Academic literature on the topic 'भूत-प्रेत'

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Journal articles on the topic "भूत-प्रेत"

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Bhusal, Keshab. "समकालीन नेपाली बालकथामा पात्र प्रयोग". BMC Research Journal 4, № 1 (2025): 131–40. https://doi.org/10.3126/bmcrj.v4i1.80119.

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Abstract:
प्रस्तुत लेख समकालीन नेपाली बालकथामा केन्द्रित रहेको छ । यस लेखमा समकालीन नेपाली बालकथामा प्रयोग गरिएका पात्रहरूको विश्लेषण गरिएको छ । यस अध्ययनको मूलभूत उद्देश्य समकालीन नेपाली बालकथामा प्रयुक्त पात्रहरूको प्रकृति तथा भूमिका विश्लेषण गर्नु रहेको छ । प्रस्तुत अध्ययन गुणात्मक अध्ययन विधिमा आधारित रहेको छ । यस अध्ययनमा मुख्यतया द्वितीयक स्रोतका सामग्रीहरूको उपयोग गरिएको छ । यस क्रममा नेपाली तथा अङ्ग्रेजी सैद्धान्तिक सामग्रीहरूको प्रयोग गरिएको छ । कुल पाँच ओटा कथाको अध्ययन गरिएको यस अुनुसन्धानबाट पात्र प्रकृतिका दृष्टिले ईश्र्या, द्वेश र क्रोधमाथि विजय र ढोकैमा भूत कथामा मानवीय पात्रको प्रयोग गरि
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2

रजक, बिजय. "'फणीश्वरनाथ रेणु' के उपन्यासों में निहित लोक-संस्कृति". Remarking An Analisation 8, № 12 (2024): H 1— H 7. https://doi.org/10.5281/zenodo.10972197.

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Abstract:
This paper has been published in Peer-reviewed International Journal "Remarking An Analisation"                      URL : https://www.socialresearchfoundation.com/new/publish-journal.php?editID=8877 Publisher : Social Research Foundation, Kanpur (SRF International)  Abstract :  ‘फणीश्वरनाथ रेणु’ के उपन्यासों में ग्रामीण या विशेष अंचल की अनेक समस्याओं, चरित्र, लोगों के परस्पर संबंध, प्रकृति के दृश्य तथा उनसे मनुष्यों का स्वरूप उदघाटित होता है तथा ग्
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3

पन्थ Pantha, नारायणप्रसाद Narayanprasad. "नेपाली र भोजपुरी भाषाका काल तथा पक्षको तुलना {Comparison of Tenses and Aspects of Nepali and Bhojpuri Languages}". SNPRC Journal 4, № 1 (2023): 110–27. http://dx.doi.org/10.3126/snprcj.v4i1.61708.

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Abstract:
प्रस्तुत लेखमा व्यतिरेकी विश्लेषणको सैद्घान्तिक पर्याधारको केन्द्रीयतामा नेपाली र भोजपुरी भाषाका काल तथा पक्षको तुलना गरिएको छ । नेपाली र भोजपुरी भाषाका काल तथा पक्षको तुलनात्मक अध्ययन गर्नाका निम्ति यो अध्ययन गरिएको हो । प्राथमिक र द्वितीयक स्रोतका सामग्री तथा वर्णनात्मक, तुलनात्मक र विश्लेषणात्मक अनुसन्धान पद्घतिको उपयोग गरी यस अध्ययनलाई पूर्ण बनाइएको छ । यस लेखमा वर्तमान, भूत र भविष्यत्कालका सामान्य, अपूर्ण र पूर्ण जस्ता सूचकमा केन्द्रित रही उपर्युक्त दुई भाषाको तुलना गरी निष्कर्ष निकालिएको छ । निष्कर्षअनुसार नेपाली भाषाको वर्तमानकालीन क्रियामा धातुपछि छु, छौँ, छन्, छस् जस्ता सहायक क्रियाको
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विष्ट Bista, वासुदेव Bashudev. "दार्चुलेली भाषामा ऊर्जावत् पदसङ्गति (Conjugation in Darchuleli Language)". KMC Journal 5, № 2 (2023): 362–85. http://dx.doi.org/10.3126/kmcj.v5i2.58251.

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Abstract:
दार्चुलेली मातृभाषा नेपालको सुदूरपश्चिम प्रदेशको नेपाली मातृभाषा हो । गढवाली, कुमाउनी, दार्चुलेली मातृभाषा पहाडी भाषा हुन् । नेपाली मातृभाषालाई परम्परागत रूपमा पूर्वी पहाडी भाषा भन्न सकिन्छ तर कुमाउनी र दार्चुलेली, बैतडेली, डडेल्धुरेली महाकाली वारिपारि बोलिने भाषा हुन् । ‘भाषा र भाषिका’ भन्ने शब्द समाज भाषा विज्ञानका पारिभाषिक शब्द हुन् । राजनीतिलाई अघि नसारी कुनै पनि मातृभाषालाई ‘भाषा’ हो कि ‘भाषिका’ भनेर छुट्ट्याउन सकिदैन । डेभिड क्रिस्टल (सन् २००३) ले के भनेका छन् भने जुन भाषालाई राष्ट्रिय झण्डा र सेनाले परिभाषित गर्छ, त्यो चाहिँ भाषा हो भने, जुन भाषा राष्ट्रिय झन्डा र सेनाले सुसज्जित हुँदै
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5

Dixit, Vibhakar. "श्रीमद्भगवद्गीता में सामाजिक सद्भावना का स्वरूप". Naagfani 12, № 40 (2022): 472–76. https://doi.org/10.5281/zenodo.14973357.

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Abstract:
भारतीय संस्कृत में भगवद्गीता का एक महत्वपूर्ण स्थान है। यह ग्रंथ भारतीय दर्शन के साथ सामाजिक सद्भावना एवं बंधुत्व भाव का भी प्रतिपादक रहा है। महाभारत के युद्ध के समय में राग, द्वेष एवं मोह से वशीभूत अर्जुन जब किंकर्तव्यविमूढ हो गये तब भगवान ने भगवद्गीता के माध्यम से ही कर्तव्य बोध कराया इसीलिए भगवद्गीता में भगवान के द्वारा ऐसे अनेक प्रकार के उपदेश किए गए हैं जो भारतीय समाज में समता एवं संप्रभुता को सम्यक रूप से अवस्थित कर सकते है। भगवद्गीता में समत्व के भाव को ही योग के नाम से कहा गया इसीलिए अपने मन के भाव को सामान रखें तथा सभी प्रकार के भूत भौतिक पदार्थों में समानता को एक विशिष्ट स्थान पर रखे
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Abhishek. "सांख्य दर्शन के द्वैतवाद का दार्शनिक परीक्षण". Original source 19 (14 лютого 2018): 15–18. https://doi.org/10.5281/zenodo.10427137.

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Abstract:
मनुष्य एक विवेकशील प्राणी है। जब से भी सृष्टि क्रम में इसका प्रादुर्भाव हुआ है तब से निरन्तर चिन्तन के माध्यम से विकास को प्राप्त कर रहा है। प्राचीन समय में मनुष्य जगत के सभी कार्यों से विस्मृत था चाहे वो तारे का टूट के गिरना, नदी का बहना, हवा का चलना, आग का जलना, वृक्षों का होना इत्यादि। समस्त विश्व में अपनी चिन्तन प्रणाली के अनुसार जगत के मूल भूत तत्वों की खोज करने का प्रयास किया गया। भारतीय दर्शन ने भी अपने वैदिक व अवैदिक दर्शन प्रणाली के माध्यम से इसका समाधान प्रस्तुत किया। वैदिक दर्शन में सांख्य दर्शन का प्रकृति विकास एक ऐसा ही प्राचीनतम् उत्तर है। जो प्राचीन आचार्यों के गम्भीरता का बोध क
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प्राचार्य, डॉ. संतोष तुकाराम कदम. "मौखिक इतिहासलेखन पद्धती सातारचे श्री छत्रपती शिवाजी वस्तुसंग्रहालय : एक अभ्यास". International Journal of Advance and Applied Research 3, № 5 (2022): 27–30. https://doi.org/10.5281/zenodo.7397346.

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Abstract:
<strong>प्रस्तावना</strong><strong>:- </strong> इतिहास अभ्यास व संशोधनासाठी वस्तुसंग्रहालयाचे महत्वाची भूमिका पार पाडत असतात. एखाद्या कालखंडाचा राजघराण्याचा अभ्यास करीत असतांना ज्या ठिकाणी लिखित माहिती कमी प्रमाणात उपलब्ध असते वा माहिती मिळत नाही अशावेळी वस्तुसंग्रहालये उपयोगी पडतात वस्तुसंग्रहालयातील विविध वस्तूच्या अभ्यासाने आपल्याला त्या काळातील सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक परिस्थिती, कला व स्थापत्य, शस्त्रात्रे,पोषाख, दागदागिने, कलात्मक वस्तु, हत्यारे, नाणी इ. माहिती मिळते व त्याचा अभ्यासासाठी उपयोग होतो. इतिहासाची एक शाखा म्हणून वस्तुसंग्रहालयाकडे पाहिले जाते. आधुनिक काळात देखील संग्रहालया
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डॉ., आनन्दसिंह पटेल. "बारेला जनजाति की लोक कलाएँ". International Journal of Research -Granthaalayah 7, № 11(SE) (2019): 165–71. https://doi.org/10.5281/zenodo.3586789.

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Abstract:
कला मानव की बौद्धिक प्रतिभा और शारीरिक क्षमताओं के समन्वय की अद्&zwnj;भूत प्रस्तुति है। कला के विकास में मानव की शारीरिक क्षमताओं ने उसकी अत्यधिक सहायता की है। कला रुपायन के लिए न केवल कल्पनाशील मस्तिष्क की आवश्यकता होती है बल्कि रूपायन के लिए तीक्ष्ण और केन्द्रीयता का अपना महत्त्व है। बारेला जनजाति की प्रत्येक वस्तु में कला के आयाम उपस्थित होते हैं। जीवन के व्यवहार में आने वाले पदार्थ को सौन्दर्य की दृष्टि से देखना उनकी जीवन शैली बन गई हैं। प्रकृति के सांनिध्य में इन लोगों ने प्रकृति के समस्त उपादानों का भरपूर आस्वाद किया है।<sup>2</sup> बारेला लोककलाओं की सबसे बड़ी विशेषता है। वहाँ सर्व सुलभ
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डॉ० प्रमोद कुमार सिंह та एकता सिंह. "सामाजिक परिवर्तन में शिक्षा की भूमिका". International Journal of Multidisciplinary Research in Arts, Science and Technology 2, № 2 (2024): 23–28. http://dx.doi.org/10.61778/ijmrast.v2i2.40.

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Abstract:
भारतीय समाज में व्याप्त अन्धविश्वास, छुआछूत, भेदभाव, ऊँचनीच, जाति-पांति आदि अशिक्षा की ही देन है। आलस्य प्रमाद, अकर्मण्यता, निराशा, निरुत्साह तथा आवेग, अवज्ञा आदि मानसिक विकारों की जननी भी निरक्षरता ही है। कदाचित् हीे कोई दुर्गुण, दुव्यसन अथवा दुष्कृत्यता होगी जिसको निरक्षरता ने जन्म न दिया हो। धर्म का ठीक -ठीक स्वरूप न समझे अशिक्षित व्यक्ति जाने कितने देवी-देवताओं, भूत-पलीतों और मियाँ- मसानों की पूजा करते है। अशिक्षित नारियाँ तो इन अन्धविश्वासों की इतनी वंदिनी हो जाती है कि प्रपंची लोगों के बहकावे में आकर शील-सम्पत्ति तक गवाँ बैठती है। महामना मुनियों की संतान एवं सनातन ज्ञान के आधिकारी भारतवा
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Yadav, Rekha. "Politics of Reservation in Rajasthan Assembly Elections: Current Scenario." RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 8, no. 2 (2023): 108–11. http://dx.doi.org/10.31305/rrijm.2023.v08.n02.019.

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Abstract:
In the last 22-25 years, including reservation for poor upper castes in Rajasthan, giving reservation to Jats by including them in OBC, giving reservation to Gujjars in special category outside OBC, special reservation to tribals, recently Mali-Saini-Kushwaha societies Raised the demand for reservation in special quota within OBC. Due to the long battle for reservation, 70 people died and hundreds were injured during this period. Property worth billions has been destroyed, yet this fire keeps on burning. When elections approach, the ghost of reservation does not stay out of the bottle.&#x0D; A
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