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Journal articles on the topic 'स्कूलों'

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1

रितु та डॉ. विनोद तिवारी. "हरियाणा में स्कूल शिक्षा के परिवर्तनात्मक आयामः समस्याएं, संवेदनशीलताएं और समाधान". Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education 21, № 1 (2024): 277–80. http://dx.doi.org/10.29070/eva1ne53.

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Abstract:
इस शोध पत्र में हरियाणा राज्य के स्कूलों में परिवर्तनात्मक शिक्षा की महत्वपूर्णता और उसे समृद्ध करने की रणनीतियों पर प्रकाश डाला गया है। परिवर्तनात्मक शिक्षा विद्यार्थियों को समाज में सकारात्मक परिवर्तन में योगदान करने की क्षमता विकसित करने का कार्य करती है। स्कूल शिक्षा एक विद्यार्थी के व्यक्तिगत और सामाजिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस अध्ययन में हरियाणा राज्य के स्कूलों में परिवर्तनात्मक शिक्षा की वर्तमान स्थिति, उसकी महत्वपूर्णता और इसे समृद्ध करने की संभावना और रणनीतियाँ पर प्रकाश डाला गया है। परिवर्तनात्मक शिक्षा (Transformational Education) का उद्देश्य केवल ज्ञान का प्रसार नहीं है, बल्कि विद्यार्थियों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाना भी है। यह शिक्षा प्रणाली विद्यार्थियों को जीवन की जटिलताओं को समझने और उनसे निपटने के लिए तैयार करती है। हरियाणा जैसे तेजी से विकसित होते राज्य में, जहाँ शिक्षा के क्षेत्र में निरंतर प्रगति हो रही है, परिवर्तनात्मक शिक्षा का महत्व और भी बढ़ जाता है। यह शिक्षा विद्यार्थियों को न केवल अकादमिक रूप से बल्कि व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर भी विकसित करने में मदद करती है।
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2

मो., जिमी. "एनईपी 2020 का अध्ययन : मुद्दे, दृष्टिकोण, चुनौतियाँ, अवसर और आलोचना". Siddhanta's International Journal of Advanced Research in Arts & Humanities 1, № 5 (2024): 1–11. https://doi.org/10.5281/zenodo.11216054.

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Abstract:
एक अच्छी तरह से परिभाषित शिक्षा नीति और भविष्य स्कूल और कॉलेज स्तर पर देश के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि शिक्षा से आर्थिक और सामाजिक विकास होता है। विभिन्न देश संस्कृति और परंपराओं का उचित सम्मान करते हुए विभिन्न शिक्षा प्रणालियों का उपयोग करते हैं और इसे कार्यान्वित करने के लिए स्कूल और कॉलेज शिक्षा स्तरों पर अपने जीवन चक्र के दौरान विभिन्न चरण अपनाते हैं। 29 जुलाई, 2020 को भारतीय केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (एनईपी 2020), भारत की नई शिक्षा प्रणाली के लिए दृष्टिकोण निर्धारित करती है। नई नीति पिछली राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 की जगह लेती है। यह नीति भारत के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में उच्च शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए प्राथमिक शिक्षा के लिए एक व्यापक रूपरेखा है। इस नीति का लक्ष्य 2021 तक भारत की शिक्षा प्रणाली को बदलना है। नीति जारी होने के तुरंत बाद, सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया कि किसी को भी किसी विशेष भाषा को सीखने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा और शिक्षण की पद्धति को अंग्रेजी से किसी क्षेत्रीय भाषा में नहीं बदला जाएगा। एनईपी में भाषा नीति के आवेदन पर स्कूलों को निर्णय लेना है। भारत में शिक्षा संबंधित सूची नीति 2020 का अध्ययन है। 2022 तक भारत के सभी स्कूलों में एक राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू की जानी चाहिए।
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3

उपमन्यु, विभाकर. "प्राथमिक शिक्षा एवं ग्रामीण स्कूल का वर्तमान परिदृश्य". International Journal For Multidisciplinary Research 04, № 04 (2022): 139–46. http://dx.doi.org/10.36948/ijfmr.2022.v04i04.013.

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Abstract:
प्रस्तुत शोध लेख विभिन्न साहित्य की समीक्षा के आधार पर प्रस्तुत किया गया है इस शोधपत्र में प्राथमिक शिक्षा की वर्तमान स्थिति का वर्णन किया गया है। प्रजातंत्रात्मक शासन व्यवस्था में शिक्षा राष्ट्र की आधारशिला का कार्य करती है। विगत दशकों से भारत में प्राथमिक शिक्षा के पुनर्गठन और पुनरुद्धार के लिए सक्रियता बढ़ी है। किंतु दुर्भाग्यवश शिक्षा के मात्रात्मक प्रसार एवं प्रचार में उल्लेखनीय प्रगति के साथ-साथ शिक्षा की गुणवत्ता का स्तर निम्न होता जा रहा है। देश के ज्यादातर शिक्षाविदों व बुद्धिजीवियों ने प्राथमिक शिक्षा प्रणाली में तत्काल सुधार की आवश्यकता बल दिया, जो नवाचार और उद्यमिता को बढ़ावा दे सकें और भविष्य में बढ़ती कौशल आवश्यकताओं को पूरा कर सकें। शिक्षा की गुणवत्ता को कायम रखने के लिए इन सभी उत्तरदायित्व को सुनिश्चित करना होगा। प्राथमिक शिक्षा ही किसी व्यक्ति के जीवन की वह नींव होती है जिस पर उसके संपूर्ण जीवन का भविष्य व्यतीत होता है। प्राथमिक शिक्षा ज्ञान का नियम है, इसमें ज्ञान और सूचना के प्रारंभिक तत्व शामिल हैं। जिन्हें बच्चों को परोसा और सिखाया जाता है। एक बच्चा बचपन के दौरान एक कोरे कागज की तरह होता है और इस दौरान इंसान का दिमाग अपने सुपर एक्टिव रूप में होता है। यह वैज्ञानिक रूप से साबित हो चुका है पहले 5 वर्षों में बच्चों के सभी साइको मीटर, कौशल, संज्ञानात्मक व भावनात्मक, सामाजिक और सीखने के कौशल अपने सबसे अच्छे रूप में विकसित होते हैं। देश की एक बड़ी आबादी सरकारी स्कूलों के ही सहारे हैं। सरकारी नियंत्रण वाले प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों में न तो शिक्षा का स्तर सुधार पा रहा है और न ही इनमें विद्यार्थियों को बुनियादी सुविधाएं मिल पा रही है। निम्न मध्यम वर्ग और आर्थिक रूप से सामान्य स्थिति वाले लोगों के बच्चों के लिए सरकारी स्कूल ही शिक्षा प्राप्त करने का एकमात्र जरिया है फिर वह चाहे कैसे भी हों ? इन स्कूलों में न तो योग्य अध्यापक हैं और न ही मूलभूत सुविधाएं। इन स्कूलों में पढ़ाई लिखाई की असलियत स्वयंसेवी संगठन प्रथम की हर साल आने वाली रिपोर्ट बताती है, रिपोर्ट के मुताबिक कक्षा चार या पांच के बच्चे अपने से निकले कक्षा की किताबें तक नहीं पढ़ पाते।
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रेखा, रानी, та कौशल शर्मा डॉ. "माध्यमिक विद्यालय के शिक्षकों की उनकी शिक्षण योग्यता के संबंध में शिक्षक प्रभावशीलता". International Journal of Contemporary Research In Multidisciplinary 3, № 4 (2024): 55–57. https://doi.org/10.5281/zenodo.13118009.

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Abstract:
शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षक सबसे आवश्यक है और वह स्कूली शिक्षा के विकास में सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ है। शिक्षण और सीखने की प्रगति में शिक्षक की शिक्षण योग्यता एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। अध्ययन का उद्देश्य शिक्षक प्रभावशीलता और शिक्षकों की शिक्षण योग्यता के बीच संबंध का पता लगाना था। नमूने में उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले का धामपुर शहर के माध्यमिक विद्यालयों में कार्यरत चार सौ माध्यमिक विद्यालय के शिक्षक शामिल थे, जिन्हें सरल यादृच्छिक नमूनाकरण तकनीक द्वारा चयन किया गया था। तैयार की गई परिकल्पनाओं की जांच के लिए ‘टी‘ परीक्षण सांख्यिकीय प्रक्रियाएं लागू की गईं। सहसंबंध परिणाम माध्यमिक विद्यालय के शिक्षकों की शिक्षक प्रभावशीलता और शिक्षण योग्यता के बीच महत्वपूर्ण संबंध को दर्शाता है और ‘टी‘ परीक्षण सांख्यिकीय प्रक्रियाओं से लिंग और स्कूल प्रबंधन के प्रकार के कारक शिक्षण में प्रभावशीलता पर प्रभाव डालते हैं।पुरुष शिक्षकों की तुलना में महिला शिक्षकों की शिक्षण में प्रभावशीलता अधिक थी और निजी सहायता प्राप्त और सरकारी स्कूलों के शिक्षकों की तुलना में निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूल के शिक्षकों की प्रभावशीलता अधिक थी। अध्ययन से पता चलता है कि शिक्षकों की प्रभावशीलता में सुधार के लिए अच्छी तरह से पर्यवेक्षित प्रथाओं के माध्यम से शिक्षकों के बीच योग्यता कौशल विकसित करने पर और अधिक ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।
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Kavita, Namdev, Chhaya Shrivastava Dr. та Vikrant Sharma Dr. "बच्चों की नैतिक शिक्षा में स्कूलों की भूमिका". International Journal of Advance Research in Multidisciplinary 2, № 3 (2025): 502–6. https://doi.org/10.5281/zenodo.15174543.

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Abstract:
शिक्षा को प्रगति में एक महत्वपूर्ण पहलू के रूप में जाना जाता है। शिक्षा किसी भी समाज के विकास के लिए महत्वपूर्ण है और किसी भी देश के विकास की रीढ़ है क्योंकि यह लोगों के ज्ञान, कौशल, आदतों, मूल्यों या दृष्टिकोण और समझ को बढ़ाती है। इस बात पर बहुत अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए कि शिक्षा किस तरह से छात्रों को आवश्यक ज्ञान और जानकारी प्रदान करती है। स्कूल नामक एक छोटे से समुदाय में, एक शिक्षक को अपने छात्रों को वास्तविक समाज से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए प्रशिक्षित करना होता है। नैतिक शिक्षा एक महत्वपूर्ण पहलू है जिस पर एक शिक्षक को जोर देना चाहिए स्कूल को "प्रत्यक्ष निर्देश" के एक वाहन के रूप में पहचाना गया है, जिसका संवाहक शिक्षक है।यह पाया गया है कि शिक्षा के विभिन्न स्तरों के छात्रों में मूल्यों के बारे में जानने की गहरी रुचि है और मूल्य शिक्षा और आध्यात्मिकता के पाठ्यक्रम के बारे में जानने के बाद, छात्रों में जीवन में मूल्यों को अपनाने की इच्छा अंकुरित हुई है।
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सुश्री प्रवीना, सुश्री प्रवीना, जसविंदर मलिक जसविंदर मलिक та श्रीमती संध्या रानी श्रीमती संध्या रानी. "नई शिक्षा नीति में विशिष्ट अक्षमता वाले बच्चों के लिए नई स्कूल नीति में नवीनतम प्रावधान". International Journal of Information Technology and Management 17, № 3 (2024): 7–11. http://dx.doi.org/10.29070/24b4dz98.

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Abstract:
नई शिक्षा नीति 2020, जुलाई 2020 में भारत के केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित, बाधा-मुक्त को प्रोत्साहित और बढ़ावा देता है दिव्यांग सभी बच्चों के लिए शिक्षा तक पहुंच। भारत की पहली शिक्षा नीति 1986 में प्रारंभ की गई तथा 1992 में अंतिम बार संशोधित की गई। तब से, भारत को अपनी संपूर्ण शिक्षा में बदलाव की आवश्यकता थी,नई शिक्षा नीति उन बहुप्रतीक्षित नए सुधारों का वर्णन करती है जिनकी भारत को तलाश थी।इस तरह की नई स्कूल नीति के तहत उन परिवार तथा उन परिवार के दिव्यांग बच्चों के लिए सभी सुविधाएं उनके अनुकूलित हो एक ऐसे समाज का निर्माण किया जा रहा है।नई शिक्षा नीति दिव्यांग छात्रों हेतु एक नई सोच को लेकर आई है जिसके माध्यम से दिव्यांग छात्र छात्राएं बाधा मुक्त वातावरण में शिक्षा ग्रहण कर अपना जीवन यापन कर सकते हैंनई शिक्षा नीति दिव्यांग छात्रों को पढ़ाने हेतु 2 नियमों पर सबसे अधिक जोर डालती है की इनके लिए पठन-पाठन की सामग्री इनके अनुकूलित हो तथा पढ़ाने के तरीके में भी विशिष्ट प्रकार की शिक्षण नीतियों का प्रयोग किया जाए। दिव्यांग छात्रों को प्री-स्कूल और प्राथमिक शिक्षा तकपहुंचने में सबसे ज्यादा बाधा दिखाई देती है । 47 से कम स्कूल भवनों में रैंप हैं, और केवल लगभग 27 स्कूलों में हैं सुलभ शौचालय,इनके अलावा ऐसी और भी बाधाएं हैं जो अनेकों स्कूलों में देखने को मिलती हैं छात्रों को कक्षा कक्ष में बैठने का उचित प्रबंध नहीं है तथा इसके साथ-साथ भवन में आवागमन करने का सही स्थान भी उपलब्ध नहीं है दिव्यांगजन अधिनियम 2016 के अनुसार 21 प्रकार की दिव्यांगताए हमारे आसपास हैं इन सभी को शिक्षा में अनेकों समस्याओं का सामना करना पड़ता है।नई शिक्षा नीति के तहत दिव्यांग बच्चे एक समान रूप से शैक्षिक प्रणाली के प्रत्येक पहलू में भाग ले सकेंगे तथा सभी प्रावधानों के अनुसार हर प्रकार की सुविधा ले सकेंगे इसके साथ-साथ दिव्यांग संपूर्ण समुदाय में आवागमन भी एक सामान्य जन की तरह करने में सक्षम होंगे शिक्षा के क्षेत्र में आने वाले वर्षों में दिव्यांगों को किसी भी समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा। यह पत्र नई शिक्षा में दिए गए प्रावधानों पर केंद्रित है दिव्यांगजनों के लिए नीति 2020 यह दर्शाने के लिए कि कैसे उनके लिए शिक्षा उन तक पहुँचने के लिए बाधा मुक्त वातावरण होना चाहिए।यह दिव्यांगजनों को शिक्षा की मुख्यधारा में लाने का भी एक कदम है
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Bimla та Gupta Sakshi. "शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्यः एक अध्ययन". RECENT EDUCATIONAL AND PSYCHOLOGICAL RESEARCHES 13, № 2 (2024): 62–65. https://doi.org/10.5281/zenodo.13336589.

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Abstract:
आधुनिक समय में बच्चे को शिक्षित करने पर जोर देने के साथ शिक्षा के समग्र दृष्टिकोण के रूप में परिलक्षित होता है। दूसरा प्रभाव मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं सहित पुरानी बीमारियों की महामारी विज्ञान के लिए जीवन पाठ्यक्रम दृष्टिकोण से आता है। शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देना व्यक्तिगत, सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। बच्चों और युवाओं के जीवन में उनकी केंद्रीय भूमिका के कारण, स्कूलों को शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए प्रभावी समर्थन और हस्तक्षेप के स्थानों के रूप में व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त है। स्वास्थ्य परिणामों को बेहतर बनाने में एचपीएस और सीएसएच कार्यक्रमों की प्रभावशीलता के बहुत कम सबूत हैं। एक सफल स्वास्थ्य संवर्धन पहल का एक प्रमुख तत्व साक्ष्य-आधारित कार्यक्रमों का चयन और स्कूल जिलों द्वारा उनका लगातार कार्यान्वयन है। इस संदर्भ में, कार्यान्वयन की निगरानी करना और परिणामों को मापना महत्वपूर्ण है। हम शिक्षकों के चयन, कार्यान्वयन और कार्यक्रमों के मूल्यांकन के तरीके में बदलाव का सामना कर रहे हैं।
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विश्वकर्मा, रामकिशोर. "सवर्ण छात्राओं एवं अनुसू‍चित जाति की छात्राओं के नैराश्‍य का तुलनात्मक अध्ययन करना". Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education 21, № 7 (2024): 419–24. https://doi.org/10.29070/t8b2ey13.

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Abstract:
स्कूल समुदाय के भीतर किशोर महिलाओं के बीच नैराश्य प्रमुख मानसिक स्वास्थ्य चिंताएँ हैं और ये स्कूलों में मनोवैज्ञानिक सेवा प्रदाताओं पर कई प्रभाव डालते हैं। इस अध्ययन का उद्देश्य सागर जिले के उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों के सवर्ण एवं अनुसूचित जाति के छात्राओं में नैराश्य का तुलनात्मक अध्ययन करना है। शोध के लिए उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों के 16 से 18 वर्ष के बीच 500 छात्राओ का चयन किया गया है जिसमें 250 सवर्ण जाति के छात्रा एवं 250 अनुसूचित जाति के छात्रा सम्मिलित हैं। शोधकर्ता ने सवर्ण एवं अनुसूचित जाति के किशोरवय छात्राओं के नैराश्य के मापन के लिए डॉ. एन.एस. चैहान एवं डॉ. गोविन्द तिवारी द्वारा संरचित एवं मानकीकृत परीक्षण ‘‘नैराश्य परीक्षण मापनी’’ का उपयोग अपने शोध अध्ययन में किया है। नैराश्य परीक्षण के विभिन्न चरों का अलग-अलग अध्ययन, मानक विचलन एवं दोनों समूहों की तुलना का ‘टी’ परीक्षण द्वारा टी मूल्य ज्ञात किया गया। अध्ययन के परिणामों से यह निष्कर्ष प्राप्त हुए कि सवर्ण एवं अनुसूचित जाति के छात्राओं की नैराश्य के स्तर पर सार्थक अंतर नहीं पाया गया।
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सारण, सोनू. "बहुभाषी शिक्षा की अनिवार्यता और मातृभाषा आधारित शिक्षा". Humanities and Development 19, № 02 (2024): 8–12. https://doi.org/10.61410/had.v19i2.182.

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Abstract:
भारत की भाषाई विविधता इसकी समृद्ध सांस्‟तिक टेपेस्ट्री का प्रमाण है, फिरभी इस विविधता को इसके शैक्षिक ढांचे में पूरी तरह से एकी‟त नहीं किया गया है। विशेषकर शहरी केंद्रों में अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा का प्रचलन, मातृ भाषा आधारित शिक्षा के संभावित लाभों को कम कर देता है। यह शोध पत्र भाषाई विविधता को सुरक्षित रखने, अधिगम को बढ़ावा देने तथा स्कूलों में समावेशिता को बढ़ावा देने के साधन के रूप में बहुभाषी शिक्षा और मातृ भाषा-आधारित शिक्षा की अनिवार्यता पर प्रकाश डालता है।
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Anita, Nagle, Santosh Salve Dr. та Archana Tripathi Dr. "सांस्कृतिक प्रथाओं, नीतियों और धार्मिक मूल्यों के गोंड जनजाति की महिलाओं की सामाजिक और आर्थिक स्थिति पर प्रभाव की जाँच करना". International Journal of Advance Research in Multidisciplinary 2, № 3 (2024): 497–501. https://doi.org/10.5281/zenodo.15174008.

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Abstract:
भारत में आदिवासी महिलाएँ आदिवासी पुरुषों की तुलना में अधिक मेहनती हैं और वे अपने परिवार की आय में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं लेकिन उनकी आय के स्रोत सीमित हैं। कम आय के कारण अधिक हाथ श्रम की आवश्यकता होती है जिसके परिणामस्वरूप वे अपने बच्चों को औपचारिक स्कूलों में भेजने से हिचकते हैं। अध्ययन का उद्देश्य समग्र सूचकांक के अंतर्गत आने वाले तथ्यों को उजागर करना है; मध्य प्रदेश के गोंड जनजाति की सामाजिक-आर्थिक, स्वास्थ्य और शिक्षा की स्थिति। अध्ययन ने इस तथ्य को उजागर किया कि क्या आदिवासी लोग इन क्षेत्रों में चल रहे शिक्षा और स्वास्थ्य से संबंधित सरकारी कार्यक्रमों के बारे में जागरूक और लाभान्वित हैं या नहीं। शोधकर्ता द्वारा प्राथमिक डेटा अप्रैल माह 2021 के दूसरे सप्ताह के दौरान एकत्र किया गया है।
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प्रियंका, रंजन. "छात्रों में मानसिक स्वास्थ्य : एक व्यापक अध्ययन". International Educational Scientific Research Journal 10, № 6 (2024): 40–42. https://doi.org/10.5281/zenodo.12545616.

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Abstract:
मानसिक स्वास्थ्य एक वैश्विक शब्द है, जो व्यक्ति की उस स्थिति को संदर्भित करता है जो मन की कार्यप्रणाली से उत्पन्न होती है।मानसिक स्वास्थ्य निस्संदेह हमारी सबसे कीमती संपत्तियों में से एक है, जिसे जितना संभव हो सके पोषित, बढ़ावा और संरक्षित किया जाना चाहिए। यह मन की वह स्थिति है जिसमें व्यक्ति उत्पादक रूप से काम करते हुए, दूसरों के साथ सार्थक रूप से बातचीत करते हुए और शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक रूप से कार्य करने की क्षमता खोए बिना प्रतिकूलताओं का सामना करते हुए जीवन का निरंतर आनंद अनुभव कर सकता है। आज मानसिक स्वास्थ्य और उससे जुड़े क्षेत्रों को बहुत महत्व दिया जा रहा है क्योंकि यह पाया गया है कि खराब मानसिक स्वास्थ्य स्थिति किसी व्यक्ति को कोई भी प्रगतिशील गतिविधि करने से रोक सकती है। स्कूल जाने वाले किशोर बचपन और वयस्कता के बीच के संक्रमण काल में होते हैं, जिसके दौरान बड़े शारीरिक, संज्ञानात्मक और मनोवैज्ञानिक परिवर्तन होते हैं। आज के युवा किशोर आत्महत्या से संबंधित मुद्दों से निपटते हैं; और कई अन्य सामाजिक, भावनात्मक, शारीरिक और मनोवैज्ञानिक मुद्दे। ये आंतरिक तनाव और सामाजिक अपेक्षाएँ किशोरों में अस्पष्टता, आत्म-संदेह और निराशा के क्षणों को जन्म देती हैं। ऐसी स्थितियों में युवा व्यक्ति जोखिम उठाता है और जोखिम लेने वाले व्यवहारों में शामिल होतायह लोगों की भावनात्मक स्थिरता और बौद्धिक दक्षता को दर्शाता है। वर्तमान परिस्थितियों में, स्कूलों में पढ़ने वाले किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने, ठीक करने और सुधारने के लिए किशोरावस्था का अध्ययन आवश्यक हो जाता है।
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गुलशन, कुमार. "हरियाणा राज्य के जिला व ब्लाॅक नूंह स्थित राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय और सीबीएसई उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों के विद्यार्थियों के बीच मोबाइल की आदत का तुलनात्मक अध्ययन". RECENT EDUCATIONAL & PSYCHOLOGICAL RESEARCHES 12, № 4 (2023): 22–26. https://doi.org/10.5281/zenodo.10445140.

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Abstract:
कोविड महामारी के दौरान बच्चों ने ऑनलाइन स्टडी के लिए स्मार्टफोन का इस्तेमाल बहुतायत में किया। जिससे बच्चे पढ़ाई के बावजूद मोबाइल फोन की लत की ओर तेजी से बढ़ गये। स्कूलों में ऑफलाइन कक्षाएं शुरू हो गई हैं, परन्तु विद्यार्थियों में स्मर्टफोन की लत कम नहीं हुई। जो माता-पिता व षिक्षकों के लिए चिंताजनक स्थिति है। अधिकांश अभिभावक अपने बच्चों को मोबाइल से दूर रखने के उपाय खोज रहे हैं। मोबाइल से निकलने वाले रेडिएशन से बच्चे नई बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। फोन की लत इस कदर बढ़ गई है कि बच्चें आक्रामक हो रहे हैं। प्रस्तुत शोध में हरियाणा राज्य के जिला व ब्लाॅक नूंह के विद्यार्थियों के बीच मोबाइल की आदत की जांच की गई है। जिसमें कुल 36 विद्यार्थियों ने भाग लिया। प्रतिषत एवं टी-टेस्ट विधि का प्रयोग किया गया है। 
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राजेंद्र कुमार राजपूत. "भारतीय युवाओं में नैतिक मूल्यों का संकट: मूल्य आधारित अभ्यास शिक्षा". International Journal of Multidisciplinary Research in Arts, Science and Technology 2, № 1 (2024): 17–23. http://dx.doi.org/10.61778/ijmrast.v2i1.33.

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Abstract:
आज के सन्दर्भ में मूल्यपरक शिक्षा की आवश्यकता को नकारा नहीं जा सकता। इन दिनों हम सब हैं घोर उपभोक्तावाद और आत्म संतुष्टि के लिए आक्रामकता से घिरा हुआ। इसके अलावा दुनिया भर में सामाजिक व्यवस्था बड़े बदलाव के दौर से गुजर रही है। उदाहरण के लिए, भारतीय परिदृश्य में, हम धीरे-धीरे संयुक्त परिवार प्रणाली से एकल परिवार प्रणाली की ओर बढ़ रहे हैं। साथ ही कहते हैं, आजकल की तेज रफ्तार जीवनशैली के कारण विशेषकर युवा पीढ़ी में तनाव का स्तर काफी अधिक है। धार्मिक कट्टरता, परमाणु हथियारों का भंडार और आतंकवादी गतिविधियाँ जैसे कारक वैश्विक शांति के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रहे हैं। हमारे युवाओं का पश्चिमी जीवन शैली एवं संस्कृति की ओर झुकाव स्वाभाविक है। यह झुकाव ही नहीं है युवाओं तक ही सीमित, लगभग हर कोई जमा करने की गलाकाट प्रतिस्पर्धा की अंधी दौड़ में भाग ले रहा है अधिक पैसा और आराम और मौज-मस्ती की चीज़ें। हाल के वर्षों में युवाओं, विशेषकर किशोरों द्वारा किए गए अपराधों के प्रतिशत में वृद्धि ने एक बड़ी चिंता पैदा कर दी है और शायद समस्या हमारे बच्चों को प्रदान की जाने वाली शिक्षा की गुणवत्ता में है। आज के माता-पिता बच्चे के सर्वांगीण विकास को नजरअंदाज कर बच्चे की शैक्षिक उपलब्धियों पर आधारित भौतिकवादी शिक्षा पर अधिक जोर दे रहे हैं। आज के दौर में शिक्षा की दिशा भटकाने के लिए सिर्फ माता-पिता ही नहीं बल्कि शिक्षक और स्कूल भी जिम्मेदार हैं। दरअसल हमारे स्कूलों और कॉलेजों का पाठ्यक्रम और पाठ्यचर्या भी बच्चे को अधिक मूल्य सिखाने के लिए अनुकूल नहीं है। लेकिन अब माता-पिता और शिक्षक दोनों ने व्यक्ति के जीवन में मूल्य शिक्षा के महत्व को पहचान लिया है। आसानी से बचपन में स्कूल जाने से पहले माता-पिता की जिम्मेदारी है कि वे बच्चे में आवश्यक मानवीय मूल्यों को शामिल करें और हमेशा स्पष्टीकरण, प्राथमिक जिम्मेदारी, व्यवहार, ग्रहों का सहयोग, न्याय के साथ काम करना, समानता, संतुलन, पारस्परिकता और साझा करना, और मानवतावादी आध्यात्मिक संस्कृति जैसे "ओउम" तीर्थयात्रियों, दिव्य जंगलों के ध्यान अभ्यास के रूप में।
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Kavita, Namdev, Chhaya Shrivastava Dr. та Vikrant Sharma Dr. "स्कूलों में मूल्यों और अपनाई गई विधियों पर प्रधानाचार्यों के विचारों के अंकों के वितरण की प्रकृतिऔर कॉलेज". International Journal of Trends in Emerging Research and Development 2, № 6 (2024): 125–29. https://doi.org/10.5281/zenodo.15175742.

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Abstract:
शोध अध्ययन की परिकल्पना विद्वान द्वारा इस अध्ययन के लिए छात्रों की प्रतिक्रियाओं को जानने के लिए की गई थी और प्रश्नावली में शामिल प्रश्नों के उत्तर देने के आधार पर उत्तरदाता छात्रों द्वारा इस अध्ययन में भाग लेने की इच्छा से बहुत संतुष्ट महसूस किया। विद्वान अध्ययन के उद्देश्य को बहुत रोचक तरीके से समझाते थे सर्वेक्षण विधि के लाभ वर्तमान स्थिति, घटना या बात का वर्णन किया जाता है। सुधार और संशोधन के लिए सुझाव भी दिए जाते हैं। सर्वेक्षण में कई लोगों की राय जानी जाती है। धर्म की गलतफहमी के परिणामस्वरूप पूरे देश में नागरिकों के बीच मतभेद और अविश्वास बढ़ गया है। अंधापन धार्मिक या धार्मिक विश्वास का प्रत्यक्ष परिणाम है। परिकल्पना मुख्य रूप से मूल्य शिक्षा और आध्यात्मिकता पाठ्यक्रम की आवश्यकता और छात्रों पर इसके प्रभाव पर केंद्रित थी।
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Biml та Poonam. "उच्च माध्यमिक विद्यालयों में अध्यनरत कला, विज्ञान व वाणिज्य संकाय के छात्र-छात्राओं में पर्यावरण मूल्य का तुलनात्मक अध्ययन". Recent Educational and Psychological Researches 13, № 2 (Apr.-May-Jun.-2024) (2024): 31–35. https://doi.org/10.5281/zenodo.13320696.

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Abstract:
विश्व आज पर्यावरणीय समस्याओं से जूझ रहा है। पर्यावरण प्रदूषण, स्वच्छ पेयजल, अतिवृष्टि, सूखा आदि समस्याएं बढ़तीजा रही हैं, लेकिन इन सभी समस्याओं का समाधान पर्यावरण संतुलन में है और इस संतुलन के लिए लोगों में पर्यावरणीयमूल्यों और उचित पर्यावरणीय व्यवहार के विकास की आवश्यकता है। जनसंख्या राष्ट्र से ही प्राप्त की जा सकती है। इसउद्देश्य के लिए, छात्रों को पर्यावरण की बुनियादी अवधारणाओं और पर्यावरणीय मुद्दों का ज्ञान बहुत महत्वपूर्ण है। प्राकृतिकसंसाधनों के महत्व एवं आवश्यकताओं के साथ-साथ उनके संरक्षण एवं प्रबंधन के प्रति जागरूकता के बिना विद्यार्थियों मेंपर्यावरणीय मूल्यों का विकास संभव नहीं है। छात्रों को यह समझना चाहिए कि पृथ्वी एक है लेकिन ब्रह्मांड एक नहीं है।हम सभी जीवन को बनाए रखने के लिए जीवमंडल पर निर्भर हैं। इस शोध में शोधकर्ता ने सर्वेक्षण विधि का प्रयोग किया।विभिन्न स्कूलों के बीच औसत अंतर की विश्वसनीयता निर्धारित करने के लिए टी-स्कोर की गणना की जाती है।
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कपिल, देव, та कौशल शर्मा डॉ. "कार्य संतुष्टि और शिक्षण मनोवृत्ति के बीच संबंधः एक आलोचनात्मक विश्लेषण". International Journal of Contemporary Research In Multidisciplinary 3, № 4 (2024): 58–60. https://doi.org/10.5281/zenodo.13118015.

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Abstract:
इस शोध अध्ययन का मुख्य उद्देश्य उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के बड़ौत क्षेत्र के माध्यमिक विद्यालयों में कार्यरत पुरुष और महिला शिक्षकों की कार्य संतुष्टि और शिक्षण दृष्टिकोण के बीच संबंध का पता लगाना है। इस उद्देश्य के लिए ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के स्कूलों से 500 माध्यमिक विद्यालय के शिक्षकों, 250 पुरुष शिक्षकों और 250 महिला शिक्षकों का चयन किया गया। माध्यमिक विद्यालयों के चयन के लिए यादृच्छिक नमूनाकरण विधि जबकि पुरुष और महिला शिक्षकों के चयन में कोटा नमूनाकरण विधि का उपयोग किया गया। कार्य संतुष्टि और शिक्षण दृष्टिकोण के बीच संबंध का पता लगाने के लिए 0.01 और 0.05 स्तरों पर महत्व की टी-परीक्षण तकनीक और दो चर के बीच सहसंबंध का उपयोग किया गया था। अध्ययन के बाद यह पाया गया कि पुरुष और महिला माध्यमिक विद्यालय के शिक्षकों की कार्य संतुष्टि और शिक्षण दृष्टिकोण के बीच महत्वपूर्ण अंतर है। माध्यमिक विद्यालयों में कार्यरत पुरुष और महिला शिक्षकों की कार्य संतुष्टि और शिक्षण दृष्टिकोण के बीच एक महत्वपूर्ण संबंध भी पाया गया । 
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दिवाकर, असित. "झारखंड के जनजातियों में शिक्षा का स्थिति एवं उससे संबंधित समस्याओं की भौगोलिक विश्लेषण". Journal of Research & Development 17, № 4 (2025): 125–30. https://doi.org/10.5281/zenodo.15544518.

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Abstract:
<strong><em>सारांश</em></strong> <em>झारखंड भारत का एक प्रमुख जनजातीय बहुल राज्य है जहाँ विभिन्न जनजातियों का जीवन, संस्कृति और सामाजिक संरचना शिक्षा की दिशा में विशेष प्रभाव डालती है। इस अध्ययन का मुख्य उद्देश्य झारखंड के जनजातीय समुदायों में शिक्षा की वर्तमान स्थिति और उससे जुड़ी समस्याओं का भौगोलिक विश्लेषण करना है। राज्य के सुदूर और दुर्गम इलाकों में रहने वाले जनजातीय समूहों को शिक्षा के अवसरों से वंचित रहना पड़ता है, जिसका प्रमुख कारण सामाजिक, आर्थिक, भौगोलिक और सांस्कृतिक अवरोध हैं। अध्ययन से यह सामने आता है कि भौगोलिक बाधाएं जैसे खराब सड़कें, स्कूलों की दूरी और संचार व्यवस्था की कमी शिक्षा के स्तर को प्रभावित करती हैं। इसके अलावा, गरीबी, बेरोजगारी, भाषा की कठिनाइयाँ, लैंगिक असमानता और पारंपरिक सोच भी बड़ी चुनौतियाँ हैं। सरकार द्वारा चलाए जा रहे शिक्षा मिशनों और योजनाओं के बावजूद भी जमीनी स्तर पर अपेक्षित सुधार देखने को नहीं मिल रहा है। यह विश्लेषण बताता है कि यदि शिक्षा के क्षेत्र में स्थान-विशेष की जरूरतों और जनजातीय संस्कृति का सम्मान करते हुए योजनाएँ बनाई जाएँ तो सुधार की संभावना अधिक है। इस अध्ययन का निष्कर्ष इस ओर संकेत करता है कि जनजातीय बच्चों के लिए सुलभ, स्थानीय भाषा में और सांस्कृतिक अनुकूल शिक्षा कार्यक्रम आवश्यक हैं ताकि वे मुख्यधारा से जुड़ सकें और अपने सामाजिक-आर्थिक स्तर में सुधार कर सकें।</em>
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Neeraj, Bhardwaj, та Dhirendra Singh Yadav Dr. "वर्तमान परिदृश्य में उच्च माध्यमिक स्तर पर कार्यरत शिक्षकों पर सोशल मीडिया का प्रभाव". दृष्टिकोण कला, मानविकी, एवं वाणिज्य की मानक शोध पत्रिका, ISSN 0975-119X, UGC CARE LISTED, Impact Factor 5.051 13, अंक 1 जनवरी फरवरी 2021 (2021): 3813–18. https://doi.org/10.5281/zenodo.6911774.

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Abstract:
21वीं सदी में कंप्यूटर एक कैसेट बन गया है तथा इंटरनेट का जाल विश्वव्यापी फैल चुका है। ऐसे में विभिन्न देशों क्षेत्रों में व्यक्तियों के बीच संवाद बनाने के लिए एक मंच के रूप में सोशल मीडिया आज सबसे महत्व भूमिका निभा रहा है, जिसमें विभिन्न मंच जैसे <strong>Facebook</strong>, <strong>Twitter</strong>, <strong>WhatsApp</strong>, <strong>LinkedIn,</strong> <strong>Instagram</strong> आदि, आज लोगों के विचारों की अभिव्यक्ति के लिए उपयोग किए जाते हैं। सोशल मीडिया का प्रयोग व महत्व लगातार बढ़ता जा रहा है। यहां तक की इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया भी इसके प्रभाव को स्वीकारने लगे हैं, कई लोग सोशल मीडिया को जनमत तैयार करने का एक उपक्रम भी मान रहे हैं। सोशल मीडिया भी सही मायने में पत्रकारिता का एक हिस्सा है, जहां व्यक्ति स्वयं ही लेखक, संपादक, प्रकाशक, विज्ञापनकर्ता व वितरक है, यहां उसे अपने लेख, कविता, कृति, समाचार व विचार आदि को प्रकाशित करने के लिए मीडिया हाउस के चक्कर नहीं लगाने पड़ते हैं । 2015 &nbsp;के एक अध्ययन से पता चला है, कि छात्र और वयस्क पहले से कहीं अधिक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे <strong>Instagram, Twitter, What&rsquo;s app, Telegram, You Tube</strong> आदि का उपयोग कर रहे हैं । इन प्लेटफार्म का प्रयोग ना केवल अन्य छात्रों के साथ संपर्क करने के लिए करते हैं, बल्कि अपने स्कूल में चल रही प्रतिक्रियाओं को पता करने के लिए भी करते हैं। 2021 में कई स्कूलों में सोशल मीडिया आउटलेट का उपयोग करने के लिए अनुकूलित माना गया, कई विद्यालयों के तो अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स हैं, जिसमें विद्यालय से संबंधित प्रासंगिक चीजें पोस्ट की जाती हैं, ऐसी घटनाओं कार्यों के बारे में पोस्ट कर सकते हैं, उसी प्रकार शिक्षक भी छात्रों के साथ बातचीत करने के लिए सोशल मीडिया का प्रयोग कर सकते हैं। &nbsp;वे अपनी कक्षाओं और व्याख्यानों को रिकॉर्ड करने के लिए <strong>You Tube</strong>,<strong>Cisco WebEx, Google Meet </strong>और <strong>Zoom</strong> जैसे प्लेटफार्म का प्रयोग कर सकते हैं। सोशल मीडिया शिक्षकों को अच्छी डिजिटल प्रौद्योगिकी सिखाने और उत्पादकता के लिए इंटरनेट का उपयोग करने का अवसर प्रदान करती है। 2022 तक प्रौद्योगिकी ने बहुत अधिक विस्तार कर लिया है यह कोरोना काल में एक वैश्विक महामारी के रूप में सामने आया है उस समय जब स्कूल विद्यालय महाविद्यालय बंद हो गए थे तब सोशल मीडिया और ऑनलाइन शिक्षण के माध्यम से ही छात्रों को शिक्षा प्रदान की गई इस प्रकार वर्तमान समय में प्रौद्योगिकी वह सोशल मीडिया ने उस काल में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई उसी के परिणाम स्वरूप आज वर्तमान समय में शिक्षक अपने छात्रों तक पहुंचने के लिए कई अलग-अलग प्रकार के आउटलेट का प्रयोग करते हैं, जिसे <strong>Zoom, Instagram, Google &nbsp;Classroom, Canvas</strong> &nbsp;और भी कई, जिनके माध्यम उनका छात्रों के साथ जुड़ना व संवाद करना आसान हो जाता है। संकेत शब्द : सोशल मीडिया, फेसबुक, व्हाट्सएप, ट्विटर,&nbsp; यूट्यूब, टेलीग्राम,&nbsp; इंस्टाग्राम, सोशल मीडिया का शिक्षा में प्रभाव
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Rubi, Kumari, та MS Mishra Dr. "बच्चों की शिक्षा में माता-पिता की भागीदारी". International Journal of Advance Research in Multidisciplinary 1, № 1 (2023): 530–33. https://doi.org/10.5281/zenodo.13189665.

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Abstract:
माता-पिता की भागीदारी एक सामाजिक-मनोवैज्ञानिक अवधारणा है जिसे कई अध्ययनों में कई तरीकों से अवधारणाबद्ध किया गया है। माता-पिता की भागीदारी एक बहुआयामी संरचना है जिसमें कई व्यवहार और गतिविधियाँ शामिल हैं। एकल वैचारिक ढांचे में माता-पिता की भागीदारी शब्द का वर्णन करना बहुत कठिन है। युवा यह स्पष्ट करते हैं कि वे नहीं चाहते कि उनके पालन-पोषण और स्कूली शिक्षा में उनके माता-पिता वही बड़ी भूमिका निभाएँ जो वे पहले निभाते थे। कई अभिभावक-छात्र गतिविधियाँ जो बच्चों को प्राथमिक विद्यालय में स्वीकार्य लगती हैं, जैसे कक्षाओं के लिए पंजीकरण करना, स्कूल के कार्यक्रमों में भाग लेना, या स्कूल से आना-जाना, मध्य और उच्च विद्यालय के छात्रों द्वारा केवल छात्र-छात्र कार्यक्रमों के रूप में देखा जाता है।
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शिवानी, कुमारी, та विश्वनाथ झा डॉ०. "किशोरावस्था में नशाखोरी के कारण मनोदैहिक विचलन का सामाजिक प्रभाव". 'Journal of Research & Development' 14, № 15 (2022): 55–58. https://doi.org/10.5281/zenodo.7309557.

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Abstract:
<strong>सारांश:- </strong>आजकल युवाओं द्वारा नशा करने के लिए व्यापक रूप से नशीली दवा का प्रयोग किया जाता हैं। नशीली दवाओं के दुरुपयोग और नशीली दवाओं का खतरा सीमित संख्या में पदार्थों का अवैध, गैर-चिकित्सा उपयोग है, जिनमें से अधिकांश में किसी व्यक्ति की मानसिक स्थिति को बदलने के गुण होते हैं जिन्हें सामाजिक मानदंडों द्वारा माना जाता है और क़ानून द्वारा अनुपयुक्त होने के लिए परिभाषित किया जाता है। शराब, हेरोइन, कोकीन, अफीम और मारिजुआना नशीली दवाओं का दुरुपयोग अवांछित, हानिकारक और उपयोगकर्ता के जीवन और बड़े पैमाने पर समाज के लिए खतरा है। आमतौर पर, युवा इस नशीली दवा के खतरे और इसके दुरुपयोग का निशाना बनते प्रतीत होते हैं। जिज्ञासा, साथियों का दबाव, और सिगरेट और शराब जैसी दवाओं की उपलब्धता, युवाओं में नशीली दवाओं के दुरुपयोग के तत्काल कारण हैं। बुरे साथियों की संगति में, खासकर सीनियर हाई स्कूलों में दोस्तों पर नशीली दवाओं के इस्तेमाल के लिए दबाव डाला जाता है। हमारे टेलीविजन स्टेशनों और हमारे रेडियो स्टेशनों पर शराब, सिगरेट और अन्य गैर-औषधीय दवाओं के लिए एक &quot;नग्न&quot; विज्ञापन है। ये हानिकारक दवाएं हैं, जिन्हें प्रदर्शन बढ़ाने के लिए अच्छा होने के लिए प्रस्तुत किया जा रहा है। इन दवाओं को जनता को रेचक के रूप में भी दिखाया जाता है, और सबसे अधिक परेशान करने वाली बात यह है कि जिन स्थानों पर इन्हें बड़ी मात्रा में खरीदा जा सकता है, उन्हें जनता के लिए घोषित किया जाता है। युवाओं और समाज के लिए दवाओं की उपलब्धता समाज के लिए एक कारण और कैंसर दोनों है। आज के युवा बहुत जिज्ञासु हैं। वे जो कुछ भी देखते और सुनते हैं उसकी प्रभावशीलता का परीक्षण करना चाहते हैं। यह जिज्ञासा कभी-कभी घातक हो जाती है, यहाँ तक कि मृत्यु तक भी। कुछ अपनी जिज्ञासा से, नशीले पदार्थों से निपटने में लग जाते हैं और व्यसनी बन जाते हैं। इस आलेख में, इस खतरे के कारणों, प्रभावों और नियंत्रण का पता लगाने&nbsp; और नशीली दवाओं के दुरुपयोग के सामाजिक और सांस्कृतिक पहलुओं को भी उजागर करने का प्रयास किया गया है। &nbsp;
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मिश्र Mishra, विजयप्रसाद Bijaya Prasad. "बी.पी.कोइरालाको संक्षिप्त जीवनी". HISAN: Journal of History Association of Nepal 10, № 1 (2024): 222–30. https://doi.org/10.3126/hisan.v10i1.74932.

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Abstract:
नेपालका प्रथम जननिर्वाचित प्रधानमन्त्री विश्वेश्वरप्रसाद कोइराला (बी.पी.कोइराला) को जन्म वि.सं.१९७१ साल भदौ २४ गते तद्नुसार १४ अगस्ट १९१४ मा भारतको बनारसमा भएको थियो । वि.सं.२०३९ साउन ६ गते उनको देहवसान भयो । सन् १९२७ मा कक्षा आठमा बनारसको हरिश्चन्द्र स्कूलमा बी.पी.भर्ना भएका थिए । महात्मा गान्धीले सन् १९२०–२१ मा शुरु गरेको असहयोग आन्दोलनमा बच्चाकै बेला स्कूल पढ्दा बीपीले मैले आजदेखि सरकारी स्कूल छाँडे भनेकै कारण बीपीलाई मञ्चमा लगेर गान्धीले फूलमाला लगाई दिएका थिए । त्यहाँबाट बीपीको राजनीतिक यात्रा शुरु भएको हो । नोभेम्बर १९४६ मा बीपी कोइरालाले देशका तरुणहरुलाई पार्टी खोल्नु पर्दछ भनेर एउटा बक्तव्य जारी गरेका थिए । भारतीय स्वतन्त्रताको प्रभावमा भारतमा वीपी कोइरालाको प्रयासमा नेपाली राष्ट्रिय काङ्ग्रेसको गठन भयो । कलकत्ताको सम्मेलनबाट नेपाली राष्ट्रिय काँग्रेस (बनारसवालाहरुको कमिटि) र नेपाली प्रजातान्त्रिक काँग्रेस कलकत्तावालाहरुको कमिटी मिलेर नेपाली काँग्रेस बन्यो । नेपाली काँग्रसलाई वि.सं.२०१२ सालमा बीरगञ्जमा भएको महाधिवेशनबाट समाजवादी पार्टीको रुपमा स्थापित गर्न बीपी सफल भएका थिए । वि.सं.२०१५ सालको निर्वाचनबाट नेपालको प्रथम जननिर्वाचित प्रधानमन्त्री भएका बीपीलाई राजा महेन्द्रको आदेशमा सेनाले वि.सं.२०१७ साल पुस १ गिरफ्तार गरी जेलमा राखेको थियो । पछि जेलबाट छुटेर भएर निर्वासित जीवन विताउन बाध्य भएका बीपी वि.सं.२०३३ पुस १६ गते राष्ट्रिय मेलमिलापको नीति लिएर नेपाल फर्किएका थिए । वि.सं.२०३९ साउन ६ गते उहाँको निधन भएको थियो । नेपालमा प्रजातन्त्र ल्याउनका लागि बी.पी.ले गरेको योगदान अविस्मरणीय छ । प्रस्तुत अध्ययन बी.पी. कोरालाको जीवनीमा आधारित रहेको छ ।
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Pandey, Sandeep. "Role and challenges of online education in present times." RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 8, no. 8 (2023): 124–28. http://dx.doi.org/10.31305/rrijm.2023.v08.n08.021.

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Abstract:
The technology driven world has touched almost all sectors and all aspects of life. Technological change has also taken place in the field of education. E-learning has become an important aspect of the educational system. It is gaining momentum day by day. In such a technology-driven scenario, it has become a challenge for teachers to accommodate e-learning in their teaching-learning processes. To meet the demands of information explosion, information and communication technology (ICT) has become an important issue in the education world. Now is the time to equip teachers with advanced ICT and train them to get the most out of it. ICT is an integral part of our daily lives, but it is still in the process of finding a better place in schools as a generation of teachers are not well-acquainted with it, but are willing to adopt it. The objective of the paper is to describe the role of teacher and the importance of e-learning in the present context. It emphasizes on the challenges faced by teachers in implementing e-learning in India and tries to suggest various solutions for awareness, implementation and facilitation of e-learning solutions by teachers in their teaching-learning processes.&#x0D; Abstract in Hindi Language: &#x0D; प्रौद्योगिकी संचालित दुनिया ने लगभग सभी क्षेत्रों और जीवन के सभी पहलुओं को छू लिया है। शिक्षा के क्षेत्र में भी तकनीकी परिवर्तन हुआ है। ई-लर्निंग शैक्षिक प्रणाली का एक महत्वपूर्ण पहलू बन गया है। यह दिन-ब-दिन रफ्तार पकड़ता जा रहा है। ऐसे प्रौद्योगिकी-संचालित परिदृश्य में, शिक्षकों के लिए अपनी शिक्षण-सीखने की प्रक्रियाओं में ई-लर्निंग को समायोजित करना एक चुनौती बन गया है। सूचना विस्फोट की माँगों को पूरा करने के लिए, सूचना और संचार प्रौद्योगिकी शिक्षा जगत का महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है। अब समय आ गया है कि शिक्षकों को उन्नत आईसीटी से लैस किया जाए और उन्हें इसका अधिकतम लाभ उठाने के लिए प्रशिक्षित किया जाए। आईसीटी हमारे दैनिक जीवन का अभिन्न अंग है, लेकिन स्कूलों में बेहतर स्थान पाने के लिए यह अभी भी प्रक्रिया में है क्योंकि शिक्षकों की एक पीढ़ी इससे अच्छी तरह परिचित नहीं है, लेकिन वे इसे अपनाने के इच्छुक हैं। पेपर का उद्देश्य वर्तमान संदर्भ में शिक्षक की भूमिका और ई-लर्निंग के महत्व का वर्णन करना है। यह भारत में ई-लर्निंग को लागू करने में शिक्षकों के सामने आने वाली चुनौतियों पर जोर देता है और शिक्षकों द्वारा उनकी शिक्षण-शिक्षण प्रक्रियाओं में ई-लर्निंग समाधानों के संबंध में जागरूकता, कार्यान्वयन और सुविधा के लिए विभिन्न समाधान सुझाने का प्रयास करता है।&#x0D; Keywords: ऑनलाइन शिक्षण, आईसीटी, ई-लर्निंग, प्रौद्योगिकी-संचालित
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संतोष, कुमार. "कोविड-19 महामारी के दौरान मिश्रित शिक्षा प्रणालीः एक अध्ययन". RECENT EDUCATIONAL & PSYCHOLOGICAL RESEARCHES (ISSN: 2278-5949) 11, № 2 (April-May-June 2022) (2022): 19–25. https://doi.org/10.5281/zenodo.6850841.

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Abstract:
कोविड-19 महामारी का प्रभाव विश्व के सभी क्षेत्रों में देखने को मिला और स्कूली शिक्षा पर इसका विशेष प्रभाव पडा है। Blended Learning जिसे हिंदी में हम मिश्रित शिक्षा प्रणाली कहते हैं। यह वह पद्धति है जहां हम पारंपरिक शिक्षा के साथ डिजिटल संसाधनों जैसे ऑडियो, विडियों, ग्राफिक, प्रोेजेक्टर, सॉफ्टवेयर, वेब व अन्य उपकरणों का समावेश करके एक ऐसी पद्धति का आविष्कार करते हैं जो शिक्षा को रोचक तर्था आसान बना देता है। पारंपररक शिक्षा तथा ऑनलाइन शिक्षा पद्धति का मिश्रित रूप Blended Learning कहा जाता है। प्रस्तुत शोध में वर्णानात्मक शिक्षण विधि का प्रयोग किया गया है तथा उत्तराखंड के व पिथौरागढ़ जनपद से स्वैच्छिक न्यायदर्श विधि द्वारा हाई-स्कूल और इंटरमीडीएट छात्रों का चयन किया गया है। इस अध्ययन में एक ऑनलाइन प्लेटफार्म (गूगल फार्म) की मदद से एक प्रश्नावली तैयार की गई और सोशल मीडिया के जरिए छात्रों को वितरित की गई। अध्ययन 15-20 वर्ष की आयु के हाई स्कूल और इंटरमीडीएट के छात्रों पर कें हित है। ऑनलाइन श्क्षििण के माध्यम से 85 प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुई थी। शोध परिणामों के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि महामारी की स्थिति में, छात्रों को ऑफलाइन कक्षाओं के अलावा ऑनलाइन कक्षाओं में शाममल होने की जल्दी रहती है। हालााँकि, जब परीक्षण या आकलन की बात आती है, तो उनमें से अधिकांश ऑफलाइन और ऑनलाइन विकल्पों के संयोजन को पसंद करते हैं। अर्थात अधिकांश छात्रों ने मिश्रित शिक्षा प्रणाली/ठसमदकमक स्मंतदपदह को ही पसंद किया।&nbsp;
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कौर, परमजीत. "वर्तमान जीवन शैली में स्वस्थ एवं संतुलित आहार के स्थान पर आधुनिक व प्रसंस्कृत भोजन का बढ़ता उपयोग व परिणाम ''स्वस्थ जीवन का आधार पौष्टिक आहार''". Anthology The Research 8, № 11 (2024): H 100 — H 108. https://doi.org/10.5281/zenodo.11221295.

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Abstract:
This paper has been published in Peer-reviewed International Journal "Anthology The Research"&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; URL : https://www.socialresearchfoundation.com/new/publish-journal.php?editID=8865 Publisher : Social Research Foundation, Kanpur (SRF International)&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; Abstract :&nbsp;स्वास्थ्य हमारे जीवन का सर्वश्रेष्ठ महत्व रखने वाला आयाम है। यह हमारे शरीरिक,&nbsp;मानसिक और सामाजिक तंतु का संतुलन होता है जो हमारी सम्पूर्ण जीवन शैली को प्रभावित करता है। स्वास्थ्य का संबंध मात्र निरोगी काया होना नहीं बल्कि यह जीवन के सभी पहलुओं में सम्मिलित होता है। जो हमारे जीवन को सुखमय और सफल बनाते हैं। इसके बल पर ही हम सामाजिक जीवन का सर्वोच्च प्राप्त कर सकते हैं। यह संस्कृति एवं जीवन मूल्यों की प्राथमिक पाठशाला भी है। स्वस्थ शरीर से हमारें भीतर सदगुणों का विकास होता है। हमारें शरीर के समुचित कार्य के लिये संतुलित आहार,&nbsp;फूड एवं न्यूट्रीशन खाने की आवश्यकता है। यह हमारे शरीर को ऊर्जावान रखता है,&nbsp;शारीरिक और मानसिक स्तर पर काम करने की क्षमता प्रदान करता है। यह शारीरिक वजन उठाने की क्षमता से लेकर,&nbsp;शिक्षा में ध्यान केन्द्रित करने व स्मृति को मज़बूत बनाने तक मुख्य तत्व है। भोजन क्षतिग्रस्त कोशिकाओं,&nbsp;ऊतकों की मरम्मत कर हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली बनायें रखने में सहायक होता है। भोजन के मुख्य घटक,&nbsp;कार्बन,&nbsp;नाइट्रोजन,&nbsp;हाइड्रोजन और ऑक्सीजन हैं। एंटोनी लेवोजर (1770-1794)&nbsp;को पोषण का जनक माना जाता है। हिप्पोक्रेटस ने पहली बार चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में नैदानिक पोषण के विज्ञान और दर्शन को मान्यता दी थी। पोषण (न्यूट्रीशन) शरीर के बढ़ने,&nbsp;विकसित होने और जीवन के रख रखाव के लिए आवश्यक तत्वों का सेवन,&nbsp;अवशोषण और उपयोग करने की प्रकिया है। लेकिन वर्तमान जीवनशैली में आधुनिक आहार जैसे- फास्ट फूड़,&nbsp;जंक फूड़ एवं प्रसंस्कृत भोजन का उपयोग दिनों-दिन तेजी से बढ़ता जा रहा है,&nbsp;जिस कारण शारीरिक,&nbsp;मानसिक व भावनात्मक बीमारियां मनुष्य के जीवन को प्रभावित कर रहीं हैं। फास्ट फूड आदि से वजन संबंधी रोग,&nbsp;मधुमेह,&nbsp;उक्त-रक्तचाप,&nbsp;अवसाद,&nbsp;डायबिटीज़ आदि बीमारी बढ़ रही हैं। अतः आज हम सभी को आवश्यकता है अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होने की। इसके लिये फूड एंड न्यूट्रीशन अभियान सरकार द्वारा स्कूलों व कॉलेजों के माध्यम से चलाये जा रहें हैं। कईं प्राइवेट संस्थान में इसकी पूर्ण कक्षायें चल रहीं हैं। अतः एक स्वस्थ समाज की नींव तभी रखी जा सकती है,&nbsp;जब हम सभी एक साथ कुपोषण के विरूद्ध कठोर कदम उठायें और भोजन शिक्षा-शास्त्र को अपने दैनिक आहार शैली से जोडें।
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Yadav, NK Sharma, and Rajesh Kumar. "IMPROVEMENT AND CHALLENGES IN QUALITY OF EDUCATION OF PRIMARY AND SECONDARY SCHOOLS IN LALITPUR DISTRICT." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 8, no. 12 (2021): 167–71. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v8.i12.2020.2700.

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Abstract:
English: The research study area presented under the title "Improvement and quality of education in primary and secondary school in Lalitpur district". The global economy of the 21st century can thrive in an environment that is based on creativity and imagination, critical thinking and problem-solving skills. There is a strong positive relationship between empirical analysis, economic progress and education. According to the 2011 census in India, school-aged children between the ages of 6-14 years have a huge population of 30.5 million, which is about 25 percent of the total population. The goal of development is to focus on the quality of primary and secondary education by 2030. The Prime Minister of India, Shri Narendra Modi has said in one of his speeches (Mann Ki Baat) about the importance of quality. "Till now the focus of the government was the spread of education across the country but now the time has come to focus on the quality of education Should be given and now attention should be given to schooling knowledge.” In this regard, Human Resources Minister Prakash Javadekar has said that" Top priority to improve the quality of education in the country, primary and secondary education facing challenges, 16 percent of 19.67 crore children in 14.5 lakh primary schools under the Sarva Shiksha Abhiyan and 16 percent of the schooling at the secondary level. Has decreased. Thus, to improve the quality of education, skill technical, innovation training technology, information technology employment, education development mission and vocational employment education are urgently needed.&#x0D; &#x0D; Hindi: प्रस्तुत शोध अध्ययन क्षेत्र ‘‘ललितपुर जनपद में प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालय में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार एवं चुनौतियाँ ‘‘ शीर्षक के अन्तर्गत अध्ययन किया है। 21 वीं शताब्दी की वैश्विक अर्थव्यवस्था ऐसे वातावरण की उन्नति कर जो रचनात्मकता एवं काल्पनिकता , विवेचनात्मक सोच और समस्या के समाधान से सम्बन्धित कौशल पर आधारित है। अनुभवमूलक विश्लेषण , आर्थिक उन्नति एवं शिक्षा के मध्य सुदृढ़ सकारात्मक सम्बन्ध होते है। भारत में 2011 की जनगणना के अनुसार स्कूल जाने वाले बच्चों की आयु 6-14 वर्ष के मध्य 30.5 करोड़ विशाल जनसंख्या है जो कुल जनसंख्या का लगभग 25 प्रतिशत है। विकास का लक्ष्य 2030 तक प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा की गुणवत्ता पर ध्यान देने की आवश्यकता है। भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने अपने एक एक उद्बोधन (मन की बात) में गुणवत्ता के महत्व में कहा है ‘‘ अब तक सरकार का ध्यान देश भर में शिक्षा का प्रसार था किन्तु अब वक्त आ गया है कि ध्यान शिक्षा की गुणवत्ता पर दिया जाय और अब स्कूलिंग ज्ञान पर ध्यान देना चाहिएं।‘‘ इस सम्बन्ध में मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावडे़कर ने कहा है कि ‘‘ देश में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार की सर्वोच्च प्राथमिकता, चुनौतियों का सामना करके प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा, सर्वशिक्षा अभियान के अन्तर्गत 14.5 लाख प्राथमिक विद्यालय में 19.67 करोड़ बच्चों की प्राथमिक स्तर पर 16 प्रतिशत तथा माध्यमिक स्तर पर 32 प्रतिशत बच्चों की स्कूली शिक्षा में कमी हुई है। इस प्रकार शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए कौशल तकनीकी, नवाचार प्रशिक्षण तकनीकी, सूचना तकनीकी रोजगार , शिक्षा विकास मिशन तथा व्यावसायिक रोजगार परक शिक्षा की अति आवश्यकता है।
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ओम, सिंह. "स्कूली छात्रों पर सोशल मीडिया का बढ़ता प्रभाव". Recent Educational & Psychological Researches (ISSN: 2278-5949) 12, № 01 (Jan.-Feb.Mar.) (2023): 78–82. https://doi.org/10.5281/zenodo.7932280.

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Abstract:
सोशल मीडिया जनसंपर्क का एक महत्वपूर्ण साधन है, ये आज की भागदौड़ की जिंदगी का एक अहम् हिस्सा बनता जा रहा हैं जिसे न तो छात्रों के जीवन से ही और न अन्य लोगों के जीवन से हटाया जा सकता है। सोशल मीडिया से हम पलक झपकते ही किसी भी विषय से सम्बन्धित जानकारी हासिल कर लेते हैं लेकिन दोनों के ही अपने सकारात्मक व नकारात्मक प्रभाव हैं, जो जीवन को बना भी सकते हैं और बिगाड़ भी सकते है सोशल मीडिया एक-दूसरे से हजारों किलोमीटर दूर बैठे लोगों को ईमेल व फेसबुक के जरिये एक-दूसरे के सम्पर्क में ला सकता है, जिससे हजारों किलोमीटर दूर बैठे व्यक्ति से भी हमारा सम्पर्क बना रहता है। फेसबुक, टिव्टर, गूगल, विकीपीडिया, टेलीविजन व मोबाइल के अपने बहुत सारे सकारात्मक प्रभाव है। इंटरनेट के जरिये छात्र अपने एसाइनमेंट और प्रोजेक्ट से संबंधित जानकारी आसानी से हासिल कर लेते हैं जोकि आज के परिवेश में बहुत ही महत्वपूर्ण है। आज सोशल मीडिया ने छात्रों को अपने इतने प्रभाव में ले लिया है कि उनके पास अपने अध्ययन करने के लिए और बाहर जाकर खेलकूद व अन्य गतिविधियों में शामिल होने का समय ही नहीं रहता है। फेसबुक, टिव्टर, गूगल, विकीपीडिया, ने छात्रों को अपने तक ही सीमित बना दिया है, वे अपने कमरे में ही बैठे घंटो तक अपने दोस्तों के साथ चेटिंग करते रहते हैं, जिसके चलते छात्रों का सामाजिक दायरा सिर्फ सोशल मीडिया तक ही सीमित बनकर रह गया है, इंटरनेट पर वे सिर्फ चेंटिंग तक ही सीमित नहीं है फेसबुक, टिव्टर, गूगल, विकीपीडिया, पर छात्र अश्लील तस्वीरें, अश्लील वीडियो, आॅनलाइन जुआ खेलना इत्यादि गतिविधियों में संलग्न है। चैटिंग को लेकर तो छात्र-छात्राओं में इतना अधिक उत्साह है कि वे चेटिंग के माध्यम से ही अपरिचित व्यक्ति पर इतना अधिक विश्वास कर लेते हैं कि उसके लिए अपने परिवार को छोड़ने में भी नहीं हिचकते हैं, जिसके परिणाम बहुत खतरनाक साबित हो रहे हैं। बल्कि हमारे स्कूली बच्चे भी उपरोक्त प्रभावों से वंचित नहीं है। &ldquo;सामाजिक मीडिया पारस्परिक संबंध के लिए अंतर्जाल या अन्य माध्यमों द्वारा निर्मित आभासी समूहों को संदर्भित करता है। यह व्यक्तियों और समुदायों के साझा, सहभागी बनाने का माध्यम है। इसका उपयोग सामाजिक संबंध के अलावा उपयोगकर्ता सामग्री के संशोधन के लिए उच्च इंटरैक्टिव प्लेटफार्म बनाने के लिए मोबाइल और वेब आधारित प्रौद्योगिकियों के प्रयोग के रूप में भी देखा जा सकता है&rdquo;। सामाजिक मीडिया अन्य पारंपरिक तथा सामाजिक तरीकों से कई प्रकार से एकदम अलग है।
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राजेश कुमार, डॉ. "स्त्री एकता का स्कूल : रजनी तिलक". Praxis International Journal of Social Science and Literature 4, № 3 (2021): 22–26. http://dx.doi.org/10.51879/pijssl/4.3.4.

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यादव, प्रभु. "बिहार की शिक्षा प्रणाली का समकालीन परिदृश्य". International Journal of Advance and Applied Research 12, № 3 (2025): 184 to 191. https://doi.org/10.5281/zenodo.15068350.

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Abstract:
<strong>सार:</strong> &nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; बिहार की शिक्षा प्रणाली में हाल के दशकों में महत्वपूर्ण परिवर्तन देखने को मिला है। सरकारी नीतियों, योजनाओं और डिजिटल तकनीकों के बढ़ते उपयोग के बावजूद, कई चुनौतियाँ बनी हुई हैं। यह लेख बिहार के प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा क्षेत्र की वर्तमान स्थिति का विश्लेषण करता है, साथ में शिक्षण पद्धति, बुनियादी ढांचे, शिक्षक प्रशिक्षण, एवं सरकारी हस्तक्षेपों की भूमिका की समीक्षा करता है। शिक्षा में सुधार हेतु लागू की गई योजनाएँ, जैसे &lsquo;मुख्यमंत्री निश्चय योजना&rsquo; और &lsquo;बिहार स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना&rsquo;, साइकिल योजना, मिड-डे मील योजना विद्यार्थियों की शिक्षा तक पहुँच को सुलभ बनाने में सहायक रही हैं। &nbsp;हालाँकि, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, स्कूल ड्रॉपआउट दर, शिक्षकों की कमी और डिजिटल संसाधनों की उपलब्धता जैसी समस्याएँ अभी भी बनी हुई हैं। इस अध्ययन के निष्कर्ष बताते हैं कि बिहार में शिक्षा व्यवस्था को प्रभावी और समावेशी बनाने के लिए बहुआयामी सुधार की आवश्यकता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP 2020) सरकार द्वारा भारतीय शिक्षा प्रणाली में एक क्रांतिकारी बदलाव लाने के उद्देश्य से लागू की गई है। भारत सरकार द्वारा 29 जुलाई 2020 को घोषणा की गई। भारत की नई शिक्षा नीति सन 1986 के बाद यह पहला नया परिवर्तन है। यह नीति अंतरिक्ष वैज्ञानिक के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट पर आधारित है। बिहार में इस नीति का प्रभाव व्यापक रूप से देखा जा सकता है, नई शिक्षा नीति का उद्देश्य बिना किसी भेदभाव भाव के सभी नागरिकों को बढ़ने और विकसित होने के लिए समान अवसर प्रदान करना है, जिसमें स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक कई महत्वपूर्ण परिवर्तन शामिल हैं। इस आलेख में बिहार में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के प्रभाव, चुनौतियों और संभावित समाधानों का विश्लेषण किया गया है।
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गरिमा, पाठक. "बुन्द ेलखण्ड क े कलासाधक: किशन सा ेनी के चित्रा े ं का रंगस ंया ेजन". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.892058.

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Abstract:
ब ुन्देलखण्ड के कला साधक श्री किशन सा ेनी जी का जन्म उ.प ्र. के झांसी जिले में 19 नवम्बर सन् 1958 को ह ुआ। इनके पिता जी श्री सूरज प ्रकाश सा ेनी मूलतः राजस्थानी थे लेकिन र्कइ वर्षा ें से झा ंसी में ही रह रह े ह ैं इनकी माताजी का नाम श्रीमति चंदा सोनी ह ै। सन् 1975 में सा ेनी जी ने र्हाइ स्कूल की परीक्षा पास की लेकिन परिस्थितिवश वे आगे नही ं पढ़ सक े। आज उनके व्यक्तित्व, व्यवहार आ ैर ज्ञान को देखकर का ेई भी यह नहीं सा ेच सकता कि उनकी संस्थागत शिक्षा के कुछ चरण बाकी रह गये है और वह इस तथ्य क े भी साक्षात् उदाहरण ह ै कि ‘कला किसी भी स्कूली शिक्षा व ज्ञान की मोहताज नहीं’ बचपन से ही सोनी जी ने अपने पिता जी को वस्त्रा ें को अलंकृत करते ह ुए देखा अतः उनक े अन्दर आनुवांशिकी गुणो क े अनुसार एक कलाकार क े गुण स्वतः ही आ गए । इनकी माता जी ने इनका मनोबल हमेशा बढ़ाए रखा। सोनी जी ने बालपन में ही अपने पिता जी ने कढाई का काम सीख लिया और धर्ना जन हेतु उनकी सहायता करने लगे परन्तु इस काम में इनका मन नहीं लगा। तब इन्हा ेने अपनी माता जी की प ्रेरणा स े, चित्रकला की ओर अपना ध्यान केन्द्रित किया। इन्होने अपना प ्रथम व्यक्ति चित्र अपनी ‘नानी मां’ का बनाया। इस समय इनकी आयु महज 14 वर्ष की थी ं। कला क्षेत्र में सा ेनी जी के कार्य प े्ररक इनके माता-पिता एर्वं इ श्वर की आराधना है। कला जगत क े महान कलाकार राजारवि वर्मा एवं एम.एम. प ंडित को इन्हा ेने अपना आदर्श माना और उनक े अनुसार ही आधुनिक भारतीय भावपूर्ण यथार्थ श ैली चित्रण का े अपनी कला का मुख्य ध्येय बनाया। सोनी जी के श्र ंगारिक चित्रा ें में श्री राजारवि वर्मा जी का एवं व्यक्तिचित्रा ें पर एस.एमप ंडित जी के चित्रों का प्रभाव दिर्खाइ देता ह ै।
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YADAV, PUSHPENDRA. "कोविड-19 काल के दौरान ऑनलाइन शिक्षण में विद्यार्थियों के ऑनलाइन आकलन में आने वाली चुनौतियों का अध्ययन (Covid-19 Kal ke Dauran Online Shikshan me Vidyarthiyon ke Online Aakalan me Aane Wali Chunautiyon ka Adhyayan)". Prathmik Shikshak NCERT 46, № 3 (2022): 57–73. https://doi.org/10.5281/zenodo.10444211.

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Abstract:
पिछले लगभग दो वर्षों से हम सभी कोविड-19 महामारी के संक्रमण के खतरे के साये में जी रहे है हम कह सकते है कि हम सभी कही न कही इस महामारी से प्रभावित हुए हैं। मार्च 2020 से पूरे भारत में कोविड-19 के बढ़ते मामलों के कारण स्कूल और कॉलेज बंद कर दिए गए थे। यह कहा जा सकता है कि यह सदी की सबसे बड़ी महामारी में से एक है। हम सभी इस महामारी में उचित दूरी के साथ अपने घरों में बंद रहे हैं, हमारी आदत, जीवन शैली और व्यवहार में बहुत से बदलाब आ चुके है। इस महामारी में हमारी शिक्षा प्रणाली पूरी तरह से ऑनलाइन आधारित शिक्षण और सीखने पर निर्भर हो चुकी है, क्योंकि इसके अलावा हमारे पास न तो कोई और विकल्प था और न ही हम किसी अन्य विकल्प के लिए तैयार थे। ऑनलाइन आधारित शिक्षण और सीखने में विशेष रूप से स्कूल स्तर पर विद्यार्थियों और शिक्षकों को बहुत बड़े स्तर पर नई तकनीकों को अपनाने के लिए बाध्य होना पड़ा है। जिस कारण अलग-अलग स्तर पर विभिन्न प्रकार की समस्याए सामने आई है। क्योंकि हमें पता है स्कूल स्तर पर अर्थपूर्ण ज्ञान के स्थानान्तरण में अध्यापक एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। लेकिन ऑनलाइन मोड में शिक्षकों लिए फेस टू फेस कक्षा में जाकर पढ़ना या सिखाना संभव नहीं है। अचानक पूरी शिक्षा व्यवस्था का ऑनलाइन शिक्षण की ओर रुख कर लेने से कुछ चुनौतियों या चिंताओं का सामने आना स्वाभाविक है। ऑनलाइन शिक्षण के उपरान्त ऑनलाइन आँकलन भी स्कूल, शिक्षकों और सरकार के लिए एक बड़ी चिंता का विषय बनकर उभरा है। ऑनलाइन मोड में आँकलन कयी चुनौतियों से गुजर रहा है। इस शोध पत्र में शोधकर्ता ने विद्यार्थियों, अभिभावकों, शिक्षकों, स्कूल प्रबंधन और नीति-निर्माताओं के दृष्टिकोण से ऑनलाइन आँकलन में आने वाली समस्याओं या चुनौतियों को शामिल किया है। क्योंकि आँकलन (Assessment) वह प्रक्रिया है जो विद्यार्थियों को सुधार और उत्कृष्टता की ओर ले जाती है।
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शर्मा, अर्चना. "झाबुआ जिले के ग्रामीण क्षेत्र में जनजातीय विद्यार्थियों की शैक्षणिक स्थिति का एक अध्ययन - स्कूल सुविधा एवं उपयोगिता के विशेष संदर्भ में". SCHOLARLY RESEARCH JOURNAL FOR INTERDISCIPLINARY STUDIES 9, № 69 (2021): 16334–48. http://dx.doi.org/10.21922/srjis.v9i69.10032.

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Abstract:
अच्छी शिक्षा पर हर व्यक्ति का अधिकार होता है, जो जीवन में आगे बढ़ने व सफलता प्राप्त करने के लिये बहुत आवश्यक है। स्कूली शिक्षा जीवन की नींव तैयार करती है। यह जीवन के कठिन समय में चुनौतियों का सामना करने में सहायक होती है। पूर्ण स्कूली शिक्षा के दौरान प्राप्त किया गया ज्ञान व्यक्ति को जीवन में आत्मनिर्भर बनाता है। यह जीवन में बेहतर संभावनाओं को प्राप्त करने हेतु विभिन्न अवसरों के मार्ग खोलती है, जिससे कैरियर के विकास को बढ़ावा मिलता है। अच्छी शिक्षा जीवन के विभिन्न उद्देश्यों को पूरा करती है जैसे व्यक्तिगत उन्नति, सामाजिक स्तर का विकास, सामाजिक स्वास्थ्य में सुधार, आर्थिक, सामाजिक स्तर का विकास, सामाजिक लक्ष्यों की प्राप्ति, सामाजिक मुद्दों पर जागरूकता व पर्यावरण संबंधी समस्याओं का समाधान आदि। आधुनिक शिक्षा प्रणाली अशिक्षा, असमानता व गरीबी हटाने में सक्षम है। शिक्षा सभी मानव अधिकारों, सामाजिक अधिकारों, देश के प्रति कŸार्व्यों व दायित्वों को समझने में हमारी सहायता करती है।
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डॉ., दिनेश कुमार मौर्य, та विशाल गुप्ता डॉ. "उच्च प्राथमिक स्तर (कक्षा 6, 7 एवं 8) के विद्यार्थियों के स्वास्थ्य शिक्षा जागरूकता को मापने की प्रश्नावली का निर्माण: एक शोध उपकरण के रूप मे". INTERNATIONAL EDUCATION AND RESEARCH JOURNAL - IERJ 11, № 2 (2025): 108–13. https://doi.org/10.5281/zenodo.15584120.

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Abstract:
प्रस्तुत शोध आलेख अपने मूल शोध विषय पी-एच॰डी॰ शिक्षाशास्त्र पंजीकृत काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी 542/2018 दिनाँक 6 फरवरी 2018&nbsp;<strong>&ldquo;</strong><strong>एन</strong>&nbsp;<strong>इनटरवेंशनल</strong>&nbsp;<strong>स्टडी</strong>&nbsp;<strong>आन</strong>&nbsp;<strong>स्कूल</strong>&nbsp;<strong>हेल्थ</strong>&nbsp;<strong>एजुकेशन</strong>&nbsp;<strong>एट</strong>&nbsp;<strong>अपर</strong>&nbsp;<strong>प्राइमरी</strong>&nbsp;<strong>लेवल</strong>&nbsp;<strong>विद</strong>&nbsp;<strong>स्पेशल</strong>&nbsp;<strong>रिफरेसं</strong>&nbsp;<strong>टू</strong>&nbsp;<strong>आयुर्वेद</strong><strong>&nbsp;(&nbsp;</strong><strong>विशाल</strong>&nbsp;<strong>गुप्ता</strong>&nbsp;<strong>एवं</strong>&nbsp;<strong>डा॰</strong>&nbsp;<strong>वन्दना</strong>&nbsp;<strong>वर्मा</strong><strong>&nbsp;2022 )&rdquo;</strong>&nbsp;के शोध परिणामों से अभिप्रेरित हैं। जिसमे उच्च प्राथमिक स्तर (कक्षा 6, 7 एवं 8) के शिक्षार्थियों के स्वास्थ्य शिक्षा के परिप्रेक्ष्य मे जागरूकता को मापने की प्रश्नावली के निमार्ण, उसके प्रशासन एवं उसके निष्कर्षो से अवगत कराने का प्रयास निहित है। आज विश्व के अधिकांश देश और उन अधिकांश देशों के अनेक शिक्षाशास्त्री इस बात पर एक मत हैं कि हमारी शिक्षा नीति ने अनेक पहलुओं की तरफ बहुत हद तक संकीर्ण दृष्टिकोण रखा हैं। कुछ क्षेत्र तो एसे है जिस पर अभी बहुत काम किया जाना बाकी हैं । स्वास्थ्य विशेषकर हमारे स्कूली उम्र के किशोरों का स्वास्थ्य उन्ही मे से एक हैं। यदि हम अपने किशोर छात्र-छात्राओं को ये बता पाने में सफल हो जाते है, तो हम पाएगें कि आदत निर्माण की इस अवस्था कक्षा 6, 7, 8 उम्र 10 से 15 वर्ष मे ही हमारे 21 वी सदी के युवा किशोर, भावी जीवन की उन तमाम सारे विकासगत जटिलताओं की प्रवृत्ति और तदनुकूल अपनी शारीरिक आवश्यकताओं को समझकर समायोजन की क्षमता विकसित कर पाने में अपेक्षकृत कुछ अधिक क्षमतावान और सक्षम हो सकेगें बनिस्बत वर्तमान की तुलना मे । ये लेख और इसी प्रयोजन को ध्यान में रखकर किया गया अनुसंधान कार्यो से अभिप्रेरित है जिसके अभिप्रेरक और&nbsp;<strong>मार्गदर्शक</strong>&nbsp;<strong>डॉ.</strong><strong>&nbsp;</strong><strong>दिनेश</strong>&nbsp;<strong>कुमार</strong>&nbsp;<strong>मौर्य</strong> ( एसोसिएट प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष, शिक्षाशास्त्र विभाग एम0 एल0 के. पी. जी. कॉलेज बलरामपुर उत्तर प्रदेश ) है&nbsp; ।
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श्रेष्ठ Shrestha, रविन Rabin. "नेपालभाषा शिक्षाया इतिहास". Nepalbhasha 1, № 1 (2022): 57–74. http://dx.doi.org/10.3126/nepalbhasha.v1i1.47302.

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Abstract:
आधुनिक शिक्षाया संस्थागत व्यवस्था न्हेव नेपालय्‌ नं भारतय्‌ छेलाबुलाय्‌ दुगु वैदिक वा संस्कृत शिक्षा व वौद्ध शिक्षा परम्परा निगूकथंया शिक्षा छेलाबुलाय्‌ वयाच्वंगु ख:। किरातकालया शिक्षावारे एकिन याय्‌फूगु मदु । मल्लकालय्‌ मल्ल जुजुपिन्सं जनतायात शिक्षा बीमा: थेँ मताय्‌कू । शाहकालया पूर्वार्द्धय्‌ सर्वसाधारणया नितिं स्कूल चाय्‌कुगु खनेमदु । दरवारय्‌ राजगुरु तया: ब्वँकीगु ख:सा मेपिं गुरुया छेँय्‌ वना: ब्वनीगु ख:। आधुनिक शिक्षाया प्रारम्भ विसं १९१० सालं दरवार हाईस्कूलं जुल । नेपालभाषा शिक्षाया प्रारम्भ महावीर स्कूल व नेपाल राष्ट्रिय विद्यापिठं जूगु खनेदु । थौंकन्हय्‌ वया: पूर्व प्राथमिक तगिंनिसे पीएचडीतक नं नेपालभाषां याय्‌गु व्यवस्था दु । थुगु च्वसुया उद्देश्य नेपालय्‌ नेपालभाषा औपचारिक शिक्षा गुबलेनिसें न्ह्यात धइगु मालेगु ख:। च्वसूलिसे स्वाःगु पुस्तकालयया सामग्री छेलागु दु । पूर्वीय भाषाकथं माध्यामिक तगिमय्‌ नेसं १०७१ निसें नेपालभाषा ब्वने दुगु खः। आइ.ए.तगिमय्‌ नेसं १०८० निसें नेपालभाषा ब्वनेदत । १०९७ निसें डिग्री बाइ डिजर्टेशन याय्‌गु ब्यवस्था जुल । थुकथं राणाकालंनिसें नेपालभाषायात प्रजातन्त्र वय्‌धुंका: तक नं सरकारं नेपालभाषायात कोतेलेगु हे नीति का:गु खनेदु ।
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डॉ. विकाश कुमार मिश्रा та डॉ. राम जी पाण्डेय. "नई शिक्षा नीति के भविष्योन्मुखी प्रभाव (स्कूल शिक्षा के सन्दर्भ में)". Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education 21, № 2 (2024): 20–22. http://dx.doi.org/10.29070/h0dj1k64.

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Abstract:
नई शिक्षा नीति को विश्व स्तर पर रोजगार मूलक बनाने की दृष्टि से बनाया गया हैं। भारत में सभी के उददेश्य है यह ऐसी शिक्षा नीति है। जिसमें देश के विकास सम्बन्धी सभी अनिवार्य आवश्यकताओं को मूल बिन्दु में रखा गया हैं। यह नीति हमारी प्राचीन भारतीय ज्ञाान परम्परा की पृष्ठभूमि के साथ तैयार की गई है। जिससे हम अपनी संस्कृति की जड़ो से जुडकर वैश्विक स्तर पर ज्ञानवर्धन कर सकें।
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Ajay, Kumar Sharma. "बुद्धि के संदर्भ में हाई स्कूल विद्यार्थियों के समायोजन का अध्ययन". बुद्धि के संदर्भ में हाई स्कूल विद्यार्थियों के समायोजन का अध्ययन 5, № 3 (2018): 5–9. https://doi.org/10.5281/zenodo.10445943.

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कु., अंकिता जैन. "भोपाल में चित्रकला शिक्षण एक अध्ययन". International Journal of Research - Granthaalayah 7, № 11(SE) (2019): 189–95. https://doi.org/10.5281/zenodo.3587951.

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Abstract:
भोपाल शहर में कला शिक्षण की शुरूआत सन्&zwnj; 1964 में भाण्ड स्कूल से हुई। इस शिक्षण संस्थान की स्थापना का श्रेय स्व. श्री लक्ष्मण भाण्ड को जाता है। इस विद्यालय से लगभग 60 विद्यार्थी दीक्षित हुए। श्री सच्चिदा नागदेव एवं डॉ. रामचन्द्र भावसार ने इस स्कूल में शिक्षक की भूमिका निभाई एवं बिना वेतन के इन दोनों कलाकारों ने यहां शिक्षण कार्य किया। वर्तमान में भोपाल शहर में अनेकों शिक्षण संस्थाएं है, जिनमें प्रारंभिक स्तर, माध्यमिक स्तर एवं हायर सेकेण्डरी स्तर पर कला शिक्षण की व्यवस्थाएं है। विशेष रूप से भोपाल में पांच ऐसे शासकीय महाविद्यालय है, जिनमें चित्रकला शिक्षण की स्नातक एवं स्नातकोत्तर स्तर पर कक्षाएं संचालित होती है, जिनमें मुख्यतः- शासकीय हमीदिया कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय शासकीय महारानी लक्ष्मी बाई कन्या स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय, शासकीय सरोजिनी नायडू कन्या स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय, शासकीय गीतांजली कन्या स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय, ललित कला संकाय, अटल बिहारी बाजपेयी हिन्दी विश्वविद्यालय भोपाल।
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Pathak, Garima. "ARTISTS FROM BUNDELKHAND: COLOR COMBINATION OF KISHAN SONI'S PAINTINGS." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 2, no. 3SE (2014): 1–3. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v2.i3se.2014.3681.

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Abstract:
The art seeker of Bundelkhand, Mr. Kishan Soni ji was born in U.P. It was held in Jhansi district of 19 November 1958. His father Mr. Suraj Prakash Soni was originally Rajasthani but has been living in Jhansi for many years, his mother's name is Mrs. Chanda Soni. In 1975, Soni ji passed the high school examination but under the circumstances he could not study further. Today, by looking at his personality, behavior and knowledge, no one can think that there are few stages of his institutional education left and he is also a true example of the fact that 'art is not an attachment to any schooling and knowledge'Since childhood, Soni ji saw her father embellishing the clothes, so in him, according to the genetic properties, the qualities of an artist automatically came into being. His mother always kept his morale high. Soni ji, in his childhood, learned his father's work of embroidery and started helping him for Dharnjan, but he did not mind in this work. Then he, with the inspiration of his mother, shifted his attention to painting. He made his first person portrait of his 'granny mother'. At this time, he was only 14 years of age.&#x0D; बुन्देलखण्ड के कला साधक श्री किशन सोनी जी का जन्म उ.प्र. के झांसी जिले में 19 नवम्बर सन् 1958 को हुआ। इनके पिता जी श्री सूरज प्रकाश सोनी मूलतः राजस्थानी थे लेकिन कई वर्षों से झांसी में ही रह रहे हैं इनकी माताजी का नाम श्रीमति चंदा सोनी है। सन् 1975 में सोनी जी ने हाई स्कूल की परीक्षा पास की लेकिन परिस्थितिवश वे आगे नहीं पढ़ सके। आज उनके व्यक्तित्व, व्यवहार और ज्ञान को देखकर कोई भी यह नहीं सोच सकता कि उनकी संस्थागत शिक्षा के कुछ चरण बाकी रह गये है और वह इस तथ्य के भी साक्षात् उदाहरण है कि ‘कला किसी भी स्कूली शिक्षा व ज्ञान की मोहताज नहीं’बचपन से ही सोनी जी ने अपने पिता जी को वस्त्रों को अलंकृत करते हुए देखा अतः उनके अन्दर आनुवांशिकी गुणो के अनुसार एक कलाकार के गुण स्वतः ही आ गए । इनकी माता जी ने इनका मनोबल हमेशा बढ़ाए रखा। सोनी जी ने बालपन में ही अपने पिता जी ने कढाई का काम सीख लिया और धर्नाजन हेतु उनकी सहायता करने लगे परन्तु इस काम में इनका मन नहीं लगा। तब इन्होने अपनी माता जी की प्रेरणा से, चित्रकला की ओर अपना ध्यान केन्द्रित किया। इन्होने अपना प्रथम व्यक्ति चित्र अपनी ‘नानी मां’ का बनाया। इस समय इनकी आयु महज 14 वर्ष की थीं।
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सिंह, चन्द्र प्रकाश. "स्कूल इंटर्नशिप कार्यक्रम के प्रति विश्वविद्यालयों के एम. एड. विद्यार्थियों के दृष्टिकोण का अध्ययन". SCHOLARLY RESEARCH JOURNAL FOR INTERDISCIPLINARY STUDIES 9, № 67 (2021): 15690–700. http://dx.doi.org/10.21922/srjis.v9i67.8217.

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Abstract:
विभिन्न शोधों, आयोगों एवं समितियों ने शिक्षक-शिक्षा के छेत्र में गुणवत्ता पूर्ण व्याव्सायिक शिक्षक-शिक्षकों के निर्माण के लिए वर्तमान शिक्षक-शिक्षा कार्यक्रम में सुधार के सुझाव दिए गए है । इन्हीं सुझावों एवं वर्तमान समय की मांग को ध्यान में रखते हुए रास्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद ने करिकुलम फ्रेमवर्क 2014 के अध्यादेश द्वारा एम.एड.पाठ्यक्रम में इंटर्नशिप कार्यक्रम को अनिवार्य कर दिया गया है । इस शोध पत्र में यह जानने का प्रयास किया गया है कि-इंटर्नशिप कार्यक्रम क्या है ?,इसकी आवश्यकता क्यों पड़ी ?,इसके प्रति विश्वविद्यालयों के एम.एड. छात्रों का दृष्टीकोण क्या है ?, यह कार्यक्रम किस प्रकार उनके वृत्तिगत विकास में मदत कर रहा है ?, शिक्षक-शिक्षकों ने बताया कि वे किस प्रकार इस कार्यक्रम में सक्रिय सहभाग कर अपने अनुभवों को समृद्ध किए एवं किस प्रकार कि बाधाएं आयी इत्यादि । इस पेपर में विश्वविद्यालयों के एम.एड. चतुर्थ सेमेस्टर के विद्यार्थियों का चयन किया गया है ,एवं स्कूल इंटर्नशिप कार्यक्रम पर उनके दृष्टीकोण को जानने का प्रयास किया गया है,आकड़ों के संग्रहण के लिए स्व निर्मित दृष्टीकोण मापनी का प्रयोग किया गया एवं काई वर्ग परीक्षण एवं प्रतिशत विश्लेषण का प्रयोग करके आकड़ों का विश्लेषण किया गया है ।
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वर्मा, अशोक कुमार. "राष्ट्रीय षिक्षा नीति के अन्तर्गत प्राथमिक षिक्षा में त्रिभाषा सूत्र का ज्ञान बालकों के बौद्धिक विकास का पोषक". SCHOLARLY RESEARCH JOURNAL FOR HUMANITY SCIENCE AND ENGLISH LANGUAGE 9, № 46 (2021): 11326–29. http://dx.doi.org/10.21922/srjhsel.v9i46.1542.

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Abstract:
देष में भावनात्मक एकता और आधुनिक ज्ञान-विज्ञान को बढ़ावा देने के लिए सन् 1968 ई. में संसद के दोनों सदनों ने आम सहमति से त्रिभाषा सूत्र से सम्बन्धित संकल्प पारित किया था। इस संकल्प में स्कूली षिक्षा में मुख्यतः हिन्दी, अंग्रेजी और क्षेत्रीय भाषा को अनिवार्य रुप से पढ़ाने की बात स्वीकार की गयी थी। राष्ट्रीय षिक्षा नीति के प्रारुप में संस्कृत को भी अनिवार्य विषय के रुप में रखने का सुझाव दिया गया है। त्रिभाषा सूत्र में हिन्दी, अंग्रेजी के अलावा दक्षिण भारतीय भाषाओं में से किसी एक को पढ़ाने की बात की गई थी परन्तु हिन्दी भाषी राज्यों में हिन्दी, अंग्रेजी भाषाओं के साथ सांस्कृतिक विरासत की भाषा के रुप में संस्कृत या उर्दू पढ़ाने की बात की जा सकती है।
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Das, Dr Manoj Kumar. "स्कूल-पर्यावरण के पत्राचार रचनात्मकता और रचनात्मकता के विभिन्न पहलू के बीच संबंध का विश्लेषण". International Journal of Humanities and Education Research 5, № 1 (2023): 47–51. http://dx.doi.org/10.33545/26649799.2023.v5.i1a.45.

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Rubi, Kumari, та MS Mishra Dr. "माता-पिता की परवरिश शैलियों का मिडिल स्कूल के छात्रों के व्यवहारिक समस्याओं पर प्रभाव". International Journal of Trends in Emerging Research and Development 1, № 1 (2024): 208–11. https://doi.org/10.5281/zenodo.13192131.

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Abstract:
शिक्षा मनुष्य में पहले से ही जो कुछ भरा हुआ है उसे प्रकट करने की प्रक्रिया है। बेहतर शिक्षा मानव ज्ञान और जीवन की गुणवत्ता को सशक्त बनाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह किसी राष्ट्र के राष्ट्रीय कल्याण, विकास, समृद्धि और उत्थान के लिए आधार प्रदान करता है। शिक्षा मानव संसाधन का सबसे महत्वपूर्ण घटक है। इसलिए प्रत्येक समाज व्यक्तिगत प्रतिभा का समुचित उपयोग करना चाहता है। इस व्यस्त, प्रतिस्पर्धी और जटिल दुनिया में छात्रों का शैक्षणिक प्रदर्शन शोधकर्ताओं के लिए कच्चे माल में विविधता और जीवंतता प्रदान करता है। माता-पिता, शिक्षक और प्रशासक अपनी व्यक्तिगत जरूरतों की संतुष्टि को ध्यान में रखते हुए छात्रों के प्रदर्शन को बेहतर बनाने के लिए नए और अभिनव तरीकों और रुझानों की तलाश करने का प्रयास करते हैं। माता-पिता और शिक्षकों का दृष्टिकोण महत्वपूर्ण कारक हैं जो छात्रों के स्कूल के प्रदर्शन को प्रभावित करते हैं। शैक्षणिक संस्थानों में तनाव को यदि अच्छी तरह से प्रबंधित नहीं किया गया तो इसके सकारात्मक और नकारात्मक दोनों परिणाम हो सकते हैं। शैक्षणिक तनाव, शैक्षणिक विफलता से जुड़ी कुछ आशंकित हताशा के संबंध में एक मानसिक संकट है, ऐसी विफलता की आशंका या यहां तक कि ऐसी विफलता की समस्याओं की संभावना के बारे में जागरूकता, उच्च माता-पिता की भागीदारी, कम भावनात्मक योग्यता ऐसे तनाव/कारक हैं जो शैक्षणिक तनाव को प्रभावित करते हैं। वर्तमान अध्ययन में माध्यमिक विद्यालय के छात्रों के शैक्षणिक तनाव पर माता-पिता की भागीदारी का महत्वपूर्ण प्रभाव पाया गया है।
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कुमार, नरेश, та आशुतोष राय. "खेल भागीदारी के विभिन्न स्तरों पर एथलीटों के बीच मनोवैज्ञानिक विशेषताओं का एक विश्लेषणात्मक अध्ययन". Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education 22, № 3 (2025): 120–29. https://doi.org/10.29070/g0p5tb80.

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Abstract:
यह अध्ययन भागीदारी के तीन स्तरों पर एथलीटों की चयनित मनोवैज्ञानिक विशेषताओं-प्रेरणा, चिंता, आत्मविश्वास और लचीलापन- की जांच करता है: स्कूल, इंटर-कॉलेज और राष्ट्रीय। मानकीकृत मनोवैज्ञानिक उपकरणों का उपयोग करते हुए, 180 एथलीटों (प्रत्येक स्तर से 60) का मूल्यांकन किया गया। परिणाम समूहों के बीच महत्वपूर्ण अंतर दर्शाते हैं, जिसमें राष्ट्रीय स्तर के एथलीट उच्च आत्मविश्वास और लचीलापन, और कम प्रदर्शन चिंता प्रदर्शित करते हैं। निष्कर्ष एथलीट विकास में मनोवैज्ञानिक प्रशिक्षण की भूमिका पर जोर देते हैं और प्रदर्शन स्तर के अनुसार अनुरूप मानसिक कंडीशनिंग रणनीतियों का सुझाव देते हैं।
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प्रा., मनोजकुमार वायदंडे. "नई शिक्षा नीति 2020". International Journal of Advance and Applied Research 4, № 6 (2023): 114–18. https://doi.org/10.5281/zenodo.7672993.

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Abstract:
<strong>नई शिक्षा नीति</strong>&nbsp;:- 21वीं सदी के 20 वे साल में भारत में&nbsp;<strong>नई शिक्षा नीति</strong>&nbsp;आई है। भारत में सर्वप्रथम 1968 में नई शिक्षा नीति बनाई गई थी उसके बाद 1986 में बनाई गई जिसके बाद नई शिक्षा नीति को 1992 में संशोधित किया गया। लगभग 34 साल बाद 2020 में पुनः नई शिक्षा नीति को लेकर महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं। जिसमें शिक्षा सम्बन्धित बहुत से नियमों में बदलाव किया गया है। वही हाल ही में मानव संसाधन प्रबंधन मंत्रालय ने शिक्षा नीति में बदलाव के साथ साथ अपने मंत्रालय का नाम भी बदल दिया है, मानव संसाधन प्रबंधन मंत्रालय को अब शिक्षा मंत्रालय के नाम से जाना जाएगा।<strong> नई शिक्षा नीति</strong>&nbsp; तहत शिक्षकों के लिए व्यवसायिक विकास को जरुरी कर दिया गया है और शिक्षकों के लिए सर्विस ट्रेनिंग का आयोजन भी किया जाएगा जिसमे शिक्षकों को ट्रेनिंग दी जायेगी। <strong>नई शिक्षा नीति </strong>के अंतर्गत स्कूल व कॉलेज में होने वाली शिक्षा की नीति बनाई जाती है । ऐसे में भारत सरकार द्वारा एक नई शिक्षा नीति को हमारे सम्मुख रखा है । इस पॉलिसी को इसरो के प्रमुख डॉ. कस्तूरीरंगन के अध्यक्षता में तैयार किया है। इस बदलाव के अंतर्गत 2030 तक स्कूल शिक्षा में 100% जी.आई.आर. के साथ पूर्व विद्यालय से माध्यमिक विद्यालय तक शिक्षा का सार्वभौमीकरण किया जाएगा। पहले 10+2 का पैटर्न हमारे देश में लागू था और इसमें बदलाव करके &nbsp;अब नई शिक्षा नीति के तहत 5+3+3+4 का पैटर्न जारी किया जाएगा।
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यादव, डॉ. दिलीप कुमार. "राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में बाल गंगाधर तिलक का योगदान". INTERNATIONAL EDUCATION AND RESEARCH JOURNAL - IERJ 11, № 3 (2025): 28–31. https://doi.org/10.5281/zenodo.15582426.

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Abstract:
लोकमान्य तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को ब्रिटिश भारत में वर्तमान महाराष्ट्र स्थित रत्नागिरी जिले के एक गाँव चिखली में हुआ था। ये आधुनिक कालेज शिक्षा पाने वाली पहली भारतीय पीढ़ी में से एक थे। इन्होंने कुछ समय तक स्कूल और कालेजों में गणित पढ़ाया। अंग्रेजी शिक्षा के ये घोर आलोचक थे और मानते थे कि यह भारतीय सभ्यता के प्रति अनादर सिखाती है। इन्होंने दक्कन शिक्षा सोसायटी की नहित के कार्यों में लगे रहने तथा सरकारी नौकरी न करने का निश्चय किया और अपने मित्र गोपाल गणेश आगरकर के सास्थापना की ताकि भारत में शिक्षा का स्तर सुधरे। उन्होंने मिलकर एक अँग्रेजी स्कूल स्थापित किया। बाल गंगाधर तिलक (अथवा लोकमान्य तिलक, मूल नाम केशव गंगाधर तिलक, एक भारतीय राष्ट्रवादी, शिक्षक, समाज सुधारक, वकील और एक स्वतन्त्रता सेनानी थे। ये भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अपहले लोकप्रिय नेता हुए। ब्रिटिश औपनिवेशिक प्राधिकारी उन्हें &lsquo;&lsquo;भारतीय अशान्ति के पिता&lsquo;&lsquo; कहते थे। उन्हें, &lsquo;&lsquo;लोकमान्य&lsquo;&lsquo; का आदरणीय शीर्षक भी प्राप्त हुआ, जिसका अर्थ हैं लोगों द्वारा स्वीकृत। लोकमान्य तिलक जी ब्रिटिश राज के दौरान स्वराज के सबसे पहले और मजबूत अधिवक्ताओं में से एक थे, तथा भारतीय अन्तःकरण में एक प्रबल आमूल परिवर्तनवादी थे। बालगंगाधर तिलक की राजनीतिक विचारधारा अन्य समकालीन विचारकों से भिन्न थी।तिलक की सजा भारतीय संघर्ष के इतिहास में अत्यधिक महत्त्व रखती है, क्योंकि इससे पहले किसी पर राजद्रोह के आरोप में मुकदमा नहीं चला था। अँग्रेजी सरकार की चुनौती से आत्म-विश्वास,त्याग,बलिदान और कष्ट सहन करने के नये अध्याय का श्रीगणेश हुआ।
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YADAV, PUSHPENDRA. "उच्च प्राथमिक स्तर पर गणित सीखने में अवधारणा मानचित्र का प्रयोग (Uccha Prathmik Star Par Ganit Sikhne Me Avdharna Manchitra Ka Upyog)". Bhartiya Adhunik Shiksha, NCERT 43, № 2 (2025): 54–70. https://doi.org/10.5281/zenodo.14859990.

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Abstract:
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रुपरेखा-2005 ने प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्तर पर विद्यार्थियों को अर्थपूर्ण तरीके से सिखाने एवं शिक्षण-अधिगम की प्रक्रिया को प्रभावी बनाने के लिए रचनावादी विधि (Constructivism method) को परम्परागत रूप से चली आ रही शिक्षण विधियाँ जैसे कि व्याख्यान विधि, प्रदर्शन विधि, दोहरा कर याद रखना इत्यादि से श्रेष्ठ माना है। किन्तु सभी स्कूली विषयों में रचनावादी विधि को अपनाकर शिक्षण कार्य कर पाना आसान नहीं है इस का एक बड़ा कारण है शिक्षकों को रचनावादी विधि द्वारा शिक्षण कार्य करने के लिए प्रशिक्षित ना किया जाना, वास्तविकता ये है कि आज भी उच्च प्राथमिक स्तर पर अधिकतम शिक्षक परम्परागत शिक्षण विधियों से पढ़ाते हैं और उनका पूरा ध्यान समय से पाठ्यक्रम पूरा करवा कर परीक्षा लेने पर होता है। असर-2018 द्वारा प्रकाशित वार्षिक स्थित रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि अन्य स्कूली विषयों की तुलना में गणित विषय की स्थित प्राथमिक स्तर पर ज्यादा चिन्ताजनक है। असर की रिपोर्ट बताती है कि विद्यार्थी प्राथमिक स्तर पर सीखने के प्रतिफलों को प्राप्त करने में अन्य विषयों की तुलना में गणित विषय में ज्यादा कठिनाई महसूस करते हैं। इसका एक प्रमुख कारण ये भी है कि प्राथमिक स्तर पर कक्षाओं की प्रोन्नति के साथ-साथ गणित विषय का अमूर्त प्रकृति की ओर बढ़ना एवं अन्य विषयों की तुलना में रचनावादी विधि (Constructivism method) द्वारा शिक्षण देने के सीमित साधनों का उपलब्ध होना। अवधारणा मानचित्रण एक ऐसा संज्ञानात्मक उपकरण (Cognitive tool) है जिसके माध्यम से उच्च-प्राथमिक स्तर पर विद्यार्थिओं को रचनावादी विधि द्वारा स्वयं कर के सीखने के अवसर प्रदान किये जा सकते हैं जिस से वे किसी अवधारणा के प्रति अपनी समझ को एक चित्र के रूप में एक पन्ने पर बनाकर अपने अधिगम के स्तर को देखने में सक्षम हो सकते हैं। इस समीक्षा शोध पत्र में उच्च प्राथमिक स्तर पर गणित विषय में शिक्षण-अधिगम के सन्दर्भ में रचनावादी उपागम के तहत अवधारणा मानचित्रण के उपयोग पर चर्चा की गयी है। शोधकर्ता ने रचनावादी उपागम और अवधारणा मानचित्रण तकनीक के गुणों को समावेशित कर उच्च प्राथमिक स्तर पर गणित शिक्षण के लिए एक संक्षिप्त माँड्यूल विकसित कर इसकी उपयोगिता पर चर्चा की है।
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विशाल, यादव. "बद्रीनाथ आर्य क े वाॅश र ंग पद्धति मंे प ्रया ेगधार्मि ता". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1. https://doi.org/10.5281/zenodo.892050.

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Abstract:
भारतीय आधुनिक कला की प्रारंभ 19वीं सदी के मध्य से मानी जाती है। जब अंग्र ेजी शासक ने यूरा ेपियन कला में भारतीय कलाकारा ें को प ्रशिक्षित करने के लिए मद्रास, कलकत्ता, मुंबई, लाहौर व लखनऊ में कला महाविद्यालय स्थापति करने का निर्ण य लिया। इन कला महाविद्यालया ें ने स्वाभाविक अंग्र ेजी पद्धति से चित्रण करने वाले अ ंग्र ेजी कलाकारा ें की नियुक्ति ह ुई। इसी दौरान जापान के कलाकार हिदिसा आ ैर र्ताइ कान कलकत्ता आए जिन्होंने वाॅश पद्धति का प्रषिक्षण भारत में सर्व प ्रथम अविन्द्रनाथ ठाकुर का े दिया और इसी प्रकार भारत में वाॅश पद्धति का जन्म ह ुआ। जब भारतीय वाॅश पद्धति की बात आती है ता े सबसे पहले बंगाल स्कूल का एक ऐसा वातावरण समाने आता है जिससे प ्रशिक्षित होकर कलाकार देश के सभी महत्वपूर्ण कला केन्द्रा ें में स्थापित हुए और वाॅश चित्रण का एक वातावरण प ूरे देश में सृजित ह ुआ। ए ेसे में ब ंगाल स्कूल के बाद लखनऊ वाॅश चित्रण के लिए दूसरे केन्द्र के रुप मे ं उभरा। यहां पर वाॅश का दूसरा विकसित रुप सामने आए जहा ं ब ंगाल म ें अपारदर्शी या अल्पदर्शी रंगा ें का प ्रयोग ह ुआ वहीं लखनऊ में इससे बचा गया। वाॅश चित्रकला की तकनीक प्रारंभ मूलतः अविन्दनाथ ठाकुर ने कलकत्ता में किया था। उनके कुछ विषय लखनऊ कला एवं शिल्प महाविद्यालय में नियुक्ति ह ुए इस प ्रकार वह तकनीक लखनऊ में आ ैर विकसित ह ुई तथा बाद में इन सारे कलाकारों ने इस माध्यम में काम करते ह ुए इसका विकास किया जिसमें आर्पित कुमार हालदार, अब्दूल रहमान चुगर्ताइ , एल0 एम0 सेन व बद्रीनाथ आर्य जैसे कलाकारों न े जलरंग से वाॅश पद्धति में प ्रया ेग करते रह े।
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गुप्ता1ए, बी के, та राजेन्द्र सिंह. "सिस्टर निवेदिता के शैक्षिक विचारों एवं उनकी प्रासंगिकता का वर्तमान सन्दर्भ में एक अध्ययन". SCHOLARLY RESEARCH JOURNAL FOR INTERDISCIPLINARY STUDIES 9, № 66 (2021): 15586–94. http://dx.doi.org/10.21922/srjis.v9i66.6854.

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Abstract:
सिस्टर निवेदिता भारत की एक प्रख्यात हस्ती थीं। उन्होंने स्वामी विवेकानंद के आदर्श में जीवन का सही तरीका पाया। वह वंचित भारतीयों की मदद के लिए ही यूरोप से भारत आई थीं। स्वामी जी ने उन्हें निवेदिता नाम दिया। उन्होंने महिला शिक्षा के लिए बहुत काम किया। उनकी असामान्य शिक्षण पद्धति और दयालुता ने उनके स्कूल को बहुत लोकप्रिय बना दिया। निवेदिता एक शिक्षिका ही नहीं एक समाज सुधारक भी थीं। भारतीय समाज में उनका योगदान उल्लेखनीय है। उदारता से वह अपना सारा जीवन भारत की प्रगति के लिए समर्पित कर देती हैं। यह पत्र निवेदिता शिक्षा के योगदान और वर्तमान समाज में की उनकी भूमिका पर केंद्रित है
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काण्डपाल, डाॅ शुभ्रा पी, та श्री अर्जुन सिंह जगेड़ा. "जूनियर हाई स्कूल स्तर पर गणित विषय में आगमन एवं निगमन विधि के प्रभाव का तुलनात्मक अध्ययन". International Journal of Advanced Academic Studies 3, № 4 (2021): 221–26. http://dx.doi.org/10.33545/27068919.2021.v3.i4c.722.

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डॉ. लोहंस कुमार कल्याणी. "नई शिक्षा नीति 2020 और शिक्षक". International Journal of Multidisciplinary Research in Arts, Science and Technology 1, № 5 (2023): 01–06. http://dx.doi.org/10.61778/ijmrast.v1i5.24.

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Abstract:
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP-2020) को कुल चार भागों क्रमशः स्कूल शिक्षा, उच्चतर शिक्षा, अन्य केन्द्रीय विचारणीय मुद्दे एवं क्रियान्वयन की रणनीति में विभक्त किया गया है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के पी.डी.एफ. प्रारूप में हिन्दी पाठ कुल 107 पृष्ठों में जबकि अंग्रेजी पाठ कुल 65 पृष्ठों में समाहित है । स्कूल शिक्षा सम्बन्धी प्रावधानों को कुल आठ अध्यायों के 143 बिन्दुओं में, उच्चतर शिक्षा सम्बन्धी प्रावधानों को कुल ग्यारह अध्यायों के 99 बिन्दुओं में, अन्य केन्द्रीय विचारणीय मुद्दे सम्बन्धी प्रावधानों को कुल पाँच अध्यायों के 54 बिन्दुओं में एवं क्रियान्वयन की रणनीति को कुल तीन अध्यायों के 12 बिन्दुओं में प्रस्तुत किया गया है । निश्चय ही इस शिक्षा नीति का उद्देश्य ऐसे उत्पादक नागरिकों को तैयार करना है जो भारतीय संविधान द्वारा संकल्पित न्यायसंगत समावेशी व बहुलतावादी समाज के निर्माण में बेहतर तरीके से योगदान कर सकें । इस क्रम में यह कहना उचित व आवश्यक होगा कि जिस शिक्षण संस्था में प्रत्येक छात्र का स्वागत किया जाता है व उनकी उचित देखभाल की जाती है, जहाँ एक सुरक्षित व प्रेरणादायक शिक्षण वातावरण होता है, जहाँ छात्रों को सीखने के विविध प्रकार के अनुभव प्रदान किये जाते हैं एवं जहाँ अधिगम हेतु बुनियादी ढाँचा व उपयुक्त संसाधन उपलब्ध होते हैं, उसे ही एक अच्छी शैक्षणिक संस्था माना जा सकता है । अतः सभी संस्थाओं का लक्ष्य इन सुविधाओं को जुटाना एवं विभिन्न संस्थानों के साथ जुड़ाव व समन्वय बनाना होना चाहिए । शिक्षा व्यवस्था में लाये जाने वाले बदलावों के केन्द्र में शिक्षक समुदाय को रखना न केवल आवश्यक वरन अपरिहार्य होता है । वस्तुतः शिक्षा के क्षेत्र के सभी परिवर्तन बदलाव या नवोन्मेश प्रत्यक्ष अथवा परोक्षतः किसी न किसी रूप में शिक्षकों से सदर्भित रहते है । इसलिए शिक्षकों की मान-मर्यादा, सम्मान, आत्मनिर्भरता, स्वायत्तता व सक्षमता को भी सुनिश्चित करना जरूरी है ।
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PUSHPENDRA, YADAV. "गुणवत्तापूर्ण प्राथमिक शिक्षा और पेड़गाँजिकल लीडरशिप (Gunvattapurna Prathmik Shiksha Aur Pedagogical Leadership)". Prathmik Shikshak (NCERT) 46, № 2 (2023): 5–19. https://doi.org/10.5281/zenodo.8370383.

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Abstract:
भारत उन देशों की कतार में शामिल है जिन्हें वर्ष 2030 तक संयुक्त&nbsp;राष्ट्र संघ द्वारा निर्धारित एजेंडा 2030 के 17 सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त&nbsp;करना है। इन लक्ष्यों में सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा हो (लक्ष्य 4), इसे प्रमुखता से जगह दी गयी है। एक बेहतर और टिकाऊ भविष्य प्राप्त&nbsp;करने के लिए इन लक्ष्यों को समय से&nbsp;प्राप्त करना बेहद ज़रूरी है। भारत में 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों को मुफ़्त एवं अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने का मसौदा शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के रूप में अप्रैल 2010 से प्रभाव में आया है, इससे भारत जैसे भौगोलिक और सांस्कृतिक विविधता वाले देश में बच्चों के लिए मुफ़्त प्राथमिक शिक्षा प्रदान करना संभव तो हुआ है लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता क्या हो इस पर अभी भी बड़ा प्रश्न चिन्ह&nbsp;है। नेशनल अचीवमेंट सर्वे (2017) और असर (2018) की रिपोर्ट स्पष्ट&nbsp;रूप से हमें हमारी प्राथमिक शिक्षा प्रणाली की चिंताजनक&nbsp;स्थिति दिखाती है।&nbsp;भारत में&nbsp;गुणवत्तापूर्ण&nbsp;प्राथमिक शिक्षा प्रदान करने का प्रयास जारी है।&nbsp;राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 ने इस मुद्दे&nbsp;की गंभीरता को समझते हुए कहा है कि हमें प्राथमिक शिक्षा की संरचना, पाठ्यक्रम और शिक्षाशास्&zwj;त्र में बदलाव लाना चाहिए। पेडागॉजिकल लीडरशिप का संप्रत्यय परंपरागत रूप से चली आ रही स्कूल लीडरशिप से भिन्न है। पेडागॉजिकल लीडरशिप शिक्षण और सीखने के समर्थन करने के बारे में है। इस लेख में पेडागॉजिकल लीडरशिप से संबंधित शोधों का गंभीरता से अध्ययन करने के पश्&zwj;चात् शोधकर्ता ने यह समझाने की कोशिश की है कि स्कूल की व्यवस्था&nbsp;(सेटिंग) में पेडागॉजिकल लीडरशिप का क्या अर्थ है? और कैसे पेडागॉजिकल लीडर गुणवत्तापूर्ण प्राथमिक शिक्षा प्रदान करने में सहायक होते हैं।
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