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Journal articles on the topic 'सांस्कृतिक स्थल'

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डा, ॅ. शोभना जोशी. "''कथक नृत्य म ें नवाचार आ ैर डाॅ. सुचित्रा हरमळकर''". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.886804.

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Abstract:
कवि जयश ंकर प्रसाद की प ्रसिद्ध प ंक्तियाँ ह ैं - प ुरातनता का यह निर्मोक, सहन करती न प ्रकृति पल एक। नित्य-नूतनता का आनंद, किय े ह ै ं परिवर्तन में ट ेक।।1 अर्था त् प ्रकृति प ुरातन का वहन पल भर क े लिए भी नहीं करती ह ै। नित्य नवीनता आनंददायी होती ह ै अतः प ्रकृति परिवर्तन की टेक पर, नित्य नवीन रूप धारण करती है। इसीलिए प ्रकृति रमणीय ह ै। प ्रकृति में मिट्टी, जल, हवा, अग्नि है जो हमारे संपर्क में ह ै और अंतरिक्ष जो दृश्यमान ह ै। इन मुख्य तत्वों क े अतिरिक्त प ्रकृति के अ ंग ह ै ं- समस्त, जल, थल, नभचर-जीव, ज ंगल। ज ंगल में व ृक्ष, पा ैधे, लताएँ है ं। प्रकृति के ये सभी अंग व ैविध्य से भरपूर ह ै
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मिश्रा, आ. ंनद म. ुर्ति, प्रीति मिश्रा та शारदा द ेवा ंगन. "भतरा जनजाति में जन्म संस्कार का मानवशास्त्रीय अध्ययन". Mind and Society 9, № 03-04 (2020): 39–43. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-93-4-20215.

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Abstract:
स ंस्कार शब्द का अर्थ ह ै श ुद्धिकरण। जीवात्मा जब एक शरीर का े त्याग कर द ुसर े शरीर म ें जन्म ल ेता है ता े उसक े प ुर्व जन्म क े प ्रभाव उसक े साथ जात े ह ैं। स ंस्कारा े क े दा े रूप हा ेत े ह ैं - एक आंतरिक रूप आ ैर द ूसरा बाह्य रूप। बाह ्य रूप का नाम रीतिरिवाज ह ै जा े आंतरिक रूप की रक्षा करता है। स ंस्कार का अभिप्राय उन धार्मि क क ृत्या ें स े ह ै जा े किसी व्यक्ति का े अपन े सम ुदाय का प ुर्ण रूप स े योग्य सदस्य बनान े क े उदद ्ेश्य स े उसक े शरीर मन मस्तिष्क का े पवित्र करन े क े लिए किए जात े ह ै। सभी समाज क े अपन े विश ेष रीतिविाज हा ेत े ह ै, जिसक े कारण इनकी अपनी विश ेष पहचान ह ै,
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साह ू, प. ्रवीण क. ुमार. "संत कबीर की पर्यावरणीय चेतना". Mind and Society 9, № 03-04 (2020): 57–59. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-93-4-20219.

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Abstract:
स ंत कबीर भक्तिकालीन निर्ग ुण काव्यधारा अन्तर्ग त ज्ञानमार्गी शाखा क े प ्रवर्त क कवि मान े जात े ह ैं। उनकी वाणिया ें म ें जीवन म ूल्या ें की शाश्वत अभिव्यक्ति एव ं मानवतावाद की प ्रतिष्ठा र्ह ुइ ह ै। कबीर की ‘आ ंखन द ेखी’ स े क ुछ भी अछ ूता नही ं रहा ह ै। अपन े समय की प ्रत्य ेक विस ंगतिया ें पर उनकी स ूक्ष्म निरीक्षणी द ृष्टि अवश्य पड ़ी ह ै। ए ेस े म ें पर्या वरण स ंब ंधी समस्याआ ें की आ ेर उनका ध्यान नही गया हा े, यह स ंभव ही नही ह ै। कबीर क े काव्य म ें प ्रक ृति क े अन ेक उपादान उनकी कथन की प ुष्टि आ ैर उनक े विचारा ें का े प ्रमाणित करत े ह ुए परिलक्षित हा ेत े ह ैं। पर्या वरणीय जागरूक
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द्विजेश, उपाध् याय, та मकुेश चन्‍द र. पन डॉ0. "तबला एवंकथक नृत्य क अन् तर्सम्‍ बन् धों का ववकार्स : एक ववश् ल षणात् मक अ्‍ ययन (तबला एवंकथक नृत्य क चननांंक ववे ष र्सन् र्भम म)". International Journal of Research - Granthaalayah 5, № 4 (2017): 339–51. https://doi.org/10.5281/zenodo.573006.

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Abstract:
तबला एवांकथक नृत्य ोनन ताल ्रधाान ैं, इस कारण इनमेंसामांजस्य ्रधततत ैनता ै। ूरवव मेंनृत्य क साथ मृो ां की स ां त ैनतत थत ककन्तुबाो म नृत्य मेंजब ्ृां ािरकता ममत्कािरकता, रांजकता आको ूैलुओांका समाव श ैुआ तन ूखावज की ांभतर, खुलत व जनरोार स ां त इन ूैलुओांस सामांजस्य नै ब।ाा ूा। सस मेंकथक नृत्य क साथ स ां कत क कलए तबला वाद्य का ्रधयन ककया या कजस मृो ां (ूखावज) का ैत ूिरष्कृत एवां कवककसत प ू माना जाता ै। तबला वाद्य की स ां त, नृत्य क ल भ सभत ूैलुओांकन सैत प ू में्रधस्तुत करन मेंस ल साकबत ैु। कथक नृत्य की स ां कत में ूररब बाज, मुख्यत लखन व बनारस ररान का मैत् वूरणव यन ोान रैा ै। कथक नृत्य की स ां कत
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राय, अजय क. ुमार. "जनसंख्या दबाव से आदिवासी क्षेत्रों का बदलता पारिस्थितिकी तंत्र एवं प्रभाव (बैतूल-छिन्दवाड़ा पठार के विशेष सन्दर्भ में)". Mind and Society 9, № 03-04 (2020): 31–38. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-93-4-20214.

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Abstract:
जनजातीय पारिस्थितिकी म े ं वन, क ृषि म े ं स ंलग्नता, आवास, रहन-सहन का स्तर, स्वास्थ्य स ुविधाआ े ं का अध्ययन आवश्यक हा ेता ह ै। सामान्यतः धरातलीय पारिस्थ्तििकी का े वनस्पति आवरण क े स ंदर्भ म ें परिभाषित किया जाता ह ै। अध्ययना ें स े यह स्पष्ट ह ैं कि यदि किसी स्थान पर जनस ंख्या अधिक ह ैं आ ैर यदि उसकी व ृद्धि की गति भी तीव ्र ह ै ं ता े वहा ं पर अवस्थानात्मक स ुविधाआ ंे क े निर्मा ण क े परिणास्वरूप तथा विकासात्मक गतिविधिया ें क े कारण विद्यमान स ंसाधना ें पर दबाव निर ंतर बढ ़ता ही जाता ह ैं, प ्रस्त ुत अध् ययन म े ं शा ेधार्थी आदिवासी एव ं वन बाह ुल्य क्ष ेत्र ब ैत ूल-छि ंदवाड ़ा पठार म ें ज
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तिवारी, रोली, та चित्रल ेखा वमा. "व्हाट्सएप पर साझा की जाने वाली शैक्षणिक जानकारियो की प्रकृति का अध्ययन". Mind and Society 9, № 03-04 (2020): 23–30. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-93-4-20213.

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Abstract:
प्रस्त ुत अध्ययन म ें ”व्हाट ्सएप पर साझा की जान े वाली श ैक्षणिक जानकारिया े ं की प्रक ृति का अध्ययन छात्राध्यापका ें क े विश ेष स ंदर्भ म ें” किया गया। क ुल 200 छात्राध्यापकों (100 प ुरूष छात्राध्यापक ए ंव 100 महिला छात्राध्यापिकाआ े ं) का चयन सा ेद्द ेश्य न्यादश र् विधि द्वारा किया गया। शा ेध उपकरण क े रूप में आकड ़ें संग ्रहण करने क े लिय े स्मा र्टफोन म ें प्रय ुक्त व्हाट ्सएप म ैस े ंजर क े माध्यम स े स्क्रीनशा ॅट, छवि (इम ेज) प्रक्रिया का े लिया गया। सा ंख्यिकी विश्ल ेषण ह ेत ु प्रतिशत द्वारा परिकल्पनाओ ं की साथ र्कता की जा ंच की गयी। निष्कष र् म े ं यह पाया गया कि छात्राध्यापका े ं द्व
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खापर्ड े, स. ुधा, та च. ेतन राम पट ेल. "कांकेर में रियासत कालीन जनजातीय समाज की परम्परागत लोक शिल्प कला का ऐतिहासिक महत्व". Mind and Society 9, № 03-04 (2020): 53–56. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-93-4-20218.

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Abstract:
वर्त मान स्वरुप म ें सामाजिक स ंरचना एव ं ला ेक शिल्प कला म ें का ंक ेर रियासत कालीन य ुग म ें जनजातीय समाज की आर्थि क स ंरचना म ें ला ेक शिल्प कला एव ं शिल्प व्यवसाय म ें जनजातीया ें की वास्तविक भ ूमिका का एव ं शिल्प कला का उद ्भव व जन्म स े ज ुड ़ी क ुछ किवद ंतिया ें का े प ्रस्त ुत करन े का छा ेटा सा प ्रयास किया गया ह ै। इस शा ेध पत्र क े माध्यम स े शिल्पकला म ें रियासती जनजातीया ें की प ्रम ुख भ ूमिका व हर शिल्पकला किस प ्रकार इनकी समाजिकता एव ं स ंस्क ृति की परिचायक ह ै एव ं अपन े भावा ें का े बिना कह े सरलता स े कला क े माध्यम स े वर्ण न करना ज ैस े इन अब ुझमाडि ़या ें की विरासतीय कला ह
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मोनीषा, वीरवानी. "स ेहत का मीत - स ंगीत". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.885867.

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Abstract:
संगीत लोगा ें का े संव ेदना क े स्तर पर एक गहरी समझ देकर उन्ह ें ब ेहतर बनने की दिशा में प्र ेरित करता ह ै आ ैर यही तत्व जब निज से व्यापक हा ेता ह ै ता े दुनिया भी बदल सकती ह ै. ये संगीत ही है जो आदि का े अ ंत से जा ेडकर हमारे हृदय का साहित्य बन जाता ह ै। आत्मा का े स्नेह से भर देता ह ै मन का े गहन अन्धकार से लेकर अनन्त ऊंचाइया ें तक ले जाता ह ै । संगीत क® ईश्वर का दर्जा प्राप्त ह ै, इसीलिए इस विधा में शुध्दता का विश ेष महत्व है। सात ष ुघ्द अ©र पा ंच क®मल स्वर®ं क े माध्यम से मन क® साधने का उपाय ह ै संगीत। अतः कहा जा सकता ह ै कि शरीर तथा मन क® स्वस्थ््ा, प्रफुल्लित रखने क े लिए संगीत आवश््यक ह
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चा ैहान, ज. ुवान सि ंह. "प ्रवासी जनजातीय श्रमिका ें की प ्रवास स्थल पर काय र् एव ं दशाआ ें का समाज शास्त्रीय अध्ययन". Mind and Society 8, № 03-04 (2019): 38–44. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-83-4-20196.

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Abstract:
भारत म ें प ्रवास की प ्रक्रिया काफी लम्ब े समय स े किसी न किसी व्यवसाय या रा ेजगार की प ्राप्ति ह ेत ु गतिशील रही ह ै आ ैर यह प ्रक्रिया आज भी ग ्रामीण जनजातीय सम ुदाय म ें गतिशील दिखाइ र् द े रही ं ह ै। प ्रवास की इस गतिशीलता का े रा ेकन े क े लिए क ेन्द ्र तथा राज्य सरकार न े मनर ेगा क े तहत ् प ्रधानम ंत्री सड ़क या ेजना, स्वण र् ग ्राम स्वरा ेजगार या ेजना ज ैसी सरकारी या ेजनाआ े ं का े लाग ू किया ह ै, ल ेकिन फिर ग ्रामीण जनजातीय ला ेगा े ं क े आथि र्क विकास म े ं उसका असर नही ं दिखाइ र् द े रहा ह ै। ग ्रामीण जनजातीय सम ुदाया ें म े ं निवास करन े वाल े अधिका ंश अशिक्षित हा ेन े क े कारण शा
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डा, ॅ. स्मिता सहस्त्रब ुद्धे. "स ंगीत क े प्रचार प्रसार में स ंचार साधन¨ ं की भूमिका". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–4. https://doi.org/10.5281/zenodo.884794.

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Abstract:
संगीत जीवन क¢ ताने-बाने का वह धागा है जिसक¢ बिना जीवन सत् अ©र चित् का अंश ह¨कर भी आनंद रहित रहता ह ै तथा नीरस प्रतीत ह¨ेता ह ै। संगीत में ए ेसी दिव्य शक्ति ह ै कि उसक ¢ गीत क ¢ अर्थ अ©र शब्द¨ं क¨ समझे बिना भी प्रत्येक व्यक्ति उसस े गहरा सम्बन्ध महसूस करता ह ै। ”संगीत“ एक चित्ताकर्शक विद्या ज¨ मन क¨ आकर्षि त करती ह ै। गीत क ¢ शब्द न समझ पाने पर भी ध ुन पसंद आने पर ल¨ग उस गीत क¨ गाते ह ैं, क्य¨ ंकि भारतीय संगीत-कला भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अ ंग है एवं भारत क ¢ निवासिय¨ं की जीवनशैली का प्रमाण ह ैं। ”संगीत“ मानव समाज की कलात्मक उपलब्धिय¨ ं अ©र सांस्कृतिक परम्पराअ¨ं का मूर्तमान प्रतीक ह ै। यह आ
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डा, ॅ. किन्श ुक श्रीवास्तव, та गुप्ता सुयंका. "स ंगीत क े प्रचार- प्रसार में स ंचार माध्यमा ें की भ ूमिका". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.885855.

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Abstract:
नाटक और रंगमंच सम्भवतः मनुष्य जाति का पहला आ ैर सदिया ें तक एकमात्र सशक्त एवं जीवन्त जन-माध्यम रहा है। बदलते ह ुए समय आ ैर समाज क े साथ-साथ इसके स्वरूप एवं सरोकार भी लगातार बदलते रह े। प ्राचीन काल में शास्त्रीय रंगमंच राज्याश्रित था आ ैर लोक-रंगमंच जनाश्रित। मध्यकाल में, मुसलमान-मुगल शासकों ने कलाओं क े लगभग सभी रूपों का खूब विकास आ ैर विस्तार किया। समय आ ैर समाज क े परिवर्तन से अभिव्यक्ति माध्यम आ ैर साहित्य एवं कलाओं क े स्वरूप भी बदलते ह ै ं। आध ुनिक काल में विज्ञान ने अभूतप ूर्व प ्रगति की। नए-नए आविष्कार हुए। प्रि ंटिंग प ्रेस ने साहित्य को जन-सुलभ बनाने और सूचना-संचार क े माध्यम क े रूप
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ख ुट, डिश्वर नाथ. "बस्तर का नलवंश एक ऐतिहासिक पुनरावलोकन". Mind and Society 9, № 03-04 (2020): 47–52. http://dx.doi.org/10.56011/mind-mri-93-4-20217.

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Abstract:
सभ्यता का विकास पाषाण काल स े प ्रार ंभ हा ेता ह ै। इस काल म ें बस्तर म े रहन े वाल े मानव भी पत्थर क े न ुकील े आ ैजार बनाकर नदी नाल े आ ैर ग ुफाआ ें म ें रहत े थ े। इसका प ्रमाण इन्द ्रावती आ ैर नार ंगी नदी के किनार े उपलब्ध उपकरणों स े हा ेता है। व ैदिक युग म ें बस्तर दक्षिणापथ म ें शामिल था। रामायण काल म ें दण्डकारण्य का े उल्ल ेख मिलता ह ै। मा ैर्य व ंश क े महान शासक अशा ेक न े कलि ंग (उड ़ीसा) पर आक्रमण किया था, इस य ुद्ध म ें दण्डकारण्य क े स ैनिका ें न े कलि ंग का साथ दिया था। कलि ंग विजय क े बाद भी दण्डकारण्य का राज्य अशा ेक प ्राप्त नही ं कर सका। वाकाटक शासक रूद ्रस ेन प ्रथम क े समय
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डा, ॅ. नीरज राव. "स ंगीत क े प्रचार-प्रसार म ें स ंचार साधना ें की भ ूमिका". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1. https://doi.org/10.5281/zenodo.886994.

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Abstract:
मनुष्य को आदिकाल से ही संगीत मना ेरंजन एव ं आमोद-प्रमोद का साधन रहा ह ै। आदिकाल से ही मानव ने अपने मना ेरंजन क े साधन क े लिये विभिन्न प्रकार क े प ्रया ेग किये जैसे-जैसे मानव अपनी सभ्यता का विकास करता गया व ैसे-व ैसे उसकी समझ आ ैर सूझ-बूझ ने नृत्य, गायन आ ैर वादन की ओर आकर्षि त किया। मानव ने सभ्यता और संस्कृति को समझकर अपने का े प ्रकृति क े साथ तालमेल करते ह ुए संगीत का े सीखा। हमारे पा ैराणिक ग्रंथों में भी इस बात का उल्लेख ह ै कि माँ पार्वती की गायन मुद्रा को देखकर भगवान षंकर ने क्रमषः पाँच राग हिंडा ेल, दीपक, श्री, मेघ, का ैषिक आदि रागों की रचना की एवं संगीत की उत्पत्ति भगवान षिव क े ताण्
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डा, ॅ. गीताली स. ेनगुप्ता. "र ंगा े का मना ेवैज्ञानिक प्रभाव". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–4. https://doi.org/10.5281/zenodo.889241.

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Abstract:
रंगा ें क े प ्रति मानव का अनुराग आज से नहीं बल्कि सदिया ें से रहा ह ै। रंग प ्रकृति एव ं ईष्वर की सबसे बह ुमूल्य देन ह ै। रंग क े बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। प ्रकृति द्वारा रचित अनगिनत वस्तुओं क े विविध रंग प ्र ेरणा क े स्त्रा ेत रह े ह ै ं। इन्ह ें देखकर मनुष्य ने उसे चित्रकलाओं, मूर्तिकलाओं, नाट्य एवं साहित्य में उकेरा है। रंगा ें से हमें निरन्तर ऊर्जा एवं चैतन्य शक्ति प ्राप्त होती है, निष्चित ही रंगविहीन जीवन नीरस, उदासीन एवं एकसार होता है। मनुष्य स्वभाव से सुन्दरता प ्रेमी है। अतः रंगा ें स े उसका घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है। पहले प्रकृति से फिर धीरे-धीरे व ैज्ञानिक अनुभवा ें
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डा, ॅ. सीमा सक्सेना. "स ंगीत आ ैर समाज". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.886828.

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Abstract:
्रकृति का मूल सिद्वान्त ह ै कि मनूष्य न े अपनी नैस ेर्गिक आवष्यकताओं क े लिये समाज क े अवलम्ब को अवधारित किया उसे अपने सुखःदुख की हिस्सेदारी एव ं व्यवहारिक बल व असुरक्षा से बचकर क े लिये समाज की सृष्टि करनी पड़ी अथवा समाज की शरण में जाना पड़ा। बाल्यकाल, युवावस्था, व ृद्वावस्था, अथवा यह कहा जाये कि जीवन क े प ्रत्येक चरण में मनुष्य का े समाज की आवष्यकता नैसर्गिक होती ह ै। समाज यदि जननी है तो व्यक्ति उसका बालक। विकास की प्रारंभिक अवस्था से निरन्तर प ्रगति पथ पर बढ़ते ह ुऐ उसने अपनी आवष्यकताओं क े रूप सृजन करना आरंभ किया आ ैर-यही सृजन कलाओं का उद्गम स्थल बना। उसे यह पता ही नहीं चला कि कब उसकी इसी
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Aradhna, Sharma. "र ंगा े क े माध्यम स े या ेग साधना का महत्व". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.892011.

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Abstract:
रंगा ें में नया रूप, नया भाव, स्थापित करने की जो अनुठी लाक्षाणिकता एवं अनुभवों क े मिश्रण से प ्राप्त इस प्रक्रिया को उपया ेग में लाया गया ह ै ं। यह ज्ञार्नाजन का प्रथम पक्ष जो मनुष्य क े जीवन में जन्मजात हा ेता ह ैं। अर्था त भावनाआ ें क े माध्यम से कार्य करने की रीति जिसका विकास, अभ्यास और अनुभव से होता ह ैं। भावो का े इस प ्रकार से उधघाटित किया जाता ह ैं। जा े पथ प ्रदर्ष क की पहचान बन जाती ह ैं। भावों का े अ ंतराल में अ ंकित कर समाया ेजित करने का विनम्र भाव भावात्मक शैली गतिषील होती ह ैं। जो रंगा ें का स्थायित्व स्थापित करने की विकास गति का अनूठा प्रया ेग ह ैं। रंगा ें की प ्रधानता हम सभी र
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डा, ॅ. प. ्रतिभा सा ेलंकी. "हि ंदी गीति - काव्य आ ैर स ंगीत का पारस्परिक स ंब ंध आ ैर नवाचार". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.886954.

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Abstract:
संगीत आ ैर साहित्य दोना ें ही मनुष्य क े भावों का े व्यक्त करने क े महत्वपूर्ण माध्यम ह ै। दोना ें क े समन्वय से अलौकिक सा ैंदर्य सृष्टि-वृष्टि होती ह ै जो मानव मन का े सच्चिदानंद की अनुभूति और सत्यम्-षिवम्-सुंदरम् की प ्रतीति कराती ह ै। वाराहोपनिषद के अनुसार संगीत सम्यक गीत है, भागवत प ुराण नृत्य तथा वाद्य यंत्रा ें क े साथ प्रस्तुत गायन का े संगीत कहता ह ै तथा संगीत का लक्ष्य आनंद प ्रदान करना मानता ह ै। यही उद्द ेष्य साहित्य का भी होता है। साहित्य अक्षर ब्रह्म आ ैर षब्द ब ्रह्म से साक्षात कराता ह ै ता े संगीत नादब ्रह्म और तालब्रह्म से। साहित्य आ ैर संगीत दोनों का साथ चोली-दामन का सा है। वि
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प, ्रो. अर्चना भट्ट सक्सेना. "मालवी लोकगीता ें में स ंगीत". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.886958.

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Abstract:
भारतीय लोक जीवन सदैव संगीत मय रहा ह ै। भारत वर्ष का का ेई अंचल का ेई जाति ए ेसी नही ं जिसके जीवन पर संगीत का प ्रभाव न पड़ा हो। भारतीय स ंगीत के लिए कहा जाता ह ै कि साहित्य से ब्रह्म का ज्ञान और संगीत से ब ्रह्न की प्राप्ति होती है। भारत में प ुरातन काल से विभिन्न पर्वो एवं अवसरा ें पर गायन, वादन व नृत्य की परंपरा रही है। लोकगीत प ्राचीन संस्कृति एव ं सम्पदा के अमिट वरदान ह ै जिसमें अनेकानेक संस्कृतिया ें की आत्माआ ें का एकीकरण हुआ है। लोक संगीत जन-जीवन की उल्लासमय अभिव्यक्ति ह ै। पद्म श्री ओंकारनाथ क े मतानुसार- ‘‘देवी संगीत क े विकास की प ृष्ठभूमि लोक संगीत ह ै। जिस देष या जाति का सम्व ेदनषी
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स©म्या, सिंह. "शिक्षण एवं प्रदर्शन में इल्¨क्ट्रॉनिक वाद्य¨ ं की भूमिका". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.884809.

Full text
Abstract:
ैदिक अवधारणा क े आधार पर नाद का निर्मा ण सर्वप्रथम ईश्वर की अभिव्यक्ति है। आदिम काल स े ही अ¨ऽमकार क¨ ब्रह्मनाद माना गया। आज का संगीत मनुष्य क े प्रयत्न¨ं स े अपने वर्तमान रूप में परिणित ह ुआ ह ै। परिवर्तन प्रकृति का नियम ह ै अ©र यही परिवर्तन हमारे शास्त्र्ाीय संगीत में भी दिखता ह ै जिसने कहीं सकारात्मक त¨ कहीं नकारात्मक छाप छ¨ड़ी ह ै। इसी क्रम में संगीत शिक्षण एवं प्रदर्श न में इल्¨क्ट्रॉनिक वाद्य¨ं की भूमिका बह ुत अहम रही है ं। स्वतन्त्र्ाता के बाद अब राष्ट्रीय संरक्षण पाकर भारतीय शास्त्र्ाीय संगीत प्रदीप्त ह¨ गया, भारतीय संगीत ने एक नवीन करवट ली, जिसके फलस्वरूप रियासती राजाअ¨ं के संरक्षण मे
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डा, ॅ. श्रीमती प्रतिभा श्रीवास्तव. "र ंग, स ेहत, सब्जियाँ - एक दृष्टिका ेण". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–5. https://doi.org/10.5281/zenodo.890493.

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Abstract:
रंगा ें का हमारे जीवन में बहुत महत्व है। इनके द्वारा हमें अपने चारों ओर की स्थितिया ें का ज्ञान होता ह ै आ ैर रंगा ें का प्रभाव ज्ञात हा ेता है। रंग मनुष्य की आँख में वर्णक्रम से मिलने पर छाया संब ंधी गतिविधियों से उत्पन्न होते ह ै। मूलरूप से इन्द्रधनुष क े सात रंगा ें का े ही रंगा ें का जनक माना जाता है। ये सात रंग लाल, नारंगी, पीला, हरा, आसमानी, नीला व ब ैंगनी ह ै। मानवीय गुण धर्म में आभासी बोध के अनुसार लाल, नीला व हरा रंग हा ेता है। रंगा ें स े विभिन्न प ्रकार से वस्तु प ्रकाष स्त्रोत एवं श्रेणियां इत्यादि आती ह ै। प ्रकाष स्त्रोता ें के भा ैतिक, गुणधर्म जैसे प्रकाष विलियन, समावेषन, परावर्
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डा, ॅ. वसंुधरा पवार. "स ंगीत म ें नवाचार का इतिहास". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.886069.

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Abstract:
भारतीय संगीत का इतिहास उतना ही प्राचीन आ ैर अनादि ह ैं, जितनी मानव जाति। इसका सभारंच व ैदिक माना जाता ह ै। जितनी प्राचीन हमारे देश की सभ्यता आ ैर संस्कृति है उतना ही विस्तृत एव ं विषाल यहाँ के संगीत का अतीत ह ै। भारतीय संगीत का उद्भव सामदेव की ऋचाओं से ह ुआ है तथा इसका शैषव काल ऋषि मुनियों की तपोभूमि तथा यज्ञवेदिया ें क े पावन घ्र ुम क े सान्निध्य में सुवासित हा ेकर व्यतीत ह ुआ। यही कारण है कि भारतीय मनीषियों ने नाद का े ईश्वर के समान कहा गया ह ै, तथा नाद ब्रह्य की सदैव उपासना की ह ै। “ न नादेन बिना गीतं न नादेन बिना स्वरः। न नृŸां तस्मान्नादात्मकं जगत्।। ” न ता े नाद के बिना गीत है, न नाद क े
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उषा, महोबिया. "मुगल चित्रकला म ें र ंग स ंया ेजन". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1. https://doi.org/10.5281/zenodo.891884.

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Abstract:
प ्राचीन समय से ही भारतीय चित्रकला का इतिहास बह ुत समृद्ध विषाल एवं विस्तृत रहा है। मुस्लिम आक्र्रमण से प ूर्व जैन, बौद्ध एवं हिन्दुओ ने चित्रकला के क्षंेत्र में अपना योग दान दिया। अज ंता चित्रकला विष्व में प ्रसिद्ध ह ै, आ ैर इन चित्रो का निर्माण गुप्त काल मे ह ुआ जिन पर प्राकृतिक रूप से बने रंगा े का प ्रयोग किया गया ह ै। मध्यकाल मे चित्रकला मै महात्वप ूर्ण परिवर्तन आये, सल्तनत काल की चित्रकला र्मै इ रानी प ्रभाव देखने को मिलता ह ै। दरबारी चित्र, वीणा, सितार, वेषभूषा, आभ ूषण आदि के चित्रा े में सजीव रंगा े का प ्रया ेग किया गया । जिनसे चित्र सजीव, जीव ंत प्रतीत होते है । आ ैर इन चित्रो में न
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शिल्पा, मसूरकर. "स ंगीत म ें नवाचार फ्यूज ़न म्यूजिक". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.885869.

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Abstract:
भारत देश कला व संस्कृति का प ्रतीक माना जाता ह ै। भारतीय संगीत हमारे भारत की अमूल्य धरा ेहर क े रूप में अति प ्राचीन काल से ही सर्वोच्च स्थान पर विद्यमान है। सृष्टि की उत्पत्ति के साथ ही संगीत भी अस्तित्व में आया होगा, ऐसा माना गया ह ै, परंतु देखा जाये तो प ्रकृति क े रोम-रोम में ही संगीत बसता है, नदियों की बहती धारा, कल-कल की ध्वनि, हवा की सन्-सन् ध्वनि, पत्तों से टकराती हवा की ध्वनि व पत्तों पर गिरती बारिश के बूंदों क े टप्-टप् की ध्वनि, पक्षियों की चहचहाट आदि में संगीत को देखा, सुना, समझा व महसूस भी किया जा सकता ह ै। संगीत ही धर्म, अर्थ , काम और मोक्ष का एकमात्र साधन है। भारत में पिछले र्कइ
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डा, ॅ. प्रमिला षेरे. "चित्रकला म ें र ंगा ें का समन्वय एव ं स ंयोजन (प्रागैतिहासिक काल एव ं आधुनिक काल क े स ंदर्भ में)". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.888823.

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Abstract:
भारत के विभिन्न क्षेत्रा े ं से उपलब्ध वस्त्रा ें, पाशाणचित्रा ें, मृत्तिका पात्रा ें, लाल-पीले रंगा ें में चित्रित रेंगते ह ुए कीड़ों, पशुओं, पक्षियों मनुष्या ें आदि की आकृति का अध्ययन करके प ्रागैतिहासिक भारत क े कलाप्रेम का सहज ही मंे परिचय मिल जाता है। आज की भाँति आदि मानव भी सौन्दर्या े पासक था। इसी सा ैन्दर्यप ्रेम क े कारण वह अपने अमूर्त भावा ें का े मूर्त रुप देने की ओर प ्रवृत्त ह ुआ। इसके प ्रमाण हमें मोहनजोदड़ा े तथा हडप्पा की ख ुर्दाइ यों से उपलब्ध कला सामग्री में देखने का े मिलते ह ै। ऋगवेद की प ्राचीनतम मंत्र स ंहिता की एक ऋचा से ज्ञात होता ह ै कि उस समय चमड़े पर चित्र अंकित करने
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डा, ॅ. अर्चना रानी. "वर्ण-सौन्दर्य द्वारा दर्शक स े संवाद करती भारतीय कला". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–4. https://doi.org/10.5281/zenodo.888762.

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Abstract:
कला और सौन्दर्य-ये दा े शब्द कला जगत में एक ज ैसे होते हुए भी बह ुत विस्तृत ह ैं। स्थूल तैार पर हम कला आ ैर सा ैन्दर्य में का ेई अन्तर नहीं कर पाते। सा ैन्दर्य एक मानसिक अवस्था ह ै आ ैर वह देश-काल से मर्या दित है। इस सा ैन्दर्य रूपी व ृक्ष की दो शाखायें ह ैं-एक प्रकृति तथा दूसरी कला। कलागत सौन्दर्य पर दा े दृष्टियों से विचार किया जा सकता है। पहली दृष्टि यह है जिसमें हम कलाकार को क ेन्द्र में रखकर विचार करते ह ै ं अर्थात् कलाकार की कल्पना में किस प ्रकार कोई कलाकृति आकार ग्रहण करती ह ै आ ैर वह किस रूप में दर्श कों क े सम्मुख प्रकट हा ेती ह ै। दूसरी दृष्टि में दर्श क का े क ेन्द्र में रखा जाता ह
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डा, ॅ. श्रद्धा मालवीय. "र ंगा ें का जीवन में प ्रभाव (स ूर्य किरणें)". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.891856.

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Abstract:
डा ॅ. लेबिस ने लिखा है कि ध ूप आ ैर पाचन की क्रियाआ ें में बड़ा घनिष्ठ सम्बंध ह ैं। यदि मनुष्य या अन्य किसी प्राणी पर प ्रति दिन सूर्य किरणें नहीं पड़ती, तो उसकी पाचन आ ैर समीकरण षक्ति क्षीण हो जाती ह ै। स्फुरण तथा मानव जीवन इन दोना ें का परस्पर घनिष्ठ सम्बंध ह ै। जीवन का सम्ब ंध प ्रकाष षक्ति तथा उसक े वर्ण वैभव से ह ै, न कि प ्रोटीन, ष्व ेत सार, हाइड्रोजन, कार्बन अथवा उष्णांक स े। आकाश आ ैर वायु-तत्व की भाँति प ्रकाष तत्व भी अत्यंत सूक्ष्म ह ै। प्रकृति क े हरे भरे प ्रषस्त अंचल में हम जा े अनेक रंगा ें क े चित्र देखते ह ै, यह सब स ूर्य की सतरंगी किरणों की ही माया ह ै। प ्रकाष में अन्तर्निहित
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डा, ॅ. साधना चैहान. "प्रकृति एव ं र ंग ;पर्यावरण के स ंदर्भ मेंद्ध". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.889233.

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Abstract:
मानव जीवन आ ैर प्रकृति का संबध पृथ्वी की रचना के साथ अटूट रहा ह ै, मानव ने प ्रकृति से प ्राप्त सभी चीजा ें का उपभोग अपने जीवनयापन आ ैर मना ेरंजन के लिये किया ह ै, एक ओर उसे प ्रकृति से भोजन, आवास आ ैर वस्त्र प ्राप्त होता है ता े दूसरी ओर प ्रकृति के दृश्या ें को देखकर और कलाकारों क े द्वारा चित्रित कर शान्ति की अदभूत अनुभूति होती ह ै। सर्व प ्रथम कलाकारों द्वारा जो चित्र चित्रित किये गय े उनमें प ्रकृति चित्रण नदी, पेड़, पा ैधे, पर्व त आ ैर पश ु पक्षी सभी चित्रित किये गये तथा इन्हें चित्रित करने में सहायक सामग्री रंग, तुलिका वह भी प्रकृति से प ्राप्त होती ह ै। सर्व प ्रथम कलाकारों ने प ्रकृत
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म, ंजु रानी. "स ुमित्रानंदनपंत क े काव्य म ें प ्रकृति-चेतना". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.882625.

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Abstract:
पर्यावरण हमारी प ृथ्वी पर जीवन का आधार ह ै, जो न केवल मानव अपित ु विभिन्न प्रकार के जीव जन्त ुओं एव ं वनस्पति के उद ्भव, विकास एव ं अस्तित्व का आधार है। सभ्यता क े विकास से वर्त मान युग तक मानव न े जा े प्रगति की ह ै उसमे ं पर्यावरण की महती भूमिका है और यह कहना अतिश्योक्ति न होगी कि मानव सभ्यता एव ं संस्कृति का विकास मानव पर्यावरण के समान ुकूल एव ं सामन्जस्य का परिणाम ह ैं यही कारण है कि अन ेक प्राचीन सभ्यतायंे प्रतिकूल पर्यावरण के कारण काल के गर्त में समा गई तथा अन ेक जीवा ें एव ं पादप समूहा ें की प ्रजातियाँ विलुप्त हो गयी और अनेक पर यह संकट गहराता जा रहा है। वास्तव में पर्यावरण कोई एक तत्व
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डा, ॅ. सुषमा श्रीवास्तव. "विज्ञापन की सृष्टि: स ंगीत की दृष्टि". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.886102.

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Abstract:
संचार को जीवन का पर्या य कहा जा सकता है हमारे शरीर की लाखों का ेशिकाएँ आपस में लगातार संचार करती रहती ह ैं। जिस क्षण यह प्रक्रिया बंद हो जाती ह ै उसी क्षण हम मृत्यु को प ्राप्त हा े जाते ह ैं। जीवन का दूसरा नाम संचार संलग्नता है, संचार-श ून्यता मृत्यु का द्योतक ह ै। वर्तमान परिवेश में संचार का व्यापक स्तर ह ै ‘जनसंचार‘ अर्थात जब हम किसी भाव या जानकारी को दूसरा ें तक पहुँचाते ह ै ं आ ैर यह प ्रक्रिया सामूहिक पैमाने पर होती है ता े इसे ‘जनसंचार‘ कहते ह ैं। जनसंचार में प्रेषक तथा बड़ी संख्या में ग्रहणकर्ता क े बीच एक साथ संपर्क स्थापित हा ेता ह ै एवं इस बात की संभावना बनी रहती ह ै कि सूचना या जान
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अभय, ज. ैन. "जलवायु परिवर्तन आ ैर मध्यप्रदेश". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.881829.

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Abstract:
विकास आ ैर पर्यावरण के बीच स ंत ुलन की बात लम्ब े समय से चली आ रही है, लेकिन विकास चक्र के चलत े कहीं न कहीं पर्या वरण की अनद ेखी होती आ रही है आ ैर ए ेसी स्थितियाँ आज हमार े सामन े चुना ैती एव ं सकंट के रूप म ें है। अन ेक स ंकल्प, वाद े, नीतियाँ आ ैर कार्यक्रम आदि के क्रियान्वयन के बावजूद भी पर्यावरण चुनौतियाँ हमार े सामन े ह ै। मौसम म ें बहुत अधिक उतार-चढ ़ाव हो रहे है, अधिक बरसात या सूखा पड ़ना संया ेग नहीं बल्कि पर्या वरण परिस्थितियों में आ रहे खतरनाक बदलाव के सूचक और परिणाम ह ै। जलवायु परिवर्त न से निपटना न केवल हमार े स्वास्थ्य के लिये बल्कि आन े वाली पीढि ़या ें के स्वास्थ्य को लाभ पहुँ
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स, ुधा शाक्य. "वर्तमान पर्यावरणीय समस्याएं एव ं सुझाव". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.883040.

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Abstract:
भारत में प ्राचीन काल से ही प्रकृति एव ं पर्यावरण का अट ूट संब ंध रहा है, और धार्मिक ग ्रंथा ें में प्रकृति को जा े स्थान प्राप्त है वह अत ुलनीय है। प्रक ृति की सुरक्षा के लिये हमारी संस्कृति में अन ेक प्रयास किये गये, सामान्य जन को प्रकृति से जोड ़े रखन े के लिये उसकी रक्षा, प ूजन, विधान, संस्कार आदि को धर्म से जोड ़ा गया। गा ै एव ं अन्य जानवरो ं का प ूजन व ंश रक्षा के लिये तथा विभिन्न नदियों, प ेड ़ों, पर्व तों का प ूजन उसकी सुरक्षा और अस्तित्व को बनान े क े लिये अति आवश्यक हा े गया था। पर ंत ु जैसे समय व्यतीत होता गया व्यक्तियों की विचारधारा, सोच, अभिव ृत्ति, आस्था, भावों में परिवर्त न होता
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सचिव, ग©तम (श¨ध छात्र्ा). "चित्र्ाकला म ंे र ंग (प्राग ैतिहासिक काल स े वर्तमान काल तक क े परिप्रेक्ष्य म ें)". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.892056.

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Abstract:
मानव जीवन में वर्ण (रंग) का महत्वपूर्ण स्थान ह ै। प्रत्येक वस्तु क¨ई न क¨ई रंग लिये हुये ह ै। वस्तुअ¨ ं के धरातल में रंग ह¨न े के कारण ही वह हमें दिर्खाइ देती ह ै। रंग¨ ं के प्रति मानव का आकर्ष ण कभी घटा नहीं है। इसीलिये आदिम गुफाचित्र्ा¨ं से ल्¨कर आधुनिक मानव तक ने स©न्दर्य क े विकास में रंग¨ ं का सहारा लिया है। रंग¨ ं का महत्व हमें मानव जीवन के इतिहास के हर अध्याय में देखने क¨ मिलता ह ै। वर्ण प्रभाव अर्थात् रंग प्रभाव के आधार पर चित्र्ा क¨ स©न्दर्य प्रधान बनाया जा सकता है। रंग हमारे जीवन का महत्वप ूर्ण हिस्सा है; इसके बिना प्रकृति उपस्थित किसी भी पदार्थ या जीव का अपना क¨ई वजूद नहीं ह ै। रंग¨
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डा, ॅ. सुषमा ज. ैन. "पर ंपरागत भारतीय चित्रकला म ें वर्णविधान". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.890523.

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Abstract:
भारतीय चित्रकला उस निःस्सीम पया ेधि की भांति विस्तारित ह ैं जिसक े ओर छा ेर तथा गहराई का सहज अनुमान नहीं लगाया जा सकता। आदिमकला सृजन एव ं उसकी परम्परा का इतिहास मानव सभ्यता के पदचिन्हों द्वारा रचा गया ह ै। चित्रकला वास्तव में रंगा े का संसार ह ै। प ्रकृति में व्याप्त रंग जब अ ंतरंग बन जाते है तब बाहर और भीतर के रंगा ें स े जो इंद्रधनुष बनता ह ै वही से चित्रकला उपजती ह ै रेखाआ ें से आकृतियों का निर्माण हा ेता है लेकिन रंग हमें अधिक आकर्षि त करते ह ै। मनुष्य की चेतना में व्याप्त रंगा ें का े रचने का नाम ही कला है1 । रंग आ ैर रेखाओं क े माध्यम से अपनी संव ेदनाआ ें क े प ्रथम अभिव्यक्ति आदि मानव न
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डा, ॅ० रश्मि जैन. "र ंगा े की बढती कीमता ें का तैलचित्र व्यवसाय पर प्रभाव - एक अध्ययन". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.888782.

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Abstract:
संसार के समस्त प ्राणिया ें मे केवल मानव एक ए ेसा प्राणी है जा े सोन्दर्य की अनुभूति करता है। मानव सभ्यता मे कला की उत्पत्ति मानव मन मे सा ेन्दर्य क े प ्रति जिज्ञासा क े कारण हुई ह ै। इसके माध्यम स े मनुष्य अपने भाव, मन की अनुभूति व्यक्त करके आन्नद महसूस करता ह ै अर्था त उसकी सृतनात्म प ्रव ृति की अभिव्यक्तिी कला के माध्यम से करता ह ै। इसमें चित्र,मूर्ति अभिनय,गायन,वादन एव ं हात्तका ेथत शामिल है। इसका उद्देश न क ेवल सृजन करना है बल्कि यह संस्कृति की परम्परा को बनाये रखने मे भी सहायक हा ेता ह ै, जो जनकल्याण क े लिए उपया ेगी ह ै। कला का े सामान्यतः दो वर्गो मे बाटाॅं जाता ह ै- ललितकला एवं व्यवस
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म, ुकेश दीक्षित. "सामाजिक समस्याएं व पर्या वरण: उच्चतम न्यायालय की भूमिका". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.882783.

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Abstract:
पर्यावरण से मानव का गहरा संब ंध ह ै। मन ुष्य जब से इस पृथ्वी पर आया, उसन े पर्या वरण को अपन े साथ जोड ़े रखा है। सूर्य, चन्द ्रमा, पृथ्वी, पर्वत, वन, नदियां, महासागर, जल इत्यादि का प्रयोग मन ुष्य मानव विकास के आर ंभ से करता आ रहा है। मन ुष्य अपन े द ैनिक जीवन में लकड ़ी, भोजन, वस्त्र, दवायें इत्यादि प्राप्त करन े हेत ु प्राकृतिक सम्पदा का शुरू से उपयोग किया है और वर्त मान मे निर ंतर जारी है। सामाजिक परिवर्त न क े साथ औद्योगिक विकास एव ं जनसंख्या वृद्धि म ें पर्यावरण को प्रभावित किया है। औद्योगीकरण के कारण व्यक्ति आज अपनी आवश्यकता क े अन ुरूप पर्यावरण को बदलन े के लिये सक्रिय कारक बन गया है। वन
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हरीश, केशरवानी. "खेती के नये आयामः समझा ैता क ृषि". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–4. https://doi.org/10.5281/zenodo.883533.

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Abstract:
बढ ़ती जनसंख्या, बदलती जीवन शैली, कृषिगत उत्पादों का व्यवासायीकरण क े साथ साथ मौसमी परिवर्तनशीलता, उत्पादन प्रवृत्ति मे बदलाव और कृषिगत विषमता के परिणाम स्वरूप सबस े प्रमुख म ुददा कृषि के सुधार और विकास का ह ै। मानव अपन े विकास की चाहे जो सीमा निर्धारित कर ले पर ंत ु उसकी उदरप ूर्ति जमीन से उगे आनाज या उसके प्रसंस्करण स े ही होगी। कृषि के संदर्भ मे तमाम प्रकार के बदलावों क े परिणाम स्वरूप कृषि प ्रणाली मे भी बदलाव द ेखे जा सकत े हैं। साथ ही विश्व की जनसंख्या त ेजी के साथ बढ ़ रही ह ै तथा भारत के संदर्भ मे यह तथ्य है कि यह विश्व की द ूसरी सर्वाधिक जन ंख्या वाला द ेश है जा े 2030 तक यह चीन का े
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ज्योति, ढोल े. ""विश्वविद्यालयीन विद्यार्थिया ें म ें पर्या वरण जागरूकता: एक अध्ययन"". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–4. https://doi.org/10.5281/zenodo.881961.

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Abstract:
आज हम 21वीं सदी म े प्रव ेष कर च ुके है, जिसम ें विज्ञान आ ैर प्रा ैद्योगिकी एक महत्वप ूर्ण भूमिका निभा रहे ह ै। इस प्रगति न े जहां एक आ ैर ब्रह्माण्ड के अन ेक रहस्या ें को सुलझाया ह ै । वही द ूसरी और मानव का अन ेकान ेक सुख सुविधाए ं प्रदान की है। इन मानवीय प्रगति एव ं विकास म े पर्यावरण तो सद ैव सहायक रहा है, परन्त ु इस विकास की दौड ़ मे हमन े पर्यावरण की उप ेक्षा की आ ैर उसका अनियन्त्रित शोषण किया ह ै। तात्कालिक लाभा ें के लालच मे मानव न े स्वयं अपन े भविष्य को दीर्घ कालीन संकट मे डाल दिया है। परिणामस्वरूप जीवन क े स्त्रोत पर्यावरण का अवनयन होता जा रहा है। इसी परिप ेक्ष्य मे यह परियोजना कार्
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डॉ., सुषमा ज. ैन. "प्रया ेगात्मक कला - एक विशलेषण". International Journal of Research - Granthaalayah 6, № 12 (2018): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.2544823.

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Abstract:
अभिव्यंजना अथवा भावाभिव्यक्ति द्वारा सौंदर्य सृजन मनुष्य मात्र को चरम संतुष्टि प्रदान करता रहा है। फिर उसका माध्यम क ुछ भी हो अभिव्यक्ति ही कलाकार का मुख्य उद्देश्य रहता है वह अपन े उद्देश्य क े अन ुरूप माध्यम भी खोज लेता है। यह प्रक्रिया आदिमकाल से लेकर वर्त मान तक अनवरत रूप से जारी है। सर्वप्रथम मानव ने पत्थरों से शिलापट्टा ें पर आड़ी तिरछी र ेखाएँ उकेरी तत्पश्चात उसने प्रकृति प्रदत्त रंगा ें तथा जानवरों की चर्बी को माध्यम बनाया उसमें भी विविधता दर्शाने क े लिए उसने रंगों को पारदर्शी तथा अपारदर्शी रूप में उपयोग किया कहीं पूरक तथा कहीं अर्द्ध पूरक शैली का प्रयोग किया । कहीं र ेखाएँ खीची तथा क
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मालिनी, जाॅनसन, та ृता खत्र अम. "महाविद्यालय के छात्रा/छात्राओं म ें पर्यावरण संबंधी ज्ञान का स्तर". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.882407.

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Abstract:
पर्यावरण शब्द की उत्पत्ति परि ़ आवरण शब्द से ह ुई ह ै। सृष्टि को सभी ओर से घ ेरन े वाला, स्वच्छ आवरण है। शुद्ध पर्यावरण के बिना जीवन असंभव है। पर्या वरण प ्रकृति प्रदत्त हवा, पानी जमीन आदि से मिलकर बना है। पर्यावरण का े संत ुलित बनाये रखना आवष्यक ह ै। संत ुलन बिगड ़न े से जीवन खतर े म ें पड ़ सकता ह ै। औद्योगिक विकास तथा भौतिक स ुख-सुविधा के लिए लगातार पर्यावरण का हृास हा ेता जा रहा है। लगातार जंगला ें की कटाई होन े स े वर्षा क े स्त्रा ेत के का नष्ट हा ेना, वन्य जीव के जीवन नष्ट करना ही पर्यावरण का े असंत ुलित बना रहा ह ै। पर्यावरण के महत्वप ूर्ण अंग के रुप म ें वनों की भूमिका विकास के लिए अत
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प, ्रो. विनीता वर्मा. "वैश्वीकरण के युग में स ंचार साधना ें क े माध्यमा ें स े भारतीय संगीत की बढ़ती लोकप्रियता". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.887002.

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Abstract:
‘‘आ ना े भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः।’’ अर्था त् - ‘हे परम प ्रकाशक परमात्मा सद्विचार सभी दिशाओं में आयें। हमारे पूर्वज कितने दूर दृष्टा थ े, यह इस बात का द्योतक ह ै कि, जिस व ैश्वीकरण के महत्व का े शेष विश्व के लोग आज समझ पाये ह ैं, उसे हमारे मनीषिया ें ने बह ुत पहते ही निर्धा रित कर ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम्’’ की अवधारणा का े हमारी संस्कृति का आधार बनाया। वर्तमान समय में सम्पूर्ण विश्व में ह ुए तकनीकी विकास एवं संचार क्रान्ति के कारण समस्त विश्व ही एक ग्राम के समान ह ै, क्या ेंकि संचार साधनों ने इसे इतना जोड़ दिया ह ै कि प ूरी दुनिया ही चंद कदमा ें एव ं कुछ घ ंटा ें की दूरी में सिमट र्गइ ह ै और वि
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षषि, जोषी. "विस्थापन, पुनर्वा स एव ं पर्या वरण". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.883036.

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Abstract:
मन ुष्य अपनी सुख समृद्धि, भोग एव ं महत्वकांक्षाओं की प ूर्ति हेत ु जिस तरह प्राकृतिक संसाधनों एव ं पर्या वरणीय तत्वों का अनियोजित एव ं अनियन्त्रित प्रयोग कर रहा ह ै, इस कारण पयावरणीय विघटन एव ं असंत ुलन की स्थिति उत्पन्न हो र्गइ है। जल, वायु, भूमि, वन एव ं खनिज संजीवनी का निरन्तर विघटन हो रहा है, जल स्त्रोत स ूख रहे है, वातावरण विषाक्त हा े रहा है आ ैर भूमि का क्षरण भी हो रहा है। वनो ं के विनाष से पर्यावरण ह्ास में वृद्धि ह ुई है। इन सबके के साथ ही एक अमानवीय सामाजिक समस्या उत्पन्न हुई है और वह ह ै विस्थापन और पुनर्वास की समस्या। प ्रकृति के नजदीक निवास कर रहे लोगों की व्यथा, आदिवासी जनजातिया
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दिलीप, कुमार (अस्सिटेन्ट प. ्रोफेसर). "चित्रकला म ें र ंग (अजन्ता)". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1. https://doi.org/10.5281/zenodo.891774.

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Abstract:
अ ंजन्ता की गुफाआ ें मे भिति चित्रण 20र्0 इ 0 पू0 से लेकर 62र्0 इ 0 तक क े समय तक बनायी गयी ह ै इतने लम्बे समय अन्तराल क े बाद कुछ भिति चित्रों क े वर्ण सा ैष्ठव तथा लवण्य कम ह ुये ह ै फिर भी आज तक अजन्ता के चित्रा ें की आभा फीकी नही पडी है। अजन्ता के चित्रा ें में सुन्दर वर्ण छटा यत्र-तत्र विखरी दिखाई पडती है। यद्यपि इन चित्रा ें की चमक पर्या प्त धूमिल पड चुकी ह ै तथापि रंग जानदार प ्रतीत हा ेते ह ै। चमकदार नीचे, हरे तथा बैगनी रंग अपनी पूर्व आभा में आज भी जगमगाते ह ै। शरीर तथा कपडों का रंग लावण्य युक्त आ ैर संगत ह ै ं अजन्ता क े कुछ आरम्भिक चित्रों को छा ेडकर सोलहवीं तथा सत्रहवी गुफा में अजन्
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किशोर, एरंडे. "मानव जीवन में स ंगीत की उपादेयता". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Innovation in Music & Dance, January,2015 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.886065.

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Abstract:
समस्त ललित कलाआ ें में संगीत का स्थान अत्यन्त महत्वपूर्ण ह ै। इसके अध्ययन आ ैर अभ्यास से मनुष्य लौकिक तथा अलौकिक दोना ें सुख प्राप्त करता है। मानव जीवन संगीत से ओत-प्रा ेत ह ै। मनुष्य ज्ञान शील प्राणी ह ै। अतः उसे संगीत से विशेष आनन्द प्राप्त होता ह ै। मानव जीवन सदा संगीत से अनुप्राणित होता रहता है। मानव जीवन नाना प्रकार के उत्थान-पतन, हर्ष विवाद तथा राग द्वेष आदि द्वन्द्वात्मक भावा ें का केन्द्र होता ह ै। जहाँ एक आ ेर जीवन की जटिल समस्यायें मनुष्य का े चिन्तित करती रहती ह ै। वहाँ दूसरी ओर स ंगीत मनुष्य की सारी चिन्ताआ ें का निराकरण करता रहता ह ै। मानसिक तथा शारीरिक व्यथा से आक्रान्त हा ेकर जब
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भारती, खर े., та कुमार अंजलि. "वानिकी एवं पर्या वरण". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.574868.

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Abstract:
एक अरब स े ज्यादा जन सैलाब के साथ भारतीय पर्या वरण का े स ुरक्षित रखना एक कठिन कार्य ह ै वह भी जबकि हर व्यक्ति की आवश्यकताएॅ ं, साधन, शिक्षा एव ं जागरूकता के स्तर में असमान्य अंतर परिलक्षित होता है। संत ुलित पर्या वरण के बिना स्वस्थ जीवन की कल्पना करना मात्र एक कल्पना ही है। पर्यावरण स े खिलवाड ़ के परिणाम हम र्कइ रूप में वर्त मान में द ेख रहे हैं एव ं भोग रहे ह ैं। पर्यावरण विज्ञान आज के समय क े अन ुसार एक अनिवार्य विषय ह ै। यह सिर्फ हमारी ही नहीं अपित ु व ैश्विक समस्या ह ै। वर्त मान पर्यावरणीय अस ंत ुलन का े द ेखत े हुए इस विषय स े हर व्यक्ति का े जुड ़ना चाहिए एव ं जोड ़ना चाहिए। वानिकी एव
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आशा, सक्सेना स. ुनीता चैहान. "ज ैव विविधता और उसका संस्थितिक एवं असंस्थितिक स ंरक्षण". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.838910.

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Abstract:
सामान्य शब्दों में जैव विविधता से तात्पर्य सजीवों (वनस्पति और प्राणी) म ें पाए जान े वाले जातीय भेद से ह ै। व्हेल मछली से लेकर सूक्ष्मदर्षी जीवाणु तक मन ुष्य से लेकर फफंूद तक ज ैव विविधता का विस्तार पाया जाता है। पर्या वरणीय ह्रास क े कारण जैव विविधता का क्षय हुआ है। मानव के अनियंत्रित क्रियाकलापा ें, बिजली, लालच और राजनीतिक कारणांे से जैव विविधता का विनाष बहुत त ेजी स े हो रहा ह ै। लगातार बढ ़ती जनसंख्याा, नगरीय क्ष ेत्रों की वृद्धि बाॅधों, भवनो ं तथा सड ़कांे का निर्मा ण, कृषि के लिए वना ें का कटाव, खदाना ें की खुदाई आदि ए ेसे कुछ उदाहरण है जिनसे प ्राक ृतिक संसाधनों में कमी आई है। जैव विविध
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आचार्य Acharya, ओमप्रकाश Omprakash. "सिँजाली खस भाषाको वर्णव्यवस्था". Shabda Sadhana शब्दसाधना 7, № 1 (2024): 145–65. https://doi.org/10.3126/shabdasadhana.v7i1.75099.

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Abstract:
सिँजाली भाषा भारोपेली भाषापरिवारको शतम वर्गको आर्यइरानेली बाल्हीक खस हुँदै विकसित भएको हो । खस पूर्वी पहाडी भाषा सिँजाली पर्वते गोर्खाली र नेपाली भाषा विकसित हुनपुग्यो । वर्तमान समयमा त्यही सिँजा नेपालको कर्णाली प्रदेशको जुम्ला जिल्लामा पर्छ । सिँजादरा, सिँजाउपत्यका, सिँजाभेग भनेर चिनिन्छ । यही नेपाली भाषाको आधार भाषा रहेको सिँजाली खस भाषा भाषामा वर्णव्यवस्था कस्तो छ ? नेपाली भाषासँग यसको समानता र भिन्नता के कति छ भन्ने समस्यामा केन्द्रित भएर सिँजाली भाषाको वर्णव्यवस्थाको खोजी गर्नु नै यस अनुसन्धानात्मक लेखको मुख्य उद्देश्य हो । नेपाली भाषाको प्राचीन स्वरुप सिँजाली भाषा भएकाले यसको अध्ययन आवश्
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ेगरिमा, गुप्ता. "पणिक्कर की कृतियों म ें र ंगा ें का रसात्मक रूझान". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.890301.

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Abstract:
हम सभी अपने जीवन में रंग¨ ंे से व्यापक रूप में प्रभावित ह¨ते ह ैं हमारे सुख-दुख, उत्त्¨जना, विश्राम, उल्लास आदि सभी भावनाअ¨ं क े उद्दीपन में रंग¨ ं का प्रभाव देखा जा सकता ह ै। चित्र्ाकार की भाषा में रंग भावना एवं विचार के संक्षिप्त रूप ह¨ते ह ैं। प्रत्येक चित्र्ाकार द्वारा रंग¨ ंे क¨ प्रय¨ग करने की विधि व्यक्तिगत अनुभव अ©र रुचि से प्रभावित ह¨ती ह ैं, चित्र्ा के अर्थसार क¨ व्यक्त करने मंे चित्र्ाकार रंग की सामथ्र्य का उपय¨ग अपनी अनुभूत तकनीक स े करता ह ै। इस भ©तिक जगत में उस परम् शक्ति ने अनेक वस्तुअ¨ं का निर्माण किया ह ै। सम्भवतया जीवन भर उनकी संख्या भी न गिनाई जा सके। विभिन्न प्रकार के पत्थर
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साधना, राज. "भा ेज्य पदार्था े म ें अप्राकृतिक र ंगा े क े उपयोग स े समाज एवं स्वास्थ्य पर पडने वाल े प्रभाव". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1. https://doi.org/10.5281/zenodo.891846.

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Abstract:
रंग की परिभाषा रंग हज़ारो वर्षो से हमारे जीवन में व्याप्त है। प्रारंभ में मानव प ्राकृतिक रंगा ें का हि उपयोग करता था। उल्लेखनीय है कि मोहनजोदड़ा े आ ैर हड़प्पा की खुर्दाइ में सिंधु घाटी सभ्यता की जो वस्तुए प्राप्त र्ह ुइ ह ै उनमें ए ेसी मूर्तियाँ एवं बर्तन भी थ े जिन पर रंगाई की र्गइ थी। जिसमें लाल रंग क े कपड़े का एक टुकडा भी मिला। विषेषज्ञों क े अनुसार इस पर मजीठ या मजिष्ठा की जड़ से तैयार किया गया रंग चढ़ाया गया था। हाजरों वर्षों तक मजीट की जड़ आ ैर बक्कम वृक्ष की छाल लाल रंगा का मुख्य स्त्रा ेत थी। पीपल, गूलर आ ैर पाकड़, हल्दी आदि से रंग तैयार किया जाता था किंतु आजकल कृत्रिम रंगा े का े उ
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अर्च, ना परमार. "पर्यावरण संरक्षण". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–2. https://doi.org/10.5281/zenodo.883529.

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Abstract:
मानव शरीर प ंच तत्वों- प ्रथ्वी, जल, वाय ु, अग्नि आ ैर आकाश स े ही बना ह ै। य े सभी तत्व पर्या वरण के धोतक है। प ्रकृति मे मानव को अन ेक महत्वप ूर्ण प्राकृतिक सम्पदायें भी ह ै। जिसका उपयोग मन ुष्य अपन े द ैनिक जीवन में करता आया है ज ैसे- नदियाँ, पहाड ़, मैदान, सम ुद ्र, प ेड ़-पौधे, वनस्पति इत्यादि। प्रथ्वी पर प्राकृतिक संसाथनों का दोहन करन े से प्राकृतिक संसाथनो के भण्डार तीव्र गति से घटत े जा रह े है, जिससे पर्यावरण में असन्त ुलन बढ ़ रहा है। उसके परिणाम स्वरूप जल की कमी, आ ेजा ेन परत में छेद का पाया जाना, वना ें की अत्यधिक कर्टाइ से वना ें की कमी आना, सम ुद ्रों का जल स्तर बढना, ग्लेशियरों
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क, ुमक ुम भारद्वाज. "''किशनगढ़ श्©ली का पर्यावरण-प्रकृति चित्र्ाण की सांस्कृतिक परम्परा''". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.882061.

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Abstract:
‘‘राजस्थान की किशनगढ ़ श्©ली के चित्र्ा प्रकृति क¨ संरक्षित करके पर्यावरण जागरुकता क¨ आज के परिव ेश में प्रदर्शित करत े हैं। चित्र्ा¨ ं में वनस्पति, जल, वायु तीन¨ं पर्यावरणीय घटक प्रचुर मात्र्ाा में चित्र्ाित ह ैं। पर्यावरण में प्रकृति चित्र्ाण के साथ अध्यात्म दर्शन की सांस्कृतिक परम्परा क¨ ज¨ड ़ा गया ह ै। हरियालीमय सुरम्य वातावरण चित्र्ा¨ं मंे प्रकृति चित्र्ाण की सांस्कृतिक थाती पर्यावरण प्रद ूषित ह¨न े से बचान े का सन्द ेश जन-जन तक पहुँचाती प्रतीत ह¨ती है, ज¨ एक सकारात्मक प्रयास है। पर्यावरण का तात्पर्य समस्त ब्रह्माण्ड के न ैतिक एव ं जैविक व्यवस्था से ह ै, जिसके अंतर्गत समस्त जीवधारी ह¨त े
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