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क, ु. ़कांता राधवानी '1, та ़नीता सिंह 2. डाॅ. "मन्नू भंडारी की कहानिया ें म ें विवाहित महिलाओं के संघर्ष". International Journal of Research - Granthaalayah 6, № 5 (2018): 54–58. https://doi.org/10.5281/zenodo.1254133.

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Abstract:
मन्नू भंडारी स्वातंत्रोत्तर काल की समाजधर्मी लेखिका हैं। समाज में आने वाले स्थूल और सूक्ष्म परिवर्त नों को सही धरातल पर पकड़ने की अपूर्व क्षमता उनकी लेखनी में है। परिवर्त नों का प्रभाव सदा ही दोहरा होता है - बाह्य और आत ंरिक। एक प्रभाव व्यक्ति को अंदर से क ुरेदता है तो द ूसरा समाज जीवन को खोखला बना द ेने में बराबर सहयोग पहुँचाता है। ल ेखिका न े दांपत्य-जीवन की समस्याओं को दोहरे स्तर पर उठाया है, उन्होंने अपनी कहानी में नारी-पुरुष परंपरागत स्थूल संबंध में बदलत े संबंध की सूक्ष्म प्रक्रिया का चित्रण किया है। मन्नू भंडारी नारी जीवन में पुरुष क े साथ को अनिवार्य मानती है ल ेकिन वह पति की अंधनुगामी
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मासीवाल, डॉ. हेमलता. "मन्नू भंडारी के उपन्यासों का समाजशास्त्रीय विश्लेषण". International Journal of Advance and Applied Research 5, № 35 (2024): 124–28. https://doi.org/10.5281/zenodo.13856635.

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Abstract:
प्रस्तावना:साहित्य समाज का दर्पण होता है। साहित्य का हमेशा यही प्रयास रहता है कि समाज को उच्च मानवीय मूल्यों से परिचित कराये, समाज में जो भी  अमानवीय और असद हो उसके विरोध में आवाज़ उठाए, समानता स्थापित करे। बदलते समय के अनुसार साहित्य में भी बदलाव आता है और इन्हीं बदलाओं का कभी पैरोकार बनता है तो कभी प्रतिरोध करता है। यह उसकी रचनाओं में साक्षात दिखाई देता है। प्राचीन काल से लेकर अद्यतन हम समाज में जो भी परिवर्तन देखते हैं वह साहित्य में  विशेषकर कविता, कहानी, नाटक उपन्यास आदि में भी देखने को मिलता है। साहित्य में जीवन के यथार्थ-विश्लेषण को अधिक महत्व दिया जाता है। साहित्यकार तत्कालीन
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Radhwani, Kukanta, and Anita Singh. "Conflict of married women in stories of Manu Bhandari." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 6, no. 5 (2018): 54–58. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v6.i5.2018.1425.

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Abstract:
Manu Bhandari is a socialist writer of the post-independence era. His writings have the unique ability to catch macro and subtle changes coming in the society on the right surface. The effect of changes is always double - external and internal. One influence crushes a person from inside, and the other society gives equal support in making life hollow. The writer has raised the problems of married life on a double level, in her story she has depicted the subtle process of changing the relationship between the male-female traditional macro relationship. Manu Bhandari considers woman to be indisp
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Dr. Bimal Malik. "हिंदी उपन्यासों में स्त्री की बदलती भूमिका: एक तुलनात्मक अध्ययन". Shodh Sagar Journal of Language, Arts, Culture and Film 2, № 1 (2025): 25–28. https://doi.org/10.36676/jlacf.v2.i1.34.

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Abstract:
हिंदी उपन्यासों में स्त्री पात्रों की भूमिका समय के साथ उल्लेखनीय रूप से परिवर्तित हुई है। प्रारंभिक उपन्यासों में जहाँ स्त्री की छवि एक संस्कारित, त्यागमयी और पारिवारिक दायित्वों तक सीमित नायिका के रूप में प्रस्तुत होती थी, वहीं आधुनिक उपन्यासों में वह एक स्वतंत्र विचारों वाली, आत्मनिर्भर, संघर्षशील और सामाजिक परिवर्तन की वाहक के रूप में उभरती है। इस तुलनात्मक अध्ययन में प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, शिवानी, मन्नू भंडारी, महादेवी वर्मा, मृदुला गर्ग, ममता कालिया, और मंजुला पद्मनाभन जैसी लेखिकाओं और लेखकों के उपन्यासों को केंद्र में रखकर यह विश्लेषण किया गया है कि स्त्री पात्रों की भूमिकाएं सामाजिक,
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Garg, Sushma. "Expression of love portrayed in Mannu Bhandari's story 'Shamshaan'." RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 7, no. 4 (2022): 104–8. http://dx.doi.org/10.31305/rrijm.2022.v07.i04.015.

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Abstract:
When the book Mannu Bhandari's best love stories was studied by the researcher, it was found that in the love made by his characters in the stories of Mannu Bhandari, a very lively and beautiful depiction of the social story truth, time truth, and craft truth of the society was expressed. Has happened. The story world of his love is very simple and meaningful, which exposes many links of human heart, how the worldly creature accepts the feeling of love in different forms. By the way, love in all her stories in this book is in different forms such as 'this is the truth', the emotional truth of
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गवळी, डॉ. शैलजा धोंडीराम. "ज्योत्स्ना मिलन की कहानी विधा में चित्रित नारी विमर्श।". International Journal of Advance and Applied Research 11, № 2 (2023): 326–28. https://doi.org/10.5281/zenodo.14228302.

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Abstract:
हिंदी साहित्य जगत में आज तक अनेक विधाओं द्वारा नारी विमर्श पर विचार प्रस्तुत हुए हैं । उपन्यास, कहानी,  नाटक आदि अनेक विधाओं द्वारा नारी की समस्याएँ, उसकी विडंबना, उसकी निर्बलता पर आज तक काफी विस्तृत रूप से विमर्श हुआ है । इसमें पुरुष लेखकों का भी बहुत बडा योगदान है । इसमें प्रमुख रूप से रघुवीर सहाय जी ने नारी को बेचारी कहा है, तो कई महिला लेखिकाओं ने भी नारी की पीड़ा, उसका अंतर्द्वंद्व अपने लेखन द्वारा प्रकट किया है । जिसमें मन्नू भंडारी, उषा प्रियंवदा मैत्रेयी पुष्पा, मृदुला सिन्हा, मंजुला भगत, मृणाल पांडे, नासिरा शर्मा आदि लेखिकाओं ने भी नारी के मन की गहराइयों तक पहुँचने का प्रयास किया
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शेख, अब्दुल बारी अब्दुल करीम, та डॉ. दस्तगीर एस. देशमुख. "मेहरुन्निसा परवेज के उपन्यास साहित्य में अभिव्यक्त नारी एवं सामाजिक समस्याएँ". International Journal of Advance and Applied Research 5, № 35 (2024): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.13855501.

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Abstract:
 सारंश:     साहित्य में अभिव्यक्ति का सबसे सशक्त माध्यम उपन्यास को माना जाता है I इस साहित्यिक विधा में मनुष्य जीवन को विभिन्न कोणों से देखा और जाँचा जाता है I मन्नू भंडारी के अनुसार- “उपन्यास समस्त साहित्य का आधुनिक युग है I वह अनादिकाल से चली आनेवाली साहित्यधारा का आज है I आधुनिक काल है I आज उपन्यास निर्विवाद रुप से सर्वाधिक लोकप्रिय साहित्यिक विधा है I”१  उपन्यास का सम्बन्ध यथार्थ से होता है तथा तथ्य से नहीं I उपन्यास के सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक,तिलिस्मी, जासूसी, आंचलिक, यथार्थवादी, ऐतिसाहिक आदि अनेक प्रकार है I आज का युग संघर्ष युग है I हर किसी को
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दया, शंकर यादव प्रीती यादव. "मधु काँकरिया कृत 'सेज पर संस्कृत' उपन्यास में चित्रित धार्मिक आडम्बर". International Journal of Advance and Applied Research 9, № 6 (2022): 403–6. https://doi.org/10.5281/zenodo.7070815.

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Abstract:
<strong>सारांश</strong> इक्कीसवीं सदी की लेखिका मधु काँकरिया ने महिला लेखन परंपरा में अपना अनोखा स्थान स्थापित किया है। अपने साहित्यिक विषयों का चयन अन्य महिला लेखन की तुलना में चुनौती भरा किया है। केवल नारी विमर्श तक ही अपनी कलम नहीं चलाई तो, सामाजिक जीवन के मौलिक प्रश्नों को संवेदनशील रूप में न्याय देने का प्रामाणिक प्रयास करनेवाली सजग और वैज्ञानिक दृष्टी को अपनानेवाली लेखिका के रूप में आज हिंदी साहित्य के पाठकों के मन पर राज कर रही है। ऐसा ही चर्चित उपन्यास &#39;सेज पर संस्कृत&#39; है, जो सन २००८ में राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित हुआ है। प्रस्तुत उपन्यास में लेखिका ने जैन धर्म में ब
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Shobana, S. "मन्नु भंडारी के साहित्यिक अवदान की चर्चा". AAKHAR HINDI JOURNAL 1, № 2 (2021): 184–85. https://doi.org/10.5281/zenodo.15081267.

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प्रमिला, देवी. "आधुनिक हिंदी कविता और स्त्री-विमर्श". International Journal of Research - Granthaalayah 5, № 6 (2017): 693–95. https://doi.org/10.5281/zenodo.835393.

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Abstract:
हिंदी साहित्य के क्षेत्र में पुरूषों के साथ-साथ नारी साहित्यकारों ने भी अपनी बहुमूल्य कृतियों से उल्लेखनीय योगदान दिया है । यहाँ अतीत भारत के इतिहास के पृष्ठ भारतीय महिलाओं की विशिष्ट कृतियों से भरे पड़े हैं । उस समय उन्हें पुरूषों के समान शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिलता था । कालांतर में समाज में कुप्रथाएँ बढ़ने लगी । देश की आज़ादी के साथ-साथ स्त्रियों की आज़ादी का भी अपहरण हुआ । इसमें उनसे समानता और शिक्षा का अधिकार भी छीन लिया गया । आधुनिक युग में नवजागरण के साथ ही नारियों की शिक्षा दीक्षा शुरू हुई । साहित्य की सभी विधाओं पर नारियों ने कलम चलाई है । आधुनिक कालीन कवियों ने मध्य युग की नारिय
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शेख, रशीद डॉ. शेख मोहसीन. "समकालीन हिंदी लेखिकाओं में सूर्यबाला का योगदान". International Journal of Advance and Applied Research 5, № 35 (2024): 152–53. https://doi.org/10.5281/zenodo.13859270.

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Abstract:
शोध सार :&nbsp;हिंदी साहित्य में 'समकालीन साहित्य' का महत्त्वपुर्ण स्थान रहा है। समकाल की शुरूआत सन 1965 ई. के बाद मानी गयी। नई कहानी के अंत में ही समकाल का बिजारोपन हो गया था। समकाल को समसामायिक भी कहा जाता है। समकाल याने "उस समय या कालखण्ड में होनेवाली घटना या प्रवृत्ति या एक ही कालखंड में जी रहे व्यक्ति'। अन्य व्याख्याओंसे यह व्याख्या सरल &nbsp;और आसान हैं।&nbsp; &nbsp; समकालीन हिंदी लेखकों के साथ हिंदी लेखिकाओं का योगदान अत्यंत महत्त्वपुर्ण रहा है। इन लेखिकाओंने अपने यथार्थ विश्व को समाज के सन्मुख 'दो टुक' लेखनी से दर्शाने का कार्य किया। वह अपने दु:ख, दर्द को छिपाते नही तो आम जनता के दरबार
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शेख, रशीद डॉ. शेख मोहसीन. "समकालीन हिंदी लेखिकाओं में सूर्यबाला का योगदान". International Journal of Advance and Applied Research 5, № 35 (2024): 152–53. https://doi.org/10.5281/zenodo.13859321.

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Abstract:
शोध सार :&nbsp;हिंदी साहित्य में 'समकालीन साहित्य' का महत्त्वपुर्ण स्थान रहा है। समकाल की शुरूआत सन 1965 ई. के बाद मानी गयी। नई कहानी के अंत में ही समकाल का बिजारोपन हो गया था। समकाल को समसामायिक भी कहा जाता है। समकाल याने "उस समय या कालखण्ड में होनेवाली घटना या प्रवृत्ति या एक ही कालखंड में जी रहे व्यक्ति'। अन्य व्याख्याओंसे यह व्याख्या सरल &nbsp;और आसान हैं।&nbsp; &nbsp; समकालीन हिंदी लेखकों के साथ हिंदी लेखिकाओं का योगदान अत्यंत महत्त्वपुर्ण रहा है। इन लेखिकाओंने अपने यथार्थ विश्व को समाज के सन्मुख 'दो टुक' लेखनी से दर्शाने का कार्य किया। वह अपने दु:ख, दर्द को छिपाते नही तो आम जनता के दरबार
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Pinki. "मन्नू भंडारी के कथा साहित्य में स्त्री चेतना का मूल्यांकन". 3 березня 2023. https://doi.org/10.5281/zenodo.7878775.

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Abstract:
मन्नू भंडारी एक उत्तराखंड के लेखक हैं जिन्होंने अपनी कहानियों और कथाओं के माध्यम से स्त्री चेतना को बढ़ावा दिया है। उनकी कहानियों में अक्सर स्त्रियों को मुख्य चरित्र के रूप में दर्शाया गया है जो समाज की परंपराओं और नैतिकता के अनुसार नहीं बरतती हैं और अपने अधिकारों के लिए लड़ती हैं।&nbsp; मन्नू भंडारी की कहानियों में स्त्रियों को उनके संघर्षों और दुखों का सामना करना पड़ता है। उनकी कहानियों में स्त्रियों को अक्सर पुरुषों से लड़ना पड़ता है जो उनके अधिकारों को लेकर उनसे बहस करते हैं। उनकी कहानियों में स्त्रियों को विभिन्न तरीकों से असमानता का सामना करना पड़ता है जैसे कि उनकी शादी और परिवार के अधिक
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रमेश, कुमार गुप्ता. "वर्तमान का राजनैतिक परिदृश्य और मन्नू भण्डारी का उपन्यास महाभोज". Shrinkhla Ek Shodhparak Vaicharik Patrika XI, № I (2023). https://doi.org/10.5281/zenodo.10627970.

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Abstract:
This paper has been published in Peer-reviewed International Journal &quot;Shrinkhla Ek Shodhparak Vaicharik Patrika&quot;&nbsp; P: ISSN NO.&nbsp;2321-290X,&nbsp;E: ISSN No.&nbsp;2349-980X VOL.- XI , ISSUE- I September&nbsp; - 2023 https://www.socialresearchfoundation.com/new/publish-journal.php?editID=7220 Publisher : Social Research Foundation, Kanpur (SRF International)
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-, Jyoti Sharma. "आपहुंदरी: स्वतंत्र-लेखन का स्त्री विमर्श". International Journal For Multidisciplinary Research 6, № 3 (2024). http://dx.doi.org/10.36948/ijfmr.2024.v06i03.22413.

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Abstract:
आत्मकथा लेखन का अर्थ ही है- सत्य की कसौटी पर खरा उतरना, जीवन में घटित तमाम घटनाओं को सत्य के तराजू पर तोलते हुए वर्णित करना और जब यह वर्णन कोई महिला बड़ी बेबाकी के साथ, सभी वर्जनाओं को तोड़ कर करती है तो एक क्रांति का उद्भव होता है। ऐसा उद्भव देखने को मिलता है जब बीसवीं सदी के अन्तिम दशक पर मौन तोड़ती स्त्रियाँ दुर्गम राहों से गुजरतें हुए पढ़ लिखकर साहित्यकार बनती है। इनमें से कुछ ऐसी साहसिक स्त्रियाँ भी हुई है जो अपने जीवन के संघर्ष, पीडा, अन्याय, शोषण के साथ-साथ स्त्री-अस्तित्व, स्त्री-अधिकार स्त्री-स्वतंत्रता को आत्मकथा-साहित्य के माध्यम से बयां कर एक नई जमीन तैयार कर रही हैं। हिन्दी साहित्य
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-, Dr Ranjana Dholakia. "Women's Discourse in Prabha Khaitan's Prose Literature: A Political Perspective." International Journal For Multidisciplinary Research 5, no. 6 (2023). http://dx.doi.org/10.36948/ijfmr.2023.v05i06.11530.

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Abstract:
हिन्दी कथा साहित्य में स्त्री विमर्श जिसमें नारी जीवन की अनेक समस्याएँ देखने को मिलता है। हिन्दी साहित्य में छायावाद काल से स्त्री विमर्श का जन्म माना जाता है। प्रेमचंद से लेकर आज तक अनेक पुरुष लेखकों ने स्त्री समस्या को अपना विषय बनाया लेकिन उस रूप में नहीं लिखा जिस रूप में स्वयं महिला लेखिकाओने लिखी है । अतः स्त्री विमर्श की शुरुआती गूंज पश्चिम में देखनेको मिला। सान 1960 ई के आसपास नारी सशक्तिकरण ज़ोर पकड़ी जिसमें चार नाम चर्चित है । उषा प्रियम्वदा , कृषणा सोबती , मन्नू भण्डारी एवं शिवानी आदि लेखिका ओं ने नारी मन की अन्तद्रवन्दवों एवं आप बीती घटनाओं को उकरेना शुरू किए और स्त्री विमर्शएक जवलंत
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Chouhan, Manish, та Renu Sharma. "लोकदेवता बाबा रामदेवजी को अर्पित हस्तशिल्पिय घोड़ों का कलात्मक विश्लेषण". ShodhKosh: Journal of Visual and Performing Arts 3, № 2 (2022). http://dx.doi.org/10.29121/shodhkosh.v3.i2.2022.226.

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Abstract:
राजस्थान की धरती लोक कलाओं और लोकदेवताओं की जननी के रूप में सदैव विश्व प्रसिद्ध रही है। पश्चिमी राजस्थान के लोक देवता बाबा रामदेवजी अपने चमत्कार के लिए प्रसिद्ध रहे हैं। भक्त अपने किसी विशेष कार्य की पूर्ति के लिए बाबा रामदेवजी से प्रार्थना करते हैं। मन्नत पूरी होने पर भक्त अपनी श्रद्धा के अनुसार कपड़े से बने घोड़े चढ़ाते हैं। इसी कड़ी में जोधपुर जिले के प्रताप नगर क्षेत्र में बाबा रामदेवजी को कपड़े से लेकर विभिन्न प्रकार के छोटे-बड़े कलात्मक घोड़े चढ़ाने का काम किया जा रहा है. घोड़े बनाने का यह काम जोधपुर ही नहीं जैसलमेर, रामदेवरा और पोकरण में भी किया जा रहा है. घोड़ों को घास की छप्पर, सफेद औ
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बज्राचार्य Bajracharya, बाबुराजा Baburaja. "सप्तविधानुत्तर पूजा Saptavidhanuttar Puja". Voice of Culture, 28 листопада 2022, 118–30. http://dx.doi.org/10.3126/voc.v9i1.49885.

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Abstract:
बौद्ध धर्ममा, जहाँ जहाँ गयो त्यहाँ त्यहाँ कै संस्कृति र परम्परा मिसिएर स्थानअनुसारकोस्वरुप पाउँदछौ । जस्तैः चाइनिज, जापानिज, श्रीलंकन, थाइ, ताइवानी, बर्मेली,भुटानी, कोरियन आदि बुद्धधर्म भनी नामाकरण र व्यवहारमा अभ्यासहरु भइ राख्दछ। स्थानीय संस्कृति तथा परम्परासहित भएकाले एक अर्कासँग भिन्नता ठाउँ विशेषका बौद्धमतमा पाइन्छ । नेपालमण्डलको नेवाः बुद्धधर्म बज्रयान परम्पराअनुसार अनुशरण गर्दै अविछिन्न रुपले चल्दै आएको परम्परा हो । यस परम्पराको मूलध्ये भनेकै प्राणीको लागि हित हुने कार्यगरी पारमिता धर्महरु पुरा गर्दै आफूसँग भएको ज्ञेयावरण तथा क्लेशावरणहरुलाई क्रमश: क्षय गर्दै अन्तमा बुद्धत्व प्राप्तगर्नु
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