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Journal articles on the topic 'समावेषी'

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धनंजय, शर्मा. "सामाजिक अवसंरचना एवं समावेषी ग्रामीण विकास". RECENT RESEARCHES IN SOCIAL SCIENCES & HUMANITIES (ISSN 2348–3318) 9, № 4 (Oct.-Nov.-Dec. 2022) (2022): 59–64. https://doi.org/10.5281/zenodo.7541193.

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Abstract:
भारत में समावेशी और सतत् विकास लाने के लिए, सामाजिक अवसंरचना जैसे कि षिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा को सरकार द्वारा सर्वोच्च प्राथमिकता प्रदान की जा रही है। सरकार मानव संसाधन पर व्यय भी बढ़ाती रही है, और साथ ही योजनाओं का विलय करके व्यय की कार्य क्षमता को बढ़ाने के उपाय भी करती रही है। रोजगार सृजन के अवसर पैदा करने तथा अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में बड़े पैमाने पर कार्यरत जनता को स्थायी आजीविका प्रदान करने के लिए विधायी सुधार तथा श्रम सुधार के अनेक उपाय लागू किए जा रहे है। षिक्षा कौषल विकास रोजगार, आमदनी में स्त्रियों से जुड़े अनुपातिक अंतरालो को पाटना और समाज में व्याप्त सामाजिक विषमता को कम करना मानव सामर्थ्य को संबर्धित करने को विकासपरक कार्य नीति के मूल लक्ष्य रहें है।
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संतोष, कुमार सिंह. "राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020ः समतामूलक और समावेशी शिक्षा". RECENT RESEARCHES IN SOCIAL SCIENCES & HUMANITIES 11, № 2 (2024): 68–72. https://doi.org/10.5281/zenodo.13337225.

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Abstract:
षिक्षा पूर्ण मानव क्षमता को प्राप्त करने, न्यायसंगत, न्यायपूर्ण और समावेषी की अवधारणा को सषक्त आधार प्रदान करती है। यह अवधारणा तभी पूर्ण हो सकती है जब समतामूलक समाज की स्थापना हो जाती है। समतामूलक और समावेषी षिक्षा न सिर्फ स्वयं में एक आवष्यक लक्ष्य है बल्कि राष्ट्रीय हित में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह षिक्षा नीति ऐसे लक्ष्यों को लेकर आगे बढ़ती है जिससे भारत देष के किसी भी बच्चे के सीखनें और बढ़ने के अवसरों में उसकी जन्म या पृष्ठभूमि से सम्बन्धित परिस्थितियाँ बाधक न बन पाए। राष्ट्रीय षिक्षा नीति 2020 इस बात की पुष्टि करती है कि षिक्षा में पहुँच, सहभागिता और अधिगम परिणामों में सामाजिक श्रेणी के अंतरालों को दूर किया जाए जिससे सभी षिक्षा क्षेत्र के विकास कार्यक्रमों को सुलभता से अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति तक पहुँचाया जा सकें। राष्ट्रीय षिक्षा नीति-2020 का लक्ष्य निष्चय ही भारतीय मूल्यों से ओतप्रोत एक ऐसी षिक्षा प्रणाली विकसित करना है जो सभी को उच्च गुणवत्ता की षिक्षा उपलब्ध कराकर एवं भारत को वैष्विक ज्ञान की महाषक्ति बनाकर भारत को एक जीवन्त व न्यायसंगत ज्ञान समाज में बदलने के लिए प्रत्यक्ष रूप से योगदान करेगी।
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3

कुमार, संदीप, कटियार विनोदनी डॉ., कटियार देवेश डॉ. та निशान्त कुमार शर्मा. ""बिल्डिंग बैक बेटर" के संदर्भ में भारतीय उच्च शिक्षा में प्रौद्योगिकी, ए.आई. और नैतिकता का अवलोकन". International Researcher's Journal Volume-XII, ISSUE-3 (2025): 10–17. https://doi.org/10.5281/zenodo.15209600.

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Abstract:
सार संक्षेपः भारतीय उच्च शिक्षा प्रौद्योगिकी का उपयोग करके अधिक समावेषी, टिकाऊ शिक्षण वातावरण बनाने के लिए बदल रही है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (ए.आई.) इस परिवर्तन में एक प्रमुख खिलाड़ी है, जो बेहतर शिक्षण अनुभव और शैक्षिक अनुसंधान को आगे बढ़ाने में योगदान देता है। हालाँकि, नैतिक विचार महत्वपूर्ण हैं, जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की नैतिकता पर यूनेस्को की सिफारिष और स्वायत्त और बुद्धिमान प्रणालियों की नैतिकता पर आई.ई.ई.ई. ग्लोबल इनिषिएटिव जैसे ढाँचों द्वारा निर्देषित हैं। ये ढाँचे सुनिश्चित करते हैं कि ए.आई. सिस्टम मानव अधिकारों और सम्मान का सम्मान करें, जबकि ए.आई. सिस्टम के विकास और उपयोग में नैतिक प्रथाओं को बढ़ावा दें।
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Deepali, Agrawal, та Mahadev Pandagre Dr. "भारत में पीएमजेडीवाई के शुभारंभ से पहले और बाद में वित्तीय समावेशन की स्थिति का विश्लेषण करना". International Journal of Trends in Emerging Research and Development 2, № 4 (2024): 66–70. https://doi.org/10.5281/zenodo.14271870.

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Abstract:
सरकार ने वित्तीय समावेशन को राष्ट्रीय प्राथमिकता बनाया है क्योंकि यह समावेशी विकास का एक प्रमुख प्रवर्तक है। प्रधानमंत्री जन धन योजना (पीएमजेडीवाई) दुनिया के सबसे बड़े वित्तीय समावेशन कार्यक्रमों में से एक है। वित्तीय बहिष्कार गरीबी का मूल कारण है, जो स्वतंत्रता के बाद से भारत की विकास प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न करता है। वे अपने सामने आने वाली वित्तीय चुनौतियों का सामना करने की अपनी क्षमता खो देते हैं। इसलिए वित्तीय समावेशन गरीबी और असमानता को कम करने का महत्वपूर्ण प्रारंभिक बिंदु है। वित्तीय समावेशन उन लोगों के आर्थिक विकास की एक व्यापक अवधारणा है जो अन्यथा देश के वित्तीय क्षेत्र से बाहर हैं। भारत ने अपनी स्वतंत्रता के बाद वर्षों तक इस मुद्दे का सामना किया है और हमेशा इस लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में काम किया है। वर्तमान अध्ययन का उद्देश्य बेंगलुरु ग्रामीण जिले में ग्रामीण गरीबों पर प्रधान मंत्री जन धन योजना के प्रभाव को कवर करना और पीएमजेडीवाई योजना की मुख्य विशेषताओं और महत्व का अध्ययन करना है।
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Talekar, P. R. "समावेशी शिक्षा". International Journal of Advance and Applied Research 5, № 16 (2024): 159–61. https://doi.org/10.5281/zenodo.12154415.

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Abstract:
<strong>समावेशी शिक्षा एक ऐसी शिक्षा होती है जिसमें सामान्य बालक-बालिकाएं और मानसिक तथा शारीरिक रूप से बाधित बालक एवं बालिकाओं सभी एक साथ बैठकर एक ही विद्यालय में शिक्षा ग्रहण करते हैं। समावेशी शिक्षा सभी नागरिकों समानता के अधिकार की बात करता है और इसीलिए इसके सभी शैक्षिक कार्यक्रम इसी प्रकार के तय किए जाते हैं ऐसे संस्थानों में विशिष्ट बालकों के अनुरूप प्रभावशाली वातावरण तैयार किया जाता है और नियमों में कुछ छूट भी दी जाती है जिससे कि विशिष्ट बालकों को समावेशी शिक्षा के द्वारा सामान्य विद्यालयों में सामान्य बालकों के साथ कुछ अधिक सहायता प्रदान करने की कोशिश की जाती है।</strong>
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Chaudhary, Kanun Lal. "समावेशी लोकतन्त्रमा सूचनाको हक". Prajnik Bimarsha प्राज्ञिक विमर्श 5, № 10 (2023): 108–15. https://doi.org/10.3126/pb.v5i10.71393.

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Abstract:
नेपाली बृहत् शब्दकोअनुसार ‘समावेश’ शब्दको अर्थ सामेल गर्ने वा गराउने काम, सम्यक, प्रवेश वा कुनै विषय वा वस्तुभित्र मिल्ने काम, अन्तर्भूत हुने क्रिया, अन्तर्भाव भनी उल्लेख भएबाट समावेशीको अर्थ सामेल वा संलग्न गराउनु, भन्ने हुन्छ । यसैगरी “लोकतन्त्र“ को अर्थ जनताको शासन हो जसको तात्पर्य निश्चित राजनीतिक समुदायभित्रका सार्वभौमसत्ता सम्पन्न जनताले खुला प्रतिस्पर्धाका माध्यमबाट आफ्नो शासक चुन्न पाउने र आफ्नो हकमा आफैँ निर्णय गर्ने व्यवस्था नै लोकतन्त्र हो ।लोकतन्त्रलाई अङ्गेजीमा डेमोक्रेसी भनिन्छ । डेमोक्रेसी को नेपाली अर्थ प्रजातन्त्र वा लोकतन्त्र हुन्छ । नेपालमा यसको प्रयोग वि. सं. २००७ को राणाविरोधी आन्दोलनबाट शुरु भई वि.सं. २०४६ को राजाविरोधी जनआन्दोलन हुँदै वि.सं. २०६२।०६३ को जनआन्दोलनसम्म प्रजातन्त्र र तत्पश्चात् लोकतन्त्रको रूपमा हुँदै आएको छ । सरल अर्थमा लोकतन्त्रलाई एउटा प्रकृया, सिद्धान्त, संस्कार, मान्यता, राजनीतिक दर्शन, जीवन पद्दति र सरकारको एक स्वरूप मान्न सकिन्छ । लोकतन्त्र निरपेक्ष नभै सापेक्ष हुने हुनाले समाजको बनोटअनुसार यसलाई बुझ्नुपर्ने हुन्छ । विभिन्न विद्वानहरूले लोकतन्त्रको परिभाषा आ–आफ्नै किसिमले गर्ने गरेका छन् भन्ने निष्कर्ष रहेको छ ।
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मोमिन, डाॅ मो वसीम अकरम, та डाॅ रुचि त्रिपाठी. "समावेशी एवं न्यायसंगत गुणवत्तापूर्ण शिक्षा". International Journal of Political Science and Governance 6, № 1 (2024): 122–24. http://dx.doi.org/10.33545/26646021.2024.v6.i1b.315.

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8

Jaiswal, Dr Anita. "Role of teacher in inclusive education." International Journal of Multidisciplinary Research Configuration 1, no. 1 (2021): 20–23. http://dx.doi.org/10.52984/ijomrc1104.

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Abstract:
समावेशी शिक्षा केवल एक दृष्टिकोण ही नही बल्कि एक माध्यम भी है विशेषकर उन लोगों के लिए जिनमे कुछ सीखने की ललक होती है और जो तमाम अवरोधों के बावजूद आगे बढना चाहते है।यह इस बात को दर्शाता है कि सभी युवा चाहे वो सक्षम हो या विकलांग उन्हें सीखने योग्य बनाया जाय । इसके लिए एक समान स्कूल पूर्व व्यवस्थाएस्कूलों और सामुदायिक शिक्षा व्यवस्था तक सबकी पहुॅच सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है प्रशिक्षुओं की जरूरतों को पूरा करने लिए यह प्रक्रिया सिर्फ लचीली शिक्षा प्रणाली में ही सम्भव है । समावेशी शिक्षा एंसी शिक्षा प्रणाली है जिसमें मूल्यों का ज्ञान प्रणालियों और संस्कृतियों में प्रक्रियाओं और संरचनाओं के सभी स्तरों पर समावेशी नीतियों और प्रथाओं के माध्यम से सभी नागरिक अधिकारों को प्राप्त किया जाता है | अध्यापन व्यवसाय ने प्राचीन काल से ही ख्याति एवं सम्मान प्राप्त किया है ।इस व्यवसाय की अपनी अलग शालीनता है प्राचीन काल में गुरू को एक उच्च आसन पर विराजमान किया जाता था तथा उसे बच्चे का आध्यात्मिक पिता कहा जाता था लेकिन वर्तमान युग में अध्यापक उतनी प्रशंसा का पात्र नही हैए जितना कि पहले था विवेकानन्द की विचारधारा में एक सच्चा अध्यापक वही है जो तत्काल ही विद्यार्थियों के स्तर तक आ जाए तथा अपनी आत्मा तक हस्तांतरित कर सके और विद्याथियों के कानों से सुन सकेंए आॅखों से देख सके तथा उनकी सूझ बूझ से ही समझ सकें । बालक के शिक्षण में अध्यापक की महत्वपूर्ण भूमिका है । उसे बालक की आवश्यकताओं तथा समस्याओं को समझाना होता है और उसी के अनुसार उनके अधिगम तथा क्रियाओं को निर्देशित करना पडता है । शिक्षा की मुख्य धारा से सम्बन्धित बालकों की यद्यपि विशिष्ट अधिगम सम्बन्धी आवश्यकताए होती हैए फिर भी वे सामान्य कक्षा शिक्षण के बहुत से कार्यों को करने की आवश्यक निपुणता रखते है । विशिष्ट विद्यार्थियों को भी विषय क्षेत्र में निपुणता एवं शिक्षा से सम्बन्धित विभिन्न बिषयों में कार्य करने की दक्षता के आधार पर शिक्षा की मुख्यधारा से सम्बद्ध किया जा सकता है । अब ऐसे बालकों को क्या पढाना है इसमें परिवर्तन की आवश्यकता नही है । यदि सामान्य शिक्षा का पाठयक्रम उन बालकों के लिए उपयुक्त है फिर भी अनुदेशनात्मक विधियों में परिवर्तन करना आवश्यक होता है । इनका प्रारूप पहले से निश्चित किये गये छात्रों की कार्यप्रणाली , कार्यक्षमता, निपुणता, दक्षता तथा वतावरण के अनुसार किया जाता है। अनुदेशन में पाठयक्रम चयन करना,प्रस्तुतीकरण,अभ्यास करना,दक्षता का विकास करना तथा क्रियान्वयन करना इन पाॅच बिन्दूओं को सुमेलित किया जाता है।
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Perwez, Md Ashraf. "बिहार में समावेशी शिक्षा की स्थिति". International Journal of Science and Social Science Research 1, № 2 (2023): 91–93. https://doi.org/10.5281/zenodo.13375541.

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Abstract:
वर्तमान समय मे समावेशी शिक्षा पर विशेष जोर दिया जा रहा है|समावेशी शिक्षा, शिक्षण की ऐसी प्रणाली है जहाँ समान्य बच्चो के साथ विशिष्ट बालको को एक साथ शिक्षा मुहैया करायी जाती है |विशिष्ट बालको से तात्पर्य है जिसकी बुद्धिलब्धि समान्य औसत से कम हो|विशिष्ट बालक के बच्चे समान्यत: दृष्टि, श्रवण एवम अधिगम अक्षमता तथा मानसिक मंदता और बाधिरधता से ग्रस्त होते है|समावेशी शिक्षा देने का तातपर्य समान्य बालक के साथ विशिष्ट बालक को भी विधालय से जोड़ा जाए तथा सभी बालको को एक साथ शिक्षा प्रदान की जाए ताकि विशिष्ट बालक को भी आत्मनिर्भर बनने का अवसर प्राप्त हो एवंम समाज की मुख्यधरा मे शामिल हो सके|शिक्षण की इस नवीन प्रणाली से समान्य बच्चे तो लाभांवित तो होते ही है तथा इससे ज्यादा विशिष्ट बालक जो अपने आप को समाज के पिछले पायेदान मे होने को समझते है, वे भी इस शिक्षण प्रणाली से अपने आप की महत्वा को समझते है तथा समाज के अभिन्न अंग में अपने आप को पाते है|भारत की आजादी मिलने के बाद जितने भी शिक्षा नीति आई सभी मे शिक्षा की तो बात की गई लेकिन समावेशी शिक्षा की तरफ शिक्षाविद्धो की ध्यान ज्यादा नही जा सकी जिसके परिणामस्वरूप देश में समान्य बालको तो शिक्षित हुए लेकिन विशिष्ट बालको की शिक्षा की मनोदशा में व्यापक परिवर्तन नही आ सका|जब देश में ऐसा हाल रहा तो बिहार समावेशी शिक्षा देने में कैसे आगे हो सकता था|बिहार में तो शाक्षरता दर वैसे ही पूरे भारत की सभी राज्यों में सबसे पिछले पायदान पे है जहाँ समान्य बालक की शिक्षा व्यवस्था उतना अच्छा नही हो सका तो विशिष्ट बालको की शिक्षा व्यवस्था तो दूर की बात है|जिसका परिणाम यह हुआ की बिहार मे विशिष्ट बालको की शिक्षा की स्थिति बहुत दयनीय हो गई|लेकिन पिछले दो- तीन दशक से बिहार की शिक्षा व्यवस्था मे आमूलचूल परिवर्तन आया है।यहाँ के बच्चे एवम समाज के सभी तबके के लोग शिक्षा के प्रति सनवेदंशील हुए है एवम शिक्षा की स्थिति मे व्यापक परिवर्तन आया है, जाहिर सी बात है जब समाज जागरूक होगा तो सामाजिक भेद-भाव कम होंगे एवम समान्य बालको के साथ विशिष्ट बालको की भी शिक्षा मनोदशा मे वृद्धि हुई है तथा सभी बालको को समावेशी शिक्षा में शामिल करते हुए उनके देश-विदेश तथा समाज मे अपनी सकरात्मक भूमिका निभाने की कोशिस की जा रही हैं।
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डॉ.एच.यु.पेटकर. "जागतिकीकरणाचा भारतीय समाजावर झालेला परिणाम - एक अध्ययन". International Journal of Advance and Applied Research S6, № 18 (2025): 411–15. https://doi.org/10.5281/zenodo.15240775.

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Abstract:
<em>जागतिकीकरण ही एकविसाव्या शतकातील सर्वात प्रभावी आणि व्यापक घटना आहे ज्याने भारतीय समाजाच्या प्रत्येक पैलूवर आमुलाग्र बदल घडवून आणले आहे. या संशोधनाचा उद्देश जागतिकीकरणाच्या प्रक्रियेमुळे भारतीय समाजावर झालेले आर्थिक सामाजिक सांस्कृतिक कृषी&nbsp; प्रभावाचे विश्लेषण करणे आहे १९९१ मध्ये भारताने आर्थिक</em><em>&nbsp; उदारीकरणाची धोरणे स्वीकारल्यानंतर जागतिकरनाच्या प्रक्रियेने भारताला जागतिक अर्थव्यवस्थेशी जोडले या प्रक्रियेमुळे भारतात जीडीपी वाढ, तंत्रज्ञानाचा प्रचार आणि शैक्षणिक संधीमध्ये वाढ झाली तथापि आर्थिक असमानता सांस्कृतिक घटकांवर संकट ग्रामीण शहरी विभाजन आणि पर्यावरणीय समस्यांसारखे नकारात्मक परिणामही उघड झालेले आहेत या संशोधनातून निष्कर्ष निघतात की, जागतिकीकरणाचे प्रभाव बहुआयामी आहेत आणि त्यांचे व्यवस्थापन करण्यासाठी समतोल धोरणे आवश्यक आहेत शिफारशी मध्ये सर्व समावेशक विकास सांस्कृतिक संवर्धन आणि तंत्रज्ञानाचा समावेश,वापर यावर भर देण्यात आलेले आहे.</em>
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श्री., संकेत च. पाटील. "शाश्वत उद्योगांसाठी विद्यार्थ्यांना तयार करणे : भविष्याचा पाया". International Journal of Advance and Applied Research S6, № 2 (2025): 398–402. https://doi.org/10.5281/zenodo.15560853.

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Abstract:
बदलत्या काळाबरोबर बदललेल्या सामाजिक, आर्थिक व पर्यावरणीय संकल्पना व त्या अनुशांगिक लोकांचा बदललेला दृष्टीकोन लक्षात घेता मानव होण्यासाठी अध्ययनाची नितांत आवश्यकता असून शिक्षणाचा मुख्य उद्देश हा शाश्वत विकास आहे असे संयुक्त राष्ट्र संघाने स्पष्ट केले. संयुक्त राष्ट्र संघाने १९९८ मध्ये एकविसाव्या शतकातील शिक्षण पद्धती कशी असावी यासाठी एका आयोगाची स्थापना केली ज्याचे अध्यक्ष फ्रान्सचे अर्थमंत्री जक डेलार होते व त्यांच्या सोबतीला इतर १४ सदस्य ज्यामध्ये भारतीय वंशाचे शिक्षणतज्ञ करणसिंह यांचा देखील समावेश होता. या आयोगाने औद्योगिक क्रांतीनंतर झालेल्या पर्यावरणीय, सामाजिक आणि आर्थिक परिणामांचा अभ्यास केला. आयोगाने शिक्षणाचे उद्दिष्ट व्यापक आणि समावेशक करण्यावर भर दिला, ज्यामध्ये व्यक्तीच्या सर्वांगीण विकासावर भर देणे, शाश्वत विकासासाठी कौशल्ये विकसित करणे, आणि जागतिक नागरिकत्वाची भावना रुजवणे यावर भर देण्यात आला.
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आचार्य Acharya, लक्ष्मी Laxmi. "समावेशी दृष्टिले बहुभाषिक कक्षाकोठा व्यवस्थापन र शिक्षणकला {Inclusive multilingual classroom management and pedagogy}". SNPRC Journal 4, № 1 (2023): 128–39. http://dx.doi.org/10.3126/snprcj.v4i1.61709.

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Abstract:
प्रस्तुत लेख समावेशी दृष्टिले बहुभाषिक कक्षाकोठा व्यवस्थापन र शिक्षण कलाको प्रयोगगत अवस्था अध्ययन गर्ने उद्देश्यले तयार पारिएको हो। नेपाल बहुभाषिक, बहुधार्मिक तथा बहुजातीय मुलुक भएकाले यहाँका विद्यालयमा भिन्न भाषिक आदि समुदाय जात जाति, लिङ्ग, वर्ग र शारीरिक क्षमता आदि भएका बालबालिकाको उपस्थितिलाई सम्मानका साथ सम्बोधन गरी शिक्षणलाई अगाडि बढाउने शिक्षण कलाको प्रयोगगत अवस्था अध्ययन गर्न उद्देश्यपूर्ण नमुना छनोटलाई आधार बनाई नमुना छनोट गरिएको छ । गुणात्मक ढाँचा र वर्णनात्मक विधि अवलम्बन गरी क्षेत्रकार्य र पुस्तकालयीय अध्ययनबाट सङ्कलित सामग्रीको विश्लेषण गरी निष्कर्ष निकालिएको छ ।अध्ययनका क्रममा समावेशी शिक्षाका सम्बन्धमा नेपालले तय गरेका विशेष शिक्षासम्बद्धनीति तथा कार्यनीति, समावेशी शिक्षाको अवधारणा, समावेशी शिक्षाका मान्यता राज्यद्वारा अपाङ्गता भएका व्यक्तिका लागि गुणस्तरीय शिक्षामा पहुँच सुनिश्चित गर्न विभिन्न रणनीतिहरू अवलम्बन गरिएकोअवस्थामा बहुभाषिक कक्षा कोठामा शिक्षण गर्ने शिक्षक त्यहाँका कक्षाकोठा, बालबालिकाको लिङ्ग, जात, भाषा, धर्म तथा फरक क्षमता भएका विद्यार्थीहरूलाई शिक्षकले समावेशी शिक्षाका मान्यताअनुसार नै व्यवस्थापन गरेर शिक्षण गरेको देखिए पनि शिक्षण सामग्री, पाठ्यपुस्तक स्वयम्शिक्षकको भाषासँग पनि भाषिक पृष्ठभूमिसँग सम्बन्धित समस्याहरू देखिएकाले त्यस्ता समस्या समाधानार्थ पाठ्यपुस्तक, सम्बन्धी पाठ्यसामग्री निर्माण तथा शिक्षक व्यवस्थापन कार्यमा ध्यान दिनु जरुरी देखिन्छ ।
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चतुर्वेदी, निखिल. "अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में भारत का समावेशी योगदान". RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 05, № 01 (2020): 133–38. https://doi.org/10.5281/zenodo.3784785.

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भारत और अफगानिस्तान आपस में गहरे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक सम्बन्ध साझा करते हैं। 2011 में हुए रणनीतिक साझेदारी समझौते ने देशों के बीच के रिश्ते को और मजबूती दी जो कि अफगानिस्तान का 1979 में हुए सोवियत आक्रमण के बाद पहला ऐसा समझौता है। इस समझौते पर हस्ताक्षर के वक्त सैन्य सहयोग पर भी सहमती बनी जिससे अफगान सुरक्षा बलों को भारतीय सैनिकों की तरफ से ट्रेनिंग दी जा रही है। भारत द्वारा निर्मित अफगानिस्तान का संसद भवन, सलमा डैम, सड़क निर्माण प्रोजेक्ट के अन्तर्गत अफगानिस्तान के निमरोज राज्य में देलाराम से जेरांज को जोड़ने वाली सड़क का निर्माण इत्यादि कार्यों के जरिए अफगानिस्तान के पुनर्निमार्ण कार्यों में मदद कर रहा है।
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SINGH, Dr. Jai Shankar. "प्राथमिक शिक्षा में समावेशन". JIGYASA IX, № 3 (2016): 144–52. https://doi.org/10.5281/zenodo.15392642.

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महत, कमल बहादुर. "नेपाली सेनामा समावेशिता: एक विश्लेषण". Unity Journal 2 (3 серпня 2021): 288–302. http://dx.doi.org/10.3126/unityj.v2i0.38838.

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Abstract:
आधुनिक नेपालको सबैभन्दा पुरानो संस्थाको ऐतिहासिक विरासत बोकेको नेपाली सेनाले यसको स्थापनाकाल देखि नै समावेशिताको नीतिलाई अख्तियार गरेको पाइन्छ । नेपाली सेनामा विभिन्न जातीयसमूहहरु मगर, गुरुङ, तामाङ, किराती/ लिम्बू र मधेशी समुदायहरुका बटालियनहरु नेपाली राज्यले आरक्षण कोप्रावधान सुरु गर्नुभन्दा दशकौं अघिबाट अस्तित्वमा थियो । यसले नेपाली सेनाको चरित्र स्थापना कालदेखि नै समावेशी थियो भन्ने देखाउँछ । २०७२ साल मा जारी नेपालको संविधानले आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक र प्रशासनिक दृष्टिले पछाडि परेका विभिन्न लक्षित वर्गहरुलाई समानुपातिक समावेशी सिद्धान्तका आधारमा राज्यको निकायमा सहभागिता हुन पाउने हकलाई मौलिक हकको रुपमा व्यवस्था गरेको छ । त्यसै अनुरुप नेपाली सेनाले पनि आफ्नो समावेशिताको मौलिक चरित्रलाई कायम राख्दै अझै समावेशी हुने तिर पाइला चालिरहेको पाइन्छ । सैनिक सेवा नियमावली, २०६९ ले खुल्ला प्रतियोगिता द्वारा नेपाली सेनामा पदपूर्ति हुने पदहरुको पैंतालिस प्रतिशत पदसंख्या समावेशीकरणका लागि छुट्याई सो संख्यालाई शत प्रतिशत मानी महिला, आदिवासी/जनजाति, मधेशी, दलित र पिछडिएको क्षेत्रका उम्मेदवारहरु बिचक्रमश: बिस, बत्तिस, अट्ठाइस, पन्ध्र र पॉच प्रतिशत छुट्याएर ती समूह/समुदायका उम्मेदवारहरु बिच मात्र प्रतिस्पर्धा गर्ने प्रावधान लागू गरी नेपाली सेनामा पनि आरक्षण मार्फत् प्रतिनिधित्व बढाउने प्रयास गरिएकोछ । २०६२/०६३ को राजनैतिक परिवर्तनपछि राज्यका अन्य अङ्गहरुमा झै नेपाली सेनामा पनि समावेशी गर्नुपर्ने प्रावधानहरुले गति पायो । समावेशीकरणको नीति नेपाली राज्यका अन्य अङ्गहरु झैं नेपाली सेनाले पनि अङ्गीकार गर्दा त्यसका राम्रा र नराम्रा असरहरु नेपाली सेनाले पनि भोगिरहेको छ । द्धितीयक स्रोतका तथ्याकंहरुको विश्लेषणका आधारमा नेपाली सेनामा समावेशिताको विगतदेखि हालसम्मको अवस्था विश्लेषण गर्दे आगामी दिनमा पनि नेपाली सेनालेआफ्नो समावेशी चरित्र मार्फत् नेपाल राष्ट्र/राज्यको सार्वभौमसत्ता, अखण्डतालाई कसरी जोगाई राख्न सक्छ भन्ने विश्लेषण यो लेखमा समेटिएको छ ।
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कछावा, प्रीति. "नई शिक्षा नीति 2020 : समता मूलक एवं समावेशी शिक्षा". SDES-International Journal of Interdisciplinary Research 1, № 3 (2020): 85–88. http://dx.doi.org/10.47997/sdes-ijir/1.3.2020.85-88.

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चौधरी, विजय शंकर, та देवेंद्र मौर्य. "डॉ. अम्बेडकर की समावेशी समाज की संकल्पना: एक विश्लेषण". Lokprashasan 16, № 1 (2024): 102–14. http://dx.doi.org/10.32381/lp.2024.16.01.8.

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Abstract:
भारतीय संविधान के शिल्पकार डॉ. बी. आर. अम्बेडकर का राजनीतिक और आर्थिक प्रणाली को लेकर एक समावेशी दृष्टिकोण था, जो समाज के प्रत्येक वर्ग को इसके अंतर्गत शामिल करने एवं सशक्त करने पर जोर देता है। उनका मानना था कि राजनीतिक और आर्थिक लोकतंत्र आदर्श समाज के दो अनिवार्य घटक हैं, और दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। उनका दृढ़ मत था कि आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता अपने उद्देश्यों को प्राप्त नहीं कर पायेगी। डॉ. अम्बेडकर एक ऐसी राजनीतिक प्रणाली में विश्वास करते थे जहाँ प्रत्येक नागरिक के पास अपने देश में निर्णय लेने की प्रक्रिया में भाग लेने और योगदान करने के समान अवसर उपलब्ध हों। उन्होंने सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के महत्व पर जोर दिया, जो यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक नागरिक को अपनी जाति, नस्ल, लिंग या आर्थिक स्थिति की परवाह किए बिना स्वतंत्र मतदान करने का अधिकार हो। समाज के वंचित तबको को निर्णय लेने की प्रक्रिया में प्रतिनिधित्व देने के लिए आरक्षण की व्यवस्था की वकालत की। डॉ. अम्बेडकर एक ऐसी आर्थिक प्रणाली के समर्थक थे जो संपत्तियों और संसाधनों के समान वितरण की व्यवस्था समाज के सभी वर्गों के लिए सुनिश्चित करती है। उनका मानना था कि संसाधनों और उत्पादन के साधनों तक पहुँच सामाजिक या आर्थिक स्थिति के बजाय योग्यता पर आधारित होनी चाहिए। उन्होंने पूँजीपतियों के विकल्प के रूप में सहकारी समितियों के गठन की भी वकालत की, जिससे कामगारों को उत्पादन उपकरण और मशीनरी प्राप्त करने में सुगमता हो सके और साथ ही निर्णय लेने की प्रक्रिया में वे अपनी बात रख सके । अगर हम वर्तमान में देखे तो डॉ बी. आर. अम्बेडकर जिस राजनीतिक लोकतन्त्र की बात कर रहे थे उसे हमारे सविंधान में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार और चुनाव लड़ने की अनुमति प्रदान कर उसको प्राप्त करने की कोशिश की गई है और निर्णय लेने की प्रक्रिया में समाज के वंचित तबकों को प्रतिनिधित्व देने के लिए लोकसभा, विधानसभा एवं स्थानीय स्वशासन के स्तर पर आरक्षण की व्यवस्था प्रदान की र्गइ है । अगर आर्थिक समानता की देखें तो जिस तरह से देश में सम्पतियों का असमान वितरण हो रहा है और चुनावी प्रक्रिया में पूंजी का दखल बढ़ रहा है, वह कहीं न कहीं अम्बेडकर के राजनीतिक और आर्थिक समता पर आधारित लोकतांत्रिक एवं समतामूलक समाज की स्थापना के लिए एक चुनौती उत्पन्न कर रही है । प्रस्तुत आलेख डॉ. अम्बेडकर के राजनैतिक और आर्थिक समावेशी समाज के परिप्रेक्ष्य और संदर्भो पर आधारित चिंतन को व्याख्यायित करता है ।
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मीणा, शिव कुमार. "राजस्थान में ग्रामीण पर्यटन के माध्यम से समावेशी सामाज का दर्शन". Lokprashasan 16, № 1 (2024): 115–26. http://dx.doi.org/10.32381/lp.2024.16.01.9.

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Abstract:
राजस्थान के ग्रामीण परिवेश में ग्रामीण पर्यटन अपेक्षाकृत एक नया पक्ष है। राजस्थान में ग्रामीण पर्यटन समावेशी समाज का महत्वपूर्ण औजार बना है। ‘‘राज्य में विभिन्न जातीय संघटन व सांस्कृतिक स्वरूपों के समूह है। यहाँ भील, मीणा, डामोर, गरासिया जनजातियाँ विद्यमान है।’’ (भार्गव, 2011, 101) यह जनजातियाँ मुख्य रूप से बांसवाड़ा, डूंगरपुर, उदयपुर, प्रतापगढ़, सिरोही व बरन जिलों में स्थापित है। इन जनजातियों का विकास करना अति महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह सामाजिक व दैनिक जीवनचर्या से बिल्कुल कटे हुए है। ग्रामीण पर्यटन के माध्यम से इनके सामाजिक व आर्थिक स्तर को उठाया जा सकता है। यह जनजातीय लोग ग्रामीण पर्यटन के माध्यम से विभिन्न क्षेत्रों के लोगों से संपर्क में आएंगे, जिससे उनके सोचने समझने के दायरे में विस्तार होगा। आज विश्व के लोग इन जनजातियों के भोजन, सांस्कृतिक, वेशभूषा, हस्तशिल्प, त्यौहार आदि के प्रति आकर्षित हो रहे है। इससे ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा मिलता है, वहीं दूसरी तरफ ग्रामीण जनजातीय लोगों का विकास होता है। इन जनजातियों के बीच ग्रामीण पर्यटन को लेकर रूचि बढे़ और वह इसमें भाग लें। इसके लिए सरकार व स्वयं सेवी संगठनों को बड़ी भूमिका निभानी चाहिए, ताकि जनजातीय लोगों को अपने जीवन स्तर को ऊपर उठाने में सहायता मिलें। इस शोध में ग्रामीण पर्यटन द्वारा राजस्थान के ग्रामीण समावेश पर चर्चा की गई है। यह अध्ययन पुस्तकों, जर्नल, रिपोर्ट व जनगणना 2011 आदि से प्राप्त आंकड़ों पर आधारित है।
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लखेरा, पंकज. "समावेशी शिक्षा और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020ः अवसर और चुनौतियाँ". Lokprashasan 15, № 4 (2024): 66–83. http://dx.doi.org/10.32381/lp.2023.15.04.6.

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SINGH, Dr. Jai Shankar. "मुक्त एवं दूरस्थ अधिगम (ODL): समावेशी शिक्षा का सशक्त उपकरण". SHODH PRERAK VI, № 3 (2016): 133–38. https://doi.org/10.5281/zenodo.15397009.

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सिद्दीकी, एस. बी. "भारत में सामाजिक समावेशन की चुनौतियाँ". International Journal of Classified Research Techniques & Advances 4, № 4 (2024): 89–95. https://doi.org/10.5281/zenodo.15242956.

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Abstract:
भारत में सामाजिक समावेशन को लागू करना कई चुनौतियों से भरा हुआ है। इन चुनौतियों में जाति व्यवस्था, लैंगिक असमानता, आर्थिक विषमता, शैक्षिक अवसरों की कमी, क्षेत्रीय असंतुलन, और सामाजिक रूढ़ियों जैसे मुद्दे शामिल हैं। यह शोध पत्र इन चुनौतियों का गहन विश्लेषण करता है और सामाजिक समावेशन को बढ़ावा देने के लिए संभावित समाधानों पर चर्चा करता है।
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आदित्य, राजकुमार राऊत. "महाराष्ट्रातील समावेशक आरोग्यासाठी होणारा सरकारी वित्तपुरवठा". Young Researcher S14, № 1A (2025): 269–73. https://doi.org/10.5281/zenodo.14880982.

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Abstract:
<em>आधुनिकीकरणात महाराष्ट्र भारतातील इतर राज्यांपेक्षा पुढे आहे</em><em>, </em><em>परंतु अनेक लोकांना दिवसातून एक वेळचे जेवणही मिळत नाही</em><em>. </em><em>शिवाय</em><em>, </em><em>महाराष्ट्राचा ग्रामीण भाग शहरी भागापेक्षा वाईट आहे</em><em>. </em><em>अलिकडच्या काळात</em><em>, </em><em>सर्व राज्य सरकारे सार्वजनिक आरोग्यसेवेबाबत खूपच संवेदनशील आहेत</em><em>. </em><em>म्हणून</em><em>, </em><em>केंद्र सरकारने राज्य सरकारांसह त्यांच्या महसुलाचा मोठा भाग आरोग्यावर खर्च करण्याचा निर्णय घेतला आहे</em><em>. </em><em>सध्या</em><em>, </em><em>देशात केंद्र आणि राज्य सरकारच्या अनेक आरोग्याशी संबंधित योजना सुरू आहेत</em><em>, </em><em>ज्यात प्रामुख्याने पल्स पोलिओ कार्यक्रम</em><em>, </em><em>जननी सुरक्षा योजना</em><em>, </em><em>राष्ट्रीय आरोग्य अभियान</em><em>, </em><em>राजीव गांधी जीवनदायी आरोग्य योजना</em><em>, </em><em>पंतप्रधान आरोग्य सेवा योजना</em><em>, </em><em>राष्ट्रीय आरोग्य निधी</em><em>, </em><em>आरोग्यमंत्र्यांचा कर्करोग रुग्ण निधी</em><em>-</em><em>CSR </em><em>इत्यादींचा समावेश आहे</em><em>. </em><em>तरीही</em><em>, </em><em>अनुसूचित जाती आणि अनुसूचित जमातीच्या कुटुंबांना आजारांच्या संसर्गापूर्वी आणि नंतर त्यांच्या आरोग्यसेवेवर पुरेसा खर्च करण्याबाबत आर्थिक समस्यांना तोंड द्यावे लागत आहे</em><em>. </em><em>महाराष्ट्रातील आरोग्य पायाभूत सुविधांबाबत आणखी वाईट परिस्थिती आढळून आली</em><em>. </em><em>तसेच काही संशोधकाने असे निरीक्षण नोंदवले आहे की ग्रामीण भागातील बहुतेक सर्व दवाखाने आणि रुग्णाल</em><em>यांमध्ये रुग्णांसाठी पुरेसे बेड आणि आधुनिक उपकरणे सुद्धा नाहीत</em><em>.</em>
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Kumar, Rajeev Ranjan. "वित्तीय समावेशन एवं जीवन की गुणवत्ता". International sociologist 7, Jan-june 2016 (2016): 131–35. https://doi.org/10.5281/zenodo.15551162.

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यादव, सरिता. "भारत में समावेशी एवं सुलभ न्याय में ग्राम न्यायालयों की भूमिका". International Journal of Political Science and Governance 5, № 2 (2023): 57–60. https://doi.org/10.33545/26646021.2023.v5.i2a.411.

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शर्मा, अभिषेक, та अन्नू शर्मा. "समावेशी वर्ग में शिक्षा समता और समानता भीमराव रामजी अंबेडकर का दृष्टिकोण". Shodh Sari-An International Multidisciplinary Journal 02, № 03 (2023): 350–57. http://dx.doi.org/10.59231/sari7611.

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Abstract:
डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर का समावेशी वर्ग में शिक्षा, समता और समानता का दर्शन भारत के सामाजिक आर्थिक पुनर्निर्माण के लिए महत्वपूर्ण है। आजादी के बाद के दशकों में हम विभिन्न विधानों और सरकारी संस्थानों के माध्यम से पहुंच और समानता के मुद्दों में व्यस्त रहे हैं इन में अम्बेडकर ने शिक्षा, शैक्षिक संस्थान, जाति, धर्म, स्त्री आदि मामलों पर प्रकाश डाला । अंबेडकर का मानना हैं की समता और समानता यह हर इंसान की जरूरत ही नहीं यह सभी का अधिकार है । जो खुलकर और बेबाकी से बाबा साहब (बी. आर. अम्बेडकर ने समाज को बताया। बी. आर. अम्बेडकर ने समाज के उन सभी वर्गों को समावेशी कहा, जिनका समाज के अन्य वर्गों द्वारा कहीं न कहीं शोषण किया गया है या फिर किसी व्यक्ति के माध्यम से अभी भी शोषण किया जा रहा हो । अम्बेडकर ने भारत में बिना अधिकारों के रहने वाले प्रत्येक भारतीय लोगों के अधिकारों के बारे में बात की क्योंकि आजादी के बाद ऐसे कई लोग हैं जो उस समाज में रहते तो है पर अधिकार के नाम पर उनका शोषण ही हो रहा है । अम्बेडकर ने जन्म–आधारित उत्पीड़न को समाप्त करने के लिए अथक संघर्ष किया, जिसमें कुछ उच्च वर्गों के लाभ और विकास के लिए शिक्षा, रोजगार, आवास और समान अवसर जैसी बुनियादी सुविधाएं प्रतिबंधित हैं । संविधान सभी पहलुओं में समता समानता को दर्शाता है और इसकी संरचना में एक महत्वपूर्ण घटक साबित होता है । संविधान बनाते समय बाबासाहेब ने समान रूप से समावेशी वर्ग को शामिल किया और उन्होंने प्रस्तावित किया कि समावेशी समाज भी मनुष्य हैं इसलिए कोई पक्षपात नहीं होना चाहिए और हमें जाति सूत्र के बिना एक राष्ट्र का विचार प्रदान किया ।
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कोइराला, धनपति. "एउटा विचारको यात्रापथ कथाको सङ्कथन विश्लेषण". Madhyabindu Journal 7, № 1 (2022): 11–26. http://dx.doi.org/10.3126/madhyabindu.v7i1.54237.

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Abstract:
सङ्कथन भनेको वाक्यको निरन्तर प्रवाह हो । सम्बद्धक र सम्बद्धन यसका प्रकारहरू हुन् । सम्बद्धकका व्याकरणिक र कोशीय दुई प्रकार हुन्छन् । सम्बद्धनका विभिन्न युक्तिहरू छन् । यिनका आधारमा कथ्य तथा लेख्य पाठको प्रयोगपरक रूपमा विश्लेषण गर्ने प्रायोगिक भाषाविज्ञानको एउटा महत्त्वपूर्ण शाखालाई सङ्कथन विश्लेषण भनिन्छ । यसले साहित्य र साहित्येतर सङ्कथन पाठको सूक्ष्म विश्लेषण गर्दछ । यौटा विचारको यात्रापथ आयामेली कथाकार इन्द्रबहादुर राईद्वारा लिखित कथा हो । यसलाई त्रिभुवन विश्वविद्यालयको स्नातक तह द्वितीय वर्षको पाठ्यवस्तुका रूपमा समावेश गरिएको छ । सम्बद्धकका आधारमा उक्त कथाको विश्लेषण गर्नु यस लेखको मुख्य उद्देश्य रहेको छ । यसमा गुणात्मक अनुसन्धान विधिको उपयोग गरिएको छ । यसमा अग्रसन्दर्भक रहेको छ । प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय तीववटै पुरुषवाचक सार्वनामिक पदको प्रयोग गरिएको छ । यसमा स्थानिक सम्बद्धक तेईसवटा, कालिक सम्बद्धक अठारवटा रहेका छन् । प्रतिस्थापन सम्बद्धकअन्तर्गत दशवटा, पुनरावृत्ति सम्बद्धकअन्तर्गत पाँचवटा शब्दहरू, संयोजन सम्बद्धकअन्तर्गत दशवटा शब्दहरू लोपसम्बद्धकअन्तर्गत तेह्र स्थानमा पद तथा पदावली र निपात सम्बद्धकअन्तर्गत ‘नै’ पद उपयोग भएका छन् । कोशीय सम्बद्धकअन्तर्गत पर्यायवाचीका रूपमा पाँच शब्दयुगल उपयोग भएका छन् । विपरीतार्थी सम्बद्धकअन्तर्गत एघार शब्दयुगल, अनेकार्थीसम्बद्धक अन्तर्गत तेह्रवटा शब्दहरू, समावेशी सम्बद्धकअन्तर्गत क्रमशः कालवाचक बाह्रवटा, स्थानवाचक एघारवटा, खाद्यसँग सम्बन्धित पाँच, आदर्श र दानसँग सम्बन्धित तीन तीनवटा शब्दहरू प्रयोग भएका छन् । श्रुतिसमभिन्नार्थी सम्बद्धकअन्तर्गत दुई शब्दयुगल र चारवटा एकल शब्दहरू प्रयोग भएका छन् । बाबु र आमा शब्दको धेरैपटक पुनरावृत्ति गरिए पनि तिनका स्थानमा कुनै शब्द प्रतिस्थापित गरिएको छैन । फेरीवाल शब्दको केही स्थानमा ऊ, उनीहरू, तिनीहरूद्वारा प्रतिस्थापन गरिए पनि फरक फरक अनुच्छेदमा र एउटै अनुच्छेदभित्र पनि उही शब्दको पुनरावृत्ति गरिएको छ । पुनरावृत्ति भएका ती पदहरूले अर्थबोध तथा संरचनागत समन्वितिमा अवरोध गर्नुभन्दा प्रभावकारिता थपेको छ । सम्बद्धक प्रयोगका दृष्टिले प्रस्तुत सङ्कथनपाठ सन्तुलित एवम् संसक्तियुक्त रहेको छ ।
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., सरिता. "समावेशन, सशक्तीकरण एवं खेल: अन्तर्सम्बन्धों का अध्ययन". International Journal of Advanced Academic Studies 5, № 11 (2023): 11–14. http://dx.doi.org/10.33545/27068919.2023.v5.i11a.1070.

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ढकाल Dhakal, सुरेश Suresh. "सांस्कृतिक राजनीति र समावेशी लोकतन्त्रः परिवर्तित सन्दर्भमा पश्चिम नेपालका थारूहरूको बरघर अभ्यास". Samaj Anweshan समाज अन्वेषण 2, № 1 (2024): 179–92. http://dx.doi.org/10.3126/anweshan.v2i1.68603.

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Abstract:
नेपालमा पछिल्ला दशकहरूमा भएका राजनीतिक परिवर्तनले लोकतान्त्रिक गणतान्त्रिक संविधान र राज्यको पुनःसंरचना जस्ता दूरगामी प्रभाव पार्ने परिणामहरू मात्र दिएको छैन, तिनको प्रभाव नागरिकको दैनिक जीवन र सामाजिक गतिशीलतामा समेत पारेको छ । प्राथमिक सूचनामा आधारित यो लेख तिनै राजनैतिक उपलब्धिहरूको सामाजिक प्रभावहरूलाई व्यावहारिक तहमा बुझ्ने प्रयास हो । सांस्कृतिक जीवनको राजनीतिमा प्रभावका सम्बन्धमा पर्याप्त अध्ययन नभएको सन्दर्भमा यो लेखले सांस्कृतिक–राजनीतिको अवधारणाबाट समावेशी स्थानीय सरकारका लागि समकालीन राजनीति बुझ्ने प्रयास गरेको छ । राज्यको पुुनःसरचना, सङ्घीयता र स्थनीय सरकार पछिल्ला दशकका प्रमुख राजनीतिक उपलब्धि हुन्, जसले नेपाली समाजलाई अद्वितीय ढङ्गबाट प्रभावित गरेको सांस्कृतिक–राजनीतिछ । राज्यका सबै तह र प्रक्रियामा समावेशिताको सिद्धान्त संविधानप्रदत्त प्रावधान हो । यसै परिप्रेक्ष्यमा पश्चिम नेपालका थारूहरूको पहिचान र प्रथाजनित संस्था बरघर (मटावाँ, ख्याल, जुटैला/जुट्याल्हा) मार्फत जातीय पहिचानसहितको सांस्कृतिक–राजनीति र स्थानीय सरकारको सामाजिक समावेशिताको प्रयास यस लेखको मुख्य विषयवस्तुु हुन् ।
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., राकेश, та अजय शुक्ला. "समावेशी शिक्षा के लक्ष्य को प्राप्त करने में हिंदी भाषा का योगदान". International Journal of Humanities and Arts 7, № 1 (2025): 142–44. https://doi.org/10.33545/26647699.2025.v7.i1b.133.

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डॉ., महेंद्र म. श्यामकुल. "राष्ट्रीय शैक्षणिक धोरण - 2020 आणि शिक्षक शिक्षणातील आयसीटीची भूमिका". International Journal of Advance and Applied Research S6, № 18 (2025): 138–43. https://doi.org/10.5281/zenodo.15245235.

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Abstract:
राष्ट्रीय शैक्षणिक धोरण (<em>NEP) - 2020</em> मध्ये तंत्रज्ञानाचा प्रभावी वापर आणि समावेश हा महत्त्वाचा घटक आहे<em>, </em>जो भारताला डिजिटल सशक्त समाज आणि जागतिक ज्ञान अर्थव्यवस्थेकडे नेण्याचा मार्ग दाखवतो. या धोरणामुळे माहिती आणि संप्रेषण तंत्रज्ञान (<em>ICT) </em>शिक्षण प्रक्रियेत महत्त्वाची भूमिका बजावते<em>, </em>विशेषतः ग्रामीण आणि दुर्गम भागातील शिक्षण सुलभ करण्यासाठी. शिक्षण आणि तंत्रज्ञान यांचा परस्परसंबंध असून<em>, </em>आधुनिक तंत्रज्ञानाचा वापर शिक्षणाची गुणवत्ता सुधारण्यासाठी आवश्यक आहे. कृत्रिम बुद्धिमत्ता (<em>AI), </em>मशीन लर्निंग<em>, </em>ब्लॉकचेन<em>, </em>स्मार्ट बोर्ड आणि संगणकीय चाचण्या यांसारख्या नव्या तंत्रज्ञानामुळे शिक्षण पद्धती आणि विद्यार्थ्यांच्या शिकण्याच्या प्रक्रियेत आमूलाग्र बदल घडणार आहेत. राष्ट्रीय शैक्षणिक तंत्रज्ञान मंच (<em>NETF) </em>स्थापन करून शिक्षण<em>, </em>मूल्यांकन<em>, </em>नियोजन आणि प्रशासनात तंत्रज्ञानाचा प्रभावी वापर करण्यावर भर दिला जात आहे. तसेच<em>, </em>ऑनलाइन शिक्षण पद्धती<em>, </em>डिजिटल साधनांचा समावेश<em>, </em>शिक्षकांचे प्रशिक्षण आणि मूल्यांकन प्रणाली सुधारण्यासाठी विविध धोरणे राबवली जातील.या धोरणाद्वारे<em>, </em>तंत्रज्ञानाधारित शिक्षणाच्या संधी आणि आव्हानांचा वेध घेतला जाईल<em>, </em>ज्यामुळे शिक्षण अधिक समावेशक<em>, </em>सुलभ आणि गुणवत्तापूर्ण होईल. एकूणच<em>, ICT </em>चा योग्य वापर करून शिक्षण प्रक्रियेत आधुनिक बदल घडवणे आणि शिक्षक-विद्यार्थ्यांसाठी तंत्रज्ञानस्नेही शिक्षण प्रणाली विकसित करणे हे <em>NEP - 2020 </em>चे मुख्य उद्दिष्ट आहे. राष्ट्रीय शैक्षणिक धोरण (<em>NEP) - 2020</em> चा दृष्टीकोन <strong>"तंत्रज्ञानाचा वापर आणि समावेश" </strong>या संकल्पनेवर आधारित आहे<em>, </em>जो भारताला डिजिटल सशक्त समाज आणि जागतिक ज्ञान अर्थव्यवस्थेच्या दिशेने पुढे नेण्याचा मार्ग दाखवतो. तसेच<em>, </em>माहिती आणि संप्रेषण तंत्रज्ञान (<em>ICT) </em>शिक्षणाच्या प्रक्रियेत समाविष्ट केल्यामुळे<em>, </em>देशातील दुर्गम भागातील लोकांसाठी शिक्षण अधिक सुलभ होते.&nbsp; मानव संसाधन विकास मंत्रालयाने (<em>MHRD) </em>सादर केलेले राष्ट्रीय शैक्षणिक धोरण<em> - 2020 </em>हे अनेक दृष्टींनी क्रांतिकारी आहे. हे धोरण लहान मुलांच्या शिक्षणाची गरज<em>, </em>सर्वसमावेशक शिक्षण आणि अभ्यासक्रम पुनर्रचनेसारख्या विविध मुद्द्यांवर लक्ष केंद्रित करते. मात्र<em>, </em>या संपूर्ण धोरणात शिक्षण आणि तंत्रज्ञान यांचा परस्परसंबंध हा एक महत्त्वाचा घटक आहे.&nbsp; गेल्या दशकात भारताने माहिती-केंद्रित समाजाच्या दिशेने मोठी वाटचाल केली आहे<em>, </em>त्यामुळे शिक्षण क्षेत्रात तंत्रज्ञानाच्या वापराची गरज अधिक वाढली आहे. याच पार्श्वभूमीवर<em>, </em>हे धोरण अभ्यासक्रम आणि अध्यापन<em>, </em>भाषिक अडथळे दूर करणे<em>, </em>शिक्षण व्यवस्थापन आणि नियोजन<em>, </em>तसेच शिक्षण अधिक व्यापक आणि सुलभ करणे यासाठी तंत्रज्ञानाचा प्रभावी वापर करण्यावर भर देते.&nbsp; आजच्या आधुनिक युगात<em>, </em>जेव्हा ऑनलाइन आणि डिजिटल शिक्षणाच्या पद्धती शिक्षण क्षेत्रात महत्त्वपूर्ण ठरत आहेत<em>, </em>विद्यार्थ्यांना आणि शिक्षकांना नवीन शिक्षण तंत्रज्ञान स्वीकारण्याची गरज निर्माण झाली आहे. अशा वेळी<em>, NEP - 2020</em> चे आगमन अत्यंत महत्त्वाचे ठरते<em>, </em>कारण ते भविष्यातील शिक्षणव्यवस्थेचा मार्ग स्पष्ट करते आणि स्वयंपूर्ण भारत घडवण्याच्या दिशेने एक प्रभावी साधन ठरू शकते.&nbsp; &nbsp;
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Kumari, Bandana. "यज्ञ प्रयोजन में सुसंस्कारिता का समावेश". Interdisciplinary Journal of Yagya Research 5, № 2 (2022): 19–21. http://dx.doi.org/10.36018/ijyr.v5i2.89.

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Abstract:
संस्कारों की संस्कृति ही भारतीय संस्कृति का मूल है। जन्म के समय मनुष्य कि स्थिती हमेशा नर पशु जैसी ही मानी गयी है लेकिन जब वो अपने अंदर संस्कारों का समावेश करता है तथा उसकी रीति-नीति को अपनाता है तब जाकर वह मनुष्य बन पाता है और इसी पद्धति को संस्कार पद्धति का नाम दिया जाता है। किसी भी वस्तु का महत्व उतना ही है जितना उसकी सुंदरता उभारने वाली कलाकारिता और कुशलता की है। यज्ञ जैसे महान कार्य को बडे आदर पूर्वक, सावधानी, तथा पवित्रता के साथ किया जाना चाहिये। यज्ञ के प्रयोजन में भूमि शोधन संस्कार, साधनो का पवित्रिकरण, यजमान का शुद्धिकरण तथा यज्ञाग्नि संस्कार आदि सभी संस्कारो को बडे भाव के साथ करना चाहिये तब जाकर महत्वपुर्ण लाभों की प्राप्ति कराता है। गीता में आधे अधुरे और लापरवाही से किये गये यज्ञ को ‘तामस यज्ञ’ कहा गया है। इस शोध पत्र के माध्यम से यज्ञ प्रयोजन में सूक्ष्म संस्कारो की प्रविधियों पर प्रकाश डालने का प्रयास किया जा रहा है।
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शुक्ल, गणेश, та आचार्य आशीष श्रीवास्तव. "सामाजिक समावेशन : बुनियादी विद्यालय के विशेष संदर्भ में". SCHOLARLY RESEARCH JOURNAL FOR HUMANITY SCIENCE AND ENGLISH LANGUAGE 10, № 53 (2022): 13356–67. http://dx.doi.org/10.21922/srjhsel.v10i53.11635.

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Abstract:
शिक्षा किसी भी समाज में चलने वाली सामाजिक प्रक्रिया है| जिसमे मनुष्य की आंतरिक शक्तियों का विकास एवं व्यवहार परिस्कृत होता है | गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सामाजिक एकता और सामाजिक समानता के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण है| शिक्षा एक स्थायी समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करती है| शिक्षा सहिष्णुता को प्रोत्साहित करने के साथ- साथ विद्यार्थियों को आत्मनिर्भर बनाने के दिशा में महत्वपूर्ण कार्य करती है| गाँधी की बुनियादी शिक्षा विद्यार्थियों को इस प्रकार से तैयार करती है कि अपने जीवन में आने वाले चुनौतियों का सामना कर सके | जिसमे मनुष्य में मानवता, जड़ो से जुडाव, अतीत से आधुनिकता की तरफ ले जाकर भारतीय छात्रों को वैश्विक पटल पर स्थापित करना| वस्तुत विद्यालय वह स्थान होता है जहा विभिन्न धर्म,वर्ण, रंग, रूप अथवा यह कहा जा सकता है कि कई संस्कृतियों का मिलाप होता है | अत एक शिक्षक को भी विभिन्न संस्कृतियों का दर्पण होना चाहिए तभी वह आदर्श रूप में बहु सांस्कृतिक कक्षा कक्ष को तैयार करने में सफल होगा| इस शोध पत्र में बुनियादी विद्यालय विभिन्न सामाजिक संस्कृतियों एवं मूल्यों को एक विद्यालय के रूप में उसके संरक्षण एव सामाजिक समावेशन में कैसे वर्तमान समय में प्रासंगिक हो सकता है, इस तथ्य पर प्रकाश डाला गया है|
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., सरिता. "बेटियों के सामाजिक समावेशन में ग्राम पंचायत की भूमिका". International Journal of Humanities and Education Research 5, № 2 (2023): 45–48. http://dx.doi.org/10.33545/26649799.2023.v5.i2a.72.

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आराधना, धुर्वे, та अनिल दुबे डॉ. "मध्य प्रदेश की गोंड जनजाति: एक विस्तृतअध्ययन". International Educational Applied Research Journal 09, № 04 (2025): 1–10. https://doi.org/10.5281/zenodo.15249430.

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Abstract:
गोंड जनजाति, भारत के सबसे बड़े और सबसे प्रमुख स्वदेशी समुदायों में से एक है, जिसकी मध्य प्रदेश में मजबूत उपस्थिति है। शहरी प्रवास और जन संचार ने गोंड पहचान को नया रूप देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिससे सामाजिक गतिशीलता और सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण में चुनौतियों दोनों के अवसर पैदा हुए हैं। सरकारी हस्तक्षेपों ने औसत दर्जे की प्रगति की है, लेकिन अधिक समावेशी और सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील नीतियों की आवश्यकता है। आधुनिकीकरण ने शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और रोजगार तक पहुंच में सुधार किया है, लेकिन इसने पारंपरिक अनुष्ठानों, भाषाओं और सामाजिक संरचनाओं के क्षरण सहित महत्वपूर्ण सांस्कृतिक परिवर्तन भी किए हैं। यह शोध गोंड समुदाय की ऐतिहासिक विरासत, सांस्कृतिक प्रथाओं और सामाजिक-आर्थिक स्थितियों की पड़ताल करता है, आधुनिकीकरण, शिक्षा, सरकारी योजनाओं और आर्थिक सुधारों के प्रभाव पर ध्यान केंद्रित करता है। मध्य प्रदेश में गोंड समुदाय के लिए एक स्थायी और समावेशी भविष्य सुनिश्चित करने के लिए आदिवासी पहचान के संरक्षण के साथ विकास को संतुलित करने के महत्व पर जोर देता है।
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Khaniya, Buddha Raj. "सुखसत्ता निबन्धको सङ्कथन विश्लेषण {Syntax Analysis of Sukhasatta Essay}". Marsyangdi Journal 3, № 1 (2022): 1–12. http://dx.doi.org/10.3126/mj.v3i1.47933.

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Abstract:
अभिव्यक्तिको सबैभन्दा माथिल्लो एकाइ सङ्कथनलाई यस लेखको अध्ययनीय विषयका रूपमा लिइएको छ । यस लेखको मुख्य उद्देश्य सुखसत्ता निबन्धको सङ्कथन विश्लेषण गर्नु रहेको छ । यो अध्ययन गुणात्मक अनुसन्धानको पुस्तकालयीय अध्ययनमा आधारित छ । यसमा सम्बद्धकका आधारमा मात्र सुखसत्ता निबन्धको सङ्कथन विश्लेषण गरिएको छ । यहाँ सार्वनामिक, स्थानिक, कालिक, संयोजन, पुनरावृत्ति र लोपका आधारमा व्याकरणिक सम्बद्धक र पर्यायवाची, विपरीतार्थी, समावेशी र सन्निधानका आधारमा कोशीय सम्बद्धकहरूको सङ्कथन विश्लेषण गरिएको छ । यस अनुसार सुखसत्ता निबन्धमा त्रिचालिस ओटा सार्वनामिक सम्बद्धक, अठार ओटा स्थानिक सम्बद्धक, तेर ओटा कालिक सम्बद्धक, पन्ध्र ओटा संयोजक प्रयोग भएको पाइन्छ भने पैँतिस ओटा भाषिक आइटम तिन पटकदेखि छब्बिस पटकसम्म पुनरावृत्ति र आठ ओटा भाषिक अंश विभिन्न सन्दर्भमा लोप भएको पाइन्छ । त्यसैगरी सो निबन्धमा दश जोडी पर्यायवाची, पाँच जोडी विपरीतार्थी, पाँच जोडी समावेशी समावेश्य र आठ जोडी सन्निधान कोशीय सम्बद्धकहरू प्रयोग भएको पाइन्छ । यस किसिमले सुखसत्ता निबन्धमा प्रयोग भएका व्याकरणिक सम्बद्धकहरूले व्यक्त विचारलाई कतै विस्तार गर्न, कतै स्पष्टीकरण दिन, त कतै विकल्प दर्साउन, विपरीत स्थिति देखाउन, तुलना गर्न, कार्य कारण दर्साउन लगायत विभिन्न सम्बन्ध जनाउन मद्दत गरेका छन् । त्यस्तै कोशीय सम्बद्धकले सो निबन्धमा व्यक्त विषयवस्तुलाई सिलसिलाबद्ध गर्न सहयोग गरेका छन् । यसरी ‘सुखसत्ता’ मा प्रयोग भएका विभिन्न किसिमका सम्बद्धकहरूले निबन्धलाई सरल, सरस र सम्प्रेषणीय बनाउन मद्दत गरेका छन् ।
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खरेलोपाध्याय Kharelopadhyaya, पद्मभक्त Padmabhakta. "सुरक्षा र विकासः एक रथका दुई पाङ्ग्रा Surakshya ra Bikas Ek Rathka Dui Pangra". Unity Journal 1 (2 лютого 2020): 191–95. http://dx.doi.org/10.3126/unityj.v1i0.36073.

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Abstract:
शान्ति, सुरक्षा र विकासका सम्बन्धमा विश्वको पहिलोजननी नेपाल हो । नेपालको स्वतन्त्रता, सार्वभौमसत्ता, भौगोलिक अखण्डता, स्वाधीनता र राष्ट्रिय एकताकोरक्षाका लागि संविधानप्रति प्रतिबद्ध समावेशी नेपालीसेनाको एक संगठन रहने र नेपाल सरकारले नेपालीसेनालाई संघीय कानुनबमोजिम विकास निर्माण र विपद् व्यवस्थापन लगायतका अन्य कार्यमा समेत परिचालनगर्न सक्ने संवैधानिक र कानुनी प्रावधान रहेको छ । सेनालाई विकास–निर्माणको काममा लगाउ“दा पेशागतदक्षतामा कत्ति पनि असर पर्दैन । राष्ट्रिय सुरक्षा दर्बिलो भएन भने विकास–निर्माणले गति लिन सक्दैन ।
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Talekar, P. R. "छत्रपती राजर्षि शाहू महाराजांचे सामाजिक सुधारणांमधील आणि राष्ट्र उभारणीमधील योगदान". International Journal of Advance and Applied Research 5, № 17 (2024): 299–306. https://doi.org/10.5281/zenodo.12200237.

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Abstract:
छत्रपती राजर्षि शाहू महाराजांचे सामाजिक सुधारणांमधील आणि राष्ट्र उभारणीमधील योगदान अतुलनीय आहे. सन १८९४ ते १९२२ अशा अवघ्या २८ वर्षांच्या कारकीर्दीत शाहू महाराजांनी त्यांच्या दूरदृष्टीने जी विविधांगी कामे उभी केली, पूर्ण केली त्याला आजही तोड नाही. किंबहुना, काळाच्या पुढे जाऊन त्यांनी शंभर वर्षांपूर्वी जे कार्य केले, त्याचे महत्त्व आजही तसूभरही कमी झालेले नाही. त्यांच्या रचनात्मक कार्याने, दृष्टिकोनांने आणि दुर्बलांच्या संरक्षणांच्या तत्वज्ञानाने भारतीय सामाजिक रचनेला प्रज्वलित केले. उलट त्यांच्या कार्याची प्रस्तुतता ही आजही अनेक कामांच्या उभारणीसाठी प्रेरणादायी व स्फूर्तीदायक स्वरुपाची आहे. ते एक अत्यंत द्रष्टे राजे होते. कोल्हापूरसारख्या अन्य संस्थांनांच्या तुलनेत छोट्या असणाऱ्या संस्थानाला केवळ त्यांच्या&nbsp; कार्यामुळे देशपातळीवर लौकिक प्राप्त झाला. रयतेच्या कल्याणाचा, हिताचा सदोदित विचार करणारा आणि त्यासाठी विविध योजना आखून&nbsp; त्या प्रत्यक्षात आणण्यासाठी झटणारा अत्यंत सहृदयी व लोककल्याणकारी राजा म्हणून त्यांच्याकडे पाहावे लागते. &nbsp;&nbsp;&nbsp; ब्रिटीश कालखंडात संस्थानिकांवर अनेक बंधने, मांडलिकत्व लादून त्यांच्या कार्यावर, हालचालींवर अनेक प्रकारच्या मर्यादा घालण्यात आलेल्या होत्या. अशा परिस्थितीत देशभरातील अन्य संस्थानिक केवळ आपला डामडौल व तामझाम सांभाळण्यात व्यस्त राहिले असताना राजर्षी शाहू महाराज मात्र आपल्या हाती असलेल्या तुटपुंज्या अधिकारांचा प्रजेच्या कल्याणासाठी कसा वापर करता येईल, याचा विचार करीत असत. त्यामुळेच त्यांच्या हातून कोल्हापूर संस्थानामध्ये लोककल्याणाची, विकासाची, सामाजिक न्याय प्रस्थापनेची अनेक महत्त्वाची कामे पार पडली. कल्याणकारी राज्याचा विचार रुढ झालेल्या काळात व्यापक, समावेशक राज्य व्यवस्थेची उभारणी करणाऱ्या जगातील काही मोजक्या राजांमध्ये छत्रपती शाहू महाराजांचा समावेश होतो. समाजातील दुर्बलांचा विचार करणारा, सर्व धर्म, जाती-जमाती यांना एकत्रित घेऊन जाणारा, सामाजिक विषमतेचा धिक्कार करणारा राजा म्हणून राजर्षी शाहू महाराज सर्वश्रेष्ठ ठरले आहेत. राजर्षी छत्रपती शाहू महाराजांनी केलेल्या सामाजिक सुधारणा आजही मैलाचा दगड ठरत आहेत. शिक्षण, आरक्षण, जातिव्यवस्थेविरूद्ध लढा, स्त्री-पुरुष समानता इत्यादी क्षेत्रातील राजर्षी शाहूंचे कार्य अतुलनीय ठरले आहे. सदर शोध निबंधामध्ये राजर्षि शाहू महाराजांचे सामाजिक सुधारणांमधील आणि राष्ट्र उभारणीमधील योगदानावर एक दृष्टीक्षेप टाकण्याचा प्रयत्न केला आहे.&nbsp;
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प्रा.डॉ., अर्चनाअ.पडगिलवार. "उच्च शिक्षणातीलशाश्वत पद्धातींसाठी धोरणे आणि प्रोत्साहन". International Journal of Advance and Applied Research S6, № 2 (2025): 371–73. https://doi.org/10.5281/zenodo.15560797.

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Abstract:
<em>उच्च शिक्षण संस्थांनी शाश्वत विकासाला प्रोत्साहन देण्यासाठी अनेक पद्धतीचा अवलंब केला. त्यामध्ये शिक्षण संशोधन समुदाय भागीदारी इत्यादींचा समावेश आहे. शाश्वत विकासासाठी शिक्षण या संकल्पने नुसार प्रत्येक व्यक्तीला शाश्वत भविष्यासाठी आवश्यक ज्ञान कौशल्ये, दृष्टीकोन आणि मुल्ये मिळावीत यासाठी शिक्षण महत्वाचे कसे आहे. शिक्षणासाठी काही धोरणे आणि प्रोत्साहन देण्याच्या पद्धती इत्यादींचा समावेश या मध्ये केला. </em>
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Ms. Kantilal R. Patel. "21वीं सदी में भारतीय ज्ञान प्रणाली (आईकेएस) का समावेश". International Journal of Scientific Research in Humanities and Social Sciences 2, № 2 (2025): 148–56. https://doi.org/10.32628/ijsrhss25224.

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Abstract:
21वीं सदी में भारतीय ज्ञान प्रणालियों (आईकेएस) को शामिल करना एक महत्वपूर्ण प्रयास है जो समकालीन आवश्यकताओं के अनुकूल होने के साथ-साथ प्राचीन ज्ञान पर आधारित है। यहाँ कुछ मुख्य बिंदु दिए गए हैं जिन पर विचार किया जाना चाहिए:
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Ms. Tulshiram Raut. "21वीं सदी में भारतीय ज्ञान प्रणाली (आईकेएस) का समावेश". International Journal of Scientific Research in Humanities and Social Sciences 2, № 2 (2025): 174–82. https://doi.org/10.32628/ijsrhss252232.

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Abstract:
आईकेएस (IKS) या 'इंडिजिनस नॉलेज सिस्टम' का अर्थ है अंतर्निहित ज्ञान प्रणाली, जो विशेष रूप से एक क्षेत्र, समुदाय, या संस्कृति के द्वारा विकसित किया गया ज्ञान है। यह प्रणाली हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं जैसे कृषि, स्वास्थ्य, प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन, और सामाजिक जीवन में महत्वपूर्ण होती है। प्राचीन भारतीय ज्ञान प्रणाली में, विभिन्न क्षेत्रों में उपयोग किए जाने वाले ज्ञान और प्रथाओं का समावेश किया गया है। यह ज्ञान पीढ़ियों से संचालित होता आया है और इसमें स्थानीय परंपराएँ, भौगोलिक विशेषताएँ, और सांस्कृतिक धरोहर का समावेश होता है।
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Dr, Madhu Shree. "आधुनिक समय में प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली की प्रासंगिकता". International Journal of Scientific Development and Research 9, № 9 (2024): 389–96. https://doi.org/10.5281/zenodo.13998003.

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Abstract:
*सारांश:* प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली, जो वैदिक युग में निहित थी, ने समग्र विकास, आध्यात्मिक उन्नति और सामाजिक जिम्मेदारी पर जोर दिया। यह शोध पत्र आधुनिक समय में इस प्रणाली की प्रासंगिकता का अन्वेषण करता है, इसके समकालीन शैक्षिक लक्ष्यों और मूल्यों के साथ इसके संरेखण को उजागर करता है। हम गुरु-शिष्य परंपरा, आत्म-अनुशासन और अनुभवात्मक शिक्षा जैसे प्रमुख सिद्धांतों की जांच करते हैं और वर्तमान शैक्षिक चुनौतियों का समाधान करने की उनकी क्षमता का विश्लेषण करते हैं। हमारा विश्लेषण बताता है कि प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली आधुनिक शिक्षा के लिए मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करती है, महत्वपूर्ण सोच, रचनात्मकता और चरित्र विकास को बढ़ावा देती है। इन शाश्वत सिद्धांतों को एकीकृत करके, हम एक अधिक व्यापक और समावेशी शिक्षा प्रणाली बना सकते हैं, जो छात्रों को एक निरंतर बदलती दुनिया के लिए तैयार करती है। शिक्षण शिक्षार्थियों के जीवन के सभी पक्षों और क्षमताओं का संतुलित विकास करता है इसके लिए पाठ्यक्रम में विज्ञान और गणित के अलावा बुनियादी कला शिल्प मानविकी और शारीरिक फिटनेस भाषा साहित्य तथा मूल्य का अवश्य ही समावेश किया जाना चाहिए शिक्षा से चरित्र निर्माण होता है शिक्षार्थियों में नैतिकता तार्किकता और संवेदनशीलता विकसित करनी चाहिए| राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 प्राचीन और सनातन भारतीय ज्ञान और विचार की समृद्ध परंपरा के आलोक में तैयार की गई है ज्ञान प्रज्ञा और सत्य की खोज को भारतीय विचार परंपरा में सदा सर्वोच्च मानवीय लक्ष्य माना गया है प्राचीन भारत में शिक्षा का लक्ष्य सांसारिक जीवन अथवा स्कूल के बाद के जीवन की तैयारी के रूप में ज्ञान अर्जन नहीं बल्कि पूर्ण आत्मज्ञान और मुक्ति के रूप में माना गया है तक्षशिला नालंदा विक्रमशिला और वल्लभी जैसे प्राचीन भारत के विश्व स्तरीय संस्थाओं ने अध्ययन के विविध क्षेत्रों में शिक्षक और शोध के प्रतिमान स्थापित किए थे| प्राचीन काल में अध्ययन का स्रोत केवल पुस्तक ही नहीं बल्कि विद्वत जनों का भाषण भी था छात्र विद्यार्जन के साथ-साथ कुश्ती घुड़सवारी ज्योतिष शास्त्र जैसी कलाएं भी सिखते थे और अपने गुणों का विकास करते थे जो शिक्षा का व्यापक अर्थ है शिक्षा अर्थात बालक की अंतर निहित गुणों का बाहर की ओर सर्वांगीण विकास करना।
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प्रा., सुरेखा जो. रेडेकर. "माहिती व तंत्रज्ञान". International Journal of Advance and Applied Research 2, № 22 (2022): 129–32. https://doi.org/10.5281/zenodo.7057142.

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Abstract:
<strong><em>प्रस्तावना</em></strong>:- &nbsp;माहिती प्रक्षेपित करण्यासाठी, साठविण्यासाठी, तयार करण्यासाठी, प्रदर्शित करण्यासाठी किंवा तिची देवाणघेवाण करण्यासाठी वापरली जाणारी विद्युत उपकरणे म्हणजे माहिती व संप्रेषण तंत्रज्ञान. यामध्ये रेडियो, दूरदर्शन, व्हिडियो, डिव्हिडी, दूरध्वनी, मोबाईल फोन, उपग्रहावर आधारीत सेवा व सुविधा, संगणक व त्या संबंधित हार्डवेअर आणि सॉफ्टवेअर अशा गोष्टींचा समावेश होतो. ह्या व्यतिरिक्त, व्हिडियो कॉन्फरन्सिंग, ईमेल, ब्लॉग अशा तंत्रांचा ही यात समावेश होतो.
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डॉ., उषा एन. पाटील. "भारतीय अर्थव्यवस्थेची सध्याची स्थिती: जीडीपीचा विशेष संदर्भ एक विश्लेषण". International Journal of Advance and Applied Research S6, № 18 (2025): 60–67. https://doi.org/10.5281/zenodo.15240806.

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Abstract:
<em>भारतीय</em><em> अर्थव्यवस्थेची स्थिती मोजण्यासाठी जीडीपी</em><em> (ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट) हा सर्वात सामान्य मापदंड आहे ज्यामध्ये अर्थव्यवस्थेत उत्पादित सर्व वस्तू आणि सेवांचे एकूण मूल्य चलनवाढीसाठी समायोजित केले जाते. भारताच्या जीडीपीमध्ये योगदान देणारे मुख्य क्षेत्र म्हणजे शेती, उद्योग आणि सेवा. शेतीमध्ये शेती आणि संबंधित क्रियाकलापांचा समावेश आहे, उद्योगात उत्पादन आणि बांधकाम समाविष्ट आहे आणि सेवांमध्ये वित्त, आरोग्यसेवा, शिक्षण आणि पर्यटन यासारख्या क्षेत्रांचा समावेश आहे.</em> <em>नॉमिनल</em><em> जीडीपीच्या बाबतीत भारत पाचव्या क्रमांकाची सर्वात मोठी अर्थव्यवस्था म्हणून उभा आहे आणि इटली</em><em>, फ्रान्स आणि कॅनडा सारख्या विकसित राष्ट्रांपेक्षा पुढे आहे. असा अंदाज आहे की भारत २०३० पर्यंत जर्मनीला मागे टाकेल. इतकेच नाही तर, आर्थिक वर्ष २५ मध्ये भारताची जीडीपी वाढ ६.४% असण्याचा अंदाज आहे. तसेच, या भारताचा मुख्य निर्यात भागीदार अमेरिका आहे, जो भारताच्या सर्व निर्यातीपैकी १७% आहे. इतर प्रमुख देशांमध्ये युएई आणि चीन यांचा समावेश आहे. भारताचा ग्राहक बाजार आकार, उत्पादन करण्याची क्षमता, न वापरलेले नैसर्गिक संसाधने आणि थेट परकीय गुंतवणूकीसारख्या सरकारी सुधारणांमुळे ते जगभरातील गुंतवणूकदारांसाठी पसंतीचे ठिकाण बनले आहे. या पेपरमध्ये भारताच्या जीडीपीचा आढावा, भारताचे दरडोई जीडीपी उत्पन्न, इतर देशांमधील भारताच्या जीडीपी वाढीच्या दराची तुलना, जीडीपीची गणना इत्यादी मुद्द्यांचा&nbsp; समावेश आहे.</em>
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भट्ट Bhatta, गणेश Ganesh दत्त Datta. "विद्यालय शिक्षामा योग शिक्षाको आवश्यकताप्रतिको धारणा Biddhyalaya Shikshyama Yog Shikshyako Aabashyakatapratiko Dharana". Scholars' Journal 3 (28 травня 2021): 220–33. http://dx.doi.org/10.3126/scholars.v3i0.37299.

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Abstract:
योग शिक्षा एक प्राचीनकालीन शिक्षा पद्धति हो । वर्तमान समयमा यसको आवश्यकता एवं महइभ्व दिनप्रतिदिन बढ्दै गइरहेको छ । जसको फलस्वरूप योग शिक्षालाई पाठ्यक्रममा समावेश गरी अनिवार्य रूपमा विद्यार्थीहरूलाई ज्ञान दिनु आवश्यक भइसकेको छ । ऐच्छिक विषयका रूपमा योग शिक्षालाई माध्यमिक तहको पाठ्यक्रममा समावेश गरे तापनि यसको कार्यान्वयनको अवस्था भने नगण्य मात्रामा रहेको छ । यस अध्ययनको मुख्य उद्देश्य विद्यालय शिक्षामा योग शिक्षाको आवश्यकता पत्ता लगाउनु र योग शिक्षाप्रति प्र.अ. शिक्षक, विद्यार्थी र अभिभावकको धारणा पहिचान गर्नु रहेको छ । अनुसन्धानको क्रममा छलफल र अन्तर्वार्ताको माध्यमबाट प्र.अ।, शिक्षक, विद्यार्थी र अभिभावकको धारण पत्ता लगाउन धारणा स्केलको प्रयोग गरिएको छ । प्र.अ. तथा शिक्षकबाट विद्यालय शिक्षामा योग शिक्षा वर्तमान समयमा अति आवश्यक भएको र यसको कार्यन्वयन प्राथमिक तहदेखि नै हुनुपर्ने धारणा आएको छ भने केही प्र.अ. र शिक्षकबाट योग शिक्षा माध्यमिक तहदेखि माथि उपयुक्त हुने धारणा आएको छ । छलफल र अन्तर्वार्ता जस्ता कार्यक्रम सञ्चालन गर्दा योग शिक्षालाई पाठ्यव्रmममा समावेश गरिनु नितान्त आवश्यक रहेको कुरा अभिभावकबाट आएको छ । योग शिक्षा आवश्यकताको सम्वन्धमासकारात्मक धारण आएको र योग शिक्षा कार्यान्वयनमा सम्बन्धमा समस्या देखिएको छ । सूचनासङ्कलनका क्रममा प्रयोग गरिएका साधनबाट योग शिक्षालाई वर्तमान समयमा विश्व समुदायले नै स्वीकार गरिसकेको कुरा पनि सामुन्ने आएको छ । तसर्थ योग शिक्षा पाठ्यव्रmममा समावेश गरिनु अति आवश्यक छ । प्राप्ति र निष्कर्षका रूपमा भन्नु पर्दा योग शिक्षाको वर्तमान समयमा आवश्यकता रहेको र सरोकारवाला व्यक्ति सक्रिय भए यसको कार्यान्वयन पनि गर्न सकिने धारणा आएको छ ।योग शिक्षालाई विद्यालय शिक्षामा समावेश गर्न सकेमा यसले विद्यार्थीको सर्वाङ्गीण विकासमा सहयोग पु¥याउने धारणा अधिकांश सूचनादाताबाट आएको छ । तसर्थ योग शिक्षाले मानवीय स्वास्थ्यसँग प्रत्यक्ष सम्बन्ध राख्ने हुँदा योग शिक्षालाई विद्यालय शिक्षामा कार्यान्वयन गर्नुपर्ने आजको नितान्त आवश्यकता रहेको छ ।
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Bhusal, Keshab. "स्नातक तहका कथामा उद्भभावनात्मक सन्दर्भ". ACADEMIA 5, № 1 (2025): 262–72. https://doi.org/10.3126/ta.v5i1.77385.

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Abstract:
प्रस्तुत लेख स्नातक तहमा समावेश गरिएका कथाहरूमा निहित उद्भावनात्मक सन्दर्भको अध्ययनमा आधारित रहेको छ । स्नातक तहमा समाविष्ट कथामा निहित उद्भावनात्मक सन्दर्भको अध्ययन गर्नु, निर्दिष्ट कथामा व्यवहृत उद्भावनात्मक सन्दर्भको प्रकृति विश्लेषण गर्नु, कथामा प्रस्तुत उद्भावनात्मक सन्दर्भको तुलनात्मक स्थिति समीक्षण गर्नु यस लेखका मुख्य उद्देश्यका रूपमा रहेका छन् । प्रस्तुत लेख गुणात्मक अनुसन्धानमा आधारित रहेको छ । यस लेखमा पुस्तकालयीय कार्यका माध्यमबाट आवश्यक सामग्रीहरूको सङ्कलन गरिएको छ । प्रस्तुत अध्ययनमा उद्भावनात्मक सन्दर्भका बारेमा सैद्धान्तिक चर्चा गरिएका सैद्धान्तिक सामग्रीहरूलाई मुख्य सामग्रीका रूपमा उपयोग गरिएको छ । यस अध्ययनका आधारमा स्नातक तहका कथाहरूमा राजनीतिक र यौनमनोवैज्ञानिक उद्भावनात्मक सन्दर्भको प्रयोग गरिएको, यौनमनोवैज्ञानिक उद्भावनात्मक सन्दर्भका तुलनामा राजनीतिक उद् भावनात्मक सन्दर्भको अधिकाधिक प्रयोग गरिएको, एकै प्रकृतिको उद्भावनात्मक सन्दर्भमा आधारित कथाहरू समावेश गरिनु उपयुक्त नभएको लगायतका निष्कर्ष निकालिएको छ । प्रस्तुत अध्ययनले स्नातक तहमा समावेश गरिएका कथाका कथाकार, अध्यापनरत शिक्षक, अध्ययनरत विद्यार्थीका अतिरिक्त यस क्षेत्रमा अध्ययन गर्न चाहने जोकोहीलाई आवश्यकीय ज्ञान प्राप्त गर्न सघाउ पु¥याउने अपेक्षा गरिएको छ ।
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Kanchan, Kumari. "भारतीय चित्रकला में ललित कला व लोक संस्कृति का समावेश". International Journal of Research - Granthaalayah 5, № 12 (2017): 141–46. https://doi.org/10.5281/zenodo.1133828.

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Abstract:
भारत एक प्राचीन सांस्कृतिक देश है। कला मानव संस्कृति की उपज है। इसका उदय मानव की सौन्दर्य भावना का परिचायक है। यहाँ की कला एवं संस्कृति में लोककला का अनूठा समन्वय दिखाई देता है। अनेक विद्वानों ने समय-समय पर लोककला के महत्त्व को बताया है। लोककलाऐं हमारे देश में लोक परम्पराओं संस्कृति का दर्पण है। जो विभिन्न रीति रिवाज उत्सव में देखे जा सकते है। भारत जैसें देश में विभिन्न प्रान्तों में विविध रूपों में लोककला देखी जा सकती है। जो विभिन्न नामों से जानी जाती है। दैनिक जीवन की इन उपयोगी वस्तुओं का निर्माण यद्यपि ललित कला के लक्ष्य से नहीं हुआ, तथापि सामूहिक जीवन की कलाप्रियता का अंष हमें इसमें दृष्टिगोचर होता है और इन्हें कलात्मक वस्तुएँ कहे तो गलत नहीं होगा। सभ्यता के विकास के साथ-साथ मानव ने अपनी निर्मित वस्तुओं में उपयोगी धारणा को नहीं छोड़ा परन्तु उसकी कलाप्रियता ने अपनी प्रवाहशीलता द्वारा कुछ मात्रा में उन्हें ललित कला के लिये सुन्दर उपादान बना दिया। &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp;&nbsp; कला के अन्र्तगत चित्रकला, स्थापत्यकला, मूर्तिकला तथा हस्तकला प्रमुख है और सभी कलाओं की कलात्मक अभिव्यक्ति की दृष्टि से भारत के जन-जीवन में न केवल प्रागैतिहासिक युग से अपितु वर्तमान में भी इसका विषेष महत्व दृष्टिगोचर होता है। लोक संस्कृति का अहम भाग है लोक कला। यह संस्कृति का पहचान है जहाँ तक भारतीय लोक संस्कृति की बात है इसमें लोक कला का विशेष महत्व है।&nbsp; वर्तमान में भारतीय लोक कला अंतर्राष्ट्रीय पटल पर स्थापित होकर लोकप्रिय हो चुकी है क्योंकि भारतीय संस्कृति में अनेकता में एकता के साथ आध्यात्मिकता के भाव भी जुड़े है। इसमें सदैव से मानव कल्याण का भाव भी है। सर्वे भवन्तु सुखिनः का भाव लोक संस्कृति का आधार है।&nbsp; इस प्रकार भारतीय लोक संस्कृति में रंगों का संयोजन मानव के मनोभावों के अनुरूप उल्लास, अध्यात्म की सहज अभिव्यक्ति है जो चित्रों में अभिव्यक्त हुआ है।अब जहाँ तक बात चित्रकला और रंगों की है तो यह बात सीधे तौर कहना ही सही होगा कि चित्रकला में रंग व चित्र परस्पर एक-दूसरे से सम्बद्ध होते हैं। आकार एवं रंग, प्रकृति के अनंत रूपों में बहुत ही महत्वपूर्ण है। चित्रकला में चित्रकार की भावाभिव्यक्ति को प्रदर्षित करने का माध्यम तूलिका एवं रंग ही होते हैं, जिनके द्वारा वह अपने मनोभावों की व्यंजना करता हैं। कला में आध्यात्म है, कला में रस है, कला में सौन्दर्य है। रंगों के माध्यम से साकार प्रकृति को हम निराकार रूप में रंग सकते हैं। भारतीय चित्रकला की आज अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर धूम हो गयी बिहार के एक छोटे से राज्य से निकलकर विश्व में अनेक राष्ट्रांे में भारतीय परचम को लयराया और आज अन्तर्राष्ट्रीय कला बाजार में अपनी पैंठ बना लिया है और इसका भविष्य उज्जवल है, आने वाले समय में कलाकारों को इस व्यवसायिक दौर में रोजगार के अवसर प्राप्त है और प्राप्त होते रहेंगें। व्यावसायिक दृष्टिकोण से अनेक कला दीर्घाओं में यहां के चित्रों के विविध रूपों को देखा जा सकता है। &nbsp;
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मिश्रा, यतीन्द्र. "अनुसूचित जातियों के सामाजिक समावेशन की चुनौतियाँ एवं संवैधानिक प्रावधानों का अध्ययन". Humanities and Development 17, № 2 (2022): 38–42. http://dx.doi.org/10.61410/had.v17i2.66.

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Abstract:
प्रस्तुत अध्ययन अनुसूचित जातियों के सामाजिक समावेशन हेतु संवैधानिक प्रावधानों की स्थिति का आकलन करने से सम्बन्धित है जिसमें उनकी विभिन्न समस्याओं को दूर करने हेतु बनाये गये संवैधाानिक कानूनों के क्रियान्वयन एवं इसका उनके सामाजिक समावेशन पर प्रभाव को मूल्यांकित किया गया है। प्रस्तुत अध्ययन के परिणाम से यह पता चलता है कि अनुसूचित जातियों के सामाजिक समायोजन में अनेक बाधाएँ हैं जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक संरचना की जटिलता, गाँवों में विभिन्न धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों अनुसूचित जातियों की भागीदारी न होना, विभिन्न पूजा-पाठ एवं अन्य अनुष्ठानों के लिए उन्हें अयोग्य माना जाना एवं विभिन्न क्रियाकलापों के लिए उन्हें अयोग्य मानना एक प्रमुख चुनौती है। यद्यपि इसके लिए विभिन्न संवैधानिक उपबन्ध बनाये गये हैं, कानून लागू किये गये हैं, सजा निर्धारित की गयी है, इसके बावजूद भी इनके प्रति जागरूकता न होना, शैक्षिक रूप से कमजोर होना, आर्थिक समस्या युक्त होना एवं समाज की जटिलता को कम करने की स्थिति न होने से विभिन्न उपबन्धों का अनुपालन नहीं हो पाता है। गाँवों में आजभी अनुसूचित जातियों की स्थिति सामाजिक रूप से निम्न एवं दयनीय है। इसके लिए वास्तविकता के धरातल पर जन जागरूकता एवं संवैधानिक अधिकारों के प्रति चैतन्यता का विस्तार कर उन्हें मुख्य धारा में लाने की आवश्यकता है।
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पटेल, अखिलेश कुमार, та यतीन्द्र मिश्रा*. "अनुसूचित जातियों के सामाजिक समावेशन में शैक्षिक कारकों की भूमिका का अध्ययन". Humanities and Development 17, № 2 (2022): 43–46. http://dx.doi.org/10.61410/had.v17i2.67.

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Abstract:
प्राचीन काल से भारतीय समाज में अनुसूचित जातियों की स्थिति दयनीय रही है। अनुसूचित जातियों को मानवाधिकारों तथा जीवन जीने के मौलिक अधिकारों से वंचित रखा गया। शिक्षा जैसे मूलभूत अधिकार भी अनुसूचित जातियों को प्राप्त नहीं था। समाज में अनुसूचित जातियों को दोयम दर्जा प्रदान किया गया था। सामातिक स्तरीकरण में अनुसूचित जातियों की स्थिति सबसे निचले पायदान पर थी। विभिन्न सामाजिक प्रतिबन्धों का अनुसूचित जातियों को सामना करना पड़ता था। परणामस्वरूप उनकी स्थिति दिन-प्रतिदिन दयनीय होती गयी। स्वतन्त्रता के बाद अनुसूचित जातियों की स्थिति में सुधार लाने हेतु प्रयास किये गये। भारतीय संविधान में अनुसूचित जातियों के लिए समानता तथा स्वतन्त्रता जैसे महत्वपूर्ण अधिकारों को प्रदान किया गया। अस्पृश्यता उन्मूलन हेतु ‘‘अस्पृश्यता निवारण अधिनियम 1956’’ पारित किया गया। सामाजिक-आर्थिक हितों के संरक्षण के लिए विविध प्रावधान किये गये। संवैधानिक तथा मानवाधिकारों के संरक्षण तथा सामाजिक समावेश के लिए ‘‘राष्ट्रीय अनुसूचित जाति तथा जनजाति अधिनियम 1990’’ के अन्तर्गत राष्ट्रीय अनुसूचित जाति तथा जनजाति आयोग का गठन किया गया।
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डॉ0, साधना श्रीवास्तव अभिषेक कुमार. "महामारी प्रबंधन में प्रिंट मीडिया का समावेशी दृष्टिकोण और जनजातीय समुदायों के लिए विशेष प्रावधानः एक विश्लेषणात्मक अध्ययन". ACADEMIC 3, № 2 (2025): 941–52. https://doi.org/10.5281/zenodo.15030114.

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गौतम Gautam, तुलसीप्रसाद Tulasiprasad. "प्रगति राईका कवितामा पहिचानको स्वर". Pragyajyoti 5, № 8 (2024): 93–105. https://doi.org/10.3126/pj.v5i8.73801.

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Abstract:
प्रस्तुत लेख प्रगति राईका कवितामा पहिचानको स्वरसम्बन्धी अध्ययनमा केन्द्रित छ । प्रस्तुत अध्ययन गुणात्मक प्रकृतिको रहेको छ । यस अध्ययनका लागि सामग्रीको सङ्कलन पुस्तकालय कार्यबाट गरिएको छ । यसमा बादी विज्ञप्ति कवितासङ्ग्रहका कवितालाई प्राथमिक सामग्रीका रूपमा लिइएको छ भने पहिचानको सिद्धान्तसँग सम्बन्धित पुस्तक तथा लेखहरूलाई द्वितीयक सामग्रीका रूपमा लिइएको छ । यसमा प्रगति राईका कवितामा पहिचानको स्वर के कसरी मुखरित भएको छ भन्ने कुराको विश्लेषण पहिचानको अवधारणा र सिद्धान्तका आधारमा गरिएको छ । यस अध्ययनले नेपालका आदिवासी जनजाति, महिला आदिलाई सबै क्षेत्रमा समान अवसर दिई एउटै मूलधारमा समेट्नुपर्छ भन्ने बहुलवादी, समावेशी विचार स्थापित गरेको निष्कर्ष प्राप्त भएको छ ।
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