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डॉ., पहल मंजुल. "छायावाद: एक समग्र विवेचन और हिंदी साहित्य में इसका योगदान". INTERNATIONAL JOURNAL OF INNOVATIVE RESEARCH AND CREATIVE TECHNOLOGY 10, № 5 (2024): 1–20. https://doi.org/10.5281/zenodo.13989612.

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Abstract:
छायावाद हिंदी साहित्य का एक महत्वपूर्ण युग रहा है, जिसने हिंदी काव्य को एक नई दिशा दी। यह युग हिंदी साहित्य के इतिहास में लगभग 1918 से 1936 तक माना जाता है, जब हिंदी कविता में एक नई प्रवृत्ति ने जन्म लिया, जिसे छायावाद के नाम से जाना गया। छायावाद का उद्भव एक ऐसे समय में हुआ, जब भारतीय समाज में सामाजिक, राजनीतिक, और सांस्कृतिक बदलाव तेजी से हो रहे थे। प्रथम विश्व युद्ध और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की उथल-पुथल ने समाज में जागरूकता फैलाई, और इस जागरूकता का प्रभाव साहित्य पर भी पड़ा।छायावादी कविता का केंद्रबिंदु व्यक्तिगत अनुभूतियाँ, रहस्यवाद, और सौंदर्य की सूक्ष्म व्यंजना है। यह काव्यधारा एक प्रक
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मिनेश्वरी. "हिंदी-काव्य में 'साकेत' का स्थान". International Journal of Research - Granthaalayah 7, № 11 (2019): 82–84. https://doi.org/10.5281/zenodo.3556919.

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Abstract:
मैथिलीषरण गुप्त भारतीय मनीषा के ऐसे साधक हैं, जो मानवता और संस्कृति के रक्षार्थ प्राणपन समर्पित रहे भारतीय प्राचीन विचारधारा व आधुनिक विचार और जीवन-पद्धति से जोड़ने में सफलता हासिल किए हैं। ‘साकेत’ इनका सफल प्रयास रहा। यह एक सर्वोत्तम प्रबंध-काव्य है, जो भारतीय आस्थाओं और मान्यताओं को भावनात्मक स्वर मिला। प्राचीन विशयवस्तु को नए परिवेष में प्रस्तुत किया है। ‘साकेत’ के सृजन के मूल दो प्रेरणाएँ थी- ‘‘(1) रामभक्ति, (2) भारतीय जीवन को समग्र रूप में देखने और समझने की लालसा।’’1 रामभक्ति स्वभावतः रामकाव्य की ओर संकेत करती है, जीवन-दर्षन जीवन-काव्य की ओर
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Ranga, Reena. "समकालीन हिंदी कविता में वैश्वीकरण और व्यवसायीकरण". ShodhKosh: Journal of Visual and Performing Arts 6, № 1 (2025): 122–25. https://doi.org/10.29121/shodhkosh.v6.i1.2025.5657.

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Abstract:
यह शोध पत्र समकालीन हिंदी कविता पर वैश्वीकरण और व्यावसायिकता के प्रभाव का विश्लेषण करता है। वैश्विक संस्कृति के प्रसार और बाजार आधारित विचारधाराओं के प्रभाव ने हिंदी काव्य-प्रकटीकरण में परिवर्तन और प्रतिरोधकृदोनों को जन्म दिया है। कुछ कवि उपभोक्तावाद, सांस्कृतिक क्षरण और पूंजीवादी शोषण जैसे विषयों की आलोचनात्मक व्याख्या करते हैं, जबकि अन्य कवि वैश्वीकृत संसार में पहचान और आत्मीयता की दुविधाओं को अभिव्यक्त करते हैं। यह अध्ययन समकालीन हिंदी की चयनित कविताओं की विषयवस्तु, भाषा और शिल्प का विश्लेषण करता है, ताकि यह समझा जा सके कि कवि स्थानीय और वैश्विक संदर्भों के संगम पर कैसे संवाद करते हैं। मंगल
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Sharma, Mamta. "हिंदी साहित्य के एक महान, विचारक और साहित्यकार कवि: सुमित्रानंदन पंत". ShodhKosh: Journal of Visual and Performing Arts 5, № 6 (2024): 892–94. https://doi.org/10.29121/shodhkosh.v5.i6.2024.4165.

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Abstract:
यह अध्ययन हिंदी साहित्य में छायावाद (सिंबोलिज़म) आंदोलन के प्रमुख कवि सुमित्रानंदन पंत के जीवन और साहित्यिक योगदान पर आधारित है। 1900 में उत्तराखंड के कौसानी गाँव में जन्मे पंत की काव्य-यात्रा लगभग छह दशकों तक फैली रही (1916-1977)। उनके काव्य-विकास को तीन प्रमुख चरणों में विभाजित किया जा सकता है: पहला चरण छायावादी काव्य का था, दूसरा चरण मार्क्सवाद और फ्रायडवाद से प्रभावित प्रगतिवादी काव्य का, और तीसरा चरण अध्यात्मिकता और दार्शनिक विचारों से प्रेरित था। पंत के प्रमुख काव्य-संग्रहों में वीणा, पल्लव, युगांतर, चिदंबरा, और रजत शिखर शामिल हैं। उन्हें साहित्य अकादेमी पुरस्कार और ज्ञानपीठ पुरस्कार जैस
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विश्वकर्मा, डाॅ॰ बिजेन्द्र. "प्रगतिशील हिंदी कविता और त्रिलोचन का काव्य-संसार". International Journal of Humanities and Arts 4, № 1 (2022): 53–60. http://dx.doi.org/10.33545/26647699.2022.v4.i1a.100.

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विश्वकर्मा, डाॅ॰ बिजेन्द्र. "प्रगतिशील हिंदी कविता और त्रिलोचन का काव्य-संसार". International Journal of Humanities and Arts 2, № 1 (2020): 43–45. https://doi.org/10.33545/26647699.2020.v2.i1a.100.

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प्रो., डॉ. संतोषकुमार गाजले. "भारतीय ज्ञान परंपरा में गोस्वामी तुलसीदास का योगदान". International Journal of Advance and Applied Research S6, № 18 (2025): 155–59. https://doi.org/10.5281/zenodo.15245270.

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Abstract:
हिंदुओं के आराध्य एवं हिन्दू संस्कृति के मुख्य आधार कहे जाते हैं राम मानवीय मूल्यों और सामाजिक सरोकारों से सराबोर है राम और उनका चरित्र मानवीय संवेदना, करुणा, दया, सहानुभूति आदि गुणों के प्रतीक और सबका हित चाहने वाले व्यक्तित्व के रूप में प्रसिद्ध है राम का आदर्श चरित्र हिंदी साहित्य की सगुण भक्ति धारा में काव्य रचना दो तरह की मिलती है- एक कृष्ण पर आधारित काव्य रचना दूसरी राम पर आधारित । राम पर आधारित काव्य रचना करने वाले कवियों ने राम को आराध्य मानकर उनके माध्यम से अपनी काव्य साधना का परिचय दिया । राम को विष्णु अवतार एवं दशरथ पुत्र के रूप में जाना जाता है, अतः राम भक्ति के रूप में वैष्णव भक्त
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डॉ., सूरज बाळासो चौगुले. "२१वीं सदी के भारतीय भाषाओं से अनूदित हिंदी काव्य में चित्रित हाशिए का समाज". International Journal of Humanities, Social Science, Business Management & Commerce 08, № 01 (2024): 84–89. https://doi.org/10.5281/zenodo.10478604.

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Abstract:
भारत देश विभिन्न संस्कृति, प्रदेश, भाषा आदि का मिला-जुला रूप है। इस देश की विविधता ही भारत की सही पहचान है। भारत में अनेक भाषाएं बोली और समझी जाती है। इन प्रादेशिक भाषाओं की अपनी अलग पहचान है,अपना अलग साहित्य है। हर प्रदेश की भाषा का साहित्य अपनी मिट्टी की समस्याओं को उद्घाटित करता है। जहां समस्या होती है वहां दो वर्ग निश्चित होते हैं,एक समस्या निर्माण कर अपना निजी स्वार्थ देखने वाला और दूसरा इस समस्या से पीड़ित होने वाला वर्ग। समस्या से पीड़ित वर्ग में अधिक मात्रा में हाशिए का वह समाज है जो पिछड़ा, दीन, दलित और परंपरा से चला आया है। भारत देश, प्रादेशिक विविधताओं में बटने के बावजूद भी पूरे देश
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., अनुबाला, та डॉ दिग्विजय के. शर्मा. "ब्रजभाषा कवियों की भाषा शैली और उनके योगदान का समालोचनात्मक अध्ययन". Journal of Frontiers in Multidisciplinary Research 6, № 1 (2025): 297–301. https://doi.org/10.54660/.jfmr.2025.6.1.297-301.

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Abstract:
ब्रजभाषा मध्यकालीन हिंदी की प्रमुख साहित्यिक बोली रही है, जिसमें भक्तिकालीन कवियों ने कृष्णभक्ति, प्रेम, वात्सल्य, नारी-भावना, सांस्कृतिक चेतना और धार्मिक समरसता को अत्यंत प्रभावशाली ढंग से व्यक्त किया। इस शोध पत्र का उद्देश्य ब्रजभाषा के प्रमुख कवियों—सूरदास, रसखान, मीरा बाई, बिहारीलाल, नंददास आदि की भाषा शैली की विश्लेषणात्मक विवेचना करना और उनके साहित्यिक व सांस्कृतिक योगदान को रेखांकित करना है। ब्रजभाषा की कोमलता, माधुर्य, लयात्मकता और भावप्रवणता ने इसे भक्तिकाव्य के लिए आदर्श माध्यम बनाया। सूरदास के पदों में वात्सल्य और भक्ति की गूढ़ता है, मीरा के गीतों में आत्मनिष्ठ भाव और विरह है, रसखान
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Dr. Bimal Malik. "छायावाद युग की विशेषताएँ – एक अध्ययनात्मक विश्लेषण". International Journal for Research Publication and Seminar 15, № 4 (2024): 163–66. https://doi.org/10.36676/jrps.v15.i4.267.

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Abstract:
छायावाद हिंदी साहित्य का एक क्रांतिकारी युग था जिसने कविता को नए भावबोध, नवीन शिल्प और आत्मान्वेषण की दिशा प्रदान की। इस युग में कवियों ने आत्मा, प्रकृति, सौंदर्य, प्रेम और रहस्य को केंद्र में रखकर काव्य-सृजन किया। यह शोध-पत्र छायावादी युग की प्रमुख विशेषताओं, इसके ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य, प्रमुख कवियों और साहित्यिक योगदानों का विश्लेषण प्रस्तुत करता है। छायावाद हिंदी साहित्य का एक महत्वपूर्ण युग है, जो लगभग 1900 से 1920 तक फैला। यह युग रोमांटिसिज्म और भावुकता से ओतप्रोत था, जिसमें कवियों ने अपने व्यक्तिगत अनुभवों, मनोभावों और प्रकृति के माध्यम से मानव मन की गहराइयों को उजागर किया।
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डॉ., बी.आर. गायकवाड. "तिनका तिनका आग और दलित चेतना". Journal of Research & Development' 14, № 8 (2022): 99–104. https://doi.org/10.5281/zenodo.6988642.

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Abstract:
<strong>सार: </strong>डॉ. जयप्रकाश कर्दम का दूसरा काव्य संग्रह है &#39;तिनका तिनका आग&#39; । दलित चेतना की दृष्टि यह काव्य संग्रह हिंदी दलित कविता की महत्त्वपूर्ण कड़ी है। इस संग्रह में भी कवि की दृष्टि लोकरंजन के बजाय लोकमंगल की ओर अधिक रही है इसीलिए यहाँ पर कवि ने संप्रेषणीयता को अधिक महत्त्व दिया है। दलित समाज में स्थित विसंगतियों को उन्होंने बड़ी मार्मिकता से प्रभावपूर्ण रूप से उभारा है। दलित चेतना के विविध पक्षों को उन्होंने इस काव्य में उद्घाटित करने का प्रयास किया है। जिस दलित चेतना के परिवेश में उन्होंने अपना जीवन व्यतीत किया, उसी परिवेश में उनकी कविता फलती-फूलती है। नव परिवर्तन का संद
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प्रा., कविता तुकाराम चानकने. "२१ वीं सदी के हिंदी काव्य में चित्रित हाशिए का समाज". International Journal of Humanities, Social Science, Business Management & Commerce 08, № 01 (2024): 138–43. https://doi.org/10.5281/zenodo.10483888.

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Abstract:
२१ वीं सदीं में भारत को सार्वभौमिक राष्ट्र बनाने के लिए हमें गरीबीं, भूख, युद्ध, सामाजिक - आर्थिक विषमता के प्रश्न पर गंभीरता से विचार करने की जरुरत है। प्राचीन काल से वर्तमान काल की कविताओं में समाज द्वारा प्रताड़ित, पूंजीपतियों द्वारा शोषित तथा भूमंडलीकरण से प्रभावित एक ऐसा जनसमुदाय जिसे हाशिए का समाज कहा जाता है, मूल केंदीय विषय बना है। दलित समाज और हाशिए में मुलभुत अंतर केवल इतना है कि, कृषि - कर्मियों और नौकरों के साथ अस्पृश्यता का बर्ताव नहीं किया जाता।'' संस्कृत, मराठी, हिंदी, अंग्रेजी भाषा कोई भी हो, उस भाषा में लिखी गई कविताएँ उस समाज की आत्मपीड़ा, शोषण, वेदना को अभिव्यक्त करती है। का
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जितेश्वरी, साहू. "२१वीं सदी के हिंदी काव्य में चित्रित हाशिए का समाज : दलित विमर्श". International Journal of Humanities, Social Science, Business Management & Commerce 08, № 01 (2024): 226–33. https://doi.org/10.5281/zenodo.10509478.

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Abstract:
दलित साहित्य दलितों पर गुजरी हुई आप बीती का साहित्य है। उनके द्वारा जिया हुआ और भोगा हुआ सत्य का कटु अनुभव है, उन कटु अनुभवों को समाज के समक्ष रखकर उन पीड़ाओं से मुक्ति का आव्हान करने वाला साहित्य का वह अंश जिसमें हजारों वर्षों से हमारी सामाजिक व्यवस्था में कृषक, दलित और नारी ही पीड़ित रहे एक आंदोलन का रुप लेकर उस व्यवस्था के प्रति विद्रोह जताते हुए अपने स्वत्व अधिकार हेतु सघर्ष का तीव्र स्वर दलित साहित्य है। वास्तव में दलित साहित्य पीड़ितों और वंचितों के जागरण का स्वर है। सदियों से उन्हे कमजोर समझ कर उनके साथ अन्याय, अत्याचार और घृणा पूर्ण निम्नतर पाशविक व्यवहार किया जाता रहा है। दलित साहित्य
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मेरावी, जयप्रकाश, та बलीराम अहिरवार. "हिंदी नवगीत परंपरा: प्रमुख नवगीतकारों के योगदान के मूल्यांकन पर एक अध्ययन". Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education 21, № 7 (2024): 63–67. https://doi.org/10.29070/4zcdb639.

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Abstract:
हिंदी साहित्य में नवगीत परंपरा आधुनिक हिंदी कविता में एक महत्वपूर्ण विकास का प्रतिनिधित्व करती है, जो 20वीं सदी के मध्य में स्वतंत्रता के बाद के भारत में सामाजिक-राजनीतिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों की प्रतिक्रिया के रूप में उभरी। यह लेख नवगीत रूप के उद्भव और विकास की पड़ताल करता है, जो इसकी संक्षिप्तता, यथार्थवाद और समकालीन मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने की विशेषता है। यह नरेश मेहता, नागार्जुन, श्रीपाल सिंह, वासुदेव सिंह और शमशेर बहादुर सिंह जैसे प्रमुख नवगीतकारों के योगदान का मूल्यांकन करता है, जिन्होंने इस शैली को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। व्यक्तिगत और सामाजिक विषयों के मिश्रण के
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रूपेश, कुमार. "आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी और उनकी साहित्यिक मीमांसा दृष्टि". RECENT RESEARCHES IN SOCIAL SCIENCES & HUMANITIES 11, № 3 (2024): 56–62. https://doi.org/10.5281/zenodo.13997595.

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Abstract:
जब कभी साहित्य की अंतर्वस्तु मानवता के विरुद्ध सर उठाती है तो साहित्य में सहज ही नकारात्मक जीवन मूल्यों का आगमन प्रारंभ हो जाता है। इस अटल सत्य से द्विवेदी जी भली-भांति परिचित थे। यह भी कारण था कि वह सदैव साहित्य में ज्ञान के संचार पर बल देते थे। आचार्य ने सरस्वती के माध्यम से नवीन पाठकों, लेखकों की एक सबल जमात ही खड़ी नहीं की बल्कि जिन्हें देश की सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, परिस्थितियों का भली-भांति ज्ञान हो ऐसे बाबूराव विष्णुपराडकर तथा गणेशशंकर विद्यार्थी आदि प्रगतिशील विचारधारा से ओतप्रोत पत्रकारों से भी समाज का साक्षात्कार करवाया। निर्दोषपूर्णता और नियमितता की दृष्टि से यह पत्रिका सर्वो
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डॉ., अर्चना चंद्रकांत पत्की. "स्वाधीनता आंदोलन और दुष्यंतकुमार का काव्य". 'Journal of Research & Development' 15, № 4 (2023): 34–36. https://doi.org/10.5281/zenodo.7695458.

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Abstract:
&lsquo;आजादी, स्वतंत्रता&rsquo; हमारा जन्मसिद्ध अधिकार हैl चाहे मनुष्य हो या पशुपक्षी उसे छिन ने का किसी को भी अधिकार नहीl हमारे देश को स्वतंत्र करने के लिए कईयौ का बलिदान रहा हैl ब्रिटिश साम्राज्य से 1947 तक की बात करेंगे तो हम देखते है कि हमारा देश गुलामी से जुझता रहा हैl आजादी को लेकर देश मे व्याप्त उथल-पुथल को हिंदी कवियों ने अपनी कविता का विषय बनाकर &nbsp;साहित्य के क्षेत्र में दोहरे दायित्व का निर्वाहन कर साहित्य को नई दिशा दी हैl हिंदी कवियों ने अपने कविता के माध्यम से स्वदेश व स्वधर्म की रक्षा के लिये &nbsp;राष्ट्रीय चेतना का आधार बनायाl स्वतंत्रता आंदोलन के आरंभ से लेकर स्वतंत्रता &nb
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डॉ., सविता लालासो नाईक निंबालकर. "२१वीं सदी के हिंदी काव्य में चित्रित हाशिए का समाज (प्रातिनिधिक रचनाओं के संदर्भ में)". International Journal of Humanities, Social Science, Business Management & Commerce 08, № 01 (2024): 274–79. https://doi.org/10.5281/zenodo.10544815.

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Abstract:
साहित्यकार समाज का अभिन्न अंग है। अपनी रचनाओं में सामाजिक चेतना को स्थान देता है। साहित्यकार अपने अनुभव और परिवेश से प्राप्त विचारों और संवेदनाओं को साहित्य में व्यक्त करता है। शोषित वंचित मानव की पीड़ा को वाणी देता है तब वह विद्रोही बन जाता है। वह सामाजिक सुधार कल्याण और प्रगति की अपेक्षा करता है। आधुनिक काल का साहित्यकार केवल मनोरंजन के लिए साहित्य सृजन नहीं करता बल्कि पथ निर्देशक बनाकर अपनी नैतिक जिम्मेदारी के साथ देश का समाज संस्कृति से प्रभावित होकर साहित्य सृजन करता है। सामाजिक चेतना के विभिन्न पहलुओं को खोलकर हमारे समक्ष रखता है। साहित्य समाज की आधारशिला है। साहित्य समाज को जागृत रखता ह
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डा, ॅ. प्रतिभा सोलंकी. "मध्यकालीन हि ंदी काव्य म ें र ंग संया ेजन". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH Composition of Colours, December,2014 (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.889259.

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Abstract:
साहित्य आ ैर चित्रकला का पारस्परिक घनिष्ठ अंतर्सबंध ह ै। दोना े क े माध्यम से जीवन के गहन उद्द ेष्या ें की प ूर्ति होती है। साहित्यकार के शब्द यदि हमारी भावना का े उद्वेलित कर सकते ह ै ं तो चित्रकार की तूलिका से अ ंकित रेखाएं आ ैर रंग भी हमारे ह ृदय के का ेमल पक्ष को छूने की अद्भुत शक्ति लिए होते ह ैं। कवि आ ैर चित्रकार दोना े ही अपनी कला प्रतिभा के जरिये सा ैंदर्य रचना करते ह ैं। कविता में शब्दों का तथा चित्रों में रंग आ ैर रेखाआ ें का सा ैंदर्य मौजूद रहता है।1 एक कुषल चित्रकार की भाँति साहित्यकार भी शब्दा ें क े माध्यम से सु ंदर बिंब एवं रंग स ंया ेजन प ्रस्तुत करता ह ै। मध्यकालीन हिंदी काव्
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KUMAR, LAVLESH. "भिखारीदास की नारी-दृष्टि (विशेष संदर्भ: रससारांश)". Global thought 7, № 26 (2022): 176. https://doi.org/10.5281/zenodo.15463076.

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Abstract:
भिखारीदास की नारी-दृष्टि (विशेष संदर्भ : रससारांश) लवलेश कुमार &nbsp; हिंदी साहित्य के इतिहास में आदिकाल और रीतिकाल हमेशा से सवालों के घेरे में रहा है। जहाँ आदिकाल ग्रंथों की प्रमाणिकता को लेकर तो वहीं रीतिकाल अपनी विषय सामग्री को लेकर खासकर श्रृंगार को लेकर चर्चा का विषय रहा है। आलोचकों ने रीतिकाल, श्रृंगारकाल, अंधकार काल, अश्लीलता भरा काव्य, मौलिकता का अभाव आदि रूपों में इसका बखान किया है। यह सब आलोचकों का रीतिकाल के प्रति बहुत ही उदासीन और एकांगी दृष्टिकोण को दर्शाता है। आज समय है इन पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर रीतिकाल पर चर्चा करने की बात है। हिंदी साहित्य के दो सौ वर्षों तक (संवत् 1700 190
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आशा, द. ेवी. "हिंदी-साहित्य म ें प्रकृति". International Journal of Research - GRANTHAALAYAH 3, № 9 (Special Edition) (2017): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.883531.

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Abstract:
हंदी साहित्यकारों का प्रकृति-प्रेम सर्वविदित है। आदिकाल , मध्यकाल आ ैर आधुनिककाल सभी कालों में प्रकृ ति पर काव्य-रचनाए े ं होती रहीं । प्रसिद्ध छायावादी कवि जयशंकरप्रसादजी लिखत े है ं- ले चल मुझे भुलावा द ेकर मेर े नाविक धीर े-धीर े-जहाँ निर्जन मे ं सागर-लहरी-अंबर के कानो ं में गहरी-निच्छल प्र ेमकथा कहती हो--तज कोलाहल की अवनि कवि न े यहाँ मानव की शांतिप्रियता को इ ंगित किया है ।मानव कोलाहलप्रिय नहीं है, और न ही वह ए ेसी धरती चाहता है।( सागर की लहर) और (अब ंर) के रूप में प्रकृति न े भी मानव से प्र ेम ही किया ह ै ।आज विचारणीय विषय यह है कि फिर ए ेसा क्या है, क्यो ं है, कौन ह ै जो मानव और प्रकृति
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Chaturvedi, Manjula, and Sunita Singh. "Environment in Contemporary Hindi Poetry." RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 7, no. 3 (2022): 35–37. http://dx.doi.org/10.31305/rrijm.2022.v07.i03.006.

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Abstract:
Environment today is a multifaceted term. The problem of environment is one of the most discussed problems in contemporary times. Environment has become the most discussed topic today. It is being discussed in many academic and non-academic contexts, for example, environment and society, green aesthetics etc. A new form of environment is emerging in Hindi literature, especially in contemporary Hindi literature. Contemporary poetry is composed by being compelled by the deep-pressures of thoughts. Here the normal human has come in the centre, ending the debate of great human and small human. In
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Ishtwal, Narendra, and Rahul Sharma. "Features of Contemporary Poems of Modern Hindi Literature Published in Jansatta." RESEARCH HUB International Multidisciplinary Research Journal 9, no. 2 (2022): 66–71. http://dx.doi.org/10.53573/rhimrj.2022.v09i02.012.

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Abstract:
The "Teesra Saptak" was published in 1959, till this period is considered to be the period of new poetry. In the post-1960 period, there was an individualist-modernist poetic line of new poetry, which developed more rapidly. Although the poets who emerged in this period wrote differently from their earlier poetic lines. But the poetry of the first decade after sixties, which is also named as Sathotari poetry, expresses itself with many names and movements. With various names like Akvita, Rebel poetry, beat poetry, Sanatan and Suryoori poetry, Yutsawadi poetry, Nutan poetry, Sahaj poetry, Vicha
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मौर्या, प्रेमलता, та डॉ रवि कुमार चौरसिया. "प्रमुख काव्य शास्त्रियों के अनुसार काव्य प्रयोजन". Humanities and Development 18, № 1 (2018): 58–62. http://dx.doi.org/10.61410/had.v18i1.112.

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Abstract:
काव्य सोद्देश्य होता है क्योंकि कोई भी मनुष्य किसी का र्य में तभी प्रवृत्त होता है जब उसे उसम इष्टसाधनता और कृतिसाध्यता का ज्ञान हो। ‘इदम्मदिष्टसाधनम्’ यह काम मेरे लिए इष्ट का साधन है, अतएव इसके करने में मेरे मनोरथ की सिद्धि होगी अथवा इस कार्य की कृतिसाध्यता भी है, मैं इसे भलह-भांति कर सकता हूँ। इस प्रकार का उभयविब ज्ञान होने पर ही मनुष्य किसी कार्य में प्रवृत्त होता है।
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प्रो., डॉ. सुनील बापू बनसोडे. "निर्मला पुतुल का काव्य : हाशिए के रूप में आदिवासी स्त्री". International Journal of Humanities, Social Science, Business Management & Commerce 08, № 01 (2024): 289–92. https://doi.org/10.5281/zenodo.10588931.

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Abstract:
इक्कीसवीं सदी के हिंदी साहित्य में विभिन्न विमर्शवादी साहित्य में आदिवासी विमर्श साहित्य पर काफी लिखा जा रहा है। आदिवासी स्वर को कविताओं के माध्यम से बुलंद करनेवालों में निर्मला पुतुल नाम विशेष उल्लेखनीय है। निर्मला पुतुल एक आदिवासी संथाली कवयित्री, लेखिका एवं सामाजिक कार्यकर्ता हैं। अब तक उनके तीन कविता संग्रह हिंदी में प्रकाशित हो चुके हैं। विवेच्य शोधालेख में निर्मला पुतुल की आदिवासी कविताओं के संग्रह &lsquo;नगाड़े की तरह बजते शब्द&rsquo; (2005 ई.) को आधार बनाया है। आदिवासी स्त्री दोहरा आभिशाप वाला जीवन जी रही हैं। एक वह स्त्री है और उपर से आदिवासी स्त्री होने के दंश को झेल रही है। सभ्य समा
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KUMAR, LAVLESH. "हिन्दी की स्वच्छंद काव्य परंपरा और रीतिमुक्त काव्य". Global thought 5, № 20 (2021): 200. https://doi.org/10.5281/zenodo.15463168.

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Abstract:
हिन्दी की स्वच्छंद काव्य परंपरा और रीतिमुक्त काव्य लवलेश कुमार स्वच्छंदतावाद रोमैटिसिज्य का हिन्दी अनुवार है। हिन्दी इस शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग संभवतः आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अपने ग्रंथ हिन्दी साहित्य का इतिहास में पं. श्री धर पाठक को स्वच्चांदतावाद का प्रवर्तक मानते हुए किया है। स्वच्छंदतावाद का अर्थ है 'प्राचीन रूढ़ियों से मुक्ति की आकांक्षा। वस्तुतः स्वच्छंदतावाद एक विश्वव्यापी आंदोलन रहा है। कुछ विद्वान् स्वच्छंदतावाद को शाश्वत सत्य के रूप में ग्रहण करते हैं। उनकी धारणा है कि स्वच्छंदतावादी तत्व संसार के प्रत्येक साहित्य में आदिकाल से अब तक बराबर विद्यमान रहे हैं। यदि भारतीय साहित्य को
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Meena, Tulsi Ram. "Various Dimensions of Folk Life in Surdas' Poetry." RESEARCH HUB International Multidisciplinary Research Journal 12, no. 1 (2025): 71–77. https://doi.org/10.53573/rhimrj.2025.v12n1.010.

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Abstract:
In Hindi literature, Mahatma Surdas has been greatly revered, yet critical analysis explaining the significance of the great poet Surdas remains scarce. Like every great poem, Sur's poetry demands understanding rather than mere reverence. The interpretation of Surdas' poetry, as left by scholars like Ramchandra Shukla and Hazari Prasad Dwivedi, has not progressed much beyond their initial assessments. Acharya Shukla’s critique marked the beginning of identifying the distinctive nature of Sur's poetry. He analyzed Sur’s sensitivity, imagination, deep emotional engagement, creative innovation in
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श्रेष्ठ, राजितवहादुर. "संस्कृत काव्यशास्त्रय् काव्य–गुण व दोष". Cognition 5, № 1 (2023): 242–49. http://dx.doi.org/10.3126/cognition.v5i1.55452.

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Abstract:
संस्कृत काव्यशास्त्रय् दकले न्हापांगु शास्त्रीय सफू नाट्शशास्त्र खः । भरतमुनि (अ. ईपू १ शदी)पाखें रचना जूगु नाट्यशास्त्रय् दकले न्हापां काव्य–गुण व दोषबारे चर्चा जुल । भरतं काव्य–गुणयात दोषया विपर्यय धकाः परिभाषित यात । भरतधुंकाः फुक्क हे धैथें काव्यशास्त्रीतय्सं काव्य–गुण व दोषया बारे चर्चा यात । काव्य–गुण व दोषबारे भाववादी शास्त्रीतसिबें देहबादी शास्त्रीत भतिचा कठोर जू । उत्कृष्ट काव्यसिर्जनाय् काव्यगुणया जक ज्ञान दःसां गाः धैगु विचाः दुपिं गुलिखे काव्यशास्त्रीतय्सं काव्यदोषबारे चर्चा तकं मयाः । इमिगु विचाःकथं गन दोषमुक्त जुइ, अन काव्यगुण जुइ । काव्य गुण हे काव्य दोषया विपर्यय (विपरित) खः धै
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Joshi, Anita. "POETRY AND CARTOGRAPHY." International Journal of Research -GRANTHAALAYAH 7, no. 11 (2019): 207–15. http://dx.doi.org/10.29121/granthaalayah.v7.i11.2019.3739.

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Abstract:
Art and poetry complement each other. The incorporation of poetry into fine arts and fine arts into poetry has given both poetry and art a plushness and fascination. The paper presented explains this interrelationship of poetry and painting, in which the similarity of painting and poetry, contribution to the creation of poetic images and expression in poetry painting have been embodied.&#x0D; कला एवं काव्य एक-दूसरे के पूरक हैं। ललित कलाओं में काव्य और काव्य में ललित कलाओं के समावेश ने काव्य एवं कला दोनों को ही सरसता एवं मोहकता प्रदान की है। प्रस्तुत शोधपत्र काव्य एवं चित्रकला के इसी अंतःसंबंध
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प्रा.ज्योती, बाबूराव चिलवंत. "हिंदी भाषा साहित्य : स्वामी दयानंद सरस्वती के विचार". International Journal of Advance and Applied Research S6, № 7 (2025): 350–53. https://doi.org/10.5281/zenodo.14792898.

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Abstract:
हिंदी भाषा साहित्य में महर्षि दयानंद सरस्वती की भूमिका उसे सशक्त और दृढ़ बनाने में रही है| उन्होंने अपने योगदान से हिंदी भाषा को एक स्थान निश्चित करवा कर देने में सक्रिय रहे हैं| दयानंद सरस्वती समाज सुधारक चिंतक और विचारक थे| हिंदी भाषा और साहित्य का इस धरातल पर धार्मिक नेताओं ने कई प्रकार में प्रभावित किया | हिंदी भाषा के संस्कृतिकरण में स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने सफलता पूर्वक कार्य किया | उन्होंने हिंदी भाषा के विकास में अनेक प्रकारों से हिंदी भाषा का वैचारिक स्तर बनाया रखा है |
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एन्, श्राव्या. "हिंदी भाषा और डिजिटल युग: अवसर और चुनौतियाँ". INTERNATIONAL JOURNAL OF SCIENTIFIC RESEARCH IN ENGINEERING AND MANAGEMENT 09, № 04 (2025): 1–9. https://doi.org/10.55041/ijsrem44869.

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Abstract:
संक्षेप डिजिटल युग ने हिंदी भाषा के विकास के लिए नए अवसर और चुनौतियाँ उत्पन्न की हैं। यह शोध "हिंदी भाषा और डिजिटल युग: अवसर और चुनौतियाँ" पर आधारित है, जिसमें हिंदी भाषा के डिजिटल माध्यमों में प्रसार, उसके प्रभाव और इससे संबंधित समस्याओं का विश्लेषण किया गया है। अध्ययन में यह पाया गया कि इंटरनेट, सोशल मीडिया, और ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म ने हिंदी भाषा के उपयोग को बढ़ावा दिया है। हिंदी ब्लॉगिंग, यूट्यूब चैनल, और डिजिटल समाचार पत्रिकाएँ इसके प्रमुख उदाहरण हैं। इसके अतिरिक्त, डिजिटल शिक्षण प्लेटफ़ॉर्म और मोबाइल एप्लिकेशन ने हिंदी को वैश्विक स्तर पर सुलभ बनाया है। हालांकि, इस डिजिटल बदलाव के साथ कुछ चुन
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कुमार, आकाश. "आधुनिक हिंदी कविता के विकास में द्विवेदी युग के कवियों का योगदान". Praxis International Journal of Social Science and Literature 4, № 12 (2021): 54–58. http://dx.doi.org/10.51879/pijssl/041210.

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Abstract:
हिंदी साहित्य के इतिहास की दृष्टि से देखें तो आधुनिक हिंदी कविता का कालखंड भारतेंदु युग से ही शुरू हो जाता है। परंतु उस दौर की कविता को पूर्णतः आधुनिक कविता नहीं कहा जा सकता। 'आधुनिक हिंदी कविता' यानि जिस कविता में आधुनिकता के लक्षण दिखाई देने लगें और आधुनिकता यानि कि मध्यकालीन जड़ता से मुक्ति, राष्ट्रीयता की भावना, प्रेम के प्रति नया दृष्टिकोण, सामाजिक बुराइयों का निषेध और इन सबके लिए उन तमाम मान्यताओं और परंपराओं के प्रति नकार का भाव जो इनके रास्ते में रोड़े अटकाती हों। इन लिहाज से न तो भारतेंदुयुगीन कविता को पूर्णतः आधुनिक कविता कह सकते हैं और न ही द्विवेदीयुगीन कविता को। आधुनिक कविता पहली
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हिदायेव, मिरवाहीद. "हिंदी पत्रकारिता का इतिहास". Oriental Renaissance: Innovative, educational, natural and social sciences 4, № 22 (2024): 128–31. https://doi.org/10.5281/zenodo.13765734.

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Abstract:
&nbsp; हिंदी पत्रकारिता का इतिहास भारतीय राज्य के इतिहास से घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ है। इसे चार मुख्य कालों में विभाजित किया जा सकता है । भारत में प्रकाशित होने वाला पहला हिंदी भाषा का अखबार, उदंत मार्तंड (द राइजिंग सन), 30 मई 1826 को शुरू हुआ।&nbsp;इस दिन को "हिंदी पत्रकारिता दिवस" के रूप में मनाया जाता है, क्योंकि इसने हिंदी भाषा में पत्रकारिता की शुरुआत को चिह्नित किया था।
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चापागाई Chapagain, विष्णुप्रसाद Bishnuprasad. "काव्य हेतु : एक अध्ययन". YAGYODAYA Journal 2, № 1 (2024): 141–48. http://dx.doi.org/10.3126/yj.v2i1.66300.

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Abstract:
प्रस्तुत लेखमा काव्य हेतुको परिचय एवम् काव्य हेतुको प्रकारको विश्लेषण गर्ने प्रयास गरिएको छ । काव्य हेतुबारे पूर्वीय आचार्य साथैहरुले दिएको परिभाषा एवम् विचारलाई केलाउने प्रयास गरिएको छ । साथै पाश्चात्य विद्धान्हरुको परिभाषा एवम्विचारलाई र नेपाली विद्धान्हरुको परिभाषालाई संक्षिप्त रुपमा चर्चा गरिएको छ । सिर्जनात्मक लेखनका कारक वा हेतु बारे पूर्व र पश्चिम दुवैतिर गहन रुपमा विचार गरिएको छ । पूर्वमा संस्कृतमा सिर्जनका कारक बारे भामहदेखि पण्डितराज जगन्नाथसम्म व्यापक चिन्तन मनन भएको पाइन्छ । यस विषयमा सबै विचारहरुको एउटै मत भने छैन । सिर्जनाका कारकहरु बारे पाश्चात्य विद्धान्हरुमा पनि मत भिन्नता पाइ
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प्रा., नरेंद्र संदीपन फडतरे. "आधुनिक तकनीकी और हिंदी कथा-साहित्य". International Journal of Advance and Applied Research 4, № 15 (2023): 30–32. https://doi.org/10.5281/zenodo.7866823.

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Abstract:
वर्तमान समय सूचना प्रौद्योगिकी का युग है, सूचना प्रौद्योगिकी एक सरल तंत्र है जो तकनीकी प्रयोग के सहारे सूचनाओं का संकलन, प्रक्रिया व संप्रेषन करता है। कंप्यूटर व सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में जो विकास हुआ है वह भाषा के क्षेत्र में भी मौन क्राँति का वाहक बन कर आया है। अभी तक भाषा जो केवल मनुष्यों के आवशकताओं को पूरा कर रही थी, उसे सूचना प्रौद्योगिकी के इस युग में मशीन व कंप्यूटर की नित नई भाषायी मांगों को पूरा करना पड़ रहा है। यह सर्वज्ञात है कि कंप्यूटर में राजभाषा हिंदी में कार्य करना सुगम बनाया है। हिंदी में कंप्यूटर स्थानीयकरण का कार्य काफी पहले प्रारंभ हुआ और अब यह आंदोलन की शक्ल ले चु
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Pooja Charan та Sharad Rathore. "डूंगरसी रत्नु काव्य समीक्षा". ShodhKosh: Journal of Visual and Performing Arts 5, № 4 (2024): 1002–6. https://doi.org/10.29121/shodhkosh.v5.i4.2024.3634.

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Abstract:
राजस्थान वीरों की भूमि है। यहां का इतिहास विश्व पटल पर विशेष स्थान रखता है। चारण कवियों के साहित्यक योगदान ने इतिहास को अमरत्व दिया। चारण कवियों में डूंगरसी रतनू महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं, जिन्होंने अपने काव्य में वीर रस के साथ-साथ भक्ति और प्रकृति का भी सुंदर वर्णन किया। उनके काव्य में वीरता, युद्ध, अश्व विद्या, और पौराणिक आख्यानों का उल्लेख मिलता है। डूंगरसी का संबंध चारणों की रतनू शाखा से था और वे जैसलमेर के दरबार से जुड़े हुए थे। इसके अलावा, डूंगरसी के काव्य में प्रकृति का वर्णन भी मिलता है। पक्षियों के व्यवहार और आकाशीय पिंडों का वर्णन उनकी प्रकृति विज्ञान की जानकारी को दर्शाता है। अलंकारो
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प्रा., डॉ. डमरे मोहन मुंजाभाऊ. "महादेवी वर्मा के रेखाचित्रों में समाज जीवन और पुरूष- "स्मृति की रेखाऍं" के संदर्भ में". International Journal of Advance and Applied Research 4, № 25 (2023): 36–39. https://doi.org/10.5281/zenodo.8242503.

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Abstract:
यह जानकर हिंदी प्रेमी बेहद प्रसन्न हुए है कि आधुनिक हिंदी साहित्य जगत में&nbsp; एक चर्चित साहित्यकार के रूप में छायावाद के चार आधारस्तंभ में से एक महादेवी वर्मा को माना जाता है।हिंदी साहित्य में महादेवी वर्मा जी का कार्य बेहद मौलिक और सराहनीय है। इसलिए मैंने महादेवी वर्मा पर आलेख लिखने का निश्चय किया है। उनके हिंदी साहित्य में कार्य और योगदान के लिए ह्रदय&nbsp; से नमन करते हुए यह छोटासा आलेख समर्पित है।
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हुररामोव, शुक्रुल्लो. "देशी छात्रों के हिंदी अध्ययन का केंद्र: केंद्रीय हिंदी संस्थान". Oriental Renaissance: Innovative, educational, natural and social sciences 4, № 22 (2024): 132–33. https://doi.org/10.5281/zenodo.13765739.

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Abstract:
केंद्रीय हिंदी संस्थान&nbsp;भारत सरकार&nbsp;के&nbsp;मानव संसाधन विकास मंत्रालय&nbsp;के अधीन उच्चतर शैक्षणिक केंद्र है । इसका मुख्यालय उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध शहर आगरा, भारत में स्थित है । इसके आठ केंद्र-&nbsp;दिल्ली,&nbsp;हैदराबाद,&nbsp;गुवाहाटी,&nbsp;शिलांग,&nbsp;मैसूर,&nbsp;दीमापुर,&nbsp;भुवनेश्वर&nbsp;तथा&nbsp;अहमदाबाद&nbsp;हैं। केंद्रीय हिंदी संस्थान की स्थापना सन्&nbsp;1960&nbsp;में भारत सरकार के तत्कालीन शिक्षा एवं समाज कल्याण मंत्रालय द्वारा&nbsp;उत्तर प्रदेश&nbsp;के&nbsp;आगरा&nbsp;शहर में की गई।संस्थान का मुख्य कार्य&nbsp;हिंदी भाषा&nbsp;से संबंधित क्षैक्षणिक कार्यक्रम चलाना, शोध कार्
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डॉ., खंदारे चंदू. "हिन्दी और मराठी की दलित आत्मकथाओं में सामाजिक अस्मिता". International Journal of Advance and Applied Research 4, № 40 (2023): 92–95. https://doi.org/10.5281/zenodo.10398880.

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Abstract:
<strong>सारांश</strong><strong>:</strong> भारतीय दलित साहित्य के प्रसंग में विचार करने पर यह पता चलता है कि सामाजिक विसंगतियों के खिलाफ मराठी साहित्य में तो दलित-लेखन डॉ.बाबासाहेब अंबेडकर के साथ शुरू हो जाता है, परंतु हिंदी में बहुत देर से यानी कि १९७५ के बाद और वह भी १९९० में मंडल कमीशन के बाद तेजी से आता है | हिंदी क्षेत्र में अधिकांश दलित लेखक अपने समाज के शोषण के कारणों की तलाश करते हुए वर्ण केंद्रित सामाजिक व्यवस्था से ही टकराते हैं | ज्योतिबा फुले और अंबेडकर की तरह हिंदी क्षेत्र को कोई बड़ा दलित विचारक नहीं मिलता है, इसी कारण हिंदी में मराठी की तुलना में दलित लेखन काफी देर से आता है | पर
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प्रा., बारकू मास्कर शिंगाडे. "हिन्दी भाषा साहित्य और स्वामी दयानंद सरस्वती के विचार". International Journal of Advance and Applied Research S6, № 7 (2025): 342–49. https://doi.org/10.5281/zenodo.14792890.

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Abstract:
<em>प्राचीन काल से हि हिन्दी साहित्य में समाजभिमूख विचार की भावना किसी न किसी रूप में विद्यमान रही है। आदिकाल के अधिकांश साहित्यकारों ने समाजभिमूख विचार की भावना से प्रभावित होकर राष्ट्रीय संबंधीत रचनाएं लिखी हैं। समाज का राष्ट्र से बहुत गहरा और सीधा संबंध है तथा साहित्य का समाज और राष्ट्र से सीधा संबंध हैं। वैदिक साहित्य से ही समाजभिमूख विचार की भावना के स्रोत विद्यमान रहे हैं। रामायण</em><em>, महाभारत आदि महाकाव्यों में भी समाजभिमूख विचार की भावना विद्यमान है। हिंदी साहित्य के इतिहास में तो आदिकाल से लेकर आधुनिक काल तक का अधिक मात्रा में साहित्य समाजभिमूख विचार की भावना से अंकित किया गया है।
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सिंह, गुरमीत. "उज्बेकिस्तान में हिंदी". Oriental Renaissance: Innovative, educational, natural and social sciences 4, № 22 (2024): 8–10. https://doi.org/10.5281/zenodo.13764927.

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Abstract:
ताशकंद स्टेट यूनीवर्सिटी ऑफ ओरियंटल स्टडीज(TSUOS) में वर्ष 2021 में विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में काम करने का अवसर समय की दृष्टि से छोटा&nbsp; अवश्य था लेकिन अनुभव और स्मृतियों की दृष्टि से देखूं तो बहुत कुछ सीखने-जानने को मिला। सबसे पहले तो उज्बेकिस्तान और ताशकंद के लोगों में हिंदुस्तान और हिंदी के प्रति असीम प्रेम देखकर किसी भी भारतवासी के लिए बहुत सुखद अनुभव होता ही है। हिंदी सीखने वाले विद्यार्थियों से लेकर टैक्सी ड्राइवर तक हर कहीं भारत के प्रति एक निच्छल उत्साह, ललक और प्रेम देखने को मिलता है। वैसे भी भारत और उज्बेकिस्तान के बीच संबंधों का इतिहास बहुत पुराना है।&nbsp;&nbsp;
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अनीता, जोशी. "काव्यचित्र एवं चित्रकाव्य". International Journal of Research - Granthaalayah 7, № 11(SE) (2019): 207–15. https://doi.org/10.5281/zenodo.3591507.

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Abstract:
कला और साहित्य मानव की रचना प्रक्रिया से प्राप्त कलात्मक निरूपण है। जिस तरह मानव के मानस में संवेदना, अनुभूति से प्राप्त ज्ञान संचित रहता है, जो उसे नई अनुभूतियों को समझने में सहायक सिद्&zwnj;ध होता है उसी तरह समूची जाति का अतीत उसके साहित्य व कला में सुरक्षित रहते हैं। अभिव्यक्ति का प्रथम माध्यम चित्रकला को माना गया है। आदिकालीन मानव द्वारा अपनी अनुभूतियों की अभिव्यक्ति चित्रों के माध्यम से की थी, तत्पश्चात्&zwnj; भाषा के विकास, लिपि की खोज एवं शब्द सृजन से काव्यकला का विकास हुआ। विद्वानों का मत है कि चित्रों से भाषा विकसित हुई। चित्रकला का माध्यम रेखा व रंग तो काव्य का माध्यम शब्द है। काव्य
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Dr., Akhilesh Kumar Sharma Shastri. "Hindi patrkarita ke samvardhan mein Aacharya Mahaveer Prasad Dwivedi ka yogdan." Nagaripracharini Patrika Samvat 2074, no. 3-4 (2017): 21–25. https://doi.org/10.5281/zenodo.15606853.

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Abstract:
पं. महावीर प्रसाद द्विवेदी की हिंदी साहित्य व पत्रकारिता के क्षेत्र में की गयी अतुलनीय सेवा के लिए हिंदी जगत व पत्रकारिता उनका चिरऋणी है और ऐसे ही किसी अन्य समर्थ व सक्षम आचार्य की बाट जोह रहा है जो पत्रकारिता को पीत पत्रकारिता से बचाने का माद्दा रखता हो और हिंदी भाषा और साहित्य को समृद्ध करने की अपरिमित क्षमता रखता हो। प्रस्तुत शोधालेख में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के हिंदी पत्रकारिता के क्षेत्र में किये गए महनीय योग को रेखांकित किया गया है। &ndash;डॉ. अखिलेश कुमार शर्मा 'शास्त्री'
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Dr. Bimal Malik. "नई कहानी आंदोलन का हिंदी साहित्य पर प्रभाव". Universal Research Reports 11, № 2 (2024): 247–50. https://doi.org/10.36676/urr.v11.i2.1538.

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Abstract:
नई कहानी आंदोलन हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण साहित्यिक परिवर्तन था, जिसने हिंदी कहानी लेखन को नया आयाम दिया। यह आंदोलन 1950 के दशक के बाद उभरा और परंपरागत कथा लेखन से हटकर सामाजिक, मानवीय और मनोवैज्ञानिक विषयों को प्रमुखता दी। नई कहानी लेखकों ने सरल भाषा और सहज शैली का प्रयोग करते हुए जीवन की जटिलताओं, व्यक्तित्व के अंतर्मन और यथार्थवादी चित्रण को प्रस्तुत किया। इस आंदोलन ने हिंदी साहित्य में पात्रों की गहराई, कथानक की सूक्ष्मता और सामाजिक यथार्थ का प्रभावशाली समावेश किया। नई कहानी ने हिंदी साहित्य को आधुनिकता की ओर अग्रसर किया और आलोचना, चिंतन एवं सामाजिक जागरूकता को बढ़ावा दिया। इस सारांश
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डॉ., रामरतन विट्ठलराव शिंदे. "हिंदी भाषा शिक्षण की चुनौतियाँ और समाधान". International Journal of Arts, Social Sciences and Humanities 03, № 02 (2025): 01–05. https://doi.org/10.5281/zenodo.15364235.

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Abstract:
यह शोध निबंध हिंदी भाषा शिक्षण की प्रमुख चुनौतियों और उनके समाधानों पर केंद्रित है। हिंदी, भारत की राजभाषा और सांस्कृतिक पहचान का महत्वपूर्ण हिस्सा होने के बावजूद, इसके शिक्षण में कई बाधाएँ हैं। प्रमुख चुनौतियों में पुरानी शिक्षण विधियाँ, शिक्षकों का अपर्याप्त प्रशिक्षण, छात्रों की घटती रुचि, संसाधनों की कमी, और अंग्रेजी के दबदबे के साथ नीतिगत कमियाँ शामिल हैं। इनके परिणामस्वरूप हिंदी शिक्षण प्रभावी और आकर्षक नहीं रह पाता। समाधान के रूप में, निबंध आधुनिक शिक्षण विधियों (जैसे गतिविधि-आधारित और संप्रेषणात्मक दृष्टिकोण), डिजिटल संसाधनों का विकास, शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम, और नीतिगत सुधारों, विश
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Banshiwal, Bhagavati. "Separation pain in Mahadevi's poetry." RESEARCH REVIEW International Journal of Multidisciplinary 7, no. 1 (2022): 100–103. http://dx.doi.org/10.31305/rrijm.2022.v07.i01.013.

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Abstract:
Mahadevi's separation is present in all his poetry. Starting with pain, they are seen searching for their culmination in pain itself. Mahadevi ji's Vedanaubhuti is a spontaneous expression of the conceptual experience. The pain of his poetry has been considered more than the poetic pain of Meera. The life element of Mahadevi's poetry was her pain and suffering. She herself writes, 'Sorrow is such a poem of life near me that has the ability to bind the whole world in one thread. The main theme of his poetry is the eagerness to part with the beloved and find it. In her poetry, Mahadevi has prese
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डॉ., फेदोरा बरवा. "हिन्दी सिनेमा और उपन्यास में अंतर्सम्बन्ध". International Journal of Leading Research Publication 4, № 12 (2023): 1–3. https://doi.org/10.5281/zenodo.14435472.

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Abstract:
हिंदी सिनेमा ने सदैव समाज को नई दिशा प्रदान की है। भारत में ऐसी कितनी ही फिल्में हैं जो हिंदी साहित्य पर बनाई गई हैं और दर्शकों ने उन्हें काफी सराहा भी है। हिन्दी उपन्यास पर बनी फिल्में सबसे अधिक दर्शकों के मन को भाया है। क्योंकि यह उपन्यास इतने रोचक ढंग से लिखे गये थे कि पाठकों के हृदय को झकझोर कर रख दिया। यदि इस प्रकार के उपन्यास पर कोई फिल्मांकन करते है और उस फिल्म का अभिनय उतना ही अच्छा होता है तो यह उपन्यास एवं सिनेमा जगत की बहुत बड़ी उपलब्धि होती है। सिनेमा हिंदी साहित्य एवं उपन्यास से कभी भी अनभिज्ञ नहीं रह पाया है। हिंदी सिनेमा केवल मनोरंजन का पात्र नहीं बना किंतु उसने ऐसी कई भावनाओं क
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डॉ., युवराज राजाराम मुळये. "हिंदी साहित्य के विकास में महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती का योगदान". International Journal of Advance and Applied Research S6, № 7 (2025): 263–66. https://doi.org/10.5281/zenodo.14792652.

Full text
Abstract:
<em>&nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp;हिंदी भाषा और साहित्य के विकास में महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती का योगदान बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। फिर भी हिंदी के आज के स्वरूप और स्थान की बात करें तो इसे सशक्त और समर्थ बनाने में उनका योगदान अप्रतिम रहा है। स्वामी महर्षि दयानंद सरस्वती समाज सुधारक, चिंतक और विचारक थे। हिंदी भाषा और साहित्य को इस सुधारवादी धार्मिक नेता ने कई प्रकार से प्रभावित किया। हिंदी भाषा के विकास में और संस्कृतिकरण पर स्वामी जी का बहुत प्रभाव रहा था। उन्होंने इस भाषा को वाद-विवाद, खंडन- मंडण तथा शास्त्र के अनुकूल बनाया और तार्किकता के साथ-साथ इस व्यंग्य और कटाक्ष की शक्ति से सं
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डॉ., सरयू शर्मा. "हिंदी में क्षेत्रीय बोलियाँ और उनकी साहित्यिक अभिव्यक्ति". International Journal of Contemporary Research in Multidisciplinary 4, № 1 (2025): 207–11. https://doi.org/10.5281/zenodo.15510918.

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Abstract:
प्रस्तुत शोध पत्र हिंदी भाषा की विविध क्षेत्रीय बोलियों और उनकी साहित्यिक अभिव्यक्ति का विश्लेषणात्मक अध्ययन प्रस्तुत करता है। इस शोध का मुख्य उद्देश्य हिंदी की प्रमुख बोलियों की भाषिक विशेषताओं, उनके ऐतिहासिक विकास और साहित्यिक योगदान का अन्वेषण करना है। शोध के माध्यम से यह स्पष्ट किया गया है कि किस प्रकार क्षेत्रीय बोलियाँ हिंदी साहित्य को समृद्ध बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं और आधुनिक समय में इनका संरक्षण एवं संवर्धन क्यों आवश्यक है। &nbsp;
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शाह, डॉ.राखी.के. "भाषा और समाज, हिंदी भाषा पर प्रौद्योगिकी का प्रभाव". International Journal of Advance and Applied Research 5, № 23 (2024): 568–71. https://doi.org/10.5281/zenodo.13683073.

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Abstract:
सारांश &nbsp;:-मेरी भाषा में तोते भी राम राम जब कहते हैं,मेरे रोम रोम में मानो सुधा-स्रोत तब बहते हैं ।सब कुछ छूट जाय मैं अपनी भाषा कभी न छोड़ूंगा,वह मेरी माता है उससे नाता कैसे तोड़ूंगा ।।&nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp;मैथिलीशरण गुप
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Dr. Suman Sharma. "आधुनिक हिंदी साहित्य को आकार देने में लोक साहित्य की भूमिका". Universal Research Reports 12, № 2 (2025): 191–95. https://doi.org/10.36676/urr.v12.i2.1549.

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Abstract:
सांस्कृतिक अभिव्यक्ति के अधिक पुरातन रूपों और अधिक आधुनिक साहित्यिक विधियों के बीच एक सेतु के रूप में, लोक साहित्य आधुनिक हिंदी साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण रहा है। कहावतें, गीत, लोक कथाएँ, मिथक और गाथाएँ सभी कथाओं के विशाल संग्रह का हिस्सा हैं जो लोक साहित्य का निर्माण करती हैं, जिसकी उत्पत्ति मौखिक परंपराओं में हुई है। ये साहित्यिक विधाएँ न केवल समकालीन हिंदी लेखकों को प्रभावित करने वाली विशिष्ट कथा शैलियों को दर्शाती हैं, बल्कि वे उन समुदायों की सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक गतिविधियों को भी दर्शाती हैं जिन्होंने उन्हें बनाया है। समकालीन हिंदी साहित्य की उन्नति इसके कथात्मक, शैलीगत और व
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