Academic literature on the topic 'संतुलित-आहार'

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Journal articles on the topic "संतुलित-आहार"

1

शिरसाठ, डॉ. शेखर ना. "महाराष्ट्रातील लठ्ठ व्यक्तींच्या समस्या आणि उपाययोजना". International Journal of Advance and Applied Research, № 25(D) (20 березня 2025): 142–45. https://doi.org/10.5281/zenodo.15340060.

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Abstract:
<strong>गोषवारा:</strong> महाराष्ट्रातील लठ्ठपणा एक गंभीर आरोग्य समस्या बनली आहे, ज्यामुळे अनेक व्यक्तींना विविध आरोग्याच्या समस्यांचा सामना करावा लागतो. लठ्ठपणा म्हणजे शरीरातील चरबीचे प्रमाण अत्यधिक वाढणे, ज्याला BMI (बॉडी मास इंडेक्स) च्या आधारे मोजले जाते. लठ्ठपणामुळे मधुमेह, हृदयविकार, उच्च रक्तदाब, आणि मानसिक आरोग्याच्या समस्यांचा धोका वाढतो. महाराष्ट्रातील लठ्ठ व्यक्तींच्या समस्यांमध्ये आरोग्य समस्या, मानसिक आरोग्याचे मुद्दे, सामाजिक भेदभाव, आणि आर्थिक भार यांचा समावेश आहे. लठ्ठपणा अनेक आरोग्य समस्यांना जन्म देतो, ज्यामुळे व्यक्तींचे जीवनमान कमी होते. मानसिक आरोग्याच्या समस्यांमुळे आत्मसन्मान कमी होतो आणि नैराश्याची शक्यता वाढते. सामाजिक भेदभावामुळे लठ्ठ व्यक्तींना अनेकदा ताणतणावाचा सामना करावा लागतो, ज्यामुळे त्यांच्या मानसिक आरोग्यावर नकारात्मक परिणाम होतो. लठ्ठपणाच्या समस्यांवर उपाययोजना आवश्यक आहेत. संतुलित आहार घेणे, नियमित व्यायाम करणे, आणि जनतेमध्ये जागरूकता वाढवणे हे महत्त्वाचे आहे. संतुलित आहारात फळे, भाज्या, संपूर्ण धान्य, आणि कमी चरबीयुक्त प्रथिने यांचा समावेश असावा. दररोज किमान 30 मिनिटे व्यायाम करणे आरोग्यासाठी फायदेशीर आहे. शाळा, महाविद्यालये, आणि स्थानिक समुदायांमध्ये कार्यशाळा आयोजित करून लठ्ठपणाच्या समस्यांबद्दल जागरूकता वाढवणे आवश्यक आहे. याशिवाय, लठ्ठ व्यक्तींसाठी समर्थन गट तयार करणे, जिथे ते आपले अनुभव शेअर करू शकतात, हे देखील महत्त्वाचे आहे. सरकारने लठ्ठपणाच्या समस्येवर लक्ष केंद्रित करणारी धोरणे तयार करणे आवश्यक आहे, जसे की जंक फूडवर कर लावणे आणि आरोग्यविषयक शैक्षणिक कार्यक्रम आयोजित करणे. मानसिक आरोग्याच्या समस्यांवर उपचार करण्यासाठी व्यावसायिक मदतीची आवश्यकता असू शकते. एकूणच, महाराष्ट्रातील लठ्ठ व्यक्तींच्या समस्यांवर उपाययोजना करण्यासाठी एकत्रितपणे काम करणे आवश्यक आहे. संतुलित आहार, नियमित व्यायाम, आणि जागरूकता यामुळे लठ्ठपणाच्या समस्यांवर मात करता येईल आणि व्यक्तींचे जीवनमान सुधारता येईल.
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2

अनुपमा, वर्मा1 पई मोसिंग1 ऋषि कुमार2 नागेंद्र सिंह3. "पशु स्वास्थ्य और प्रितरक्षा में आंत के स्वास्थ्य की भूमिका". Veterinary Today 3, № 1 (2025): 478–80. https://doi.org/10.5281/zenodo.14826362.

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Abstract:
आंत समग्र स्वास्थ्य को बनाए रखने और आंत-अंग अक्षों की सक्रियता के माध्यम से पाचन के आलावा विभिन्न शारीरिक प्रक्रियाओं को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। आंत का स्वास्थ्य प्रितरक्षा प्रणाली से जुड़ा हुआ है और एक संतुलित आंत फ़्लोरा उचित&nbsp; पोषकतत्व के अवशोषण में योगदान देता है, मानिसक स्वास्थ्य का समर्थन करता है और वजन प्रबंधन को भी प्रभावित&nbsp; करता है। आंत के बैक्टीरिया में असंतुलन, जो अक्सर आहार, तनाव या एंटीबायोटिक दवाओं के कारण होता है, पाचन संबंधी विकार को जन्म दे सकता है और समग्र स्वास्थ्य को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है। एक विवध, फाइबर युक्त आहार, प्रोबिओटिक्स और तनाव प्रबंधन के माध्यम से आंत के स्वास्थ्य को प्राथिमकता देता है और अंततः बेहतर समग्र स्वास्थ्य प्राप्त करने के लिए आवश्यक है।
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3

कौर, परमजीत. "वर्तमान जीवन शैली में स्वस्थ एवं संतुलित आहार के स्थान पर आधुनिक व प्रसंस्कृत भोजन का बढ़ता उपयोग व परिणाम ''स्वस्थ जीवन का आधार पौष्टिक आहार''". Anthology The Research 8, № 11 (2024): H 100 — H 108. https://doi.org/10.5281/zenodo.11221295.

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Abstract:
This paper has been published in Peer-reviewed International Journal "Anthology The Research"&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; URL : https://www.socialresearchfoundation.com/new/publish-journal.php?editID=8865 Publisher : Social Research Foundation, Kanpur (SRF International)&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; Abstract :&nbsp;स्वास्थ्य हमारे जीवन का सर्वश्रेष्ठ महत्व रखने वाला आयाम है। यह हमारे शरीरिक,&nbsp;मानसिक और सामाजिक तंतु का संतुलन होता है जो हमारी सम्पूर्ण जीवन शैली को प्रभावित करता है। स्वास्थ्य का संबंध मात्र निरोगी काया होना नहीं बल्कि यह जीवन के सभी पहलुओं में सम्मिलित होता है। जो हमारे जीवन को सुखमय और सफल बनाते हैं। इसके बल पर ही हम सामाजिक जीवन का सर्वोच्च प्राप्त कर सकते हैं। यह संस्कृति एवं जीवन मूल्यों की प्राथमिक पाठशाला भी है। स्वस्थ शरीर से हमारें भीतर सदगुणों का विकास होता है। हमारें शरीर के समुचित कार्य के लिये संतुलित आहार,&nbsp;फूड एवं न्यूट्रीशन खाने की आवश्यकता है। यह हमारे शरीर को ऊर्जावान रखता है,&nbsp;शारीरिक और मानसिक स्तर पर काम करने की क्षमता प्रदान करता है। यह शारीरिक वजन उठाने की क्षमता से लेकर,&nbsp;शिक्षा में ध्यान केन्द्रित करने व स्मृति को मज़बूत बनाने तक मुख्य तत्व है। भोजन क्षतिग्रस्त कोशिकाओं,&nbsp;ऊतकों की मरम्मत कर हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली बनायें रखने में सहायक होता है। भोजन के मुख्य घटक,&nbsp;कार्बन,&nbsp;नाइट्रोजन,&nbsp;हाइड्रोजन और ऑक्सीजन हैं। एंटोनी लेवोजर (1770-1794)&nbsp;को पोषण का जनक माना जाता है। हिप्पोक्रेटस ने पहली बार चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में नैदानिक पोषण के विज्ञान और दर्शन को मान्यता दी थी। पोषण (न्यूट्रीशन) शरीर के बढ़ने,&nbsp;विकसित होने और जीवन के रख रखाव के लिए आवश्यक तत्वों का सेवन,&nbsp;अवशोषण और उपयोग करने की प्रकिया है। लेकिन वर्तमान जीवनशैली में आधुनिक आहार जैसे- फास्ट फूड़,&nbsp;जंक फूड़ एवं प्रसंस्कृत भोजन का उपयोग दिनों-दिन तेजी से बढ़ता जा रहा है,&nbsp;जिस कारण शारीरिक,&nbsp;मानसिक व भावनात्मक बीमारियां मनुष्य के जीवन को प्रभावित कर रहीं हैं। फास्ट फूड आदि से वजन संबंधी रोग,&nbsp;मधुमेह,&nbsp;उक्त-रक्तचाप,&nbsp;अवसाद,&nbsp;डायबिटीज़ आदि बीमारी बढ़ रही हैं। अतः आज हम सभी को आवश्यकता है अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होने की। इसके लिये फूड एंड न्यूट्रीशन अभियान सरकार द्वारा स्कूलों व कॉलेजों के माध्यम से चलाये जा रहें हैं। कईं प्राइवेट संस्थान में इसकी पूर्ण कक्षायें चल रहीं हैं। अतः एक स्वस्थ समाज की नींव तभी रखी जा सकती है,&nbsp;जब हम सभी एक साथ कुपोषण के विरूद्ध कठोर कदम उठायें और भोजन शिक्षा-शास्त्र को अपने दैनिक आहार शैली से जोडें।
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4

प्रा.कविता, आर.किर्दक. "आजच्या काळात भारतीय महीलांचा आहार व आरोग्य – एक अभ्यास". International Journal of Advance and Applied Research 2, № 19 (2022): 23–25. https://doi.org/10.5281/zenodo.7053646.

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Abstract:
<strong>सारांश </strong> &nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; आजच्या तंत्रज्ञानाचे युगात स्त्रियांच्या भुमिकेत झालेल्या बदलाचा परिणाम स्त्रियांच्या आहार व आरोग्यावर झालेला दिसून येता यामुळे स्त्री आरोग्य ही जागतीक समस्या बनली आहे.&nbsp; संपूर्ण राष्ट्रीय आरोग्याचा विचार करता महीला आरोग्याला अनन्य साधारण महत्व आहे.&nbsp; कारण स्त्री आरोग्यचा परिणाम संपूर्ण कुटूंबा बरोबरच देशाच्या विकासावर होतो.&nbsp; यासाठी स्त्रीयांचा आहार आरोग्य व पोषण यांचा एकत्र विचार होणे गरजेचे आहे. आहाराचा आरोग्याशी तर उत्तम पोषणाचा आहाराशी संबध असतो म्हणून आहार,आरोग्य, पोषण यांचा परस्पर संबध स्त्रीच्या दृष्टीकोनातून अभ्यासणे गरजे आहे.&nbsp; तसेच महीलांचे आरोग्य उत्तम राहण्यासाठी योग्य प्रमाणात आहारातील सर्व पोषक घटक मिळणे आवश्यक आहे.&nbsp; शरीराला ज्या दर्जाचा अन्न पुरवठा होईल त्या वरच शरीराच्या क्रिया अवलंबून असतात महीलांना प्रत्येक अवस्थेतील आहार हा वेग वेगळा घ्यावा लागतो.
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दिव्यश्री, जगदीश पै बि., та वि भट्टः भास्कर. "चातुर्मास्यव्रतविधिः वैज्ञानिक तथा अध्यात्मदृष्ट्या". International Journal of Philosophy and Languages (IJPL) 1, № 1 (2023): 34–41. https://doi.org/10.5281/zenodo.8226071.

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Abstract:
<em>स्वास्थ्यरक्षणस्य मूलाधाराः एव आहार-विहारा इति आयुर्वेदे निरूपितमस्ति।अस्माकं पूर्वजानाम् आहार-विहारा, तेषां जीवनक्रमस्याध्ययनमेव अद्यतन समस्यायाः परिहारः इत्यत्र न संशयः।एतत्सर्वम् </em><em>अनुवीक्षैव चातुर्मास्यव्रतं</em> <em>निरूपितमस्ति।जीवरक्षणार्थम् आहारस्वीकारमेकं साधनमस्ति।भक्ष्यं, भोज्यं, लेह्यः पेयः इत्यादयः अन्नस्वरूपाः सन्ति।</em><em>उत्तमारोग्याय</em> <em>काले काले </em><em>एकविधमाहारभक्षणमावश्यकमिति</em> <em>वैज्ञानिकरीत्यापि उक्तमस्ति । </em>
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काळे (भांबुरकर), रुपाली सुरेषराव, та प्रा डॉ सारिका बोदडे. "आदिवासी महिला आणि आहार निरक्षरता". SK International Journal of Multidisciplinary Research Hub 11, № 12 (2024): 287–90. https://doi.org/10.61165/sk.publisher.v11i12.58.

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बिनोद, कुमार भारती सोनिया कुमारी अवधेश कुमार झा एअम बिपिन कुमार सिंह. "पशु आहार और इसका उत्पादन". Science world a Monthly e magazine 5, № 2 (2025): 6402–6. https://doi.org/10.5281/zenodo.14959455.

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Abstract:
भारत एक खेतिहर प्रधान देश है। इस देश की 70 प्रतिशत आबादी आज भी गांवों में रहकर खेती का मुख्य व्यवसाय करती है। खेतिहर किसान खेती से होने वाली कम आय को बढ़ाने के लिए अथवा अतिरिक्त आय हासिल करने के लिए पशुओं को पालते हैं। इसके अलावा पूरे देश में डेयरी उद्योग, पोल्ट्री फार्म उद्योग आदि का तेजी से विस्तार हो रहा है। देश के सभी शहरों में डेयरी उद्योग काफी तेजी से फल-फूल रहा है। शहरों में पशुओं का पालन-पोषण पूरी तरह से बिजनेस को लेकर किया जाता है। शहरों में घनी बस्तियों के बीच दूध की डेयरियां होती है। जहां पर जानवरों को घूमने फिरने की ऐसी कोई जगह नहीं होती है, जहां पर उन्हें चराया जा सके। शहरों की बिजनेस वाली डेयरी के संचालक अपने पशुओं को उत्तम से उत्तम आहार देकर उनसे अधिक से अधिक दूध का उत्पादन करना चाहते हैं क्योंकि दूध नकदी उत्पाद है, जिससे डेयरी संचालक को प्रतिदिन दोनों समय नकद आमदनी होती है। ये डेयरी संचालक अपनी इस नकद आमदनी को किसी भी कीमत पर कम नहीं होने देना चाहते है। &nbsp;इसके लिये वह अपने जानवरों की देखभाल बहुत अच्छे तरीके से करते है। शहरों में दूध,दही, घी, मक्खन, पनीर क्रीम आदि दुग्ध पदार्थों की बढ़ती मांग को देखते हुए जगह-जगह डेयरी फार्म खुल रहे हैं। इन डेयरी में &nbsp;अधिक दूध देने वाली विदेशी नस्लों की गाय एअम भैंसों को भारी संख्या में पाला जाता है। लेकिन गांव और शहरों के पशुपालन के तरीके में जमीन-आसमान का अन्तर होता है। गांव में जहां किसान के पास अपने खेतों का भूसा होता है। वहीं चूरी आदि का प्रबंध भी किसान अपने घर से ही कर लेता है। इसके अलावा खल आदि की व्यवस्था भी खेतों में पैदा होने वाली उपज के माध्यम से कर लेता है। इसके अलावा किसानों में खुली जगह में जानवरों को चराया भी जाता है। बस इन्हीं साधनों से गांवों में पशुओं का पालन साधारण तरीके से होता है। इसका कारण यह होता है कि किसान अपने पशु बिजनेस के लिए नहीं बल्कि अपने परिवार की जरूरतों के लिए पालता है। यदि पशु ने उसकी जरूरत से अधिक दूध दे दिया तो उसे बेच लेता है वरना वो अपने घर का काम चलाता है। इसके अलावा महानगरों व मेट्रो सिटी से लगे हुए गांवों में पशुपालन बिजनेस के लिए किया जाता है, वहां की स्थिति काफी अलग होती है। वहां पर शहरों की डेयरियों से भी अच्छी पशुओं की देखभाल की जाती है।
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Arekar, Bhakti Pramod. "शाश्वत विकासाच्या ध्येयपूर्तीतील भारतातील मध्यान्ह आहार योजनेची भूमिका". International Journal of Advance and Applied Research 6, № 25(D) (2025): 146–50. https://doi.org/10.5281/zenodo.15340081.

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Abstract:
<strong>Abstract </strong><strong>सारांश </strong> संयुक्त राष्ट्राने २०१६ मध्ये जगाच्या&nbsp; शाश्वत विकासासाठी १७ उद्दिष्टे&nbsp; निश्चित केली आहेत.जे राष्ट्राच्या वर्तमानकालीन व भविष्यकालीन विकासातही उपयोगी आहेत. भारत जगाच्या लोकसंख्येच्या बाबतीत प्रथम क्रमांकावर असून विकसनशील देशाच्या गटात मोडतो. सर्वाधिक लोकसंख्या व पर्याप्त संसाधनाच्या उपलब्धतेमुळे भारताला अनेक समस्यांना सामोरे जावे लागते. त्यामुळे विकसनशील राष्ट्रापासून विकसित राष्ट्रापर्यंतच्या प्रवासात शाश्वत विकासासाठी भारतात अनेक योजना राबवल्या जात आहेत. अशा योजनांपैकी एक म्हणजे मध्यान्ह आहार योजना होय. शाळेतील मुलांच्या पोषण स्थितीत सुधारणा व त्यांच्या उपस्थित वाढ होण्यासाठी या योजनेची सुरवात केली होती. देशातील गरीब मुलांना चांगले पौष्टिक अन्न व शिक्षण मिळावे यासाठी ही योजना महत्त्वाची आहे. आजची मुले ही उद्याच्या भारताचे भविष्य आहेत. त्यामुळे त्यांच्या आरोग्याची व शिक्षणाची काळजी घेऊन भविष्यात कार्यक्षम व निरोगी नागरिक निर्माण करण्यासाठी ही योजना फायदेशीर आहे . संयुक्त राष्ट्राच्या शाश्वत विकासातील उद्दिष्टांची पूर्तता करण्यासाठी मध्यान्ह आहार योजना ही कशाप्रकारे उपयोगी पडते याचा आढावा या शोध निबंधात घेतला आहे. मध्यान्ह आहार योजना ही शाश्वत विकासाची उद्दिष्टे &nbsp;गाठण्यासाठी दारिद्र्य निर्मुलन, शून्य उपासमार, शिक्षण, आरोग्य व असमानता कमी करणे इत्यादी ध्येयांच्या प्राप्तीसाठी कशाप्रकारे या योजनेचा फायदा होतो याचा सर्वसमावेशक अभ्यास येथे केला आहे. तसेच बालकांसाठी&nbsp;सुरू असलेली पौष्टिक अन्नाची मध्यान्ह आहार योजना इतक्या वर्षांनी सुद्धा उपयुक्त आहे का याचा आढावा घेऊन तसेच ती राबवताना येत असलेली आव्हाने व त्या दृष्टीने करावयाच्या सुधारणांचा विचार इथे केला गेला आहे.&nbsp;
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राऊत, डॉ. जिजाबाई प. "बदलत्या जीवनशैलीत आहार आणि योगाची भूमिका". International Journal of Advance and Applied Research 6, № 17(B) (2025): 145–47. https://doi.org/10.5281/zenodo.15235594.

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Abstract:
<strong>सारांश &ndash;</strong> &nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp; &nbsp;बदलत्या जीवनशैलीमुळे महाविद्यालयीन मुले फास्ट फूड व प्रक्रियायुक्त पदार्थांचा वापर जास्त करताना आढळून आले. समतोल आहार घेतला जात नाही .तसेच नियमित व्यायामही केला जात नाही. जेवणाच्या वेळा ही&nbsp; निश्चित नाहीत. जागरण जास्त प्रमाणात केले जाते. रात्रभर जागरण करणे, उशिरा उठने.&nbsp; मोबाईल, सोशल मीडिया, इंटरनेटचा, प्रसार माध्यमांचा अति वापर केला जातो या आणि अशा अनेक कारणांमुळे मुलांमध्ये आरोग्य विषयक समस्या आढळून आल्या; यामध्ये अशक्तपणा, डोकेदुखी, असुरक्षितता,&nbsp; लठ्ठपणा, अस्वस्थता, एकाग्रतेचा अभाव, आळशीपणा,<strong> तणाव,</strong><strong> <strong>नैराश्य,</strong></strong> रक्तक्षय अशा अनेक समस्या दिसून आल्या. पण या समस्यांवर समतोल आहार घेऊन व योग, प्राणायाम, नियमित व्यायाम करून मात करणे अत्यंत आवश्यक आहे.&nbsp;
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प्रो., श्वेता शिरीष गुंडावार. "आधुनिक जीवनशैली आणि आहार: एक अभ्यास". International Journal of Advance and Applied Research S6, № 18 (2025): 353–56. https://doi.org/10.5281/zenodo.15250998.

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Abstract:
आधुनिक जीवनशैलीमुळे मानवाच्या दैनंदिन जीवनात अनेक बदल झाले आहेत. वाढते शहरीकरण, तंत्रज्ञानाचा वापर, गतिशीलता आणि वेगवान जीवनशैलीमुळे आहाराच्या सवयींवर मोठा परिणाम झाला आहे. या संशोधनात आधुनिक जीवनशैली आणि आहारातील बदल यांचा आरोग्यावर होणाऱ्या परिणामांचा अभ्यास करण्यात आला आहे. आधुनिक जीवनशैली आणि आहारातील बदलांचा मानवी शरीराच्या जैवरासायनिक (biochemical), चयापचय (metabolic) आणि आनुवंशिक (genetic) प्रक्रियांवर मोठा परिणाम होत आहे. या संशोधनात, पोषणशास्त्र (nutritional science), बायोकेमिस्ट्री, फिजियोलॉजी, आणि एपिजेनेटिक्स यांचा अभ्यास करून आधुनिक जीवनशैली व आहार यांचा आरोग्यावर होणारा प्रभाव याचा विचार करण्यात आला आहे.
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