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Journal articles on the topic 'शिल्प'

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डा, ॅ. रजनी भारती. "कला एवं व्यवसाय एक विश्ल ेषणात्मक अध्ययन (आर्थिक परिप्रेक्ष्य में)". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.889269.

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Abstract:
भारत में कला एव ं व्यवसाय का क्षेत्र अत्यंत व्यापक ह ै। जिसका गा ैरव कभी दर पीढ़ी चलते ह ुए अपना अस्तित्व बरकरार रखे ह ुए ह ै। शिल्पकारों एवं कारीगरों की पहचान व्यक्तिगत नहीं अपितु शिल्पगत तथा कलात्मक रूप में होती ह ै। देश में कला एवं शिल्प क े विविध स्वरूप ह ै ं। आजकल कला विषयों में चित्रकला, मूर्तिकला, संगीत, नृत्य इत्यादि मुख्य कलायें प ्रचलित हैं। इसके अतिरिक्त शिलप क े विषय में जैसे - लकड ़ी का काम, चमड़े का काम, कताई-बुनाई, बागवानी, मिट्टी क े बर्तन बनाने का काम, कालीन बनाना, चर्टाइ बनाना, खिलौने बनाना, सिलाई, बुर्नाइ , कर्ढ़ाइ , लोहे का काम, टीन का काम इत्यादि। व्यवसाय की दृष्टि से आज क
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खापर्ड े, स. ुधा, та च. ेतन राम पट ेल. "कांकेर में रियासत कालीन जनजातीय समाज की परम्परागत लोक शिल्प कला का ऐतिहासिक महत्व". Mind and Society 9, № 03-04 (2020): 53–56. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-93-4-20218.

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Abstract:
वर्त मान स्वरुप म ें सामाजिक स ंरचना एव ं ला ेक शिल्प कला म ें का ंक ेर रियासत कालीन य ुग म ें जनजातीय समाज की आर्थि क स ंरचना म ें ला ेक शिल्प कला एव ं शिल्प व्यवसाय म ें जनजातीया ें की वास्तविक भ ूमिका का एव ं शिल्प कला का उद ्भव व जन्म स े ज ुड ़ी क ुछ किवद ंतिया ें का े प ्रस्त ुत करन े का छा ेटा सा प ्रयास किया गया ह ै। इस शा ेध पत्र क े माध्यम स े शिल्पकला म ें रियासती जनजातीया ें की प ्रम ुख भ ूमिका व हर शिल्पकला किस प ्रकार इनकी समाजिकता एव ं स ंस्क ृति की परिचायक ह ै एव ं अपन े भावा ें का े बिना कह े सरलता स े कला क े माध्यम स े वर्ण न करना ज ैस े इन अब ुझमाडि ़या ें की विरासतीय कला ह
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पहाडी Pahadi, ढुण्डिराज Dhundiraj. "‘यात्रा लामा बगरको’ कृतिमा नियात्रा शिल्प". Patan Pragya 13, № 1 (2024): 123–32. http://dx.doi.org/10.3126/pragya.v13i1.71189.

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Abstract:
प्रस्तुत अध्ययन नियात्राकार कुलचन्द्र कोइरालाद्वारा रचित ‘यात्रा लामा बगरको’ शीर्षकको नियात्रा कृतिमा प्रयुक्त विषयवस्तु र त्यसलाई आस्वाद्य बनाउने प्रस्तुतीकरण पद्धतिको विमर्शसँग सम्बन्धित छ । यसमा नियात्रा सिद्धान्तलाई आधार बनाएर विवेच्य नियात्रा कृतिको सघन अध्ययनबाट प्राप्त तथ्यलाई विश्लेषण गर्दै नियात्राको अन्तर्वस्तुलाई सुन्दर बनाउने शिल्पपद्धतिको वस्तुनिष्ठ अनुशीलन गरिएको छ । नियात्राको समीक्षा गर्दा मूलतः निजात्मकता, आलङ्कारिकता, विषयवस्तुगत प्रवृत्ति र भाषाशैलीलाई प्रमुख मानदण्ड बनाइएको छ । नियात्राको विषयवस्तुमा प्रतिबिम्बित तत्कालीन नेपाल चीन बिचको मैत्रीसम्बन्ध, हिमाली भेगका दोलखा, स
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Singh, Satyavir. "Language and Craft of Kamleshwar's Stories." RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 7, no. 5 (2022): 176–80. http://dx.doi.org/10.31305/rrijm.2022.v07.i05.025.

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Abstract:
Kamleshwar's stories were created keeping in mind the classical framework of storytelling art. Apart from those standards, they are constantly moving forward establishing some new standards of the modern era. Kamleshwar is considered a very alert and progressive storyteller. All the points of the language and craft of his stories are discussed. In which they stand up to the test with success. Kamleshwar is considered the most popular face of the post-independence Hindi story genre. He was a creator of multifaceted literature. In this way, Kamleshwar proves to be a successful storyteller on the
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सी., पी. व्यास. "पर्ण चित्रकलेचे साधक - श्रीधर रामचंद्र कुलकर्णी". Journal of Research & Development 17, № 1 (2025): 256–59. https://doi.org/10.5281/zenodo.14965148.

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Abstract:
<strong><em>सारांश:-</em></strong> <em>सौंदर्याचे रसात्मक ग्रहण म्हणजे कला.&nbsp; कलेचे खरे मोल कलावंत जाणतात व रसिकच तिला पारखू शकतात. कलेची विविध रूपे व विविध दालने आहेत. जगातील कलाविष्कारात वेरूळ- अजिंठा इत्यादी गुफांतील शिल्पे रंगकाम अत्यंत प्रसिद्ध. तसेच ब क ते ही क आ- वेगळे महत्त्व ठेवणारी कला ठरते. नियतीने काही मोजक्या हातांना व बोटांनाच अशा कुंचल्यांचा स्पर्श दिलेला आहे की त्यातून एक अप्रतिम व अनुपपमेय अशी कला अविष्कृत होते.&nbsp; कलेचा चित्रकार हा प्रकार तसा जुनाच.&nbsp; प्राचीन गुफातून 15000 वर्षांपूर्वी पासून चित्रकला असल्याची उदाहरणे. दिस तर दीड हजार वर्ष व त्यापेक्षाही जुने बेजोड
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Dr., Shailendra Kumar gutam. "प्राचीन भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी का विकास". International Educational Applied Research Journal 08, № 09 (2024): 4–7. https://doi.org/10.5281/zenodo.13826120.

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Abstract:
प्राचीन भारत में विभिन्न विज्ञान की शाखाओं जैसे गणित, ज्योतिष, कृषि, रसायन, वास्तु विज्ञान, भू-विद्या, चिकित्सा विज्ञान, प्राणी वनस्पित विज्ञान, धातु शिल्प आदि का महत्वपूर्ण विकास हुआ । जो आधुनिक विज्ञान के विकास में मजबूत आधार का कार्य करता है।
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Bharti, Rajni. "ART AND BUSINESS AN ANALYTICAL STUDY (IN ECONOMIC PERSPECTIVE)." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 2, no. 3SE (2014): 1–3. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v2.i3se.2014.3608.

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Abstract:
The field of art and business is very wide in India. Whose pride is keeping its existence going on from generation to generation. Craftsmen and artisans are identified not as individual but as artistic and artistic. There are various forms of arts and crafts in the country. Nowadays the main arts in art subjects are painting, sculpture, music, dance etc. In addition to the subject of shilp such as - woodwork, leatherwork, spinning-weaving, gardening, pottery-making, carpeting, mat-making, toy-making, sewing, weaving, embroidery, ironwork, tin Work etc. Today is the simplest use of art from a b
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आटेड़िया, संजय. "उमराव सिंह जाटव कृत 'थमेगा नहीं विद्रोह उपन्यास में शिल्प". HARIDRA 1, № 01 (2021): 36–37. http://dx.doi.org/10.54903/haridra.v1i01.7806.

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Abstract:
'थमेगा नहीं विद्रोह उपन्यास ग्रामीण परिवेश को लेकर लिखा गया सामाजिक उपन्यास है। इसमें दलितों के जीवन चरित्रों के माध्यम से भारत की दलित समस्या को बताया गया है। शिल्प की दृष्टि से उपन्यास में उत्तरप्रदेश के गांवों एवं कस्बों में बोली जाने वाली ठेठ बोलियों का भरपूर प्रयोग संवाद में मिलता है। उपन्यास के कथानक में भाशा-शैली की विविधता है।
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अधिकारी Adhikari, सीता Sita. "प्रयोगशीलताका आधारमा आमाको आँगन महाकाव्यको विश्लेषण {Analysis of Mother's Yard Epic on the basis of usability}". Chaturbhujeshwar Academic Journal 1, № 1 (2023): 121–38. http://dx.doi.org/10.3126/caj.v1i1.63298.

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Abstract:
परम्परागत महाकाव्यहरू भन्दा फरक ढङ्गले काव्यको प्रस्तुती भएकाले महाकाव्यलाई प्रयोगशीलता अर्थात प्रयोगवादका सन्दर्भमा समीक्षा गर्नु उपयुक्त ठानिएको छ । यस प्रसङ्गमा उक्त कृतिको समीक्षात्मक अध्ययन गर्ने प्रयास गरिएको छ। महाकाव्यकार डा. नवीनबन्धु पहाडीद्वारा रचित ‘आमाको आँगन’ महाकाव्यमा प्रयोग गरिएको नवीन शिल्प शैलीहरूको बारेमा विश्लेषण गर्नु यस अनुसन्धानात्मक लेखको समस्या हो । काव्यमा प्रयोग गरिएका नवीन शिल्प, शैली र प्रस्तुतीले महाकाव्यलाई प्रयोगशील बनाउन सहयोग गरेको छ जातीय द्वन्द्व, वैमनस्यताले थिलो थिलो भएर देशमा बस्न नसकी परदेश लागेकाहरु देश तथा आमाको निश्वार्थ सेवामा सदा तल्लिन भएर लाग्नुप
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त्रिष्टुप, चंसौलिया. "शमशेर बहादुर सिंह के रचना संसार में युगबोध और शिल्प का समन्वय". International Educational Applied Research Journal 09, № 05 (2025): 27–34. https://doi.org/10.5281/zenodo.15384210.

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Abstract:
युगबोध और शिल्प का गहरा अंतः संबंध हुआ करता है। इस बात से हम सभी परिचित हैं, कि युगबोध ही साहित्य और कलाओं विशेषकर कविता का उत्स होती है। साहित्य और युगबोध एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं, इसलिए युगबोध साहित्य का परिणाम भी होता है। कोई भी साहित्यिक रचना समाज में ही पल्लवित एवं पुष्पित होती है। समाज, संस्कृति और परिवेश से प्राप्त कच्चे माल की भाँति प्राप्त संपदा को एक सर्जक रचनाकार अपनी रचनात्मक प्रतिभा से आकृ ति प्रदान कर साहित्य के कोष की वृद्धि करने में अपना योगदान देता है। किसी रचनाकार की सृजन शक्ति, मानो जीवन का बीजभाव होती है, जो सृजनात्मकता की प्रक्रिया के कारण फलित होती है। समकालीन कविता
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न्यौपाने Neupane, भुवन Bhuwan. "चन्द्रवदन कथाको पाठपरक विश्लेषण". Saraswati Sadan सरस्वती सदन 7, № 1-2 (2023): 121–41. http://dx.doi.org/10.3126/ss.v7i1-2.65981.

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Abstract:
चन्द्रवदन कथाको पाठपरक विश्लेषण शीर्षकको यस लेखमा समाख्यानात्मक पाठको विधागत सङ्गठनका साथै संसक्ति र संयुक्तिका आधारमा पाठको विश्लेषण गरिएको छ । प्रस्तुत अध्ययन गुणात्मक प्रकृतिको अध्ययन भएकाले पुस्तकालयीय सामग्रीको सङ्कलन र अध्ययन गरिएको छ। खास गरेर संरचनात्मक तथा प्रकार्यपरक दृष्टिले समाख्यानको स्थूल र सूक्ष्म विषयको अध्ययन गरिएको छ । यस लेखमा कथाकी प्रमुख पात्र चन्द्रवदनका संज्ञान, संवेदना र अवधारणालाई महत्त्व दिई नारी पात्रकै मानसिक क्रियाव्यापार, प्रक्रिया र वृत्तिलाई पाठीय तत्त्वका आधारमा अध्ययन गर्नुका साथै व्यक्तिका मानसिक क्रियाव्यापार, प्रक्रिया र वृत्तिलाई जनाउने शब्दको पुनःकथनात्मक
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श्रेष्ठ Shrestha, जीवन Jeevan. "उत्तरवर्ती उपन्यासमा दृष्टिबिन्दु–शिल्प {Point of view-craft in later novels}". Patan Prospective Journal 2, № 2 (2022): 285–91. http://dx.doi.org/10.3126/ppj.v2i2.53168.

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गैरे, गोपालप्रसाद. "नाटककार विजय मल्लको रङ्गमञ्च शिल्प {Dramatist Bijay Malla's art of theater}". NUTA Journal 10, № 1-2 (2023): 137–51. http://dx.doi.org/10.3126/nutaj.v10i1-2.63055.

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Abstract:
प्रस्तुत लेख विजय मल्लका नाटकको रङ्गमञ्चशिल्पको अभ्ययनमा केन्द्रित छ । रङ्गमञ्चशिल्पको वैशिष्ट्य निरूपण नाटकको रङ्गमञ्चीय प्रस्तुतिका रूप र अवस्थाको प्रत्यक्ष अवलोकनबाट हुन्छ तापनि रङ्गमञ्चीय प्रस्तुतिका समस्त रूप र अवस्थाको मूलाधार नाट्यमर्म हो । नाट्यमर्मलाई नै श्रव्यदृश्य परिणति प्रदान गर्ने उद्देश्यले नै आधारशिलाका रूपमा नाट्यपात्रका कार्यव्यापार सम्पत्र भएको स्थान, समय र परिस्थितिको प्रतिनिध्यात्मक वा प्रतीकात्मक ढङ्गमा रङ्गमञ्च तयार गरिन्छ । नाट्यकृतिलाई रङ्गमञ्चीय प्रस्तुतिमा लैजाँदा रङ्गकर्मीहरूले नाट्यालेखको अध्ययनबाट नाट्यपात्रका बाह्यान्तरिक रूप र अवस्थाको मानससाक्षात्कार गर्छन् र त
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डॉ., सुचित्रा हरमलकर. "नृत्य में मूर्तिकला व चित्रकला के तत्वों का सौन्दर्य". International Journal of Research - Granthaalayah 7, № 11(SE) (2019): 274–76. https://doi.org/10.5281/zenodo.3592648.

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Abstract:
नृत्यकला के साथ शिल्प व चित्रकला के तुलनात्मक अध्ययन में स्पष्ट हो जाता है कि इन कलाओं के कतिपय पक्ष भारतीय नृत्यकला की तकनीक के आवश्यक अंग है तथा इसमें इन सभी कलाओं (प्रमुख रूप से ललित कलाओं) के मुख्य गुण समाहित है। नाट्&zwnj;यशास्त्र आदि ग्रन्थों में जो प्रमाण उपलब्ध है उससे यह स्पष्ट होता है कि ईस्वी सन्&zwnj; के प्रारम्भ से ही मूर्तिकला, चित्रकला, काव्य, नाट्&zwnj;य नृत्य संगीत आदि को मात्र शिल्प कौशल या छन्द से बनी रचनाओं की अपेक्षा श्रेष्ठ और महत्त्वपूर्ण माना जाने लगा था, चूंकि इन कलाओं से प्रक्षेपित होने वाला भाव अधिक सुखद एवं हृदय को आनंद देने वाला था तथा जिसकी अनुभूति अधिक अर्थपूर्ण
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गैरे Gaire, गोपालप्रसाद Gopalprasad. "‘त्यो एउटा कुरा’ नाट्यकृतिमा विसंगतिवादी नाट्यशिल्पको प्रयोग". Samriddhi Journal of Development Studies 8, № 1 (2022): 14–20. http://dx.doi.org/10.3126/sjds.v8i1.61126.

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Abstract:
प्रस्तुत लेख नाटककार धु्रवचन्द्र गौतमको ‘त्यो एउटा कुरा’ नाट्यकृतिमा प्रयुक्त नाट्यशिल्पको वैशिष्ट्य निरूपणमा केन्द्रित छ । कुनै पनि नाट्यकृतिमा प्रयुक्त शिल्पको अध्ययन विभित्र दृष्टिकोणले गर्न सकिन्छ तापनि प्रस्तुत नाट्यकृतिमा जीवनजगत् सुन्दर, सुखद, सङ्गतिमूलक र काम्य छ भत्रे आशावादी एवं आदर्शवादी नाट्यमान्यता र शिल्पपद्धतिका विपरीत जीवनजगत् विद्रूप, त्रासद, निःसार अस्तित्वहीन छ भत्रे विसङ्गतिवादी जीवनदृष्टिलाई अभिव्यक्ति दिन कथ्य, कथानक, पात्र, परिवेश, संवाद आदि नाट्यतत्त्वको चयनमा पनि विसङ्गतिवादी शिल्पपद्धति अवलम्बन गरिएको छ । तसर्थ यस अध्ययनमा विसङ्गतिवादी नाट्यमान्यता र शिल्पपद्धतिका आधा
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Gadhavi, Manaliben H. "प्राचीन भारत में महिला उद्यमिता : एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य". Journal of Research & Development 17, № 4 (2025): 173–75. https://doi.org/10.5281/zenodo.15553283.

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Abstract:
<strong><em>Abstract:</em></strong> <em>प्राचीन भारत में इस घटना की जड़ों का पता लगाना आवश्यक है। लोकप्रिय धारणा के विपरीत, प्राचीन भारत में महिलाएँ केवल घरेलू कामों तक ही सीमित नहीं थीं, उन्होंने व्यापार, शिल्प और व्यवसाय सहित विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाईं। यह लेख प्राचीन भारत में महिला उद्यमिता के इतिहास पर प्रकाश डालता है, उनके योगदान, चुनौतियों और सामाजिक प्रभाव पर प्रकाश डालता है, जो ऐतिहासिक ग्रंथों और विद्वानों के शोध के संदर्भों द्वारा समर्थित है। </em>
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खनाल Khanal, सुलोचना Sulochana. "‘पानीको घाम’ र ‘सेतो धरती’ उपन्यासको तुलनात्मक अध्ययन "Paniko Gham" ra "Seto Dharati" Upanyasko Tulanatmak Adhyayan". Prithvi Journal of Research and Innovation 1 (15 грудня 2019): 78–95. http://dx.doi.org/10.3126/pjri.v1i0.29900.

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Abstract:
प्रस्तुत शोधमूलक लेखमा अमर न्यौपानेका ‘पानीको घाम’ र ‘सेतो धरती’ उपन्यासका संरचना र नारीवादी स्वरको तुलनात्मक अध्ययन गरिएको छ । यस क्रममा नवीव शिल्प संरचना अनि सीमित परिवेशमा केन्द्रित भई बहुरङ्गी समाजको चित्रणका दृष्टिले पहिलो बढी महत्त्वको देखिएको छ भने नारीका सीमित (बाल, अनमेल, बहु विवाह र विधवाका) समस्या उठाएर तिनलाई अपेक्षाकृत विस्तृत र घनत्वपूर्ण गहिराइसाथ प्रस्तुतिका दृष्टिले दोस्रो बढी महत्त्वको देखिएको छ । दुबै उपन्यासमा नारीवादी स्वर नै बढी तुलनीय देखिएकाले त्यसकोे अन्वेषण यहाँ केही विस्तारमा गरिएको छ । यो अध्ययन मूलतः निगमनात्मक र अंशतः आगमनात्मक विधिमा आधारित छ ।
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Pandey, Krishna Chand. "सांस्कृतिक विधा एवं भारतीय ज्ञान परम्परा". ShodhKosh: Journal of Visual and Performing Arts 3, № 2 (2022): 693–98. http://dx.doi.org/10.29121/shodhkosh.v3.i2.2022.2656.

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Abstract:
स्थूल रूप से संस्कृति को किसी देश या जनता की जीवन-विधा कहा जा सकता है। नृतत्त्वशास्त्र और समाजशास्त्र के विद्वान संस्कृति को किसी ऐतिहासिक जन और समाज की जीवन-विधा के रूप में प्रकट विशेषता मानते हुए उसे रीति-रिवाज, आचार-व्यवहार, ज्ञान-विज्ञान, कला और शिल्प आदि सभी जीवन के आयामों में न्यूनाधिक रूप से कभी सुसंगत और कभी विसंगत रूप से लक्षित करते हैं। उनकी दृष्टि से संघठित समाज ही मूल सत्ता है, संस्कृति उसके मूल्य, मर्यादाएँ और विधि-विधान, प्रतीक और कर्तव्य की परतंत्र विशेषताएँ हैं।
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पहाडी Pahadi, ढुण्डिराज Dhundiraj. "गीतकार प्रश्रितका गीतिरचनामा प्रयुक्त कथ्य र शिल्प Geetkar Prashritka Gitirachanama Prayukta Kathya ra Shilpa". Patan Pragya 6, № 1 (2020): 251–65. http://dx.doi.org/10.3126/pragya.v6i1.34440.

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Abstract:
प्रस्तुत अध्ययनमा मोदनाथ प्रश्रितका गीतहरूमा प्रयुक्त विविध विषयवस्तु र तिनलाई प्रस्तुत गर्नेअभिव्यक्तिकौशलको अनुशीलन गरिएको छ । यस विश्लेषणात्मक अध्ययनमा ‘जब चल्छ हुरी’ शीर्षकको गीतिकृतिलाई प्राथमिक वा प्रमुख स्रोतका रूपमा उपयोग गर्दै कृतिकेन्द्री समालोचनात्मक पद्धतिका आधारमा उक्तगीतसङ्ग्रहबाटै साक्ष्य र तथ्य सङ्कलन गरी मोदनाथ प्रश्रितको गीतिकारिताको मूल्याङ्कन गरिएको छ ।गीतको अन्तर्वस्तु विश्लेषणका आधारमा मूल्याङ्कन गर्दा मोदनाथ प्रश्रित समतामूलक नेपाली समाजकोस्थापनाका निम्ति प्रगति र परिवर्तनको पक्षमा सक्रिय रहने देशभक्त र प्रगतिवादी गीतकार हुन् भन्ने निष्कर्षप्राप्त भएको छ । प्रगतिवादी गीत
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Upadhyay, Rashmi, and Shahid Hussain. "Analytical Study of Geetashree's Prose Literature." Revista Review Index Journal of Multidisciplinary 4, no. 4 (2024): 01–08. https://doi.org/10.31305/rrijm2024.v04.n04.001.

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Abstract:
The present research paper examines the prose literature of Geetashree, a prominent writer of the post-1960 literary era. The paper attempts to highlight the significance of Geetashree's creative work and the tendencies in her literary perspective. The writing of prose in Geetashree's literature is an extremely important aspect, revealing her keen observation of the inequalities prevailing in society. The paper provides an introduction to prose literature, describing its various forms and presenting a chronological delineation of prose genres. Furthermore, it analyzes the short story and novel
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Dr. Bimal Malik. "छायावाद युग की विशेषताएँ – एक अध्ययनात्मक विश्लेषण". International Journal for Research Publication and Seminar 15, № 4 (2024): 163–66. https://doi.org/10.36676/jrps.v15.i4.267.

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Abstract:
छायावाद हिंदी साहित्य का एक क्रांतिकारी युग था जिसने कविता को नए भावबोध, नवीन शिल्प और आत्मान्वेषण की दिशा प्रदान की। इस युग में कवियों ने आत्मा, प्रकृति, सौंदर्य, प्रेम और रहस्य को केंद्र में रखकर काव्य-सृजन किया। यह शोध-पत्र छायावादी युग की प्रमुख विशेषताओं, इसके ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य, प्रमुख कवियों और साहित्यिक योगदानों का विश्लेषण प्रस्तुत करता है। छायावाद हिंदी साहित्य का एक महत्वपूर्ण युग है, जो लगभग 1900 से 1920 तक फैला। यह युग रोमांटिसिज्म और भावुकता से ओतप्रोत था, जिसमें कवियों ने अपने व्यक्तिगत अनुभवों, मनोभावों और प्रकृति के माध्यम से मानव मन की गहराइयों को उजागर किया।
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Vinod, Kumar. "SYANPAT : EK SAMIKSHATMAK ADHYAYAN." Research Link XV (4), no. 147 (2016): 17. https://doi.org/10.5281/zenodo.8205305.

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Abstract:
प्रस्तुत शोध-पत्र में हरियाणवी साहित्य के कहानीकार डॉ. राजबीर सिंह धनखड़ के लघुकथा संग्रह &#39;स्याणपत&#39; का समीक्षात्मक अध्ययन किया गया है। कहानीकार ने संवेदना के अनुरूप भाषिक प्रयोग करके अपनी मौलिकता का परिचय दिया है। यह कथा-संग्रह अपनी शिल्प की सादगी के कारण अपनी निजी पहचान रखता है, किस्सागो शैली की प्रमुखता होते हुए भी कहीं-कहीं नवीन कथा-शैली का विन्यास हुआ है। हरियाणवी भाषा, लोकोक्तियों और मुहावरों के प्रचुर प्रयोग से ये लघुकथाएं प्राणवान हो उठी हैं। सम्पूर्ण कथा-संग्रह में हरियाणा की मिट्टी की सौंधी महक आती है।&nbsp;&nbsp;
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Koli, Munshi Ram. "The Nature of Diasporic Indian Fiction and the Various Dimensions of Indian Life." RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 9, no. 6 (2024): 347–50. http://dx.doi.org/10.31305/rrijm.2024.v09.n06.044.

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Abstract:
In overseas fiction, the image of one's own state is reflected in the creation of literature along with language and craft. The maturity in the thoughts of the writer is the result of his life values and when that writer gives his thoughts the form of fiction or story, then his values influence his literature. When India was under the hegemony of the British rule, a large number of Indians went to other European countries as immigrants, but when the work of writing stories was done by the immigrants, they mentioned various dimensions of Indian life and worked to spread the values of Indian lif
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त्रिष्टुप, चंसौलिया. "शमशेर बहादुर सिंह के काव्य मे लोकोत्तर युगबोध का सामाजिक प्रभाव". International Educational Applied Research Journal 09, № 05 (2025): 18–26. https://doi.org/10.5281/zenodo.15384170.

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Abstract:
शमशेर बहादुर सिंह विशुद्ध सौन्दर्य के कवि हैं। शमशेर की कविताओं को किसी खास तरह की प्रवृत्तियों में बांधकर नहीं देखा जा सकता। उनकी कविता के भीतर कई प्रकार के स्वर हैं। वह शिल्प और शैली की दृष्टि से भी अनूठी हैं। उनकी कविताओं में सामाजिक चिंता के स्वर भी बहुत गहरे हैं। मानवद्रोही समाज को बदलने की तीव्र आकांक्षा भी उसमें उपस्थित है। महावीर अग्रवाल को दिए एक साक्षात्कार में उनका कहना है कि "सच्ची कविता हमारी भावनाओं का संस्कार और परिष्कार करती है। वह मानवीय संवेदना को गहरा करती है।..... कविता जीवन के सजीव संदर्भों से संयुक्त होगी। उसमें धर्म, राजनीति, दर्शन, प्रेम, क्रांति सब कुछ आ जाता है वह बदल
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देवी, नागरानी, та सीमा सिंह*. "भारविकृत किरातार्जुनीयम् का काव्यशास्त्रीय मूल्यांकन". Humanities and Development 16, № 1-2 (2021): 114–20. http://dx.doi.org/10.61410/had.v16i1-2.22.

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Abstract:
संस्कृत साहित्य में महाकवि कालिदास की कृतियों के अनन्तर भारवि के ‘किरातार्जुनीय’ का ही स्थान है। महाकाव्य की दृष्टि से आलोचकों ने ‘रघुवंश’ को लघुत्रयी’ में रखा है तथा ‘किरातार्जुनीय’ को बृहत्त्रयी में। यद्यपि सर्ग आदि की दृष्टि से रघुवंश काव्य किरातार्जुनीय से लघुकाय नहीं है। इसका कारण यही प्रतीत होता है कि काव्यकला के शिल्प विधान की दृष्टि से किरातार्जुनीय, रघुवंश महाकाव्य से उत्कृष्ट तथा ओजपूर्ण है। लोकप्रियता की दृष्टि से मेघदूत तथा कुमारसंभव के बाद किरातार्जुनीय का ही स्थान है। मनोहर अर्थगौरव से विभूषित, छोटे-छोटे समस्त पदों की सुललित कर्णप्रिय ध्वनि से गूँजते हुए सैकड़ों श्लोक अथवा श्लोकार
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त्रिपाठी Tripathi, गीता Geeta. "‘बर्सातमा बुद्धको मूर्ति सामु’ कवितामा शिल्प र् सौन्दर्य {Craft and beauty in the poem 'In front of Buddha statue in the rain'}". Journal of Fine Arts Campus 3, № 1 (2021): 50–55. http://dx.doi.org/10.3126/jfac.v3i1.42519.

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Abstract:
प्रस्तुत अध्ययन कवि सुमन पोखरेलको ‘बर्सातमा बुद्धको मूर्ति सामु’ कवितामा अन्तर्निहित शिल्प सौन्दर्यको विश्लेषणमा केन्द्रितरहेको छ । कवितामा प्रयुक्त हुने भाषाको विशिष्टताको पाठपरक विश्लेषणका निम्ति यो कविता सोद्दश्य छनोट गरिएको हो । यसअध्ययनका निम्ति पुस्तकालयीय कार्यद्वारा अध्ययन सामग्रीहरू सङ्कलन गरिएको छ । कविताको विधागत विशिष्टता निर्धारण गर्ने मुख्य आधार यसमा प्रयुक्त भाषिक कला वा उक्तिगत विचित्रिता नै हो । यस अध्ययनमा उल्लिखित कवितामा चयन गरिएका पद र पदक्रमको विचलनयुक्त व्यवस्थितता, अर्थगत विपर्यास र समानान्तरता आदिमार्फत प्रस्तुत कविता शिल्पको विश्लेषणका निम्ति यसको आयामगत विस्तृति र भा
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Ranga, Reena. "समकालीन हिंदी कविता में वैश्वीकरण और व्यवसायीकरण". ShodhKosh: Journal of Visual and Performing Arts 6, № 1 (2025): 122–25. https://doi.org/10.29121/shodhkosh.v6.i1.2025.5657.

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Abstract:
यह शोध पत्र समकालीन हिंदी कविता पर वैश्वीकरण और व्यावसायिकता के प्रभाव का विश्लेषण करता है। वैश्विक संस्कृति के प्रसार और बाजार आधारित विचारधाराओं के प्रभाव ने हिंदी काव्य-प्रकटीकरण में परिवर्तन और प्रतिरोधकृदोनों को जन्म दिया है। कुछ कवि उपभोक्तावाद, सांस्कृतिक क्षरण और पूंजीवादी शोषण जैसे विषयों की आलोचनात्मक व्याख्या करते हैं, जबकि अन्य कवि वैश्वीकृत संसार में पहचान और आत्मीयता की दुविधाओं को अभिव्यक्त करते हैं। यह अध्ययन समकालीन हिंदी की चयनित कविताओं की विषयवस्तु, भाषा और शिल्प का विश्लेषण करता है, ताकि यह समझा जा सके कि कवि स्थानीय और वैश्विक संदर्भों के संगम पर कैसे संवाद करते हैं। मंगल
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पौड्याल Poudyal, नवीन Nabin. "तमिलबाट नेपालीमा अनुवाद – तिरुक्कुरल". Prajnik Bimarsha प्राज्ञिक विमर्श 6, № 11 (2024): 78–86. http://dx.doi.org/10.3126/pb.v6i11.66011.

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Abstract:
नेपाली साहित्य अनुवादको माध्यमबाट पनि धेरै समुन्नत भएको छ । अनवुादको माध्यमबाट नै नेपाली साहित्य अन्यभाषीर अन्य अन्यभाषाका पुस्तक नेपाली पाठकले पढ्न पाउँछन् । तमिल साहित्यको एक महत्वपूर्ण शास्त्रीय प्राचीन ग्रन्थ तिरूक्कुरललाई सुनिता दाहालले तमिलबाट नेपालीमा अनुवाद गरेकी छन् । यसमा तीन खण्ड, तेह्र वटा उपखण्ड र पैतीस वटा शीर्षकीय परिच्छेदहरू र जम्मा १३३० वटा श्लोकहरू रहेका छन् । नेपाली अनुवाद ग्रन्थमा भूमिका, मूलपाठ र अनुक्रमणिका आदि सबै मिलाएर ५८३ + ३८ गरी जम्मा ६२१ पृष्ठहरू रहेका छन् । यसमा मूल तमिल दुई पंक्तिको एकेक श्लोकलाई तमिल लिपिसँगै देवनागरी लिपिमा लिप्यान्तरण गरिएको छ भने त्यसको नेपाल
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किरण, डाॅ. "रामकुमार वर्मा के काव्य में शिल्प सौंदर्य की संरचनाः भाषिक भंगिमा, अलंकार योजना और काव्यगुणों का समन्वित विश्लेषण". International Journal of Arts, Humanities and Social Studies 6, № 2 (2024): 366–69. https://doi.org/10.33545/26648652.2024.v6.i2c.235.

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Saini, Rahul Kumar. "The interpretation of Hindi cinema (with special reference to fiction)." RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 8, no. 7 (2023): 167–70. http://dx.doi.org/10.31305/rrijm.2023.v08.n07.023.

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Abstract:
Hindi cinema has been concerned with literature and society since its heyday. Literature and cinema have an interdependent relationship. In cinema we can see the society. That is why more or less cinema compiles material from literature. Hindi fiction includes both novels and short stories. Thus, in the research article presented, Hindi novels and films based on Hindi stories have been studied.&#x0D; Abstract in Hindi Language:&#x0D; हिंदी सिनेमा अपने उत्कर्ष काल से ही साहित्य और समाज से सरोकार रखता आया है। साहित्य और सिनेमा का अन्योन्याश्रित संबंध है। सिनेमा में हम समाज को देख सकते हैं। यही क
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श्रुति, कक्कर. "लौकिक संस्कृत साहित्य में सौन्दर्य शास्त्रीय चिन्तन का स्वरूप". International Journal of Research - Granthaalayah 7, № 11(SE) (2019): 268–73. https://doi.org/10.5281/zenodo.3592644.

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Abstract:
रामायण में कला के लिए &#39;&#39;शिल्प&#39;&#39; शब्द का प्रयोग हुआ है तथा उसका अर्थ ललित कलाओं से लिया गया है। इस समय कला को अत्यन्त पवित्र स्थान प्राप्त था वह केवल मनोरंजन के साधन के रूप में प्रयुक्त नहीं होती थी। बालकाण्ड के छठे सर्ग में वाल्मिकी ने अयोध्या के नागरिकों का जो वर्णन किया है उससे पता चल जाता है कि वह कितने सुसंस्कृत, कलाभिज्ञ, सौन्दर्यप्रिय एवं सहृदय नर-नारी थे।उस समय के इस कला प्रवण सौन्दर्य-प्रिय समाज के प्रभाव से राम भी अछूते नहीं रह गये थे क्योंकि एक प्रसंग में महामुनि ने राम को वैहारिकाणां शिल्पानां ज्ञाता कहा है अर्थात्&zwnj; राम को मनोरंजन के प्रयोग में आने वाली संगीत, व
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Ligade, D.N., та N.G. Mali. "मंगळवेढा शहरातील शिल्पवैभवाचा भौगोलिक अभ्यास". Vision Research Journal for Geography and Geology (ISSN 2278-9820) I, № VI (2014): 34–40. https://doi.org/10.5281/zenodo.6362630.

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Abstract:
महाराष्ट्र ही संताची भूमी आहे. अनेक युगापासून आपण असे मानत आलेलो आहे की, ३३ कोटी देवांचा वास्तव भूमंडलात पसलेलं आहे. त्याचबरोबर अनेक साधू-संतांनी आपल्या देवी शक्तीच्या साहाय्याने व समाज परिवर्तनाच्या कार्याने त्यांची स्वतःची किती आजरामर केली. त्यापैकीच मंगळवेढा तालुक्यातील अनेक संतांच्या गाथांची प्रचिती येते. प्रस्तुस्त शोधनिबंधामध्ये मंगळवेढा शहरातील शिल्प वैभवाचा अभ्यास करण्यात आलेला आहे. ती येथील अनेक हेमांडपंथी शिल्पवैभव पाहूनच. महाराष्ट्र राज्यातील अनेक जिल्ह्यांपैकी सोलापूर या जिल्ह्यातील मंगळवेढा हा तालुका असून हि संतांची भूमी म्हणून आजरामर आहे. यामध्ये दामाजी पंत, चोखामेळा, कान्होपात्र
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रेग्मी Regmi, कमला Kamala. "‘मैनबत्तीको शिखा’ कवितामा लयविधान 'Mainbattiko Shikhaa' Kabitaamaa layabidhaan". Siddhajyoti Interdisciplinary Journal 2, № 01 (2021): 125–37. http://dx.doi.org/10.3126/sij.v2i01.39247.

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Abstract:
लेखसार साहित्यका गद्य र पद्य विधामध्ये कविता पद्य विधा भएकाले यसमा लयविधानले विशेष महŒव राख्छ विशेष महŒव राख्छ । गद्य कवितामा पनि लयात्मक सुगठनले भाव र कविताको बाह्य बनोटलाई कसिलो बनाएको हुन्छ । साहित्यका विधा शिक्षणमा गद्य या पद्य दुवै प्रकृतिका कविताभित्रको लयविधानलाई केलाइनु आवश्यक हुन्छ । अध्ययनका लागि छनोट गरिएको कवि भूपी शेरचनको ‘मैनबत्तीको शिखा’ कविताभित्रको अन्तर्लयमा काव्य सुगठनको कसिलो संरचना छ । भावगत बिम्बात्मक पक्ष र संरचनागत बाह्य पक्षमा यो कविताभित्र कविले शब्द तथा पङ्क्तिलाई पुनरावृत्ति गरेका छन् । कवितामा प्रयुक्त पङ्क्ति विन्यास, शब्द वा पदावली वा हरफको आवृत्ति र समानान्तरता,
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Pantha, Narayan Prasad. "उच्च तहमा साहित्यशास्त्र शिक्षणका विधिको उपयोग". BMC Research Journal 4, № 1 (2025): 196–207. https://doi.org/10.3126/bmcrj.v4i1.80144.

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Abstract:
सृजनात्मक कृति कला हो । कृतिको शिल्प, तŒव र प्रयोजनको विवेचना गर्ने ग्रन्थ कलाशास्त्र हो । त्यसैले काव्य वा साहित्य कला हो र त्यसको सम्बन्धमा सूक्ष्म विचार गर्ने समीक्षणात्मक कृतिलाई साहित्यशास्त्र भनिन्छ । प्रस्तुत लेखको उद्देश्य उच्च तहमा साहित्यशास्त्र शिक्षणप्रति शिक्षकका अनुभव पहिचान गरी विश्लेषण गर्नु रहेको छ । गुणात्मक अनुसन्धान ढाँचामा आधारित यस लेखमा रुपन्देही जिल्लाका पाँचओटा क्याम्पसमा नेपाली अध्यापन गर्ने दशजना शिक्षकहरूलाई सहभागीका रूपमा लिइएको छ । यसका निम्ति निर्दिष्ट शिक्षकसँग अन्तरवार्ताद्वारा तथ्य सङकलन गरिएको छ । यस कार्यका लागि द्वितीयक स्रोतका रूपमा पुस्तकालयीय कार्यबाट सै
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Sharma, Akhilesh Kumar. "Shilp aur kathya ki drishti se atyuttam kriti : Vaishali ki nagar vadhu." Aksharwarta 14, no. 10 (2018): 50–52. https://doi.org/10.5281/zenodo.15607448.

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Abstract:
'वैशाली की नगर वधू' आचार्य चतुर्सेन शास्त्री रचित चर्चित उपन्यास है। इस उपन्यास की उपादेयता का आंकलन इसी से हो जाता है कि इसे हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ उपन्यासों में गिना जाता है। यह उपन्यास दो भागों में प्रकाशित है। इस कृति के सन्दर्भ में उपन्यासकार ने स्वयं कहा है, 'मैं अब तक की सारी रचनाओं को रद करता हूँ और 'वैशाली की नगर वधू' को अपनी एकमात्र रचना घोषित करता हूँ। रचनाकर्म कितना श्रमसाध्य होता है यह किसी से छिपा नहीं है। वास्तव में अपनी रचना हर किसी को प्रिय होती है अपने तपस्याकर्म से निष्पन्न अपने ही सृजन को खारिज करना आसान काम नहीं है।' इस उपन्यास का वातावरण बौद्धकालीन है। बौद्धकालीन समाज में
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Kumari, Sunita. "Social consciousness in Kamleshwar's stories." RESEARCH HUB International Multidisciplinary Research Journal 9, no. 7 (2022): 39–43. http://dx.doi.org/10.53573/rhimrj.2022.v09i07.010.

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Abstract:
Nayi Kahani awardee and promoter of the contemporary story movement, Kamleshwar is one of those storytellers of the post-independence era, who along with reinforcing the Premchand tradition, has given various dimensions to the Hindi story, has given it a new stage. In fact, Allahabad has an important place in the development of his literary journey. He writes – “My birthplace Mainpuri could not leave me. I could not leave Allahabad. In moments of despair, Allahabad can give me shelter."&#x0D; Abstract in Hindi Language:&#x0D; नयी कहानी के पुरस्कर्ता और समकालीन कहानी आंदोलन के प्रवर्तक कमलेश्वर
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बरई Barai, त्रिभुवन Tribhiwan. "‘छिमेकी’ कथामा सङ्कथनात्मक निर्मितिको प्रयोग {The use of syntactic building in the Chhimeki story}". Prajna प्रज्ञा 123, № 1 (2022): 81–91. http://dx.doi.org/10.3126/prajna.v123i1.62631.

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Abstract:
प्रस्तुत लेखमा सङ्कथनात्मक निर्मितिको सैद्धान्तिक मान्यताका आधारमा कथाकार गुरुप्रसाद मैनालीद्वारा लिखित ‘छिमेकी’ कथाको विश्लेषण गरिएको छ । उक्त कथामा प्रयुक्त सांसारिक, कार्यात्मक र क्रियाकलापगत निर्मितिको अवस्था केकस्तो छ भन्ने जिज्ञासाकोे परिपूर्ति गर्नका लागि यो अध्ययन गरिएको हो । निर्मितिको सैद्धान्तिक पर्याधारलाई आधार बनाई प्राथमिक एवं द्वितीयक स्तरको सामग्रीको उपयोग गरी गुणात्मक र पाठविश्लेषणात्मक शोधविधि अपनाई यस लेखलाई पूर्णता प्रदान गरिएकोे छ । प्रस्तुत कथामा प्रयुक्त सांसारिक निर्मितिसँग सम्बद्ध पक्षको अध्ययन उपस्थित र अनुपस्थित यथार्थ, कार्यात्मक निर्मितिसित सम्बन्धित पक्षको विश्लेष
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सुन्दरी, त्रिपुर. "वैदिक साहित्य में सन्निहित कृषि प्रक्रिया की उपादेयता". International Journal of Science and Social Science Research 1, № 2 (2023): 41–46. https://doi.org/10.5281/zenodo.13374138.

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Abstract:
वैदिक साहित्य में दीर्घदर्शी ऋषियों द्वारा सुचित्रित एवं सुनियन्त्रित जीवन पद्धति, स्थावर जङ्गमात्मक जगत् के आध्यात्मिक विषयों के अतिरिक्त कृषि, शिल्प तथा जीवन के अनेक वैज्ञानिक विषयों का ज्ञान उपलब्ध होता है। जीवधारियों की मूलभूत आवश्यकता &ldquo;अन्न &ldquo;की महत्ता को घोषित करते हुए श्रुति का कथन है&mdash;<strong>अन्नं</strong><strong> </strong><strong>वै</strong><strong> </strong><strong>प्राणाः</strong><strong> </strong>।अन्न प्राणियों का जीवनाधार है तथा अन्न का मूल कृषि है। यदि अन्न तथाकृषि के तात्विक अभिप्राय की व्याख्या की जाए&nbsp; तो कृषि सृष्टि का मूलाधार तथा अन्न सृष्टि के विकास का
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Barai, Tribhuvan. "साल्गीको बलात्कृत आँसु कथामा बाह्यसीमित दृष्टिविन्दुको प्रयोग Salgiko Balatkrit Aansu Kathama Bahyasimit Drishtibinduko Prayog". Curriculum Development Journal 29, № 43 (2021): 205–22. http://dx.doi.org/10.3126/cdj.v29i43.41090.

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Abstract:
प्रस्तुत लेखमा बाह्यसीमित दृष्टिविन्दुको सैद्धान्तिक मान्यताका आधारमा कथाकार पारिजातद्वारा लिखित ‘साल्गीको बलात्कृत आँसु’ कथाको अध्ययन गरिएको छ । उनको प्रस्तुत कथामा प्रयुक्त बाह्यसीमित दृष्टिविन्दुको वैशिष्ट्य कस्तो छ भन्ने जिज्ञासाकोे परिपूर्ति गर्नका लागि यो अध्ययन गरिएको हो । बाह्यसीमित दृष्टिविन्दुको सैद्धान्तिक पर्याधारलाई आधार बनाई प्राथमिक एवम् द्वितीयक स्तरको सामग्रीको उपयोग गरी निगमनात्मक, गुणात्मक र पाठविश्लेषणात्मक शोधविधि अपनाई यहाँ निष्कर्ष निकालिएको छ । प्रस्तुत कथामा प्रयुक्त दृष्टिविन्दुको पद्धतिसँग सम्बद्ध पक्षको अध्ययन असंलग्न समाख्याता, कथानकीय सन्दर्भ, पात्रविधानगत अवस्था,
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नेत्र एटम. "यस धरतीको पानीमा कवितामा विपरिचितीकरण". Butwal Campus Journal 7, № 1 (2024): 1–11. http://dx.doi.org/10.3126/bcj.v7i1.71697.

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Abstract:
प्रस्तुत लेखमा विजय मल्लको ‘यस धरतीको पानीमा’ कवितालाई काव्यिक पाठका रूपमा लिएर यसमा अभिव्यञ्जित विपरिचितीकरणको खोजी गरिएको छ । यस कवितामा बिसौँ शताब्दीको मध्यमा शक्तिराष्ट्रहरूबिचको हतियार र अन्तरिक्ष कार्यक्रममा होडबाजीका कारण सिर्जित राष्ट्रिय तथा अन्तरराष्ट्रिय स्तरमा मान्छेले अनुभूत गरेको अभिशाप, निराशा, व्याकुलता र त्रासको उद्घाटन गर्न नदीमा पानीको सट्टा रगत बगेको देखाई पाठकलाई पृथक् प्रभाव दिन कलात्मक प्रविधिका रूपमा विपपरिचितीकरणको भूमिका छ भन्ने देखाउनु यस लेखको उद्देश्य हो । यसको सैद्धान्तिक ढाँचाको रचना गर्दा कविताको विधागत विशिष्टता, शिल्प र प्रविधिलाई आधार बनाइएको छ । विपरिचितीकरण
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गैरे Gaire, गोपालप्रसाद Gopal Prasad. "पहाड चिच्चाइरहेछ नाट्यकृतिमा अभिनेयता". Saraswati Sadan सरस्वती सदन 7, № 1-2 (2023): 56–71. http://dx.doi.org/10.3126/ss.v7i1-2.65975.

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Abstract:
प्रस्तुत लेख विजय मल्लको पहाड चिच्याइरहेछ नाट्यकृतिको अभिनेय गुणवैशिष्ट्य निरूपणमा केन्द्रित छ । नाटक मूलतः रङ्गमञ्चमा दर्शकअगाडि अभिनय कलामा रूपायन गरी प्रस्तुत गर्न रचना गरिन्छ । लिखित वा मुद्रित शब्दमा अभिव्यक्त जीवनाभूतिले कलात्मक ढङ्गमा श्रव्यदृश्य परिणति प्राप्त गर्दाका अवस्थामा नाटककारको रचनाकर्मले सार्थकता सिद्ध गर्छ । तसर्थ नाटकलाई रङ्गमञ्चीय प्रस्तुतिप्रदर्शनको विषय मानेर पहाड चिच्याइरहेछ नाट्यकृतिको अभिनेय गुणवैशिष्ट्यको निरूपण गरिएको छ। त्यसैले यस लेखमा अभिनेय गुणवैशिष्ट्यको निरूपणका लागि भरतद्वारा प्रवर्तित र परवर्ती आचार्यद्वारा प्रवर्धित अभिनय नाट्यमान्यतालाई आधार बनाइएको छ । ना
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Singh Tomar, Awadhesh Pratap. "SOCIAL CONCERN FOR MUSIC." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 3, no. 1SE (2015): 1. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v3.i1se.2015.3484.

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Abstract:
The result of a person's creative image and creativity is the rise of fine arts. Theatrical, music and visual materials (paintings and crafts) created for the purpose of publicity and time sharing are also serving other purposes. Public awakening and the spread of social consciousness is an act that has been edited since the middle of music since ancient times and continues even today.Many social objectives and goals were propagated through the singing of Vedic hymns such as praising the rivers and drawing attention to their conservation and relevance, they were considered to be revered as Ann
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दाहाल, घनश्याम. "अलिखित उपन्यासमा प्रयोगशील नवीनता". Dristikon: A Multidisciplinary Journal 11, № 1 (2021): 249–58. http://dx.doi.org/10.3126/dristikon.v11i1.39167.

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Abstract:
नेपाली साहित्यका विशिष्ट स्रष्टा र धरोहर उपन्यासकार ध्रुवचन्द्र गौतमको औपन्यासिक जगत्मा उल्लेखनीय योगदान र विशिष्ट पहिचान रहेको छ । उपन्यास साहित्यका क्षेत्रमा उनले गरेको योगदान अनुकरणीय मानिन्छ । उनका औपन्यासिक संरचनाले नेपाली साहित्यको भण्डारलाई वैभवशाली र सम्पन्नशाली बनाएको छ । नेपाली आधुनिक उपन्यासको विकासको यात्रामा प्रयोगवादी धाराको प्रतिनिधित्व गर्दै औपन्यासिक जगत्लाई उचाइमा पु¥याउन उनले गरेको योगदान अविस्मरणीय मानिन्छ । ‘अलिखित’ वि.सं. २०४० सालमा प्रकाशित भई मदन पुरस्कार प्राप्त गरेको आञ्चलिकतालाई मुख्यरूपमा आफ्नो दस्तावेज बनाएको विशिष्ट प्रयोगधर्मी उपन्यास हो । यसमा तराईको भूभाग वीरगञ
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अधिकारी थापा Adhikari Thapa, सीता Sita. "स्वप्‍नबगैँचामा एक छाया कथाको विपठन". ज्ञानदिप Gyandeep 10, № 2 (2025): 149–59. https://doi.org/10.3126/gyandeep.v10i2.77332.

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Abstract:
प्रस्तुत लेखमा रमेश क्षितिजको ‘स्वप्‍नबगैँचामा एक छाया’ कथाको विपठन गरिएको छ । उत्तरआधुनिक मान्यताअनुसार विपठनलाई साहित्यिक कृति वा पाठको विनिर्माणिक पठन प्रक्रियाका रूपमा लिइएको छ । विनिर्माणको सैद्धान्तिक मान्यताअनुसार हरेक पाठको विपठन गर्न सकिन्छ । कथामा प्रस्तुत भएका विनिर्माणिक सन्दर्भको खोजी गरी तिनको पहिचान एवं विश्‍लेषण गरिएकाले यो अध्ययन गुणात्मक प्रकृतिको रहेको छ । यस लेखका लागि व्याख्यात्मक एवम् विश्‍लेषणात्मक विधिको प्रयोग गरिएको छ । ‘स्वप्‍नबगैँचामा एक छाया’ कथामा साहित्यिक विधाहरूको अन्तर्मिश्रण, पौराणिक मिथकीय सन्दर्भ, दर्शन र इतिहासका विषयको अन्तर्पाठ भएका सन्दर्भहरूको खोजी गरी
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Silwal, Hari Prasad. "पारदर्शी मान्छे कथासङ्ग्रहका कथामा व्यङ्ग्य चेतना {Satirical Consciousness in the Stories of the Story Collection Pardarshi Manchhe}". RR Interdisciplinary Journal 5, № 5 (2024): 138–45. https://doi.org/10.3126/rrij.v5i5.78937.

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Abstract:
‘पारदर्शी मान्छे कथा सङ्ग्रहका कथामा व्यङ्ग्य चेतना’ शीर्षकको प्रस्तुत आलेख कथाकार मनु ब्राजाकीका कथामा पाइने व्यङ्ग्य चेतनामा आधारित छ । व्यङ्ग्य चेतना साहित्यको मूल अभिलक्षण हो । यसलाई पूर्वीय साहित्यशास्त्रमा व्यञ्जना शक्तिको रुपमा चिनाइएको छ । गलत क्रियाकलापको कलात्मक शिल्प संरचनामा व्यङ्ग्य प्रहार गर्नु व्यङ्ग्य चेतना हो । यसमा मनु ब्राजाकीको विवेच्य कृति पारदर्शी मान्छेलाई प्राथमिक सामग्री र यससम्बद्ध अरू सामग्रीलाई द्वितीयक सामग्रीको रूपमा पुस्तकालयकार्य तथा स्रोतबाट सङ्कलन गरी उपयोग गरिएको छ । पारदर्शी मान्छे शीर्षकको कथा कृतिमा के कस्ता राजनीतिक, सामाजिक र सांस्कृतिक व्यङ्ग्य चेतना अभ
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प्रणय, शर्मा. "त्रिवेणी संग्रहालय, उज्जैन, मध्य प्रदेश की शाक्त दीर्घा में प्रदर्शित सप्तमातृकाओं की मूर्तियों का विश्लेषणात्मक अध्ययन". International Journal of Contemporary Research in Multidisciplinary 4, № 1 (2025): 22–26. https://doi.org/10.5281/zenodo.14673854.

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Abstract:
यह शोध पत्र मध्य प्रदेश के उज्जैन स्थित त्रिवेणी संग्रहालय की शाक्त दीर्घा में प्रदर्शित सप्तमातृकाओं की मूर्तियों का विश्लेषणात्मक अध्ययन प्रस्तुत करता है। सप्तमातृकाएं भारतीय धर्म, संस्कृति, और कला में गहरे धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व की प्रतीक हैं।&nbsp; इस अध्ययन में इन मूर्तियों के शिल्प, प्रतिमा विज्ञान, और उनके धार्मिक-सांस्कृतिक प्रतीकात्मकता का गहन विवेचन किया गया है। शोध में इन प्रतिमाओं की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, शैलीगत विशेषताओं, और उनकी निर्माण-प्रक्रिया पर चर्चा की गई है। मूर्तियों के प्रतीकात्मक स्वरूप, उनके आभूषण, मुद्राओं, और अन्य कलात्मक तत्वों का विश्लेषण करते हुए यह अध्ययन उनकी
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झां, आरसी प्रसाद. "महात्मा गांधी के दृृष्टिकोंण में व्यावसायिक शिक्षा". Humanities and Development 19, № 03 (2024): 28–34. https://doi.org/10.61410/had.v19i3.201.

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Abstract:
वर्तमान शोध का मूल उद्देश्य है कि महात्मा गांधी के दृृष्टिकोण में व्यावसायिक शिक्षा को जाना जाए। वर्तमान शोध आलेख द्वितीयक स्रोत पर आधाारित है। वर्तमान अध्ययन के परिणाम इंगित करते हैं कि गांधी जी स्वावलंबन की शिक्षा देना चाहते थे। उनके दृष्टिकोण में ग्रामीणों कीे शिक्षा में कृषि, कताई, बढईगिरी, कुटीर शिल्प, हस्तशिल्प, हथकरघा, चरखा चलाना, आदि समावेश हो। वे ग्रामीण क्षेत्र के विद्यालयों में औद्योगिक शिक्षा के पक्षधर थे। महात्मा गांधी शरीर में उत्पन्न होने वाली गति को सर्वोपरि मानते थे। गांधी जी चाहते थे कि गांव के अनुसार उपयोग में आने वाले गणित, भूगोल, ग्राम इतिहास, आदि पाठ्य क्रम में हो। गांधी
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तिमिल्सिना Timilsina, यमनाथ Yemnath. "व्यास–वाटिका कविता सङ्ग्रहको कथ्य विश्लेषण". AWADHARANA 8 (27 вересня 2024): 1–12. http://dx.doi.org/10.3126/awadharana.v8i01.70077.

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Abstract:
‘व्यास–वाटिका’ कविता सङ्ग्रहको कथ्य शीर्षकको प्रस्तुत आलेख कविताको सैद्धान्तिक अवधारणा र ऐतिहासिक पृष्ठभूमिमा व्यास–वाटिकाको कथ्य (सारतङ्खव) विश्लेषण गर्ने उद्देश्यले अगाडि बढाइएको हो । नारायणी अधिकारीले जीवन जगत्बाट प्राप्त अनुभव र अनुभूतिलाई घोलेर मनले ठानेको सत्यलाई कवितामा व्यक्त गरेकी छन् । प्रकृतिको सजीव चित्रण अनि सिर्जनाकला ब्युझिएर प्राप्त भएको आत्मबोधले कविता कृतिलाई सुदृढ बनाएको पाइन्छ । कथ्य र शैली दुबै पक्षबाट व्यास–वाटिका सफल र प्रभावकारी बनेको छ । आलेख तयार गर्ने सन्दर्भमा मुख्यतः पुस्तकालयीय कार्यको प्रयोग गरी प्राथमिक तथा द्वितीयक स्रोतबाट सामग्री सङ्कलन गरिएको हो । उक्त सामग्
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अधिकारी थापा Adhikari Thapa, सीता Sita. "नेपाली कथाका नवचेतनावादी धारका प्रमुख आन्दोलनहरू". Dristikon: A Multidisciplinary Journal 14, № 1 (2024): 227–37. http://dx.doi.org/10.3126/dristikon.v14i1.66066.

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Abstract:
प्रस्तुत लेख नेपाली कथाको एउटा निश्चित कालखण्डमा देखिएका साहित्यिक आन्दोलनका बारेमा केन्द्रित रहेको छ । नेपाली आख्यान साहित्यको अत्यन्त लोकप्रिय र समृद्ध विधा कथालाई वर्तमान अवस्थासम्म ल्याइपुर्याउन साहित्यिक अभियान तथा आन्दोलनहरूको योगदान अविस्मरणीय रहेको छ । नेपाली साहित्यका क्षेत्रमा विभिन्न कालखण्डमा सचेत ढङ्गले विविध किसिमका भाषिक, सांस्कृतिक र साहित्यिक अभियानहरू चलेका देखिन्छन् । लेखक साहित्यकारले भाषासाहित्यमा नयाँ चिन्तन, समयसापेक्ष प्रयोगसँगै अवधारणाहरू प्रस्तुत गरी घोषित रूपमा नै आन्दोलनको परम्परा विकसितभएको पाइन्छ । विभिन्न समयमा देखिएका यस्ता महत्त्वपूर्ण अभियान तथा आन्दोलनहरूले स
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अवधेश, प. ्रताप सिंह तोमर. "स ंगीत का सामाजिक सरा ेकार". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1. https://doi.org/10.5281/zenodo.886990.

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Abstract:
व्यक्ति की रचनात्मक प ्रतिमा एवं सृजनशीलता का परिणाम ललित कलाआ ंे का उदय ह ै। जनचित्तरंजन एवं समय बांटने क े उद्वेश्य से रची गयी नाट्य, संगीत एवं दृष्य सामग्रियां (चित्र एव ं शिल्प) आज अन्य उद्द ेश्या े ं की पूर्ति भी कर रही ह ै। जन जागरण आ ैर सामाजिक चेतना का प्रसार एक ए ेसा कार्य है जा े संगीत क े मध्य से प ्राचीन काल से संपादित हा ेता आया है आ ैर आज भी जारी ह ै। व ैदिक ऋचाओं क े गायन क े माध्यम से अनेक सामाजिक उद्देश्या े ं एवं लक्ष्या ें का े प ्रसारित किया गया जैसे नदियांे की प ्रश ंसा करके उनक े संरक्षण एवं सुचिता पर ध्यान आकर्षित कराया गया उन्हंे अन्न दात्री मानकर पूजनीय माना गया। अतारि
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