court which was given importance by all his descendants. In the literature written in Krishna Bhakti by scholars like Surdas during Akbar's time, the child form of Lord Shri Krishna was given the most importance in which children's literature developed during this period. Abstract in Hindi Language: भारत में मध्यकाल में मुस्लिम सत्ता स्थापित थी जिसमें फारसी भाषा को राजभ
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Komal, &. Ojha Devendra Nath. "Relevance of Srimad Bhagavad Gita in present perspective (वर्तमान परिप्रेक्ष्य में श्रीमद्भगवद्गीता की प्रासंगिकता)". VAAK SUDHA 36, № 09 (2023): 141–44. https://doi.org/10.5281/zenodo.8176833.

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Abstract:
संक्षेपिका:&nbsp;श्रीमद्भगवद्गीता एक महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथ है जो&nbsp;भारत की संस्कृति और विचारधारा का प्रतिनिधित्व करती&nbsp;है। श्रीमद्भगवद्गीता के माध्यम से ज्ञान के विभिन्न&nbsp;विषयों पर चर्चा की जाती है, जैसे धर्म, कर्म, ज्ञान, भक्ति,&nbsp;संसार और मोक्ष आदि। इस ग्रंथ में श्रीकृष्ण अर्जुन को&nbsp;उचित राह दिखाते हुए उन्हें समस्याओं का समाधान ढूंढने&nbsp;के लिए उनकी सहायता करती है। इसमें उपलब्ध शिक्षाओंऔर संदेशों का मानव जीवन में व्यापक उपयोग है। अन्य&nbsp;धार्मिक ग्रंथों की तुलना में श्रीमद्भगवद्गीता धार्मिक समझ,&nbsp;मौलिक उपयोगिता और सुलभ भाषा के कारण सभी लोगों&nbsp;के लिए अधिक उपयो
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डा, ॅ. प्रतिभा सोलंकी. "मध्यकालीन हि ंदी काव्य म ें र ंग संया ेजन". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.889259.

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Abstract:
साहित्य आ ैर चित्रकला का पारस्परिक घनिष्ठ अंतर्सबंध ह ै। दोना े क े माध्यम से जीवन के गहन उद्द ेष्या ें की प ूर्ति होती है। साहित्यकार के शब्द यदि हमारी भावना का े उद्वेलित कर सकते ह ै ं तो चित्रकार की तूलिका से अ ंकित रेखाएं आ ैर रंग भी हमारे ह ृदय के का ेमल पक्ष को छूने की अद्भुत शक्ति लिए होते ह ैं। कवि आ ैर चित्रकार दोना े ही अपनी कला प्रतिभा के जरिये सा ैंदर्य रचना करते ह ैं। कविता में शब्दों का तथा चित्रों में रंग आ ैर रेखाआ ें का सा ैंदर्य मौजूद रहता है।1 एक कुषल चित्रकार की भाँति साहित्यकार भी शब्दा ें क े माध्यम से सु ंदर बिंब एवं रंग स ंया ेजन प ्रस्तुत करता ह ै। मध्यकालीन हिंदी काव्
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सुश्री., स्वाति हिराजी देडे, та विनोद्कुमार विलासराव वायचळ डॉ. "स्वामी दयानन्द सरस्वती और समाज सुधार". International Journal of Advance and Applied Research S6, № 7 (2025): 389–90. https://doi.org/10.5281/zenodo.14793014.

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Abstract:
आज जो देश ने करवट बदली हैं देश में जागृति के जो चिन्ह दिखाई दे रहे हैं देश की समाज &ndash; सुधार, शिक्षा का प्रसार वैदिक प्रचार ब्रम्ह्चर्य, शिक्षा आदि पुनीत आंदोलन दृष्टीगोचर हो रहे हैं । ये सब जगदगुरु महर्षि दयानन्द सरस्वती जी की ही मह्ती कृपा का फल हैं । परम पुज्य महर्षि दयानन्द सरस्वती जी आपने महान&nbsp; कार्यो तथा त्याग और तपस्या के कारण ही सदासदा के लिए अमर बन गये हैं। संसार में उनकी समानता करने वाला कोई नहीं हैं। जिस युग में महर्षि दयानन्द सरस्वती जी हुए उसमें&nbsp; कई वर्ष पूर्व से आज तक ऐसा एक ही महापुरुष पैदा हुआ हैं जो विदेशी भाषा नहीं जानते थे, जिसने स्वदेश से बाहर एक पग भी नहीं रख
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Paudyal, Shalikram. "रूपन्देही जिल्लामा प्रचलित लोकगीतको अध्ययन". Butwal Campus Journal 4, № 1-2 (2021): 147–60. http://dx.doi.org/10.3126/bcj.v4i1-2.45015.

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Abstract:
लोकसमुदायमा प्रचलित साहित्य लोकसाहित्य हो । लोकसमुदायमा मौखिक परम्परामा जन्मेको र हुर्केको अलिखित साहित्य नै लोकसाहित्य हो । लोकसाहित्यका विभिन्न विधामध्ये लोकगीत अत्यन्त प्रचलित विधा हो । लुम्बिनी प्रदेशको तराईको जिल्ला रूपन्देहीमा विभिन्न जातजाति र भाषाभाषीका मानिसहरूको बसोबास रहेको छ । यस जिल्लाका आदिबासी थारू र भोजपुरी भाषी समुदाय हुन् भने अन्य नेपाली, मगर, नेवार, गुरुङ जातिको बसोबास यस जिल्लामा निकै पछि मात्र भएको हो । खास गरी तराईमा औलो रोगको महामारीको नियन्त्रणपछि मात्र यस जिल्लामा पहाडी जिल्लाबाट मानिसहरू बसाइँ सरेर आएको देखिन्छ । त्यसैले यस जिल्लामा प्रचलित थारू र भोजपुरी भाषाको लोकगी
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तिवारी Tiwari, प्रेमप्रसाद Premprasad. "पर्वत जिल्लाको खण्डकाव्य परम्परा {Khandakavya tradition of Parvat district}". Pragyan 6, № 1 (2023): 65–73. http://dx.doi.org/10.3126/pragyan.v6i1.54706.

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Abstract:
पर्वत जिल्लाको खण्डकाव्य परम्पराको थालनी कालीभक्त पन्तको किसान गीता नामक कृतिबाट भएको हो । यस जिल्लामा रचिएका कृतिमा सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक आदि विषयको प्रयोग गरिएको पाइन्छ । यसजिल्लामा रचिएका काव्यमा समसामयिक समस्याको उद्घाटन, नारी चेतनाको प्रस्तुति, देशप्रेम, आध्यात्मिकचेत, सामाजिक विकृतिको विरोध, कर्तव्यबोध, ऐतिहासिकता, रुढि तथा अन्धविश्वासप्रति वितृष्णा, समाजमाविद्यमान शोषण, दमन, अन्याय, अत्याचारको विरोध समकालीन शासन व्यवस्थाप्रति वितृष्णा, राजनैतिक परिवर्तनको चाहना, जातीय विभेद, आर्थिक विषमताप्रति व्यङ्ग्य विद्रोह गर्नेजस्ता प्रवृत्ति प्राप्त गर्न सकिन्छ ।यस जिल्लामा रचिएका कृतिमा सामा
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