Academic literature on the topic 'विश्वसनीयता'

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Journal articles on the topic "विश्वसनीयता"

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खनाल Khanal, राजेन्द्र Rajendra, та सिद्धिबहादर Siddhi Bahadur महर्जन Maharjan. "स्नातकोत्तर तहको परीक्षण प्रक्रियामा विश्वसनीयता र वैधता". Sampreshan सम्प्रेषण 8 (31 грудня 2024): 53–60. https://doi.org/10.3126/sampreshan.v8i1.75218.

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Abstract:
यस लेखमा त्रिभुवन विश्वविद्यालय शिक्षाशास्त्र सङ्काय स्नातकोत्तर तहको सेमेस्टर प्रणालीमा आधारित परीक्षण प्रक्रियाको विश्वसनीयता तथा वैधताप्रति शिक्षक तथा शिक्षार्थीको दृष्टिकोणलाई प्रस्तुत गरिएको छ । क्षेत्रीय सर्वेक्षण विधिमा आधारित भई मतावलीलाई तथ्य सङ्कलनको साधन बनाइएको यस अध्ययनमा यादृच्छिक नमुना छनोट प्रक्रिया अवलम्बन गरिएको छ । यसमा शिक्षाशास्त्र, स्नातकोत्तर तहमा अध्ययनरत १२० जना शिक्षार्थी तथा उक्त तहमा अध्यापनरत ४० जना शिक्षकलाई नमुनाका रूपमा लिई उनीहरूको अभिमतको विश्लेषण गरिएको छ । सेमेस्टरको परीक्षा प्रणाली विश्वसनीय छ भन्ने कथनमा शिक्षक तथा शिक्षार्थीको समष्टिमा ३८.१ प्रतिशत सकारात
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Khanal, Rajendra. "आन्तरिक मूल्याङ्कनमा परीक्षणका प्रमुख गुणप्रति सरोकारवालाको दृष्टिकोण Aantarik Mulyankanma Parikshyanka Pramukh Gunprati Sarokarwalako Dristikon". Curriculum Development Journal 29, № 43 (2021): 249–61. http://dx.doi.org/10.3126/cdj.v29i43.41059.

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Abstract:
त्रिभुवन विश्वविद्यालय शिक्षाशास्त्र स्नातकोत्तर तहको सेमेस्टर प्रणालीको आन्तरिक मूल्याङ्कनको विश्वसनीयता तथा वैधताप्रति सरोकारवालाको दृष्टिकोणलाई यस लेखमा प्रस्तुत गरिएको छ । यो लेख क्षेत्रीय सर्वेक्षण विधिमा आधारित छ भने यसमा उद्देश्यमूलक नमुना छनोट प्रक्रिया अपनाइएको छ । यसमा शिक्षाशास्त्र, स्नातकोत्तर तहमा अध्ययनरत १०० जना विद्यार्थी तथा उक्त तहमा अध्यापनरत २५ जना शिक्षकलाई नमुनाका रूपमा लिई उनीहरूको अभिमतको विश्लेषण गरिएको छ । आन्तरिक मूल्याङ्कनबाट प्राप्त भएको अङ्क विश्वसनीय छ भन्ने कथनमा ४२ प्रतिशत शिक्षार्थी र ४८ प्रतिशत शिक्षक मात्र सकारात्मक देखिएकाले सन्तुष्टिको स्तर कमजोर रहेको देख
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डा., योगेश कुमार गुप्ता. "भारत में टेलीविजन समाचार चैनलों की प्रभावशीलता (चयनित चैनलों का तुलनात्मक अध्ययन)". International Journal of Research - Granthaalayah 5, № 7 (2017): 79–91. https://doi.org/10.5281/zenodo.827210.

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Abstract:
भारत में आज भी समाचार चैनलों की जनता मंे विश्वसनीयता बनी हुई है। इस शोध के माध्यम से समाचार चैनलों के प्रस्तुतिकरण के अंदाज का पता चलता है। समाचार चैनलों के बीच चल रही घमासान प्रतिस्पर्धा में सबसे आगे कौनसा समाचार चैनल है, का भी पता किया गया है। यह शोध टेलीविजन मीडिया से संबंधित पहलुओं की अज्ञानता के निवारण में प्रभावी भूमिका निभा सकता है। आज टेलीविजन ही संचार का सबसे प्रभावी माध्यम है। टेलीविजन मीडिया लोगों को न्याय दिलाने में, विभिन्न अनछुए पहलुओं से पर्दा हटाने में सहायक सिद्ध हो सकता है। वहीं इस शोध की कुछ सीमाएं भी रही हैं जैसे- इस शोध में केवल जयपुर शहर को ही अध्ययन के लिए चुना गया है। ज
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Shekhar, Pathak, та Shraddha Soni Dr. "भारतीय और ईरानी शिक्षकों की अपने विश्वविद्यालय शैक्षिक वातावरण के प्रति धारणा का आकलन करना।". International Journal of Advance Research in Multidisciplinary 2, № 1 (2024): 380–85. https://doi.org/10.5281/zenodo.14050180.

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Abstract:
इस अध्ययन के उपकरणों में तीन पैमाने शामिल थे: 1-शारीरिक शिक्षा पर्यावरण सर्वेक्षण (हिल और हल्बर्ट, 2007) 2- पाठ्यक्रम अनुभव प्रश्नावली (सीईक्यू), (राम्सडेन, 1991) 3-संकाय संतुष्टि प्रश्नावली (सेराफिन, 1991) वैधता और विश्वसनीयता की गणना के बाद वितरित और विश्लेषण किया गया। परिणामों ने संकेत दिया: 1- भारतीय और ईरानी छात्रों की शैक्षिक वातावरण की धारणा के बीच महत्वपूर्ण अंतर है 2- भारतीय और ईरानी छात्रों की संतुष्टि के बीच महत्वपूर्ण अंतर 5- भारतीय और ईरानी छात्रों की शैक्षिक वातावरण की धारणा और उनकी संतुष्टि के बीच महत्वपूर्ण संबंध है।
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Mahesh, Kumar Mishra. "भारत में हिन्दी भाषा की डबिंग ने खोले हैं विश्व सिनेमा कारोबार के नये आयाम". Vishwa Hindi Patrika 13 (12 грудня 2021): 175–79. https://doi.org/10.5281/zenodo.10499882.

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Abstract:
संचार में प्रेषक और प्राप्तकर्ता के बीच किसी भी तरह के भाषायी अवरोध को डबिंग समाप्त कर देती है। यही वजह है कि कला और मनोरंजन का सशक्त माध्यम सिनेमा कम लागत से हुई डबिंग से दर्शक और फिल्म का ऐसा जोड़ सम्भव हो पाता है जिससे करोड़ों रूपये का सफल व्यवसाय बनता है। तकनीकि के सरल और उन्नत होने से सिनेमा डबिंग में लगातार जीवतंता और विश्वसनीयता प्रदान की जा रही है और यही वजह है कि भारतीय में वैश्विक फिल्म प्रदर्शन के लिए हिन्दी डबिंग अति आवश्यक की श्रेणी में विद्यमान हो गयी है।
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पाण्डेय, शैलेन्द्र, та मंजू सोलंकी. "भारतीय राजनीति में राजनैतिक दलों के समक्ष चुनौतीयां". Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education 20, № 4 (2023): 819–24. https://doi.org/10.29070/c5cep810.

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Abstract:
भारतीय राजनीति में राजनैतिक दलों को वर्तमान समय में अनेक जटिल और बहुआयामी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। ये चुनौतियाँ लोकतांत्रिक संस्थाओं की विश्वसनीयता को प्रभावित करती हैं, चुनावी प्रक्रिया, आंतरिक लोकतंत्र, विचारधारात्मक स्पष्टता, वित्तीय पारदर्शिता, और क्षेत्रीय संतुलन जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं को भी प्रभावित करती हैं। दलों के बीच बढ़ती व्यक्तिवादिता, विचारधारा की अस्पष्टता, और गठबंधन राजनीति की अनिश्चितता भी लोकतांत्रिक प्रणाली को जटिल बनाती है। साथ ही, मतदाताओं की बढ़ती अपेक्षाएं, सामाजिक मीडिया का प्रभाव, और जातीय व धार्मिक ध्रुवीकरण ने राजनैतिक दलों के समक्ष नई रणनीतियाँ विकसित करने
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Miss Madhulika Tiwari та Dr. Satish Kumar Garg. "फ्लाई ऐश ईंट निर्माण की समीक्षा". Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education 21, № 1 (2024): 44–48. http://dx.doi.org/10.29070/tkexe737.

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Abstract:
फ्लाई ऐश ईंटें निर्माण क्षेत्र में मिट्टी की पकी ईंटों के विकल्प हैं। फ्लाई ऐश की ईंटें फ्लाई ऐश, चूना, जिप्सम, बालू और पानी से बनाई जाती हैं। इनका व्यापक रूप से सभी भवन निर्माण संबंधी गतिविधियों में उपयोग किया जा सकता है, जैसा कि सामान्य जली हुई मिट्टी की ईंटों के समान होता है। फ्लाई ऐश ईंटें सामान्य मिट्टी की ईंटों की तुलना में वजन में हल्की और मजबूत होती हैं। फ्लाई ऐश ब्रिक्स अपने टिकाऊपन, कंप्रेसिव स्ट्रेंथ और विश्वसनीयता, कम लागत और आसान उपलब्धता के कारण एक प्रमुख भूमिका निभाती हैं। नतीजतन, फ्लाई ऐश ईंटें गंभीर अपक्षय क्रियाओं का सामना कर सकती हैं और लगभग सभी सामान्य रासायनिक हमलों के लिए
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गिरी Giri, राजेन्द्र Rajendra. "‘शत्रु’ कथामा समाख्यानात्मकता [Narrativeness in the 'Enemy' story]". BMC Journal of Scientific Research 5, № 1 (2022): 193–99. http://dx.doi.org/10.3126/bmcjsr.v5i1.50694.

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Abstract:
प्रस्तुत लेख समाख्यानशास्त्रीय विश्लेषणसँग सम्बन्धित छ । यो समाख्यानशास्त्र आख्यानको नवीन मान्यता हो । यसले सङ्कथनलाई केन्द्रमा राखेर विषय, श्रोता, पात्र र समग्र संरचनाका बिचमा विश्लेषण गर्दछ । यसमा समाख्याताको कथासम्बद्धता, पात्रसम्बद्धता, समयसम्बद्धता, विश्वसनीयता र स्वप्रस्तुतिका आधारमा पहिचान गरी निष्कर्ष निकाल्ने प्रयास भएको छ । यस कथामा घटना, पात्रका कार्य र पात्रको मनस्थितिको वर्णन भएको छ । समाख्याताले कथाको प्रमुख पात्रका बारेमा सम्बोधितलाई जानकारी दिएको पाइन्छ । पात्रको शारीरिक, सामाजिक, आर्थिक तथा मानसिक अवस्था वर्णन गर्नाका लागि वर्णनात्मक समाख्यान विधि प्रयोग गरिनुका साथै मुख्य पात
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बोहरा Bohara, गणेशबहादुर Ganeshbahadur. "बहुभाषिक कक्षामा भाषिक परीक्षण तथा मूल्याङ्कन {Linguistic Testing and Assessment in the Multilingual Classroom}". AMC Multidisciplinary Research Journal 3, № 1 (2022): 46–52. http://dx.doi.org/10.3126/amrj.v3i1.55886.

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Abstract:
प्रस्तुत लेख बहुभाषिक कक्षामा भाषिक परीक्षण र मूल्याङ्कनलाई कसरी प्रभावकारी बनाउन सकिन्छ भन्ने कुरामा केन्द्रित रहेको छ । दुईभन्दा बढी भाषा बोल्ने विद्यार्थीको उपस्थिति भएको कक्षाकोठा बहुभाषिक कक्षा हो । बहुभाषाको प्रयोगले शिक्षण सिकाइमा सहजता हुनुका साथै सिकारुको सिकाइ दर पनि बढ्ने हुनाले वर्तमान समयमा बहुभाषी शिक्षणको प्रचलन बढ्दै गएको पाइन्छ । बहुभाषिक कक्षामा भाषिक परीक्षण तथा मूल्याङ्कन सम्पन्न गर्नका लागि पाठ्यक्रमका उद्देश्य, परीक्षणीय विषय, भाषिक सिपको छनोट, भाषिक एक निष्ठता, योजनाबद्ध परीक्षण, विश्वसनीयता र वैधता आदि कुरामा ध्यान दिनुपर्ने हुन्छ । बहुभाषिक कक्षामा परीक्षण तथा मूल्याङ्
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जोशी Joshi, हेमा Hema. "नेपालमा लोपोन्मुख भाषाहरूको स्थिति {Status of Endangered Languages ​​in Nepal}". Sudurpaschim Spectrum 1, № 1 (2023): 209–29. http://dx.doi.org/10.3126/sudurpaschim.v1i1.63468.

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Abstract:
प्रस्तुत आलेख नेपालका लोपोन्मुख भाषाहरूको स्थितिबारे अध्ययनमा केन्द्रित छ । वि.सं. २०७८ को जनगणना अनुसार नेपालमा १२४ भाषाहरू प्रयोग व्यवहारमा रहेको तथ्याङ्क पाइन्छ । नेपालमा भाषाहरूबारे व्यवस्थित सर्वेक्षण नहुँदा भाषाहरूको स्थिति र सङ्ख्याहरूमा विश्वसनीयता नभए पनि यी तथ्याङ्कहरूमा नेपालमा २७ भन्दा बढी भाषाहरूका वक्ता सङ्ख्या कम देखिनुले धेरै भाषाहरू अपक्षयको स्थितिमा रहेको प्रष्ट हुन्छ । गैररैथाने भाषाहरूलाई समावेश नगर्ने हो भने पनि २१ जति भाषाहरू अत्यन्त लोपोन्मुख (मृतप्रायः) अवस्थामा रहेका छन् । लेख तयार पार्ने सन्दर्भमा मूलतः पुस्तकालयको उपयोग गरी सङ्कल्न गरिएका प्राथमिक र द्वितीयक स्रोतका
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