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Journal articles on the topic 'महिलाओं'

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प्रीति. "भारत में महिला सशक्तिकरण एक अध्ययनः महिला अधिकारों के सदंर्भ में". RECENT RESEARCHES IN SOCIAL SCIENCES & HUMANITIES 11, № 1 (2024): 117–21. https://doi.org/10.5281/zenodo.11001982.

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Abstract:
गोप संस्कृति के समय से ही भारतीय समाज मंे महिलाओं की सक्रियता और सम्मान सदैव आदरणीय रहे हंै, किंतु राज्य की बढ़ती हुई भूमिका और राजनीतिक हस्तक्षेपांे के कारण मानव ने मानव को ही अपने शोषण का शिकार बना दिया। जिसकी श्रंृखला परिवार से शुरू हुई, हांलाकि महिला और पुरुष का संबध्ंा पर निर्भरता और सक्रियता से है। जिसके कारण सृष्टि की रचना और उसका संरक्षण आज तक बना हुआ है, परंतु मानव के सत्ता संघर्ष के बीच महिला संवेदनशील स्थिति मंे पहंुच गई। संवैधानिक संस्थाआं े के विकास के बाद सामाजिक हुए सामाजिक सुधारो के कारण महिलाआं े की समझ मंे सक्रिय भागीदारी और मुख्य धारा मं े सक्रियता सिद्धांत के रूप से 20वी ं
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सचिन, कुमार, та कुमार टम्टा दीपक. "ग्रामीण क्षेत्रों के विकास में महिलाओं की भूमिका (जनपद अल्मोड़ा के विशेष संदर्भ में)". RECENT RESEARCHES IN SOCIAL SCIENCES & HUMANITIES 11, № 4 (2024): 83–88. https://doi.org/10.5281/zenodo.14840997.

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Abstract:
आज भारत की कुल आबादी में पुरुषों का प्रतिशत महिलाओं की अपेक्षा अधिक रहा है। हमारे देश की महिलाएं पुरुषों केसमान ही आर्थिक व राजनैतिक क्षेत्र में अपनी भूमिका निभा रही है। जहां-जहां पुरुष वर्ग काम करता है वहाँ-वहाँ महिलावर्ग भी काम कर रहा है हमारे देश की अधिकांश महिलाएँ किसी भी क्षेत्र में काम करने से पीछे नहीं हटी। सर्वाधिक महिलाश्रमशक्ति कृषि में लगी हुई है जबकि सेवा क्षेत्र में सबसे कम महिला श्रमशक्ति लगी हुई है यद्यपि यह स्थिति पुरुषश्रमशक्ति की भी है परंतु महिलाओं का प्रतिशत पुरुषों की तुलना में कृषि क्षेत्र में अधिक और सेवा क्षेत्र में कम है सामान्यतःसभी व्यवसायों अथवा उद्योगों को तीन व्या
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चौधरी, नीतू. "साइबर अपराध के युग में महिलाओं के समक्ष चुनौतियाँ". Shrinkhla Ek Shodhparak Vaicharik Patrika 11, № 8 (2024): H10—H16. https://doi.org/10.5281/zenodo.11209350.

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Abstract:
This paper has been published in Peer-reviewed International Journal "Shrinkhla Ek Shodhparak Vaicharik Patrika"                      URL : https://www.socialresearchfoundation.com/new/publish-journal.php?editID=8989 Publisher : Social Research Foundation, Kanpur (SRF International)  Abstract :  महिलाएँ किसी समाज के निर्माण का केन्द्र होती है। समाज के आगे बढ़ने में महिलाओं की उतनी ही महत्वपूर्ण भूमिका होती है जितनी की पुरूषों की। फिर भी भारतीय समाज में महिलाएँ एक लम्बे समय से अवमा
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अमिता, कृष्णा महातळे (विरुटकर). "पर्यावरण संरक्षण व संवर्धन में महिलाओं की भूमिका". International Journal of Advance and Applied Research 4, № 30 (2023): 100–102. https://doi.org/10.5281/zenodo.8394544.

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Abstract:
आज पुरे विश्व मे जिस मुद्दे पर चर्चा हो रही है उनमें पर्यावरण संरक्षण और महिला सशक्तीकरण  सबंधीत है।  8 मार्च को आंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है।  आज महिलाए स्वावलंबीत के साथ सशक्तीकरण की अद्वितीय मिसाल बनी है। 'पर्यावरण" मानवजाती के लिए एक अमुल्य वरदान है, मानव और प्रकृति के बीच गहरा नाता है। '5 जून' पूरा विश्व पर्यावरण दिवस मनाता है। पर्यावरण के प्रति जागृकता फैलाने के लिए यह दिवस मनाया जाता है। पर्यावरण संरक्षण और संवर्धन में महिलाओं ने अहम भूमिका निभाई है। भारतीय इतिहास का अध्ययन किया तो यह बात ज्ञान में आती है की वैदिक काल से ही महिलाएं पर्यावरण संरक
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कुमार, विनय, та सोनू सारण. "लखनऊ जिले के संदर्भ में महिला सशक्तिकरण में स्वयं सहायता समूहों की भूमिका पर एक जांच". Humanities and Development 19, № 02 (2024): 13–21. https://doi.org/10.61410/had.v19i2.183.

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Abstract:
यह पत्रा भारत में महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता का विश्लेषण करने का प्रयास करता है और महिला सशक्तिकरण के तरीकों और योजनाओं पर प्रकाश डालता है। सशक्तिकरण सामाजिक विकास की मुख्य प्रक्रिया है, जोमहिलाओं को ग्रामीण समुदायों के आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक सतत विकास में भाग लेने में सक्षम बनाती है।आज महिलाओं का सशक्तिकरण 21वीं सदी की सबसे महत्वपूर्ण चिंताओं में से एक बन गया है, लेकिन व्यावहारिक रूप से महिला सशक्तिकरण अभी भी वास्तविकता का एक भ्रम है। महिलाओं का सशक्तिकरण अनिवार्य रूप से समाज मेंपारंपरिक रूप से वंचित महिलाओं की आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक स्थिति के उत्थान की प्रक्रिया है। हम अपने दैनिक
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मौर्य, बाल गोविन्द, та प्रो मनोज कुमार मिश्रा. "ग्रामीण कार्यशील महिलाऐ पारिवारिक एवं वैवाहिक सामंजस्य". Humanities and Development 18, № 1 (2018): 71–75. http://dx.doi.org/10.61410/had.v18i1.115.

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Abstract:
इतिहास इस बात का साक्षी है कि भारतीय समाज परम्परागत रूप से पुरुष प्रधान रहा है। समाज में महिलाओं की प्रस्थिति सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक रूप से दयनीय रही है। महिलाऐं जीवन के प्रत्येक स्तर पर संघर्षरत रही है। शिक्षा के अधिकार से वंचित होते हुए भी पारिवारिक संस्कार का बोध उन्हें अपने पथ से कभी विपथ नहीं होने दिया। भारत कृषि प्रधान देश होने के साथ पुरुष सत्तात्मक समाज भी है जहाँ महिलाऐ घर की चाहरदीवारी में जीवन निर्वहन करती रही हैं। जातीय समीकरण में भी उच्च जाति की महिलाओं की अपेक्षा निम्न जातीय महिलाऐं अधिक स्वतंत्र रही हैं। स्वतंत्रता के पश्चात देश के सामाजिक, आर्थिक, एवं राजनैतिक विकास के परि
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शुक्ला, प्रगति. "महिला उद्यमिता एवं नेतृत्व". Humanities and Development 19, № 02 (2024): 54–58. https://doi.org/10.61410/had.v19i2.190.

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Abstract:
हमारी सनातन परंपरा में भारतीय नारी को शक्ति स्वरूपा व शक्ति का पुंज माना गया है। अतः स्त्री की शक्ति को चिन्हित करके ही भारत में सदा स्त्रियों को नमन किया गया और महिलाओं को आर्थिक, शैक्षिक तथा भावनात्मक रूप से सजग व स्थिर बनाने का प्रयास सदैव किया गया। सन् 1991 में महिला उद्यमिता विकास कार्यक्रमों में महिलाओं को प्रशिक्षण व प्रोत्साहन देने का कार्य बहुत तेजी से बढ़ा, जबकि 1974 से 1978 में अन्तर्राष्ट्रीय महिला वर्ष घोषित किया जा चुका था। हालांकि भारत में अभी भी पुरुषों की तुलना में महिलाओं की उद्यम क्षेत्र में सहभागिता कम है। कारण आज भी पितृसत्तात्मक समाज, उत्पादन लागत उच्च, आर्थिक समस्याएं, या
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ओझा, डॉ. अजय कुमार. "भारतीय राजनीति में महिलाओं की भागीदारी". International Journal of Advance and Applied Research 5, № 44 (2024): 226–29. https://doi.org/10.5281/zenodo.14711465.

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Abstract:
<strong>सारांश</strong><strong>:-</strong> आधुनिक भारतीय राजनीति में कई ऐसी महिलाएं रही है, जिनकी ऐतिहासिक भूमिका से हम भलीभांति परिचित है। स्वतंत्रता के आंदोलों के दौरान से लेकर आजाद भारत में सरकार चलाने तक में महिलाओं की राजनीतिक भूमिका और पहल अहम रही है। बावजूद इसके जब राजनीति में महिला भागीदारी की बात आती है तो आंकड़े बेहद निराशाजनक तस्वीर पेश करते हैं। प्रत्यक्ष (एक्टिव पॉलिटिक्स में महिलाओं की भागीदारी) और अप्रत्यक्ष (बोटर्स के रूप में भागीदारी) दोनों स्तर पर ही भारी गैर-बराबरी से हमारा मुठभेड होता है। विश्वस्तर पर अगर भारत की एक्टिव पॉलिटिक्स में महिलाओं की स्थिति की बात करें तो भारत 19
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प्रियंका, प्रिया, та विश्वनाथ झा डॉ०. "निर्धनता का अनुसूचित जाति की महिलाओं के शिक्षा पर प्रभाव- एक अध्ययन". Journal of Research and Development 14, № 23 (2022): 48–50. https://doi.org/10.5281/zenodo.7546439.

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Abstract:
<strong>सारांश:-</strong> भारत में महिलाएं समाज के अधिक वर्चस्व वाले और उत्पीड़ित वर्ग का प्रतिनिधित्व करती हैं और उम्र भर उनकी उपेक्षा की जाती रही है। समाज में महिलाओं की स्थिति विभिन्न सामाजिक-आर्थिक कारकों द्वारा निर्धारित की जाती है। इन कारकों में रोजगार, शिक्षा, आय आदि शामिल हैं। भारत में महिला शिक्षा समाज के समग्र विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसके बावजूद अनुसूचित जाति की महिलाओं में शिक्षा का बहुत अभाव है। यह अधिकांश ग्रामीण क्षेत्र में व्यापक रूप से देखा जा सकता है। इसका सबसे बड़ा कारक निर्धनता एवं जागरूकता को माना गया है। जिस कारण अनुसूचित जाति की महिलाएं शिक्षा से वंचित रहने
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Bajpai, Neeta. "महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के विविध रूप : एक विवेवचन". RESEARCH EXPRESSION 6, № 8 (2023): 68–77. https://doi.org/10.61703/vol-6vyt8_8.

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Abstract:
महिलाओं के प्रति हिंसा एकवैश्विक परिघटना है जो न केवल लगभग सार्वभौम है बल्कि समसामयिक रुप से नॉर्वे स्वीडन डेनमार्क के अत्यधिक उन्नत समाजोंसे लेकर रवाण्डा बुरूण्डी कांगो जायरे जैसे विकासशील और विकसित समाजो तक यह एक महत्वपूर्णसमस्या बनी हुई है । एक सनातन समस्या भी है अर्थात प्राचीन काल से लेकर आधुनिक कालतक की समस्या बनी हुई है। पुनर्जागरण के पश्चात महिला अधिकारों के विस्तार के साथ महिलाओंके प्रति सम्मान में यद्यपि वृद्धि हुई है लेकिन महिलाओं के प्रति हिंसा की समस्याबनी हुई है। तकनीकी के विकास और प्रसार के साथ महिलाओं के प्रति हिंसा की रिपोर्टिंगऔर गणना में यद्यपि वृद्धि हुई है तथापि हिंसा में ब
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बहादुर, शिवेंद्र. "दुर्ग - भिलाई नगरों की कार्यशील महिलाओं की व्यावसायिक संरचना: एक भौगोलिक अध्ययन". Journal of Ravishankar University (PART-A) 28, № 1 (2022): 36–43. http://dx.doi.org/10.52228/jrua.2022-28-1-4.

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Abstract:
प्रस्तुत अध्ययन का मुख्य उद्देश्य, छत्तीसगढ़ राज्य के दुर्ग - भिलाई नगरों की कार्यशील महिलाओं की व्यावसायिक संरचना का भौगोलिक अध्ययन करना है। इन नगरांे की कार्यशील महिलाओं के विस्तृत अध्ययन हेतु उद्देश्य पूर्ण दैव निदर्शन विधि के आधार पर विभिन्न कार्यों में संलग्न कार्यशील महिलाआंे से संबंधित जानकारियाँ साक्षात्कार एव ंअनुसूची के माध्यम से प्राप्त की गई। कार्यशील महिलाओ से संबंधित जानकारी उसके कार्यस्थल यथा- शासकीय एवं अशासकीय कार्यालय, शिक्षण संस्थानों, अस्पताल, दुकानांे, निर्माण स्थलों, गंदी बस्तियों में जा कर प्राप्त की गई। इस प्रकार दोनों नगरांे से कुल 1202 कार्यशील महिलाओं से जानकारी प्राप
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Kaur, Manpreet. "Women Empowerment in India: Emerging Dimensions." RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 8, no. 7 (2023): 188–90. http://dx.doi.org/10.31305/rrijm.2023.v08.n07.026.

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Abstract:
Women empowerment is the most talked about work of the present time. Through this, not only the prevalent evils are ending, but also the social and economic development of women is taking place at a rapid pace. Governments have developed various schemes for the all-round development of women. Along with this, laws have also been made to provide security to them. In order to stop the rapidly increasing crimes against women, the work of providing protection to them by making various types of laws has been done by the governments. Although the government is giving priority to education to raise t
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डॉ.सलमा, खमरोद्दीन शेख. "समाज में महिला सशक्तीकरण का योगदान". International Journal of Advance and Applied Research 2, № 19 (2022): 93–94. https://doi.org/10.5281/zenodo.7053778.

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Abstract:
स्त्री व पुरुष समाज रचना की गाडी के दो पहिए है जब तक ये दोनो पहिए सहजता, समता, समानता के साथ होकर आगे नही, बढते तब तक प्रगती और सही विकास संभव नही है | उन दोनो कोक समान रुप से गतिशील रहने से ही समाज का विकास होना संभव है |&nbsp; इस बारे में स्वामी विवेकानंदजी का कथन है &quot;जब तक महिलाओं की स्थिती में सुधार नही होगा तब तक विश्व का कल्याण नही हो सकता किसी भी पक्षी के लिए एक पंख से उडना असंभव है | &quot;भारतीय साहित्य में कवी ने सच ही कहा है कि नारी नर की खान है अर्थात नर का अस्तित्व नारी पर ही निर्भर है &quot;यह नार्यास्तु पुज्यते रमन्नि नत्र देवतां&quot; इसका अर्थ है जहॉ स्त्री की पूजा,आदर कि
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Kumar, Sandeep, and Chintu Kumari. "Participation of Dalit women in Bihar Politics." RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 8, no. 1 (2023): 28–31. http://dx.doi.org/10.31305/rrijm.2023.v08.n01.005.

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Abstract:
The presented research article investigates the participation of Dalit women in the politics of Bihar from different dimensions. In the decade of 80s, women in Bihar were conducting an organized and widespread movement against the increasing incidents of feudal exploitation, oppression, rape, dowry deaths. Politicization of women was also taking place in the course of these women's movement. She was beginning to understand the inequalities of class, caste and gender and was uniting women.&#x0D; Abstract in Hindi Language:&#x0D; प्रस्तुत शोध आलेख बिहार की राजनीति में दलित महिलाओं कि भागीदारी को
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कमलेश, कुमार देशमुख. "छत्तीसगढ़ के पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं की वर्तमान स्थिति का अध्ययन". INTERNATIONAL EDUCATION AND RESEARCH JOURNAL - IERJ 10, № 11 (2024): 71–72. https://doi.org/10.5281/zenodo.15607754.

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Abstract:
छत्तीसगढ़ के पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी एक महत्वपूर्ण पहलू रहा है। जो राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों के विकास एवं लोाकतांत्रिक प्रक्रियां को मजबूत बनाता है। जिससे महिला भागीदारी को प्रोत्साहन मिले वे आगे बढ़े तथा अन्य महिलाओं को आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा प्रदान करे। इस शोध पत्र का उद्देश्य छत्तीसगढ़ में पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं वर्तमान स्थिति उनकी भागीदारी योगदान तथा उन चुनौतियों का अध्ययन करना है जिनका छत्तीसगढ़ की महिलाएँ राज्य बनने के बाद कर रही है। यह अध्ययन क्षेत्रीय संवेदन सरकारी रिपोर्टो तथा संबंधित शोध पत्रोें के माध्यम से किया जा रहा है।
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सेठी, अर्चना, та ओमप्रकाश वर्मा. "छत्तीसगढ़ में स्व.सहायता समूह के माध्यम से महिलाओं के सामाजिक एवं आर्थिक सशक्तिकरण का अध्ययन (दुर्ग एवं राजनांदगांव जिला के विशेष संदर्भ में)". Journal of Ravishankar University (PART-A) 28, № 1 (2022): 14–25. http://dx.doi.org/10.52228/jrua.2022-28-1-2.

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Abstract:
वर्तमान भारतीय परिप्रेक्ष्य में विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र में महिलाओं ने अपने मेहनत और लगन के बल पर यह साबित कर दिया कि स्व सहायता समूह के साथ जुड़़कर एक नया मुकाम हासिल किया जा सकता है। प्रस्तुत अध्ययन में छत्तीसगढ़ के दुर्ग एवं राजनांदगांव जिले के स्व-सहायता समूह का महिलाओं के सामाजिक एवं आर्थिक सशक्तिकरण पर प्रभाव एवं संतुष्टि का अध्ययन किया गया है। दुर्ग जिले में स्व-सहायता समूह की सदस्यता से पूर्व 37.3 प्रतिशत महिलाएं सशक्त थी एवं स्व-सहायता समूह की सदस्यता के पश्चात 41.6 प्रतिशत महिलाएं सशक्त हो गई। राजनांदगांव जिले में स्व-सहायता समूह की सदस्यता से पूर्व 38.5 प्रतिशत महिलाएं सशक्त थी एवं स्
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अरविन्द, कुमार, та सीताराम सिंह डॉo. ""Impact Of Information Technology On Rural Women Empowerment : A Sociological Study" ग्रामीण महिला सशक्तिकरण का सूचना प्रौद्योगिकी पर प्रभाव : एक समाजशास्त्रीय अध्ययन". International Journal of Advance and Applied Research 10, № 4 (2023): 118–23. https://doi.org/10.5281/zenodo.7791039.

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Abstract:
&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; सूचना प्रौद्योगिकी, संचार साधन और समाचार के इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों ने घर के अंदर बैठी महिलाओं को भी प्रोत्साहित किया। देश की आधी आबादी में आए इस बदलाव से विकास की गति तेज हो रही है खेत में हल जोतने से लेकर चांद-सितारों का तिलिस्म तोड़ने तक, सड़क किनारे बैठकर पत्थर तोड़ने से लेकर रोजगार के नए क्षेत्रों की तलाश तक, आंगन में बैठकर चूल्हे-चौके की झंझटो से लेकर वैश्विक की गुत्थियाँ सुलझाने तक महिलाएं आज हर क्षेत्र में हैं। भारतीय समाज में स्त्री एक मौन उपस्थिति थी लेकिन, आज सूचना प्रौद्योगिकी की अहम बदलाव ने भारतीय संस्कृति की दुनिया में स्त्री को बेहद प्रख
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सोहन, सिंह, та शुक्ला ज्योति. "महिला सशक्तीकरण : पंचायती राज व्यवस्था में महिलायें". International Journal of Advance and Applied Research 10, № 6 (2023): 117–19. https://doi.org/10.5281/zenodo.8318538.

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Abstract:
पंचायती राज संस्थओं की अधिकांश महिलायें या तो अशिक्षित हैं या फिर आंशिक रूप से शिक्षित हैं जिससे समस्याओं को समझने एवं कार्यक्रमों को करने में समस्याओं का सामना करना पड़ता है । इससे महिलाओं में शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ी है । इसके साथ ही दायित्वों के प्रति गंभीरता तथा अपने विचारों को व्यक्त करने की क्षमता का विकास हुआ है । महिलाओं की राजनीतिक सहभागिता से स्थानीय जन समूहों को जोड़ना, आर्थिक&nbsp; स्वावलम्बन, एवं सामाजिक स्थिति में सुधर हुआ है । अतः स्पष्ट है कि संविधान का 73वां संशोधन अधिनियम महिला सशक्तीकरण का प्रगति पथ है । त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था के प्रत्येक स्तर पर महिलाओं का प्र
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अंजलि, देवी. "समाज में महिलाओं की स्थिति और बढ़ते अपराध, एक विश्लेषणात्मक अध्यन". RECENT RESEARCHES IN SOCIAL SCIENCES & HUMANITIES 11, № 4 (2024): 58–62. https://doi.org/10.5281/zenodo.14840726.

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Abstract:
सभी उम्र की महिलाएं वर्तमान में अपने अधिकारों के खिलाफ किसी न किसी तरह के अपराध का सामना कर रही हैं और सबसे बुरे तरीके से पीड़ित हैं। जितना अधिक हम ऐसी चीजों को होने देंगे<strong>, </strong>उतना ही वे बढ़ती रहेंगी। हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि हमारे देश में महिलाओं की सुरक्षा एक ऐसी चीज है जिसके बारे में हम हर समय बात करते हैं।<strong> </strong>पिछले कुछ वर्षो में महिला सुरक्षा का स्तर लगातार गिरता जा रहा है। इसके पीछे कारण है लगातार होते अपराधों में वृद्धि। मध्यकालीन युग से लेकर <strong>21</strong>वीं सदी तक महिलाओं की प्रतिष्ठा में लगातार गिरावट देखी गयी है। महिलाओं को भी पुरुषों
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कर्दम, विकास चन्द, та सुजाता मैनवाल. "अतीत से वर्तमान समय तक भारतीय महिलाओं की दशा एवं दिशा". Anthology The Research 9, № 2 (2024): H46—H52. https://doi.org/10.5281/zenodo.12699267.

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Abstract:
This paper has been published in Peer-reviewed International Journal "Anthology The Research"&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; URL : https://www.socialresearchfoundation.com/new/publish-journal.php?editID=9131 Publisher : Social Research Foundation, Kanpur (SRF International)&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; Abstract : &nbsp;महिला एवं पुरुष प्रकृति द्वारा प्रदत्त संसार को अनमोल भेंट है। इसमें महिलाएं संसार में प्रकृति की सर्वोत्कृष्ट रचना है। अतीत से वर्तमान समय तक भारत
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Rajni, Yadav. "हिंदी पत्रकारिता के परिदृश्य में महिला पत्रकारों का प्रतिनिधित्व: एक विश्लेषणात्मक अध्ययन (Hindi Patrakarita ke paridishya mein Mahila Patrakaro ka Pratinidhitva: Ek vishleshanaatmak adhyayan)". SHODH SANCHAR BULLETIN 10, № 40 (2020): 170–75. https://doi.org/10.5281/zenodo.7817236.

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Abstract:
विभिन्न जनसंपर्क माध्यमों जैसे- टेलीविजन, रेडियो, समाचार-पत्र, पत्रिकाएं, इंटरनेट, सोशल मीडिया, सिनेमा, फिल्म आदि द्वारा महिला-विकास, महिला-शोषण, महिला-सशक्तिकरण, महिला-आरक्षण, लैंगिक असमानता आदि विशेष मुद्दों पर परिचर्चा, लेख, समाचार आदि का प्रकाशन एवं प्रसारण समय-समय पर किया जाता है। परंतु बात करें इन मीडिया संस्थानों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की तो आज भी महिलाएं पुरुषों की बराबरी नहीं कर पाईं हैं। भारतीय पत्रकारिता में महिलाओं का लिंगानुपात अत्यधिक कम है। चाहे वह प्रिंट मीडिया हो या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया या फिर सोशल मीडिया हो जिन मीडिया संस्थानों में महिला पत्रकार कुछ गिनी चुनी संख्या में म
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प्रमोद सिंह. "भारतीय राजनीति में महिलाओं की भूमिका: पंचायती राज के विशेष संदर्भ में". International Journal of Multidisciplinary Research in Arts, Science and Technology 2, № 10 (2024): 34–39. https://doi.org/10.61778/ijmrast.v2i10.88.

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Abstract:
भारत में महिलाओं की भूमिका राजनीति में लगातार बढ़ी है, और पंचायती राज संस्थाओं में उनका योगदान महत्वपूर्ण रहा है। 73वीं संविधान संशोधन (1992) के माध्यम से महिलाओं को पंचायतों में 33% आरक्षण मिला, जिससे उनके राजनीतिक सशक्तिकरण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए गए। इस संशोधन ने महिलाओं को पंचायतों के विभिन्न पदों पर प्रतिनिधित्व दिया, जैसे प्रधान, उप-प्रधान, और वार्ड सदस्य। इससे महिलाओं को ग्रामीण स्तर पर नेतृत्व का अवसर मिला, जिससे उनके सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक बदलाव की दिशा में सकारात्मक प्रभाव पड़ा। पंचायती राज संस्थाओं में महिला नेताओं ने अपने कार्यों से ग्रामीण विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य, स्
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माथनकर, सरला. "महिला स्वरोजगार समूहों के माध्यम से महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण का विश्लेषण: सैद्धांतिक शोध पत्र का खाका". Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education 21, № 7 (2024): 105–11. https://doi.org/10.29070/wjmert58.

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Abstract:
यह शोध पत्र महिला स्वरोजगार समूहों के माध्यम से महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण के प्रभाव और चुनौतियों का विश्लेषण करता है। स्वरोजगार समूहों ने ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने, आय के स्रोत बढ़ाने, और सामूहिक निर्णय लेने की प्रक्रिया में भागीदारी को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह अध्ययन सैद्धांतिक ढांचे पर आधारित है और स्वरोजगार समूहों के संगठनात्मक ढांचे, कार्यप्रणाली, और उनके आर्थिक और सामाजिक प्रभाव को समझने पर केंद्रित है। शोध में यह स्पष्ट किया गया है कि महिला स्वरोजगार समूह न केवल वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देते हैं, बल्कि महिलाओं को नेतृत्व और सामुदाय
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Pooja, Pokhariya. "पर्वतीय क्षेत्र की ग्रामीण गर्भवती महिलाओं की दृष्टि में परिवार में महिलाओं की स्थिति का अध्ययन - नैनीताल जिले के". International Journal of Scientific Development and Research 8, № 8 (2023): 751–56. https://doi.org/10.5281/zenodo.8373965.

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Abstract:
सारांश - नारी हमेशा से ही सामाजिक रचना और व्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा रही है। किसी भी क्षेत्र की प्रगति में पुरूषों के साथ-साथ महिलाओं की भूमिका अहम् रहती है। इसीलिए पर्वतीय क्षेत्रों में भी महिलाओं के विकास के बिना परिवार, क्षेत्र की उन्नति सम्भव नहीं है। उत्तराखण्ड में रोजगार के सीमित संसाधन होने के कारण पर्वतीय क्षेत्र के पुरूष वर्ग धनोपार्जन के लिए अपने क्षेत्र और परिवार को छोड़कर बाहरी क्षेत्रों मे जाने के लिए विवश है। इस स्थिति मे महिलाओं को दोहरी जिम्मेदारी निभानी पड़ती है। ऐसी स्थिति में पर्वतीय क्षेत्रों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पूर्ण रूप से महिलाओं पर ही निर्भर हो जाती है। उसे प्रा
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डाॅ०, कोमल प्रसाद. "महिलाओं के आर्थिक स्थिति के उन्नयन में स्व-सहायता समूह की भूमिका". Siddhanta's International Journal of Advanced Research in Arts & Humanities 2, № 1 (2024): 59–78. https://doi.org/10.5281/zenodo.13956319.

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Abstract:
&nbsp; &nbsp; &lsquo;स्व-सहायता समूह&rsquo; एक ऐसा माध्यम बनकर उभरा है जिसके जरिए महिलाएँ अपने समय का समुचित उपयोग कर आर्थिक और मानसिक रूप से स्वावलंबी बन रही हैं। ग्रामीण महिलाएँ इन समूहों से जुड़कर न केवल आर्थिक रूप से सशक्त हो रही हैं, बल्कि इससे उनमें स्वावलंबन की प्रवृत्ति भी बढ़ी है। स्व-सहायता समूह कार्यक्रम ग्रामीण अर्थव्यवस्था का अभिन्न अंग बनकर ग्रामीण महिलाओं के लिए वरदान साबित हो रहा है। इस कार्यक्रम की वजह से महिलाओं की स्थिति एवं दशा में सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक दृष्टिकोण से क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं। स्व-सहायता समूह के जरिए लघु वित्त प्राप्त करके महिलाएँ गरीबी, बेरोजगारी
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उपाध्याय, सुधीर कुमार, та नरेंद्र त्रिपाठी. "महिलाओं द्वारा सूचना का अधिकार का उपयोग: एक दशक का अध्ययन". Journal of Ravishankar University (PART-A) 27, № 1 (2021): 34–38. http://dx.doi.org/10.52228/jrua.2021-27-1-4.

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Abstract:
महिलाओं द्वारा सूचना का अधिकार का उपयोग विषय कोलेकर शोध कार्य किया गया है। एक दशक के अध्ययन के लिए वर्ष 2010 से लेकर 2019 तक के आंकड़ों का उपयोग किया गया है। छत्तीसगढ़ राज्य को आधार मानकर यह अध्ययन किया गया है। अध्ययन का निर्धारित उद्देश्य यह जानना है कि महिलाओं द्वारा सूचना का अधिकार का उपयोग किया जा रहा है या नहीं एव ंमहिलाएं सूचना का अधिकार को लेकर कितनी जागरूक हैं। इसके लिए छत्तीसगढ़ राज्य सूचना आयोग के वार्षिक प्रतिवेदन से प्राप्त आंकड़ों की व्याख्या की गई है। अध्ययन के लिए अंतर्वस्तु विश्लेषण प्रविधि का उपयोग किया गया। अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि महिलाएं सूचना का अधिकार का उपयोग कर रह
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प्रियंका, प्रिया, та विश्वनाथ झा डॉ. "अनुसूचित जाति की महिलाओं के शिक्षा एवं निर्धनता की स्थिति: एक अध्ययन". International Journal of Advance and Applied Research 3, № 7 (2022): 16–19. https://doi.org/10.5281/zenodo.7426295.

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Abstract:
इस आलेख में अनुसूचित जाति की महिलाओं के शिक्षा एवं निर्धनता की स्थिति का अध्ययन किया गया है। अनुसूचित जातियाँ, जिन्हें अछूतों के रूप में वर्गीकृत किया गया है, भारत की उच्च जातियों के नीचे मौजूद प्रतीत होती हैं। अनुसूचित जाति की महिलाएं भारतीय समाज में परंपरागत रूप से उदास और उपेक्षित हैं। वे आर्थिक पदानुक्रम में भी सबसे निचले पायदान पर हैं, जिनके पास अपनी खुद की कोई जमीन नहीं है। शिक्षा ही एक ऐसा हथियार है, जिससे समाज में अनुसूचित जाति की महिलाओं की स्थिति में सुधार किया जा सकता है। सरकारी और गैर-सरकारी एजेंसियों ने अनुसूचित जाति की महिलाओं के सुधार के लिए बहुत प्रयास, प्रावधान और आरक्षण किए ह
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डॉ., सी. अनुपा तिर्की. "भारत में महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी". INTERNATIONAL JOURNAL OF INNOVATIVE RESEARCH AND CREATIVE TECHNOLOGY 9, № 6 (2023): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.14435333.

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Abstract:
औपचारिक राजनीतिक संस्थाओं में महिलाओं की भागीदारी &rsquo;महिलाओं कि वर्तमान शक्ति एवं स्तिथि की शर्त ही नहीं बल्कि सूचक भी है, तथा महिलाओं के अधिकारों एवं विकास को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक भी है। महिलाओं के लिए निर्वाचन या राजनीतिक दलों, सामाजिक आन्दलोनो या प्रदर्शनो जैसे ओपचारिक राजनीतिक कार्यकलापों में भाग लेना पर्याप्त नहीं है। 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति तथा देश के विभाजन के साथ हुए खून खराबे तथा एक बड़ी जनसंख्या के विस्थापन के बाद 1950 तथा 1960 के दशक में धर्म निरपेक्ष, बहुलवादी, बहुधार्मिक तथा सांस्कृतिक रूप से समन्वित राजनीतिकव्यवस्था को बढ़ावा दिया गया। इस वातावरण तथा संवैधानिक गारंट
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Budhwala, Shweta, and Jyoti Joshi. "The Role of Ayushman Bharat Scheme in the Health Empowerment of Tribal Women: A Sociological Study." RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 10, no. 5 (2025): 186–95. https://doi.org/10.31305/rrijm.2025.v10.n5.018.

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Abstract:
Women's health is a fundamental pillar of societal progress. A healthy woman not only takes care of her family but also plays an active role in the development of society. Women's health is considered a key indicator of a nation's overall development. In the Sustainable Development Goals (SDGs), women’s health is identified as a critical area, with Goal 3 (Good Health and Well-being) directly addressing health-related issues. The objective is to provide women with improved and accessible healthcare services. This study examines the role of the Ayushman Bharat Scheme in the health empowerment o
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वर्मा, पवन कुमार. "महिलाओं की प्रस्थिति एवं भूमिका परिवर्तन में संचार-साधनों की भूमिका’’". Humanities and Development 19, № 03 (2024): 16–19. https://doi.org/10.61410/had.v19i3.198.

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Abstract:
महिलाऐं चाहे ग्रामीण हों अथवा नगरीय उनके जीवन में परिवर्तन का एक बड़ा माध्यम संचार-साधनों का रहा है। संचार व्यवस्था ने पूरी दुनिया को आज एक गाँव में दायरे में समेट दिया है। ग्रामीण क्षेत्र में निवपास करने वाली महिलाऐं अब शिक्षित होकर जागरूक भी हो रही है। संचार-साधनों की पहुँच अब गावों में भी पूरी तरह से हो चुकी है। संचार-क्रान्ति ने जहाँ संदेश, सूचना एवं विचार पूरी दुनिया के साथ साझा करने का जो प्रयास किया है उसकी गति अब वैश्विक स्तर की है, संचार-साधनों ने महिलाओं को भी सशक्त करने का प्रयास किया है। महिलाओं कीे प्रस्थिति और भूमिका में जो परिवर्तन दिखाई पड़ता है, नीति निर्माण प्रक्रिया एवं समावेश
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Kumari, Anpurna. "Psychological Self Satisfaction in Women: A Study in the Context of Bhagalpur District." RESEARCH HUB International Multidisciplinary Research Journal 9, no. 6 (2022): 13–17. http://dx.doi.org/10.53573/rhimrj.2022.v09i06.003.

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Abstract:
The present study has been done to compare the psychological self-satisfaction level between domestic and working adult women in urban and rural areas of Bihar state Bhagalpur district. The study sample consisted of 120 adult women in the age group of 35 to 65 years, including 60 urban and 60 rural women. Again 30-30 working and domestic women were randomly selected from among women from urban and rural areas. The psychological self-satisfaction scale administered by Devendra Singh Sisodia and Pooja Chaudhary (2012) has been used in the data collection. The collected data was statistically cal
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मीणा, गीता. "कार्यस्थल पर महिला कर्मचारियों के प्रति असमानता की स्थिति का अ/ययन". International Journal of Education, Modern Management, Applied Science & Social Science 07, № 01(II) (2025): 86–90. https://doi.org/10.62823/ijemmasss/7.1(ii).7266.

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Abstract:
महिलाऐं प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से सामाजिक एवं आर्थिक गतिविधियों में अपनी भागीदारी रखती है जैसे घर के घरेलू कार्य करना कृषि में कृषि कार्यों में योगदान देकर फसल को अच्छा बनाकर आय बढ़ाने में मदद करना। अल्फा मिर्डज तथा वयोला क्लयान (1875) ने अपनी किताब वीमेन टु रोल्स में लिखा है कि समाज में कार्य का विवरण लैंगिक आधार पर हुआ है, भारत देश में पुरुष प्रधान समाज में पुरुष अपने अहं सम्मान एवं महिलाओं की उन्नति के कारण पुरुष महिलाओं को शोषण एवं उत्पीड़न का शिकार बनाते रहे है। पुरुष महिलाओं को अपनी जड़श्वरदि गुलाम बनाये रखना चाहता है। महिलाओं की आजादी उसके पुरुषवादी अहं को चुनौती देती है।
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स्वेता, चैधरी. "महिला सशक्तिकरण के दौर में महिलाओं की राजनीतिक क्षेत्र में भूमिका". International Journal of Advance and Applied Research 10, № 3 (2023): 96–98. https://doi.org/10.5281/zenodo.7583247.

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Abstract:
महिला सशक्तिकरण के तमाम परम्पराओं के बावजूद देश की कल श्रमशक्ति में महिलाओं की भागेदारी कम हो रही है। वल्र्ड बैंक ने अपनी इण्डिया डवेलमेंट रिपोर्ट में कहा कि वर्क कोर्स में महिलाओं की भागेदारी के मामले में भारत काफी पीछे है महिला सशक्तिकरण की जब हम बात करते है ंतो सिर्फ उनकी सुरक्षा सामाजिक अधिकारजैसे मुद्दांे तक बात सीमित रह जाती है लेकिन महिला सशक्तिकरण के लिए जरूरी है उनका राजनीतिक सशक्तिकरण होना अनिवार्यता है। भारतीय राजनीति में महिलाओं की भूमिका का अध्ययन राजनीतिक दृष्टिकोण से किया गया है इस शोध पत्र में राजनीति में महिलाओं की भागेदारी वर्तमान स्थिति समस्याओं और महिलाओं के राजनीतिक भविष्य
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स्वेता, चौधरी. "महिला सशक्तिकरण के दौर में महिलाओं की राजनीतिक क्षेत्र में भूमिका". International Journal of Advance and Applied Research 10, № 3 (2023): 96–98. https://doi.org/10.5281/zenodo.7608716.

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Abstract:
महिला सशक्तिकरण के तमाम परम्पराओं के बावजूद देश की कल श्रमशक्ति में महिलाओं की भागेदारी कम हो रही है। वल्र्ड बैंक ने अपनी इण्डिया डवेलमेंट रिपोर्ट में कहा कि वर्क कोर्स में महिलाओं की भागेदारी के मामले में भारत काफी पीछे है महिला सशक्तिकरण की जब हम बात करते है ंतो सिर्फ उनकी सुरक्षा सामाजिक अधिकारजैसे मुद्दांे तक बात सीमित रह जाती है लेकिन महिला सशक्तिकरण के लिए जरूरी है उनका राजनीतिक सशक्तिकरण होना अनिवार्यता है। भारतीय राजनीति में महिलाओं की भूमिका का अध्ययन राजनीतिक दृष्टिकोण से किया गया है इस शोध पत्र में राजनीति में महिलाओं की भागेदारी वर्तमान स्थिति समस्याओं और महिलाओं के राजनीतिक भविष्य
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शिव, पूजन पाण्डेय. "महाभारत कालीन समाज में महिलाओं की सामाजिक स्थिति और शैक्षिक उपलब्धि का विश्लेषण". SIDDHANTA'S INTERNATIONAL JOURNAL OF ADVANCED RESEARCH IN ARTS & HUMANITIES 2, № 5 (2025): 1–10. https://doi.org/10.5281/zenodo.15315167.

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Abstract:
<em>महाभारत काल में महिलाओं की सामाजिक स्थिति और शैक्षिक उपलब्धियाँ गहन चिंतन का विषय रही हैं। इस शोधपत्र का उद्देश्य महाभारत के संदर्भ में समाज में महिलाओं की स्थिति और उनकी शैक्षिक उपलब्धियों के दोहरे पहलुओं का विश्लेषण करना है। सामाजिक रूप से</em><em>, </em><em>इस युग में महिलाओं को मुख्य रूप से माँ</em><em>, </em><em>पत्नी और देखभाल करने वाली के रूप में पारंपरिक भूमिकाओं में देखा जाता था</em><em>, </em><em>फिर भी द्रौपदी</em><em>, </em><em>कुंती और गांधारी जैसी कई प्रमुख महिला पात्रों ने साहस</em><em>, </em><em>नेतृत्व और महत्वपूर्ण सामाजिक निर्णयों में सक्रिय भागीदारी का उदाहरण प्रस्तुत क
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जाखड़, दीपाली, та हेमेंद्र सिंह शक्तावत. "रोजगार के अवसरों के लिए महिलाओं के प्रवासन की खोज". Anthology The Research 8, № 10 (2024): H 39 — H 59. https://doi.org/10.5281/zenodo.10629551.

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Abstract:
This paper has been published in Peer-reviewed International Journal "Anthology The Research"&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; URL : https://www.socialresearchfoundation.com/new/publish-journal.php?editID=8165 Publisher : Social Research Foundation, Kanpur (SRF International)&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; Abstract :&nbsp; हाल के वर्षों में रोजगार के लिए महिलाओं का प्रवास एक महत्वपूर्ण वैश्विक घटना बन गया है। महिलाओं को प्रवास के लिए प्रेरित करने में आर्थिक कारक
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सोमबीर, सोमबीर, та विभूति नारायण सिंह. "आधुनिक भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति: ऐतिहासिक विकास और वर्तमान परिप्रेक्ष्य". Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education 22, № 01 (2025): 484–92. https://doi.org/10.29070/x41qme95.

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Abstract:
भारतीय समाज में महिलाओं की ऐतिहासिक स्थिति को समझना और उनके सशक्तिकरण की दिशा में उठाए गए कदमों का विश्लेषण इस शोध का मुख्य उद्देश्य है। प्राचीन काल में महिलाओं की स्थिति सम्मानजनक थी, लेकिन समय के साथ पितृसत्तात्मक संरचनाओं और सामाजिक रूढ़ियों के कारण उनकी स्थिति में गिरावट आई। औपनिवेशिक काल ने महिलाओं की स्थिति को सुधारने के लिए कई नीतिगत प्रयास किए। सती प्रथा उन्मूलन, विधवा पुनर्विवाह अधिनियम, और महिला शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करना उन सुधारों में शामिल था। हालांकि, ये सुधार मुख्य रूप से शहरी क्षेत्रों और उच्च वर्ग तक सीमित रहे। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महिलाओं ने सामाजिक और राजनीतिक रूप
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Anita, Nagle, Santosh Salve Dr. та Archana Tripathi Dr. "गोंड जनजाति की महिलाओं की स्थिति पर प्रभाव डालने वाले सामाजिक गतिविधियों और संरचनाओं का मूल्यांकन करना". International Journal of Trends in Emerging Research and Development 2, № 6 (2024): 130–35. https://doi.org/10.5281/zenodo.15176112.

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Abstract:
शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य के मामले में आदिवासी महिलाओं की स्थिति न केवल आदिवासी पुरुषों की तुलना में बल्कि सामान्य आबादी की महिलाओं की तुलना में भी कम है। इस सैद्धांतिक पत्र का उद्देश्य आदिवासी महिलाओं के सामने आने वाली चुनौतियों का पता लगाना और उन रणनीतियों पर चर्चा करना है, जिन पर वे इन चुनौतियों से सफलतापूर्वक निपटने के लिए विचार कर सकती हैं।कानून और धर्म ने पुरुष और महिला की समानता और समान अधिकारों को मान्यता नहीं दी। महिलाओं का स्थान काफी हद तक घर में माना जाता था। संक्षेप में, महिलाओं की भूमिका को अपने पति, परिवार के स्वामी और शासक के अधीन रहने के रूप में माना जाता था। महिलाओं की निम्न
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घुनावत, डॉ. विट्ठलसिंग रुपसिंग. "जागतिकीकरण में महिलाओं का स्थान". International Journal of Advance and Applied Research 5, № 35 (2024): 50–52. https://doi.org/10.5281/zenodo.13856127.

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Abstract:
सारांश :-&nbsp;&nbsp; &nbsp; &nbsp;जागतिकीकारण में महिलाओं के स्थान की अगर बात करें तो महिलाओं का स्थान बहुत महत्वपूर्ण है और बहुत ही ऊंचे ऊंचे पदों पर महिला आज कामयाबी हासिल कर रही है किंतु अगर हम निष्कर्ष यहां पर देखे तो यह पता चलता है कि जितनी कामयाबी पर महिलाओं का स्थान है, उतना ही कहीं -कहीं महिलाओं को नीचा दिखाने की कोशिश हो रही है| जैसे कि हर शहरों में महिलाओं पर अन्याय अत्याचार हो रहे हैं हर रोज कोई ना कोई घटना घटित हो रही है| हर किसी अखबार में यह छपकार आता है जो महिलाओं के लिए निंदनीय &nbsp;बात है| जैसे कि बदलापुर की घटना का विचार करें तो, अनजान लड़कियाँ जो निष्पाप है उनके ऊपर अत्याचा
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Kuldeep та Sarika. "स्नातक स्तर पर अध्ययनरत छात्राओं की सामाजिक समस्याओं एवं शिक्षा सम्बन्धी समस्याओं का अध्ययन". RECENT RESEARCHES IN SOCIAL SCIENCES & HUMANITIES 11, № 2 (2024): 7–11. https://doi.org/10.5281/zenodo.13337136.

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Abstract:
महिला शिक्षा की चुनौतियाँ लोकतांत्रिक भारत के इतिहास का अभिन्न अंग रही हैं। स्वतंत्रता के बाद भारत में शिक्षा कीप्रगति के साथ, महिलाओं को शिक्षित करने में चुनौतियों की गतिशीलता अप्रत्याशित तरीकों से हैरान करने वाली औरनिरंतर बनी हुई है। जबकि भारत के इतिहास के एक महत्वपूर्ण हिस्से में, महिलाएँ पर्दे के पीछे रहीं और उनसे पुरुषोंऔर राष्ट्र की प्रगति में सहायक भूमिका निभाने की अपेक्षा की गई। उच्च शिक्षा संस्थानों में महिलाओं के नामांकन मेंपिछले कुछ दशकों में महत्वपूर्ण सांख्यिकीय सुधार देखे गए हैं। हालाँकि, अध्ययन के संदर्भ में जिस बिंदु का उल्लेखकिया जाना चाहिए, वह यह है कि सामाजिक, आर्थिक, राजनीत
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कुमार, धनपत, आनंद सुगंधे та राजकुमार नागवंशी. "ग्रामीण महिला सशक्तिकरण में स्वयं सहायता समूहों की भूमिका का एक आर्थिक अध्ययन: मध्यप्रदेश के अनूपपुर जिले के विशेष सन्दर्भ में". Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education 22, № 3 (2025): 165–77. https://doi.org/10.29070/ejddbr42.

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Abstract:
किसी भी राष्ट्र के समावेशी और सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए महिला सशक्तिकरण आवश्यक है। भारत में, स्वयं सहायता समूहों को न केवल महिला सशक्तिकरण के लिए बल्कि गरीबी से निपटने के लिए एक प्रभावी रणनीति के रूप में कार्य कर रही है। प्रस्तुत अध्ययन का मुख्य उद्देश्य उन कारकों का आकलन करना है जो स्वयं सहायता समूहों में महिलाओं की भागीदारी को प्रभावित करने वाले कारक एवं सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण पर इसके प्रभाव का आंकलन किया गया हैं। यह अध्ययन स्वयं सहायता समूह के महिला लाभार्थियों के साक्षात्कार के माध्यम से मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले के दो विकासखण्ड जैतहरी एवं अनूपपुर के 50 समूहों के कुल 120 महिला
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कांता, कुमारी मीना, та कपिल मीना डॉ. "ग्रामीण महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण मे डेयरी उद्योग की भूमिका". ग्रामीण महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण मे डेयरी उद्योग की भूमिका 11, № 2 (2025): 1–9. https://doi.org/10.5281/zenodo.14959685.

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Abstract:
यह शोध डेयरी उद्योग के माध्यम से ग्रामीण महिलाओं के आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण का विश्लेषण करता है। डेयरी सहकारी समितियाँ (WDCS) और महिला स्वयं सहायता समूह (SHGs) महिलाओं की आय, आत्मनिर्भरता, और सामाजिक गतिशीलता में सुधार कर रही हैं। डेयरी उद्योग से जुड़ने पर महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता और आत्मविश्वास में वृद्धि हुई है, जिससे वे अपने निर्णयों में अधिक भागीदारी कर रही हैं। हालाँकि, महिलाओं को शिक्षा की कमी, सामाजिक बाधाओं, और वित्तीय संसाधनों तक सीमित पहुँच जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इस शोध में सुझाव दिया गया है कि महिलाओं को प्रशिक्षण कार्यक्रमों और वित्तीय सहायता योजनाओं से जोड़
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Kumari Jaya Sinha, Kumari Jaya Sinha, та Dr Vinod Kumar Yadavendu Dr. Vinod Kumar Yadavendu. "समाज में महिलाओं की भूमिका की समीक्षा". International Journal of Information Technology and Management 17, № 1 (2024): 81–87. http://dx.doi.org/10.29070/2fpywq07.

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Abstract:
समाज में महिलाओं की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होती है। सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और धार्मिक क्षेत्र ऐसे हैं जहां महिलाओं को अक्सर उनके पदों पर स्वीकार किया जाता है। जब उन्हें इन क्षेत्रों में भाग लेने की आवश्यकता होती है, तो उनके पास प्रभावी प्रतिभा और क्षमताएं होनी चाहिए जो उन्हें ऐसा प्रभावी ढंग से करने की अनुमति दें। महिलाओं को अपने कौशल और प्रतिभा के अलावा अपनी भागीदारी को प्रभावित करने वाले चरों के बारे में जागरूकता बढ़ानी चाहिए। अपने कार्यों को करते समय आने वाली बाधाओं को दूर करने की क्षमता भी इन तत्वों के ज्ञान से ही संभव होती है। जब महिलाएं कई तरह की जिम्मेदारियां निभाती हैं, त
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सुनील, कुमार. "भारतीय समाज में लैंगिक असमानता एक विश्लेषण". RECENT RESEARCHES IN SOCIAL SCIENCES & HUMANITIES 11, № 4 (2024): 89–92. https://doi.org/10.5281/zenodo.14841007.

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Abstract:
लैगिक समानता के अन्तर्गत महिला सषक्तिकरण के साथ-साथ समाज में जाति, वर्ग विभेद के साथ होने वाले लैंगिकभेदभाव को दूर करना अति आवष्यक है, उनमें भी महिला, सषक्तिकरण, महिलाओं के साथ तथा पिछड़े वर्गों के साथलैंगिक भेदभाव घर में, घर के बाहर, विभिन्न व्यावसायिक कार्य स्थलों आदि पर होता है जो उनके सषक्तिकरण को रोकताहै। महिलाओं के साथ कार्यस्थलों पर होने वाले लैंगिक भेदभाव को जड़ से खत्म करने के लिए महिला षिक्षा को बढ़ावादेने के साथ-साथ महिलाओं को जागरूकता अभियान के द्वारा प्रषिक्षित किया जाना चाहिए। रीति-रिवाज आदि के माध्यमसे जो कुरीतियाँ समाज में प्रचलित है उन्हें रोका जाना चाहिए। षिक्षा, चिकित्सा, रा
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राजेन्द्र, कुमार, та उपासना. "शिक्षा एवं महिला सशक्तिकरण". Recent Researches in Social Sciences & Humanities (ISSN: 2348 – 3318) 10, № 01 (Jan.-Feb.Mar.) (2023): 43–45. https://doi.org/10.5281/zenodo.7944517.

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Abstract:
महिलाएं अपने प्रति होने वाले सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, सांस्कृतिक अन्याय, लिंग भेद व समानता, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक तथा राजनीतिक शक्तियों के नकारात्मक प्रभाव के विरुद्ध जागरूक हो जाएं तो यह समझा जा सकता है कि उनका सशक्तिकरण हो रहा है। उसके महत्व को स्वीकार किया जा सके तथा उसे समान नागरिक एवं समान अधिकार की स्थिति तक ला सके। शिक्षित महिलाएं ही अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होती हैं जिससे वह सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक क्षेत्र में अपना सहयोग दे सकती हैं। वर्तमान समाज में शिक्षा ही वह हथियार है जिसके द्वारा महिलाएं अपनी स्थिति को सुदृढ़ बना सकती हैं। आज महिलाओं की स्थिति में जो परिवर्तन हुए है
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Vardhan, Raja Prabuddha. "Women's Human Rights and Constitution." RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 9, no. 6 (2024): 119–22. http://dx.doi.org/10.31305/rrijm.2024.v09.n06.016.

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Abstract:
Half of the world's population is women. Therefore, women should also get rights as human beings. When the UN declared human rights on 10 December 1948, many women's organizations of the world demanded women's human rights. In India, women had the same rights as men since ancient times, but with time, the status of women in India also declined. But when the Constitution of India was created, a provision for basic rights was made in it. In which women were given equal rights as men. Abstract in Hindi Language: विश्व की सम्पूर्ण जनसंख्या की आधी आबादी महिलाओं की है। अतः महिलाओं को भी मानव होने के
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शुक्ला, प्रगति, та योगेन्द्र प्रसाद त्रिपाठी*. "उच्च शिक्षित कार्यशील महिलाएं : सामाजिक जीवन पर आधुनिकीकरण का प्रभाव, प्रयागराज जनपद के प्ररिपेक्ष्य में". Humanities and Development 17, № 1 (2022): 88–92. http://dx.doi.org/10.61410/had.v17i1.51.

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Abstract:
सामाजिक जीवन में निश्चय ही महिलाओं के ऊपर पड़ रहे आधुनिकीकरण के प्रभाव को नजरंदाज नहीं किया जा सकता है। आज विश्व ही नहीं अपितु भारत में भी विकास की प्रक्रिया में महिलाओं का योगदान पुरुषों से कम नहीं है। हाल ही में सांख्यिकी मंत्रालय की ओर से रोजगार पर रिपोर्ट ‘आवधिक श्रमबल सर्वेक्षण रिपोर्ट 2017-18’ जारी की गई है जिसमें बताया गया कि शहरों में कुल 52.1% महिलाएं और 45.7% पुरुष कामकाजी हैं। जैसा कि डा. कुमुद रंजन ने अपनी पुस्तक ‘विमेन इन माडर्न आक्यूपेशन इन इण्डिया’ में यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि महिलाओं का परंपरागत स्वरूप परिवर्तित हो रहा है। वे धीरे-2 व्यावसायिक क्षेत्र में प्रवेश कर रह
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सोमबीर, सोमबीर, та विभूति नारायण सिंह. "औपनिवेशिक भारत में महिलाओं के अधिकार और सशक्तिकरण: नीतियों और सुधारों का ऐतिहासिक अध्ययन". Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education 22, № 01 (2025): 334–40. https://doi.org/10.29070/7pq3x917.

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Abstract:
औपनिवेशिक काल में भारतीय महिलाओं की सामाजिक और शैक्षिक स्थिति में उल्लेखनीय बदलाव देखने को मिला। इस शोध पत्र का उद्देश्य औपनिवेशिक सुधार नीतियों और उनके प्रभावों का विश्लेषण करना है, जिसमें महिलाओं की शिक्षा, सामाजिक सुधार, और अधिकारों को सशक्त बनाने के लिए उठाए गए कदमों की समीक्षा की गई है। ब्रह्म समाज और आर्य समाज जैसे सुधार आंदोलनों ने महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए सांस्कृतिक और धार्मिक परिवर्तनों की दिशा में काम किया। साथ ही, राजा राममोहन राय और ईश्वरचंद्र विद्यासागर जैसे सुधारकों ने महिलाओं के अधिकारों और सामाजिक स्थिति को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।शोध पत्र में यह चर्चा की
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गौतम, ज्योति. "बालिका शिक्षा : चुनौतियां एवं अवसर". Anthology The Research 8, № 12 (2024): H42 — H50. https://doi.org/10.5281/zenodo.11065058.

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Abstract:
This paper has been published in Peer-reviewed International Journal "Anthology The Research"&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; &nbsp;URL : https://www.socialresearchfoundation.com/new/publish-journal.php?editID=8903 Publisher : Social Research Foundation, Kanpur (SRF International)&nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp;&nbsp; Abstract : &nbsp; 'शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है जिसका उपयोग आप दुनिया को बदलने के लिए कर सकते हैं।' शिक्षा मानव समाज का एक अभिन्न अंग है जिसके माध्यम से मनुष्य अपने उद्देश्यों को पूरा कर सक
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डॉ. शशि प्रभा वार्ष्णेय, डॉ शशि प्रभा वार्ष्णेय. "ग्रामीण महिला सशक्तिकरण एवं कल्याणकारी योजनाएँ". International Journal of Physical Education & Sports Sciences 16, № 1 (2024): 10–13. http://dx.doi.org/10.29070/991z9172.

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Abstract:
प्रस्तुत शोध-पत्र में सामाजिक समानता एवं न्याय के परिप्रेक्ष्य में महिलाओं की स्थिति सुधारने एवं उनको मुख्यधारा से जोड़ने हेतु संविधान में उल्लिखित कतिपय प्रावधानों के साथ कतिपय कल्याणकारी योजनाओं का उल्लेख किया गया है। इन योजनाओं में महिला-समाख्या, स्वनिधि योजना, जागृति-बैक टू वर्क, राष्ट्रीय महिला कोष, स्वास्थ्य एवं पोषण, व्यावसायिक प्रशिक्षण एवं रोजगार, आर्थिक विकास हेतु विभिन्न ऋण योजनाएँ, कौशल सामथ्र्य, राजश्री योजना, महिला स्वयं सहायता समूह योजना, आर्ट आॅफ लिविंग के महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम जैसे अन्यान्य कार्यक्रम चला जा रहे हैं। ये सभी योजनाएँ महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण तथा सामाजिक सहा
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