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Journal articles on the topic 'विपणन'

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1

श्रीमती., ज्योती रुंजा भोर. "महिला ग्राहकांचा हरित विपणननाकडे असलेला कल". Young Researcher S14, № 1A (2025): 286–93. https://doi.org/10.5281/zenodo.14881003.

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Abstract:
<em>ग्रीन मार्केटिंग म्हणजे पर्यावरणास सुरक्षित मानल्या जाणाऱ्या उत्पादनांचे विपणन. यामध्ये उत्पादनातील बदल</em><em>, </em><em>उत्पादन प्रक्रियेतील बदल</em><em>, </em><em>टिकाऊ पॅकेजिंग</em><em>, </em><em>तसेच जाहिरातींमध्ये बदल करणे यासह क्रियाकलापांची विस्तृत श्रेणी समाविष्ट आहे. तरीही ग्रीन मार्केटिंगची व्याख्या करणे हे सोपे काम नाही. पर्यावरणीय विपणन आणि पर्यावरणीय विपणन या इतर समान संज्ञा वापरल्या जातात.हिरवे</em><em>, </em><em>पर्यावरणीय आणि इको-मार्केटिंग हे नवीन मार्केटिंग पध्दतींचे भाग आहेत जे केवळ विद्यमान मार्केटिंग विचार आणि सराव यावर पुन्हा फोकस</em><em>, </em><em>समायोजित किंवा वर्धित करत नाहीत</em><em>, </em><em>तर त्या दृष्टिकोनांना आव्हान देण्याचा प्रयत्न करतात आणि लक्षणीय भिन्न दृष्टीकोन प्रदान करतात. अधिक तपशिलात हिरवे</em><em>, </em><em>पर्यावरणीय आणि इको-मार्केटिंग या दृष्टिकोनांच्या गटाशी संबंधित आहेत जे सध्या प्रचलित असलेल्या विपणन आणि व्यापक विपणन वातावरणातील पर्यावरणीय आणि सामाजिक वास्तविकता यांच्यातील अभाव दूर करण्याचा प्रयत्न करतात .विपणन दाव्यांचे कायदेशीर परिणाम सावधगिरी बाळगतात किंवा अतिरंजित दाव्यांमुळे नियामक किंवा नागरी आव्हाने निर्माण होऊ शकतात.सदर संशोधनामध्ये महिला ग्राहकांचा हरित विपणननाकडे असलेला कल अभ्यासण्याचा प्रयत्न केला आहे. </em>
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2

संजू. "संग्रहालय विपणन: चुनौतियां तथा समाधान (पुराना किला पुरातत्वीय स्थल संग्रहालय का अध्ययन)". RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 4, № 2 (2019): 571–75. https://doi.org/10.5281/zenodo.2580287.

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Abstract:
आज के आधुनिक समय में विपणन एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है। लोगों को अपनी वस्तुओं तथा सुविधाओं की तरफ आकर्षित करने के लिए प्रत्येक क्षेत्र विपणन का प्रयोग करता है। संग्रहालय जैसी जगह को आज न केवल दूसरे संग्रहालयों अपितु मनोरंजन के अन्य माध्यमों जैसे मूवीहाॅल, माॅल, वाॅटरपार्क तथा रेस्टारेन्ट जैसी जगहों से भी प्रतियोगिता करनी पड़ रही है। इस लेख में यह प्रस्तुत किया गया है कि एक संग्रहालय किस प्रकार विपणन करता है तथा विपणन करते समय उसे किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। लोग किसी भी विशेष अवसर अथवा अपने अवकाश समय में संग्रहालय की अपेक्षा मनोरंजन के अन्य साधनों का प्रयोग करने में अधिक रूचि रखते है अतः यह जानना अति आवश्यक हो जाता है कि वे क्या कारण है जो दर्शकों को संग्रहालय का चुनाव करने से रोकते हैं? क्या संग्रहालय अन्य साधनों की तरह अपनी सुविधाओं का विपणन नहीं करता। इन प्रश्नों का उत्तर ज्ञात करना अत्यंत आवश्यक है ताकि संग्रहालय का एक उपयुक्त शिक्षण मनोरंजन उत्पाद के रूप में प्रस्तुत किया जा सके।
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3

घायाळ, डॉ. अरुण सदाशिव. "जेनेरिक औषधी आणि विपणन". International Journal of Advance and Applied Research 4, № 36 (2023): 155–56. https://doi.org/10.5281/zenodo.10337253.

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Abstract:
<strong>प्रस्तावना&nbsp;</strong>आजच्या जागतिकीकरणाच्या युगात वस्तू व सेवांच्या सर्वच क्षेत्रात मोठमोठ्या कंपन्या कार्यरत आहेत. वस्तू व सेवांच्या सर्वच क्षेत्र विकसित होत असून त्यासोबत बाजारपेठेचे&nbsp; स्वरूप सुद्धा बदलत आहे. आज बाजारपेठेत अनेक वस्तू च्या पर्यायी वस्तू असून योग्य दरात ह्या वस्तू उपलब्ध होत आहेत. यामधील मानवी आरोग्य संदर्भातील औषधी बाजारपेठ खुप महत्वाची आहेत, कारण औषधींवर होणारा खर्च खूप जास्त असतो कारण ग्राहकाला ह्या वस्तू घेणे गरजेचे असते, त्यामुळे यासाठी ग्राहक जास्त किंमत देण्यासाठी तयार होतो. ग्राहकांना कमी किमतीत योग्य औषधी मिळावी या उद्देशाने जेनेरिक औषधी बाजारपेठ याचा विचार समोर आला.जेनेरिक औषधे ही अशी असतात ज्यांचे स्वतःचे ब्रँड नाव नसते आणि बाजारात फक्त त्यांच्या जेनेरिक नावाने ओळखले जातात.&nbsp;जरी काही औषधांची ब्रँड नावे असली तरी ती खूप स्वस्त आहेत आणि जेनेरिक औषधांच्या श्रेणीत येतात.&nbsp;जेनेरिक औषधांबाबत सर्वसामान्यांमध्ये अनेक गैरसमज आहेत.&nbsp;जेनेरिक औषधांच्या कमी किमतीमुळे त्यांच्या गुणवत्तेवर प्रश्नचिन्ह निर्माण झाले आहे आणि तज्ञांचे मत आहे की जेनेरिक औषधांबद्दल लोकांचे गैरसमज दूर करण्याची गरज आहे.&nbsp;कारण ते स्वस्त आणि प्रभावी दोन्ही आह यामुळे ग्राहकांना आर्थिक फायदा होऊ शकतो.&nbsp;
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4

नारंग, कृष्णा. "उत्तर बस्तर कांकेर जिले के कालिक बाजारः एक भौगोलिक विश्लेषण". Journal of Ravishankar University (PART-A) 28, № 1 (2022): 26–35. http://dx.doi.org/10.52228/jrua.2022-28-1-3.

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Abstract:
विपणन भूगोल का मुख्य बिन्दु बाजार केन्द्र है। यथार्थ में बाजार केन्द्र स्थान की वह इकाई है जहाँ क्रेता-विक्रेताओं द्वारा अपेक्षित वस्तुओं तथा सेवाओं की विनिमय संबंधी गतिविधियाँ सम्पन्न होती हैं। “गार्नियर तथा डेलबेज“(1979) के अनुसार विपणन भूगोल के तीन आधारभूत तत्व हैं भिन्नता, इच्छा और दूरी इनके अनुसार भौगोलिक, आर्थिक तथा तकनीकी कारणों से उत्पन्न क्षेत्रीय भिन्नताएँ विपणन प्रक्रिया को जन्म देती हैं। विक्रेता की अपनी वस्तुएँ विक्रय करने तथा क्रेता की उन्हें क्रय करने की इच्छा विपणन की दूसरी महत्वपूर्ण आवश्यकता है। इन दोनों के मध्य “दूरी“ विपणन प्रक्रिया का नियंत्रक तत्व है। जिला उत्तर बस्तर में कुल 129 छोटे-बड़े कालिक बाजार केन्द्र है। जिले के सभी सात तहसीलों में मैदानी क्षेत्र में सर्वाधिक बाजार केन्द्र है तथा पठारी क्षेत्रों में बाजार केन्द्रों की संख्या कम है। चारामा तहसील में सर्वाधिक 27 बाजार केन्द्र एवं सबसे कम दुर्गकोंदल तहसील में 8 बाजार केन्द्र हैं। इसी प्रकार कांकेर में 26, नरहरपुर में 22, भानुप्रतापपुर में 17, अंतागढ़ में 10 और पखांजूर तहसील में 19 बाजार केन्द्र स्थल हैं। अध्ययन क्षेत्र में सेवाप्राप्त ग्रामो की संख्या दूरी के अनुसार ज्ञात की गई है, जिसमें मैदानी क्षेत्रों में दूरी के अनुसार बाजार केन्द्रों की संख्या कम होती गई है। 5 कि.मी. से कम दूरी में सेवाप्राप्त ग्रामों की संख्या अधिक है एवं 10 कि.मी. से अधिक दूरी में सेवाप्राप्त ग्रामों की संख्या कम है। वहीं पठारी क्षेत्रों में 5 कि.मी. से कम दूरी में सेवाप्राप्त ग्रामों की संख्या कम है, 5-10 कि.मी. की दूरी में ज्यादा एवं 10 कि.मी. से अधिक दूरी में सेवाप्राप्त ग्रामों की संख्या कम प्राप्त हुई है। इसका मुख्य कारण पठारी क्षेत्रों में सुविधाओं की कमी तथा नक्शलवाद है। अध्ययन क्षेत्र में सप्ताह के सभी दिन विपणन कार्य किया जाता है। जिसमें सर्वाधिक शुक्रवार 27 एवं गुरूवार को 21 बाजार केन्द्रांे में विपणन कार्य किया जाता है। जिले के सभी कालिक बाजार केन्द्रों का निकटतम् पड़ोसी बिन्दु विश्लेषण ज्ञात किया गया। जिसमें जिले की प्रत्याशित औसत दूरी 3.5 कि.मी. है, जिसके आधार पर त्द मान 0.94 जो यादृच्छिकता मूल्य के निकट है। जिले में तहसीलवार त्द मान ज्ञात किया गया है, जिसमें कांकेर तहसील में 0.86, चारामा 1.07, नरहरपुर 1.08, भानुप्रतापपुर 1.08, दुर्गकोंदल 1.04, अंतागढ़ 0.87 तथा पखांजूर तहसील में 0.88 त्द मान प्राप्त हुआ है जो यादृच्छिकता के निकट है एवं सभी तहसीलों में कालिक बाजार केन्द्रो का बिखराव पाया गया है। इस प्रकार उत्तर बस्तर जिले में भौगोलिक एवं सामाजिक-आर्थिक रूप से कालिक बाजारों की दूरी एवं वितरण प्रारूपों का प्रभाव कालिक बाजार केन्द्रो में देखा गया है।
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विजय, कुमार वैष्णव. "(छ.ग) के बिलासपुर जिले के कोटा विकासखण्ड में कृषि में नवाचार". International Journal of Advance and Applied Research 4, № 31 (2023): 41–43. https://doi.org/10.5281/zenodo.8365693.

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Abstract:
<strong>संक्षेपिका </strong><strong>:-</strong> कृषि के विकास में जो नवीन तकनीकी का उपयोग किया जाता है तथा उसके परिणामस्वरूप कृषि उत्पादन में जो वृद्धि होती है उसे नवाचार या नवप्रवर्तन कहा जाता है। कृषि नवाचार अवस्थापना तत्वों के रूप में सिंचाई, कृषि प्रशिक्षण केंद्र, बीज संवर्धन केंद्र, उर्वरक वितरण केंद्र, कृषि उपकरण, शीत गृह विपणन केंद्र, जिनमे नियमित बाजार, कृषि उपज मंडी, सहकारी विपणन संघ, बैंकिंग सुविधा आदि प्रमुख हैं। नवाचार के द्वारा कृषि का विस्तार होता है।&nbsp; कोई भी समाज या व्यक्ति राजकीय सहयोग व उसके सक्रिय प्रोत्साहन के बिना नवाचार एवं कृषि विस्तार नहीं कर सकता।&nbsp; कृषि नवाचार को प्रोत्साहित करने वाले कई तत्व हैं।&nbsp; वे सभी तत्व जो नवाचारों को प्रोत्साहित करते हैं वे सभी मानवकृत हैं।&nbsp; किसी भी क्षेत्र के कृषि नवाचार तथा विस्तार के लिए शांति, सुरक्षा, तथा राजकीय सहयोग के साथ ही साथ कृषकों की मनोवैज्ञानिक व सामाजिक मनोवृत्तियों का होना आवश्यक है।
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Yadav, Dr Surendra. "भारत के ग्रामीण परिवेश में बैंकिंग सेवाओं के विपणन". International Journal of Financial Management and Economics 6, № 1 (2023): 180–82. http://dx.doi.org/10.33545/26179210.2023.v6.i1.192.

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प्रकाष, बुद्धि. "हाड़ौती क्षेत्र में डेयरी उद्योग की चुनौतियाँ: एक भौगोलिक विष्लेषण". SCHOLARLY RESEARCH JOURNAL FOR HUMANITY SCIENCE AND ENGLISH LANGUAGE 10, № 53 (2022): 13432–43. http://dx.doi.org/10.21922/srjhsel.v10i53.11644.

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Abstract:
कृषि एवं पषुपालन भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार है। स्वरोगार सृजन करने तथा आय में वृद्धि की दृष्टि से डेयरी उद्योग ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण आर्थिक क्रिया है। भारत में डेयरी उद्योग अंग्रेजों के षासनकाल में प्रारम्भ हुआ किन्तु दुग्ध सहकारिता की स्थापना के पष्चात् यहाँ एक नई क्रांति का प्रादुर्भाव हुआ। राजस्थान में अमूल पैटर्न की तर्ज़ पर ‘‘राजस्थान को-ऑपटिव डेयरी फेडरेषन की देखरेख में दुग्ध संकलन एवं विपणन का कार्य प्रगति पर है। राजस्थान के हाड़ौती प्रदेष में डेयरी उद्योग के विकास के समक्ष कई चुनौतियाँ अनुभव की गई है। जिनमें ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्र के पषुपालकों को दुग्ध उत्पादन एवं विपणन में कठिनाई तथा दुग्ध सहकारी संघों एवं निजी व्यापारियों को दूध संकलन एवं विक्रय में आ रही चुनौतियाँ प्रमुख हैं। अध्ययन क्षेत्र में अनुभूत चुनौतियों के सन्दर्भ में समुचित समाधान विभिन्न स्तरों पर वांछित है। यद्यपि इस क्षेत्र में सरकार व सहकारिता स्तर पर प्रयास किए गये हैं तथापि डेयरी उद्योग को एक आधुनिक तकनीकि युक्त व समुन्नत बनाने के लिए कई ठोस प्रयास किये जाने की महती आवश्यकता है।
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कुमार, मनोज, та डाॅ देवेन्द्र चैधरी. "बिहार में कृषि, कृषि विपणन तथा भंडारण की वर्त्तमान दशा". International Journal of Research in Marketing Management and Sales 5, № 1 (2023): 69–73. http://dx.doi.org/10.33545/26633329.2023.v5.i1a.136.

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प्रा., डॉ. शितोळे अनिल विजय गायकवाड प्रतिभा शिवाजी. "डिजिटल पर्यटन". International Journal of Advance and Applied Research 2, № 19 (2022): 1–4. https://doi.org/10.5281/zenodo.7053607.

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Abstract:
<strong>गोषवारा &ndash;</strong> &nbsp; आजकाल जीवनाच्या सर्व क्षेत्रात डिजिटलायझेशन दिसून येते. डिजिटल टुरिझम हे डिजिटल टूल्स आणि तंत्रांच्या उदयामुळे पर्यटनात एक बदल आहे. . डिजिटायझेशनशिवाय पर्यटन परदेशी&nbsp; सेवा प्रदात्यांशी स्पर्धात्मक होणार नाही. ग्राहकांच्या सतत वाढणाऱ्या अपेक्षा पूर्ण करण्यासाठी पर्यटन संस्थांसाठी डिजिटलायझेशन आवश्यक आहे. पर्यटकांसाठी गंतव्यस्थानाच्या निवडीनंतर, किंमत हा दुसरा सर्वात महत्वाचा घटक असतो डिजिटलायझेशनमुळे पर्यटनातील सर्वात मोठा बदल विक्रीमध्ये दिसून येतो. इंटरनेटच्या सहाय्याने ग्राहकांना थेट बुकिंग देखील उपलब्ध आहे. ऑनलाइन जाहिराती ईमेल, शोध इंजिन, सोशल मीडिया, ऑनलाइन जाहिराती आणि मोबाइल जाहिरातींसह अनेक स्वरूपात दिसू शकतात<strong>. </strong>पर्यटन सेवांसाठी मानवी घटक निर्णायक आहे. कर्मचारी थेट पर्यटकांशी जोडलेले असल्याने ते सेवेच्या प्रतिमेवरही प्रभाव टाकतात. समोरच्या कर्मचार्&zwj;यांच्या व्यतिरिक्त वापरकर्त्याची देखील सेवेच्या निर्मितीमध्ये महत्त्वाची भूमिका असते. पर्यटकांसाठी चोवीस
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मनोज, कुमार साहू. "छत्तीसगढ़ राज्य में पर्यटन उद्योग के विकास की चुनौतियां एवं संभावनाएँ". International Journal of Advance and Applied Research 4, № 8 (2023): 101–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.7798449.

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Abstract:
अपने समृद्ध प्राकृतिक संसाधनों, सांस्कृतिक विरासत और आदिवासी विविधता के कारण भारत के छत्तीसगढ़ राज्य में पर्यटन उद्योग की अपार संभावनाएं हैं। यद्यपि, राज्य को अपने पर्यटन उद्योग को विकसित करने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, यथा अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा, कुशल जनशक्ति की कमी, खराब विपणन रणनीतियाँ और सुरक्षा संबंधी चिंताएँ। इस शोध पत्र का उद्देश्य छत्तीसगढ़ राज्य में पर्यटन उद्योग के विकास की चुनौतियों और संभावनाओं का विश्लेषण करना और टिकाऊपन पर्यटन विकास के लिए रणनीतियों की सिफारिश करना है।
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डॉ, मनोज कुमार साहू. "भारत के छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और ओडिशा राज्यों के बीच पर्यटन उद्योग का तुलनात्मक अध्ययन". International Journal of Advance and Applied Research 4, № 16 (2023): 178–85. https://doi.org/10.5281/zenodo.7940078.

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Abstract:
पर्यटन उद्योग किसी भी क्षेत्र या राज्य के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारत के मध्य भाग में स्थित छत्तीसगढ़ में एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, विविध वन्य जीवन, सुंदर प्राकृतिक सुंदरता और कई ऐतिहासिक स्मारक हैं। हालाँकि, राज्य पर्यटन विकास के मामले में अपेक्षाकृत नया है और पड़ोसी राज्यों मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और ओडिशा से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना कर रहा है। अतः इस अध्ययन का उद्देश्य छत्तीसगढ़ के पर्यटन उद्योग का अपने पड़ोसी राज्यों से तुलनात्मक विश्लेषण करना है। अध्ययन में विभिन्न स्रोतों से प्राप्त द्वितीयक डेटा का उपयोग किया गया, जिसमें सरकारी रिपोर्ट, शोध पत्र और ऑनलाइन संसाधन शामिल हैं। वर्णनात्मक सांख्यिकी और SWOT विश्लेषण तकनीक का उपयोग करके डेटा का विश्लेषण किया गया। निष्कर्ष बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में पर्यटन विकास की अपार संभावनाएं हैं, लेकिन इसका पर्यटन उद्योग अभी भी अपने पड़ोसी राज्यों की तुलना में प्रारंभिक अवस्था में है। अध्ययन कई कारकों की पहचान करता है जो बुनियादी ढांचे, विपणन, प्रचार, पहुंच और सुरक्षा सहित पर्यटन उद्योग के विकास में योगदान करते हैं। अध्ययन का निष्कर्ष यह है कि छत्तीसगढ़ सरकार को राज्य में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए सक्रिय कदम उठाने चाहिए, जैसे बुनियादी ढांचे में सुधार, नए पर्यटन उत्पादों का विकास, विपणन और प्रचार गतिविधियों को बढ़ाना और पर्यटकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना। ऐसा करने से छत्तीसगढ़ पर्यटन की अपार संभावनाओं का दोहन कर सकता है और पर्यटन के क्षेत्र में अपने पड़ोसी राज्यों से प्रतिस्पर्धा कर सकता है।
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डॉ, मनोज कुमार साहू. "छत्तीसगढ़ राज्य में चिकित्सा पर्यटन की संभावनाएँ :एक अध्ययन". International Journal of Advance and Applied Research 4, № 18 (2023): 167–72. https://doi.org/10.5281/zenodo.8045912.

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Abstract:
छत्तीसगढ़, मध्य भारत का एक राज्य, अपने प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों, सांस्कृतिक विरासत और ऐतिहासिक महत्व के कारण चिकित्सा पर्यटन की विशाल संभावना रखता है। राज्य में कई निजी और सरकारी स्वास्थ्य सुविधाएं हैं जो सस्ती कीमत पर विश्व स्तरीय चिकित्सा उपचार और सेवाएं प्रदान करती हैं। हालांकि, अपर्याप्त बुनियादी ढांचे, संभावित पर्यटकों के बीच जागरूकता की कमी और सीमित प्रचार के कारण राज्य को अभी तक चिकित्सा पर्यटन की पूरी क्षमता का एहसास नहीं हो पाया है। इस अध्ययन का उद्देश्य छत्तीसगढ़ चिकित्सा पर्यटन की क्षमता और इसके विकास में बाधा डालने वाली चुनौतियों का पता लगाना है। इस गुणात्मक अध्ययन में द्वितीयक आंकड़ों का उपयोग किया गया है,जो विभिन्न साहित्यों एवं रिपोर्टों में उपलब्ध है। अध्ययन के निष्कर्षों से संकेत मिलता है कि छत्तीसगढ़ में विशेष रूप से आयुर्वेदिक और प्राकृतिक चिकित्सा उपचार, आर्थोपेडिक्स और कार्डियोलॉजी के क्षेत्रों में चिकित्सा पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। उपचार की लागत अन्य राज्यों की तुलना में कम है, और अनुभवी चिकित्सा पेशेवरों और अत्याधुनिक सुविधाओं की उपलब्धता अधिक है। हालांकि, चिकित्सा पर्यटन की क्षमता को साकार करने में राज्य के सामने प्रमुख चुनौतियां अपर्याप्त बुनियादी ढांचे, उचित प्रचार और विपणन की कमी, प्रशिक्षित चिकित्सा पेशेवरों की कमी और संभावित पर्यटकों के बीच जागरूकता की कमी हैं। अध्ययन में सिफारिश की गई है कि राज्य सरकार को चुनौतियों का समाधान करने और चिकित्सा पर्यटन के लिए अनुकूल वातावरण बनाने के लिए कदम उठाने चाहिए। इसमें विश्व स्तरीय स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे का विकास, राज्य की अनूठी संस्कृति और प्राकृतिक संसाधनों को बढ़ावा देना, चिकित्सा पेशेवरों को पर्याप्त प्रशिक्षण प्रदान करना और प्रभावी विपणन और प्रचार रणनीतियों को लागू करना शामिल हो सकता है।
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डॉ, मनोज कुमार साहू. "छत्तीसगढ़ राज्य में चिकित्सा पर्यटन की संभावनाएँ :एक अध्ययन". International Journal of Advance and Applied Research 4, № 18 (2023): 167–72. https://doi.org/10.5281/zenodo.8049903.

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Abstract:
छत्तीसगढ़, मध्य भारत का एक राज्य, अपने प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों, सांस्कृतिक विरासत और ऐतिहासिक महत्व के कारण चिकित्सा पर्यटन की विशाल संभावना रखता है। राज्य में कई निजी और सरकारी स्वास्थ्य सुविधाएं हैं जो सस्ती कीमत पर विश्व स्तरीय चिकित्सा उपचार और सेवाएं प्रदान करती हैं। हालांकि, अपर्याप्त बुनियादी ढांचे, संभावित पर्यटकों के बीच जागरूकता की कमी और सीमित प्रचार के कारण राज्य को अभी तक चिकित्सा पर्यटन की पूरी क्षमता का एहसास नहीं हो पाया है। इस अध्ययन का उद्देश्य छत्तीसगढ़ चिकित्सा पर्यटन की क्षमता और इसके विकास में बाधा डालने वाली चुनौतियों का पता लगाना है। इस गुणात्मक अध्ययन में द्वितीयक आंकड़ों का उपयोग किया गया है,जो विभिन्न साहित्यों एवं रिपोर्टों में उपलब्ध है। अध्ययन के निष्कर्षों से संकेत मिलता है कि छत्तीसगढ़ में विशेष रूप से आयुर्वेदिक और प्राकृतिक चिकित्सा उपचार, आर्थोपेडिक्स और कार्डियोलॉजी के क्षेत्रों में चिकित्सा पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। उपचार की लागत अन्य राज्यों की तुलना में कम है, और अनुभवी चिकित्सा पेशेवरों और अत्याधुनिक सुविधाओं की उपलब्धता अधिक है। हालांकि, चिकित्सा पर्यटन की क्षमता को साकार करने में राज्य के सामने प्रमुख चुनौतियां अपर्याप्त बुनियादी ढांचे, उचित प्रचार और विपणन की कमी, प्रशिक्षित चिकित्सा पेशेवरों की कमी और संभावित पर्यटकों के बीच जागरूकता की कमी हैं। अध्ययन में सिफारिश की गई है कि राज्य सरकार को चुनौतियों का समाधान करने और चिकित्सा पर्यटन के लिए अनुकूल वातावरण बनाने के लिए कदम उठाने चाहिए। इसमें विश्व स्तरीय स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे का विकास, राज्य की अनूठी संस्कृति और प्राकृतिक संसाधनों को बढ़ावा देना, चिकित्सा पेशेवरों को पर्याप्त प्रशिक्षण प्रदान करना और प्रभावी विपणन और प्रचार रणनीतियों को लागू करना शामिल हो सकता है।
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करिश्मा, तोमर, та सैनी मीनाक्षी. "चित्रकला में रंगों का मनोवैज्ञानिक प्रभाव". RECENT RESEARCHES IN SOCIAL SCIENCES & HUMANITIES 12, № 1 (2025): 87–91. https://doi.org/10.5281/zenodo.15289397.

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Abstract:
यह शोध पत्र रंगों के मनोवैज्ञानिक प्रभावों, उनके प्रतीकात्मक अर्थों और विभिन्न संदर्भों में उनके उपयोग की पड़ताल करता है। रंग न केवल हमारे वातावरण को सौंदर्यात्मक रूप से समृद्ध करते हैं, बल्कि हमारे मूड, भावनाओं और व्यवहार को भी प्रभावित करते हैं। अध्ययन में प्राथमिक एवं द्वितीयक रंगों के प्रभावों, जैसे लाल के उत्साह, नीले के शांति, पीले के आनंद और हरे के संतुलनकारी गुणों को विश्लेषित किया गया है। चित्रकला में रंगों की भूमिका, विशेष रूप से प्रसिद्ध चित्रों और भारतीय लोक कलाओं में रंगों के सांस्कृतिक महत्व पर भी प्रकाश डाला गया है। चिकित्सा, विपणन और दैनिक जीवन में रंगों के अनुप्रयोग को समझाते हुए यह अध्ययन दर्शाता है कि कैसे रंग हमारे अंतर्ज्ञान, मानसिक स्थिति और निर्णयों को प्रभावित करते हैं। रंग-चिकित्सा (क्रोमोथेरेपी) के संदर्भ में भी उनका उपयोग स्वास्थ्य सुधार हेतु विवेचित किया गया है।
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कुंडलिक, प्रा. पठाडे अनिल. "डिजिटल अर्थव्यवस्था आणि जागतिक बाजारपेठ:एक अभ्यास". International Journal of Advance and Applied Research 6, № 25(D) (2025): 4–9. https://doi.org/10.5281/zenodo.15332041.

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Abstract:
<strong>सारांश:</strong> डिजिटल अर्थव्यवस्था आणि जागतिक बाजारपेठ हे दोन परस्पर संबंधित क्षेत्र असून त्यांचा विकास एकमेकांवर थेट परिणाम करतो. डिजिटल तंत्रज्ञानामुळे व्यवसाय, ग्राहक सेवा, आणि विपणन यांचे स्वरूप बदलले आहे. ई-कॉमर्स, मोबाइल बँकिंग, आणि डेटा अॅनालिटिक्स सारख्या डिजिटल साधनांनी जागतिक बाजारपेठेतील व्यापाराच्या प्रक्रियेत वादळी बदल घडवले आहेत. डिजिटल अर्थव्यवस्थेमध्ये संलग्न कंपन्या अधिक लवचीक, जलद आणि ग्राहकांच्या गरजा पूर्ण करण्यास सक्षम बनल्या आहेत. ग्राहकांचे खरेदी वर्तन बदलले असून ते ऑनलाइन खरेदीसाठी अधिक आकर्षित होत आहेत. यामुळे पारंपरिक व्यवसाय मॉडेलवरील दबाव वाढला आहे, ज्यामुळे कंपन्यांना त्यांच्या कार्यपद्धतीत आणि धोरणांमध्ये गतीशील बदल घडवण्याची आवश्यकता आहे. डिजिटल तंत्रज्ञानामुळे जागतिक बाजारपेठेतील स्पर्धा तीव्र झाली आहे. त्यामुळे कंपन्यांना नवकल्पना आणणे आणि तंत्रज्ञानाच्या आधारे त्यांच्या उत्पादनांची गती वाढवणे अनिवार्य झाले आहे. तथापि, या प्रक्रियेत काही समस्याही जन्म घेत आहेत, जसे की डिजिटल खाई, डेटा सुरक्षा आणि व्यक्तीगत माहितीचे संरक्षण. डिजिटल अर्थव्यवस्था जागतिक बाजारपेठेतील एक शक्तिशाली घटक आहे, जो संबंधित धोरणे, आर्थिक विकास आणि नवोदित तंत्रज्ञानाच्या विकासावर प्रभाव टाकतो. ह्या बदलांचे सत्य आणि प्रभावीपणे व्यवस्थापन करण्यासाठी कार्यक्षम धोरणे आवश्यक आहेत.
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भारती, मनीष. "कृषि और ग्रामीण-अर्थव्यवस्था को क्षमतावान बनाना: आम का उत्पादन एंव विपणन में आजादी से अमृत काल तक". International Journal of Multidisciplinary Trends 6, № 10 (2024): 05–08. http://dx.doi.org/10.22271/multi.2024.v6.i10a.485.

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दिपाली, भागवत फड. "भारतातील सूक्ष्म, लघु आणि मध्यम उद्योगांना ई-कॉमर्समुळे निर्माण झालेल्या संधी". International Journal of Advance and Applied Research 10, № 4 (2023): 199–202. https://doi.org/10.5281/zenodo.7828071.

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Abstract:
भारतीय अर्थव्यवस्थेत सूक्ष्म, लघु आणि मध्यम उद्योगांना(एमएसएमई)&nbsp; अनन्यसाधारण महत्त्व आहे. भारताच्या राष्ट्रीय उत्पादनात आणि निर्यातीत एमएसएमई क्षेत्राचा मोलाचा वाटा आहे. संतुलित आर्थिक विकास, रोजगार निर्मिती तसेच ग्रामीण व निम-शहरी भागांचा विकास करण्यासाठी एमएसएमई हे एक प्रभावी माध्यम आहे. ई-कॉमर्सच्या उदयामुळे एमएसएमईंना त्यांची उत्पादने विकण्यासाठी एक विस्तृत आणि सक्षम बाजारपेठ उपलब्ध झाली आहे. ई-कॉमर्सच्या वापरामुळे एमएसएमईंच्या विपणन खर्चात कपात झाली आहे तसेच त्यांना अधिकाधिक ग्राहकापर्यंत पोहोचणे शक्य झाले आहे. &nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; भारत सरकार एमएसएमईंना ई-कॉमर्स प्लॅटफॉर्मवर आपली उत्पादने विकण्यासाठी प्रोत्साहित करत आहे. ई-कॉमर्सच्या विकासासाठी आणि डिजिटलायझेशनला चालना देण्यासाठी भारत सरकारने मेक इन इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, भारत-नेट, गव्हर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस (GeM), नॅशनल अॅग्रिकल्चर मार्केट(eNAM), स्किल इंडिया, भारत इंटरफेस फॉर मनी(BHIM) असे अनेक उपक्रम राबविले आहेत. तसेच एमएसएमई क्षेत्रात परकीय थेट गुंतवणूक आकर्षित करण्यासाठी अनेक योजना राबविण्यात आल्या आहेत. परिणामी भारतातील एमएसएमई आणि ई-कॉमर्स क्षेत्राच्या विकासाला आणि वृद्धीला चालना मिळत आहे. प्रस्तुत शोधनिबंधात ई-कॉमर्स तंत्रज्ञानामुळे सूक्ष्म, लघु आणि मध्यम उद्योगांना निर्माण झालेल्या संधी यांचे सविस्तर विश्लेषण केले गेले आहे.
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द्वाराडॉ, बीनू, та सिंह अशोक. "कृतिम बुद्धिमत्ताबनाममानवीयबुद्धिमत्ता -एक वर्णनात्मक अध्धययन". International Journal of Advance and Applied Research 4, № 31 (2023): 11–13. https://doi.org/10.5281/zenodo.8365597.

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Abstract:
<strong>सारांश</strong><strong>-</strong> &nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; कृतिम बुद्धिमत्ता अर्थात आर्टिफीसियल इंटेलीजेन्स वह मशीनी तकनिकी है जो की मानव की भांति अनेको कार्य कर लेते है ,जबाब देते है ,निर्णय लेते है I सीरी एप्पल फ़ोन का एक ऐसा ही ऐप है । कृत्रिम बुद्धिमत्ता के अविष्कारों के कारण ड्राइवर बिहीन गाड़ियां ,ट्रैफिक के विषय में जानकारी ,मौसम के विषय में जानकारी ,बड़ी बड़ी गणनाये ,बाजार विपणन व्यवस्था ,विज्ञापन की दुनियां में नवीन आयाम स्थापित करना इत्यादि अंतहीन कार्य पलक झपकते ही कर सकते है Iआज हम जो कुछ भी कम्प्यूटर पर खोजते है ,जहा कही भी जाते है सब प्रकार की गतिबिधिओ पर कृतिम बुद्धिमत्ता&nbsp; द्वारा ही नजर रक्खी जा रही है I कृत्रिम बुद्धिमत्ता हमारी पूरी तरह से नक़ल कर सकता है ,हमारी आवाज पहचानता है ,हमारे निर्देशों का पालन करता हैI जिस कार्य को करने में महीनो लग जाते थे ,उस कार्य को कम्प्यूटर या रोबोट पल&nbsp; भर में कर लेते है I .प्रस्तुत प्रपत्र का मुख्य उद्देश्य कृतिम बुद्धिमत्ता बनाम मानवीय बुद्धिमत्ता से सहसम्बन्ध तथा सहअस्तित्व के महत्व तथा उसके दुष्परिणामों पर प्रकाश&nbsp; डालना है I
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Dr., Vibha Pandey. "डिजिटल मार्केटिंग". International Journal of Advance and Applied Research 9, № 6 (2022): 465–69. https://doi.org/10.5281/zenodo.7071077.

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Abstract:
<strong>सारांश</strong> डिजिटल मार्केटिंग, मार्केटिंग का वह घटक है जो उत्पादों और सेवाओं को बढ़ावा देने के लिए इंटरनेट और ऑनलाइन आधारित डिजिटल तकनीकों जैसे डेस्कटॉप कंप्यूटर, मोबाइल फोन और अन्य डिजिटल मीडिया और प्लेटफॉर्म का उपयोग करता है। 1990 और 2000 के दशक के दौरान इसके विकास ने ब्रांड और व्यवसायों के विपणन के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करने के तरीके को बदल दिया। जैसे-जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म तेजी से मार्केटिंग योजनाओं और रोजमर्रा की जिंदगी में शामिल होते गए, और जैसे-जैसे लोग भौतिक दुकानों पर जाने के बजाय डिजिटल उपकरणों का तेजी से उपयोग करते गए, डिजिटल मार्केटिंग अभियान प्रचलित हो गए हैं, जो सर्च इंजन ऑप्टिमाइजेशन (एसईओ) के संयोजन को नियोजित करते हैं। सर्च इंजन मार्केटिंग (SEM), कंटेंट मार्केटिंग, इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग, कंटेंट ऑटोमेशन, कैंपेन मार्केटिंग, डेटा-ड्रिवन मार्केटिंग, ई-कॉमर्स मार्केटिंग, सोशल मीडिया मार्केटिंग, सोशल मीडिया ऑप्टिमाइजेशन, ई-मेल डायरेक्ट मार्केटिंग, डिस्प्ले एडवरटाइजिंग, ई- किताबें, और ऑप्टिकल डिस्क और गेम आम हो गए हैं। डिजिटल मार्केटिंग का विस्तार गैर-इंटरनेट चैनलों तक है जो डिजिटल मीडिया प्रदान करते हैं, जैसे टेलीविजन, मोबाइल फोन (एसएमएस और एमएमएस), कॉलबैक, और ऑन-होल्ड मोबाइल रिंग टोन। गैर-इंटरनेट चैनलों का विस्तार डिजिटल मार्केटिंग को ऑनलाइन विज्ञापन से अलग करता है।
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Dr., Konade B. N. "शाश्वत विकासात दुग्ध व्यवसायाची भूमिका: अक्कलकोट तालुका एक भौगोलिक अभ्यास". International Journal of Advance and Applied Research 4, № 8 (2023): 61–64. https://doi.org/10.5281/zenodo.7800791.

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Abstract:
महाराष्ट्र हे पशुधन अनुवंशिक सामग्रीचे समृद्ध स्त्रोत आहे. 2022 मध्ये भारतात 254.6 दशलक्ष टन दुधाचे उत्पादन होते. या लेखामध्ये दुग्ध व्यवसायाचा शाश्वत विकासावर होणारा परिणाम व घटकांचा समावेश&nbsp;आहे. &nbsp;आर्थिक परिस्थिती, सामाजिक स्थिती, आर्थिक स्थलांतरण, जनावरांचे वर्गीकरण, जनावरांच्या प्रकारानुसार वर्गीकरण, &nbsp;व्यवसाय हेतू, आरोग्य स्थिती, व्यवसाय पद्धती, दुधाची विक्री करण्याच्या पद्धती, महिलांचा सहभाग, विघटनशील घटकांच्या उत्पादनानुसार वर्गीकरण, पशुखाद्याची निर्मिती, &nbsp;इत्यादी घटकांचा समावेश यात केला आहे. अर्थव्यवस्थेत पशुधन महत्त्वाची भूमिका बजावते.&nbsp;दुग्धव्यवसायाने देशातील पूर्ण विकसित उद्योगाची रूपरेषा देखील आत्मसात केली आहे आणि या व्यवसायात गुंतलेल्या लोकांचे जीवन सकारात्मकरित्या सुधारले आहे. संतुलित आहाराचा भाग म्हणून, दूध आणि दुग्धजन्य पदार्थ हे आहारातील उर्जा, प्रथिने आणि चरबीचे महत्त्वपूर्ण स्त्रोत असू शकतात. भारतीय शेती ही पीक आणि गुरेढोरे यांचे आर्थिक सहजीवन आहे. लाखो ग्रामीण छोटे दूध उत्पादक भारताच्या डेअरी उद्योगावर वर्चस्व गाजवतात. पशुपालन हा ग्रामीण भागातील सर्वात महत्त्वाचा आर्थिक क्रियाकलाप आहे. दुग्धव्यवसाय क्षेत्र आज 80 दशलक्ष शेतकरी कुटुंबांना पौष्टिक अन्न, पूरक उत्पन्न आणि कौटुंबिक श्रमासाठी उत्पादक रोजगार असे तिहेरी फायदे प्रदान करते. मुख्यत्वे महिलांसाठी संकरित गुरे आणि उच्च उत्पन्न देणार्&zwj;या म्हशींसह दुग्धव्यवसाय हा एक फायदेशीर व्यवसाय बनला आहे. पशुपालन घटकांनी सहज उपलब्ध करून दिलेल्या रोख रकमेमुळे, लहान शेतकरी पीक उत्पादनास प्राधान्य देतात. कृषी अर्थव्यवस्थेत आणि संसाधन गरीब शेतकरी/ग्रामीण लोकसंख्येच्या उपजीविकेत भरीव योगदानामध्ये दुग्धव्यवसायाचे महत्त्व ओळखून, दुग्ध विपणन पायाभूत सुविधा,पशुवैद्यकीय सेवा आणि आरोग्य सेवा, विस्तार समर्थन बळकट करण्यासाठी अनेक ठिकाणी उच्च प्राधान्य दिले जाते.
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Dr., Konade B. N., та Nandini A. Shinde Miss. "शाश्वत विकासात दुग्ध व्यवसायाची भूमिका: अक्कलकोट तालुका एक भौगोलिक अभ्यास". International Journal of Advance and Applied Research 4, № 8 (2023): 69–72. https://doi.org/10.5281/zenodo.7804474.

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Abstract:
महाराष्ट्र हे पशुधन अनुवंशिक सामग्रीचे समृद्ध स्त्रोत आहे. 2022 मध्ये भारतात 254.6 दशलक्ष टन दुधाचे उत्पादन होते. या लेखामध्ये दुग्ध व्यवसायाचा शाश्वत विकासावर होणारा परिणाम व घटकांचा समावेश&nbsp;आहे. &nbsp;आर्थिक परिस्थिती, सामाजिक स्थिती, आर्थिक स्थलांतरण, जनावरांचे वर्गीकरण, जनावरांच्या प्रकारानुसार वर्गीकरण, &nbsp;व्यवसाय हेतू, आरोग्य स्थिती, व्यवसाय पद्धती, दुधाची विक्री करण्याच्या पद्धती, महिलांचा सहभाग, विघटनशील घटकांच्या उत्पादनानुसार वर्गीकरण, पशुखाद्याची निर्मिती, &nbsp;इत्यादी घटकांचा समावेश यात केला आहे. अर्थव्यवस्थेत पशुधन महत्त्वाची भूमिका बजावते.&nbsp;दुग्धव्यवसायाने देशातील पूर्ण विकसित उद्योगाची रूपरेषा देखील आत्मसात केली आहे आणि या व्यवसायात गुंतलेल्या लोकांचे जीवन सकारात्मकरित्या सुधारले आहे. संतुलित आहाराचा भाग म्हणून, दूध आणि दुग्धजन्य पदार्थ हे आहारातील उर्जा, प्रथिने आणि चरबीचे महत्त्वपूर्ण स्त्रोत असू शकतात. भारतीय शेती ही पीक आणि गुरेढोरे यांचे आर्थिक सहजीवन आहे. लाखो ग्रामीण छोटे दूध उत्पादक भारताच्या डेअरी उद्योगावर वर्चस्व गाजवतात. पशुपालन हा ग्रामीण भागातील सर्वात महत्त्वाचा आर्थिक क्रियाकलाप आहे. दुग्धव्यवसाय क्षेत्र आज 80 दशलक्ष शेतकरी कुटुंबांना पौष्टिक अन्न, पूरक उत्पन्न आणि कौटुंबिक श्रमासाठी उत्पादक रोजगार असे तिहेरी फायदे प्रदान करते. मुख्यत्वे महिलांसाठी संकरित गुरे आणि उच्च उत्पन्न देणार्&zwj;या म्हशींसह दुग्धव्यवसाय हा एक फायदेशीर व्यवसाय बनला आहे. पशुपालन घटकांनी सहज उपलब्ध करून दिलेल्या रोख रकमेमुळे, लहान शेतकरी पीक उत्पादनास प्राधान्य देतात. कृषी अर्थव्यवस्थेत आणि संसाधन गरीब शेतकरी/ग्रामीण लोकसंख्येच्या उपजीविकेत भरीव योगदानामध्ये दुग्धव्यवसायाचे महत्त्व ओळखून, दुग्ध विपणन पायाभूत सुविधा,पशुवैद्यकीय सेवा आणि आरोग्य सेवा, विस्तार समर्थन बळकट करण्यासाठी अनेक ठिकाणी उच्च प्राधान्य दिले जाते.
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Dr., Konade B. N., та Nandini A. Shinde Miss. "शाश्वत विकासात दुग्ध व्यवसायाची भूमिका: अक्कलकोट तालुका एक भौगोलिक अभ्यास". International Journal of Advance and Applied Research 4, № 8 (2023): 80–83. https://doi.org/10.5281/zenodo.7807636.

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Abstract:
महाराष्ट्र हे पशुधन अनुवंशिक सामग्रीचे समृद्ध स्त्रोत आहे. 2022 मध्ये भारतात 254.6 दशलक्ष टन दुधाचे उत्पादन होते. या लेखामध्ये दुग्ध व्यवसायाचा शाश्वत विकासावर होणारा परिणाम व घटकांचा समावेश&nbsp;आहे. &nbsp;आर्थिक परिस्थिती, सामाजिक स्थिती, आर्थिक स्थलांतरण, जनावरांचे वर्गीकरण, जनावरांच्या प्रकारानुसार वर्गीकरण, &nbsp;व्यवसाय हेतू, आरोग्य स्थिती, व्यवसाय पद्धती, दुधाची विक्री करण्याच्या पद्धती, महिलांचा सहभाग, विघटनशील घटकांच्या उत्पादनानुसार वर्गीकरण, पशुखाद्याची निर्मिती, &nbsp;इत्यादी घटकांचा समावेश यात केला आहे. अर्थव्यवस्थेत पशुधन महत्त्वाची भूमिका बजावते.&nbsp;दुग्धव्यवसायाने देशातील पूर्ण विकसित उद्योगाची रूपरेषा देखील आत्मसात केली आहे आणि या व्यवसायात गुंतलेल्या लोकांचे जीवन सकारात्मकरित्या सुधारले आहे. संतुलित आहाराचा भाग म्हणून, दूध आणि दुग्धजन्य पदार्थ हे आहारातील उर्जा, प्रथिने आणि चरबीचे महत्त्वपूर्ण स्त्रोत असू शकतात. भारतीय शेती ही पीक आणि गुरेढोरे यांचे आर्थिक सहजीवन आहे. लाखो ग्रामीण छोटे दूध उत्पादक भारताच्या डेअरी उद्योगावर वर्चस्व गाजवतात. पशुपालन हा ग्रामीण भागातील सर्वात महत्त्वाचा आर्थिक क्रियाकलाप आहे. दुग्धव्यवसाय क्षेत्र आज 80 दशलक्ष शेतकरी कुटुंबांना पौष्टिक अन्न, पूरक उत्पन्न आणि कौटुंबिक श्रमासाठी उत्पादक रोजगार असे तिहेरी फायदे प्रदान करते. मुख्यत्वे महिलांसाठी संकरित गुरे आणि उच्च उत्पन्न देणार्&zwj;या म्हशींसह दुग्धव्यवसाय हा एक फायदेशीर व्यवसाय बनला आहे. पशुपालन घटकांनी सहज उपलब्ध करून दिलेल्या रोख रकमेमुळे, लहान शेतकरी पीक उत्पादनास प्राधान्य देतात. कृषी अर्थव्यवस्थेत आणि संसाधन गरीब शेतकरी/ग्रामीण लोकसंख्येच्या उपजीविकेत भरीव योगदानामध्ये दुग्धव्यवसायाचे महत्त्व ओळखून, दुग्ध विपणन पायाभूत सुविधा,पशुवैद्यकीय सेवा आणि आरोग्य सेवा, विस्तार समर्थन बळकट करण्यासाठी अनेक ठिकाणी उच्च प्राधान्य दिले जाते.
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राजकुमार, साहू, та संजीव कुमार डॉ. "जनपद फ़र्रूख़ाबाद के ग्रामीण क्षेत्रों में आधारभूत संरचना विकास और उसका आर्थिक प्रगति पर प्रभाव". International Journal of Advance and Applied Research 12, № 4 (2025): 336–48. https://doi.org/10.5281/zenodo.15480261.

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Abstract:
<em>यह अध्ययन जनपद फ़र्रूख़ाबाद के ग्रामीण क्षेत्रों में आधारभूत संरचना विकास एवं उसके आर्थिक प्रगति पर प्रभाव का मूल्यांकन करने के उद्देश्य से किया गया है। भारत जैसे विकासशील देश में आधारभूत संरचना &ndash; जैसे सड़क</em><em>, बिजली, जल, स्वास्थ्य, शिक्षा, और डिजिटल सेवाएँ &ndash; ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास की रीढ़ मानी जाती हैं। शोध में 212 उत्तरदाताओं से डेटा संकलन कर उनके क्षेत्रों में उपलब्ध अधोसंरचना सुविधाओं और आय, रोजगार, स्वरोजगार, शिक्षा स्तर, व सामाजिक जीवन में आने वाले परिवर्तनों का अध्ययन किया गया। &nbsp;परिणामों से स्पष्ट हुआ कि जिन ग्रामीण क्षेत्रों में अधोसंरचना सुविधाएँ सुलभ और सशक्त थीं, वहाँ की आर्थिक प्रगति तुलनात्मक रूप से अधिक थी। सड़क और परिवहन व्यवस्था ने कृषि विपणन को सरल बनाया, बिजली और जल सुविधाओं ने कृषि और घरेलू उत्पादकता में वृद्धि की, तथा शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं ने मानव संसाधन की गुणवत्ता को बेहतर किया। साथ ही, डिजिटल अधोसंरचना ने युवाओं को स्वरोजगार की दिशा में प्रेरित किया। अध्ययन से यह भी ज्ञात हुआ कि योजनाओं की असमान पहुँच, जानकारी की कमी और प्रशासनिक अड़चनें कुछ क्षेत्रों में बाधा बनी हुई हैं। अतः यह निष्कर्ष निकाला गया कि यदि आधारभूत संरचना को क्षेत्रीय आवश्यकता और समावेशी दृष्टिकोण के साथ सशक्त किया जाए, तो यह ग्रामीण भारत को आत्मनिर्भरता और सतत विकास की दिशा में अग्रसर कर सकता है।</em>
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प्रा., नरेंद्र संदीपन फडतरे. "आधुनिक तकनीकी और हिंदी कथा-साहित्य". International Journal of Advance and Applied Research 4, № 15 (2023): 30–32. https://doi.org/10.5281/zenodo.7866823.

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Abstract:
वर्तमान समय सूचना प्रौद्योगिकी का युग है, सूचना प्रौद्योगिकी एक सरल तंत्र है जो तकनीकी प्रयोग के सहारे सूचनाओं का संकलन, प्रक्रिया व संप्रेषन करता है। कंप्यूटर व सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में जो विकास हुआ है वह भाषा के क्षेत्र में भी मौन क्राँति का वाहक बन कर आया है। अभी तक भाषा जो केवल मनुष्यों के आवशकताओं को पूरा कर रही थी, उसे सूचना प्रौद्योगिकी के इस युग में मशीन व कंप्यूटर की नित नई भाषायी मांगों को पूरा करना पड़ रहा है। यह सर्वज्ञात है कि कंप्यूटर में राजभाषा हिंदी में कार्य करना सुगम बनाया है। हिंदी में कंप्यूटर स्थानीयकरण का कार्य काफी पहले प्रारंभ हुआ और अब यह आंदोलन की शक्ल ले चुका है। हिंदी सॉफ्टवेयर लोकलाइजेशन का कार्य सर्वप्रथम सी- डैक द्वारा 90 के दशक में किया गया था। वर्तमान में हिंदी भाषा के लिये कई संगठन कार्य करते है, मौजूदा समय में हिंदी &lsquo;ग्लोबल हिंदी&rdquo; में परिवर्तित हो गयी है, आज तकनीकी विकास के युग में दूसरे देशों के लोग भी, भले की विपणन के लिए ही सही, हिंदी भाषा सीख रहे हैं। आज स्थिति यह है कि भारत व चीन के व्यवसायिक संबंधों को बढ़ाने की संभावनाओं के तलाश के लिये लगभग दस हज़ार लोगपेइचिंग में हिंदी सीख रहे हैं। आज से लगभग 45 वर्ष पूर्व कंप्यूटर पर हिंदी में कार्य आरंभ हुआ और इसी तरह एंकोडिंग व डिकोडिंग के माध्यम से विश्व की विभिन्न भाषाएँ भी कंप्यूटर पर सुलभ होने लगी, इस तकनीकी विकास ने भारतीय भाषाओं को जोड़ा है , कंप्यूटर के माध्यम से विभिन्न सॉफ्टवेयरों,सी-डैक संस्था के हिंदी सीखने सीखाने के विभिन्न कंप्यूटरीकृत कार्यक्रमों जैसे- प्रबोध, प्रवीण व प्राज्ञ पाठ्यक्रमों के लिये लीला वाचिक तकनीक के प्रयोग ने भाषा सीखने की प्रक्रिया को विभिन्न भाषा माध्यमों से बिलकुल आसान बना दिया जिससे भाषायी निकटता का उदय हुआ, जिसके वज़ह से भाषायी एकता आना स्वाभाविक था।
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Mathur, Reena. "पाली जिले में कृषि का बदलता हुआ स्वरुप". International Journal of Education, Modern Management, Applied Science & Social Science 07, № 01(II) (2025): 91–101. https://doi.org/10.62823/ijemmasss/7.1(ii).7275.

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Abstract:
पाली जिला, राजस्थान का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है, जहाँ कृषि का स्वरूप पिछले कुछ दशकों में उल्लेखनीय रूप से बदला है। परंपरागत रूप से यह क्षेत्र वर्षा आधारित कृषि पर निर्भर था, जिसमें मुख्यतः बाजरा, ज्वार, गेहूं, चना, और सरसों जैसी खाद्य फसलें उगाई जाती थीं। हालांकि, जलवायु परिवर्तन, आधुनिक कृषि तकनीकों की उपलब्धता, सरकारी योजनाओं और किसानों की बदलती प्राथमिकताओं के कारण कृषि प्रणाली में व्यापक बदलाव देखने को मिले हैं। अब किसान पारंपरिक फसलों के साथ-साथ नकदी फसलों जैसे जीरा, इसबगोल, और सब्जियों की खेती की ओर भी बढ़ रहे हैं, जिससे उनकी आय में वृद्धि हो रही है। सिंचाई प्रणाली में सुधार, विशेष रूप से ड्रिप और स्प्रिंकलर जैसी तकनीकों को अपनाने से जल संरक्षण संभव हुआ है, जिससे खेती अधिक टिकाऊ बन सकी है। इसके अलावा, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, और किसान क्रेडिट कार्ड योजना जैसी सरकारी योजनाओं ने किसानों को आर्थिक सहायता और संसाधन उपलब्ध कराए हैं, जिससे कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई है। आधुनिक कृषि यंत्रीकरण, उन्नत बीजों का उपयोग, जैविक खेती की ओर बढ़ती प्रवृत्ति, और कृषि विपणन संरचना में सुधार ने इस क्षेत्र की कृषि प्रणाली को नया रूप दिया है। इन परिवर्तनों से न केवल कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई है, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी सुदृढ़ किया गया है। हालांकि, भूजल स्तर में गिरावट, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, और कृषि निवेश लागत में वृद्धि जैसी चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं, जो इस क्षेत्र में कृषि की स्थिरता के लिए एक गंभीर चिंता का विषय हैं। इस शोधपत्र में पाली जिले में कृषि के बदलते स्वरूप का गहन अध्ययन किया गया है, जिसमें कृषि नीतियों, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, तकनीकी नवाचारों, और किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर पड़ने वाले प्रभावों का विश्लेषण किया गया है। यह अध्ययन कृषि क्षेत्र में सतत विकास के लिए नई रणनीतियों और नीतियों को विकसित करने में सहायक सिद्ध होगा, जिससे पाली जिले की कृषि को अधिक लाभकारी और टिकाऊ बनाया जा सके।
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Yadav, Monika. "TEMPORAL AND SPATIAL CHANGES IN CROP DIVERSITY AND ITS IMPACT WITH SPECIAL REFERENCE TO DISTRICT PRAYAGRAJ." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 9, no. 6 (2021): 256–64. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v9.i6.2021.4016.

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Abstract (English)- Human beings have to face different types of risks and uncertainties in their daily activities. Agriculture sector is also not untouched by it. Agriculture is fraught with uncertainty like rain, flood, drought and risk of diseases, pests and market fluctuation etc. In such a situation, undoubtedly crop diversity is a useful concept, which is very helpful for better use of agricultural resources and mitigation of risks related to agricultural production and providing quick and regular benefits to the farmers. Crop diversification refers to growing multiple crops instead of just a single crop, but crop diversification requires the highest level of managerial investment by each farmer. It is required to tackle the difficulties related to the low surplus, operation and marketing of the produce of agricultural products. Effective policy and investment are needed to overcome these difficulties. In fact, crop diversification exists as an effective strategy for achieving multiple aims like food security, nutritional security, poverty alleviation, availability of new employment opportunities, sustainable use of land, agricultural development and environmental improvement. (Hindi)- मनुष्य को अपने दैनिक गतिविधियों में विभिन्न प्रकार के जोखिमों तथा अनिश्चितता का सामना करना पड़ता है। कृषि क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है किसान विभिन्न प्रकार की अनिश्चितता और जोखिमों को उठाते हुए कृषि कार्य करता है। वर्षा, बाढ़, सूखा आदि अनिश्चितता तथा रोग कीट तथा बाजार के उतार-चढ़ाव के जोखिमों से कृषि कार्य भरा हुआ है। ऐसे में निःसंदेह फसल विविधता उपयोगी संकल्पना है जो कृषि संसाधनों के बेहतर प्रयोग, तथा कृषि उत्पादों से संबंधित जोखिमों के न्यूनीकरण व किसानों को शीघ्र तथा नियमित लाभ प्रदान करने हेतु अत्यन्त सहायक है। फसल विविधता का अभिप्राय केवल एक ही फसल उगाने के स्थान पर कई फसलें उगाना है। किंतु फसल विविधता हेतु प्रत्येक किसान द्वारा प्रबंधकीय निवेश के उच्चतम स्तर की आवश्यकता होती है। कृषि उत्पादों के न्यून अधिशेष, संचालन तथा उत्पादन के विपणन से संबंधित कठिनाइयों को दूर करना वांछनीय है। इन कठिनाइयों को दूर करने हेतु प्रभावशाली नीति तथा निवेश की आवश्यकता है। वास्तव में फसल विविधता खाद्य सुरक्षा, पोषण सुरक्षा, गरीबी उन्मूलन, रोजगार के नए अवसर की उपलब्धता, भूमि का धारणीय प्रयोग, कृषि विकास तथा पर्यावरण सुधार के बहुउद्देश्य को प्राप्त करने के लिए एक प्रभावशाली रणनीति के रूप में विद्यमान है।
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Adhikari, Anil. "दुबसु क्षेत्रीका कवितामा विपठन". Dristikon: A Multidisciplinary Journal 15, № 1 (2025): 155–68. https://doi.org/10.3126/dristikon.v15i1.77137.

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Abstract:
प्रस्तुत लेख कवि दुबसु क्षेत्रीका कवितामा विपठन मूल समस्यासँग सम्बन्धित विषयको विश्लेषणमा केन्द्रित रहेको छ । पुस्तकालयबाट सङ्कलित सामग्रीको उपयोग गरिएको यस लेखमा गुणात्मक अनुसन्धान पद्धति तथा पाठमा प्रस्तुत विषयवस्तुको विश्लेषणमा आधारित विश्लेषणात्मक विधिको उपयोग भएको छ । विनिर्माणिक प्रक्रियाका रूपमा विपठन साहित्यमा अन्तर्पाठीयताका माध्यमबाट कुनै पनि कृति स्वायत्त, सार्वभौम तथा स्वतन्त्र विधात्मक अभिलक्षणयुक्त नभई बहुल सौन्दर्यनिर्मितिमा आधारित हुन्छन् भन्ने अवधारणा हो । कवि क्षेत्रीका कविता पूर्वपाठको पुनर्पठन र उत्तरपठन भई संरचित रहेका छन् । यिनका पूर्वपाठको पुनर्पठन गरी रचना गरिएका कवितामा नेपाली साहित्यका मानवभूगोलमा स्थापित मानवीय विश्वाससँग सम्बन्धित आप्तवाक्यका साथै पूर्वस्थापित साहित्यकारका सिर्जनामा अभिव्यक्त गरिएका विषयलाई जस्ताको तस्तै प्रयोग गरी नयाँ पाठनिर्मितिका लागि अन्तर्वस्तुका रूपमा उपयोग गरिएको छ । पूर्वपाठको उत्तरपठन गरिएका कृतिका विषयवस्तु, कला र भावसौन्दर्यको निर्मितिका लागि पुनर्पठनकै सादृश्य पाठको विपठन गरिएको छ । यस लेखमा विनिर्माणिक प्रक्रियाका रूपमा विपठनसम्बन्धी अवधारणाका आधारमा क्षेत्रीका कविताको विश्लेषण गरी काव्यिक सौन्दर्य निर्मितिका लागि पुनर्पठन र उत्तरपठन गरिएका कृति साहित्यिक रूपमा बहुल सौन्दर्य प्रस्तुत गर्ने पाठमा परिणत भएको विषयमा विमर्श गरिएको छ ।
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अधिकारी थापा Adhikari Thapa, सीता Sita. "स्वप्‍नबगैँचामा एक छाया कथाको विपठन". ज्ञानदिप Gyandeep 10, № 2 (2025): 149–59. https://doi.org/10.3126/gyandeep.v10i2.77332.

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Abstract:
प्रस्तुत लेखमा रमेश क्षितिजको ‘स्वप्‍नबगैँचामा एक छाया’ कथाको विपठन गरिएको छ । उत्तरआधुनिक मान्यताअनुसार विपठनलाई साहित्यिक कृति वा पाठको विनिर्माणिक पठन प्रक्रियाका रूपमा लिइएको छ । विनिर्माणको सैद्धान्तिक मान्यताअनुसार हरेक पाठको विपठन गर्न सकिन्छ । कथामा प्रस्तुत भएका विनिर्माणिक सन्दर्भको खोजी गरी तिनको पहिचान एवं विश्‍लेषण गरिएकाले यो अध्ययन गुणात्मक प्रकृतिको रहेको छ । यस लेखका लागि व्याख्यात्मक एवम् विश्‍लेषणात्मक विधिको प्रयोग गरिएको छ । ‘स्वप्‍नबगैँचामा एक छाया’ कथामा साहित्यिक विधाहरूको अन्तर्मिश्रण, पौराणिक मिथकीय सन्दर्भ, दर्शन र इतिहासका विषयको अन्तर्पाठ भएका सन्दर्भहरूको खोजी गरी तिनको व्याख्या विश्‍लेषण गरिएको छ । साहित्यको गद्याख्यान विधाको रूपमा स्थापित कथाको कविता, नाटक, निबन्ध लगायतका विधासँग अन्तर्विधात्मक सम्बन्ध रहनुका साथै अन्य विधातत्त्वको प्रविष्टिले कथामा विधामिश्रणका प्रवृत्ति देखिएको छ । नेपाली कथाको परम्परित मान्यताको विपरीत यस कथामा अन्य विधाको उपस्थितिले विधागत स्वायत्तताको भञ्‍जनले केन्द्रभञ्‍जन प्रवृत्ति देखिएको छ । नेपालको इतिहाससँग सन्दर्भित यथार्थ स्थानगत परिवेश र काल्पनिक पात्रलाई आधार बनाई तथ्य र कल्पनाको सम्मिश्रण गरी प्रस्तुत कथाको कथ्य संरचना तयार पारिएको छ । कथामा कविताको अंश साहित्यिक अन्तर्पाठका रूपमा, पुराणमा वर्णित पात्रका नाम, क्रियाकलापलगायत मिथकीय सन्दर्भहरू अन्तर्पाठका रूपमा प्रयोग भएका छन् । कथाको शिल्प र संरचनामा बहुलवादी प्रवृत्तिहरूको प्रयोगपरकताले यसमा आख्यान लेखनको भिन्‍न वैशिष्ट्यसहित बहुलता र अर्थगत अनिश्‍चितता प्रस्तुत भएको छ । यस अध्ययनबाट ‘स्वप्‍नबगैँचामा एक छाया’ कथामा कथाभित्र कविता, नाटकीयता, दर्शन, निबन्धात्मकता, मिथकीयताको सम्मिश्रण जस्ता उत्तरआधुनिक आख्यान प्रविधिको प्रयोग रहेकाले बहुलताको चेतना रहेको निष्कर्ष प्राप्त भएको छ ।
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कोमल, अरविंद फटांगरे. "विपिन बिहारी के उपन्यासों में चित्रित दलित जीवन". International Journal of Humanities, Social Science, Business Management & Commerce 08, № 01 (2024): 270–73. https://doi.org/10.5281/zenodo.10531791.

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Poudel, Suraj. "विवस्त्र रामायण कथामा नारीवाद". Prithvi Darpan पृथ्वी दर्पण 7, № 1 (2025): 97–105. https://doi.org/10.3126/pdj.v7i1.78456.

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Abstract:
प्रस्तुत ‘विवस्त्र रामायण’ मा ‘नारीवाद’ शीर्षकको आलेख उत्तरआधुनिक नारीवादी कोणबाट ‘विवस्त्ररामायण’ कथालाई केलाउने उद्देश्यले तयार गरिएको हो । कथाकार अर्चना थापाद्वारा लिखित ‘विवस्त्ररामायण’ कथालाई नारीवादी कोणबाट विश्लेषण गर्ने सन्दर्भमा मूलतः पुस्तकालय कार्यको उपयोगगर्दै प्राथमिक र द्वितीयक स्रोतका सामग्रीहरू सङ्कलन गरी तिनको अध्ययन विश्लेषणबाट प्राप्ततथ्यलाई तर्क, प्रमाण र कार्य कारण सम्बन्धका आधारमा पुष्टि गरिएको छ । प्रस्तुत कथालाई नारीवादीकोणबाट हेर्दा ‘रामायण’ लाई विपठन÷विनिर्माण गरी पुरूषद्वारा पीडित नारीका पीडालाई मिनाक्षी रमैथिलीका माध्यमबाट प्रस्तुत गरिएको छ । पितृसत्ताका कारण रामायणका नारी पात्रहरूले मनभरिपीडा बोकेर बनावटी हाँसो हाँस्नु परेको वास्तविकतालाई कथामा प्रस्तुत गरिएको छ । पितृसत्ताको विरोध, विगतप्रति चरम विद्रोह, अस्तित्वशून्य आदर्श जीवनप्रतिको अनास्था, नारीअस्मिताको अग्निपरीक्षा, नारी स्वतन्त्रताको वकालतजस्ता पक्षहरू कथामा उद्घाटित भएका छन्। पुरूषप्रधान समाजकानारीहरूले सदियांदेखि भोग्दै आएका पीडा र व्यथाहरूलाई प्रतिकार र प्रतिरोध गर्ने कार्य मिनाक्षी रमैथिलीका माध्यमबाट भएको छ । यसरी हेर्दा गहन बौद्धिकता र तार्किकताका साथ लेखिएको ‘विवस्त्ररामायण’ विषयवस्तुका दृष्टिले मात्र नभई प्रस्तुतिका दृष्टिले पनि नवीन र उत्कृष्ट कथा हो ।
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Meena, Ramjeelal. "The role of extremism in the Indian independence movement." RESEARCH HUB International Multidisciplinary Research Journal 10, no. 5 (2023): 27–31. http://dx.doi.org/10.53573/rhimrj.2023.v10n05.005.

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Abstract:
In the present paper a historical study of the role of extremism in the Indian National Movement has been made. The late nineteenth and early twentieth centuries saw the rise of a new party in the Indian National Congress, which was fiercely critical of the ideals and methods of the old leaders. These angry young people wanted that the aim of the Congress should be Swaraj, which they should achieve with self-confidence and self-reliance. This new party is said to be extremist in comparison to the old moderates. Despite the long efforts of the liberals, basically nothing could be achieved. It is understood that the government has taken the Liberals' efforts as a sign of weakness. Therefore, leaders like Bankim Chandra Chatterjee, Aurobindo Ghosh, Bal Gangadhar Tilak, criticizing the liberals, spoke of achieving independence through strong pressure. In this phase of the Indian National Movement, militants were launched on the one hand and revolutionary movements on the other. Both were fighting for the sole cause of freedom from the British rule and the attainment of complete independence. On the one hand people of militant ideology were fighting on the basis of boycott movement, on the other hand, people of revolutionary ideology wanted to gain freedom by using bombs and guns. Bal Gangadhar Tilak, Lala Lajpat Rai and Vipin Chandra Pal played an important role in the rise of nationalism in India by extremists.&#x0D; Abstract in Hindi Language:&#x0D; प्रस्तुत पत्र में भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में उग्रवाद की भूमिका का एक ऐतिहासिक अध्ययन किया गया है। उन्नीसवीं और बीसवीं सदी के उत्तरार्ध में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में एक नई पार्टी का उदय हुआ, जो पुराने नेताओं के आदर्शों और तरीकों की कट्टर आलोचक थी। ये नाराज तरुण लोग चाहते थे कि कांग्रेस का उद्देश्य स्वराज होना चाहिए, जिसे उन्हें आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता के साथ हासिल करना चाहिए। इस नई पार्टी को पुराने उदारवादियों की तुलना में उग्रवादी कहा जाता है। उदारवादियों के लंबे प्रयासों के बावजूद, मूल रूप में कुछ भी हासिल नहीं किया जा सका। यह समझा जाता है कि सरकार ने उदारवादियों के प्रयासों को कमजोरी का संकेत माना है। इसलिए, बंकिम चंद्र चटर्जी, अरविंद घोष, बाल गंगाधर तिलक जैसे नेताओं ने उदारवादियों की आलोचना करते हुए, मजबूत दबाव के माध्यम से स्वतंत्रता प्राप्त करने की बात कही। भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के इस चरण में, एक तरफ उग्रवादियों को चलाया गया और दूसरी तरफ क्रांतिकारी आंदोलनों को। दोनों एकमात्र उद्देश्य, ब्रिटिश राज्य से मुक्ति और पूर्ण स्वराज्य की प्राप्ति के लिए लड़ रहे थे। एक ओर उग्रवादी विचारधारा के लोग बहिष्कार आंदोलन के आधार पर लड़ रहे थे, दूसरी ओर, क्रांतिकारी विचारधारा के लोग बम और बंदूकों के इस्तेमाल से आजादी हासिल करना चाहते थे। बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय और विपिन चंद्र पाल ने भारत में उग्रवादियों ने राष्ट्रवाद के उदय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।&#x0D; Keywords: उग्रवादियों का उदय, अतिवाद के कारण, लाजपत राय का कथन, भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में उग्रवाद के उदय और उग्रवादियों की भूमिका।
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-, दुर्गा कुमारी. "कृषि विपणन के समक्ष चुनौतियाँ और समाधान". International Journal For Multidisciplinary Research 5, № 1 (2023). http://dx.doi.org/10.36948/ijfmr.2023.v05i01.1521.

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Abstract:
भारतीय कृषि के सामने न सिर्फ अपने मामले में बल्कि समग्र आर्थिक स्थिति के एक हिस्से के रूप में भी अनेक बड़ी चुनौलियाँ हैं। कृषि की चुनौतियों पर दृष्टिपात् करते हैं तो पाते हैं कि कुछ चुनौतियाँ स्वयं उस (कृषि) क्षेत्र के लिए विशिष्ट हैं, जबकि अन्य चुनौतियाँ कमोबेश बाकी सभी आर्थिक गतिविधियों में समान हैं। किसानों के हितों का ध्यान रखते हुए स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् से ही सरकार ने कृषि उपज को विपणन व्यवस्था में काफी सुधार किए हैं। मण्डियों में व्याप्त कपटपूर्ण पद्धतियों पर रोक लगायी है, भंडार गृहों की स्थापना की है, मध्यस्थों में कमी कर मूल्यों को नियंत्रित किया है। इन सबके बावजूद वर्तमान में कृषि उपज की विपणन व्यवस्था में दोष व्याप्त है। इस अध्याय में कृषि विपणन के समक्ष चुनौतियों और उनके समाधान का विवेचन प्रस्तुत किया जायेगा।
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चौधरी, सुषमा. "औषधीय पौधों की कृषि विपणन का समीक्षात्मक मूल्यांकन (जबलपुर जिले के विशेष सन्दर्भ में)". International Journal of Advances in Social Sciences, 31 березня 2023, 41–47. http://dx.doi.org/10.52711/2454-2679.2023.00007.

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Abstract:
भारत में औषधीय पौधों की कृषि विपणन सर्वाधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि देश की श्रम शक्ति का 64 प्रतिशत भाग कृषि क्षेत्र से आजीविका प्राप्त करता है तथा सकल घरेलू उत्पादन में कृषि का क्षेत्र का हिस्सा 20 प्रतिशत के लगभग है। आज बाज़ार तथा बाज़ार सम्बन्धी क्रिया दोनों ही आर्थिक कोई भी देश जहॉ की अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान हो तथा कृषि ही उस देश की जनसंख्या के अधिकांश भाग के भरण-पोषण का एक मात्र आधार हो उस देश की सरकार का यह उत्तरदायित्व होता है कि इसकी उन्नति पर विशेष ध्यान दे। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् अपनी सरकार ने कृषि विकास के महत्व को स्वीकारते हुए योजनाओं मे इसको मुख्य स्थान दिया। फलस्वरूप हरित क्रान्ति का सृजन और चलन हुआ, आधुनिक तकनीकी युक्त कृषियन्त्रों, कृषि उपकरणों, उन्नत बीजो का प्रचलन तथा रासायनिक उर्वरको के उपयोग में वृद्धि ने उत्पादन तथा उत्पादकता के स्तर को समुनन्त किया। कृषि के उन्नत के साथ कृषि विपणन व्यवस्था का उन्नत होना आवश्यक है, क्योंकि यह अनुभव किया जाने लगा है कि कृषि उत्पादों के विपणन का उतना ही महत्व है जितना स्वतः उत्पादन का वस्तुतः विपणन की क्रिया का अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका होती है, क्योंकि इसके द्वारा उपभोग और उत्पादन में सन्तुलन ही नही वरन् अधिक विकास का स्वरूप भी निर्धारित होता है।
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चौधरी, सुषमा. "कृषि विपणन की दशा का समीक्षात्मक मूल्यांकन (सतना जिले के विशेष सन्दर्भ में)". International Journal of Reviews and Research in Social Sciences, 31 березня 2023, 31–36. http://dx.doi.org/10.52711/2454-2687.2023.00005.

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Abstract:
कोई भी देश जहॉ की अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान हो तथा कृषि ही उस देश की जनसंख्या के अधिकांश भाग के भरण-पोषण का एक मात्र आधार हो उस देश की सरकार का यह उत्तरदायित्व होता है कि इसकी उन्नति पर विशेष ध्यान दे। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् अपनी सरकार ने कृषि विकास के महत्व को स्वीकारते हुए योजनाओं मे इसको मुख्य स्थान दिया। फलस्वरूप हरित क्रान्ति का सृजन और चलन हुआ, आधुनिक तकनीकी युक्त कृषियन्त्रों, कृषि उपकरणों, उन्नत बीजो का प्रचलन तथा रासायनिक उर्वरको के उपयोग में वृद्धि ने उत्पादन तथा उत्पादकता के स्तर को समुनन्त किया। कृषि के उन्नत के साथ कृषि विपणन व्यवस्था का उन्नत होना आवश्यक है, क्योंकि यह अनुभव किया जाने लगा है कि कृषि उत्पादों के विपणन का उतना ही महत्व है जितना स्वतः उत्पादन का वस्तुतः विपणन की क्रिया का अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका होती है, क्योंकि इसके द्वारा उपभोग और उत्पादन में सन्तुलन ही नही वरन् अधिक विकास का स्वरूप भी निर्धारित होता है।
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घायाळ, अरुण सदाशिव. "भाजीपाला विक्रेत्यांच्या समस्यांचे अध्ययन". Gurukul International Multidisciplinary Research Journal, 30 квітня 2025. https://doi.org/10.69758/gimrj/25040401v13p0015.

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Abstract:
सारांश :- कृषीप्रधान अर्थव्यवस्थेत कृषी विपणन महत्वाचे असते. कृषी विपणनात अनेक कृषीमालाची खरेदी व विक्री होत असते.या कृषीमालात भाजीपाला उत्पादनाचे खूप महत्व आहे. कारण दैनंदिन खाद्य पदार्थ तयार करण्यासाठी आवश्यक भाजीपाला असतो. कृषी विपणनात भाजीपाला विक्रेता कृषीमाल विकत घेऊन ग्राहकांना त्याची विक्री करण्याचा व्यवसाय करीत असतो आणि यावरच उदरनिर्वाह चालवीत असतो. भाजीपाला व्यवसायांमुळे रोजगार निर्मिती होते. तसेच शेतीक्षेत्र विकास होण्यास मदत होते. भाजीपाला विक्री व्यवसाय हा कमी भांडवलात करण्यात येणारा व्यवसाय असून आजमितीस अनेक लोक या व्यवसायात काम करीत आहेत. परंतु हा व्यवसाय करतांना भाजीपाला विक्रेत्यांना अनेक समस्यांना सामोरे जावे लागते. भाजीपाला व्यवसायांसमोरील समस्यांचे निराकरण केल्यास अर्थव्यवस्था विकासाला चालना मिळते. Keywords :- कृषीक्षेत्र , कृषीमाल , कृषी विपणन
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Sharma, Seema Kaushik, та Rajendra Lal. "खेलों में सोशल मीडिया की विषय-वस्तु का विश्लेषण". ShodhKosh: Journal of Visual and Performing Arts 2, № 2 (2021). https://doi.org/10.29121/shodhkosh.v2.i2.2021.5111.

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Abstract:
सोशल मीडिया आज वैश्विक रूप से हमारे दैनिक जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन चुका है और खेल जगत भी इससे अछूता नहीं है। आधुनिक सूचना तकनीक ने खेल उद्योग में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिए हैं। फेसबुक, यूट्यूब, इंस्टाग्राम, ट्विटर, लिंक्डइन, पिंटरेस्ट, स्नैपचैट और गूगल+ जैसे विभिन्न वेबसाइट्स और मोबाइल एप्लिकेशन खेलों से संबंधित जानकारी और आँकड़े साझा करने में विशेष रूप से सहायक रहे हैं। कॉलेज और पेशेवर खेल विपणन टीमें लंबे समय से दृश्य मीडिया की शक्ति का उपयोग कर रही हैं ताकि मैदान पर हो रही घटनाओं को छोटे पर्दे पर दिखाया जा सके, जिससे प्रशंसकों को प्रेरणा मिले, खेलों में अधिक दर्शक जुटें और भीड़ का जोश बढ़े जो अंततः मैदान पर खिलाड़ियों को भी प्रेरित करता है।इसलिए, प्रस्तुत शोधपत्र का उद्देश्य विभिन्न लोकप्रिय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स का संक्षिप्त वर्णन प्रस्तुत करना और यह पहचानना है कि सोशल मीडिया किन विषयों/क्षेत्रों में खेलों का विपणन कर रहा है। अध्ययन की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए, वेबसाइट्स और स्वयं सोशल मीडिया से संबंधित साहित्य एकत्र किया गया है। विभिन्न रिपोर्टों और सर्वेक्षणों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि खेलों में सोशल मीडिया विपणन की सामग्री में खिलाड़ियों के प्रशिक्षण विवरण साझा करना, खेल से पहले का उत्साह निर्माण करना, किसी स्टार/विशेष खिलाड़ी को उजागर करना, खेल की दृश्य पुनरावलोकन बनाना, प्रतिक्रिया प्राप्त करना, प्रशंसकों की भागीदारी, चीयरलीडर्स की भूमिका और किसी खिलाड़ी के सकारात्मक या नकारात्मक पक्ष को उजागर करना शामिल है।
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राम, बीजू, та सुनील कुमार कुमेटी. "छत्तीसगढ़ के कोण्डागांव जिला में लघु वनोपजों का जनजातीय विकास में योगदान". International Journal of Advances in Social Sciences, 27 грудня 2024, 183–87. https://doi.org/10.52711/2454-2679.2024.00029.

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Abstract:
बस्तर प्राचीन काल से ही जनजातियों की भूमि रही है। बस्तर संभाग के अंतर्गत कोण्डागांव जिला राज्य के दक्षिण बिन्दु में स्थित है जो वन सम्पदा से अच्छादित है। इस क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के राष्ट्रीयकृत एवं अराष्ट्रीयकृत वनोपज पाये जाते हैं। यहां की प्रमुख वनोपज साल, बीजा, सागौन, इमली, तेन्दूपत्ता, महुआ फूल, बीज, चरौटा बीज, चिरौंजी आदि हैं। जनजातीय समूह प्राचीन समय से वन एवं वनोपज से घनिष्ट संबंध रखते हुए जीवनयापन कर रहे हैं। लघु वनोपज जनजातियों के आय एवं जीवकोर्पजन का प्रमुख स्रोत है। प्रस्तुत अध्ययन का उद्देष्य कोण्डागांव जिले में लघु वनोपज संग्रहण एवं विपणन व्यवस्था का अध्ययन करना तथा जनजातीय परिवारों में लघु वनोपज से आर्थिक विकास का अध्ययन करना। प्रस्तुत अध्ययन प्राथमिक आंकड़ों पर आधारित है। आंकड़ो का संकलन प्रत्यक्ष साक्षात्कार अनुसूची एवं द्विस्तरी निदर्षन विधि की सहायता से किया गया है।
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Nagatode, Amol Sudhir, та Tatyaji K. Gedam. "चंद्रपूर जिल्ह्यातील कृषी उत्पन्न बाजार समितीने शेतकऱ्यांसाठी राबविलेल्या विविध योजना व धोरणांचा अध्ययन". ShodhKosh: Journal of Visual and Performing Arts 5, № 6 (2024). https://doi.org/10.29121/shodhkosh.v5.i6.2024.4373.

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Abstract:
भारतीय अर्थव्यवस्थेत शेतीची भूमिका महत्त्वाची आहे आणि शाश्वत उपजीविका सुनिश्चित करण्यासाठी शेतकरी विविध सरकारी योजना आणि धोरणांवर अवलंबून असतात. कृषी उत्पन्न बाजार समिती (APMC) ही एक प्रमुख नियामक संस्था आहे जी शेतकऱ्यांसाठी उचित व्यापार पद्धती, किंमत स्थिरता आणि बाजारपेठेतील प्रवेश सुलभ करण्यासाठी जबाबदार आहे. हा अध्ययन चंद्रपूर जिल्ह्यातील कृषी उत्पन्न बाजार समितीद्वारे राबविण्यात येणाऱ्या विविध योजना आणि धोरणांचे परीक्षण करतो, शेतकऱ्यांचे उत्पन्न, बाजारपेठेतील सुलभता आणि सर्वांगीण कृषी विकासामध्ये त्यांच्या परिणामकारकतेचे विश्लेषण करतो. संशोधनामध्ये शेतकऱ्यांसोबत प्राथमिक सर्वेक्षण, कृषी उत्पन्न बाजार समिती अधिकाऱ्यांच्या मुलाखती आणि धोरणात्मक दस्तऐवजांचे पुनरावलोकन यासह मिश्र पद्धतींचा वापर केला गेला आहे. लक्ष केंद्रित करण्याच्या प्रमुख क्षेत्रांमध्ये किमान आधारभूत किंमत (MSP) यंत्रणा, आर्थिक सहाय्य कार्यक्रम, पायाभूत सुविधा विकास उपक्रम आणि कृषी विपणनातील डिजिटलायझेशन प्रयत्नांचा समावेश आहे. निष्कर्ष अधिक समावेशक आणि कार्यक्षम कृषी विपणन प्रणालीसाठी संभाव्य सुधारणांबद्दल अंतर्दृष्टी सादर करून धोरण अंमलबजावणीतील यश, आव्हाने आणि अंतर प्रदर्शित करतात. चंद्रपूर आणि तत्सम कृषीप्रधान प्रदेशातील शेतकऱ्यांचे कल्याण वाढवणाऱ्या धोरणात्मक शिफारशींमध्ये योगदान देणे हा या अध्ययनाचा उद्देश आहे.
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प्रो. एस. सी. राय та अरुणकुमार तिवारी. "सतना जिले के महाविद्यालयीन विद्यार्थियों की खेल रुचि पर मीडिया एवं प्रौद्योगिकी का प्रभाव". International Journal of Advanced Research in Science, Communication and Technology, 28 лютого 2024, 412–20. http://dx.doi.org/10.48175/ijarsct-15574.

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Abstract:
यह शोध पत्र माध्यमिक आँकड़े विश्लेषण दृष्टिकोण के माध्यम से सतना जिले में कॉलेज के छात्रों के बीच खेल रुचि पर मीडिया और प्रौद्योगिकी के प्रभाव की जांच करता है। अध्ययन खेल से संबंधित मीडिया उपभोग के रुझानों और पैटर्न और कॉलेज के छात्रों के बीच खेल जुड़ाव व्यवहार पर प्रौद्योगिकी के प्रभाव का पता लगाने के लिए उपलब्ध माध्यमिक आँकड़े स्रोतों का लाभ उठाकर मौजूदा शोध में अंतर को संबोधित करता है।प्रस्तुत शोध पत्र में माध्यमिक आँकड़े-आधारित अध्ययनों की कमी को उजागर करते हुए, मीडिया-तकनीक-खेल गठजोड़ को समझने के महत्व पर एक पृष्ठभूमि प्रदान करता है। अनुसंधान का उद्देश्य कॉलेज के छात्रों के बीच खेल की भागीदारी को आकार देने में खेल की रुचि और प्रौद्योगिकी की भूमिका पर मीडिया के प्रभाव की अंतर्दृष्टि को उजागर करने के लिए मौजूदा माध्यमिक आँकड़े का विश्लेषण करने पर ध्यान केंद्रित करता है। यह शोध पत्र इस बात की गहरी समझ में योगदान देता है कि कैसे मीडिया और प्रौद्योगिकी कॉलेज के छात्रों के बीच खेल की रुचि को आकार देते हैं, खेल अनुसंधान में माध्यमिक आँकड़े विश्लेषण के महत्व पर प्रकाश डालते हैं और खेल उद्योग में हितधारकों के लिए अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं।परिणाम अनुभाग द्वितीयक आँकड़े के आधार पर मीडिया उपभोग प्रवृत्तियों और खेल सहभागिता पर प्रौद्योगिकी के प्रभाव का विश्लेषण प्रस्तुत करता है। चर्चा इन निष्कर्षों की व्याख्या करती है, खेल विपणक और मीडिया पेशेवरों के लिए व्यावहारिक निहितार्थों पर चर्चा करती है, माध्यमिक आँकड़े विश्लेषण की सीमाओं की पहचान करती है, और भविष्य के शोध के लिए रास्ते सुझाती है।
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प्रा. डॉ. रवींद्र श्रीहरी सोमोशी. "विविध भाषांचा मराठी भाषेवरील प्रभाव". International Journal of Advanced Research in Science, Communication and Technology, 30 січня 2023, 165–71. http://dx.doi.org/10.48175/ijarsct-8135.

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Abstract:
" No Language is ever in a static condition, it always changes and grows " असे म्हटले जाते. कोणतीही भाषा एका विशिष्ट अवस्थेत कायमची राहू शकत नाही. तिच्यात नेहमी बदल घडून येत असतो. म्हणूनच ' भाषा ही एक प्रवाही अशी सामाजिक संस्था आहे. परिवर्तन हा तिचा स्वभाव आहे ' असे म्हटले जाते. कालमान परिस्थितीनुसार तिच्यात बदल होत जातात. हे बदल, दोन स्वरुपातील परिवर्तन, भाषेतील उच्चार, ध्वनी परिवर्तन, वर्णप्रक्रिया, प्रत्ययांची नवी भर...... अशा बदलांचा समावेश आंतरिक पातळीवरील बदल केला जातो. हे बदल आपोआप घडत असतात. भाषेतील हे परिवर्तन मूलगामी असते. बाह्य स्वरुपातील बदलामध्ये दुसऱ्या भाषेच्या संपर्कामुळे भाषेत जे नवीन शब्द येतात, शब्दांचे जे अर्थ बदलतात त्यांचा समावेश होतो, भाषे - मध्ये असे जे दोन्ही प्रकारचे बदल होतात त्याचे महत्वाचे कारण म्हणजे एका भाषेचा दुसऱ्या भाषेशी संपर्क येणे होय. असा संपर्क ज्यावेळी येतो त्यावेळी दोन्ही भाषेत आदान प्रदान प्रक्रिया होत असते. विशेष करून भाषांमधील पारिभाषिक शब्द यांची मोठ्या प्रमाणात आदान प्रदान होत असते.सामाजिक स्थित्यंतरामुळे अनेक नवीन गोष्टी, कल्पना, वस्तू यांच्याशी लोकांचा संबंध येतो. ती वस्तू सामान्यतः परकीय असते. अशा वेळी अट्टाहासाने त्याला पर्यायी शब्द तयार केला जातो तो शब्द रुढ होईलच असे सांगता येत नाही. कदाचित यात उच्चारसौकर्य नसेल किंवा अन्य कोणतेही कारण असेल त्यामुळे मूळ परकीय शब्द आहे तसा स्वीकारावा असे या दुसऱ्या मार्गाची मागणी आहे. उदा. ' मेक - अप ' हा शब्द घ्या. याला अट्टाहासाने दुसरा मराठी शब्द निर्माण करावयाचा म्हटल्यास ' चेहेन्याची रंगरंगोटी ' हा पर्यायी शब्द मान्य करावा लागेल, पण इथे ' रंगरंगोटी ' हा शब्द इमारतीशी निगडीत असल्याने योग्य वाटत नाही. अशा वेळी ' मेक - अप ' हा शब्द स्वीकारणे योग्य वाटते. असे अनेक शब्द फार्सी, उर्दू, कानडी, तामीळ, तेलगु इ.. भाषेतून स्वीकारले आहेत. प्रत्येक परकीय शब्दासाठी दुसरा पर्यायी मराठी शब्द तयार करणे केवळ अशक्य आहे. उदा. ' सिमल ' या शब्दासाठी ' अग्नीरथ आवक जावक दर्शविणारा लोह - ताम्र पट्टिका ' हा शब्द कधी तरी रुढ होईल का ? त्यामुळे असे अनेक शब्द मराठीत रुढ झाले आहेत. त्यासाठी एक तर परिभाषा तयार केलेली नाही. अन् तयार केली असली तरी लोकांनी ती न स्वीकारता मूळ भाषेतील शब्द आहेत तसे स्वीकारले उदा. कंपास, टेबल, दुकान ( मराठी शब्द भांडार ), बँक, चेक, रेल्वे, बाजार ( मराठी पारिभाषीक शब्द विपणी ), इंजीन, पाईप, स्क्रू, फ्लॅट, माईक, डॉक्टर, नर्स, ड्रेसींग, सिमेंट, ब्रेक, टायर, हॉर्न, स्टेअरिंग, कार्ड, मनीऑर्डर, पोस्ट इ... मराठी भाषेवर देखील विविध भाषांचा प्रभाव दिसून येतो यामध्ये प्रामुख्याने द्राविडी फारसी हिंदी आणि इंग्रजी या प्रमुख भाषांचा उल्लेख करावा लागेल.
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