Academic literature on the topic 'स्कूलों'

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Journal articles on the topic "स्कूलों"

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उर्मिला, उर्मिला, та संदीप कुमार. "सार्वजनिक और निजी संस्थानों के माध्यमिक विद्यालय के विद्यार्थियों के मानसिक स्वास्थ्य का मूल्यांकन". Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education 20, № 3 (2023): 657–64. https://doi.org/10.29070/w3vvah68.

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Abstract:
मलाथी और मालिनी (2006); श्रमा (2011) ने संकेत दिया कि उच्च शैक्षणिक स्कोर वाले छात्रों की सीखने की शैली बेहतर होती है और शिक्षकों के लिए उन्हें पढ़ाना आसान होता है। छात्र सीखने की शैलियों की पहचान के लिए शिक्षकों की मदद ले सकते हैं। सीखने की शैली छात्र को सीखने में स्वायत्त होने में मदद करती है और पर्यावरण के साथ बातचीत करने का आत्मविश्वास देती है। सीखने के लिए पर्यावरण एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। व्यक्तिगत स्कूल और कक्षा का वातावरण और शाखा की उनकी प्राथमिकताएँ सीखने की रणनीतियों और शैलियों में अत्यधिक प्रभावी हैं। यह स्कूलों और शाखाओं में उपयोग किए जाने वाले विभिन्न शैक्षिक कार्यक्रमों के
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रितु та डॉ. विनोद तिवारी. "हरियाणा में स्कूल शिक्षा के परिवर्तनात्मक आयामः समस्याएं, संवेदनशीलताएं और समाधान". Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education 21, № 1 (2024): 277–80. http://dx.doi.org/10.29070/eva1ne53.

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Abstract:
इस शोध पत्र में हरियाणा राज्य के स्कूलों में परिवर्तनात्मक शिक्षा की महत्वपूर्णता और उसे समृद्ध करने की रणनीतियों पर प्रकाश डाला गया है। परिवर्तनात्मक शिक्षा विद्यार्थियों को समाज में सकारात्मक परिवर्तन में योगदान करने की क्षमता विकसित करने का कार्य करती है। स्कूल शिक्षा एक विद्यार्थी के व्यक्तिगत और सामाजिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस अध्ययन में हरियाणा राज्य के स्कूलों में परिवर्तनात्मक शिक्षा की वर्तमान स्थिति, उसकी महत्वपूर्णता और इसे समृद्ध करने की संभावना और रणनीतियाँ पर प्रकाश डाला गया है। परिवर्तनात्मक शिक्षा (Transformational Education) का उद्देश्य केवल ज्ञान का प्रसार न
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मो., जिमी. "एनईपी 2020 का अध्ययन : मुद्दे, दृष्टिकोण, चुनौतियाँ, अवसर और आलोचना". Siddhanta's International Journal of Advanced Research in Arts & Humanities 1, № 5 (2024): 1–11. https://doi.org/10.5281/zenodo.11216054.

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Abstract:
एक अच्छी तरह से परिभाषित शिक्षा नीति और भविष्य स्कूल और कॉलेज स्तर पर देश के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि शिक्षा से आर्थिक और सामाजिक विकास होता है। विभिन्न देश संस्कृति और परंपराओं का उचित सम्मान करते हुए विभिन्न शिक्षा प्रणालियों का उपयोग करते हैं और इसे कार्यान्वित करने के लिए स्कूल और कॉलेज शिक्षा स्तरों पर अपने जीवन चक्र के दौरान विभिन्न चरण अपनाते हैं। 29 जुलाई, 2020 को भारतीय केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (एनईपी 2020), भारत की नई शिक्षा प्रणाली के लिए दृष्टिकोण निर्धारित करती है। नई नीति पिछली राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 की जगह लेती है। यह नीति भारत के ग्रा
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उपमन्यु, विभाकर. "प्राथमिक शिक्षा एवं ग्रामीण स्कूल का वर्तमान परिदृश्य". International Journal For Multidisciplinary Research 04, № 04 (2022): 139–46. http://dx.doi.org/10.36948/ijfmr.2022.v04i04.013.

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Abstract:
प्रस्तुत शोध लेख विभिन्न साहित्य की समीक्षा के आधार पर प्रस्तुत किया गया है इस शोधपत्र में प्राथमिक शिक्षा की वर्तमान स्थिति का वर्णन किया गया है। प्रजातंत्रात्मक शासन व्यवस्था में शिक्षा राष्ट्र की आधारशिला का कार्य करती है। विगत दशकों से भारत में प्राथमिक शिक्षा के पुनर्गठन और पुनरुद्धार के लिए सक्रियता बढ़ी है। किंतु दुर्भाग्यवश शिक्षा के मात्रात्मक प्रसार एवं प्रचार में उल्लेखनीय प्रगति के साथ-साथ शिक्षा की गुणवत्ता का स्तर निम्न होता जा रहा है। देश के ज्यादातर शिक्षाविदों व बुद्धिजीवियों ने प्राथमिक शिक्षा प्रणाली में तत्काल सुधार की आवश्यकता बल दिया, जो नवाचार और उद्यमिता को बढ़ावा दे सक
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रेखा, रानी, та कौशल शर्मा डॉ. "माध्यमिक विद्यालय के शिक्षकों की उनकी शिक्षण योग्यता के संबंध में शिक्षक प्रभावशीलता". International Journal of Contemporary Research In Multidisciplinary 3, № 4 (2024): 55–57. https://doi.org/10.5281/zenodo.13118009.

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Abstract:
शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षक सबसे आवश्यक है और वह स्कूली शिक्षा के विकास में सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ है। शिक्षण और सीखने की प्रगति में शिक्षक की शिक्षण योग्यता एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। अध्ययन का उद्देश्य शिक्षक प्रभावशीलता और शिक्षकों की शिक्षण योग्यता के बीच संबंध का पता लगाना था। नमूने में उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले का धामपुर शहर के माध्यमिक विद्यालयों में कार्यरत चार सौ माध्यमिक विद्यालय के शिक्षक शामिल थे, जिन्हें सरल यादृच्छिक नमूनाकरण तकनीक द्वारा चयन किया गया था। तैयार की गई परिकल्पनाओं की जांच के लिए ‘टी‘ परीक्षण सांख्यिकीय प्रक्रियाएं लागू की गईं। सहसंबंध परिणाम माध्यमिक वि
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Kavita, Namdev, Chhaya Shrivastava Dr. та Vikrant Sharma Dr. "बच्चों की नैतिक शिक्षा में स्कूलों की भूमिका". International Journal of Advance Research in Multidisciplinary 2, № 3 (2025): 502–6. https://doi.org/10.5281/zenodo.15174543.

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Abstract:
शिक्षा को प्रगति में एक महत्वपूर्ण पहलू के रूप में जाना जाता है। शिक्षा किसी भी समाज के विकास के लिए महत्वपूर्ण है और किसी भी देश के विकास की रीढ़ है क्योंकि यह लोगों के ज्ञान, कौशल, आदतों, मूल्यों या दृष्टिकोण और समझ को बढ़ाती है। इस बात पर बहुत अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए कि शिक्षा किस तरह से छात्रों को आवश्यक ज्ञान और जानकारी प्रदान करती है। स्कूल नामक एक छोटे से समुदाय में, एक शिक्षक को अपने छात्रों को वास्तविक समाज से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए प्रशिक्षित करना होता है। नैतिक शिक्षा एक महत्वपूर्ण पहलू है जिस पर एक शिक्षक को जोर देना चाहिए स्कूल को "प्रत्यक्ष निर्देश" के एक वाहन के रूप में
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सुश्री प्रवीना, सुश्री प्रवीना, जसविंदर मलिक जसविंदर मलिक та श्रीमती संध्या रानी श्रीमती संध्या रानी. "नई शिक्षा नीति में विशिष्ट अक्षमता वाले बच्चों के लिए नई स्कूल नीति में नवीनतम प्रावधान". International Journal of Information Technology and Management 17, № 3 (2024): 7–11. http://dx.doi.org/10.29070/24b4dz98.

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Abstract:
नई शिक्षा नीति 2020, जुलाई 2020 में भारत के केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित, बाधा-मुक्त को प्रोत्साहित और बढ़ावा देता है दिव्यांग सभी बच्चों के लिए शिक्षा तक पहुंच। भारत की पहली शिक्षा नीति 1986 में प्रारंभ की गई तथा 1992 में अंतिम बार संशोधित की गई। तब से, भारत को अपनी संपूर्ण शिक्षा में बदलाव की आवश्यकता थी,नई शिक्षा नीति उन बहुप्रतीक्षित नए सुधारों का वर्णन करती है जिनकी भारत को तलाश थी।इस तरह की नई स्कूल नीति के तहत उन परिवार तथा उन परिवार के दिव्यांग बच्चों के लिए सभी सुविधाएं उनके अनुकूलित हो एक ऐसे समाज का निर्माण किया जा रहा है।नई शिक्षा नीति दिव्यांग छात्रों हेतु एक नई सोच को लेकर
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Bimla та Gupta Sakshi. "शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्यः एक अध्ययन". RECENT EDUCATIONAL AND PSYCHOLOGICAL RESEARCHES 13, № 2 (2024): 62–65. https://doi.org/10.5281/zenodo.13336589.

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Abstract:
आधुनिक समय में बच्चे को शिक्षित करने पर जोर देने के साथ शिक्षा के समग्र दृष्टिकोण के रूप में परिलक्षित होता है। दूसरा प्रभाव मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं सहित पुरानी बीमारियों की महामारी विज्ञान के लिए जीवन पाठ्यक्रम दृष्टिकोण से आता है। शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देना व्यक्तिगत, सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। बच्चों और युवाओं के जीवन में उनकी केंद्रीय भूमिका के कारण, स्कूलों को शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए प्रभावी समर्थन और हस्तक्षेप के स्थानों के रूप में व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त है। स्वास्थ्य परिणामों को बेहतर बनाने में एचपीएस और सीएसएच कार्यक्रमों की प्रभाव
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विश्वकर्मा, रामकिशोर. "सवर्ण छात्राओं एवं अनुसू‍चित जाति की छात्राओं के नैराश्‍य का तुलनात्मक अध्ययन करना". Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education 21, № 7 (2024): 419–24. https://doi.org/10.29070/t8b2ey13.

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Abstract:
स्कूल समुदाय के भीतर किशोर महिलाओं के बीच नैराश्य प्रमुख मानसिक स्वास्थ्य चिंताएँ हैं और ये स्कूलों में मनोवैज्ञानिक सेवा प्रदाताओं पर कई प्रभाव डालते हैं। इस अध्ययन का उद्देश्य सागर जिले के उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों के सवर्ण एवं अनुसूचित जाति के छात्राओं में नैराश्य का तुलनात्मक अध्ययन करना है। शोध के लिए उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों के 16 से 18 वर्ष के बीच 500 छात्राओ का चयन किया गया है जिसमें 250 सवर्ण जाति के छात्रा एवं 250 अनुसूचित जाति के छात्रा सम्मिलित हैं। शोधकर्ता ने सवर्ण एवं अनुसूचित जाति के किशोरवय छात्राओं के नैराश्य के मापन के लिए डॉ. एन.एस. चैहान एवं डॉ. गोविन्द तिवारी द्वारा सं
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सारण, सोनू. "बहुभाषी शिक्षा की अनिवार्यता और मातृभाषा आधारित शिक्षा". Humanities and Development 19, № 02 (2024): 8–12. https://doi.org/10.61410/had.v19i2.182.

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Abstract:
भारत की भाषाई विविधता इसकी समृद्ध सांस्‟तिक टेपेस्ट्री का प्रमाण है, फिरभी इस विविधता को इसके शैक्षिक ढांचे में पूरी तरह से एकी‟त नहीं किया गया है। विशेषकर शहरी केंद्रों में अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा का प्रचलन, मातृ भाषा आधारित शिक्षा के संभावित लाभों को कम कर देता है। यह शोध पत्र भाषाई विविधता को सुरक्षित रखने, अधिगम को बढ़ावा देने तथा स्कूलों में समावेशिता को बढ़ावा देने के साधन के रूप में बहुभाषी शिक्षा और मातृ भाषा-आधारित शिक्षा की अनिवार्यता पर प्रकाश डालता है।
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Reports on the topic "स्कूलों"

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Batra, Poonam, Amir Bazaz, Anisha Shanmugam, Nihal Ranjit, Harpreet Kaur та Ruchira Das. शिक्षा, आजीविका और स्वास्थ्य पर कोविड-19 का असर. Indian Institute for Human Settlements, 2022. http://dx.doi.org/10.24943/sasca02.2022.

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Abstract:
भारत सरकार ने कोविड-19 वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए मार्च 2020 के तीसरे हफ्ते में पूरे देश में अचानक और सख्त लॉकडाउन लागू कर दिया था। इस फैसले को जिस तरह लागू किया गया, उससे भारतीय शिक्षा व्यवस्था और शहरी सामाजिक सुरक्षा तंत्र की कमियां व कमज़ोरी खुलकर सामने आ गयी हैं। लॉकडाउन के फलस्वरूप देश भर के स्कूल व उच्च शिक्षा संस्थान बंद कर दिये गये और शहरों व कस्बों की तमाम आर्थिक गतिविधियां पलक झपकते ठप पड़ गयीं। इससे विद्यार्थियों और शहरी अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में काम करने वाले करोड़ों मज़दूरों पर बहुत गहरा असर पड़ा है।
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