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Journal articles on the topic 'भाषा-विज्ञानी'

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विवेक, आत्रेय. "हिन्दी भाषा राष्ट्र भाषा के रूप में". International Educational Applied Research Journal 09, № 05 (2025): 248–53. https://doi.org/10.5281/zenodo.15595673.

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Abstract:
विश्व में अनेक प्रकार की आषा के दवारा वाचन कार्य किया जाता है। प्रत्येक राष्ट्र की अपनी आधिकारि भाषा है। राष्ट्रभाषा समस्त राष्ट्र या पूरे देश का प्रतिनिधित्व करती है। भाषा वह साधन है जिसके माध्यम से प्राणी अपने आवों को दूसरों पर अभिव्यक्त करता है। भाषा ऐसी दैवी शक्ति है, जो मानव को मानवता प्रदान करती है। जिसे ताणी का वरदान प्राप्त होता है, वह ऊँचे से ऊँचे पद पर विराजमान हो सकता है तथा अक्षय कीर्ति का अधिकारी भी बन सकता है और दूसरी तरफ अवांछनीय वाणी मनुष्य के उत्थान के स्थान पर पतन की ओर अग्रसर करती है। जिस भाषा में शासक या शासन का कार्य किया जाता है उसे राजभाषा का दर्जा दिया है। जब भारतीय संविधान सभा में संघ सरकार की राजआषा निश्चित करने का सवाल खड़ा हुआ तो विशद विचार मंथन के बाद 14 सितम्बर 1949 को हिन्दी को भारत संघ की राजभाषा अगीकृत किया गया। संतिधान के अनुच्छेद 343 के तहत संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी है। केन्द्रीय स्तर पर भारत में अंग्रेजी को दूसरी सह राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया है। हिन्दी को भारत की राजभाषा के रूप में अंगीकृत कृपापूर्वक नहीं किया गया अपितु यह उसका अधिकार था। पं. जवाहर लाल नेहरू के शब्दों में-"अंग्रेजी निश्चय ही थोपी गई आबा है. इसने हमारे लिए जान विज्ञान की खिड़किया जरूर खोली और हमें बहुत कुछ जान दिया भी पर इस पर एक ऐसी भाषा होने का लांछन भी है जो हमारी अपनी भाषाओं और हमारी सांस्कृतिक परम्पराओं के ऊपर जम कर बैठ गई है। "
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2

Budha, Man Bahadur. "नेपाली भाषा शिक्षणमा सम्प्रेषणात्मक भाषा शिक्षण पद्धतिको औचित्य". AMC Multidisciplinary Research Journal 4, № 1 (2025): 157–63. https://doi.org/10.3126/amrj.v4i1.78692.

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Abstract:
यो अध्ययनले नेपालका शैक्षिक सन्दर्भमा सम्प्रेषणात्मक भाषा शिक्षण विधिको प्रभावकारिता र चुनौतीहरूको विश्लेषण गरेको छ। अनुसन्धानले मुख्य रूपमा सम्प्रेषणात्मक भाषा शिक्षण विधिले विद्यार्थीहरूको भाषाशिक्षण प्रक्रियामा, शिक्षकहरूको अनुभवमा र कक्षा कक्षको वातावरणमा के कस्तो प्रभाव पार्दछ भन्ने कुरामा केन्द्रित छ। सम्प्रेषणात्मक भाषा शिक्षण एक आधुनिक शिक्षण विधि, संवाद र विद्यार्थी केन्द्रित शिक्षणमा जोड दिन्छ, जुन परम्परागत व्याकरण अनुवाद विधिको तुलनामा धेरै भिन्न छ, जुन नेपालका शैक्षिक प्रणालीमा प्रचलित छ। यस अध्ययनमा गुणात्मक अनुसन्धान विधिहरू, जस्तै शिक्षक र विद्यार्थीहरूको साक्षात्कार र कक्षा अवलोकन, प्रयोग गरिएको छ। प्राप्त नतिजाहरूले देखाएका छन् कि सम्प्रेषणात्मक भाषा शिक्षण विधिले विद्यार्थीहरूको संवादात्मक क्षमता, आत्मविश्वास र भाषा सिक्ने रुचिमा महत्त्वपूर्ण सुधार ल्याएको छ । यसले कक्षा कक्षको वातावरणमा सकारात्मक परिवर्तन ल्याएको छ, जसले विद्यार्थीहरूको सक्रिय सहभागिता र सहकार्य बढाएको छ। तथापि, शिक्षक तालिमको अभाव, शैक्षिक सामग्रीको कमी र परम्परागत शिक्षण विधिहरूको निरन्तरता जस्ता चुनौतीहरूले सम्प्रेषणात्मक भाषा शिक्षण विधिको पूर्ण कार्यान्वयनमा अवरोध पुर्याएका छन्। अन्तमा यस अध्ययनले पुष्टि गरेको छ कि सम्प्रेषणात्मक भाषा शिक्षण विधि नेपालको शैक्षिक सन्दर्भमा प्रभावकारी र आशाजनक विधि हो, यद्यपि यसको सफलता शिक्षिकाको तालिम, शैक्षिक सामग्रीको उपलब्धता र परम्परागत विधिहरूसँगको समन्वयमा निर्भर गर्दछ। थप अध्ययन र अनुसन्धानले सम्प्रेषणात्मक भाषा शिक्षण विधिको दीर्घकालीन प्रभाव र कार्यान्वयनमा थप सुस्पष्टता ल्याइएको छ ।
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मिश्रा, आशा. "हिन्दी भाषा में वर्तनी सम्बन्धि अशुद्धियों का मनोभाषा वैज्ञानिक, समाज भाषा वैज्ञानिक व शैक्षणिक भाषा वैज्ञानिक, अध्ययन". Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education 21, № 6 (2024): 183–89. https://doi.org/10.29070/embwqf29.

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Abstract:
इस शोधपत्र में हिन्दी भाषा में होने वाली अशुद्धियों का मनोभाषा वैज्ञानिक, समाज भाषा वैज्ञानिक व शैक्षणिक भाषा वैज्ञानिक अध्ययन किया गया है। जिसमें मनोभाषा, समाज भाषा व शैक्षणिक भाषा में होने वाली वर्तनीगत अशुद्धियों को इंगित किया गया है तथा उनका उचित निवारण के सम्बन्ध में अध्ययन किया गया है।
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अधिकारी Adhikari, भारती Bharati. "दोस्रो भाषाका रूपमा नेपाली भाषा शिक्षण {Teaching Nepali language as a second language}". Educational Journal 2, № 2 (2023): 173–79. http://dx.doi.org/10.3126/ej.v2i2.61900.

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Abstract:
सिकारुले अतिरिक्त भाषिक आवश्यकता परिपूर्ति गर्ने हेतुले सिक्ने भाषालाई दोस्रो भाषा भनिन्छ । यो भाषा पहिलो भाषा प्राप्त गरिसकेपछि सिकिने भाषा हो । यसलाई भाषा सिकाइको आर्जन प्रक्रियाका रूपमा परिभाषित गरिएको पाइन्छ । दोस्रो भाषालाई विमातृभाषा, द्वितीयक भाषा तथा सहायक भाषा पनि भन्ने गरिएको पाइन्छ । दोस्रो भाषा औपचारिक, अनौपचारिक एवम्व्यक्तिगत प्रयासबाट सिक्न सकिने हुन्छ । वस्तुतः यो भाषा सिकाइका क्रममा व्यापक र सीमित दुबै प्रकृतिको भाषिक वातावरणको सुविधा सिकारुलाई प्राप्त हुन्छ । प्रस्तुत आलेखमा दोस्रो भाषाका रुपमा नेपाली भाषा शिक्षणको सैद्धान्तिक अवधारणा अनुरेखाङ्कन गरिएको छ । यस आलेखको तयारीका क्रममा गुणात्मक अध्ययन ढाँचाको प्रयोग गरिएको छ । यसमा सामग्रीको विवेचनका लागि वर्णनात्मक तथा विश्लेषणात्मक विधिको प्रयोग गरिएको छ । यसबाट दोस्रोभाषाका रुपमा नेपाली भाषा शिक्षण गर्न रुचि राख्ने सरोकारवाला सवैलाई सहयोग पुग्ने विश्वास लिइएको छ ।
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शाह, डॉ.राखी.के. "भाषा और समाज, हिंदी भाषा पर प्रौद्योगिकी का प्रभाव". International Journal of Advance and Applied Research 5, № 23 (2024): 568–71. https://doi.org/10.5281/zenodo.13683073.

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Abstract:
सारांश  :-मेरी भाषा में तोते भी राम राम जब कहते हैं,मेरे रोम रोम में मानो सुधा-स्रोत तब बहते हैं ।सब कुछ छूट जाय मैं अपनी भाषा कभी न छोड़ूंगा,वह मेरी माता है उससे नाता कैसे तोड़ूंगा ।।                                                                                                                 मैथिलीशरण गुप्तभाषिक और सांस्कृतिक रूप से विभाजित विश्व के विभिन्न देशों में सामाजिक,आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास में आनेवाली अनेकानेक व्यावहारिक बाधाओं में भाषा की समस्या एक महत्त्वपूर्ण एवं ज्वलन्त समस्या है। भारत जैसे विविधता प्रधान देश में यह समस्या अपनी चरम सीमा पर है।विश्वभर में नित नई प्रौद्योगिकी का विकास हो रहा है। एक देश दूसरे देश के साथ प्रौद्योगिकी का आदान प्रदान कर रहा है। ऐसे में प्रौद्योगिकी को समझने के लिए जरूरी है कि वह उस भाषा में हो जिसे देश के सबसे अधिक लोग बोलते व समझते हों। हम रोज ऐसी काफी चीजे देखते है जो पहले अंग्रेजी में होती थी और अब उनमें हिंदी शामिल होने लगी। हिंदी को शामिल करना इनके लिए कोई मजबूरी नहीं है बल्कि आवश्यक है। भारत की आधी से ज्यादा आबादी हिंदी को अच्छे से समझती तथा बोलती है।  इनके लिए अंग्रेजी के मुकाबले हिंदी में संवाद करना काफी आसान होता है। आज की प्रौद्योगिकी ने हिंदी को हमारे जीवन का महत्वपूर्ण अंग बनाने में मदद की है।  हिंदी अब वैसी नहीं रही जैसी पहले थी। अब हिंदी की परिभाषा और रूपरेखा में बदलाव आया है।
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तिवारी, सत्यपाल. "मुक्तिबोध की कथा भाषा". Humanities and Development 17, № 2 (2022): 111–17. http://dx.doi.org/10.61410/had.v17i2.81.

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Abstract:
मुक्तिबोध की कथा साहित्य की भाषाः- भाषा 26 और अर्थ का सत्युज्य है वह शब्दार्थों का संवहन करने वाली होती है। अर्थो का जितना है संबल और प्रांजल वहन भाषा करेगी । वह उतनी है बलवती और अर्थवती होगी। यही भाषारथी शक्ति है। भाषा निरन्तर परिवर्तन और विकास की प्रक्रिया से गुुजरती चलती है। अपने को समयानुकूल बनाती चलती है यह उसका गुण है। चाहे वह काव्य की भाषा हो या कि गद्य की हिन्दी भाषा हो या फिर अन्य कोई भाषा। गद्य के विकास में साथ ही साथ उसकी भाषा संरचना के विकास की भी प्रक्रिया निरन्तर उतार-चढ़ाव से होकर गुजर रही है। जैसे-जैसे गद्य रूपों का विकास और विस्तार बढ़ रहा है वैसे ही भाषा से सम्बन्धित नयी-नयी समस्याएँ भी सामने आयी। उपन्यास और कहानी के तन्त्रागत विकास और कथा प्रस्तुति की विदधता के कारण भाषागत संभावनाओं का सूक्ष्मतर बोध भी विकसित हुआ। कथा प्रस्तुति से सम्बद्ध नयी दीक्षा का प्रथावन केवल कथाकार पर पग आपितु उसके पाठयों पर भी पड़ा। उसकी अपेक्षाएँ भी बढ़ रही थी। वह गद्य भाषा में और अधिक संभावनाएँ तलाश रहा था। इस तलाश का ही वर्तमान की पाठ्य की विवेचक बुद्धि की लगातार बढ़ रही थी। यही कारण है कि कथावार निरन्तर एक नयी कथा भाषा गढ़ रहे थे। भाषा से सम्बन्धित इन तमाम समस्याओं से जुड़कर हिन्दी कथा भाषा का नया स्वरूप निर्मित और विकसित हो रहा था। इस दृष्टि से प्रेमचन्द का योगदान महत्वपूर्ण है। उनके हाथों हिन्दी कथा भाषा होती हुई दिखाई देती है। आगे चलकर अज्ञेय, धर्मवीर भारती निर्मलवर्मा तथा मुक्तिबोध अपने-अपने कथा साहित्य में भाषा प्रयोग के अनेक स्तरों से गुजरते हैं। भाषा में नया प्रयोग भी करते हैं। उसे एक मुकम्मल स्वरूप प्रदान करते हुए दिखाई देते है।
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विष्ट Bista, वासुदेव Bashudev. "दार्चुलेली भाषामा ऊर्जावत् पदसङ्गति (Conjugation in Darchuleli Language)". KMC Journal 5, № 2 (2023): 362–85. http://dx.doi.org/10.3126/kmcj.v5i2.58251.

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Abstract:
दार्चुलेली मातृभाषा नेपालको सुदूरपश्चिम प्रदेशको नेपाली मातृभाषा हो । गढवाली, कुमाउनी, दार्चुलेली मातृभाषा पहाडी भाषा हुन् । नेपाली मातृभाषालाई परम्परागत रूपमा पूर्वी पहाडी भाषा भन्न सकिन्छ तर कुमाउनी र दार्चुलेली, बैतडेली, डडेल्धुरेली महाकाली वारिपारि बोलिने भाषा हुन् । ‘भाषा र भाषिका’ भन्ने शब्द समाज भाषा विज्ञानका पारिभाषिक शब्द हुन् । राजनीतिलाई अघि नसारी कुनै पनि मातृभाषालाई ‘भाषा’ हो कि ‘भाषिका’ भनेर छुट्ट्याउन सकिदैन । डेभिड क्रिस्टल (सन् २००३) ले के भनेका छन् भने जुन भाषालाई राष्ट्रिय झण्डा र सेनाले परिभाषित गर्छ, त्यो चाहिँ भाषा हो भने, जुन भाषा राष्ट्रिय झन्डा र सेनाले सुसज्जित हुँदैन, त्यो ‘भाषिका’ हो । यसरी हेर्दा महाकाली नदी वारिको दार्चुलेली र महाकाली पारिको कुमाउनी एउटै भाषा हो तर नेपालको सिमानाभित्र पर्ने हुनाले दार्चुलेली चाहिँ पछिल्लो राजनीतिक परिवर्तनभन्दा अगाडिसम्म नेपालीको भाषिका मानिन्थ्यो भने कुमाउनी अहिले पनि हिन्दीको भाषिका मानिन्छ । ग्रिर्यसनकै दृष्टिमा नेपालीभन्दा बढी पश्चिम पहाडी, केन्द्रीय पहाडी अरू सबै पहाडी भाषा जस्तै दार्चुलेली भाषा भारोपेली आर्य भाषा हो । प्रस्तुत लेखको उद्देश्य दार्चुलेली भाषाको भूत र अभूत कालमा रहेको ऊर्जावत्वको पदसङ्गतिगत अध्ययन गर्नु रहेको छ । उल्लिखित उद्देश्य पूर्तिका लागि गुणात्मक अनुसन्धान विधिको प्रयोग गरिएको छ । यस लेखका लागि दार्चुलेली मातृभाषाका वक्ताहरूबाट प्राथमिक सामग्री सङ्कलनका साथै भाषा र व्याकरणका सैद्दान्तिक पुस्तकहरूलाई प्रयोग गरी द्वितीयक तथ्याङ्क सङ्कलन गरिएको छ । उल्लिखित अध्ययनमा दार्चुलेली भाषामा क्रियाको पदसङ्गति र नामको पदसङ्गति ऊर्जावत् छ । अकर्मक क्रिया चाहिँ कर्तासँग हुन्छ भने सकर्मक क्रिया कर्मसँग हुन्छ । कर्मको पछाडि विभक्ति आयो भने चाहिँ र कर्मसँग पनि नभई क्रियाको अन्य पुरुष एकवचन हुन्छ, मानवेतर जन्तुसँग पनि त्यस्तै पसदङ्गति हुन्छ । यसमा कोटिकार र लिङ्गको पनि प्रयोग हुन्छ । दार्चुलेली भाषा भूत र अभूतमा ऊर्जावत् रहेको छ । यस लेखबाट भाषा व्याकरणका क्षेत्रमा काम गर्ने विधार्थी, शिक्षक, अनुसन्धाताले लाभ लिन सक्ने अपेक्षा गरिेएको छ ।
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प्रा, डॉ श्रीहरी चव्हाण. ""भाषिक संशोधन पद्धती एक अभ्यास"". International Journal of Advance and Applied Research 2, № 21 (2022): 51–54. https://doi.org/10.5281/zenodo.7052511.

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Abstract:
<strong>प्रस्तावना:</strong> मानवी जीवनामध्ये अत्यंत महत्त्वाचा घटक म्हणजे भाषा आहे. मानवी जीवनाला भाषाशिवाय अर्थ नाही. भाषा ही मानवी जीवनाला प्राप्त झालेली फार मोठी देणगी आहे. भाषा ही मानवनिर्मित आहे. त्यामुळे मानवी भाव भावना भाषेमधूनच व्यक्त होतात. मानवी जीवनामध्ये आमलाग्र बदल घडवून आणण्याचे सामर्थ्य हे फक्त भाषेमध्येच आहे. भाषा ही मानवी जीवनाचा एक महत्त्वाचा घटक आहे. भाषेची मानवी जीवनाशी समाज जीवनाशी अतूट नाते दिसून येते.&nbsp; माणूस जसा परिवर्तनशील आहे तशीच भाषा ही परिवर्तनशील आहे. कालपत्वे भाषेमध्ये बदल होत असतात. जगातील कोणतीही भाषा संकेतावर आधारलेली आहे. भाषा शिकणे म्हणजे संकेत शिकत असतो. एखाद्या भाषेच्या संकेत व्यवस्था आपल्याला माहित नसते ती भाषा आपल्याला कधीच येत नाही. आपल्याला रशियन, फ्रेंच भाषा कशामुळे येत नसते कारण त्या भाषेतील संकेत माहित नसतात. भाषेच्या ठेवा हा एका पिढीतून दुसऱ्या पिढीकडे संक्रमण होते. समाज हा भाषेवर अवलंबून आहे. व भाषेवर समाज अवलंबून आहे.
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गौतम, वासुदेव. "नेपाली र माझी भाषामा व्याकरणात्मक कोटिको तुलना". Pragyaratna प्रज्ञारत्न 6, № 1 (2024): 96–109. http://dx.doi.org/10.3126/pragyaratna.v6i1.64541.

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Abstract:
नेपाल बहुभाषिक देश हो । यहाँ करिब १२४ ओटा भाषाका वक्ताहरु रहेका छन् । विश्वमा बोलिने विभिन्न भाषा परिवारहरुमध्ये नेपालमा छओटा भाषा परिवारका भाषाहरु बोलिन्छ । ती भाषा परिवारमध्ये भारोपेली भाषा परिवारे एक हो । यसै परिवारभित्र बोलिने भाषा हो माझी भाषा । यो भाषाका बक्ताहरु वि.सं. २०७८ सालको जनगणनाअनुसार करिब १० हजार अर्थात् ०.०१२ प्रतिशत छन् । यो भाषाका वक्ताहरु विभिन्न नदीका किनारमा छरिएर बसेबास गर्दै आएका छन् । यिनीहरु माछा मारेर आफ्नो जीविकोपार्जन गर्दै आएका छन् । माझीहरुले बोल्ने भाषा भएकाले यो भाषाको नाम माझी भाषा रहेको छ । यो भाषा पिछडिएको भाषाको वर्गमा पर्दछ । त्यसैले यो भाषाको बारेमा कँही कतैबाट खोज अनुसन्धान भएको पाइँदैन । यसैकारणले यस्तो पिछडिएको भाषाको अध्ययन अनुसन्धान गर्नु नै यो अध्ययनको मुख्य उद्देश्य रहेको छ । नेपाली र माझी भाषाको व्याकरणात्मक कोटिको तुलनात्मक अध्ययन गर्दा लिङ्ग, वचन, पुरुष, काल, पक्ष सबैमा व्यतिरेकी पाइन्छ ।माझी भाषामा पनि आफ्नै किसिमको व्याकरण व्यवस्था रहेको कुरा नै प्रस्तुत अध्ययनको प्राप्ति हो । यो प्राप्ति गर्नको लागि प्राथमिक स्रोत र द्वितीयक स्रोतलाई अध्ययनको विधि बनाइएको छ । प्रस्तुत अध्ययनले दोस्रो भाषाको रुपमा नेपाली भाषा शिक्षण गर्दा महत्वपूर्ण सहयोग पुर्याउँदछ । माझी भाषाको व्याकरण व्यवस्थाका आधारमा विमातृभाषी शिक्षकले माझी भाषाका वक्ताहरुको लागि नेपाली भाषा शिक्षण गर्दा यो अध्ययनले महत्वपूर्ण टेवा पुर्याउँने कुरामा आशा गर्न सकिन्छ ।
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डॉ., यशवीर दहिया. "डॉ. रामकुमार घोटड़ की लघुकथाओं में समाज के विभिन्न पक्ष". International Journal of Advance Research in Multidisciplinary 1, № 1 (2023): 923–25. https://doi.org/10.5281/zenodo.15051696.

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Abstract:
दर्शन मिलवा के उपन्यासों की भाषा, सरल, प्रवाहमयी और संवेदनशील है, उन्हें किसी एक भाषा विशेष में बंधना स्वीकार नहीं है। वे बोलचाल की भाषा का प्रयोग करते हैं, जिससे पात्र और संवाद सस्ती वास्तविक प्रतीत होते हैं। उनकी भाषा में संजीव वर्णन, भावात्मक गहराई, काव्यात्मक सौन्दर्य और समाज क्या यथार्थ प्रतिबिम्ब होता है। संवाद प्रधानता, रूपकों व प्रतीकों का प्रयोग भी उनकी भाषा को प्रभावशाली बनाता है। इस प्रकार उनकी भाषा पाठकों को कथानक से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
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डॉ., यशवीर दहिया. "दर्शन मितवा के उपन्यासों का भाषा वैशिष्ट्य". International Journal of Trends in Emerging Research and Development 1, № 1 (2023): 357–59. https://doi.org/10.5281/zenodo.15051822.

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Abstract:
दर्शन मिलवा के उपन्यासों की भाषा, सरल, प्रवाहमयी और संवेदनशील है, उन्हें किसी एक भाषा विशेष में बंधना स्वीकार नहीं है। वे बोलचाल की भाषा का प्रयोग करते हैं, जिससे पात्र और संवाद सस्ती वास्तविक प्रतीत होते हैं। उनकी भाषा में संजीव वर्णन, भावात्मक गहराई, काव्यात्मक सौन्दर्य और समाज क्या यथार्थ प्रतिबिम्ब होता है। संवाद प्रधानता, रूपकों व प्रतीकों का प्रयोग भी उनकी भाषा को प्रभावशाली बनाता है। इस प्रकार उनकी भाषा पाठकों को कथानक से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
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Chaulagai, Prem Prasad. "जीवनजगत्, भाषा र मनको सम्बन्ध". Medha: A Multidisciplinary Journal 7, № 2 (2025): 79–90. https://doi.org/10.3126/medha.v7i2.76041.

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Abstract:
प्रस्तुत लेख जीवनजगत्, भाषा र मनको सम्बधको अध्ययनमा केन्द्रित छ । यसैले यस लेखमा जीवनजगत्, भाषा र मनको वैशिष्ट्य प्रस्तुत गर्नुका साथै तिनका बिचको सम्बन्धको निर्क्योल गरिएको छ । विश्लेषणात्मक र तुलनात्मक विधिको उपयोग गरी जीवनजगत्, भाषा र मनको सम्बन्धको अध्ययन गर्दा प्राप्त भएको निष्कर्ष के हो भने भाषा र मन जीवनजगत्‌कै अङ्ग भएकाले जीवनजगत्‌सित भाषा र मनको अङ्गाङ्गीभाव सम्बन्ध छ । जीवनजगत् अङ्गी हो भने भाषा र मन अङ्ग हुन् । यस्तै भाषाले समग्र जीवनजगत्‌को चित्र उतार्ने भएकाले र यसको उत्पादन, भण्डारण र सम्प्रेषण गर्न मनले सहयोग गर्ने भएकाले यी तीन बिच पनि सम्बन्ध छ । जीवनजगत् भनेको वस्तु, भाव, घटना र अवस्थाको समष्टि हो, भाषा चाहिँ जीवनजगत्‌का वस्तु, भाव, घटना र अवस्थाको सङ्केतक हो । शब्दचित्रका माध्यमबाट भाषाको उत्पादन, भण्डारण र सम्प्रेषण गर्ने मन चाहिँ भाषा र जीवनजगत्‌को सम्बन्धसेतु हो । यसरी मानसिक शब्दचित्र हुँदै अभिव्यक्त भएको भाषाका माध्यमबाट जीवनजगत् चिनिने भएकाले र भाषाको रिक्ततालाई जीवनजगत्‌ले सम्पूरण गर्ने भएकाले जीवनजगत्, भाषा र मनका बिच अङ्गाङ्गीभाव सम्बन्धका साथै अन्योन्याश्रित त्रिकोणात्मक सम्बन्ध छ भन्ने मुख्य निष्कर्ष प्रस्तुत लेखबाट प्राप्त भएको छ ।
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प्रा.ज्योती, बाबूराव चिलवंत. "हिंदी भाषा साहित्य : स्वामी दयानंद सरस्वती के विचार". International Journal of Advance and Applied Research S6, № 7 (2025): 350–53. https://doi.org/10.5281/zenodo.14792898.

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हिंदी भाषा साहित्य में महर्षि दयानंद सरस्वती की भूमिका उसे सशक्त और दृढ़ बनाने में रही है| उन्होंने अपने योगदान से हिंदी भाषा को एक स्थान निश्चित करवा कर देने में सक्रिय रहे हैं| दयानंद सरस्वती समाज सुधारक चिंतक और विचारक थे| हिंदी भाषा और साहित्य का इस धरातल पर धार्मिक नेताओं ने कई प्रकार में प्रभावित किया | हिंदी भाषा के संस्कृतिकरण में स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने सफलता पूर्वक कार्य किया | उन्होंने हिंदी भाषा के विकास में अनेक प्रकारों से हिंदी भाषा का वैचारिक स्तर बनाया रखा है |
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जोशी Joshi, हेमा Hema. "विश्वव्यापीकरण र नेपाली भाषा शिक्षण". Intellectual Journal of Academic Research 1, № 1 (2023): 27–32. http://dx.doi.org/10.3126/ijar.v1i1.69953.

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Abstract:
प्रस्तुत लेख विश्वव्यापीकरण र नेपाली भाषा शिक्षणसँग सम्बद्ध रहेको छ । विविध जातजाति र भाषाभाषीको साझा फुलबारीका रुपमा रहेको नेपाल र यहाँका सबैजसो नेपालीको साझा सम्पर्क भाषा नेपाली भाषा हो । नेपाली भाषा विश्व समुदायमा फैलिरहेको छ । नेपालको परिवेशमा यो भाषाले अध्ययन, अनुसन्धान, विश्लेषण, पठनपाठन तथा विभिन्न प्रयोजनपरक तहमा भाषिक संरचनागत सक्षमता प्राप्त गर्दै आएको छ । प्राचीन कालदेखि नै नेपाली भाषा प्रशासनिक, सम्पर्क तथा राष्ट्र भाषाको भूमिकामा रहँदै आएको छ । फलस्वरुप यस भाषाको नीतिगत र संरचनागत विकास पनि हुँदै आएको विश्वव्यापीकरणका रुपमा नेपाली भाषा समृद्ध छ । नेपालका अधिकांश नेपालीको मातृभाषा र बहुसंख्यक नेपालीको सम्पर्क भाषाका रुपमा बोलिने नेपाली भाषा विभिन्न जातजाति र भाषाभाषी बिच राष्ट्रिय एकताको प्रतीकका रुपमा व्यवह्रत छ । नेपाली भाषाको अत्याधुनिक विकास तथा प्रविधिमा पहुँच बढ्दै जाँदा यसको शिक्षण सिकाईमा प्रभावकारी व्यवस्थापनको खाँचो पनि बढ्दै गएको पाइन्छ । विश्वका विभिन्न देश तथा स्थानमा नेपाली भाषीहरुको आवागमन बढ्दै जानु तथा नेपाली भाषाको विश्वव्यापीकरणको अवस्थालाई यस अध्ययनमा शैक्षणिक प्रयोजनका कोणबाट विश्लेषण गरिएको छ । नेपाली भाषा विश्व समुदायमा फैलिरहेको छ । मूलतः विज्ञान प्रवृधिको विकास सञ्चार माध्यम, साहित्यिक विकास तथा विस्तार, सामाजिक सञ्जालमा केही कमीकमजोरी हुँदाहुँदै पनि नेपाली भाषा विश्वव्यापीकृत भइरहेको पाइन्छ । गुणात्मक अनुसन्धान ढाँचामा आधारित रहेर पुस्तकालीय अध्ययन कार्यका आधारमा द्वितीयक स्रोतबाट सामग्री सङ्कल्न गरिएको प्रस्तुत लेखमा विश्वव्यापीकरण र नेपाली भाषा शिक्षण को प्रयोग के, कसरी भएको छ यसका सकारात्मक पक्ष के हुन, नेपाली भाषा शिक्षणको विस्तारमा देखिएका अवसर के–कस्ता छन् भन्ने कुरालाई स्पष्ट पार्न खोजिएको छ ।
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न्यौपाने, विष्णु. "नेपाली भाषा र साहित्यको विकासमा भारतीय नेपालीहरूको भूमिका". Journal of Development Review 10, № 1 (2025): 50–64. https://doi.org/10.3126/jdr.v10i1.75890.

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Abstract:
नेपाली भाषा बहुसङ्ख्यक नेपालीको मातृभाषा हो भने भारतका विभिन्न ठाउँहरू ः दार्जिलिङ, खर्साङ, कालिपोङ, सिक्किम, आसाम, जलपाइगुढी आदि क्षेत्रका भारतीय नेपालीले पनि यस भाषालाई मातृभाषाका रूपमा प्रयोग गर्दछन् । भारतमा बोलिने नेपाली भाषालाई भारतीय नेपाली भाषा भनिन्छ । नेपालमा यो भाषा सरकारी कामकाजको भाषा हो भने भारतमा भारतीय सरकारी मान्यता प्राप्त भाषा हो । यो भाषा विभिन्न भाषाभाषिको सम्पर्क भाषा पनि हो । नेपालबाट काम र मामका सिलसिलामा नेपालीहरू जहाँजहाँ पुगेका छन् त्यहाँ नेपाली भाषा बोल्दछन् र यस भाषाप्रति सम्मान र प्रगाढ आस्था पनि प्रकट गर्दछन् । साहित्य सिर्जनाका हिसाबले पनि यो भाषा संवृद्ध छ । भारतीय भूमि खासगरी दाजिर्लिङ्, खर्साङ, कालिपोङ र सिक्किममा रहेका नेपालीहरू जसलाई भारतीय नेपाली पनि भनिन्छ, तिनीहरूको नेपाली भाषाप्रतिको माया, ममता; नेपाली भाषाको उत्थान तथा संवृद्धिमा उनीहरूको यो गदान र उनीहरूद्वारा सिर्जना गरिएका नेपाली साहित्यसम्बन्धी कार्यको खोजी गर्नु आवश्यक भएको छ । पुस्तकालय अध्ययन कार्यका आधारमा द्वितीयक स्रोत सामग्री सङ्कलन गरी यिनै सामग्रीको अध्ययन र पुनरावलोकनबाट गुणात्मक अनुसन्धान ढाँचामा विश्लेषित यस अनुसन्धान लेखमा भारतीय नेपालीहरूले नेपाली भाषा र साहित्यको विकासमा केकस्तो यो गदान पुर्याएका छन् भन्ने प्राज्ञिक समस्यामा यो लेख केन्द्रित रहेको छ । विवरणात्मक र विश्लेषणात्मक विधिद्वारा भारतीय नेपालीहरूले नेपाल भूमि वा भारतभूमिमा रहेर नेपाली भाषाको विकासमा योगदान दिएकाले तिनीहरूलाई नेपाल र भारत दुवै सरकारले उचित मान, सम्मान र संरक्षण गर्नुपर्दछ भन्ने निष्कर्ष यस लेखमा प्रस्तुत गरिएको छ ।
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डॉ., सत्येंद्र राऊत. "संस्कृत : एक वैज्ञानिक भाषा". International Journal of Advance and Applied Research 2, № 19 (2022): 67–69. https://doi.org/10.5281/zenodo.7053724.

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Abstract:
<strong>सारांश</strong> विश्व की प्राचीनतम भाषाओं में से एक तथा दक्षिण एशियाई भाषाओं की जगत जननी संस्कृत (संस्कृतम्) को माना जाता हैं. ये महज भारतीय भूभाग तक सिमित न होकर इस पूरे उपमहाद्वीप की भाषा हुआ करती थी. हिन्द आर्य वर्ग की इस भाषा को देव वाणी और सुर भारती उपनामों से भी जाना जाता हैं. भारत के इतिहास संस्कृति धर्म (हिन्दू, बौद्ध, जैन ) आदि में संस्कृत का बड़ा महत्व हैं. हिन्दूधर्म के अधिकाँश वेद सहित ग्रंथ इसी भाषा में रचे गये हैं| जिस समय विश्व के अन्य देशों में लोग सांकेतिक भाषा से काम चला रहे थे उस समय भारत में संस्कृत भाषा द्वारा ब्रह्म ज्ञान का प्रसार किया जा रहा था. इसके प्रयोग का क्षेत्र अत्यधिक विशाल था. इसका स्पष्ट वर्णन पतंजलि के महाभाष्य में मिलता है. धीरे धीरे देशकाल एवं वातावरण के प्रभाव के कारण संस्कृत भाषा प्राकृत अपभ्रंश एवं आधुनिक बोलियों जैसे खड़ी बोली का रूप धारण करती हुई भी अपने निज स्वरूप से विचलित नहीं हुई, किन्तु स्थिति यहाँ तक पहुंची कि इसे कतिपय लोगों द्वारा मातृ भाषा के रूप में सम्बोधित किया जाने लगाl &nbsp;
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Sharma, Shruti. "The language of women's writing of the twenty first century (with special reference to the story)." RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 6, no. 12 (2021): 134–37. http://dx.doi.org/10.31305/rrijm.2021.v06.i12.019.

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Abstract:
The language of a woman is inherently different from that of a man. Female language norms are completely different from male language norms. Whether said on the basis of 'text' or on the basis of colloquial language. If the female text is analyzed properly, then it will become clear that its nature is different from the male text. Generally, female language was analyzed on the basis of the criteria of male language and male language was considered as the ideal of female language, but it is necessary that in female works the female language should be analyzed in a different linguistic structure. It should be read free from the urges and pressures of patriarchal language.&#x0D; &#x0D; Abstract in Hindi Language&#x0D; स्त्री की भाषा पुरुष की भाषा से स्वभावतरू भिन्न होती है। स्त्री भाषा के मानदंड पुरुष भाषा के मानदंड से बिल्कुल अलग होते हैं। चाहे ‘पाठ’ के आधार पर कहें या बोलचाल की भाषा के आधार पर। स्त्री पाठ का यदि ठीक-ठीक विश्लेषण किया जाए तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि इसकी प्रकृति पुरुष पाठ से भिन्न होती है। आमतौर पर पुरुष भाषा के मानदंड के आधार पर ही स्त्री भाषा को विश्लेषित किया गया और पुरुष की भाषा को ही स्त्री की भाषा का आदर्श बताया गया लेकिन यह ज़रुरी है कि स्त्री कृतियों में स्त्री-भाषा को भिन्न भाषिक संरचना में विश्लेषित किया जाए। उसे पितृसत्तात्मक भाषा के आग्रहों और दबावों से मुक्त करके पढ़ा जाए।
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शर्मा, प्रियंका कुमारी, та गौरव सिंह. "सरकारी विद्यालय में अध्ययनरत उच्च प्राथमिक स्तर के विद्यार्थियों की हिन्दी में उच्चारण एवं वर्तनी सम्बंधी त्रुटियों का अध्ययन". Yatharth 1, № 1 (2025): 251002. https://doi.org/10.5281/zenodo.15106454.

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Abstract:
भाषा मानवीय जीवन का महत्वपूर्ण अंग है। भाषा द्वारा ही किसी जाति या समाज का ज्ञान सुरक्षित रहता है। यह सर्वविदित है कि व्यक्ति का विकास भाषा के बिना असंभव है। भाषा ज्ञान के बिना व्यक्ति कुंठित हो जाता है। भाषा अभिव्यक्ति एवं विचार विनिमय का मानव निर्मित सफल साधन है। यह पैतृक सम्पति न होकर अर्जित सम्पति है जिसे बालक अनुकरण तथा श्रयास द्वारा ग्रहण करने की चेष्टा करता है। इस तरह वह जब कुछ और बड़ा होता है तो उसके सामाजिक दायरे और परिवेश में परिवार के बाहर मोहल्ला गाँव विद्यालय तथा क्षेत्र विशेष का भी परिवेश शामिल हो जाता है। बालक अनायस ही अनुकरण द्वारा उस भाषा को सीखने के लिए बाध्य हो जाता है।
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ढकाल, कृष्णराज. "नेपाली भाषा शिक्षणमा कथा शिक्षण विधि र क्रियाकलाप". Solukhumbu Multiple Campus Research Journal 6, № 1 (2024): 141–50. https://doi.org/10.3126/smcrj.v6i1.74535.

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Abstract:
प्रस्तुत लेख माध्यमिक तहअन्तर्गत कक्षा ९ र १० मा नेपाली भाषा विषय शिक्षण गर्दा शिक्षकहरूले प्रयोग गर्ने शिक्षण विधि र क्रियाकलापमा केन्द्रित छ । नेपाली भाषा शिक्षणमा कथा शिक्षण विधि र क्रियाकलाप शीर्षकको यो लेख विधा शिक्षणका क्रममा नेपाली भाषा शिक्षकहरूले प्रयोग गर्ने शिक्षण विधि तथा क्रियाकलापको विश्लेषण गर्ने उद्देश्यले तयार पारिएको हो । यस लेखमा पुस्तकालयीय कार्य, निर्देशित अन्तर्वार्ता प्रश्नावली र कक्षा अवलोकनमार्फत सूचना सङ्कलन गरी गुणात्मक ढाँचामा रहेर विश्लेषण गरिएको छ । यसमा काठमाडौँ जिल्लाअन्तर्गत माध्यमिक तह (कक्षा ९ र १०) मा नेपाली भाषा शिक्षण गर्ने ४ जना शिक्षकहरूलाई निर्देशित अन्तर्वार्ता प्रश्नावलीमार्फत लिइएको शाब्दिक सूचना विश्लेषणबाट प्राप्त सूचनालाई भाषा पाठ्यक्रम सिद्धान्तका आधारमा अनुसन्धान उद्देश्यसँग सम्बन्धित रहेर व्याख्याविश्लेषण गरी निचोडमा पुगिएको छ । यस अध्ययनमा नेपाली भाषा शिक्षकहरूले भाषा शिक्षणका क्रममा शिक्षककेन्द्रित विधिलाई प्राथमिकता दिएको देखिन्छ । जुन विधिहरू प्रविधिमैत्री नहुनुका साथै सिकाइ सहजीकरण प्रक्रियामा शैक्षिक सामग्रीको उपयोग सीमित देखिन्छ । पाठ्यक्रमले निर्धारण गरेको सहजीकरण प्रक्रिया अवलम्बन गरिएको छैन । कथा शिक्षणमा व्याख्यान, छलफल, प्रश्नोत्तर, प्रस्तुतीकरण, पठनबोध र अभिनय विधिको प्रयोग गरिएको छ । पाठ्यक्रमले निर्देश गरेका बहुबौद्धिकता, आलोचनात्मक सोच, सहकार्यात्मक सिकाइ जस्ता प्रक्रियाहरू कक्षामा प्रभावकारी रूपमा लागू गरिएको छैन । भाषा शिक्षणमा रहेका विद्यमान कमी कमजोरीहरु सुधारका लागि शिक्षक तालिम, पाठ्यक्रम प्रबोधीकरण, अनुगमन र सम्बन्धित निकायको शिक्षामा लगानी र सक्रियता आवश्यक छ ।
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जोशी, गोकर्ण. "वाक्व्रिmया सिद्धान्तका सापेक्षतामा नेपाली भाषा शिक्षण". Sotang, Yearly Peer Reviewed Journal 3, № 3 (2021): 32–42. http://dx.doi.org/10.3126/sotang.v3i3.53825.

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Abstract:
लेखसार भाषाका क्षेत्रमा भइरहेका नयाँ नयाँ खोज अनुसन्धान र सिद्धान्तले भाषिक विश्लेषणमा नवीनता सिर्जना गरेका छन् । प्रस्तुत लेखमा भाषाले सम्प्रेषणका साथ साथै कसरी कार्य गरिरहेको हुन्छ र त्यसले भाषा शिक्षणमा के कस्तो प्रभाव पारेको हुन्छ भन्ने कुरालाई प्रस्ट पार्न खोजिएको छ । यस लेखमा वाक्क्रिया सिद्धान्त र नेपाली भाषा शिक्षणका बिच रहेको अन्तरसम्बन्ध पत्ता लगाउने उद्देश्य राखिएको छ । उल्लिखित उद्देश्य प्राप्तिका लागि गुणात्मक अनुसन्धान विधिअन्तर्गतको पुस्तकालय अध्ययन प्रक्रिया अपनाएर सामग्री सङ्कलन गरिएको छ । यस कार्यका लागि वाक्व्रिmया सिद्धान्त, नेपाली भाषा शिक्षण र व्याकरण सम्बद्ध सामग्रीलाई द्वितीयक स्रोत मानी सामग्री सङ्कलन गरेर त्यसको आवश्यक विश्लेषण पश्चात् अध्ययन कार्य सम्पन्न गरिएको छ । वाक्व्रिmयासम्बन्धी अवधारणा र सैद्धान्तिक आधार निर्माण गर्ने कार्य जे. एल. अस्टिनले गरेका हुन् भने वाक्व्रिmया सिद्धान्तको प्रतिपादन गर्ने कार्य अस्टिनका चेला सर्लेले गरेका हुन् । यो लेख नेपाली भाषा शिक्षणमा सूचनामूलक व्रिmया र सम्पादनकारी क्रियाको भूमिका, सम्पादनकारी क्रिया र सुहाउँदो सर्त तथा आवश्यक सर्तका सापेक्षतामा भाषा शिक्षण, वाक्क्रिया र भाषा शिक्षण, वाक्क्रियाका प्रकारका आधारमा नेपाली भाषा शिक्षण, प्रत्यक्ष र अप्रत्यक्ष वाक्क्रियाका आधारमा नेपाली भाषा शिक्षण जस्ता क्षेत्रको अध्ययनमा केन्द्रित रहेको छ । प्रस्तुत अनुसन्धानात्मक लेख भाषाविज्ञानमा चासो राख्ने शिक्षक, विद्यार्थी, अनुसन्धाताका साथै भाषाशिक्षण तथा व्याकरण शिक्षणसँग प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष सम्बन्ध राख्नेका लागि सहयोगी हुन्छ ।
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पन्त Pant, धर्मानन्द Dharmananda. "नेपालमा बोलिने भाषा परिवार र तिनका भाषाहरूको विवरण". Curriculum Development Journal 31, № 45 (2023): 224–36. http://dx.doi.org/10.3126/cdj.v31i45.68992.

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Abstract:
नेपाल भाषिक दृष्टिले विविधतायुक्त मुलुक मानिन्छ । नेपालमा विभिन्न चार परिवारका भाषाहरूका साथै एकल परिवारको भाषा पनि बोलिन्छ । नेपालका विभिन्न जनगणनाहरूमा भाषासङ्ख्यामा घटबढ भएको देखिन्छ । नेपालमा भारोपेली परिवारका भाषाहरू ४७ वटा, चिनियाँ परिवारका भाषाहरु ७२ वटा, आग्नेली परिवारका तीनवटा, द्रवेडेली परिवारको एउटा र एकल परिवार अन्तर्गत एउटा गरी १२४ वटा भाषा बोलिन्छन् । नेपालमा भारोपेली परिवारका जम्मा ४७ वटा भाषाहरू बोलिन्छन् । भारोपेली परिवारका नेपाली, मैथली, भोजपुरी, थारू, बज्जिका, डोटेली, उर्दू, अवधी र वैतडेली भाषाका वक्ताहरू उल्लेख्य छन् । नेपालमा चिनियाँ तिब्बती परिवारका ७२ वटा भाषाहरू रहेका छन् । यीमध्ये तामाङ, नेवार, मगर,गुरुङ, लिम्बू भाषाका वक्तासंख्या उल्लेख्य देखिन्छन् । यस परिवारका भाषाहरू धेरै सङ्ख्यामा भएपनि वक्तासङ्ख्याका दृष्टिले भारोपेली परिवारभन्दा थोरै देखिन्छ । वनकरिया भाषाकावक्तासङ्ख्या ८६ मात्र रहेको देखिन्छ । नेपालमा आग्नेली परिवारका सन्थाली, मुण्डा र खरिया भाषा गरी जम्मा तीनवटा भाषा मात्र बोलिन्छन् । नेपालमा द्रविडेली परिवारको एकमात्र भाषा बोलिन्छ । द्रविडेली परिवारको झाँगड÷धाँगड (उराउ) भाषा नेपालमा बोलिन्छ । नेपालमा बोलिने कुसुण्डा भाषालाई एकल परिवार अन्तर्गतको भाषा मानिन्छ । यस भाषाकाविशेषताहरू अन्य कुनै पनि भाषा परिवारसँग मिल्दैन । वि.सं. २०७८ को राष्ट्रिय जनगणनाको तथ्याङ्क अनुसार कुसुण्डा भाषाका वक्तासङ्ख्या २३ जना मात्र रहेको देखिन्छ । यस अध्ययनमा परिमाणात्मक अध्ययन ढाँचा अवलम्बन गरिएको छ । पुस्तकालयीय अध्ययन प्रक्रियाबाट सामग्री संङ्कलन, वर्णन र विश्लेषण गरिएको छ । यस लेखमा नेपालमा बोलिने भाषा परिवार र तिनका भाषाहरूको अध्ययन गर्ने मुख्य उद्देश्य राखिएको छ । राष्ट्रिय जनगणना २०७८ को जनगणनाका प्रतिवेदनलाई अध्ययनको मुख्य सामग्री बनाइएको छ ।
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तिमल्सेना Timalsena, शिव प्रसाद Shiva Prasad. "भाषा योजनाको उद्देश्य, कार्य र आवश्यकता". Pragya Darshan प्रज्ञा दर्शन 5, № 2 (2023): 26–29. http://dx.doi.org/10.3126/pdmdj.v5i2.59596.

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Abstract:
भाषाको विकास, संरक्षण, संवर्धन र स्तर निर्धारणका सम्बन्धमा भाषा नीति अनुसार आधिकारिक रूपमा तय गरिने कार्यान्वयनको खाकालाई भाषा योजना भनिन्छ । यस्तो योजना कार्यमूलक र प्रायोगिक खालको हुनु पर्दछ । जसले भाषिक नीतिमा अघि सारिएका विषयलाई कार्यान्वयनको बाटोमा लैजाने गर्दछ । भाषा योजना मूलतः भाषाको शुद्धीकरण, पुनरुत्थान, सुधार, मानकीकरण, विस्तार, कोशको आधुनिकीकरण, पारिभाषिक शब्दावलीको प्रयोग, शैलीगत सरलीकरण, अन्तरभाषिक सञ्चार तथा सहायक कोडको निर्माण गर्ने उद्देश्यले तयार पारिएको हुन्छ । भाषा योजनाले मूलतः भाषिक व्यवस्थापन, भाषाको संरक्षण, विकास र संवर्धन, भाषिक जीवन्तता तथा सामाजिक सद्भाव र राष्ट्रियताको भावको जागरण आदि कार्य गर्ने गर्दछ । यसरी भाषालाई विस्तार गर्ने, भाषिक जीवन्तता कायम गर्ने, राष्ट्रिय अखण्डता कायम गर्ने, भाषालाई देश विदेशसम्म प्रचारप्रसार गर्ने आदि कार्य गर्ने भएकाले एक भाषिक वा बहुभाषिक मुलुकका लागि भाषा योजनाको निर्माण र कार्यान्वयन आवश्यक मानिन्छ । तर नेपालको सन्दर्भमा हेर्दा प्रभावकारी भाषा योजनाको निर्माण र कार्यान्वयनमा अग्रसर भएको अवस्था पाइँदैन । यिनै सन्दर्भमा यस लेखमा भाषा योजनाको परिचय दिई यसका उद्देश्य, कार्य तथा आवश्यकतालाई निरूपण गर्ने प्रयास गरिएको छ । गुणात्मक ढाँचामा संरचित यस लेखमा आवश्यक सामग्रीको सङ्कलन पुस्तकालय पद्धतिबाट विभिन्न सन्दर्भकृतिका सहायताले गरिएको छ भने तिनको सङ्गठन र प्रस्तुतीकरणका लागि वर्णनात्मक र व्याख्यात्मक विधि अपनाइएको छ ।
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Bhusal, Keshab. "नेपाली भाषा शिक्षणका समस्या र समाधानका उपाय". Spandan 13, № 1 (2023): 41–49. https://doi.org/10.3126/spandan.v13i1.75511.

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Abstract:
भाषा मानवीय एवम् सामाजिक वस्तु हो । भाषाका माध्यमबाट परस्परमा विचार वा भावनाहरूको साटासाट गरिन्छ । यसलाई सामाजिक सञ्चारको प्रणालीका रूपमा समेत चर्चा गरिएको पाइन्छ । भाषा शिक्षण सम्बन्धित भाषाको सिप विकाससम्बद्ध कार्य हो । भाषा शिक्षणले कुनै पनि व्यक्तिलाई सम्बन्धित भाषामा कुशल एवम् प्रखर बनाउँदछ । भाषा शिक्षणका क्रममा विभिन्न किसिमका समस्याहरू देखा पर्न सक्दछन् । त्यस्ता समस्याहरू विद्याथी, शिक्षक, समाज आदिसँग प्रत्यक्ष वा परोक्ष रूपमा जोडिएका हुन्छन् । जसबाट अपेक्षित सिकाइ शिक्षणमा नकरात्मक प्रभाव पर्दछ । भाषा शिक्षणलाई उद्देश्यमूलक, व्यावहारिक तथा प्रभावकारी बनाउनका लागि सबैखाले समस्याको समाधान आवश्यक हुन्छ । यसका लागि शिक्षक, विद्यार्थी, समाजका साथै सम्बन्घित सबै पक्ष सचेत एवम् क्रियाशील बन्नु पर्दछ । प्रस्तुत लेखमा भाषा शिक्षणका क्षेत्रमा देखापरेका समस्या र तिनको समाधानका उपायको बारेमा चर्चा गरिएको छ । यस लेखले भाषाशिक्षणलाई विषयका रूपमा अध्यापन गराइरहेका शिक्षक, अध्ययनरत विद्यार्थी तथा यस क्षेत्रमा रुचि राख्ने जोकोहीका लागि आवश्यकीय ज्ञान ग्रहण गर्न सहयोग पु¥याउने अपेक्षा गरिएको छ ।
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Joshi, H. "भाषा सिकाइमा उखानटुक्का शिक्षणको उपयोगिता". SP Swag: Sudur Pashchim Wisdom of Academic Gentry Journal 1, № 1 (2024): 107–13. http://dx.doi.org/10.69476/sdpr.2024.v01i01.010.

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Abstract:
प्रस्तुत लेखमा भाषा सिकाइमा उखानटुक्का शिक्षणको उपयोगिताको अध्ययन गरिएको छ । यसका लागि पुस्तकालयीय विधिबाट द्वितीयक स्रोतका सामग्री संकलन गरी तिनको अध्ययन विश्लेषणका साथ निष्कर्ष निकालिएको छ । जीवनका विविध अनुभव र चिन्तनमा आधारित भनाइलाई उखानटुक्का भनिन्छ । मानिसहरुले उखानटुक्काको प्रयोग दैनिक जीवनमा प्रशस्त गर्दछन । मानव जीवन भोगाइका क्रममा विभिन्न घटनाहरु घट्ने गर्दछन । यिनै घटनाहरु एकआपसमा भन्ने र सुन्ने क्रममा मानिसले उखानटुक्को प्रयोग गर्दै आएका छन् । मानवजीवनको लामो अनुभवबाट खारिएका हुनाले भाषा सिकाइमा यिनको प्रयोगले भनाइलाई ओजर्पूण, प्रभावकारी, सान्दर्भिक र सुत्रात्मक बनाउँछन् । भाषा सिकाइमा यिनलाई पूख्र्यौली सम्पत्तिका रुपमा लिइन्छ । यस्ता उखानटुक्काहरुले मानव सभ्यताको प्राचीन समयमा घटेका घटना तथा वस्तुस्थितिको लक्षण बोकेका हुन्छन । यिनले वाच्यार्थ भन्दा लक्ष्यार्थमा जोड दिन्छन । यस लेखले उखानटुक्का के हुन ? भाषा सिकाइमा यस्ता उखानटुक्काहरु के कति उपयोगी छन् भन्ने कुरा पत्ता लगाइ उपयुक्त निष्कर्ष निकालिएको छ । गुणात्मक विधिलाइ अवलम्वन गरी लेखिएको यस लेखमा भाषा सिकाइका दृष्किोणबाट उखानटुक्का शिक्षणको उपयोगिता प्रस्ट पार्दै भाषा सिकाइलाई अझ प्रभावकारी बनाउन उखानटुक्का शिक्षणको प्रयोगमा जोड दिनुपर्ने निष्कर्ष अगाडि सारिएको छ । शब्दकुञ्जीः पूख्र्यौली, खिरिलो, सुत्रात्मक, अवलम्बन, जुर्वल
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Joshi, H. "भाषा सिकाइमा उखानटुक्का शिक्षणको उपयोगिता". SP Swag: Sudur Pashchim Wisdom of Academic Gentry Journal 1, № 1 (2024): 107–13. https://doi.org/10.5281/zenodo.11062956.

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Abstract:
प्रस्तुत लेखमा भाषा सिकाइमा उखानटुक्का शिक्षणको उपयोगिताको अध्ययन &nbsp; गरिएको छ । यसका लागि पुस्तकालयीय विधिबाट द्वितीयक स्रोतका सामग्री संकलन गरी तिनको अध्ययन विश्लेषणका साथ निष्कर्ष निकालिएको छ&ensp;। जीवनका विविध अनुभव र चिन्तनमा आधारित भनाइलाई उखानटुक्का भनिन्छ । मानिसहरुले उखानटुक्काको प्रयोग दैनिक जीवनमा प्रशस्त गर्दछन&ensp;। मानव जीवन भोगाइका क्रममा विभिन्न घटनाहरु घट्ने गर्दछन । यिनै घटनाहरु एकआपसमा भन्ने र सुन्ने क्रममा मानिसले उखानटुक्को प्रयोग गर्दै आएका छन् । मानवजीवनको लामो अनुभवबाट खारिएका हुनाले भाषा सिकाइमा यिनको प्रयोगले भनाइलाई ओजर्पूण, प्रभावकारी, सान्दर्भिक र सुत्रात्मक बनाउँछन् । भाषा सिकाइमा यिनलाई पूख्र्यौली सम्पत्तिका रुपमा लिइन्छ । यस्ता उखानटुक्काहरुले मानव सभ्यताको प्राचीन समयमा घटेका घटना तथा वस्तुस्थितिको लक्षण बोकेका हुन्छन । यिनले वाच्यार्थ भन्दा लक्ष्यार्थमा जोड दिन्छन । यस लेखले उखानटुक्का के हुन ? भाषा सिकाइमा यस्ता उखानटुक्काहरु के कति उपयोगी छन् भन्ने कुरा पत्ता लगाइ उपयुक्त निष्कर्ष निकालिएको छ । गुणात्मक विधिलाइ अवलम्वन गरी लेखिएको यस लेखमा भाषा सिकाइका दृष्किोणबाट उखानटुक्का शिक्षणको उपयोगिता प्रस्ट पार्दै भाषा सिकाइलाई अझ प्रभावकारी बनाउन उखानटुक्का शिक्षणको प्रयोगमा जोड दिनुपर्ने निष्कर्ष अगाडि सारिएको छ ।शब्दकुञ्जीः &nbsp; &nbsp;पूख्र्यौली, खिरिलो, सुत्रात्मक, अवलम्बन, जुर्वल
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शेर्पा Sherpa, दावा Dawa. "दोस्रो भाषाका रूपमा नेपाली शिक्षण {Teaching Nepali as a Second Language}". Sotang, Yearly Peer Reviewed Journal 1, № 1 (2019): 26–31. http://dx.doi.org/10.3126/sotang.v1i1.45837.

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मातृभाषापछि बालकले सिकेको जुनसुकै भाषा भएता पनि त्यो दोस्रो भाषा हो । पहिलो भाषा स्वतः प्राप्त हुन्छभने दोस्रो भाषा सिकिन्छ । नेपालमा दोस्रो भाषाका रूपमा नेपाली मातृभाषी बाहेकका अन्य सम्पूर्ण १२२भाषाभाषी बालकहरूले नेपाली भाषालाई दोस्रो भाषाका रूपमा सिक्नुपर्ने अवस्था रहेको छ । नेपाली भाषासरकारी कामकाजको भाषा र शिक्षाको माध्यम भाषा भएकोले यो सबै नेपालीले अनिवार्य रूपमा सिक्नुपर्दछ । दोस्रो भाषा शिक्षणमा नेपाली शुद्धसँग लेख्न र बोल्नका लागि सुनाइ, बोलाइ, पढाइ र लेखाइमा सक्षमबनाउनु हो । दोस्रो भाषा शिक्षण त्रुटिरहति र स्तरीय नेपाली भाषाका दृष्टिले हुने उच्चारण, वाक्यगठन,शब्दभण्डार, लिखित रचना र वर्णविन्यास आदिमा हुने विभिन्न त्रुटिहरू पहिचान गरी शिक्षार्थीमा भएकोपहिलो मातृभाषाको प्रभाव र बानीले गर्दा दोस्रो भाषामा हुने त्रुटि हटाउन शिक्षकले पहल गर्नुपर्छ । दोस्रो भाषाशिक्षणमा निम्नानुसारका शिक्षण विधिहरू अपनाई नेपाली भाषा शिक्षण गर्न सकिन्छ । जसमा साहित्यिकपाठ्यक्रम विधि, व्याकरण अनुवाद विधि, श्रवणभाषा शिक्षण विधि, पत्यक्ष विधि, भाषाशास्त्रीय विधि,भाषिक अनुभव पद्धति र वैयक्तिक प्रशिक्षण पद्धतिका आधारमा दोस्रो भाषा शिक्षण गरी पहिलो मातृभाषामादक्षता बनाउन नेपाली भाषा शिक्षण गर्नु नै दोस्रो भाषा शिक्षण हो ।&#x0D; {After the mother tongue, whatever language the child learns, it is a second language. The first language is obtained automatically and the second language is learned. As a second language in Nepal, all 122 language children except Nepali mother tongue have to learn Nepali as a second language. As Nepali is the official language and medium of instruction, all Nepalis must learn it. The second language teaching is to enable listening, speaking, reading and writing to write and speak Nepali fluently. The teacher should take initiative to eliminate the errors in the second language due to the influence and habit of the first mother tongue in the learner by identifying the errors in the pronunciation, syntax, vocabulary, written composition and spelling etc. of the second language teaching error and standard Nepali language. In the second language teaching, Nepali language can be taught by adopting the following teaching methods. Including literary curriculum method, grammar translation method, auditory language teaching method, direct method, linguistic method, linguistic experience method and individual Teaching Nepali language to make the first mother tongue proficient by teaching second language on the basis of training method is second language teaching.}
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[Yadav Raj Upadhyay], यादवराज उपाध्याय. "भाषा र पारिभाषिक शब्दावलीको कोशीय प्रारूपः एक विश्लेषण [Lexical Structures of Language and Linguistic Semantics: An Analysis]". Prithvi Journal of Research and Innovation 3, № 1 (2021): 94–111. http://dx.doi.org/10.3126/pjri.v3i1.37438.

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Abstract:
यस शोधन आलेखमा भाषा, भाषा विज्ञानको परिचय तथा शाखाहरूबारे चिनारी प्रस्तुत गर्दै पारिभाषिक शब्दावली र कोशीय प्रारूपबारे खोज विश्लेषण गरिएको छ । भावाभिव्यक्तिको संस्कृति विचार विनिमयको आधार भाषाका बारेमा वैज्ञानिक ढङ्गले अध्ययन गर्ने ज्ञानको शाखा नै भाषा विज्ञान हो । व्याकरण, भाषाशास्त्र हुँदै विकसित भाषा विज्ञानको संरचक पक्षका आधारमा ध्वनि विज्ञान, वणर् विज्ञान, व्याकरण (रूप, रूप सन्धि र वाक्य) र अर्थ विज्ञान प्रमुख शाखाहरू हुन् । अध्ययन विश्लेषणको पद्धतिका आधारमा भाषा विज्ञानका ऐतिहासिक, तुलनात्मक र वणर्नात्मक प्रमुख तिन शाखाहरू छन् । सिद्धान्तकेन्द्री र प्रयोगकेन्द्री आधारमा भाषा विज्ञान सैद्धान्तिक र प्रायोगिक दुई प्रकारका हुन्छन् । भाषा शिक्षण, कोश विज्ञान, शैली विज्ञान, सामाजिक भाषा विज्ञान, मनोभाषा विज्ञान, अनुवाद विज्ञान, कम्प्युटर विज्ञान, व्यतिरेकी भाषा विज्ञान, सङ्कथन विश्लेषण आदि प्रायोगिक भाषा विज्ञानका प्रकारहरू हुन् । भाषाविज्ञानका यी शाखाहरूमा प्रयुक्त परिभाषाका माध्यमबाट बुझ्नु पर्ने सयांै पारिभाषिक तथा प्राविधिक शब्दावलीहरू छन् । यस्ता शब्दावलीहरूलाई शब्दकोशीय ढाँचामा पेस गर्न सकिने कोशीय प्रारूपको सीमित नमुना समेत यहाँ प्रस्तुत गरिएको छ । [Linguistic semantics and lexical structures have been discussed in this paper, introducing language, linguistics and its forms. Linguistics is the scientific study of language and its structure that is associated with the knowledge systems while communicating across cultures. It is a developed form of grammar, including other aspects of language such as sound system, letters, words, sentences and meanings. It has three main branches such as historical linguistics, comparative linguistics and descriptive linguistics. It can also be categorized into two types: theoretical linguistics and applied linguistics. There are other types of linguistics as well that include language teaching, lexicology, stylistics, sociolinguistics, psycholinguistics, translation studies, computational linguistics and narratology are some examples of applied linguistics. Based on these branches of linguistics, there are hundreds of linguistic semantics to be leant in the study of language and its structure. In this paper, they are exemplified as lexical structures of language and linguistic semantics.]
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दिव्या, पाठक. "बदलाव के बीच हिंदी : अतीत और वर्तमान". International Journal of Advance and Applied Research 10, № 4 (2023): 398–99. https://doi.org/10.5281/zenodo.7966132.

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Abstract:
प्रत्येक भाषा का अपना समाजशास्त्र होता है। भाषा समाज में पैदा होती वहीं विकसित होती है। बदलते सामाजिक मूल्य भाषा के बदलाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हर समाज के अपने मूल्य होते हैं। भाषा के विकास में इन मूल्यों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। सामाजिक मूल्य भाषा के बदलाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भाषा को मानव की वह जरूरत कहा जा सकता है जिसके जिसके बिना उसका प्रगति कर पाना असंभव लगता है। भाषा समाज में जन्म लेती है और धीरे-धीरे अपने समय की विविध परिस्थितियों से प्रभाव ग्रहण करती हुई विकास की ओर अग्रसर होती है। भाषा के विकास में मनुष्य का परिवेश अहम भूमिका निभाता है। किसी भी भाषा के बदलते स्वरूप को समझने के लिये तत्कालीन ऐतिहासिक परिवेश को समझना आवश्यक है। मौजूदा समय में विश्व में अनेक भाषाएं हैं। इन अनेक भाषाओं के बीच हिन्दी बदले हुये स्वरूप के साथ लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में सफल हुई है और बदलते समाज की जरूरतों के हिसाब से नये अर्थों में प्रयोग में लाई जा रही है। अपने अस्तित्वकाल से लेकर अद्यतन हिन्दी भिन्न-भिन्न पड़ावों से होकर गुजरी है और अनेक पड़ावों को पार करती हुई हिन्दी आज वैश्विक स्तर की भाषा बनने की ओर अग्रसर है। ये पड़ाव तमाम अन्तर्विरोधों, भाषाई प्रभावों व भेदभाव से युक्त रहे हैं। &nbsp; अपभ्रंश की उंगली थामे आठवीं शताब्दी के आसपास हिंदी के अस्तित्व में आने के प्रमाण मिलते हैं। तत्कालीन साहित्य इस बात की पुष्टि करता है। इस दौरान अपभ्रंश के कवि जनभाषा में रचना करने की ओर प्रवृत्त हुए। हालांकि आरंभिक दौर में भाषागत प्रवृत्तियां स्पष्ट रूप से तो दृष्टिगत नहीं होती हैं लेकिन हिंदी के बीज इस दौर के साहित्य में अवश्य नज़र आने लगे थे। लेकिन चौदहवीं शताब्दी के बाद से ही हिंदी पूर्णतः अपने पैरों पर खड़ी हो गयी और विकास की ओर अग्रसर है।
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काफ्ले Kafle, उमेश Umesh. "कक्षा दशमा अध्ययनरत विद्यार्थीको भाषा सम्पादन सक्षमताको परीक्षण Kakshya dashma Adhyanrat Biddhyarthiko Bhasha Sampadan Sakshyamatako Parikshan". Interdisciplinary Research in Education 4, № 1 (2019): 87–98. http://dx.doi.org/10.3126/ire.v4i1.25738.

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Abstract:
प्रस्तुत लेख कक्षा दशमा अध्ययनरत विद्यार्थीको भाषा सम्पादन सक्षमताको परीक्षणसँग सम्बन्धित छ । यस अध्ययनमा काठमाडौँ जिल्लाको कक्षा १० मा अध्ययनरत ४० जना विद्यार्थीलाई नमुनाको रूपमा लिइएको छ । लैङ्गिकता, भाषिक पृष्ठभूमि र विद्यालय प्रकृतिलाई आधार बनाई तथ्याङ्कशास्त्रीय विधिद्वारा व्याख्या विश्लेषण गरी निष्कर्षमा पुगिएको छ । विद्यार्थीको सक्षमतालाई विषयवस्तुको सङ्गठन, भाषा र व्याकरण, शब्दचयन र पुनरावृत्ति, प्रस्तुतीकरण, प्रारूप र शैली तथा स्पष्टताका आधारमा अङ्कन गरी परीक्षण गरिएको छ । समग्रमा विद्यार्थीको भाषा सम्पादन सक्षमता ५०.६२ प्रतिशत रहेको छ । छात्रा, पहिलोभाषी र संस्थागत विद्यालयका विद्यार्थीको भाषा सम्पादन राम्रो रहेको देखिन्छ । स्पष्टता, विषयवस्तुको सङ्गठन र भाषा तथा व्याकरणमा विद्यार्थीको सक्षमता पनि मध्यम स्तरको देखिए पनि शब्दचयन र पुनरावृत्ति (४१.८७%) तथा प्रस्तुतीकरण, प्रारूप र शैलीमा भने कमजोर देखिएको छ । यसर्थ विद्यार्थीले लेख्य सामग्रीको पुनः परिष्कार, पुनः परिमार्जन र सम्पादन गर्न सक्ने सीपको विकास गर्न आवश्यक रहेको तथ्य पुष्टि हुन्छ । यस अध्ययनले भाषा सम्पादन सक्षमताप्रति चासो राख्ने सम्पूर्ण सरोकारवालालाई सहयोग पुग्ने विश्वास लिइएको छ ।
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अधिकारी Adhikari, Laxmishara लक्ष्मीशरण. "अनुसन्धानको भाषा (Anusandhanko Bhasha)". Janapriya Journal of Interdisciplinary Studies 2 (17 серпня 2017): 73–81. http://dx.doi.org/10.3126/jjis.v2i1.18069.

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Abstract:
प्रस्तुत लेख साहित्यको अनुसन्धान लेखनमा प्रयोग गरिने भाषा के कस्तो हुनु पर्छ भन्ने विषयमा केन्द्रित छ । यसमा स्पष्ट, वस्तुगत, तार्किक र पूर्वाग्रहरहित भाषाको प्रयोगले अनुसन्धान गहन हुन्छ भन्ने विचार व्यक्त छ । कर्तृवाच्यको प्रयोगले स्पष्ट निर्णय दिन सघाउने हुँदा कर्तृवाच्यको प्रयोगमा जोड दिनु पर्छ । आलङ्कारिक, व्यञ्जनात्मक भाषाले ठोस विचार प्रकट नगर्ने हुँदा अभिधामूलक भाषाको प्रयोग गर्नु उपयुक्त हुन्छ । शोध औपचारिक प्रक्रिया भएकाले मानक भाषाको प्रयोगउपयुक्त मानिन्छ । सुरुदेखि अन्त्यसम्म वर्णविन्यासगत एकरूपता कायम गर्नु पर्छ । अरूका विचारलाई स्रोत दिएर मात्र उपयोग गर्नुपर्छ । लामा वाक्यहरु काँटछाँट गर्ने, अति छोटा वाक्यहरु जोड्ने, लामा अनुच्छेद नबनाउने, अनुच्छेदमा नजोडिएका वाक्यहरु हटाउने, एकता र व्यवस्थापनमा जोड दिने कुरामा सचेत रहनु पर्छ । प्रत्येक शब्द, वाक्य र अनुच्छेद लेख्दा कहाँनेर त्रुटि भएको छ भन्ने कुरामा सचे तता अपनाई पुनर्लेखन गरिरहनु पर्छ । Janapriya Journal of Interdisciplinary Studies Vol. 2, No.1 (December 2013), page: 73-81
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अडालजा, डाॅ नीरव. "जाति, भाषा और संस्कृति". International Journal of Advanced Academic Studies 2, № 4 (2020): 559–60. http://dx.doi.org/10.33545/27068919.2020.v2.i4h.564.

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अडालजा, डाॅ नीरव. "हिन्दी भाषा का भूमंडलीकरण". International Journal of Advanced Academic Studies 3, № 1 (2021): 387–88. http://dx.doi.org/10.33545/27068919.2021.v3.i1e.573.

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शितल, संग्राम सालवाडगी. "तंत्रज्ञान आणि मराठी भाषा". International Journal of Advance and Applied Research 4, № 15 (2023): 33–35. https://doi.org/10.5281/zenodo.7866835.

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Abstract:
&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; २१ वे शतक हे तंत्रज्ञानाचे&nbsp; युग आहे. त्यामुळे जगातील सर्व घटकाबरोबरच भाषेवरही त्याचा परिणाम झालेला दिसतो. भाषा ही प्रवाही असते. कालानुरूप तिच्यात बदल घडत असतात. बदलामुळे भाषेत अनेक नवनविन शब्दांची भर पडत असते. त्यातून तिची नवी रूपे सिद्ध होतात. तंत्रज्ञानाच्या वापरामुळे भाषांचे जागतिकीकरण होते. आज आपण&nbsp; तंत्रज्ञानावर आधारित शब्द&nbsp; अगदी सहजपणे दैनंदिन जीवनात वापरत असतो. आज प्रत्येक क्षेत्रात संगणक वापरला जातो. बँका, पोस्ट ऑफिस, रेल्वे, व्यवसाय, महाविद्यालये, कृषी इ. क्षेत्रातील&nbsp; वाढत्या&nbsp; वापरामुळे&nbsp; तंत्रज्ञानाचा प्रसार वाढत आहे. भाषा आणि तंत्रज्ञान यांचा घनिष्ट सबंध आहे. &nbsp;&nbsp;&nbsp;
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डा, ॅ. संध्या ज. ैन. "र ंगा ें की भाषा". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.891850.

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Abstract:
रंगा ें की अपनी भाषा ह ै। रंग ही हमारा जीवन ह ैं। जीवन के विविध क्षेत्रा ें में य े रंग अपनी छटा बिख ेरते ह ै ं। खान-पान, रहन-सहन, पूजा-पाठ, धर्म-कर्म सभी तो विविध रंगा ें से जुडे ह ुए ह ैं।दुनिया के इस रंगमंच पर हर इंसान किसी-न-किसी रंग में रंगा ह ुआ ह ै। रंगा ें की अनुभूति देखने व स्पर्ष करने से हा ेती ह ै।रंगा ें क े बिना हमारा जीवन ठीक व ैसा ही है, जैसे प ्राण बिना शरीर । प्रकृति सा ैंदर्य में जहाँ ये रंग चार चाँद लगाते ह ै ं वहीं मानव जीवन को भी सरस, सुखद व रंगीन बना देते ह ैं ।आबाल व ृद्ध रंगा ें से वस्तुओं का े पहचान लेता ह ै। सात रंगा ें से निर्मित इन्द्रधनुष के रंगा ें की छटा हमारे मन का े बहुत आकर्षित करती ह ै। सूर्य की लालिमा हो, अ ंतरिक्ष की नीलाभा हो, मेघा ें का श्याम रंग हा े या पर्व तों की श्र ृ ंखला बर्फीली सफ ेद चादर आ ेढ़े ह ुए हो - सभी का अद्भुत सा ैंदर्य हमें मा ेहित कर लेता ह ै। प ्रत्येक रंग की अपनी भाषा होती ह ै। ये मौन एवं प ्रभावी अभिव्यक्ति देते ह ै ं। ये हमारे तन आ ैर मन दोनों का े भीगा े देते ह ै ं, रससिक्त कर देते ह ै ं। प ्राचीन काल से ही रंग कला में भारत का विष ेष योगदान रहा ह ै। प ्रारंभ में लोग प ्राकृतिक रंगा ें का उपया ेग करते थ े। आजकल कृत्रिम रंगा ें का प ्रया ेग जा ेरा ें पर ह ै। इतना ही नहीं रंगा ें की अपनी-अपनी हजारा ें छवियाँ (ष ेड्स) ह ैं। ये छवियाँ ही मानव हृदय की भाव एव ं भाषा की अभिव्यक्ति ह ैं।
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Talekar, Publisher: P. R. "जागतिकीकरण आणि मराठी भाषा". International Journal of Advance and Applied Research 5, № 14 (2024): 147–48. https://doi.org/10.5281/zenodo.11178273.

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Abstract:
<strong>प्रस्तावना: </strong> जागतिकीकरणामुळे संपूर्ण विश्वाला खेड्याचे स्वरूप प्राप्त झाले आहे. जग जवळ आले आहे . गगनचुंबी सिमेंटचे वाळवंट सर्वत्र पसरले आहे. पण माणसांची मने मात्र तितकीच संकुचित बनत गेल्याचे चित्र दिसते. जागतिकिकरणामुळे जगभरात अनेक बदल होत आहेत. या बदलांचा परिणाम जसा आपल्या जीवनाच्या आर्थिक आणि सामाजिक अंगांवर होत आहे तसाच तो सांस्कृतिक अंगांवरही होत आहे. मराठी भाषा आणि मराठी संस्कृती या बदलांना कशी तोंड देते यावर तिचे भविष्य अवलंबून आहे. आजच्या गुंतगुतीच्या काळात जगणाऱ्या माणसांचे जीवन दुभंगलेपन,आपापसातील जीवघेण्या स्पर्धा,बदलते समाजजीवन,वाढती ग्लोबल बेकारी अशा कितीतरी गोष्टीमुळे सामान्य माणसाची होणारी गळचेपी मराठी साहित्यात त्याचे प्रतिबिंब पहायला मिळते.जागतिकीकरणामुळे काही भाषा लोप होण्याच्या मार्गावर आहेत.&nbsp;&nbsp; जागतिकिकरणामुळे लोकांचे मोठ्या प्रमाणात स्थलांतर होत आहे. महाराष्ट्रातील लोकं मोठ मोठया ठिकाणी पोटापाण्यासाठी गेली आहेत. महाराष्ट्रामध्ये मुंबईसारख्या&nbsp; शहरात व्यापार असल्याने इतर प्रांतातील लोकं येऊन स्थानिक झाली आहेत. आईवडील मुंबईत&nbsp; आणि मुलं अमेरीकेत अशी उदाहरणे आपल्याला आजच्या समाजात सर्रास दिसतात.&nbsp; बदललेल्या काळात मराठी टिकवण्यासाठी आपण काय कले पाहिजे यावर गांभीर्याने विचार करणे गरजेचे ठरते.
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प्रा.सौ., ज्योती रवींद्र गव्हाणे. "'बॉलीवुड और हिंदी भाषा'". International Journal of Advance and Applied Research 4, № 26 (2023): 142–43. https://doi.org/10.5281/zenodo.8416522.

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Abstract:
बॉलीवुड &lsquo;हिंदी सिनेमा जिसे बॉलीवुड के नाम से जाना जाता है I यह नाम अंग्रेजी सिनेमा हॉलीवुड के नाम के तर्क पर रखा गया है I बॉलिवूड के नाम को मुंबई शहर के नाम पर भी &lsquo;बंबई बॉलीवूड&rsquo; एसे जाना जाता हैI मुंबई मे सबसे ज्यादा फिल्म बनाने का उद्योग चलता हैI दुनिया में एसा&nbsp; एक भी इंसान नही होगा जिसने फिल्म नही देखी I आज के युग मे फिल्म के साथ साथ सिरीयल, वेब सिरीज, अल्बम,&nbsp; देखने के साथ खुद&nbsp; तकनीक का इस्तमाल करते है I इससे लोगो को आमदनी भी मिलती है I आज के जमाने मे इंटरनेट ने दुनिया को करीब लाके छोडा है I पुरा विश्व इंसान के मुठ्ठी मे कैद पडा हैI तकनीती साम्राज्य इस प्रकार फेला हैं जैसे कोई जाल ! इस जाल मे हर इंसान बंदा जा रहा है ऐसे युग मे हम अगर भाषा के बारे मे सोचे तो विश्व मे हिंदी भाषी करीब 70 करोड लोग हैं I हिंदी भाषा दुनिया की तिसरी सर्वाधिक&nbsp; बोली जानेवाली भाषा है I &nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; &nbsp;&nbsp;
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आचार्य, ओमप्रकाश. "जुम्ली भाषाको नाम र कोटिकरबीचको सङ्गति व्यवस्थाले नेपाली भाषाको सिकाइमा परेको प्रभाव". Spandan 14, № 2 (2024): 29–34. https://doi.org/10.3126/spandan.v14i2.74867.

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Abstract:
नेपालको भौगोलिक विभाजन अनुसार जुम्ला जिल्ला प्रादेशिक संरचनामा कर्णाली प्रदेशको उत्तरी खण्डमा पर्दछ । यही जुम्ला जिल्लामा बोलिने भाषा जुम्ली भाषा हो । जुम्ली भाषा बोल्ने वक्ताहरु कर्णाली प्रदेशको जुम्ला, हुम्ला, मुगु, कालीकोट, सुर्खेत एवम् सुदूरपश्चिमको बाजुरा, कैलाली, कञ्चनपुर, मध्यपश्चिमको बाँके, बर्दिया, दाङमा समेत बसोबास गर्दछन् । यस्ता जुम्ली भाषी वक्ताहरुले बोल्ने अभिव्यक्तिमा भाषिक व्याकरण अनुसार नाम र कोटिकरबीचको सङ्गति व्यवस्थाको यस लेखमा अध्ययन गरिएको छ । यो अनुसन्धानमूलक लेख हो । जुम्ली भाषामा नाम र कोटिकर व्यवस्था कस्तो छ ? त्यस्तो व्यवस्था नेपाली भाषा भन्दा ध्वनिगत वर्णगत, शब्दगत एवम् संरचनात्मक आधारमा के कति भिन्न छ ? भन्ने अनुसन्धानात्मक प्रश्नमा आधारित हुँदै जुम्ली भाषामा नाम र कोटिकाबीचको सङ्गति व्यवस्थाको अध्ययन गर्नु यस लेखको मुख्य उद्देश्य हो । गुणात्मक ढाँचामा केन्द्रित यस लेखमा पुस्तकालय र क्षेत्रगत अध्ययन विधि अवलम्बन गरिएको छ । तथ्याङ्क सङ्कलनका स्रोत प्राथमिक र द्वितीय रहेका छन् भने उद्देश्य परक नमुना छनोट प्रक्रिया अपनाइ वर्णनात्मक विश्लेषणात्मक एवम् तुलनात्मक ढङ्गबाट प्राप्त तथ्याङ्कको विश्लेषण गरिएको छ । भाषिक संरचनाले जुम्ली भाषा मौलिक पहिचानको भाषा हो । यसको संरचना नेपाली भाषाभन्दा भिन्न छ । मौखिक अभिव्यक्तिमा मुख्य रुपमा व्यवहारत यो भाषा लेखन पद्धतिमा जुम्ला जिल्लाका स्थानीय संचार साधन (एफ.एम.) मा स्थानीय खस जुम्ली भाषामा रैवार र विज्ञापन सम्प्रेषणका अतिरिक्त अन्य क्षेत्रमा लिखित प्रयोग अभाव छ । यस भाषाको अभिव्यक्तिमा कोटिकर शब्दावलीले संरचना नै मौलिक प्रकृतिको छ यसले नेपाली भाषा सिकाइमा पर्ने सिकाइगत सहजता र असहजताको भाषिक तुलनात्मक अध्ययनले समानताले सिकाइमा सहजता र असमानताले सिकाइगत असहजता देखापर्ने गर्दछ ।
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Sherpa शेर्पा, दावा Daba. "शेर्पा भाषाको शब्दवर्ग Sherpa Bhashako Shabdabarga". Tribhuvan University Journal 29, № 1 (2016): 223–30. http://dx.doi.org/10.3126/tuj.v29i1.25986.

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Abstract:
नेपालको हिमाली क्षेत्रमा बसोवास गर्ने शेर्पा जातिले बोल्ने भाषालाई शेर्पा भाषा भनिन्छ । यो भाषा भोटवर्मेली भाषा परिवारअन्तर्गत पर्दछ । २०६८ सालको जनगणनाअनुसार एकलाख चौधहजार आठसय तीस अर्थात् शेर्पा भाषा बोल्नेको सङ्ख्या कुल जनसङ्ख्याको ०.४३ प्रतिशत मात्र रहेको तथ्याङ्क देखिन्छ । यस लेखमा क्षेत्रीय सर्वेक्षण विधिद्वारा सङ्कलित सामग्रीका आधारमा शेर्पा भाषाका शब्दवर्गहरू पहिचान गरी नेपाली भाषा र शेर्पा भाषाका शब्दवर्गको तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत गरिएको छ । शेर्पा भाषाका शब्दवर्गमा नाममा व्यक्तिवाचक, जातिवाचक, द्रव्यवाचक, समूहवाचक र भाववाचक रहेका छन् भने सर्वनाममा पुरुषवाचक प्रथम, द्वितीय र तृतीय पुरुष एकवचन अनि बहुवचन पाइन्छ । आत्मवाचक, दर्शकवाचक र प्रश्नवाचक सर्वनाम रहेको पाइन्छ ।विशेषणमा गुणवाचक, परिणामवाचक, सङ्ख्यावाचक र सार्वनामिक विशेषण पाइन्छन् । क्रियापदमा भने सकर्मक, अकर्मक, समापिका, असमापिका क्रिया पाइन्छन् भने क्रियाविशेषण, नामयोगी, संयोजक र विस्मयादिबोधक आदि अव्यय पनि पाइन्छन् ।
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अधिकारी, अच्युत. "कर्णाली प्रदेशको खस मल्ल राज्यको ऐतिहासिक विवेचना". Journal of Development Review 7, № 1 (2022): 47–57. http://dx.doi.org/10.3126/jdr.v7i1.67016.

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Abstract:
पूर्वमध्यकालको नेपालको इतिहासमा पश्चिम नेपालको कर्णाली प्रदेशमा एउटा राज्य जन्मियो, हुर्कियो र समाप्त भयो । यतिखेर नेपालमा धेरै राज्यहरू अस्तित्वमा आईसकेका थिएनन् । त्यति टाढा जन्मिएको यो राज्यले नेपाल खाल्डोको विशाल र बलियो राज्यलाई आफू अन्तर्गत्को करहद राज्य समेत बनाउन सक्यो जुन ऐतिहासिक दृष्टिकोणले ज्यादै महत्वपूर्ण घटना हो । त्यति विकट स्थानमा रहेको एउटा सानो राज्यले नेपाल खाल्डोको जगलाई मज्जासँग हल्लाउने काम मात्रै गरेन खारी प्रदेश अथवा खसान क्षेत्रको गौरवलाई समेत पुनरभाषित र पुनर्जिवित गर्न सक्यो । पश्चिमी खस मल्ल राज्यको सबैभन्दा ठूलो र प्रमुख योगदान भाषा सम्बन्धी थियो । खस कुरा वा सिंजाली भाषालाई राजकाजको भाषा बनाएर राष्ट्र भाषा बनाउन सकेकोले गर्दा नै कालान्तरमा आएर यही भाषा नै परिमार्जित र विकासित हुँदै आज हाम्रो हातमा आउन सकेको छ । खस मल्ल राज्यको विघटन भएपछि नै बाइसी र चौबिसी राज्यहरू नेपालको सरहदमा देखा पर्न गए ? यिनै वाइसी र चौविसी राज्यमा रहेको यही भाषा पछि नेपालको एकीकरण भएपछि नेपालकै राष्ट्र भाषा वा राष्ट्रिय भाषा बन्न पुग्यो । बौद्ध धर्मको प्रवद्र्धन र संरक्षण गर्ने कुरामा समेत खस राजाहरूले आफ्नो तर्फबाट सक्दो प्रयासहरू गरेको पाइन्छ । नेपालको इतिहासमा महत्वपूर्ण विषय बनेर रहेको खस मल्ल राज्यको बारेमा पाइएका केही तथ्यगत विषयवस्तुलाई नै यस लेखमा समेटिएको छ ।
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अधिकारी Adhikari, मीनप्रसाद Minprasad. "पेसागत विकासका दृष्टिले नेपाली भाषा शिक्षकको अवस्था Peshagat Bikaska Dishtile Nepali Bhasha Shikshakko Awastha". Rupantaran: A Multidisciplinary Journal 4, № 1 (2020): 246–54. http://dx.doi.org/10.3126/rupantaran.v4i1.34223.

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Abstract:
नेपाली भाषा शिक्षकको पेशागत विकासका लागि भाषा पाठ्यक्रम, भाषा पाठ्यपुस्तक तथा शिक्षणसामग्रीसम्बन्धी ज्ञान, सामाजिक तथा भाषिक न्यायसम्बन्धी ज्ञान, भाषिक विविधताको सम्बोधन गर्ने कौशल,नेपाली विषयवस्तुसम्बन्धी ज्ञान, सीप सिकाइ सहजीकरण प्रक्रियाका बारेमा आवश्यक ज्ञान र उक्त ज्ञानकोव्यावहारिक प्रयोग गर्ने कौशल, भाषा शिक्षणका सिद्धान्तहरूको सम्यक् पालना गर्ने सीप, भाषा शिक्षणका विधितथा प्रविधिहरूको भरपुर उपयोग गर्ने कला तथा दोस्रो भाषाका रूपमा बहुभाषिक कक्षामा नेपाली शिक्षणगर्ने सीप हुनुपर्दछ । यी पक्षहरूलाई नेपाली भाषा शिक्षणको पेसागत विकासका प्राथमिक आधारअन्तर्गत राख्नसकिन्छ । शिक्षकको पेशागत विकासका लागि शिक्षण सिकाइ विधिसम्बन्धी ज्ञान, सिकारु÷बालबालिकासम्बन्धीज्ञान, सिकाइ वातावरण तथा कक्षा व्यवस्थापन, सञ्चार, सहयोग तथा सहकार्य, निरन्तर सिकाइ र पेशागतविकास जस्ता पक्षमा शिक्षक सधैँ सक्रिय र अद्यावधिक हुनुपर्दछ । यसका साथै पेसागत आचारसंहिता, सूचना,सञ्चार तथा प्रविधिको प्रयोग, तालिमको सिद्धान्त र व्यवहारबीच सामाञ्जस्यता मिलाउने सीप, कार्यमूलकअनुसन्धान गर्न सक्ने सक्षमता शिक्षकमा हुनुपर्दछ । त्यसैगरी पेशागत अनुभव आदानप्रदान, उपचारात्मकसुपरीवेक्षण, मेन्टरिङ तथा कोचिङ, स्वप्रतिबिम्बात्मक सिकाइ, पेशागत तालिम, आन्तरिक तथा बाह्य अवलोकनभ्रमण, कार्यशाला तथा गोष्ठी, शिक्षक सञ्जाल, आत्ममूल्याङ्कन जस्ता विविध पक्षमा शिक्षक सक्षम हुनुपर्दछ ।यी सबै पक्षलाई नेपाली भाष शिक्षकको पेशागत विकासका द्वितीयक आधारमा राख्न सकिन्छ ।
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Jain, Sadhana, and Gorelal Bisoriya. "Craft Side of Contemporary Poems: With Special Reference to Pawan Karan's Poems." RESEARCH HUB International Multidisciplinary Research Journal 10, no. 1 (2023): 10–14. http://dx.doi.org/10.53573/rhimrj.2023.v10n01.003.

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Abstract:
The language of Pawan Karan's poems is the language of the general public. There is no heaviness in that. Considering the language of Pawan Karan, a critic says that - "The art of telling Pawan Karan lies in the smooth address of the language, due to which the reader avoids being blinded by clever words and their brightness." At the level of language, Pawan Karan has expressed the subtle reality of the story very easily. Communicability is the specialty of Pawan Karan's poems. Their language is the language of love and also the language of relationships. He has mainly considered women. The use of English words is mainly seen in his poems such as the words telephone, matchbox, mobile, album.&#x0D; &#x0D; Abstract in Hindi Language:&#x0D; पवन करण की कविताओं की भाषा आम-जनता की भाषा है। उसमें बोझीलापन नहीं है। पवन करण की भाषा पर विचार करते हुए एक आलोचक का कहना है कि-‘‘पवन करण के कहने की कला भाषा के सहज संबोधन में निहित है जिसके कारण पाठक चालाक शब्दों और उनकी चमक में चैधियाने से बचता है। भाषा के स्तर पर कथ्य के बारीक यथार्थ केा पवन करण ने बहुत सहजता से व्यक्त कर दिया है।‘‘1 अर्थात् उनकी भाषा में सहजता है और अपनापन भी। संप्रेषणीयता पवन करण की कविताओं की विशेषता हैं। उनकी भाषा प्रेम की भाषा और संबंधों की भी भाषा हैं। उसने मुख्य रूप से नारी पर विचार किया है। उनकी कविताओं में मुख्य रूप से अंग्रजी शब्दों का प्रयोग दिखाई देते हैं जैसे टेलिफोन, माचिस, मोबाइल, एलबम शब्द।&#x0D; Keywords: पवन करण, शिल्प, कविता, साहित्य।
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डॉ., श्रीमती अनुराधा शर्मा. "लोकतंत्र की मज़बूती के हित में सत्रहवीं लोकसभा चुनाव -2019 के चुनावी घोषणा-पत्रों में भारतीय भाषाए". International Journal of Research - Granthaalayah 7, № 4 (2019): 255–60. https://doi.org/10.5281/zenodo.2653885.

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Abstract:
लोकतंत्र लोक की भावनाओं का आदर करने वाली व्यवस्था है। लेकिन भारत के संदर्भ में कुछ अनुभव इसके विपरीत है। यहां लोकतंत्र के नाम पर व्यवस्था को &lsquo;लोक&rsquo; की भाषा से दूर करने वाले &lsquo;तंत्र&rsquo; लगातार हावी रहे हैं। इस दृष्टि में उसे सच्चा और अच्छा लोकतंत्र कहते हुए शब्द ठिठकते है। प्रशासन की लोक भाषा से दूरी अनेक समस्याओं का मूल है तो न्याय की लोक की भाषा से दूरी बनाये रखने की जिद्द न्याय पर प्रश्नचिन्ह लगाती है। इसी का दुष्प्रभाव है कि शिक्षा भी उस भाषा से आलिंगन कर रही है जो लोक भाषा के स्वाभिमान को नकारती है। भारतीय भाषाओं को उनके स्वाभाविक अधिकारों से विमुख करना भारतीय लोकत ंत्र का सर्वाधिक नकारात्मक पक्ष है।&nbsp;
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डॉ., अनुराधा वसंत गुजर. "भाषाकुल संकल्पना आणि मराठीची पूर्वपिठीका". International Journal of Advance and Applied Research 6, № 1 (2025): 27–30. https://doi.org/10.5281/zenodo.14638163.

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Abstract:
<strong>प्रास्ताविक: </strong> &nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; भाषा म्हणजे मानवी जीवनव्याप्त संकल्पनाचे विश्व साकार करणाऱ्या संज्ञापन व्यवहाराचे सर्वश्रेष्ठ व सर्व स्पर्शी साधन व माध्यम समाज व्यवहार शक्य व सुलभ होते तो या माध्यमांमुळेच मानवाच्या जीवन विकासक्रमात भाषेचे महत्त्व अनन्य साधारण आहे जगाच्या पाठीवरील माणसं जैविकदृष्ट्या सारखी असली तरी त्यांच्या भाषा वेगळ्या का? या प्रश्नातून भाषा अभ्यासास सुरुवात होते व त्यासारख्या का? या प्रश्नाच्या शोधात भाषाकुलाची संकल्पना अस्तित्वात येते.भाषा कुलाची संकल्पना मानवी कुळाची ही कहाणी सांगून जाते भाषेची पूर्वावस्था मध्यावस्था हिचे उत्तरकालीन ऐतिहासिक भाषा विज्ञानाची उद्दिष्टे भाषाभ्यासात कार्यप्रवण होतात दोन किंवा अधिक भाषांचा तुलनात्मक अभ्यास करून त्यांचा वंशवृक्ष&nbsp; मांडून दाखवणे त्यातूनच शास्त्रशुद्ध भाषा अभ्यासाची बीजे रुजली जातात आणि भाषाकुलाची संकल्पना अस्तित्वात येते.
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विश्वकर्मा, राम लाल. "‘‘संस्कृत वाङ्मय में लोक कल्याण की व्यापक भावना’’". Humanities and Development 18, № 1 (2018): 55–57. http://dx.doi.org/10.61410/had.v18i1.111.

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Abstract:
संस्कृत वि‛व की प्राचीनतम भाषा है यह चिर नूतन भाषा हैं क्योंकि सर्वप्राचीन होने पर भी आज किसी भी भाषा से अधिक युवती है। भारतवर्ष का अधिकांश साहित्य संस्कृत भाषा में ही निबद्ध है। संस्कृत वाङ्मय भारतीय संस्कृति का मूल स्रोत है। इसमें मानव कल्याण की भावना कूट-कूट कर भरी है। संस्कृत-साहित्य ‘सर्वेभवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कशिचद् दुःखभाग्भवेत्।।1 तथा ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम्’’2 का डिम-डिम घोष करते हुए समाज कल्याण की अवधारणा को स्पष्ट करता है।
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Acharya, Om Prakash. "जुम्ली भाषाको कालगत करण अकरण व्यवस्थाको शैक्षणिक उपयोग". Journal of Musikot Campus 3, № 1 (2025): 211–18. https://doi.org/10.3126/jmc.v3i1.81222.

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Abstract:
जुम्ली भाषा कर्णाली प्रदेशको जुम्ला जिल्लामा बोलिने भाषा हो । जुम्ली भाषा कथ्यमा आधारित छ । यस भाषामा लिखित सामग्री, साहित्यिक सिर्जना छिटपुट बाहेक पाइदैन । जुम्ली भाषी विद्यार्थीहरुलाई नेपाली भाषा शिक्षणका सन्दर्भमा नेपाली भाषाको संरचनाले शिक्षण सिकाइमा पार्ने असरका सम्बन्धमा भाषा शिक्षण र भाषिक व्यवस्थाको अध्ययन गरिएको छ । भाषा समाज, समुदायको सम्पत्ति हो । भाषाको व्याकरणिक कोटि करण अकरणका आधारमा जुम्ली भाषाको व्यवस्थाका सम्बन्धमा यस लेखमा अध्ययन गरिएको छ । जुम्ली भाषाको करण अकरण व्यवस्थाको अध्ययन गर्दा नेपाली भाषामा रहेका करण अकरण व्यवस्थालाई तुलनात्मक रूपमा विश्लेषण गरिएको छ । जुम्ली भाषामा कालगत करण अकरण व्यवस्था कस्तो छ ? जुम्ली भाषामा रहेको कालगत करण अकरण व्यवस्था र नेपाली भाषामा रहेकोकरण अकरण व्यवस्थाबीच के कस्तो समानता र भिन्नता छ ? यस लेखका अनुसन्धानात्मक समस्या अनुसन्धेय प्रश्नहरू हुन् । जुम्ली भाषामा रहेको कालगत करण अकरण व्यवस्थाको अध्ययन गर्नु, जुम्ली भाषा र नेपाली भाषामा रहेको करण अकरण व्यवस्थाको तुलनात्मक अध्ययन गर्नु यस अनुसन्धानको उद्देश्य हो । प्रायोगिक भाषा विज्ञानमा आधारित भएर । क्षेत्रगत अध्ययन विधि प्रयोग गरी वर्णनात्मक विश्लेषणात्मक र तुलनात्मकता आधारमा विश्लेषण गरिएको यस लेखमा जुम्ली भाषामा कालगत वर्तमानकाल, भूतकाल र भविष्यतकालमा करण अकरण जनित शब्द, अकरण र सहायक क्रिया एवम् युगल अकरणमा देखिएको संरचना मौलिक प्रकृतिका छन् भने यी सकारात्मक एवम् नकारात्मक अर्थ प्रदान गर्ने व्याकरणिक कोटि नेपाली भाषाभन्दा फरक प्रकृतिका छन् । करण अकरण व्यवस्थामा जुम्ली र नेपाली भाषामा संरचनापरक भिन्नता छ । भाषिक कालगत व्यवस्था, करण अकरण व्यवस्था, जुम्ली र नेपाली भाषाबीचको समानता र असमानताको अध्ययनले जुम्ली र नेपाली भाषाको कालगत करण अकरण व्यवस्थामा भिन्नता छ ।
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चन्द Chand, ललित प्रकाश Lalit Prakash. "भाषा शिक्षणमा साहित्यिक विधाको प्रयोजन". Journal of Educational Research and Innovation 4, № 1 (2024): 142–49. https://doi.org/10.3126/jeri.v4i1.75805.

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Abstract:
प्रस्तुत लेख भाषा शिक्षणमा साहित्यिक विधाको प्रयोजन शीर्षकसँग सम्वन्धित रहेको छ । यो लेख भाषा शिक्षणका सैद्धान्तिक स्वरूप ठम्याउनुका साथै विधा शिक्षणको उपयोगिता पत्ता लगाउनुजस्ता उद्देश्यमा केन्द्रित रहेको छ । गुणात्मक अनुसन्धान ढाँचाको प्रयोग गरिएको यस अध्ययनमा वर्णनात्मक अध्ययन विधिको प्रयोग गरी पुस्तकालयी कार्यको माध्यमबाट सामग्री सङ्कलन गरी अर्थापन गरिएको छ । यस पहिलोअध्ययनमा द्वितीय स्रोतका रुपमा भाषा शिक्षण र साहित्य शिक्षणसँग सम्वन्धित विभिन्न पाठ्यपुस्तक, विभिन्न पत्रपत्रिकामा प्रकाशित अनुसन्धानात्मक लेखलाई उपयोग गरिएको छ । साहित्यिक विधा शिक्षण रसपूर्ण हुने भएकाले तिनै विधाको उपयोग गर्दै विद्यार्थीहरुमा सुनाइ, बोलाइ, पढाइ र लेखाइ सिपको विकास गराउने र विद्यार्थीलाई विभिन्न साहित्यिक विधाको ज्ञान दिई सिर्जनात्मक क्षमताको विकास गराउन भाषा शिक्षणमा साहित्यिक विधा शिक्षणको आवश्यकता रहेको यस लेखमा निष्कर्ष निकालिएको छ ।
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शर्मा Sharma, विष्णुप्रसाद Bishnuprasad. "नेपाली भाषा कक्षामा सिकाइ सहजीकरणसम्बन्धी अभिमत {Learning Nepali language in class Opinions on facilitation}". AMC Journal 3, № 1 (2022): 44–60. http://dx.doi.org/10.3126/amcj.v3i1.45454.

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Abstract:
प्रस्तुत अनुसन्धानमूलक लेख नेपाली भाषाको सिकाइ सहजीकरणका क्षेत्रमा केन्द्रित छ ।माध्यमिक तहको नेपाली भाषा कक्षामा सिकाइ सहजीकरणको परम्परा र प्रवृत्तिका सम्बन्धमा शिक्षकहरूको अभिमत के कस्तो छ भन्ने प्राज्ञिक जिज्ञासाको खोजी गर्नु यस अनुसन्धानको उद्देश्य हो । यसका लागि अनुसन्धानमा गुणात्मक ढाँचा, व्याख्यावादी दर्शन, घटना अनुभवपद्धति र निर्माणवादी सिद्धान्तको आधार लिइएको छ । सोद्देश्यमूलक नमुना छनोट विधिमाआधारित भएर लामो समय नेपाली भाषा शिक्षण गरेका सातजना भाषा शिक्षकसँग पुगी गहनअन्तर्वार्ता उपकरणका माध्यमबाट तथ्याङ्क सङ्कलन गरिएको छ । सङ्कलित तथ्याङ्कबाट विभिन्न थिम वा आशय निर्माण गरी प्राज्ञिक जिज्ञासा र दाबीका आधारमा साक्ष्य र तर्कलाई लम्बीय र क्षितिजीय रूपमा प्रस्तुत गरेर निष्कर्षमा पुगिएको छ । अनुसन्धानबाट वि.सं. २०२८पूर्वको भन्दा पछिको नेपाली भाषा सिकाइ सहजीकरण प्रक्रिया क्रमशः वैज्ञानिक, प्रयोजनपरक र सिपकेन्द्रित हँदै आएको पाइएको छ । वि.सं. २०२८ पूर्व कहीँ, कतैमात्र प्रयोग गरिने शिक्षण सामग्रीको उपयोग, शिक्षण विधि र मूल्याङ्कन, सिकारुमैत्री शिक्षण, सहयोगात्मकसिकाइ, उत्प्रेरणा, पृष्ठपोषणजस्ता सिकाइ सहजीकरणका आधारभूत पक्षमा वि.सं. २०२८पछि विशेष ध्यान पुगेको पाइन्छ । वि.सं. २०७१ को माध्यमिक नेपाली पाठ्यक्रमसँगै नेपालीभाषा कक्षामा सिकाइ सहजीकरण प्रक्रियालाई थप प्रायोगिक, व्यवस्थित, अन्तक्र्रियात्मकर भाषा शिक्षणको मर्म अनुकूल बनाउन खोजिएको देखिन्छ । वि.सं. २०२८ अघि र पछिमूलतः शिक्षक केन्द्रित शिक्षण विधिमा आधारित नेपाली शिक्षण क्रमशः विद्यार्थीमैत्री सिकाइ सहजीकरणको उपयोगतर्प नेपाली भाषा शिक्षण केन्द्रित हुँदै आएको पाइन्छ । नेपाली भाषा सिकाइ सहजीकरणको परम्परा र प्रवृत्तिका विषयमा सम्बन्धित शिक्षकहरूको अभिमतबारे रुचिराख्नेहरूका लागि प्रस्तुत अनुसन्धान उपयोगी हुने देखिन्छ ।
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भट्ट Bhatta, महेश प्रसाद Mahesh Prasad, та कृष्ण प्रसाद Krishna Prasad पोखरेल Pokhrel. "भाषा सिकाइ क्षमतामा विद्यालय प्रकृति प्रभाव {Effects of school nature on language learning ability}". Educational Journal 2, № 2 (2023): 180–88. http://dx.doi.org/10.3126/ej.v2i2.61902.

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Abstract:
भाषाको बोध तथा अभिव्यक्ति क्षमतामा पाइने दक्षताको स्तर नै भाषा सिकाइ उपलब्धि हो । यसको मापनका निम्ति पाठ्यक्रमले तोकेका मापदण्डको अनुप्रयोग गरिन्छ । भाषा सिकाइका विविध प्रभावकमध्ये विद्यालय प्रकृतिलाई पनि महत्वपूर्ण प्रभावक मानिन्छ । प्रस्तुत लेखमा भाषासिकाइ क्षमतामा विद्यालय प्रकृतिको प्रभाव पहिचान गरिएको छ । यसमा सामुदायिक र संस्थागत विद्यालयमा कक्षा नौमा अध्ययनरत विद्यार्थीहरूको भाषा सिकाइ उपलब्धिमा विद्यालय प्रकृतिले पार्ने प्रभावको तुलना गरिएको छ । यसको उद्देश्य विद्यालय प्रकृतिका आधारमा विद्यार्थीको भाषा सिकाइ उपलब्धि क्षमताको तुलना गर्नु रहेको छ । प्रस्तुत लेख परिमाणात्मक अनुसन्धान ढाँचामा आधारित छ । यसमा बहुक्रमिक नमुना छनोट विधिको उपयोग गरिएको छ । यस लेखमा स्थलीय अध्ययन विधिको अनुप्रयोग गरी सामग्री सङ्कलन गरिएको छ । यस अध्ययनमा विद्यार्थीहरूको भाषा सिकाइ क्षमता परीक्षणका लागि जम्मा १६ पूर्णाङ्कको प्रश्नावली तयार पारी परीक्षण गरिएको छ । यस अध्ययनबाट संस्थागत विद्यालयभन्दा सामुदायिक विद्यालयका विद्यार्थीको सिकाइ उपलब्धि राम्रो रहेको तथ्य प्राप्त भएको छ ।
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बम Bam, सुरेन्द्र Surendra कुमार Kumar. "सुदूरपश्चिम प्रदेशको भाषिक स्थिति Sudurpaschim Pradeshko Bhashik Sthiti". Tribhuvan University Journal 33, № 1 (2019): 251–68. http://dx.doi.org/10.3126/tuj.v33i1.28698.

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Abstract:
सुदूरपश्चिम प्रदेशकोको भाषिक स्थितिमा केन्द्रित यस लेखको मुख्य उद्दश्ेय सुदूरपश्चिम प्रदेशको भाषिक अवस्था पहिचान गर्नु रहेको छ । प्रादेशिक संरचना नेपालको नयाँ व्यवस्था भएकाले प्रदेशगत रूपमा भाषिक तथ्याङ्क पर्याप्त रूपमा उपलब्ध छैन । प्रस्तुत लेखमा शीर्षकसँग सम्बन्धित सैद्धान्तिक सामग्रीको अध्ययन गरी प्राप्त तथ्यको मिश्रित ढाँचामा व्याख्या विश्लेषण गरिएको छ । २०६८ सालको जनगणना अनुसार सुदूरपश्चिम प्रदेशमा बोलिने ८३ ओटा भाषा मध्ये नेपालीका अतिरिक्त एक दर्जन भाषाको मूल उत्पत्ति र प्रमुख प्रयोग क्षेत्र यसै प्रदेशमा भएका रैथाने भाषा रहेको पाइएको छ । वक्ता सङ्ख्याका आधारमा डोटेली सबैभन्दा ठूलो भाषा रहेको यस प्रदेशमा नेपाली दोस्रो, थारु तेस्रो, बैतडेली चौथो र अछामी पाँचौं स्थानमा रहेका छन् । नेपालमा बोलिने चारै परिवारका भाषा बोलिने यस प्रदेशमा ९८ प्रतिशतभन्दा बढीले भारोपेली परिवारका भाषा बोल्ने गरेको पाइन्छ । अधिकांश भाषा कथ्य रूपमा रहेको यस प्रदेशमा नेपालीका अतिरिक्त डोटेली र थारु भाषाको मात्र अलि बढी लेख्य परम्परा रहेको छ भने अरु केही भाषाको लेख्य परम्परा भर्खर सुरु भएको पाइन्छ । परम्परागत ज्ञानको खानी र इतिहासको धरोहरका रूपमा रहेका प्रदेशका समग्र भाषाहरूको संरक्षण, सम्बर्धन र विकासका लागि सम्बन्धित सबैको ध्यान जानु आवश्यक देखिन्छ ।
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बास्तोला Bastola, हेरम्बराज Herambaraj. "नेपालमा भाषा नीति, योजना र त्यसका चुनौति {Language policy, planning and its challenges in Nepal}". Sotang, Yearly Peer Reviewed Journal 2, № 1 (2020): 51–58. http://dx.doi.org/10.3126/sotang.v2i1.47596.

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Abstract:
नेपालको वर्तमान भाषा नीति र योजना कस्तो छ र यसको कार्यान्वयनका लागि केकस्ता चुनौतिहरू छन् ? यी दुई समस्यामा आधारित उद्देश्य तय गरी प्रस्तुत लेख तयार पारिएको छ । भाषामा भौगोलिक सामाजिक, लैङ्गिक आर्थिक उमेरगत परिवेशगत तथा प्रयोगगत रूपमा विविधता सिर्जना हुन्छ । जाति तथा भाषाका आधारमा प्रत्येक समूहका आफ्ना सामाजिक सांस्कृतिक भाषिक र अन्य प्रचलित विशेषताहरू रहेका हुन्छन् । यस्ता विशेषता सुरक्षित राख्न सर्वप्रथम भाषाकै सुरक्षा अपरिहार्य हुन्छ । राज्यको भाषिक अवस्थिति अनुरूप भाषा सम्बन्धी राज्यले लिने भाषा नीति तथा योजनाले भाषिक विविधता संरक्षणमा प्रमुख भूमिका खेल्दछ । भाषाका धेरै भेदहरूमध्ये सम्पर्क भाषाका रूपमा एउटा भेद कसरी छनोट गर्ने, भाषाको स्तरीय रूप विकास गर्न भाषाको मानकीकरण प्रक्रिया कसरी अघि बढाउने, भाषा नीति तथा योजना निर्माणका क्रममा विभिन्न भाषाभाषीका बीच आपसी समझदारी बनाउदै राष्ट्रिय एकता अभिवृद्धि गराउने गरी साझा माध्यम भाषा कसरी विकसित गर्ने, भाषा देशको सामाजिक र सांस्कृतिक पक्षको सम्वद्र्धनको अपरिहार्यता राज्य पक्षलाई कसरी बुझाउने आदि चुनौति खडा हुन पुग्दछन् । यी सबै चुनौतिको कुशलतापूर्वक सामना गर्न सके मात्र नेपालको बहुभाषिकतालाई महत्त्वपूर्ण राष्ट्रिय सम्पदाका रूपमा संरक्षण र संवद्र्धन गर्न सकिन्छ भन्ने निष्कर्षमा पुगिएको छ । यस निष्कर्षका लागि प्रस्तुत अध्ययनमा पुस्तकीय अध्ययन कार्य गरी विश्लेषणात्मक विधि अपनाइएको छ ।
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