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Bhusal, Keshab. "समकालीन नेपाली बालकथामा पात्र प्रयोग". BMC Research Journal 4, № 1 (2025): 131–40. https://doi.org/10.3126/bmcrj.v4i1.80119.

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Abstract:
प्रस्तुत लेख समकालीन नेपाली बालकथामा केन्द्रित रहेको छ । यस लेखमा समकालीन नेपाली बालकथामा प्रयोग गरिएका पात्रहरूको विश्लेषण गरिएको छ । यस अध्ययनको मूलभूत उद्देश्य समकालीन नेपाली बालकथामा प्रयुक्त पात्रहरूको प्रकृति तथा भूमिका विश्लेषण गर्नु रहेको छ । प्रस्तुत अध्ययन गुणात्मक अध्ययन विधिमा आधारित रहेको छ । यस अध्ययनमा मुख्यतया द्वितीयक स्रोतका सामग्रीहरूको उपयोग गरिएको छ । यस क्रममा नेपाली तथा अङ्ग्रेजी सैद्धान्तिक सामग्रीहरूको प्रयोग गरिएको छ । कुल पाँच ओटा कथाको अध्ययन गरिएको यस अुनुसन्धानबाट पात्र प्रकृतिका दृष्टिले ईश्र्या, द्वेश र क्रोधमाथि विजय र ढोकैमा भूत कथामा मानवीय पात्रको प्रयोग गरि
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रजक, बिजय. "'फणीश्वरनाथ रेणु' के उपन्यासों में निहित लोक-संस्कृति". Remarking An Analisation 8, № 12 (2024): H 1— H 7. https://doi.org/10.5281/zenodo.10972197.

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Abstract:
This paper has been published in Peer-reviewed International Journal "Remarking An Analisation"                      URL : https://www.socialresearchfoundation.com/new/publish-journal.php?editID=8877 Publisher : Social Research Foundation, Kanpur (SRF International)  Abstract :  ‘फणीश्वरनाथ रेणु’ के उपन्यासों में ग्रामीण या विशेष अंचल की अनेक समस्याओं, चरित्र, लोगों के परस्पर संबंध, प्रकृति के दृश्य तथा उनसे मनुष्यों का स्वरूप उदघाटित होता है तथा ग्
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पन्थ Pantha, नारायणप्रसाद Narayanprasad. "नेपाली र भोजपुरी भाषाका काल तथा पक्षको तुलना {Comparison of Tenses and Aspects of Nepali and Bhojpuri Languages}". SNPRC Journal 4, № 1 (2023): 110–27. http://dx.doi.org/10.3126/snprcj.v4i1.61708.

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Abstract:
प्रस्तुत लेखमा व्यतिरेकी विश्लेषणको सैद्घान्तिक पर्याधारको केन्द्रीयतामा नेपाली र भोजपुरी भाषाका काल तथा पक्षको तुलना गरिएको छ । नेपाली र भोजपुरी भाषाका काल तथा पक्षको तुलनात्मक अध्ययन गर्नाका निम्ति यो अध्ययन गरिएको हो । प्राथमिक र द्वितीयक स्रोतका सामग्री तथा वर्णनात्मक, तुलनात्मक र विश्लेषणात्मक अनुसन्धान पद्घतिको उपयोग गरी यस अध्ययनलाई पूर्ण बनाइएको छ । यस लेखमा वर्तमान, भूत र भविष्यत्कालका सामान्य, अपूर्ण र पूर्ण जस्ता सूचकमा केन्द्रित रही उपर्युक्त दुई भाषाको तुलना गरी निष्कर्ष निकालिएको छ । निष्कर्षअनुसार नेपाली भाषाको वर्तमानकालीन क्रियामा धातुपछि छु, छौँ, छन्, छस् जस्ता सहायक क्रियाको
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विष्ट Bista, वासुदेव Bashudev. "दार्चुलेली भाषामा ऊर्जावत् पदसङ्गति (Conjugation in Darchuleli Language)". KMC Journal 5, № 2 (2023): 362–85. http://dx.doi.org/10.3126/kmcj.v5i2.58251.

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Abstract:
दार्चुलेली मातृभाषा नेपालको सुदूरपश्चिम प्रदेशको नेपाली मातृभाषा हो । गढवाली, कुमाउनी, दार्चुलेली मातृभाषा पहाडी भाषा हुन् । नेपाली मातृभाषालाई परम्परागत रूपमा पूर्वी पहाडी भाषा भन्न सकिन्छ तर कुमाउनी र दार्चुलेली, बैतडेली, डडेल्धुरेली महाकाली वारिपारि बोलिने भाषा हुन् । ‘भाषा र भाषिका’ भन्ने शब्द समाज भाषा विज्ञानका पारिभाषिक शब्द हुन् । राजनीतिलाई अघि नसारी कुनै पनि मातृभाषालाई ‘भाषा’ हो कि ‘भाषिका’ भनेर छुट्ट्याउन सकिदैन । डेभिड क्रिस्टल (सन् २००३) ले के भनेका छन् भने जुन भाषालाई राष्ट्रिय झण्डा र सेनाले परिभाषित गर्छ, त्यो चाहिँ भाषा हो भने, जुन भाषा राष्ट्रिय झन्डा र सेनाले सुसज्जित हुँदै
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Dixit, Vibhakar. "श्रीमद्भगवद्गीता में सामाजिक सद्भावना का स्वरूप". Naagfani 12, № 40 (2022): 472–76. https://doi.org/10.5281/zenodo.14973357.

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Abstract:
भारतीय संस्कृत में भगवद्गीता का एक महत्वपूर्ण स्थान है। यह ग्रंथ भारतीय दर्शन के साथ सामाजिक सद्भावना एवं बंधुत्व भाव का भी प्रतिपादक रहा है। महाभारत के युद्ध के समय में राग, द्वेष एवं मोह से वशीभूत अर्जुन जब किंकर्तव्यविमूढ हो गये तब भगवान ने भगवद्गीता के माध्यम से ही कर्तव्य बोध कराया इसीलिए भगवद्गीता में भगवान के द्वारा ऐसे अनेक प्रकार के उपदेश किए गए हैं जो भारतीय समाज में समता एवं संप्रभुता को सम्यक रूप से अवस्थित कर सकते है। भगवद्गीता में समत्व के भाव को ही योग के नाम से कहा गया इसीलिए अपने मन के भाव को सामान रखें तथा सभी प्रकार के भूत भौतिक पदार्थों में समानता को एक विशिष्ट स्थान पर रखे
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Abhishek. "सांख्य दर्शन के द्वैतवाद का दार्शनिक परीक्षण". Original source 19 (14 лютого 2018): 15–18. https://doi.org/10.5281/zenodo.10427137.

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Abstract:
मनुष्य एक विवेकशील प्राणी है। जब से भी सृष्टि क्रम में इसका प्रादुर्भाव हुआ है तब से निरन्तर चिन्तन के माध्यम से विकास को प्राप्त कर रहा है। प्राचीन समय में मनुष्य जगत के सभी कार्यों से विस्मृत था चाहे वो तारे का टूट के गिरना, नदी का बहना, हवा का चलना, आग का जलना, वृक्षों का होना इत्यादि। समस्त विश्व में अपनी चिन्तन प्रणाली के अनुसार जगत के मूल भूत तत्वों की खोज करने का प्रयास किया गया। भारतीय दर्शन ने भी अपने वैदिक व अवैदिक दर्शन प्रणाली के माध्यम से इसका समाधान प्रस्तुत किया। वैदिक दर्शन में सांख्य दर्शन का प्रकृति विकास एक ऐसा ही प्राचीनतम् उत्तर है। जो प्राचीन आचार्यों के गम्भीरता का बोध क
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प्राचार्य, डॉ. संतोष तुकाराम कदम. "मौखिक इतिहासलेखन पद्धती सातारचे श्री छत्रपती शिवाजी वस्तुसंग्रहालय : एक अभ्यास". International Journal of Advance and Applied Research 3, № 5 (2022): 27–30. https://doi.org/10.5281/zenodo.7397346.

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Abstract:
<strong>प्रस्तावना</strong><strong>:- </strong> इतिहास अभ्यास व संशोधनासाठी वस्तुसंग्रहालयाचे महत्वाची भूमिका पार पाडत असतात. एखाद्या कालखंडाचा राजघराण्याचा अभ्यास करीत असतांना ज्या ठिकाणी लिखित माहिती कमी प्रमाणात उपलब्ध असते वा माहिती मिळत नाही अशावेळी वस्तुसंग्रहालये उपयोगी पडतात वस्तुसंग्रहालयातील विविध वस्तूच्या अभ्यासाने आपल्याला त्या काळातील सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक परिस्थिती, कला व स्थापत्य, शस्त्रात्रे,पोषाख, दागदागिने, कलात्मक वस्तु, हत्यारे, नाणी इ. माहिती मिळते व त्याचा अभ्यासासाठी उपयोग होतो. इतिहासाची एक शाखा म्हणून वस्तुसंग्रहालयाकडे पाहिले जाते. आधुनिक काळात देखील संग्रहालया
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डॉ., आनन्दसिंह पटेल. "बारेला जनजाति की लोक कलाएँ". International Journal of Research -Granthaalayah 7, № 11(SE) (2019): 165–71. https://doi.org/10.5281/zenodo.3586789.

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Abstract:
कला मानव की बौद्धिक प्रतिभा और शारीरिक क्षमताओं के समन्वय की अद्&zwnj;भूत प्रस्तुति है। कला के विकास में मानव की शारीरिक क्षमताओं ने उसकी अत्यधिक सहायता की है। कला रुपायन के लिए न केवल कल्पनाशील मस्तिष्क की आवश्यकता होती है बल्कि रूपायन के लिए तीक्ष्ण और केन्द्रीयता का अपना महत्त्व है। बारेला जनजाति की प्रत्येक वस्तु में कला के आयाम उपस्थित होते हैं। जीवन के व्यवहार में आने वाले पदार्थ को सौन्दर्य की दृष्टि से देखना उनकी जीवन शैली बन गई हैं। प्रकृति के सांनिध्य में इन लोगों ने प्रकृति के समस्त उपादानों का भरपूर आस्वाद किया है।<sup>2</sup> बारेला लोककलाओं की सबसे बड़ी विशेषता है। वहाँ सर्व सुलभ
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डॉ० प्रमोद कुमार सिंह та एकता सिंह. "सामाजिक परिवर्तन में शिक्षा की भूमिका". International Journal of Multidisciplinary Research in Arts, Science and Technology 2, № 2 (2024): 23–28. http://dx.doi.org/10.61778/ijmrast.v2i2.40.

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Abstract:
भारतीय समाज में व्याप्त अन्धविश्वास, छुआछूत, भेदभाव, ऊँचनीच, जाति-पांति आदि अशिक्षा की ही देन है। आलस्य प्रमाद, अकर्मण्यता, निराशा, निरुत्साह तथा आवेग, अवज्ञा आदि मानसिक विकारों की जननी भी निरक्षरता ही है। कदाचित् हीे कोई दुर्गुण, दुव्यसन अथवा दुष्कृत्यता होगी जिसको निरक्षरता ने जन्म न दिया हो। धर्म का ठीक -ठीक स्वरूप न समझे अशिक्षित व्यक्ति जाने कितने देवी-देवताओं, भूत-पलीतों और मियाँ- मसानों की पूजा करते है। अशिक्षित नारियाँ तो इन अन्धविश्वासों की इतनी वंदिनी हो जाती है कि प्रपंची लोगों के बहकावे में आकर शील-सम्पत्ति तक गवाँ बैठती है। महामना मुनियों की संतान एवं सनातन ज्ञान के आधिकारी भारतवा
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Yadav, Rekha. "Politics of Reservation in Rajasthan Assembly Elections: Current Scenario." RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 8, no. 2 (2023): 108–11. http://dx.doi.org/10.31305/rrijm.2023.v08.n02.019.

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Abstract:
In the last 22-25 years, including reservation for poor upper castes in Rajasthan, giving reservation to Jats by including them in OBC, giving reservation to Gujjars in special category outside OBC, special reservation to tribals, recently Mali-Saini-Kushwaha societies Raised the demand for reservation in special quota within OBC. Due to the long battle for reservation, 70 people died and hundreds were injured during this period. Property worth billions has been destroyed, yet this fire keeps on burning. When elections approach, the ghost of reservation does not stay out of the bottle.&#x0D; A
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लामिछाने Lamichhane, यादवप्रकाश Yadavprakash, та गीता Geeta लामिछाने Lamichhane. "डायस्पोरिक कोणबाट एटलान्टिक स्ट्रिट उपन्यास Dayasporik Konbata Atlantic Street Upanyas". AMC Journal 1, № 1 (2020): 1–13. http://dx.doi.org/10.3126/amcj.v1i1.33387.

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Abstract:
उपन्यास विश्लेषणका लागि प्राथमिक स्रोतका रूपमा राजवको ‘एटलान्टिक स्ट्रिट’ लाई लिइएकोछ । द्वितीयक सामग्री स्रोतका रूपमा विवेच्य उपन्यासलाई डायस्पोरिक दृष्टिबाट तयार पारिएकोशोधपत्र र विभिन्न पत्रपत्रिकामा प्रकाशित समालोचनात्मक लेख र पुस्तकहरूलाई आधार मानिएको छ । डायस्पोरिक उपन्यास विश्लेषणका सैद्धान्तिक पर्याधारलाई आधार सामग्री मानी गुणात्मक अनुसन्धान ढाँचामा तयार पारिएको प्रस्तुत लेख पुख्र्यौली भूमि र इच्छित भूमि, द्वैध मानसिकता, एकान्तिकता, अतीतप्रति स्मरण, सीमान्तकृत हुनुको पीडा, परादेशीय हुनुको रोमाञ्च र चिन्ता, कहाली लाग्दो भूत र अनिश्चित भविष्य, मनोवैज्ञानिक दासता, पुस्तान्तरिक द्वन्द्व, स
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Nakarmi, Suresh. "परित्राणमा रत्नसूत्रको मनोवैज्ञानिक पक्ष". Okhaldhunga Journal 2, № 3 (2025): 57–64. https://doi.org/10.3126/oj.v2i3.79998.

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Abstract:
चारैतिरबाट आउने र आउन सक्ने दुःख, कष्ट, भय, अन्तराय, अनिष्ट र विघ्नबाधाबाट मुक्तिको लागि गरिने सूत्रहरूको सङ्गीति, सङ्गायना अथवा सामूहिक पाठ परित्राण पाठ हो । बुद्धद्वारा देशना गरिएका सूत्रहरू पाठ गर्न सजिलो होस् भन्ने हेतुले बौद्ध विद्वान् महास्थविर भिक्षुहरूले महापरित्राण र चूल परित्राण गरी दुई प्रकारले सूत्रहरूलाई सङ्ग्रह गरेका छन् । रत्नसूत्र दुवैमा संग्रहित छन् । रत्नको अर्थ हिरामोती, बहुमूल्य वस्तु, सुख दिने या आनन्दित बनाउने तत्त्व हो । यो मानिसको सुखको अनुभूति गर्ने माध्यम रत्न हो । बोलिचालिको भाषामा आभूषणलाई पनि रत्न भनिन्छ । बुद्धद्वारा देशित रत्नसूत्रमा बुद्ध, धर्म र संघलाई नै त्रिर
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राजेन्द्र खनाल. "सामाजिक उत्तरदायित्व बोध गराउने नेपाली बालउपन्यास". Interdisciplinary Research in Education 7, № 1 (2022): 31–48. http://dx.doi.org/10.3126/ire.v7i1.47496.

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Abstract:
बालबालिकाहरूमा सामाजिक सम्बन्धको विकास गराउँदै सामाजिक उत्तरदायित्व बोध गराउने हेतुलाई प्राधान्य दिई सिर्जना गरिएको नेपाली बालउपन्यासको विश्लेषण गर्नु नेपाली समालोचनाको अपेक्षित अध्ययन हो । नेपाली बालउपन्यासमा यस प्रकृतिको विश्लेषण भएको नपाएकाले तथ्यपरक विश्लेषणसहित यो लेख तयार पारिएको हो । सामाजिक उत्तरदायित्व बोध गराउने नेपाली बालउपन्यासको विश्लेषण गर्नु यस लेखको मुख्य उद्देश्य हो । यस लेखमा पुस्तकालयीय अध्ययन कार्यबाट तथ्य सङ्कलन गरी नेपाली बालउपन्यासलाई प्राथमिक सामग्रीका रूपमा उपयोग गरिएको छ । सामाजिक उत्तरदायित्वसँग सम्बद्ध विविध सैद्धान्तिक पुस्तकहरूलाई द्वितीयक सामग्रीका रूपमा लिइएको य
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रिजाल Rijal, रवीन्द्र Rabindra. "पनौती विकासका सम्भावना". HISAN: Journal of History Association of Nepal 9, № 1 (2023): 134–40. http://dx.doi.org/10.3126/hisan.v9i1.64120.

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Abstract:
भूत पाठशाला हो, वर्तमान गोरेटो हो, भविष्य गन्तव्य हो । पनौती पाठशाला, गोरेटो र गन्तव्य तीनओटै हो अर्थात ज्ञानराशीहरूको पुञ्ज हो, दिग्दर्शन हो । ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, पुरातात्विक तथा धार्मिक, प्राकृतिक सम्पदा र बनावटले धनी अश्मपुर पनौती क्षेत्र नेपालको महत्वपूर्ण पर्यटकीय स्थाल पनि हो । पैतिस हजार वर्ष अगाडिदेखि नै मानवजातीले प्रत्यक्ष थाकथलो बनाइसकेको पनौती क्षेत्रलाई मुख्यतः शिक्षा र पर्यटनको माध्यमद्वारा आमूल परिवर्तन गर्न सकिन्छ । “आमूल परविर्तनको शुत्र ज्ञान नै हो मुल मन्त्र” भन्ने बिचारलाई आत्मसात गरेर विकासको महासागर भेट्न सकिन्छ । १२ वडामा विभक्त पनौती बागमति प्रदेशअन्तर्गत काभ्रेपलाञ्च
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Om Prakash and Ashok Ahirwar. "Death Rites in Kol Tribe." RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 6, no. 12 (2021): 126–29. http://dx.doi.org/10.31305/rrijm.2021.v06.i12.017.

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Abstract:
Death is the ultimate ultimate truth of life, one who has come in this world has to go one day or the other. Like other communities of Baghelkhand region, people of Kol tribe also perform death rites, but some specialties still exist in the traditional way. Kol Jana believes that death happens to the body, the soul is immortal. According to the tradition, salvation can be achieved only after performing the funeral rites, that is why the ashes (flowers) are immersed in holy rivers like Ganga or Narmada. Food, water is arranged for the dead soul and water is kept in a pitcher in the Peepal tree.
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सापकोटा Sapkota, भवदत्त Bhawadatta. "विकासमा उत्तरआधुनिकतावादः अवधारणा, बुझाई र बहस". Innovative Research Journal 2, № 2 (2023): 35–42. http://dx.doi.org/10.3126/irj.v2i2.56152.

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Abstract:
यो लेखको उद्देश्य उत्तरआधुनिकतावादले समाजमा जन्माएको प्राज्ञिक कौतुहलतामा आधारित रहेर विकासमा उत्तरआधुनिकतावादको हेराई, बुझाई र बहसलाई समालोचना गर्नु हो । यो लेख मुलतः द्धितिय स्रोतहरुको प्रयोगमा आधारित छ । यस अन्तर्गत विभिन्न समालोचकहरु, लेखकहरु, साहित्यकारहरु र अनुसन्धाताहरुको वौद्धिक प्रयासद्धारा प्रकाशित लेख, रचना, पुस्तक, टिप्पोणी, शोध र प्रतिवेदनहरुलाई मुख्य स्रोतको रुपमा लिइएको छ । आधुनिकतापछिको बहस उत्तरआधुनिकता हो । आधुनिकतामा वस्तुगत यर्थाथ हुन्छ जबकि उत्तरआधुनिकतामा अनेकता । विगतमा स्थापित विकासका कतिपय असल मान्यता र सिद्धान्तहरू वर्तमान र भविष्यका लागि मार्गर्दशक स्रोतको रूपमा प्रय
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डाॅ, अंजलि पाण्ड ेय्. "प्रागैतिहासिक पात्र कला व रंग संया ेजन". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.890527.

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Abstract:
सारांश-’ भूत काल का अध्ययन केवल वर्तमान के माध्यम से ही किया जा सकता है। बीते ह ुए समय के अध्ययन के लिये वर्तमान वस्तुओं अथवा वर्तमान में विद्यमान संस्मरणा ें को भूतकाल के अवषेषों के रुप में लेकर उनसे भूतकाल की धटनाओं के बारे में निष्कर्ष निकाला जा सकता ह ै। व े तर्क जिनक े आधार पर निष्कर्ष निकाले जाते वे वर्तमान वस्तुआ ें, घटनाआ ें तथा सम्बन्धों क े अवलोकन पर आधारित हा ेते हैं।’’1 अनादि काल से मानव अतीत की खोज के लिए प ्रयत्नषील रहा ह ै।़ ज्ञान के विकास के साथ मानव ने अतीत के ज्ञान सम्बधीं साक्ष्य खा ेजने प ्रारम्भ किये आ ैर उपयुक्त साक्ष्यों से तथ्य प ्रमाणित किये जाने लगे। इतिहासकार का े भी
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Pandey, Anjali. "PREHISTORIC CHARACTERS ART AND COLOR COMBINATION." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 2, no. 3SE (2014): 1–2. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v2.i3se.2014.3636.

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Abstract:
The past tense can only be studied through the present. For the study of the past, one can draw conclusions about past events by taking the present objects or present-day memoirs as residuals of the past. The arguments on which conclusions are drawn are based on observation of current things, events and relationships. "1Since time immemorial, humans have been trying to discover the past. With the development of knowledge, humans started searching for evidence related to the knowledge of the past and facts were proved with the appropriate evidence. Historians also have to use various evidence f
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सुनील, कुमार तिवारी. "हिंद प्रशांत क्षेत्र में भारत का सुरक्षा उत्तरदायित्वः एक मूल्यांकन". International Journal of Contemporary Research in Multidisciplinary 2, № 6 (2023): 60–63. https://doi.org/10.5281/zenodo.10446887.

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Abstract:
सम्पूर्ण विश्व एक मूल-भूत परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है, तथा इसके साथ ही बदल रहा है विश्व का शब्द कोश, जिसमें आवश्यकता एवं महत्ता के आधार पर एक शब्द है &lsquo;इंडो-पैसिफिक&lsquo; जिसने विगत कुछ वर्षों में विश्व की महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्थाओं की भू-रणनीति को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वर्तमान समय में विश्व के कई देशों ने अपने-2 अधिकारपत्र में आवश्यकतानुसार विवरण तैयार कर रहे हैं। भौगोलिक तौर पर हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के कुछ भागों को मिलाकर समुद्र का जो हिस्सा बनता है, उसे हिंद-प्रशांत ;प्दकव.च्ंबपपिब ।तमंद्ध के नाम से जाना जाता है। हिंद और प्रशांत महासागर की बढ़ती अहमियत ने &
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Gupta, Deepa. "Concept of education and family life in Vedic society." RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 9, no. 5 (2024): 193–98. http://dx.doi.org/10.31305/rrijm.2024.v09.n05.023.

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Abstract:
Education is of paramount importance in the progress of human society. Education brings about proper development of human beings in every field of life. The basic source of education is Vedas. Maharishi Dayanand Saraswati has said, “Vedeshu Sarva Vidyaah, that is, all the knowledge is present in Vedas only.” The main objective of education during Vedic period was to bring about all-round development of human life. In Vedic period, Upanayan ceremony was necessary for attaining education. In Vedic period, women had equal right to education as men. Under Vedic period education, exchange of knowle
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पौडेल Poudel, लतादेवी LataDevi. "एकरात कथामा समाख्यानात्मक काल {Samaakhyanatmak Kaal in a One-night Story}". Rupantaran: A Multidisciplinary Journal 9, № 01 (2025): 197–209. https://doi.org/10.3126/rupantaran.v9i01.73572.

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Abstract:
प्रस्तुत लेखमा ‘एक रात’ कथामा समाख्यानात्मक कालको खोजी गरी त्यसको कथागत प्रभावकारिताको विश्लेषण गरिएको छ । यस कथामा समाख्यानात्मक कालको मुख्य विषय निरङ्कुशता विरूद्ध हानिएको बम काण्डमा समातिएको किशोरलाई दिइने फाँसिको सजायसँग सम्बन्धित छ । समाख्यानमा प्रस्तुतीकरणको काल र प्रस्तुत भएको काल अर्थात् सङ्केतक काल र सङ्केतित काल दुई किसिमको कालको प्रस्तुति हुन्छ । आख्यानमा प्रस्तुत घटनाको समय, घटनाको क्रम, पात्रका मनोदशा, विचार उत्पन्न हुँदाको समय, घटनाको आवृत्ति, घटना प्रस्तुत गर्दा लेखकले प्रयोग गरेको कालका आधारमा समाख्यानात्मक कालका बारेमा अध्ययन गरिन्छ । एक रात कथामा समाख्यानात्मक काल र समाख्यायि
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Mishra, Vivekanand. "Philosophical analysis of Nishkaam Karma in the context of Gita." RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 7, no. 5 (2022): 100–105. http://dx.doi.org/10.31305/rrijm.2022.v07.i05.014.

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Abstract:
Karma Yoga is considered the best in Shrimad Bhagavad Gita. This yoga is more suitable for the householder and hardworking person. In fact, Karma Yoga is the only yoga through which we are able to connect with our soul. Karma Yoga awakens our self-knowledge. We can then foresee not only our present life objectives but our future course of action. In this yoga, God is attained through karma. Each of us is engaged in some work, but most of us waste most of our energies because we do not know the secret of karma. It is necessary to work for life, for society, for the country, for the world. Expla
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-, अशोक कुमार, та निरू वर्मा -. "महिलाओं में उच्च शिक्षा के प्रति जागरूकता पर व्यक्तित्व के बहिर्मुखता अन्तर्मुखता चर का प्रभाव". International Journal For Multidisciplinary Research 5, № 2 (2023). http://dx.doi.org/10.36948/ijfmr.2023.v05i02.1915.

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Abstract:
मानव सभ्यता के विकास के साथ ही मनुष्य की विकसित उध्र्वमुखी चेतना ने अपनी प्रवृति को समाजोन्मुख बनाया। स्त्री और पुरूष दोनों अपने आप को समाजिक संरचना की मूल भूत इकाई माना। प्राकृतिक दृष्टी से कठोर एवं कर्मठ होने के कारण पुरूष अर्थोपार्जन की ओर प्रवृत हुआ और अपनी स्वाभाविक कोमलता एवं मृदुलता इत्यादि गुणो द्वारा महिलाओं ने परिवार को एक सुत्रता में बाॅधने का प्रयास किया।
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सिंह गुरुपंच, कुबेर. "भारतीय शिक्षा प्रणालीदृभूत, वर्तमान एवं भविष्य के सन्दर्भ में". International Journal of Reviews and Research in Social Sciences, 18 грудня 2023, 297–302. http://dx.doi.org/10.52711/2454-2687.2023.00050.

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Abstract:
प्रस्तुत अध्ययन भारतीय शिक्षा प्रणालीदृभूत, वर्तमान एवं भविष्य के सन्दर्भ में है यह द्वितीयक आकड़ों पर आधारित है इस अध्ययन में भारती शिक्षा प्रणाली के विभिन्न आयोगों के रिपोर्ट के आधार पर भूत, वर्तमान एवं भविष्य के बारे में विश्लेषण किया गया है। पहले की शिक्षा प्रणाली गुरुकुल शिक्षा प्रणाली थी लोग गुरुकुलों में जाकर अध्ययन करते थे वर्तमान में नयी शिक्षा प्रणाली में कौशल आधारित एवं रोजगार परख शिक्षा प्रणाली है एवं भविष्य में रोबोट एवं डिजिटल एवं मुख्य एवं ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली संचालित होगी।
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-, श्री दिपक संभाजी माने, та प्रा डॉ विजय विष्णू पाडळकर -. "धनगर समाज : प्रथा आणि परंपरा". International Journal For Multidisciplinary Research 6, № 2 (2024). http://dx.doi.org/10.36948/ijfmr.2024.v06i02.19090.

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Abstract:
दक्षिणेतल्या समाजरचनेतला अत्यंत महत्वपूर्ण समाज म्हणजे महाराष्ट्रात सर्व परिचित असलेला धनगर समाज होय. महाराष्ट्रामध्ये जो धनगर समाज आहे तो मुख्यत मेंढपाळ धनगर समाज आहे. चराऊ कुरणाच्या शोधात धनगर समाज सतत भ्रमंती करतना आढळून येतो. भटक्या जातीत धनगर समाजाचा समावेश होत असून मेंढ्यांच्या चाऱ्यासाठी रानावनात भटकंती करणार समाज असून त्यांच्या जगण्यातून संस्कृती निर्माण झालेली दिसून येते. धनगर समाजाची देवाधर्मावर विश्वास, श्रद्धा असून देवताची आराधना, पूजाअर्चा करून मनुष्य आणि प्राणीमात्रांना सुखी ठेवण्याची मागणी करतात. याच बरोबर भूत, तंत्र-मंत्र या अंधविश्वास, अंधश्रद्धा समाजामध्ये दिसून येतात. धनगर स
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-, Krishna Meena. "संत रज्जब जी और संत सुन्दरदास की वाणियों में सामाजिक चेतना (Sant Rajjab ji aur Sant Sunderdas ki vaniyoon mein samajik chetna)". International Journal For Multidisciplinary Research 5, № 6 (2023). http://dx.doi.org/10.36948/ijfmr.2023.v05i06.11255.

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Abstract:
शोध सारांश व्यक्ति की समाज के प्रति जागरूक मानसिकता ही सामाजिक चेतना कहलाती है। निर्गुण संत कवियों ने अपनी वाणियों के माध्यम से सामाजिक चेतना को जागृत करने की साधना की। संत रज्जब अली और संत सुन्दर दास जी का काव्य तत्कालीन युग परिस्थितियों से प्रभावित नजर आता है। संत रज्जब अली और संत सुन्दर दास जी ने अपने अपनी वाणियों के माध्यम से मध्यकालीन सामाजिक चेतना को सशक्त किया जिससे सामाजिक स्तर पर जन-जीवन का उद्धार हुआ। जहाँ तक संत रज्जब जी और संत सुन्दरदास जी की सामाजिक चेतना की तुलना का प्रश्न है, संत रज्जब अली सामाजिक चेतना के आधारों में अधिक उग्र और आक्रमक नजर आए जबकि संत सुन्दरदास शास्त्रीय सम्मत
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डाॅ. गीतू गुप्ता та डा युद्धवीर सिंह. "पं. दीनदयाल उपाध्याय के दर्शन पर आधारित शैक्षिक प्रारूप का विवेचनात्मक अध्ययन". International Journal of Advanced Research in Science, Communication and Technology, 31 грудня 2023, 796–801. http://dx.doi.org/10.48175/ijarsct-14359a.

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Abstract:
शिक्षा का वास्तविक अर्थ मनुष्य को मानव बनाना तथा जीवन को प्रगतिशील, सांस्कृतिक एवं सभ्य बनाना है। शिक्षा द्वारा ही मनुष्य अपनी विचार शक्ति, तर्क शक्ति, समस्या समाधान तथा बौद्धिकता, प्रतिभा, रूझान, धनात्मक भावुकता तथा कुशलता और अच्छे मूल्यों तथा रूचियों को विकसित करता है। शिक्षा के द्वारा ही वह मानवीय, सामाजिक, नैतिक और आध्यात्मिक प्राणी में परिवर्तित हो जाता है। पण्डित दीनदयाल उपाध्याय के अनुसार शिक्षा सम्बन्ध जितना व्यक्ति से है उससे अधिक समाज से है। हम ऐसे मानव की कल्पना कर सकते है, जिसे किसी भी प्रकार की शिक्षा न मिली हो; और जो अपनी सहज प्रवृत्तियों के सहारे ही जीवन यापन करता हो, किन्तु बिन
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डॉ., एस.आर. पाटील. "गोंदिया जिल्हयातील ग्रामीण व शहरी भागातील माध्यमिक स्तरावरील विद्यार्थ्यांच्या अंधविश्वासाचे तुलनात्मक अध्ययन". 11 травня 2022. https://doi.org/10.5281/zenodo.6552628.

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Abstract:
आज आम्ही विज्ञान युगात राहतो, विज्ञानाचा उपयोग आम्ही जिवनाषी संबंधीत सर्व अंगांना समृध्द बनविण्यासाठी करतो. वर्तमान काळातीलच नाही तर भविष्यात येणा-या संकटासंबंधी अगोदरच माहिती प्राप्त करून घेउन आम्ही त्या माहीतीच्या आधारे पूर्व तयारी करून त्या पासून आपले संरक्षणही करू शकतो. भारतीय जनतेचे &nbsp;सरासरी आर्युमान जे 1910 साली 19.50 होते ते आज 63 वर्ष झालेले आहे त्याचे प्रमुख कारण विज्ञानाने लावलेले अनेक जिवनदायी शोध व सुधारलेले राहनीमान इतके असुनही नेहमीच्या आयुष्यात वैज्ञानिक दृष्टीकोणाचा समावेष करणे भारतीय जनतेला अजूनही शक्य झालेले नाही. मागील शेकडो वर्षापासून चालत आलेल्या परंपरांनाच आपण आपल्या
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पाण्डेय, रश्मि. "21वीं सदी में भारतीय समाज में सामाजिक सांस्कृतिक परिवर्तन". Humanities and Development 19, № 01 (2024). https://doi.org/10.61410/had.v19i1.170.

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Abstract:
वर्तमान समय में संस्‟ति समाज का पुननिर्माण कर रही है, और संस्‟ति का पुननिर्माण अर्थ व्यवस्था कर रही है। भारतीय संस्‟ति का अर्थ है। भारतीय धर्म, (भारतीयता) भारतीयता कोई संवैधानिक, वैधानिक या विधिक अधिकार नहीं है, यह धर्म, जन्म, जाति से संबंधित नही है। भारतीयता तो एक एहसास है जो स्वामी विवेकानंद, भूत पूर्व राष्ट्रपति, स्वर्गीय ए०पी०जे०अब्दुल कलाम, राम‟ष्ण परमहंस, कल्पना चावला, और उनके जैसे ही और अन्य महापुरूष, जिनके हृदय में भारत के गौरव के लिए जान देना एक साधारण बात थी, क्योंकि भारतीयता स्वार्थ नहीं, बल्कि परमार्थ सिखाती है। भारत एक कल्याणकारी राज्य के रूप में सभी के हितों का ध्यान और सुरक्षा व
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बज्राचार्य Bajracharya, शान्तश्री रत्न Shantashree Ratna. "दुर्गतीबाट मुक्तिको लागि त्रिरत्न शरणगमन {Triple Gem for Liberation from lower realm}". Voice of Culture, 28 листопада 2022, 107–17. http://dx.doi.org/10.3126/voc.v9i1.49883.

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Abstract:
बुद्धधर्ममा त्रिधातु अर्थात् तीन प्रकारको लोकधातुको अवधारणा पाइन्छ । ती त्रिधातुहरु कामधातु, रुपधातु र अरुपधातु हुन् । यिनीहरुलाई तीन प्रकारकासंसार पनि भनिन्छ । तीमध्ये कामधातुमा नरक, प्रेत, तीर्यक, मनुष्य, असुरलगायत अरु ६ वटा देवलोक सहित ११ वटा लोकहरु छन् । रुपधातु अन्तर्गत ब्रह्मपरिषददेखि अकनिष्ठ लोकधातुसम्म १६ वटा लोकहरु र अरुपधातु अन्तर्गत आकाशानन्त्यायतनोपग, विज्ञानानन्त्यायतनोपग, ओकिञ्चन्यायतनोपग रनैवसंज्ञानामसंज्ञायतनोपग गरी जम्मा ४ वटा लोक रहेको उल्लेख छ । यसरी जम्मा ३१ वटा लोक धातु भएको अवधारणा पाइन्छ (देव, १९५८) । यी लोकहरुमध्ये देवलोक, असुरलोक र मनुष्यलोक तीनवटालाई सुगति र तिर्यकलोक
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Sharma, Rajni, та Premlata. "राजस्थान चित्र शैली में विभिन्न शैलियो में "राम विषयक कथा"". ShodhKosh: Journal of Visual and Performing Arts 4, № 2 (2023). https://doi.org/10.29121/shodhkosh.v4.i2.2023.3339.

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Abstract:
राजस्थान की चित्रकला की मेवाड चित्र शैली मे राम विषयक कथा मे कई आलोचको व समीक्षको का ध्यान आकर्षित किया है। मेवाड के राणा जगत सिहं ;1628. 52द्ध के लिये उनके समय के काल के अतं मे तैयार की गई सचित्र राम विषयक पाण्डुलिपिया न केवल उनके लिये ही नही ब्लकि 400 से अधिक चित्रो के लिये महत्वपूर्ण रही है। प्रसिद्ध विद्वान श्गोइत्जश् ने इन चित्रो मे नवागत शैली (यग आर्ट) के आदेश भूत लक्षणो जैसा कुछ भी नही मानते हुए उसके विपरीत इस शैली की सम्पूर्ण रूप मे पुरानी शैली की तथा इन पाण्डुलिपियो को दीर्घकालीन एवं उच्च विकसित परम्परा को चित्रित करने वाली माना है। प्रारम्भ की मेवाड शैली एवं जगत सिहं के काल की विख्या
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संगीता, पॉल. "प्रेमचंद पुराने पड़ जाएंगे, जयशंकर प्रसाद नहीं". पोषम पा, Mar 30, 2022 (30 березня 2022). https://doi.org/10.5281/zenodo.7243360.

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<strong>प्रेमचंद पुराने पड़ जाएंगे, जयशंकर प्रसाद नहीं</strong> <strong>श्यामबिहारी श्यामल जी के साथ संगीता पॉल की बातचीत</strong> जयशंकर प्रसाद के जीवन पर केंद्रित उपन्यास &lsquo;कंथा&rsquo; का साहित्यिक-जगत में व्यापक स्वागत हुआ है। लेखक श्यामबिहारी श्यामल से उपन्यास की रचना-प्रकिया, प्रसाद जी के जीवन और साहित्य के विविध पहलुओं पर संगीता पॉल ने बातचीत की। प्रस्तुत है संपादित अंश : &nbsp; संगीता पॉल : नमस्ते श्यामल जी! सबसे पहले तो जयशंकर प्रसाद के जीवन पर केंद्रित बेहद प्रभावशाली उपन्यास &lsquo;कंथा&rsquo; के लिए आपको बधाई देना चाहूँगी। महाकवि से प्रेम करने वाले हम सभी पाठक और शोधार्थी इस उप
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