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Journal articles on the topic 'मनुस्मृति'

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1

तिवारी, डाॅ॰ ममता. "स्मृतियों में एक ‘‘मनुस्मृति’’". International Journal of Advanced Academic Studies 1, № 1 (2019): 124–25. http://dx.doi.org/10.33545/27068919.2019.v1.i1a.299.

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2

कुमारी, स्वीकृति. "अतीत का अनावरणः मनुस्मृति में तृतीय लिंग आख्यान". International Journal of Political Science and Governance 7, № 1 (2025): 182–83. https://doi.org/10.33545/26646021.2025.v7.i1c.444.

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3

श्रीवास्तव, पल्लवी, та श्रीमती सुषमा पाठक. "’’भारतीय समाज में पुरूष घरेलू हिंसा का अध्ययन’’". Humanities and Development 18, № 02 (2023): 12–16. https://doi.org/10.61410/had.v18i2.136.

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Abstract:
किसी भी देश के नागरिकां े की जब चर्चा की जाती है तो शब्द से उभय रूप में महिला औरपुरूष दाने ां का बोध होता है। किसी समाज की प्राथमिक ईकाई परिवार मानी जाती है और परिवार कोचलाने में महिला और पुरूष की भि मका बराबर की हाते ी ह।ै वे गाडी के उस दा े पहिए के समान होतेहै, जिसके बराबर न होने पर गाड़ी सीधी दिशा मे आगे नही बढ़ सकती है। बात जब मानव अधिकारोंकी की जाती है तो बर्बस ही महिला व पुरूष समान अधिकार प्राप्त माने जाते है,ं लेकिन जब बातभारत वर्ष की, की जाती है तब अधिकार प्राप्त नारी का एक चेहरा उभरकर सामने आता है। वजहसाफ है मनुस्मृति में भारतीय नारी को शक्ति स्वरूप समझा जाता था। वर्तमान समय में भी नवरा
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4

शर्मा, पवन कुमार. "मनुस्मृति और भारतीय ज्ञान परम्परा में विधि न्याय का आत्मतत्त्व". International Journal of Sanskrit Research 11, № 2 (2025): 34–36. https://doi.org/10.22271/23947519.2025.v11.i2a.2585.

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5

चौरसिया, रवि कुमार. "ग्रामीण भारत में महिला सशक्तिकरण". Humanities and Development 16, № 1-2 (2021): 65–69. http://dx.doi.org/10.61410/had.v16i1-2.14.

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Abstract:
प्राचीनकाल से ही भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता के विकास में महिलाओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इसका प्रारम्भिक स्वरूप हमें वैदिक संहिताओं से प्राप्त होता है, जहां पर नारी के अनेक रूपों का वर्णन किया गया है। धर्मशास्त्रों में भी नारी के प्रति प्रशंसा युक्त विचार व्यक्त किए गये हैं। मनुस्मृति में तो स्पष्ट कहा गया है कि जहां स्त्रियों की पूजा होती है वहां देवता रमण करते हैं तथा जहां स्त्रियों की पूजा नहीं होती है वहां के सभी कार्य व्यर्थ हो जाते हैं।
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6

डॉ.श्रीधर, आघाव. "स्वामी दयानंद सरस्वती यांचे राजकीय विचार". International Journal of Advance and Applied Research S6, № 7 (2025): 300–305. https://doi.org/10.5281/zenodo.14792734.

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Abstract:
स्वामी दयानंद सरस्वती यांनी प्रत्यक्ष राजकारणात सहभाग जरी घेतला नसला तरी देखील एक राजकीय विचारवंत या नात्याने राजकीय सिद्धांताचे प्रतिपादन त्यांनी केले आहे. तत्कालीन राजकीय समस्यांचा अभ्यास करून त्यावर उपाययोजना सुचवण्याचे कार्य त्यांनी केलेले आहे. तत्कालीन परिस्थितीमध्ये भारतात राजकीय गुलामगिरी चे परिणाम त्यांना अवगत होते. त्यामुळेच त्यांनी सत्यार्थ प्रकाश आणि ऋग्वेदादीभाष्य भूमिका या सारख्या धार्मिक ग्रंथामध्ये राजकीय विश्लेषण किंवा राजधर्म याचे स्पष्टीकरण केलेले दिसून येते. त्यांच्या राजकीय विचारांमध्ये एक सूत्रता दिसून येते. वैदिक राजतंत्र आणि गणतंत्र व्यवस्था तसेच मनुस्मृति याच्या व्यतिरि
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7

Dr., Poornima Devendra Bairagi. "महिला अधिकार एवं संवैधानिक प्रावधान :एक अध्ययन". 'Journal of Research & Development' 15, № 13 (2023): 205–7. https://doi.org/10.5281/zenodo.8149712.

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Abstract:
“नारी  तू नारायणी, से लेकर .....  “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः तक”  ।  “शोचन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम्”  ....से लेकर … “जामयो यानि गेहानि शपन्त्यप्रतिपूजिताः।  तानि कृत्याहतानीव विनश्यन्ति समन्ततः॥ तक  “तस्मादेताः सदा पूज्या भूषणाच्छादनाशनैः ।   भूतिकामैर्नरैर्नित्यं सत्कारेषूत्सवेषु च”॥ से लेकर , “सन्तुष्टो भार्यया भर्ता भर्त्रा भार्या तथैव च । यस्मिन्नेव कुले नित्यं कल्याणं तत्र वै ध्रुवम्” ।। तक   मनुस्मृति के अध्याय 3 के उपरोक्त  श्लोक   म
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मिश्रा, आशा. "पुरातन में निहित नवीनता: भारतीय ज्ञान परंपरा का सामाजिक और शैक्षिक योगदान". Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education 22, № 01 (2025): 477–83. https://doi.org/10.29070/adcd6897.

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Abstract:
भारतीय ज्ञान वेदों, उपनिषदों, स्मृतियों, लोककथाओं और पारंपरिक प्रथाओं से समृद्ध है, जो शासन, नैतिकता, पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक संरचना और आध्यात्मिक ज्ञान सहित विभिन्न विषयों को समाहित करती है। ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद न केवल धार्मिक ग्रंथ हैं, बल्कि इनमें विज्ञान, गणित, चिकित्सा, खगोलशास्त्र और दर्शन के गहरे बीज भी निहित हैं। महाभारत, रामायण, मनुस्मृति, कौटिल्य का अर्थशास्त्र, चरक और सुश्रुत संहिता जैसे ग्रंथों ने राजनीति, समाजशास्त्र, अर्थव्यवस्था और चिकित्सा विज्ञान में अद्वितीय योगदान दिया। इन ग्रंथों में पुरातन में ही नवीनता निहित है। भारत की सामाजिक संरचना — वर्ण, आश्रम, जाति
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डॉ., रीता मौर्या. "भारत में सामाजिक अनुसंधान के समक्ष चुनौतियाँ: एक विश्लेषण". International Journal of Advance Research in Multidisciplinary 1, № 1 (2023): 655–57. https://doi.org/10.5281/zenodo.13744774.

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Abstract:
जिज्ञासा और ज्ञान की खोज से प्रेरित मनुष्य लगातार विभिन्न घटनाओं के पीछे के कारणों को जानने की कोशिश करता रहता है, चाहे वे प्राकृतिक हों या सामाजिक। सामाजिक घटनाएँ, जो स्वाभाविक रूप से जटिल होती हैं, उनके अंतर्निहित कारणों को जानने के लिए वैज्ञानिक जाँच के अधीन होती हैं। नए और मौजूदा सिद्धांतों को मान्य करने और उनका पता लगाने में शोध एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सामाजिक अनुसंधान एक व्यवस्थित और वैज्ञानिक पद्धति है जिसका उद्देश्य अनुभवजन्य जाँच के माध्यम से सामाजिक वास्तविकताओं को समझना और उनका विश्लेषण करना है। हमारे देश में सामाजिक अनुसंधान की एक समृद्ध ऐतिहासिक परम्परा रही है जिसने मनुस्म
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गौरांग, चरण राउत. "बासुदेव सुनानी की कविताओं में दलित स्त्री जीवन". International Journal of Advance and Applied Research 10, № 6 (2023): 133–35. https://doi.org/10.5281/zenodo.8318573.

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Abstract:
समाज में स्त्री का महत्वपूर्ण स्थान है। स्त्री मानव समाज का निर्माण और विकास करती है। अतः सामाजिक दृष्टि से नारी की महत्ता स्वयंसिद्ध है। किन्तु इन सबके बावजूद भारतीय समाज में पुरूष का वर्चस्व रहा। नारी, पुरूष सत्तात्मक समाज में पुरूषों के हाथ में कठपुतली एवं भोग विलास का साधन मात्र बनकर रह गयी। उसकी निजी तथा सामाजिक स्थिति दयनीय हो गयी है। सामाजिक बंधनों में वह बुरी तरह जकड़ गई। समाज के सारे धर्म, नीति, नियम केवल नारी के लिए ही बने हैं। मनुस्मृति में नारी को नरक कहा गया है। उनके चरित्र पर आरोप लगाते हुए उन्हें हमेशा नीचा दिखाया जाता है। मनु स्त्री के बारे में कहता है “स्त्रियां बुद्धिमा
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Parmar, Yogeshkumar R. "Women Empowerment." International Journal of Management and Development Studies 12, no. 5 (2023): 14–18. http://dx.doi.org/10.53983/ijmds.cpi2023.01.003.

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Abstract:
Yatra naryastu pujyante ramante tatra devatah.
 Yatraitastu na pujyante sarvastatrafalah kriya. Manusmriti 3/56.
 Means
 Where women are worshipped, deities reside there and where women are not worshipped, they are not respected, all the good deeds done there become fruitless.
 In our Vedic period Indian society, women were worshiped as goddesses. That's why our unbroken India was known for intelligent women. Over time, this condition of women declined and by the time of medieval period, this decline reached its peak. Even after India's independence in 1947, today women are
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Kaivart, Aarti, and Satish Chandra Kaivart. "Panch Mahayagya – A Mode of Spiritual Counselling." Interdisciplinary Journal of Yagya Research 7, no. 2 (2024): 01–05. https://doi.org/10.36018/ijyr.v7i2.125.

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Abstract:
In Sanatan Hindu Dharma, Yagya holds great significance and is considered a prime symbol of Indian culture. It is impossible to imagine our daily lives without Yagya. Maharishi Dayanand, emphasizing the importance of the five great Yagyas (Pancha Mahayagya) for a successful daily life, elaborated on them in detail in *Satyarth Prakash*. The Matsya Purana also states that one who performs Yagya selflessly surely attains the Supreme Being (Parabrahman). According to Pt. Shriram Sharma Acharya, by performing the Pancha Mahayagya, consuming the offerings of Yagya (Yagya-shishta), one can become fr
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डॉ., अरूण पेंटावार. "स्वामी दयानंद सरस्वती यांचे राजकीय तत्वज्ञान". International Journal of Advance and Applied Research S6, № 7 (2025): 178–82. https://doi.org/10.5281/zenodo.14791682.

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Abstract:
<em>आधुनिक भारताच्या राजकीय विचारांच्या इतिहासात स्वामी दयानंद सरस्वती यांनी एक अद्वितीय स्थान व्यापलेले आहे. मुख्यतः ते राजकीय विचारवंत नव्हते पण त्यांनी केलेल्या सामाजिक व धार्मिक सुधारणेच्या कार्यातून व त्यांच्या समग्र तत्वज्ञानातून राजकीय विचार पुढे आले आहेत. दयानंद सरस्वती यांचे राजकीय विचार त्यांच्या &ldquo;सत्यार्थ प्रकाश&rdquo; या ग्रंथामधून समोर आले आहेत. दयानंद सरस्वती यांनी राज्याचा सिद्धांत, शासनाचे स्वरूप, आर्यावृत्त कल्पना</em><em>, लोकशाही, कायद्याचे राज्य, सरकारची कार्ये, ग्राम प्रशासन, सत्ता विभाजन यासारख्या राजकीय संकल्पनांचे वर्णन केलेले आहे.त्यांचे राजकीय विचार हे वेद, महाभ
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Ray, Samiran. "जनकल्याणे नीतिशतकस्य माहात्म्यम् (The Greatness of Nītiśataka in the welfare of Citizen)". Kiraṇāvalī XIV, № 3&4, JULY- DECEMBER 2022 (2022): 396–400. https://doi.org/10.5281/zenodo.7930480.

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Abstract:
काव्यस्य साहित्यस्य वा मूलभूते प्रयोजने द्वे, अलौकिकानन्दानुभूतिः शिक्षा च। मनुष्याणां सर्वतः उन्नतेः प्रयत्नस्य पूर्णप्रतिफलनं संस्कृतसाहित्ये परिलक्ष्यते। प्राचीनभारतीयसभ्यतायाः संस्कृतेश्च समुन्नायको वेदवेदाङ्गादिः शास्त्रम्। मनुष्यजीवनस्य उत्कर्षः अपकर्षश्च एतेषां शास्त्राणामुपरि आधारितः। अस्मिन् मनुष्यजीवने केन सह कीदृशः व्यवहारः काङ्क्षितः, किं कर्तव्यम्, किमकर्तव्यम्, कः सन्मार्गः, कण्टकाकीर्णः मार्गः कः, कस्मात् आदर्शजीवनस्य प्राप्तिर्भवति &ndash; एतेषां प्रश्नानां निश्चितं निराकरणमस्ति नीतिशास्त्रे। कविना भर्तृहरिणापि शतकत्रये स्फुटतया अनुरूपः प्रयासः क्रियते। शतकत्रयान्तर्गतः शृङ्गार
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वर्मा, रमेश चन्द. "मनुस्मृति की सार्वभौमिकता". Anthology The Research 8, № 12 (2024). https://doi.org/10.5281/zenodo.10848701.

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Abstract:
This paper has been published in Peer-reviewed International Journal "Anthology The Research"&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; URL : https://www.socialresearchfoundation.com/new/publish-journal.php?editID=8782 Publisher : Social Research Foundation, Kanpur (SRF International)&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; Abstract : &nbsp;&lsquo;&lsquo;मनुर्भव जनया दैव्यम् जनम्&rsquo;&rsquo;[01]&nbsp;यह आर्षवाक्य मनु और जन पद को पर्याय के रूप में प्रस्तुत करता है। इनमें&nbsp;&nbsp;&l
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Mrs., Jyothi U. "याज्ञवल्क्यस्मृतौ प्रतिपादिताः अंशाः". 24 жовтня 2022. https://doi.org/10.5281/zenodo.7244165.

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Abstract:
स्मृत<strong>य</strong>: <strong>बहु प्रकारा</strong>: <strong>सन्ति। &nbsp;तत्र प्रमुखा</strong><strong>: - </strong><strong>मनुस्मृति</strong><strong>:, </strong><strong>अत्रिस्मृति</strong><strong>:, </strong><strong>विष्णुस्मृति</strong><strong>:, </strong><strong>हारीतस्मृति</strong><strong>:, </strong><strong>याज्ञवल्क्यस्मृति</strong><strong>:, </strong><strong>उशनास्मृति</strong><strong>:, </strong><strong>अङ्गिरास्मृति</strong><strong>:, </strong><strong>यमस्मृति</strong><strong>:, </strong><strong>आपस्तम्भ स्मृति</strong><strong>:, </strong><strong>संवर्तस्मृति</strong><strong>:, </s
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Mishra, Anuj Kumar. "मनु के राजधर्म की प्रासंगिकता". 31 березня 2020. https://doi.org/10.5281/zenodo.15570345.

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Abstract:
राज्य को समाज में व्यवस्था स्थापित करने का लक्ष्य प्राप्त करना होता है। इस दृष्टि से राज्य समाज के अभ्युदय और निःश्रेयस की प्राप्ति का साधन है। भारत एक सनातन संस्कृति का वाहक राष्ट्र है। यही सनातनता शाश्वत के युगानुकूल प्रकटीकरण का हेतु सदैय रही है। इसे मनु भगवान, भगवान बुद्ध, महावीर स्वामी, भगवान शंकराचार्य एवं मध्यकालीन संत परम्परा में मूर्त रूप प्रदान किया गया। बौद्धों के अति-अहिंसावाद से प्रारम्भ और फिर सम्यक दंडनीति के अमाय से पिछले एक हजार साल से भारतीय समाज निरन्तर क्षत् विक्षत किया जाता रहा है। प्रथम चरण मुस्लिम आततायी तंत्र का था, जिसने तलवार के जोर पर भारतीय संस्कृति को नष्ट करने का
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डाॅ राधिका देवी. "भारत में स्त्रियों की दषा एवं उसमें सुधार". International Journal of Advanced Research in Science, Communication and Technology, 30 грудня 2022, 911–15. http://dx.doi.org/10.48175/ijarsct-9305k.

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Abstract:
मनुस्मृति के अनुसार भारतीय समाज में यह मान्यता रही है कि-‘‘जहाँ नारी को पूज्य माना जाता है, वहाँ देवताओं का निवास होता है और जहाँ उसे पूज्य नहीं माना जाता, वहाँ सत्र कार्य निष्फल होते हैं,’’ परन्तु इसके होते हुए भी भारत में नारी की स्थिति वैसी नहीं है, जैसी होनी चाहिए भारतीय समाज में नारी की स्थिति की विवेचना इन शीर्षकों में किया जा सकता है। (1) पुरूष की अपेक्षा परिवार में स्त्री को कम महत्व-भारत में परिवार का रूप पितृ सत्तात्मक है, जिसमें परिवार में पुरूष (पिता) की चलती है तथा स्त्री (माता) को हर बात के लिए उसके अधीन रहना पड़ता है। (2) सामाजिक दृष्टि से स्त्री पर पुरूष का संरक्षण-भारतीय समाज म
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Omprakash, Kashyap. "बहुजन साहित्य की रूपरेखा ('बहुजन साहित्य की प्रस्तावना' के बहाने)". आखरमाला, 8 серпня 2016. https://doi.org/10.5281/zenodo.7265169.

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Abstract:
फारवर्ड प्रेस के&nbsp;वेब संस्करण की घोषणा हो चुकी थी. वह समयानुसार काम भी करने लगा था. बावजूद इसके &lsquo;फारवर्ड प्रेस&rsquo; द्वारा जून&mdash;2016 के बाद &lsquo;प्रिंट संस्करण&rsquo; के बंद होने की घोषणा मन में आशंका पैदा करने वाली थी. ऐसे में &lsquo;एफपी बुक्स&rsquo; की पहली खेप का आगमन बड़ा ही आह्लादकारी है. अपनी प्रतिबद्धता और वायदे पर खरा उतरने के लिए फारवर्ड प्रेस(अब एफपी बुक्स) के संपादक-द्वय आयवन कोस्का और प्रमोद रंजन चिर प्रशंसा के पात्र हैं. पत्रिका अपनी रीति-नीति में आरंभ से ही स्पष्ट रही है. हिंदी में बहुजन साहित्य की अवधारणा को बीच-बहस उतारने तथा तत्संबंधी प्रश्नों को लेकर उत्ते
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प्रा., डॉ. शैलेश विश्वनाथ त्रिभुवन. "विधवापुनर्विवाह आणि भारतरत्न धोंडो केशव कर्वे यांचे कार्य". 29 червня 2022. https://doi.org/10.5281/zenodo.6990742.

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Abstract:
<em>प्रस्तुत शोधनिबंधात प्राचीन </em><em>,मध्ययुगीन ,शिवशाही व पेशवाई कालखंड, ब्रिटीशांचा कालखंड,आणि स्वात्तत्र्यांनंतरचा कालखंड आणि आता आताचा आधुनिक ,जागतिकीकरणाचा ,संगणक युगाचा या कालखंडातील विधवा विवाह संबंधी चर्चा केली आहे .जो प्रश्न भृणहत्या,विवाह वय, बालविवाहाच्या समस्येपासून सुरु झाला तो पुढे&nbsp; बाला &ndash; जरठ विवाह ,सतीप्रथा, विधवापुनर्विवाह , विवाह संमती कायदा आणि विधवा विवाह अशा वेगवेगळ्या स्थित्यंतरे घेत सोडवला गेला आहे आणि आजही पूर्णत: सुटलेला आहे असे नाही.&nbsp; या सर्व स्थित्यतरात भारतरत्न महर्षी धोंडो कर्वे यांचे स्त्री उद्धरांसंबधीचे तसेच प्रतिकूल परिस्थितीत त्या काळातील&n
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