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सावंत, यश यादव, та डॉ.निनाद विजय जाधव. "भिवंडी तालुक्यातील पिण्याच्या पाण्याच्या समस्या एक चिकित्सक अभ्यास." International Journal of Advance and Applied Research 6, № 31 (2025): 136–38. https://doi.org/10.5281/zenodo.15458273.

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Abstract:
<strong>प्रस्तावना :-</strong> ठाणे जिल्ह्यातील भिवंडी तालुक्यात बऱ्याचश्या ग्रामीण भागात आजही पिण्याच्या पाण्याच्या समस्या मोठ्या प्रमाणात भेडसावत आहे त्यामुळे मानवी आरोग्यास धोका निर्माण होत आहे. भिवंडी तालुक्यातील वराळदेवी तलाव हे भिवंडीतील रहिवाशांसाठी पिण्याच्या पाण्याचे मोठे स्त्रोत आहे परंतु औद्योगिकीकरणामुळे येथील वृक्ष मोठ्या प्रमाणात कमी होताना दिसून येतो त्यामुळे पावसाच्या पाण्यावर त्याचा विपरीत परिणाम होत आहे. तसेच भिवंडी शहराच्या आजूबाजूच्या गावातील शेततळ्यातील पाण्याचे प्रमाण देखील कमी होत आहे त्यामुळे जनावरांना लागणारे पाणी यांची उपलब्धता दिवसागणित बिकट होत आहे; परिणामी संपूर्ण
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Dalip, Kumar. "प्राचीन भारत में विहार". International Journal of Research - Granthaalayah 5, № 7 (2017): 110–15. https://doi.org/10.5281/zenodo.835425.

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Abstract:
बौद्ध भिक्षुओं के निवास स्थान को विहार कहा जाता है विहार के अन्दर एक बड़ा मण्डप होता था, उसमें तीन या चार छोटी कोठरियां खोदी जाती थी, सामने की दीवार में प्रवेश के लिए एक द्वार होता था और उसके सामने स्तम्भों पर आश्रित एक बरामदा रहता था । भीतरी मण्डप की कोठरिया चौकोर होती थी, जिनमें बौद्ध भिक्षु निवास करते थे, एक भिक्षु के लिए कोठरी बनी होती थी,1 दो भिक्षुओं के लिए द्विगर्भ और तीन भिक्षुओं के लिए त्रिगर्भ शालाएं बनाई जाती थी । जहां पर बहुत से भिक्षु निवास करते थे उनको संधाराम कहा जाता था । विहार की कोठरियां छोटे आकार की होती थी । इनका आकार 9ग्9 फूट होता था । इन कोठरियों में एक तरफ भिक्षुओं के सो
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3

कोइराला Koirala, नरेन्द्र Narendra प्रसाद Prasad. "“मार्यो च्याङ्बा मार्यो असिनामा पारयो” कथाको सबाल्टर्न विश्लेषण "Maryo Chyangba Maryo Asinama Paryo" Kathako Sabaltern Vishleshan". NUTA Journal 6, № 1-2 (2019): 145–53. http://dx.doi.org/10.3126/nutaj.v6i1-2.23263.

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Abstract:
प्रस्तुत लेखमा कथाकार मनु ब्राजाकीद्वारा लिखित मा¥यो च्याङ्बा मा¥यो असिनामा पा¥यो कथालार्ई सबाल्टर्न सिद्धान्तका कोणबाट विश्लेषण गरिएको छ । सदियौँदेखि इतिहास विहीन भएका वा बनाइएका समाजका किनारामा रहेका आवाज विहीन तथा अधिकार विहीन समूदाय नै सबाल्टर्न वर्ग हुन् । सबाल्टर्न एउटा बृहत् सिद्धान्त हो । यसभित्र सबै प्रकारका विभेदहरूका कारण किनारीकृत हुन पुगेका सबै शोषित पीडितहरू अटाउन सक्ने भए पनि यस लेखमा प्रस्तुत कथामा सबाल्टर्न वर्गको वर्गीय, लैङ्गिक र जातीय अवस्था पहिचान गरी समाजमा (कथामा) उनीहरूकोे स्थान, उनीहरूमाथिको प्रभुत्व र उनीहरूको प्रतिरोधको अवस्थाको विश्लेषण गरिएको छ । यस कथामा वर्गीय दृ
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Pappu, thaakur, та Naarad sinh Dr. "Naxalism collapse in Bihar (विहार में नक्सलवाद का पतन)". International Journal of Multidisciplinary Research Configuration 1, № 2, April 2021 (2021): 9–13. https://doi.org/10.5281/zenodo.4718312.

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Abstract:
नक्सलीय समस्या हमारे देश के लिए बड़ा आंतरिक खतरा बन गया है। खासकर 2007 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की टिप्पणियों के बाद, यह एक चिंता का विषय बन गया है और साथ ही अकादमिक बहस का विषय भी है। इस मुद्दे को बड़े पैमाने पर और गहनता से संबोधित करने के लिए नवीन विचार और नए सिरे से योजना बनाई गई है। इस पृष्ठभूमि में, मध्य बिहार का एक मामला अध्ययन इस मुद्दे पर प्रकाश को केंद्रित करने के लिए प्रासंगिक हो जाता है। यह एक स्थापित तथ्य है कि बिहार में नक्सलवाद ने मध्य बिहार के माध्यम से अपना रास्ता बनाया था। जब काउंटरिंसर्जेंसी तंत्र ने पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश में नक्सलवाद के पहले बुलबुले को कुचल दिया,
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रञ्जितकार Ranjitkar, जुनु Junu बासुकला Basukala. "मध्यकालमा बुद्ध धर्म Madhyakalma Buddha Dharma". Historical Journal 11, № 1 (2020): 134–48. http://dx.doi.org/10.3126/hj.v11i1.34698.

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Abstract:
मध्यकालमा बुद्ध धर्म डा. जुनु बासुकला रञ्जितकार सारांश सन् ८७९ देखि १२०० सम्मको काललाई राजनैनिक रुपले अन्धकार युग भनिए पनि बौद्ध धर्मकोबज्रयानको दृष्टिकोणले हेर्दा चरम अवस्थामा पुगेको समय हो । त्यस समय बौद्ध धर्म, दर्शन, संस्कृत भाषाको अध्ययन अध्यायपनको लगि नेपाल, भारत र तिब्बतको अन्तराष्ट्रिय समन्वय हुँदा नेपाल पुलको रुपमा थियो ।यही समयमा संस्कृत बौद्ध साहित्यहरू प्रज्ञापारमिता, सद्धर्मपुण्डरीकसूत्र, पञ्चरक्षा, नामसंगीति आदि सारेर ग्रन्थ तयार गरी ग्रन्थमा चित्र पनि लेख्ने विकास भएको थियो । बाह्रौँ शताब्दीको अन्त्यतिर भारतमा बौद्ध धर्मको नाशहुनु र यहाँ मल्ल राजाको शासनको शुरू भएपछि काठमाडौँ उप
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Kumar, Dalip. "Vihara in ancient India." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 5, no. 7 (2017): 110–15. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v5.i7.2017.2111.

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Abstract:
The abode of the Buddhist monks is called Vihara, inside the Vihara there was a large pavilion, three or four small chambers were dug in it, there was a door to enter the front wall and in front of it there was a verandah dependent on the pillars. . The inner pavilion had a chakriya chakor, in which Buddhist monks resided, a cell was built for a monk, 1 a bicameral for two monks, and a tricyclic schools for three monks. Where many monks resided they were called Sandharam. The rooms of the Vihar were of small size. Their size was 9 G9 feet. These chambers used to have long checks made for monks
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., हर्षवर्धन, та सुहासिनी बाजपेयी. "उच्च प्राथमिक स्तर के विद्यार्थियों में संवैधानिक साक्षरता के विकास में बाल संसद की भूमिका". SCHOLARLY RESEARCH JOURNAL FOR INTERDISCIPLINARY STUDIES 10, № 73 (2022): 17735–46. http://dx.doi.org/10.21922/srjis.v10i73.11679.

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Abstract:
प्रस्तुत शोध पत्र में उच्च प्राथमिक विद्यालय के विद्यार्थियों में संवैधानिक साक्षरता के विकास में बाल संसद की भूमिका का अध्ययन किया गया है। इस शोध अध्ययन के उद्देश्य उच्च प्राथमिक विद्यालय के विद्यार्थियों में संवैधानिक साक्षरता के विकास में बाल संसद संचालित एवं बाल संसद विहीन विद्यालयों की प्रभाविता का अध्ययन करना है एवं उच्च प्राथमिक विद्यालय में संवैधानिक साक्षरता के विकास में लिंग एवं क्षेत्र के आधार पर बाल संसद की प्रभाविता का अध्ययन करना है। प्रस्तुत शोध में जनसंख्या के रूप में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रयागराज जिले के नैनी एवं विकास खण्ड चाका में संचालित उच्च प्राथमिक विद्यालयों के कक
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प्रो., डॉ. साताप्पा शामराव सावंत. "दलित आत्मकथाओं में चित्रित हाशिए के समाज की समस्याए". International Journal of Humanities, Social Science, Business Management & Commerce 08, № 01 (2024): 202–6. https://doi.org/10.5281/zenodo.10500450.

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Abstract:
दलित आत्मकथा विश्व साहित्य की अत्यंत महनीय उपलब्धि कही जा सकती है। भारतरत्न डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के अथक प्रयासों से सदियों से वाणी विहीन, वंचित समाज व्यवस्था को अपना स्वतंत्र मंच प्राप्त हुआ। दलित साहित्य का प्रचार-प्रसार सभी भारतीय भाषाओं में हो चुका है। डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने अपनी आत्मकथा &ldquo;मी कसा झालो&ldquo; शीर्षक से लिखी थी। जो विश्व दलित साहित्य की नींव बन गई। डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर दलित साहित्य के निर्माता तथा उन्नायक रहे है।
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Baudh, Prashant Kumar. "National Consciousness in Bhojpuri Folk Literature." RESEARCH HUB International Multidisciplinary Research Journal 9, no. 2 (2022): 55–58. http://dx.doi.org/10.53573/rhimrj.2022.v09i02.010.

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Abstract:
Bhojpuri is the most widely spoken language of India. Its folk literature is equally extensive and inexhaustible. There is no consensus on its Bhojpuri nomenclature, but most scholars tell it to be related to 'Bhojpur' village of Ara (Bhojpur) division under the present Vihar province - 'Old Bhojpur' in Bhojpur pargana near Buxar in Shahabad district of Vihar province. There is a village called Now the name Bhojpur is used for the nearby villages named "New Bhojpur" and "Old Bhojpur". Although all the voices of consciousness are visible in Bhojpuri folk-literature, but in Bhojpuri folk-literat
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ताशतेमीरोवा, शाहनाजा. "उज्बेकिस्तान और भारत : मीडिय क्षेत्र में सहयोग के नए पहलू". Oriental Renaissance: Innovative, educational, natural and social sciences 4, № 22 (2024): 70–71. https://doi.org/10.5281/zenodo.13765091.

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Abstract:
उन्हें मास मीडिया इसलिए कहा जाता क्योंकि वे एक साथ बहुत बड़ी संख्या में दर्शकों, श्रोताओं एवं पाठकों तक पहुँचते हैं। उन्हें कभी-कभी जनसंचार (मास कम्युनिकेशन) के साधन भी कहा जाता है। आपकी पीढ़ी के बहुत से लोगों के लिए जनसंपर्क के किसी माध्यम से विहीन दुनिया की कल्पना करना भी संभवत: कठिन होगा।डेटा की तरह मीडिया भीलैटिन से सीधे उधार लिए गए शब्द का बहुवचन रूपहै। एकवचन, माध्यम, ने शुरू में "एक हस्तक्षेप करने वाली एजेंसी, साधन या साधन" का अर्थ विकसित किया और इसे पहली बार दो शताब्दियों पहले समाचार पत्रों पर लागू किया गया था।
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Rana, Harpal. "गुजरात का गौरव : देवनी मोरी". VIDYA - A JOURNAL OF GUJARAT UNIVERSITY 2, № 1 (2023): 82–83. http://dx.doi.org/10.47413/vidya.v2i1.136.

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Abstract:
गुजरात की भूमि प्राचीन काल से ही धम्मभूमि रही है और महाकारूणिक बुद्ध के विचारों से आलोकित रही है I गुजरात के अधिकांश जिलों में आज भी हमें बौद्ध धम्म से जुड़े अनगिनत अवशेष देखने को मिल रहे हैं और अभी भी खुदाई में बौद्ध धम्म से जुड़े अवशेष बहुतायत में प्राप्त हो रहे हैं I गुजरात के प्रसिद्ध बौद्ध स्थलों में देवनी मोरी (शामलाजी), गिरिनगर (जूनागढ़), आनंदपुर (वड़नगर), तारंगा, भरूच, कच्छ, उना साणावाक्य, खाम्भलिडा आदि हैं I इनमें देवनी मोरी का महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि यह धम्म नगरी थी और यहाँ से महाकारूणिक बुद्ध की श्रेष्ठ धातुएं (अस्थियां) प्राप्त हुई हैं I&#x0D; देवनी मोरी उत्तर गुजरात में अरवल्ली जि
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दाहाल Dahal, तनुजा Tanuja. "आयु विचार Aayu Bichar". Pragyajyoti 4, № 1 (2021): 103–13. http://dx.doi.org/10.3126/pj.v4i1.44996.

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Abstract:
प्राणीहरूको शरीरलाई जीवन्त बनाउने महत्वपूर्ण तTवलाई आयु भनिन्छ । बालकको पूर्वजन्मको आर्जित फल, मातापिताको कर्मफल, आहार विहार , धर्म संस्कार, शील स्वभावजस्ता कुराहरूले आयु निर्णयमा प्रभाव पार्दछन् । अकाल मृत्युलाई अल्पायु भनिन्छ । सन्ध्याकाल, ग्रहण, उल्कापात, केतुको उदय जस्ता प्राकृतिक विपत्तिका समयमा भएको जन्म शीघ्र मृत्युकारक मानिन्छ ।लग्नको मालिक ग्रह, चन्द्रमा र अन्यग्रहहरूको नीच, अस्त पापयुत, पापदृष्ट, त्रिकस्थानगत जस्तादुर्बल र अशुभ योगका कारण बालकको मृत्यु हुन्छ त्यसलाई बालारिष्ट भनिन्छ । ग्रहहरूले केन्द्र,त्रिकोण र उच्चादि शुभस्थानमा बसेर निर्माण गरेका शुभयोगहरूले अरिष्टको भङ्ग गरेर दीर
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Bhusal, Raju. "यसरी एउटा नाउँ काटिन्छ कथामा सबाल्टर्न". Butwal Campus Journal 4, № 1-2 (2021): 205–13. http://dx.doi.org/10.3126/bcj.v4i1-2.45021.

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Abstract:
प्रस्तुत लेखमा पारिजातद्वारा लिखित ‘यसरी एउटा नाउँ काटिन्छ’ कथालाई सबाल्टर्न सिद्घान्तका दृष्टिले विश्लेषण गरिएको छ । सदियौंदेखि इतिहासविहीन भएका वा बनाइएका समाजका किनारामा रहेर आवाज विहीन तथा अधिकारविहीन समुदाय नै सबाल्टर्न हुन् । सबाल्टर्न एउटा बृहत् सिद्घान्त हो । विचार धारात्मकरूपले हेर्दा यसमा एकभन्दा बढी विचारको बहुलता देखिन्छ । यसभित्र सबै प्रकारका विभेदहरूका कारण किनारीकृत हुन पुगेका सबै शोषित पीडितहरू अटाउन सक्ने भए पनि यस लेखमा सबाल्टर्न वर्गको वर्गीय, लैङ्गिक र जातीय अवस्था पहिचान गरी समाजमा उनीहरूको स्थान, प्रभुत्व र प्रतिरोधको अवस्थाको विश्लेषण गरिएको छ । यस कथाको समाजमा वर्गीय दृ
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सतीश, कुमार. "बौद्ध काल में शिक्षा एवं चिकित्सा के प्रमुख केन्द्रों का संक्षिप्त विवरण विवरण". International Educational Applied Research Journal 08, № 06 (2024): 8–11. https://doi.org/10.5281/zenodo.12775180.

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Abstract:
प्राचीन शिक्षा के केन्द्रों में शिक्षण कार्य भिक्षु करते थे, इनके निर्वाह का प्रबंध विद्यालय की ओर से रहता था । भारत में शिक्षा संस्थाओं का जन्म मठो या बौद्ध विहारों से हुआ है । महात्मा बुद्ध ने उपासकों की विधिवत शिक्षा-दीक्षा पर बहुत जोर दिया था । दस वर्ष तक अध्ययन करने के बाद उपासकों को श्प्रव्रज्याय दी जाती थी । उनके विहार गुरुकुलों के ही समान थे। विहारों का मुख्य आचार्य योग्य भिक्षु होता था । विहारों मठों में भोजन तथा वस्त्र आदि का सुभिता शिष्यों को मिलता था । विद्या समाप्ति पर गुरु दक्षिणा देना आचार माना जाता था । जो गुरुदक्षिणा नहीं चुकाते थे उनको समाज में हेय दृष्टि से देखा जाता था । अन
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Ojha, Devendra Nath. "History and culture reflected in the inscriptions engraved on the copper plates of Nalanda (नालन्दा के ताम्रपत्रों पर उत्कीर्ण अभिलेखों में प्रतिबिम्बित इतिहास एवं संस्कृति)". Sanskrit Vimarsah 22 (1 червня 2023): 144–52. https://doi.org/10.5281/zenodo.10970766.

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Abstract:
नालन्दा से प्राप्त समुद्रगुप्त, धर्मपाल तथा देवपाल के ताम्रपत्र अभिलेख दान से सम्बंधित है, जो किसी न किसी सैन्य शिविर से जारी किये गये है। समुद्रगुप्त के ताम्रपत्र लेख से गुप्तवंश की वंशावली महाराज श्रीगुप्त से लेकर महाराजाधिराज समुद्रगुप्त तक तथा उसके अश्वमेध यज्ञ का कर्ता होने का पता चलता है। धर्मपाल के ताम्रपत्र अभिलेख में केवल दो पाल शासकों महाराज गोपाल तथा महाराजाधिराज धर्मपाल का नामोल्लेख है। अभिलेख में राजराजानक, राजपुत्र, राजामात्य, महाकर्ताकृतिक, महादण्डनायक, महाप्रतिहार, महासामन्त आदि अनेक अधिकारियों का उल्लेख उसकी समृद्ध शासन व्यवस्था का सूचक है। अभिलेख में वर्णित भुक्ति, विषय तथा व
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अनिता, तोमर, та पारूल कुमार डाॅ. "मानव जीवन में पंचकोश सिद्धान्त के महत्व का संक्षिप्त मूल्यांकन". International Journal of Trends in Emerging Research and Development 2, № 4 (2024): 12–16. https://doi.org/10.5281/zenodo.12788548.

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Abstract:
हमारा शरीर पांच कोशो से मिलकर बना है, क्रमशः अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय व आनन्दमय। तैत्तिरीयोपनिषद&nbsp;की ब्रह्मानन्द वल्ली में पंचकोश का वर्णन देखने को मिलता है। स्थूल शरीर अन्नमय कोश का बना होता है। सूक्ष्म शरीर जो प्राणिक ऊर्जा का बना है प्राणमय कोश। तीसरा मनोमय जिसमें मानव का मन व भावनाएंे सम्मिलित है। चैथा विज्ञानमय जिसमें ज्ञान, कल्पनाशक्ति, स्मृति सम्मिलित है। पाँचवां आनन्दमय कोश है जो आत्मा के सबसे करीब होता है इसमें आनन्द सम्मिलित है। प्रत्येक व्यक्ति को इन कोशों को जानना व समझना चाहिए। इनको। जानना व्यक्ति को आन्तरिक आनन्द तक पहँुच प्रदान करता है और जीवन में आनन्द, आन्तरिक शान
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डॉ., सुरेश चौधरी रणवीर सिंह. "बौद्धकालीन शिक्षा के प्रमुख केन्द्र का विवरण". International Educational Applied Research Journal 09, № 05 (2025): 150–55. https://doi.org/10.5281/zenodo.15538516.

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Abstract:
<strong>चीन भारत के बौद्धकालीन शिक्षा के केन्द्रों में शिक्षण कार्य भिक्षु करते थे. इनके रहने व खान-पान का प्रबंध विद्यालय की ओर से किया जाता था। भारत में शिक्षा संस्थाओं का जन्म मठों या बौद्ध विहारों से हुआ है । महात्मा युद्ध में उपासकों की विधिवत शिक्षा-दीक्षा पर बहुत जोर दिया था। दस वर्ष तक अध्ययन करने के बाद उपासकों को एप्रव्रज्याय दी जाती थी । उनके विहार गुरुकुलों के ही समान थे । विहारों का मुख्य आचार्य योग्य भिक्षु होता था । विहारों मठों में भोजन तथा वस्त्र आदि का सुभिता शिष्यों को मिलता था । विद्या समाप्ति पर गुरु दक्षिणा देना आचार माना जाता था । जो गुरुदक्षिणा नहीं चुकाते थे उनको समाज
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Jain, Lata. "IN THE PRESENT DAY, "EMPLOYING MUSIC ART" IS AN IMPORTANT DIMENSION IN HIGHER EDUCATION." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 3, no. 1SE (2015): 1–4. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v3.i1se.2015.3420.

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Abstract:
The music tradition in India is very ancient. Music has been related to life in any field, be it Indian or Western, since time immemorial. It is a fine art in which the musician expresses his feelings through tone, rhythm, rhythm. Music has the power to make the entire human world self-reliant, this is an art that is loved by everyone in the world. There is no place in the world where people are not involved in music, so Bhartrihari has treated a music-less human like an animal without horns and tail.&#x0D; भारत में संगीत परम्परा बहुत प्राचीन है। संगीत किसी भी क्षेत्र का हो, चाहे भारतीय हो अथव
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विनोद, विनोद प्रसाद नौटियाल. "वर्तमान काल में समग्र स्वास्थ्य की समस्या (एक विवेचनात्मक अध्ययन)". RECENT RESEARCHES IN SOCIAL SCIENCES & HUMANITIES 10, № 4 (2023): 72–74. https://doi.org/10.5281/zenodo.10445063.

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Abstract:
स्वास्थ्य और सुख मानव का जन्म सिद्व अधिकार है किन्तु आधुनिक समय मे व्यक्ति के जीवन की भाग-दौड में लगें रहने से मानव ने प्रकृति के अनुसार आहार-विहार, वस्त्र धारण, विश्राम, दिनचर्या और रात्रिचर्या इत्यादि प्राकृतिक नियमो की अवहेलना की जिससे व्यक्ति की रोग-प्रतिरोधक क्षमता में कमी होने से व्यक्ति रोग्रस्त होता जा रहा है। वर्तमान काल में मनुष्य अनगिनत शारीरिक और मानसिक समस्याओं से घिरा हुआ है। यह सभी समस्यायें मनुष्य ने स्वयं के लिए स्वयं उत्पन्न कि है इसका वह स्वयं दोषी है। मनुष्य ने अति धन कमाने की लालसा में अंधाधुन दौड लगाई, एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा की, वर्चस्व की भावना रखी, स्वयं को श्रेष्ठ दि
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कमल, कमल किशोर. "आधुनिक समय में जीवन शैली का यौगिक प्रबन्धन". RECENT RESEARCHES IN SOCIAL SCIENCES & HUMANITIES 10, № 4 (2023): 15–19. https://doi.org/10.5281/zenodo.10371850.

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Abstract:
आधुनिक समय में प्रत्येक मनुश्य किसी न किसी रूप से शारीरिक, मानसिक विकारों से ग्रस्त है और इन समस्याओं का एक कारण अनियमित जीवनषैली है इससे जीवन में संघर्ष एवं तनाव बढ़ गया है और मनुष्य का खान-पान एवं रहन सहन बुरी तरह प्रभावित हुआ है। मषीनों का विकास होने के कारण मानव का शारीरिक श्रम कम हो गया है तथा मानसिक श्रम बढ़ गया है एक के निष्क्रिय होने तथा दूसरे के अधिक सक्रिय होने से मानव स्वास्थ्य का सन्तुलन बिगड़ जाना स्वाभाविक है। अनियमित जीवन शैली का एक प्रमुख कारण तकनीकी का दुरूपयोग, भौतिकता की प्रधानता, प्रतिस्पर्धा, अति महत्वाकांक्षा, आर्थिक तृष्णा नैतिक मूल्यों के अवहेलना है। स्वस्थ शरीर के बिना
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Shaha, Devi Kumari. "सुर्खेत जिल्लाको छाउपडी प्रथा र यसले महिलाको मानसिक स्वास्थ्यमा पारेको प्रभाव". Patan Gyansagar 7, № 1 (2025): 98–110. https://doi.org/10.3126/pg.v7i1.79573.

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Abstract:
छाउपडी प्रथा नेपालका कर्णाली तथा सुदूरपश्चिम प्रदेशमा व्यापक रूपमा प्रचलित एक सांस्कृतिक परम्परा हो, जसअन्तर्गत महिनावारी भएका महिलालाई घरबाट टाढा, असुरक्षित तथा आधारभूत सुविधा विहीन गोठमा बस्न बाध्य हुन्छन् । नेपालका विभिन्न समुदायहरूमा धार्मिक तथा सांस्कृतिक मान्यताअनुसार महिनावारीलाई अशुद्ध मान्ने परम्परा भए पनि, छाउपडी प्रथाले महिलाहरूको शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा भावनात्मक पक्षमा गम्भीर असर पुर्‍याएको छ ।यस अध्ययनको उद्देश्य छाउपडी प्रथाले महिलाको मानसिक स्वास्थ्यमा पार्ने प्रभावको पहिचान तथा विश्‍लेषण गर्नु रहेको छ। अध्ययनका लागि गुणात्मक अनुसन्धान पद्धति अपनाइएको छ। सुर्खेत जिल्लाको च
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Shakya, Basanta Raj. "काठमाडौँ उपत्यकाका लिच्छविकालिन बुद्धमूर्तिहरू". Historical Journal 12, № 1 (2020): 175–87. http://dx.doi.org/10.3126/hj.v12i1.35637.

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Abstract:
नेपाली इतिहासमा ईश्वी २०० देखि ८७९ सम्मको समयलाई लिच्छविकाल भनिन्छ । यस समयमा तात्कालिननेपालको आर्थिक, सामाजिक, साँस्कृतिक एवम् धार्मिक क्षेत्रमा अत्याधिक विकास भएको थियो । जस कारणलिच्छविकाललाई नेपालको ‘सुवर्ण युग’ भनिन्छ । काठमाडौँ उपत्यकामा लिच्छविकालिन बौद्ध विहारहरू, ढुङ्गेधारातथा चैत्य परिसरहरूमा विभिन्न आकार प्रकारका बुद्धमूर्तिहरू पाइन्छन् । जसमध्ये प्रस्तरका ५१ वटा तथा धातुका१२ वटा लिच्छविकालिन बुद्धमूर्तिहरूको अध्ययन गरिएको छ । प्रस्तरको ५१ वटा बुद्धमूर्तिहरूमध्ये काठमाडौँमाहेनाकर महाविहार, बाँगेमुडा, स्वयम्भू, अन्तराष्ट्रिय बौद्ध भावना केन्द्र, विक्रमशील महाविहार, चारुमति विहार,पशुपत
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Kumar, Sachin. "गीता मनोविज्ञान एक समालोचनात्मक दृष्टि". Anusanadhan: A Multidisciplinary International Journal (in Hindi) 06, № 1&2 (2021): 1–4. http://dx.doi.org/10.24321/2456.0510.202101.

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Abstract:
मनीषियों, दार्षनिको, सन्तों और गुरुओं ने इस संसार को दुःख रूप माना है। सामान्य दृष्टि से देखने पर ऐसा प्रतीत नहीं होता किन्तु महर्षि पतंजलि ने इसका समाधान करते हुए अपने ग्रन्थ योगसू़त्र में “दुःख मेव सर्वं विवेकिनः” कहकर बताया है कि- संसार में विवेकी मनुष्य को ही दुःख दिखाई देता है। सांसारिक मनुष्य इस संसार में संघर्ष करता हुआ सुख प्राप्त करने का प्रयास करता रहता है। इसका कारण उसका संषयात्मक मन है। गीता मन की संषयात्मक स्थिति का निवारण आसानी से कर देती है। गीता में मन के विज्ञान को व्यवहारिक मनोविज्ञान के रूप में वर्णित किया है। गीता में मन के विषय में गवेषणात्मक तथ्यों को देखकर सिद्ध होता है
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आचार्य, विष्णु प्रसाद. "विश्वव्यापीकरण र राष्ट्रिय सुरक्षाका चुनौतीहरू". Unity Journal 2 (3 серпня 2021): 331–43. http://dx.doi.org/10.3126/unityj.v2i0.38848.

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Abstract:
विश्वव्यापीकरणले वस्तु, सेवा, पुँजी, प्रविधि, सूचना, सीमा विहीन स्वतन्त्रता तथा सुरक्षालाई समेत अन्तर्राष्ट्रियकरण गरेको छ । परम्परागत राज्य केन्द्रित सुरक्षाबाट मानवीय सुरक्षा केन्द्रित अवधारणामा यसको रूपान्तरण भएको छ । विश्वव्यापीकरण सँगै अन्तर्सम्बन्धित सूचना–प्रविधि, आर्थिक खुलापन, सङ्गठित अपराध, सम्पत्ति–शुद्धीकरण, आतङ्कवादी गतिविधि, श्रम–आप्रवासन, बढ्दो व्यापार–घाटा, साइबर–आतङ्क, जलवायु परिवर्तन र वातावरणीय असन्तुलन, मानव सिर्जित विपद जस्ता विभिन्न कारणले कुनै पनि मुलुकको राष्ट्रिय सुरक्षामा चुनौती थपिएको छ । यस्ता चुनौतीले अल्पविकसित तथा विकासोन्मुख राष्ट्रहरूको राष्ट्रिय क्षमतामा ह्रास
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डॉ., सी.डी. कांबळे. "प्रवासवर्णन: साहित्यप्रकार". International Journal of Advance and Applied Research 4, № 8 (2023): 107–9. https://doi.org/10.5281/zenodo.7798486.

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Abstract:
प्रवास आपल्या प्रत्येकाच्या जीवनातील एक अविस्मरणीय क्षण असतो. आपण प्रत्येक जण कधी ना कधी कोणत्या ना कोणत्या कारणाने प्रवास करीत असतो. समाजातील प्रत्येक व्यक्ती प्रवास करीत असते. मातेचे उदर ते स्वतःचे घर हाही एक प्रवासच असतो. प्रवास म्हणजे तरी काय ? एका ठिकाणाहून दुसऱ्या ठिकाणी जाणे. प्रवास हा वेगवेगळ्या प्रकारे करता येतो.प्रवास हा निसर्गाची विविध रूपे दाखवीतो. विविध स्वरूपाची वृक्षवल्ली, डोंगर -दऱ्या,वनराई,शेती, शेतीच्या अवतीभोवतीचे निसर्ग मातीची पायवाट,कौलारू घरे,नदी-नाले,मंदिर,पर्वत- शिखरे इत्यादी आणि कित्येक घटक आहेत की त्या सर्व घटकांतून मानवी मनाला सुख समाधान आणि सर्वोच्च आनंद प्राप्ती हो
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Dubey, Shobharam. "Buddhist markings in the post vakataka murals of Ajanta." RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 6, no. 12 (2021): 164–68. http://dx.doi.org/10.31305/rrijm.2021.v06.i12.024.

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Abstract:
The Ajanta paintings are mainly intended to depict various aspects of the life of Lord Buddha. The rest of the space between the stories has been decorated with vines, animal birds, geometric figures and other varied forms. Cave No. 9, 10, 19, 26 of the thirty caves of Ajanta are Chaitya Mandaps, while the rest are Santharams or Viharas. At present, there are only six cave paintings, in which cave nos.-1,2,9,10,16 and 17 are there. From the point of view of time, these paintings are divided into three categories – Satavahana period paintings, Vakataka period paintings and Vakatota period paint
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Dubey, Shobharam. "Buddhist notation in the Vakataka frescoes of Ajanta." RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 7, no. 2 (2022): 12–16. http://dx.doi.org/10.31305/rrijm.2022.v07.i02.003.

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Abstract:
The Ajanta paintings are mainly intended to depict various aspects of the life of Lord Buddha. The rest of the space between the stories has been decorated with vines, animal birds, geometric figures and other varied forms. Cave No. 9, 10, 19, 26 of the thirty caves of Ajanta are chaitya mandapas, while the rest are sangarams or viharas. At present there are only six cave paintings, in which cave nos.-1,2,9,10,16 and 17 are there. From the point of view of time, these paintings are divided into three categories – Satavahana period paintings, Vakataka period paintings and Vakatota period painti
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Jyoti and Satvinder. "Yoga Therapy for Insomnia A Study." RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 7, no. 2 (2022): 84–87. http://dx.doi.org/10.31305/rrijm.2022.v07.i02.013.

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Abstract:
Role: The world is sad. It is only physical-mental suffering that gives pain in the form of diseases. We keep getting diseases like mental and physical suffering, i.e. diseases due to our irregular diet, disordered lifestyle, mental ill-effects – jealousy, malice, greed, anger etc. For example, Diabetes, heart disease, depression, anxiety, insomnia etc.&#x0D; Purpose: Insomnia disease arises due to our physical-mental pain and impulses; hence it is kept in the category of psycho-physical disease. Yoga therapy is very important to remove insomnia disease because yoga therapy makes us healthy fr
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Dubey, Shobharam. "Marking of Natives in Vakataka period murals of Ajanta." RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 7, no. 1 (2022): 112–18. http://dx.doi.org/10.31305/rrijm.2022.v07.i01.016.

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Abstract:
The Ajanta paintings are mainly intended to depict various aspects of the life of Lord Buddha. The rest of the space between the stories has been decorated with vines, animal birds, geometric figures and other varied forms. Cave No. 9, 10, 19, 26 of the thirty caves of Ajanta are chaitya mandapas, while the rest are sangarams or viharas. At present there are only six cave paintings, in which cave nos.-1,2,9,10,16 and 17 are there. From the point of view of time, these paintings are divided into three categories – Satavahana period paintings, Vakataka period paintings and Vakatota period painti
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Dubey, Shobharam. "Buddhist markings in the Satavahana frescoes of Ajanta." RESEARCH HUB International Multidisciplinary Research Journal 9, no. 1 (2022): 50–54. http://dx.doi.org/10.53573/rhimrj.2022.v09i01.010.

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Abstract:
The purpose of the paintings of Ajanta is mainly to depict various stories related to the life of Lord Buddha. The rest of the space between the stories has been decorated with vines, animal birds, geometric figures and other varied forms. Cave No. 9, 10, 19, 26 of the thirty caves of Ajanta are Chaitya Mandaps, while the rest are Sangharamas or Viharas. At present, there are only six cave paintings, in which cave nos.-1,2,9,10,16 and 17 are there. From the point of view of time, these paintings are divided into three categories – Satavahana period paintings, Vakataka period paintings and Vaka
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डा, ॅ. लता ज. ैन. "वर्तमान समय म ें "रा ेजगार युक्त स ंगीत कला" उच्चशिक्षा में एक महत्वप ूर्ण आयाम". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–4. https://doi.org/10.5281/zenodo.885047.

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Abstract:
भारत में संगीत परम्परा बहुत प्राचीन है। संगीत किसी भी क्ष ेत्र का हो, चाह े भारतीय हा े अथवा पाश्चात्य, आदिकाल से ही उसका जनजीवन से संब ंध रहा ह ै। यह एक ए ेसी ललित कला ह ै जिसमें संगीतज्ञ स्वर, लय, ताल क े माध्यम से अपने मना ेभावों का े व्यक्त करता ह ै। संगीत में सम्प ूर्ण मानव जगत को आत्मविभोर करने की शक्ति हा ेती ह ै यह ऐसी कला ह ै जो विश्व में सभी को प्रिय है। संसार की कोई भी ऐसी जगह नहीं ह ै जहाँ क े लोग संगीत से जुड़े न हांे, इसलिए भर्तृ हरि ने संगीत विहीन मानव को बिना सींग आ ैर पूँछ वाले पश ु क े समान माना है। आज उच्च शिक्षा में कला संकाय क े रूप में संगीत का े भी उतना ही स्थान दिया गया
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डा, ॅ. प. ्रतिभा सा ेलंकी. "हि ंदी गीति - काव्य आ ैर स ंगीत का पारस्परिक स ंब ंध आ ैर नवाचार". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.886954.

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Abstract:
संगीत आ ैर साहित्य दोना ें ही मनुष्य क े भावों का े व्यक्त करने क े महत्वपूर्ण माध्यम ह ै। दोना ें क े समन्वय से अलौकिक सा ैंदर्य सृष्टि-वृष्टि होती ह ै जो मानव मन का े सच्चिदानंद की अनुभूति और सत्यम्-षिवम्-सुंदरम् की प ्रतीति कराती ह ै। वाराहोपनिषद के अनुसार संगीत सम्यक गीत है, भागवत प ुराण नृत्य तथा वाद्य यंत्रा ें क े साथ प्रस्तुत गायन का े संगीत कहता ह ै तथा संगीत का लक्ष्य आनंद प ्रदान करना मानता ह ै। यही उद्द ेष्य साहित्य का भी होता है। साहित्य अक्षर ब्रह्म आ ैर षब्द ब ्रह्म से साक्षात कराता ह ै ता े संगीत नादब ्रह्म और तालब्रह्म से। साहित्य आ ैर संगीत दोनों का साथ चोली-दामन का सा है। वि
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Thapa Shrestha, Tilu. "तनहुँ राज्यको राजनैतिक इतिहास". Historical Journal 16, № 1 (2025): 128–41. https://doi.org/10.3126/hj.v16i1.76378.

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Abstract:
नेपालको उत्तर मध्यकालमा साना ठूला गरी ५२ भन्दा बढी राज्यमा विभाजित थियो । ती राज्यहरुमध्ये तनहुँ राज्य गण्डकी प्रश्रवण क्षेत्रमा अवस्थित चौबिसी राज्य अन्तर्गत पर्दथ्यो । तनहुँ राज्यको स्थापना पाल्पाका राजा मुकुन्दसेन प्रथमका साहिला छोरा भृङ्गी सेनले वि.सं.१६१० मा गरेका थिए । चौबीसी राज्यहरू बीच तनहुँ राज्य आर्थिक रूपमा सबल र सामारिक रूपमा महत्वपूर्ण राज्य मानिन्थ्यो । तनहुँ राज्यमा पहाडी र तराई दुवै प्रकारका भूभागहरु पर्दथे । तराई भूभागको सिमाना भारतको विहार प्रान्तसँग जोडिएको हुँदा भारतबाट अंग्रेजहरु तनहुँको तराई भूभाग हुँदै काठमाडौँ उपत्यका छिर्न सक्ने सम्भावना गोरखाका राजा पृथ्वीनारायण शाहल
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रिजाल Rijal, रवीन्द्र Rabindra. "लिच्छविकालिन विद्वत परम्परा". HISAN: Journal of History Association of Nepal 10, № 1 (2024): 198–207. https://doi.org/10.3126/hisan.v10i1.74925.

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Abstract:
विद्वानहरूले आपूसित भएको विद्वत् भाव वा विशेष ज्ञानलाई प्रदर्शन गर्ने रीतिलाई विद्वत् परम्परा भनिन्छ । लिच्छविकालिन सौन्दर्यताले विद्वत् परम्परा बुझ्न र वर्तमानलाई अभ्यस्त गराउन गुण धर्मको काम गर्दछ । सत्य प्राप्त गर्नु ज्ञानको मूल ध्येय हो । ज्ञान प्रशारण, समाजिक सेवा, मानवकल्याण, गुठी व्यवस्था, कर प्रणाली , इश्वरीय शक्ति, स्वशासन, तहगत राज्य संरचना, नारी स्वतन्त्रता आदि लिच्छविकालिन समाजको प्रमुख दार्शनिक एवं सैद्धान्तिक पक्ष हुन् । लिच्छविकालिन विद्वत् परम्परा यिनै दर्शन र सिद्धान्त वरपर घुमेको छ । लिच्छविकालिन समाजको संरचनात्मक रुप अर्थात तत्कालीन समाजले सृजना गरेको सामाजिक मान्यता, चलित म
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हमाल Hamal, सीता Sita. "चमार जातिको इतिहास". HISAN: Journal of History Association of Nepal 10, № 1 (2024): 231–39. https://doi.org/10.3126/hisan.v10i1.74936.

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Abstract:
चमारलाई नेपाली शब्दसागरमा छालाको मालसामान बनाउने एक जाति, सार्की, मिझार, मिजार (कदर गर्दा) भनिएको छ । चमार जाति भारतको विहार र उत्तरप्रदेश लगायत बङ्गालबाट ईशाको पहिलो शताब्दीतिर नेपालमा प्रवेश गरेर तराई र मधेसका बस्तीहरूमा बसोबास गरेका हुन् । यस जातिलाई नेपालको पहाडी क्षेत्रमा सार्की, हरिजन भनिन्छ भने तराईका विविध क्षेत्रमा यिनीहरूलाई चमार, राम, हरिजन र रविदास भनेर सम्बोधन गरिन्छ । चमार जातिको चर्चा आर्य सनातन हिन्दु धर्म, वर्णव्यवस्था, धर्मग्रन्थ, रामायण र महाभारत, पुराण र उपनिषद र वंशावलीहरूमा पनि पाइएको छ । नेपाली सभ्यता तथा संस्कृतिभित्र अनेकौं जातीय समूहहरूको सिर्जना र संरचना हुँदै दलित स
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Sherpa, Pasang. "सोवा रिग्पा चिकित्सा पद्धति : वर्तमान अवस्था र चुनौती". Samaj Anweshan समाज अन्वेषण 3, № 1 (2025): 94–103. https://doi.org/10.3126/anweshan.v3i1.81964.

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Abstract:
यो लेखमा हिमाली क्षेत्रमा परापूर्वकालदेखि अभ्यास र प्रचलनमा रहेको आदिवासी जनजातिको औषधीउपचार सम्बन्धित ज्ञान, सिप र अभ्यासको रूपमा रहेको सोवा रिग्पा चिकित्सापद्धतिको वर्तमान अवस्था, यसले समुदायमा पुर्याएको योगदान र कानुनी मान्यताको अवस्था प्रस्तुत गरिएको छ । यो लेख गोरखा जिल्लाको उत्तरी क्षेत्रमा पर्ने चुमनुब्री गाउँपालिकाअन्तर्गतको सामागाउँ, ह्लो, प्रोक, विही, कुताङ, चुमचेत, छेकम्पार र निले गाउँहरूमा गरिएको अनुसन्धानमा आधारित छ । सोवा रिग्पा चिकित्सापद्धति चुम्बा र नुब्री समुदायमा आज पनि लोकप्रिय र अपरिहार्य चिकित्सा विधिका रूपमा रहेको छ । सोवा रिग्पा हिमालय क्षेत्रका बासिन्दाको संस्कृति र सं
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Ojha, Devendra Nath. "The Nature of Donations in Sanskrit Inscriptions of Nalanda (नालन्दा के संस्कृत अभिलेखों में दान का स्वरूप)". Gagananchal 39, № 04 (2016): 59–60. https://doi.org/10.5281/zenodo.8013375.

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Abstract:
<strong>Hindi Abstract:&nbsp;</strong>न अलं ददाति इति &#39;नालंदा&#39; अर्थात जहां विद्या के क्षेत्र में अलं अर्थात समाप्ति नहीं होता वह नालंदा है। साहित्यिक स्रोतों से नालंदा के इतिहास की प्राचीनता छठी शताब्दी ईसा पूर्व तक जाती है। बौद्ध ग्रंथों, जैन ग्रंथों, चीनी स्रोतों तथा तिब्बती स्रोतों में वर्णित नालंदा के स्वरूप का पुष्ट प्रमाण वहां से प्राप्त अभिलेख प्रस्तुत करते हैं। लगभग चौथी-पांचवी शताब्दी में कुमारगुप्त प्रथम द्वारा अपनी स्थापना से लेकर 13 वीं शताब्दी में मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी द्वारा अन्त किए जाने तक नालंदा देश विदेश में अपने ज्ञान-विज्ञान, संस्कृति एवं कला के लिए विख्यात था।
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Ojha, Devendra Nath Ojha. "History and culture reflected in the inscriptions engraved on the sculptures of Nalanda (नालन्दा की मूर्तियों पर उत्कीर्ण अभिलेखों में प्रतिबिम्बित इतिहास एवं संस्कृति)". Chintan 34(VII) (1 червня 2019): 78–85. https://doi.org/10.5281/zenodo.10973140.

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Abstract:
सारांश: नालन्दा तथा उसके आसपास के क्षेत्रों से मूर्तियों पर उत्कीर्ण लगभग नौ अभिलेख प्राप्त होते है। आदित्यसेन के काल की सूर्य मूर्ति पर उत्कीर्ण लेख में उस मूर्ति को नालन्दा के महाविहार में स्थापित करने की बात कही गयी है। पाल शासक देवपाल के राज्यवर्ष में संकल्पित मूर्ति पर उत्कीर्ण लेख से ज्ञात होता है कि साखा नामक स्त्री ने इस मूर्ति को नालन्दा में स्थापित करवाया था। देवपाल के 35वें राज्यवर्ष में तारादेवी की मूर्ति पर उत्कीर्ण लेख से ज्ञात होता है कि नालन्दा के महान भिक्षु मंजुश्रीदेव के परमभक्त तथा शिष्य गंगाधर ने इस मूर्ति को स्थापित किया था। देवपाल के शासनकाल के एक अतैथिक संकल्पित स्त्री
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Kumar, Naresh. "General analysis of political thoughts of Manvendra Nath Rai." RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 8, no. 2 (2023): 122–27. http://dx.doi.org/10.31305/rrijm.2023.v08.n02.022.

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Abstract:
Manvendra Nath Rai's thinking is the result of a dedicated urge to find such a system, in which keeping the dignity of the person intact, his physical, moral and economic progress is ensured. Manvendra Nath Rai, after his long experiences, has concluded that the present political and economic system does not determine the path of overall welfare of human beings. In his political thinking, he has tried to discover some important facts for the purpose of maintaining and increasing the freedom of man. He has presented his important principle of neo-humanism to give a new identity to the dignity o
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उंबरकर, कु. देवयानी रामदास. "शिवकालीन व पेशवेकालीन कृषी व्यवस्था". International Journal of Advance and Applied Research 5, № 23 (2024): 523–26. https://doi.org/10.5281/zenodo.13682814.

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Abstract:
सारांश: &nbsp; &nbsp;हिंदुस्तान प्राचीन काळापासूनच शेतकी प्रधान देश असल्यामुळे शेतीविषयक धोरणावरच देशाचे अर्थकारण प्रामुख्याने अवलंबून राही. महाराजांचे या बाबीकडे सतत लक्ष असे. ताब्यात आलेल्या मुलुखात गावी वसवून शेतीची लागवड करताना तीन गोष्टी महत्त्वाच्या असत. पहिली गोष्ट म्हणजे नापीक जमीन पिकाऊ करणे. दुसरी म्हणजे पीक, गावकरी व शेतकरी यांचे सर्व संकटापासून संरक्षण करणे आणि तिसरी गोष्ट म्हणजे राज्यातील सर्व जमिनींची शास्त्रशुद्ध मोजणी करून सारा आकारणी करणे. महाराजांची महसूल मंत्री अण्णाजी दत्तो सुरनीस हे याबाबती अत्यंत कर्तबगार होते. महाराजांनी शेती, शेतकरी, गावकरी यांच्याशी राज्य सत्तेचा सरळ स
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डॉ., सुरेश वसंत शिखरे. "मौखिक इतिहासलेखन पद्धती". International Journal of Advance and Applied Research 3, № 5 (2022): 1–13. https://doi.org/10.5281/zenodo.7397304.

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Abstract:
<strong>प्रस्तावना:</strong> &nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; इतिहासलेखन व आधुनिक संदर्भ साधनांचे क्षेत्र अधिक विस्तारत आहे. इतिहासलेखनात नवनविन विचार प्रवाहांचा अंर्तभाव झालेला आहे. वंचितांचा इतिहास, अॅनल्स, संरचनावादी, स्थानिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, खाद्य संस्कृतीचा इतिहास इत्यादी नवनवीन प्रकारचे &nbsp;इतिहासलेखन प्रवाह एकाच घटनेचे विविध अंगानी इतिहास लेखन करताना दिसतात. या नविन विचारप्रवाहांनीनव्याने ऐतिहासिक साधनांचे महत्व, चिकित्सा, विश्लेषण अथवा प्रचलित साधनांचा नव्या पध्दतीने वापर करण्यास सुरुवात केलेली आहे. यामध्ये मौखीक परंपरा आणि साधनां अनन्यसाधारण महत्व प्राप्त
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Sharma, Gayatri, та Reetu Singh. "शांतिकुंज द्वारा संचालित ‘आओ गढ़ें संस्कारवान पीढ़ी - गर्भोत्सव संस्कार’ आन्दोलन से भारतीय समाज एवं गर्भवती माताओं में जागृति का प्रयास : एक विवेचनात्मक अध्ययन". Dev Sanskriti Interdisciplinary International Journal 19 (31 січня 2022): 44–53. http://dx.doi.org/10.36018/dsiij.v18i.227.

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Abstract:
किसी राष्ट्र की सच्ची सम्पत्ति वहाँ के आदर्श चरित्र वाले महान व्यक्ति होते हैं, जो राष्ट्र की प्रगति एवं कार्यशक्ति का आधार माने जाते हैं। मानव के वैचारिक पतन ने नकारात्मक दृष्टिकोण, असंतुलित जीवनशैली और विनाशकारी कार्य पद्धति को जन्म दिया है, फलस्वरूप वातावरण की विषाक्तता पनपी है और मानवता को खतरा उत्पन्न हो गया है । भारतीय एवं वैश्विक मनुष्य समुदाय में आधुनिक समय में उनकी परवरिश में शारीरिक विकास एवं स्वास्थ्य पर ही ध्यान दिया जाता है । उनके मानसिक, भावनात्मक एवं नैतिक विकास पर ध्यान न दिये जाने के कारण भावी पीढ़ी दिशा विहीन, तरह-तरह के अपराधों में लिप्त, भावनात्मक एवं नैतिक मूल्यों से वंचित
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ओली, लाल बहादुर, та शेर बहादुर गुरुङ. "कर्णाली प्रदेशमा सहरीकरणको वर्तमान अवस्था {Present Situation of Urbanization in Karnali Province}". NUTA Journal 10, № 1-2 (2023): 164–79. http://dx.doi.org/10.3126/nutaj.v10i1-2.63075.

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Abstract:
यो अध्ययन कर्णाली प्रदेशमा सहरीकरणको वर्तमान अवस्थामा केन्द्रित छ । यस अध्ययनमा कर्णाली प्रदेशका नगरपालिकाहरूको स्थापना र विकासक्रमको विवरण, जिल्लागत नगर जनसङ्ख्या, नगरपालिकाहरूको जनसङ्ख्या, नगर जनघनत्व, नगरपालिकाहरूको वार्षिक जनसङ्ख्या वृद्धिदर र कर्णाली प्रदेशमा सडक सञ्जाल, सहरी विकास सम्भावनाका बारेमा द्वितीय स्रोतबाट प्राप्त सूचना र तथ्याङ्कहरूलाई भौगोलिक सूचनाप्रणालीको उपयोग गरी वर्णनात्मक विधिबाट विश्लेषण र व्याख्या गर्ने प्रयास गरिएको छ । । नेपालले मुख्य रूपमा जनसङ्ख्यालाई मुख्य आधार मानेर समयक्रममा सहरी क्षेत्र तोक्ने आधारहरू परिवर्तन गर्दै आएको छ । हाल नेपालमा ६वटा महानगरपालिका ११ वटा
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डॉ., प्रमोद लक्ष्मणराव चव्हाण. "पर्यटनातील इतिहासाचे स्थान". उदयगिरी - बहुभाषिक इतिहास संशोधन पत्रिका (Udayagiri Bahubhashik Itihas Sanshodhan Patrika - A Bimonthly, Refereed, & Peer Reviewed Journal of History) 01, № 01 (2023): 23–27. https://doi.org/10.5281/zenodo.8336837.

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Abstract:
<strong>पर्यटनातील इतिहासाचे स्थान</strong> डॉ. प्रमोद लक्ष्मणराव चव्हाण इतिहास विभाग, जयक्रांती कला वरिष्ठ महाविद्यालय, लातूर, जिल्हा: लातूर, महाराष्ट्र, भारत Received: 21 March, 2023 | Accepted: 23 March, 2023 | Published: 25 March, 2023 --------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- मनुष्याचा स्वभाव निसर्गता भ्रमणशील आहे. तो सतत नवीन अनुभूती घेण्याचा प्रयत्न करीत असतो. त्याची ही जिज्ञासू प्रवृत्ती त्याच्या प्रगतीचे मूळ कारण ठरते. आपल्या मनातील जिज्ञासा शांत करण्यासाठी मानव एका ठिकाणाहून दुसऱ्या ठि
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Mohandas, Naimishray. "बिहार में स्त्री शिक्षा की प्रेरक". Outlook (Hindi), November, 28, 2022 (28 листопада 2022): 48. https://doi.org/10.5281/zenodo.7317232.

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Abstract:
<strong>पुस्तक समीक्षा</strong> <strong>बिहार में स्त्री शिक्षा की प्रेरक</strong> <strong>मोहनदास नैमिशराय</strong> पिछले दो दशक से यह महसूस किया जा रहा है कि बहुजन समाज के लेखकों और पत्रकारों के साथ शोधार्थियों की रुचि उनके अपने इतिहास में बढ़ती जा रही है। यही नहीं उनमें इतिहास के साथ संस्कृति के प्रति भी जिज्ञासा भाव उभरा है। उसका सबसे बड़ा कारण है शिक्षा और शिक्षा से चेतना का उभरना। अनाम कहें या गुमनाम देश भर में ऐसी हजारों शख्सियतें होंगी, जो अंधेरे को चीरते हुए उजाले में आईं। पहले स्वयं शिक्षित बनीं फिर दलित और पिछड़े समाज में ज्ञान ज्योति जलाई। उनमें चेतना भरी। हाशिए के उन लोगों को महसू
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Dalip, Kumar. "भारत पर अरबों व तुर्को के आक्रमणों के प्रभाव". International Journal of Research - Granthaalayah 5, № 7 (2017): 136–39. https://doi.org/10.5281/zenodo.835525.

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Abstract:
भारत पर शताब्दियों से अनेक विदेशी आक्रमण होते रहे हैं। विदेशी आक्रमणकारी, शक, हुण, कुषाण, पार्थियन, आदि के रूप में भारत आए । 712 ई. में मोहम्मद-बिन-कासिम ने भारत पर आक्रमण किया । परन्तु प्राचीन काल में आक्रमणकारियों और पूर्व मध्यकालीन आक्रमणकारियों में यह मतभेद था कि प्राचीन काल के आक्रमणकारी भारतीय समाज में समाहित कर लिए गए परन्तु तुर्क आक्रमणकारियों ने अपने प्रभाव को बनाए रखा । तुर्को ने अपने प्रभाव से धर्म ही नहीं बल्कि राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में उल्लेखनीय परिवर्तनों को जन्म दिया । इस रूप में ये आक्रमण पहले के आक्रमणों से अधिक प्रभावशाली सिद्ध हुए।1 अरब व तुर्क आ
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Kumar, Pradeep, та Manoj Singh. "आवास विहीन लोगों के लिए सरकारी योजनाएं तथा कानूनी प्रावधान". ShodhKosh: Journal of Visual and Performing Arts 5, № 1 (2024). https://doi.org/10.29121/shodhkosh.v5.i1.2024.5080.

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Abstract:
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों कानून आवास विहीन व्यक्तियों को आवास संबंधी समस्याओं तथा आवास विहीन व्यक्तियों की मानव अधिकार संबंधी समस्याओं में सहयोग प्रदान करते हैं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आवास विहीन व्यक्तियों का आवास संबंधी अधिकार आवास विहीन व्यक्तियों की आर्थिक सामाजिक तथा सांस्कृतिक संधियों में निहित है। राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय कानून विशेष रूप से अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा करता है इस मूल अधिकार के अंतर्गत मानवीय अधिकारों के सार्वजनिक घोषणा पत्र में मानव गरिमा को मान्यता दी गई है तथा आवास सहित सम्मानजनक जीवन का अधिकार भी इसमें शामिल है आवास विहीन व्यक्तियो
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., हर्षवर्धन, та सुहासिनी बाजपेयी. "उच्च प्राथमिक स्तर के विद्यार्थियों में नागरिक बोध के विकास में बाल संसद की भूमिका". SCHOLARLY RESEARCH JOURNAL FOR HUMANITY SCIENCE AND ENGLISH LANGUAGE 10, № 52 (2022). http://dx.doi.org/10.21922/srjhsel.v10i52.11534.

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Abstract:
प्रस्तुत शोध पत्र में उच्च प्राथमिक विद्यालय के विद्यार्थियों में नागरिक बोध के विकास में बाल संसद की भूमिका का अध्ययन किया गया है। इस शोध अध्ययन के उद्देश्य उच्च प्राथमिक विद्यालय के विद्यार्थियों में नागरिक बोध के विकास में बाल संसद संचालित एवं बाल संसद विहीन विद्यालयों की प्रभाविता का अध्ययन करना है एवं उच्च प्राथमिक विद्यालय में नागरिक बोध के विकास में लिंग एवं क्षेत्र के आधार पर बाल संसद की प्रभाविता का अध्ययन करना है। प्रस्तुत शोध में जनसंख्या के रूप में उत्तर प्रदेश के प्रयागराज एवं नैनी जिले के सरकार द्वारा संचालित उच्च प्राथमिक विद्यालयों के कक्षा.8 के अध्ययनरत सत्र.2021.2022 के विद्य
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Kumar, Manish. "चार ब्रह्मविहारों का पर्यावरण के विशेष दृष्टिकोण से महत्व". International Journal For Multidisciplinary Research 7, № 2 (2025). https://doi.org/10.36948/ijfmr.2025.v07i02.40244.

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Abstract:
चल रहे पर्यावरणीय संकट ने पर्यावरण के अनुकूल उत्तर खोजने के लिए प्राचीन आध्यात्मिक और नैतिक शिक्षाओं पर नए सिरे से विचार करने को प्रेरित किया है। यह लेख देखता है कि चार ब्रह्म विहार हरित नैतिकता में कैसे मायने रखते हैं: उपेक्षा (समभाव), करुणा (दया), मुदिता (दूसरों के लिए खुशी), और मैत्री (प्रेम)। बौद्ध विचारों में निहित ये सार्वभौमिक गुण, केवल लोगों को ही नहीं, बल्कि सभी जीवन और प्रकृति को कवर करते हैं। चार ब्रह्म विहार हमें प्रकृति के साथ रहने और शांति, देखभाल और संतुलन के लिए प्रेरित करने की योजना देते हैं। यह कार्य दिखाता है कि कैसे ये विचार आज की हरित समस्याओं जैसे प्रजातियों की हानि, पेड़
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महिलांग, धनकुमार, बी यू कन्नपनार та कल्याण कुमार सह. "आधुनिक युग में ई-सूचना स्त्रोत एवं सेवाएं". International Journal of Advances in Social Sciences, 22 вересня 2023, 185–87. http://dx.doi.org/10.52711/2454-2679.2023.00028.

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Abstract:
आज के मौजूदा युग में पुस्तकालय के लिए ई-पुस्तकालय, डिजिटल पुस्तकालय, कागज विहीन पुस्तकालय, वर्चुअल पुस्तकालय, स्वचालित पुस्तकालय इत्यादि शब्द प्रयोग में लाये जा रहे है। जिसका सबसे प्रमुख कारण ई-सूचना स्त्रोतों का चलन है। ई-सूचना स्त्रोतों के बढ़ते उपयोग के पीछे के कारणों की बात करें तो 60ः व्यक्तियों या पाठकों का यह मानना है कि वर्तमान समय में नई-नई “आधुनिक तकनीकी के प्रचलन“ ही बढ़ते उपयोग के पीछे का प्रमुख कारण मानते है। प्रस्तुत लेख आधुनिक युग में ई-सूचना स्त्रोतों के बढ़ते उपयोग एवं सेवाओं पर आधारित है।
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