Academic literature on the topic 'गोरक्षनाथ'

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Journal articles on the topic "गोरक्षनाथ"

1

अर्चना. "आधुनिक समाज में गोरक्षनाथ एवं शंकराचार्य के योग की प्रासंगिकता". Sahitya Samhita 10, № 7 (2024): 1–5. https://doi.org/10.5281/zenodo.13189571.

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2

AWASTHI, SUDHIR KUMAR. "भारतीय ज्ञान परंपरा के संवर्धन में महायोगी गोरक्षनाथ का अवदान". शोध धारा SPECIAL (1 квітня 2024): 90–94. https://doi.org/10.5281/zenodo.15347497.

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Abstract:
भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनतम् संस्कृति है और उतना ही पुराना है भारतीय ज्ञान-परंपरा का इतिहास। कल्याणकारी होने के कारण सदियों तक संघर्षों से जूझते हुए भी प्राचीन भारतीय ज्ञान-विज्ञान की गौरवमयी परंपरा समस्त जगत् को आज भी आलोकित कर रही है। हमारी भारतीय चिंतन परंपरा विश्व की एकमात्र ऐसी चिंतन परंपरा है जिसके मूल्य आज भी प्रासंगिक बने हुए हैं। आध्यात्मिक मूल्यों से सुसज्जित भारतीय ज्ञान-परंपरा के विकास में ऐसे विभिन्न उन्नायकों का योगदान निहित है जिन्होंने विपरीत समय में इसकी मूल चेतना को अक्षुण्ण बनाये रखने के स्तुत्य प्रयास किये है। इतिहास में महायोगी गोरक्षनाथ ऐसे ही महाउन्नायक हुए जिन्हो
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3

पायल, सिंह, та पारूल कुमार डाॅ. "प्राथमिक विद्यालयों में अध्ययनरत बच्चों के शारीरिक स्वस्थ्ता सम्बन्धित दक्षता कारकों पर हठयोग प्रदीपिका में वर्णित आसनों का संक्षिप्त विश्लेषण". International Journal of Trends in Emerging Research and Development 2, № 4 (2024): 08–11. https://doi.org/10.5281/zenodo.12788530.

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Abstract:
हठयोग प्रदीपिका यौगिक ग्रन्थ है। महर्षि के योग सूत्र को राजयोग भी कहा जाता है। यह छोटा और आसानी से याद हो जाता है। स्वात्माराम रचित हठयोग प्रदीपिका राजयोग रचना है। जोकि शारीरिक क्रियाओं से शुरू हाती है। हठयोग साधना का द्वितीय साधन आसन है। मन और शरीर को पुष्ट, दृढ़ और आरोग्य प्रदान करने की विशेष शारीरिक स्थितियाॅं आसन कहलाती है। गोरक्षनाथ जी ने आसन को स्वरूप चेतन आत्मा में स्थित हो जाना कहा है। मत्सयेन्द्रनाथ जी ने संतोष को आसन कहा है। इसका अर्थ यह है कि शरीर को जो स्थिति साधना के लिए साधक को सन्तुष्ट करती हो वही आसन है। महर्षि पंतजलि आसन को स्थित एवं सुख की स्थिर मानते हैं। महर्षि घेरण्ड आसनों
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4

डॉ. गोविन्द प्रसाद मिश्र. "‘महायोगी गुरु गोरक्षनाथ के दर्शन में व्यष्टि-पिंड का स्वरूप’". International Journal of Advanced Research in Science, Communication and Technology, 30 січня 2023, 890–97. http://dx.doi.org/10.48175/ijarsct-9268.

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Abstract:
अपने समय में प्रचलित युग प्रवाह को मोड़कर परिस्थितियों को अपने अनुकूल बनाने वाले , तत्कालीन विचार, दर्शन व मत मतान्तरों के प्रवाह परिमार्जित कर उसके भीतर से सार्वयुगीन समग्र तत्व को प्रकट करने वाले दार्शनिक चिंतन से परिपूर्ण, योग मार्ग के उन्नायक महान सिद्ध योगी गुरु गोरक्षनाथ, नाथ सम्प्रदाय के प्रथम उत्कर्ष प्रदाता व शास्त्र प्रसिद्ध 84 सिद्धों में से एक ,उच्च कोटि के परम सिद्ध योगी हैं जिन्हें "गोरक्षनाथ सिद्ध सिद्धान्त संग्रह नामक ग्रंथ '' में 'चतुरशीति सिद्धा: ' वाक्य से सम्बोधित करते हुए नाथ योग सम्प्रदाय की गुरु परम्परा का प्रवर्तन कर्ता कहा गया है। नाथ योगियों का विश्वास है कि नाथ पंथ के
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5

Baghel, Sarwan Singh, та Ritu Singh Meena. "नाथ संप्रदाय का राजनीतिक विश्लेषण". ShodhKosh: Journal of Visual and Performing Arts 5, № 1 (2024). http://dx.doi.org/10.29121/shodhkosh.v5.i1.2024.2306.

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Abstract:
नाथ हिंदू धर्म का संप्रदाय है। हिन्दू धर्म में कई संप्रदाय हैं। नाथ सम्प्रदाय में आज त्यागी तपस्वियों और गृहस्थ जाति का एक समूह शामिल है, जो दोनों अपनी वंशावली नौ नाथ गुरुओं के एक समूह से जोड़ते हैं, जिनका नेतृत्व आदिनाथ ("प्रथम नाथ") करते हैं, जिनकी पहचान भगवान शिव से की जाती है। नौ नाथों की अधिकांश सूचियों में अगला नाम मत्स्येन्द्रनाथ का आता है, उसके बाद गोरक्षनाथ (गोरखनाथ) का नाम आता है, जिनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने तपस्वियों के नाथ संप्रदाय की स्थापना की थी। यह लेख गोरखपुर शहर, उत्तर प्रदेश और पूरे देश में फैले नाथ संप्रदाय पर आधारित है। इसका उद्देश्य अंतर्विरोधी, राजनीतिक उथल-पु
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